क्या आप असली होली का आनन्द टीवी पर लेते हैं ?

वर्तमान में टीवी  जीवन का अभिन्न अगं बन गया है ।  हर तरह के मनोरंजन व जानकारी देने में सक्षम हो गया है । टीवी के बिना दिन अधूरा सा महसूस होता है । क्योंकि सभी तरह के , विभिन्न धर्मों के त्योहारों की जानकारी टीवी पर आये दिन मिलती रहतीं है । यह सब कुछ " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । आये विचारों को देखते हैं : -
ईश्वर की महिमा अपार और अपरंपार है। उन्होंने हमें जन्म भी दिया है और विशेषताओं से सजाया संवारा भी है।इन्हीं विशेषताओं में से हममें एक विशेषता यह भी है कि हमारी पहुंच से जो चीज दूर होती है या यूँ कहें कि जो हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष में नहीं कर पा रहे हों, कठिनाई ,असुविधा या असंभव है तब भी हम कल्पना से अपने दिलोदिमाग में उस अपनी चाहत का  आभास  कर सकते हैं... अनुभव कर सकते हैं। 
' मुँह में पानी आना ' मुहावरा हमारी उसी विशेषता का अच्छा उदाहरण है। मिठाई की दुकान पर सजे हुई मिठाइयों को देखकर हम उन्हें देखकर ही खा लेने का आभास जिस तत्परता से करते हैं कि स्वाद की अनुभूति से हमारे मुँह में पानी आ जाता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।उन्हीं में से फिल्म या टी.वी. के सीरियल वगैरह की कहानियां व दृश्य होते हैं जिनके पात्र की संवेदनाओं को हम अनुभूत कर दृश्यानुसार दुःखी या आनंदित हो उठते हैं। इसी संदर्भ में हम यही बात असली होली का आनंद टी.वी. से लेने से समझ सकते हैं। होली न खेलने की हमारी वजह कितनी भी निजी हो परंतु यदि हमारी होली में मस्ती की चाह दिल में रही है और हम वो मस्ती नहीं कर पाये हैं,वैसी मस्ती हमें टी.वी. में देखने को मिल रही है तो अप्रत्यक्ष रूप से हम उसमें कल्पित रूप में सम्मिलित रहते हुये आनंद प्राप्ति का हिस्सा बन रहे हैं... आनंद ले रहे हैं।
यह स्वभाविक है,यथार्थ है... उचित और सार्थक भी है।बस, इतनी सावधानी और मर्यादा रखें कि आपके इस आनंद से किसी और के आनंद में खलल न पड़े।
 - नरेन्द्र श्रीवास्तव 
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
भारत में होली का त्यौहारोत्सव सभी के जीवन मे बहुत सारी खुशियॉ और रंग भरता है, लोगों के जीवन को रंगीन बनाने के कारण इसे आमतौर पर 'रंग महोत्सव' कहा गया है। यह लोगो के बीच एकता और प्यार लाता है। इसे "प्यार का त्यौहार" भी कहा जाता है। यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक हिंदू त्यौहार है, होली के त्यौहार का अपने आप में सामाजिक महत्व है, यह समाज में रहने वाले लोगों के लिए बहुत खुशी लाता है। यह सभी समस्याओं को दूर करके लोगों को बहुत करीब लाता है उनके बंधन को मजबूती प्रदान करता है। यह त्यौहार दुश्मनों को आजीवन दोस्तों के रूप में बदलता है साथ ही उम्र, जाति और धर्म के सभी भेदभावो को हटा देता है। एक दूसरे के लिए अपने प्यार और स्नेह दिखाने के लिए, वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए उपहार, मिठाई और बधाई कार्ड देते है। यह त्यौहार संबंधों को पुन: जीवित करने और मजबूती के टॉनिक के रूप में कार्य करता है, जो एक दूसरे को महान भावनात्मक बंधन में बांधता है। रंगो की होली से एक दिन पहले होलिका दहन की जाती है फिर अगले दिन होली खेली जाती है। रंगों का जीवन से गहरा संबंध होता है। रंग हमारी भावनाओं को दर्शाते हैं। रंगों के माध्यम से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से प्रभावित होता है। यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में होली का पर्व फूलों, रंग और गुलाल के साथ खेलकर मनाया जाता है। ज्योतिष के अनुसार जीवन से जुड़े ये रंग नौ ग्रहों की शुभता को बढ़ाने में भी मददगार साबित होते हैं।
आपस में भाईचारा बढ़ता है 
परन्तु आँज के समय होली से कुछ लोग परहेज़ करते हैं और घर बैठकर टीवी पर होली का हुड़दंग फ़िल्मी कलाकारों की होली , या हास्य कवि सम्मेलन देखने मे बिताते है । 
आज कल हर सिरीयल में त्यौहारों को बडे काम धाम से दिखाते है ।
फ़िल्मी हिरो हिरोइन अपने घरों में होली मनाते है वह दिखाते है  लोगों को मज़ा आता जो होली पंसद नहीं करते वो घर बैठ कर टी वी में होली देखे ...
मुझे तो रंगों सेप्यार है मैं खुब खेलती हूँ होली घर पर नहीं रह 
सकती खूब रंग लगाती हूँ रंग लगवाने से डरती नही , बस किसी को चोट न लगे कुँछ सावधानी रखें और घर बहार निकले सब पर रंग डाले अपने रिश्तों में मिठास भरे रंगों से 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
होली त्यौहार तो गले मिलने का है अच्छाई बुराई को मिटा कर सब को एक होने को और एक होकर मनाते हैं जाति धर्म सबको बुलाकर सब लोग मिलजुल कर एक दूसरे को गले मिलते हैं और गुलाल लगाते हैं भाईचारे का त्योहार है पर आज की बदलती दुनिया और परिवेश में हर त्यौहार व्हाट्सएप के जरिए भी मनाया जाता है इसके कई फायदे भी हैं और नुकसान भी है।पहले लोग एक दूसरे से मिलते जुलते थे और बड़े परिवार में रहते थे सुख-दुख में शामिल होते थे जाति धर्म को बुलाकर भाईचारे के साथ रहते थे लेकिन अब सीमित परिवार में लोग अकेले हो गए हैं और अकेलेपन को ही पसंद करते हैं वे लोगों के घर से नहीं जाते हैं और मिलने जुलने से दूर रहते हैं सारी दुनिया मोबाइल में ही सीमित रह गई है त्योहार के सारे रंग भी मोबाइल के जरिए ही मनाने में ही विश्वास रखते हैं।
अच्छा हुआ जो 
         गुजर गया फरवरी..!!
ये अंग्रेजी मोहब्बत 
         का महीना था साहब...!!

राधा कृष्ण का प्रेम
         तो अब परवान चढ़ेगा..!!
रसिया पर फागुन 
          का रंग जब चढ़ेगा...!!!
*होली आने वाली आदरणीय सभी रचनाकारों से अनुरोध है आप सुंदर-सुंदर अपनी रचनाएं इस मंच में शुरू कर सकते हैं आपका हार्दिक स्वागत है आज हिंदी के नाम आप सभी अपने मन को प्रफुल्लित कर कर सुंदर रचनाएं प्रस्तुत करिए। जय हिंदी।🙏🏻 है...!*
*रंगो से ना डरे...!!*
*रंग बदलने वालों से डरे...!!!*
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
टी वी तो आधुनिक युग में मनोरंजन के भी एक साधन के
 रूप में उपलब्ध है परंतु होली तो सदियों से उमंग, उल्लास,उत्साह और भाईचारे का पर्व है जिसमें जब तक एक दूसरे पर प्रेम का रंग लगा कर गले न मिला जाए यह संपूर्ण नहीं होता। होली पर ही तो हम सारे गिले-शिकवे भुलाकर रूठे हुओं को भी मना लेते हैं। खेलने के साथ विशेष पकवान भी मिलकर होली में खाने का अपना मज़ा है।
टी वी तो उनके लिए है जिन्हें रंगों से एलर्जी है या जो अपनी अस्वस्थता के कारण खेल नहीं पाते हैं। कुछ लोगों को टी वी के हुड़दंगी गानों से विशेष लगाव होता है वे टीवी छोड़ना नहीं चाहते। ये सब पुरूषों के लिए हो सकता है परंतु होली पर महिलाओं का रसोई कार्य इतना अधिक होता है कि चाह कर भी टी वी देखने की फुर्सत नहीं मिलती। अतः जो मजा आपस में मिलकर होली खेलने में है वो टी वी पर कहां?
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची - झारखंड
                 किसी ने कहा था विज्ञान अभिशाप है। पारम्परिक त्यौहारों पर विज्ञान का बहुत अधिक असर दिखाई पड़ता है। विज्ञान के वर्चस्व के आगे मानव पारम्परिक त्यौहारों की मूल भावना, परम्परा और संस्कृति को भूलता जा रहा है। 
               जातिवाद, धर्मांधता, और वायरसों के हमले त्यौहारों को  टी. वी. जैसे माध्यमों से मनाने के लिए मजबूर करतें हैं।  विज्ञान अभिशाप का मिथक  तोड़ने के लिए यह आवश्यक है कि शांति और सौहार्द्र पूर्ण वातावरण उत्पन्न करें।
- उदय श्री. ताम्हणे
 भोपाल - मध्यप्रदेश 
वर्तमान समय में मनुष्य की दिनचर्या को देखते हुआ यह प्रश्न स्वाभाविक ही है ।कुछ ऐसा करते भी हों तो कोई अतिश्योक्ति नहीं ।मेरा जहाँ तक मानना है कि असली होली का आनंद वास्तविकता के साथ है ।जमीन पर गांव घर गलु में अपनों के साथ है ।उसका कोई विकल्प नहीं हो सकता ।जिस तरह से वास्तविक यात्रा व यात्रा वर्णन पढने में अन्तर है ।घर में लगे घोड़े के चित्र को देखना है दूसरी ओर घोड़े का अपने हाथों स्पर्श करना है । होली आने में कुछ ही दिन शेष हैं ।जो लोग टीवी की होली पसन्द करते हैं ।इस बार असली होली जमीन जुड़ी होली मनाकर देखें ।शुभकामनाएं
- शशांक मिश्र भारती 
 शाहजहांपुर उत्तर - प्रदेश
 जी हाँ ,आज के समय में हम होली पर्व का आनंद टी.वी. प्रोग्राम के जरिये ही लेते हैं ,इसका मुख्य कारण  आज कल के हालात ....,क्योंकि कुछ लोग इस पर्व की पवित्रता की आड़ में अपनी निजी दुश्मनी निकालते हैं ...,और तो और लोग रंगों की जगह खतरनाक रंगों और अन्य चीजों का प्रयोग करते हैं जो की किसी भी तरह से अच्छा नहीं होता है ,इसके अतिरिक्त कुछ कतिपय लोग होली के नाम पर नशा आदि करके हुड़दंग मचाते हैं . इसके अलावा होली के वो सुनहरे दिन भी अब धीरे धीरे खत्म होते जा रहे हैं ....,कारण उनकी जगह अब हुड़दंग ने ले ली है . इन्ही सब कारणों के चलते ...,
अब होली पर्व का आनंद बाहर टोली में जाकर लेने के बजाय घर पर विभिन्न चैनलों पर रंगारंग प्रोग्राम को देखते हुए लेते हैं |
 - शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली - पंजाब
होली रंगों व आपसी गिले -शिकवे दूर कर मेलजोल बढ़ाने का त्योहार है ।एक दूसरे को रंग लगाकर गले मिलना,  मीठा खाना और खिलाना, बड़ो के चरण स्पर्श करना । फागुन हिंदू वर्ष का आखिरी महीना होता है । इसी समय बासंती मौसम, टेसू व पलास के  फूल बहुतायात पाये जाते हैं । उन्हीं का प्रयोग करके आपसी प्रेम भाव को बढ़ाया जाता है ।
पतझड़ की विदाई व नई कोपलों के स्वागत हेतु झूम कर नाँच गाना तो बनता ही है । होलिका दहन के समय शीत ऋतु के दौरान जो भी कीट व वातावरण में जो भी प्रदूषण फैला था वो भी  दूर होता है । साथ ही जब होलिका की अग्नि के चारो ओर फेरा लगाते हैं तो  मन ही मन हम आने वाली  गर्मी को आत्मसात कर लेते हैं । असली होली तो सब कुछ भूल कर रंगों में खो जाना ही है । टीवी में तो केवल परिचर्चा व रीति रिवाज को ही दिखाया जाता है जिससे लोग त्योहारों के महत्व को समझे व अपनी संस्कृति से जुड़ें ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
क्या आप असली होली का आनंद टीवी पर लेते है ? 
होली पर टीवी देखने मज़ा ही कुछ और है । आप भी देखना
इस बार टीवी पर होली की हुड़दंग से भरा कवि सम्मेलन 
हँसते हंसते लोट पोट हो जाओगे 
न रंग छुपाने का झंझट न कलर लाने का न कपडेधोने का 
आप वाटसप पर भी होली  मना सकते हो कलर व शुभकामनाएँ भेज कर काल्पनिक होली ...
आसमान छू रहे सब्जियों के भाव, घी, तेल, गुड़ आटे की नाक पर गुस्से का ताव। उस पर राजनीति के बदलते रंग, आतंकी कर रहे जिंदगी का मजा बे-रंग। नौवें सिलेंडर से थोड़ी मिली राहत, पर चीनी के चढे़ ग्राफ ने फीकी कर दी चाय की चाहत। हर रोज खुल रहा एक घोटाला, शर्मनाक घोटालों ने तो जैसे शतक ही बना डाला। कालिख से सने पैसे की मुट्ठी में कैद है उजाला, जनता की आंखों में गुस्सा, मुंह पर ताला। ऐसे माहौल में कोई त्योहार मनाएं तो कैसे मनाएं, अभिनेताओं की तरह अधरों पर जबरन मुस्कराहट लाएं तो कैसे लाएं? पर हम तो ठहरे हिंदुस्तानी, हमें आती हैं हर माहौल में भी हंसी-खुशी खोज लेने की कारस्तानी। हम किसी भी हाल में मुस्कराते हैं, त्योहारों को उल्लास से मनाते हैं। ये उत्सव ही हमें कंक्रीट के जंगल से बाहर निकालते हैं, उल्लास को आसमान तक उछालते हैं। काटों में शरारत, फूलों पर खुमार, रंगपर्व ले आया मौसम का उपहार। इसलिए होली के हुड़दंग में, उल्लास में उमंग में, मन की तरंग में, हंसी-खुशी के रंग में भीगने को हो जाइए तैयार। हमारे साथ आइए, होली पर टी वी पर हास्य की होली खेलिये , हास्य-व्यंग्य के होलियाने कवि सम्मेलन की कविताओं का आनंद उठाइए। आपको ठहाकों से करने को मालामाल, अबीर-गुलाल। इन्हें प्यार से अपने मस्तक पर सजाएं, मुस्कुराएं, हंसे और खिलखिलाएं। 
टी वी पर देखकर ही सही होली मनाऐ। मन की हर तमन्ना पुरी करे । ये हो गई टीवी की होली 
और असली होली ..   
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
रंगों का त्यौहार होली अपने साथ खुशियों की सौगात लाता है। रंग में सबको सराबोर करने के साथ यह प्यार भी बढ़ाता है। होली के त्यौहार में सबसे अधिक मस्ती बच्चों की टोली ही करती है, कई दिन पहले से ही अपने दोस्तों के साथ होली की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। भले ही आपकी ये शरारतें छोटी और मासूम होती हैं परंतु कई बार उनके नुक्सान बड़े हो जाते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि रंगों के इस त्यौहार को इसके असली महत्व के अनुसार ही मनाया जाए-यानी प्यार बांटने की रीत को हम आगे बढ़ाएं। होली इस तरह ही मनाएं कि इस त्यौहार की असली उमंग बरकरार रह सके। 
जिंदगी के रंग, खुशी के रंग, प्यार के रंग और वे सारे दूसरे रंग जो आप जिंदगी में भरना चाहते हैं, होली आपको वो अवसर उपलब्ध कराता है
होली का नाम सुन मुझे मेरा बचपन याद आ गया। परिवार में सबसे शरारती बच्चा होने के नाते मैं अपने भाई-बहन और परिवार के अन्य सदस्यों को सोते समय रंग लगा दिया करता  था और प्यार भरी डाट खाता था । अब पहले वाली होली का मज़ा नही । जो नहीं खेलते होली व देख लेते है टीवी की होली .
- अश्विन पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
आजकल मानव की जैसी दिनचर्या और जीवनशैली बन गई है उसे देखते हुए ऐसी बात उठनी स्वाभाविक भी है।
लेकिन जो आनंद वास्तविक रूप में होली मनाने में मिलता है वह टी वी पर देख कर तो आ ही नहीं सकता।
        लोगों के बेवकूफी भरे रंग लगाने के तरीकों ने अवश्य लोगों को रंगों से दूर करने में अपनी भूमिका  निभाई है, पर जहाँ सभ्य होकर सूखे गुलाल और प्राकृतिक रंगों से होली खेलते हैं वहाँ सब एक-दूसरे को रंग लगाते, गले मिलते, नाचते-गाते, खाते और आनंद मनाते हैं। जो कहीं जाने में असमर्थ होते या एकाकी होते हैं वे अवश्य टी वी में देख कर आनंद लेते हैं।
         स्वास्थ्य की दृष्टि से इस बार तो कोरोना के चलते लोग सामूहिक होली मिलन से दूरी बरतने की ओर प्रेरित हो रहें हैं, जो उचित भी है। रंगों से दूरी भले ही हो, प्रेम-स्नेह और विश्वास के रंग तो मिल कर बिखेरे ही जा सकते हैं, उनमें रंग कर, सराबोर होकर, पकवान खा-खिला कर होली का आनंद तो लिया ही जा सकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
     देहरादून - उत्तराखंड
 कुछ छड के लिए होली का आडंबर आनंद टीवी पर लिया जा सकता है ।लेकिन असली होली का आनंद तो अपनी जिंदगी में अपनों के साथ अर्थात परिवार, समाज ,प्रकृति के साथ लिया जा सकता है ।हम मनुष्य जाति हर पल हर क्षण निरंतर सुख की चाहत में जीते हुएआ रहे हैं ।इस सुख को हम अनेक कार्यक्रमों में ढूंढते हैं, लेकिन संतुष्टि नहीं मिलती है ।हम कुछ क्षण के लिए कार्यक्रमों के रूप में आयोजित जो भी फंक्शन करते हैं उससे क्षणिक संतुष्टि मिलती है। होली को रंगो का त्यौहार कहा जाता है ।हमारी परंपरा में कहा गया है कि मनुष्य इस दिन बैर भाव त्याग कर रंगों से अपने भाव को जाहिर करते हुए एक दूसरे से अपनत्व का भाव से गले मिलते हैं ।
यह बहुत ही अच्छी भावनाएं है लेकिन वर्तमान रूप में ऐसा देखा नहीं जाता सिर्फ यह मन का मनोरंजन है जैसे ही इस तरह के कोई त्यौहार या कार्यक्रम संपन्न होने के बाद फिर वही जिंदगी टेंशन  लिए चलती है कोई व्यक्ति टेंशन में जीना नहीं चाहता फिर भी टेंशन झेलते हुए जी रहे हैं। और इस टेंशन से मुक्ति पाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम करते रहते हैं ।ऐसी दिखावटी कार्यक्रम से  निरंतर संतुष्टि नहीं मिलती हैं रंगों का त्योहार का असली मजा तो अपने परिवारों के साथ शिकायत मुक्त होकर भाव के साथ जीने में होता है जो हर मानव के लिए आवश्यक एवं निरंतर है यही असली होली का आनंद है ।रंगों का अर्थ है र का अर्थ है रस ग का अर्थ है  ज्ञान अर्थात जिस मनुष्य को  रस अर्थात भाव का ज्ञान है वही व्यक्ति स्वयं में, परिवार में ,समाज में एवं प्रकृति के साथ रंग भरी जिंदगी अर्थात भाव भरी जिंदगी जीता है या जी सकता है यही जिंदगी की असली आनंद है इस आनंद की तलाश में हर व्यक्ति प्रयासरत है अतः कहा जा सकता है कि असली होली का आनंद टीवी पर नहीं अपनी भाव भरी जिंदगी पर है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
    होली तो होली है।जिसमें असली या नकली का प्रश्न ही नहीं उठता।क्योंकि होलिका दहन के कारण होली का पर्व मनाया जाता है।जो कृत्रिम रंगो के साथ-साथ प्राकृति के प्राकृतिक विभिन्न रंगों का आगमन माना जाता है।जबकि विजय दशमी की भांति अमानवता पर मानवता की विजय का प्रतीक भी है।
      सौभाग्य से मुझे उक्त पर्व अन्य पर्वों की भाँति मनाने का कभी समय ही नहीं मिला।क्योंकि 1962 में जन्मा और 1965 में पाक ने हमारे घरों पर हमला कर दिया और हम विस्थापित हो गए।उसके बाद दर बदर होकर जैसे ही घरों में लौटे तो 1971 के भारत-पाक युद्ध को झेला।जिसके कारण पुन: शरणार्थी बने।मगर पाक की नापाक साजिशों का दहन नहीं हुआ। युवावस्था में शिक्षा संस्थानों से लेकर सरकारी कार्यालयों में फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ता रहा।जिसमें पराजय के साथ-साथ विजय भी मिली।किन्तु भ्रष्टाचार रूपी होलिका दहन ना हो सका। 1990 में राष्ट्र सेवा के लिए भारत स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण कर केंद्र सरकार में भर्ती हुआ था।जहां तीन वर्ष के उपरांत भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों की क्रूरता का ग्रास बन गया।राष्ट्रभक्ति के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण होता गया और आंतों की तपेदिक रोग में भूखे पेट जेलें काटता रहा।यही नहीं राष्ट्रभक्ति और मानवता का दण्ड आज भी राष्ट्रद्रोह के कलंकित आरोप एवं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली (एम्स) के जारी किए मानसिक स्वस्थ प्रमाणपत्र के बावजूद भारत सरकार द्वारा पागल की पेंशन दी जा रही है।   इन हालातों में बालक से युवा और युवा से वृद्ध हो गया हूँ।किन्तु यथार्थ यह है कि असंख्य हिरण्यकश्यप और होलिकाएं आज भी जिन्दा हैं।चाहे कश्मीर हो या दिल्ली के वर्तमान हिंसक दंगे हों।मानवता चीख रही है।तो मार्गदर्शन करें कि ऐसे में मैं होली का आनन्द धरा या टीवी पर भी कैसे लूँ?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
असली होली तो हम सामाजिक तौर तरीके से वास्तविकता को साथ लेकर एक दूसरे के साथ आपसी कटुता को भूलाकर जीवन में आते प्रेम के रंग में रंगते हुए केशु के रंग में एक दूसरे को कृत्रिम रंग से रंगते हैं बिना रंग की होली कोई होली होती है ! जीवन में यदि रंग ही ना हो तो जिंदगी कितनी बेरंग लगती है कहने का मतलब है नफरत यदि है तो प्रेम का रंग तो चढ़ना ही चाहिए हमारे यहां जाति भेदभाव को भूलकर आपस में भाईचारे का नाता रंग गुलाल ,लगा गले मिलते हैं यानी कि दूसरों को देख खुश होना !क कई लोग रंग पसंद नहीं करते किंतु दूसरों को रंगे देख उन्हें आनंद आता है एवं गाने सुनना ,हास्य कवि सम्मेलन, आदि टीवी में सुन होली का आनंद लेते हैं किंतु यदि हम परिवार के साथ समाज में रहकर हकीकत में आनंद लेते हैं , घर में गुजिया मिठाई बनती है सभी मिलकर एक साथ खाते हैं तो होली के आनंद का रंग ज्यादा ही चढ़ता है! हम अपने परिवार में ही तो प्रेम से आपस में रहते हैं पौराणिक गाथा के अनुसार भक्त प्रहलाद और होलिका दहन से हम समझते हैं कि बुराई की हार और अच्छाई की जीत होती है! अंत में कहूंगी स्वयं आपस में सामने सामने एक दूसरे के लिए प्रेम का भाव लाना और आनंद का अनुभव करना हम सभी साथ साथ करते हैं टीवी में होली का जो आनंद लेते हैं वह हम अकेले लेते हैं और सभी एक दूसरे पर जब हम रंग लगाते हैं सारी कटुता भूल जाते हैं और प्रेम के रंग से सरोबार हो जाते हैं !वही सच्चा आनंद है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " होली ऐसा भारतीय त्योहार है । जिस का आनन्द हर कोई लेता है । परन्तु कुछ इंसान किसी भी कारण से आनन्द लेने से वचिंत रह जातें हैं । वह टीवी के माध्यम से आनंद ले सकते हैं ।
                                               - बीजेन्द्र जैमिनी




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