हिन्दी दिवस ऑनलाइन समारोह - 2020



जैमिनी अकादमी का लघु समाचार पत्र के रूप में 25 फरवरी 1995 को प्रथम अंक आया ।ऐसे हुई जैमिनी अकादमी की शुरुआत । इसी के साथ अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता , अखिल भारतीय ग़ज़ल प्रतियोगिता , अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन प्रति वर्ष होने लगा । ग़ज़ल प्रतियोगिता तीन - चार साल ही चल पाई । परन्तु हाईकू प्रतियोगिता 16 साल लगातार चली है । लघुकथा प्रतियोगिता लगातार 25 साल की सफलता अर्जित की है । 
              1998 में जैमिनी अकादमी द्वारा हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन किया गया । जिसमें " आचार्य सम्मान " से सम्मानित किया गया । इसी तरह 2000 में हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर शताब्दी रत्न समारोह का आयोजन किया । जिसमें 268 विद्वानों को शताब्दी रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया ।  समारोह क्रम प्रतिवर्ष चलता रहा । जिसमें  रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी समारोह , सुभद्रा कुमारी चौहान जन्म शताब्दी समारोह , पद्मश्री श्री सोहन लाल द्विवेदी जन्म शताब्दी समारोह , महादेवी वर्मा जन्म शताब्दी समारोह आदि कार्यक्रम चलते रहे ।
              पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादक को सम्मानित करने के लिए जनवरी - 2005 से मासिक श्रृंखला शुरू की गई । जिसमें 143 सम्पादकों को सम्मानित किया गया । 2011 में छोटी सी उम्र में भाई की मृत्यु , 2012 में पिताजी की मृत्यु , 2016 में माताजी की मृत्यु ने मुझे अन्दर से तोड़ दिया । परन्तु समाचार पत्र चलता रहा । साथ ही ई- पुस्तकों का सम्पादन शुरू किया गया। लघुकथा -2018 , लघुकथा -2019 , लघुकथा - 2020 , जय माता दी ( काव्य संकलन ) , मतदान ( काव्य संकलन ) , जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) , भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन ) , कोरोना ( काव्य संकलन ) , जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन ) , मां ( लघुकथा संकलन ) , लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) , नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) , कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) , पशु - पक्षी ( लघुकथा संकलन ) आदि ई- पुस्तकों को ब्लॉग द्वारा पेश किया है ।
              कोरोना ने जैमिनी अकादमी को डिजिटल कर दिया । जिस से " आज की चर्चा " प्रतिदिन प्रसरित हो रही है । साप्ताहिक ऑनलाइन कवि सम्मेलन , मासिक लघुकथा उत्सव आदि चल रहे हैं । 
              जैमिनी अकादमी का वार्षिक समारोह " हिन्दी दिवस ऑनलाइन समारोह - 2020 " पेश किया जाता हैं : -
जैमिनी अकादमी द्वारा  हिन्दी दिवस के अवसर पर " ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन " WhatsApp द्वारा आयोजन किया है । जिसमें तीस से अधिक लघुकथाकारों ने भाग लिया है । जो विषय अनुकूल लघुकथाओं को सम्मानित किया जा रहा है । कुछ लघुकथा को यहां पर पेश भी कर रहे हैं : -

 वैल्यू
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रोमा --मुझे एक सुंदर और जोरदार भाषण लिख कर दो ____
क्यूं   --पापा ? 
आप तो सदा अंग्रेजी को वैल्यू देतें हैं।

हां ,हां लेकिन आज "हिन्दी दिवस" है तो मुझे भाषण भी हिन्दी में हीं ना चाहते हुए भी देनी हीं होगी - बेटा ।
अच्छा अब समझी सिर्फ आज के लिए आप को हिन्दी की वैल्यू दिखानी है ----- है ना पापा ? 
तुम -- अब बहस ना करो जितनी जल्दी हो सके और जैसे भी, ना हो तो गूगल का सहारा ले लेना , लेकिन भाषण मेरा जोरदार, दमदार , असरदार होना हीं चाहिए। तभी तो जनता समझेगी, सुनेगी और मेरे भाषण का उन सब पर प्रभाव होगा। आखिर मैं वहां  "अति विशिष्ट" अतिथि जो हूं। जल्द हीं चुनाव भी होने वाला है।

पापा क्या हम "हिन्दी दिवस" के बाद हिन्दी में बातचीत कर सकते हैं?  घर में, आपस में? 
अरे , नहीं - नहीं ।
ये सब सिर्फ दिखाने के लिए है और एक दिन हीं " हिन्दी " का मान सम्मान काफी है।
तुम लोग यदि हिन्दी में हीं बातें करोगे फिर मेरी स्टेटस  का क्या होगा, और इतने महंगे स्कूल में तुम दोनों को मैं क्यूं पढ़वा रहा हूं।तुम दोनों को आगे की पढ़ाई हेतु मैं विदेश जल्द हीं भेजने वाला हूं। ताकी तुम सब विदेशी शिक्षा के बाद जब कभी यहां आओ तो फर्राटेदार अंग्रेजी भाषा में बातचीत करो और मेरा नाम रौशन हो। हमें जमाने को भी तो दिखाना है। 
हां --पापा 
मैं सब समझ गई अब।
रोमा मन हीं मन पापा के  बातों का विश्लेषण करती हुई -- "हिन्दी दिवस" हेतु दमदार भाषण लिखने बैठ गई। हिन्दी का वैल्यू जान उसका मन व्यथित था।**
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
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 हिंदी और शिक्षा
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सरजू को देखते ही मामाजी ने जिनके हाथों मे सुटकेस और कंधे पर थैला लटक रहा था नाम लेकर जोर से आवाज लगाई  ! सरजू अपने मित्र के साथ उसके खेत में खड़े होकर कुछ गुफ्तगु कर रहा था ! मित्र ने कहा यार सरजू तेरे मामाजी तुझे आवाज दे रहे हैं !दौड़कर सरजू मामाजी के पास आया और उनके पैर छुते हुए कहने लगा मामाजी आप वापस अपने घर शहर जा रहे हैं कुछ दिन और रुक जाते !मामा ने कहा अब आगे की पढ़ाई के लिए तुझे शहर आना है अंग्रेजी भी तो पढ़ना है गांव में क्या रख्खा है ? तुरंत सरजू ने कहा मामाजी गांव में ही तो सबकुछ है ! मेरी शिक्षा हिंदी में हो रही है तो क्या ! डिजिटल का जमाना है ! आज दुनिया मुट्ठी में है ! हमारे देश के प्रधानमंत्री ने शहर की तरह गांवों में भी विकास किया है !मैं अपने खेतों में नई तकनीकीयों के संग फसल की अच्छी पैदावार करुंगा एवं पढ़ लिखकर सभी को नई तकनीकी से अवगत कराऊंगा ! शुद्ध हिंदी में सभी जल्दी समझ जाएंगें ! मामाजी गांव खुश रहेगा तभी तो शहरों में खुशीयां आएगी !
देश का किसान खुश तो देश खुश ! गांव का विकास होगा तभी तो शहर बसेगा !
मामाजी मकसद तो एक ही है अंग्रेजी में पढ़ो या हिंदी में आखिर कुआँ ही तो भरना है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
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                          चोला                        
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      सूटेड बूटेड एक साहब हिंदी प्रदेश के एक शहर में किसी पाॅश कॉलोनी के चौराहे पर स्थित पान की दुकान के पास खड़े होकर, सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए अंग्रेजी रूतबे के साथ अपने किसी मित्र का पता आते-जाते लोगों से पूछ रहे थे परंतु किसी भी सज्जन से उन्हें संतोषप्रद उत्तर प्राप्त नहीं हो पा रहा था । 
   अंत में निराश होकर, अपने अल्प हिंदी ज्ञान का सहारा ले,  उन पर नज़र रख रहे,  पान वाले से मुखातिब होकर बोले-"एसक्युज मी प्लीज,  क्या मुझको ये श्रीनगर एन-एक्स फाइव किधर कू आयेंगा बताएंगे क्या ?"
    पहले तो पान वाले ने उन्हें ऊपर से नीचे तक 
घूरा,  फिर बोला -" भाई साहब,  आपने जिस तरह मुझसे हिंदी के साथ अंग्रेजी को मिलाकर  पूछा ना,  सेम टू सेम अगर आप आने जाने वालों से पूछ लेते तो अब तक आप एड्रेस पर पहुंच गए होते.....।   जाइए वो सामने की रोड़ के लेफ्ट साइड की गली में मिल जाएगा....।"
   "हमको नहीं मालूम था भईया, यहां हिंदी, अंग्रेजी के साथ समझी जाती है । अच्छा थैंक्यू !!"              
- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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आदतन
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एक बहुत पुराने मित्र का  पत्र प्राप्त हुआ।वे आज भी पोस्टकार्ड़ या लिफाफा ही उपयोग में लाते।जबकि आज स्मार्ट फोन का जमाना है।कुशलता इत्यादि औपचारिकता के बाद उसने लिखा था,-"मित्र हिंदी हमारी  राजभाषा है।हमे इस पावन भाषा के विकास के लिये कुछ करना चाहिए।अंग्रेजी का मोह त्यागना  होगा।भावी  पीढी को कान्वेंट मे नहीं' गुरुकुल या हिन्दी माध्यम की पाठशाला मे पढ़ाना होगा।तभी हमारी संँस्कृति बच पायेगी।प्लीज ,मेरी बात पर गौर जरूर करना।तुम तो लेखक हो।इस पर  आज से ही कार्य शुरु कर दो।"
उन्होंने लिफाफे पर जो पता लिखा था,वह अंँग्रेजी में था।
- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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 मेरी है हमारी है
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ऑफिस में सभी रोज की तरह बैठे थे।सभी खिलखिला रहे थे इधर उधर की बातें कर रहे थे।मैंने भी सभी के साथ बैठकर बातें शुरू कर दी।पर आज सभी बार बार मुझे मुझे "वो हिंदुस्तान की हिन्दी कहकर पुकार रहे थे।" मुझे बुरा नहीं लगा "आज हिंदी दिवस जो है "।
       इतने में हमारे मैनेजर आए और हाथ में कागज हिलाते हुए बोले "राम ये क्या है"।मैंने पूछा जी कोई गलती हुई।गलती कुछ नहीं पर तुम तो अच्छी खासी इंग्लिश जानते हो और उसी में काम भी करते हो फिर आज अचानक ये सारे लेटर हिंदी में। मैंने बड़ी विनम्रता से कहा "श्रीमान आपने बिल्कुल सही कहा।रोज में कंपनी और व्यापार के लिए कार्य करता हूं पर आज एक दिन सोचा अपनी राष्ट्रभाषा और हिंदुस्तान के लिए भी थोड़ा बहुत ही सही पर कुछ तो कर लूं।" मैनेजर के साथ सारे लोग मुझे घूरने लगे पर इस बार मजाक नहीं और शायद एक सीख के साथ देख रहे थे। 
         इतने में मैनेजर साब ने कहा "राम जी आप मेरी एक मदद करेंगे, एक स्लिप निकाल दीजिए और उसमें लिख दीजिए ' बुधवार :हिंदी दिवस ,सारे काम हिंदी में होंगे '। यह कहकर अपने केबिन की तरफ मुस्कुराते हुए चले गए। सभी ने मेरी तरफ पुनः मानो धन्यवाद भरी निगाहों से देखा और अपने अपने काम पर चल दिए।
-  नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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इन के अतिरिक्त डॉ. प्रदीप उपाध्याय , सुनीता रानी राठौर , प्रीति मिश्रा , डॉ. मजु गुप्ता , डॉ. नीना छिब्बर , कैलाश ठाकुर , प्रज्ञा गुप्ता , नीलम नारंग , मीरा जगनानी , राम मूरत राही , सत्येन्द्र शर्मा तरंग , चंद्रकांता अग्निहोत्री ,सुषमा सिंह चुण्डावत , अर्चना मिश्र , डॉ . रेखा सक्सेना , नीरू तनेजा , अर्विना गहलोत , कल्याणी झा कनक , रंजना हरित , वीरेन्द्र सिंह गहरवार , डॉ. अंजुला कंसल कनुप्रिया , प्रो. शरद नारायण खरे, संगीता राय, विभा रानी श्रीवास्तव , डॉ. भारती वर्मा , छाया सक्सेना प्रभु आदि ने अपनी - अपनी लघुकथा पेश की हैं । सभी की लघुकथा अच्छी है । सभी को सम्मानित भी किया जा रहा हैं ।
जैमिनी अकादमी ने हिन्दी दिवस के अवसर पर WhatsApp द्वारा " ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन रखा है । जिस का विषय " हिन्दी और शिक्षा " रखा गया है । जिसमें चालीस से अधिक कवियों ने भाग लिया है । जिन की रचना विषय के अनुकूल प्राप्त हुई हैं । उन में से कुछ पेश हैं : -
हिंदी और शिक्षा 
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 हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी को
 शिक्षा में देना चाहिए बढ़ावा
 खो रही जो अपनी पहचान हिंदी
 उसको हमें दिलाना होगा दर्जा
 शिक्षा में उसको देकर बढ़ावा 
राजकाज हिंदी में करना होगा 
बच्चों को हर क्षेत्र में हिंदी बोलने पर जोर देना होगा
 शैक्षिक गतिविधियों में हिंदी का प्रयोग करना होगा 
हिंदी राष्ट्र की भाषा है बताना होगा
 यह समझा कर शिक्षा में देना होगा प्रोत्साहन
 तभी हिंदी और शिक्षा का सामंजस्य होगा 
नई पहचान बना पाएगी हिंदी
 शिक्षा में इसका स्थान सर्वोपरि होगा 
शिक्षा के माध्यम से हिंदी अपना स्थान पाएगी
 - दीपा परिहार 'दीप्ति '
जोधपुर - राजस्थान
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हिंदी और शिक्षा 
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हिंदी हमारी मातृभाषा 
शिक्षा भी लेगे हम हिंदी में 
सहज सरल व मृदुल है हिंदी 
हिंदी ने दिये है अनमोल रत्न 
हिंदी में शिक्षा लेकर हुए महान 
निराला , पंत , प्रसाद , महादेवी वर्मा । 
स्वर,  व्यंजन , व्याकरण , अंलकार है शब्दों का शृंगार 
हिदीं की शिक्षा पाकर बने साहित्यकार महान ...
भारत की शान है हिंदी 
शिक्षा जीवन में अनमोल है !
शिक्षा जीना सिखलाती है 
शिक्षा से मिटता अंधकार है !!
हिंदी की शिक्षा का करो विस्तार 
शिक्षित होंगे नर नारी भागेगा 
अज्ञान सारा !
हिंदी शिक्षा से संस्कार मिले शिक्षा से शिष्टाचार  मिले !
हिंदी शिक्षा ने दिए हैं देश 
को बडे बड़े विद्वान !!
हिंदी शिक्षा बेदो का सार है 
गीता और रामायण है !
हिंदी शिक्षा हिंद की धरोहर 
जन जन को शिक्षित करना 
देश का विकास करना !!
हिंदी शिक्षा असभ्य को सभ्यता सिखाती ! 
दुर्गम राह को सरल बनाती !!
हिंदी शिक्षा इंसानियत व पशुता का भेद समझाती !
कामयाबी और ख़ुशियाँ हासिल करवाती !!
आओ मिलकर हिंदी और शिक्षा का सबको महत्व समझायें ! 
शिक्षा का दीपक जला सारी 
नाकारात्मक तत्व भगायें !!
हिंदी में शिक्षा का बड़ा महत्व हैं 
सभी बेदों का सार समझाती 
वास्तविकता का धरातल दिखलायें !!
हर दर्द की दवा है शिक्षा ! 
हिंदी का सपना है जन जन को शिक्षा देना! 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
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। हिंदी और शिक्षा 
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हिंदी को सर्वोच्च बनाना है ,
शिखर तक ले जाना है ,
 *हमे हिंदी से शिक्षा लेना है।* 

 हिंदी है तो भारत है,
 ये लोगों को समझाना है ,
सदियों पुरानी अपनी भाषा का ,
आज गौरव बढ़ाना है।

हिंदी को सर्वोच्च बनाना है,
शिखर तक ले जाना है ,
हमे हिन्दी से शिक्षा लेना है ।


 हिंदी भारत की शान है,
विश्व मे अलग पहचान है,
गौरवपुर्ण इतिहास है,
हम सबका अभिमान है ।

भारतीयों की प्रेरणा है हिंदी ,
सब गुणों की खान है हिंदी ,
भगवत गीता का सार है हिंदी ,
मानव जीवन का आधार है हिंदी ।

हमें उठकर कदम बढ़ाना है,
उज्जवल भविष्य हिंदी से बनाना है ,
अपने बच्चों को हिंदी सिखाना है ,
गर्व से मातृभाषा अपनाना है  ।

हिंदी को सर्वोच्च बनाना है , 
शिखर तक ले जाना है ,
हमे हिंदी से शिक्षा लेना है ।।
- सीता देवी राठी
कूचबिहार - पश्चिम बंगाल
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हिंदी और शिक्षा   
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जन-जन की भाषा है हिंदी,  
संगीत भी और साज़ भी हिंदी।।  

भाव अनगिनत,पहचान भी श्रेष्ठ,  
राष्ट्र भाषा बनना अभी शेष।।

माँ संस्कृत की बेटी हिंदी,       
संस्कारों की पहचान है हिंदी।।

सभ्यता के उदगम से है अस्तित्व।
है धरा जब से,  ओंकार है सिद्ध।।

वैज्ञानिकता है जिसका आधार,
शब्दों का यहाँ असीम भण्डार।।

शुद्धता में बिलकुल खरे सोने जैसी।
जिसको छू ले कुंदन कर देती।।

ममत्व भरा आँचल है जिसका
दूजा कोई न सानी इसका।।

अनेक भाषाओं का है संगम
अद्भुत आलौकिक दृश्य विहंगम।।

चंदन जैसी शीतलता है इसमें
सूर्य की ऊष्मा भी है विद्यमान।।

अनुपम रूप छटा की देखो
बनाई सरल संपन्न पहचान।।

विदेशी भी करें जिसका मान
क्यों अपने घर में हीन-सी जान।।

शिक्षा की आवाज़ बने यह
हिंदी में करें सब हम काम।

हिंदी दिवस को रोज़ ऐसे बनाए
हिंदी बोले, हिंदी सीखे,
गर्व से हिंदुस्तानी कहलाए।।।   
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
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 हिंदी और शिक्षा
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हिंदी मातृभाषा ही नहीं, 
शिक्षा, साहित्य का दर्पण है,
जन-जन के मन विराजती,
अभिव्यक्ति का माध्यम है,
सभ्यता, संस्कृति की संवाहक है,
डिजिटल युग में हिंदी बन गयी वैश्विक भाषा,
व्यापक रूप से बोली जाती हिंदी भाषा,
हिंदी ने हमें पाला-पोसा,
आओ, बनायें हम इसे संप्रेषण की भाषा,
आवश्यकता है! निरंतर प्रयासों की,
शिक्षा द्वारा हम करें, इसका संरक्षण, संवर्धन,
जोड़ें अधिकाधिक इसे शिक्षा से,
हम सब प्रण करें! 
हिंदी में पढ़ें, लिखें और बोलें हम,
हिंदी साहित्य को समृद्ध करें हम, 
यही हो हर भारतीय का दृढ़ संकल्प, 
यही है, जनता-जनार्दन की भाषा।
- प्रज्ञा गुप्ता
 बाँसवाड़ा - राजस्थान
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उपरोक्त के अतिरिक्त होशियार सिंह यादव , गायत्री ठाकुर सक्षम , प्रो. डॉ. दिवाकर दिनेश गौड़ , अंजू अग्रवाल लखनवी , हेमलता मिश्र मानवी, कैलाश ठाकुर, चन्द्रिका व्यास , सुनीता रानी राठौर , आरती तिवारी सनत , सत्येन्द्र शर्मा तरंग , अनिल शर्मा अनिल , सुदर्शन कुमार शर्मा , रंजना हरित, रजनी शर्मा, डॉ. असीम आनंद , डॉ. छाया शर्मा , संगीता सहाय अनुभूति , ललिता कश्यप सायर, प्रीति मिश्रा, रंजना वर्मा , गीता चौहान , नूतन गर्ग , विजयेन्द्र मोहन , छगनराज राव दीप , नरेश सिंह नयाल , दिनेश चंद्र प्रसाद दीनेश , सुधा कर्ण , अन्नपूर्णा मालवीय सुभाषिनी , गोवर्धन लाल बधेल आदि कवियों ने अपनी - अपनी रचना पेश की हैं । विषय अनुकूल रचनाओं को सम्मानित किया गया है ।
हिन्दी दिवस के अवसर पर जैमिनी अकादमी द्वारा ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन रखा गया है । विषय " हिन्दी और शिक्षा " है । बिना शिक्षा के इंसान भी जानवर के समान है । जब तक मातृभाषा मे शिक्षा ना मिले तो शिक्षा अधूरी है । हिन्दी भाषा में वह गुण मजूद है। जो वैज्ञानिक दृष्टि से अतिउत्तम है । यही " ऑनलाइन परिचर्चा " का उद्देश्य है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
26 जनवरी सन 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ हमारे संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है हिंदी हमारी प्राचीनतम समृद्ध भाषा है हिंदी गंगा नदी की तरह है यह सर्व सुलभ और कल्याणकारी है किसी भी प्रांतीय भाषा का यह विरोध नहीं करती बल्कि सभी दूसरी भाषाओं को समान बहनों जैसा ही मानती है अनेक भाषाएं हिंदी के ही समान हैं बहुत कुछ शब्द एक ही समान है उर्दू का भी जन्म विकास हिंदी या हिंदुस्तान से ही माना गया है हिंदी एक राष्ट्रभाषा होने के साथ इसमें समस्त गुण भी विद्यमान है कभी सूर्य तुलसी रहीम रसखान बिहारी प्रेमचंद प्रसाद निराला आदि लेखकों और कवियों ने भी अपनी समृद्ध रचना हिंदी भाषा में ही लिखी है यह भाषा संस्कृत के उत्तराधिकारी होने के साथ-साथ एक वैज्ञानिक सरल एवं सुबोध भाषा भी है हिंदी के धर्म एवं भावात्मक विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है राष्ट्रभाषा का अभाव में स्वतंत्र एवं बौद्धिक चिंतन अनिल लेख भी इसमें है परंतु इसका विकास नहीं हो पाया भारत में अंग्रेजों के शासन के कारण अंग्रेजी आ गई और अंग्रेजी को ही एक विशेष दर्जा प्राप्त हो गया हिंदी को सिर्फ हिंदी दिवस के रूप में ही याद नहीं करना चाहिए इससे के विकास एवं प्रसार में हमें योगदान करना चाहिए।
हिंदी हमारी गौरवशाली संस्कृति की विरासत है हिंदी के प्रचार प्रसार में लोगों को खुलकर आना चाहिए एवं अपने सभी कार्यों को हिंदी में ही यथासंभव करना चाहिए हिंदी दिवस या हिंदी पखवाड़े मना कर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझना चाहिए हिंदी को प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए राज्य की कार्य एवं व्यवहार में भी हिंदी का प्रचार प्रसार करना चाहिए महाकाव्य को भी अपनी भाषाओं में रचना की है नेताओं को भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी के प्रचार प्रसार का बढ़ावा देना चाहिए नहीं होगी।
यदि हिंदी को बढ़ावा दिया जाएगा तो आज की युवा पीढ़ी हमारे पुराने साहित्य को भी पढ़ सकेगी जो लिखो को की सुंदर रचनाएं हैं वह उनको पढ़ने लिखने में पीछे नहीं भागेगी।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
हर साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है | प्रत्येक भारतीय 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाता है | इस दिन ही देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। साल 1953 में पहली बार हिंदी दिवस का आयोजन हुआ था। तभी से यह सिलसिला बना हुआ है। हिंदी दिवस को मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा की स्थिति और विकास पर मंथन को ध्यान में रखना है। देश में करीब 77 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं।
* भारत की मुख्य भाषा हिंदी को कब मिली पहचान
सरकारी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में 15 दिन तक हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा की ओर से हिंदी को आजाद भारत की मुख्य भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में किया गया है। अनुच्छेद के अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है।
 हिंदी दिवस क्यों मनाते हैं  हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और इस भाषा को हमें एक अलग स्तर पर ले जाना है इसलिए यह हिंदी दिवस मनाया जाता है, प्रत्येक भारतीय नागरिक की पहचान उसकी भाषा उसकी बोली से ही होती है और हमें गर्व है कि हम भारत देश के वासी हैं और हमारी भाषा हिंदी है | 
हिंदी दिवस के मौके पर देशभर के स्कूलों, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थानों में कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। हिंदी पूरे विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वहीं दूसरी ओर भारत में अन्य कई भाषाएं विलुप्त हो रही हैं। जो चिंतन का विषय है। ऐसे में हिंदी की महत्ता बताने और प्रचार-प्रसार के लिए हिंदी दिवस को मनाया जाता है।
- रजत चौहान
  बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कहा जाता है कि भाषा संप्रेषण का सशक्त साधन होता है|जीवंतता,स्वायत्तता तथा लचीलापन भाषा के प्रमुख लक्षण हैं|१४सितंबर १९४९ को संविधान की भाषा समिति ने हिंदी को राजभाषा पद पर पीठासीन किया और १९६३ में राजभाषा अधिनियम जारी हुआ|विश्व में ७० करोड़ लोग हिंदी भाषी हैंऔर यह तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है|लेकिन हिंदी प्रचार प्रसार के लिए सरकारों द्वारा सराहनिय क़दम नहीं उठाए गए |भले ही विश्व के विश्व विद्यालयों में हिंदी अध्यापन हो रहा है परंतु विडंबना यह है कि हिंदी भाषा अपने ही घर में उपेक्षित ज़िन्दगी जी रही है|यहाँ गुडमॉरनिंग से सुर्योदय और गुडनाइट से सूर्यास्त होता है|हैप्पी बर्थ डे से जन्म और रीप से मरण संदेश भेजे जाते हैं|अंग्रेजी बोलने वाले को बुद्धिमान और हिंदी बोलने वालों को समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है|जब भी हिंदी दिवस आता है हम हिंदी पखवाड़ा मना कर "हिंदी मेरी शान हिंदी मेरी जान "बोल कर इतिश्री कर लेते हैं| हम माताएँ भी कम दोषी नहीं अपने बच्चों को जब वे बोलने की कोशिश करते हैं तो उन्हें अंग्रेज़ी परोसने लगते हैं|हिंदी की दशा हमारी दोहरी नीति का शिकार हो गई है|
हिंदी को कभी सर्वश्रेष्ठ भाषा का दर्जा प्राप्त था |आज उसकी ऐसी दुर्दशा जिसे लोग बोलने में ,संदेश भेजने में शर्म का अनुभव करते हैं |अंग्रेज़ी में संवाद लिख या बोल कर क्लासी महसूस करते हैं|हिंदी और अंग्रेज़ी मिश्रित भाषा का प्रचलन (हिंगलिश) शहरों में तो आम बात है ,अब गाँव में भी देखने ,सुनने को मिलती है|
हिंदी की दुर्दशा का आकलन तो इसी बात से लगाया जा सकता कि इंग्लिश मिडियम स्कूलों में हिंदी का आस्तित्व बचाने के लिए अनिवार्य विषय के रुप में पढ़ाने के लिए सरकार को प्रयास करने पड़ रहे हैं|विदेशी भाषा के ज़ंजीर से जकड़ी हिंदी को दोयम का दर्जा प्राप्त है|
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
ऑनलाइन परिचर्चा में आज का विषय है हिंदी और शिक्षा इस पर यह  कहना चाहूंँगा हिंदी हमारी मातृभाषा है और हम सभी इसे अपने बाल्यकाल से ही बोलते सीखते समझते हैं पढ़ते और लिखते आ रहे हैं यदि हमारी संपूर्ण शिक्षा हिंदी में ही हो यानी हर विषय की शिक्षा पूर्ण रूप से हिंदी में ही दी जाए तो वह सभी के लिए श्रेष्यकर है क्योंकि हम अपनी मातृभाषा में कहीं गई सीखी गई बोली गई बात को बहुत आसानी से समझ सकते हैं अन्य किसी भाषा के तुलना में इसीलिए मेरा विचार है की अपने देश भारत में जो इस समय प्रचलन है अंग्रेजी भाषा में विभिन्न विषय की शिक्षा दिए जाने का या यह कह देने का कि अमुक विषय की अच्छी पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध नहीं हो पाती पहली बात तो यह है कि ऐसा है नहीं बात यह है कि हम यह स्वीकार करने को तैयार ही नही हैं कि हम सबके लिए शिक्षा अपनी भाषा में प्राप्त करना ही अच्छा है समय आ गया है यह समझ जाना चाहिए क्योंकि हिंदी ग्लोबल भाषा के तौर पर विकसित हो रही है विश्व के विभिन्न देशों के लोग इस भाषा को पढ़ लिख व सीख रहे हैं भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार अन्य देशों में हो रहा है और इसे सीखने और समझने के लिए हिंदी को जानना बहुत आवश्यक इसीलिए वह दिन दूर नहीं जब हिंदी को ग्लोबल भाषा के तौर पर महत्व दिया जाएगा और यह सबसे महत्वपूर्ण भाषा के रूप में स्थापित हो जाएगी मुझे इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। जिस पर सभी भारतीयों को गर्व है। इसे ही दृष्टिगत रखते हुए सर्व सम्मति से हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा भी मिला। यह भाषा इतनी सहज, सरल और सरस है कि अहिन्दी भाषी भी आसानी से इसे बोल और समझ लेते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी हिन्दी का विशेष स्थान है। 
      इस सबके बावजूद आजकल जो हिन्दी भाषा में अंग्रेजी शब्द मिलाकर बोलने और लिखने का चलन चल रहा है, यह उचित नहीं है। मेरे व्यक्तिगत मतानुसार यदि हम हिन्दी में बातचीत कर रहे हैं, हिन्दी में लिख रहे हैं और हिन्दी में समझ भी रहे हैं तो परा वाक्य हिन्दी में ही बोला जाना चाहिए। उसमें अंग्रेजी शब्द मिलाकर बोलने से हम हिन्दी भाषा के साथ अन्याय कर रहे हैं और अपनी आदत में अक्षम और अपरिपक्वता का परिचय भी दे रहे हैं। 
  हिन्दी के लेख,कविता, कहानी में अंग्रेजी शब्दों को निर्भय होकर मिलाया जा रहा है और दुख इस बात का है कि इसे स्वीकारा भी जा रहा है।मैंने इस संबंध में कुछ लोगों से चर्चा की,आपत्ति जतलाई तो उनका तर्क था कि आजकल बोलचाल में यही चल रहा है। मेरा सुझाव है कि स्टेशन, मोबाईल, कम्प्यूटर जैसे शब्द स्वीकारे जा सकते हैं परंतु सफेद के लिए व्हाइट, बाजार के लिए मार्केट, बगीचे के लिए गार्डन आदि का उपयोग अनावश्यक है। 
शैक्षणिक संस्थानों,  बुद्ध जीवियों एवं अन्य संबंधितों को इस पर गंभीरता से लेकर यथासमय उचित मार्गदर्शन देना चाहिए। विभिन्न माध्यमों से शिक्षा देकर सामाजिक जागरूकता लाने का अथक प्रयास किया जाना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 हम भारतीयों की शिक्षा में हिंदी का उतना ही महत्वपूर्ण योगदान है जितना हमारे शरीर में रक्त संचार का। हिन्दी हमारी मातृभाषा होने के कारण हमारी शिक्षा को सुदृढ़ और परिपूर्ण बनाती है। हिन्दी भाषा दूसरे विषयों का भी आधार स्तंभ  है।
     जिस तरह हमारा धर्मनिरपेक्ष देश भारत अनेकता में एकता का मिसाल पेश करता है ठीक उसी तरह अट्ठारह प्रांतीय भाषाओं को हिन्दी भाषा अपने वृहद आकार में समेटते हुए आगे बढ़ती है।
      शिक्षा में हिन्दी के महत्व को महसूस करते हुए 14 सितंबर को राष्ट्रपति के द्वारा दिल्ली के विज्ञान भवन में हिन्दी से संबंधित विभिन्न क्षेत्र में श्रेष्ठता पूर्ण कार्य करने के लिए लोगों को सम्मानित  कर प्रोत्साहित किया जाता है। 
      10 जनवरी विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। शिक्षा में हिन्दी के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए आज विश्व स्तर पर हिन्दी का विस्तृत रूप में प्रचार-प्रसार हो रहा है। विश्व के 12 देशों में हिंदी जनभाषा का रूप बनती जा रही है।
       विश्व में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है। यह भाषा अपनी सरलता और मधुरता के कारण लोगों के जनमानस पर छा जाती है। वर्तमान समय में हिंदी डिजिटल भाषा भी बन गयी है। शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो रही है। यह हम सभी के लिए गर्व की बात है कि हिंद की हिन्दी जो आन बान और शान है उसने वैश्विक स्तर पर अपना स्थान बना लिया है!
                       - सुनीता रानी राठौर
                      ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
शिक्षा शब्द सँस्कृत के' शिक्ष'धातु शब्द रूप से लिया गया है जिसका अर्थ है सीखना या सिखाना अर्थात जिस प्रक्रिया द्वारा अध्ययन या अध्यापन होता है उसे शिक्षा कहते हैं l विचारों का आदान प्रदान करने के लिए जो माध्यम है, वह है भाषा-हिंदी, अंग्रेजी, सिंधी, राजस्थानी आदि व्यावहारिक व प्रायोगिक तौर पर यह देखा गया है कि सीखना और सिखाना केवल मातृभाषा में ही प्रभावी होता है l टैगोर के शब्दों में"हमारी शिक्षा स्वार्थ पर आधारित,परीक्षा पास करने के संकीर्ण मकसद से प्रेरित यथा शीघ्र नोकरी पाने का जरिया बनकर रह गई है जो एक कठिन और विदेशी भाषा मे साझा की जा रही है जो हमे रटने की दिशा में धकेलती हैl shiksha एक सामाजिक संस्था के रूप में मानव को समाज से जोड़ने व संस्कृति की निरन्तरता को बनाये रखती है l बालक शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमओं, व्यवस्थाओं,प्रतिमानों और मूल्यों को सीखता है और सीखना केवल हिंदी भाषा के माध्यम से ही सम्भव है l शिक्षण के तीनों तत्व-शिक्षक, विद्यार्थी और पाठ्यक्रम पर शिक्षण के सिद्धांत आधारित है और इन सिद्धांतों की आपूर्ति हिंदी भाषा पर ही अवलम्बित है l रुचि जाग्रत करना,प्रेरणा का सिद्धांत, व्यावहारिक ज्ञान और अन्तःक्रियाएँ ये सभी हिंदी भाषा द्वारा शिक्षण से ही सम्भव है शिक्षा का व्यवहारिक पक्ष और निपुणता भी मात्र भाषा ही दे सकती है l हिंदी भाषा सरल, सहज, सुगम और मनोवैज्ञानिक है l
       चलते चलते----
जरूरी नहीं रोशनी चिरागो से हो
शिक्षा से भी घर रोशन होते हैं l
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर -   राजस्थान
     भाषा विज्ञान की दृष्टि से हिन्दी विश्व की किसी भी भाषा से उन्नीस नहीं बैठती बल्कि बीस ही रहती है। हिन्दी भाषा में व्याकरण, शब्दकोश, साहित्य तो है ही, इसकी अनेक सहायक भाषाएँ भी हैं जैसे अवधी, भोजपुरी और ब्रज। इनके अलावा भी एक लम्बी सूची है बोलियों की जो समस्त उत्तर प्रदेश में पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई हैं। मराठी, बंगला, असमिया, उड़िया, पंजाबी आदि इसके अति निकट हैं। मलयालम , तेलुगु और कन्नड़ में लिपि अलग है मगर स्वरों और व्यंजनों के उच्चारण और शब्दों के अभिप्राय एवं वाक्य रचना में ये भी हिन्दी के बहुत निकट प्रतीत होती हैं। यहाँ तक कि तमिल भाषा में ८०० शब्द हिन्दी के प्रयोग में आते हैं। यदि लहजे पर न जायें तो उनकी वर्णमाला भी हिन्दी जैसी है। ये सभी भाषाएँ दायें से बायें ही लिखी-पढ़ी जाती हैं। उर्दू की केवल लिखावट अलग है, है वो हिन्दी ही।
        इतना व्यापक प्रभाव और एक अति विशाल संख्या बोलने-समझने वालों की। कोई भी विषय इसके माध्यम से पढ़ा और पढ़ाया जा सकता है। किसी भी कार्यालय का कार्य इस भाषा में हो सकता है। समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, सरकारी आदेश सभी कुछ इसमें है और हो रहा है। 
        तो क्यों हिन्दी सम्पूर्ण शिक्षा की भाषा नहीं बन पा 
रही है? 
१- आज भी हिन्दी भाषी ही यह मानता है कि पढ़ा-लिखा होना यानी अँग्रेजी का ज्ञान होना।
२- राजनैतिक पैंतरेबाजी ने अहिन्दी भाषियों के मन में व्यर्थ की धारणाएँ स्थापित कर दी और उनके द्वारा हिन्दी विरोध।
३- भारत की सभी भाषाओं में भारतीय अंग्रेज या मैकाले पुत्र आज भी मौजूद हैं जो आज भी अँग्रेजी के रौब से अपने ही लोगों को ग़ुलाम बना कर रखने की मानसिकता से ग्रसित हैं।
४- स्वतंत्रता के बाद की सरकारों ने भाषाई मामलों का समाधान नहीं बल्कि टाल मटोल की नीति अपनाई।
५- अँग्रेजी पुनः अभिजात्य वर्ग की भाषा बन गई जिनका भारत की अधिकांश संस्थाओं पर वर्चस्व। इन
        इन परिस्थितियों में लाख नारे लगा लो, हिन्दी दिवस मना लो, कवि सम्मेलन कर लो और चाहे अपने हालात पर रो लो...यह व्यवस्था बदलने वाली नहीं है।
         इसका क्या उपाय है? इसका एक ही उपाय ही है हिन्दी भाषी हिन्दी पर गर्व करे, बच्चों को हिन्दी माध्यम से पढ़ाए, जनमत बनाए, सरकारों पर दबाव डाले, सम्पूर्ण शिक्षा हिन्दी में और कम से कम हिन्दी भाषी क्षेत्रों में नौकरी पाने तक और व्यापार करने तक सब कुछ हिन्दी में हो। यह माँग सर्वोपरि रखें तो देखें हिन्दी शिक्षा का माध्यम कैसे नहीं बनती है?
- डॉ भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
   भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी जिसे 14 सितंबर 1949 को संविधान में अनुच्छेद 343 जोड़ कर भारतीय संघ की राष्ट्रभाषा  घोषित किया। जिसकी विरासत में भारतेंदुजी से लेकर वर्तमान के अनेक साहित्यकार, शिक्षाविद, नेता  ,
समाजसेवी संस्थाओं ने इसके प्रचार प्रसार के लिए प्रयास किए । भारत में शिक्षा नीतियाँ भी बदलती रहीं ।.हर नीति में इस बात को विशेष रूप से उल्लेखित किया जाता है कि हिन्दी को प्रारम्भिक शिक्षा से ही महत्त्व दिया जाए । पर हकीकत  इससे अलग है ।
  शिक्षा जो मनुष्य को समझदार, ज्ञानवान और परिस्थितियों के साथ लड़ना,भिड़ना ,जीतना सिखाती है ।एक बेहतर मानव बनाती है उसे ही हम  अगर हिन्दी में ना देकर अँग्रेजी में देंगे तो सालों साल हम हिन्दी दिवस मनाते रहेंगे पर अपने ही देश में उसे  सम्मान ना दे पायेंगे।
हम से 80% लोग तो अपने बच्चों को अँग्रेजी माध्यम में पढ़ाते हैं । उच्च मध्य वर्ग की तो छोड़िए निम्न वर्ग के परिजन भी पेट काट कर बच्चों को अँग्रेजी माध्यम में पढ़ाते हैं । इस दृष्टि से शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी को दोयम दर्जा ही दिया जाता है । हिन्दी माध्यम से पढ़ने वाले को समाज ,परिवार, दोस्त ,व्यवसाय वाले सभी हेय दृष्टि से देखते हैं।
हिन्दी  और शिक्षा दोनों को एक दूसरे के सामने नही खड़ा होना है पर  एक होकर साथ बढ़ना है । शिक्षा के क्षेत्र में अनेक भ्रांतियाँ फैलाई गयी हैं कि हिन्दी में तकनीकी शब्दावली नहीं है , यह अन्तर्राष्ट्रीय भाषा नहीं है, इसे सीख कर प्रगति अवरुद्ध हो जाती है ।  यह सब हम ने स्वयं गढ़ी हैं । 
    हाँ यह शर्मनाक है पर सच यही है कि शिक्षा  में हिन्दी को हमारी मानसिकता ने ही कमजोर बनाया है ।
    मौलिक और स्वरचित है ।
  - ड़ा.नीना छिब्बर
   - जोधपुर - राजस्थान
 यहां पर शिक्षा की बात करें तो शिक्षा शब्द का  अर्थ है, सिखने सिखाने की क्रिया। 
लेकिन व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज को सदैव चलाने वाली समाजिक प्रक्रिया है। 
भारत की बात की जाए तो, भारतिय समाज में हिन्दी एक प्रमुख भाषा है, जिससे  पूरे हिन्दोस्तान का विकास  जोरों से हो सकता है क्योंकी  यह एक राष्टृिय भाषा है, जिसके दवारा मनुष्य की जन्म जात शक्तियों का विकास हो लकता है । 
यही नही हिन्दी से व्यवहार में भी परिवर्तन किया जा सकता है, जिससे आने वाली पीढ़ी योग्य नागरिक बन सके। 
आज का दिन यानि १४सितंम्बर हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है, यह इसलिए मनाया जाता है कि, १५सितंम्बर१९४९को संविधान सभा ने एक मत  निर्णय लिया था कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी, 
यही नहीं इसी दिन व्यौहार राजेन्द्र सिहं का ५०दिन मनाया गया था, जिन्होंने हिन्दी को राष्टृभाषा बनाने में बहुत लम्वा संघर्ष किया था। 
यही नहीं राष्टृपिता महात्मा गांधी ने१९१८में हिनंदी को राष्टृभाषा वनाने की बात कही थी। 
उन दिनों से लेकर आज तक हिन्दी दिवस बड़े  धूमधाम से मनाया जा रहा हैऔर हिन्दी को मजबूती से लागू करने के नए ढंग तरीके अपनाए जा रहो हैं ताकि हम अपने संस्कारों को सही दिशा दे सकें जो आहिस्ता आहिस्ता लुप्त होने के कगार पर हैं। 
क्योंकी आजकल आपस में मेल मिलाप के तरीकों में भी काफी तब्दीलीयां दिख रही हैं जो एक चिन्ता का विषय है, 
सच कहा है, 
"दिल साफ करके मुलाक़ात की आदत डालो क्योंकी धुल हटती है तो आईने भी चमक उठते हैं। 
कहने का मतलब हम अपनी  भाषा भुलने के साथ साथ संस्कारों  को भी भूल चुके है्ं  जिससे   भारतबासीयों की 
एकता ओर अखंडता पर भी प्रभाव पड़ रहा है, इसलिए हिन्दी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिससे पूरे भारतक्षेत्र का विकास हो सकता है। 
सच कहा है, 
"जरूरी नहीं रोशनी चिरागों से ही हो, 
शिक्षा से भी घर रौशन होते हैं"।  
इसलिए हम अगर भारत को चमकता, दमकता देखना चाहते हैं तो भारत में हिन्दी को  राष्टृ भाषा का सम्मान देकर तरुंत टिजिटल कर देना चाहिए जिससे हर भारतीय को हर क्षेत्र मेंआसानी से राहत    मिल सके। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
निज भाषा उन्नति अहै ,
        सब उन्नति को मूल बिन। निज भाषा ज्ञान के 
             मिटे ना हि य का शूल।
 हिंदी हमारी मातृभाषा ही नहीं राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है ।हिंदी भाषा के बिना हम अपनी बात को भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर सकते।
 अपनी मातृभाषा के जरिए ही हम अपनी संस्कृति को स हेज कर रख सकते हैं ।
  हिंदी हमारी मातृभाषा है इसके बिना हमारी उन्नति संभव नहीं। आज हिंदी के प्रति सभी निष्ठावान लोग हिंदी दिवस मना कर उत्साह प्रकट कर रहे हैं ।प्रारंभ में ऋषि गुरु अपना वेद रूप ज्ञान जिस भाषा में देते थे ।वह संस्कृत भाषा ही है ।महर्षि दयानंद सरस्वती ने हिंदी को संस्कृत की पुत्री के रूप में समझा था ।
हिंदी व संस्कृत  भाषा की रक्षा के लिए संस्कृत और हिंदी के पठन-पाठन पर बल दिया। उन्होंने संस्कृत निष्ठ  हिंदी भाषा को आर्य भाषा भी कहा ।
14सितम्बर 1949  को संवैधानिक रूप से संविधान सभा में एकमत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया ।22 भाषाओं में से एक है। हिंदी भाषा को कंप्यूटर के भाषा से शिक्षा के  क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान मिला है। कंप्यूटर के क्षेत्र में गूगल यूट्यूब पर आसानी से देखा जा सकता है ।l जिससे ऑनलाइन शिक्षा भी आसान हो गई है
हिंदी भाषा डिजिटल हो गई है। सदियों से यह अपनी स्थिति के लिए आंसू बहा रही थी ।
अब विश्व में छाई हिंदी भाषा हमारी मातृभाषा राष्ट्रीय एकता की  पहचान है। हमारा भारतवर्ष में हिंदी भाषा मैं ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापारकरके विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है । कक्षा 5 तक अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा पर जोर देकर देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जा रही है।
- रंजना हरित 
बिजनौर -उत्तर प्रदेश
हिंदी हमारी मातृभाषा है; जिसकी लिपि देवनागरी है।यह सहज, सरल, बोधगम्य  भाषा है। राजकाज की भाषा है ।
       इसके बोलने वाले एवं इस भाषा में कार्य करने वालों का प्रतिशत अन्य भाषाओं की अपेक्षा सर्वाधिक है। शिक्षण जगत में विद्यालयों में सर्वाधिक बोली जाने वाली *हिंदी* प्रादेशिक स्तर पर शिक्षकों द्वारा ज्ञान- प्रदान करने का सशक्त माध्यम है। आज इस विषय की अनिवार्यता से जनमानस में हिंदी के प्रति अधिक लगाव बड़ा है। नेल्सन मंडेला ने शिक्षण रूपी ज्ञान को इस प्रकार परिभाषित किया-" ज्ञान वह शक्तिशाली हथियार है जिससे आप पूरी दुनिया को बदल सकते हैं।" शिक्षा को विकास क्रम की कड़ी जोड़ने वाले सीएस लेविस भी यही कहते हैं-"- कि एक आधुनिक शिक्षक का काम जंगलों को काटना नहीं बल्कि रेगिस्तान को सींचना है।" अतः ऐसी शिक्षा के लिए परिश्रम तो आवश्यक है क्योंकि किसी के कथन अनुसार --किसी सेना की अपेक्षा शिक्षा स्वतंत्रता के लिए बेहतर सुरक्षा है।
      हिंदी भाषा माध्यम सरल सहज होने के कारण जीवन के लिए उपयोगी, व्यवसायिक एवं चारित्रिक लक्ष्यों की पूर्णता में अहम भूमिका अदा करती है!
 - डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
शिक्षा का अर्थ है ज्ञान। अंग्रेजों ने भारत तो कब का छोड़ दिया लेकिन उनके द्वारा रोपित अंग्रेजी का " बीज "आज भी  हमारे हिंदुस्तान में अपनी विशाल जड़ बना, फल-फूल रहा  है। हिन्दी  हमारी मातृभाषा है ,जो सहज और सरलता से हमारे दिल और दिमाग में घर कर जाती है। लेकिन आज अंग्रेजी मिडियम वाले स्कूल में प्राप्त शिक्षा को लोग ज्यादा अहमियत देते हैं हिन्दी मिडियम से प्राप्त शिक्षा को उसके मुकाबले में।देश के अधिकांश कार्य अंग्रेजी में सम्पादित होते हैं । हिन्दी आज भी हाशिए पर खड़ी है। अजीब विडंबना है कि हिन्दी के लिए आज भी दो नं (२)दबाना पड़ता है। लड़ाई यहां हिन्दी और अंग्रेजी भाषा की नहीं है , बल्कि हिन्दी की दुर्दशा की है।आज कुछ हद तक वर्तमान सरकार प्रयासरत है कि लोग हिन्दी को अपनाएं। हिन्दी में पढ़ा- लिखा व्यक्ति  भी उच्च  से उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
- डॉ पूनम देवा
पटना -  बिहार
कोई भी शिक्षा अपनी ही भाषा में सर्वाधिक प्रभावशाली होती है और हिंदी हमारी मातृभाषा है तो हिंदी में शिक्षा अनिवार्य है। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा की बात कही भी गयी है।
प्रथम पाठशाला घर में बालक की सीखने सिखाने की शुरुआत हिंदी में ही होती है।बालक के मुंह से निकलने वाला शब्द मां हिन्दी में होता है और इसके साथ ही उसकी शिक्षा का शुभारंभ हो जाता है।अब बात औपचारिक शिक्षा की तो हिंदी में ही बालक अपनी अपनी सहज अभिव्यक्ति कर पाता है,सीखता है।अब हिंदी रोजगार की, व्यापार की भाषा भी बन गयी है।विश्व व्यापार में हिंदी, देवनागरी लिपि का विशेष प्रयोग होने लगा है। विभिन्न भाषाओं के शब्द विज्ञापन में देवनागरी में लिखे मिलते हैं। सभी संस्थानों में हिंदी अधिकारी और अनुवादकों के पद सृजित होते हैं, नियुक्ति होती है। इसलिए वर्तमान समय में शिक्षा में हिंदी का महत्व बढ़ गया है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
हिंदी भाषा लगभग  १००० साल पुरानी है हिंदी भाषा जिसे लगभग ७० करोड़ लोग बोलते हैं  हिंदी को 
 राष्ट्रभाषा जैसा सम्मान  नहीं मिला है 
यह बात भारतीय जनमानस के मन को बहुत व्यथीत करती है भारत में भी अंग्रेजी बोलने वाले को अधिक सम्मान दिया जाता है जबकि हिंदी भाषा ने
भारत के संस्कार सभ्यता को विचार को भावों के स्तर पर  परिष्कृत किया है भारत का हर एक नागरिक अपनी बातों की अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा में पूर्ण रूप से कर सकता है इसमें उसे सरलता सहजता होती है भावनात्मक लगाव होता है एक दूसरे से यह बहुत विशाल हृदय वाली है अन्य राज्य की बोलियों हिंदी भाषा अपने में समेटे हुए हैं सभी इसकी अप भ्रंश बोलियां हैं
हमारी संस्कृति के गोमुख से ही सब भाषाएं निकली हुई है भाषा राष्ट्र का व्यक्तित्व है हमारी पहचान हिंदी भाषा से है हम हिंद वासी हैं हिंदी में सभी काम काज हो हिंदी की अब नई भूमिका सभी कामकाज हिंदी में बैंक, रेलवे , शेयर बाजार से लेकर प्रशासनिक कार्य तक अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में दृश्य श्रव्य माध्यम से
विज्ञापनों में भी हिंदी का नया रूप देखने को मिल रहा है।
श्री भारतेंदु जी ने हिंदी भाषा के महत्व को व्यक्त किए हैं --
"निज भाषा उन्नति अहै
सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के,
मिटत न हिय को शूल ।।"
आज भारत देश के बाहर भी कम से कम १२२विश्वविद्यालय में हिंदी का अध्ययन अध्यापन चल रहा है।
विगत कुछ वर्षों में हिंदी ने अपनी
अंतरराष्ट्रीय छवि बनाई है आज विश्व भाषा के रूप में समर्थ है सरकारी नीतियों अधि सूचनाओं को जनता तक पहुंचाने का माध्यम राजभाषा हिंदी है।
हिंदी हमारी निज भाषा है निज भाषा में ही हम सब एक दूसरे से सहज रूप में घुल मिल पाते हैं आम जनता तक
अपनी बात पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा ही सरल माध्यम है।
सभी कामकाज को हिंदी भाषा में किया जाना चाहिए सिर्फ वही काम अंग्रेजी में जिनमें अंग्रेजी के साथ में टेक्निकल क्षेत्र में जरूरी हो  नई शिक्षा नीति के आने से हिंदी भाषा में विकास की दर बढ़ सकती है ।
भारत के सभी राज्यों में हिंदी व वहां की क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा देने का पाठ्यक्रम शामिल है। हिंदी फिल्मों के माध्यम से गीतों के माध्यम से साहित्य के माध्यम से प्रचार प्रसार किया जाए।
हिंदी अखबारों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ा जाए हिंदी की भाषा सरल और शुद्ध हो शब्दकोश में सरलता लाई जाए हिंदी में कविता पाठ बेहतर हों
 शिक्षाप्रद साहित्य का पठन-पाठन हो
आकाशवाणी  हिंदी भाषा में सुनें
हिंदी भाषा केंद्र मनोरंजन के विभिन्न कार्यक्रमों को और बेहतर बनाया जाए
नेट पर हिंदी में तमाम जानकारियां उच्च स्तर की हो ।
१०जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया था २२
देश के प्रतिनिधि मंडल सम्मिलित हुए
तभी से १० जनवरी को हिंदी दिवस मनाया जाता है और १४ सितंबर को भी हिंदी दिवस मनाया जाता है
सितंबर माह हिंदी पखवाड़ा के रूप में मनाते है एक दिन हिंदी दिवस मनाने से हिंदी का महत्व और प्रचार-प्रसार नहीं होगा हिंदी को प्रतिदिन महत्व दें
ज्यादा से ज्यादा लोग हिंदी बोले अधिक से अधिक सरकारी कामकाज हिंदी में हो आजकल के बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाना फैशन हो गया बच्चा  ४७और ५० 
हिंदी में नहीं बोल पाता 50 और 47
समझ सकता है हमें अपने बच्चों को भी अपनी परंपरा और संस्कृति से अनभिज्ञ नहीं होने देना चाहिए।
हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाने के लिए भारत के एक एक व्यक्ति का योगदान अमूल्य है तभी यह संभव हो पाएगा हिंदी है तो भारत है हिंदी है तो
हिंदुस्तान है यही हमारी पहचान है
अपनी पहचान हम खो देंगे  हिंदी को यदि भूले हम तो हम यह संकल्प करें
हिंदी का मान बढ़ाने को हम ऐसा महायज्ञ करें भारत की संस्कृति सभ्यता अध्यात्म योग की धरोहर को
संसार में विश्व गुरु बनाने में हिंदी का अमूल्य योगदान है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
       शिक्षा एक अमूल्य निधी  है इसका सम्बंध जीवन के हर क्षेत्र से होता है ,पेट से लेकर वैश्विक क्षेत्र तक ।सामाजिक मर्यादा ,आर्थिक समर्थता ,विचार शीलता ,विवेक शीलता सभी को  शिक्षा पाकर ही प्राप्त किया जा सकता है ।
      प्रश्न है कि भाषा क्या हो ? जिस भाषा की   गोद में बैठ कर हम आत्म संतुष्टी पा सकें ,सहज अनुभव कर सकें ,वही हमारे लिए सर्वउत्तम है ।हम सब हिन्दी के साथ खेल कूद कर बड़े हुए हैं अतः हमारी आत्मियता उसके साथ है ।हम अंग्रेजी के निकट होते हैं लेकिन सझते हैं हिन्दी में ,अर्थात दिल में हिन्दी बसी है ।
   शिक्षा की बात करें तो आज अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना-पढ़ाना गर्व का विषय है ।जो बच्चे इससे वंचित हैं  वे हीन भावना के  शिकार हैं  और  इस बात में एकदम सच्चाई है ।हिन्दी को बढ़वा देकर हमें इस मानसिकता को दूर करनी है । 
हिन्दी को सही व्याकरण के साथ बोला जाय तो वह बहुत प्रभावशाली होती है ।
   हम पड़ोसी के घर में कितना सहज महसूस कर सकते हैं ।यही बात शिक्षा के साथ भी है ।अंग्रेजी स्कूल से  घर लौट कर बच्चे बोलते हैं "माँ खाना दो " ।स्कूल की सारी गतिविधियाँ हिन्दी में ही बताते हैं ।उस वक्त अंग्रेजियत कहाँ चली जाती है ।अपनी संस्कृति अपनी पहचान होती है उधार ली हुई वस्तु कभी आत्म संतुष्टी नहीं देती ।
  गुलामी से पहले क्या भारत में विद्वान नहीं हुए ? क्या हमारे पूर्वजों ने विश्व का नेतृत्व नहीं किया ? उस समय भाषा कौनसी थी?....वो थी संस्कृत ।हिन्दी उसी की उत्तराधिकारणी है ।हमारी हिंदी की समृद्धि में कोई कमी नहीं है  ।अंग्रेजियत के फेर में हमने अपना बहुत कुछ गँवा दिया ,तक्षशिला के आचार्य चाणक्य को हम भूल गये । अब वक्त आ चुका है कि हम 
 अपनी हिन्दी माँ के महत्व को पहचाने और उसे सम्मान दें ।हिंदी का ज्ञान पाकर हमारे नौनिहाल  भारत का अभिमान बने ।भाषायें और मातायें हमेशा बेटे बेटियों से बड़ी होती हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
       यूं तो सम्पूर्ण शिक्षा नीति का नवीनीकरण हो रहा है। किन्तु जब तक न्यायपालिका में हिन्दी भाषा का प्रयोग नहीं होता तब तक सब शिक्षा व्यर्थ है। जिस पर माननीय शिरोमणि सशक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी को संज्ञान लेकर अहम भूमिका निभानी चाहिए।
       क्योंकि न्याय का रोना जन्म के साथ ही हो जाता है और शिशु के रोने मात्र से उसकी मां उसे स्तनपान करवा कर उसकी भूख को शांत करा देती है। अर्थात शिशु को न्याय मिल जाता है। शिशु का रोना मां भलीभांति समझ जाती है। हालांकि रोने की कोई भाषा-शिक्षा नहीं होती। परंतु फिर भी मां उस वाणी को समझती है। 
       उसी वाणी को मातृभाषा का नाम दिया गया और शिक्षा की उत्पत्ति भी मां से ही हुई। यही कारण है कि मां को प्रथम गुरू माना गया है। दूसरी ओर दुर्भाग्य यह है कि भारतीय रोते रहते हैं और न्यायाधीश ठहाके लगाते रहते हैं। क्योंकि अंग्रेजी नागरिकों को नहीं आती और मातृभाषा हिन्दी न्यायाधीशों को नहीं आती। जिसके फलस्वरूप न्यायधीश कभी न्याय नहीं दे पाते। बस 'न्याय' के नाम पर 'निर्णय' देते रहते हैं और यह एहसान निरंतर सौतेले भाई-बंधुओं की भांति करते रहते हैं।
       अतः मेरा सौभाग्य है कि हिन्दी दिवस 2020 के शुभ अवसर पर मेरी कलम भारत के माननीय महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी एवं माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी से मांग कर रही है कि भारतीयों की भारतीयता, संस्कृति और सभ्यता, को बचाने एवं शहीदों की आत्माओं को न्याय देने हेतु न्यायपालिका के स्तंभ में भी हिन्दी भाषा को लागू कर सम्मान दिलाएं। भले ही संसद में बिल पास करें या राष्ट्रहित में कर डालें। अन्यथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी हिन्दी बोलने का कोई अर्थ नहीं है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित यह चर्चा महत्वपूर्ण है।  हिन्दी को अभी तक राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।  हमारे देश में भिन्न-भिन्न भाषाएं बोली जाती हैं।  हिन्दी भाषी लोगों का आधिक्य है।  यही आधार रहा है हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्रदान करने का।  जिस प्रकार अन्य भाषा बोलने वालों के लिए वह भाषा उनकी मातृभाषा होती है उसी प्रकार हिन्दी बोलने वालों के लिए हिन्दी मातृभाषा होती है।  हिन्दी भाषी लोगों की प्राथमिकता होती है कि सभी कार्य हिन्दी में किये जायें।  सरल हिन्दी में क्योंकि बदलते समय के साथ-साथ हिन्दी का सरल होना जरूरी है।  प्रेमचंद की हिन्दी चाहिए जो सभी समझ सकें। जब हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की बात करते हैं तो उन लोगों में विरोध के स्वर उठते हैं जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है।  हिन्दी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनने के लिए यह आवश्यक होगा कि हिन्दी के पाठ्यक्रम को सम्पूर्ण देश में स्थान मिले।  साथ ही यह भी जरूरी होगा कि देश तथा विदेश में अन्य मातृभाषाओं का भी पूरा सम्मान हो।  हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का लाभ यह होगा कि यह सम्पूर्ण देश में संवाद की भाषा बन जायेगी तथा अन्य भाषाएं भी पूर्ववत सम्मान पाती रहेंगी।  ऐसा करने से आपसी भाईचारा और सौहाद्र भी बढ़ेगा। अतः शिक्षा में हिन्दी को सम्मिलित करना आवश्यक है परन्तु स्नेहपूर्ण वातावरण उत्पन्न कर।  नौजवानों और आगामी पीढ़ी को विश्वास में लेकर इस दिशा में सफलता प्राप्त की जा सकती है। नई शिक्षा नीति इस दिशा में कारगर सिद्ध होगी ऐसा अनुमान है।  इन्हीं शब्दों के साथ हिन्दी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
बिषय शीर्षक देखने में छोटा लगता है, पर है बहुत बड़ा. क्योंकि हिन्दी भाषा को सीखने बोलने की प्रक्रिया पूरे जीवन में चलती है फिर भी व्याकरण नहीं आती, रही शिक्षा की बात तो सभी कहते हैं कि व्यक्ति पूरे जीवन शिक्षा ले सकता है इसके उम्र कोई मायने नहीं रखती बात तो सच है हिन्दी भाषा की क़ीमत वो समझ सकते हैं जो हिन्दी बोलते हैं वैसे तो प्रत्येक समाज, क्षेत्र,समुदाय की अपनी बोली होती है फिर भी हिन्दी भाषा की मार्मिकता सभी को समझ पड़ती है इसके शब्दों में एक रस है एक प्रवाह है । रही बात शिक्षा की तो शिक्षा एक ऐसा टूल है जो जीवन में अपना योगदान किसी न किसी रूप में मनुष्यों को देता है।कोई भी समाज शिक्षा को प्रभावित करता है तो दूसरी और यह बात सत्य है कि, शिक्षा समाज के स्वरूप को निश्चित करती है , और उसकी सांस्कृतिक , धार्मिक , राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। शिक्षा मानव समाज की आधारशिला है । वह समाज का निर्माण करती है , उसमें परिवर्तन करती है , और उसका विकास करती है। हिन्दी भाषा के संदर्भ में देखा जा सकता है सभी समाज अपनी शिक्षा में धर्म विशेष की शिक्षा का विधान करता है । कोई इस क्षेत्र में उदार दृष्टिकोण अपनाता है, तो कोई कट्टरपंथी, जबकि हिन्दी शिक्षा की उदारता की सोच और संसार के भिन्न – भिन्न धर्मों की भाषा शिक्षा का विधान हिन्दी को सबसे अलग करता है । परिणाम स्वरुप पहले प्रकार के समाजों में धार्मिक कट्टरता पाई जाती है , जबकि हिन्दी शिक्षा पाने वाले समाजों में धार्मिक उदारता पाई जाती है , और हिन्दी शिक्षा से परिमार्जित हुए तीसरे प्रकार के समाजों में एक भौतिक विज्ञान की शिक्षा से धार्मिक कूपमंडूकता एवं अंधविश्वासों का अंत तो होने लगा है । परन्तु ईर्ष्या द्वेष वैमनस्य का भाव पैदा होने लगा है क्योंकि भौतिकवादी सोच एक प्रतिस्पर्धा को पनपाने का कार्य करती है । जिसके कारण सामाजिक अराजकता से मनुष्य कुंठित होकर अपनी शिक्षा को पुनः हिन्दी शिक्षा की ओर बढ़ने लगा है अतः वास्तविक धर्म की और उन्मुख होने लगा है हिन्दी शिक्षा के अभाव में लोग धर्म के वास्तविक स्वरुप को समझ ही नहीं सकते। हिन्दी शिक्षा मानव कल्याण के लिए ज़रूरी है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     हिन्दी विश्व की एक प्रमुख भाषा हैं  एवं भारत की राजभाषा हैं। केन्द्रीय स्तर पर भारत में दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी हैं। हिंदुस्तान में अलग-अलग राज्यों की अपनी-अपनी  मातृभाषाऐं हैं। जिसे नवीनतम शिक्षा प्रणाली में प्रमुखता के साथ जोड़ा गया हैं, साथ ही शिक्षा परिवारजनों की प्रथम पाठशाला हैं,  माँ को पहली गुरु कहा जाता हैं, जो अपने स्तर पर बच्चों को अपनी-अपनी मातृभाषाओं के साथ नैतिक शिक्षा एवं समुचित अध्ययन करवा कर परिपक्वता की ओर अग्रेषित करवाती हैं। फिर प्रारंभ होती हैं, प्रारंभिक शिक्षा से उच्च शिक्षा प्राप्त कर विभिन्न कार्यालयों में पद स्थापत्य, जहाँ अपनी मातृभाषाओं को बोध कराने में योगदान दिया जाता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
 हिंदी भाषा का इतिहास लगभग 1000 साल पुराना है। हिंदी शब्द का जन्म संस्कृत भाषा के सिंधु शब्द से हुआ है। सिंधु भारतवर्ष की प्रमुख और प्राचीन नदियों में एक है। हिंदी देवनागरी में लिखी जाती है।  हिंदी के ग लिखन हिंदी भाषा में शिक्षा का महत्व और योगदान बहुत ही बड़ा है। 14 सितंबर 1949 का दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी दिन संविधान सभा मैं हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय  के महत्व देने के लिए और हिंदी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए वर्ष 1953 के उपरांत हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। देश के सरकारी कार्यालयों जैसे रेलवे बैंक की प्रशासनिक व अन्य विभागों में सरकार की ओर से हिंदी भाषा के महत्व को बढ़ावा दिया जा रहा है। हिंदी भाषा में शिक्षा ग्रहण करने के बाद आज देश में सैकड़ों ऐसे युवा प्रतिभाशाली हैं जो आईएएस, आईपीएस व अन्य विभागों में देश सेवा कर रहे हैं। हिंदी भाषा भारत में बोले जाने वाले प्रमुख भाषा है। हिंदी भाषा भारत के अलावा मॉरीशस, फिजी, गयाना, सुरीनाम, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, यमन, युगांडा, सिंगापुर, नेपाल, न्यूजीलैंड और जर्मनी ऐसे देशों के 1 बड़े वर्ग में प्रचलित है। सबसे पहले देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने हिंदी में भाषण विदेश में दिया था जिसको लोग सुनते ही रह गए। वर्तमान समय में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश हो या विदेश जहां जाते हैं अपना भाषण हिंदी में ही देकर हिंदी भाषियों का दिल जीतने का प्रयास करते हैं। नरेंद्र मोदी हिंदी का प्रचार प्रसार करने में हमेशा ही तत्पर और आगे रहते हैं। एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति और संस्कारों की एक सच्चे संवाहक सप्रेषक और परिचायक है। बहुत सरल, सहज व सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवत सबसे वैज्ञानिक भाषा है, जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है, जो हमारे पारंपरिक ज्ञान प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही 11 राज्यों और 3 संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। सविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य 21 भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है। देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ साथ अंग्रेजी अंग्रेजी पूरे देश पर हावी होते जा रही है। हिंदी देश की राजभाषा होने के बावजूद आज आज हर जगह अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। हिंदी जानने हुए भी लोग हिंदी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकते हैं। इसलिए सरकार का प्रयास है कि हिंदी के प्रचलन के लिए उचित माहौल तैयार की जा सके। भाषा का विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है आज के तकनीकी के युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। राजभाषा विभाग की ओर से राष्ट्रीय ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तकों के लेखन को बढ़ावा दिया जा रहा है। हिंदी भाषा के माध्यम से शिक्षित युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सके इस दिशा में निरंतर प्रयास जरूरी है। भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती हो। भारत के लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिंदी है इसलिए इसे एक दूसरे के में प्रचलित करने की आवश्यकता है। भारत सरकार शिक्षा के क्षेत्र में और उनके अधीन सरकारी कार्यालयों में हिंदी के महत्व को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास कर रही है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
 जमशेदपुर - झारखंड
आज हिंदी दिवस १४ सितंबर के उपलक्ष्य में चर्चा के लिए बहुत ही सुंदर एवं समसामयिक विषय का चुनाव किया गया है। इसके लिए जैमिनी अकादमी के अध्यक्ष श्री बीजेन्द्र जैमिनी जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
        आज देश में जिस तरह का परिवेश हो गया है उसके लिए एक भाषा में शिक्षा का होना एकदम जरूरी है। सारे देश में हिंदी में शिक्षा होने से देश की अपनी एक अलग पहचान बनेगी। हमारी एकता अखंडता मजबूत होगी।
         हिंदी में शिक्षा शिक्षा पाने का इतना सुंदर माध्यम है कि क्या कहने। दुनिया में जितनी भी भाषायें हैं प्रायः  सभी में ऐसे-ऐसे शब्द हैं जो लिखे कुछ जाते हैं औऱ पढ़े कुछ जाते हैं। लेकिन हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है  जो लिखते हैं वही पढ़ते हैं।
           दो तीन साल पहले का एक रिपोर्ट है कि हमारा शत्रु देश चीन भारत में व्यापार के क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए या और किसी कारण से अपने कॉलेज में हिंदी पढ़वा रहा है। और एक हम हैं कि अंग्रेजी के पीछे पड़े हुए हैं। आज बहुत से विदेशी हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति के बारे में जानने के लिए हिंदी सिख रहे हैं। हिंदी भजन गा रहे हैं और हम भूलते जा रहें हैं।
         आज हिंदी में शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। हमारी नई पीढ़ी अंग्रेजी पढ़-पढ़ के अपनी सभ्यता ,संस्कृति, अचार व्यवहार, तीज त्यौहार इत्यादि सब कुछ भूलती जा रही है। इसलिए हिंदी में शिक्षा अति आवश्यक हो गई है।
    अब तो हिंदी डिजिटल हो गई है तो हम कोई भी पढ़ाई हिंदी में कर सकते हैं। हिंदी में कंप्यूटर पूर्ण रूपेण चालू है तो हिंदी में शिक्षा देने में कोई असुविधा नहीं है। आज के युग हिंदी एक बेहतरीन शिक्षा का माध्यम है। हिंदी में ही शिक्षा होनी चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
हिंदी ही विश्व की ऐसी भाषा है जिसमे जो बोला जाता है वही लिखा जाता है .हिंदी भाषा का ये सबसे बड़ा फायदा है .ये सरल है .उच्चारण के अनुसार लिखी  जाती  है उच्चारण मूक नहीं होता अंग्रेजी की तरह !! 
ऐसी सरल सहज भाषा मैं पढ़ाना आसान ही और सीखना भी .बड़े खेद का विषय है की आज की शिक्षा प्रणाली मैं हिंदी को उसका यथोचित आदर  सम्मान स्थान प्राप्त नहीं है .
अंग्रेजी की पांच पुस्तकें पाठ्यक्रम मैं और हिंदी की एक या दो पुस्तक !!ये है हिंदी का स्थान वर्त्तमान प्रतिष्ठित शिक्षा प्रणाली मैं !!
आजकल हिंदी का जो प्रचार व प्रसार हो रहा है फेस बुक और अन्य प्रिंट माध्यमों से उसी प्रकार की क्रांति की आवश्यकता शिक्षा मैं भी है !
हिंदी भाषा को उच्च शिक्षा के लिए समृद्ध बनाना होगा जो इसकी सबसे बड़ी कमी है
हिंदी प्रेमी इस दिशा मैं सोच रहे हैं पर आवश्यकता है ठोस कदम उठाने की  तभी हम्मारी राष्ट्रभाषा को उचित स्थान मिलेगा !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
किसी भी व्यक्ति के जीवन में भाषा का बहुत महत्व है । भाषा विचारों और अनुभवों को व्यक्त करने का एक सांकेतिक साधन है। भारत में हिंदी भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का सर्वश्रेष्ठ माध्यम कहा जा सकता है क्योंकि हिंदी भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है । भारत जैसे बहुभाषी राष्ट्र में लगभग 90% लोग हिंदी भाषा बोल लेते हैं या समझ लेते हैं । हिंदी भाषी लोगों की संख्या भारत में अधिक है। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सभी भारतीयों ने अपनाया है । अतः हिंदी माध्यम में शिक्षा इसकी लोकप्रियता और महत्व को और भी बढ़ा सकती है । जैसे-जैसे हिंदी भाषा ने प्रगति की है वैसे वैसे हमारी सभ्यता और संस्कृति का विकास भी हुआ है। ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई  ।श्रेष्ठ साहित्य का सृजन हुआ। हिंदी भाषा के इतिहास पर यदि दृष्टि डालें तो यह लगभग 1000 वर्ष पुराना माना गया है । प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है । कुछ मतों के अनुसार हिंदी का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से प्रारंभ होता है उससे पहले आर्य भाषा का स्वरूप क्या था इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। संभव है कि आर्यों की भाषा, संस्कृति एवं धार्मिक विचारों पर अनार्य  जाति की संस्कृति एवं संपर्क का पर्याप्त प्रभाव पड़ा होगा । अनार्य जातियों के योगदान  में हिंदी अथवा प्राकृताें में जो कुछ है वह आर्यों की ही भाषाओं से लिया गया है अथवा आर्यों के सारी संपत्ति प्राकृतों और हिंदी को प्राप्त हो गई । यद्यपि उस समय शिक्षा का माध्यम अन्य भाषाओं के साथ संस्कृत भी रही हो परंतु तदनंतर हिंदी भाषा का विकास भी माना जा सकता है जो आगे चलकर उसका शुद्ध रूप धीरे धीरे स्पष्ट होता गया ,आधुनिक काल तक आते-आते खड़ी बोली का नाम प्राप्त हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी भाषा एक सुलझी हुई भाषा है इस की लिपि देवनागरी है जो सर्वाधिक वैज्ञानिक है जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है । सरकारी कार्यालयों में ,बैंकों में अन्य शिक्षण/प्रशिक्षण संस्थानों में हिंदी की अनिवार्यता स्पष्ट की गई है। मां की गोद में पल रहा बच्चा अति छोटी उम्र में भी मां के इशारों के माध्यम से हिंदी भाषा को आसानी से समझने की कोशिश करता है और समझ भी लेता है प्राथमिक स्तर से हिंदी भाषा में शिक्षा बालक के मानस पटल पर विशेष प्रभाव डालती है, हिंदी भाषा सुनने का ज्यादा से ज्यादा मौका बच्चे को देना चाहिए ताकि इस भाषा में वहां सहज हो सके । बच्चे को कहानी सुनने ,बाल गीत सुनने और बोलने का मौका दिया जाना चाहिए। धीरे धीरे बच्चों में भाषा की लिपि से परिचित होने के बाद अपने परिवेश में उपलब्ध लिखित भाषा को पढ़ने समझने की जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है । भाषा सीखने -सिखाने की इस प्रक्रिया के मूल में बच्चों के बारे में यह अवधारणा है कि बच्चे दुनिया के बारे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण करते हैं । हिंदी भाषा इसके लिए सार्थक है । हिंदी में शिक्षा प्रदान करने वाला शिक्षक भी भाषा में पारंगत होना चाहिए । शैक्षिक आधार पर और व्यवहारिक आधार  पर वह सक्षम  होना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर जब हिंदी भाषा को महत्व दिया जाएगा तभी उच्च कक्षाओं में, शिक्षण संस्थाओं में , प्रशिक्षण संस्थानों में अन्य प्रतियोगिताओं में , नौकरी पाने, उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने में सफल हो सकते हैं । अंग्रेजी भाषा विदेशी भाषा है, अंतरराष्ट्रीय भाषा है, अंग्रेजों की देन है , भले ही मनुष्य के जीवन स्तर को ऊंचा उठाती है परंतु अपनी मातृशक्ति  ऊर्जा से भरपूर ,सरल ,समृद्ध, सर्व परिचायक ,राष्ट्रभाषा हिंदी का सम्मान अवश्य होना चाहिए । शिक्षा और हिंदी का अनूठा तालमेल जब मजबूत बन जाएगा सभी भारतीय गौरवान्वित महसूस  करेंगे ।
- शीला सिंह, 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
हिन्दी भारतवर्ष का गौरव है। हिन्दी की शिक्षा भारत के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। हिन्दी में काम करना अत्यन्त सरल है। हिन्दी की सबसे बड़ी विशेषता है कि "जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी जाती है" इससे अधिक सच्चाई और किसी भाषा में नहीं दिखाई देती।
"हम सन्तान हिन्दी की मन का गौरव है हिन्दी, 
करें वन्दन इसको मां भारती का सौरभ है हिन्दी। 
अनुराग भरा जिसके स्वर-स्वर, वर्ण-वर्ण में, 
बांधे स्नेह के धागों से भारत को ऐसी है हिन्दी।।"
वर्तमान समय में अंग्रेजी को सफलता का पैमाना मान लिया गया है और यह कड़वी सच्चाई है कि हिन्दी के पक्षकारों को अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जबकि भारत के सन्दर्भ में हिन्दी की शिक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 
"मिट्टी के पुतले को मानव बना देती है हिन्दी की शिक्षा,
धरा से आसमां पर उसे बैठा देती है हिन्दी की शिक्षा। 
हिन्दी की शिक्षा का जिसको मिल गया आंचल, 
सर्वोच्च स्थान उसे दिला देती है हिन्दी की शिक्षा।।" 
हिन्दी भाषा को जन-जन के मन-मस्तिष्क तक पहुंचाने के लिए सरकारी स्तर पर और हिन्दी प्रेमी संस्थाओं को धरातल पर ठोस प्रयास करने होंगे।
यह सुखद है कि वर्तमान तकनीकी दौर में हिन्दी की शिक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो रही है और विभिन्न साहित्यिक संस्थायें हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
विश्व में सात महाद्वीपों में एशिया सबसे बड़ा महाद्वीप है। इसी महाद्वीप के अंतर्गत आने वाला हमारा हिंदुस्तान विश्व में क्षेत्रफल की दृष्टि से सातवां एवं जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा नंबर का विशाल देश है।भारत की इतिहास प्राचीनतम है भारत को विभिन्न नामों से जाना जाता है ।जैसे हिंदुस्तान, भारत, इंडिया। मूल में देखा जाए तो भारत का नाम हिंदुस्तान वास्तविक नाम है‌। हिंदुस्तान का विकास सिंधु घाटी की सभ्यता से माना जाता है। सिंधु नदी को ईरानियों ने हिंदू के नाम से व्यवहार में लाते थे ।सिंधु नदी से अपभ्रंश हिंदू का ही ईरानियों के द्वारा उत्पत्ति हुई हिंदू हुआ ,तब से लेकर आज तक हिंदू से हिंदुस्तान और हिंद महासागर का नाम पड़ा। इसी से जुड़ा हमारी प्राचीनतम भाषा श्रेष्ठ भाषा के रूप में संस्कृत भाषा ही है। लेकिन कालांतर में संस्कृत से ही निःसृत हिंदी भाषा का उद्भव हुआ। हिंदुस्तान,हिंद महासागर, हिंदी भाषा भारत देश के संदर्भ में आते हैं,जो हमारे लिए गर्व की बात है। भाषा से ही भाव झलकता है। हिंदी भाषा माधुर्य और रसभरी भाषा के साथ-साथ कोमल,सहज,सरल भाषा है। इस भाषा को अभ्यास करने में कोई जटिल समस्या नहीं आती है। कोई भी व्यक्ति इस हिंदी भाषा को सरलता से बोल ,समझ सकता है। हिंदी भाषा हमारे देश का संस्कारिक और भावमय भाषा है। जिसको बोलने और सुनने वालों मे भाव की निष्पत्ति होता है। हिंदी भाषा हमारे देश का राष्ट्रभाषा है अतः भारत के हर जनता को हिंदी भाषा का व्यवहार आना चाहिए ।हिंदी भाषा का उपयोग घर, कार्यालय,धार्मिक स्थल या अन्य स्थानों में सम्मान के साथ व्यवहृत  होना चाहिए।इसकी प्रचार -प्रसार में सभी को मन लगाकर उद्देश्य की पूर्ति करना चाहिए, ताकि पूरे हिंदुस्तान हिंदीमय हो जाए। हिंदुस्तान की जनता हिंदी भाषा का सदुपयोग कर भावों और समृद्धि के साथ जी पाए।पूरे देश में 14 सितंबर हिंदी भाषा दिवस के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में सभी को ईमानदारी के साथ भागीदारी निर्वहन करना चाहिए। हिंदी भाषा का सम्मान एवं व्यवहार करते हुए अन्यों  को भी हिंदी भाषा बोलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ताकि हिंदी भाषा का स्वतंत्र विकास हो सके। हिंदी भाषा हमारे देश की आन मान,शान भाषा है। इस की आन,मान,शान को बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सब भारतवासियों का है। 

*हिंद के हम निवासी,*
*हिंदुस्तान हमारा है।*
*हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा,*
*जन जन का प्यारा है।*
  - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ -छत्तीसगढ़
    यह बात यू.एन.ओ.ने भी कही है कि बच्चों की शिक्षा मातृ भाषा में होनी चाहिए। यूरोपियन देशों में देखें तो वो बच्चों को अपनी भाषा में ही शिक्षा देते हैं जैसे जर्मनी में जर्मन, फ्रांस में फ्रेंच और चीन में चीनी। लेकिन हम ,अंग्रेज तो चले गए पर हमने अंग्रेजी से पिंड नहीं छुडाया।यह बात भी सही है कि अपनी मातृभाषा के साथ दूसरी भाषाओं का ज्ञान भी जरूरी है क्योंकि आज पूरी दुनिया एक ग्लोबल गाँव है। 
        अब भारत में देखें तो हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है। भारत के बहुत सारे राज्य हिन्दी भाषी हैं लेकिन वहाँ के लोग भी हिन्दी छोड़ कर अंग्रेजी के पीछे भागते हैं। जबकि घर में और आस पास में सब हिन्दी बोलते हैं और बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने चाहते हैं। इस तरह बच्चों को प्रताड़ित किया जाता है। धीरे-धीरे बच्चों का पढ़ाई से मोह भंग हो जाता है और वो मानसिक रोगी तक बन जाते हैं। 
        आज कल अंग्रेजी मीडियम विद्यालयों में हिन्दी बोलने वाले छात्रों को दण्ड देने जैसी घटनाएं भी होती रहती हैं। ऐसा करके बच्चों को उन की संस्कृति और जड़ों से काट दिया जाता है और धीरे-धीरे विद्यार्थी अपनी संस्कृति से कट जाते हैं। 
        नई शिक्षा नीति-2020 में इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में देना अनिवार्य होगा और साथ में हिन्दी भाषा के महत्व को भी शामिल किया गया है। इस से लगता है कि शिक्षा में हिन्दी युग की स्थापना होगी।लेकिन यह तभी संभव होगा जब हमारा भारतीय बाजार हिन्दी भाषा को स्वीकारे गा कयोंकि भारत विश्व में सबसे बड़ा दूसरा बाजार है।यह प्रयोग सिद्ध हो चुका है कि जनभाषा ही आर्थिक उन्नति का रहस्य है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
भाषा अभिव्यक्ति का साधन है । भाषा का इतिहास सभ्यता जितना पुराना है ।
भारत के संविधान में राष्ट्रभाषा का स्थान मिला । बहुत पहले 150 साल से हिंदी जन - मन की भाषा बनी ।
मेरे अनुसार - 
 ' भारत की गौरव गाथा  " अौ "  , सुख सुहाग की बिंदी।  
लोकतंत्र की शक्तिशालिनी , है  राष्ट्र भाषा हिंदी।  
इसकी उन्नति में है  अपनी , प्रगति- विकास निहित सब 
आओ हम मिलकर अपनाएँ ,  इसमें अपना हित  अब । '   डॉ मंजु  गुप्ता 
हिंदी हमारे देश की एक भाषा ही नहीं है बल्कि हमारे आपसी व्यवहार की संपर्क भाषा , राजभाषा एवं राष्ट्र भाषा है।  १४ सितंबर १९४९ को संविधान परिषद ने सवर्सम्मति से हिंदी को संघ की राजभाषा स्वीकार किया  है और सन  १९६५ के बाद अंग्रेजी का स्थान हिंदी ले लेगी।  लेकिन तब से लेकर आज तक स्वार्थी ताकतों ने ऐसा होने नहीं दिया और हाथ कंगन को आरसी क्या ? अंग्रेजी  का बोलबाला चंहु ओर  दिखाई  दिखाई देता है।  कन्याकुमारी से लेकर हिमाचल तक हिंदी सभी कार्यालयों में भारत सरकार द्वारा चलाई गई नीति के तहत राजभाषा हिंदी का इस्तमाल हो रहा है।  मा. देवगौडा ने  १५ अगस्त १९९६ हिंदी में भाषण दे कर भारत वासियों के लिए मिसाल बने।  प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदी जी ने सितंबर २०१४ में सयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी  में भाषण देकर हिंदी प्रेम का ऐतिहासिक शंखनाद किया   और विश्व मंच पर हिंदी के सम्मान को बढ़वा मिला।  abhi haal hi men 
 भारत में लिपि का झगड़ा भी बेकार है।  यहाँ के महर्षियों , पाणिनी ने देवनागरी लिपि के सिद्धांत युगों  पूर्व निर्धारित किए थे , वे आज भी पूर्ण वैज्ञानिक , अकाट्य  हैं। आज भी  ' त ' ,'  श ' ,  ' व ' , ' स   ' उसी स्थान से बोले जाते हैं जिस स्थान से तब बोले जाते थे।  जैसा शब्द हम बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं।  मिसाल के टूर पर जल शब्द है ज +ल = जल हुआ।  अंग्रेजी में इसे WATER कहेंगे।
      स्वामी दयानंद सरस्वती गुजराती थे।  इम्होंने ' सत्यार्थ प्रकाश ' हिंदी में लिखा।  योगी अरविन्द ने स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी को एकजुट  की संज्ञा दी।   गुजराती  होते हुए भी गांधी जी ने हिंदी का प्रचार - प्रसार करते थे , बाल गंगाधर तिलक , डॉ आयंगर , सुभाषचन्द्र बोस नरसी मेहता   आदि ये सब अहिन्दी भाषी थे और स्वतंत्रता संग्राम का सारा काम हिंदी में करते थे। 
आजादी मिले हमें ६८ वर्ष हो गए हैं हिंदी को राष्ट्र  भाषा के रूप में सिरमोर होना चाहिए।  वैसा नहीं हुआ।  जो राष्ट्र के हित  में नहीं है।  गांधी जी ने कहा था  - '  हम हिंदी  को  उचित स्थान दिलाने की बात करते हैं , परन्तु अपने जीवन में उसकी उपेक्षा करते हैं।  ' 
 चेतन भगत ने अपने लेख कहा  है - ' देवनागरी को त्याग कर , रोमन लिपि अपना कर हम हिंदी को बचा सकते है।  ऐसा न हुआ तो अंग्रेजी  के हमले के चलते हिंदी भाषा  दरकिनारे हो जाएगी।  अंग्रेजी से ही समाज का रूतबा बढ़ता है।  रोमन हिंदी में  ' गांधी जी की कुटिया ' और  ' गांधीजी की कुतिया ' कोई अंतर नहीं  होता है।   
   इन छोटी समस्याओं को अनदेखा करो , शुद्धतावादी मत बनो।  '
 मुझे तो हास्यप्रद लगता है 
भारतेंदु हरिशचन्द्र ने कहा  - ' निज भाषा उन्नति अहै , सब उन्नति का मूल। 
                                     बिनु निज भाषा ज्ञान के , मिटत न हिय को मूल।  '   

चीन और जापान ने अपने भाषा के  दम  पर सबसे ज्यादा तरक्की की है।  जर्मन   हिंदी विद्वान लोथार लॉस ने कहा - ' हिंदी सीखे बिना भारतीयों के दिल में नहीं पहुँचा जा सकता है।  ' 
 मैं तो यही कहूँगी की हिंदी बिखरे हुए भारत को एकता के सूत्र में जोड़ने की शक्ति रखती   है। 
वसुधैव कुटुंबकम और विश्व मैत्री - प्रेम का  प्रतीक है।  सभी राष्ट्रीयकृत बैंक राजभाषा हिंदी का बढ़ावा दे रहे हैं , बैंकों के घरेलू नेटवर्क,एटीएम के माध्यम से बैंक बेहतर ग्राहक सेवाएं दे रहे हैं , उनकी सभी प्रकाशन ,  प्रचार सामग्री  , विज्ञापन , रिपोर्टें आदि द्विभाषी रूपों में जारी की जाती हैं।  अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी निबंध प्रतियोगिता आयोजित करते हैं और हिंदी दिवस पखवाड़े में  विभागीय स्पर्धा हिंदी की  कराते हैं।  . 
   भारत सरकार हिंदी के प्रचार , प्रसार और विकास के लिए , संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए व्यापक कार्यक्रम तैयार किए हैं २०१४ - २०१५ में राजभाषा विभाग ने केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के द्वारा   कम्प्यूटर पर हिंदी काम करने के लिए बेसिक प्रशिक्षण दे रही है।  मोबाईल फोन सेहिंदी की ऑन लाइन परीक्षा ' हिंदी प्रबोध , प्रवीण , प्राज्ञ ' की ली जा रही हैं।   
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा प्रायोजित मंत्र - राजभाषा स्टैडलों, इंटर नेट और इंटरनेट संस्करणों को विकसित  किया है।  राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने हिंदीमें पुस्तक लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए ' राजभाषा गौरव पुरस्कार ' से सम्मानित  की करने योजना है और राजभाषा नीति के कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करने के लिए २०१५ - २०१६  ' राजभाषा कीर्ति पुरस्कार ' योजना शुरू की है 
 68 साल के बाद भी हिंदी राजभाषा से राष्ट्रभाषा नहीं बनी।
अंत में कहती हूँ की आराधना हो राष्ट्र भाषा की तभी देश की उन्नति संभव है , कविता में मेरे भाव 
हिंदी में हैं प्राण कबीर के 
इसमें बसते तुलसी के राम
जिसको गया के नाची मीरा
सूर के थे बसल घनश्याम 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
शिक्षा वही जो आसानी से समझ में आ सके हिंदी एक सरल सहज भाषा है जिसके माध्यम से दी गई शिक्षा महत्वपूर्ण और समझने लायक होती है हिंदुस्तान की यह भाषा जो मात्र भाषा कहलाती है उस के माध्यम से किसी भी विषय का जब हम अध्ययन करते हैं तो स्पष्ट छवि मन मस्तिष्क पर अंकित हो जाती है साथ ही साथ हिंदी के माध्यम से संप्रेषण भी सहज एवं सरल होता है इसलिए शिक्षा प्राप्त करने में या शिक्षित होने में अति आवश्यक है हिंदी का प्रयोग करें अन्य भाषा या तो क्षेत्रीय है या विदेशी है जिसमें एकरूपता नहीं है लेकिन हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें एकरूपता है गांव में बोली जाए या शहर में बोली जाए हिंदी के माध्यम से दी गई शिक्षा सर्वोपरि शिक्षा एवं महत्वपूर्ण योगदान महत्वपूर्ण शिक्षा है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हिन्दी भारतीयों की चेतना है ,,भारत की आत्मा है,,, हमारी पहचान है ,,,,हिन्दी को उपेक्षित कर शिक्षा का सर्वांगीण विकास अधूरा है ।हिन्दी को मातृ भाषा का दर्जा मिलना चाहिए ।इस विषय मे मेरी लिखी पंक्तिया कुछ इस तरह हैं,,,,
हिंदुस्तान के रहने वालों,
हिंदी से तुम प्यार करो ।
ये पहचान है मां भारत की,
 हिंदी  का सत्कार  करो ।
हिंदी के  विद्वानों  ने तो ,
परचम जग में फहराए।
 संस्कार  के सारे  पन्ने,
 हिंदी से ही हैं पाए ।
 देवनागरी लिपि में अपनी,
 छुपा  हुआ अपनापन है ।
अपनी प्यारी भाषा हिंदी,
 भारत मां का दरपन है ।
हिंदुस्तानी  होकर तुमने ,
यदि इसका अपमान किया ।
तो फिर समझो भारत वालों ,
खुद का ही नुकसान किया।
 किसी भी व्यक्ति की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होता है, और मां को पहली गुरु कहा गया है ,क्योंकि हिंदी हमारी मात्र जुबान है ।
हिंदी भाषा का स्थान, हम भारतीयों के जीवन में मां और संतान के संबंध जैसा ही होता है। इस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है,,, बहुत कुछ कहा जा सकता है ।
भाषा मनुष्य की अभिव्यक्ति की प्राणद चेतना का नाम है ,,,।
हम भारतीयों की वह चेतना हिंदी है,,। अर्थात मन के भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जो माध्यम है वह मुख्य तौर पर हिंदी भाषा है ।
भाषा मौखिक और लिखित दो रूपों में विद्यमान रहती है। भाषा वह माध्यम है जिससे हम देश की संस्कृति ,इतिहास ,परंपराएं, संचित ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीक तथा अपने महान विरासत को जान पाते हैं ।
हिंदी हमारी जुबान है अतः हमें अपने बच्चों को हिंदी की ओर उन्मुख करना चाहिए और सरकार को इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा अवश्य देना चाहिए ।
सारा जहां यह जानता है कि हिंदी हमारी पहचान है ।
संस्कृत से संस्कृति हमारी हिंदी से हिंदुस्तान है,,,,।
 स्वतंत्रता के सूर्योदय के साथ हिंदी को भारत की बिंदी बनना चाहिए था ,,,लेकिन उस हिंदी के हालात आजादी के 73 वर्ष बाद भी गुलामी के 200 वर्षों से बदतर सिद्ध हो रही है।
 जिस हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए हिंदी भाषी बंगाली राजा राममोहन राय ,ब्रह्म समाज के नेता केशव चंद्र सेन ,सुभाष चंद्र बोस, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आशा के दीप जलाए ,वह हिंदी अपने ही घर में  बिलख रही है उपेक्षित है ।
विश्व  में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है परंतु परंतु हिंदी भाषा अपने ही घर में भटक रही है,,,, अपनी पहचान होती नजर आ रही है,,,। जबकि शिक्षा में हिंदी को विशेष स्थान देना चाहिए ।
शिक्षा शब्द संस्कृत के, शिक्ष,धातु से लिया गया है इसका अर्थ है सीखना सिखाना ,अर्थात जिस प्रक्रिया द्वारा अध्ययन और अध्यापन होता है उसे शिक्षा कहते हैं ।
शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए हिंदी भाषा में सिखाया जाना व शैक्षिक जागरूकता फैलाना जरूरी है ।तभी वास्तविक स्वतन्त्रता भी सिद्ध होगी जब शिक्षा मे हिन्दी को यथोचित सम्मान मिलेगा 
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
 हिन्दी एक वैज्ञानिक, परिष्कृत और समृद्ध भाषा है   । हिन्दी में लिखा गया साहित्य जितना समृद्ध है शायद ही कहीं और देखने मिले । छंद और अलंकारों से सज्जित हर सूक्ष्म विचाराभिव्यक्ति के लिए यहाँ शब्द मौजूद हैं ।  काव्य एवं गद्य विधाओं के साथ हर शब्द की जैसी लिपि, ठीक वैसा ही उच्चारण। 
हिन्दी दिवस आते ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा भाषा बनाने के अभियान मुखर हो जाते है । हिन्दी की दुर्गति पर चिंतन होने लगता,  हिन्दी में अन्य भाषाओं के प्रवेश पर रोष व्यक्त किया जाने लगता है, पर इन सबके बीच महत्वपूर्ण बात पीछे रह जाती है कि हिन्दी के मूलभूत रूप और उसके सही शिक्षण के लिए विद्वान शिक्षकों की नियुक्ति। 
जब तक हिन्दी भाषा पर अधिकार नहीं होगा तब तक हिन्दी पर गर्व नहीं किया जा सकता । अच्छे शिक्षकों द्वारा ही अच्छे छात्र तैयार किये जा सकते हैं। अंग्रेजी माध्यम के  व्यवसायिक शिक्षण संस्थाओं  द्वारा हिन्दी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दिये जाने तथा  "हिन्दी तो कोई भी पढ़ा सकता है" वाली धारणा को बदलने की जरूरत है। 
आजकल हम देखते हैं विभिन्न साहित्यिक समूह दिनभर की कार्यशाला आयोजित कर हिन्दी छंद सिखाने का प्रयास कर रहे हैं और रचनाकारों की बावली भीड़ जोड़-तोड़ करके एक रचना निर्मित कर वाहवाही लूटने में लगी है । 
हमें यह समझना होगा कि हिन्दी केवल टूटा-फूटा काव्य नहीं। हिन्दी के वास्तविक अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। 
वर्तमान समय में समाचार मीडिया में एक नया चलन देखने में आ रहा है, व्याकरणिक दृष्टि से हिन्दी के सही वाक्यों तोड़-मरोड़ कर इस तरीके से पेश किया जाता है जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है। 
हिन्दी शिक्षाविदों एवं सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा। 
हिन्दी की उचित शिक्षा द्वारा ऐसे विद्यार्थी तैयार करना होगा जो हिन्दी के प्रयोग से स्वयं तो गौरवान्वित गौरवान्वित हों ही हिन्दी के सही रूप को हस्तांतरित भी कर सकें ।
- वंदना दुबे
धार - मध्यप्रदेश
हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी की स्थिति पहले से बहुत अच्छी है। कहते हैं कि बूंद बूंद से सागर भरता है यदि हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। इसी बात को लेकर मैं अपनी बात कहना चाहूंगी। मेरा पंजाब में जन्म हुआ। मातृभाषा पंजाबी है आजकल पंजाब में रह रहे हैं परंतु फिर भी मैं हिंदी लिखने में गर्व महसूस करती हूं। मेरी राष्ट्र भाषा हिंदी है इसके प्रचार-प्रसार में भी मुझे गर्वानुभूति होती है। मैं गूगल पर जब भी कुछ ढूंढती हूं तो हिंदी में लिखती, बोलती हूँ और मुझे तुरंत जवाब मिलता है। आज से 20 साल पहले अपने ही देश में हम प्रत्येक जगह अंग्रेजी लिखने- बोलने में गर्व महसूस करते थे परंतु आज स्थिति उल्टा है। हिंदी का प्रयोग होने लगा है। हां! जो शिक्षा की स्थिति है वर्तमान युवा पीढ़ी की- वह चिंताजनक है। पढ़ाई में हिंदी अनिवार्य होनी चाहिए। एक सब्जेक्ट इंग्लिश का हो बाकी सब हिंदी में होने चाहिए। जब युवा वर्ग बढ़चढ़ कर हिंदी को अपनाएगा, हिंदी पढ़े- लिखेगा, बोलेगा.. तभी राष्ट्रभाषा का कल्याण संभव है।
हिंदी रचनाकारों के लिए भी अंत में मैं कहना चाहूंगी कि बहुत से रचनाकार हिंदी की जगह उर्दू के शब्दों का प्रयोग करते हैं जो कि समझ तक नहीं आते। वह भी उर्दू की जगह देवभाषा संस्कृत के शब्द क्यों नहीं प्रयोग में लाते। जबरदस्ती उर्दू लिखने में व मंच पर बोलने में अपनी शान क्यों समझते हैं..? हिंदी के शब्दों का भंडार है। यदि मेरे जैसी कम पढी- लिखी महिला पंजाबन होते हुए भी हिंदी में अपनी 14 पुस्तकें प्रकाशित करवा सकती है..गूगल का सदुपयोग कर सकती है तो आप पढ़े- लिखों के लिए क्या मुश्किल है..।
हमें गर्व होना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री स्वयं हिंदी में भाषण देते हैं।  
- संतोष गर्ग
मोहाली -चंडीगढ़


" मेरी दृष्टि में " प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए । जब तक मातृभाषा में निपुण नहीं हो जाता है । तभी आगे की शिक्षा अन्य भाषा में सम्भव है । परन्तु ऐसा नहीं हो रहा है । मातृभाषा का ज्ञान नहीं है ।चले हैं उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए ....। यही आज की शिक्षा में महत्वपूर्ण कमी है । इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी


































































































Comments

  1. हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर हिंदी को प्रोत्साहित करने हेतु सम्मान पत्र से सम्मानित कर हमें गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया।आदरणीय जैमिनी सर और पूरी टीम को हृदय तल से आभार और बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏🌹🙏

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  2. जैमिनी अकादमी पानीपत के द्वारा हिन्दी दिवस पर लघुकथा, परिचर्चा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन कर हिन्दी के प्रति अपने समर्पण एवं सेवा के भावों को प्रकट करते हुए जिस प्रकार अनेकानेक साहित्यकारों को सम्मानित किया गया, वह नमन योग्य है ।
    आदरणीय बिजेन्द्र जैमिनी जी एवं समस्त पदाधिकारियों को साधुवाद एवं हार्दिक आभार ।

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  3. जैमिनी अकादमी पानीपत के द्वारा हिन्दी दिवस पर लघुकथा, परिचर्चा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन कर हिन्दी के प्रति अपने समर्पण एवं सेवा के भावों को प्रकट करते हुए जिस प्रकार अनेकानेक साहित्यकारों को सम्मानित किया गया, वह नमन योग्य है ।
    आदरणीय बिजेन्द्र जैमिनी जी एवं समस्त पदाधिकारियों को साधुवाद एवं हार्दिक आभार ।
    सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'

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  4. जैमिनी अकादमी पानीपत के द्वारा हिंदी दिवस पर लघु कथा परिचर्चा कवि सम्मेलन आदि का आयोजन कर हिंदी के प्रति अतुलनीय समर्पण एवं हिंदी साहित्य के प्रति समसामयिक जागरूकता के लिए विजेंद्र जी वह उनकी टीम को बहुत-बहुत धन्यवाद

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  5. जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा हिंदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर प्रतिभागियों को पुरस्कृत करने हेतु साधुवाद। हिंदी के प्रचार प्रसार व जागरूकता के लिए उनका प्रयास सराहनीय है बहुत-बहुत आभार आदरणीय विजेंद्र जैमिनी जी।

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  6. 14 सितंबर ' हिन्दी-दिवस ' है।

    एक समय था जब हिंदी-दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष देश भर के प्रमुख चुनिन्दा साहित्यकारों को ' जैमिनी अकादमी ' द्वारा पानीपत के सामुदायिक भवन मे विभिन्न सम्मान से विभूषित किया जाकर उन्हें सम्मान-पत्र किया जाता था।

    वाह ! क्या दिन थे तब ।

    - उमाशंकर मनमौजी
    भोपाल - मध्यप्रदेश
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

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