क्या निर्भिक होने का मतलब आक्रामक होना है ?

निर्भिक होना निडर साहसी कहलाता है परन्तु आक्रामक होने से निडर साहसी नहीं कहाँ जा सकता है । यही जैमिनी अकादमी की " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय हैं। अब आये विचारों को देखते हैं : - 
निर्भीक होने का अर्थ आक्रामक होना कतई नहीं हैं ।जो आक्रामक होते हैं उनमें अपना कोई बल नहीं होता । वे हीन भावना से ग्रसित होते हैं । उनमें विवेक नाम मात्र को भी नहीं होता ।इसके विपरीत जो निर्भीक होते हैं  उनमें आत्मबल होता है ।चिंतन होता है । दूसरों का बुरा करने की प्रवृति भी नहीं होती ।वे निडर होकर जीवन क्षेत्र में अपनों व परायों के लिए संघर्ष करते हैं । वे अपना लक्ष्य निर्धारित करते हैं तथा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए  आक्रामक होना तो दूर ,किसी को जरा सी भी हानि नहीं पहुंचाते। 
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
जहांँ तक आज की चर्चा में यह प्रश्न है कि क्या निर्भीक होना आक्रामक होना है तो मैं कहना चाहूंँगा कि निर्भीकता का मतलब आक्रामक होना बिल्कुल नहीं है बल्कि अपनी बात को बहुत सही ढंग से और तार्किक रूप से प्रस्तुत करना ही निर्भीक होना है निर्भीक होने से मतलब यह कतई नहीं है कि हम दूसरे की बातों का सम्मान न करें और उसके सच को भी अपने झूठ से दबाने का प्रयास करें या किसी तरह का कोई ऐसा व्यवहार करें जिससे दूसरे को दबाव में लेने की प्रवृत्ति झलकती हो निर्भीक होने का सच्चे अर्थों में यही मतलब है कि हम सब अपने कार्यों को बहुत सही ढंग से बहुत निष्पक्षता के साथ बहुत ईमानदारी के साथ और बहुत ही समझदारी के साथ पूरा करते हुए अनावश्यक रूप से किसी के दबाव में ना आए और यदि कभी कोई अपरिहार्य परिस्थिति उत्पन्न होती है तो अपनी बात को बहुत ही सही ढंग से शांतिपूर्ण तरीके से और तार्किक रूप से रखें न की गुस्से में आकर दूसरे को अपशब्द कहे या गलत व्यवहार करें इससे हम अपनी छवि को ही नुकसान पहुंचाते हैं और समाज में हमारे प्रति गलत धारणा बन सकती है जो हमारी प्रतिष्ठा के लिए और हमारे व परिवार की प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक हो सकती है इसलिए इन सभी चीजों का ध्यान रखते हुए ही अपनी राय दूसरों पर व्यक्त करनी चाहिए 
- प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
निर्भिक होना इतना सहज नहीं है, जितना प्रदर्शित किया जाता है। इसे यूँ भी समझ सकते हैं कि निर्भिक अपने आप में पूर्ण नहीं है, किसी एक विशेष विषय बिंदु को लेकर निर्भिक हो सकते हैं, किंतु  यह मान लिया जावे कि इसमें हर विषय बिंदु समाहित हैं तो गलत होगा। मान लें यात्रा करते समय हमारे पास वैध टिकट है तो हम इस विषय को लेकर निर्भिक रहेंगे परंतु यात्रा में अन्य संभावित मुश्किलों के प्रति किसी भी अंश में भयभीत जरूर रहेंगे। भले ही हम बाह्य रूप में ये कहें कि ' देखेंगे, जो होगा, देखा जायेगा।' ऐसा ही कुछ अन्य स्थिति और परिस्थितियों में भी हो सकता है। जीवन में ऐसे अनेक वाकया अकसर होते हैं, जिनमें अपनेआप को निर्भिक समझने वाले बाद में पछताते और आँसू बहाते देखे गए हैं। 
अतः निर्भिक होने का मतलब  आक्रामक होना यह समझने की भूल कदापि नहीं करना चाहिए। ये आक्रामकता भले ही तत्काल में ' विजयश्री 'लगे परंतु समय पलटने में देर नहीं लगती। निर्भिक होना अच्छा माना गया है , परंतु इसके साथ न्याय, निष्ठा, सजगता और सावधानी भी रखना आवश्यक है। इसके विपरीत यदि निर्भिक होने के साथ आक्रामक होने का आचरण, आपके विरुद्ध  वातावरण और योजना तैयार करेगा जिसकी परिणिति आपके लिए अप्रिय स्थिति ही पैदा करेगी।
सार यह कि निर्भिक होना सकारात्मक पक्ष है लेकिन यदि निर्भिक होने के मतलब  आक्रामक होना  है तब यह स्थिति चिंताजनक और नुकसानदेह है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
निर्भीक शब्द निर्भय से बना है निर्भय एक विशेषण है और निर्भीक का अर्थ होता है जो किसी से डरता नहीं है जो निर्भय है निर्भय रहने वाले व्यक्ति को निर्भीक कहते हैं निर्भीक व्यक्ति में साहस हिम्मत बहुत अधिक होता है चाहे सकारात्मक कार्य हो या नकारात्मक कार्य हो दोनों को करने में हिम्मत और साहस का प्रदर्शन करता है
आक्रमक का अर्थ होता है दूसरे के ऊपर क्रोध मारपीट झगड़ा अर्थात दूसरे को हानि पहुंचाना दोनों शब्द आक्रमक और निर्भीक दो छोर पर है आक्रमक बिल्कुल ही नकारात्मक शब्द है जबकि निर्भीक व्यक्ति के सकारात्मक से ज्यादा संबंध रखता है नकारात्मक व्यवहार भी हो सकते हैं पर अधिकतर निर्भय निर्भीक शब्द का संबंध किसी काम को करने में साहस और हिम्मत भी खिलाने से है इसलिए आक्रामकता इंसान के कमजोरी को बतलाता है जबकि निर्मित इंसान के हिम्मतवाली गुण को दर्शाता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
निर्भीक होना और आक्रामक होना दोनों अलग बातें है। सदा आक्रामक होने/रहने वाला व्यक्ति निर्भीक होगा ही..यह आवश्यक नहीं है। निर्भीक व्यक्ति सजग, संयमशील होते हुए अपने विवेक का सही प्रयोग करता है और परिस्थिति के अनुसार सही निर्णय लेता है। स्वयं सही होते हुए निर्भीक होकर काम करना सही है, पर गलत होते हुए निर्भिकता का प्रदर्शन मात्र करना कदापि सही नहीं हो सकता।
निर्भीक अर्थात् भय रहित होकर अपने कर्मपथ पर चलते हुए अपना श्रेष्ठ अपने कार्य के लिए देना ही वास्तव में निर्भीक होना है। इसमें आक्रामकता का समावेश होना कमजोरी ही कहलायेगा।
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
प्रेम ,क्रोध, ईर्ष्या, ममता ,भूख ,प्यास,नींद, भय यह हमारी जन्मजात प्रवृतियां हैं। आयु के बढ़ने के साथ हम शिक्षा ,समाज और व्यवहारिकता के कारण अपने गुणों में वृद्धि और अवगुणों को कम करने का प्रयास करते हैं ।
निर्भीक का अर्थ है बिना भय के। जब हम मन की ताकत को संबल बनाते हैं तो हमे  बिना भय के अपने काम को अंजाम दे सकते हैं । भय हमेशा गल्त काम करने पर होता  है। आक्रामकता हिंसा की  सीमा रेखा मेंआ जातीहै ।दिमाग और वाणी का संतुलन बिगड़ जाता है ।हमारा अह्म सर्वोपरि हो जाता है। निर्भय व्यक्ति  संयम से काम लेता है और उसके इरादे  अटल होते हैं । आक्रामक व्यक्ति जल्दबाजी में ,काम को बिगाड़ देता है। हम कह सकते  हैं कि निर्भीक और आक्रामक दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं।
   मौलिक और स्वरचित है ।
    - डॉ. नीना छिब्बर 
जोधपुर - राजस्थान
निर्भीक होने का मतलब  आक्रामक होना ही नहीं है, 
अपितु आने वाली समस्आयों का डट कर मुकाबला करना है ताकी वो समस्या फिरसे पनपने न पाए। 
 कई वार हम निर्भीक होकर क्रोध में गल्त कदम उठा लेते हैं जिसका खमेआजा हमें उम्र भर भौगना पड़ता है, जबकि हम न रहे गा बांस न बजेगी बांसुरी वाला काम कर देते हैं। 
क्योंकी हर समस्या का हल आक्रामता ही नहीं है  जब हम कोई कार्य  निर्भीक होकर करते हैं तो उसका यह मतलब ही नहीं निकलता की हम  किसी निडर होकर कार्य कर रहे हैं अपितु यह भी निकलता है  की हम अपने मन के भय से निर्भय होकर का्र्य कर रहे हैं जो हम सोच रहे थे वो गल्त था। 
कई वार इन्सान गल्त सोच रखने पर  दुसरे को समझे विना ही उसके प्रति आक्रामिक हो जाता है  जबकि यह समस्या का हल नहीं होता, हल तब होता है जब आप निर्भय हो कर कार्य करते हो और दुसरे को वोही कार्य आपके प्रती प्रेरित करता है   तो आप विना झगड़े उसके मन को जीत लेते हो,  वोही निर्भीक होकर आक्रामक होना है, 
सच कहा है, 
"माहोल अशांत था, लोग आक्रामक थे सड़कों पर कोहराम था, हर मोड़ पर हुडदंग था लेकिन सब के पीछे मांग थी हमें शान्ती चाहिए"। ऐसे कार्यों में निर्भीक होने का मतलब आक्रामक  होना नहीं वरना  निडर होकर अपने मन की शान्ति से काबू पाना होता है। 
कई बार सब कुछ देखकर भी सहना पड़ता है, ताकी हम अपने मन को काबू मे रख कर निडरता से आशांत माहौल पर काबू पा सके जिसे हम मन की जीत भी कह सकते हैं जिसको हमने आक्रमण से नहीं पर दिल  की आक्रामकता से जीता होता है, सच्ची दास्तां है, 
"उस रात की खोफनाक दास्तां, मैं लिख न सका, को़शिश लिखने की थी मगर मेरे साथ रोती रही कलम मेरी" 
कहने का मतलब  जिन्दगी में बहुत ऐसे खौफनाक हादसे हो  जाते हैं जिनको वयां करना भी मुश्किल होता है लेकिन मन को निर्भीक रखकर आक्रामक होना पढ़ता है, इसीको जिन्दगी की जीत कहते हैं। 
इन्सान में सहनशीलता व सहनशक्ती कितनी है वो ही मन की निडरता हैऔर उस निडरता से वो कितनी कामयावी हासिल करता है वोही     आक्रामकता, कटुरता, आक्रामकता और अकड़ वर्तमान पर भारी पड़ती है और भविष्य भी छीन लेती है। 
इसलिए गम को निडर होकर गले लगाना सीखो, 
सच कहने जा रहा हुं, 
"कैसे भूल जाऊं, मैंउस खौफनाक मंजर को, वो कहानी अब कोई न पूछो, आंखों से जो बह गया, वो खून था या पानी"। 
इसलिए जिन्दगी का हर पल निर्भीक होकर ऐसे जिओ की कभी भी आपको  आक्रामक न होना पड़े  यही नहीं खुशी की जिन्दगी जीना चाहते हो तो पहले गम को निडर होकर गले लगाना सीखो,महेन्द्र कपूर जी ने  गजव का गाया है, गमों का दौर  भी आए तो मुस्करा के जिओ, इसलिए निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना ही मत समझिए। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
नहीं,बिल्कुल नहीं।निर्भीक,कभी आक्रामक नहीं होगा। हमेशा भयभीत ही आक्रामक होता है। निर्भीकता और आक्रामकता एक साथ हो ही नहीं सकते। जब हम किसी से खतरा महसूस करते हैं तभी तो उसके प्रति हम आक्रामक होते हैं। इसके विपरीत जब हम निर्भीक हो,कोई भय न हो तो खूंखार जानवर के साथ भी खेलने लगते हैं। भालू,सांप के खेल दिखाने वाले मदारी,सर्कस में शेर और हाथी के मुंह के बीच अपना सिर रख देने वाले इसका उदाहरण है।मदारी,कलाकार और वो खूंखार जानवर दोनों ही एक दूसरे से निर्भीक होते हैं, इसीलिए एक दूसरे के प्रति आक्रामक नहीं होते। जबकि भयभीत मनुष्य इनके प्रति आक्रामक रवैया अपनाता है और फिर वो जानवर भी आक्रामक रुख अपना लेते है। यही बात मानव और मानव के बीच भी है। आक्रामकता का जन्म ही भय से होता है, भयभीत होते ही प्राणी बचाव की मुद्रा में आ जाता है और अपनी रक्षार्थ आक्रामक हो जाता है।यह जीव का स्वाभाविक गुण है, और यह  मानव तो क्या पशु,पक्षी और वनस्पति सहित समस्त जीवधारी जगत में पाया जाता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल' 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
            जी नहीं ,निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना कतई नहीं है। दोनों अलग मुद्दे हैं। निर्भीक मतलब  निडर  होना ,किसी बात के लिए मन में भय की भावना नहीं होना। जबकि आक्रामकता में बल तथा निरंकुशता का समावेश होता है, किसी दूसरे से अपनी बात मनवाने के लिए  हठधर्मिता करना।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
निर्भिक होने का मतलब आक्रमक होना नहीं होता है। निर्भीक का अर्थ साहसी, निडर, आत्मविश्वासी के रूप में लिया जाता है।आत्मविश्वास से पूर्ण व्यक्ति निर्भीक होकर अपना निर्णय लेता है, हर कार्य को पूर्ण करता है। अपने व्यक्तित्व का प्रदर्शन करता है जबकि आक्रामकता कुंठा के रूप में प्रदर्शित एक सामान्य प्रक्रिया है।
   आक्रामकता मौखिक भी होती है और शारीरिक भी। व्यक्ति ईर्ष्या, द्वेष व कुंठा से ग्रसित होकर आक्रामक व्यवहार करते हुए अभद्र भाषा का व्यवहार करता है कभी शारीरिक रूप से आक्रमक होते हुए हमलावर हो जाता है।
सकारात्मक पक्ष में आक्रमक होना कभी-कभी खिलाड़ियों के संदर्भ में प्रस्तुत होता है। जैसे- अपने हार को जीत में बदलने के लिए आक्रामक रूप अख्तियार कर वे कठिन परिश्रम करते हैं और जीत हासिल करते हैं।
     निर्भीक शब्द सदैव सकारात्मक रूप में प्रयोग होता है जबकि आक्रामक शब्द नकारात्मक रूप में। आक्रामक व्यवहार बोलचाल या आचरण सदैव निंदनीय होता है। ये किसी के हित में नहीं होता जबकि निर्भीक होना सदैव लाभकारी और हितकर होता है। निर्भीक होने पर हम सदैव आगे बढ़ने को तत्पर रहते हैं और हमें सफलता प्राप्त होती है 
                     - सुनीता रानी राठौर 
                     ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
       इतिहास साक्षी है कि जब-जब अत्याचार एवं क्रूरता  का साम्राज्य फैला। तब-तब निर्भीकता प्रकट हुई और निर्भीक मानव विजयी हुए। भले ही उन निर्भीक मानवों को विजय का मोल अपनी गर्दन कटवाकर या अपने-आप को जिंदा दिवारों में चिनवा कर ही क्यों नहीं चुकाना पड़ा हो?
       सर्वविदित है कि निर्भीकता का परिचय प्राणों को दांव पर लगा कर दिया जाता है। जैसे हमारे भारतीय निर्भीक सैनिकों ने प्राण न्यौछावर कर टाइगर हिल्स पर तिरंगा फहराया था और अभी-अभी गलवान घाटी में चीन के दांत खट्टे किए हैं।
       किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि निर्भीकता आक्रामक होती है। जबकि निर्भीकता शुद्ध शाकाहारी एवं शांतिप्रिय होती है। अर्थात जियो और जीने दो के मूलमंत्र पर आधारित है। जिसका सिद्धांत खुश रहो और खुश रहने दो है। 
       उल्लेखनीय है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति युगों-युगों से निर्भीक एवं शांतिप्रिय है। जिनकी आस्था शिवशंकर भोलेनाथ और माता पार्वती जी हैं। जिनके रूद्र रूप एवं तांडव से पृथ्वी ही नहीं बल्कि आकाश और पाताल भी हिल जाते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
निर्भीक का अर्थ यह नहीं होता कि आप आक्रामक हो जाए और सब से झगड़ा करें।
हमें निडर, वीर ,बहादुर बनना चाहिए । मनुष्य में डर रहेगा किसी से नहीं डरना चाहिए उसे उसकी शक्ति का सही उपयोग करना चाहिए। अपनी उर्जा को उसे मानव कल्याण समाज के विकास के लिए लगाना चाहिए ज्योति स्वामी विवेकानंद महात्मा गांधी आदि महापुरुषों ने किया। देश के फौजी भी नेता होते हैं यदि वे आक्रामक हो जाए तो क्या?
क्रोध कभी किसी के लिए अच्छा नहीं होता उसके परिणाम हमेशा हानिकारक ही होती है। इसमें हम अपना ही मुस्कान करते हैं अपने आप को ही हानि पहुंचाते हैं।
गुस्सा या क्रोध किसी को भी आ सकता है यह बहुत आसान है पर शांति और धैर्य रखना बहुत ही मुश्किल काम होता है।
उदाहरण के लिए यदि कोई खीर में गाड़ी चला रहे तो आप उसके ऊपर गुस्सा हो जाएंगे और थोड़ी देर बाद आप सोचेंगे तो आपको वही निर्णय उचित लगेगा।
जीवन में परेशानियां तो लगी रहूंगी लेकिन परेशानी का शांति से सामना और समझदारी से हल निकालने वाला व्यक्ति ही बहादुर होता है।
जियो और जीने दो का सिद्धांत संपूर्ण विश्व को हमारे देश ने ही दिया ।
-  प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
निर्भीक होने से तात्पर्य-- बिना भय के जीवन पथ पर आगे बढ़कर कोई न कोई कीर्तिमान स्थापित कर लेना। यह गुण विशेष प्रकार के पशु एवं मनुष्य में ही होते हैं; सब में नहीं।
         निर्भीक लोग लक्ष्य के प्रति एकाग्र एवं सकारात्मक सोच वाले होते हैं। हां निर्भीक पशु भी इस गुण के साथ लक्ष्य- प्राप्ति हेतु आक्रामक हो सकता है; यथा-- शेर। अंतर यह है पशु की निर्भीकता में धैर्य का पड़ाव नहीं होता। अतः उसकी बुद्धिमत्ता शीघ्रता की प्राप्ति में व्यग्र होकर आक्रामक हो जाती है। यह स्थिति आक्रामक व्यक्तियों में भी देखी जाती है।प्राय: आक्रामक प्राणियों द्वारा हानि पहुंचाने के भाव से बढ़ाया गया कदम सुनियोजित होता है ।आक्रामकता कुछ प्राणियों में स्वभावगत एवं परिवेश जनित होती है।
         वर्तमान समय में तो परिवार, समाज और देश में निर्भीक लोगों के दर्शन कम ही होते हैं बल्कि भौतिक परिवेश में स्वयं का प्रभुत्व स्थापित करने की दिशा में सिद्धांत हीनता में भी बदनामी प्राप्ति के डर से दूर, आधिपत्य जमाने हेतु सीमा नियंत्रण रेखा पर चीनियों का आक्रामक रुख इसका जीता जागता उदाहरण है ।
            आज शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थी और शिक्षकों के मध्य भी आक्रामक स्थितियां बहुत ही पनप रही हैं। इन स्थितियों को निर्भीकता की संज्ञा से मंडित नहीं कर सकते। हां एक कर्मवीर द्वारा अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ना वंदनीय, नए प्रतिमान स्थापत्य का गौरवान्वित निर्भीक कदम है; यथा---- एवरेस्ट विजेता द्वारा दुर्गम पथ एवं बाधाओं को सहर्ष सहन करने की अनुभूतियां।
              ऐसे ही वर्तमान राजनीति में आदरणीय मोदी जी द्वारा देश की सेवार्थ यकायक लिए जाने वाले निर्णय में उनकी साहस और हिम्मत से जुड़ी सकारात्मकता को निर्भीकता का ही नाम देना उचित होगा।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
कदापि नहीं ! निर्भिक यानी किसी भी प्रकार का खौफ नहीं है और आक्रामक होना यानी अपने आपे में न रहकर क्रोध में विवेकहीन हो     
मारपीट करना यह निर्भिकता नहीं है ! हमारी योग्यता ,हमारा विश्वास 
हमे निर्भिक बनाता है ! परीक्षा की यदि आपने पूर्ण तैयारी की है तो निर्भिक होकर वह पेपर देता है उसे अपनी मेहनत पर ,योग्यता पर पूर्ण विश्वास है किंतु दादागिरी दिखाकर ,आक्रामक रुप लेता है तो वह निर्भिकता नहीं है उसे कहीं न कहीं भय रहता है कि मेरा विरोध होगा और मैं बाहर कर दिया जाऊंगा किंतु अपनी मेहनत और योग्यता के साथ पूर्ण विश्वास के साथ जो छात्र रहता है उसे किसी का डर नहीं रहता वह निर्भिकता के साथ अपनी सकारात्मक सोच को लिए रहता है ! आक्रमकता लिए जो रहता है उसमे डर तो बना रहता है ! 
सही में वही निर्भिक होते हैं जिसे अपनी योग्यता पर विश्वास हो !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
     जो निर्भिक होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफलता अर्जित कर ले, उसकी ही बुद्धिमान इच्छा शक्ति पर निर्भर करता हैं, आज अनेकों प्रकार के डर समय-समय-समय पर उजागर होते जा रहे हैं, जिसके कारण हमेशा आक्रामक का भय व्याप्त हो रहा हैं और फिर वृहद स्तर पर विभिन्न प्रकार के जातिगत भेदभाव को हद से ज्यादा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वालों का बोलबाला होने के कारण जनजीवन प्रभावित होता हैं और न्यायपालिका की शरण में जाकर अनावश्यक रूप से न्याय पालिका के चक्रव्यूह में फंस कर जीवन को व्यर्थ नष्ट कर शारीरिक-मानसिक-धन व्यवस्थाओं का अपव्यय कर रहा हैं। इसलिए निर्भिक होकर, आक्रामक की परिभाषाओं को बदलने का प्रयास करने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
निर्भिकता का मतलब आक्रामक तेवर कतई नही होना चाहिए।स्वभाव मे सरलीकरण और सहजता प्रदान करने की क्षमता ही जीवन के कटीलीं राहों पर दिशानिर्देश बनकर अपनी भुमिका निभाती है।एक निर्भिक व्यक्ति अपने साधारण मनुष्य के गुणवत्ता को कायम रखेंगे तो समाज मे इक अलग सदेंश जायेगा।और आसपास सकारात्मकता ऊर्जा फैलगीं।कभी कभी इंसान अभिमान की झूठी शान को विकसित करते हूये अपने आत्मविश्वास और अपने सपन्नता   निर्भिकता का गलत उपयोग करके अपना दबदबा असहाय लोगों पर इस्तेमाल करते है।ऐसा करने से मन कुंठित होते है।और  निर्भिकता केंद्र मान सम्मान को चोट पहूँचती है।मानव संसाधन में अपने कार्य करने के लिए आक्रामकता सही नही ।सहजता प्रदान करने वाले इंसान ही मार्गदर्शक सिद्ध होते है।अपने शोहरत और शान  निर्भिकता का सही उपयोग ना करने से अंदर ही अंदर खोखला पन को साबित करता है।और आक्रामक तेवर को उतेजित करता है।क्षणिक सुखद वातावरण भले अनुभव किया जाये।परंतु इसका परिणाम हमेशा निराशाजनक ही सिद्ध होता है।आक्रामक होना इंसान के अनुवांशिक गुण का परिचायक भी होता पर  निर्भिक होने का कतई ये मतलब नहीं होना चाहिए कि इंसान आक्रामक हो जाये।अपने हौसलों को नयी पहचान देने मे निर्भिकता का महत्व बेहद होता है और साथ ही इंसान का मनोबल उच्चतम स्तर पर देखने को मिलता है।लोगों क प्यार और आशीर्वाद प्राप्त होता है।परंतु आक्रामक होने से आपकी प्रतिष्ठा धूमिल होने लगती है।इसलिए सरलता ही जीवन की आधारशिला है। निर्भिक होनाया बनना अच्छी बात है परंतु आक्रामक होना इसका मतलब नही।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
        नहीं ! निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना नहीं है। निर्भीक होने का मतलब साहसी और निडर होना है। निर्भीक उसे कहते हैं जिसे किसी प्रकार का भय न हो। वो कहीं भी किसी से भी बेधड़क कोई बात कर सके। कहीं भी बिना भय के जा सके।
          बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो कहीं अनजान जगह जाने में या अनजान आदमी से बातें करने में डरते हैं। लेकिन जो निर्भीक होते हैं वो कहीं भी जाने में किसी से भी बात करने में चाहे वो कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो नहीं डरते हैं। उन्हें निर्भीक कहा जाता है। 
                   लेकिन कहीं-कहीं पर आक्रामकता दिखानी पड़ती है निर्भीक बनने के लिए।साहस दिखाना पड़ता है। तभी लोग समझ पाते हैं कि अमुक व्यक्ति निर्भीक है। ये कुछ भी कर सकता है। जिसके अंदर सच्चाई होती है। धोखाधड़ी करने से बचता है, किसी के साथ विश्वास घात नहीं करता ऐसा व्यक्ति निर्भीक होता है।
           निर्भीक और आक्रामक दोनों में फर्क होता है। निर्भीक व्यक्ति को सही गलत का ध्यान रहता है जबकि आक्रामक व्यक्ति को सही गलत का ध्यान नहीं होता है। उसके  दिमाग में यही होता है कि आक्रामक होने से मेरा काम हो जाएगा। सामने वाला डर कर मेरी बात मान लेगा। लेकिन निर्भीक ऐसा नहीं सोचता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
निर्भीक या निडर तथा भय रहित होना हर व्यक्ति की शक्ति ,ऊर्जा और साहस का परिचायक है। यह निर्भीकता आत्म हित, आत्मरक्षा , राष्ट्र हित ,राष्ट्र रक्षा के पक्ष में सही मानी गई है। किसी भी असंगत घटना के प्रति जब व्यक्ति साहस के साथ उसका डटकर विरोध करता है, तब वह क्रोध और ऊर्जा का सम्मिश्रण अपनाकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है वह आक्रामक भाव है ।  समय और परिस्थिति के अनुरूप यह स्वीकार्य भाव है क्योंकि इसमें व्यक्ति अनुशासित और मर्यादित पक्ष को स्वीकार करते हुए आक्रामक भाव अपनाता है । उदाहरण के लिए चीन की बार-बार LAC पर  दखलअंदाजी अब भारत के लिए असहनीय हो गई है ।चीन की गद्दारी निरंतर बढ़ती जा रही है। हमारे सैनिक निडरता, निर्भीकता से हर परिस्थिति का सामना करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं । यदि उनके ऊपर किसी भी प्रकार का हमला या धोखे से सीमा नियमों का उल्लंघन चीनी सैनिकों द्वारा होता है तो हमारे निर्भीक सैनिकों का आक्रामक होना स्वाभाविक भी है और न्याय संगत भी । इसी प्रकार आत्मरक्षा हेतु निर्भीकता , निडरता बहुत जरूरी है । किसी भी अपराधिक घटना का मुकाबला करने के लिए निर्भीकता और साहस हमारे हथियार बन जाते हैं । अपराधी अथवा शत्रु पर आक्रामक होकर हम अपना बचाव कर लेते हैं। लेकिन जब कोई वार्ता शांतिपूर्ण वातावरण में चर्चा में हो हमें अपने ज्ञान को बांटने का अवसर हो , तर्क वितर्क के आधार पर वाद विवाद ,बहस चल रही हो तब किसी सुयोग्य, शिक्षित ,निर्भीक व्यक्ति को आक्रामक होना शोभा नहीं देता । प्रमाणिक तथ्यों के आधार पर ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए। अतः परिस्थितिनुरूप   तथा समय और हालात को देखते हुए ही इस प्रकार के भावाें को आत्मसात किया जा सकता है , अन्यथा हानिकारक परिणाम सिद्ध होते हैं ।
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कहावत है कि "कमजोर को जल्दी गुस्सा आता है".. गुस्सा आने से वह शीघ्र ही आक्रामक हो जाता है। जबकि विवेकयुक्त  ताकतवर व्यक्ति निर्भीक होता है और अपने गुस्से को नियन्त्रित करने की कला में पारंगत होता है इसलिए वह अपनी आक्रामकता पर भी नियन्त्रण करना बखूबी जानता है।
निर्भीकता मनुष्य का गुण है तो आक्रामक प्रवृत्ति अवगुण है। निर्भीक मनुष्य प्रत्येक कदम सोच-समझकर उठाता है जबकि आक्रामक व्यक्ति परिणाम की परवाह किये बिना कार्य को अंजाम दे देता है, जिसके दुष्प्रभाव उसे झेलने पड़ सकते हैं। 
इसलिए मेरे विचार में निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना बिल्कुल नहीं है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
 नहीं ,निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना नहीं है ।निर्भय का मतलब है बिना भय के सफलता की राह पर अदम्य साहस के साथ चलना ।कोई भी रास्ते में बाधाएं आए तो उन बाधाओं को समाधानित करते हुए आगे बढ़ना ।आक्रामक का मतलब है आक्रोश या आवेशित होकर सफलता पाना ।आवेश में कोई आज तक सफल नहीं हुआ है ,ना ही व्यक्ति सफल होता है। जो निर्भीक होकर समस्याओं का निराकरण करने का अदम्य साहस रखता है वही  निर्भय कहलाता है ।होने का मतलब आक्रामक  होना नहीं निर्भय होकर आगे बढ़ना है।
- उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
निर्भिक होने का मतलब आक्रमक होना नहीं होता।निर्भिक तो वो होता है जो बिना डरे या बिना किसी के दबाव में आए अपना काम करता रहे।वैसे हम आम तौर पर यह समझते हैं कि जो रण में पीठ ना दिखाए वो निर्भिक होता है। व्यापक अर्थ में जो मनुष्य परिवार के सदस्यों की रक्षा के लिए खुद दुख झेल लेता है और मुश्किलों का डट कर सामना करता है वो निर्भिक होता है परन्तु उस में साहस के साथ विवेक भी होना चाहिए। यह नहीं कि किसी के दबाव में सच को झूठ और झूठ को सच बताए या अपनी बात मनवाने के लिए आक्रमक हो जाए।उस में सच को सच और झूठ को झूठ कहने का दम हो।अगर कहीं हार का सामना करना भी पड़े तो धैर्य ना खो कर डट कर खड़े होना चाहिए।निर्भिक का मतलब कतई आक्रमक होना नहीं।  
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
निर्भीक शब्द संस्कृत का है। इसका मतलब जो बिना डरे या किसी दवाब में ना आए और बहादुरी से काम करता हो। यह-रहित निडर साहसी कहलाता है।
क्क्रिकेटर धोनी खेलो मैं रन लेने में पीठ नहीं दिखए ।निर्भीक होकर आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़े।
जो व्यक्ति परिवार के सदस्यों की रक्षा के लिए खुद दुख झेल कर ,उन्हें संतुष्टि प्रदान किए वह आक्रमक नहीं होते।
जो व्यक्ति मुश्किलों में समाज के समस्या को डटकर सामना करते हैं वह आक्रमक नहीं होते।
बुराई के विरुद्ध समाज में खड़ा होना आक्रमक नहीं है।
हार में फिर से उठ कर खड़ा हो जाए अपनों से तुरंत हार मान जाए वह व्यक्ति आक्रमक नहीं है।
लेखक का विचार:-निर्भीक का मतलब आक्रमक नहीं है । बिना डरे बिना किसी दबाव में आए बहादुरी से काम करता है उसे  आक्रमक नहीं कहते हैं। 
मैं यहां एक उदाहरण पेश कर रहा हूं:-हमारे भारतीय सैनिक बहादुरी के साथ अपनी जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा करते हुए चीन के लिया हुआ  जमीन वापस लेकर पीछे धकेल दिया।
 क्योंकि पहले की सरकार के नियम से लोग बंधे हुए थे ।अभी के सरकार ने पूर्ण रूप से आदेश दिए हैं ,समय  को नजाकत को देखते हुए सैनिक खुद निर्णय लें ।अतः हमारे बहादुर सैनिक अपने देश के खोया हुआ जमीन वापस लिए हमें बहादुर सैनिक पर गर्व है।
जय भारत, जय सैनिक, जय किसान।
- विजेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
इन्सान को भगवान ने अन्य सभी जीव जन्तुओं में सबसे अधिक कुशाग्र बुधि का स्वामी बनाया है ।इसलिये अन्य जीव कोई भी कार्य करते हैं तो उनमें अनिश्चय और भय बना रहता है और ये सभी जीव अपने कुशलता पूर्वक किये जा रहे कार्य को भी संपूर्णता तक नहीं पहुंचा पाते और छोड देते हैं फिर दुसरा कार्य शुरु कर देते हैं । कहने का तात्पर्य ये कि ये जीव जहां सफलता के प्रति आशन्कित रह्ते हैं वहीं भय ग्रस्त भी ।
दूसरी तरफ मानव जिस कार्य को करना चाहता है उस पर पहले पूरा मनन करता है ।कार्य की सफलता वा असफलता पर निर्भीकता और गम्भीरता से विचार करके ही कार्य शुरु करता है ।जब तक इन्सान शुरु किये गये कार्य को लगन और परिश्रम से पूरा नहीं करता वो कड़ी मेहनत से कार्य में जुटा रहता है ।
यही मनुष्य की सफलता का राज है । 
जैसे अन्य जीव अपनी किसी भी क्रिया में अक्सर आक्रमक हो जाते हैं और अपने उद्देश्य को शत प्रतिशत नहीं पाते उल्टे इन्सान ऐसा नहीं करते ।
निर्भीक होना इन्सान का एक गुण है जबकी आक्रमक होना अवगुण माना जाता है । निर्भीक हो कर कोई भी कार्य पूर्णता को प्राप्त होता है जबकि आक्रमक हो कर कार्य कभी सफल नहीं होता और यदि सफल होता भी है तो उस कार्य के समापन पर यश प्राप्त नहिं हो पाता ।।
     - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
किसी व्यक्ति के माथे पर निर्भीक लिखा नहीं होता , और न ही निर्भीक व्यक्ति बेवजह ही अपनी बहादुरी दिखाता फिरता है । वो तो समय और परिस्थिति आने पर 
अपने साहस का परिचय देता है। अज्ञान भय का कारक होता, ज्ञानवान व्यक्ति भय मुक्त रहता । 
भयमुक्त या निर्भीक होने का यह तात्पर्य नहीं कि व्यक्ति हर जगह अपने बल का बलात् प्रयोग करता हुआ दूसरों को भयाक्रांत करे । आक्रामक होना व्यक्ति की कमजोरी मात्र है । परिस्थिति का सामना न कर पाने के कारण व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता और वह आक्रामक हो जाता है । तब उसे न तो भाषा की मर्यादा का भान रहता है और न ही, किसी के सम्मान की परवाह । आक्रामक व्यक्ति में   मूल्यों का ह्रास स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वह जोर-जोर से चीखता है,  अपना आपा खो देता है जिससे उसके हाव-भाव विकृत हो जाते हैं और कभी-कभी तो वह हिंसक भी हो जाता है। जबकि निर्भीक व्यक्ति का शांत, संयमित  और मर्यादित स्वभाव लोगों को प्रभावित करता है । समय आने पर दूसरों की मदद के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करता है। 
निर्भीक परोपकारी हो सकता है पर आक्रमक व्यक्ति स्वार्थी ही होता है उसके भीतर कुटिलता भरी रहती है। 
निर्भीक होने का अर्थ आक्रामक होना कदापि नहीं, बल्कि ये दोनों विपरीत अवस्थाएं हैं,  क्योंकि निर्भीकताा  एक चारित्रिक गुण है जबकि आक्रामकता चारित्रिक दोष ।
- वंदना दुबे 
  धार -  मध्यप्रदेश 
जो बिना डरे, बिना किसी दवाब के भय रहित होकर अपने दायित्वों का निर्वहन करे ऐसा जीवन निर्भीक है l आक्रामकता लेटिन शब्द एग्रेशियो से आता है अर्थात बल द्वारा किसी दूसरे के अधिकारों का हनन करना, यह जन्मजात आंतरिक रूप से निर्देशित एक विनाशकारी प्रवृति है क्योंकि निर्भीकता की प्रतिलोमानुपाती विरोधाभाषी स्थिति है l अतः निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना नहीं है l वैसे वर्तमान परिवेश में निर्भीकता का स्थान आक्रमकता ने लिया है, दृश्य यूँ है ---
न जाने कैसी महक आ रही है बस्ती में 
वही जो दूध उबलने के बाद आती है l 
हमने उगा रखें हैं जंगल, नफरतों की सारी बस्ती में 
मगर गमलों. में मीठी नींद की पौध लगा रखी है, घर के आँगन में l
कौन निर्भीक है? कौन आक्रामक? इस का अंदाज हम नहीं लगा पाते हैं --
दिलों का हाल आसानी से कम मालूम होता है 
कि पेशानी पे चंदन तो सभी साधु लगाते हैं l 
गर्व यह है कि निर्भीकता और आक्रमकता दोनों ही मनोवैज्ञानिक स्थितियाँ होती हैं l मुलर ने ऐसी स्थिति पर काफी चिंतन किया है l हम अपनी आक्रमकता से दूसरों का कितना नुकसान कर पाएंगे यह तो अनिश्चित है लेकिनयह निश्चित है कि आक्रमकता से पहले की स्थिति जो विष भरी घूंट है हमारे शरीर और मस्तिष्क को विकृत कर देगी क्योंकि आग जिस जगह रखी जाती है उसी जगह को पहले जलाती है अतः जीवन में अपने स्वाभाविक गुणों को बढ़ाते हुए निर्भीक जीवन मार्ग पर 
बढ़िए l
          चलते चलते ---
कोई सफलता इतनी कीमती नहीं है कि उससे आंतरिक अशांति के द्वारा होने वाली क्षति की पूर्ति की जा सके l 
             - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
निर्भीक निडर साहसी होने का मतलब आक्रमक होना कतई नहीं होता है 
निर्भीक व्यक्ति अपने जीवन में किसी भी नई चुनौतियों के आने से घबराता नहीं है वह डटकर हिम्मत साहस के साथ मुकाबला करता है और विजयी 
होता है निर्भीक व्यक्ति में भरपूर  आत्मविश्वास होता है मनोबल उत्साह उमंग लक्ष्य हमेशा ऊंचा होता है और लक्ष्य को पाने के लिए वह मेहनत करता है राह में किसी भी तरीके का अवरुद्ध आने पर उनको पार करने की क्षमता रखता है धैर्य संतुलन समझौता
अपने पक्ष को बखूबी प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता होती है निर्भीक व्यक्ति 
सभी चुनौतियों को पूर्णतया स्वीकार कर आगे बढ़ता है ईमानदारी और सत्यता इनकी पहचान होती है।
इसके विपरीत आक्रमक व्यक्ति
बात बात में अपनी अधैर्यशीलता का
प्रदर्शन करते हैं समस्या का निदान करने के बजाए आक्रमक होकर उसे और भी उलझा देते हैं ऐसे व्यक्ति से बचना बेहतर होता है किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न कर देते हैं इस तरीके का व्यवहार हमें आए दिन न्यूज़ चैनल अखबार आदि के माध्यम से
भीड़ भाड़ वाले कई तरीके की रैलियों में देखते हैं तथ्य की गहराई से कोई लेना-देना नहीं होता है बस अपनी बात को ही महत्व देते हैं।
*निर्भीक मानव आकाश गगन के तारे तोड़ लेता है*कुछ भी असंभव नहीं*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
निर्भिक होने का मतलब आक्रमक होना एकदम नहीं है ।निर्भिक एक सकारात्मक शब्द है जब कि आक्रामक नकारात्मक ।निर्भिक शब्द का प्रयोग  किसी साहस के  काम केलिए बोता है ।चाहे वह लेखन में हो शारिरिक शक्ति में हो या कोई भी सही काम हो सकता है ।निर्भिकता के अंदर जान जाने  तक का भय रहता है लेकिन उस  निर्भिकता में आत्मसम्मान निहित रहता है जब कि आक्रामकता में घमंड ।दोनों का अंतर जमीन आसमान का है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना तो कतई नहीं है।  हां आवश्यकता होने पर आक्रामक हुआ जा सकता है।  सच तो यह है कि जो सत्यवादी होता है वह निर्भीक होता है।  उसे किसी से भय नहीं लगता।  हां उसके सत्यवादी होने से बेईमानों और भ्रष्टाचारियों की नींद उड़ सकती है।  अतः निर्भीकता के साथ-साथ उसे आक्रामक भी होना पड़ सकता है।  निर्भीक होने का यह अर्थ भी नहीं है कि आप किसी हिंसक पशु के सामने निर्भीक होकर चले जायें।  ऐसा करना मूर्खता होगी।  निर्भीक होने का यह अर्थ नहीं है कि आप जलती आग में कूद जायें। यह निर्भीक होना नहीं बल्कि दुस्साहसी होना कहलाया जा सकता है।  अतः निर्भीक होने में भी बुद्धिमानी का परिचय देना आवश्यक है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
निर्भीक होने का मतलब है निडर , भय रहित है ।
आक्रमक का अर्थ है हमला या प्रहार करनेवाला ।
निर्भीक व्यक्ति निडर होकर बिना दवाब के काम करता है । वह आक्रमक नहीं होता है , हालातों पर भी निर्भर है  अगर कोई उस पर आक्रमण करेगा तो वह आक्रमक होकर अपना बचाब करेगा ।
महाभारत युद्ध में सभी यौद्धा निर्भीक थे जब वे आपस में भिड़े तो आपस में वे आमकर्मक हुए ।
हाल ही में पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग सो झील के दक्षिणी किनारे पर भारतीय सेना की जोरदार जवाबी कार्रवाई से बौखालाए चीन ने इस इलाके में   सैनिक तथा टैंक भेजे हैं। एलएसी सीमा पर चीन का शैतानी दिमाग साजिश करेगा तो भारतीय सैनिक आक्रमक बनके उनको मुँह तोड़ जवाब देगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
निर्भीक  होने का मतलब  आक्रामक होना बिल्कुल भी नहीं है ।
हर प्राणी में स्वच्छंद प्रवृत्ति होती है वह अपनी इच्छा से हर कार्य करने की सामर्थ्य रखता है। या कार्य करने की कोशिश करता है।
अगर उसके इस कार्य में कोई अडचन डालें ,तब ही वह आक्रामक हो सकता है ।
अब अगर हम मनुष्य जाति की बात करते हैं।
 तब कोई बच्चा हो या मनुष्य आक्रामक जब तक नहीं होता जब तक तुझे बेवजह परेशान न किया जाए ।
अगर किसी एक छोटे बच्चे को ही लें  ,अगर उस छोटे बच्चे से उसका मनपसंद कोई  खिलौना छीन ले ,तो वह आक्रामक होकर काट भी लेता है ।
एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति अपने जीवन में अच्छे या बुरे  की समझ रखते हुए अपने कार्य को निर्भीक होकर सफलतापूर्वक पूर्ण करता है । इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह निर्भीक है तो वह आक्रामक भी है यानि किसी को भी मार सकता है।नहीं !
यदि उसके कार्य में कोई भी  विघ्न ना डालें तभी वह अपने पथ से विचलित नहीं होता और ना ही आक्रामक होता है । बल्कि धैर्य का परिचय देता है।
और यदि हां जिस व्यक्ति में कोई अवगुण   हो और वह जैसे - चोरी, हत्या और विध्वंस प्रवृत्ति का हो तो वह भी निर्भीक होने के साथ-साथ आक्रामक प्रवृत्ति का भी बन जाता है ।जैसे अपनी लूट जैसी घटना को अंजाम देने के लिए वह आक्रामक होकर उस व्यक्ति की हत्या भी कर सकता है।
 समाज में कुछ शरारती व्यक्ति भी  निडर होकर असामाजिक घटनाओं को अंजाम देते हैं। आक्रामक रवैया अपनाते हैं। परंतु वे निर्भीक नहीं होते उन्हें भी जेल जाने या पुलिस  से पिटाई का डर रहता ही है।
अतः हम कह सकते हैं की निर्भीक होने का मतलब आक्रामक होना या ना होना व्यक्ति के व्यक्तित्व और धैर्य पर निर्भर है।
- रंजना हरित
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
:-निर्भीक अर्थात् जिसे कोई भय नहीं होता जो व्यक्ति माता पिता के आशीर्वाद से, संतों- गुरुओं के आशीर्वाद से, परमात्मा की अनुकंपा से सत्य के पथ पर चलता हुआ समर्पण भाव से  अपना जीवन व्यतीत करता है  वह निर्भीक व्यक्ति है। ऐसा व्यक्ति कभी भी, किसी भी स्थिति में दूसरे पर आक्रमण नहीं करता बल्कि संसार में निर्भीक होकर रहते हुए ईश्वरीय सत्ता से डरता है। इसी कारण औरों के संग दया- धर्म अपनाता हुआ स्नेह- भाव से रहता है। वह जहाँ भी कदम रखता है औरों को सुख पहुँचाता है।
इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति स्त्री, बेटा- बेटी, उच्च कुल, धन- संपदा के अहम में निर्भीक होकर   
सीना तान कर चलता है वह दूसरों पर आक्रमण करते हुए भी हिचकिचाता नहीं है। ऐसे  आक्रमिक व्यक्ति का किसी न किसी दिन अवश्य ही सर्वनाश होता है क्योंकि वह सभी के दु:ख का कारण बनता है। सभी की बद्दुआ लेता है। उसके अंत से ही सभी को सुख मिलता है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
- संतोष गर्ग
 मोहाली - चंडीगढ़

" मेरी दृष्टि में " आक्रामक होने से कोई लाभ नहीं हो सकता है ।  नुकसान ज्यादा नज़र आता है । निर्भिक होना बहुत अच्छी बात है ।  इस अन्तर को सभी को समझना चाहिए ।
                                               - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान



Comments

  1. अभिव्यक्ति रत्न सम्मान मिलने पर हार्दिक बधाई मंगल भावनाएं आदरणीय बीजेंद्र जी के लिए ..👏👏👏👏👏🙏💐🙏 धन्यवाद आदरणीय अनिल जी 🙏

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  2. सर्वप्रथम अभिव्यक्ति सम्मान 2020 की बधाई जैमिनी जी। नेक कार्य के लिए नेक व्यक्ति को सम्मान, हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
    अब बात करते हैं निर्भीकता और आक्रामकता पर। दोनों ही धुर विरोधी शब्दहैं। निर्भीकता मैं सकारात्मकता का समावेश होता है वह किसी भी तरह की हो सकती है तन की भी मन की भी या अन्य किसी विषय में। उसमें अपने आप पर भरोसा होता है जबकि आक्रामकता में नकारात्मक भाव रहता है। उसमें दंभ,हठवादिता, निरंकुशता और कभी-कभी तो हीनता का भाव भी समाविष्ट होता है जिसकी वजह से व्यक्ति आक्रमक हो जाता है। निर्भीकता को आक्रामकता कभी भी नहीं कह सकते।

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