क्या प्रार्थना मन की पुकार होती है ?
मन से प्रार्थना का असर अवश्य होता है । जिससे मन की पुकारा कहतें हैं । कहते हैं कि मन की पुकार कभी खाली नहीं जाती है ।यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
प्रार्थना दिल और दिमाग दोनों की एक पुकार है।
यद्यपि की हर दिन हर लोग अपने इष्ट देव से कोई न कोई प्रार्थना करता है पर दिल और दिमाग से निकलने वाली आवाज सच्ची प्रार्थना कहलाती है जहां मन में शुद्धता हो पवित्रता हो एकाग्रता हो और इन तीनों के समन्वय से अगर आप अपने इष्ट देव की आराधना करते हैं तो बस यही प्रार्थना कहलाती है और उस प्रार्थना से आप अपने आप में एक संतोष का अनुभव करते हैं प्रार्थना इसलिए नहीं की जाती है कि किसी चीज की चाहत है प्रार्थना के माध्यम से हम उस उर्जा की अपेक्षा रखते हैं जिससे मानसिक शारीरिक पारिवारिक सामाजिक राष्ट्रीय हित हो वह प्रार्थना कहलाती है
प्रार्थना में निष्ठा विश्वसनीयता एकाग्रता निरंतरता होना आवश्यक है किसी एक दिन की प्रार्थना से वह ऊर्जा की प्राप्ति नहीं होती है जिस ऊर्जा को प्राप्त करने की आकांक्षा है या वांछित ऊर्जा प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से निष्ठा एकाग्रता विश्वसनीयता शुद्धता एवं पवित्रता को अंगीकार कर इष्ट देव की आराधना करना हर समस्या का समाधान है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी बिल्कुल ,प्रार्थना मन की पुकार ही होती है। प्रार्थना में इंसान भक्ति भाव और श्रद्धा से अपने आप को ईश्वर के समक्ष समर्पित करते हुए विनती करता है कि प्रभु मेरी तथा जग की रक्षा करें तथा सबका कल्याण करें।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुख भाग भवेत्।
यही प्रार्थना का प्रधान भाव होता है। प्रार्थना में प्रभु स्मरण के साथ उन्हें महान शक्ति संपन्न तीनों लोकों का स्वामी बताते हुए विनीत भाव से प्रार्थना की जाती है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मानव जीवन में उतार और चढ़ाव आते ही रहते हैं जब हमें कोई परेशानी आती है तब उस विषय पर चिंता करना भी आवश्यक होता है तब हम चिंतन मन से करते हैं । और अपने अपने इष्ट देव को याद करते हैं।
और यही, मनुष्य के मन से की गई पुकार प्रार्थना बन जाती है।
मानव जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है परमात्मा का सच्चा स्वरूप जानना ।अगर हम निश्चित नहीं कर पाते, तो हमारे जीवन में दिशा और दशा डांवाडोल डाल हो जाती है ।तब हमें सर्वव्यापक शक्तिमान की याद आती है ।
दुख में सुमिरन सब करे,
सुख में करे न कोय।
गर सुख में सुमिरन करे,
तो दुख काहे को होय ।
क्योंकि सर्वांतर्यामी हम सबके हृदय की बातों को जानता है। जिस तरह से बच्चे को क्या चाहिए उसकी माता पहचान जाती है।
प्रार्थना दिल से निकली हुई आवाज है ।प्रार्थना करने से आत्म संतुष्टि मिलती है दिल को सुकून मिलता है ।
यह प्रार्थना दिल की,
बेकार नहीं होगी।
पूरा है भरोसा ,
मेरी हार नहीं होगी।सांवरे........
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
वास्तव में प्रार्थना हमारे मन यानि अंतरात्मा की बहुत ही गहरी पुकार होती है। इसमें हमारा गहरा भावबोध मन की विकलता तथा अनतश्च चेतना परमसत्ता के प्रति अटूट आस्था और विश्वास इश्वरीय सत्ता से उदारता की कृपा पाने के लिए अपने आराध्य को पुकारता है; पर ईश्वर सदैव निश्चल, निष्कपट और पवित्र हृदय की प्रेम- पुकार को अवश्य सुनता है। जिसके लिए सत्प्रवृतियां, विचार और पुकार के मधुर स्वर सर्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत होना जरूरी है।
तुलसी का भाव भी बड़ा गहरा है वे कहते हैं कि----- "हरि व्यापक सर्वत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना।।"
अर्थात प्रार्थना में सब कुछ मांगे पर ईश्वर से प्रेम ना करें तो हमारी प्रार्थना अधूरी है।सच मानें तो प्रार्थना का समीकरण भगवान और भक्त के अलावा कोई नहीं जान सकता ।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
कोई भी कार्य करने के लिए पहले विचार किया जाता है। विचार वृत्ति में होती है। कोई भी विचार समाधान के लिए होता है अतः हम जो भी प्रार्थना करते हैं। समाधान के लिए करते हैं ना की समस्या के लिए ।अतः हर प्रार्थना मन से की जाती है ।प्रार्थना का दूसरा अर्थ है ,प्रमाणित करना क्या को प्रमाणित करना, अपने व्यवहार और कार्य को प्रमाणित करना जिसके फलन में हर मनुष्य को सुख और शांति का अनुभव करता है ।जब सुख, शांति का अनुभव करता है तो समझ लेना चाहिए कि हमने मन से प्रार्थना किया है अर्थात हमने समाधान के लिए ज्ञान का उपयोग किया है। ज्ञान ही सर्वोपरि है अतः हम प्रार्थना के स्वरूप में ज्ञान का ही स्मरण करते हैं और ज्ञान की रोशनी में ही व्यवहार कार्य कर सुखी होते हैं ।यही है प्रार्थना अर्थात प्रमाणित होने के लिए अपने अर्थ कों समझना अर्थात अपनी उपयोगिता को समझते हुए व्यवहार कार्य करना बराबर प्रार्थना करना।अतः हर व्यक्ति को अवश्य मन से प्रार्थना करना चाहिए प्रमाणित होने के लिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
प्रार्थना वह है जो भक्त के ह्दय से निकली अपने इष्ट की पुकार निःस्वार्थ भावपूर्ण शब्द है जो प्रार्थना कहलाती है !
प्रार्थना भावपूर्ण हृदय से निकली ऐसी पुकार है, जिसका व्यक्ति के अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रार्थना ईश्वरीय शक्ति की कृपा के लिए भक्त के व्याकुल हृदय से निकली ऐसी करुण पुकार है, जो उसको सब प्रकार के संतापों से मुक्त कर सुरक्षा कवच प्रदान करती है
शब्द जब नि:स्वार्थ प्रेम, त्याग और समर्पण से ओतप्रोत होता है और जब वह उस निराकार से सहायता पाने का भाव रखता है तो वह प्रार्थना बन जाता है। वास्तव में प्रार्थना विश्वास का विधान है। प्रार्थना एक प्रेरक शक्ति है, जो व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों से जूझने का साहस व सहारा देती है। प्रार्थना भावपूर्ण हृदय से निकली ऐसी पुकार है, जिसका व्यक्ति के अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रार्थना ईश्वरीय शक्ति की कृपा के लिए भक्त के व्याकुल हृदय से निकली ऐसी करुण पुकार है, जो उसको सब प्रकार के संतापों से मुक्त कर सुरक्षा कवच प्रदान करती है।
अनंत सत्ता के प्रति व्यक्ति का मस्तक जब श्रद्धा भाव से झुक जाता है, तब प्रार्थना होती है। प्रार्थना से आंतरिक शक्ति उत्पन्न होती है। प्रार्थना से बड़ी सहायक शक्ति दूसरी नहीं है।
प्रर्थना में बहुत शक्ति है भगवान भी द्रवित हो जाते हैं भक्त की करुण पुकार पर वह दौड़े चले आते है !
प्रार्थना प्रभु और भक्त का आत्मीय वार्तालाप है। प्रार्थना निर्बल की पुकार है, प्रार्थना निराश मन द्वारा संबल की तलाश है, प्रार्थना सांसारिक झंझटों से उत्पन्न परवशता को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर निश्चिंत हो जाने का प्रयास है। सरलतम शब्दों में, सर्वसुलभ और अनंत शांति प्रदायिनी प्रार्थना का श्रेष्ठ उदाहरण है- 'जय जगदीश हरे' की मार्मिक प्रार्थना, जो भक्तों द्वारा आरती के रूप में गाई जाती है।
प्रार्थना से इस्टदेव से भक्त का आत्मनिवेदन है !
जिसमें भक्त अपनी सांसारिक कमजोरियों, परेशानियों, कष्टों का अपने प्रभु को विवरण देता है और उनसे रक्षा करने का या उनका सामना करने के लिए शक्ति प्रदान करने का निवेदन करता है। प्रार्थना परमात्मा से आत्मा की बातचीत है। प्रार्थना लघुता द्वारा पूर्णता से अनुग्रह का आग्रह है।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि क्या प्रार्थना मन की पुकार होती है तो इस पर मैं यह कहना चाहूंँगा कि हांँ प्रार्थना वास्तव में मन की पुकार ही होती है जो कुछ हम चाहते हैं जैसा बनना चाहते हैं जो करना चाहते और जिस लक्ष्य की ओर हम बढ़ना चाहते हैं उसे प्राप्त करने के लिए अपने इष्ट के साथ वास्तव में यह अपने मन अभिलाषाओं भावनाओं का प्रकटीकरण ही करते है अमूर्त रूप से हम अपने इष्ट से प्रार्थना करते हैं की है प्रभु हमारी मनोकामनाएं पूर्ण हो और हम जीवन में सफल रहें यह समाज सभी के लिए कल्याणकारी हो और यह समय भी कल्याणकारी हो हमारी युवा पीढ़ी आपने बड़ों का आज्ञा पालन करने वाली हो और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने वाली उन लक्ष्यों को जिनके द्वारा वह अपना समाज का और देश का भला कर सके तो इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्रार्थना हमारे द्वारा अपने इष्ट से की गई मन की पुकार ही है ़़
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
प्रार्थना आत्मा की गहराई है हम चाहे जिस धर्म के हों अपने विश्वास के अनुसार प्रभु को रोज भजते हैं उसमें हमारा मन भी समाहित होता है ।प्रर्थना के समय हमारे मन की सारी बुराईयाँ दूर हो जाती हैं वहाँ केवल एक निर्मल मन होता है ।उसी से हम सारे दिन ऊर्जावान रहते हैं ,प्रभुका वही विश्वास सारे दिन साथ चलता है ।थोड़ी कठिनाई आई नहीं कि प्रभु
प्रभु याद करने लगते हैं ।प्रर्थना में असीम शक्ति है ,हम श्रद्धा सहित अपना सर अपने ईष्ट के सामने झुका लेते हैं । अतः मैं तो मानती हूँ कि प्रर्थना मन की पुकार है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
मेरे दृष्टिकोण कौन से :- प्रार्थना एक दिव्य औषधि है । सच्चे मन से अगर प्रार्थना करते हैं तो ईश्वर निश्चित रूप से रक्षा करती है।
प्रार्थना मन की पुकार है सच्ची प्रार्थना हो तो परमपिता परमेश्वर अत्यंत कृपालु और दयालु हैं ।परंतु प्रार्थना के लिए हृदय को पवित्र निर्मल होना अति आवश्यक है। सच्चे पवित्र- हृदय- अंतःकरण से उत्पन्न हुए ही प्रार्थना है ।वास्तविक जीवन को पाने की इच्छा ही प्रार्थना है। ह्रदय से जिसकी खोज होगी जीस चीज के पाने की लालसा हो तो हम उस दिशा में जा सकेंगे।
प्रार्थना होती है आत्मबोध से इसी से परमार्थ की इच्छा प्रकट होती है। और तुच्छ स्वार्थी को परित्याग होता है।
लेखक के विचार:- प्रार्थना है:- परिपूर्ण समर्पण अपने अहंकार को सिर से हटा देना।
जो ईश्वर सै कृपा चाहता है और उनका अनुग्रह चाहता है ,तो ईश्वर के पावन चरणों में अपना शीश झुका दें।
वह बराबर सत्य बोले, छल कपट सभी तरह के बुरी आदत को छोड़कर मन को शुद्ध पवित्र रखें। भगवान , वह हर मानव में चल रहे भाव -कुभाव को अच्छी तरह से अवगत रहते हैं।
अतः ईश्वर के पास जब भी जाएं शुघ्द भाव के साथ जाएं।
सच्चे मन से की गई प्रार्थना चमत्कारिक होती है।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
प्रार्थना के माध्यम से मुँह की आवाज़ को मन की आवाज़ में परिवर्तित किया जाता है l अतः प्रार्थना सच्चे मन से की जाती है सच्चे मन की पुकार प्रभु तक शीघ्र ही पहुँचती है l मन की पवित्रता, मन की एकाग्रता के माध्यम से व्यक्ति का मन शुद्ध और निर्मल होता है l प्रार्थना द्वारा कार्य का शुभारम्भ दिन भर की सफलता का प्रतीक है l प्रार्थना मन की स्वस्थ्य भावनाओं को परिपुष्ट करती है l
प्रार्थना के माध्यम से मन में जो संसर्ग आते हैं यथा -प्रमाद, ईर्ष्या, घृणा, आवेश आदि का उन्मूलन होता है l जीवन के विकास के पथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित मन होना आदि सब कुछ मन की स्वस्थता पर निर्भर है l इस उद्देश्य की प्राप्ति प्रार्थना के माध्यम से ही अपेक्षित है l प्रार्थना के माध्यम से व्यक्ति की निषेधात्मक विचारधारा एवं भावों को शनैः शनैः समाप्त किया जा सकता है l इससे मानवीय जीवन मूल्यों का विकास होता है l प्रार्थना सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण पर बल देते हुए संस्कृति का संरक्षण करती है l अतः हम कह सकते है प्रार्थना सच्चे मन की पुकार होती है l
-----चलते चलते
"हे प्रभु !अन्नदाता ज्ञान हमको दीजिए
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें
ब्रह्मचारी धर्म रक्षक वीरव्रत धारी बनें l "
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
प्रार्थना! यदि मन से उपजी ना हो। यदि मन की पुकार ना हो....तो प्रार्थना में पवित्र शक्ति का अभाव रहता है। एक शून्य सा रहता है।
प्रार्थना! मानव जीवन का अभिन्न अंग है। प्रार्थना हमारे मन को शीतल शान्ति की अनुभूति कराती है। प्रार्थना हमारे मस्तिष्क को संबल प्रदान करती है।
"मन से उपजी प्रार्थना का जरूर असर होता है।
प्रार्थना के सहारे ही मानव जीवन बसर होता है।।"
मानव मन बड़ा चंचल होता है। प्रार्थना के समय भी वह अन्यत्र विचरण करता रहता है, भटकता रहता है। आधे-अधूरे मन से की गयी यह प्रार्थना मन की पुकार नहीं कही जा सकती।
प्रार्थना! प्रभु को नमन-वन्दन करने के लिए की गयी हो, अच्छे दिनों के स्थायित्व के लिए अथवा समस्याओं के निराकरण के लिए की गयी हो, यह तभी प्रभावी होती है जब मनुष्य के अन्तर्मन से उपजी हो, सच्चे भावों से युक्त हो।
"मन की आवाज, मन की ताकत, मन का हौसला,
सुनके, आजमाके, परखके देख चमत्कार होगा।
मंजिले पुकारेंगी स्वयं तुझे कर जरा मन से प्रार्थना,
कामयाबी का ताज तेरे मन का तलबगार होगा।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
मन की पुकार का नाम ही प्रार्थना होती है। जिसे ईश्वर एक न एक दिन अवश्य सुनता है। यही आस्था है। जिस के आधार पर कर्म किए जाते हैं और कर्मों पर आधारित जीवनचक्र चरितार्थ होता है।
प्रार्थना एक पवित्र आग्रह है। जोे परमात्मा या परमात्मातुल्य आत्मा से की जाती है। जिसका उपहास उड़ाना ईश्वर का उपहास उड़ाने के समकक्ष है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जो मन से न हो वह प्रार्थना ही कैसी! प्रार्थना मन की पुकार ही होती है। बाकी तो सब ढोंग और दिखावा है। राह चलते मंदिरों, गुरुद्वारों के आगे से निकलते सिर झुका-सा देना, हृदय पर हाथ रख देना, शनिदेव के दिन शनि की प्रतिमा और तेल लेकर चलने वाले डकोतों की बाल्टी में श्रद्धानुसार सिक्का डाल कर आगे बढ़ जाना, मंगलवार को मंदिर में प्रसाद चढ़ाना और बाहर निकल कर प्रसाद बांटना और बीच-बीच में डांटना कोई प्रार्थना थोड़े होती है। ‘सरबत दा भला’ सब का भला चाहना मन की पुकार है। निःस्वार्थ भाव से बिना भेदभाव के जरूरतमंदों की सेवा करना मन से पुकारती प्रार्थना है। मानव सेवा करते हुए भाषणों का आडम्बर, नेताओं-अभिनेताओं संग फोटो खिंचवाना कोई मन की पुकार लिये प्रार्थना थोड़े होती है। वही प्रार्थना मन की पुकार होती है जो अपने लिये नहीं दूसरे के लिए की गई हो।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
भारतीय संस्कृति में प्रार्थना पर अटूट विश्वास हैं, आस्था, श्रृद्धा और विश्वास के कारण ही धर्म जीवित हैं। आज भी मंदिरों में विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाऐं प्राचीन काल से विद्यमान हैं, जहाँ श्रद्धालुओं का प्रतिदिन अपनी-अपनी मनोकामनाएँ को वृहद स्तर पर पूर्ण करने ताता लगा रहता हैं, जो मन की पुकारों को स्थिरता और परिपक्वता को सार्थक बनाने प्रयत्नशील हैं। प्रार्थना ने एक ऐसा मायाजाल फैला कर रख दिया हैं, जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम भावी पीढ़ियों को आगे आकर संस्कृति की रक्षा कैसे होगी, दर्शाता हैं। प्रार्थना से समस्त प्रकार के कार्यों को सम्मानित करता हैं, जो मन की पुकार की प्रतिबद्धता हर वक्त हमें बोध करती हैं। एक नौवजात शिशु भी माँ से प्रार्थना कर मन की पुकारों को आकर्षित करता हैं। कार्यालयों में कार्यालयीन कार्यों तथा व्यक्तिगत व्यवस्थाओं में भी मन की पुकार प्रार्थनाओं को प्राथमिकताओं में केन्द्रित होती हैं। अनेकों महापुरुषों, ॠषिमुनीओं की विचारधारा भी मन की पुकारों में संचार करती हैं, जिनके माध्यमों से एक जिम्मेदारी निभाने में सफलता प्राप्त होती हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
प्रार्थना ही मन को शांति देती है।हाँ मन की पुकार प्रार्थना ही है।जीवनशैली को शांतिपूर्ण तरीके से यापन करने मे यह अपनी भुमिका निभाती है।मुश्किलों को आसानी से खत्म करने मे सार्थक सिद्ध होती है।आत्मा को बेहद सुकून और आराम देती है।जिंदगी को सफल बनाने मे प्रत्यन और प्रार्थना दोनो आवश्यक है।गतिविधियों को मंजिल तक पहूचाने मे प्रार्थनाएं बेहद जरूरी है।मनुष्य जब टूट कर बिखरता है।तब मानव हाथ जोडकर प्रार्थनाएं करके जीवन को खुशहाल बनाती है।दर्द को भी थोडा़ आराम हो जाता है ।मन की पुकार सुनकर कर भगवान भी अपनी कृपा बरसाने को मजबूर होते है।विधि विधान को प्रार्थनाएं की शक्ति टाल सकती है।सच्चें मन से की गई बात मन की पुकार प्रार्थना का रूफ होती है ।इसकी शक्तियों को नापा नही जा सकता है।अद्भुत क्षमता होती है मन की पुकार की।प्रार्थनाएं खामोश होकर भी हितैषी होती हैं।जिंदगी की राहों मे काटों का जाल हो मानवीय संवेदनाओं की कभी हार नही होती सच्चाई के अनुभव मे पिरोया हुआ प्रार्थना जीवन को गति प्रदान करता है।मानव संसाधन विकास की ओर अभिलाषी और अग्रसर होता है।तथा हम मनुष्य की मन की पुकार प्रार्थनाएं बन कर हमे दिशानिर्देश देती है।दिल के टुटने की आवाज़ जैसे नही होती उसी प्रकार प्रार्थना मौनव्रत को धारण करने की अमूल्य धरोहर को सदैव तत्पर रहती और जीवन के रूप को आसान पडा़व में लाने की कोशिश करती है।सुबह शाम या हर वक्त मन की आवाज को प्रार्थना के रूप धारण करना चाहिए और सरस्वती विराजमान होती हमारे मुख अधरों पर इसलिए सैदव मानवीय संवेदनाओं को उजागर करना और मन से पुकार करके प्रार्थना होनी चाहिए।जीवन के हर मोड़ पर इसके अद्भुत शक्ति को देखने का अवसर मिलता है।कहते है मन से की गई प्रार्थना दुआओं मे शामिल हो जाती है ।और खोया हुआ चीज हकीकत से रूबरू होता है ऐसे ही प्रार्थना मैं भी करती हूँ मन से पुकरती हूँ माँ की आँचल मे इतना दया और आ जायें की माँ प्रार्थनाएं सुनकर हम बच्चों के पास वापस आ जायें।माँ की चरणों मे दुनिया सजती है।ये प्रार्थना ही है जो मन से पुकराती हूँ और माँ की ममता दिल को राहत दे जाती है।थाम कर मेर हृदय को राहत देती है।वास्तविकता मे प्रार्थना ही मन की पुकार होती है ।इसकी सदाऐं दुर तक पहूँचती है।और सैदव सुकून देती है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
हाँ ! प्रार्थना मन की पुकार ही होती है। आदमी विवश होकर ही प्रार्थना करता है या जब बहुत खुश होता है तब प्रार्थना करता है। उस वक्त जो भी उसके मन से निकलता है वह उसके मन की पुकार ही होता है।
मनुष्य दो ही परिस्थितियों में प्रार्थना करता है जब भगवान से कुछ मांगना होता है तब और कुछ पाने के बदले कुछ समर्पित करना चाहता हो तब। दोनों ही स्थिति में उसके दिल की पुकार ही होती है।
किसी दफ्तर या किसी कार्यालय से कुछ प्राप्त करने के लिए भी प्रार्थना की जाती है जो लिखित होती है। उसमें भी प्रार्थी को अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए प्रार्थना ही करनी पड़ती है। यानी वो दिल से चाहता है कि उसका वो कार्य हो जाय।
प्रार्थना के प्रकार तो कई तरह के होते हैं लेकिन जब हम भगवान के समक्ष जब कुछ याचना करते हैं उसे ही हम सभी प्रार्थना कहते हैं। और वो दिल से ही किया जाता है। किसी अपनों की कुशलता जब हम भगवान से चाहते हैं तो हम दिल से ही चाहते हैं।इसलिए हम ये बात पूरी तरह से कह सकते हैं कि प्रार्थना दिल की ही पुकार है।
अक्सर देखा गया है प्रार्थना जो दिल से की जाती है वही स्वीकार होती है। यानी दिल से भगवान को पुकारते हैं तभी भगवान हमारी सहायता के लिए दौड़े आते हैं। महाभारत में द्रौपदी चीर हरण के समय द्रौपदी आर्त होकर ही मन से कृष्ण भगवान को पुकारी थी और वो आकर उसकी लाज बचाये थे। गज ग्राह की लड़ाई में गज ने मन से ही भगवान को पुकारा था तो भगवान नंगे पांव दौड़े आये थे गज की रक्षा के लिए।
इस तरह हम ये बात दावे के साथ कह सकते हैं कि प्रार्थना मन की पुकार ही होती हैं।मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा इत्यादि सभी धार्मिक स्थानों में जो भी प्रार्थना होती है सब मन की पुकार होती है।भले इसमें कोई दुःखी होकर करता है कोई सबकुछ पाने के बाद।लेकिन सबकी पुकार मन की ही होती है। इसलिए मन से भगवान को पुकारिये अवश्य मदद करेंगे।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
इसमें कोई शक नहीं कि प्रार्थना मन की पुकार होती है। लेकिन ये भी सच है कि व्यक्ति प्रार्थना तभी करता है जब वह मुसीबत में होता है।जब समस्या समाधान के सारे रस्ते बंद दिखते हैं तब वो भगवान के घरों में माथा टेकता और प्रार्थनाएं करता है।
अपने लिए और अपनों के लिए तो सभी प्रार्थना करते हैं परंतु सभी के भले के लिए की गई प्रार्थना उत्तम मानी जाती है। प्रार्थना के लिए भक्ति, श्रृद्धा,आस्था, विश्वास,प्रेम आदि भावनाओं का होना जरूरी है और इन सब का उदगम स्थल हृदय है तो निश्चय ही प्रार्थना हृदय अथवा मन की पुकार होती है।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
क्या प्रार्थना मन की पुकार होती है तो मैं कहना चाहूंगा जी बिल्कुल प्रार्थना मन की ही पुकार होती है | प्रार्थना का दूसरा नाम ही मन की पुकार है, मनुष्य प्रार्थना तभी करता है जब मनुष्य परेशान होता है डरा हुआ होता है या उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा होता है | तब उसके अंतर्मन से सिर्फ ईश्वर के लिए प्रार्थना निकलती है, उस प्रार्थना में उसका दर्द वह सब दिखाई देता है | और वह प्रार्थना सीधा उसके मन से निकलती है, इसलिए हम कहते हैं कि प्रार्थना मन की पुकार है | जब एक मनुष्य परेशान होता है तो वह उस पीड़ा में अपनी माँ को या अपने ईश्वर को पुकारता है और प्रार्थना करता है जो की प्रार्थना उसके सीधा मन से निकलती है |
अगर हम कोई अच्छा कार्य भी करने जाते हैं तो भी हम ईश्वर से प्रार्थना करके जाते हैं, कोई नया काम करते हैं तो भी हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं | प्रार्थना आदमी तभी करता है जब उसके मन में भाव उत्पन्न होते हैं, और वे मन की पुकार को प्रार्थना का रूप देते हैं |
- रजत चौहान
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
जी हां प्रार्थना मन की पुकार है जो भावपूर्ण हृदय से निकलती है, इसका व्यक्ति के अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। किसी भी व्यक्ति/ भक्त का व्याकुल मन विनीत भाव में जब प्रभु के प्रति करुण पुकार करता है तो वह प्रार्थना अवश्य सफल होती है। प्रार्थना विश्वास का विधान है ।एक प्रेरक शक्ति है जो हमें विपरीत /कठिन /संकटमय परिस्थितियों से सामना करने की हिम्मत देती है। प्रार्थना से बड़ी सहायक शक्ति दूसरी नहीं है ।स्वास्थ्य को लेकर जब हम हताश हो जाते हैं तो उस परमपिता परमेश्वर के समक्ष विनय /प्रार्थना करते हैं जो सर्व व्यापक है, सर्वशक्तिमान है ,हम उसकी उपस्थिति अपने आसपास ही समझते हैं और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। संकट में घिर जाने पर भी हम उसी अज्ञात सत्ता का स्मरण करते हुए प्रार्थना करते हैं। सृष्टि के रचयिता जिस प्रभु द्वारा पूरी सृष्टि सजीव है, चलायमान है ,उसी असीम व अनंत सत्ता के प्रति जब हमारा मस्तक श्रद्धा भाव से झुक जाता है ,वह प्रार्थना है। प्रार्थना ही हमें आंतरिक शक्ति प्रदान करती है। सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना अवश्य चमत्कारिक होती है ।वह सीधी परमात्मा तक पहुंचती है ।अतः अपने जीवन काल में मेरा यह अनुभव रहा है जब हम सारी आशा छोड़कर, हताश हो कर, निढाल हो कर, बैठ जाते हैं उस समय प्रभु के समक्ष जब हृदय की पुकार उठती है तो हमें कहीं न कहीं से अवश्य कोई सहारा या मदद मिल जाती है । अतः प्रार्थना सांसारिक और असांसारिक समस्याओं का समाधान है क्योंकि इसकी पुकार ह्रदय के माध्यम से होती है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुख भाग भवेत।
सुखी बसे संसार सब दुखिया रहे न कोए, यह अभिलाषा हम सबकी भगवान पूरी होए। भारतीय संस्कृति में इसी भावना से प्रार्थना की जाती है और परम पिता परमेश्वर, हमारे मन की इस पुकार को सुनते हैं।
प्रार्थना हमेशा मन की पुकार ही होती है, और मन से की गई पुकार को ईश्वरीय सत्ता बहुत जल्दी सुनती है। किसी भी धर्म में देखिए वहां प्रार्थना की व्यवस्था किसी न किसी रूप में है। यह अलग बात है कि उन प्रार्थनाओं में अधिकांशत अपने लिए ही मांग की जाती है। जबकि सत्य सनातन संस्कृति में सबकी मंगल कामना की जाती है,और सबकी मंगल कामना में अपना मंगल होना तो स्वभाविक ही है। हम बात कर रहे थे मन की पुकार की। प्रार्थना का प्रभाव पशु पक्षियों सहित सभी प्राणियों पर होता है। बस प्रार्थना मन से होनी चाहिए, दिखावटी नहीं।कई बार आपने अनुभव किया होगा कि कुछ कहा आपने और वो घटित हो गया।तब सामने वाला कहता है कि यार कुछ और अच्छा कह देते। यह मन से निकली पुकार का ही असर होता है। हमने किसी को याद किया और वह तुरंत या थोड़ी देर बाद ही सामने होता है,तब कहते हैं अभी तुम्हें ही याद किया था।अथवा यार आज तो कुछ और भी चाहता तो मिल जाता। यह है मन की पुकार यानि प्रार्थना और जब यह परमेश्वर से की जाएं तो सफल होगी ही।बस इसमें एक पेंच होता है कि हम 99 फीसदी मन से प्रार्थना करते ही नहीं।प्रार्थनाके समय हमारा मन कहीं और विचार रहा होता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
व्यक्ति अपनी सुविधानुसार अपने इष्ट देव की प्रार्थना करता रहता है।लेकिन सच्ची प्रार्थना मन की पुकार ही होती है जब इंसान हृदय से प्रार्थना करता है।यह प्रार्थना सीधे ईश्वर तक जाता है।हम कितनी देर प्रार्थना करते है ,यह मायने नहीं रखता ।महत्वपूर्ण वह क्षण होता है जब हमें खुद को ईश्वर से जुड़े हुए होने अनुभूति होती है,और यह वह क्षण होता है जब आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है ।इस वक्त सारी भौतिक वस्तुएँ नगण्य महसूस होती है।जीव की अंतर्मन और परमात्मा के बीच कोई पर्दा नहीं होता और इस क्षण की गयी हर प्रार्थना सच्ची होती है ।
- रंजना वर्मा उन्मुक्त
रांची - झारखण्ड
भारतीय या यूँ कहें कि हमारी संस्कृति और संस्कार में ईश्वर को अनन्य माना गया है। सृष्टिकर्ता और जन्मदाता भी ईश्वर ही हैं, यह सर्व मान्य है। अतः हम जो कुछ भी करते हैं या करना चाहते हैं या जो होता है, ईश्वर की इच्छा मानते हैं। इसी मूलभावना और आधार को लेकर हम प्रार्थना, पूजा और ध्यान, धर्म के सहारे ईश्वर से जुड़कर, उन्हें खुश करते हुए, अपनी इच्छा जताते हैं। कभी स्वयं के, कभी अपनों के हित के लिए हम ईश्वर से प्रार्थना इसी भाव को लेकर करते हैं। यह कहा और माना गया है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती और वांछित मनोकामना पूरी होता है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रार्थना, मन की पुकार होती है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
प्रार्थना भावपूर्ण हृदय से निकली हुई ऐसी पुकार है, जिसका व्यक्ति के मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
यही नहीं प्रार्थना से अतिरिक्त शक्ति उतपन्न होती है, इससे वड़ी सहायक शक्ति कोई नहीं है, प्रार्थना में अादर, प्रेम विनती, ऋदा अत:भक्तिभाव आते हैं।
मन की पुकार को ही प्रार्थना कहा जाता है इससे आशीर्वाद तथा कार्य का इच्छित फल मिलता है।
प्रार्थना दो प्रकार की होती है, सकाम और निष्काम जवकि सकाम स्वंय की इच्छापूतर्ती के लिए और निष्काम विना मांग के लिए की जाती है् लेकिन दोनों तन मन को अर्पन करके की जाती हैं,
प्रार्थना यदि हृदय से की जाए तो परमात्मा उस पुकार को जरूर सुनते हैं इसलिए इसे हृदय की पुकार कहा गया है।
द्रौपदी ने ऋी कृष्ण जी को पुछा था की आप ने चीरहरण के समय आने में देरी क्यों लगा दी थी तो भगवान जी ने कहा में तो पुकार सुन कर ही आ गया था, जब आपने मुझे मन से पुकारा था, लेकिन देरी इसलिए हुई की पहले आप पुकार मुझ को रही थीं लेकिन देख अपने पतियों को रही थी, लेकिन जब आपने भावयुक्त हृदय से केवल मुझे पुकारा मैं उसी पल प्रकट हो गया तब मुझे लगा आप मन से मुझे पुकार रही हैं, इससे साफ जाहिर होता है प्रार्थना ही केवल मन की पुकार होती है।
सच कहा है,
"प्रार्थना ऐसी करनी चाहिए की सब कुछ ईश्वर पर निर्भर है, काम ऐसा करना चाहिए जैसे की सब कुछ हम पर निर्भर है"।
क्योकी प्रार्थना करने से कार्य का इच्छित फल मिलता है यही नहींअंतमर्न ईश्वरीय पुकार है प्रार्थना और इसका मनुष्य के मन पर प्रभाव पड़ता है तभी इसको मन की पुकार कहते हैं अत:प्रार्थना करते समय मन शांत व एकाग्र रखें इससे हर कार्य उतम और सफल होता है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
यह बात ठीक है कि प्रार्थना मन की पुकार होती है।लेकिन
हर बार मन की पुकार को प्रार्थना नहीं कह सकते। अगर हम किसी मुसीबत में फंसे हुए हैं तो बस एक मिनट के लिए हाथ जोड़ दिया कि भगवान मेरे को मुसीबत से निकालो,इस मन की पुकार को प्रार्थना नहीं कहेंगे। प्रार्थना याचना नहीं है। प्रार्थना मन को भटकाने/बहकाने वाली प्रवृतियों को एक केन्द्र पर एकाग्र करने को कहते हैं। गांधी जी के अनुसार, प्रार्थना मन की पुकार है, आत्म शुद्धि एवं आत्म निरीक्षण का आह्वान है।
प्रार्थना में अदभुत शक्ति है क्योंकि यह असंभव को संभव बना देती है। इस से अच्छे विचारों को बल मिलता है। प्रार्थना से मन निर्मल होता है, मनोविकार नष्ट होते हैं। प्रार्थना के साथ कर्म करना जरूरी है। श्री कृष्ण जी ने भी गीता उपदेश में यही कहा है कि कर्म किए जा, फल की इच्छा------इन्सान। प्रार्थना से बल,उत्साह, प्रेरणा, आशा और विश्वास मिलता है। जब सच्चे मन से, एकाग्र चित्त हो कर प्रार्थना की जाती है तो ऐसे लगता है कि भगवान हमारी पुकार सुन कर दौड़े चले आ रहे हैं। मन को शांति मिलती है। प्रार्थना में अदभुत शक्ति है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
प्रार्थना में बहुत शक्ति है जो पुकार सुन ईश्वर भक्तों के लिए स्वयं चले आते हैं एक बार सच्चे मन से पुकार कर तो देखो द्रोपती की पुकार पर प्रभु ने चीर बढ़ाया गज की पुकार पर प्रभु ने मगरमच्छ से उनकी जान बचाई
आत्मा और मन से प्रार्थना पर सावित्री ने सत्यवान से अपने पति के प्राण वापस मांगे साथ ही 100 पुत्र भी
प्रार्थना में वह अद्भुत शक्ति है जो बड़ी सी बड़ी समस्या को पल भर में दूर कर सकती है आपका विश्वास और सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी भी खाली नहीं जाती उसका प्रतिफल अवश्य ही मिलता है और इसका अनुभव उस व्यक्ति को होता है जिसे अपनी आत्मा मन के शुद्धिकरण से उस परमात्मा पर अटूट विश्वास होता है इसके लिए धैर्य और सहनशीलता भी अति आवश्यक है प्रत्येक मानव के जीवन में कभी कभी ऐसी गंभीर समस्या उत्पन्न होती है जब इसका कोई समाधान नजर नहीं आता उस समय उसकी मन में अटूट श्रद्धा विश्वास के साथ ईश्वर को पुकारता है उस समय प्रभु उसकी अवश्य मदद करते हैं हम साधारण आंखों से उसे देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते हैं प्रार्थना में वह शक्ति है तभी तो भक्त प्रहलाद की पुकार को सुनकर प्रभु खंभे से प्रकट हो गए उनके लिए नरसिंह अवतार लेकर मन की पुकार प्रभु अवश्य सुनते हैं विज्ञान कितना भी आगे हो जाए
पर यह हमारे मन को नहीं बांध सकता है यदि हम किसी गंभीर बीमारी के उपचार हेतु डॉक्टर के पास जाते हैं तो डॉक्टर भी यही कहते हैं कि मैं तो सिर्फ केवल दवा देता हूं भगवान से आप प्रार्थना करिए सब ठीक हो जाएगा।
*ये मन उसी की करो प्रार्थना जिसने पैदा किया जिसने जीवन दिया जिसने दी आत्मा*
प्रार्थना मन की वह पुकार जो कभी खाली नहीं जाती है समय जरूर लग सकता है धैर्य विश्वास की डोरी है।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
प्रार्थना आस्था है | प्रार्थना मन की उपज नहीं बल्कि हृदय की भाव भूमि पर अंकुरित हुए भावों की अभिव्यक्ति है| जब कोई अहंकार शून्य हो जाता है और मन में कोई इच्छा नहीं जन्मती | तो प्रार्थना का जन्म होता है |
हृदयाकाश भावों की घटाओं से घिर जाता है जब कोई यह सोचता है अब उससे कुछ भी होने वाला नहीं है|
जन्मों-जन्मों बीत गए लेकिन मन खाली का खाली ही रहा | अगर कुछ करना होता तो कर लिया होता |
संसार के माया मोह से तो छुटकारा हुआ ही नहीं | कुछ होना होता तो हो गया होता| हमारे करने से नहीं हुआ क्योंकि मन में इतनी शक्ति ही नहीं है कि वह प्रार्थना तक पहुंच सके |
हर बार ऐसा लगता है कि कुछ किया नहीं | और अगर किया है तो कोई संतुष्टि नहीं | यही तो हमारा मन है|
ऐसे मन से प्रार्थना का जन्म कैसे हो सकता है ? प्रार्थना तो हृदय की बात है | प्रार्थना तो भक्तों द्वारा भगवान से की हुई मनुहार है| उसके प्रति हृदय से उठा हुआ धन्यवाद है | मन कभी धन्यवाद नहीं दे सकता| क्योंकि मन का अर्थ ही है मांगना | उसकी मांग सदा जारी रहती है | वह सदा एक चीज से दूसरी चीज पर दौड़ता है| जब तक उसे पा नहीं लेता | या जब तक उसे सफलता नहीं मिल जाती| तब तक वह अशांत रहता है| तो जहां अशांति है वहां कैसी प्रार्थना ?
मन हमारी इच्छाओं का संग्रह मात्र है |मन सदा अतीत या भविष्य में है |क्योंकि मन या तो स्मृतियों में खोया रहता है या कल्पनाओं में |और प्रार्थना सदा वर्तमान में है ,अभी और यहीं |प्रार्थना आती जाती श्वास जैसी है |हां अगर मन मान जाए अर्थात केवल एक ही अभीप्सा बचे ..वह है ... प्रार्थना |तो प्रार्थना में मन विलीन हो जाता है |
तब मनुष्य की समझ में आ जाता है कि मन के विलीन हो जाने से ही प्रार्थना का जन्म होता है |
जैसे हम अभी अपनी श्वास से जुड़े हैं ऐसे ही प्रार्थना इस पूरे अस्तित्व से जुड़ जाती है | हममें इतनी शक्ति कहां कि हम अकेले इस संसार के बंधनों को काट सकें ?इसलिए प्रार्थना ही सहारा होती है ऐसे समय में | और जब हम इस संसार में अपनी हार को स्वीकार कर लेते हैं|
इसलिए मेरा मानना तो यही है कि प्रार्थना मन से नहीं अपितु हृदय से की जाती है|
मन में केवल विचार उठते हैं और हृदय में भाव | और जब तक भाव नहीं ,तब तक भक्ति नहीं, प्रार्थना नहीं|
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
प्रार्थना निश्चय ही मन की पुकार होती है .मन से जब हम पुकारते हैं चाहे भक्तिभाव से या अपनी कोई निजी समस्या से वह सच्ची प्रार्थना होती है
परेशानी चिंता दुःख मुसीबत मैं आम तौर पर हम प्रार्थना करते हैं भगवान् को याद करतेहैं पर सुख की घड़ियों मैं ये सब भूल जाते हैं
यदि हम सुख मैं भी प्रार्थना करें और ईश्वर को स्मरण करें तो शायद दुःख हो ही न
प्रार्थना व्यक्ति के ह्रदय से निकला सच्चा उदगार है जो भक्ति व आस्था से ओतप्रोत होता है
प्रार्थना के उपरान्त यदि मनोरथ पूर्ण हुआ तो हम उसे ईश्वर की कृपा कहते हैं और यदि पूर्ण न हुआ तो ईश्वर की मर्ज़ी
प्रार्थना मनुष्य के जीवन मैं मनुष्य और ईश्वर के मध्य एक ऐसे सकारात्मक पुल का कार्य करती है जिस द्वारा मनुष्य हर हाल मैं खुश रहना सीख जाता है व इससे आत्मिक शांति प्राप्त होती है
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
कहावत है कि "दुःख में सुमिरन सब करे,सुख में करें ना कोई"।यह बात कभी-कभी अक्षरशः सत्य प्रतीत होती है।सच में व्यक्ति अपने दुःख के समय ईश्वर को ज्यादा और दिल से याद करता है अपनी प्रार्थना के जरिए। व्यक्ति ईश्वर को हीं अपनी मुसीबत का खेवनहार समझता है और ऐसा बहुत बार होता भी है।हम जब भी और जैसे भी ऊपरवाले को याद या उसकी प्रार्थना करते हैं, यदि सही में दिल से करते हैं तो स्वत: वह हमारे प्रभु के लिए मन की पुकार हो जाती है।जब व्यक्ति सच्चे दिल से ऊपरवाले को पुकारता है तो सही मायने में प्रार्थना मन की पुकार होती है। हम आडंबर और दिखावे से परे होकर सच्ची भावना और भक्ति से जब भी अपने ईश्वर की प्रार्थना करते हैं तो वह मन की पुकार होती है।कभी- कभी कोई इतना तल्लीन हो जाता है कि मानों सच में उसकी पुकार ऊपरवाले के पास पहुंच गयी हो और लगता है मानो दोनों बात कर रहें हों। प्रार्थना करने के तरीके व्यक्ति अपने- अपने तरीके से भले करें लेकिन सब का एक हीं उद्देश्य होता है ईश तक पहुंचना।
- डॉ पूनम देवा
पटना, बिहार
प्रार्थना अवश्य मन की पुकार लगती है जब मनुष्य या कोई भी जीव मात्र ईश्वर से अथवा किसी से मदद की विनती अन्तर्मन से करता है और उसे आशा के अनुरुप मदद प्राप्त होती है तब उसे लगता है प्रभु ने मेरे मन की पुकार सुन ली!
कितना भी संपन्न व्यक्ति क्यों न हो जीवन में मुसीबतों का साया किसी भी रुप में अवश्य आता है !
प्रभु पर आस्था और विश्वास ही है कि तकलीफ में आते ही हम उन्हें पुकारते हैं! ईश्वर कण कण में हैं और किसी भी रुप में आकर
मदद अवश्य करेंगे और उसका यही विश्वास प्रार्थना करने पर कार्य की सिद्धी पूर्ण होने पर उसे लगता है भगवान ने मेरी मन की पुकार सुन ली!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " प्रार्थना सकरात्मक सोच का प्रतीक है । प्रार्थना हमेशा शुभ अवसर पर बहुत अच्छी मानी गई है। यहीं मन की पुकार प्रार्थना के रूप में सामने आती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान
मन की पुकार ही प्रार्थना के रूप में व्यक्त की जाती है। यह हमेशा सकारात्मक सोच के साथ की जाती है या यूं कहें की प्रार्थना में सकारात्मक सोच का सम्मिश्रण होता है। उसमें शुभम करोति कल्याणम वाली बात समाहित रहती है।
ReplyDelete