क्या मां का मतलब सिर्फ जन्म देने से है ?
मां का अर्थ बहुत विस्तृत होता है। जो अपने बच्चों की तरह पालन पोषण करे। वह मां होती है । मां का कर्ज कभी उतरा नहीं जा सकता है । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
अगर देखा जाय तो माँ का मतलब जन्म देने से ही है प्रथम द्रष्टया में। क्योंकि कोई भी नारी तबतक माँ नहीं कहला सकती जबतक कि वह एक बच्चे को जन्म नहीं दे देती। संबंध जोड़ कर माँ कहलाना और वास्तविक माँ होना दोनों में फर्क है।
माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से भी नहीं होता है। जिसको जन्म दिया गया है उसका पालन पोषण करना माँ का ही दायित्व है। उसे उसके योग्य बनाना माँ का ही दायित्व है। जानवर भी बच्चे को जन्म देने के बाद माँ का फर्ज निभाते हैं। जबतक बच्चा पूर्ण रूप से स्वनिर्भर नहीं हो जाता । चिड़िया का चूजा उड़ने लायक नहीं हो जाता। माँ उसे अकेले नहीं छोड़ती । इसका मतलब साफ है केवल जन्म देने से माँ का मतलब पूरा नहीं होता। बच्चे को योग्य बनाना पड़ता है। तभी माँ की पूर्णता सिद्ध होती है। चिड़िया का बच्चा जब उड़ने लायक होता है तभी चिड़िया उसे घोंसला से बाहर उड़ने के लिए भेजती है। उसका माँ का दायित्व पूरा हो जाता है।
बच्चे को जन्म देने के बाद उसे पालन,पाल पोश कर बड़ा करना।
उसे चलना, बोलना,लिखना पढ़ना सीखना सब माँ का ही दायित्व है।तभी वह माँ कहलाने की हक़दार है। प्रकृति भी माँ कहलाती है जो सबका पालन पोषण करती है।
इस तरह हिम देखते हैं कि सिर्फ जन्म देना ही माँ का मतलब नहीं है बल्कि उसकी हर जरूरत को पूरा करने वाली ही नारी ही माँ का मतलब सिद्ध करती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प.बंगाल
मां भगवान है , ईश्वरीय शक्ति का प्रतिरूप है , रिश्तो में मां का रिश्ता सर्वोपरि है ।मां परम स्नेही है ,अपनी संतान की हितैषी है ,परिवार में उसकी भूमिका सदैव कल्याणकारी रही है । अपनी संतान के लिए उसके असीम दुलार में पूरे ब्रह्मांड की खुशियों निहित है । वहां जगत जननी है जो अच्छे संस्कार अपनी संतान को प्रदान करती है । मां एक सुखद अनुभूति है ,हमारी तकलीफ, दुख को दूर करके करने के लिए हर समय तत्पर रहती है । वास्तव में मां की परिभाषा शब्दों से परे है। लेकिन मां का मतलब केवल जन्म देना ही नहीं है ,बालक को पालना, उसकी जिम्मेदारी उठाना, अच्छे संस्कार देना, परिवार में रिश्तो का महत्व समझाना, नैतिक गुणों का संचार करना मां की सच्ची भूमिका है । इससे अलग वह मां अति श्रेष्ठ है जो पालन करती है जन्म ना देकर भी जन्म दात्री की भूमिका निभाती है ।श्रीकृष्ण को देवकी ने जन्म दिया मगर उनका पालन पोषण यशोदा ने किया । अतः जन्म देने से बड़ा होता है पालनहार । जन्म देने वाली मां जननी हो सकती है लेकिन चुनौतियों से जूझने की शक्ति वही मातृ शक्ति दे सकती है जो बच्चे में अच्छे संस्कार भरें । भक्तिकालीन कवि सूरदास द्वारा श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का इतना सजीव चित्रण बिना यशोदा के वात्सल्य भाव के संभव नहीं था । यशोदा जानती थी कि वह बालक साधारण नहीं बल्कि विशिष्ट है लेकिन उनका हृदय उन्हें अबोध बालक के रूप में ही स्वीकार करता रहा ।यहां मां का प्रेम वात्सल्य भाव से ओतप्रोत हृदय था जो अपनी संतान को हर विपत्ति से बचाने के लिए तत्पर रहता है । अतः जन्म देने वाली मां से ज्यादा श्रेष्ठ बच्चे का पालन करने वाली , उसे अच्छे संस्कार प्रदान करने वाली मां है ।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
मां का मतलब सिर्फ जन्म देने तक निहित नहीं है
मां स्त्री या औरत का एक ऐसा किरदार है जिसमे संपूर्णता,पवित्रता, त्याग,ममता प्यार सब कुछ निहित है ! मां जन्म देने से पहले अपने उदर में बच्चे को खून से सिंचती है वह दर्द सहन कर बच्चे को जन्म देती है जन्मोपरांत उसकी क्षुधा शांत करती है वह अन्नपूर्णा मां ,गीले से सूखे में सुलाती है वह मां ,धर्म पर चलना सिखाती है ,घर की पाठशाला मां ,सरस्वती है ईश्वर का दिया आशीर्वाद है !
मां के लिए लिखना और कुछ कहना हो ही नहीं सकता ! ईश्वर ने भी मां की ममता का लोहा मान लिया है स्वयं गणपति ने भी अपना शीश दे दिया किंतु मां की आज्ञा का उल्लंघन ना होने दिया ! मां सर्वोपरि है ! मां की ममता सभी बच्चों के लिए एक होती है मां जीवन है ,मां अपने बच्चों के लिए प्राण भी दे देती है मनुष्य में तो होता है किंतु पशु पक्षी की मां में भी वही ममता और प्यार दिखाई देता है निःस्वार्थ की भावना लिए अपना कर्तव्य निभाती है मां !
ईश्वर का दूसरा रुप है मां ! कहने को कितना छोटा शब्द है मां किंतु कितनी महिमा है इस शब्द में ,कितनी मिठास है ,मिश्री से भी मीठी बोली मां की होती है और इसके स्वाद का आनंद स्वयं ईश्वर ने भी चखा है ! ईश्वर ने हर जन्म में मां के स्थान को सबसे ज्यादा महत्व दिया है ! मां की गोद हर दुख हर लेती है ,तपते जीवन की राह में वह चंदन सी शीतलता देती है ! पालने वाली माता भी एक मां ही है सर्वोपरी हो भेदभाव नहीं रखती !मां का नाता बच्चे से तभी जुड जाता है जब वह पेट में पहली श्वास लेता है !
मां ही वह जननी है जो अपने बच्चे का भविष्य बनाती है !
अंत में कहूंगी मां सृष्टि है जिसकी महिमा के लिए लिखना कुछ कहना संभव नहीं है !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
"मां" एक सम्पूर्ण सृष्टि। मां का अर्थ तो है ही 'ईश्वर की प्रतिनिधि'। "मां के मातृत्व" की महानता की तुलना किसी से नहीं की जा सकती।
"मां से महान मातृत्व मां का
ईश्वर का अनमोल कृतित्व मां का
समुन्दर से गहरा प्यार मां का
शिखर से उत्कृष्ट व्यवहार मां का
आसमां से महान चरित्र मां का
जमीं से विशाल कवित मां का"
मां का 'मातृत्व' सन्तान का पूर्ण रूप से व्यक्तित्व विकास करता है। मां एक ऐसा आलम्बन है जिसकी छाया में सन्तान फलती-फूलती है।
" स्वर्ग के द्वार मां के कदम
बांहे जैसे दिव्यता के स्तम्भ
सारे पुण्य मां से आरम्भ
जीवन सुगमता मां से प्रारम्भ
मां जैसे सारे सुखों का समर्थन
मां की उपस्थिति देती आलम्बन"
"मां" के व्यक्तित्व का अर्थ केवल जन्म देने तक ही सीमित नहीं होता। जन्मदायिनी मां अपनी अंतिम सांस तक सन्तान की उन्नति के लिए प्रयास करती है, कामना करती है। सन्तान के जन्म के साथ ही उसके उचित पालन-पोषण और सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए कठिन परिश्रम करना ही" मां" के अर्थ को सार्थकता प्रदान करता है।
यदि किसी बालक की जन्मदायिनी मां और पालक मां अलग-अलग होती हैं तो दोनों की समान महत्ता होती है। सन्तान के जन्म और उसके विकास में दोनों का पूर्ण योगदान होता है। दोनों ही "मां" जैसे पवित्र रिश्ते की समान रूप से अधिकारिणी हैं।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
मां का मतलब सिर्फ जन्म देने से है ऐसी बात नहीं है। मां का मतलब ममता से है। मां मैं ममता मूल्य पाया जाता है। मानव संबंध में मां का संबंध सर्वोपरि ह। मां बच्चे को पैदा कर देने से ही मां नहीं कहलाती मां का दायित्व होता है कि बच्चे को जन्म देकर उसे संस्कारिक बनाना हर मां चाहती है कि अपना बच्चा अपने से बेहतर जिंदगी जि। बेहतर बनाने की जिम्मेदारी मां एवं पिता जी का होता है। मां में विश्वास, सम्मान, स्नेह भाव देखे जाते है। ममता भाव मां का मूल भाव है। मां मैं ममता भाव देखा जाता ह। अर्थात पोषण और संरक्षण सुरक्षा की जिम्मेदारी मां की होती है अतः मां को सिर्फ जन्म देने वाली नहीं
बच्चे को संस्कारित बनाना मां की दायित्व होती है। जो इस निर्वाहन का जिम्मेदारी लेता है वही मां का हकदार होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं है। आज आधुनिक युग में किसी की कोख किराये पर लेकर बच्चा पैदा करवा लिया जाता है। क्या ऐसी औरत को माँ कह सकते है? कदाचित नहीं। क्योकि वो सिर्फ पेशावर महिला कहलाएगी। माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं है। माँ को तो भगवान का रूप माना जाता है क्योंकि भगवान हर समय हर जगह हमारी सहायता के लिए नहीं आ सकते।इस लिए माँ को बनाया। माँ की ममता और स्नेह पाने के लिए भगवान खुद भिन्न भिन्न रूप में धरती पर जन्म लेते रहे हैं। माँ ईश्वर की श्रेष्ठ रचना है। जो अपनी संतान के लालन पालन में दिन रात एक कर देती है।अपना दुःख-सुख,भूख-प्यास सब भूल जाती है और संतान की खातिर भगवान से भी भिड़ जाती है।
माँ वह धरा है जो खुद बंजर होकर बच्चों का सही पालन पोषण करके, उचित मार्गदर्शन करके उन्हें उपजाऊ भूमि बनाती है। जन्म के बाद बच्चे का पहला गुरु माँ होती है जो उसे चलना,बोलना, खाना-पीना सिखाती है। यह कार्य निरन्तर चलता रहता है। सो माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं है ।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
मां अक्षर संपूर्ण सृष्टि के बराबर माना गया है। मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है।
मां एक ऐसा शब्द है जिसे याद करते ही मन में एक उसी उत्साह से दौड़ने लगती है। जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है।
क्योंकि "मां" गरिमाय शब्द है। जिसकी व्याख्या करना बहुत ही मुश्किल है।
मां का मतलब जन्म देने वाली "*मां* इसीलिए उसे "जननी" भी कहा गया है। मां शब्द का अर्थ सिर्फ जन्म देने में निहित नहीं है....... परंतु उसका अर्थ बहुत गहरा है। भगवान श्री कृष्ण के जन्म देने वाली "मां देवकी" पालन करने वाली "मां यशोदा" के गोद में बचपन बीता हैं। दोनों उतना ही महत्व है।
मां बिना यह संसार असंभव है।
मां तो मां है ,चाहे वह माता कौशल्या हो, माता यशोदा हो ,माता मरियम।
मां वह है जो अपने बच्चे को 9 महीने अपने गर्व में रखती है, उसे जन्म देती है।पालती-पोसती है ।वह सदा ईश्वर से उसके लिए सफलताओं व अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती है।
मां का हाथ सदा आशीर्वाद देने के लिए उठते हैं।
चाहे वह पशु योनि की मां क्यों ना हो।
मां के जीवन में सिर्फ एक ही दिन ऐसा होता है जब वह बच्चे के रोने पर खुद खुश होती है वह बच्चे के जन्म का दिन.....(पैदा होते ही बच्चे का रोना जो उसके अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है) उस दिन के बाद से मां हमेशा बच्चे के रोने पर खुद दुखी एवं परेशान हो जाती है।
नोट:-जो महिला किसी और दंपति के बच्चे को अपनी कोख से जन्म देने को तैयार हो जाती है उसे ही सरोगेट मदर के नाम से जाना जाता है।
लेखक का विचार:-मां उस बगीचे की माली है ,और उसकी संतान उस बगीचे के रंग बिरंगे फूल हैं। उस जननी को मां कहते हैं।
मां शब्द संपूर्ण सृष्टि के बराबर माना गया है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
मां शब्द की पहली व्याख्या जन्म देने वाली औरत जो मां कहलाती है इसीलिए मां को सृष्टि निर्माता कहां गया है सृष्टि के रचनाकार ईश्वर है तो मां मैं ईश्वर का रूप देखा गया है
हमारी भारत भूमि अर्थात जिस धरती पर हम सभी का जन्म हुआ वह मां है इसलिए भारत को भारत माता कहते हैं
हमारी समझ से या विचारों से सृष्टि के निर्माण करने वाले मां कहलाती है कभी जन्म देकर उनका पालन पोषण कर उन्हें संस्कार का ज्ञान देकर अपनी ममता से अपनी सुरक्षा से संरक्षण से अगले पीढ़ी को वंश को तैयार करती है इसलिए मां तो जन्म देने वाली के साथ-साथ सृष्टि निर्माता भी है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
अरस्तु का कथन है एक बच्चे की मां उस की प्रथम पाठशाला होती है। एक नारी जब मां बनती है तभी वह संपूर्ण होती है और उससे मातृत्व का ज्ञान होता है और उसके अंदर सहनशीलता आती है। मां बनने का मतलब बच्चे को जन्म देने ही नहीं होता है उस बच्चे को संस्कार देना पड़ता है जिससे उस बच्चे को देखकर सब यही कहें कि यह उस मां का बेटा है ऐसे अनेकों उदाहरण हमारे इतिहास में हैं जीजाबाई ने शिवाजी को संस्कार दिए इसीलिए शिवाजी शिवाजी बने।
भगवान राम को कौशल्या माता ने संस्कार दिए तभी वह भगवान राम बने।
कृष्ण को उनकी मां यशोदा से ही संस्कार प्राप्त हुए जन्म देवकी ने दिया था। जन्म महत्वपूर्ण नहीं रहता तेरा बच्चे को संस्कार देना चाहिए।
माता का प्रथम दायित्व ही होता है कि वह अपने बच्चे के साथ-साथ आसपास के बच्चों को भी संस्कार दे।
और सभी को एक दूसरे जीवो से प्यार करना सिखाए ऐसा करने से वह कर्म से भी मां बन जाती है, साध्वी लोग बहुत सारे बच्चों को गोद लेकर उन्हें संस्कार देती हैं जैसे ऋतंभरा आदि संत हैं।
मां बच्चे को संस्कार देती है अपनी मां का स्थान हमारी भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान है। तभी हम सभी मां भारती को पूज्यते।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
मां का मतलब जन्म देने मात्र से नहीं अपितु मां खुशी है मां भाषा है मां अभिलाषा है मां शब्द में समाहित पूरी सृष्टि है मां जीवन में आई समस्याओं का समाधान है भगवान भी मां के आगे सर झुकाता है मां में समाए सभी संस्कार है मां से ही सृष्टि व प्रकृति का निर्माण है
जीवन में आई कठिनाइयों का मां समाधान है मां शारिरिक संबंध नहीं अपितु मां मानसिक, आर्थिक, भावात्मक, सामाजिक, राजनैतिक आधार है
मां वो मजबूत नींव है
जिस पर टिका परिवार,समाज,देश का सार है।।।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
माँ का तात्पर्य सिर्फ जन्म देने से नही अपितु सृष्टि के सभी सजीव व निर्जीव रिश्तों को अपने में समाहित करने से है,माँ जन्म देने के बाद जननी का रूप तो है,पर जगत की पालनहार भी है, माँ है तो संस्कार है माँ है तो सारे रीति रिवाज है परिवार अनुशासन, परंपरा है,माँ है तो शिक्षा और समृद्धि है,माँ इस जगत की संपूर्णता है, माँ ही निर्माण का आयाम है, माँ की व्याख्या करना कठिन है, माँ इस संसार का वो संबंध और वो शब्द है, जिससे सम्पूर्ण जग समाया हुआ है, इसलिए माँ का मतलब सिर्फ शारीरिक जन्म से या एक जीव के निर्माण से न जोड़कर सम्पूर्ण जग के निर्माण को प्रस्फुटित करने को सहेजने, मानव जग का उद्धार करने वाली रिश्तों से जोड़ा जाना चाहिए।
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
. माँ शब्द हर उस के साथ स्वयं ही जुड़ जाता है जो ममता, त्याग और स्नेह की.मूर्ति हो । देख लीजिए हम सब गंगा मैया, गौ माता, सीता मैया यहाँ तक की जब बीमार पड़ने पर हमारी छोटी बहन या बेटी हमारा सिर प्यार से सहलाती हैं तो बरबस मुँह से निकल जाता है अरे , मेरी माँ बस अब ठीक हूँ। सच में उस समय एहसास भी वही होता है। ऐसे ही अनेक बातें हैं जो यह सिद्ध करती हैं कि माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं है । माँ कठोर शिक्षक, कोमल मित्र, सच्चा मार्गदर्शक, और अनकही बातों को भी सुनने की क्षमता रखने वाली होती है । माँ हमेशा दुआ ही देती है।
माँ के लिए बच्चे हमेशा छोटे ही रहते हैं । उसकी हर साँस बच्चों की भलाई, उन्नति, प्रगति और सुख के लिए प्रार्थानाएं करती है ।मातृत्व का भाव जो हमारे जीवन में लाता है वो माँ है। यशोदा कृष्ण की माँ थी जब कि उन्होंने कृष्ण को जन्म नहीं दिया था। माँ बच्चों को कभी गलत राह पर चलना नहीं सिखाती।
माँ एक साथ ही कोमल ,कठोर, दयालु, सखा, बंधु, अंतरंग मित्र और अनुशासन प्रिय शासक का रूप धर सकती है। माँ अष्टभुजा धारी देवी हे जो हर पल बच्चों की रक्षा के लिए सजग रहती है।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि क्या मांँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा जन्म देना तो अपने आप में मां का कर्तव्य है ही परंतु पालन पोषण करना भी मां का एक ऐसा ऐसा एहसान है संतान पर जिसका कर्ज चुकाना जीवन भर संभव नहीं मां के संतान से संबंध की प्रगाढता अकल्पनीय है वह संतान को अपने गृभ में रख कर अपने ही रक्त के माध्यम से पोषित करती है और दुनिया में केवल एक ही ऐसा अंग है या उत्तक है जो दो प्राणियों की कोशिकाओं के संयोजन से बनता है और वह है प्लेसेंटा या जरायू जिसके माध्यम से बच्चा मां के शरीर से पोषण लेता है और एक छोटी कोशिका से मांँ के ही शरीर से पोषण प्राप्त करता हुआ पूर्ण जीव का रूप धारण करता है यही नहीं वह शरीर में बने हुए उत्सर्जी हानिकारक पदार्थ भी इस प्लेसेंटा के माध्यम से ही मां के रुधिर में ही छोड़ता रहता है और मां के शरीर के माध्यम से ही उसके यह सभी हानिकारक पदार्थ भी जो संतान गर्भ में मां के रुधिर में छोड़ती रहती है बाहर निकलते हैं और यह सब कार्य मां बिना किसी स्वार्थ के बहुत सहनशीलता और बहुत दुलार के साथ बहुत प्यार के साथ अपने फर्ज को समझते हुए करती है और उसके बदले में कुछ भी नहीं चाहती उम्र भर संतान का भला ही चाहती रहती है मैं तो कहता हूं कि मां अपने बच्चों के लिए ईश्वर से भी ज्यादा हितकारी है उनका भला चाहने वाली है और जीवन भर कोई भी मां के दूध का कर्ज नहीं चुका सकता शायद यह इसीलिए कहा जाता है जन्म के बाद भी अपनी सुख-सुविधा और समस्त चीजों का ध्यान रखते हुए वह केवल और केवल संतान के पालन पोषण पर उम्र भर ध्यान देती है और अपना जीवन उसके जीवन को बनाने में ही हवन कर देती है ऐसे निस्वार्थ प्रेम का कोई और दूसरा अन्य उदाहरण दुनिया में नहीं मिलता इसलिए यह कह देना की मां का संबंध सिर्फ जन्म देने से ही है मां के साथ अन्याय है जन्म देने वाली माँ से पालने वाली मां का एहसान कम नहीं है यह कृष्ण और यशोदा के संबंधों में देखने को मिलता है जिसे भगवान कृष्ण ने अनन्य रूप से उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया और मां यशोदा को माँ देवकी से कम महत्व नहीं दिया बल्कि उससे हमेशा अधिक ही माना यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है ़़
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
अत्यंत सूक्ष्मता से देखें तो माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से है, अन्य जिनके लिए हम माँ का संबोधन करते हैं, वह भाव विह्लल हो, श्रद्धा व सम्मान स्वरूप और माँ तुल्य मानकर , साथ ही स्वयं को पुत्रतुल्य मानते हुए भावातिरेक समर्पणभाव में कहते हैं और ऐसा करना हमारी भारतीय संस्कृति में संस्कारवान, सभ्य और गुणी माना गया है। बच्चे की गर्भ अवस्था से जन्म देने की तक की अवधि ईश्वर द्वारा दी गई अद्भुत और अनुपम है। ' माँ ' का स्वरूप इसी संज्ञा में समाहित है। इसी भावना के साथ हमारी संस्कृति में पावन नदियाँ, गाय, मातृभूमि, लालन-पालन करने वाली, यहाँ तक कि माँ की हम उम्र वाली महिलाओं को भी माँ कहकर हम गौरवान्वित होते हैं। माँ के समकक्ष एक और रिश्ता है, माँ की बहन का , जिसे हम 'मौसी ' कहते हैं। यह रिश्ता और संबोधन भी अपनेआप में पूर्ण, विशेष और वंदनीय है।
यही हमारी संस्कृति और संस्कार की गौरवशाली विशेषता है। जिस पर हमें गर्व है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह ऐसा विषय है,जिस पर किसी एक ही पक्ष में विचार रखना स्वयं के प्रति ही बेईमानी होगी। मां का मतलब,शब्द ही अजीब सा लगता है। निस्वार्थ भाव से नौ माह तक कोख में रखने वाली मां,यदि मतलबी? जीवन भर लालन पालन करने वाली मां मतलबी?तो फिर संसार में कौन सा रिश्ता है जो स्वार्थ से भरपूर न हो? मां,शब्द ही ऐसा है जो जन्म देने वाली तो क्या पालने वाली मां भी गौरवान्वित करता है। इसी कारण कृष्ण को पालने वाली माता यशोदा का नाम,कुंवर उदय सिंह की रक्षा कर पालन करने वाली मां पन्ना धाय का नाम जगतप्रसिद्ध है। कृष्ण की जन्मदात्री माता देवकी और राणा उदय सिंह की जन्मदात्री माता कर्णावती की नाम थोड़ा कम जानते हैं। लेकिन इससे जन्मदात्री माता का महत्व कम नहीं होता। मां के लिए मैंने एक गीत में कहा है-
मां तो केवल मां होती है
उसके जीवन की सब श्वांसें
बालक के ही हित होती है।
बालकों का हर हाल में हित चाहने वाली मां का प्यार संबंध तो आजन्म रहता है। मां का पर्याय है ममता,और जहां ममत्व भाव है वहां आदर सम्मान मिलना स्वाभाविक है।तभी तो एक विदेशी नन भारत में आकर अपने महत्त्व भाव के बल पर मदर टेरेसा बन गयी। अपवाद हर क्षेत्र में होते है, इसमें भी है जैसे भ्रूण स्त्रियां कराने, करने वाली मां। लेकिन वो मां शब्द सुनने ही वंचित रह जाने का दंश आजन्म झेलती है।
मां का बहुत व्यापक अर्थ है।
मां की ममता पाने के हित
परमपिता भी आए धरा पर।
सुख पाया मां के दुलार का
खेले, कौशल्या-जसुमति घर।।
मां के प्यार को पाने के लिए परमात्मा भी धरा पर मानव रूप में अवतार लेता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
साधारण तौर पर जन्म देने वाली मां को मां कहा जाता है किंतु यदि किसी ने किसी को जन्म नहीं दिया और उसे पूर्ण रूप मां की तरह पाला तो वह मां जन्म दायिनी मां से भी बढ़कर होती है। भगवान श्री कृष्ण को देवकी ने जन्म दिया था किंतु उन्हें पाला मैया यशोदा ने और वे यशोदा नंदन के नाम से जाने जाते हैं। बहुत से ऐसे दृष्टांत है। सामाजिक परिवेश में भी कई बार इस तरह के रिश्ते सामने आएहैं। जन्म दात्री मां 9 महीने गर्भ में रखती है और पालन पोषण करने वाली मां का कार्य उसके उपरांत चालू होता है ।इतना ही फर्क होता है जन्म देने वाली और सच्चे हृदय से पालन पोषण करने वाली मां में।
आजकल तो सेरोगेसी सिस्टम चल पड़ा है। किसी की कोख और किसी के द्वारा पालन। अनाथालय से भी बच्चों को गोद लेकर कई परिवार माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे हैं। मेरे ख्याल से तो सच्चे मन से किसी के साथ मातृत्व भाव रखना माता तुल्य होना ही है।
श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
माँ का अर्थ यदि लेखनी बयाँ करने लगेगी तो कुछ न कुछ जरुर छूट जायेगा ।इतना विस्तृत है माँ का अर्थ ।अर्थ के साथ ही माँ के गुण भी जुड़े हैं ।वह हमारी जन्म दात्री ही नहीं हमारी रक्षक भी होती है ।माँ का पूरा जीवन त्याग की भावना से ओत प्रोत है ।वह हमारी पहली गुरु भी होती है ।
हमारी भावनाओं को माँ से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता है ।वह भूखी रह सकती है लेकिन किसी तरह जुगाड़ करके बच्चे का पेट अवश्य भरेगी ।पंक्षी को हम देखते हैं किस तरह चोंच में दाना लाकर अपने नवजात बच्चे का पालन करती है ।जब हमारी आशायें रेत की तरह ढ़हने लगती हैं तो चट्टान बनकर माँ उसे रोकने का काम करती है ।ईश्वर ने सृष्टि की रक्षा केलिए ये गुण
प्रकृति में कई जगह बिखेरा है उन सब को भी हम माँ के नाम से पुकारते हैं ।धरती माँ ,प्रकृति माँ ,गोमाता आदि ।हमारे संस्कारों ने पालन -पोषण करने वाली को भी धायमाँ कहना सिखाया है ।कहने का तात्पर्य है कि माँ के गुण जिसमें भी निहित है हमारे लिए वह माँ समान है उसे माँ केतरह ही सम्मान देना चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
मां शब्द के सिमरन मात्र से ही स्वर्ग की अनुभूति होती है। चूंकि मां ममता का आंचल है। आशीर्वादों की खान है। दूध की धारा है।
मां सरस्वती ओर दुर्गा है। मां देवकी और यशोदा है। जिनका हाथ हमेशा बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीर्वाद बन कर उठता है।
मां बेशक जन्मदात्री है। जो 09 माह अपने गर्भ में रखती है। किंतु मां का अर्थ मात्र जन्म देने से नहीं है। यदि ऐसा होता तो भगवान श्रीकृष्ण जी मां यशोदा को माता देवकी से अधिक महत्व नहीं देते। जबकि उन्होंने ऐसा महत्व मां यशोदा को दिया। उन्होंने कर्म को भावना से श्रेष्ठ माना और शिशु को जन्म देने वाली मां से पालने वाली मां को अधिक सम्मान से सम्मानित किया। क्योंकि मां जीवन का मूल आधार है।
अतः मां का मतलब शिशु को प्राकृतिक जन्म देना ही नहीं बल्कि उसे पालना-पोसना एवं उंगली थाम कर चलना-फिरना सिखाने से लेकर शिशु को राष्ट्रीय संस्कृतियों, नीतियों, कलाओं के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम जैसा सर्वोच्च ज्ञान देना भी शामिल है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
इस विषय पर मैं अधिक विचार रखने में असमर्थ हूं। ईश्वर ने मां को ही चुना है जन्मदात्री के रूप में। मां सिर्फ जन्म नहीं देती, अपितु जीवन पर्यन्त अपने बच्चों के प्रति सचेत रहती है। हर मां को सादर नमन।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
माँ आदर्शता का प्रतीक हैं,जन्म देने से, जो नव माह तक, अपने कर्तव्य का पालन करते हुए, समस्त प्रकार से गुणवत्ता का बोध कराते हुए, जन्म से लेकर प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा, युवा अवस्था, वैवाहिक जीवन, घर संसार की जिम्मेदारी निर्वाह की कसौटियों पर खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। माँ में अद्भुत छमता हैं, बच्चों के साथ-साथ परिवार जनों के सुख सुविधाओं का ध्यान रखते हुए, नियंत्रित करने में उल्लेखनीय योगदान रहता। माँ को मालूम हैं, जब अपने ही बच्चों में वृहद स्तर पर अच्छे संस्कार विद्यमान होगे, तो आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत केन्द्रित करने में अनुकरणीय पहल होगी।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
'माँ' शब्द सुनते ही सृष्टिकर्ता का स्वरूप सामने आ जाता है। पहले समय में माँ को सृष्टि का रचयिता और पिता को उसके चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी थी। परंतु जैसे-जैसे युग परिवर्तन होता गया सबकी जिम्मेदारियाँ बदलती गईं। लोगों के क्रियाकलाप में परिवर्तन आते गए। अब माँ का उत्तरदायित्व अपने शिशु के चरित्र निर्माण से भी जुड़ गया है।
जिस देवी की हम आराधना करते हैं वह भी कर्मों के अनुसार दंड देने की अधिकारिणी है। कोख से जन्म देने के कारण, दूध पिला कर पालन करने के कारण उसका अधिकार अपने बच्चों पर ज्यादा है। लेकिन उसके कर्मों की अधिकारिणी भी उसे ही बनना होगा।
जब बच्चा प्रथम बार गलती करता है तो वह माता की नजर से छुपता नहीं है, बल्कि वह छुपा लेती है। यहीं से माता का प्यार अभिशाप बन जाता है । चारित्रिक रूप से बच्चा माँ के कमजोर दिल से खेलने लगता है।
अतः माता को थोड़ी कठोरता दिखानी होगी। यही कठोरता समाज में बढ़ रहे दुराचार को रोक सकने में सक्षम होगी ।
- संगीता गोविल
पटना -बिहार
माँ शब्द निःशब्द है जिसे शब्दों में समेटना संभव नही है।जग की पीर हरने वाली ममत्व को बच्चों पर लुटाकर भविष्य केन्द्र को सुनहरे रंग मे भरने वाली माँ ही होती है।पंरतु माँका मतलब सिर्फ जन्म देना और अपने कर्तव्यों से मुक्ति पा लेना नही ।माँ के शब्द को सार्थकता से सिद्ध करना होता है।माता कुमाता नही सुना है।परंतु संंस्कृति सभ्यता इतिहास मे कुछ ऐसे उदाहरण मिले है।जहां माँ का दायित्व केवल जन्म देने से खत्म हो जाता है।और पालन पोषण अन्य को सौंप दिया जाता पंरतु माँका मतलब जन्म देने से ही नही विपरित परिस्थितियों को ढ़ालने से और अपनी आँचल के सुखद अनुभव को ममत्व को निछावर करने से है।और ऐसा होता भी है।माँ संपूर्ण जीवन की आधारशिला है जिसके पदचिन्हों पर चलकर हम सफलतापूर्वक दिशानिर्देश में अपनी जीवन ओ अग्रसर करते है।माँ तो माँ होती है।जन्म देना उनका दुसरी जन्म होता है।नौ महिने अपनी कोख़ में शिशु को रखकर जीवन दान देने वाली माँ का कर्ज हम बच्चे कभी नही चुका सकते।माँ अगर तकलीफ़ भी दे तो अमृत है ।माँ का साया सिर पर हो तो हर जंग जीवन की जीत सकते हैं।पर नही खोनी चाहिए ।जिंदगी मे सबकुछ वापस ला सकते धन दौलत घर मकान जमीन पर माँ रूठ गई तो जीवन खत्म हो जाता है।माँ जन्म देकर एक उपकार करती हैं।जिसकि मतलब जीवन की सफलता और खुशहाली है।कतई मतलब नही सिर्फ जन्म देने से है।जब दर्दनाक परिस्थितियों का सामना होता तो माँ की आँचल धैर्यवान की भातिं कठिनाइयों को दूर करती हैं।
जीवन का सुख आधार,ममता की है भंडार
सुखद पलों की कतार,ममत्व कीअमृत धार।।
माँ निःशब्द है।शब्दों में बाँधना असंभव है।उनका मतलब जन्म देने से मरणोपरांत तक सिर्फ सुखद ही है।जिनका कोई मोल नही।इनके आशीर्वाद से जग की हर जंग जीता जा सकता है।माँका मतलब जन्म देने से सिर्फ नही है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
मां शब्द में सारा ब्रह्मांड समाया हुआ है मां शक्तिरूपा मां ममता है मां त्याग है मां प्रेम है मां परिश्रम है । मां की जितनी भी व्याख्या की जाये वो कम है ।
जन्म देने वाली को भले ही मां का खिताब मिला है किन्तू आज के हालात में कितनी मायें अपने मां होने का दायित्व निभा रही हैं ? आजकल पेहले को लड़कियां शादी ही बडी उम्र मे करती हैं फिर शादी के बाद बच्चे पैदा करने में और अधिक देरी करते हैं । एक या दो बच्चों के बाद नसबन्दी या नलबंदी करवा ली जाती है । मां होना केवल बच्चे पैदा करने से नहीं है बल्कि बच्चे की सही परवरिश और बच्चे का शारीरिक वा मानसिक विकास करना भी मां का ही मुख्य दायित्व है । इसलिये बच्चे को जन्म देने मात्र से ही कोई औरत मां नहीं हो जाती ।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
माँ सिर्फ बच्चे को जन्म ही नहीं देती जन्म के साथ-साथ को उसकी परवरिश उसका पालन पोषण उसकी शिक्षा और उसके आगे आने वाली सभी समस्याओं को दूर करती है | एक मां एक बच्चे को 9 माह तक अपने गर्भ में धारण करके रखती है जो कि उसकी जिंदगी का सबसे कठिन समय वह होता है, उस दौरान उसे कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है | जब जब शिशु का जन्म हो जाता है उसके बाद उसका पालन पोषण माँ करती है, मां को ही शिशु की पहली शिक्षिका कहा जाता है वह अपने शुरुआती 2 साल अपनी मां के साथ ही बिताता है | सबसे पहला शब्द जो बालक बोलना शुरू करता है वह मां ही है | माँ के बारे में वैसे लिखने को तो बहुत कुछ है पर मैं एक आपको अपनी कविता इसमें सुनाना चाहता हूं, यह कविता मैंने अपनी मां के लिए लिखी है | एक मां का क्या अभिनय रहता है हमारे जीवन मे |
माँ हैं मेरे दुनिया
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आओ चलें हम सब मिलकर |
एक अलग दुनिया के सफर में ||
बात करेंगे हम उस माँ की |
जिसने हमें काबिल है बनाया ||
आँखे खुली जब पहली बार |
सुन्दर नज़ारा हैं मैने पाया ||
माँ के आंचल के साये मे |
प्यार बहुत हैं मैने पाया ||
कभी खेल खिलाती मुझको |
कभी प्यार से मुझे सहलाती ||
खुद माँ भूखी रहकर सोती |
मुझे पेट भर खाना खिलाती ||
बिन बोले सब बात समझती |
चेहरे से सब पता लगाती ||
भगवान के रूप में माँ को भेजा |
माँ ईश्वर का रूप कहलाती ||
ज्ञान का पाठ माँ मुझे पढ़ाती |
जीवन की राह मे चलना सिखाती | |
हर व्यक्ति के जीवन मे |
माँ एक एहम किरदार निभाती ||
- रजत चौहान
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
मां शब्द का अर्थ सिर्फ जन्म देने में निहित नहीं है, परन्तु इसका अर्थ बहुत गहरा व अलग अलग व्यक्ति के नजरिये से नया व भिन्न है।
सही मायने में मां और माता का अर्थ होता है परम उपकारी, निश्छल व दया का भंडार।
मां माता शब्द में जन्म देने वाली को स्थान दिया जा सकता है, किन्तु सिर्फ जन्म देने वाली का मतलब मां माता नहीं होता, मां वो होती है, जो अपने बच्चे को गर्भ मे रखती है, उसको पालती पोसती है तथा संस्कार देती है।
यही नहीं सदा के लिए ईश्वर से अपने बच्चे की सफलताओं व अच्छे स्वास्थ की प्रार्थना करती है।
मां के जीवन का हर प्रयास कहीं न कहीं प्रत्यक्ष याअप्रत्यक्ष रूप से बच्चे के हित में ही होता है।
सच कहा है,
"चलती फिरती आंखों से अंजा देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं मां देखी है"।
कहने का मतलब मां वो जन्नत है जिसकी गोद में जाने के लिए हर कोई तरसता है और जो मां को नहीं पूछते वो जिन्दगी भर जन्नत को तरसते हैं, दुनिया में हम मां की वदौलत ही आते हैं यही नहीं मां बिना इस दुनिया में कल्पना करना भी मुश्किल है सच कहा है,
"जब दवा काम नहीं आती,
तब मां की दुआ काम आती है"।
यही नहीं मां जैसा प्यार करने वाला दुनिया में फिर कभी नहीं मिलता,
कहते हैं,
काम से घर लौटा, सब ने पूछा क्या लाये हो, बस एक मां ने पूछा बेटा कुछ खाया कि नहीं।
इसलिए हमारे जीवन मे मां के इतने परोपकार होते हैं कि अगर हम पूरे जीवन भी उसकी सेवा करें तो भीसमय कम पड़ता है। सच कहा है,
" जब जब कागज पर लिखा मैंनें मां का नाम, कलम अदब से बोल उठी हो गए चारों धाम" ।
इसलिए जितना संभव हो सके मां के साथ भी समय विताओ क्योंकी मां तो वो है जो खुश होकर सर पर हाथ रख दे तो दुश्मन तो क्या काल भी घबरा जाता है।
इसलिए,
"मां की अजमत से अच्छा जाम क्या होगा,
मां की खिदमत से अच्छा काम क्या होगा,
खुदा ने रख दी जिसके कदमों में जन्नत, सोचे उसके सर का मुकाम क्या होगा"।
सचमुच मां जैसा रिश्ता संसार में न है, न होगा यही रिश्ता है जो गहराइयों तक देखता है,
सच कहा है,
" रूह के रिश्ते की यह गहराइयों को तो देखो,
चोट लगती है हमें दर्द मां को होता है, "। इसलिए मां का एक एक पल भुलाया नहीं जा सकता, जब दुख में कोई सहारा नहीं बनता तो हम को मां की याद आती है यही नहीं विमार होने पर खुद व खुद हाय मां शब्द ही जुवान से निकलता है जिससे मालूम होता है यह एक रूहानी रिश्ता है, यही नहीं जो चैन की नींद हम मां के आंचल में सोते थे शायद फिर कभी ऐसे लम्हें मिलें हों
सच कहा है,
" तकिए बदले हमने बेशुमार
लेकिन तकिए हमें सुलाते नहीं,
बेखबर थे हम कि तकिए में मां की गोद को तलाशते नहीं"।
आखिरकार यही कहुंगा कि मां का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं है, मां ही हमें पहली भाषा सिखाती है और हमें जीवन जीने की राह दिखाती है। मां ही सबसे वड़ा स्कूल है, सच कहा है,
"गिन लेती है दिन वगैर मेरे गुजारे हैं, कितने, भला कैसे कह दुं कि मां मेरी अनपढ़ है"।
इसलिए मां ही जन्नत है मां ही सब कुछ है मैं सदा के लिए मां को शत शत प्रणाम करता हुं।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मां से हमारे अस्तित्व की पहचान होती है। हमारी विशेषताएं, हमारी खूबियां हमारे व्यक्तित्व की पहचान मां से है। मां के विशेषताओं का शब्दों में उद्गार करना भी असंभव है।
मां का मतलब सिर्फ जन्म देना--ऐसा विचार रखने वालों की मानसिक संकीर्णता साफ दृष्टिगोचर होती है। जो मां के ऊपकार को भूल सकता है वह जीवन में किसी का भी अपना नहीं बन सकता।
मां हमें जन्म देने, पालन- पोषण करने के साथ-साथ हमारे व्यक्तित्व का सम्पूर्ण निर्माण करती हैं। उनके एहसानों का बदला उनका ॠण हम किसी भी कीमत पर कभी भी नहीं चुका सकते।
मां के प्रति अपने भाव का समर्पण हम सेवा भाव के द्वारा हीं जता सकते हैं। ईश्वर को किसी ने नहीं देखा ,साक्षात रुप में मां-पिता हीं ईश्वर समान होते हैं जो हमारे लिए वरदान साबित होते हैं।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
ऐ रे कन्हैया किसको कहेगा तू मैया
एक ने तुझको जन्म दिया रे एक ने तुझको पाला l
अर्थात माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं है l
ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
उसको नहीं देखा, हमने कभी
लेकिन माँ को हमने देखा है l माँ क्या है? चलती फिरती हुई आँखों में अजान देखी है l मैंने जन्नत तो नहीं देखी माँ देखी है l माँ जिंदगी का विश्वास होती है जीवन का संबल होती है l माँ शब्द में सारा संसार व्याप्त है l निस्वार्थ प्यार और बलिदान की मूर्ति है माँ l भगवान का जीता जगता स्वरूप है माँ लेकिन फिर भी शब्दों से परे है माँ की परिभाषा l माँ को उपमाओं और शब्दों में बांधना संभव नहीं है क्योंकि इस शब्द में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, स्रष्टि की उतपत्ति का रहस्य समाया है l
भारतीय संस्कृति में जननी और जन्म भूमि दोनों को माँ का स्थान दिया है और दोनों ही स्वर्ग से महान हैं l ममता, वातसल्य और निस्वार्थ प्रेम का सागर है माँ जो कभी अपने किये का प्रतिदान नहीं चाहती l उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं अपितु उक्त विशेषताओं की प्रतिमूर्ति है, वही माँ है l आज के परिवेश में हमें निरंतर माँ के साथ "कु "शब्द देखने सुनने को मिलता है l इस शब्द में कुमाता के पीछे हमारे नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का हो रहा अधोगामी पतन मुख्य रूप से जिम्मेदार है l मेरा उद्देश्य माँ शब्द को धूमिल करना नहीं लेकिन लौकिक और पारलौकिक दृष्टि से चर्चा करना आवश्यक है क्योंकि चर्चा का विषय ही माँ का मतलब जन्म देने से हैl जिसने नवजात शिशु को जन्म देकर झाड़ियों में फेंक दिया क्या उसे भी हम माँ कहने का साहस जुटा पाएंगे? पन्ना गुजरी को महाराणा सांगा ने उदयसिंह की धाय नियुक्त किया l बलबीर जब उदयसिंह की हत्या करने के उद्देश्य से आया तो उदयसिंह के स्थान पर अपनी कोख से जन्में पुत्र चंदन को सुला दिया जिसकी हत्या होना निश्चित थी l स्वामिभक्ति की पराकाष्ठा अपने जन्में पुत्र को न्यौछावर कर दिया स्वामी भक्ति पर l इस बलिदान से ही उदयसिंह के महाराणाप्रताप जैसे पराक्रमी पैदा हुए जिन्होंने अकबर से लेकर ओरंगजेब जैसे मुग़ल बादशाहों से टककर ली और यह वंश फिर से राष्ट्र की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया l उदयसिंह को पन्नागूजरी ने जन्म नहीं दिया लेकिन स्वामिभक्ति पर अपने जाये पुत्र को न्यौछावर कर दिया, अर्थात माँ का मतलब जन्म देने से कदापि नहीं है l
चलते चलते ----
कर्म की क्यारी की केसर गंध जैसी है माँ
युगों युगों से दे रही कुर्बानियाँ खुद की माँ
फर्ज के पर्वत को अंगुली पर उठाती है
कृष्ण -गोवर्धन के इक संबंध जैसी माँ
प्यार -सेवा -त्याग के उपबंध जैसी माँ
भागवत के सात्विक स्कंध जैसी माँ
ऐसी माँ को शत शत नमन, वंदन, प्रणाम l
-डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
मां का मतलब असीमित है। मात्र जन्म देने से मां की परिभाषा पूर्ण नहीं होती। मां जन्म के साथ हीं अपने बच्चे में निरंतर सारी सीख - सभ्यता, संस्कार , ज्ञान जैसे समस्त गुणों का बीजारोपण करती रहती है। अपने बच्चे को अपनी ममता रूपी छांव में पालती है। मां अनपढ़ हो तब भी हमेशा अपने बच्चे को अपनी अनुभव रुपी ज्ञान से सदैव पाटने की कोशिश करती है। सुख - दुःख , बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी अपने बच्चे को संभाल लेती है। यदि सिर्फ जन्म देना हीं मां का काम हो फिर मां शब्द जैसे खोखली लगती है । मां शब्द हर तरह से अपने आप में पूर्ण हैं और उसकी साथर्कता भी तभी है जब अपने बच्चे को इस धरती पर जनने के बाद उस मिट्टी रुपी बालपन को सुंदर और साकार रूप देकर एक अच्छा इंसान का रूप गढ़े।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
*मां जैसा कोई नहीं मां देवताओं से भी बड़ा दर्जा होता है*
मां केवल एक बच्चे को जन्म ही नहीं देती अपितु वह 9 महीने अपने गर्भ में
रख अपने रक्त हाड़ मांस , सांसों की धड़कन से पोषती है एक एक क्षण वह उसके लिए सोचती है वहीं से मां अपना दायित्व निर्वहन करने लगती है सब कुछ बच्चे के लिए ही सोचना है
संस्कार की शुरूआत वहीं से हो जाती है एक बच्चे का पूरा जीवन संवार देती है मां .... अपने हर सुख को त्याग कर देती है मां बच्चे के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर सकती है मां.. बच्चे को भूख लगे उससे पहले मां को पता चल जाता है बच्चे को चोट लगे मां को दर्द हो जाता है बच्चे के मन में क्या चल रहा है उससे पहले मां को पता चल जाता है मां . बालक का पहला कदम मां, पहली बोली मां पहली हंसी मां
पहला अक्षर मां... संस्कार गुणों से भर देती है जीवन को स्वर्ग बनाती मां ...!!!
मां का मतलब सिर्फ जन्म देने से नहीं
पूरी जिंदगी बना देती है मां का कर्ज़ संसार में कोई नहीं चुका सकता है
पूरी पृथ्वी का स्वामी ही क्यों ना हो ।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
मां शब्द बहुत ही व्यापक है। मां जन्मदात्री, पोषिका एवम संरक्षिका है। वह , जग जननी प्रेम, करुणा एवं दया की मूरत है। संस्कारों की प्रदाता व चरित्र निर्माता और एक शिक्षिका भी है। जन्म देने के अलावा गोद लेकर संपूर्ण मातृवत दायित्व निभाने वाली , पालनहारी, सर्वगुण संपन्न मां को भी नमन है।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
मां शब्द अपने आप में इतना वृहत इतना जटिल तम शब्द है जिसपर व्यख्यान करने मे सदियाँ भी कम पड़ जाएंगी । यह छोटा सा शब्द जिसने सारे संसार को अपने वजूद में समेटा हुआ है ,,,,।
मां को परिभाषित करने के लिए पन्ने कम पड़ेंगे स्याही कम पड़ेगी।
एक फिल्म का गाना याद आता है,,,
मैं मुस्काया तू मुस्काई,,, मैं रोया तू रोई ,,,ओ मां ओ मां ।
यह जो दुनिया है यह बन है कांटो का,
तू फुलवारी है ओ मां मां ,,।
क्या है यह मां,,, क्या होता है इसका अर्थ ,,यह बहुत ही गूढ़ है। परमात्मा के बाद अगर किसी का स्थान है संसार में ,तो वह मां का स्थान है।
यूं तो मां जन्म देने वाली होती है इसलिए उसे जननी कहते हैं। लेकिन मां शब्द का अर्थ सिर्फ जन्म देने में निहित नहीं है ।उसका अर्थ बहुत गहरा व अलग है ।
अलग अलग व्यक्ति के नजरिए से नया वा भिन्न है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मां के बिना यह संसार असंभव था ।
मां और माता शब्द में जन्म देने वाली मां को स्थान दिया जा सकता है ,किंतु सिर्फ जन्म देने वाली मां का मतलब माता नहीं होता ।जबकि अम्मा ,मम्मी तथा अन्य का अर्थ सिर्फ जन्म देने वाली से है ।
मां के हृदय में बच्चे के लिए प्यार, ममता व प्रार्थना के सिवा कुछ नहीं होता। मां वह है जो अपने बच्चे को 9 महीने गर्भ में रखती है,, उसे जन्म देती है ,,पालती है पोसती है ,,।तमाम प्रसव पीड़ा सहकर भी बच्चे का मुख देखकर प्रसन्न हो जाती है। सदा ईश्वर से उसकी सफलता व अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती है। जीवन के हर अच्छे बुरे क्षणों में उसके साथ रहती हैं। बच्चों की सफलताओं से ईर्ष्या नहीं करती। उसके हाथ सदा अपने बच्चों को आशीर्वाद देने के लिए ही उठते है। उसके जीवन का हर प्रयास कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बच्चे के हित में होता है।
हर मां तो अच्छी होती है ,,चाहे वह किसी भी योनि में हो ,,चाहे पशु हो ,,चाहे पंछी ।
मां अपने बच्चे से प्यार करती है यह प्राकृतिक सत्य है ,,,।
सारा संसार त्याग दे,,,लेकिन मां कभी नहीं त्यागती ,,,
इसीलिए मैंने एक रचना में लिखा है ,,
सारी दुनिया अगर छोड़ दे ,कभी न छोड़े प्यारी मां।
सबसे होती न्यारी मां सबसे होती न्यारी माँ ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " मां से बड़ा दुनियां में कोई नहीं है । जिसकी मां है । उसका सब कुछ है । मां के बिना इंसान अनाथ कहलाता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान
माँ वो अनंत अवर्णिय शब्द है जिसकी परिभाषा करते करते सभी विद्वानो के शव्दकोष समाप्त हो जाते हैं किन्तु माँ शव्द की पूर्ण व्याख्या नही हो पाती।
ReplyDeleteजन्म देना मात्र ही माँ का कार्य नही होता अपितु जन्मोंप्रांत पालन पोषण के साथ ही वो संस्कार जिनसे किसी भी अवोध की जीवनयात्रा आगे चलेगी उनको देने वाली भी एक माँ ही होती है।
वो प्रथम गुरु और प्रथम मित्र भी होती है । हर अवोध को जीवन और संसार का ज्ञान एक मित्र और गुरु की भांती देते हुए वो जहाँ बचपन को आगे बढ़ाती है वही हमारे जीवन की यात्रा के हर पड़ाव पर वो ममता की छाँव लेकर हमारे साथ बिना किसी स्वार्थ के सदेव उपस्तिथ भी रहती है। में भी इससे अधिक माँ के बारे में नही लिखना चाहूँगा क्यूँ कि वो उस ईश्वर से भी अधिक है जिसको हमने नही देखा किन्तु माँ तो साक्षात् ही ईश्वरीय शक्ति की अनुभुति कराते हुए हमारे सामने और साथ रहती है।
अतः यह कहना कि माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने से ही है सर्वथा माँ की अपूर्ण व्याख्या ही है।
सादर आभार सहित
जीवन देने वाली मां तो मां होती ही है किंतु पालन पोषण कर के उसका संपूर्ण जीवन व्यवस्थित करने वाले मां का दर्जा भी उससे कम नहीं होता। सच्चे हृदय से यदि कोई किसी को अपना कर पूर्ण मातृत्व एवं वात्सल्य के साथ उसको अपना कर उसका जीवन सँवारती है तो उसका पद भी जन्म देने वाली मां से कम नहीं होता। त्याग तपस्या साधना ममता स्नेह की मूरत होती है मां। उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। राम को पैदा किया था कौशल्या ने किंतु केकई राम को अधिक अच्छी तरह से समझती थी। राम को वनवास देना अलग बात थी वह तो दैवीय योजना थी जिसका मोहरा कैकेयी बन गई थी। किसी भी सूरत में देखें तो मां का कोई विकल्प नहीं। ईश्वर ने भी मां को अपने से बड़ा माना है
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