क्या आप सिर्फ जानकारी को शिक्षा समझते है ?

सिर्फ जानकारी से क्या हो सकता है क्या नहीं हो सकता है । जानकारी से शिक्षा का क्या सम्बंधन है । शिक्षा से क्या - क्या हासिल होता है । शिक्षा का लम्बा - चोड़ा इतिहास है । सभी क्षेत्रों में शिक्षा के अपने मायने हैं । फिर भी जानकारी से बहुत कुछ हासिल होता है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
नहीं जी,सिर्फ सूचना को शिक्षा नहीं माना जा सकता। यदि सिर्फ सूचना ही शिक्षा होती तो बड़े बड़े शिक्षण संस्थानों और शिक्षकों की कोई जरूरत ही नहीं होती।यह काम तो अखबार और खबरी चैनल ही बहुत कुशलता से कर लिया करते।शिक्षकों को तैयार करने वाले विभिन्न पाठ्यक्रम निरर्थक ही होते।विषय वस्तु की सूचना शिक्षा नहीं,बल्कि उसे समझना और समझकर उसका प्रयोग करने की क्षमता विकसित करना शिक्षा है।और यह कार्य मात्र सूचना से तो कभी संभव ही नहीं है। भारत की शिक्षा व्यवस्था वो अद्वितीय व्यवस्था थी, जिसमें छात्र को उसकी रुचि के अनुरूप शिक्षा देकर उन कौशलों को विकसित कर दिया जाता था जो उसके जीवनयापन वह सामाजिक जीवन में सदा सहायक होते थे। बाद में मैकाले की शिक्षा ने स्वरुप बदला,लक्ष्य बदला लेकिन फिर भी शिक्षा मात्र सूचना कभी नहीं रही,न रहेगी।
- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जानकारी एकत्रित करने को हम शिक्षा नहीं कह सकते ।शिक्षा वह है जो हमारे भीतर स्नेह,सहयोग और सद्भावना के बीज डालती है ।और वे हमारे भीतर अंकुरित होते हैं ,पल्लवित व पुष्पित होते हैं ।
शिक्षा वह है जो हमारी संभावनाओं के विकास में सहयोगी होती है ।शिक्षा हमें वह बनाती है जो हम होने के लिए इस संसार में आये हैं । शिक्षा हमारे जीवन में प्रकाशित किसी प्रकाश स्तंभ से कम नहीं जिससे हमें घने अंधकार में भी अपने रास्ते अपनी मंजिल की पहचान करते हैं ।इसके विपरीत जानकारी हमारे विकास में सहयोगी तो हो सकती है परंतु पर्याप्त नहीं। 
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
जानकारी होना एक अलग बात है, अच्छी बात है।  शिक्षा होना एक अलग बात है।  किसी को चिकित्सा विद्या की जानकारी होना बेशक लोगों के लिए हैरत का विषय हो सकता है परन्तु उस विद्या का प्रयोग तो केवल शिक्षित चिकित्सक ही कर सकता है। जानकारी तो एक अशिक्षित या अल्प शिक्षित व्यक्ति को भी हो सकती है। कम्प्यूटर की जानकारी होना एक बात है, कम्प्यूटर का संचालन करना दूसरी बात है और कम्प्यूटर चलाने के लिए प्रोग्राम या साफ्टवेयर बनाना अलग बात है।  संचालन और प्रोग्राम बनाने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जानकारी होने से कौशल नहीं आता वह तो शिक्षित होने से ही आ सकता है। अतः सिर्फ जानकारी ही शिक्षा नहीं है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्व है ।  सर्वप्रथम शिक्षा शब्द पर जानकारी जरूरी है । शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा के 'शिक्ष' धातु से बना है , जिसका अर्थ है सीखना या सिखाना  ।शिक्षा शब्द का अंग्रेजी समानार्थक शब्द एजुकेशन (Education) जो लैटिन भाषा के एडूकेट्म(Educatum) शब्द से बना है एडकेटम  शब्द का अर्थ है शिक्षण कार्य  ।
कुछ विद्वानों के अनुसार एजुकेशन Education शब्द की उत्पत्ति एडुकेयर (Educare) से हुई है जिसका अर्थ है विकसित करना ।
 शिक्षा का रूप -आकार अति विस्तृत है । यह एक ऐसा साधन है जो मानव को प्राणी जगत के अन्य जीवों से पृथक करता है ।
 शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है शिक्षा मानव को एक सामाजिक प्राणी बनाकर सांस्कृतिक धरोहर को आगे आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करने के योग्य बनाती है  । 
शिक्षा से ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है मानव अपना व्यक्तित्व जीवन सुखमय बनाता है 
 ।  शिक्षा समाज की उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण साधन है ।
 लेकिन शिक्षा ग्रहण करने का माध्यम केवल किताबें ही नहीं होनी चाहिए, हर वह जानकारी जो अलग-अलग परिवेश ,तरीके से प्राप्त होती है उसका भी विशेष महत्व है। शिक्षा के अंतर्गत अच्छे गुण अच्छे संस्कार निहित होते हैं ।
 किताबी ज्ञान के बल पर व्यक्ति शिक्षित अवश्य होता है परंतु यदि वह अपने आसपास के वातावरण, घटनाओं, प्रसंगो से अनभिज्ञ है, तो वह शिक्षित होते हुए भी अशिक्षित हैं।  
किसी विषय पर जानकारी शिक्षा हो सकती है यदि उसका सदुपयोग किया जाए । शिक्षा का उद्देश्य सीमित नहीं होना चाहिए। किसी भी जानकारी को  घेरे में बंद करके नहीं रखना चाहिए  ।यदि हमें किसी विषय पर जानकारी है  तो उसका सदुपयोग करते हुए उसके विकास पर गतिमान होना चाहिए ।
एक योग्य चिकित्सक की चिकित्सा शास्त्र में जानकारी तब तक योग्य नहीं मानी जाएगी जब तक उसका उपयोगी कदम मानवीय सेवा में नहीं बढ़ाया जाता ।  शिक्षित व्यक्ति की अपेक्षा एक अनपढ़ व्यक्ति की जानकारी समय स्थिति अनुकूल बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है । वह भले ही अनपढ़ है परंतु ज्ञानी है वह ज्ञान ही उसकी शिक्षा है । यही ज्ञान उसके हृदय में परोपकार की भावना पैदा करता है । मानव मात्र के प्रति संवेदना बढ़ाता है।
 । अतः शिक्षा के माध्यम से ग्रहण की गई जानकारी तब तक महत्वहीन है जब तक वह विकासशील नहीं है , जब तक वह उपयोगी , सदुपयोगी नहीं है ।  जानकारी जो मानव मात्र के कल्याणर्थ  हाे वही असली शिक्षा है ।
 - शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
शिक्षा समाज के एक पीढी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। यह एक संस्था के रूप में काम करती है।व्यक्ति विशेष ने समाज से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समाज के संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है ।बच्चे शिक्षा से समाज के आधारभूत नियमों ,व्यवस्थाओं के मूल्य को सीखते हैं।
शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्ति का विकास, ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि और  व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है। मनुष्य इस प्रकार नए-नए अनुभव प्राप्त करते हैं, वह करवाते हैं। जिससे उसका व्यक्तित्व प्रभावित होते हैं। सीखने -सिखाना स्कूल कॉलेज किसी संस्था ,उत्सवों , पत्र-पत्रिकाओं से होता है।
लेखक का विचार:-शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की शिक्षू धातु में प्रत्यय लगाने से बना है। शिक्षू का अर्थ सिखान और सिखाना। शिक्षा का अर्थ हुआ सीखने सिखाने की क्रिया को कहते हैं। यह क्रिया जन्म-जन्मांतर तक चलता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
इस विषय के संदर्भ में सबसे पहले हमें यह देखना होगा, कि हम शिक्षा मानते किसे हैं? शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है- सीखना या सिखाना.  शिक्षा का  व्यावहारिक अर्थ है- अक्षर-ज्ञान या स्कूली शिक्षा. चमड़े की आंख के अतिरिक्त शिक्षा को दूसरी आंख भी कहा गया है. 
अब बात आती है जानकारी की. जानकारी यानी जानना. जानकारी के अनेक स्त्रोत, साधन या माध्यम हैं, जिनमें से एक स्त्रोत है शिक्षा. शिक्षा से हम जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, पर सिर्फ जानकारी को ही शिक्षा नहीं कहा-समझा जा सकता.  
यहां यह भी ज्ञातव्य है कि जानकारी प्राप्त करने के बाद उसकी परख करना भी आवश्यक है, कि हमारी जानकारी सही है या नहीं! जानकारी हमारे लिए उपयोगी या लाभकारी है या नहीं! जानकारी की इस परख के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक है. अतः शिक्षा जानकारी का एक स्त्रोत-साधन भले ही हो, पर मात्र जानकारी को ही शिक्षा नहीं कहा-समझा जा सकता. 
- लीला तिवानी
दिल्ली
परिचर्चा के विषय पर अपनी बात रखने से पहले शिक्षा के सन्दर्भ में कुछ महापुरुषों के विचारों का अध्ययन करते हैं..... 
"शिक्षा से अभिप्राय बालक में निहित शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक श्रेष्ठ शक्तियों का सर्वांगीण विकास है"....महात्मा गांधी। 
"उच्चतम शिक्षा वह है जो हमारे जीवन में सभी अस्तित्वों के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाती है".... रविन्द्रनाथ टैगोर ।
"शिक्षा मनुष्य में निहित दैवीय पूर्णता का प्रत्यक्षीकरण है".... स्वामी विवेकानंद। 
"शिक्षा का कार्य आत्मा को विकसित करने में सहायता देना है".... अरविन्द। 
उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि शिक्षा एक ऐसी सतत् प्रक्रिया है जो मनुष्य को सीखने और सिखाने की प्रेरणा देकर उसकी प्राकृतिक क्षमताओं को निखारकर मनुष्य का निरन्तर सर्वांगीण विकास करती हुए उसे मानवीय, सामाजिक और न्यायिक मूल्यों का पालन करने के योग्य बनाती है। 
किसी अपराध के संबंध में कानून की जानकारी यदि न्यायाधीश और अपराधी, दोनों को ही होती है परन्तु न्यायाधीश द्वारा उस कानून के पालन हेतु कार्य किया जाता है और अपराधी द्वारा उसी कानून के विरुद्ध कार्य किया जाता है तो कह सकते हैं कि न्यायाधीश को शिक्षा प्राप्त है जबकि अपराधी केवल जानकारी रखने वाला व्यक्ति है। इससे यह भी दृष्टिगत होता है कि शिक्षा जानकारी का सही उपयोग करना सिखाती है जबकि जानकारी का अर्थ केवल सूचनाओं से अवगत होना है। 
सही अर्थों में जानकारी होना और शिक्षित होना दो अलग-अलग बात हैं। जहां एक ओर शिक्षा बहुत व्यापक होते हुए व्यवहारिक रूप से अपना प्रभाव दिखाती है वहीं दूसरी ओर जानकारी, किन्हीं वस्तुओं या विषयों को जानने या उससे भिज्ञ होने की अवस्था मात्र है, जिसका प्रयोग एक-दूसरे से संवाद स्थापित करने और विषय-वस्तु को आगे बढ़ाने के लिए होता है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड 
जानकारी मनुष्य को अनुभवों से भी प्राप्त होती है। शिक्षा से मानव जीवन में अच्छाई आ सकती है व्यक्तिगत
  रूप से स्त्री पुरुषों के प्रयास से शिक्षा व्यवस्था व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को दृष्टि में रखते हुए करना चाहिए जिससे वह एक शानदार विकसित हो सके हर बालक एक दूसरे से भिन्न होता है हरे की कार्यक्षमता बुद्धि का विकास भी अलग होता है किसी को शारीरिक कार्यों में रुचि होती है तो किसी को मानसिक
 कार्य करना पसंद होता है बच्चों को इस प्रकार शिक्षा दी जाए वह समाज मैं मानवी जीवन से अपनी योग्यता अनुसार मौलिक योगदान दे सके।
- पदमा ओजेंद्र तिवारी
 दमोह - मध्य प्रदेश
     अनपढ़ों की शिक्षा-दीक्षा नहीं होती, किन्तु व्यवहारिक ज्ञान-कर्म से ही उन्हें उच्च पदों पर आसीन हो जाते हैं, जहाँ से सभी का संचालन करते हैं।
उनके सामने पढ़े लिखे भी कुछ नहीं कर सकते हैं। शिक्षा प्राप्त कर भटक रहें हैं, जिसने शिक्षा प्राप्त की उनमें  व्यवहारिकता की कमियां देखी जाती हैं। जानकारियों को शिक्षा समझते हुए,  अन्य जनों को ज्ञानादित किया जा सकता हैं। आत्म निर्भरता की ओर अग्रसर किया जा सकता हैं। आज सभी समुदायों के दोनों पहलू शिक्षा प्राप्त कर अनेकरूपता से पहचान बनायें हुए हैं। वर्तमान परिदृश्य में देखिए बच्चों में हमेशा आते-जाते जानकारियां प्राप्त कर रहे हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सब जानकारी ही शिक्षा नहीं होती शिक्षा हमारे व्यवहार और जीवन जीने की शैली को भी बताती है।
जीवन को कुशलता से जीने की कला ही शिक्षा है। शिक्षा प्राप्त करना के लिए मनुष्य को स्कूल जाना और पढ़ाई लिखाई की कोई जरूरत नहीं होती है वह व्यावहारिक शिक्षा जानवर प्रकृति कहीं से भी ले सकता है सारी उम्र यह प्रक्रिया चलती रहती है इसको उद्देश्य कोई डिग्री हासिल करना नहीं होता है जीवन का व्यवहारिक ज्ञान जो हमें कभी भी किसी भी व्यक्ति से मिल सकता है।
की सार्थकता बहुत है जिसे हम जीवन में अपना सकें किताबी ज्ञान से ज्यादा व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता होती है।
एक चिड़िया भी अपने बच्चे को उड़ना दाने चुगने का ज्ञान देती रहती है चील भी अपने बच्चे जब उसके बहुत छोटे रहते हैं तब उन्हें ऊपर से नीचे गिरा कर उड़ने का ज्ञान देती है।
व्यावहारिक ज्ञान के उपलक्ष अनेकों कहानियां हैं हितोपदेश और पंचतंत्र में भी अनेकों कहानियां हमें व्यवहारिक ज्ञान की और हमें प्रेरित करती हैं।
सब कुछ पढ़ाई और शिक्षा नहीं होती है अगर ऐसा होता तो हमारे बड़े बड़े वैज्ञानिक हमें ज्ञान ना देते । थॉमस अल्वा एडिसन की कहानी तो आप सभी ने सुनी होगी।
एक दिन स्कूल के शिक्षक ने तो उससे एक पत्र के साथ घर में भेज दिया।  और कहां यह पत्र अपने मां को दे देना।
एडिसन ने पत्र अपनी मां को दिया माता ने वह पत्र पढ़ा और बच्चे से कहा कि तुम बहुत होशियार हो पढ़ने में इसीलिए उन स्कूल के शिक्षकों ने कहा कि तुम घर में ही पढ़ाई करो और उनकी माता उन्हें घर पर शिक्षा देने लगी देने। जब वे बड़े हुए और उन्होंने को एक दिन
माता की मृत्यु हो चुकी थी और वह बड़े हो गए थे तब उनके हाथ वखत लगा और उन्होंने पढ़ा उसमें लिखा था कि आपका लड़का पढ़ाई में बहुत कमजोर है इसका मन पढ़ने में नहीं लगता। आपके बच्चे की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है इससे हम अपने स्कूल में नहीं पढ़ा सकते।
और यह बात उनकी माता ने कभी उनके ऊपर हावी नहीं होने दी और उसे यह भी नहीं बताया दिन साहस के साथ उस बच्चे को शिक्षा दी।
दृढ़ संकल्प के कारण बड़े से बड़े कार्य पूरे होते हैं जीवन में व्यावहारिक ज्ञान बहुत जरूरी होता है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
           नहीं, हम जानकारी को शिक्षा नहीं समझते हैं। सिर्फ जानकारी शिक्षा नहीं है। सिर्फ जानकारी शिक्षा होती तो स्कूल में ,कॉलेज में पढ़ने की क्या जरूरत है? जानकारी तो हमें कहीं से भी मिल जाएगी। अगर जानकारी ही शिक्षा होती तो पहले के लोग तो बहुत कुछ जानते थे फिर भी उन्हें अशिक्षित कहा जाता था/है क्यों ? बहुत से अनपढ़ लोग हैं जो बहुत कुछ जानते हैं या इतना जानते हैं कि पढ़ा लिखा भी उतना नहीं जानता होगा फिर भी उन्हें अशिक्षित ही कहा जाता है।
             पहले के लोग या आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो हर विषय में बहुत सारी जानकारी रखते हैं पर उन्हें  शिक्षित नहीं कहा जाता । उन्हें अनपढ़ ही कहा जाता है। स्कूली जानकारी ही शिक्षा के अंदर आता है।
       इसलिए सिर्फ जानकारी को शिक्षा नहीं कह सकते हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
सिर्फ किताबी ज्ञान और जानकारी एकत्रित कर लेने को शिक्षा नही कह सकते। शिक्षा का असली उद्देश्य है अर्जित ज्ञान को अपने जीवन में उतार कर अपने, अपने परिवार, अपने समाज और अपने देश के उत्थान के लिए रचनात्मक कार्य करना। आजकल के चलन में ऊंची शिक्षा ग्रहण कर लेने भर को अधिकतर युवा अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं और मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं से दूर होते जा रहे हैं। तकनीकीकरण के भीड़ में कहीं न कहीं लोग स्वार्थी और एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। पुराने जमाने में हमारे पूर्वज पढ़े-लिखे कम होते थे परन्तु सामाजिक ढांचा बहुत मज़बूत था।लोग अपने-अपने कार्य-क्षेत्र में माहिर हुआ करते थे। सामाजिक नियमों का पालन करते थे और मिलकर-जुलकर रहते हुए अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन किया करते थे। जिससे आपस मैं इतना वैर-वैमनस्य नहीं होता था। अतः वर्तमान समय में हमें बच्चों और युवाओं को शिक्षा के साथ-साथ मानवीय मूल्यों, सहिष्णुता,त्याग, नम्रता , समर्पण और देशहित को सर्वोपरि रखने की शिक्षा भी देनी चाहिए।ऐसी शिक्षा हमें एक सुखद और मजबूत पारिवारिक वातावरण में ही मिल सकती है। हमारे शिक्षण- संस्थाओं को भी अपने पाठ्यक्रमों में इसका समावेश करना चाहिए। समर्पण का भाव बहुत आवश्यक है जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए और किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए।
-  संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
आज की चर्चा में यह बहुत अच्छा प्रश्न उठाया गया है कि क्या जानकारी को ही आप शिक्षा समझते हैं तोइस विषय पर  मैं कहना चाहूंगा की जानकारी और शिक्षा में बहुत अंतर है ज्ञान और शिक्षा दोनों अलग-अलग है यदि हम अपनी जानकारी अच्छी जानकारी को अपने कार्य और व्यवहार में परिणित नहीं करते तो तब तक वह केवल जानकारी ही है शिक्षा नहीं हो सकती शिक्षा तभी है जब हम अच्छी चीजों अच्छी जानकारियों सामाजिक मूल्यों और सांस्कृतिक परी चर्चाओं को एक दूसरे के साथ बाटें एक दूसरे को अच्छे कार्य करने की प्रेरणा दें तो यह जानकारी शिक्षा में परिणित हो जाती है अन्यथा यह केवल जानकारी ही है एक अच्छा जानकार व्यक्ति भी तब तक किसी काम का नहीं है मैं समझता हूं जब तक उसकी जानकारी समाज व देशहित केलिए उपयोगी  न हो या सामाजिक सुधार व उन्नति व देश के विकास की दृष्टि से उपयोगी न हो या किसी भी तरह से समाज के लिए लाभदायक न हो तो तब ऐसा ज्ञान केवल जानकारी ही है और वह उसी तक सीमित रहता है कालांतर में भी ऐसा देखने को मिलता है किइ स देश से बहुत सारा ज्ञान बहुत सारी विधा  इसीलिए विलुप्त हो गई कि लोगों ने उन्हें अपने तक ही सीमित रखा और समाज समाज में उन चीजों को उन्होंने दूसरों को नहीं सिखाया दूसरों को नहीं बताया या वह सामाजिक हित उनसे नहीं हो सका जो होना चाहिए था यदि अच्छी चीजें अच्छी बात है हम सीखने के बाद अपने व्यवहार में नहीं लाते तो वह तब तक केवल जानकारी ही रहती है अच्छी शिक्षा नहीं हो सकती अच्छी शिक्षा वही है जिसे हम अपने कार्य और व्यवहार में भी परिणित कर सके और वह सामाजिक हित व देश हित के लिए एक साधन बन सके़
-प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
 नहीं जानकारी अलग है और जानना अलग है शिक्षा माध्यम है शिक्षा के माध्यम से जानना भी होना चाहिए और जानकारी भी होना चाहिए। क्या चीज को जानना अपने निश्चित आचरण को जाना ना। निश्चित आचरण से ही मनुष्य विश्वास के साथ जी पाता है। अगर निश्चित आचरण के अनुसार घर ,परिवार  समाज में न्याय पूर्वक नहीं जी पाता है ,तो बड़ा कष्ट दायक स्थिति होता है। मानव का मन कुणठीत हो जाता है। शिक्षा निरंतर सुख पूर्वक जीने के लिए होती है। अर्थात ज्ञान के अनुभव में ही सही कार्य व्यवहार किया जाता है। जानना शरीर के लिए आय का स्रोत या स्किल देती है। वर्तमान शिक्षा पद्धति से सिर्फ पैसा कमाना मूल उद्देश्य माना है ।शिक्षा का उद्देश्य पैसा कमाने के साथ साथ संबंधों में मूल्यों के साथ जीना होता है।
  जानकारी शरीर के लिए ,जानना (आत्मा) जीवन के लिए  दोनों का संयुक्त अभिव्यक्ति का भाव व्यक्त करना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
शिक्षा  की बात करें तो  सिर्फ पढ़ लिख लेने को ही शिक्षा नहीं कहते या  सिर्फ जानकारी  लेने को शिक्षा नहीं समझा जाता। 
शिक्षा वह साधन है, जिसको  ग्रहण करने वाला व्यक्ति शिक्षा के महत्व को समझने  लगे व लोगों को शिक्षत करे साथ में  शिक्षत होने की सलाह दे। 
सिर्फ पढ़ लिख लेने को ही  शिक्षा  नहीं कहा  जा सकता  
इसका सर्वमान्य अर्थ होता है
बालक  के जन्मजात गुणों को  विकसित करना अथवा शिक्षा वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी सभ्यता एंव संसकृति में निरंतर विकास करता है। 
ज्यों कह सकते हैं शिक्षा विकास की प्रक्रिया है, यही नहीं शिक्षा वह प्रक्रिया है  जिससे  बालक की जन्मजात शक्तियां बाहर प्रकट होती हैं। 
सच कहा है, 
"जरूरी नहीं रोशनी चिरागों से ही हो, शिक्षा से भी घर रौशन होते हैं"। 
शिक्षा ही वो माध्यम है जो कर्तव्य मार्ग को बतलाती है, यही नहीं अच्छा कौन है बुरा कौन इन सब का बोध कराती है, इसके विना इन्सान अधुरा है, 
यह सच है, 
" अंधा अनपढ़ एक समान
पथ भटके  सा वो  होता है, 
रोवे अंधा आंखों को, अनपढ, ज्ञान को रोता है"। 
कहने का मतलब अनपढ़ और अन्धे की कमी एक वराबर आंकी गई है। 
इसलिए सिर्फ जानकारी लेना ही शिक्षा नहीं जानकारी देना भी आनी चाहिए, यही नहीं शिक्षा को आल राउडं डवैलमैंट का नाम दिया गया है, क्योंकी शिक्षा मानव को अच्छा इन्सान वनाती है इसमें
ज्ञान, उचित आचरण, तकनीकी दक्षता शिक्षण इत्यादी आते हैं इसलिए, 
"अशिक्षित को शिक्षा दो
अज्ञानी को ज्ञान, शिक्षा से ही बन सकता है, भारत देश महान"। 
आखिरकार यह कहुंगा, शिक्षा समाज को जोड़ने का कार्य करती है और शिक्षा के विना मनुष्य पशु सामान होता है, जिन्दगी का सही मार्गदर्शन करने के लिए शिक्षा ग्रहण करना व करबाना अति अनिवार्य है अत:  सिर्फ जानकारी लेना ही शिक्षा नहीं होता। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
 शिक्षा केवल जानकारी के लिए ही नहीं होती! हां ! शिक्षा के बिना किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की उन्नति असंभव है ! शिक्षा हमें मार्ग दिखाती है,शिक्षा के बिना चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई देता है ......किंतु डिग्रियां पा लेना  ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है !
शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाना है ! आज प्रत्यक्ष क्षेत्रों में जो चारित्रिक गिरावट आई है वह शिक्षा का मूल उद्देश्यों से हट जाना है ! नैतिकता ही शिक्षा का मूल आधार है! वास्तव में शिक्षा का संपूर्ण उद्देश्य 'सदगुण ' है !  यह हमे सिखानी नहीं पड़ती इसका ज्ञान हमारे अंदर होता है बस शिक्षा को हमारे अन्तर्मन को खोलना होता है ! 
शिक्षा का विकास बालक के शारिरीक , नैतिक एवं बौद्धिक विकास से भी है केवल जानकारी से नहीं !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
      शिक्षा का शाब्दिक अर्थ गागर में सागर भरने तुल्य है।यह मात्र जानकारी या नौकरी पाने तक कदापि सीमित नहीं है। 
      सर्वविदित है कि शिक्षा के बिना आप आर्थिक सम्पन्न हो सकते हैं। उस सम्पन्नता के बल पर विजयश्री भी प्राप्त कर सकते हैं। समाज में मान-सम्मान एवं बड़ा पद भी प्राप्त कर सकते हैं। किंतु शिक्षा के बिना आत्मनिर्भर नहीं हो सकते। क्योंकि आत्मनिर्भरता का मूल आधार शिक्षा है।
      शिक्षा अर्थात ज्ञान वास्तव में अभेद्य ब्रह्मास्त्र है। जिसकी शक्ति से हम सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का रहस्य जान सकते हैं। सम्पूर्ण प्राकृतिक गूढ़ रहस्यों द्वारा मोक्ष प्राप्त कर जन्म-मरण से छुटकारा पा सकते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जानकारी और शिक्षा मैं काफी अंतर होता है .जानकारी तो बहुत लोग प्राप्त क्र लेते हैं पर हर जानकार व्यक्ति शिक्षित नहीं होता .जानकारी तो एक अनपढ़ व्यक्ति के पास हो सकती है अतः जानकार हो सकता है अनपढ़  पर शिक्षित नहीं
शिक्षा का अर्थ बहुत व्यापक है .विधिवत लिखने और पढ़ने को शिक्षा कहते हैं .
कुछ लोग किताबी ज्ञान तो प्राप्त कर लेतेहैं पर उन्हें जीवन का व्यावहारिक ज्ञान बिलकुल नहीं होता .मैरी दृष्टि मैं शिक्षित व्यक्ति वही होता है सही मायनो मैं जिसे पढ़ने लिखने के अलावा जीवन का व्यावहारिक ज्ञान भी हो
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
शिक्षा जीवन की परिभाषा मे शामिल है। सिर्फ जानकारी ही शिक्षा का स्वरूप नही हो सकता है।समक्षता को प्रदर्शित करती है।शिक्षा जीवन की वह आधार जो सदाचार, शिष्टाचार मानवता को प्रकट करती है।जनकारी जीवन को गतिविधियों को बढ़ावा देती है।समाज मे रहने की कला सीखाती है।परंतु शिक्षा तो चरित्र को विकसित करती हैं।जानकारी के अभाव मे मुश्किलों का सामना करना पड सकता है परंतु इसे शिक्षा की कसौटी मे नही रख सकते है।जीवनको सैदव खुशहाल बनाने मे जानकारी का महत्व होता है। और शिक्षा से मानव जाति अलगाववादी की रेखाओं मे आता है ।यह शिक्षा पशुओं से भिन्नता की कसौटियों मे लाता है ।सोचने समझने की अद्भुत शक्ति का शिक्षा  मे ही समावेश है।मानव की  शिक्षा जीवन को जीना सिखाती है।जानकारी प्राप्त हो अशिक्षित हो तो वह क्षणभंगुर होता है परंतु शिक्षित व्यक्ति  कही भी माँ शारदे की कृपा से जीवन यापन कर सकता है। शिक्षा का अलग महत्व है।सिर्फ जानकारी को शिक्षा का  स्थान देना वास्विकता को नजरअंदाज करना होगा।जानकारी प्राप्त होने से कष्टकारी पथरीली पथ पर आसानी से सफरनामा शुरू होता है।जो जानकार होते है जीवन की पतवार को खेमते है।पर यह शिक्षा नही है।शिक्षा तो मानवीय संवेदनाओं का आधार है।जीवन की परिस्थितिया कायम करने का हौसला है।शिक्षा जीवन का वह साथी जो हर डगर पर हमसफर बन साथ देने का जज्बा रखती हैं।जानकारी आती है जाती है।अपने कार्य को सफल असफल बना कर 
शिक्षा स्थायी होती है विधा जब अपने हाथ मे होती तो पुरी दुनिया अपने वंश होती है।जानकारी अपनी हुनर कुछ पल के रूप मे साथ देती है ,और शिक्षा जीवन के अंतिम चरण तक।जानकारी प्राप्त करके अब अविष्कारों को जन्म दे सकते है।एक वक्त मे इक प्रकार की जानकारी हमें अपनी मंजिल तक ले जाती है।शिक्षा जीवनशैली की  अद्भुत क्षमता होती है जो रहने सहने का ढंग सीखात है।मात्र जानकारी को शिक्षा कहना सही नही हो सकता।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
           सिर्फ जानकारी ही शिक्षा नहीं है। शिक्षा तो बहुआयामी होती है। हर क्षेत्र में, हर विधा में ,हर वस्तु से ,हर प्राणी से शिक्षा मिलती है। यह व्यक्ति विशेष की विशेषता होती है कि वह किस क्षेत्र से क्या ग्रहण कर सकता है। कई लोग किसी विशेष विधा में पारंगत हो कर उसके विशेषज्ञ बन जाते हैं। कई जिज्ञासु व्यक्ति हर चीज में अन्वेषण करके उससे कुछ न कुछ ग्रहण करने की कोशिश करते हैं। जानकारी शिक्षा के क्षेत्र में सहायक है पर संपूर्ण शिक्षा नहीं। शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है उसका कोई ओर छोर नहीं। वह शालाओं ,विद्यालयों ,विश्वविद्यालयों या किताबों तक ही सीमित नहीं है। उसके और भी कई मापदंड है। दैनिक जीवन , व्यवहारिक जीवन में भी हमको कई प्रकार की शिक्षाएं मिल जाती हैं जोकि किताबों में उपलब्ध नहीं रहतीं। किसी चीज के संबंध में जानकारी शिक्षा का केवल एक छोटा सा बिंदु है, पूर्ण शिक्षा नहीं।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
शिक्षा का अर्थ बहुत व्यापक है । कहा भी गया है 'केवल किताब पढ़ने से शिक्षा नहीं प्राप्त होती है, उसके विचारों में अच्छी सोच का उभरना ही शिक्षा है। अनेक लोगों को ज्यादा जानकारियाँ होती हैं, परन्तु उसका उपयोग करने का तरीका नहीं आता । तो फिर क्या फायदा? 
शिक्षा के लिये यह भी कहा गया है कि 'बचा कर रखने से वह समाप्त हो जाती है।'
इन सब से साबित होता है कि जानकारी को बाँटने से शिक्षा का सही उपयोग होता है और उसमें बढोत्तरी भी होती है। इसलिए शिक्षा हासिल करने का सही मतलब है उसे व्यवहारिक तौर पर उपयोग करना ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलम न गुणा न धर्मः l 
ते मृत्युलोके भुविभारभूतः, मनुष्यरूपेण मृगश्चरन्ति ll 
      मनुष्य रूप में जन्म लेकर जिसने तप और साधना से विद्या प्राप्त नहीं की और न ही प्राप्त ज्ञान को व्यवहार में लाकर विनम्रता, दान, धर्म और सदाचार जैसे गुणों को जीवन में नहीं अपनाया ऐसा मनुष्य पृथ्वी पर भार स्वरूप जीवन व्यतीत करता है उक्त पंक्तियाँ रेखांकित कर रही हैं कि जानकारी ही शिक्षा नहीं है l आज की चर्चा में भाग लेने से पूर्व शिक्षा का उद्देश्य समझना आवश्यक है l संकुचित अर्थ में शिक्षा के उद्देश्य का प्रतिपादन सुकरात, अरस्तु दांतेय बेकन आदि आदर्शवादी सम्प्रदाय के सदस्यों ने किया l केवल जानकारी देना ही इनके लिए शिक्षा है l दैनिक जीवन में होने वाले अनुभवों को ये ज्ञान नहीं मानते l केवल पुस्तकीय ज्ञान या जानकारी देना ही शिक्षा है l जबकि व्यापक अर्थ में 3है मन, मस्तिष्क और ह्रदय का विकास कौशलात्मक विकास ही शिक्षा है,  ऐसा ज्ञान उचित अनुचित का बोध कराता है l मेरी दृष्टि में "विद्या के लिए विद्या "के स्थान पर मानसिक विकास शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए न कि केवल जानकारी देना l ली का भी यही मत है -ज्ञान समझदारी के बिना मूर्खता है l व्यवस्था के बिना व्यर्थ है, दया के बिना दीवानापन है तथा धर्म के बिना मृत्यु है l जानकारी देना अर्थात तोते की तरह बालकों के मस्तिष्क में ज्ञान ठूँसना, ऐसा व्यक्ति ज्ञान का भंडार तो बन जायेगा पर व्यावहारिक जीवन में अशांत होगा l कहा गया है -
     "अशांतस्य कुतः सुखं "
              अर्थात अशांत व्यक्ति को सुख की प्राप्ति कहाँ? केवल मात्र जानकारी देकर शिक्षा के सांस्कृतिक उद्देश्य हम नहीं प्राप्त कर सकते l गाँधी जी के अनुसार संस्कृति मानव जीवन की नींव है तथा प्रारम्भिक वस्तु है, यह हमारे व्यक्तिगत व्यवहार में प्रकट होनी चाहिए l 
      यदि मैं शिक्षा के समस्त कार्यो को एक शब्द  में प्रकट करूँ तो वह है नैतिकता l अर्थात                " शिक्षयेत क्षालयेत अनेन सह इति शिक्षा "शिक्षा वही है जो हमारे मन, वचन और कर्म में आई मलीनता का निवारण अनेकानेक अन्योन्यन प्रक्रिया द्वारा कर दे l हर्बट ने भी इसी आशय की पुष्टि की है l 
      स्पेंसर के अनुसार
मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता और सबसे बडा रक्षक चरित्र है, शिक्षा नहीं, यदि वह समुचित अर्थों में है तो l 
      आज यह कैसी विडंबना है कि शिक्षा के उद्देश्य दाल -रोटी, ब्लू जैकिट और वाइट कॉलर जॉब में रूपांतरित हो गये हैं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हम जानकारी ही दे रहे हैं शिक्षा नहीं l 
अपना आत्मावलोकन कीजिए l 
        चलते चलते ----
गुरु और समुद्र दोनोही गहरे हैं 
दोनों में फर्क एक ही है कि 
समुद्र की गहराई में इंसान डूब जाता है और गुरु की गहराई में इंसान तैर जाता है लेकिन शर्त एक ही है कि "उत्प्लावक "बल के रूप में जानकारी नहीं दी जाये, व्यापक अर्थो में शिक्षा दी जानी चाहिए l 
 - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
शिक्षा किसी भी क्षेत्र में जब हम 
विधिवत ज्ञान अर्जित करते हैं और समय-समय पर आपकी योग्यताओं का मूल्यांकन किया जाता है और उसकी परीक्षा ली जाती है और उसमें हम उत्तीर्ण होते हैं  विश्व विद्यालय या  विद्यालय से प्रमाण पत्र सर्टिफिकेट दिया जाता है जिससे यह प्रमाणित किया जाता है कि इस क्षेत्र में पारंगत हैं आप को डिग्री दी जाती है उसके आधार पर आपका नौकरी में चयन किया जाता है डॉक्टर ,इंजीनियर, वकील, प्रोफेसर, सीए, बैंक, रेलवे
सिविल सर्विसेज इत्यादि। केवल जानकारी को शिक्षा मान लेना यह शिक्षा से जोड़ दिया जाना इससे हम शिक्षा नहीं कह सकते हैं पढ़ाई के साथ साथ किसी भी एक विशिष्ट विशेष क्षेत्र में जाने के लिए जाने के लिए भी ट्रेनिंग कि अवधि निर्धारित होती है ट्रेनिंग में उससे संबंधित सारी जानकारी का अभ्यास कराया जाता है ।
जानकारी को ही शिक्षा नहीं माना जा सकता है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
 शिक्षा का हमारे जीवन वही महत्व है जो मछली के लिए पानी का, मोती के लिए सीप का। शिक्षा के बिना हर व्यक्ति अधूरा है।
 शिक्षा का अर्थ होता है-- सीखना और सिखाना। पर सिर्फ जानकारी को शिक्षा कहना बिल्कुल उचित नहीं है। सच्ची शिक्षा किसी डिग्री से परे होती है या कहें किताबी ज्ञान से भी अधिक होती है।
    सकारात्मक सोंच, मदद करने का दृष्टिकोण , समाज के प्रति अच्छा विचार और नैतिक मूल्यों का ज्ञान यही सच्ची शिक्षा है। 
   शिक्षा का मतलब होता है- खुद को दो कदम आगे ले जाना। शिक्षा जो हमें सही निर्णय लेने की सीख देती है। शिक्षा का मतलब अपने ज्ञान को बढ़ाना और उसे व्यवस्थित रखना।
      शिक्षा हमें जीवन जीने का सलीका सिखाती है और कामयाबी भी देती है और साथ ही शिक्षा हमें परिपक्व भी बनाती है।
       इसलिए जन-जन को शिक्षित होना जरूरी है।महात्मा गांधी जी के अनुसार भी सच्ची शिक्षा वह है जो बच्चों के आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है। उनके मुताबिक शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास होता है।
     वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा प्रणाली किताबी शिक्षा पर जोर दे रही है जो सही नहीं है। विद्यार्थियों को व्यवहारिक शिक्षा भी उपलब्ध करानी चाहिए। विद्यार्थी तभी कुशल बनेगा जब हर चीज को व्यावहारिक रूप से सीखेगा।
       आधुनिक शिक्षा प्रणाली में मानवीय मूल्यों के बजाय सिर्फ ज्यादा मार्क्स लाने पर जोर दिया जा रहा है। हमें चाहिए कि घर में भी अच्छे संस्कार और समाजिकता का गुण बच्चों को सिखाएं ताकि समाज के व्यवस्थाओं, नियमों, प्रतिमान और मूल्यों को सीखते हुए एक आदर्श नागरिक बन सके।
       जानकारी कैसी है-- उसकी परख की क्षमता, नैतिक -अनैतिक की पहचान और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता ही सच्ची शिक्षा कहलाती है।
             - सुनीता रानी राठौर 
             ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
जानकारी का अर्थ किसी भी तथ्य का संज्ञान में होना होता है, जबकि शिक्षा का अर्थ है जन्मजात शक्तियों का सर्वांगीण विकास।
 शिक्षा का वास्तविक अर्थ अलग अलग युगों मे बदलता रहा है।वैदिक काल मे शिक्षा  सर्वांगीण विकास का अंग थी ,   मध्यकाल में शिक्षा का अर्थ संकुचित हुआ और धर्म से जुड़ गया ।
आधुनिक युग में शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर है।
किसी तथ्य की जानकारी तो एक बिना पढ़े लिखे व्यक्ति को भी हो सकती है उसके लिए किताबी डिग्री की जरूरत नही ।
मगर जब एक शिक्षित व्यक्ति जानकारी ग्रहण करता है तो बेहतर विचार व निष्कर्ष पर पहुँच सकता है ।लेकिन इसका मतलब ये नही कि अशिक्षित व्यक्ति जानकर नही हो सकता।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
मात्र जानकारी ही शिक्षा नही । जानकारी और शिक्षा में सबसे बड़ा फर्क यह है कि शिक्षा के मूल में तटस्थता रहती है । पेड़ों की तरह उसमें ज्ञान की और भी नई शाखाएं उग सकती हैं , जबकि जानकारी आधारहीन और परिवर्तनशील है। शिक्षा में प्रामाणिकता रहती है जबकि जानकारी निराधार भी हो सकती है।  जानकारी में अपुष्टता रहती हैं जबकि शिक्षा अनुभव ,सत्यता और प्रामाणिकता का परिणाम है। 
जानकारी कई माध्यमों से प्राप्त हो सकती है, जबकि शिक्षा शिक्षालय, परिवार एवं समाज से ही प्राप्त होती है ।
शिक्षा में व्यक्ति स्वयं को अनुशासन और नियमों में बंधा हुआ पाता है जबकि जानकारी में ऐसी कोई बाध्यता नहीं । कुल मिलाकर जानकारी स्वच्छंद और तीव्र गति से विचरण करती है । जबकि शिक्षा एक निश्चित समय और सटीकता पर  आधारित रहती है ।
- वंदना दुबे
धार - मध्यप्रदेश

 " मेरी दृष्टि में " जानकारी तो जानकारी होती है । शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है । जानकारी तो अनपढ़ भी रखते है पर वे शिक्षित नहीं कहलाते हैं । क्योंकि जानकारी से दिमाग विकसित नहीं होता है । ना ही कोई अविष्कार होता है ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. जानकारी कभी संपूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती। वह केवल किसी विषय या वस्तु या सूचना के संबंध में जानकारी होती है। वह सही भी हो सकती हैं और सुनने के आधार पर दी गई जानकारी भ्रामक भी हो सकती है। शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है। वह सिद्धांतों से जुड़ी होती है एवं उस में स्थायित्व होता है। वह बहुआयामी होती है एवम मानक तथ्यों पर खरी उतरती है। उसका क्षेत्र बहुत विशाल है।

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