क्या मुम्बई की बीएमसी भारतीय सविधान से ऊपर है ?
मुम्बई की बीएमसी ने जो अभी हाल में किया है । वह तो स्पष्ट करता है कि वह भारतीय सविधान से ऊपर है । चाहे वह बिहार पुलिस के साथ अभ्रदता हो या फिल्म अभिनेत्री कंगना रनोट के कार्यालय पर बुलडोज़र चलना हो । यह सविधान की परिभाषा तो नहीं है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा "आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
किसी भी लोकतान्त्रिक देश की शासन व्यवस्था में नागरिकों के सर्वांगींण विकास के लिए मूलभूत अधिकारों की व्यवस्था की जाती है l संवैधानिक संस्थाओं का यह दायित्व होता है कि वे मौलिक अधिकारों की क़ानून सम्मत व्यवहार करते हुए रक्षा करें l
जब ये संस्थाएँ दलगत राजनीति, स्वार्थलोलुपता या अन्य कारणों से भेदभाव पूर्ण व्यवहार करती है तो उन पर प्रश्न चिह्न लगना स्वाभाविक है l
वर्तमान में बीएमसी इन्हीं कारगुजारियों को अंजाम दे रही है l यूँ कहें कि वह संविधान से ऊपर हो गई है l सामान्यतः 7 दिन का नोटिस देकर किसी आवासीय भवन के नीतिगत निर्णय की क्रियान्विति की जाती है, लेकिन कंगना रनौत की 15 वर्ष की कमाई को मात्र 24 घंटे में जमींदोज कर दिया गया, यह बदले की कार्यवाही के फैसले जो मानवीय संवेदनाओं से ऊपर उठ कर लिए गये हैं l जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने बंगला तोड़ने पर रोक लगा दी थी l इस प्रकरण में बीएमसी की निंदा हुई l संगठनों ने मामले में केंद्र हस्ताक्षेप की मांग की है l इस संदर्भ में हम कहने से नहीं चूकेंगे कि वोट बैंक की राजनीति के चलते अवसरों का राजनीतिकरण कर दिया जाता है तो लोकतान्त्रिक संस्थाओं का पतन तथा क्षरण लाजिमी है l बीएमसी के उक्त कृत्यों में हम यही देख रहे हैं l
आज देश को आवश्यकता है स्वतंत्र न्यायपालिका की, निष्पक्ष मीडिया की, संस्थाओं की स्वायत्ता तथा नागरिकों के लोकतान्त्रिक महत्त्व का अध्ययन एवं उनकी रक्षा करने वाले सैनिकों की l अंत में मैं कहना चाहूँगी कि "स्वतंत्रता की क़ीमत निरंतर सतर्कता है l"
चलते चलते -----
सुना है बीएमसी को आज हवा लग गई है,
हवाओं के जो रुख बदलते रहे हैं l
आज की सच्चाई चंद पंक्तिओं में-
घरों पर आज नाम हैं,
नामों के साथ ओहदे हैं l
बहुत तलाश किया कोई
आदमी नहीं मिला ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
नहीं, संविधान से ऊपर तो कोई हो नहीं सकता। अगर ऐसा होने लगे तो संविधान का महत्व ही क्या रह जाएगा?स्थानीय संस्थाएं संविधान से ऊपर नहीं हो सकतीं।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
यह अटल सत्य है कि संविधान इन सभी से कहीं ऊपर है संविधान के द्वारा ही देश की शासन व्यवस्था कानून व्यवस्था प्रशासनिक व्यवस्था इत्यादि का नियंत्रित एवं संचालन होता है बीएमसी किसी राज्य की एक छोटी इकाई है जिसके माध्यम से महाराष्ट्र के अंतर्गत शासन व्यवस्था बनाई जाती है तो अस्पष्ट है की यह संविधान से ऊपर नहीं किसी भी तरह की यदि किसी भी राज्य में नियम के विरुद्ध हो करके कोई कदम उठाए जाते हैं तो कहीं ना कहीं उसमें लोकतंत्र का हनन होता है और व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति होती है संसद या उच्च पदाधिकारी या नेता को इतने अधिकार अवश्य मिले होते हैं कि वह शासन को सुचारू रूप से चलाने इसका यह अर्थ नहीं होता है की वाक युद्ध हो जिसका परिणाम एक बड़े युद्ध में ना परिवर्तित हो जाए सुखी महाभारत एक छोटे से वाक्य से युद्ध में परिवर्तित हो गया अतः संविधान की मर्यादा का सम्मान करते हुए शासन प्रणाली कायम की जाए तो यह लोकतांत्रिक हित में अच्छा होगा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
संविधान से ऊपर कुछ भी नहीं होता।
बीएमसी ने जो कार्यवाही की वह बहुत ही गलत की।
किसी के भी ऑफिस को ऐसे तोड़ देना उचित नहीं है।
क्योंकि जब हम कोई भी मकान घर या ऑफिस बनाते हैं तो बीएमसी ही हमें वह बनाने की परमिशन देती है हमें वहां से नक्शा पास कराने के बाद ही निर्माण कार्य कर सकते हैं।
ऊंचे सत्ता पर बैठे हुए राजनेता इतनी अभिमानी हो जाते हैं कि वह अपनी बात को सिद्ध करने के लिए या किसी ने उनके खिलाफ आवाज उठाई तो उस आवाज को दबाने के लिए वह किसी भी हद तक गिर सकते हैं।
*अरस्तु का यह कथन था कि राजनीति दूष्ट व्यक्तियों की शरण स्थली है।*
उसने बिल्कुल सही कहा था अब हमें ऐसा लगता है कि नेता अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो गए हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं।
हमारे देश में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है सभी मनुष्यों को बराबर बोलने का अधिकार प्राप्त है यदि किसी ने कोई बात गलत बोली या सही बोली तो आप उस बारे में जो भी कार्यवाही हो वह करें पर किसी का घर गिरा देना यह अनुचित कार्य है। अगर कोटिया शासन के व्यक्ति इसके खिलाफ ठोस कदम उठाना चाहिए बीएमसी ऐसी मनमानी अगर करती रही तो कैसे चलेगा जरूर बीएमसी को वहां की पार्टी का संरक्षण प्राप्त है।
क्योंकि बीएमसी कार्य तो महाराष्ट्र सरकार के कहने पर ही कर रही होगी।
एक तो वैसे भी देश दुनिया में संकट काम नहीं है उस पर यह लोग मानवता का दृष्टिकोण भी नहीं रखते हैं हमारे देश में महिलाएं की कितनी इज्जत होती थी,पर अब जाने क्या हो रहा है।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
किसी भी देश का संविधान उसकी राजनितिक व्यवस्था की वुनियादी ढांचा निर्धारित करता है जिसके अंतगर्त उसकी जनता शासित होती है।
संविधान ही राज्य की कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगो की स्थापना करता है।
भारत में नये गणराज्य का संविधान २६जनबरी १९५० को हुआ।
मुम्बई भी भारत के राज्य में से एक बहुत बडा शहर है इसलिए इसपर भी भारत का संविधान लागू होता है अत: मुम्बई की बीएमसी भी भारतीय संविधान के अंतगर्त आती है, जबकि बीएमसी का मतलब वृहमुम्बई कारपोरेशन है। यह भारत में सवसे वड़ा नगरपालिका है, बीएमसी मे लगभग एक लाख कर्मचारी हैं।
कुछ दिन पहले बीएमसी ने कंगना का दफ्तर ध्वस्त किया था अव उसके दफ्तर का निर्माणकार्य पर रोक लगाई है , और उसके घर को भी नुक्सान पहनंचाया है।अब नागरिकता कानुन पर बालीवुड भी बंटा नजर आ रहा है जिसकी वागडोर महाराष्टृ की सरकार के पास है लेकिन यहां तक संविधान की बात है मुम्बई की बीएमसी भारतीय संविधान से ऊपर नहीं है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
संविधान से ऊपर कोई नहीं हो सकता। संविधान से ऊपर जिस संस्था ने स्वयं को समझा है वह भूल गयी, कि उसका गठन भी संविधान के अनुरूप ही हुआ है। उसमें बैठे अफसर ,कथित राजनेताओं की कठपुतली बन गये। इससे न केवल उन अफसरों की गरिमा गिरी,वरन पूरी संस्था की ही छवि धूमिल हो गयी। बी एम सी ने जिस अफरातफरी में निर्माण को गिराने का काम किया। उससे पूरे देश में
बी एम सी पर उंगलियां उठ रही है।
- डॉ अनिल शर्मा अनिल
धामपुर - उत्तर प्रदेश
सत्य तो यही है कि भारतीय संविधान से ऊपर मुम्बई की बीएमसी तो क्या देश की की विधायिका,कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता के सशक्त स्तम्भ भी नहीं हैं और उस पर इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि बीएमसी ही नहीं बल्कि हर कोई मौके पर चौका मारने से पीछे नहीं हटता। जिससे लगता है कि संविधान से सब बड़े एवं ऊपर हैं।
जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति संवैधानिक अधिकार नहीं जानते। न्यायालय में बैठे न्यायाधीश 'न्याय' के स्थान 'निर्णय' करने पर विश्वास रखते हैं। जिसके कारण याचिकाकर्ता जीवन भर याचिकाएं दायर करते रहते हैं और युवा से वृद्ध होकर मर जाते हैं। किंतु दुर्भाग्य यह है कि याचिकाकर्ता को तारीख पर तारीख और उसके उपरांत 'न्याय' के स्थान पर 'निर्णय' मिलता है।
ऐसा इस ठोस आधार पर कह रहा हूं। क्योंकि मैंने न्याय के लिए अब तक निम्न याचिकाएं दायर कर की हैं। जिनके याचिका अंक एस.डव्ल्यु.पी.1387-ए/96, ओ.डव्ल्यु.पी. 689/96, ओ.डव्ल्यु.पी.18/98, एस.डव्ल्यु.पी. 2605/99, एस.डव्ल्यु.पी. 17/2000, एस.डव्ल्यु.पी.2542/2002, एवं.पी.ए. (एस.डव्ल्यु) 17/2007, अंक: 3530/1015/पीजी, अंक 6156/1122/2016 और एस.डव्ल्यु.पी. 1340/2020 हैं। परंतु उसके बाद भी न्याय नहीं पा सका। यही नहींं बल्कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के विषेशज्ञों के बोर्ड द्वारा मानसिक स्वस्थ घोषित करने के बावजूद केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन एसएसबी विभाग द्वारा 'पागल' की पेंशन अभी भी दी जा रही है।
इसके अलावा मैंने अपने प्रकाशित साहित्य: (1) वेयर इज कांस्टीचयूशन? ला एण्ड जस्टिस? (अंग्रेजी)
(2) कड़वे सच (हिंदी)
(3) मुझे न्याय दो (हिंदी)
(4) फिट्'टे मूंह तुंदा (डोगरी)
(5) मेरियां इक्की गज़लां (डोगरी)
(6) मैं अद्वितीय हूँ (हिंदी)
(7) व्यथा मेरी (हिंदी)
(8) राष्ट्र के नाम संदेश (हिन्दी) के माध्यम से भी अपनी व्यथाएं भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी एवं विभिन्न माननीय महामहिम राष्ट्रपतियों के समक्ष रखीं। किंतु अभी तक संवैधानिक अधिकारों से वंचित हूं।
अतः यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि संविधान अपनी प्रतिष्ठा खो रहा है और मुम्बई की बीएमसी ही नहीं बल्कि हर कोई अपने-आप को संविधान से ऊपर मानने का दुस्साहस कर रहा है। जिस पर गंभीर मंथन की अत्यंत आवश्यकता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
‘हम भारत के लोग, भारत को एक संप्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्रदान करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० “मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं.’ मेरे विचार में भारतीय संविधान से ऊपर कुछ भी नहीं है। बीएमसी भी इसी दायरे में आती है। बीएमसी द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई से भारतीय संविधान की अवमानना नहीं होनी चाहिए किंतु वर्तमान में कंगना रनौत पर बदले की भावना और जल्दबाजी में की गई कार्रवाई भारतीय संविधान के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करती है। बीएमसी किसी भी रूप में भारतीय संविधान से ऊपर नहीं है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
मुंबई की महानगर पालिका अपने कर्तव्यों पालन से अधिक कार्यों को सम्पादित करते जा रही हैं, भविष्य में क्या घटित होने वाला हैं, उसे चिंता नहीं, जो परिदृश्य में जो घटित हुआ, उसे सभी ने देखा और वृहद स्तर पर चर्चित हो गया। ऐसा प्रतीत होता हैं, कि वास्तविक नहीं, बल्कि व्यक्तिवाद का मुखौटा छल-बल पर केन्द्रित हो कर पतन की ओर अग्रसर हैं। अगर हम रणनीति के साथ चिंहांकित कर कदम उठाते हुए, आगे बढ़ते चले गये होते तो उसकी क्या हिम्मत होती, वाकशक्ति का उपयोग कर, चेतावनी देने की। वैसे भी निरंतर मुंबई में कुछ न कुछ व्यतीत होते जा रहा हैं, अभी तो कुछ आग बुझाने का प्रयास किया जा रहा हैं, दूसरा ज्वाला फूट गया हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
नही भारतीय सविधान से उपर कुछ भी नही मुम्बई की बीएमसी भी नही ।मानवीय संवेदनाओं को कुंठित मानसिकता केंद्र से लोत प्रोत अपनी लोभ के कारण सविधान का उल्लंघन करने वाले ये मुम्बई बीएमसी को न्यायपालिका को जबाब देना होगा।अवैध निमार्ण की प्रक्रिया को नियंत्रित करनेवाली यह मुम्बई बीएमसी ने जो कंगना के दफ्तर को तोडफ़ोड़ किया है।नोटिस जारी होने के मुताबिक किसी भी इंसान को कम से कम सात दिनों की मोहल्त देनी अनिवार्य है।परंतु सूत्रों के मुताबिक मुम्बई बीएमसी ने निंदनीय कार्य को अंजाम दिया है।सत्य सबसे उपर होता है अभिव्यक्ति की आजादी है भारत सविधान के अनुसार पर यहां सच्चाई की कोई कीमत नही।महाराष्ट्र सरकार अपने ही बजूद पर सबाल खड़ा कर रही और अपने छवि खराब कर रही है।भारतीय सविधान के अनुसार न्यायालय से नोटिस था कि 31सितंबर तक कोई कार्यवाही नही की जायेंगी ।पंरतु अहवेलना और स्वार्थ से भरपूर मुम्बई बीएमसी ने वहीं किया जो ठाना।ये मानवीय मूल्यों के साथ सविधान की भी अपमान है।किसी भी देश मे कानूनी प्रक्रिया की व्यवधान है जो सभी के लिए लागू होता है।सविधान हमारा हमे अपने कंर्तव्यो का और अधिकारो को पाने का स्तंभ है।मुम्बई बीएमसी ने दायरे और दायित्व से हटकर का कार्य किया है।जो की शर्मनाक और बेहद ही निंदनीय है ।बीएमसी के साथ महाराष्ट्र सरकार को भी इसका जबाव देना होगा।जो कि सरकार ने चुप्पी साध रखी है।पुरे देश मे आक्रामक और आक्रोश है ,किसी के आशियाने को पलभर मे धंव्स कर देना यह सविधान का साक्षात्कार नही ।और नियमित कानूनी प्रक्रिया की प्रावधान है।फिर भी बीएमसी का इसतरह रबैया मुगल शाशकों की याद दिलाती हैं।तानाशाही का बोल बाला सर चढ़ कर बोल रहा मुम्बई बीएमसी में।लोकतंत्र का कत्ल सरेआम किया जा रहा है।अभिव्यक्ति की आजादी पर भी शिकांजा कंसा जा रहा है।
मुम्बई बीएमसी भारतीय सविधान से कतई उपर नही।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
मुंबई क्या देश की कोई भी एमसी संविधान से ऊपर नहीं है। लेकिन बीएमसी की रवैया और करतूत से तो यही पता चलता है कि वो अपने आप को संविधान से ऊपर समझते हैं। जब कंगना अवैध निर्माण कराई थी तब बीएमसी कहाँ सोई हुई थी। उसके इस तरह की कार्रवाई से तो यही पता चलता है कि उक्त निर्माण के वक्त अपने कर्तव्य का पालन ठीक से नहीं की या उसके अधिकारी कर्मचारी पैसे लेकर अवैध निर्माण करने दिए। यदि वो सही में अवैध है।
अभी बीएमसी घर के अंदर तोड़फोड़ करने को कह रही है कर रही है। अपने घर के अंदर कोई कुछ परिवर्तन करें इसमें किसी एमसी को कुछ करने का अधिकार नहीं है।जब तक कोर्ट से कोई आदेश जारी नहीं होता। लेकिन बीएमसी तो सरासर अन्याय कर रही है। ये व्यक्तिगत भावना के तहत की गई कार्रवाई है। मुंबई ये ऐसे सैकड़ों अवैध निर्माण होंगे। सिर्फ कंगना रनौत के साथ ही ऐसा क्यों। आज सारा देश जान गया है कि बीएमसी किसके इशारे पर कार्य कर रही है।
पहले पुलिस फिर बीएमसी दोनों अपनी मर्जी का कर रहें हैं। लगता है ये दोनों अपने आप को सर्वोच्च समझ रहें हैं या किसी अपराधी ग्रुप के इशारे पर चल रहे हैं।या सस्ती लोकप्रियता पाने के होड़ में टीवी स्क्रीन और पेपर की सुर्खियां बने रहना चाहते हैं।
मुंबई बीएमसी का रवैया कतई उचित नहीं कहा जा सकता। वो कतई संविधान से ऊपर नहीं है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
9 सितंबर को जिस प्रकार भारतीय अभिनेत्री कंगना रनौत के दफ्तर की तोड़फोड़ की गई यद्यपि किसी प्रकार का अवैध कब्जा को हटाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार 30 सितंबर तक अवधि बढ़ा दी गई थी परंतु बीएमसी मुंबई ने अदालत की भी अवहेलना की है । 8 सितंबर सांय को कंगना राणावत के दफ्तर के बाहर नोटिस चिपका दी जाती है और 9 सितंबर को दोपहर से पहले पहले ही उसके दफ्तर में तोड़फोड़ करके उसके बहुमूल्य सामान को भी क्षति पहुंचाई जाती है। यह कार्रवाई पूरी तरह से बदले की कार्रवाई थी बदले की भावना थी। मुंबई सरकार के मंत्रियों और कंगना राणावत के मध्य जो बहस /वाद विवाद हुआ यह उसी का ही परिणाम है ।मगर यहां यह भी देखा गया है कि अदालत के आदेशों की अवहेलना हुई है ।बीएमसी मुंबई आज के दौर में अपने आप को संविधान से ऊपर मान रही है और अपने विरोधियों को कुचलने का हर प्रयास कर रही है । टीवी चैनल समाचारों के माध्यम से पूरे भारत में प्रतिक्रिया देखने को मिली है ।सभी ने इस कृत्या का विरोध किया है ।मुंबई में हजारों की संख्या में ऐसे अवैध निर्माण होंगे, कानून तो सभी के ऊपर एक जैसा होता है परंतु बदले की भावना का रंग कुछ अलग ही होता है यह जो कुछ भी घटित हुआ सब बदले की भावना के परिणाम स्वरूप हुआ । यह सत्ता शक्ति का ओछा प्रदर्शन माना जा सकता है । सत्ता शक्ति को मुख्यता देकर अदालत आदेशों को गौण माना गया।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
लोकतन्त्र की उत्पत्ति ही तानाशाही को रोकने के लिए हुई है। किसी भी लोकतान्त्रिक संस्था को संविधान के दायरे से बाहर जाने की अनुमति लोकतन्त्र में नहीं है। ऐसे मे बीएमसी जैसी संस्थायें जब संविधान की मर्यादा भंग करती हैं तो वह चिन्ता का विषय हो जाता है। मुम्बई की बीएमसी ने कंगना रानौत के कार्यालय मामले में जिस प्रकार से अलोकतांत्रिक कार्य किया है उससे यही प्रदर्शित होता है कि बीएमसी स्वयं को संविधान से ऊपर मानने की भारी भूल कर रही है।
लोकतन्त्र में संविधान से ऊपर कोई नहीं है चाहे वह कोई व्यक्ति हो, सार्वजनिक या सरकारी संस्था। अलोकतांत्रिक कार्य संविधान के प्रति विश्वासघात के समान है।
जब ऐसी संस्थायें जिनके ऊपर संविधान का पालन करने-कराने की जिम्मेदारी होती है, वही संविधान के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो आम जनता को विश्वास और सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?
इसमें तो कोई दो राय नहीं कि बीएमसी संविधान से ऊपर नहीं है। साथ ही, संविधान से ऊपर उठने वाले कार्य से उसकी विश्वसनीयता और संविधान के प्रति ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह भी लगता है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
भारतीय संविधान की उन विशेषताओं के बात करेंगे जो इस दुनिया के _दूसरे_ देशों के संविधान से अलग बताती है।
निर्माताओं ने कोशिश किए हैं कोई भी बात भविष्य में व्याख्या और विश्लेषण के लिए नहीं छोड़ी जाए। देश चलाने में अस्पष्टता के लिए जिन बातों की जरूरत थी उनको संविधान में जगह दी गई है।
संविधान की सर्वोच्चता संसदीय लोकतंत्र ,स्वतंत्र न्यायपालिका जैसी बातों को नहीं बदला जा सकता है।
लेकिन अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग प्रक्रिया के तहत बदलाव किया जा सकता है।
संविधान में तीन ऐसे अनुच्छेद है जिनमें हम आसानी से परिवर्तन कर सकते हैं।
महाराष्ट्र सरकार संविधान में संशोधन किए होंगे ,उसी के आधार पर बीएमसी
करवाई की होगी।
अगर संविधान में संशोधन नहीं हुआ है, और बीएनसी कोई अनुचित कार्य किए हैं तो न्यायालय द्वारा दंडित किया जा सकता है।
लेखक का विचार कोई भी व्यक्ति, संस्था, लोकतंत्र, न्यायपालिका, सभी भारतीय संविधान के अंदर होते हैं। हमारे देश में भारतीय संविधान सर्वोपरि है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
बीएमसी मुम्बई ने कंगना के पालीहिल के ऑफिस पर बुलडोजर चलाया है रिनोवेशन में लगे 40 करोड़ रुपये मिट्टी में मिल गए । भारत का संविधान हर नागरिक के लिए सर्वोपरि होता है ।
कंगना के वकील ने कोर्ट में इस वारदात के खिलाफ, मानहानि का मुकदमा दायर किया है ।
जिसमें इस नुकसान की भरपाई की मांग भी करेगी ।
शिवसेना बनाम कंगना का बदलापुर बन गया है ।
राजनीति लड़ाई बन गयी । कोर्ट की अनदेखी कर बीएमसी ने यह कारवाही करी है ।
21 वीं सदी में अभी भी संविधान में स्त्रियों की समानता का अधिकार नहीं मिला है । भारत , हिमाचल की बेटी के साथ शिवसेना सरकार का बदले का गलत क़दम निंदनीय है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
देश के संविधान से ऊपर कोई नहीं होता है । ये कार्यवाही बदले की भावना से प्रेरित होकर; नासमझी के तहत की गई है । जब शासक अपने कार्यों को सुचारू रूप से संपादित न कर पा रहा हो , मिलीजुली सरकार हो, कुर्सी बचाने की जद्दोजहद हो, योग्यता का अभाव हो, तो ऐसे ही निर्णय सामने आते हैं ।
अनावश्यक की वार्तालाप में उच्च पदाधिकारियों को जो शासन के प्रमुख हैं दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए । इतिहास गवाह है कि जब भी बिना सोचे समझे कटु वाक्यों का प्रयोग हुआ , अधर्म का बोलबाला हुआ तभी महाभारत जैसा युद्ध भी झेलना पड़ा है ।
शासकीय संस्थाओं को किसी दल के दबाव में न आकर स्वविवेक से नीति गत कार्य करने चाहिए तभी उनका सम्मान बचेगा व देशहितों की पूर्ति हो सकेगी ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
कंगना ने बीएमसी की तोड़ फोड़ के
खिलाफ मुंबई हाई कोर्ट में अपील की थी गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गुरुवार को 3:00 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई होनी थी
हाई कोर्ट ने 22 सितंबर तक के लिए सुनवाई टाल दी है कोर्ट ने मामले के दस्तावेज को 14 सितंबर तक कंगना को देने को कहा है वही कोर्ट ने 18 सितंबर तक के बीएमसी से लिखित मांगा है ।
-आरती तिवारी सनत
दिल्ली
" मेरी दृष्टि में " कोर्ट को बीएमसी के खिलाफ सख्त कारवाई करनी चाहिए । तभी मुम्बई सभी की होगी । वरन् मुम्बई का भविष्य कुछ ओर ही बोलेगा । सरकार आती - जाती रहतीं है । लोगों का विश्वास सविधान के ऊपर बना रहना चाहिए ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान
भारतवर्ष लोकतांत्रिक प्रणाली वाला देश है। इसमें संविधान को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उसी के अनुसार कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका चलती है। वीएमसी मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन एक स्थानीय संस्था है जोकि संविधान के अधीन कार्य करने को विवश वह संविधान से ऊपर कभी नहीं हो सकती।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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