वरिष्ठ लघुकथाकार पारस दासोत की स्मृति में ऑनलाइन लघुकथा उत्सव





भारतीय लघुकथा विकास मंच ने वरिष्ठ लघुकथाकार पारस दासोत की स्मृति में ऑनलाइन " लघुकथा उत्सव "  आयोजन रखा है । 
           पारस दासोत का जन्म 14 अगस्त 1945 बड्ड ( राजस्थान ) में हुआ है । इन की शिक्षा एम.ए. , एल.एल. बी है । इन के प्रकाशित लघुकथा संग्रह सीटीवाला रबर का गुडूडा , एक और अभिमन्यु , कदम बढाती चूडियाँ , पुस्तक की आवाज , तेरी मेरी उसी बात आदि लगभग 18 संग्रह प्रकाशित हुए हैं । इन्हें अनेकों संस्थाओं ने सम्मानित किया है । जैमिनी अकादमी ने 2005 में " हिन्दी सेवी सम्मान " से सम्मानित किया है । इन की मृत्यु 13 सितम्बर 2014 में हुई है ।
           स्मृति में "  पशु पक्षी " विषय पर लघुकथा आमंत्रित की गई । जिसमें लगभग चालीस लघुकथा प्राप्त हुई हैं । फिलहाल ग्यारह लघुकथाओं को सम्मानित किया जा रहा हैं : -
     गिरगिट     
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      ब्रह्मा जी के दरबार में आज अजब नजारा था। आज तक मानव जाति ही अपनी समस्याओं को लेकर यहाँ आती थी और ब्रह्मा जी का अधिक समय तो मानवों की समस्याओं में ही बीत जाता था।पर आज पहली बार सम्पूर्ण गिरगिट समाज एकजुट होकर आया था। सारा देवलोक अचम्भित था। ब्रह्मा जी ने पूछा ,हे प्राणी ! आप को क्या कष्ट है?जो आप सब इतनी कष्टप्रद यात्रा करके यहाँ पधारे?
     सब से वृद्ध गिरगिट ने हाथ जोड़कर कहा, प्रभु !आपने जो हमारे प्राणरक्षा के लिए रंग परिवर्तन की नैसर्गिक शक्ति हमे प्रदान की थी ,हम चाहते हैं यह शक्ति आप हम से वापस ले लें।ब्रह्मा जी को घोर आश्चर्य हुआ,बोले " हे प्राणी ,वह तो प्राकृतिक विपदा एवं  प्राणरक्षा के लिए मात्र आपको मिली हैं"।वृद्ध गिरगिट ने विनम्रता से कहा,प्रभू आप सही कह रहे हैं और हमने उन शक्तियों का कभी दुरूपयोग भी नहीं किया। पर अब मानव जाति हमे बदनाम कर रही है।वह अपने निजी छोटे -छोटे स्वार्थों के लिए प्रतिक्षण रंग बदलती है और हमारी जाति को बदनाम करती है। इसीलिए आप हम से यह शक्ति वापस ले लीजिए ।
      -  ड़ा.नीना छिब्बर
          जोधपुर - राजस्थान
स्पेस 
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चिड़िया  ने बॉलकोनी में रखी आलमारी के ऊपर   घोंसलें में दिए तीन अंडों की   सेने की प्रक्रिया के बाद नवजातों की  चीं - चीं की आवाज सुन के छत ने  खुशी से  जच्चा रानी चिड़िया को कहने लगी  - " तुम इंसानों से कितनी अच्छी हो . तुमने मादा और नर का बिना लिंग जांच करे और बिना लैंगिक भेदभाव के ही वंश को बढ़ाया है  . आज तो इंसान नारी के  गर्भ में कन्या के  होने से कन्या भ्रूण  हत्या जैसा पाप कर रहा  है . सचमुच  चिड़िया रानी ! तुम तो समाज और संसार में कुदरत के जीने के अधिकार का मानवीय अहसास जगा रही हो . " 
तभी मुस्कुराती हुईं   हवा ने  अलमारी  को कहा , 
 " बहन   ! तुमने   चिड़िया को संरक्षण देकर अच्छा ही किया । जिससे चिड़िया की प्रजाति  विलुप्त  होने से बच  गयी । "
चिड़िया ने अपने बच्चों को गले लगाते हुए हवा , अलमारी और छत से कहा - 
" प्यारी सखियों ! इंसानों ने अपने स्वार्थ के लिए पेड़ काट के कंक्रीट के जंगल बना दिए हैं . जिससे हम विलुप्त होने के कगार पर हैं . इंसानों के दिल भी कंक्रीट के मकानों की तरह निष्प्राण  हो गए है.  उनकी संवेदना तो मर गयी है . अब हमारे रहने के लिए स्थान ही नहीं बचा है . सखी अलमारी तुमने   मुझे रहने के लिए  स्पेस दी , मैं सदा आपकी आभारी रहूँगी । मेरे बच्चों को तुम दोनों  मौसी भी मिल गयी ।
यह सुन के छत , अलमारी और हवा ने  आत्मीयता से चिड़िया को कहा - 
" बहना चिड़िया  ! यहाँ पर निश्चिन्त होकर जब तक  तुम चाहो रह सकती हो  । यह तुम्हारे बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान है और महत्त्वकांक्षी इंसानों ने जंगल काट के  सीमेंट की गगनचुंबी इमारतें बनाकर तुम्हारा  अस्तित्व को  खत्म करने में लगे  हैं ।
 चिड़िया रानी  ! पेड़ों के न रहने से चारों ओर कैसी ग्लोबल वार्मिंग हो रही है . पर्यावरण भी खतरे की घंटी बजा रहा है . ऐसा लगता है  कि इंसान का प्रकृति से कोई  संबंध ही न हो ।"  
वहाँ रह रहे कुत्ते ने उनके आत्मीय संवाद सुन के उसे अपने वे पल याद  आ गए जब मेरी  मालिकन  राधा   ने मुझ  नवजात पिल्ले को बारिश में  सड़क से उठाकर  अपने घर और मन में स्पेश दी थी । आज मालकिन की वजह से मुझे पुनर्जीवन  मिला है ।
तभी बॉलकोनी में   गर्म हवा का झोंका आया ,  जो तपते सूरज की ओर इशारा कर रहा था ।
हवा ने नवजात की   गोद उठाने  , चिड़िया को हरीरा खिलाने  की रस्म को  निभाते हुए  चिड़िया के नवजात शिशुओं को  गोद में ले के सोहर गाने में मस्त हो गयी । अलमारी ,  छत और  कुत्ता भी  हवा के साथ मिल के उनके स्वस्थ जीवन की कामना कर  ताली बजाकर गाने  लगे !
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई -महाराष्ट्र

कोम्प्रोमाईज़
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“ क्या बात है आज बड़े खुश दिख रहे हो ? “ 
“ हां ! आज मुझे बहुत ख़ुशी मिल रही है । “ गुर्राते हुए पग ने अपने दोस्त डॉबरमैन को बोला । 
“ आज मैडम की माँ अपने घर वापस लौट गयीं । बड़ी आयीं थी मुझे मैडम से दूर रखने के लिए । मुझे दुत्कारते हुए भगाया था कि नई बेबी के पास मत आना । “
“ अब देखो , मैडम की बेबी को तो उनकी आया देखती हैं और मैं मैडम के साथ रहता हूँ । "
दोनों कुत्ते एक दूसरे को देखकर ज़ोर से ठहाका लगाते हैं ।
 " अरे भाई मैडम को भी तो अपना फिगर ठीक करने के लिए सुबह - शाम पार्क में जॉगिंग करने तो जाना ही है इसलिए घर और बाहर मैं ही उनके साथ रहता हूँ । " 
ठंढी सांस लेकर डॉबरमैन अपनी मालकिन को देखते ही बोलता है “ यार ! ये पैसे वाले भी बड़े अजीब होते हैं । मेरी मालकिन का तो मैं इकलौता वारिस हूँ । मुझे अपने घर में कभी कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना पड़ता ।“
- सारिका भूषण
राँची - झारखंड

तीन बंदर
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विधान भवन स्थित गाँधी जी की मूर्त्ति के सामने तीनों बंदर अपनी चिर परिचित मुद्रा में बैठे हुए थे।मगर वे आज कुछ परेशान-से लग रहे थे और लगातार अपना सिर हिला रहे थे।
देखते-ही-देखते वहाँ नेताओं की भीड़ लग गयी।सभी उन्हें सिर हिलाते देख अपने-अपने अर्थ और निष्कर्ष निकालने लगे।
एक युवा नेता ने कहा - " ये गाँधी जी से माफी माँग रहे हैं। "
दूसरे वरिष्ठ नेता ने कहा - " नहीं।ये गाँधी जी से कह रहे हैं कि अब आपकी नैतिक शिक्षाओं की कोई जरूरत और महत्ता नहीं रह गयी है।
तीसरे वयोवृद्ध नेता ने कहा - " नहीं।नहीं।तुमलोग नहीं समझ पा रहे हो।एक बंदर अपने मुँह पर हाथ रखकर कह रहा है कि कहीं भी कुछ गलत होते देखो, तो चुप रहो।दूसरा बंदर अपने कान बंद करके कह रहा है कि किसी की बात मत सुनो।तुम्हें जो जी में आए करो।और तीसरा बंदर अपनी आँखें बंद करके कह रहा है कि जब कहीं सत्य से सामना हो, तो आँखें मूँद लो। "
- विजयानंद विजय
बक्सर - बिहार

      बकरे की मां     
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नन्हें इकबाल के यहां बकरी ने जब दो मेमनों को जन्म दिया तब परिवार के सभी सदस्य खुशी से झूम उठे। अम्मी-अब्बा, रूखसाना, चाचा-चाची सभी । इकबाल को इन सबकी ख़ुशी का कारण समझ में नहीं आ रहा था । उसे तो बस मेमनों के रूप में दोस्त दिखाई दे रहे थे, जो उसे प्यार से मिट्टी मारेंगे, गुदगुदाएंगे । वह उनके साथ खेलेगा और बहुत मजा आएगा । प्यारे-प्यारे सफेद रंग के मेमने और एक मेमने के माथे पर काले रंग के टीके के साथ अल्ला का फजल मिला था । वह लगातार बकरी और मेमनों की गतिविधियां देख रहा था अचानक उसका ध्यान बकरी की आंखों की ओर गया । उसे लगा बकरी की आंखें भिगी हुई है । उसने बकरी के और पास जाकर देखा- "अरे, बकरी तो रो रही है ।" उससे रहा नहीं गया वह दौड़ा-दौड़ा दादाजान के पास पहुंचा और अपनी बात उनके सामने रखी -" दादाजान, मेमनों को दुलारते हुए बकरी क्यों रो रही है ।" दादाजान अपने पोते के प्रश्न से अचंभित हुए पर वास्तविक स्थिति छुपाते हुए उन्होंने कहा-"शायद बकरी के आंख में कुछ लग गया होगा ।" 
"नहीं दादाजान, मैं तो वहीं था ।  उसे लगता तो मुझे भी दिखाई देता ।" इकबाल अपनी बात पर अड़ा हुआ था । " एक बात और बताईए दादाजान, मेमनों के पैदा होने पर सभी लोग खुश क्यों हो रहे थे ?"
दादाजान ने एक ठंडी आह लेकर अपने पोते को समझाया -"बेटा, ये सभी मेमनों के आ जाने से बकरा ईद पर बकरे खरीदने की समस्या से निजात पा गए और हां बेटा, जहां तक बकरी के रोने की बात है तो यह कहावत मशहूर है कि बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी । इसलिए वह उनकी सलामती की दुआ में आंसू बहा रही है ।"
"दादाजान, मैंने जबसे इन मेमनों को देखा है मैं तो उन्हें अपना दोस्त मान चुका हूं । मैं उन्हें इन सबसे दूर रखूंगा और कोई इन्हें मारने ले जाएगा तो बोलूंगा " पहले मेरी गर्दन उतारो, फिर मेरे दोस्तों की उतारना ।" यह कहते हुए मासूम इकबाल फफक-फफक कर रोने लगा । उसका रोना सुन परिवार के सभी सदस्य उसे चुप कराने लगे । दादाजान ने जब उसके रोने का कारण सबको बताया तो सभी ने एक स्वर में कहा- " हम सभी इकबाल के दोस्त मेमनों को बकरा ईद का बकरा नहीं बनाएंगे ।"        
मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश

 देशभक्ति 
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पाकिस्तानी बॉर्डर के पास आतंकी हमले में एक जवान बुरी तरह जख्मी हो गया था। अर्धमूर्छित अवस्था में पड़ा हुआ जवान बीच-बीच में  कराह  भी रहा था। तभी एक विदेशी नस्ल का बाज वहां मंडराते हुआ आया और जवान पर टूट पड़ा, उसे अपनी चोंच एवं पंजों से नोंचने लगा। दृश्य इतना भयावह था कि बाज जैसे जवान की आंखें फोड़ उसका सारा मांस नोच लेगा। हमारे देश के पक्षियों ने इस दृश्य को देखा तो वे संकट की घड़ी से जवान को बचाने के लिए जोर-जोर से शोर करते हुए अन्य पक्षियों को बुलाने लगे। देखते-देखते वहां पक्षियों का समूह आ गया, उन्होंने  उस बाज को घेरकर अर्धमूर्छित कर दिया था।  सभी पक्षियों ने जवान के चारों ओर सुरक्षा घेरा बना लिया था। आर्मी के कुछ जवान वहां आ गए थे। जवानों ने देखा कि पक्षियों का समूह जवान की सुरक्षा में तैनात है एवं एक विदेशी नस्ल का  बाज  अर्धमूर्छित पड़ा हुआ है। उनके रोंगटे खड़े हो गए थे प्रकृति का अद्भुत नजारा देखकर। वे सारी स्थिति समझ गए थे। उन्होंने सभी पक्षियों को सलामी दी क्योंकि उन्होंने एक जवान को मरने से बचा लिया था।
-प्रज्ञा गुप्ता 
 बाँसवाड़ा - राजस्थान

                                      हुनर                                
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शशि का मकान तालाब के पास था तथा मकान का एक कोना सरकारी भूमि का पर था। सब ठीक चल रहा। समस्या तब बनी जब उसके घर के पास से एक छोटी-सी सड़क मार्ग निकल रहा था। पैमाइश होने पर राजस्व विभाग के पटवारी ने शशि के मकान का एक कोना अबैध पाया। शशि बडा विद्वान था हर समस्या का तोड जानता था। परंतु इस समस्या का तोड ढुंढे से नहीं मिल रहा था साथ में कोर्ट कचहरी के चक्कर में जूते अलग से घिस रहे थे। 
एक दिन अचानक शशि के मकान की मुंडेर पर गौरैया बैठी। शशि ने गौरैया को देखा कि कितनी सुंदर है तत्काल उसके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न इस तालाब के जल भंडारण की रक्षा की जाए।
उसने पंचायत के नुमाइंदों को सुझाव दे दिया। इस तालाब और जल भंडारण की रक्षा की जाए ताकि गौरैया आदि पक्षी अपना जीवन बसर कर सके। इस बहाने शशि ने अपने मकान के अबैध कब्जे का तोड निकाल कर पर्यावरण प्रेमी भी बन गया।
- हीरा सिंह कौशल 
 मंडी - हिमाचल प्रदेश 

       कुत्तिया और मां    
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     घर के फोन की घंटी बजी तो रामू तुरंत भाग कर ड्राइंगरूम में गया ।
"रामू ध्यान से सुनो, अपने जॉनी को पैट- क्लीनिक में ले जाना ,शायद इसके पेट में दर्द है। क्लब जाते हुए रास्ते में भौंकता रहता है।"
    "जी मैम साहब ",हुकम सुन कर रामू फोन रख देता है ।
तभी बालकनी में उसे साहब की मां खांसती  नजर आई ।उसका माथा ठनक गया ।
  "मां सारा दिन खां-खां करती रहती है इसकी दवा- दारू की चिंता किसी को नहीं ,,,,,"।
  यकायक उसके मुंह से निकल गया,"  काश, साहब की मां ने कुत्तिया के रूप में जन्म लिया होता।" 
          - मधुकांत       
     रोहतक - हरियाणा

ततैया का घर
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    "सुनो जी,ये जो छत के कोने में जो ततैयों ने अपना घर बना लिया है,उसको हटा देना चाहिए न ?"
    "हां बिलकुल"
    "पर क्या पाप नहीं लगेगा ?"
  " कैसा पाप?अरे घर तो हमारा है।ततैयों ने तो ज़बरदस्ती अतिक्रमण कर रखा है ।"
     "तो,तो हम उनके घर को संडे को हटा देते हैं।"
     "ठीक है "
   और वर्मा जी ने संडे को एक लकड़ी के सिरे में केरोसीन से भीगा कपड़ा बांधकर,उसमें आग लगाकर ततैयों के छत्ते को जला दिया ।कुछ ततैयां जल गईं,और कुछ बचकर भाग निकली थीं ।इस बात को दो साल बीत गए हैं। परिदृश्य बदलता है ,और वर्मा जी से आकर एक सरकारी कर्मचारी मिलता है।
         "वर्माजी,आपका यह मकान सरकारी ज़मीन पर बना है,इसे एक सप्ताह में आप हटा दीजिए,नहीं तो इसे नगर निगम का बुल्डोजर आकर गिरा देगा ।यह लीजिए नोटिस ।"
"पर,मैंने तो इसे बिल्डर से ख़रीदा है ।"
"उसने आपको धोखा किया।उसने इसे ग़ैर कानूनी तरीके से बनाया था।यह तो सरकारी ज़मीन है ।
     वर्मा जी ने बहुत भागदौड़ की,अदालत गया,अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाया,पर कुछ न हुआ,और मियाद ख़त्म होते ही सरकारी बुल्डोजर ने आकरउसका मकान गिरा दिया ।वह रो-पीटकर चुप हो गया।
       सरकारी बुलडोजर तो अपना काम करके चला गया था,पर वर्माजी व उनकी पूरी फेमिली अपने टूटे फूटे मकान के अवशेष के पास आ-आकर कई दिनों तक रोते बिलखते रहे थे ।वर्मा जी,दो साल पुरानी यादों में पहुंच गए,जब उनके व्दारा ततैयों के घर को उजाड़ देने के बाद ततैयां किस तरह से बदहवास होकर उस उजड़े के चारों ओर चक्कर लगाती रही थीं ।
      वर्मा जी,आज ततैयों के दर्द को ,अपन दरद मानकर शिद्दत के साथ महसूस कर रहे थे,और अपने को अक्ष्म्य अपराधी मान रहे थे।
                 - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
                          मंडल - मध्यप्रदेश

जँजीर की विवशता
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पहले कुत्ते ने दूसरे कुते की तरफ देख कर कहा,-"यार,इस तरह दूसरों की जंजीर मे बंध कर अपना जीवन क्योँ बरबाद कर रहे हो?मेरी तरह आजाद रहो...कब तक अपनी वफादारी दूसरो के टुकड़ों पर बेचते रहोगे?"
दूसरा कुत्ता बोला-"पार्टनर, मैं तो अपने मालिक को छोडना चाह रहा हूं, पर मालिक ही मुझे नहीं छोडता।कल कह रहा था,अब तुम ट्रैंड हो गये हो...याद है न तुम्हें, मैंने जिन लोगो की लिस्ट तुम्हें दी है,उन पर तुम्हें मुझसे पूछे बिना ही भौंकना है।"
पहला कुत्ता फिर बोला,"यानि कि तुम आदमी के ईशारों पर जी रहे हो?भौंकना तो हमारा जातीय संस्कार है बास....लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि आदमी हमेँ सिखाये कि हमे किस पर भौंकना है।"
दूसरा कुत्ता संयत स्वर मे बोला,"सही कहते हो भाई....जंजीर की विवशता वही समझ सकता है,जिसके गले मे जंँजीर होती है।अपने मालिक की रोटी पर पलने पर भी मैं तुम पर भौंक नहीं रहा हूं, यही क्या कम है।"
- महेश राजा
 महासमुंद - छत्तीसगढ.

           माता         
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 स्कूल के कराटे ट्रेनर कुछ छोटे लड़के लड़कियों को साथ लेकर एक दूसरे स्कूल में टूर्नामेंट खेलने गए थे. जाते समय स्कूल बस बिल्कुल ठीक थी. लेकिन जब टूर्नामेंट खत्म हुई और सभी बच्चे व ट्रेनर बस तक पहुंचे तो ड्राइवर ने यह कह कर इतिश्री कर दी. कि बस खराब हो गई है, और अभी ठीक होने की संभावना भी नहीं है.अतः आप बच्चों को किसी दूसरे साधन से स्कूल तक ले जाएं. थके हारे बच्चे अपना मुंह लटकाए ट्रेनर सर की ओर देखने लगे. जीत का उत्साह उन्हें जल्दी घर पहुंच कर अपने परिवार के साथ बांटना था. सर उन बच्चों को लेकर पास के बस स्टॉप तक पैदल चलने का आग्रह कर बैठे. सभी  बच्चे के थके कदमों से गले में मेडल डालें बस की ओर चलने लगे.तभी अचानक तेज झमाझम बारिश चालू हो गई. बच्चों ने देखा कि बस स्टॉप के शेड में दो बड़ी गाय खड़ी थी. गाय ने उन बच्चों को अपनी ओर आते देखा तो एक गाय दूसरी गाय से बोली.., "बहन देखो छोटे-छोटे बच्चे आ रहे हैं. और बारिश में भीग चुके हैं. हमें यह शेड उनके लिए खाली कर देना चाहिए. इधर गाय को देख एक बच्चा बोला..., सर बस के शेड में तो गायें खड़ी है, मैं जाकर भगाता हूं, ताकि हमें जगह मिल सके.उसके कहने से पहले ही दोनों गौ माता सड़क पर खड़ी भीगने लगी. सर उन्हें देख सोचने लगे आखिर है तो गौ माता और हर मां अपने बच्चों का ख्याल तो रखती ही हैं।  
         -  वंदना पुणतांबेकर 
                इंदौर - मध्यप्रदेश

यक्ष प्रश्न
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प्यार से मुर्गे की पीठ सहलाते हुए उसके मालिक ने कहा, अभी-अभी खत्म हुए युद्ध में जीत का सेहरा तुम्हारे सिर पर बंधा, फिर भी तुम इतने उदास क्यों? जीत का भाव तो दामन को खुशियों से भर दिया करता है? 
मुर्गे ने दृढ़ता पूर्वक घोषणा की- आज से मैं वैरागी हुआ! तुम जिसे जीत कहते हो, वह मेरे लिए कोई मोल नहीं रखती! आदमी की खुशी के लिए मैं और मेरा जाति भाई एक दूसरे पर वार करते हुए लहूलुहान होते रहे, बिलबिलाते रहे! खूनखराबे के लालची दर्शक वाहवाह करते हुए नोट उड़ाते रहे! हमें घावों की सौगात मिलती रही! यह सिलसिला जारी रहा जब तक कि हम में से एक धरती नहीं चाट गया! मुकाबले के बाद मेरे प्रतिद्वंद्वी का मालिक, खा जाने वाली नज़रों से मुझे घूर रहा था! आप बताएं, हमें क्या मिला? आदमी ने दिल बहलाया, जेब  भी उसी की भरी, शोहरत भी उसी के हिस्से आई! हम जानवर लड़ें, मरें, क्यों? किसलिए? 
- कृष्णलता यादव
गुरुग्राम - हरियाणा

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पटल :- भारतीय लघुकथा विकास मंच। 
आयोजन :- वरिष्ठ लघुकथाकार आदरणीय पारस दासोत की स्मृति में आनलाईन लघुकथा उत्सव। 
विषय :- पशु पक्षी पर आधारित लघुकथा। 
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शीर्षक :-        **घर छिनने की पीड़ा**

     सेठ अनुभवीलाल की अनुभवी दृष्टि ने भांप लिया था कि यदि छ: लेन सड़क उनके बाग के बीच से निकले तो उनके वारे-न्यारे हो जायेंगे। उन्होंने अपने पैसों की ताकत से बाग के बीच से सड़क के गुजरने की मंजूरी सरकारी महकमों से ले ली। पेड़ काटने की अनुमति जैसे दुष्कर कार्य को भी वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों ने रिश्वत लेकर सरल बना दिया।
     निश्चित दिन को पेड़ों को काटने का कार्य करने वाली टीम आ गयी। बाग में चहल-पहल देखकर पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों में व्याकुलता उत्पन्न हो गयी। ईश्वर ने जो बौद्धिक क्षमता उन्हें दी थी, उससे पक्षी समझ गये कि उनका बसेरा छिनने वाला है।  बाग की वह धरती, जो इन पक्षियों के कलरव से चहचहाती थी, कराहने लगी और पक्षियों का रुदन न्याय की भीख मांग रहा था। पर इन सबसे निष्ठुर लालची सेठ और भ्रष्ट अधिकारियों को कुछ सरोकार नहीं था। 
     परन्तु वन्यजीव प्रेमियों तक पक्षियों की कराहट और रुदन पहुंच गया। तत्काल ही न्यायालय में उचित तर्कों के साथ गुहार लगाई गयी। न्यायालय से भेजी गयी समिति ने पाया कि इस सड़क को बाग के पास की शुष्क जमीन से होकर बनाने में कोई बाधा नहीं है। 
     माननीय न्यायालय ने तत्काल आदेश जारी कर सड़क के कार्य को प्रारम्भ होने से पहले ही रोक दिया। इस प्रकार वन्यजीव प्रेमियों की सक्रियता से बाग में रहने वाले पक्षियों को समय रहते 'घर छिनने की पीड़ा' से छुटकारा मिल गया। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड

पुनर्वास
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आज मार्ग चौडी़करण के लिए बहुत से पेड़ काट दिये गए थे पक्षियों द्वारा कोई प्रतिरोध भी नहीं!वैसे भी उन्हें बेदखल करने के नोटिस की भी जरूरत नहीं और वे अपने आशियानों की रखवाली के लिए  तैनात भी नहीं रहे, वह बरगद का पेड़ भी काट दिया गया, जिसपर असंख्य परिंदे अपना आशियाना बनाए हुए थे।साथ ही आसपास बस गई झोपड़ियों,कच्चे-पक्के मकानों और गुमटियों को भी बेदर्दी से बुल्डोजर, घन-हथोड़ी की सहायता से असंख्य पुलिस बल तैनात कर प्रतिरोध के बावजूद नेस्तानाबूद कर दिया गया।
संध्याकाल में जब परिंदे वापस लौटे और ठूंठ हो चुके पेड़, उजड़े आशियानों को देखकर असमंजस में थे तो दूर कहीं से आए पक्षियों के झुंड उन्हें अपने साथ लेकर चल दिए उनके पुनर्वास के लिए और अपने ठिकानों वाले पेड़ों पर पनाह दे दी।इधर झुग्गी -झोपड़ी,कच्चे-पक्के मकानों मे रहने वालों और गुमटियों में धंधा करने वालों के बीच कोहराम मचा हुआ था,दुख-दर्द, आँसू और बेबसी थी,लोग उनके साथ हुए अन्याय का मोबाइल पर वीडियो बनाने में व्यस्त थे तो कुछ लोग सोशल मीडिया पर उनका दुख दर्द बांटने में तल्लीन थे।कुछ विरोध पक्ष के लोग उनके पुनर्वास हेतु सत्ता पक्ष और प्रशासन के खिलाफ नारे भी लगा रहे थे।
- डॉ प्रदीप उपाध्याय
देवास - मध्यप्रदेश

पैंतरा
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            किसी जलाशय में कई मछलियाँ रहती थीं . आकार तो तकरीबन  एक पर रंग सबके अलग-अलग थे. बुद्धिजीवी, सरल, ईमानदार, चालाक. केवल एक ऐसी थी जो अपने धूर्तरंग के कारण "बड़ी" के नाम से जानी जाती थी. शेष सब छोटी कहलाती थीं.
          बड़ी मछली की केंद्र के सभी जलाशयों में अच्छी पकड़ थी और वहाँ के मछुवारों से अच्छी जान- पहचान,  तो उसकी चलती भी खूब थी. एकाध बार कई छोटी मछलियों ने रंग बदलना चाहा परंतु मुँह की खानी पड़ी. कभी-कभी रातों रात केंद्र के मछुवारों के हवाले भी कर दी जातीं . 'छोटी ' सभी परेशान.  'बड़ी'का भय व्याप्त था. कई बार छोटी मछलियों ने समझौता करना चाहा, पर बड़ी ने उन्हें अपने ग्रुप में शामिल नहीं किया. छोटी मछलियों ने , 'यूनियन' भी बनायी लेकिन बड़ी हर बार ऐसी चाल खेलती कि फूट पड़ जाती .
         इसी समय पेपर में ख़बर छपी. अन्तर्राष्ट्रीय जलाशय हेतु भारत से एक मछली प्रतिनिधि के रूप में विदेश भेजी जायेगी. बड़ी की सरगर्मी तेज हो गई. तालाब से मछलियाँ इन दिनों ज्यादा ही गायब होने लगी. अंत में केंद्र से बड़ी मछली का नाम प्रस्तावित हो गया.
        अख़बार में यह खबर पढ़कर बुद्धिजीवी बेचैन हो गई. दिमाग दौड़ाया. छोटी मछलियों के हित हेतु गोष्ठी का आयोजन किया. अंततः तय हुआ कि जितनी इस जलाशय में बची हैं उनका एक प्रतिनिधि चुना जाये, तभी बात केंद्र तक पहुँच सकती है. बुद्धिजीवी ने विपक्ष का कार्यभार संभाल लिया. सबूत इकट्ठे किये . बड़ी मछली के ख़िलाफ़ रोज छपने लगा . बड़ी बेहद परेशान . कहीं ऐसा ना हो "विदेश" जाने से पहले ही उसके व्यक्तित्व में कोई धब्बा लग जाये. छोटी की नेता बाजी मार ले जाये तब.........
        विषय गंभीर था. बड़ी ने केंद्र में बात की. पकड़ का फायदा उठाया. समझौता हो गया.
        लोगों ने पेपर में पढ़ा......     
" बड़ी मछली के साथ सहायक प्रतिनिधि का पद संभालने हेतु छोटी मछली विदेश रवाना."
         विमान में  दोनों मन ही मन खुश हो रही थीं. 
- अर्चना मिश्र
 भोपाल - मध्य प्रदेश   

ममता 
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      माँ और अप्पा सुबह ही किसी आवश्यक कार्य से शहर से बाहर गये हुए थे। घर पर रचित और रचना थे।
       अच्छे-भले दोनों मिल कर लूडो खेल रहे थे। न जाने किस बात पर दोनों भाई-बहन ऐसे भिड़े कि मार-पीट भी कर बैठे।
        दोनों बाहर बरामदे में आकर बैठ गये। बातचीत करने का तो प्रश्न ही नहीं था।
         घर का डॉगी चुपचाप देख रहा था। उसे लग रहा था कोई बात अवश्य है, तभी तो वे न उसे पुचकार रहे हैं, न उसके साथ कोई सेल्फी ले रहे हैं।
         वह उठा और उसे दी गयी रोटी के दो टुकड़े मुँह में दबा कर लाया और दोनों की गोदी में एक-एक टुकड़ा रख, दोनों के बीच में उनसे लग कर बैठ गया।
         उसके इस माँ के ममता जैसे भाव को देख दोनों को हँसी आ गई। मोबाइल से वे उसके साथ सेल्फी लेने लगे। उसकी लगातार हिलती पूँछ उसके हर्ष को व्यक्त कर रही थी।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड 

आत्मीयता
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 पवन के घर में अमरूद के पेड़ पर चिड़िया का घोंसला बना हुआ था। उसी पेड़ के नीचे पवन की दो गाय बंधी रहती थी। चिड़ियों ने गाय के भूसे में से तिनका- तिनका  जोड़ जाड़ कर वहां घोंसला बनाया था और जो चारा, अनाज गाय खाती थी; उसी में से वह चिड़िया चुन- चुन कर दाने अपने घोसले में रख आती थी। 
एक दिन पवन का बेटा अपने साथियों के साथ डंडे से अमरूद तोड़ने लगा। डंडा घोंसले पर लगा और नीचे गिर पड़ा। चिड़िया चीं चीं करती उड़ती रही। गाय को भी यह सब बुरा लगा और वह खूंटा तोड़ने की कोशिश करती हुई जोर-जोर से रंभाने लगी ।
                    उधर फल प्राप्ति की स्वार्थ- सिद्धि में बेचारी चिड़ियों की किसे परवाह थी। कुछ देर चीं चीं करती घूमती फिरती परेशान दोनों चिड़ियां कभी गाय के सींग पर ,तो कभी पीठ पर फुदकती रहीं। गायें उसका दर्द समझ रही थीं। 
         उसने मालिक के द्वारा दिए गए चारे को मुंह नहीं लगाया और उदास अनमनी होकर अपनी गर्दन नीचे टिका कर अपनी पीठ पर बैठी चिड़ियों  के बारे में सोचने लगीं।
    शाम तक गाय के द्वारा कुछ भी ग्रहण न करना, बेटे से चिड़िया का घोंसला टूटना और दुखी चिड़िया को पूरे दिन गाय द्वारा अपनी पीठ पर बैठाए रखने के कारूणिक दृश्य को पवन और उसके परिवार ने महसूस किया।
 - डाॅ.रेखा सक्सेना 
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश

परिन्दो का घर
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सूरज की पहली किरन मेरे आंगन पांव में धरती कि ये पंछी भी गाते गुनगुनाते मेरे आंगन में उतर आते । मै सुबह ही जौ ,चना ,बाजरा बिखरा देती और चाय का प्याला लेकर बाहर आ जाती और इन सबको निहारती रहती।कभी इन पन्छियो की तरह मेरा घर भी गुलज़ार रहता था ।
मेरे दो बेटे इसी आंगन मे ही तो खेल कूदकर बड़े हुए पर पढ़ लिखकर इन कबुतरो की तरह  ही उड़ गये परदेस आसमान जो छुना था उन्हे भी।
 फिर रह गये हम दोनो अकेले इतनी बड़ी हवेली में हम दोनो बोर होने लगे और एक दिन बाहर अनाथ आश्रम " परिन्दो का घर" का एक बोर्ड लगा दिया मेरे पतिदेव ने  और आज मेरे घर मे अन्दर आठ छोटे बड़े बच्चे रहते है और  आंगन  इन पन्छियो से गुलजार । चाय का कप खाली करके उठी कि तभी गेट पर बैल बजी  तो देखा गोद में एक नन्हा सा परिन्दा लिये चले आ रहे थे मेरे पतिदेव लो सम्भालो एक और नया मेहमान आया है ।
- अपर्णा गुप्ता
लखनऊ - उत्तर प्रदेश

प्यार के भूखे
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घर में आगमन होते ही वह कभी इस पायदान पर तो कभी उस पायदान पर डरा सहमा सा बैठ जाता। आज़ उसका नामकरण भी होना था तो पूज़ा के बाद नाम भी रखा गया ‘ब्रूनो’। घर में सब उसके आने से बहुत ख़ुश थे। कभी कोई उसे गोदी में लेता तो कभी कोई। बस सबसे छोटी बेटी जिज्ञासा जिसको बहुत डर लगता था, उसके इसी डर को ख़त्म करने के लिये यह निर्णय लेना पड़ा था। दूर से खड़ी सब तमाशा देख रही थी और मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी। पर पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। विनोद और नीरा यह सब देख रहे थे पर उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन परिवर्तन ज़रूर होगा। ख़ैर! ऐसे ही कई दिन बीत गये!
धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो जाती है और इतनी गहरी कि खाना भी जिज्ञासा के हाथ से ही खाते हैं महाशय! सब काम दीदी से ही करवाने हैं जैसे हम तो कुछ ठीक करते ही नहीं थे।
अब तो आलम यह है ज़नाब कि अगर कोई उसे भूल से भी ‘कुत्ता’ कह दे तो उसको पूरा भाषण मिल जाता है “ये भी तो प्यार के भूखे होते हैं अगर हम इन्हें नहीं अपनायेंगें तो ये कहाँ जायेंगें? सरकार को हर घर में एक जानवर होना अनिवार्य कर देना चाहिये! ताकि इन्हें भी घर में होने का अहसास हो सके। ये भी तो हमारी तरह चलते-फिरते हैं फिर इन्हें घर क्यों नहीं?”
कल की डरने वाली मासूम सी लड़की आज़ एक “एन०जी०ओ०” के माध्यम से सबको इन मासूमों की अपनी ज़िंदगी में अहमियत बताती हुई उनकी सेवा में दिन-रात लगी हुई है। यह सब देखकर नीरा और विनोद को अपने लिये हुए फ़ैसले पर गर्व का अनुभव हो रहा है।
- नूतन गर्ग 
दिल्ली

जिगर के टुकड़े
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घर की बालकनी से अक्सर वो देखती कि पंछी उड़ान भरते हुए कितने खुश दिखते हैं । एक डाल से दूसरी डाल पर जाना वहाँ से दूर गगन तक जाते हुए संध्या के समय घोसले पर लौटना ,
तभी बिट्टू ने कहा माँ देखो " मैंने जो दाने रखे थे;  वो चिड़िया कितने मजे से खा रही है । 
माँ ने कहा "बिट्टू शोर मत करो , खिड़की पर जो घोसला बना है वहाँ ये चिड़िया रहती है ।" 
हाँ माँ  "मैंने देखा है , वो दाने चुन कर ले जाती है, और वहाँ नन्हें बच्चों को खिलाती है ।
माँ देखो "उसने धक्का दे दिया ।"
किसने "माँ ने चौकते हुए पूछा ?"
"चिड़िया ने अपने नन्हें बच्चों को, बिट्टू ने कातर स्वर से कहा ।"
"हाँ बेटा वो अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनने का पाठ पढ़ा रही है । उज्ज्वल भविष्य हेतु जिगर के टुकड़ों को समय आने पर अपने से दूर करना ही पड़ता है, भावुक होते हुए माँ बुदबुदाते हुए कह रही थी ।"
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर  - मध्यप्रदेश

बंद-मख्खन और लाजो
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सरिता अपने परिवार के साथ कसौली घुमने गई। उसके घर से करीब डेढ़ घंटे का रास्ता था।उनकी गाड़ी जब मैदानी इलाकों को छोड़कर  पहाड़ी इलाके के घुमावदार रास्तों से होकर गुजरती हुई आगे बढ़ने लगी प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य, घाटियां,हरियाली और रास्ता सब मिलकर एक अद्भुत रोमांच पैदा कर रहे थे। सरिता अपनी सारी परेशानियों को पूर्णतः भूलकर कभी खुली आंखों से तो कभी आंखों को मूंदकर उस खूबसूरती को महसूस  कर रही थी। बच्चे भी बहुत खुश थे। रास्ते में पहाड़ी बकरियों और बंदरों का झुंड कई बार देखने को मिला। पक्षियों का कलरव सफर को संगीतमय बना रहा था।  तभी गौरव की आवाज से वो चौकी। गौरव (उसके पति)ने कहा,"हमारा पड़ाव आ गया बच्चों,चलो "मंकी टाॅप" की यात्रा शुरू करते हैं।"
         पहाड़ी की सबसे ॐची चोटी पर पहुंच कर हम सबने बजरंग बली जी के दर्शन किए फिर नीचे उतरकर संग्रहालय और चर्च देखने गये। उसके कारीगरी और रख-रखाव से हम सब प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।अब सबको भूख लग आई थी सो सब खाने-पीने की जगह तलाशने में जुट गए । वहां के लोगों ने बताया कि "रामू बंद-मख्खन"की दुकान बहुत प्रसिद्ध है। गौरव ने कहा,"चलो बच्चों बंद-मख्खन का आनन्द लेते-लेते उसकी प्रसिद्धि पर हम भी मुहर लगाते हैं।" सरिता जब का रही थी तो उसे महसूस हुआ कि पीछे की दीवार पर कोई हलचल हुई। मुड़कर देखा तो एक नन्ही गिलहरी टुकुर-टुकुर वहां बैठे लोगों को अपनी चंचल आंखों से बारी-बारी देख रही थी।हम चारों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि आमतौर पर इंसानी हस्तक्षेप से दूर भागने वाला जीव इतनी निडरता से वहां बैठ गया। बच्चे बहुत हतप्रभ थे ये सब देखकर।इतने में काउंटर पर से एक सज्जन हाथ में "बंद" का टुकड़ा लिए नीचे उतरकर के और उनके आते ही गिलहरी थोड़ी आगे की ओर सरकी और लगा मानो अपनी गर्दन को लटका दिया, उस सज्जन ने "बंद"के छोटे-छोटे टुकड़े कर उसके मुंह में डाल दिया और बोले,"कैसी हो लाजो?"हम-सब अचंभित हो यह देख रहे थे।ऐसा लगा जैसे लाजो ने आंखों में चमक लिए अपनी गर्दन और पूंछ लहराई जैसे कह रही हो,"मैं ठीक हूं,सब आपकी मेहरबानी है।" सरिता अपना कौतूहल रोक न सकी और पूछ बैठी,"भाई साहब ,ये चमत्कार क्या है, कृपया बताएं।"दुकानदार ने बताया,"बहन यही सामने आम के पेड़ पर गिलहरियों का एक जोड़ा रहता था,दो महीने पहले आते भयंकर तूफान में इसका साथी नीचे गिरकर मर गया था, ये भी मरणासन्न अवस्था में जमीन पर पड़ी थी,हम सबने इसको बड़ी मुश्किल से रूई के फाहे से दूध पिला कर बचाया था ,और लाजो नाम रख दिया था तब से ये हमारे परिवार और हमारे ग्राहकों की भी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गई है।"रामू के आंखों से निश्छल वात्सल्य झलक रहा था। सरिता की नजरों में रामू की इज्जत बहुत बढ़ गई थी। बच्चों ने भी गिलहरी को अपने हाथों से खिलाने का आग्रह किया।रामू ने कहा, "हां-हां, बिल्कुल!"हम चारों ने बारी-बारी से उसे "बंद"के छोटे-छोटे टुकड़े खिलाएं। एक अजीब सा सुकून मिला । घर लौटते वक्त लाजो की मासूमियत बहुत याद आ रही थी। सरिता ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वो जल्दी ही एक बार फिर से मिलने आएगी।
- संगीता राय
पंचकुला -हरियाणा

उपरोक्त के अतिरिक्त सीमा वर्मा , सुनीता रानी राठौर , नरेश सिंह नयाल , बबिता कंसल, डॉ. विनीता राहुरिकार , डॉ. अलका पाण्डेय , नीलम नारंग , विभा रानी श्रीवास्तव , गीता चौबे गूँज , नरेन्द्र श्रीवास्तव , डॉ. संगीता शर्मा , विजय कुमार , डॉ. पूनम देवा , अर्विना गहलोत , सावित्री कुमार , राकेश कुमार जैनबन्धु , चन्द्रिका व्यास , चंद्रकांता अग्निहोत्री , सेवा सदन प्रसाद , मधुलिका सिन्हा , सुषमा सिंह चुण्डावत, मीरा जगनानी , सविता परमार , वीरेन्द्र कुमार भारद्धाज , रेखा पांडे रीत, उमा मिश्रा प्रीति, प्रतिभा सिंह , कुन्दन पाटिल , रंजना हरित , डॉ. अंजु लता सिंह , रेणु झा, डॉ. दुर्गा सिन्हा उदार, संतोष गर्ग , संगीता गोविल , राजकांता राज आदि ने अपनी - अपनी लघुकथा पेश की है । कई की लघुकथा विषय से बाहर थी । कुल मिलाकर लघुकथाएं एक से बढ कर एक रही हैं । परन्तु संस्था के अनुसार 21 से अधिक को सम्मानित नहीं किया जा सकता है । सभी का बहुत - बहुत धन्यवाद ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
( संचालन व सम्पादन )






Comments

  1. बहुत बहुत धन्यवाद जी आपका 🙏 🙏 🙏 🙏 8

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  2. आपके द्वारा सम्मान प्रदान करने हेतु आपका हार्दिक अभिनंदन एवं बहुत बहुत धन्यवाद।🙏
    डॉ. रेखा सक्सेना

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    1. हार्दिक आभार आपका 🙏🙏🌺🌺
      संगीता राय

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  3. हार्दिक आभार आपका आदरणीय 🙏🙏🌺🌸

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  4. सभी लघुकथाकारों को हार्दिक बधाई ।

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  5. लघुकथाऐं एक से बड़कर एक है मेरा अनुरोध है कि विषय आधारित रचना होने पर और स्तरिय होने पर ही सम्मान पत्र दिये जाये ताकी सम्मान पत्र की गरिमा बनी रहे। और हर लघुकथा पर एक टिम द्वारा टिप्पणी समीक्षा होनी चाहिये। कुन्दन पाटिल देवास

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