क्या जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए ?

जीवन का बहाव इतना सरल होना चाहिए । जो अपने रास्ते का निर्माण स्वयं करें । किसी के सहायता की आवश्यकता ना पड़े । जैसे झरना अपने आप बहता है । उसे कोई तोड़ मोड़ नहीं सकता है । नहीं तो बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाऐगी । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
अवश्य जीवन का बहाव झरने जैसे होनी चाहिए। जिस तरह झरना  आंतरिक भूगर्भ  से स्व स्फूर्त  होकर  निरंतर अपने स्त्रोत को बनाए रखता है। इसी तरह मनुष्य अपने जीवन में सुख के स्रोत है जिंदगी भर बनाए रखना चाहिए। और ना कभी जल का अभाव महसूस नहीं करता इसी तरह मनुष्य को भी अपने जीवन में अभाव महसूस नहीं करना चाहिए निरंतर प्रगति पथ पर श्रम करते हुए सम्मान के साथ आगे बढ़ाना चाहिए। यही मनुष्य की जीने की सार्थकता है।
- उर्मिला सिदार 
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जीवन और झरना दोनों का स्वरूप और आचरण एक जैसा है। जिस प्रकार झरना के विषय में यह कहना कठिन है कि वह किस पहाड़ के  ह्रदय से कब कहां और क्यों फूट पड़ा। झरना किसी पतले से सोते के रूप में और फिर एक विशाल नदी के रूप में बहने लगा है।
 इसी प्रकार इस मानव जीवन में सहसा नहीं कहा जा सकता है, कि वह मानव जीवन कब, कैसे,क्यों प्रारंभ हुआ कब धरती पर मानव के जीवन प्रवाह के रूप में अंतर आया और सुख -दुख के दो किनारों के बीच निरंतर बहने लगा। लेखक का विचार:-जीवन झरने के समान है जो अपने लक्ष्य तक पहुंचने की लगन लिए पथ की बाधाओं से मुठभेड़ करते हुए बढ़ता ही जाता है ।गति ही जीवन है और स्थिरता मृत्यु ।
अतः मनुष्य को निर्झर के सामान गतिमान रहना चाहिए।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
जीवन की सार्थकता ही बहने में है ।जीवन तो एक नदी की भांति ही है। जिसे बिना रुके बहते ही जाना है यदि वह थम गई और रुक गई तो मनुष्य की जीवन लीला भी समाप्त हो जाएगी। बीच में जरूर बहुत सारे व्यवधान आते हैं रुकावट आती हैं पर उन्हीं को पार करते हुए आगे बढ़ना ही जीवन है।
जीवन मुश्किलों का नाम तो है लेकिन मुश्किलों से भी आगे बढ़ना चाहिए।
यह तो अपने-अपने नजरिया की बात है यदि हम आशावादी रहेंगे तो हमें कोई भी मुश्किल कठिन नहीं लगेगी क्योंकि जीवन में जब मुश्किलें बीत जाती है तो ऐसा लगता है कि पहले वाली मुश्किल तो बहुत आसान थी कठिनाई को भी भगवान का आशीर्वाद मानकर आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि सब दिन एक समान नहीं होते हैं। जो मनुष्य कठिनाइयों पर भी विजय प्राप्त करके जीवन में आगे बढ़ता है वही एक सफल व्यक्ति के लाता है और इस समाज में अपना एक व्यक्तित्व छोड़कर जाता है। हमेशा वही व्यक्ति पूजा जाता है जो परहित करता है्।आज भी इतिहास में महापुरुषों का नाम इसीलिए अंकित है और उनके जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
इसलिए हमें अपने विचारों को शुद्ध और पवित्र रखना चाहिए और जीवन एक निर्मल धारा की तरह ही जीते जाना चाहिए।
जीवन तो एक झरने की तरह ही है एक दिन हमें भी झड़ जाना है, और इस प्रकृति में ही मिल जाना है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
     जीवन एक माया रुपी गागर में सागर जैसा हैं। जिस तरह से जीवन में  अनेकों घटनाओं का जन्म होता हैं  और सहनशीलता के साथ, सहन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता जाता हैं, अंत में मृत्यु को। प्राकृतिक पहाड़ी से झरना सूक्ष्म रूप से निकलकर अपना रास्ता बनाते हुए, वृहद रुप में हो जाता हैं, जहाँ अनेकों नदियों का मिलन होकर, सभी को अभिवादित करती हैं। जब एकाग्रता भंग होती हैं, तो अपना विकराल रूप धारण कर, जन जीवन को प्रभावित करती हैं, ताकि मानव संसाधन को समझ जायें। इसलिए जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए, ताकि भविष्य में दुष्परिणाम गंभीर नहीं हो? अंत में जीवन, उसी झरने के जल में  तो विसर्जित होता हैं, जो एक-दूसरे के  पहल हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
मानव जीवन अमूल्य है। यह ईश्वर का दिया हुआ अनमोल तोहफा है  । जीवन को सामर्थ्यवान बनाकर इसकी पूर्णता को ग्रहण किया जा सकता है । मनुष्य सदैव योग्य और सफल जीवन की कामना करता है । इसके लिए वह श्रेष्ठ कर्म और परिश्रम को महत्व देता है । जीवन को प्रगति के पथ पर गतिमान बनाए रखने के लिए  योग्यता  ,कर्मठता ,मेहनत जैसे गुणों का होना अति आवश्यक है। 
 जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की लालसा , और सब कुछ पाने की इच्छा  मनुष्य में गतिशीलता का प्रवाह बनाए रखती है । जीवन में सफलता का प्रवाह अथवा बहाव झरने के स्रोत की भांति  उत्तरोत्तर उन्नति का परिचायक तो है ही मगर कुछ मानवीय मूल्यों से अलग  ।
 मनुष्य का मानसिक चिंतन केवल आत्म उन्नति और सफलता तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए उसे मानवीय परिवेश  से परिचित होना भी आवश्यक है ।
 मनुष्य सफल  जीवन की सदैव कल्पना करता है उसका हमेशा पक्षधर रहता है । मगर तरक्की के प्रवाह में इतना बह जाता है कि सभी मानव मूल्यों की उपेक्षा करता जाता है ।
  किसी हद तक जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए क्योंकि सागर तक पहुंचने के लिए यह प्रवाह अति आवश्यक है । परंतु वहां तक पहुंचते-पहुंचते  झरना अपनी पहचान और अपना अस्तित्व ही खत्म कर देता है । उसकी अलग से कोई पहचान नहीं रहती । वह विशाल समुद्र में अपने आप को समर्पित कर देता है , या यूं कहें कि वह अपनी गतिशीलता को विराम दे देता है  ।
  मानव जीवन में तरक्की का बहाव, आगे बढ़ने की होड़  कोई बुरी बात नहीं है मगर मानवीय मूल्यों का तिरस्कार  नहीं होना चाहिए। जीवन में विकास जरूरी है मगर उस की नींव  विनाश के पत्थर पर नहीं टिकी होनी चाहिए । जीवन में गतिशीलता जरूरी है मगर संवेदनहीनता नहीं होनी चाहिए । जीवन में आत्म विकास ,आत्माेत्थान सर्वोपरि है मगर मानव  विरोधी नहीं होना चाहिए, राष्ट्र  विरोधी नहीं होना चाहिये ।
- शीला  सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
मेरे विचार से जीवन का बहाव झरने सा नहीं होना चाहिए।इसका बहाव सरिता,नदी जैसा होना चाहिए। झरने के बहाव में है,ऊपर से एकदम नीचे जमीन पर गिरना,शोर,मारक प्रवाह,चटृटानों को भी तोड़ डालना। अब सोचिए यह सब यदि जीवन में हो तो फिर जीवन सुखद होगा क्या? हां इतना तो है कि झरने का पानी शुद्ध होता है लेकिन केवल इतना होने से ही इसे जीवन के बहाव से जोड़ लेना उचित नहीं लगता । जीवन का बहाव किसी नदी या सरिता जैसा होना चाहिए। कल कल छल छल करता जीवन, कृषि योग्य भूमि को सींचता जीवन, मानव को सतत गति से आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता जीवन, मानव की प्यास बुझाता जीवन,और अंत में स्वयं को समुद्र में विलीन करता जीवन। यही तो है नदी या सरिता का जीवन। सोचिए मानव जीवन भी तो ऐसा ही है। सुख दुख की कल कल छल छल,सुख दुख सांझा करता जीवन,आशाओं की खेती को सींचता जीवन,इस सबके साथ सतत प्रवाहित मानव जीवन,अंत में परमात्मा रुपी सागर में विलीन हो जाता है।तो हम तो जीवन का बहाव नदी के समान मानते हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जी बिल्कुल सत्य है कि जीवन  एक झरने की तरह होता है जैसे झरना निरंतर बहता रहता है उसी प्रकार जीवन हमेशा गतिशील रह चलता रहता है जिस प्रकार झरने में कुछ भी बाधाएं आती हैं तब भी झरना अपना रास्ता खोज कर निरंतर अपनी दिशा निर्धारित कर लेता है उसी प्रकार जीवन में भी सुख, दुःख, कठिनाईयां, मुसीबतें  आती रहती हैं परन्तु जीवन चलने को अपनी दिखा में चलता ही रहता है
कहा भी जाता है कि
-जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह शाम
झरना सागर या नदी से निकल कर कई मार्ग तय कर फिर नदी, सागर आदि में लीन हो फिर एक नया झरना बन कर बह जाता है अपनी चाह की ओर जीवन भी उसी प्रकार जन्म से मृत्यु और फिर नया जन्म लेकर गतिशील रहता है अतः जीवन हो या झरना चलना और बहना ही उन दोनों की प्रकृति है।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
आज की चर्चा में जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए इस पर मैं कहना चाहूंगा कि हां होना तो चाहिए परंतु यह किसी भी तरह से आसान नहीं है प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में बहुत प्रकार के उतार-चढ़ाव और समस्याएं आती रहती हैं जो उसकी उन्नति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है और उन बाधाओं से पार पाए बगैर आगे बढ़ना नामुमकिन हो जाता है झरना और जल का बहाव एक प्रेरणा स्रोत जरूर है जो  अपने मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को पार करते हुए निरंतर अपनी ही गति से बहता रहता है यह अलग बात है की रुकावट आने पर उसका प्रभाव कुछ धीमा हो जाए परंतु किसी भी हालात में रुकता नहीं है बहता ही रहता है और गतिमान रहने का संदेश देता है अपना सद व्यवहार न छोड़ते हुए हमारा प्रयास रहना चाहिए कि समाज में हर तरह के व्यक्तियों से हमारा वास्ता पड़ता है और वह तरह तरह से समस्याएं भी उत्पन्न कर सकते हैं परंतु हम हैं अपने रास्ते पर सद्भाव बनाए रखते हुए बढ़ते रहना चाहिए इस प्रकार हम कह सकते  है कि जीवन का भाव झरने के समान ही होना चाहिए ़़.
 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
निर्मलता,सरलता, नम्रता का प्रतीक चिन्ह प्रकृति का अद्भुत नजारा खुबसूरत दृश्य झरना ही है।जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए ताकि सरलीकरण से अपने जीवन की प्रगति पथ को पा सके।झरने के मार्ग मे ढ़ेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।परंतु निरंतर प्रयास से लाखो बाधाओं को पार कर के झरना अपनी राहों मे बढ़ती है।इसके बहाव को कोई पहाड़, कोई बाधा समस्या नही रोक सकता है।संकुचित मार्गों पर भी मुस्कराते हूये झरने ने जीवन की गतिविधियों को एक संदेश दिया है ।मानवीय संवेदनाओं को हमेशा निर्धारित समय और निंरतर अपने इच्छा शक्ति से आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।जीवन का बहाव झरने के जैसा ही होना चाहिए ।अपने धून मे रास्ते को तय करते हूये अपनी मंजिल को पाने की क्षमताओं को उजागर करना चाहिए।संगम स्थल पर ही झरने की गति विरामावस्था मे आती है ।छलछल निश्चल बहाव मे अपने संदेश को मानव जीवन मे देती है।और जीवन की हर समस्या को आसानी से पार करनेकी कला सिखाती है।झरने की काया कलाप्रेमी की भांति अद्भुत और मनमोहक होती है।जीवन की समस्या को बहाने की कोशिशें इसे देखते हूये उत्पन्न होती है।जटिलता को पीछे छोड़कर कर आसानी से पावन धरा पर अपनी मार्गदर्शन करती है।उसी प्रकार जीवन का बहाव झरने जैसा चाहिए।शांतिपूर्ण तरीके से कठिनाई को पार करने की क्षमता जीवन की कला कहलाती है।
उंमग ने जब हाथ थामा लहरों का
झरने ने जीवन जीने की कला सिखाया।
जीवन का बहाव झरने भातिं ही होना चाहिए।
जीवन की विशेषता है कि परिवर्तन के नियमों का पालन करता है।झरने मे एक सीख को उजागर करनेवाले गुणवत्ता होती है मनुष्य अगर पथनिर्मान मे हार जाये तो झरने के बहाल को देखकर फिर से जीने के रूप को अपनाते है।और सरलीकरण के पोशाकों मे लिप्त हो गतिविधियों को करते तो जीवन का बहाव सही दिशा मे आता है ।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
      काश! जीवन का बहाव झरने जैसा होता। जिसमें न लगाव होता और ना ही भावनाएं होतीं। बस अपनी मस्ती में झरने जैसा प्राकृतिक बहता रहता और उसे कदापि अप्राकृतिक सांचे में न ढाला जाता। 
      परंतु जीवन कड़वाहटों का जाल है और मृत्यु उसकी कड़वी सच्चाई। अर्थात झरने के बहाव से बिल्कुल विपरीत कोहलू के बैल की भांति है। जो काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकार की चक्की में पिस रहा है। जो यथार्थ से कोसों दूर है। जहां 'सत्य मेव ज्यते' मात्र तीन शब्द हैं।
      किससे भूला है कि वर्तमान जीवन का बाल्यकाल झूठी शिक्षा में, यौवन रोटी की तलाश में और बुढ़ापा पश्चताप की भेंट चढ़ा हुआ है। जिसकी अनमोल सांसें कब थम जाएं? किसी को मालूम ही नहीं है।
      यहां तक कि जीवन में कर्मभूमि पर जन्म लेने के उद्देश्य के बारे में भी कभी किसी ने सोचा तक नहीं। बस अज्ञानतावश चले जा रहे हैं, अंधेरी पगडंडियों पर, जीवन की अर्थहीन डोर थामें हुए। जिनमें प्रश्नों का कोई महत्व नहीं है। उत्तरों का मूल्यांकन नहीं है। ऐसे जीवन का बहाव झरने जैसा कैसे हो सकता है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन एक यात्रा है ,जन्म से मृत्यु तक ।प्राणी जन्म से ही जीवन को जीने के लिए निरंतर संघर्षरत रहता है।जिसमें कई तरह के उतार चढ़ाव आते हैं।धीरे- धीरे साल दर साल बहते हुए बाल्यावस्था से वह वृद्धावस्था के पड़ाव तक पहुँचता है|लेकिन झरने की तरह नहीं बल्कि एक नदी की तरह बहते हुए सागर में मिलता है।झरने का अस्तित्व तो बरसात या नदी के बहाव पर निर्भर है।कभी सूखा तो कभी रौद्र रूप लिए चट्टानों को तोड़ते वेग से पत्थरों पर दम तोड़ते।मेरे अनुसार जीवन का बहाव झरने सा नही बल्कि नदी की तरह होना चाहिए जो कभी सूखे नहीं धीरे धीरे बहते हुए मंज़िल तय करें ना कि  वेग में आकर ऊपर से नीचे आकर दम तोड़ दे।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
'झरना'...."राह के पत्थरों से टकराते हुए, जल-धारा में एक प्रकार की मिठास समेटे ऊपर से नीचे की ओर निरन्तर बहना ही झरने की प्रकृति और प्रवृत्ति है।" 
बस झरने की इस प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए मैं कह सकता हूं कि "हां! जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए।" 
मनुष्य यदि झरने की मात्र इन्हीं प्रवृत्तियों का अनुसरण करले तो इस धरा पर मानव जीवन की सार्थकता सिद्ध हो जायेगी। 
मानव जीवन निष्कंटक नहीं होता। जिस प्रकार झरने के बहाव की राह में पत्थर बाधक होते हैं, उसी प्रकार मनुष्य को भी कदम-कदम पर समस्या रूपी पत्थरों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं बाधाओं से टकराते हुए जीवन की निरन्तरता बनाये रखना ही जीवन है। तभी तो किसी लेखक ने कहा है कि "यदि झरने की राह में पत्थर ना होते तो झरनों से मधुर संगीत जैसी ध्वनि सुनाई ना देती।" 
झरने के पानी का मिठास समेटे हुए ऊपर से नीचे बहना यही सीख दे जाता है कि "जीवन ऐसा हो! जिसमें मनुष्य कितनी ही ऊंचाई पर विद्यमान हो परन्तु उसे यह ध्यान रहना चाहिए कि उन्नति के सोपान पर खड़े होकर भी सदैव स्वयं से नीचे के मनुष्यों के लिए, विनम्रता और हृदय में संवेदना रूपी मिठास लिए, कार्य करना चाहिए। 
सबसे प्रमुख यह है कि झरने का निरन्तर बहना मनुष्य को सीख देता है कि कितनी ही विषम परिस्थितियां मानव के समक्ष आयें परन्तु उन परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करते हुए जीवन में निरन्तर चलते जाना है....जीवन के बहाव को झरने के समान बनाना है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
      जी, जीवन का बहाव झरने जैसा निर्मल ,स्वच्छ एवं स्थिति अनुसार  ढलने वाला होना चाहिए। जैसे झरना निर्बाध गति से दुर्गम रास्ते, उबड़ खाबड़ रास्ते में भी बहता रहता है, शीतलता और सुर ,लय, ताल के साथ उसी तरह हमें भी अपना जीवन शांति पूर्वक परिस्थितियों के अनुसार ढाल कर सुख एवं आनंद के साथ व्यतीत करना चाहिए। सुख -दुख ,हानि- लाभ, जीवन -मरण तो चलते ही रहते हैं पर इंसान को निष्काम भाव से अपने कर्तव्य पथ  पर चलते रहना चाहिए और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही दम लेना चाहिए ।ठीक उसी तरह जिस तरह से झरना अपने मार्ग की बाधाओं को झेलता हुआ भी मुकाम पर पहुंचकर ही रुकता है।
 श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
               हाँ, जीवन का भाव झरने जैसा ही होना चाहिए। झरना कभी रुकता नहीं है हमेशा लगातार बिना रुके बहता रहता है। इसी तरह जीवन भी हमेशा चलते रहना चाहिए। रुकना मतलब मौत। झरना जिस दिन बहना बंद कर देगा तो धारा सुख जाएगी झरना का नामोनिशान मिट जाएगा। झरने से निकलने वाली स्रोत में जब पानी बहना बंद हो जायेगा तो बचे पानी में सड़ांध पैदा हो जायेगा। ठीक उसी प्रकार जीवन रुक जाने से आदमी की मृत्यु हो जाएगी।
              इसलिए जीवन  का बहाव झरने जैसा होना चाहिए। स्वच्छ निर्मल,निर्बाध,लगातार अनवरत।
- दिनेश चंद्र प्रसाद 'दीनेश' 
कलकत्ता - प.बंगाल
जीवन का बहाव झरने जैसा ही होना चाहिए जो अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए रास्ते की बाधाओं को बेंधता हुआ आगे बढ़ता ही जाता है।  झरने के रास्ते में अनेक कठिनाइयां जैसे पहाड़, जंगल, बेले,पत्थर आदि आते हैं लेकिन यह सब झरने की गति को रोक नहीं पाते।उसी तरह हमें भी जीवन में अनेक दुख-सुख दोनों को अपनाते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए।   अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए रास्ते की बाधाओं को हिम्मत , हौसले और लगन से लड़ते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए । उत्साह बना रहना चाहिए। चलना ही जीवन है। झरने की तरह गतिशील रहना ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है। फल की इच्छा किये बिना मनुष्य को झरने की भांति निरन्तर प्रयास करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। जिस तरह एक जगह रुका पानी बदबू मारने लगता है उसी तरह जीवन में ठहराव मृत्यु तुल्य है। झरने की तरह जीवन में  रवानगी नया रंग भरती है। गति ही जीवन है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
सर्वप्रथम बहुत ही सुन्दर विषय के लिए शुभकामनाएं।  झरना देखने में बहुत सुन्दर प्रतीत होता है।  हम यह भी देखते हैं कि झरना ऊंचाई से नीचे की ओर आता है।  जबकि हम अपने जीवन में ऊंचाई की ओर बढ़ने के लिए यत्न करते हैं। झरने को ऊंचाई से गिरते देखकर हम आनन्दित होते हैं और उसकी फुहारों का आनन्द लेते हैं।  ऐसा मानव जीवन में नहीं है।  यदि कोई मनुष्य ऊंचाई से गिरता है तो उसे अच्छा नहीं माना जाता। जब मनुष्य ऊंचाई की ओर अग्रसर होता है तो उसे प्रशंसा मिलती है।  पर जब वह ऊंचाई से गिरता है तो वह अपनी ही आंखों में गिर जाता है। हां, झरने में एक गुण अवश्य है कि उसके जल के हर अंश का तापमान एक समान रहता है।  यह गुण मनुष्य को सीखना चाहिए।  हम हर हाल में एक समान रहें।  सुख दुःख में समभाव रखें। क्रोधित होने से हमारा तापमान बढ़ता है अतः क्रोध न करें।  जीवन का बहाव झरने जैसा न हो पर जीवन में झरने जैसा समभाव का गुण अवश्य हो।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
झरने जैसा बहता वक़्त है,
 जिंदगी चलती इसके साथ,
 इक पल में समझो या खर्च कर दो जीवन सारा l 
मनुष्य का जीवन कल कल बहते हुए झरने के समान ही है l सुख दुःख के दो तीरों से चल रहा राह मनमानी है l अर्थात मनुष्य का जीवन सुख दुःख के दो किनारों के मध्य मतवाला जीवन जी रहा है l झरने के भाँति मनुष्य में भी आगे से आगे बढ़ने की प्रवृति होती है, अपनी मंजिल का पता नहीं होता झरने को, उसी प्रकार मनुष्य को अपनी मंजिल का पता नहीं होता l 
    सटीक विषय है आज का, निश्चय ही मानव जीवन का बहाव झरने जैसा ही होना चाहिए क्योंकि 'जीवन और झरना 'दोनों का स्वरूप और आचरण एक जैसा ही है, जिस प्रकार झरने के विषय में यह कहना कठिन है कि वह किस पहाड़ के ह्रदय से कब और क्यों फूटा और समतल पर उतर कर दोनों किनारों के बीच एक विशाल नदी के रूप में बहने लगा उसी प्रकार मानव जीवन के विषय में कुछ नहीं कह सकते कि सुख दुःख दोनों किनारों के मध्य जीवन प्रवाह कैसा होगा? 
       झरना जल पूर्णता की अवस्था में पूरा गतिशील रहता है उसी प्रकार हमारा जीवन भी सकारात्मक रूप से गतिशील रहता है l 
       निर्झर तथा जीवन दोनों के लिए गतिशीलता आवश्यक है जो कि सार्थकता और आकर्षण प्रदान करती है अर्थात जीवित अवस्था में होने के बावजूद गतिशीलता के अभाव में मृत्यु बोधक ठहराव आ जायेगा क्योंकि जीवन व झरने में सबसे बडा संकट तभी आता है जब वह असामान्य (ठहराव )होने की तरफ बढ़ता है l 
    यथा भावम तथा भवतु 
अतः सकारात्मक सोचें और निर्झर की भाँति जीवन में गतिशील रहें l 
          चलते चलते -
 प्रेम की पवित्र परछाईं में 
लालसा हरित विटप झांई में 
   बह चला जीवन झरना l 
   - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
मनुष्य जीवन ईश्वर का अनुपम उपहार है। ईश्वर के अलावा कोई भी नहीं जो इस अद्भुत संसार को निर्मित कर सके। जब यह सत्य है तो ये मानना चाहिए कि जो  हो रहा है, जो हो चुका और जो होगा, वह ईश्वर की इच्छा से ही होगा। ऐसे में न दुःख से घबराना चाहिए और न सुख में इतराना चाहिए। हम सब उसी की इच्छा से जन्मे हैं । अतः इसे यूँ भी मान सकते हैं कि हम सब उसी ईश्वर का अंश हैं, उन्हीं की संतान हैं। फिर ये संभव नहीं कि ईश्वर हमारा अहित करे। वह हमारा पालनहार है। रक्षक है। इस सत्य को स्वीकार कर अंगीकार करना चाहिए और सहज,सरल और सरस जीवन जीते रहना चाहिए। न विचलित होना चाहिए, न भयभीत। बल्कि सहृदयता से सभी के प्रति सद्भाव और सहयोग की भावना के साथ, अपनी सीमा और मर्यादा में रहते हुए ईश्वर द्वारा दिए इस जीवन को आनंदपूर्वक गुजारना चाहिए, न कि किसी का अहित कर। क्योंकि आप जिसका अहितकर रहे हैं वह भी उसी ईश्वर की संतान हैं, जिसकी हम हैं।
 याने ठीक वैसे ही जैसे झरना अपनी निःश्चल और अबाध गति से बहता चलता है। निर्मल, पावन।
जीवन के लिए यही प्रेरणा है, यही ध्येय और यही सार भी।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जीवन जन्म से मृत्यु तक के सफर का नाम है ! मनुष्य जीवन में कितने पड़ाव आते हैं ! हम कहते हैं न कि जीवन तो बहता पानी है यानि जीवन हमारा पानी की तरह गतिमान है वह ठहरता नहीं ! रही बात जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए कुछ हद्द तक सही है चूंकि जब हम जवान होते हैं तो झरने की तरह ही आने वाली बाधाओं को काटकर आगे बढने की हिम्मत रखते हैं जैसे झरना भी तो पर्वत के बीच से निकलते हुए तेज धारा प्रवाह के साथ रस्ते में आने वाले पेड़ पौधों को हटा अपना रस्ता बना लेता है किंतु नदी में मिल जाने पर उसका प्रवाह समान रुप से बहता है और सागर पर मिल जाते ही बरसात में पुनः नये झरने का रुप लेता है मनुष्य के जीवन में भी यही चक्र होता है !
जीवन गतिमान है और बहता पानी की तरह मनुष्य भी जीवन में आये सुख दुख भोगते हुये कठिनाइयों को पार करता हुआ अनवरत चलता है ,यानि संघर्षरत रहता है जब तक वह जीवन नहीं त्यागता ! 
अतः यौवन काल में तो मनुष्य की गति झरने जैसी ही होती है हर मुश्किलों का सामना हिम्मत से करता हुआ संघर्षरत रहता है किंतु समय के साथ उसका ध्येय नदी की तरह शांत हो गंतव्य तक पहूंचना है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन की बात करें तो जीवन का वहाव झरने की तरह ही होना चाहिए, कहने का मतलब हमको निरंतर आगे ही  वढ़ते रहने का प्रयास करना चाहिए, रास्ते मे जो भी रूकाबटें आएं उनको झेल कर झरने की तरह आगे ही वढ़ना चाहिए ताकि  हम जल्द ही समुन्दर की राहा को ढूंढ सकें। 
यही नहीं अगर हमअपने जीवन का वहाब, एक पहाड़ी झरने की तरह रख सकते हैं, जो पेड़ पौधों के भरे हुए जंगल से होकर प्रबलता के साथ बहता रहता है, तो हमारा जीवन हमारी पूर्व गलतियों के विना  रंगहीन हो जाता है कहने का मतलब गलतियां हमें बहुत कुछ सिखाती हैं। 
हमें हमेशा गतिशील रहना चाहिए, ताकी हम  रास्ते की बाधाओं को तोड़कर अपनी मंजिल को हासिल करने में कामयाब हो सकें, 
जैसे झरना अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पथ की बाधाओं  से झगड़ता हुआ वढ़ता रहता है।  
सच कहा है, गति ही जीवन है और स्थिरता मृत्यु, अत:मनुष्य को निर्झर के समान गतिमान रहना चाहिए,  
जिस तरह झरना आगे  बढ़ने के सिवाय दुसरी कोई चिन्ता नहीं रखता उसी तपह मनुष्य को भी सभी  वाधाओं को पार कर के अपने लक्ष्य की और निरंतर बढ़ते रहना चाहिए, क्योंकी  वाधाएं ही  इनंसान  को मजबूत वनाती हैं,  सच कहा है, 
"झरनों से मधुर संगीत सुनाई न देता, अगर उनकी राहों में पत्थर न होता"। 
कहने का मतलब इन्सान को अड़चनों से कुछ  सीख लेनी चाहिए और अपने आप को साफ़ सुथरा रख कर  वढ़त की तरफ चलते रहना चाहिए, 
जिससे अपना और दुसरों का भला हो सके इतना वड़ा भी मत वन जाओ की दुसरों के काम ही न आ सको, लेकिन झरने की तरह साफ सुथरी छवि रखो ताकी जो उसे चखे उसकी मिठास का उसे एहसास हो, सच है, 
" दरिया ने झरने से पूछा, तुझे 
समुन्दर नहीं   वनना क्या? 
झरने ने नम्रता से कहा वड़ा होकर खारा हो जाने से अच्छा है छोटा रहकर मीठा ही रहुं"  
कहने का मतलब  इन्सान को  झरने की  तरह ऊंचाईयों से नीचे उतर कर सब को साथ लेकर फिर एक सबच्छ जीवन जीना चाहिए। 
अत:हमारे जीवन का  बहाव झरने जैसा ही होना चाहिए क्योंकी, 
"झरने सा बहता वक्त है, 
अनवरत ही चलता  हमेशा, 
दिल तो पत्थर का ही था, 
न झाने झरने कैसे वहने लगे
  सतह मजबूत थी मेरी पर जाने कैसे पौधे  इश्क के उगने लगे"। 
कहने का भाव है कि मन में कुछ पाने का दृढ़ विश्वास हो तो  झरने की तरह रास्ता साफ करके मंजिल पा लेनी चाहिए। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
ये कथन पूर्णतया सत्य है की जीवन का बहाव झरने जैसा होना चाहिए क्योंकि जीवन मैं भी वो ही गति होती होती है जो झरने मैं होती है .......झरनानिरंतर गति करता है और जीवन भी निरंतर चलता रहता है
झरने की गति परिवर्तन  का प्रतीक है
जीवन मैं गति भी परिवर्तन का प्रतीक है .जीवन मैं निरंतर गति और परिवर्तन हमें यह सन्देश देते हैं की हमें वक्त के साथ चलना चाहिए और चलना सीखना चाहिए
झरने के प्रवाह की तरह हमें बदलते वक्त के साथ तालमेल बनाकर चलनाचाहिए .यदि हम वक्त के अनुसार अपने आपको ढाल नहीं सकते तो निश्चय ही हम सोच मैं जीवन मैं पिछड़ जाते हैं 
- नंदिता बाली
 सोलन - हिमाचल प्रदेश
अवश्य, जीवन का बहाव झड़ने की तरह ही होना चाहिए। जीवन को झड़ने की उपमा भी दी जाती है। जिस तरह से झरने का पानी अविरल गति से पत्थरों से टकराते हुए पेड़ो और जंगलों में निरंतर प्रवाहित होते रहता है ठीक उसी तरह से हम अपने जीवन में गति, स्फूर्ति और लगन के साथ संघर्षों से टकराते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।
       जीवन में तरह-तरह के अवरोध उत्पन्न होते रहते हैं। सुख-दुख का मिश्रण हीं जीवन है। अगर हम मुश्किलों से घबराकर या उदास होकर हार मान जाएं तो हमारा जीवन जमे हुए पानी की तरह बदबू दायक हो जाएगा। अविरल धारा की तरह अगर हम बहते रहें तभी हमारा जीवन सार्थक होगा।
      जिस तरह से झरने का पानी ऊंचाइयों से नीचे गिरते हुए भी अविरल धारा में प्रवाहित होता है ठीक उसी तरह से हम संघर्षों से गुजरते हुए अपने जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करते हैं और करते रहना ही चाहिए।
निरंतर गतिमान बने रहना ही सफल जीवन का द्योतक है। प्रकृति प्रदत वस्तुओं से हमें संदेश  मिलता है कि हमें भी जीवन में निरंतर कठिनाइयों को झेलते हुए अग्रसर रहने का प्रयास करना चाहिए ! 
               -  सुनीता रानी राठौर
                  ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
झरने का जल अत्यंत शुद्ध होता है ।स्वादिष्ट होता है । शरीर और मन को शीतलता प्रदान करता है । ऐसे ही अगर जीवन में बहाव हो तो हम दिन प्रति दिन नूतनता को उपलब्ध होंगे ।लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब हमारा मस्तिष्क हृदय को सुनने लगे ।जब हमारे भीतर संतुलन हो ।लेकिन अगर हम किसी एक विचारधारा, किसी एक वाद  से प्रभावित होते हैं अर्थात पक्षपात करते हैं ।करेंगे ही ।तो हमारी ऊर्जा आगे नहीं बहती ।वही रुक जाती है ।
जैसे तालाब का जल अशुद्ध हो जाता है ऐसे ही हमारे विचार अवरुद्ध हो जाते हैं ।जीवन में अगर झरने जैसा बहाव हो तो नित नूतन विचार आते हैं हमें ताज़ा कर जाते हैं । हमारी ऊर्जा बहती है ।हम विकास की ओर अग्रसर होते हैं ।इस तरह हम नित नूतन कार्यशैली को अपनाकर जीवन का रसास्वादन कर सकते हैं ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
झरना लगातार झर झर करता हुआ अपनी दिशा को निर्धारित करता है झरना के रास्तों में पर्वत पहाड़ बड़े-बड़े चट्टान नाले नदी सब आते हैं पर सभी को पार करते हुए अपनी दिशा तय करता है कहने का तात्पर्य है कि झरना में गतिशीलता है ठीक इसी प्रकार मानव जीवन भी गतिशील है जीवन चलने का नाम है चलते ही रहना उसका काम है जिस दिन जीवन की गतिशीलता थम जाएगी रुक जाएगी जिंदगी का अंत हो जाएगा जीवन में सुख दुख कठिन परिस्थिति विषम परिस्थिति सुखद परिस्थिति आती रहती हैं मानव जीवन हर परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने व्यवहारों के माध्यम से विजय प्राप्त करता हुआ आगे बढ़ता जाता है हमेशा यह शिक्षा मिलती है पीछे मुड़कर ना देखो जो बीत गई वो बात गई जो गुजर गया वह चला गया आगे देखो सारा संसार पड़ा है आगे का रास्ता तय करो इसलिए जीवन की तुलना जो झरने से की गई है वह बिल्कुल सही और उचित है जिस दिन झरना रुक जाएगा पानी का बहना रुक जाएगा वाह नाला बन जाएगा खत्म हो जाएगा लेकिन पानी का  बहाव ही झरना है उसी प्रकार जीवन झरने की तरह आगे चलता रहता है गतिमान है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन एक निर्बाध रूप से अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है मानव जीवन हर समय अपनी गति से
निरंतर चलता रहता है यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम उसे किस तरह से जियें समय का चक्र कभी रुकता नहीं इसलिए जीवन को झरने की तरह स्वच्छ निर्मल अपनी रफ्तार से बहने देना चाहिए हम आप चाहें ना चाहें
जीवन में जो होना है लाभ हानि सुख दुख अपने आप ही समय के साथ होता चला जाएगा हमें तो बस आज में
 जीना चाहिए आज जो प‌ल‌ बीत गया वह कभी भी किसी भी मानव के जीवन में दोबारा लौटकर नहीं आता है
अत्यधिक दुख होने पर और अत्यधिक सुख होने पर भी हम यदि समभाव रखते हुए जीवन को जीते हैं तो निश्चित ही जीवन सुख में आनंद में उत्साह उमंग के साथ जीते चले जाएंगे जीवन में सकारात्मक सोच, आत्मिक ऊर्जा
और कर्तव्यनिष्ठ होकर  जीवन दायित्व को निभाने वाले कभी किसी बात की परवाह किए बिना निर्झर झरने की तरह बहते हुए अपना जीवन आनंद सुख समृद्धि वैभव यह सब क्षणिक
नश्वर मानते हुए जीवन पथ पर चलते हुए बढ़ते रहते हैं।
*तुम ना चलोगे तो चल देगी धारा*तुमको चलना होगा*
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " जीवन पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना चाहिए । झरना भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र बहता है । तभी हम सब प्राकृतिक के अनुरूप कार्य करने में सक्षम होते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. आज का शीर्षक बहुत ही विचारणीय...सबके विचार अच्छे लगे कोई सहमत तो कोई असहमत।

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  2. जीवन झरने की तरह निरंतर निर्बाध गति से चलता रहता है। अपनी मार्ग की बाधाओं को पीछे धकेल ता हुआ झरना अपने गंतव्य की ओर पहुंच कर ही दम लेता है उसी तरह से मानव जीवन भी है जिसमें तरह-तरह की कठिनाइयों की परीक्षा देता हुआ इंसान अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता जाता है और लक्ष्य सिद्धि करता है।

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