कोरोना काल में आपने क्या सीखा है ?
कोरोना काल में सभी ने कुछ ना कुछ सीखा है । मैने भी सीखा है। आपने भी सीखा है । क्या सीखा है ? यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
वैश्विक महामारी कोरोना से आज सारा विश्व त्रस्त है, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन इस करोना काल में करोना ने एक कठोर अभिभावक और एक अनुशासित शिक्षक की भी भूमिका को बखूबी निभाया है।
कोरोना काल में लोगों ने अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया और इसे ही सर्वोपरि माना। अपने स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिए सभी ने हर तरह के प्रयास किए। आदिकाल से ही आयुर्वेद के क्षेत्र में हमारा देश समृद्ध हो रहा है। हमारे देश के लोगों ने आयुर्वेदिक औषधियों को अपने दैनिक दिनचर्या के खानपान में भरपूर उपयोग किया और कई तरह के औषधीय काढ़ा का नियमित सेवन करने लगे, जिससे लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है। इसके अलावा लोगों ने स्वास्थ्य स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम, योग और प्राणायाम करने लगे हैं ।यह बीमारी मुख्यतया स्वांस संबंधी होती है जो शरीर के बाकी अंगों को भी प्रभावित करती है ।प्राणायाम विशेषता सांसों की क्रिया है जो इस रोग से बचाने में काफी कारगर साबित होता है ।लॉकडाउन में लोगों को लंबी अवधि तक घरों में रहना पड़ा इस समय लोगों को सीमित संस्थानों में कैसे रहा जाता है ,वह सीखा कोरोना काल में लोगों ने अपने जीवन में अनुशासन का महत्व और रिश्तो की अहमियत को बखूबी समझा ।2020 इतिहास में सर्वदा स्मरणीय रहेगा। इस साल करोना का तांडव ,लोगों की अगणित मौत, लेकिन यह हमें बहुत कुछ सिखा भी गया, जो हमारे लिए बहुत लाभदायक है।
- रंजना वर्मा उन्मुक्त
रांची - झारखण्ड
जहां हम सभी कोरोना काल को एक महामारी,दुखद वक्त और छुआछूत जैसे बिमारी के रूप में जानते हैं वहीं मुझे लगता है कि कोरोना काल हमें कुछ सिखाने और अपने सभ्यता संस्कृति की याद दिलाने आया है। आधुनिकता की होड़ में हम अपने नियम नीति भूल गए थे उसे याद कराने ये प्राकृतिक विपदा आई है।
हमारे देश में सदा से मानवता धर्म सबसे अग्रनी रही है।एक दूसरे की मदद करना, बेसहारों का सहारा बनना, भूखे का पेट भरना,दान देना और आज हम यही सब नेक काम कर रहें हैं।साफ सफाई का भी ध्यान रख रहे हैं। बड़े बुजुर्गो से सदा सुनते आए थे कि कहीं से आकर जूते चप्पल बाहर उतारने के बाद पहले हाथ मुंह धोकर घर में आना है।आज हम इसे अच्छी तरह से कर रहे हैं। नमामि गंगे योजना के तहत करोड़ों रुपए खर्च किए गए लेकिन गंगा साफ नहीं हो पाई आज सभी नदियां, तालाब स्वतः साफ हो गयी। वातावरण प्रदूषण मुक्त हो गया है।ये प्रकृति की ताकत है।इस महामारी के तहत परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ रहने को मिला। बड़े बच्चे, बूढ़े सभी को साफ सफाई का ध्यान है।घर का शुद्ध भोजन साथ मिलकर खाने का सुख प्राप्त हुआ।जैसा कि भारत में सदा से होता आया है। गलती हम इंसानों ने की है तो सजा के रूप में इंसानों से दूरी बनाए रखना है।इस कोरोना काल ने घर, परिवार और अपनों के महत्त्व को बताया है।साथ ही बताया है कि हम धरती पर मेहमान हैं मालिक नहीं।यानि प्रकृति से बढ़कर कुछ नहीं,उनके अनुसार हमें चलना होगा।हम उन्हें नहीं चलातें हैं।
- रेणु झा
रांची - झारखंड
:- कोरोना काल से सीखा कि हम बाहर बेफिजूल बहुत घूमते हैं। थोड़े दिन घर में टिक कर बैठे तो शांति मिलेगी।
जिन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती वह खरीदते रहते हैं यदि 1 बर्ष कपड़े नहीं खरीदेंगे तो भी आराम से काम चल जाएगा।
फास्ट फूड डोसा, टिक्की, पिज्जा, बर्गर, समोसे के बिना भी काम चल जाता है उसकी जगह घर में बने गर्मा- गर्म पकौड़ों के संग चाय बहुत अच्छी लगती है।
हम दिखावे की दुनिया में ज्यादा रहते हैं हकीकत में कम।
दुनिया में रिश्ते- नाते भाई- बंधु कोई भी अपना नहीं सिर्फ अपना शरीर ठीक है तो सब कुछ सही है नहीं तो कुछ नहीं।
अंत में..इस विश्व को बिंदु नचा सकता है सिंधु नहीं ..। प्रकृति के प्रकोप आगे दुनिया भर के ज्ञान की सत्ता गौण है! गौण है !! गौण है!!!
- संतोष गर्ग
मोहाली -चंडीगढ़
कोरोना काल में जीवन की क्षणभंगुरता को महसूस कर कम साधन में सादगी पूर्ण जीवन जीना सीखा। हृष्ट पुष्ट स्वस्थ्य संपन्न व्यक्ति खुद को, अपने परिवार के सदस्यों को नहीं बचा पा रहे, मौत का भयावह मंजर देख इंसान के बेबसी को महसूस किया।
स्वास्थ्य कर्मियों के साथ -साथ दाह संस्कार करवाने तक और साथ ही दूसरे धर्म के लोग जिस तरह से (जिनके अपने बच्चे साथ नहीं दिए )उनका साथ निभाते हुए इंसानियत का परिचय दिया उसे देख कर मानवता को निभाना सीखा।
साफ सफाई पर गंभीरता से ध्यान देना सीखा।ऑनलाइन पढ़ाई के साथ-साथ ऑनलाइन कार्यक्रम देना और प्रतियोगिता में प्रतिभागी बनना सीखा।
सालों साल कंपनियां घर से अपना कार्य सुचारु रुप से जारी रख सकती है यह भी देखा और सीखा।
चुनाव प्रचार के लिए वर्चुअल रैली का भी ज्ञान मिला। ऑनलाइन खरीदारी करना सिखा। शादी पर जो फिजूलखर्ची होती थी वह कम खर्चे में सादगी पूर्ण तरीके से किस तरह कराई जा सकती है यह भी सीखने को मिला।
साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात पहली बार घर के सदस्यों को एक साथ रहने का मौका मिला जिससे पुरुष वर्ग के लोग और कामकाजी बेटियों को तरह-तरह के व्यंजन बनाना सिखाया और बच्चों के सहयोग से यूट्यूब के द्वारा हमने भी तरह-तरह के साज सज्जा के साथ नये व्यंजन बनाना भी सीखा और साथ ही तरह -तरह के विषयों से संबंधित ज्ञानार्जन भी की किए।
इस तरह से समय का सदुपयोग करते हुए विविध चीजों का ज्ञान प्राप्त कर हमने अपने जीवन को गुणों से सुसज्जित कर व्यक्तित्व को निखारने का प्रयास किया।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
विषय का सीधा संबंध व्यवहारिकता और व्यक्तित्व से है कुरौना काल एक वैश्विक महामारी का समय सबको एक चुनौती का सामना करना सिखाया
पूरे देश की मानसिकता को बदल डाला
आत्मनिर्भर बनाना सिखाया
धैर्य सहनशीलता की सीमा को बढ़ा दिया
घरेलू काम को अपने हाथों से करने की आदत विकसित करा दिया
सीमित आय में संसाधन में लोगों को जीना सिखा दिया
घरेलू खाना हेल्दी खाना स्वादिष्ट खाना जो भूल चुके थे वह उसकी आदत डाल लिए
घर में बने काढ़ा आयुर्वेदिक औषधियों का महत्व समझ में आने लगा
फिजूलखर्ची पर जो भी व्यय होते थे वह सिमट गए
घर में रहना सिखा दिया गया
वर्क फ्रॉम होम वर्क फॉर होम दोनों कला में निपुणता ला दिया
अपना घर अपने गांव अपने जन
की कीमत महत्व परदेसियों को समझ में आ गया
कलम में एक ताकत भर दी अनुभवों को मंच पर पटल पर रखने की विद्या समझ में आ गई
घर में रहकर भी आप मनचाहा कार्य कर सकते हैं
ऑनलाइन जरूरत की सामान मंगाने की कला भी सीख गए
घरों के सामानों की सुरक्षा करना लोगों को समझ में आने लगा पेड़ पौधों से लगाओ बढ़िया
मानवता संवेदनशीलता सहायता करने के लिए हर इंसान तत्पर रहने लगे
इस प्रकार एक नए जीवन से परिचय करवा दिया करो ना
पारिवारिक माहौल बच्चों के साथ रहना घरेलू कामों में पुरुषों के द्वारा मदद किया जाना अनेकों ऐसे काम है जो इंसान सीख गया
इस प्रकार कोरोना देश के नागरिकों को जीवन जीने की कला सिखा दिया समझदारी पतला दिया सीमित आय में रहना सिखा दिया अपने जन्म भूमि से प्यार करना सिखा दिया पारिवारिक माहौल के महत्व को समझा दिया परिवार ही जीवन का सबसे बड़ा मकसद है परिवार खुश तो हर इंसान खुश
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हमने सीखा है कि सरकार 15 दिन के लाॅकडाउन में ही भीख मांगने पर उतारू हो गई थी। जिन कार्यों में पारदर्शिता नहीं थी, उनमें पारदर्शिता आई और जितने कार्य कार्यालयों में नहीं होते थे, उससे कहीं अधिक घरों से सफलतापूर्वक किए गए।
ऐसे ही न्यायालयों में भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग से सुनवाई हुई। कोरोना के अलावा दूसरी बीमारियों से मृत्यु दर पर तथाकथित अंकुश लगा। जबकि सुनने में यहां तक आया कि अन्य बीमारियों से मरने वालों को भी कोरोना मृत्यु में दर्शाया गया है। क्योंकि उसके लिए सरकार व चिकित्सकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन से धन लाभ होता है। जिससे चिकित्सकों की विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्नचिंह लगे और उनकेे साथ-साथ सरकारी एवं निजी चिकित्सालयों पर भी गंभीर आरोप लगे। जिनकी कड़वी सच्चाइयों पर से पर्दा उठना अभी बाकी है।
कोरोना के कारण महाराष्ट्र सरकार द्वारा सुशांत सिंह राजपूत की चांच को बाधित करने के लिए बिहार से गये भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी को रोकने के प्रयास से भी बहुत कुछ सीखने को मिला कि न्याय पाना सहज व सरल नहीं है।
जबकि मुझे केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन एसएसबी विभाग ने तपेदिक रोग, मानसिक तनाव, देशद्रोह की विभागीय जांच के चलते 504 दिन के वेतन से वंचित रखा। यही नहीं प्रताड़ना एवं शोषण से उपजे तनाव को मनोरोग चिकित्सकों से मिल कर मुझे मानसिक रोगी घोषित कर नौकरी से निकाल दिया। जिसके न्याय के लिए मैं निरंतर दर-दर भटक रहा हूं।
अतः कोरोना काल ने जो अविश्वसनीय और अकल्पनीय सिखाया है। उसकी तुलना करने के लिए शब्द नहीं हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कोरोना काल में मैंने तो ज्यादा कुछ सीखा नहीं क्योंकि बहुत सा ऐसा काम जो लोग कोरोना काल में कर रहें हैं मैं पहले से ही कर रहा था। मसलन मैं बाहर से जब घर में आता था तो पहले बाथ रूम में जाकर हाथ पैर साबुन से धोता था। यदि जूता पहने रहता तब पैर केवल पानी से ही धोता था। उसके बाद ही कपड़े बदलता था। गर्मी या बरसात होने से कपड़ा भी खंगाल देता था। सुबह हम लोग 25 से 30 आदमी योग व्यायाम करते थे तो मैं अलग दूरी बना कर ही रखता था। कभी -कभी मैं ज्यादा बोल देता था जिसमें सच्चाई होती थी तो लोग सह नहीं पाते थे। तो मैं कहता कल से मैं जैन संन्यासी की तरह मुँह पर कपड़े बांध कर आऊँगा। लेकिन किसी दिन बांधा नहीं।
कोरोना काल में ये देखने को मिला कि लोगों के पास पैसे बहुत हैं पर किसी काम के नहीं। इसलिए ये समझ में आया कि खूब खाओ पियो मौज करो।वैसे ये ज्ञान मुझे कई साल पहले आ गया था कि जो आप खा लिए पहन लिए ,घूम फिर लिए वही स्वारथ हुआ। बाकी सब बेकार सिद्ध हुआ।
कोरोना काल में यही सीख मिला कि बचाकर कुछ नहीं रखना है सबका उपभोग करना है। सबसे प्रेम भाव से रहना है। यही सबसे बड़ी चीज है। क्योंकि मंदिर मस्जिद भी कोई काम नहीं आया।
हाँ ! कोरोना काल से बहुत नुकसान हुआ तो फायदा भी हुआ।पर्यावरण शुद्ध हो गया। नदियाँ स्वच्छ हो गईं।बहुत से लोग शाकाहारी हो गए। फायदा सार्वजनिक ही हुआ है।
कोरोना काल के दौरान साहित्य के काम खूब हुए। इसे कहा जा सकता है कि साहित्य में बहुत कुछ सीखने को मिला। चर्चा में भाग लेना फेसबुक गूगल मीट, लाइव कविता पाठ वगैरह सीखने को मिले।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
प्रथम तो कोरोना काल हमें यह सीख लाया है कि भविष्य में आने वाले ऐसे खतरों से आगाह कराया है जिसके लिए हमें हर वक्त तैयार रहना चाहिए! कोरोना के कहर ने पूरी दुनिया के कदमों को तो रोका पर साथ ही एक दूसरे की मदद को भी आगे आए और उन्होंने समस्त विश्व को आर्थिक चपत तो लगाई किंतु मानवता बचाने का लक्ष्य सभी देशों को साथ लेकर आया!
कोरोना काल के लॉकडाउन नाै हमारी जीवन शैली ही बदल दी!
हमारी आवश्यकताओं की सीमा रेखा का बोध कराया!
समय का महत्व बताया ,कर्तव्य के प्रति सजग होना, जीवन है तो मुस्किलें आयेंगी इसका बोध करा संयम और धैर्य का पाठ पढ़ाया ,दूसरों के प्रति सद्भावना सद्विचार की भावना आने से व्यवहार कुशलता का बोध हुआ, अहंकार का त्याग कर विनम्रता का बोध कराया, संवेदनशील हो गये और संवेदना आ जाने से एक दूसरे का दुख बांटने लगछ, समझने लगे, संघर्ष करना सिखाया, रिश्तों की अहमियत जानने लगे, ईश्वर के करीब आ गये! जीओ और जीने दो का मतलब समझने लगे!
बहुत कुछ सीखा हमने!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
करोना काल में बहुत कुछ सीखने को मिला। विषम से विषम परिस्थितियों में भी यदि आपकी इच्छा शक्ति मजबूत है तो आप कैसे खुद को और परिवार को संभाल सकते हैं यह भी मैंने सीखा कभी सपने में भी नहीं सोचा था की ऑनलाइन फ्री इतना काम हो सकता है नई टेक्नोलॉजी को भी अपनाया उससे घर के किराने के सामान मंगाऐ ,कई तरीकों के बिलों का भुगतान भी किया।
इस कठिन परिस्थिति युवा वर्ग ने बुजुर्गों का बहुत ध्यान रखा सभी लोग एक दूसरे की मदद करने में भी जुट गए डॉक्टर और समाजसेवी संगठनों ने भी आम जनता का बहुत सहयोग किया।
बच्चों को भी घर का खाना खाना और प्रोटीन विटामिन पौष्टिक आहार की कीमत पता चली सभी के फास्ट फूड बंद हो गए यह तो एक बहुत ही अच्छी बात हुई।
बदलाव तो प्रकृति का नियम है बदलाव में भी यदि हम आशा वान रहे और नई दिशाएं खोजें तो भगवान जी ने की बहुत सारी राह दिखा देता है बस हमें मजबूत होना पड़ेगा।
बदलाव हमेशा अच्छा होता है और प्रकृति का नियम है पर बदलाव के जो विरोध होते हैं और कुछ स्वार्थी लोग स्वार्थ साधते हैं वह बहुत दुखदाई रहता है।
स्वस्थ रहें मस्त रहें अपना ध्यान दें।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
कोरोना काल ने बहुत अच्छी बातें सिखाई , हमें आईना दिखाया है ...
भयानक वैश्विक आपदा के तौर पर पूरी दुनिया के सामने एकाएक आए कोरोना वायरस संक्रमण ने आज हम लोगों को जिंदगी के बेहद कटु व अच्छे अनमोल सबक सीखने पर मजबूर कर दिया है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए दुनिया की अधिकांश आबादी पिछ़ले लम्बे समय से अपने घरों में कैद होकर रह गयी है, वहीं इस आपदा के दौरान दुनिया भर में प्राकृतिक और भौगोलिक स्तर पर बहुत सारे सबक व सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं।
जिस प्रदूषण को कम करने के बारे में अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी हमारे व सरकार के प्रयास नाकाफी पड़ रहे थे, आज उस प्रदूषण को लॉकडाउन ने आश्चर्यजनक रूप से एकाएक नियंत्रित कर दिया है। लॉकडाउन के बीच सबसे अच्छी ख़बर यह आई है कि लॉकडाउन की वजह से भारत की राजधानी दिल्ली समेत देश के तमाम दूसरे शहरों में वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण में अप्रत्याशित रूप से भारी कमी आयी है, जिस तरह से गंगा, यमुना, हिंड़न, नर्मदा आदि नदियों को हम हजारों करोड़ों रुपये सालाना खर्च करके भी स्वच्छ नहीं कर पा रहे थे, उसको लॉकडाउन के चंद दिनों ने स्वच्छ व निर्मल बनाकर साफ कर दिया।
लॉकडाउन के चलते हम लोगों की दिनचर्या पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गयी है। सामान्य दिनों की दिनचर्या से जब हम हटकर कोई काम करते हैं तो उसका प्रभाव हमारे जीवन में अवश्य दिखाई पड़ता है।
ऑनलाइन अपने रोजमर्रा के कार्य को बखूबी कर रहे है, जिससे देश में आने वाले समय में वर्क टू होम की कल्चर को बढ़ावा मिलेगा। कुछ लोगों को अपनी शराब पीने व गुटखा खाने जैसी गंदी आदतों से पूर्ण रूप से छुटकारा मिल रहा है, बेवजह के खर्चों पर लगाम लग रही है। कुछ लोग हर समय अपनी दुनिया में व्यस्त रहते थे वो लोग अब परिवार के लिए आजकल अपनी आदतों में बदलाव करके मां, बाप, भाई, बहन, पत्नी, बच्चों के साथ खुश है और उनको भरपूर समय देने के लिए इस अवसर का पूरा सदुपयोग कर रहे है।
इस महामारी के दौरान लोगों ने स्वस्थ खानपान के महत्व को जाना। आमतौर पर सेहतभरा खानपान करने वालों में संक्रमण की दर नहीं के बराबर देखने को मिली। लॉकडाउन में स्वस्थ खानपान का महत्व लोगों को समझ में आया।
ऐसे कई लोग हैं जो तालाबंदी के पहले यह कहते नहीं थकते थे कि व्यायाम करने का समय ही कहां है। लेकिन घर में लंबे समय तक रहते हुए उन्हें व्यायाम का पूरा मौका भी मिला। इससे मिलने वाले फायदे का असर लाेगों को समझ में आया।
लॉकडाउन के पहले कई बार काम की जल्दबाजी में आप बिना हाथ धोए ही अपने काम में लग जाते थे। कई टीनएजर्स इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि खाने से पहले भी कभी-कभी वे हाथ धोना भूल जाया करते थे। लेकिन कोरोना का असर होते ही बेसिक हाईजीन के महत्व को हमने जान लिया है।
पैसो का महत्व समझा दिखावा बंद हुआ हमारी जरुरते कितनी कम है और हम कहाँ भाग रहे है
बहुत सी बातें कोरोना काल ने समझा दी है
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जहांँ तक आज की चर्चा में यह प्रश्न है की कोरोना काल में आपने क्या सीखा तो करोना कॉल ने हमें बहुत कुछ सिखाया है और जो सबसे कीमती बात है वह यह है कि तंदुरुस्ती हजार नियामत है यदि हम स्वस्थ हैं तो सब कुछ ठीक है सब कुछ अच्छा है और यदि कोई बीमारी हमें घेर लेती है और बीमारी भी कोरोना की तरह की तो फिर क्षण भर में सब कुछ बेकार लगने लगता है जिंदगी में मौत से बड़ा कोई डर नहीं है यह हमने पिछले कई महीनों में देखा जब आदमी जानवरों की तरह पिंजरे में कैद हुआ घर रूपी पिंजरे में और जानवर सड़क पर दिखे प्रकृति ने एक ही झटके में आदमी को उसकी औकात बता दी है यह अलग बात है कि आदमी अभी समझने को तैयार नहीं है झूठ फरेब धोखा देनी अकर्मण्यता में ही आनंद समझता है जबकि सबसे बड़ा आनंद यही है कि यदि हमारा स्वास्थ्य ठीक है और हम अपने काम को ठीक तरह से अंजाम दे पा रहे हैं तो यही हम सबके लिए अच्छा है दूसरी बात यह है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना अपने पर्यावरण को खराब करना है और पर्यावरण संतुलित है तो हम सब लोगों का जीवन सुरक्षित है यह असंतुलन जिस दिन इतना अधिक बढ़ गया कि हम सांस लेने के लिए हवा ही नहीं ले पाए तो कोई भी नहीं बचेगा और सब कुछ ही धरा रह जाएगा जितना भी जीवन है बहुत प्यार से ईमानदारी से और समाज के भले हुए को सोचते हुए बिताया जाए तो इससे अच्छा दूसरी बात नहीं हो सकती और सबसे जरूरी बात यही है कि अपना ध्यान रखें अपनों का ध्यान रखें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें परिवार का ध्यान रखें अपने उन सभी का ध्यान रखें जो आप के आस पास हैं और अपने देश का ध्यान रखते हुए अपने हर कार्य को करते समय यह दरूर सोचें कि मै गलत तो नही कर रहा हूँ अपनी आत्मा की आवाज सुनें और सही व गलत की पहचान करना सीखे अच्छाई की तरफदारी करें
कौन जाने किस घड़ी तक है किसी की जिंदगी है प्यार बाँटे सम्मान करना सीखे खुशियाँ फिर लौटेंगी़़़़़़़़़़
प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना काल से पूरी दुनिया ने काफी कुछ सीखा है ।भविष्य में आने वाले संकट से वर्तमान में ही तैयारी करने की सीख दी है। उसका असर भविष्य में जरूर दिखाई देगा।
कोरोना काल में सरकारों और लोगों को कुछ बातें जानने और समझने का मौका मिला है ।यह बातें वह है, जिनको अभी तक ज्यादातर लोग नकारते आ रहे थे।
हर चीज में कुछ ना कुछ सीख छिपी होती है।
कोरोना काल में लोगों ने घरों और अपनों के महत्व को भी जाना ।
कोरोना काल मे आदतों में बदलाव हुआ है।
अब मां -बाप ,भाई ,बहन ,पत्नी, बच्चों के साथ रहकर भरपूर समय देना सीखा ।
गलत आदतों से छुटकारा पाना जैसे :-शराब, पान -सिगरेट, गुटका ,दोस्तों के साथ मटरगश्ती करना। बेवजह बाहर निकलना और वाहनों को सड़क पर लाना।
भविष्य में सरकारों ने प्रदूषण को कम करने के लिए इस तरह के कदम उठा सकती है।
बच्चों के पढ़ाई को ऑनलाइन सीख मिला । वर्चुअल क्लासेस ना होकर ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों को बड़ा सहारा मिला।
इसी प्रकार ऑफिस के काम घर पर बैठकर करने का अनुभव मिला। ऑनलाइन ऑफिस करने से कोई काम मे रुकावट नहीं हुई साथ -साथ प्रदूषण पर भी नियंत्रण हुआ।
लेखक का विचार:- भविष्य में जो बदलाव के संकेत है,उसे हमें इस दौरान दिखाई दिए हैं ।यह भी काफी अहम है ।भविष्य में भी इनसे निकालना संभव नहीं होगा। इससे नई दिशा एवं तरक्की की राह पर देश - दुनिया आगे जाएगी।
- विजेंयद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
करोंना काल.ने हमे अपने घरों में स्वेच्छा से बंद रहने
की आदत ,अल्प आय में जीवनयापन, रिश्तों का पुनर्मूल्यांकन करना,मानव के अति अहम् को धरती पर ला पटका है । मानव ने विपत्तियां तो बहुत देखी पर यह विपत्ति सम्पूर्ण विश्व को तटस्थ कर रही है ।अंतहीन ,निर्णय हीन, असंमजस वाला समय है यह। जो सब से बड़ी सीख मिली है वो है मानव धर्म की, फिर चाहे वो सीमित साधनों में मनुष्यों की सहायता करनी हो या पशु पक्षियों के लिए दाना-पानी और रोटी की व्यवस्था हो। भूख का कोई धर्म नहीं होता है । मजदूरों का पलायन देखकर सीखा कि हिम्मत सब से बड़ा साथी है ।
घर में रहकर बिना नौकरों के जीना सीखा। स्वच्छता का जुनून चढ़ गया ,चाहे वो बीमारी के ड़र से ही है । खान पान में सयंम और बुजुर्गों के नुस्खों से उपचार भी मिला।
हर व्यक्ति अपने भीतर झाँकने को मजबूर हो गया है ।
ईश्वर पर आस्था बड़ी, खुद पर संयम बड़ा।. यह समय जीने का ढ़ग सीखा गया ।अब कोई कठिनाई बड़ी नही है। स्वावलंबन ,सौहार्द और सेवा सबक है जो मुझे मिले हैं ।
मौलिक और स्वरचित है ।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
कोरोना जिसे कोविड १९ भी कहा जाता है, एक महमारी के रुप में फैल चुका है ओर थमने का नाम नहीं ले रहा है।
कोरोना की महमारी ने लगभग पूरे विश्व को झंझोड़ कर रख दिया है।
यह एक ऐसा वायरस है जो बहुत तेजी से फैलता है यहां तक की अब यह हवा के जरिए भी फैल रहा है।
जव तक इसका कोई पक्का ईलाज नहीं आता हमें हर हलात में सतर्क रहने की जरूरत है, ताकी हम कम से कम अपना वचाब तो कर सकें, कोरोना के कहर को लगभग ९ महीने का वक्त होने को जा रहा है जिसमें लाखों की तदाद में मौतें हो चुकी हैं ओर मृत्यु का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।
लेकिन कोरोना काल में हमें बहुत कुछ सीखने को मिला है, कहते हैं सेहत ही जहान है, तो कोरोना ने हमें सिखाया है की सेहत को कैसे साफ सुथरी व फिट रखा जा सकता है, आजकल हर इन्सान हर कार्य करने के पहले ओर वाद में अपने हाथ धोता है कपड़े रोज साफ सुथरे पहनता है जूतों को साफ सुथरा रखता है ओर घर के वाहर ही खोलकर रख देता है, यानी अपनी साफ सफाई का ध्यान अब सव को है।
इसके अतिरिक्त लोग अब योगा व कसरत मे़ बहुत रूची ले रहे हैं यह सब कोरोना के डर से लोग इतने अलर्ट हुए हैं।
इसके एलाबा फिजूल ख्रर्ची बहुत कम हुई है लोग बाहर की चीजें नहीं खा रहे, फिजुल किसी के घर जाना इत्यादी वंद हुआ है जिससे लोगों को वजट में रहने की आदत पड़ गई है।
बहुत से कार्य जैसे शादी बिवाह इत्यादी कम खर्चे में हो रहे हैं जिससे गरीब आदमी को काफी राहत मिली है। लोगों को साधारण जीवन में भी अब आनंद महसुस हो रहा है।
कोरोना महमारी ने लोगों को काफी हद तक तब्दील कर दिया है जो एक सीख भी है, क्योंकी बेकारी के रीती रिबाजों ने लोगों को परेशान कर रखा था जिससे आम आदमी बहुत परेशान था अगर यही रीती रिबाज वन जांए तो गरीब की वेटी भी अपना घर बसाने में कामयाव हो जाएगी।
यही नहीं इस महमारी मे लोग बजुर्गों की देखवाल अच्छे ढंग से कर रहे हैं की कहीं वो इस महमारी की लपेट में आ गए तो हमें भी ले डुवेंगे इसी वहाने उनकी देखवाल अच्छे ढंग से कर रहे हैं इससे फिर से बच्चों में संस्कार की लहर दौड़ रही है।
इसमें कोई शक नहीं की कोरोना की महमारी ने तवाही ही तवाही मचाई है लेकिन बहुत सी बातें हमें सिखाई भी हैं जो लुप्त होने के कगार पर थीं।
अत:हमें महमारी के खत्म होने के वाद भी इन सभी बातों को ध्यान मे़ रखना चाहिए जिससे हमारी परपराएं वनी रहें , फिजुल खर्ची वंद हों एक गरीब का चुल्हा भी जलता रहे ओर एक गरीब की वेटी भी अपना घर वसा सके तथा हमारी संस्कृती भी वनी रहे, शायद भगवान ने इस महमारी में यही सिखाने की चेष्टा की हो कि एे इन्सान तू फिर अपनी औकात में रहना सीख।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कोरोन काल में सीखने का जहां तक प्रश्न है तो कोरोना काल ने नियमित लेखन और प्रेषण करना सिखा दिया। पहले लेखन नियमित रूप से नहीं होता था। इसने बीजेंद्र जैमिनी जी जैसे कई मित्रों से नियमित जुड़े रहना और उनके विभिन्न प्रतियोगिताओं के आयोजन में भाग लेना सिखा दिया। घर में रहना सिखा दिया। अनावश्यक घूमना फिरना बंद कराकर सृजनात्मक लेखन में जुटना सिखा दिया। मोबाइल का बहुपयोगी प्रयोग सिखा दिया। विभिन्न ग्रुप्स से जुड़कर विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने और नये नये प्रकाशन अवसरों से परिचित कराया। हमने भी एक ई प्रकाशन अभिव्यक्ति शुरू कर दिया और इसका सारा श्रेय इस कोरोना काल को ही है। इसने आभासी ही सही अनेक मित्रों से संपर्क करने कराने का अवसर दिया। व्यक्तिगत रुप से हर व्यक्ति को उसकी अभिरुचि अनुसार कार्य करने का अवसर इस कोरोना काल ने दिया। बस रोजगार की तरफ से निराश किया, लेकिन इस वैश्विक आपदा ने हमें सच्चाई को जानने समझने और हौसले के साथ जीना सिखाया है।यह कम उपलब्धि नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना काल में मैंने समय का भरपूर सदुपयोग किया। कोरोना काल में कामवाली उपलब्ध नहीं होने की वजह से इस उम्र में भी मैं सारा काम अपने हाथ से करती रही और अब तो आदत बन गई है तो आज भी मैं अपना सारा काम स्वयं ही करती हूं। इसके अलावा मेरा लेखन कार्य भी जारी रहा। मैं सभी विधाओं में लिखती हूं और मुझे श्रेष्ठ सर्वश्रेष्ठ प्रथम काव्य त्रिवेणी काव्यश्री आदि पुरस्कारों से लगातार पुरस्कृत किया जा रहा था और अभी भी किया जा रहा है।मेरी तीन किताबें प्रकाशनाधीन हैं। साहित्य में मेरी रुचि बचपन से ही थी और मैं अपने खाली समय में उसी पर ध्यान देकर साहित्य सेवा करती हूं। सब कुछ बंद होने पर भी सब कुछ व्यवस्थित करके किस तरह जिया जाता है, यह मैंने कोरोना काल में सीखा।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जहाँ कोरोना काल काफी भयावह रहा ,वहीं उसने मनुष्य के अन्दर आत्मविश्वास और चेतना की संपदा दी ।याद रहेंगी सूनी सड़के जैसे विश्वयुद्ध का माहौल हो ।दुःख की घड़ी में भी फोन पर सांत्वना ।अद्भुभुत अनुभव ,ऐसा शायद जीवन में कभी न हो । कोरोना ने जीवन को नियमित और सहयोग की भावना सिखाया ।अपना ख्याल खुद रखना बहुत बड़ी जरुरत बन गयी ।हम सबने सीखा प्रकृति से खेलने का परिणाम कितना बुरा होता है साथ ही मसाले जैसे प्राकृतिक उपहार से जीवन बचाने की कड़ी मिली ।
सफाई की महत्ता जन -जन तक पहुँची ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना काल भी एक विचित्र काल रहा है। जब पहली बार जनता कफ्र्यू लगा था तो मुझे एक अलग ही अनुभव हुआ। व्यस्त जीवन में कोई दिन ऐसा भी आ सकता है यह सोचा नहीं था। फिर लाॅकडाउन की स्थिति आई तो लगा कि ऐसी छुट्टियां भी मिलती हैं। तब कोरोना का आश्चर्य-मिश्रित भय था। दिल्ली में स्थिति बिल्कुल नियन्त्रण में थी। एक सप्ताह बीतने के बाद जब समय व्यतीत करने के लिए सिर्फ खाना, सोना और टीवी देखना ही विकल्प रह गये तथा फिर भी समय बचने लगा तो घर के कामों में हाथ बंटाने लगा। तब पहली बार एहसास हुआ कि मैं एक पुरुष होने के नाते घर से बाहर काम पर निकल जाता हूं तो घर में कितनी जिम्मेदारियां होती हैं। घर की स्त्रियां इतने काम जिस सरलता और सहजता से कर लेती हैं उसे देख लगा कि इनमें ईश्वरीय शक्ति है। कुछ दिन घर का काम करने में नियमन नहीं हो पाया पर धीरे-धीरे हुआ और मन भी प्रसन्न रहने लगा। काम-धंधा तो बिल्कुल बन्द था पर धीरे-धीरे अपने लेखन कौशल में सुधार किया तथा इसे शौक बनाने के साथ-साथ इसे थोड़ा-बहुत रोजगार से भी जोड़ा। कुछ और समय बच जाने पर उन संबंधियों से, मित्रों से, ग्राहकों से बातचीत का सिलसिला शुरू किया तो बहुत अच्छा लगा। घर में बुजुर्गों, बच्चों और पत्नी संग देर तक बैठने का अवसर मिला। एक बेटी दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाती है उससे सीखा और उसे सहयोग दिया। दूसरी बेटी ग्राफिक डिजाइनर है वह किस प्रकार अपने कार्य को आनलाइन अंजाम देती है यह जाना। पुरानी यादें साझा कीं। दिनचर्या बदल गई। कोरोना काल में एक नया अनुभव हुआ और मानसिक परिवर्तन हुआ। घर में रहें, सुरक्षित रहें, बाहर निकलने पर मास्क लगायें, सामाजिक दूरी बनायें, इनका मैं समर्थन और पालन करता हूं। अब जबकि हलचल शुरू हो चुकी है मैं अपनी 64 वर्ष की आयु को देखते हुए अभी भी कार्य के लिए बाहर नहीं निकलता हूं और घर में हर तरह का सहयोग देने का प्रयत्न करता हूं। मेरे लिए कोरोना काल की यही उत्तम सीख रही।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
अघोषित कोरोना महामारी के दौरान लाँकडाऊन लगाकर जन जीवन को घरों में कैद कर दिया गया था, कुछ दिनों तक तो अंसभव सा वातावरण प्रतीत हो रहा था, प्रतिदिनों की दिनचर्या परिवर्तित हो चुकी थी, शनैः-शनैः परिवारमयी वातावरण बनाने की कोशिशें की गई, क्योंकि प्रथम बार ऐसा समय आया, जो सब कुछ भूल कर, भागदौड़ की जिंदगी से सुखमयी जीवन यापन करने मजबूर हो गया, जहाँ सीमित संसाधनों के बीच जीवन को पुनः जीवित अवस्था में पहुँचा सफलता मिली, परिवार क्या होता हैं, प्रति दिन मोबाईलों, व्हाटसाप, फेसबुक पर अपने-अपनों की सुखद अनुभूतियों का सैलाब ह्रदय से मिलता रहा, बच्चे भी एक घरों पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में सफल हो गये। व्यस्ततम जिंदगी जी रहे, बाहरी दुनिया में सब कुछ मिल जाता रहा, गलत खान पान नकारात्मता को जन्म देती रही, घर संसार में रह कर परिवार क्या होता हैं, वृहद स्तर पर सिखने को मिलता रहा,
स्वादिष्ट व्यंजन-भोजन रसावादन कैसा किया जाता हैं, सिखने को मिलता रहा, स्वास्थ्यवर्धक, ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त टीवी चैनलों पर विभिन्न प्रकार की मिलती रही। रुपयों की बचत होती गई।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
कोरोना काल का दौर नए जमाने की एक झलक थी। यह समय वैश्विक बदलाव की एक झलक है। जिसने समाज के निर्माण और नियमों तक को परिवर्तित कर दिया है। कुछ नियम पूर्ण रूपेण निरर्थक साबित हो रहे हैं।
जैसे
*एक दूसरे से मिलने पर दूरी बनाना* । पहले हम गले मिलते थे तो आत्मीयता दिखती थी।
*हर नियमों का ईमानदारी से पालन करना* पहले नियमों के प्रति लापरवाही बरतते थे।
*अपने खान-पान में स्वास्थ्य के लिए विशेष पदार्थों को जोड़ना* । पहले कुछ भी खाने से परहेज नहीं करते थे।
*व्यायाम के प्रति सजगता* । पहले व्यायाम के प्रति लापरवाही होती थी।
*अकेलेपन से लड़ने की ताकत का विकास* । पहले काम के लिए व्यक्ति की तलाश रहती थी।
*सृजन शक्ति का विकास* । सीमित साधन से विकास की राहें खोजने की बात सीखी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
मानवीय संवेदनाओं को परखने का काल कोरोनाकाल है।जीवन की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने की क्षमता इस समय समक्ष प्रस्तुत हूआ है।अद्भुत दृश्य देखने को और सीखने को मिला है। प्रकृति के साथ हूयें अन्याय के फलस्वरूप मानव को चेतावनी जारी किया गया है।प्रकृति देव के ओर से ।ताकि मानव इस समय अपनी गलतियों पर चिंतन मनन कर सके।अपने के अपनत्व को और ममतामयी रूप को भी लोगों ने तार तार इस कोरोनाकाल मे किया है।मेरी पुस्तक ,कोरोनाकाल, मे मैने इसके दर्दनाक पहलुओं पर अपनी कलम से संदेश दिया है और जो सीख इस समय मे प्राप्त हुआ बेहद ही मार्मिकता के भाव को समक्षता प्रदान हूई है।मन की पीर को कोई नही समक्ष सकता ।दूनिया मे किसी का कोई साथ नही देता है।कोरोना काल में हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। अपने पराए क्या होते हैं इन रिश्तो की नीव कैसी होती है यह सब जानने का मौका मिला। कोरोना संक्रमण से भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। इस घड़ी में हमें शारीरिक ही नहीं मानसिक स्थिति को भी सामान्य रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है। अभी जीने से अधिक जिंदा रहने की चुनौती है। ऐसे हालात में जरूरी है कि हमें एक दूसरे के लिए भावनात्मक सहारा बनने का प्रयास करें। एक मौका मिला है नई बातों को सीखने को। एक अच्छा बदलाव लाना है तो खुद को पूरी तरह तैयार रखना होगा। कोरोना काल में कई परिवार क्वालिटी टाइम बिताने और आपसी रिश्ते मजबूत करने में लगे हैं। कोरोना काल ने सिद्ध कर दिया कि हमारी जीवन शैली, पृथ्वी का स्वास्थ्य और हमारे विकास की नीतियां विरोधाभास तत्वों नहीं है। इनके विरोधाभास हमारे अस्तित्व को समाप्त कर देगा। यह समय तय करना है कि हमें क्या करना होगा कि कौन सी वस्तु या सेवा का उपयोग अनिवार्य है। कोरोना काल में लाखों लोगों की मौत हुई। करोड़ों लोग बेरोजगार हुए जिन्हें आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है। करोना कि जब शुरुआत हुई और लॉकडाउन लगा उस समय 50000000 से भी अधिक लोग अपने अस्थाई घर से दूर थे। लॉकडाउन लगने के बाद हैं वे वहां रुकना नहीं चाह रहे थे। हजारों मिल पैदल चलकर तंगहाली में घर पहुंचे, जिसमें कईयों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। विदेशों में भी लोग लाखों की संख्या में फस गए थे। उनको भी अपने परिवार और घर की चिंता सताने लगी थी। मौका मिलते हैं वे अपने परिवार के पास पहुंचे। कोरोना ने परिवार के महत्व को बखूबी समझा दिया। जो लोग इसकी अहमियत को नहीं समझते थे। ओवल अपने परिवार के साथ है समय गुजार रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है अभी हमें सोचना होगा कि हमारी आर्थिक स्थिति कैसी होनी चाहिए। इस काल में करोड़ों रोजगार खत्म हो गए। इलाज के लिए भी लोग आज भी तरस रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई। कोरोना ने हमें सिखा दिया की हमारी आर्थिक स्थिति हर हाल में मजबूत होनी चाहिए। परिवार और अपनों से संबंध बेहतर होने चाहिए। पर्यावरण और साफ-सफाई और भी हमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है ताकि हम स्वस्थ रहें और सामान्य जिंदगी बिता
सकें।मानव को सरलीकरण के रूपों कोरोनाकाल ने सामने किया है।जिंदगी बडे पैमाने पर शांतिपूर्ण तरीके से जीने की कला होती है कोरोनाकाल ने सिखाया है।जीवन कभी भी उदासीनता के भँवर मे हो तो तकलीफों के रूप को सहजता से और एंकात हो कर सामना करना है एकता के आधार को हमेशा बनाये रखना है ।जीवन को सभ्यता और संस्कृति को लेकर आगे बढ़ने से ही मानव सफलता प्राप्त कर सकता है।कोरोनाकाल ने जिंदगी के सारे रंग सीखाने मे अपनी भूमिका निभाई है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कोरोना काल ने सिखा दिया कि संतुलित जीवन कैसे जीया जाता है। अपनी जरूरतें कैसे कम की जा सकती हैं। पहले ज़रा सी बात पर डॉक्टर के पास दौड़ते थे अब घरेलू नुस्खे काम आने लगे हैं और छोटी मोटी तकलीफों क खान-पान के जरिए ठीक करने लगे हैं।योग प्राणायाम पर ध्यान दिया जा रहा है। परिवार के जो सदस्य काढ़ा के नाम पर नाक भौं सिकोड़ते थे उन्हें वह स्वाद लगने लगा है। नियमित रूप से ब्यूटी पार्लर जाने वालों को भी बिना उसके जीना आ गया है।काम वाली बाई के बिना जहां एक दिन नहीं चलता था वहां सारे काम स्वयं करते हुए थकान तो हो जाती है पर संतुष्टि मिलती है।
मैंनें यूट्यूब से देख कर बहुत कुछ नया बनाना सीखा। सालों बाद पुरानी एलबम की धूल झाड़ कर उससे बातें की और नयापन महसूस किया।
गमलों की सफाई कर पौधों को सहलाया।
घर में अपने हाथों से कपड़े के मास्क बना कर बाँटे। डायरी में लिखी अधूरी रचनाओं को पूरा किया। बहुत कुछ नया लिखा और सीखा। कुछ पत्रिकाएं लेकर रख दीं थीं उन्हें पढ़ने का काम किया।
सबसे बड़ी बात जो कोरोना ने सिखायी कि आजादी कितना सुख देती है।पिंजरा बेशक सोने का हो वह भी अच्छा नहीं लगता। मनुष्य के लिए समाज कितना जरूरी है।प्रवासी मजदूरों से सीख मिली कि अपना गांव,अपना देश कितना प्यारा होता है और विपदा का सहारा होता है। प्रकृति से खिलवाड़ करने का अंज़ाम भी पता चल गया।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
"काेराेना " जिसने वैश्विक महामारी का रूप ले रखा है हमें महत्वपूर्ण सीख दे गई।काविड -19 के दौरान जब सरकार की ओर से लॉकडाउन के आदेश हुए, सभी अपने -अपने घरों में रहे क्योंकि तेजी से फैलती इस बीमारी से सामाजिक दूरी ही कुछ हद तक बचा सकती है। दफ्तर, स्कूल, कामकाजी स्थान सभी बंद हो गए। बाजार में खाद्य वस्तुओं के अलावा सभी बंद ।लॉकडाउन में सीमित समय के लिए ढील दी जाती रही ।परिवार के सभी सदस्य जो दूर दूर कार्यरत थे ,अपने घर लौट आए, एक छत के नीचे जिंदगी बसर होती रही। घर का कामकाज मिलाजुला रहा। दिन भर की सही रूपरेखा तैयार की गई ।योग ,व्यायाम, संगीत ,पौधारोपण व उनकी देखभाल की गई, घर की सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया।काेराेना काे दूर भगाने हेतू तथा राेग प्रतिराेधक उर्जा काे बनाए रखने के प्रयास किये गये । एक संपन्न परिवार जो जीवन यापन में पूर्ण सामर्थ्य वान है ,उसे कोरोना काल में इतनी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा होगा जितना दिहारी दार मज़दूराें फैक्ट्रियो, होटलों, कारखानों में काम करने वाले कामगारों को । जब नौकरी छिन जाती है तो जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित होना पड़ता है। कोविड-19 के दुष्परिणाम इसी वर्ग को ज्यादा भुगतने पड़े। यह महामारी एक अमूल्य सीख दे रही है कि मुश्किल समय के लिए पैसा बचाना बहुत जरूरी है । मैं एक समाज सेविका हूं कोरोना काल के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए समय-समय पर खाद्य वस्तुएं व अन्य जरूरत का सामान वितरित करती रही। संकट की इस घड़ी में हमने परोपकार की भावना को भी सीखा। दूसरों का दुख बांटने /दूर करने का प्रयास भी किया। कोरोना काल में व्यक्ति ईश्वरीय शक्तियों पर भी विश्वास करने लगा ,उसके मन में आध्यात्मिक, धार्मिक, कल्याणकारी भाव भी जागृत होने लगे । लोभ, मोह, दंभ ,अहंकार सब झूठे लगने लगे। पैसा गौण हो गया और स्वास्थ्य मुख्य हाे गया । जीवन में अनोखा परिवर्तन आ गया। आज आदमी -आदमी से डरता है न जाने किसमें यह काेराेना नाम की बला विद्यमान है आज हमारा अपने बचाव और अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान केंद्रित है । अतः आज हमने सामाजिक दायित्व को निभाना भी सीख लिया है और कोरोना की उपस्थिति में आत्म बचाव का गुर भी सीख लिया है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना वायरस से उत्पन्न परिस्थितियों ने मानव जाति को जीवन जीने के नये सन्देश, नयी सीख और उस जीवन शैली से पुन: अवगत कराया जिसे हम भूल बैठे थे।
'सादा जीवन' भारतीय परिवेश का मुख्य अंग रहा है परन्तु हमने विलासिता की जीवन शैली अपनाली और भोग में डूबते जा रहे थे। कोरोना ने हमें सिखाया कि वास्तव में जीवन न्यूनतम आवश्यकता से भी भली प्रकार चल सकता है।
साथ ही सार्थक जीवन के लिए योग, ध्यान, प्रार्थना का महत्व एवं स्वानुशासन और स्व-नियंत्रण को अपने जीवन में अनिवार्य रूप से सम्मिलित करना भी हमें कोरोना काल ने सिखाया है।
लाॅकडाउन के कारण मात्र कुछ समय की बंदिशों से हम व्याकुल हो गये परन्तु हमने उन पक्षियों के विषय में कभी सोचा है जिन्हें हम पिंजरे में बन्द रखकर अपने घर की शोभा बढ़ाते हैं। स्वतन्त्रता का महत्व भी कोरोना काल ने ही बताया है।
सबसे महत्वपूर्ण कोरोना काल ने प्रकृति से प्रेम करना और प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ ना करने का स्पष्ट सन्देश हमें दिया है।
इसके अतिरिक्त भी विचार करें तो कोरोना काल की अन्य सीखों से भी हम परिचित हो जायेंगे।
परन्तु एक प्रश्न स्वयं से... "क्या कोरोना काल बीत जाने के बाद हमें ये सीखें याद रहेंगीं?
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना काल में हमने निम्नलिखित सीखा है:-
कोरोना काल में करोना के नियम का इमानदारी पूर्वक पालन करना सीखा।
घर के अंदर रहना और किचन गार्डन के लिए घरेलू जैविक खाद बनाना सीखा।
अनुपयोगी वस्तु से उपयोगी टोकरी गुलदस्ता और अन्य वस्तु बनाने को सीखा।
चावल का पापड़ और आलू की बड़ी बनाना सीखा।
वस्तु का सही उपयोग पर ध्यान गया।
परिवार के सदस्य विशेषकर बच्चे और वृद्धों पर उनकी स्वास्थ्य के प्रति ध्यान गया।
पौष्टिक भोजन के अंतर्गत भोजन की स्वच्छता और संतुलित भोजन पर ध्यान गया।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रति ध्यान गया।
करो ना कॉल ने मनुष्य को सकारात्मक सोचने पर मजबूर कर दिया। यह मानव समुदाय के लिए अच्छी बात है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ -छत्तीसगढ़
कोरोना महामारी का रुप भारत में जब मार्च मध्य में दिखना शुरु हुआ तो ये विश्वास करना मुश्किल था कि हमारे देश में जनता कभी अनुसाशित हो भी पाये गी ।पर जैसे ही लॉक डाऊन-1 शुरु हुआ तो सारी जनता को मालूम पड़ गया कि कर्फ़िऊ क्या होता है और ये नामुराद महामारी कितनी घातक और नामुराद है । जैसे जैसे लॉक डाऊन 2-3लगे तो जनता गम्भीरता को भांप चुकी थी और नियमों का पूरी तरह से पालन करती रही । पर देश को ज्यादा दिन तक बन्धक भी नहीं रखा जा सकता था और केंद्र वा राज्य सरकारों ने नियमों में धीरे धीरे छूट देनी शुरु की । पर इस छूट का जनता ने नाजायज फायदा उठा कर कोरोना का भय ही दिल से निकाल दिया । यही कारण है कि आज देश मेँ कोरोना का संक्रमण अति तीब्र गति से फैल रहा है ।
हम ने पूरे परिवार सहित कोरोना काल में सरकार द्वारा निर्धारित सभी नियमों का इमानदारी से पालन किया ।आज भी मै और मेरा परिवार नियमों का पालन कर रहे है ।कोरोना काल में हमने घर से बाहर निकलना काफी कम कर दिया ।
अपने आप को व्यस्त रखने के लिये हमने अपनी अपनी समय सारिणी बनाई और उस पर पूरा अमल भी किया ।घर के कामों में हाथ बन्टाया । खेती बाड़ी,पूजा पाठ, योगा, ध्यान, पशुपालन,लेखन,मनोरंजन,वा समाचार पढ़ने इत्यादि के लिये समय बांटा ।ऐसा करने से हमारे परिवार का कोई भी सदस्य मानसिक वा शारीरिक रोगी नहीं बना और ना ही वक्त काटने में मुश्किल हो रही है ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
आज हमारा भारत देश और पूरी दुनिया इस कोरोना महामारी के दौर से गुजर रहा है पूरी दुनिया इस महामारी से परेशान है| तो इस कोरोना काल के बीच हमने बहुत कुछ सीखा है, सबसे पहले
1 -हमने सीखा है हमें अपने चारों तरफ साफ सफाई रखनी चाहिए|
2 -हम लोगों को अपने हाथ बार-बार धोने चाहिए |
3 - हमें सार्वजनिक जगह पर थूकना नहीं है |
4 - बाहर से आया फल व सब्जी हमें धोकर इस्तेमाल करनी चाहिए |
5 - हमें समूह बनाकर कहीं पर भी खड़े नहीं रहना है |
6 - हम लोगों को अपने प्रति और दूसरे के प्रति साफ सफाई रखनी चाहिए |
7 - हमें आने वाले समय के लिए सेविंग करके रखनी चाहिए |
ऐसे ही बहुत से बिंदु है जिन पर हमें कार्य करना चाहिए., और इस कोरोना काल के दौर में हमने बहुत कुछ सीखा भी है | जो लोग बाहर नौकरी कर रहे थे और बेरोजगारी की वजह से उन्हें वापस अपने आप गांव आना पड़ा है वे लोग अब अपने परिवार के साथ रह रहे हैं और अपनी खेती बाड़ी और अपना ही कुछ का व्यवसाय कर रहे हैं, तो उन्हें अपनी खेती की वैल्यू का पता चला है |
- रजत चौहान
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कोरोना काल तो जीने से अधिक जिन्दा रहने की चुनौती है l ऐसे में यह आवश्यक है कि हम एक दूसरे के लिए भावनात्मक सहारा बनें l हमें वे सब काम करने होंगे जिनको करने से हमें ख़ुशी मिलती हो l कोरोना काल में हमें कुछ नया सीखने का, नई बातें सीखने का, अच्छा बदलाव लाने का अवसर मिला है l खुद के साथ क्वालिटी टाइम गुजारने का और ऐसा समय जो हर स्थिति से हमें उबारने में सहायक है l इस दौरान हमारी सोच सकारात्मक बनी l टी. वी., फ़िल्में, सुधीसहित्य ने प्रेरणा प्रदान की या यूँ कहे कि हमें अपनी हॉबी निखारने का अवसर भी मिला l
जो दिया था तुमने मुझको
एक कर्ज माँगता हूँ
बचपन उधार देदो l
कोरोना काल में बच्चों के साथ हम भी बच्चे बन गये l हम खुद भी रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े और बच्चों को भी जोड़ा l
सबसे बड़ी बात जो कोरोना काल में हमने सीखी है विपरीत परिस्थितियों को मुकाबला, आत्मविश्वास और संयम से कैसे जिया जा सकता हैl
आज हम इस तथ्य के प्रति आशान्वित है कि बुरे दिन हमेशा नहीं रहते, यह वक़्त भी जरूर बीतेगा l मानवता इस चुनौती पर अवश्य विजय प्राप्त करेगी l कोरोना ने प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी का पाठ भी पढ़ाया है l पिछले तीन महीने में हजारों करोड़ रूपये फूंकने के बाद गंगा, यमुना नदियाँ प्रदूषण मुक्त नहीं हुई वे भी प्रदूषण मुक्त है और हम स्वस्थ्य वायु में सांस ले रहे हैं, अन्य बीमारियाँ लुप्त प्रायः हो गयी हैं l
योग, व्यायाम हमारी जीवन शैली के अंग बन गये l स्वास्थ्य के प्रति संचेतना का विकास हुआ है l हमने सीखा कि अपने काम खुद को ही करने चाहिए l साफ सफाई या यूँ कहे कि हम सेल्फ डिपेंड हो गये l
हमने सीखा जीव जंतु पशु पक्षियों पर दया करनी चाहिए l माँस भक्षण नहीं करें l मानव समुदाय महान्ध होकर अपने आप को सर्वशक्तिमान मान बैठा है उसे अहसास हुआ कि संसार में उच्च कोटि की परम् शक्ति विद्यमान है l ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ी, मानव राक्षसी प्रवृति को त्याग कर देवीय प्रवृति में विश्वास करता हुआ हमें अहसास हुआ कि रावण और कंस जैसे धाराशायी हो गये तो इंसान की तो औकात ही क्या? श्रद्धा भाव से हम पूजा उपासना करते हुए कह उठे --
ऐ मालिक तेरे वंदे हम....
मोटे तौर पर कोरोना ने हमें दो पाठ पढ़ाये हैं --
1. प्रकृति से हमजीत नहीं सकते उसे स्वीकार करते हुए स्वच्छ और सुन्दर रखना होगा l
2. विश्व स्तर पर हमें आत्मनिर्भर बनना ही होगा अपना वजूद बनाये रखने के लिए l
चलते चलते ----
कोरोना ने यह सिद्ध कर दिया है कि "ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या "
साँसो का क्या भरोसा रुक जाये चलते चलते.....
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
यूँ तो पूरे विश्व में कोरोना काल बहुत भयावह रहा परंतु इस काल ने हमे बहुत सी अच्छी बातें भी सिखाईं जैसे अनुशासित रहना सिखाया,सीमित संसाधनों में जीना सिखाया,मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वावलंबी बनाया।नारियों ने बिना बाई और ब्यूटी पार्लर के भी हंस कर जीना सीख लिया।बात बात पर एंटीबायोटिक खाने वाले लोगों ने काढ़ा और देसी दवाइयों पर विश्वास करना शुरू किया।लॉक डाऊन की वजह से बहुत परेशानियां हुईं पर वातावरण के हिसाब से सोंचें तो बहुत अच्छा रहा,वातावरण शुद्ध हो गया।
- सँगीता सहाय
राँची - झारखण्ड
मानव हर क्षण हर पल कुछ न कुछ नया सीखना है जीवन गतिशील है परिवर्तनशील है परिवर्तन प्रकृति का नियम है इसे हम सभी को स्वीकार्य करना ही होता है आज प्रकृति ने
कुछ ऐसा उलट फेर जीवन में किया है
कि पूरा विश्व इसके आगे असहाय सा महसूस कर रहा है इस विषम परिस्थिति में कुछ समय के लिए
सब कुछ बंद किया गया यह सोच कर कि की जान तो जहान है मानव का दैनिक जीवन चलने के लिए बहुत सी
आवश्यक जरूरतों को देखते हुए
सरकार ने कुछ छूट और सुरक्षा के साथ कामकाज जरूरी आवश्यक
रशन दवाई अस्पताल आदि को छूट दी है दैनिक जीवन धीरे धीरे चलता रहे
मानव प्रकृति ऐसी है जो हर परिस्थिति में अपने को ढाल कर उससे सामंजस्य बैठाने की कोशिश करती है करोना
काल बहुत ही विषम परिस्थिति है
अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है
गरीब मजदूरों को शहर छोड़कर गांव की ओर पलायन करना पड़ा कई प्राइवेट संस्थान बंद पड़े हैं स्कूल बंद पड़े हैं बच्चों पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है सरकारी ऑफिस बैंक आदि सब
प्रकार की परेशानियां है सुचारू रूप से इलाज नहीं हो पा रहा है लेकिन हम सबने करोना काल में अपनी सक्रियता को बनाए रखें ऑनलाइन कामकाज बहुत ज्यादा बढ़ गया सभी घरों से काम काज कर रहे हैं घर के अंदर
ही सीमित रह कर पहले से भी अधिक हौसलों के साथ काम कर रहे हैं
सभी को परिवार के बीच रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ है जो बच्चे अपने माता पिता को छोड़कर विदेश बैठे थे
वह भी परिवार के बीच आ गए हैं
यह परिवार में रहने का जो सौभाग्य प्राप्त हुआ है बड़े बड़े पैकेज का लालच छोड़कर परिवार की महत्ता को
समझ पा रहे हैं दूरियां नज़दीकियो में बदल रही है खास तौर पर घर के बुजुर्ग बहुत खुश है उनका सब परिवार साथ है परेशानियां हैं करोना से भय सभी को लग रहा है पर इसमें भी सभी ने
जीना सीख लिया है धीरे-धीरे मन का भय खत्म हो रहा है और सभी सामान्य हो रहे हैं सभी मनुष्य आत्मनिर्भर हो रहे हैं पिछले 6 महीने में नौकर चाकर ने घर में कामकाज बंद किया है सभी
महिलाओं ने घर के कामकाज के साथ ऑनलाइन दफ्तर के भी काम को बखूबी निभा रही हैं परिस्थितियां खराब है फिर भी हम सभी ने जीवन को अपने अपने तरीके से सरल बना कर जीना सीख लिया ऑनलाइन काम
जो इससे पहले इतना नहीं हो रहा था वह बहुत अधिक बढ़ गया है।
सभी को यह अब सरल लगने लगा है।
सभी आत्मनिर्भर हो गए हैं सीमित दायरे में भी रहना सीख गए हैं।
बिना शिकायत की जिंदगी चल रही है
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
कोरोना कॉल में हमें बहुत कुछ सीखने को मिला ।जिससे हमारे जीवन में काफी परिवर्तन हुआ।सबसे पहले तो स्वास्थ्य के प्रति सचेत ,स्वच्छता का और भी ज्यादा ध्यान ,आहार और विहार पर नियंत्रण, अपरिग्रह का त्याग, यानी फालतू सामान कपड़े आदि खरीदना बंद हो गया जिसके कारण हम बचत करना भी सीख गए।
भारतीय संस्कृति की रक्षा यानि हाथ जोड़कर नमस्ते करना आदि। रामायण और महाभारत देखकर हमें और हमारे बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिला वरना पता ही नहीं था ।
कि कौन किसका पुत्र है ?
और कौन किसका बाप है? यानि हमारे महान ग्रंथो ,गीता ,रामायण और महाभारत के सार को समझ पाए।
पहले रसोई में चप्पल पहन कर जाना अच्छा नहीं माना जाता था। शायद यही कारण था की बाहर की गंदगी घर में ,रसोई घर में न पहुंचे वह फिर से हम अपनाना सीख ने लगे ।
स्वस्थ रहने के लिए योग करना प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुष काढ़ा पीना सीख गए।
और सबसे जरूरी घर का ही खाना खाने लगे। कहीं बाहर जाना पड़े तो घर से पैक कर के ले जाने लगे।
फास्ट फूड से हम ही नहीं ,बच्चे भी फास्ट फूड से बचने लगे। जिसके कारण हम बीमारी और दवाई खाने से भी बचें रहे।
हर एक फल और सब्जी को अच्छी तरह से धोकर प्रयोग करना सीख गए ।फालतू समय किसी के घर काटने के बजाय घर में ही समय को कामयाब करना सीख गए ।घर पर ही मास्क सिलकर बनाएं।आदि
जो पहले घर में हमारी मम्मी टिक्की, जलेबी, सफेद रसगुल्ले, गुलाब जामुन बनाकर हमें खिलाती थी । बाजार से नहीं मंगाते थे ,वो आज भी हम याद करते हैं ।
हमने भी ये सब बना कर कोरोना काल में अपने बच्चे को खिलाएं ।यूट्यूब से पाक कला में निपुण भी हो गए ।
कविता ,लेखन का जो शौक गृहस्थी के कारण दब गया था, फिर से लिखना सीख गए। प्रोत्साहन मिलते रहने के कारण हमारी लेखनी को नया आयाम भी मिला।
घर में ही थोड़ी सी बागबानी करके प्रकृति -प्रेमी यानि पेड़ पौधों को संरक्षित करना भी सीख गए।
सबसे बड़ी बात घर की मेड(नौकरानी) को हटाकर खुद ही घर का काम करना सीख गए। जीवन में कुछ प्रतिस्पर्धा भी कम हो गई है क्योंकि न तो कोई किसी के घर आता है और ना कोई जाता है।
तथा कोरोना काल में जरूरतमंद व भोजन की समस्या वाले परिवारों को सहभागिता से सहायता करना भी अपना कर्तव्य जाना।
वैश्विक समस्या के का रण
कोरोना काल में भावनात्मक रूप से ही चीन को छोड़कर पूरी दुनिया हमारा परिवार ऐसा महसूस करना सीख गए थे।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " कोरोना काल ऐसा समय है । जो दुनियां में अपनी छाप छोड़ रहा है । दवाई भी आज नहीं तो कल अवश्य आ जाऐगी । परन्तु हर इंसान ने बहुत कुछ सीख लिया है । जैसे ऑनलाइन कार्य ने बहुत अधिक गति पाई है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
कोरोना काल में ऑनलाइन सिस्टम से विश्व बंधुत्व वाली भावना को सहारा मिला। अपनी अपनी जगह अपना प्रांत तक सीमित रहने वाले लोग अधिकांशत ऑनलाइन से एक दूसरे से परिचित हो गए। ऑनलाइन कवि सम्मेलन तथा प्रतियोगिताओं ने भी इसमें काफी मदद की। मैं आपको नहीं जानती थी आप भी मुझे नहीं जानते थे किंतु आज की स्थिति में हम एक दूसरे से पूर्णतया परिचित हो गए ।हमारे बीच एक भाई बहन का रिश्ता कायम हो गया। वसुधैव कुटुंबकम की भावना पूर्णरूपेण यहां परिलक्षित होती नजर आ रही है। और भी मंचों के साथ यही स्थिति है। इसके अलावा स्वावलंबिता, दैनिक क्रियाओं में सुधार, आपात स्थिति की तरह अपने जीवन को व्यवस्थित करना, थोड़े में अधिक की स्थिति किस तरह बनाई जाए, शरीर एवं स्वास्थ्य का ध्यान, योगिक क्रियाओं का महत्व, स्वदेशी पर निर्भरता, खानपान में सुधार, इम्यूनिटी सिस्टम को बढ़ाना,
ReplyDeleteदेश एवं दुनिया के संबंध में सोचना, चीन एवं पाक की नापाक हरकतों की वजह से अपने देश के संबंध में प्रयासरत होना, देश प्रेम की भावना सेवा त्याग के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना, जितना बन सके गरीबों की, जरूरतमंदों की मदद करना। वायरस के प्रति लोगों को जागरूक करना अपना बचाव रखते हुए, इसी प्रकार बहुत सी बातें हैं जो कोरोना काल की उपलब्धि है। प्रकृति का पर्यावरण का ध्यान रखना तो अहं बात है जिसे स्वयं प्रकृति ने इस समय सिद्ध कर दिया है।
ReplyDeleteआदरणीय, इस मंच ने मुझे बहुत बार सम्मानित किया इसके लिए ❤से आभारी l
Deleteइस मंच के लिए शुभकामनायें प्रेषित करती हूँ कि यह सदा बुलंदियों को छुए
---डॉ. छाया शर्मा, अजमेर, राजस्थान