हरिशंकर परसाई की स्मृति में लघुकथा उत्सव

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा इस बार  " लघुकथा उत्सव "  में  " उपकार " विषय को फेसबुक पर रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लघुकथाकारों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल  अच्छी व सार्थक लघुकथाओं के लघुकथाकारों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया है । सम्मान प्रसिद्ध साहित्यकार हरिशंकर परसाई के नाम पर रखा गया है । 

हरिशंकर परसाई का जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में 22 अगस्त 1924 में हुआ था। इन्होंने सेमस्तार ग्लोबल स्कूल इलाहाबाद में आर. टी.एम. व नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम॰ए॰ की उपाधि प्राप्त की है।18 वर्ष की उम्र में वन विभाग में नौकरी भी की है। खंडवा में छ  महीने अध्यापन किया ।  1942 - 43 में जबलपुर में स्पेस ट्रेनिंग कॉलेज में शिक्षण की उपाधि प्राप्त के साथ - साथ वहीं माडल हाई स्कूल में अध्यापन भी किया । 1953 में इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ी। 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी करने के बाद  स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की है। जबलपुर से 'वसुधा' नाम की साहित्यिक मासिक पत्रिका निकाली, नई दुनिया में 'सुनो भइ साधो', नयी कहानियों में 'पाँचवाँ कालम' और 'उलझी–उलझी' , कल्पना में 'और अन्त में' के साथ  कहानियाँ, लघुकथा ,उपन्यास एवं निबन्ध–लेखन के बावजूद मुख्यत व्यंग्यकार के रूप में विख्यात हुये । कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव।उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल।संस्मरण: तिरछी रेखाएँ। लेख संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, उखड़े खंभे, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं, बस की यात्रा आदि प्रकाशित हुई है। इन का साहित्य छह खण्डों में परसाई रचनावली (सजिल्द तथा पेपरबैक)  राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशितहुआ है । इन्हें " विकलांग श्रद्धा का दौर " ( इसमें 1975 से 1979 तक लिखी लघुकथाएं संगृहित ) के लिए 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला । इन की मृत्यु दस अगस्त 1995 में हुई है । 

लघुकथा के साथ सम्मान : -
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उपकार 
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विचारों में गुमसुम माधुरी को मालकिन ,की कर्कश आवाज सुनाई दी "ऐसा बर्तन मांजती हो।कपड़े भी साफ धुले नहीं है। तुम्हें औरतों के भी काम नहीं आते क्या?"
    माधुरी"आंटी जी,दो दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है। बुखार से शरीर तप रहा है। अब काम में गलती नहीं होगी।"
    मालकिन"तबीयत ठीक नहीं तो आयी क्यों?तुम लोग बहाना बनाने में उस्ताद होती हो।चल निकल,हमें ऐसी काम वाली नहीं चाहिए। "
    अपंग पति को दवा देने का समय हो चुका था।सो,माधुरी सोचते हुए चल पड़ी। अब उसे दूसरा काम जल्दी ही तलाशना होगा।
    उसे याद आने लगा कि एक माह पहले ही उसका विवाह हुआ था।राज मिस्त्री से।और एक हफ्ते पहले ही उसका पति सड़क दुर्घटना में अपने पैर गंवा चुका है। 
   मजबूरी और गरीबी दोनों साथ ही उसके पास आयी थी।जिम्मेदारी ने भरी जवानी में बुढ़ापा दे दिया था। परंतु माधुरी ने हिम्मत नहीं हारी। घर पहुंचते ही उसका पति रोता हुआ दिखा।
   कहने लगा"माधुरी तुम कितना काम करती हो।अब तो मैं तुम पर बोझ सा हो गया हूँ। अब बर्दाश्त नहीं होता।मैं फांसी लगा लूंगा,यही उचित होगा। हम दोनों के लिए।"
    माधुरी "ऐसी कायरों वाली बात मत बोलो।हमें परेशानी से हारना नहीं, जीतना है। "
     सौभाग्य से माधुरी को एक डाक्टर के यहाँ काम भी मिला और उचित सम्मान भी।डाक्टर सज्जन व्यक्ति थे।माधुरी की दशा देखकर उसने पति के पैरों को देखाऔर कहा "इनका इलाज हो जायेगा।हम नकली पैर लगा देंगे । ये चल फिर सकेंगे।।
 माधुरी "आप देवता हैं सर।मैं आपका उपकार कैसे चुकाऊंगी।"
  
- डाॅ. मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र 
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सच्ची सलाह
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     रामनिवास अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों सहित कानपुर में निवास करता है। एक बार उसका अपनी पत्नी कमला के साथ विवाद सीमा लांघ गया और उसकी पत्नी अपने बच्चों सहित पुलिस स्टेशन जाने लगी। रात के लगभग ग्यारह बजे कमला सुनसान सड़क पर अकेली जा रही थी, तभी एक बुजुर्ग पुरुष ने बच्चों सहित अकेली महिला को देखकर अपने अनुभव से जान लिया कि दाल में कुछ काला है। उनके पूछने पर कमला ने उन्हें सारी बातें बताईं और पुलिस के पास जाने की बात भी कही।
     तब उन भद्र पुरुष ने उससे कहा "बेटी बात इतनी सी है कि तुम पति-पत्नी ने अपरिपक्वता दिखाई है। तुम्हारा गृहस्थी का बंधन और तुम दोनों की समझदारी ही समस्या को हल करेगी जबकि तुम्हारी गृहस्थी में पुलिस के प्रवेश से पति-पत्नी के बीच में अविश्वास की एक दीवार खड़ी हो जाएगी और पवित्र रिश्ते की डोरी में एक गाँठ सदा-सदा के लिए पड़ जायेगी। 
     इस प्रकार उन्होंने कमला को समझाकर घर वापस भेजा। उनके अनुभव के अनुसार एक-दो दिन में रामनिवास और कमला का गुस्सा ठंडा हो गया और दोनों ही अपनी-अपनी गलती स्वीकारने लगे। तब कमला ने ये सारी बातें अपने पति को बतायीं।
     आज भी रामनिवास और कमला उन बुजुर्ग महानुभाव के 'उपकार' को मन ही मन नमन करते है, जिन्होंने उन्हें 'सच्ची सलाह' देकर उनकी गृहस्थी पर महान उपकार किया। 

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
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उपकार
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 विशाखा प्यार मे धोखा खाने के बाद बहुत हताश और उदास थी उसने आत्महत्या करने का निर्णय कर लिया था और वह नदी के पुल कूदने ही वाली थी उधर से गुजर रहे नंदू नाम के अधेड़ अन्जान रिक्शा चालक ने नदी मे कूदने से उसे बचा लिया उसने उसे समझाया कि पढ लिखकर माँ बाप का नाम रौशन करो विशाखा ने कठिन परिश्रम से आई. पी. एस. की परीक्षा पास कर ली थी उसकी पोस्टिंग मद्रास मे ही थी जहाँ वह पढती थी वह अपने माँ  बाप की अकेली सन्तान थी ...........
पिता काफी समय पहले गुजर चुके थे एक दिन सडक से गाडी मे गुजरते समय उसकी नजर एक बूढे व्यक्ति पर पड़ी जो जून की गर्मी मे रिक्शा पर बेहोश पडा था गाडी से उतर कर नजदीक जाने पर विशाखा ने नंदू  को पहचान लिया उसे पानी पिलाने पर होश आ गया तो विशाखा ने कहा बाबा मै आपकी वही बेटी जिस पर आपने बहुत बडा उपकार किया था जिसे आपने नदी में डूबने से बचाया था दोनो की आँखो नम हो गई... 
विशाखा ने नंदू को अपने घर लाकर खूब सेवा  की और कहा मेरे बाबा को अब कुछ करने की जरूरत नही काश मै तब आपका नाम पता पूछ लेती मैने आपको बहुत तलाश किया भगवान की दया से आप मुझे मिल गये ।
- डा. प्रमोद शर्मा प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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तमाशबीन
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सड़क पर खड़ा सूरदास कब से पुकार रहा था, मुझे सड़क पार करा दो कोई।
लोग आते, उसकी ओर देखते, आगे बढ़ जाते।
कुछ लोग ऐसे तमाशबीन बने थे, मानों वह स्वयं दिव्यांग हो,चक्षु से ही नहीं, कानों से भी।
अब सड़क पर वाहनों की आवाजाही भी बढ़ने लगी थी।
"चलिए, मैं आपको सड़क पार कराता हूं।" आठ वर्ष का राहुल,उस सूरदास का हाथ पकड़कर,चल दिया।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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हुनर 
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चम्पा मालकिन से कहती - मेडम चमेली  का जनरल प्रमोशन हो गया । दसवी बोर्ड की तैयारी करेगी ,आपकी बेटी की तरह घर रह पढ़ाई करूँगी कहती है ? कोरोना की वजह स्कूल बंद है ।  आगे क्या करूँ बताइये ? 
मेडम ने कहा - उसे काम में लगा दे । 
अब बड़ी हो गई हैं ।तेरी कुछ मदद हो जायेगी । 
चम्पा कहती - एक बात कहूँ  , मेडम आप बुरा ना मानना , आप इतने पढ़े लिखे हो ? 
आप अपनी बेटी के लिए ऐसा सोचती हो क्या ? 
आप की बेटी के बराबर ही हैं ? 
मेडम कहती - तभी तो अब तक सारे कपड़े ड्रेस जूते  पुस्तक कापी खिलौने टिफ़िन सब उसे ही तो दिया करती हूँ ।
चम्पा कहती - यही  तो हम ग़रीबों पर बड़ा उपकार हैं ! आगे भी मेरी मुनिया के लिये ऐसे मदद करेगी ना  , वह भी आपकी बेबी की तरह अपने पैरों पर खड़ी हो आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं ।
मेडम कहती - मेरी बेबी का अभी रिज़ल्ट नहीं आया है ! प्राइवेट स्कूल के रिज़ल्ट देर से आते !
चम्पा कहती - मेडम बेबी का रिज़ल्ट कब तक आयेगा ? 
मेडम कहती - २महीने तो लग जाएँगे ? फिर सोचते हैं !
चम्पा कहती - तब तक क्या करूँ ? इसे अकेले झोपड़पट्टी में अकेले छोड़ नहीं सकती ? हम ग़रीबों के पास तन ढकने के लिए कपड़े , दो जून की रूख़ी सुखी रोटी के अलावा क्या हैं ! 
मेडम ने कहा -ऐसा कर उसे मेरी शाप पास मिट्टी के बर्तन पेण्टिंग का काम खिलौने बनते हैं ! वहाँ दो महीने स्कूल की छुट्टी है । भेज देना ? तेरी कुछ मदद हो जाएगी ! 
दो महीने बाद चम्पा मेडम से पुछती - कैसा है मेरी बेटी काम नानी के घर गाँव में बहुत सीखा है । 
मेडम ने कहा - चम्पा तुम्हारी चमेली  के हाँथों में ग़ज़ब का हुनर हैं ! 
मेरी दुकान तो चल पड़ीं ! उसके हाँथों में कमाल का जादू है  ! उसकी और तुम्हारी दोनो की सेलरी डब्बल कर देती हुँ । या आगे पढ़ाई में मदद करना हैं । सोच कर बता देना ? 
चमेली को बढ़ते कदम आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा दे ,  हुनर सीख आगे बढ़ना हैं ? 
या अवाक्  चम्पा पशोपेश परोपकार कैसे भूले ? 

-  अनिता शरद झा 
रायपुर - छत्तीसगढ़
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उपकार
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भयंकर आग लगी हुई थी। झोपड़ी धू धूकर जल गई। पशु बाड़े से पशुओं को किसी प्रकार निकाल दिया गया किंतु यह क्या? एक बच्चा आग में फंस गया और रोने की आवाज आ रही थी। तभी एक शेर सिंह नामक व्यक्ति आया और पानी लेकर आग में कूद गया। देखते ही देखते बच्चे को उठाकर बाहर तक दौड़ कर ले आया किंतु आग ने उसे पूरी तरह से लपेट लिया था। कपड़े जल गए परंतु वह बच्चे को
अपने हाथों में इस प्रकार उठाकर ले जा रहा था जैसे उसका अपना कोई बच्चा हो। कपड़ों में लगी आग को बुझा दिया परंतु यह क्या वो तो अधिकांश झुलस चुका था। तुरंत दोनों को बच्चे और शेर सिंह को अस्पताल पहुंचाया। डाक्टरों ने बड़ा दुख जाहिर करते हुए कहा कि इसका 80 प्रतिशत शरीर जल चुका है। अब इसका बचना नामुमकिन है किंतु सुरक्षित बच्चे की मां राक्षसों आंसुओं का सैलाब बहा रही थी और शेर सिंह के उपकार पर शत-शत नमन कर रही थी। परंतु वह बार-बार चिल्ला रही थी कि कोई शेर सिंह को बचा दे मैं अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दूंगी परंतु शेर सिंह ने एक बार आंखें खोली, बच्चे को आशीर्वाद दिया और अनंत राह पर चल दिया। आज भी उसके उपकार की कथाएं माई जा जा रही है। 

- होशियार सिंह यादव
 महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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उपकार 
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“इंगलिश पढ़ने आता है?”होने वाले ससुर जी कि कड़कती आवाज से काँप गई थी ,”साँवली और साधारण रूप रंग की ,कांता।”
बाबूजी,का हकलाना और ससुर जी की बात का गोल मोल जवाब देना।ठीक है ,ठीक है!उसकी ज़रूरत नहीं,”जतिन ने परिस्थिति को सँभाल लिया था।”
विधी विधान ,रस्मों और सात वचनों को पल्लू में बांध कांता जतिन की हो गई।
मुँह दिखाई के वक्त बुआ सास के कहे शब्द -हे !भगवान “हमार हीरे जैसे भतीजा को कोयला मिल गया! “पिघलते शीशे की तरह कानों को चीर गए थे।जतिन ने पहली बार जेठ की तपती धूप की तरह आग बरसाया था और सभी चुप।जतिन का चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहना ठंडी फुहार की  तरह मेरे अंतर्मन को भिगो दिया था।
वक्त के साथ ही साथ ,बदलते मौसम की तरह मेरे जीवन में भी बदलाव आने लगे।
जतिन ने ना सिर्फ़ मुझे पढ़ाया,लिखाया बल्कि एक कामयाब डॉक्टर बना दिया।
बीमार बुआ सास ,पंद्रह दिनों से मेरे घर पर आकर इलाज करवा रही थी।मुझे खीरा ,ककड़ी खाते देखा तो बोल पड़ी -अरे! “सेब ,अंगूर खाओ इतना कमाती हो!”तब उन्हें मैंने मौसमी फलों और सब्ज़ियों के गुण बताया।बुआ जी ने कहा-बताओ तो !”हमको तो ज़रा भी नहीं सोहाता है ।हम समझते थे इ सब गरीबन सब का फल है।”
कांता ने,बुआ जी के इलाज में जी जान लगा दिया था।ठीक होकर वापस अपने घर जाते वक्त बुआ जी ने कहा -अरे!”मेरी बहू तो हीरा है !हीरा !”तेरा यह उपकार मैं कैसे उतारूँ?
बुआ जी के गालों पर लुढ़कते आँसुओं के सैलाब को पोंछने के लिए जब कांता ने रूमाल बढ़ाया तो बुआ जी ने कहा “बेटा बहने दो यह शर्मिंदगी के आँसू है...।”

- सविता गुप्ता
 राँची - झारखंड 
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इन्साफ
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"अपना बदला पूरा करो, तोड़ दो इसका गर्दन। कोई साबित नहीं कर पायेगा कि हत्या के इरादे से तुमने इसका गर्दन तोड़ा है। तुम मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट धारी विशेषज्ञ बनी ही इसलिए थी।" मन ने सचेत किया।
"तुम इसकी बातों को नजरअंदाज कर दो। यह मत भूलो कि बदला में किये हत्या से तुम्हें सुकून नहीं मिल जाएगा। तुम्हारे साथ जो हुआ वो गलत था तो यह गुनाह हो जाएगा।"आत्मा मन की बातों का पुरजोर विरोध कर रही थी।
"आत्मा की आवाज सही है। इसकी हत्या होने से इसके बच्चे अनाथ हो जाएंगे, जिनसे मित्रता कर इसके विरुद्ध सफल जासूसी हुआ।"समझाती बुद्धि आत्मा की पक्षधर थी।
"इसके बच्चे आज भी बिन बाप के पल रहे हैं। खुद डॉक्टर बना पत्नी डॉक्टर है। खूबसूरत है । घर के कामों में दक्ष है। यह घर के बाहर की औरतों के संग..।" मन बदला ले लेने के ही पक्ष में था।
"ना तो तुम जज हो और ना भगवान/ख़ुदा।"आत्मा-बुद्धि का पलड़ा भारी था।
तब कक्षा प्रथम की विद्यार्थी थी। एक दिन तितलियों का पीछा करती मनीषा लड़कों के शौचालय की तरफ बढ़ गयी थी और वहीं उसके साथ दुर्घटना घट गयी थी। जिसका जिक्र वो किसी से नहीं कर पायी। मगर वह सामान्य बच्ची नहीं रह गयी। आक्रोशित मनीषा आज खुश हो रही थी, जब वर्षों बाद उसे बदला लेने का मौका मिल गया। दिमाग यादों में उलझा हुआ था। मनीषा अपने दुश्मन को जिन्दा छोड़ने का निर्णय ले चुकी थी।

- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
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सुबह हो गई
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            जब भी राम बाबू एम.डी.डी ए. की पार्किंग में अपनी कार खड़ी करते तुरंत एक छह-सात का बच्चा हाथ में कपड़ा लिए कार के शीशे साफ करने आ जाता। उसे पूरी तन्मयता से काम करते देख उनके हृदय में एक हूक सी उठती। खेलने-कूदने और पढ़ने के दिनों में यह इस तरह भटक रहा है।
              आज जब कार खड़ी की तो वह उसके आते ही बोले..” तेरा नाम क्या है रे बच्चे और कहाँ रहता है?
               “ माँ-बाप ने जो नाम रखा वह तो उनके जाने पर उन्हीं के साथ चला गया। अब तो सब मुझे ठलुआ कह कर बुलाते हैं। एक घर में बहुत से बच्चे रहते हैं। वहीं मैं भी रहता हूँ। रखने वाला जो काम करवाता है करता हूँ, ना करूँ तो बेरहमी से पिटता हूँ।”
               सुन कर राम बाबू के आगे अपना अतीत आ गया। अगर उस दिन वह अम्मा न मिलती तो क्या आज राम बाबू की कोई पहचान होती। वह इसे ठलुआ नहीं रहने देंगे। इसकी पहचान बनेंगे।
                “ चल यह कपड़ा फेंक और गाड़ी में बैठ।”
          कल अपने डी.आई. जी मित्र से इसे गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया पता करूँगा”...सोच कर घर की ओर चल दिए।

- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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कैसे चुकाऊंगा
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लॉकडाउन में परदेस में फँसे राजू रिक्शा वाले के पास घर वापसी के पैसे भी ना थे ऊपर से उसका घर वहां से पूरे 400 किलोमीटर दूर था ।
बेचारा भूखा प्यासा राजू अपने रिक्शे को  ही हमसफर बना घर की राह वापस हो लिया । रिक्शे पर उसने कुछ सामान रख लिया था जो उसकी जो परदेस में कमाई कुल पूंजी से लिया गया था।
 रास्ते में मई की दोपहरी के वक्त तेज धूप से हाँफते हुए  प्यास से विह्वल हो उठा । वह पानी की तलाश करता आगे बढ़ रहा था कि एक गांव में कुछ दूर पर नल दिखाई दिया  । राजू नल के पास पानी पीने के लिए ज्यों  आगे बढ़ा ही था कि उसी गांव के बुजुर्ग शंभू नाथ ने उसकी दशा को भाँपते हुए कहा ,कि बेटा धूप से चलकर खाली पेट पानी पियोगे तो नुकसान करेगा ,आओ कुछ खा लो। रिक्शा वाले पर तो मानो भगवान को ही दया गई , वह तुरंत बूढ़े शंभू नाथ के आमंत्रण पर उनकी झोपड़ी की तरफ चल दिया क्योंकि वह बहुत भूखा भी था । वहां शंभू नाथ ने उसे भरपेट खिचड़ी खिलाई और चलते वक्त अस्सी रुपये भी यह कह कर दिए कि ,रख ले बेटा तेरे रास्ते में काम आएंगे ।
राजू आश्चर्य से उनकी ओर देखता हुआ बोला ,बाबा आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा !! मैं  कैसे चुकाऊंगा यह आपका प्यार !!
उसकी आँखों मे चलते वक्त अनायस ही कुछ आँसू छलक पड़े। 

 - सुषमा दीक्षित शुक्ला
 लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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उदारता
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हरीराम अपनी पत्नी की दवाई लेने के लिए एक मेडिकल स्टोर में घबराए हुए पहुंचे।
हरीराम ने मेडिकल स्टोर वाले से कहा-"भैया मेरी पत्नी को बहुत तेज बुखार है। "
मेडिकल स्टोर वाले रतन ने कहा- तो मैं क्या करूं?
जाने कहां से चले आते हैं सुबह-सुबह।
मेडिकल स्टोर वाले के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे।
हृदय में   गहरी चोट की तरह चुभ गए। उनके मन  में ताकि गरीब और गरीबी का हर कोई मजाक बनाता है। थोड़ी हिम्मत जुटा कर हरीराम ने कहा -"बेटा बुखार की कोई दवाई दे दो।"
रतन ने कहा -"थोड़ी देर रुकने के बाद ही दवाई मिलेगी ,अभी मैं हिसाब करने में व्यस्त हूं।"
हरिराम कहा -"बेटा मुझे जल्दी है।"
रतन चिल्लाकर कहा-  हर कोई घोड़े पर सवार होकर आता है। 
उसने दवाई निकाल कर दी ।
बिल बना कर कहा ₹500 दो।
हरीराम ने कहा-
" भैया मेरे पास तो इतने पैसे नहीं है तुम १०० रुपया ही ले लो।" 
रतन ने कहा- देखो पैसे तो पूरे देने पड़ेंगे नहीं तो दवाई मत लेकर जाओ।जब पैसे नहीं थे तो दवाई लेने क्यों आ गए और सुबह सुबह मुझे काम भी नहीं करने दिया।
हरिराम चेहरा एकदम पीला हो गया ।
दवाई को लालच भरी नजरों से देख रहा था।
उस मेडिकल स्टोर में काम करने वाले नौकर को उसके ऊपर दया आ गई और उसने कहा सेठ जी इनको दवाई दे दो।   
रतन ने कहा -ठीक है तुम्हें इतनी दया आ रही है तो तुम ही दे दो।
श्यामलाल ने कहा -मेरी तनखा में से काट लेना आप।
रतन ने कहा- फिर मत कहना कि मुझे कम पैसे दिए हैं। 
हरिराम ने लपक कर दवाई उठा ली ।
हरिराम ने कहा- "बेटा तुम सदा सुखी रहो भगवान तुम्हारी सारी इच्छा पूरी करें बेटा तुम्हारा नाम क्या है।"
उसने कहा- "मेरा नाम श्याम लाल है।" 
हरीराम ने कहा -"बेटा मैं तुम्हें  पैसे अवश्य लौटा दूंगा।" 
दोनों  बात ही कर रहे थे तभी अचानक रतन जमीन पर गिर पड़ा।
हरिराम ने कहा-अरे !इसे क्या हो गया?
श्यामलाल ने कहा -बगल में अस्पताल है।
आप यहां रुको मैं डॉक्टर साहब को बुला कर लाता हूं। 
डॉक्टर ने कहा - कमजोरी के कारण चक्कर आ गया है, थोड़ी देर बाद ठीक हो जाएगा। 
यह सुनकर हरिराम ने गहरी सांस ली ।
श्यामलाल से कहा -"बेटा मेरी पत्नी बीमार है अब मैं घर जाता हूं।
तुम मेरा नंबर लिख लो और मुझे फोन करना और बताना कि तुम्हारे सेठ की तबीयत कैसी है।
मेरे मन में चिंता लगी रहेगी बेटा मैं तुम्हारे फोन का इंतजार करूंगा।
बेटा तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद तुम्हारे जैसे उदार  बेटे भगवान सबको दे।
श्यामलाल की निगाहें  हरिराम को देखतेरहती है ।
कुछ क्षण बाद उसकी आंखों से ओझल हो जाता है।श्यामलाल सोचता है कि जीवन के कितने रंग हैं प्रभु........। 

 - प्रीति मिश्रा 
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
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उपकार 
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"आइए हाथ  दीजिए मांझी मैं आपको सड़क पार करवा देती हूं"। नेहा जो की स्कूटी से कहीं से आ रही थी ने जब एक बुजुर्ग महिला को सड़क के दूसरी ओर जाने में संघर्ष करते पाया तो, स्कूटी को सड़क के किनारे पार्क कर उन बुजुर्ग महिला की मदद के लिए तुरंत ही आ गई। जैसे ही मांझी को सड़क पार करवाई और वापस स्कूटी की ओर आने के लिए मुड़ी तो देखा ट्रैफिक पुलिस नेहा की स्कूटी लेकर जा रही थी। वह दौड़ी ताकि स्पष्टीकरण दे सके, लेकिन तब तक ट्रैफिक पुलिस की गाड़ी पास के ट्रैफिक पुलिस स्टेशन के लिए निकल चुकी थी। स्नेहा ने तुरंत ही ऑटो किया और पुलिस स्टेशन पहुंचकर अपना स्पष्टीकरण दिया तब ट्रैफिक पुलिस ने पुष्टि करने के लिए सीसीटीवी कैमरे में देखकर सच्चाई जानकर स्नेहा की  सराहना करते हुए बिना किसी पेनाल्टी के गाड़ी लौटा दी और ऐसे ही लोगों की मदद करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा कि, अगली बार से गाड़ी को ध्यान से पार्किंग में ही लगाना।

- डाॅ शैलजा एन भट्टड़ 
बैंगलोर - कर्नाटक
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लघुकथा
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अरी बहु !फिर  तेरे लड़की हुई है ।  दो लडकियाँ तो पहले से ही हैं । ये हमारे लिए दहेज का बोझ है , इसे मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती हूँ। 
माँ जी !  हम और आप भी तो किसी की लड़की हैं। तुमने भी घर बसाया है और मैंने भी । यह भी हमारे तरह किसी वंश की लाली है। इसे मैं पढ़ा  - लिखा के पैरों पर खड़ा कर दूँगी।  किसी पर बोझ नहीं बनेगी 
यह तो तब करेगी , जब यह जिंदा रहेगी।
माँ जी , यह क्या कह रही हो ? 
हा , मैं इसे कचरे की कुंडी में फेंक दूँगी ।
नहीं , माँ ऐसा पाप नहीं करना। मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगी । मैंने इसे खून से नौ माह गर्भ में सींचा है।
जा निकल घर से कलमुँही ... 
मेरे पति कहेंगे तो निकल जाऊँगी।
हमें बेटी नहीं बेटा चाहिए , बेटी समाज में सुरक्षित नहीं है पति ने कहा 
यह लो मंगलसूत्र  
चलो , बेटी  नानी के  घर .... ।
हा मम्मी ! नानी तो प्यार करती है।
  माँ ! मेरे मंगलसूत्र के मोती बिखर गए ।  अब तुम मुझे सहारा देकर उपकार करो ।
 हाँ  बेटी ! तू मेरा स्वाभिमान है।
 
- डॉ मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
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उपकार
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चतुर्वेदी साहब शहर के एक नामांकित और प्रतिष्ठित वकील थे। उन्होंने वकालत के सम्मानजनक व्यवसाय द्वारा खूब धन -दौलत और शोहरत कमाई थी और वकालत शुरू करने के दस -बारह वर्ष में ही उनका नाम इस शहर के सबसे बड़े, विख्यात और प्रतिष्ठित वकील के रूप में लिया जाने लगा था। एक अच्छे वकील होने के साथ -साथ चतुर्वेदी साहब की समाज में इज़्जत एक सहृदय और दिलदार व्यक्ति के रूप में भी थी। एक मर्तबा उनकी अपार धन -दौलत से आकर्षित हो एक चोर ने रात्रि के अंधकार में, चोरी करने के उद्देश्य से चतुर्वेदी साहब के घर में प्रवेश किया। जब वह घर के एक तरफ़ के दरवाजे को तोड़ने का और घर में सेंध लगाने का प्रयास कर रहा था, तभी चौकीदार ने उसको देख लिया और उस चौकीदार की सतर्कता से वह चोर पकड़ा गया। जब चौकीदार ने उस चोर को पकड़ कर चतुर्वेदी साहब के हवाले किया तो चोर को पक्का यकीन था कि चतुर्वेदी साहब उसे मार -पीट कर अवश्य ही पुलिस के हवाले कर देंगे। मगर चतुर्वेदी साहब ने उसे अपने सामने बैठाकर चोरी करने का कारण पूछा। चोर ने रोते हुए बताया कि उसकी पत्नि बहुत बीमार है मगर घर में अत्यधिक गरीबी होने की वज़ह से वह उसका ईलाज नहीं करवा सकता। यह सुन कर चतुर्वेदी साहब का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने चोर को उसकी पत्नि के ईलाज के लिए समुचित धन प्रदान किया और उससे यह वचन लिया कि भविष्य में वह कभी भी चोरी नहीं करेगा। चतुर्वेदी साहब के अपने प्रति किए गए इस उपकार को चोर कभी नहीं भूला और उसने चोरी करना छोड़, मेहनत से अपनी रोज़ी रोटी कमाने का दृढ़ संकल्प कर लिया।

- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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उपकार
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मधु की शादी मंडप में दहेज की लेन-देन के कारण टूट चुकी थी। बारात के लौटते हीं लोग तरह-तरह के बातें बनाना शुरू कर दिए थे। मधु निर्जीव-सी ठगी-सी खड़ी थी। उसके माता-पिता सिर पकड़ कर एक कोने में बैठे थे।
      तभी मधु के भाई का दोस्त राजीव ने उसके पिता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। ऐसी विकट घड़ी में किसी का आगे आ कर प्रस्ताव रखना उनके हृदय के बुझते दीये में रोशनी भर दी थी। उन्होंने मधु की इजाजत लिए बगैर हामी भर दी।
     मधु शादी के बाद राजीव के साथ ससुराल चली गई। राजीव का व्यवहार समय-समय पर बदलता। किसी भी बात पर भड़क जाता, गलत व्यवहार करता, मानो भावावेश में लिए गए निर्णय पर पछतावा हो पर मधु खुशी- खुशी सब झेल लेती क्योंकि उसके उपकार का भाड़ भारी पड़ जाता। विकट घड़ी में समाज के बीच किये गये उपकार के तले वह दबी रहती।

                        -  सुनीता रानी राठौर
                         ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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नेहिल बूंदे
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सुबह से कितनी बारिश हो रही है, आज तो सूरज देवता के दर्शन भी नहीं हुए,  खिड़की से बाहर की ओर देखते हुए  रमन ने कहा ।
 अनु आज बेसन की सब्जी बनाओ , इतनी बारिश में कोई सब्जी बेचने नहीं आयेगा ।
तभी उसे सब्जी वाले की आवाज सुनाई दी ।
अनु देखो तो इस बारिश में भी ये सब्जी वाला आया है ।
अनु छाता लेकर बाहर गयी, उसने उससे पूछा , भैया चारों ओर तो पानी - पानी है ; फिर तुम कैसे आए?
 अरे ये क्या...? पूरा भींग गये हो, इतनी तेज बारिश में मत आया करो ।
क्या करूँ दीदी , ऐसे समय जब कोई नहीं निकलता; तब ज्यादा दाम मिल जाता है । आज कोई ग्राहक मोल- तोल भी नहीं कर रहा है , पूरी कालोनी में मेरा ही राज  है ।
कोरोना के समय बहुत से लोग इस धंधे में आ गए थे जिससे बिक्री कम हो गयी थी ।
हाँ, ये तो है, धीरे से अनु ने कहा ।
रमन ने अंदर से कहा अनु इसे कपड़े दे दो ये बदल लेगा । और हाँ गर्म चाय भी जरूर देना ।
आसमान की बारिश तो थम चुकी थी किन्तु सब्जी वाले की आँखों से अभी भी नेहिल बूंदे बहती जा रहीं थीं जो उसके गीले कपड़ों को और गीला कर रहीं थी ।

- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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उपकार
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सुनो इतना मत रखना कुछ घर पर भी बचाकर रख लिया करो।सोहन बाहर निकलते वक्त अपनी पत्नी से कह रहा था।उसकी पत्नी रोज वही आवाज देती। अरे कौन आ रहा है भला आप ले जाया करो वरना काम में आपको भूख लगेगी।पर तो थोड़ा बहुत बचाकर रखा करती थी।आज काम पर जाने को जरा देरी हो गई।पर उसका खाना रख दिया गया था।
   इतने में दरवाजे पर कोई आया और आवाज दी, " कुछ खाने को दे दो चार दिन से भूखा हूं बड़ा उपकार होगा मुझ पर आपका।"सोहन चुप रहा।उसकी पत्नी की भी आवाज नहीं आई।थोड़ी देर बाद बाहर की भी आवाज बंद हो गई।वो तैयार होकर निकलने लगा पर मन में एक भी बात आ रही थी।आज किसी ने कहा कि एक छोटा सा उपकार कर दो और हम वो भी ना कर पाए।ऐसा सोचता हुआ निकल ही रहा था कि सामने उसकी नजर गई तो देखा उसकी पत्नी उसे बड़े प्यार से खाना खिला रही थी।उसकी मुस्कुराहट बड़ने लगी।अपनी पत्नी को बिना आवाज दिए हुए काम पर चले गया।
     जाते जाते यही सोच रहा था कि अपना पेट भर जाए ठीक है पर किसी और पर जरा सा उपकार करने लायक बचा रहे तो इंसानियत जिन्दा रहती है।शायद मन ही मन अपनी पत्नी को धन्यवाद दे रहा था और चेहरे पर सुकून की मुस्कुराहट लिए आगे बढ़ता जा रहा था।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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अनमोल सुख 
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जमींदार दीनानाथ अपनी पालकी में बैठ गांव का भ्रमण कर रहे थे !रास्ते में जो भी व्यक्ति मिलता सिर झुकाकर अभिवादन करता है आखिर हर खेतीहार स्वयं को उनके एहसान और उपकार तले दबा महसूस करते थे ! दुकाल में मालिक का हम पर बहुत बड़ा "उपकार " है वरना हम भूखे ही मर जाते !
तभी हरिया जो खेत में मजदूरी करता है खुश होते हुए अपनी धुन में बिना अभिवादन किए आगे निकल जाता है जमींदार अपने आप को अपमानित समझते हुए क्रोधित होते हुए अपने मातहत से हरिया को हवेली में आने को कहा .... सभी गांव वालों में कानाफूसी होने लगी .... हरिया ने क्या गुस्ताखी की होगी !  जमींदार उसे कैसी सजा फटकारेंगे वगैरह वगैरह ....
सभी गांव वालों के सामने जमींदार ने हरिया से कहा ! एहसान फरामोश ..... तुझे ऐसा कौन सा  खजाना मिल गया था जो तू मुझे अनदेखा कर सलाम किए बिना निकल गया ....  तुझे इसकी सजा मालूम नहीं है ? मालिक मुझे सुख का अनमोल खजाना मिल गया है !
आज मैंने मंदिर में एक साहूकार को जो शायद अपनी शरीर की पीड़ा से पीड़ित होने की वजह से दूसरे पर निर्भर थे ! घर के सभी भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के अंदर गए थे....  वह बाहर चबूतरे पर धूप में बैठे थे .... उन्होंने हरिया से पीने को पानी मांगा ! डरते हुए हरियाने पानी दिया .... व्यक्ति के कपड़े देख हरिया की नजर अपनी फटी धोती पर पड़ी तभी उस व्यक्ति ने कहा ! धन्यवाद भाई तुम्हारा "उपकार " मुझ पर कर्ज बन हमेशा रहेगा !तुम कितने सुखी हो .... किसी पर निर्भर तो नहीं हो... मैं धन-दौलत होकर भी कितना गरीब हूं .... पराश्रित हूं !
हरिया समझ गया "पराधीन सपनेहु सुख नाही " मेरे हाथ पैर मेरे शरीर तो मेरे साथ है!  मैं स्वयं करोड़ों की दौलत का मालिक हूं ....... हमारी मेहनत किसी की मोहताज और अधीन नहीं है! 
 हरिया ने जमींदार से कहा आप हम पर आश्रित हैं हम नहीं ....!कर्ज देकर आप हम पर "उपकार "नहीं करते....  मालिक !  एहसान फरामोश हम नहीं हैं ! हमारी मेहनत का फल आप खाते हैं अतः आप हम पर आश्रित हैं गरीब हम नहीं आप हैं .... यह कहते हुए निडरता के साथ हरिया के कदम गांव वालों के साथ अपने खेत की ओर बढ़ने लगे आखिर उसे अनमोल सुख का खजाना जो मिल गया था !

        - चंद्रिका व्यास
       मुंबई - महाराष्ट्र
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व्यवहार 
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क्लास 10th का प्रथम श्रेणी का रिजल्ट पाकर सलिल और सरल बहुत खुश थे। व्यापारी का बेटा सलिल तथा श्रमिक का बेटा सरल दोनों सहपाठी थे। समय बीतता गया। क्लास फर्स्ट ईयर के छमाही के एग्जाम में ट्यूशन न लगने के कारण सरल के नंबर सलिल से काफी कम आए। सरल अन मना रहने लगा।
 एक दिन सलिल ट्यूशन नोट्स की फोटो कॉपी लेकर सरल से बोला-" ले यार !  उदास ना हो। मैं रोज ही ऐसे नोट्स तुझे देता रहूंगा। तू समझ ले; तेरी ट्यूशन ही लगी है"। सरल सलिल को ऐसे देख खिल उठा और भाव विभोर होकर उसके गले लग गया।

-  डॉ. रेखा सक्सेना
 मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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उपकार
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   रीमा फोन पर कह रही थी।घर परिवार के लिये इतना कुछ करती हूँ, पर मेरी कदर नहीं।
    राज ने हँस कर कहा,-"कौन कहता है,हम है न।वैसे भी घर का जोगी जोगड़ा।समय आने पर वे सब जानेंगे।तुम सर्वगुण संपन्न हो यह सब जानते है।
   साहित्य की बातें हो ही रही थी की रीमा के दूसरे फोन पर पडोसन भाभी का फोन आ गया।उनके घर दोपहर को पूजा थी तो एक कामवाली की जरूरत थी।
  रीमा ने जवाब दिया कि कामवाली व्यस्त रहती है,वह तो नहीं आ पायेगी।पर,हाँ मेरी जरूरत हो तो कालेज से हाफ डे लेकर हाथ बँटाने आ सकती हूँ।
   राज ने फोन रख दिया।वह रीमा को जानता था ।दूसरों की मदद के लिये वह हमेंशा तैयार रहती हूँ।पूरी तन्मयता के साथ।पर उसे रीमा के समय की कीमत का भी अंदाजा था।राज के लिये रीमा बहुत कीमती थी।वह परोपकारी भी थी,और किसी पर व्यक्त भी न करती थी।मन ही उसे नमन कर दुआएं देता हुए लेखन में जुट गया।

- महेश राजा
महासमुंद- छतीसगढ
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दोस्ती
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        रोहित परेशान सा बस स्टाप पर खड़ा बस की इन्तजार कर रहा था और सोच रहा था-----रोज रोज के धक्कों से परेशान हो गया हूँ---'नौकरी के दो पदों के लिए दो हजार की लंबी कतार---इन्टरव्यू के बाद कोई जवाब ही नहीं आता। क्या फायदा हुआ-----इतने बढिया काॅलेज से डिग्री लेने का-----।पास ही आकर एक कार रुकी।कार का दरवाजा खोल कर एक नौजवान बाहर आया और रोहित को बोला "अरे यार,कहाँ छुप गया था----मैंने बहुत बार पता लगाने की कोशिश की----पता ही नहीं चला---यार,मैं अनुज---।दोनों दोस्त बगलगीर हुए और दोनों कार में बैठ गए।
        दोनों दोस्तों ने स्कूल टाइम की खूब बातें की।अनुज ने कहा, रोहित, मुझे अभी भी याद है अगर तुम मेरी बारहवीं कक्षा की समय पर परीक्षा फीस ना भरते तो मैं आगे पढ़ाई करके उच्च पद पर ना होता।बारहवीं कक्षा के नतीजे से पहले ही तुम्हारे पिता जी की बदली हो गई और तुम किसी को भी कुछ बताए बिना चले गये। अच्छा अब तुम बताओ, क्या काम कर रहे हो? रोहित ने ठंडी सांस भरते सारी व्यथा सुना दी।
        अनुज ने कहा, "यार कोई बात नहीं ।परेशान मत हो।अब तेरे लिए कुछ करने की बारी मेरी है।अनुज ने अपना कार्ड दिया और अगले दिन मिलने को कहा। 
        
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
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उपकार
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मधु की शादी बड़ी ही धूमधाम से हुई  । विदाई का वक्त आ गया उसने अपनी मम्मी - पापा को बड़े ही करुणापूर्ण  नेत्रों  से निहारा । उसके मम्मी- पापा का रो -रो कर बुरा हाल था ।  आज उनकी लाडली दूसरे घर जा रही थी ।
मधु भी अपने मम्मी- पापा से लिपट कर रोने लगी । उसके पास आज कोई शब्द नहीं थे । वह एक अमीर घर की बहू बनने जा रही थी । उसे अपने मम्मी -पापा पर गर्व हो रहा था। उसने रुंधे हुए गले से अपने मम्मी -पापा से से कहा-"आप दोनों का बहुत-बहुत *उपकार *है मुझ पर ,आपने एक अनाथ लड़की को सहारा देकर उसकी जिंदगी को संवार दिया ।" उसके नेत्रों से अश्रु धारा बही जा रही थी। तभी उसकी मम्मी ने उसके आँसू को पूछते हुए कहा " बेटी *उपकार* है तेरा हम पर ,जो तूने हम दोनों को माता -पिता  बना दिया । तेरे आने से मेरी  जिन्दगी को जीने का सहारा मिला ।" आगे मधु की माँ कुछ  न कह पाई । माँ और बेटी की अद्भुत विदाई देख कर सभी  भावुक हो रहे थे ।

- आभा दवे
मुंबई - महाराष्ट्र
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उपकार 
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मोहनलाल अपनी बेटी सीमा के लिए सुयोग्य वर की तलाश में थक कर परेशान हो गए 
एक दिन मार्केट में बरसों पुराना सहपाठी टकरा गया ,कुशल मंगल पूछते हुए.... दोस्त को घर तक ले आए ।बचपन की पुरानी बातों में दोनों  इतना मशगुर  हो गये कि शाम होने का पता ही नहीं चला ।
सीमा अपने पापा को इतना खुश  देखते हुए बोली-  अंकल आप  आते रहा करो ,आज पापा को इतना खुश पहली बार देख रही हूं एकदम से ही .. सीमा बेटी को देखकर चौकते  हुए  बोले - बहुत सुंदर बेटा ...बहुत सुंदर ।
यह कहते हुए( सीमा के अंकल ने सीमा के पिता को )   दोस्त को गले से लगा लिया।
 यह तो ईश्वर का बहुत बड़ा उपकार है बे टी
 बेटी जो हमें... आज... फिर से मिला दिया,। कान में फुस फुसते हुए कहो.... समधी जी  ?
समझे जी ...यह कहकर जोर-जोर से हंसने लगे ।
एक बार फिर से दोनों दोस्त  गले लिपट गए।

- रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
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हरिशंकर परसाई की लघुकथा


Comments

  1. जाति पर करारा व्यंग। व्यभिचार से जाति नहीं जाती ,शादी से जाति जाती है।

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