क्या मित्रता एक विश्वास है जिसे स्वार्थ से हमेशा दूर रखना चाहिए ?
मित्र से बढ़ कर दुनियां में कोई नहीं है । भगवान श्रीकृष्ण को सुदामा की मित्रता बहुत ही प्रिय थी । जिस मित्रता में स्वार्थ हो , वह मित्रता नहीं कहलाती है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते है : -
मित्रता में बड़ा छोटा ऊंच नीच जाति भेज रंगभेद कुछ भी नहीं देखा जाता
मित्रता की बहुत सी कहानियां हमारे वेदों में पुराणों में धर्मों में पढ़ी और सुनी है कृष्ण सुदामा की मित्रता, अर्जुन कृष्ण की मित्रता, सुग्रीव और राम की मित्रता आदि अनेकों उदाहरण है मित्रता में मित्रता ही होनी चाहिए स्वार्थ से बहुत दूर रखना चाहिए जहां मित्रता के बीच में स्वार्थ आ गया वह मित्रता नहीं रह गई मित्रता स्वार्थ को देखकर नहीं किया जाता है मित्रता तो बस पावन पवित्र रिश्ता जो एक मित्र दूसरे के लिए महसूस करता है।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
जीवन में मित्रता एक अभिन्न हिस्सा हैं, जहाँ स्वार्थ की कोई हिस्सेदारी नहीं होती हैं। हम अपने अपनों से दूरियां बनाते हैं, किन्तु मित्र मिल का पत्थर साबित होता हैं, जिसे हम अत्यंत विश्वास करते हैं, इसलिए कहा जाता हैं, कि मित्रता में शक हो जायें, तो दुश्मन से बढ़कर, दुश्मनी नहीं? श्रीकृष्ण-सुदामा, दुर्योधन-कर्ण,
शोले की जय-वीरु आदि पंसग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप के उदाहरण हैं। मित्रता में उम्र तथा कौन हैं, देखा नहीं जाता, बल्कि एक विचारधारा विश्वास पर जीवन यापन कर जीवित अवस्था में पहुँचने पर सफलता मिलती जाती हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
मित्रता का आधार स्तंभ आपसी सद्व्यवहार, प्यार विश्वास और भरोसा होता है। अगर इसमें स्वार्थ का समावेश हो जाए तो मित्रता खत्म होने में देर नहीं लगती। जीवन की विपरीत विकट परिस्थितियां ही सच्ची मित्रता की कसौटी होती है। ऐसे समय में सच्चे मित्र का साथ मिला तब मित्रता गहरी हो जाती है। निस्वार्थ प्रेम रिश्ते को मजबूती प्रदान करता है।
मित्रता बहुमूल्य उपहार की भांति होता है। सच्चा मित्र हर मुसीबत में साथ खड़ा होता है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। यह ऐसा रिश्ता है जो इंसान खुद परख कर बनाता है और सारे रिश्ते तो जन्म के बाद अपने आप बन जाते हैं।
विश्वास के आधार पर बना यह मधुर संबंध अपने सगे संबंधियों से भी ज्यादा मददगार साबित होता है। विश्वास, सहयोग के आधारस्तंभ पर खड़ा संबंध-- दोस्ती दो लोगों के बीच प्यार की भावना का संगम होता है।
मित्रता को अटूट बनाए रखने के लिए स्वार्थ से हमेशा दूर रखने की जरूरत होती है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
मित्रता शब्द का नाम सुनते ही दिल और दिमाग में एक मीठा सा अहसास होने लगता है । दो या दो से ज्यादा लोगों के बीच पनपे सौहार्द पूर्ण संबंधों का नाम ही मित्रता है मित्रता को सहेज कर रखना चाहिये और स्वार्थ की पर्त नहीं आने देनी चहिये ।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
सच्चा मित्र जीवन की अनुपम निधि है ! वह हमे सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है ! निराश होने पर उत्साह देता है ! मित्र भावनात्मक तौर से हमसे जुडा़ होता है और सुख दुख में हमारा साथ देता है अर्थात रक्षाकवच की तरह हमेशा साथ रहता है ! उसके विश्वास की मिठास दूध में शक्कर की तरह घुल जाती है !जहां विश्वास हो वहां स्वार्थ की बात नहीं अधिकार होता है ! अपने मित्र को हम हर बात शेयर करते हैं चूंकि अपनी मित्रता पर पूर्ण विश्वास होता है यदि अपना दुख अधिकार समझ मित्र के सम्मुख रखते हैं तो वह स्वार्थ नहीं है !
कृष्ण-सुदामा ,दुर्योधन और कर्ण की मित्रता कुछ ऐसी ही थी जो मिसाल बनी !
जहां मन प्रेम और विश्वास के भावनात्मक बंधनों से बंधा हो वहां अधिकार होता है स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
"परेशानियां, दुश्वारियां, बनायी बाद में ईश्वर ने।
हौसला देने के लिए पहले "मित्र" बना दिये।।" (तरंग)
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के कारण विभिन्न रिश्तों में बँधा होता है। यूँ तो प्रत्येक रिश्ते को स्वार्थ से हमेशा दूर रखना चाहिए परन्तु मित्रता का रिश्ता तो अनमोल होता है। जो बनता ही विश्वास पर है, चलता ही विश्वास पर है, टिकता ही विश्वास पर है। रक्त संबंध तो ईश्वर बनाता है, परन्तु मित्रता का सम्बन्ध मनुष्य स्वयं बनाता है। और स्वयं द्वारा स्थापित मित्रता का रिश्ता जब स्वार्थ के धरातल पर खड़े होकर रेत के ढेर के समान बिखरता है तो मन-मस्तिष्क के कोने-कोने को असहनीय पीड़ा देता है।
मित्रता में स्वार्थ की उपस्थिति को देखते हुए ही कविवर गोपालदास 'नीरज' जी ने कहा है कि......
"अब दोस्त मैं कहूं या, उनको कहूं मैं दुश्मन।
जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे।।"
मनुष्य के बदलते जीवन पथ पर मित्र बदलते रहते हैं। परन्तु यह सही है कि जीवन की किसी भी अवस्था में मनुष्य मित्रता के बिना अधूरापन सा महसूस करता है। इसलिए जिस व्यक्ति को भी मित्रता की छाँव प्राप्त होती है, उसे विश्वास के धागों से बनी मित्रता की डोर में कभी भी स्वार्थ की गाँठ नहीं लगानी चाहिए।
निस्वार्थ मित्रता के सन्दर्भ में रहीमदास जी सत्य ही कहते हैं कि.....
"कहि रहीम संपत्ति सगे बनत बहुत बहु रीत।
विपत्ति कसौटी जो कसे तेई सांचे मीत।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
जहाँ विचार मिलते हैं । वहीं मित्रता होती है। और मित्रता की परिभाषा ही विश्वास है दो ऐसे जीव जो एक दूसरे पर अटूट विश्वास कर पाएं मित्रता रहती भी वहीं है। बात मित्रता की करें तो सुदामा जी की व कृष्ण जी की गहन मित्रता विश्व विख्यात है।
और हाँ मित्रता का या मित्र का कभी अपने स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए क्योकि इससे एक अच्छा मित्र तो हमसे दूर हो जाता है साथ ही हम अपने प्रति सभी का भरोसा भी खो देते हैं जिसके चलते भविष्य में हमारा कोई मित्र नहीं बनता और बिना किसी साथी, बन्धु या मित्र जीवन रूपी मार्ग पर चलना कठिन हो जाता है।।
- ज्योति वधवा "रंजना "
बीकानेर - राजस्थान
मित्रता वह रिश्ता है जो हम खुद तय करते हैं। जबकि बाकी सारे रिश्ते आपको बने- बनाए मिलते हैं। मित्रता व रिश्ता है जिसमें एक दूसरे पर विश्वास का होना जरूरी है। स्वार्थ को दूर-दूर तक रखना चाहिए।अगर ऐसे दोस्त से अगर आप नहीं मिलते हैं तो कितने बेचैन हो जाते हैं और मौका मिलते ही दोनों आपस में खैरियत जानने की कोशिश करते हैं।
तो आप समझ सकते हैं यह रिश्ता कितना खास है।
लेखक का विचार:-मित्रता में विश्वास एवं समर्पण पर ही टिकी होती है। सच्चा मित्र किसी बहुमूल्य से कम नहीं होता है। जीवन में जितने अच्छे मित्र होगें व्यक्ति की सफलता की गति उतनी ही तेज होगी। सफलता में मित्रों का बहुत बड़ा योगदान होता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
मित्रता एक विश्वास भरोसा और मीठा एहसास है इसमें स्वार्थ की भावना हो ही नहीं सकती सच्चा मित्र वही है जो हमेशा एक दूसरे को भावनाओं को सही तरीके से समझ सके जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के लिए खड़े रहे ऐसे बहुत कम मित्र मिलते हैं पर मुझे तो जीवन में ऐसे मित्र मिले हैं जिनका हाथ पकड़ मैं बहुत दूर तक जीवन के उम्र दराज सफर में निकल पड़ी हूं दोनों एक दूसरे का मुस्कान हो दोनों एक दूसरे की हंसी हो दोनों एक दूसरे की पसंद हो दोनों का विश्वास है टूट है किसी की नजर ना लगे हम दोनों साथ-साथ हैं
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मित्रता को हमेशा स्वार्थ से दूर ही रखना चाहिए। क्योंकि मित्रता स्वार्थ से परे होती है। जिस मित्रता में स्वार्थ आ गया वो मित्रता नहीं टिक सकती है। स्वार्थ की धरातल पर मित्रता की इमारत नहीं बन सकती है। मित्रता में त्याग और समर्पण होना चाहिए। मित्र का दुःख अपना दुःख और मित्र की खुशी अपनी खुशी ऐसी बात होनी चाहिए। तभी मित्रता आजन्म कायम रहती है। कहा गया है-
"जे न मित्र दुःख हो ही दुखारी
तिनहू विलोकत पातक भारी"
यानी जो मित्र मित्र के दुःख दुःखी नहीं होता है वो बहुत बड़े पाप के भागी होते हैं।" मित्रता में एक दूसरे पर पूर्ण रूप से विश्वास करना पड़ता है तभी मित्रता चलती है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
मित्रता एक विश्वास है जिसे स्वार्थ से हमेशा दूर रहना चाहिए। मित्रता ऐसी पूँजी है जिसे आसानी से कमाया तो जा सकता है परन्तु निरन्तर सुरक्षित रखना कठिन है मित्रता को स्वार्थ से दूर रखना चाहिए। स्वार्थी की मित्रता खतरनाक होती है। यह एक ऐसी छाया की भांति है जो प्रकाश में साया की तरह साथ चलता है और अंधकार होते ही गायब हो जाता है। विश्वसनीय मित्र जीवन में औषधि के समान हितकारी होता है।
सच्ची मित्रता ईश्वरीय उपहार है, विश्वास है।जैसे हमें ईश्वर पर अटल विश्वास है,उसी प्रकार सच्चे मित्र पर भी विश्वास करते हुए लालच और स्वार्थ की भावना नहीं होती।वो मित्र ही नहीं, जिस पर हमें विश्वास ही नहीं।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
मित्रता एक ऐसा संबंध है, एक ऐसा विश्वास है जिसमें स्वार्थ का कोई स्थान ही नहीं होता। मित्रता में किन्तु परन्तु नहीं होते। मित्रता में कोई शर्त नहीं होती। मित्र अपने मित्र के दिल का हाल बिना पूछे समझ लेता है और बिना पूछे जो बन पड़ता है कर देता है। मित्रता एक विश्वास, स्वार्थ से परे, बिल्कुल निःस्वार्थ।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
मित्रता के लिए विश्वास और समर्पण जरूरी होती है, इसलिए कभी भी ऐसी बात नहीं होना चाहिए जो दोस्ती या मित्रता के मजबूत रिश्ते को कमजोर करें। सच्चा मित्र किसी बहुमूल्य रत्न से कम नहीं होता। जीवन में जितने भी अच्छे मित्र होंगे व्यक्ति की सफलता की गति इतनी ही तेज होगी। चाणक्य ने भी कहा कि व्यक्ति की सफलता में मित्रों का बहुत बड़ा योगदान होता है। वही स्वार्थी मित्र संकट की घड़ी में साथ छोड़ देते हैं, इसलिए ऐसे मित्रों से दूरी बनाए रखना ही बेहतर है जो मित्रता के नाम पर स्वार्थी और कलंकित हो। सच्ची मित्रता में कहीं भी लालच और स्वार्थ की भावना नहीं होती। व्यक्ति को ईर्ष्या द्वेष रखने वालों से दूरी बनाकर ही रखना चाहिए। जो मित्र सामने तो मीठी-मीठी बातें करते हैं लेकिन पीठ पीछे बुराई करते हैं उनसे कभी दोस्ती नहीं रखनी चाहिए। ऐसे लोग कभी भी धोखा दे सकते हैं। मन में ईर्ष्या द्वेष रखने वाले मित्रों से दूरियां बना लेनी चाहिए। सच्चा मित्र वही है जो संकट की घड़ी में सच्चा साथी बनकर साथ खड़ा रहे और धैर्य प्रदान करें। जो मित्र स्पष्ट बात करता है भले ही आपको उसकी बात कड़वी लगती हो लेकिन वैसा मित्र कभी धोखा नहीं दे सकता है। ऐसे मित्र दिल के साथ होते हैं जो मन के किसी प्रकार की बात नहीं रखते।यह भी जान ले कि अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस हर वर्ष अगस्त माह के पहले रविवार को मनाया जाता है। इस दिवस का विचार पहली बार 20 जुलाई 1958 को डॉ रमन आरटीयू द्वारा प्रसारित किया गया था। यह दिवस रंग या धर्म के बावजूद सभी मनुष्यों के बीच दोस्ती और फेलोशिप को बढ़ावा देती है। हालांकि दोस्ती का यह त्यौहार दुनिया भर में अलग-अलग तिथियों में मनाया जाता है लेकिन इसके पीछे की भावना हर जगह एक ही है। दोस्ती का मान सम्मान इस दिन दोस्त एक-दूसरे को उपहार कार्ड देते हैं। एक दूसरे को फ्रेंडशिप बैंड बांधते हैं। दोस्तों के साथ पूरा दिन बिता कर अपनी दोस्ती को आगे तक ले जाने और किसी भी मुसीबत में एक दूसरे का साथ देने का वादा करते हैं। मित्रता एक ऐसा विश्वास है जिसे स्वार्थ से व्यक्ति को हमेशा ही दूर रखना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
संसार में सभी लोग किसी न किसी तरह स्वार्थी हैं। संबंधों का मूल ही स्वार्थ है। वह संबंध चाहे रक्त के हो या वक्त के,आर्थिक हो या सामाजिक,कार्मिक हो या धार्मिक।
इसलिए तुलसी दास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि 'सुर नर मुनि सब कै यह रीति.. स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति। ' इसका भावार्थ यह है कि देवता, मुनि व मनुष्य सबकी यह रीति (आचरण) है कि स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति (प्रेम) करते हैं।
जहां स्वार्थ नहीं वहां संबंध नहीं। फिर भला दोस्ती,मित्रता इससे अछूती क्यों रहेगी? इसमें भी स्वार्थ होता ही है।
जीव का स्वाभाविक गुण है स्वार्थ। जो कहे, मैं स्वार्थी नहीं, उसे भी स्वार्थ है परमार्थी कहलाने का। किसी विचारक का कथन है कि स्वार्थ से होकर ही परमार्थ की राह जाती है।
हम बात कर रहे थे, मित्रता में विश्वास की और स्वार्थ न रखने की।विश्वास तो होता है, लेकिन यह बिना स्वार्थ संभव नहीं। स्वार्थ को केवल
धन के अर्थ में मानना बेमानी है। इसमें स्वार्थ होता है संग साथ का, अपने हित का, सलाह,मार्गदर्शन का,बतियाने का आदि आदि। इसलिए स्वार्थ से,मित्रता भी अछूती नहीं है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
मित्रता एक दूसरे पर विश्वास का नाम है ।एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करने का नाम है ।स्वार्थ से की गयी मित्रता स्थाई नहीं होती ।स्वार्थ पूर्ण होते ही खत्म हो जाती है ।कहतेंं है एक जैसी दो इच्छाओं का आपस में टकराव होता है तब मित्रता सामने आती है ।मित्र के मन की बात बिन बताये ही दूसरा मित्र समझ जाता है ।कृष्ण - सुदामा की तरह ।मित्र को यदि आर्थिक मदद की जरुरत हो और बिना शंका किए मदद की जाय वो मित्रता है । मित्रता ऊँच नीच अमीर - गरीब नहीं देखती । आज की दुनिया में सच्चे मित्र का मिलना बहुत मुश्किल है । कभी दो पल का अच्छा व्यवहार भी मित्रता की तरह प्रतीत होता है ।
मित्रता एक गहना है जिसे हम स्वार्थ से दूर रखेंगे तो दूर तक जा सकती है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
मित्रता का रिश्ता वह रिश्ता है जिसके विश्वास पर सब-कुछ न्यौछावर करने पर भी निस्वार्थ मित्र संतुष्ट नहीं होता। जैसे द्वापरयुग में सुदामा और श्रीकृष्ण जी की मित्रता का उदाहरण तीनों लोकों में आज भी विख्यात है।
परंतु उसी मित्रता के प्रसंग में एक कटु सत्य यह भी दर्शाया गया है कि सुदामा द्वारा ठंडी रात में श्रीकृष्ण जी के भाग की अमानत में खयानत का दंड सुदामा को कैसे चिरकाल तक दरिद्रता को भोगना पड़ा था?
इस उदाहरण को ही यदि सिमरन रखा जाए तो मित्रता में स्वार्थ नाम की चिड़िया जन्म ही नहीं लेगी। चूंकि श्रीकृष्ण जी ने पालनहार श्री विष्णु जी के अवतार होते हुए भी अपने प्रिय सखा का दरिद्र तब तक दूर नहीं किया था, जब तक सुदामा ने अपने स्वार्थ का दंड भोग नहीं लिया था। तो ऐसे में साधारण मानव और उनकी मित्रता की तो बात ही अलग है।
अतः वर्तमान युग में भी अधिकांश मित्रता भले ही स्वार्थपूर्ण है। परन्तु मित्रता के छुट-पुट उदाहरण आज भी कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में अवश्य मिलते हैं। जिसके कारण कहा जा सकता है कि मित्रता अभी जीवित है। जिसे दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि मूल नाश कभी किसी का नहीं होता।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
तुलसीकृत रामचरितमानस की एक चौपाई जो कि ज्यादातर लोग जानते होंगे ,,,,
धीरज धर्म मित्र अरु नारी ।
आपति काल परखिए चारी।
मित्रता एक विश्वास है जिसे स्वार्थ से हमेशा दूर रहना चाहिए ।
और अगर मित्रता में स्वार्थ भाव छिपा है तो वह मित्रता की श्रेणी में नही आता ।
यह भी पूर्णतया सत्य है कि सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय ही होती है।
जो मित्र विपत्ति में आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है ।
जो मित्रों की खुशी में शामिल होता है और दुख आने पर आपसे दूर हो जाता है तो वह आपका सच्चा मित्र नहीं हो सकता बल्कि ऐसा मित्र तो शत्रु से भी ज्यादा खतरनाक है।
मित्रता हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है।
मित्र के बिना हर व्यक्ति अकेला है ।
सच्चे मित्र मुश्किल से मिलते हैं।
सुदामा कृष्ण की मित्रता सच्ची मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है ।
जिस प्रकार पौधों को जीवित रखने के लिए खाद और पानी की जरूरत होती है ,उसी तरह मित्रता को बरकरार रखने के लिए सहयोग और सहनशक्ति की आवश्यकता होती है ।
मित्रता अनमोल है,,,,, और हमें सुचारू रूप से चलने में सहायता करती है ।
हम सभी के जीवन में सच्चे मित्र का होना परम आवश्यक है ,अतः मित्रता को हर हाल में बचा कर रखना चाहिए ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
सही मायने में मित्रता एक विश्वास ही है जिसे स्वार्थ से मुक्त रखना चाहिए। आपसी प्रेम ,समझ एवं विश्वास से हमेशा मित्रता कायम रह सकती है। स्वार्थ में मित्रता कायम नहीं रह पाती। विश्वास के बलबूते पर ही मित्रता का स्थायित्व निर्भर करता है। विश्वास खत्म, मित्रता भी खत्म। कृष्ण सुदामा की मित्रता का आज भी गुणगान किया जाता है। अवतारी पुरुष होने पर भी उन्होंने मित्रता का मान रखा। श्री राम, हनुमान एवं केवट आदि भी सच्ची निष्ठा के बल पर ही मित्र बने रहे।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मित्रता, दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो हर रिश्ते से पावन माना जाता है। सच्चा प्रेम जिसकी निंव विश्वास है। जहां स्वार्थ की कोई गुंजाइश नहीं है।और अगर स्वार्थ आ जाय तो ये टूट जाती है। ऐसे में निस्वार्थ मन बहुत आहत होता है।
दोस्ती हर रिश्ते से बड़ी होती है,जब ये होती है तो अपनी जिंदगी से भी ज्यादा प्यारी लगती है।हम हर बात,दुख सुख दोस्तों से साझा करते हैं, उससे बड़ा विश्वासपात्र हमें कोई पूरे दुनिया में नजर नहीं आता। कोई बंदिश नहीं,कुछ जज्बात हम माता पिता से नहीं बांट सकते लेकिन दोस्तों से बेझिझक कह देते हैं और सुख का अनुभव करते हैं।कभी गलतियां कभी मस्ती को बांटने के लिए दोस्त। दोस्ती नयी नयी जब होती है तो मन मस्तिष्क में सिर्फ वही छाया रहता है,हर हाल में वो भाता है और सबसे प्यारा भी लगता है। क्योंकि दिल उसपर विश्वास करता है।अच्छे बुरे हर वक्त जो साथ निभाए,वो ही तो है दोस्त। लेकिन दोस्ती में स्वार्थ प्रवेश कर जाय तो इसे चटकने में देर नहीं लगती। फायदे नुकसान की नीतियों से ये रिश्ता नहीं चलता है। दोस्ती रखना है तो स्वार्थ से ऊपर रखना होगा। स्वार्थ के प्रवेश पर विश्वास स्वतः बाहर चला जाता है।चार पांच दशक पहले दोस्ती मतलबी नहीं थी कभी कभी मिल देखने को मिलते। आज तो दोस्तों के मुखौटे बदलते देर नहीं लगती, ज्यादातर दोस्ती मतलबी और दिखावे की रह गई,कभी ओहदे की कभी कद तो कभी अर्थ पूर्ण। दोस्ती के लिए त्याग, और समर्पण यदा कदा ही देखने को मिलते हैं। कहां कह पाते हैं हम कि जिंदगी का नाम दोस्ती! अब तो कुछ दोस्तों के लिए करने में भी सभी अपना फायद ढूंढने लगते हैं। जिंदगी में खुशी और सुख के लिए एक दोस्त होना ही चाहिए जिसे विश्वास के खाद पानी से सींचा जाय, जहां स्वार्थ की परछाई भी ना आए।सच सच्चा दोस्त ईश्वर का वरदान है।
- रेणु झा रेणुका
रांची - झारखंड
सच्ची मित्रता वह है जो स्वार्थ से परे आत्मीय भाव से ओतप्रोत हो।इसमें न कोई राजजनैतिक भाव हों न अमीरी के प्रति रुझान हो केवल सात्विक भाव हो।वही मित्रता सच्ची होती है और स्थायी होती है।आजकल देखा जा रहा है कि मित्रता अभिशाप बन रहा है। मित्र ही पीछे से घात कर रहा है।लोग मित्र बनाने में डरते हैं।धीरे धीरे सच्ची मित्रता का भाव लुप्त होता जा रहा है।कृष्ण सुदामा की मित्रता केवल कहानी बन कर रह गयी है।इंसान का जीवन बिना मित्र के एकाकी हो गया है।सूना हो गया है।एक मित्रता ही तो ऐसा भाव है जिससे हर मानव जुड़ा रहता था।अपने हृदय के हर भाव उससे साझा करता था और मित्र ही उसे उसकी घुटन से उबारता था।अब इस भाव की कमी हो गयी है।सबके हृदय में स्वार्थ ने डेरा डाल रखा है।क्या फिर कभी वह समय लौटेगा जब कृष्ण और सुदामा जैसे मित्रों की कहानी रची जाएगी यह विचारणीय है।
- इन्दिरा तिवारी
रायपुर-छत्तीसगढ़
विश्वास मूल्य जीने का आधार है इस आधार के बिना अधूरे हैं मित्र रिश्ता तो हमारा सबसे श्रेष्ठ रिश्ता होता है ।इसमें किसी प्रकार की स्वार्थ नहीं होनी चाहिए ।स्वार्थ स्वयं के लिए किया जाता है। मित्र परम होते हैं ।जिससे परमार्थ का कार्य किया जाता है। साथ में मित्र निस्वार्थ भाव से ब्यवहार कार्य करने से ही संतुष्टि मिलती है। अतः विश्वास के सारे मित्र का सम्मान और स्नेह के साथ व्यवहार करना चाहिए तभी हम मित्र की अर्थकों समझ समझ पा रहे हैं। वर्तमान में स्वार्थी मित्र बहुत देखने को मिलते हैं परमार्थी नहीं अतः विश्वास मूल्य जीने का आधार है इस मूल्य के साथ ही सभी के साथ विश्वास बना रहता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मित्रता का रिश्ता एक दूसरे के मन से जुड़कर स्वतः बन जाता है, किसी की मध्यस्तता की आवश्यकता नहीं होती l यह ईश्वरीय वरदान सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होता है l यह एक ऐसा दर्पण है जजो हमारा स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कराता है, कभी झूँठ न बोले l
एक निश्छल रिश्ता जिसमें विश्वास ही विश्वास है, स्वार्थ का कोई स्थान नहीं l
मित्रता का स्थान धर्म जात -पांत से हमेशा ऊपर रहता है l संसार में माँ की ममता और मित्रता ये दो ही रिश्ते स्वार्थ से परे हैं वरना तो
"सुर नर मुनि- जन सबकी यही रीति,
स्वार्थ लागि करें सब प्रीति ll "
साधारण रिश्तों में व्यक्ति का अहंकार मौजूद रहता है, लेकिन मित्रता में इसका कोई स्थान नहीं तो स्वार्थ भी नहीं.... l
जब दो हृदय पुष्प सच्ची आत्मीयता से आप्लावित हो जाते हैं तो वह मित्रता के रिश्ते से बंध जाते हैं l संसार में बंधन ही व्यक्ति से कर्म करवाता है l मित्रता एक अंतर्वेयक्तिक संबंध हैं जो बाह्य सांसारिक प्रदूषणों से मुक्त है लेकिन चाणक्य ने कहा है -"हर मित्रता के पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता है ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमें स्वार्थ न हो यह कटु सत्य है चाहें आत्मिक बंधन का स्वार्थ ही क्यों न हो l "
चलते चलते -----
कच्चे मन के धागों से बंधी है परिपक्वता l
पवित्र है परिभाषित नहीं ऐसी है मित्रता ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बिल्कुल, मित्रता का आधार विश्वास पर ही आधारित है। मित्रता को स्वार्थ से परे सदैव रखनी चाहिए ताकि ऐसी मित्रता मिशाल कायम कर सके। जैसे श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती निस्वार्थ और बेमिसाल है। मित्र से हम निःसंकोच कुछ भी सुख- दुख की बातें शेयर करते हैं। रिश्तेदार से ज्यादा हम अपने अच्छे मित्र के साथ कुछ भी सुख- दुख की बातें निःसंकोच कर सकते हैं। किसी भी रिश्ते में अगर हमारा स्वार्थ व्याप्त हो तो सब बेकार हो जाता है। इसीलिए मित्रता वर्षों- वर्ष निस्वार्थ रूप से बखूबी निभाया जाता है।
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
मित्रता ऐसा रिश्ता है जिसकी बुनियाद ही विश्वास है। इस रिश्ते की ख़ासियत ही है कि जब साथी याद करे आप उपस्थित रहें। हर मुसीबत में सही सलाह की उम्मीद केवल एक मित्र से ही की जा सकती है। क्योंकि उसे न तो आपका पैसा चाहिए और न ही आपके रुतबे से मतलब है। मित्र के साथ सोच से जुड़ती है। एक समान सोच या दोनों का स्वभाव इस बंधन को जोड़ता है।
इस विश्वास को बना कर रखना दोनों पक्ष की जिम्मेदारी है। एक मित्र दूसरे मित्र से आत्मा से जुड़ता है। वे एक-दूसरे की जरूरतों के पूरक होते हैं। उससे न तो जन्म का रिश्ता है, न ही शारीरिक बंधन है और न ही धन-खानदान का जोड़-तोड़ है।
मित्र एक-दूसरे पर इतना भरोसा करते हैं कि उसकी आगे की जिम्मेदारी भी खुद उठा लेते हैं। हर तरह के दुःख-सुख में आपके साथ हँसते-रोते हैं।
अंतिम में कहूँगी कि ये मिलेंगे कहाँ? तो ये हमारे अंदर बैठे हैं। हम अपने मित्र के साथ स्वार्थपूर्ति करते हैं और समय आने पर धोखा देते हैं रिश्ता कभी भी मित्रता नहीं कहलाएगी। सभी परिस्थितियाँ इस बंधन के सामने नगण्य है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
दुनिया में यदि कोई सबसे खूबसूरत और विश्वासयोग्य रिश्ता है तो वो है-मित्रता का रिश्ता ।
जो मन की बात हम अपने मित्र से कर सकते हैं, कह सकते हैं, वह किसी से भी नहीं, किसी भी रिश्ते से नहीं कह सकते ।
सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र की भावनाएं .....संवेदनाएं उसके अहसासों को समझे ।
कई लोग, बिना कहे ही सिर्फ चेहरा पढ़ कर अपने मित्र की मानसिक स्थिति को जान लेते हैं ।
सच्चे मित्र अपने मित्र की बातों को अपने तक ही सीमित रखते हैं ।
जहां स्वार्थ हो, वहां मित्रता संभव हो ही नहीं सकती क्योंकि यह स्वार्थ ही तो मित्रता का शत्रु है ।
जीवन में निस्वार्थ मित्र बहुत मुश्किल से मिलते हैं ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
"दोस्ती हर चेहरे की मीठी मुस्कान होती है,
दोस्ती ही सुख दुख की पहचान होती है,
रूठ भी गए हम तो दिल पर मत लेना,
क्योंकी दोस्ती जरा सी नादान होती है"।
देखा जाए दोस्त या मित्र हमारे जीवन का अहम हिस्सा होते हैं, इसलिए हर व्यक्ति के जीवन में एक मित्र होना जरूरी है लेकिन मित्र सच्चा व दिल का साफ हो तो जीवन संबर जाता है क्योंकी मित्रता मानव हृदय की एक स्वाभाविक वृति है लेकिन सच्चा मित्र इस जमाने में भाग्य से मिलता है स्वार्थी मित्र तो बहुत मिल जाते हैं लेकिन सच्चा साथ निभाने वाले मित्र बहुत कम मिलते हैं,
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि मित्रता क्या है क्या यह एक विश्वास है इसे स्वार्थ से दूर रखना चाहिए,
मेरा मानना है मित्रता कोई स्वार्थ नहीं बल्कि विश्वास है इस में सुख में हंसी मजाक से लेकर संकट में साथ देने की जिम्मेदारी होती है यहां झूठे वादे महीं बल्कि सच्ची कोश्शें की जाती हैं,
मित्र बनाना सरल है मगर निभाना मुश्किल है कई बार मन की अस्थिरता के कारण या थोड़ा मतभेद होने से मित्रता टूट जाती है,
सही मायने मे़ मित्रता वो होती है जो मुसीवत में काम आए और किसी स्वार्थ के वगैर आपका सही मार्ग दर्शन करे जैसे सुदामा और श्री कृष्ण की मित्रता, देखा जाए सच्चे मित्र साकारात्मक के चिंतन को बढ़ावा देते है़,
इसलिए बहुत कुछ खो जाने के बाद भी एक सच्चा पा लेना जीवन की बहुत वड़ी उपलब्धि है मित्र जिंदगी का नया आयाम देता है,
लेकिन आजकल चारों तरफ स्वार्थ अंहकार भय और आतंक छाया हुआ है सच्ची मित्रता कहीं दोखने को नहीं मिलती,
आज श्री कृष्ण और सुदामा जैसा मित्र मिलना नमुमकिन है मित्रता तो स्वार्थ का रूप धारण कर चुकी है फिर भी चन्द कुछ मित्र अभी हैं जो मित्रता का सबूत बने हुए हैं,
सही मायने में सच्चा मित्र वो होता है जो आपको गल्त कार्यों से रोके व टोके और आप को अच्छा मार्ग दिखलाए, आपके हित की सोचे और लाख लड़ाई होने पर भी आपका साथ न छोड़े क्योंकी मित्रता तो एक विश्वास है इसमें स्वार्थ तनिक भी नहीं होना चाहिए,
अन्त में यही कहुंगा कि मित्र के प्रति कभी भी प्रतिकूल वचन न कहें उसके समक्ष सत्य और हितकारी बात ही करें आपस मे छल कपट तनिक भी न रखें क्योंकी सच्ची मित्रता आपसी विश्वास और पारम्पारिक सम्मान पर आधारित होती है,
दोस्ती वह रिश्ता है जिसे हम खुद बनाते हैं इसलिए इसका खास ध्यान रखें इस पर तनिक भी आंच न आने पाए इस संसार में मित्रता से अधिक मुल्यवान कुछ भी नहीं है,
सच कहा है,
खूबसूरत सा एक पल किस्सा बन जाता है,
न जाने कौन जिंदगी का हिस्सा बन जाता है,
कुछ लोग ऐसे भी मिलते हैं जिंदगी में,
जिनसे कभी न टूटने वाला रिश्ता बन जाता है।
यह भी सच है कि,
दोस्त एक ऐसा चोर है जो आंखों से आंसू, चेहरे से परेशानी, दिल से मायुसी, जिंदगी से दर्द और हाथों की लकीरों से मौत तक चुरा लेता है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सच में ही जब मित्र की बात चलती है तो अक्सर अपनी सखी सहेलियों की याद आती है ।जिनसे विश्वास और प्रेम के साथ बचपन में साथ खेलते खाते पीते पढते कब बड़े हो गये बचपन बीतने का पता ही नहीं चला ।
वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक मित्र और सखी सहेलियों से उसकी बोलचाल और संग साथ से वास्ता पड़ता रहता है ।
जी हाँ ..
यह सच है कि मित्रता प्रेम और विश्वास की कसौटी पर कसकर ही खरी उतरती है ।लेकिन सम्पूर्ण जीवन में सच्ची मित्रता तो किसी एक या दो से ही होती है ।अपनी निजी मन की सुख दुःख भरी जिन बातों से एक व्यक्ति किसी से भी शेयर करने में परेशानी महसूस होती है । सच्चे मित्र से दूसरा मित्र अपने मन की व्यथा बातें आदि सांझा कर सकता है ।और सच्चे मित्र से उसे सही समाधान भी मिलता है ।
वास्तव में तो मित्रता निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए । सच्चे मित्र की पहचान यही होती है कि सच्चा दोस्त अपने मित्र को उसके गुण एवं अवगुणों से अवगत कराता है । वह सबके सामने मित्र के गुणों की प्रशंसा करता है ।और जो भी मित्र मेंं दुर्गुण अथवा कमी होती है उसे एकांत में बता कर उसके दोष कमी में सुधार करने का प्रयत्न करता है । जिससे कि उसके आचरण में सदव्यवहार और गलत संगति से बचाव हो जाता है।
धीरे धीरे उसका चरित्र और जीवन उन्नति की ओर कदम बढाने लगता है ।
सच्ची मित्रता मोती जैसी निर्मल निश्छल होती है । जो सुन्दर हृदय वाले हंस के समान होती है । हंस वक्त पड़ने पर दूध और पानी को भी आसानी से अलग करने की क्षमता रखते है । उसी प्रकार सच्ची मित्रता भी मोती के समान निश्छल प्रेम विश्वास और दृढ़ संकल्पित होती है ।
- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " मित्रता में स्वार्थ कभी नहीं होना चाहिए । मित्रता में स्वार्थ आने से मित्रता दुश्मनी में बदल जाती है । मित्रता के लिए स्वार्थ से हमेशा दूर रहना चाहिए । तभी मित्रता बची रह सकती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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