होली ( लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

म्पादकीय
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                  होली विषय ही ऐसा है
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भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा   " लघुकथा उत्सव "  में  " होली " विषय को फेसबुक व WhatsApp ग्रुप पर रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लघुकथाकारों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल  अच्छी व सार्थक लघुकथाओं का संकलन तैयार किया है ।  लघुकथा साहित्य के लिए उपयोगी साबित होना चाहिए । कुछ लघुकथाकार होली विषय को लघुकथा साहित्य के लिए सार्थक नहीं मनाते हैं । यह उन की अपनी मानसिकता हो सकती है। फिर भी प्रयास सफल रहा है । यह सार्थकता की निशानी है । लघुकथा साहित्य को विशाल बनाना चाहिए । सीमित कभी नहीं करना चाहिए । बाकी तो लघुकथाकारों पर ही निर्भर करता है । ऐसा भी नहीं है कि पहले होली पर लघुकथा नहीं लिखी गई है । यह शोध का विषय है । इसलिए यहां पर विस्तार से जानकारी देना सम्भव नहीं है । फिर भी होली पर सभी को लघुकथा अवश्य लिखनी चाहिए । इसी के साथ होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
    सम्पादक
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क्रमांक -01

वन की होली 
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हिप-हिप हुर्रे!
 रंगों से रंगे सभी जानवर एक ही स्वर में खुशी से चिल्लाए । 
आज सबने पूरी योजना बनाकर पहली बार होली जो खेली थी।  पूरा जंगल रंगों से सरोबार था। और खुशबू तो ऐसी की इत्र भी शर्मा जाए । हो भी क्यों ना फूलों और पत्तों से जो रंग बने थे । एक सप्ताह पहले ही सभी शाकाहारी जानवरों ने किसी भी अनहोनी से बचने के लिए होली की योजना बहुत ही होशियारी से तैयार की थी। योजना अनुसार होली संकेंद्रित व्रत्तों में खेली गई ।
इसमें सबसे अंदर के व्रत्त में सबसे छोटे जानवर और क्रमशः बाहर की ओर बढ़ते हुए कद के अनुसार जानवर खड़े हुए और सबसे बाहरी घेरे में हाथियों ने स्थान पाया । ताकि बाकी सभी जानवरों की रक्षा कर सके। अब आती है बारी रंगों की और पानी की तो संकेंद्रित वृत्त के बाहर हाथियों ने सूंड से पानी लाकर पहले से बनाए हुए छोटे-छोटे गड्ढों में भर दिया और सभी जानवरों द्वारा मिलकर इकट्ठा किए गए रंग बिरंगी फूलों और पत्तों को हाथियों ने अपने पैरों से मसलकर पानी में मिलाकर उसे रंगीन बना दिया। योजना अनुसार सावधानी रखी गई कि रंग भी उसी समय बनाया जाए ताकि कोई शिकारी जानवर स्वयं को रंगकर धोखे से किसी का शिकार ना कर ले। इतनी सुनियोजित योजना का ही परिणाम था कि सभी जानवर निर्भीक होकर बेझिझक घंटों खेलते रहे और हाथियों ने भी अपनी सूंड से रंगों की भरपूर बौछार की।

- डाॅ शैलजा एन भट्टड़ 
बैंगलोर - कर्नाटक
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क्रमांक - 02

 बुरा न मानो होली है
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       होली है.... होली है....की आवाजों के संग सड़क पर आते-जाते रंग-बिरंगे पुरुषों और महिलाओं को अपनी बालकनी से देखते हुए रमाकांत जी उदास बैठे थे। पिछली होली की तरह ही इस बार भी विदेश में र। रहे पुत्र-पुत्रवधु ने अपनी व्यस्तता का कारण बताकर होली पर आने से इन्कार कर दिया था फिर एकाकी जीवन जी रहे रमाकांत को उदासी क्यों नहीं घेरती। 
     तभी मोबाइल की घंटी के बजने और उनके हैलो कहने से पहले ही "दादाजी हैप्पी होली" की आवाज जो उनके पोते की थी, ने उनके चेहरे पर क्षणिक चमक बिखेर दी। 
इस बार उन्हें पूरा विश्वास था कि इस होली में वे अपने बेटे-बहू और नन्हे से, प्यारे से पोते के संग जमकर होली खेलेंगे। परन्तु होली जैसा उल्लासित और आह्लादित करने वाले त्यौहार की रौनकें बच्चों की अनुपस्थिति में उनके मन को पीड़ा दे रही थीं। 
     पोते और उसके बाद बेटे-बहू ने भी "हैप्पी होली" कहकर होली पर कृत्रिम शुभकामनाओं से उनके हृदय को विभोर नही किया बल्कि उनके मन की उदासी और अधिक बढ़ गयी। 
     होली के हुड़दंग में नाचते-गाते युवाओं की आवाज.... "बुरा न मानो होली है".... को सुनकर उनके मन ने भी उनके कानों में धीरे से कहा..... "रमाकांत! बुरा न मानो होली है।" 

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
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क्रमांक - 03

होली
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         फ्लाइट में बैठी रीता होली की खुशनुमा यादों को एक बार फिर से जी रही थी… 
     रीता ने अभी दो महीने पहले ही बिटिया की शादी काफी धूमधाम से कई थी। सभी रिश्तेदारों को बुलाया था। सबने काफी मज़े किए और लज़ीज़ व्यंजनों का भी लुत्फ़ उठाया।
          रीता की बेटी रूही अपने पति के साथ बंगलुरु में ही सैटल हो गयी थी । बेटा रजत पहले से ही वहां था।
   बंगलुरु जाते हुए रीता बहुत खुश थी। खुशी इस बात की कि एक लंबे समय के बाद पूरा परिवार होली का त्योहार एक साथ मनाएगा। उसने सारी तैयारियां कर ली बंगलुरु जाने की... सबके लिए कपड़े, मिठाइयां सब लेकर गयी। बच्चे भी बहुत खुश हुए।
            परंतु यह क्या? होली की सुबह दोनों बच्चों के ऑफिस में जरूरी काम आ गया और वे ऑफिस चले गए।
    बेचारी रीता मन मसोस के रह गयी। नौकरी के सामने जज़्बातों की कोई जगह नहीं थी...
      अगले दिन रूही को यह अहसास हुआ कि माँ होली के लिए इतनी दूर आई और होली फीकी रह गई। उसने सब को होली के अगले दिन अपने घर पर निमंत्रित किया और होली की पार्टी दी, कहा कि होली मन से होती है चाहे कोई भी दिन हो... सबने खुशी खुशी होली का त्योहार मनाया।
     रिश्तों में गर्माहट भरने का नयी पीढ़ी का यह तरीका रीता को बहुत पसंद आया।
                   - गीता चौबे "गूँज" 
                    रांची - झारखंड
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क्रमांक - 04

होली 
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     बात उस समय की हैं, काँलेज में अध्ययनरत थे, काँलेज की पहली होली थी, नया उत्साह उमंगें थी, ऐसा पर्व रहता हैं, जहाँ पूर्व से ही तैयारी शुरू कर दी जाती थी, होली की छुट्टियों में जाने के पूर्व मस्तियों में मस्त रहते हैं, वह समय भी आया और जिसका इंतजार था, सब उत्साहित होकर रंग-गुलाल लेकर लगाने लगा रहे थे, वह एक समय होता हैं, युवाओं का, जहाँ भूल जाता हैं, स्नेहिल मन से, किसी को कुछ मालूम नहीं था, ऐसा भी साथी हैं,  जो गुमसुम सा बैठ कर, सबको देख रहा हैं। जब हमारी नज़र पड़ी, उन्हें लगाने का प्रयास किया, परन्तु विफल, हमने वास्तविक तथ्यों का आकंलन कर पूछ ही लिया, मालूम हुआ कोई साथी था, छोड़कर चला गया, उसके साथ प्रति वर्ष होली की तरंगों में रहते थे,  वह समय कहा से आयेगा, कहा शब्दों के बीच साथियों की टोलियाँ आ गई और देखते ही देखते, उसे रंगों से रंगा डाला, फिर क्या था, पुरानी मिश्रित बातों को भूल कर मस्ती में मस्त होकर रह गई, ममता मयी का उल्लास-उल्लास?

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 05

होली मिलन
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    रीना होली मिलन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी।होली ईद जैसे त्यौहार उसके हृदय में उत्साह जगा देते थे क्योंकि इन पर्वों में प्रेम- भाईचारा देखने को मिलता था। उसकी दादी --जो पुराने ख्यालात की थी --उसे अपनी सहेली मुमताज के घर नहीं जाने देती थी पर होली के दिन सभी पाबंदियां रोक-टोक खत्म हो जाती थी।
   वह अपनी सभी सहेलियों के घर जाकर रंग गुलाल लगाती, मस्ती करती, मिठाइयां खाती--सब जात- पात व धर्म का बंधन खत्म हो जाता,वह प्रफुल्लित हो जाती।
       भाईचारे का त्यौहार होली और होली-मिलन कार्यक्रम उसे असीम सुख प्रदान करता। गरीब -अमीर सब एक रंग में दिखते। हंसी- ठिठोली संग खुलकर रंग गुलाल उड़ाना रिश्ते में पकवान सा मिठास घोल देता।
     उसे लगता काश! यह होली का त्यौहार होली मिलन कार्यक्रम हर दिन रहता । ख्वाब हकीकत में बदल जाए यही हर पल वह सोचा करती।
                        
                            - सुनीता रानी राठौर
                           ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 06
         
स्वाभिमान
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दस वर्षीय राहुल सुबह से पिचकारी की रट लगाए था।पिता के पैरों पर चढ़ा प्लास्टर देख वह बोल पड़ा- "पापा मुझे आज ही और अभी ही पिचकारी चाहिए, नहीं तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा।पिता की शारीरिक और आर्थिक मजबूरी देख कर भी राहुल जिद पर अड़ा रहा।
 मां बार-बार समझाकर हार चुकी थी।आखिर मां पांव में चप्पल डाल बाहर की ओर निकल पड़ी। वह चलते-चलते मंदिर के पास रुक गई।मां को बाहर जाता देख राहुल भी चिंतित हो उसके पीछे भागा। मोहल्ले में रंगों का खेल जोरों पर था। सभी और ढोल-ताशे बज रहे थे। बच्चों की टोलियां झूम-झूम कर रंग उड़ आती हुई अपनी खिलखिलाती हंसी बिखेर रही थी। राहुल मां का हाथ पकड़कर बोला- "मां तुम यह क्या कर रही हो मंदिर में भीख मांगने आई हो..? मां आंखों में आंसू लेके बोली- "तू सब जानता है, फिर भी समझता नहीं.., इसीलिए तेरी जिद पूरी करने के लिए यहां आई हू, "नहीं-नहीं, मां.., मैं तो बिना पिचकारी के रंग खेल लूंगा,आप तो घर चलो। आज वह अपनी जिद छोड़ मां का हाथ पकड़ घर ले आया।
आज स्वाभिमान का रंग राहुल पर चढ़ चुका था। हालातों से समझौता करते हुए आटे का हलवा खाकर राहुल खुश हो गया। और रंगों से सराबोर हो रही बच्चों की टोली में शामिल हो गया। उसकी चेहरे पर एक अजब सी खुशी  देखकर पिता पलँग पर लेटे-लेटे उसे देख रहे थे।राहुल मुस्कुराते हुए पिता की और देख रहा था। स्वाभिमान का गुलाल राहुल के गालों को गुलाबी कर रहा था।
        - वंदना पुणतांबेकर 
              इंदौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 07

होली का रंग 
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कॉलेज में रीना और मीना दोनों ही पक्की सहेलियाँ थीं। दोनों बी.एससी. फाइनल में थीं तभी कॉलेज में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता हुई। दोनों ही बहुत अच्छी वक्ता थीं।दोनों ने विषय के पक्ष और विपक्ष में अपने विचार रखे।
बायो की  मैडम  मीना को बहुत चाहती थीं,उन्होंने मीना को प्रथम कर दिया और रीना को द्वितीय।  निर्णय गलत ही था इसी बात पर दोनों की पक्की दोस्ती टूट गई थी। सभी रीना से कह रहे थे’“ रीना परिणाम में पारदर्शिता नहीं है।” रीना प्रत्युत्तर में चुप थी। 
पा वर्ष व्यतीत हो गए थे।  उनके विवाह भी हो गए थे।
रीना और मीना अचानक दिल्ली के चाँदनी चौक बाजार में मिल गई थीं। दोनों ही होली की खरीदी करने आयीं थीं।
 पहले तो वे एक दूसरे को देख मुस्कुरा दीं पर फिर जैसे कुछ याद आ गया तो रीना ने मुँह फेर लिया। तभी मीना,रीना के सामने आ गई थी और बोली “रीना मुझे माफ कर दो ।तुम्हें होली पर्व की शुभकामनाएं।मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ,यह मेरे घर का पता है। कल हम घर पर रंग खेलेंगे और ढेर सारी बात करेंगे।”
होली का रंग ही कुछ ऐसा होता है कि रीना ने स्वीकृति में सिर हिला दिया था।

- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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क्रमांक - 08

वो रंग लेकर आया तो था
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चारों तरफ रंग उड़ने लगे थे।गुलाल के रंगों से सभी के चेहरे ढकने लगे थे।कबीर ने भी अपनी रंगों वाली थैली उठाई और करम के मोहल्ले की तरफ चल दिया।
     कुछ दूर चला ही था कि उसे कुछ शोर सा सुनाई दिया। आवाज कम थी पर उसे सब पता चल रहा था।वो मायूस होकर वापस लौट रहा था।रास्ते में उसी मोहल्ले का सोहन मिल गया।उसके हाथ में रंग की थैली देखकर उसे रंग खेलने मोहल्ले में चलने को कहा।वो बस मना करके आगे निकल गया।
     यहां मोहल्ले के बाहर ही करम उसका इंतजार कर रहा था।सोहन को पास आता देख उसने कबीर के बारे में पूछ ही लिया।सोहन केवल यह बोलता हुआ आगे निकल गया कि " उसके हाथों में रंग देखो तो था।"

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 09

पड़ोसी 
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नये पड़ोसी  के आने से काफी रौनक थी।
पर पुराने पड़ोसी के जाने का माला के दिल में बहुत  दुख भी था। पिछले पांच वर्षो से दोनों में बहुत  गहरी दोस्ती  जो हो गई थी। बच्चों का मेल- मिलाप भी बहुत बढ़िया था।दोनों घर दो तो थे, पर बाहरी आने वालो को पता हीं न चलता कि ये दो परिवार हैं।  तबादला के कारण उन्हें जाना पड़ा। दोनों परिवार फिर मिलेंगे ऐसा बोल कर भरे मन से एक दूसरे को दिलासा दे रहे थे।
नये पड़ोसी से अभी औपचारिकता भर हीं जान- पहचान हुई थी।
अब होली आ रहा था। माला को अपनी पड़ोसन माधवी की बहुत याद आ रही थी।कितना सहयोग और उल्लास होता था दोनों परिवारों में।
इस बार  होली पता नहीं कैसे मनेगा?
 मन का कोना सूना सा लगता।
इस बार  वाले पड़ोसी दूसरे कौम से भी थे।इसलिए माला को पड़ोसी से किसी तरह की तनिक भी उम्मीद न थी।
बच्चे डरते झिझकते पड़ोस के घर पहुंच गए होली के दिन रंग, पिचकारी लेकर।
अरे आओ बच्चों हमने भी रंग बाल्टी में घोल रखी है।
 तुम्हारे मम्मी, पापा नहीं खेलने आए ? रबीना ने  बच्चो से पूछा ?
आंटी -मम्मी काम कर रही है।
 सोनू ने --खुशी से जबाव दिया।
अच्छा हम ही जाते हैं चलिए फरहान के अब्बा हम ही चलते हैं पड़ोसी के घर होली खेलने।
रंग का पूरा पैक लेकर दोनो पति- पत्नी पड़ोस के दरवाज़े पर हल्ला करते हुए ---होली है,
भाभी जी जल्दी बाहर आइए वर्ना अंदर घर गंदा हो  जाएगा।
माला को ऐसे पहल की तनिक भी  उम्मीद ना थी।
लेकिन जल्दी से दोनों बाहर आ गए।
चारों ने होली का भरपूर आनंद उठाया।
 होली के पकवान भी तो खाने है रंग , अबीर के बाद रबीना ने चहकते हुए  कहा।
हाँ , हाँ -- अवश्य 
आप हमारे होली का पकवान खाइए, हम भी ईद की सेवइयाॅ खाने का इंतजार करेंगे। 
बिल्कुल अभी तो होली के पूआ का मजा ले लूं।
माला खुशी से अंदर प्लेट में सब डालने लगी। रबीना  -भाभी मैं भी आपकी सहायता कर दूं ?
हाँ -- आओ ना इसी को तो मैं आज मिस  कर रही थी।
अब मैं हूँ ना -आपकी छोटी बहन।
माला ने रबीना को डबडबाई आंखों से गले लगा लिया। होली के दिन दिल मिल जाते हैं-- गाना जोरों से बज रहा था।

- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
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क्रमांक - 10

होली 
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शिखा, दीपा और नेहा बहुत खुश थी, होली की छुट्टी मनाने तीनों सहेलियाँ अपने घर जा रही थी। नेहा के पापा उन्हें लेने आये थे। सोनीपत के पास एक गांव से गाड़ी निकल ही रही थी कि अचानक बाहर से किसी बच्चे ने गन्दे पानी से भरा गुब्बारा उनकी ओर फैंका। उस समय तो वे कुछ समझ नहीं पायी परन्तु बाद में चिल्लाने लगी। 
"क्या हुआ बेटे इतना क्यों चिल्ला रहे हो, पानी ही तो था?"
" नहीं पापा! पानी में किलनी (चिचड़ी)थी हमारी  त्वचा पर चिपट गयी हैं, हम क्या करें, काट रही हैं। "
"हाँ अंकल हम ऐसी हालत में घर तक नहीं जा पायेंगी।"
"अच्छा मै रोकता हूँ सामने के घर में चलते हैं,अपना बैग उठा लेना। "
" बहनजी! किसी बच्चे ने इनके ऊपर किलनी से भरा गुब्बारा फैंक दिया, ये बच्चियाँ बहुत परेशान हैं क्या आपके यहाँ  ये  बाथरूम प्रयोग कर सकती हैं "
"हाँ हाँ क्यों नहीं, जाओ बेटा! सामने बाथरूम है नहाकर कपड़े बदल लो।कहीं हमारे अमित ने तो ये काम नहीं किया ? "
"अमित! सच बताओ तुम सुबह गुब्बारे भर रहे थे, तुमनें किलनी से भरा गुब्बारा किसी गाड़ी पर तो नहीं फैंका।  "
"हाँ माँ! होली है, मै और मेरे दोस्तों ने फैंका था, पर क्या हुआ? आप क्यों पूछ रही हो?"
"तुम्हे शर्म नहीं आती ऐसे काम करते, होली है तो ऐसे बेवकूफी के काम करोगे, दूसरों को परेशान करोगे, मैने कल भी तुम्हे रोका था जब तुमने गोबर का पानी भरकर लोगों पर फैंका था।होली मिलकर खुशी मनाने का दिन है न कि दूसरे को रुलाने का। पता है तुम्हारे कारण ये बच्चियाँ कितनी परेशान हैं?क्या हमने तुम्हे यही शिक्षा दी है?"
"माँ मुझे माफ कर दो, आगे से कभी ऐसा नहीं करूँगा। "
"  तो जाओ इनकी गाड़ी से सारी किलनी चुनकर बाहर फैंकों, यही तुम्हारी सजा है। भाई साहब! हमें माफ कर दो। इसके कारण आपको और इन बच्चियों को कष्ट हुआ । "

- डा. साधना तोमर
बड़ौत - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 11

होली के रंग
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" अरे यह क्या कर दिया 2000 की नई साड़ी पर रंग डाल दिया थोड़ी तो शर्म करो पर तुम निठल्ले क्या शर्म करोगे ₹200 की साड़ी लाने की तो औकात ही नहीं है तुम्हारी ।"पार्वती देवी अपने  इकलौते घर जमाई पर त्योंरिया चढ़ाकर अनाप-शनाप बोले जा रही थी । 
      कविता और रवि एक दूसरे को देख रहे थे, भरी भरी आंखें लिए कविता अपने कमरे में चली गई और रवि.......रवि...... ससुराल की देहरी से बाहर निकल गया । 
       आज होली है उस होली को बीते 10 वर्ष हो चुके हैं । कविता का जीवन रंगीन हो गया था, उसकी मां अपनी बेटी की हालत देख पछता रही थी मगर रवि जो गया तो लौट कर नहीं आया । बहुत तलाशा मगर नहीं मिला ।                 कविता ने रवि की भाव भरी कविताएं सुनकर अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध उससे शादी कर ली थी ।इकलौती संतान होने के कारण रवि को घर जमाई बनना पड़ा ।                   होली तो एक बार जलकर राख हो जाती है मगर कविता..... कविता हर पर जलती रही ।     आज फिर होली है ।
       अचानक बाहर से किसी ने बेल बजाई पास जाकर देखा तो एक भारी-भरकम कार्टून लिए कुरियर वाला खड़ा था, आश्चर्य के साथ हस्ताक्षर कर उसे लिया, भीतर गई खोलते ही आश्चर्य मिश्रित खुशी से उछल पड़ी, मां...... मां...... देखो रवि..... हां उसमें साड़ियां थीं  जो कोई भी 25/30 हजार से कम की न थी, साथ में एक पत्र भी था जिसमें बस इतना ही लिखा-
"था जो सबसे ज्यादा पसंद आई हो,वह साड़ी पहन कर तैयार रहो ।" 
      कुछ देर में एक चमचमाती गाड़ी आकर रुकी उसमें से रवि उतरा,उसके सर्वेंट ने रंगों से भरी बोतलें  निकाली।  रवि ने देखा कविता दौड़ती हुई आ रही है, पीछे उसके माता-पिता भी....... उसने एक के बाद एक सभी रंगों से कविता को रंग दिया ।     25000 की साड़ी खराब हो चुकी थी ।
         - बसन्ती पंवार 
     जोधपुर - राजस्थान 
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क्रमांक - 12

आज होली है
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गली में ढोल के थाप पर फगुआ गीत और हो-हल्ला का मिश्रित स्वर सुनाई पड़ रहा था। पूरा का पूरा गांव ही एक अजीब से उल्लास और उमंग में डूबा हुआ था। बच्चें तो जैसे सारे के सारे गांव की सड़कों पर उतर आए थे। किसी के हाथ में बंदूकनुमा पिचकारी तो किसी के हाथ में पानी भरे गुब्बारे, कोई रंग की पुड़िया लिए था तो कोई गुलाल। रंग-बिरंगी फुदने वाली पिपहरी तो करीब हर बच्चे के मुंह से सटकर कर्णभेदी स्वर  उत्पन्न कर सड़क पर मौजूद हर शख्स को चाहे वो बूढ़ा हो या जवान  सबको उत्साहित कर रहे थे।कुछ लोगों के थैलियों में खाने का सामान भी भरा  हुआ था जो रंग खेलने के बाद वो एक दूसरे को खिला रहे थे। किसी बच्चे के हाथ अगर गुझिया,मठरी या अन्य कोई भी खाने की वस्तु जैसे ही लगती रंगों से पुते चेहरे खिल उठते आंखें ख़ुशी में फैल जाती और हंसी से पुरी की पुरी बत्तीसी बाहर,और बच्चें .."हो...हो.." कर दूसरी ओर दौड़ पड़ते। होली के इस हुड़दंग के बीच रामकिशन फौजी के घर के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था..ऐसा लग रहा था कि अंदर से मुख्य दरवाजे पर सांकल भी चढ़ी हुई थी।होली खेलते बच्चे दरवाजे तक जाकर रामकिशन के बेटे (अपने हम उम्र लड़के पवन) को आवाज लगाते हुए.."अरे पवन,क्या डरकर अंदर बैठे हो..बाहर आ जाओ ।"
सोहन ने चुटकी लेते हुए कहा"आजा-आजा तुझे ज़्यादा रंग नही लगाएंगे!"अंदर से कोई आवाज़ न आते देख बच्चे आगे निकल गए पर दरवाजा नही खुला। फगुआ की टोली भी पहुंच गई। पूरा  एक गीत पूरा होने पर
धीरे से मुख्य दरवाजा खुला तो रामकिशन फौजी के पिता एकदम उड़ा हुआ चेहरा लेकर खड़े मिले।
केदार ने मसखरी किया,
"अरे काका! आज होली है ! काहे मुंह लटकाए खड़े हो..हलकान मत होवो, तुमसे गुझिया खाने को नही मांगेंगे,बस थोड़ा गुलाल लगाकर प्रणाम कर लेंगे , होली नही खेलेंगे!"
काका के आंखों से गंगा-जमुना बह चली.. मुश्किल से इतना ही कह पाए,"होली तो कल रात रामकिशन फौजी ने सरहद पर आतंकियों से मुठभेड़ में खेल ली--और वै भी चटख लाल रंग की होली...!"और ये कहते हुए काका वहीं दरवाजे पर गिर पड़े।

- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
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क्रमांक - 13

बुराई पर जीत 
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सोनू मोनू अच्छे दोस्त हैं किन्तु न जाने किस बात पर दोनों में तनातनी हो गई और एक दूसरे से बात भी नहीं करते l
आया होली का त्यौहार, सब एक दूसरे के साथ' होलिका दहन 'देख रहे थे कि अचानक सोनू ने देखा, मोनू चुपचाप खड़ा था तभी मोनू की नज़र उस पर पड़ी l दोनों विचारों में खो गये और अपने गुरु की बात याद आई कि होलिका दहन में हमें बुराइयों को जलाकर गले मिलना चाहिए बस तभी दोनों के चेहरे पर चमक आ गई l धीरे धीरे वे एक दूसरे के नजदीक आ गये और खिलखिलाकर हँस पड़े l
   - डॉ. छाया शर्मा
   अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 14

आहुति 
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कालोनी में खूब चहल पहल है होलिका दहन जो है आज, बच्चे होली के गीतों पर थिरक रहे हैं। 
"पिंकू होलिका को क्यों जलाते है ?"
"मुझे नहीं मालूम बंटी।"
"चलो सब लोग मेरे दादाजी से पूछंते है।"
पिंकू अपने दोस्तों के साथ दादा जी के पास जाकर पूछंता है।
"दादा जी हम होलिका को क्यों जलाते हैं ।"
दादा जी प्रह्लाद और होलिका की कहानी सुनाने के बाद कहते हैं
"होली का सही मतलब है,अच्छाई की बुराई पर जीत।"
"मतलब दादा जी।"
"देखो,आज हम सब को होलिका दहन में अपनी एक बुरी आदत की आहुति देना है।"
"कैसे देना है दादा जी "।
"जैसे पिंकू जिद्द  बहुत करता है उसे छोड़ना होगा।बंटी झूठ बोलना बुरी आदत है, तुम्हें झूठ बोलना छोड़ना होगा।"
 "दादा जी आशी के दांत खराब है डाॅ ने चाकलेट खाने को मना किया है।"
"हाँ आशी जब तक दांत ठीक नहीं होते चाकलेट खाना बंद करना होगा।"
"ठीक है पर आप क्या छोड़ेगे दादाजी।"
"मैं तो जिद्द नहीं करता, झूठ नहीं बोलता और चाकलेट भी नहीं खाता।"
"पर दादा जी आप गुटका खाते है और थूककर गंदगी भी करते हैं। और आपके मुंह से बदबू भी आती है। आपको भी गुटका खाना छोड़ना पड़ेगा।"
 सभी बच्चें हाँ दादाजी आपको गुटके की आहूति देनी पड़ेगी।
दादा जी ने अपने जेब से गुटके के पाउच निकाले और बरसों पुरानी आदत की आहुति दे दी।
 
- मधु जैन 
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 15

इंद्रधनुष 
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"ट्रिन ट्रिन ..।"मोबाइल की घंटी बजते ही शुभि ने फोन उठाया 
"हाँजी, आफिस से चार दिन की छुट्टी है त्यौहार की ।बताइये मेमसाहिबा जी , बंदा कहाँ का रिजर्वेशन कराये?"
सुशांत की आवाज में मस्ती घुली हुई थी।शुभि कुछ कहती उसके पहिले ही टी.वी.पर आने वाले प्रोग्राम सदाबहार गीत से प्रसारित गीत के बोल उसके कानों में पड़े ---" अपनी अपनी किस्मत है कोई हँसे कोई रोये...।"
"हाँ सुशांत , घर आजाइये फिर बताते हैं।इस बार  मैंने तैयारी कर ली है ।सरप्राइज है।"सुशांत पूछता रहगया और शुभि ने फोन बंद कर तुरंत बाकी काम करने शुरु करदिये।
"हाँ तो बताइये ,क्या सरप्राइज है ?"
चाय का कप लेते हुये सुशांत ने पूछा।
"चाय नाश्ता खतम कीजिए और गाड़ी निकालिये। फिर बताते हैं।"शुभि ने मुस्कुराते हुये सफारी बैग बाहर निकालने शुरु किये।
"अरे बताओ न .।क्यासस्पेंस क्रियेट किये जा रही हो तब से? औरयह.पैंकिंग ?"
"पापा ..मम्मी कुछ न बता रहीं ।आप ही बताइये न इस बार हम कहाँ जा रहे हैं?सुचित ने पूछा 
"घर ...उन अपनों कीसुधि लेने जो हर साल हमारे इंतजार में दरवाजे पर आँखें गड़ाये रहते हैं। उस खुशबू को महसूस करने जो किसी इत्र से भी ज्यादा महकती है। और रंगों का वो इंद्रधनुष देखने जो ससुराल की पहली होली पर खिल कर रह गया था।"शुभि की आँखें यादों से भीगी हुईं थी।
लाउडस्पीकर से गूंज रहा था गीत ...."होली केदिन दिल खिल जाते हैं ,रंगों मेंरंग मिल जाते हैं।"

- मनोरमा जैन पाखी 
भिंड - मध्य प्रदेश
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क्रमांक - 16

रच गई  महावर
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 घर में होली की रौनक थी। शुभि की पहली होली थी। फौज में नौकरी होने के कारण पति की सीमा पर इमरजेन्सी ड्यूटी लग गई थी,इसलिये देवर जी लेकर आए थे। 
सादगी दीदी के देवर सौरभ को कनखियों से देखकर कभी तो उसपर रीझती तो कभी उसके निठल्ले बैठे रहने पर खीझती।
- हट्टे कट्टे नौजवानों को कामचोरी जाने कैसे रास आती है?हम कुशल लड़कियां तो घर और बाहर दोनों ही बखूबी संभालती हैं।
सादगी के ऐसे संवाद को सुनकर उसके तेज तर्रार स्वभाव को भांपते हुए सौरभ ने चुटकी ली-
-अरे आजकल की सुंदरियां तो बस रात दिन चेहरे की लीपा पोती करती रहती हैं ,फैशन में डूबी रहती हैं।
पर्व त्योहार मनाना तो बहुत दूर की बात है इनके लिये।रंगों से डरकर घर से बाहर तक नहीं निकलती,बस डी जे पर होली डांस करा लो इनसे।किचन में जाकर तो झांकती तक नहीं।महाआलसी हो गई  हैं। 
गुझिया,पापड़,दही बड़े सब मार्किट से आते हैं अब तो घरों में। 
-खाना लग गया है। आ जाइये खाने के लिये दीदी सबको लेकर।
-इतना सब तूने बनाया सादगी?बहुत स्वादिष्ट...वाह..
-ये क्या है जी इस जार में?
-चुकंदर का जूस.. ये टेसू का जूस...इधर हल्दी का घोल...सब मेहमानों के लिये...होली पर प्राकृतिक रंगों  से खेलने की योजना है।
-सौरभ का हाथ लगने से जग का जूस रोटी पकड़ाती हुई सादगी के दोनों पैरों  पर गिरता हुआ देखकर शरारत से शुभि बोली-
अब तो कसौटी पर खरी उतरी है हमारी छुटकी बहन.देवर जी!
-रचा दी महावर खुद ही...बड़ी जल्दी है।
-धत्!ऐसा भी कोई करता है क्या?
कहते हुए सादगी किचन की ओर भागी।
-उधर साॅरी यार!ओह आई एम ...आई...आई लाइक यू...हैप्पी होली।
कहते हुए सौरभ अपनी खुशी को असमंजस की स्थिति में महसूस कर रहा था।
       
- डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'
   नई दिल्ली 
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क्रमांक - 17

और भाई, आ गया स्वाद?
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प्रीता की शादी को एक साल हो गया था, शादी की पहली वर्षगांठ के एक माह बाद ही होली थी।
प्रीता के पति का ख़ास दोस्त मयंक बड़ा खुश हो रहा था, शादी की वर्षगांठ पर तो प्रीता को छूने का एक भी मौका नहीं मिल पाया क्योंकि प्रीता उसकी नीयत भांपते हुए बड़ी सफाई से इधर-उधर हो गई थी मगर अब होली खेलने के बहाने प्रीता को अच्छी तरह से...
पिछले वर्ष भी होली पर मयंक, प्रीता के साथ ऐसा भद्दा मज़ाक कर चुका था।
हाथ पकड़ना, जबरन गालों पर रंग लगाना, चूंटी भरना !
नई-नवेली प्रीता लाज़-शर्म के मारे विरोध नहीं कर पायी थी तो मयंक के हौंसलें और बुलंद हो गये थे।
इस होली जैसे ही प्रीता सबके लिए मिठाई की थाल लिए बाहर आयी, मयंक ने उसे सुनाते हुए जोर से दोस्तों के बीच कहा-" हमें तो भई, होली के खुमार में मिठाईयाँ कुछ ज्यादा ही पसंद आने लगती है...
स्वादिष्ट, रस भरी, मीठी-मीठी मिठाईयाँ...
 मन तो करता है कि सारी की सारी एक झटके में खा जाऊँ"
और फिर ही..ही... करते हुए खीसें निपोरने लगा।
प्रीता ने सब सुना और समझा मगर कुछ बोली नहीं, चुपचाप महिलाओं  की भीड़ में शामिल हो गई मगर मयंक को कहाँ चैन था !
उसने अकेले में मौका देखकर प्रीता का हाथ पकड़ना चाहा मगर प्रीता ने फुर्ती दिखाते हुए एक झटके में अपना हाथ छुड़ा लिया और दुसरा हाथ दिया घुमाकर मयंक के गाल पर !
मयंक का गाल गर्म हो गया, आँखों में पानी आ गया !
तभी वहाँ प्रीता के पति भी आ गये और मयंक की ऐसी हालत देखकर कारण पूछने लगे।
प्रीता हँसते हुए बोली- "मयंक जी को मिठाई खानी थी तो मैंने गरम-गरम गुलाब-जामुन खिला दिया !
मगर लगता है, गुलाब जामुन कुछ ज्यादा ही गर्म था शायद इसीलिए इनकी ऐसी हालत हो गई !
आगे से मयंक जी, होली के खुमार में मिठाईयाँ खाने के लिए इतने उतावले भी मत होना !"
अब तक मयंक पर सवार होली का खुमार पुरी तरह उतर चुका था, वो चुपचाप घर की ओर निकल लिया !

- सुषमा सिंह चुण्डावत
उदयपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 18

  होली 
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डिंपल गुँजियाँ और मट्ठी के डिब्बे रसोई में बाहर ही रखना। 9:00 बज गए है। त्यौहार का समय है। अपने पापा को भी जगाओ। डिंपल अलका से:- जी मम्मी
 थोड़ी देर में आज पड़ोस वाले भी आने वाले हैं। छुट्टी वाले दिन सोते ही रहते हैं। होली होने के कारण टीवी पर तेज गाने चला रखे हैं। जिसमें लगभग होली के ही गाने आ रहे हैं। अचानक से 
रंग बरसे भीगे चुनर वाली ....
गाना आते ही पापा सोते सोते ही बोले ये अमिताभ रेखा की असल जिंदगी पर गाना है। 
जैसे रेखा अमिताभ की प्रेमिका व जया बच्चन उसकी पत्नी है। वैसे ही इस पिक्चर में भी दर्शाया गया है। एक के बाद एक होली पर गाने आ रहे थे और हल्की फुल्की मजाक के साथ थोड़ी-थोड़ी कमेंट्री भी चल रही थी।
 तभी बाहर से कुछ मनचले लड़कों के चिल्लाने की आवाजें आने लगी। देखा तो कुछ युवा लड़के 3-4 बाइकों पर समूह में गाने गाते हुए जा रहे थे। दूसरी बालकनी का दरवाजा खोलकर देखा तो चहल पहल हो रही थी।
 छोटे बच्चे छतों से पानी व रंग से भरे गुब्बारे फेंक रहे थे। कुछ का निशाना सही लगते ही बच्चे खुशी से चिल्ला उठते। गलत लगने पर कहते :-अरे यह तेजी से भाग गया। शायद उसने पहले देख लिया था। यह सब चलते 11:00 बज गए थे ।इतने में मिस्टर मिसेज गुप्ता भी आ गए। व दूसरी तरफ से महिलाओं का समूह आ गया था ।सब ने एक दूसरे के गुलाल लगाया व गले मिले। सब गपशप में लगे हुए थे। समय का पता ही नहीं चला।एक बजने को आ रहा था। सब धीरे-धीरे जा रहे थे।
 अचानक अलका 10 साल पुरानी होली को याद कर सोच में पड़ गई और सोचती ही चली गई।
 जब उसके देवर व नंदे होली के लिए हर साल आया करते थे।उसकी  मौसस का एक लड़का रहता था जो थोड़ा बदतमीज टाइप का था। बुरी तरह रंग लगाता।पास में ही होने के कारण यदि जल्दी छूट जाता तो दोबारा भी आ जाता। इस साल उसकी छोटी बहन की भी शादी हुई थी तो उसका पति भी होली पर आ गया था। और तेज कस के पकड़ कर रंग लगाने लगा जिसके कारण अलका की नाक से बुरी तरह खून आने लगा और वह तड़प रही थी। वह बार-बार कह रही थी शायद खून निकल गया है पर वह रंग लगाने में मस्त था ।मुँह व बालों पर पहले से ही अच्छे से तेल लगा लिया था क्योंकि पता था कि वह गहरे रंग ही लाया करता था। उनके जाते ही जल्दी से नहा ली और कोई दवाई लगाई।अब तो मन में सोच लिया था कि रंग से कभी होली नहीं खेलनी। कोई भी आएगा तो गुलाल ही लगाना है। वरना होली ही नहीं खेलनी। 
और यह सब सोच मैं वर्तमान में आ गई ।और सभी के लिए एक संदेश है की :-
त्यौहार सभी की खुशी के लिए मनाए जाते हैं उसे ध्यान में रख कर ही त्यौहार खेला जाए तो सभी को खुशी मिलती है।

- अलका जैन आनंदी
    दिल्ली
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क्रमांक - 19
 
गुलाल 
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पाँच वर्षीय देव उदास चेहरा लटकाये मम्मी से बोला - " मम्मी मुझे भी पिचकारी चाहिए  देखिए ना राहुल , प्रिया , राज सब तो होली खेल रहे हैं अौर आप मुझे ही होली खेलने से मना कर रही हो। "
नम्रता ने स्नेह से गोद में बिठाकर कहा -  " आप से कितनी बार कहा बेटा , तीन साल से हम लोग होली नही मना रहे हैं।"
देव ने गोदी से उतर कर कहा - " आखिर क्यों मम्मी? सब बच्चे खेल रहे हैं हम क्यों नही।"देव की आँखों में आँसू आ गये तो
नम्रता ने सिर पर हाथ फेर कर समझाते हुए कहा - " बेटा आज के दिन तेरे पापा भगवान के घर चले गये थे ।इसलिए हम होली नही मनाते। अगर हम होली खेलेंगे तो पापा को बुरा लगेगा, लगेगा  ना। " देव को गले से लगाके रोने लगी। तभी दरवाजे पर खट खट की आवाज आई दादाजी ने अंदर आते ही कहा - " बहू . . . ।" 
नम्रता ने देखा अौर कहा - " हाँ बाबूजी ?"
बाबूजी ने बेग रखते हुए  कहा - "अरे भाई मैंने  सुना , किसे बुरा लग जायेगा ।"  देव ने देखा तो तुरंत दौड़ कर दादाजी के पास आया अौर बोला-  " दादाजी ।" दादाजी ने  गोद में लेकर कहा - " अौर आप क्यों रो रहे हो ? " 
नम्रता ने कहा - "बाबूजी देखो ना ये देव होली खेलने की कितनी जिद्द कर रहा है। आप ही इसे समझाईए ।" कहते हुए आँखों से आँसू टपकने लगे। 
नम्रता को देख दादाजी की आँखें भी गीली हो गई। हाथों से आँखों को पोंछ कर कहा -" अरे , मेरा बेटा भारत माँ के लिए खून की होली खेल कर चला गया अौर तू देव को रंगों की होली खेलने के
 लिए मना कर रही है। " देव से कहा- " चल बेटा , हम अभी रंग पिचकारी लायेंगे , तू खेलेगा ना होली? "
अौर जाते-जाते नम्रता से कहा -" बेटा , अगर हम माँ-बाप फौज में जाने का मना कर देते तो . . .। फिर ये तो होली खेलने की ही जिद्द कर रहा है अौर त्यौहार तो बच्चों से ही अच्छे लगते हैं। इन्हें देख कर दु:ख हल्का हो जाता है।"
नम्रता ने आँसूअों को पोंछकर कहा - " बाबूजी गुलाल भी लेते आना । भगवान को लगा दूँगी,क्योंकि वे सबसे पहले भगवान को ही लगाकर होली खेलते थे ।"

    - डॉ . विनोद नायक 
नागपुर - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 20

गुमसुम - सूमि 
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सूमि को होली का त्योहार बिलकुल अच्छा नही लगता  हैं।
बचपन से देखते आई थी ।केम्पस में होलिका दहन की रात रस्म अदायगी , के लिए नारियल दादी परिजनों के सिर से फेर नज़र उतार गुलाल शक्कर माला  क़े साथ पापा को होलिका दहन के लिये देती ।
मम्मी पापा के साथ जाने तैयार हुई ।
दादी ने मम्मी को साथ जाने मना किया ।
मम्मी ने पापा को तरेर क़र देखा ? 
सूमि बेचैन थी । सूमि का हाथ पकड़ पापा आगे बढ़ गये। पापा होलिका देवी को नारियल माला गुलाल अर्पित कर रहे थे । 
सूमि ने  देखा सुना ,केम्पस के लोग जिन्हें “बुरा ना मानो होली है ”कह बेहूदी हरकत मज़ाक़ के साथ गुलाल लगा कह रहे थे । इतने में ही एक आंटी ने पापा को यह कहते गुलाल लगाया । अरे जोरू के ग़ुलाम बीबी को नही लाये , हमसे तो गुलाल लगवा लो । 
पापा का चेहरा गुलाल से रंग दिया ।पापा कहते रहे गये ,-माँ के चरणो में गुलाल अर्पित कर नैना (बीबी )से लगवाऊँगा ।
माँ मुझे और सूमि को गुलाल लगा हार शक्करमाला पहनायेगी ।आँटी ने पापा को गुलाल लगा ही दिया । 
घर पहुँचते ही पापा ने ज्यो ही मम्मी को देखा - आँखें चढ़ी हुई ,पापा गुलाल लगा खुश करना चाहा , मम्मी चीख पड़ी । 
आप को ये गुलाल उसी ने लगाया ना जिसके साथ आफिस में काम करते हो ? और हर साल उससे पहले गुलाल लगवाकर लोगों के सामने जोरू का ग़ुलाम कहला मज़ाक़ बनाते रंगरेलियाँ मनाते हों ? 
झगड़े का अंत ,मम्मी सूमि को दादी पापा के पास छोड़ मायके चली गईं ।
मम्मी जब मायके में होली मना रही थी ।अपने ही लोगों के बीच हरकतों को देख लोगो की मानसिकता समझ आई । 
और नानी कही बातें -होलिका दहन में पुरषो का महत्व होता है । मम्मी अपनी गलती स्वीकार करते - दादी और पापा से कहा - मै सूमि के साथ होली मनाने आ रही हूँ - बुरा ना मानो होली है ।
सूमि को अब होली अच्छी लगती हैं ।

- अनिता शरद झा
रायपुर -छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 21

होली
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रीना अपने पति के आने का बड़ा इंतजार कर रही थी। उनके पति राम विदेश में नौकरी कर रहे थे। लंबे समय से मिलन नहीं हो पाया था। रीना बेसब्री से बार-बार पत्र लिखकर अपने पति को याद दिला रही थी। आखिरकार पति ने होली के पर्व पर वादा कर रखा था कि घर आएंगे। होली का पर्व आ पहुंचा रीना बेसब्री से इंतजार कर रही थी उधर से रामू जो विदेश से घर लौट रहे थे। तभी उनकी कार का दुर्घटना हो गई और उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया गया। तभी पुलिसकर्मी दरवाजे पर पहुंचे और खटखटाहट की। रीना ने समझा कि जिसका इंतजार था वह पूरा हो गया लेकिन काश दरवाजा खोला तो दंग रह गई, पुलिस कर्मियों ने पूछा आप रीना हो? उन्होंने हां कर दिया। घबराते हुए रीना ने पूछा क्या बात है? तभी उन्होंने कहा कि तुम्हारे पति की दुर्घटना हो गई, तुरंत अस्पताल पहुंचे। रीना झटपट रोते हुए अस्पताल पहुंची देखकर पति से लिपट गई। उनके पति को काफी चोट आई किंतु कोई ज्यादा बड़ी दुर्घटना नहीं थी। होली के पर्व पर खून से सने हुए अपने पति को देखकर यह रीना ने कहा मुझे इस होली की जरूरत नहीं थी और सुबक सुबक कर रोने लगी।

- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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क्रमांक - 22

समिधा
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"पापा,इस बार तो हम गांव जाने वाले हैं न, दादी के पास? होली पर खूब मज़ा आया था,जब पहले गये थे हम।"
"नहीं बेटा, नहीं जा पाएंगे।"
"क्यों'?
"क्योंकि त्यौहार पर घर जाने के लिए हमारे पास धन ही नहीं है। तुम यहीं बच्चों के साथ खेलना।"
उसे लगा कि मजबूरी की होली में उसने बेटे के अरमानों की समिधा चढ़ा दी। उसकी आंखें नम हो चली थी।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 23

नि:शब्द 
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सारस के समूह का चित्र देखकर छोटा सा गोलू अपने पापा से पूछ बैठा ये दो छोटे -छोटे सारस अपने कंधों पर बड़े सारस को क्यों ले जा रहे हैं ?
    पापा ने जबाब दिया," ये उनके परिवार के बुजुर्ग हैं जो अब तेज चलने में असमर्थ हैं इसलिए उनके बच्चे सहारा देकर उन्हें ले जा रहे हैं ।"
    गोलू ने बालसुलभ भोलेपन  से पूछा ,"पापा मेरे बाबा भी घुटनों के दर्द के कारण चल नहीं पाते हैं तो आप और चाचू भी उन्हें ऐसे ही क्यों नहीं अपने साथ घुमाने ले जाते हो ।" 
पापा अवाक !!

                                 -  निहाल चन्द्र शिवहरे
                                  झांसी - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 24

गाँव की होली़
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सक्षम आज बहुत उदास था उसे अपने बाबा मलखान सिंह जी की याद बहुत आ रही थी वह पिछले ही वर्ष दिसंबर में वह परलोक सिधार गए थे उसके बाबा जी गांव में रहते थे सक्षम को गांव जाना रंग बिरंगी तितलियां पेड़ पौधे पक्षी और पशु देखना बहुत अच्छा लगता वह अपने बाबा जी के साथ नदी पर भी जाता और पानी को बहुत गौर से देखता स्वच्छ और निर्मल की धाराएं उसे बहुत आकर्षित करती वह प्रत्येक बार होली पर अपने गांव जरूर जाता अपने माता केतकी व पिता अखिलेश के साथ और वहां दो-चार दिन खूब मस्ती करके लौटता रंग अबीर और गुलाल के साथ अपने गांव के मित्रों के साथ होली खेलना उसे बहुत अच्छा लगता था परंतु अब इस बार उसके दादाजी नहीं रहे थे और उसकी दादी कृष्णा देवी उन्हीं के साथ शहर मे आकरे रहने लगी थी इसलिए अब उसे गांव ने न जाना खल रहा था और वह बहुत उदास था अपने ग्रामीण मित्रों को याद करके उसे अपने दादाजी की याद भी रह-रहकर आ रही थी उसने अपने शहरी मित्रों के साथ होली खेली तो जरूर लेकिन रंगों से नहीं केवल गुलाल से क्योंकि वह अपने दादाजी के साथ बिताए हुए होली के उन दिनों और उनके असीम दुलार को भूल नहीं पा रहा था ़़़़़़़

- डॉ प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 25

होली के रंग 
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"कैसी होली ?"
यहां तो हम दोनों ही है ।होली खेलने  को  मम्मी के घर पर तो हफ्तों पहले से होली की तैयारी शुरू हो जाती थी "।
खानें में मीठे शक्कर पारे ,मठरी , लड्डू, गुंजियां चाट पकौड़ी सभी घरों में मिल कर बनातें थे 
।मेवे की माला कपूर ,उपलों को ले जाकर होली की पुजा की जाती थी ।
उस के बाद  सब मिल कर पकवान खाते थे ।होली दहन के दुसरे दिन टेसू के रंगों को पका कर रखते थे ।
सभी रिश्तेदार ,हम भाई बहन मिल कर खुब  खाते पीते होली खेलते थे ।
हम सब मिलकर कितनी धूमधाम और मस्ती से सराबोर इस त्यौहार को बनाते थें  ।
शाम को सभी बच्चे झांकियां निकालते थे ।जिसकी झांकी सुन्दर होती उसे पुरुस्कार दिया जाता था ।
"यहां तो बस हम दोनों है क्या होली मनाये"?
नैना ने अनमने ढंग से कहा ।
"देखो नैना मैं मानता हूं कि वहां जैसा इस महानगर में नहीं है ।
और मेरे सभी रिश्तेदार बहुत दूर रहें हैं ।घर भी जाना संभव नहीं हो पाया ।हम सब सोसाइटी में हर साल  मिल कर होली मनाते हैं ।
 होली यहां भी रंगों से सराबोर होती है ।होली में क्या अपनें क्या 
पराये"?
अब मुड ठीक करो नीचे सभी सोसाइटी के लोगों  के साथ होली 
खेलते हैं ।
दीपक नें नैना से कहा।
होली है.....
तभी होली की गुंज के साथ दरवाज़ें की घंटी बजती है । दरवाज़ा खोलते ही "होली है .....
रंगों और हंसी की बौछारों के साथ लड़के-लड़कियों की टोली घर मे प्रवेश कर गयी ।
हम सब भाभी के साथ होली खेलनें आये हैं आप दोनों खेलने नहीं आये तो सोचा हम ही ले आये, भाभी के साथ होली जो खेलनी है ।
दुसरी लड़की  ने हंसते हुए कहा  "बड़ा मज़ा आयेगा "
"हम भी तो देखें भाभी कितने पक्के रंग लगाती है "?
"हां-हां देखना है, रंग छुटतें है या नहीं"! पीछे से आवाज आयी 
मीठी गुजियां मुंह में डाल हंसी ठिठोली की बौछारों से सारा आंगन जैसे भीग गया ।
होली के रंग ले  दीपक ,नैना दोनों टोली के साथ प्रेम रंगों में डूबते-उतरते निकल पड़तें हैं।
होली है के नारों के साथ ।
होली है रंग बिरंगी ।

- बबिता कंसल 
     दिल्ली
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क्रमांक - 26

एक निबंध ऐसा भी
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             परीक्षा की पूर्व तैयारी चल रही थी।होली का त्योहार नजदीक था।हिंदी के सर ने होली पर निबंध लिखने को कहा।
             एक अमीर घराने के कुलदीपक ने कुछ यों लिखा।
               होली हमारा राष्ट्रीय त्यौहार है।इस रोज स्कूल मे छुट्टी रहती है।सुबह नहा धोकर ब्रेकफास्ट आदि निपटा कर हम टीवी पर पोगो कार्टून चैनल देखने लग जाते है।फिर कुछ ईन्डोर गेम खेलते है।फिर थोडी देर टीवी पर कार्यक्रम देखते है।मम्मा लंच के लिये आवाज लगाती है।सब मिलकर श्रीखंड पूरी खाते है।फिर आराम करते है।आज के दिन पढाई से मुक्त रहते है।
          शाम को उठ कर फ्रुट आदि के बाद टीवी पर फिल्म,कार्टून या वीडियो गेम खेलते है।फिर डिनर और रात को हारर फिल्म देखते हुए डर कर सो जाते है।
          
- महेश राजा
 महासमुंद- छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 27
 
होलिका 
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अरे!सुनो थोड़ा इमली भी ले लेना...माधुरी ने रतन से कहा तो रतन बिफर पड़ा एक बार में नहीं बोल सकती क्या?जब तक 
दस बार बाज़ार नहीं दौड़ाओगी चैन नहीं मिलेगा,झुंझलाते हुए रतन ने माधुरी से कहा।
माधुरी-“अच्छा अच्छा ठीक है अब कुछ नहीं लाना।”
ओहो !ये तो रह ही गया सामने पड़े प्लास्टिक के थैले को उठाते हुए माधुरी ने कहा और लगभग दौड़ते हुए गेट तक गई ताकि रतन को दे सके...
“क्या हुआ मम्मी?”राज किताब बंद कर माधुरी से पूछा।
देख न यह बड़ी ,कंडे और थोड़ी सी लकड़ी रखा था होलिका दहन में डालने के लिए ।
“लाओ मैं डाल आता हूँ।”अरे तू कैसे खोजेगा कहाँ होलिका जलाने की तैयारी की गई है...
“तो छोड़ दो न मत डालो।”
“अच्छा यह डालने से क्या होता है?”
बेटा,”यह दादी ,नानी के समय से चला आ रहा है,तो मैं भी इस परंपरा को निभा रहीं हूँ ।”
अरे!कोई तो वजह होगी...
बुआ को फ़ोन लगाता हूँ...कहते हुए रोहित ने अपनी बुआ जो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं उनको फ़ोन लगाया...
हैलो,प्रणाम बुआ...अपना प्रश्न पूछा  और फ़ोन स्पीकर पर लगा दिया...
हाँ ,बेटा होलिका जलाने की प्रथा पुरानी है...भक्त प्रह्लाद की कहानी तो पता ही होगा...यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत है।इन  चीजों को डालकर  अपने अंदर की बुराइयों को जलाकर होलिका जैसी दुर्भावना से ग्रस्त साये को जलाते हैं।
“वाह !दीदी कितना अच्छे से समझाई हमारे सारे त्योहार मनाने के पीछे कोई न कोई संदेश छिपा है...”माधुरी ने कहा।
मम्मी,भइया -भाभी आ गए ...रोहित ने दरवाजा खोला और ख़ुशी से झूम उठा “अब मज़ा आएगा होली का।”

- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड 
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क्रमांक - 28

इन्वेस्टमेंट 
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बगीचे में होली का जमघट मचा हुआ था । जहाँ एक तरफ डीजे की धुन पर लोग थिरक रहे थे तो दूसरी ओर सूखे रंगों से भी एक दूसरे को रंगों से रंगने की होड़ लगी हुई थी ।  सभी  एक दूसरे को छेड़ते हुए बुरा न मानो होली है , रंग भरी हमजोली है कह रहे थे । इन सबमें  सुमी न जाने क्यों गुमसुम सी दिख रही थी । पूरा चेहरा इंद्रधनुषी होने के बाद भी आँखों से अबोला झलक रहा था ।
उसकी सहेली ने उसे छेड़ते हुए कहा क्या बात है सुमी आज भी ...किसके ख्यालों में खोयी हुई हो । 
कुछ नहीं वनिता , "सभी कहते हैं कि मैं जन्म से ही बेरंग हूँ ।" 
"किसने कहा दिया?" वनिता ने पूछा । 
जब भी किसी के अनुरूप कोई कार्य न करो, तो बस यही ताना कि अब तुम्हें इस घर के अनुसार रहना होगा । इतने बरसों में भी मायके की आदत नहीं छूटी, वहाँ रोने जैसे मुँह वाले लोग रहते हैं ,यहाँ नहीं । 
"कोई बात नहीं , जो जैसा करेगा वैसा भुगतेगा, तुम तो स्वयं को निखारो ।" ये कहते हुए वनिता ने उसे  ठंडाई से भरा हुआ गिलास पकड़ा दिया ।
सुमी ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "ये परिवार मेरा है इसमें रंगों का इन्वेस्टमेंट मैं ही करूँगी, वो भी मुस्कुराकर ।" 

- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 29

नवेली बहू की पहली होली 
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' काश इन रंगों में मिलावट न होती बुदबुदाते रंजन ने रंजना के गाल  पर मरहम लगाते सहलाने में मगन हो गया ! ' 
गुजिया ,नमकीन , मिठाई , शक्करपारे आदि पकवानों की महक से सेठ उमेश का बंगला  ' उमा निकेतन ' महक रहा था। पसीना पोंछके सेठानी उमा ने नौकरानी के हाथ सेठ जी को सारे पकवान चखाने के लिए भेजे। हमेशा की तरह सेठ जी ने उमा के स्वादिष्ट पकवानों के तारीफों के पुल बाँध दिए। 

इस बार सेठ जी के बेटे रंजन बहू रंजना की शादी की पहली ,  विशेष  प्रेम के रंगीन सपनों की   होली थी। नवेली  बहू होली की रस्म जाने माता श्री के कहे अनुसार मायके से आयी मिठाई , नमकीन , बड़े - बड़े गुजे ( गुजिया ) जिनमें मावा - मेवा के साथ चांदी के सिक्के भरे थे। लाल साड़ी पहन सोलह श्रृंगार कर रंजना पूजा की तैयारी में जुट गई। सभी जने आम की लकड़ियों पर समिधा डाल हवन कर गुजे को होलिका की अग्नि में समर्पित कर ,चने की बाले भून कर यानी बुराई के अंकुर , असत्य वृति की होलिका को जला केऔर  पवित्र पंचामृत  का आचमन लेकर नयी नवेली  बहू रंजना ने सभी बड़ों के पैर छू ' दूधो नहाओ पूतो फलो ' का आशीर्वाद लिया। 

दूसरी ओर मैदान में नौकर अलग - अलग बड़े कढ़ाहों में मेहँदी  , टेसू , गैंदा , गुलाब , गुलमोहर ,, गुड़हल,  हार सिंगार के फूलों को उबाल , छान के रंगींन पानी में चंदन , केवड़ा , केसर , गुलाबजल मिलाके होली खेलने के लिए प्राकृतिक फूल - पत्तों के    रंगों से भीना - भीना सुगन्धित रंगीन पानी  तैयार करने में जुटे हुए थे ।  इकोफ्रेंडली हर्बल , कुदरती  रंगों की ,  गुलाल की भीनी - भीनी खुशबू आने - जाने वालों को, परिवेश को महका रही थी। 
बच्चे ,रिश्तेदार , पड़ोसी , दोस्त ,दुश्मन भी भेदभाव , ऊँच - नीच ,अमीरी - गरीबी ,  मनमुटाव को  मिटा के एक दूसरे पर कुदरती रंगों के गुलाल , रंगीन सुगंधित धारों की प्रेम फुहारों से जमकर मस्ती से बौछारें कर रहे थे , साथ में पकवानों का आनंद ले रहे थे। 
मधुरता - सरसता , समरसता की होली खेल सभी अपने घर चले गए । तभी रंजन - रंजना  उत्साहित कदमों से अपने हमउम्र दोस्त किशोर के घर  लाल ,नीले , पीले हर्बल रंगों पाउडर की थैलियाँ ले के पहली  होली खेलने गए , तो रास्तों में रसायनिक रंगों की बौछारें , गुब्बारों की मार खाते , बचते - बचाते कैसे-  तैसे पहुंचे। किशोर  ने एक दूसरे को होली की शुभ कामना दे गले लगाकर रंग लगाए। तभी रंजना के गुलाबी गाल पर मिलावटी रंगों से जलने लगे और एलर्जी से दाने - दाने उभर आए।
कृत्रिम रंगों से रंग में भंग हो गया। 

- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 30

 गिले-शिकवे
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"सुनो कविता ! वो विनय है न ? अरे वो मेरा बचपन का दोस्त है । दो महीने पहले उसका यहाँ तबादला हुआ है । उसी  के घर जा रहा हूँ उसने वहीं पर होली का कार्यक्रम रखा है ।" सुमित ने  तैयार होते हुए कहा ।
कविता -- "पर अपनी सोसाइटी में भी तो जाना जरूरी है ।"
"यहाँ तुम चले जाना । विनय को मना करूंगा तो वो बुरा न मान जायेगा । कई साल बाद हमलोग होली साथ मनाएंगे । मेरी वजह से  ही प्रोग्राम रखा है ।"-- कहते हुए विनय बाहर निकलने लगा । कविता ने ठीक है कहकर विदा किया ।
विनय के घर पहुंच कर होली की शुभकामनाएं देते हुए एक दूसरे को गुलाल लगा कर गले लगाया । फिर विनय ने सुमित को सभी से परिचय कराने लगा । 
एक जगह आकर सुमित जैसे ठिठक गया और मन ही मन सोचने लगा "ये वही रमन है, मेरा अच्छा मित्र बनकर मुझे धोखा दिया था ।"
रमन आगे आकर सुमित को गुलाल लगाते हुए "मुझे माफ कर दो सुमित । तुम्हें धोखा देकर  मैंने बहुत गलत किया था ।  मैं आज तक अपने आपको माफ नहीं कर पाया हूँ । गिले-शिकवे भूलकर होली के दिन तो दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं । हम तो दोस्त हैं ।"
सुमित ने मुस्कुराते हुए रमन को गुलाल  लगाकर  गले लगा लिया । 

- पूनम झा 
कोटा - राजस्थान
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क्रमांक - 31

देवदूत
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होली के दिन लड़के वाले राधा को देखने आए थे। लड़का फौज में था। होली में दो दिन के लिए वह अपने परिवार के पास आया हुआ था ।पिछले साल की एक अप्रिय घटना ने राधा के मन पर ऐसी गहरी छाप छोड़ी थी कि वह होली के नाम से ही दहशत से कांप जाती धी। 
   वह होली का ही दिन था। वह अपनी एक सहेली की घर से वापस अपने घर लौट रही थी। रास्ते में कुछ आवारा किस्म के लड़के नशे में होली की हुड़दंग मचा रहे थे ।राधा को देख उनका वहशीपन जाग उठा ।वह उन्हें नजरअंदाज कर वहाँ से निकल जाना चाहती थी ।लेकिन वे सब उसका रास्ता रोक कर खड़े हो गए ।वह डर से थरथर कांप रही थी ।
    "हमारे साथ होली नहीं खेलोगी ?".... उनमें से एक बोला और बाकी सब बेशर्मी के साथ हँस पड़े।
 " तुम लोगों के साथ मैं होली खेलता हूँ।".... तभी एक मोटरसाइकिल वहाँ रुकी और उस पर सवार युवक ने उन लोगों से कहा।
   कपड़ों से वह फौजी दिख रहा था ।कहीं से रंग खेल कर आ रहा था। उसके पूरे चेहरे पर रंग पुता हुआ था ।केवल बड़ी बड़ी काली आँखें चमक रही थी ।
  "देश में तुम्हारे जैसे नौजवान हो जाए तो ,देश के सरहद से ज्यादा देश के अंदर हमारी जरूरत पड़ेगी।".... वह पुनः बोल उठा ।
   वह आवारा लड़के किसी फौजी से उलझना नहीं चाहते थे ।इसलिए वे सभी वहां से खिसक गए। राधा की आँखों से आँसू छलक उठे।
  " इस विकट घड़ी में आप देवदूत बनकर आए हैं ।.....आप कौन हैं ?"
    " आपने तो इतना अच्छा नाम दे दिया..... देवदूत ।"....वह हँसा,..." चलिए मैं आपको आपके घर छोड़ देता हूँ।"
     राधा वर्तमान में लौट आई ।'काश उसका होने वाला सपनों का राजकुमार भी इतना ही जिंदादिल और जांबाज हो ।'
   "मैं लड़की देखने  दिखाने के बिल्कुल ही खिलाफ हूँ। लेकिन मैं चाहता हूं कि राधा अपनी पसंद और नापसंद जरूर बताए।"... वह हँसा।
     वही चिर परिचित हँसी..... वही काली-काली बड़ी आँखें.... वह चौक उठी।
   " देवदूत को नापसंद मैं कैसे कर सकती हूँ।".... वह हँसी,....." पिछले साल यह देवदूत मेरी आबरू का रक्षक बन कर आया था और आज होली के दिन मेरी जिंदगी में खुशी और उल्लास का रंग भरने आया है।"

            _  रंजना वर्मा उन्मुक्त 
             रांची - झारखंड
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क्रमांक - 32

होली
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राकेश और रवीश दोनों भाई अपने दोस्तों के साथ होली के 15 दिन पहले से ही घर घर जाकर गोइठा मांगा करते रहे और होलिका दहन के लिए इकट्ठा करते रहे इस तरह किए कई टोली बना कर रखे हुए थे हर दिन शाम का समय 3:00 से 5:00 तक वह घर घर जाकर टूटे-फूटे सामान कोई कट्ठा करते रहे और होलिका दहन का तैयारी करते हैं मां से सुना करते थे की होलिका दहन में घर के पुराने चीज को जलाने से घर की बुराई दूर हो जाती है साथ ही साथ अपने पुस्तक में भी होलिका दहन पर जो कहानी पढ़ी थी उसमें इस बात की चर्चा की गई थी।
धीरे धीरे समय बीत गया और होलिका दहन आ आ गया शाम का समय पूरे गांव में ढोलक मजीरा लेकर बच्चे सब बड़े सब गाना गाना शुरू कर दिए और होलिका दहन जलाकर खूब जोर जोर से चिल्लाने लगे गांव की बुराई को आज हम ने जला दिया गांव की बुराई को आज हम ने जला दिया खुश हो कर के उस गांव के मुखिया मैं सभी बच्चों को मुंह मीठा कराया दूसरे दिन होली थी होली की तैयारी पूरी चल रही थी मुखिया जी ने सभी बच्चों को होली की एक-एक पैकेट पहले से ही दे रखी थी कि तुम लोग खूब होली खेलोगे होली खेलने के बाद सब लोग मेरे पास आ गए मैं सबको खाना खिलाऊंगा गांव के सभी बच्चे खूब खुश है घर में मां भी तरह-तरह का पकवान बनाई हुई थी पुआ बनाई थी पूरी बनाई थी खीर बनाई थी बच्चे सब खाना खाने के बाद खूब होली खेले और शाम को मुखिया के घर जाकर सब ने मुखिया के पैरों पर अभी रखते हुए प्रणाम किया मुखिया ने सभी बच्चों के हाथ में आशीर्वाद के रूप में 50 50 रुपए सभी बच्चों को दे दिया बच्चे सब बहुत खुश थे होली का त्योहार खत्म हो गया स्कूल की पढ़ाई शुरू हुई और जब स्कूल में टीचर ने यह पूछा कि होली में तुमने क्या-क्या किया उस गांव के बच्चे ने बहुत ही अच्छा चित्र अपने गांव का किया होली में हम लोग बुराई को फुल का दहन के रूप में जला दिए और होली के दिन आपस में गले मिलकर सभी बड़ों से आशीर्वाद लिए राकेश और रवीश दोनों बच्चे बड़े खुश थे अपने सभी दोस्तों के साथ होली के बाद मेला घूमने चले गए उन पैसों से उन्होंने खूब मजे किए।

- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 33

सवाल बच्चों के -जवाब नानी के 
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 होली जलने के बाद बच्चों ने नानी को आसमान निहारते चंद्रमा को प्रणाम गुलाल अर्क देते देख के प्रश्न ? आप रात को भी प्रणाम कर ,आप रोज़ सूरज को निहार दिवाकर प्रभाकराय आदित्यायनमः सर्वकार्य निर्विघनम करिश्यमि कहती है ।
जैसे लगता हैं -आपकी सारी बातें सुर्य नारायण चन्द्रमा सुन सब दूर करते है । बबाई ,मिष्टि ,साम्या ,श्रेयस ने नानी से पुछा - दुनिया में फैले करोना वाइरस ,प्रदूषण माहोल को दूर क्यों नही करते ? 
नानी ने कहा - साइंस ने इतनी प्रगति कर ली है । एक जान डालने वाली समस्या का हल ढूँढ नही सके । बच्चों ने कहा -वो छोड़िये ।हमें हमारे प्रश्नो के उत्तर चाहिये ।
नानी ने कहा - हम तो यही आदिकाल से सुनते आरहे है ।प्रकृति बेलेंस बनाने ,महामारी के दैविय प्रकोप के कारण ऐसी स्थिति आती है । बच्चों मैं तुम्हारी उम्र की थी ? 
तो मैंने दादी से यही प्रश्न पूछे ? - उत्तर दिया मेरे दादा जो पेशे आर्यवेदाचार्य थे  । प्रकृतिक जड़ी बुटी इलाज करने गाँव में नियुक्त किया गया था ।पुरा गाँव महामारी से पीड़ित था । बस यही गाँव आबाद था । इसके चारों तरफ़ का एरिया ज्वार -भाँटा सुर्य -चंद्र के प्रकोप से चांडाल भाँटा कहलाता था ।यज्ञ हवन के द्वारा पूर्णिमा गणेश चतुर्थी चंद्रमा आसमान में देख़ ,अर्क जल चढ़ा रोहणी संग चंद्रमा जलम अर्घम समर्यपि सारे दुखों सँकटों से छूटकारा मिले ! किया जाता था । 
पर अब वैज्ञानिक युग है । जहाँ इन बातों को ध्यान नही दिया जाता । हमें हमारे संस्कारो को जीवित रखना चाहिये । 
बच्चों आप लोगों ने होलिका दहन की कथा के साथ खुले आसमाँ के नीचे मेरी आपबीती इस कथा को सुना यही मेरी उपलब्धि है । कल का सुरज एक नया सबेरा स्वस्थ प्रसन्न दीर्घायु ,शांति विश्वास के साथ आयेगा ।

- अनिता शरद झा 
रायपुर - छतीसगड़
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क्रमांक - 34

    उदास घर
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उच्च मध्यम वर्गीय परिवार का दो मंजिला मकान आज उदास था,जबकि चारों और बसंती ब्यार चल रही थी।प्रकृति भी लाल,पीले, नीले,गुलाबी फूल, टेसू,गुलमोहर की छटा से होली की आहट दे रही थी।यह घर बडा, मजबूत और सुविधा संम्पन्न था। होली के सप्ताह पूर्व परिवारजन बाजार जा कर पिचकारियां, रंग और झक सफेद वस्त्र खरीद लाए।घर मालिक का मानना था कि रंगीन कपडों पर क्या रंग डालना। मजा तो सफेद कुर्ते  पजामे,सलवार कमीज को रंगो से सराबोर करने मे आता है, कैसी चित्रकारी बनती है। हर रंग अपने रिश्ते की ठिठोली कहता है।घर मे चहल पहल 
रंगो की बाते हो रही थी घर भी खुश था।
           पर यह क्या ,होली के दिन प्रातः दस बजे
सभी सजधज कर,घर पर ताला जडकर, कार मे बैठ कर चले गये शहर के एक रिसोर्ट मे "रंगरेज"
आयोजन रखा था।खाना पीना, डांस, गाना बजाना,. सब मात्र एक हजार रूपए, प्रति सदस्य।
सब वहीं उत्सव मनाने चल पडे।
              घर उदास होकर दूरी पर बने छोटे घरों की ओर देखने लगा। जहाँ बच्चे, बडे,बूढे गली,आंगन, छत,दीवारों को रंगो से भीगो रहे थे।  
यहां तक होरिया गाने की आवाज ,पिपडी की 
तीखी धुन पहुंच रही थी।घर और उदास हो गया, सोचने लगा कि कितना अच्छा  होता अगर बिटिया की शोख सहेलियाँ, भैया के खिलंदड़ दोस्त, मालकिन की इठलाती सखियाँ आती। कुछ गुलाल के हाथ उसके अंग भी लग जाते।ना ना करते हुए भी कोई पक्का रंग गमलों के पौधे पर गिर जाता, तो हरे पौधे, नीले, पीले, लाल या सतरंगी दिख जाते।       

   -  डा.नीना छिब्बर
      जोधपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 35

  इंद्रधनुषी रंगों की होली
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 सुमन की इंद्रधनुषी रंगों से रंगी साड़ी लगभग अपने सभी रंग छोड़ चुकी थी ! घर के सारे काम निपटा जर्जर होती साड़ी से अपने आंचल को ढकने की कोशिश करती हुई अपनी बेटी उषा से कहती है ... बेटा आज होली है मुझे मालकिन के यहां जल्दी जाना है ! भैया को तुम खाना दे देना कहती सुमन घर से जैसे ही जाने लगती है... उषा उत्सुकता वश खुश हो कहती है मां आज तुम्हें अनेक रंगों वाली साड़ी मिलेगी ना ? सुमन चेहरे पर हल्की मुस्कान बिखेरते हुए कहती है और तुम्हें गुजिया भी.... उषा के गालों पर प्यार भरी थपकी देते हुये सुमन के कदम बड़ी फुर्ती से मालकिन के घर की ओर जाने के लिए बढ़ने लगते है.....!
दस वर्ष की उषा आज बहुत खुश थी! सुबह से चाल में होली है होली है कि आवाजें आ रही थी ! बच्चे एक दूसरे पर रंग तो क्या पानी के गुब्बारे फेंक रहे थे ! उषा अचानक आकाश में इंद्रधनुषी रंग देख चिल्ला उठी ....भैया देखो ना !आकाश में इंद्रधनुष खिल आया है कैसे रंग बिरंगे रंग बिखेर रहा है ... कितना मनोहर लग रहा है ! मुझे रंग बहुत अच्छे लगते हैं ....!
मां कहती है भोर होते ही लालिमा लिए उषा की किरण खिलती बहुत ही रंगीन और मनमोहक लगती है इसलिए तो मेरा नाम उषा रखा है! 
रंगों की दुनियां  ही अलग है.... 
भैया आज होली है.... 
तो ....
तो क्या आप नहीं खेलोगे? 
बुद्धु ये बड़े लोगों का त्यौहार है! 
क्या भैया आप भी!  बड़े लोग तो रंग उड़ा अपने रंगीन सपने, खुशीयां एक दूसरे के कपड़े में ही फेंक देते हैं जिसे हम बटोर लेते हैं और रोज खुश होते हैं! 
वो कैसे? 
बुद्धु ..... उनके होली में खुशीयों के रंग से रंगे कपड़े हमे ही तो मिलते हैं जिसे पहन हम रोज खुश होते हैं....  तो बताओ होली का त्यौहार रंगीन खुशीयों को बटोरने वालों की है या फेंकने वालों की..... 
दोनों इंद्रधनुषी रंगों से रंगे कपड़े और मिठाई के लुत्फ के इंतजार में........ 
दरवाजे पर अपनी खुशीयों को मां के हाथों में लिए थैलों में देख ऐसा लगा मानों होली में अबिल, गुलाल से क्षितिज में बना इंद्रधनुष धरा पर उतर आया हो ....!

            - चंद्रिका व्यास
          मुंबई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 36

                   नीयत 
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होली का दिन था । लडके लड़कियां अपनी अपनी टोलियाँ बना कर गाओं के घर घर जा कर मिलजुल कर गुलाल उडा रहे थे साथ ही होली है होली है बोल कर बधाइयां भी सांझा कर रहे थे । गाओं के ही दो युवकों पवन और सास्वत ने पहले से ही इस मौके का लाभ उठाने की सोच रखी थी ।उनकी आंख गाओं की सगी बहिनों सीमा और रेखा पर कई दिनों से थी । जीवन और सास्वत दस बारह की टोली में होली खेलते हुए आखिर उनके घर पहुंच गये । टोली के बाकी साथी होली खेलने और बधाईयां देने में व्यस्त थे तभी जीवन और सास्वत सीमा और रेखा से होली खेलने लगे । पर ये क्या? दोनों सारी हदें पार करते हुए  उनके कोमल अंगों को सहलाने लगे । नीयत भांपते ही सीमा और रेखा दोनों चीख उठी । परिवार के अन्य सदस्य माजरा समझते ही दोनों पर लात घुन्सों की बरसात करने लगे ।अधमरे करके उन्हें छोडा गया । जीवन और सास्वत टूटी हड्डियों पर चढ़े पलास्टर को देख अस्पताल के बिस्तरों पर पडे पडे उस घड़ी को कोसते हुए पछता रहे हैं ।।

    - सुरेन्द्र मिन्हास 
    बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 37

होली
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कल्प व उसके दोस्तों का हुड़दंग अब एकदम गुल हो चुका था।सभी भीड़ की ओर भाग खड़े हुए।पास पहुँचकर देखा तो,पड़ोसी चाचा का चार वर्षीय बच्चा मरा पड़ा था। 
चाचा जोर-जोर से चिल्ला रहे थे " मैंने पहले ही कहा था कि आप गहरे खड्डे में रंग न घोलें।पर किसी ने मेरी नहीं सुनी।भाग रहे थे डिब्बे और बाल्टियाँ भर-भर के एक दूसरे को भिगौने। कुछ समय पहले ही यह मेरे आगे से निकला था।आप सब वहाँ हो,यह सोच मैंनें इसे जाने दिया और मर गया डूबकर।अरे!होली तो सूखे गुलाल की होती है,पानी की नहीं।"
कहते हुए चाचा फफक-फफककर रो पड़े।

राकेशकुमार जैनबन्धु 
सिरसा - हरियाणा
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क्रमांक - 38

होली के रँगों जैसी
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इस बार की होली नई नवेली दुल्हन हीरा के लिए अद्भुत एहसास लेकर आई थी ,क्योंकि यह उसके ब्याह के बाद की पहली होली थी ।अभी अभी नया घर संसार ,नया परिवार मिला था, नये लोगों के साथ त्यौहार मनाना था ।
यूं तो  प्रायः लड़कियां शादी के बाद पहली होली अपने नैहर में ही मनाती हैं ,मगर हीरा की ससुराल के रिवाज के मुताबिक बहू को पहली होली ससुराल में ही करनी थी ।
अतः वह मन में कुछ उदासी छिपाएं खुद को खुश दिखाने की कोशिश के साथ होली की तैयारी करती सासू मां के काम में हाथ बटाने लगी ।
उसे अपने मां, पिता ,भाई व सखियों की याद तो आ ही रही थी ।
तभी अचानक  उसकी सास सुनहरे रंग का जड़ाऊ लहंगा चुनरी लेकर आंगन में आयीं और हीरा के पति को आवाज देते हुए बोली ,बेटा बहूरानी को होली में मायके घुमा ला ।लड़की तो शादी के बाद शुरुआत के त्यौहार अपने मायके में ही अच्छे लगते हैं ,नए घर में धीरे-धीरे ही घुल मिल पाती है ,जा बेटी जा मैं यह लहंगा लाई थी कल तेरी होली पर पहनने के लिए ,इसे पहन कर चली जा  नैहर ।
हीरा की आंखों में अपनी सासू मां के प्रति आस्था अथाह श्रद्धा के आंसू उमड़ पड़े ।
गुलाबी रंग की साड़ी में बेहद खूबसूरत लग रही हीरा बोली ,नहीं मां जी मुझे आप लोगों के साथ ही होली मनानी है मायके में तो मैंने हमेशा ही होली मनाई है, फिर जिसके पास आप जैसी सासू मां हो उसके लिए तो हर रोज ही होली और दिवाली है ।हीरा के मुंह से ऐसे बोल सुनते ही उसके पति की तो मानो मुराद ही पूरी हो गई हो ।पति से नज़र मिलते ही हीरा शर्म से लाल हो गयी ,,,होली के रँगों जैसी,,,।

- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 39

अधूरी होली पूरी हो ली
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        माँ माँ मुझे भी पिचकारी ला देना। सब लोग रंग खेलेंगे ना कल-- तो मैं भी पिचकारी से रंग दूंगा सबसे पहले तुझे । तू कभी नहीं खेलती रंग गुलाल मेरे साथ। 
       पप्पा के संग तो मैंने देखा है तेरा फोटो--- होली का रंग तेरे सिर पर डाल रहे थे पप्पा।
      मुस्कान लुप्त हो गयी पाखी के चेहरे से। हाँ विवाह की उतनी ही निशानी तो है उसके पास--- जब काशीनाथ ने उसकी माँग में सिंदूर भर कर कुछ रंग भर दिये थे जीवन में।
      लेकिन पाखी का प्रारब्ध--- विवाह के एक साल पहले ही उसकी होली बदरंग हो गई।
 उस दिन - - - बडे़ चाव से रंग-गुलाल और गुझिया सजा कर पाखी ने काशी को आवाज दी "आओ ना जल्दी होलिया पर - - -- कन्हैया के और आपके रंग लगाना है।  
     इतने में फाग की टोली ने भी बाहर से आवाज लगाई। पाखी राधा-कृष्ण की तस्वीर के सामने रंग लिए खड़ी रह गयी और काशी फगुआ टोली के साथ ये जा वो जा। 
       होली के हुडदंग में फगुआरों ने इतनी भंग घोंटीं कि दिन भर बेहोश काशी गंदे नाले के पास पडा़ रहा। शाम को पडोसी उसकी हरी नीली देह ले आए - - किसी भयानक जहरीले साँप बिच्छू के काटने से बेहोशी में ही साँसे रुक गईं थी और कोख में छः महीने के बच्चे के साथ पाखी की होली अधूरी ही रह गई। 
     तभी से उन्ही साहब-मेमसाहब के घर के पीछे एक गुमटीनुमा आउट हाउस में  रहती है पाखी उनकी घरेलू नौकरानी बन कर जिनके घर काशी ड्राइवर था। 
    - - और आज  चार साल के बैजू--- उसके बैजनाथ ने  माँ को गुलाल का टीका लगा कर  चरण छुए और बेटे के साथ जीवन के कुछ ही सही निखरे रंगों में इस बार पाखी की होली पूरी हो ली।

- हेमलता मिश्र "मानवी" 
नागपुर - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 40

होली की धींगामस्ती
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'हेलो आकाश 'स्वदेश ने मोबाइल पर अपने मित्र को फोन किया।आवाज सुनाई दी "हेलो कौन बोल रहे हैं "।
 स्वदेश"सुधा बहन,स्वदेश बोल रहा हूँ। आकाश को दीजिये प्लीज।"
  "आकाश को हाॅस्पीटल ले गये हैं। डाॅक्टर्स देख रहे हैं। "सुनकर वह अचंभित हो गया।कल ही तो हम सभी ने,साथ होली खेली थी। 
  स्वदेश ने हाॅस्पीटल का नाम और पता लिया।उसने अपने दो मित्रों को साथ लिया और संबंधित हाॅस्पीटल पहुँच गए। 
  सामने ही सुधा और माताजी दिख गये।उनका तो रो-रोकर बुरा हाल दिख रहा था।
 माताजी"बेटा आकाश कल होली खेलने ,दोस्तों के साथ बाहर निकला था।क्या हुआ, पता नहीं। रात आकर आंखों में, कष्ट की बात कहने लगा।सुधा ने उसकी आंखों में ड्राप डाल दिया था। सुबह चिल्लाते हुए ऊठा कि मुझे कुछ दिख नहीं रहा है। हम उसे किसी तरह यहां ले आये।उसे डाॅक्टर्स देख रहे हैं। तुम्हें पता है,क्या हुआ था।"
   इतने में ही डाॅक्टर्स बाहर निकलते हुए दिखे।एक ने माताजी से कहा"होली खेलते हुए आंखों में, कुछ ज्यादा ही कलर पेंट चला गया है। हमें तुरंत ही आंखों का आॅपरेशन करना होगा। वर्ना आंखों की ज्योति जा भी सकती है। "
   सुनकर माताजी ने रोते हुए कहा "डाॅक्टर साहब ,हमारा इकलौता बेटा है।आप आॅपरेशन शुरू कीजिए। रूपये की चिंता बिलकुल मत कीजिए। बस बेटा ठीक हो जाना चाहिए। "
  यह सुनकर तीनों ही दोस्त, आत्मग्लानि में डूब गये और उनकी आंखों से अश्रु बहने लगे।।
   
डाॅ •मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 41

आंगन
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सुबह की पहली किरण से पहले जागने वाली आशा ने बाहर निकलते ही आंगन में एक अद्भुत नजारा देखा | 
यह क्या ऐसा लग रहा है जैसे कोई सुबह सुबह आंगन में पीले रंग से होली खेल गया हो | पूरा आंगन पीले रंग से भर गया था एक अलग सी महक थी उस रंग में |
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि श्री कृष्ण जी राधा संग वहां आए हों और होली खेल गए हों | 
होली की सुबह की वो अद्भुत अनुभूति सच में अविस्मरणीय थी | 
आशा का मन खिल सा उठा कि आज की शादी के बाद की पहली होली उसके अपने कृष्ण के साथ यादगार होगी | 
नहा धो कर सुबह का पूजा पाठ करके दोपहर के मेहमानों के लिए होली के व्यंजन बनाने में व्यस्त हो गई | सब लोग होली के रंगों में रंगे हुए होली मना रहे थे और आशा की दिनचर्या एकदम अलग ,साफ सुथरे कपड़े और तरह तरह के व्यंजन बनाने में व्यस्त , शाम तक यही चलते रहा, सब लोग खान पान करके होली खेल के, तारीफें करके चले गए अब आशा को लगा कि चलो सब काम निपट गए अब होली खेलेगी अपने कृष्ण के साथ लेकिन ये क्या उसका पति तो नशे में बेसुध रंगों में रंगा हुआ आशा के रंगीन सपनों को उड़ाता हुआ बेहोशी सी हालत में फिर से घर के बाहर निकल गया| 
आशा सोचती सी रह गई कि क्या कृष्ण सिर्फ कहानियों में ही हैं ? क्या होली का मतलब सिर्फ यही रह गया है ? वो प्यार के रंगों में रंगी होली सिर्फ कहानियों में होती है या हकीकत भी हो सकती है ? ???

- मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 42

चलो तो सही
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      एक बेटा, नौकरी लगते ही वह भी पूरा परदेस का तब हो गया जब उसने वहीं की नगरिकता लेकर वहीं लड़की से कर लिया। कभी-कभार फोन पर बात कर लेता अब वह भी छूट गया था।
         महिमा जी विगत के दिवसों में खो जाया करती थीं 
         तभी घंटी बजी।देखा मुदित जी 
सुबह की सैर समाप्त कर लौट आये हैं।
         “ आज होली पर रंग नहीं लगवाओगी?”
         “ तो लगाइए।”
       “बाहर चलो तो सही।”
महिमा जी ने देखा कि आश्रम के दस बच्चे हाथों में गुलाल लिए होली शुभ हो नानी जी!” कहते उनसे लिपट गए।
       प्रसन्न महिमा जी उनसे रंग लगवा कर और उन्हें लगा कर सबके लिए आलू, पूरी, खीर बनाने रसोई में चल दी।
       
- डॉ भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 43

खास होली 
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रौनक के जीवन की सारी रौनक चली गई ।जब कोरोना ने उसके अपनों को निगल लिया ।
न जीवन न जिन्दगी निराशा से भर गए।
साल बीता ।रंगों के पर्व की हलचल शुरू हुई ।होलियारे निकले।जुलूस में रंग बिखरा।पर रौनक उदास।कमरा बन्द।छत की ओर एकटक देख रहे।
अचानक दरवाजा खटका।मेरे साथ होली मनाओ न।एक छोटा बच्चा सामने खड़ा था।
रौनक जी ने कुछ क्षण सोंचा।फिर चल दिए।
कई और बच्चे भी मिल गए।जमकर रंग खेला।गुलाल लगाया ।
रौनक की उदासी दूर हुई ।पहले सी रौनक आ गई।
बच्चों के साथ यह होली खास हो गई ।

- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 44

 शहरी बेटे के साथ होली
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दोपहर का समय था सरपंच जी के साथ गांव में गांव के कुछ लोग सरपंच जी के साथ बैठकर बातें कर रहे थे। बातें बातें करते हुए कुछ समय हो गया तभी अचानक सरपंच जी का बेटा शहर से पढ़ाई करके आ गया और उसके हाथ में एक रंगों की थैली भी थी जैसे ही उसने अपने गांव के लोगों को अपने पापा के साथ बैठे देखा तो उसने सब को नमस्ते और सब के पांव छुए और जैसे ही आते ही कहा हैप्पी होली-------
सभी गांव के लोग सरपंच जी के साथ बैठे थे सब भूल गए। कि कोरोनाकाल है
सारे लोगों ने शहरी बेटे की हाथ से पहले रंग की थैली लेकर कुछ गुलाल उसको लगा दिया और आपस में भी खूब लगाया सारे लोग हंसी-खुशी होली मना रहे थे।

- नजीब जहां 
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 45

होली
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दीपिका आज सुबह से ही बहुत उदास लग रही थी बार-बार की पुरानी ‌बातें याद कर  आंखों के कोर भीग जाते
पिछले दो-तीन सालों में तीनों बच्चे मुझसे दूर हो गए परिवार हमारा बिखर गया छोटी सी गलतफहमी के कारण
पता नहीं कब फिर से वह हमारे जीवन की उत्सव भरी रंग बिरंगी रंगोली वाली होली आएगी सप्ताह भर पहले से ही पकवान बनाने की तैयारी होती गुजिया पापड़ मठरी खुरमा लड्डू मूंग की दाल का शीरा आकाश को तो दही बड़े बहुत 
पसंद और साथ में सोंठ वाली चटनी ,
बच्चे गुझिया अनरसा और गुलाब जामुन बनते ही खाने का बेसब्री से इंतजार करते यही सब सोच विचार में डूबी दीपिका की आंखों से आंसू झर झर बहने लगे रोती जाती आंसू पूछती जाते एक टकटकी लगाए आकाश की ओर बाहर बालकनी में झांकने लगी
इतने में मोबाइल की घंटी बजी उसका बेटा अनी बेंगलुरु से फोन किया मां  मैं होली पर घर आ रहा हूं तुम गुजिया और गुलाब जामुन बना कर रखना मेरे कुछ दोस्त भी आएंगे हां मैं अपने दोनों भाइयों को भी लेकर आऊंगा इतना ही सुनते दीपिका की चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई और वह तेज कदमों से रसोईघर की ओर बढ़ गई कागज कलम उठा सामान की लिस्ट बनाने लगी आने पर क्या क्या मुझे बनाना है क्या क्या खरीदारी करनी है हां अबीर और गुलाल भी तो लेना है पर्स उठा बाजार की ओर चल पड़ी..!!

-आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
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क्रमांक - 46

काला रंग
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 होली का पर्व पास आते ही नीमा उदास हो जाती है।वह बीस साल पहले के हॉस्टल के दिनों में पहुँच जाती है।
"चलो सहेलियो,हम एक-दूसरे को रंग लगाना शुरु करें ।"
"हां,सीमा बिलकुल सही।पर,गरिमा को काला रंग मत लगाना।"
"क्या मतलब,नीमा ?"
"मतलब यह सीमा,कि हमारी पक्की सहेली गरिमा का रंग बिलकुल काला है,तो उस पर काला रंग लगाने से क्या रंग बेकार नहीं चला जाएगा?"नीमा ने कहा।
  यह सुनकर गरिमा उदास होकर वहां से चली गई।और ऐसी गई कि फिर आज तक उसने नीमा सहित किसी सहेली को याद ही नहीं किया।
   तबसे अब तक नीमा के लिए होली महज एक पश्चाताप की अग्नि में जलने का पर्व है।
          - प्रो.शरद नारायण खरे
             मंडला - मध्यप्रदेश  =============================
क्रमांक - 47

अनोखी होली
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राजेश ने अपने बच्चों से कहा, "दो दिन बाद होली है।इस बार हम अनोखी होली मनाएँ गे।"
    तीनों बच्चे एक साथ बोले,"पापा---पापा--बताओ--कैसे----?राजेश ने कहा, नहीं--यह होली के दिन ही देखना।"
      राजेश ने अपनी पत्नी रीता के साथ जाकर कुछ हर्बल पौधों की पनीरी,पक्षियों के पानी पीने के लिए मिट्टी के बर्तन, बच्चों के लिए पिचकारियाँ और घर में ही बेसन के लड्डू बनाने का समान अंर फल खरीदे।  
       होली के दिन राजेश और रीता ने बच्चों के उठने से पहले रात को भिगो कर रखे गुलाब के फूलों का इतर तैयार करके पिचकारियाँ भर दीं,पौधों की पनीरी,पक्षियों के लिए लाये बर्तन, खाने पीने के समान से टेबल सजा
 दिया। 
        जब बच्चे सुबह उठे तो पूरा घर गुलाब की महक से भरा हुआ था।टेबल पर सजा समान देखकर बच्चे आश्चर्यचकित हो गए।राजेश ने कहा, बच्चो नहा धोकर तैयार हो जाओ और फोन करके सारी मित्र मंडली को यहां बुला लो। 
       दस बजते ही सारी मित्र मंडली इकट्ठी हो गई। सभी ने एक दूसरे को गुलाब के इत्र से सरोबार कर दिया।पूरा आंगन महक उठा।राजेश ने बच्चों को बाजारी हानिकारक रंगों से दूरी बनाने और प्रकृति से जुड़ने का संकल्प लिया। 
     सभी बच्चों को होली के उपहार में  एक एक हर्बल पौधे,पक्षियों के पानी पीने का बर्तन दिया। सभी बच्चों ने मिलकर खाना खाया और होली के गीत गाये।इस बार मनाई गई अनोखी होली से बच्चे बहुत खुश हुए। 

- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप- पंजाब
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क्रमांक - 48
      
  प्रेम रंग की होली
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              अरे कुसुम! बहू की पहली होली  है बहू मैके नहीं जा रही ।होलाष्टक लग गए ?
पड़ोसन की बात सुन।  
 बस मैंने इतना ही कहा-  नहीं..
क्यों ?  पड़ोसन ने फिर पूछा
(बेटे से प्रेम विवाह होने के कारण बहू के मायके वालों ने बहू से रिश्ता नाता खत्म कर दिया था मैं मन ही मन बहू के मन की स्थिति समझ रही थी )
परंतु पड़ोसन के फिर से पूछने पर  क्यों ?
क्या हुआ ?
 कुसुम  -बहू को मैके क्यों नहीं भेजा ?
(उसके फिर से पूछने पर) मैंने इतना ही  कह दिया कि ..
 पुराने समय में  पुराने जमाने की सासु अपनी बहू को पड़ोसियों के हुड़दंग से बचाने के लिए मैंके भेज देती थी ।
अ ब न तो ऐसा हुड़दंग है ..!
 और ना ही ऐसी सांसू ....
, मैने मुस्कराते  हुए  जोर से कहा ।
 मैं तो अपनी बहू के साथ ही पहली होली खेलूंगी। 
और तुम भी तैयार रहना तुम्हारे संग भी खेलेंगे होली..।

-  रंजना हरित              
  बिजनौर - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 49

खतरे के खिलाड़ी
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"अरे! तुम इस समय?" अपने घर में आई कमला को देखकर चौंकने का अभिनय करने में सफल रहा हरेंद्र। होली की शाम थी वह घर में अकेला था।
"क्यों? तुमने ही तो कहा था.. होली के दिन मेरे घर अबीर खेलने आना..! चलो अब अबीर मुझे लगा दो... घर में मुझे सब ढूँढ रहे होंगे..!"
"वो तो मैं आजमाया था कि तुम मुझसे कितना प्रेम करती हो...! तुम तो अव्वल नम्बर से पास हो गई..।"
"आजमाने में रिश्ते बना नहीं करते... आज के दिन अकेली लड़की का घर से दूर जाना कई खतरे राह में प्रतीक्षित होते हैं..। वक़्त बदला है समस्याएं नहीं बदली...!"
"मान लेता हूँ... मेरा दबाव गलत था... अबीर तुम्हें शादी के बाद ही समाज के सामने लगाउँगा..! चलो तुम्हें सुरक्षित घर छोड़कर आता हूँ..।"

- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
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क्रमांक - 50

फाग का चोखा रंग 
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तारररररररररररा,होली है। 
ढोल मंजीरो के साथ बच्चों के मस्ती भरी टोली घर में घूम रही थी और उस टोली की सरदारनी घर की नई बहु बनी थी।जिसके ऊपर बचपन की शोखी और चंचलता अभी तक अपना अधिपत्य जमाये हुए था। 
       उसने तय कर रखा था,कि इस बार परिवार में कोई भी सदस्य बिना रंगे नही रहेगा। 
         पतिदेव के साथ राधा की शर्त लग गयी।
पति को रंग नही लगाना था और पत्नी को फाग का रंग चढ़ा था।
पतिदेव ने बहुत डराया,कि- 
"घर गंदा होगा तो पूरा घर तुमको ही साफ करना पड़ेगा।" 
"सब मंजूर है,लेकिन आज रंग तो सभी को लगाऊँगी।" 
        नयी बहु अकेले ही पानी का पाइप लेकर सबको छकाने में लगी थी ।
   हँसी-ठिठोली की रंगत देखने पतिदेव जी आखिर अपने को बंद कमरे से बाहर निकाल ही लिया।मौका लगते ही राधा-रानी ने सरपट दौड़ लगाई, तो पतिदेव  भागकर दोस्तों की महफिल में जाकर बैठ गये ।
अब राधा ने नया पैंतरा मारा और कमरे के बाहर खड़ी होकर फाग गाने लगी।
"खेलो मेरे संग आज होली,वो रंग-रंगीले बाबू ,
देखो आया है आज दिन रंग-रंगीला।
कैसे न खेलूँ मैं फाग सजन रे,
मेरी चुनरी है अभी धानी।
मैं लाज़ की मारी,पर लगा सजना
मुझे प्यार का गुलाल और थोड़ा पानी ।
भीगें मेरी चुनरी और भीग जाए मेरी चोली।"
    इतनी देर से फाग सुनते-सुनते दोस्तों ने पति के कान में फूँक मारी।मंत्र का असर चढ़ा,वो कमरे से बाहर आये और राधा ने जैसे ही रंगने के लिए हाथ बढ़ाया पतिदेव ने उसे गोद में उठा बाथरूम में नल के नीचे बिठा दिया ।
"बोलो अब खेलोगी होली, लगाओगी मुझे  रंग...?" 
"नहीं,नहीं।"
चिरौरी करती हुई राधा से नंदलाल (पति)बरजोरी पर उतर आए।
  'अब आगे-आगे राधा दौड़ रही थी और पीछे-पीछे  नंदलाल,फिर प्रीत ने अंगड़ाई ली और सारे रंग फीके पड़ गये ।
साँसें हुई मृदंग,अंग-अंग फागुन चढ़ा।चूड़िया खनक गयी और बाजूबंद टूट गये।पिय रंग से कपोल रंजित और टेसू  नयन हो गये।' 
पिय ने प्रीत के रंग से ऐसा रंगा,कि उसके चटक रंग से राधा अंदर तक भीग गयी।जिसे चाहे धोबिया ने कितना ही धोया लेकिन उसका रंग नहीं उतरा। 
       शाम होने को आ गयी,सबको रंगने के बाद अब  राधा पिय के रंग से लथपथ हो थक चुकी थी लेकिन उसे ध्यान था,कि अभी श्वसुर और जेठ जी को तो  रंग लगाया ही नही। 
  शर्त थी,कि किसी का बदन आज बिना रंगे नही रहेगा। 
लेकिन राधा के सामने मुश्किल यह थी,कि जेठ जी का पति से अनबन और श्वसुर जी को रंग पसंद नही था ।
      पति ने मना किया है, पापा को रंग मत लगाना वो नाराज हो जाएंगें लेकिन राधा कहाँ सुनने वाली थी।वह बच्चों की टोली के साथ श्वसुर जी के कमरे की तरफ चल दी।
     "बाबासा, आपसे काकीसा को मिलना है।" 
"मुझसे...?," 
" ठीक है,बुलाओ।" 
हाथों में गुलाल लिए राधा अंदर प्रवेश करती है ।
"अरे यह क्या... !!?" 
"नही,नही यह सब हटाइए ।" माथे पर बल देते हुए श्वसुर जी बोले।
   "पापा आज होली पर चरण-स्पर्श करके आपका आशीर्वाद लेने आयी हूँ।" 
       आशीर्वाद के लिए राधा नीचे झुकती है और श्वसुर जी के चरण गुलाल से रंग जाते हैं।
"भाई की भाई से नाराजगी है,तो उसका असर भला मुझ पर  क्यों ?," 
कहते हुए जेठ जी के चरण भी स्पर्श के साथ रंगीन हो गये।
बिखरे हुए दिलों पर रंग का कुछ ऐसा असर हुआ,कि
होली के पलाशी सांझ में पूरा परिवार साथ बैठकर ठंडाई पी रहा था और सबके हाव-भाव बोल रहे थे कि-जब भूमि,मौसम,भौरें,तितली,पुष्प बौराए हैं,तो फिर इन खुशियों के रंग से हम सब क्यों दूर बैठे ?"
     "आज इतने वर्षों बाद भी उस स्नेहभरी होली को कोई भूल नहीं पाता है और परिवार में आने वाली नई बहुओं को होली के उस 'रंगीन मीठी' याद को जरूर बताया जाता है।"

- डा. क्षमा सिसोदिया
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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