लघुकथा साहित्य में होली की स्थिति क्या है ?

लघुकथा साहित्य में विवादों का जन्म होता रहता है । हर कोई लघुकथा को अपने हिसाब से चलाना चाहता है । यहीं विवादों का प्रमुख कारण है । होली का प्रयोग लघुकथा साहित्य में  नया तो नहीं है । परन्तु विवाद को हवा अवश्य मिल गई । अभी - अभी होली पर लघुकथा उत्सव का आयोजन किया  है । जिसमें लगभग पचास लघुकथा को शामिल कर सम्मानित भी किया गया ।और उन को ऑनलाइन लघुकथा संकलन के रूप में भी पेश किया गया है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
    लघुकथा साहित्य की वो विधा है जो हमारे भारतीय परंपरा, संस्कृति, पर्व और त्योहारों को जीवंत बनाए रखने में सभी विधाओं से ज्यादा कारगर साबित हो रही है। 
   लघुकथा के माध्यम से कथाकार जन-जन तक सामाजिक संदेश पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं। लघुकथा के द्वारा संक्षिप्त रूप में हम संपूर्ण भावों को बयां करने में सक्षम होते हैं। आकार में छोटा होने के कारण लोग पढ़ना भी पसंद करते हैं।
 लघुकथा गागर में सागर भरने का काम करता है। कम-से- कम शब्दों में उपदेशात्मक तथ्य  लोगों के दिल को छूने में सफल हो जाते हैं। 
     हम भारतीयों का मुख्य पर्व होली किस कारण और क्यों मनाई जाती है और आज भी उस की क्या जरूरत है इस अहमियत को विश्लेषणात्मक तरीके से लघुकथा के माध्यम से सरल शब्दों में बयां कर लोगों के हृदय में पैठ बनाने में सफलता हासिल करना आज की लघुकथा साहित्य की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
 लघुकथा साहित्य के माध्यम से यह विश्वास हम लोगों के मन में जगा पाते हैं कि होली ही एक ऐसा त्यौहार है जो मन के इर्ष्या,द्वेष, नफरत ,धर्म जाति  की दूरियों को मिटा कर आपसी प्रेम सद्भाव और भाईचारा को बनाए रखने में सक्षम होता है। 
   निष्कर्षत: कह सकते हैं कि लघुकथा में होली की स्थिति बहुत ही विशिष्ट, उत्तम, अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखने के योग्य और प्रशंसनीय है।
              -  सुनीता रानी राठौर
                 ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
         आदिकाल से लेकर अब तक होली धूमधाम से मनाई जाती है। जिस पर कहानियां, लघुकथाएं, निबंध और अन्य प्रकार का साहित्य लिखा जा रहा है और उसकी स्थिति अन्य साहित्य की भांति लघुकथा में सशक्त एवं सदृढ़ है। जिसे लघुकथा में सुनना-सुनाना अधिक रोचक होता है।
        उल्लेखनीय है कि होली असत्य पर सत्य की जीत और दुराचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक है। जिसके आधार पर हर्षोल्लास से होलिका दहन की सूचना दूसरे-तीसरे को दी जाती है और सुनहरे भविष्य की कामना करते हुए रंगों का प्रयोग किया जाता है। तभी से इसे रंगों के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आज का प्रश्न तो बहुत रोमांचकारी है ।लघुकथा और होली दोनों ही एक दूसरे का पर्याय हैं । होली का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत है ।भाई चारे का संदेश है ।हर धर्म पर विश्वास का नाम होली है प्रकृति की सुन्दरता सब के लिए एक जैसा उत्साह लेकर आती है ।बराबर तरीके से सबके लिए हरियाली बिखेरती है जिसे देख हर हृदय रोमांच से भरता है । हम लघुकथाओं को देखें तो हर लघु कथा के जरिए रचनाकार समाज को एक सकारात्मक संदेश देता है या देती है  । होली के त्यौहार की तरह हर लघुकथा अपने क्षेत्र में ।विजयी होती है । पाठक पढ़ कर प्रभावित होता है । लघुकथा लेखन किसी एक के हृदय पर भी अपना प्रभाव छोड़ दे तो मैं उसको सार्थक मानती हूँ  ।मेरे विचार से हर लघुकथा होली का त्यौहार है जो बुराई का अंतकर अच्छाई को प्रतिष्ठित करना चाहती है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
लघुकथा साहित्य में होली की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जितनी कि होनी चाहिए। होली भारतवर्ष का एक मुख्य पर्व है। इसे हर तरफ खूब धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसे में इस पसर्व का स्थान लघुकथा में भरपूर होना चाहिए । लेकिन स्थिति ऐसी नहीं है। पर्व त्योहारों पर लोग कम ही लिखते हैं।लेकिन आजकल हर जगह विषय देकर लिखाया जाता है तो लोग लिख रहे हैं।। होली पर बहुत सारी लघुकथाएं होनी चाहिए। लेकिन इस कभी किसी ने ध्यान ही नहीं दिया लगता है। स्वयं मैं भी होली पर एक भी लघुकथा नहीं लिख पाया हूँ। तो दूसरों को क्या कहें। अब कोशिश रहेगी होली पर दो चार लघुकथा लिखने की।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
लघुकथा में होली की स्थिति कुछ और ही है। इसमें न तो हुड़दंग होता है और ना ही शरारत। लघुकथा में फूलों की होली का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। आइए बताते हैं कि राधा अपनी सहेलियों के साथ किस तरह से होली मनाती थी। राधा ने सहेलियों के साथ मिलकर फूलों और पत्तों से प्राकृतिक रंग बनाएं अगले दिन सभी सहेलियां राधा के साथ शारदा के घर जाति हैं। शारदा के गाल पर रंग लगाते हुए बोलती है बुरा न मानो होली है। वह को देखते हुए आई और शैलियों के साथ झूमते हुए मदमस्त होकर होली खेलने लगी।
वही दुसरी ओर एक गरीब की होली कैसी होती है लघु कथा में इस दर्शाया गया है। रंगीली फागुन का रंगीला रस भरा महीना आज चला था कहीं से गुहार आ रही थी। भेदभाव को दूर हटाओ छोड़ो तराना प्रेम का भाईचारे का गुलाल मौज मस्ती का गुलाल। आगे कुछ सुनने की उसमें ना हिम्मत थी ना उसने जरूरत ही समझी। उसने 22 फागुन देख लिए थे। फागुन करेंगे ना बस बुरा महीना उसके लिए एक भी गिला नहीं लगता था। बचपन से ही मां के साथ घर-घर झाड़ू पोछा बर्तन करने वाली नहीं नीलम ने देखा था। वार त्यौहार के कई दिनों बाद बहुत आसान के साथ सूखे लड्डू और कीड़े लगे। ड्राईफूड का मिलना। बाहर जाकर उसने एक देखकर उसकी नीति बन गया था गुजिया तो उसने आज तक नहीं रखी थी।किसी पर होली का रंग डालने का लुक कैसा होता है यदि उसे नहीं मालूम था। अलबत्ता कई बार जबरन रंग सेवा रंगी जरूर गई थी इस बार 1 नई नवेली बहू बनकर रमेश के साथ नए सर आई थी। रमेश तो फैक्ट्री में काम करने चला जाता था नीलम ने सारा दिन अकेले घर में रहने के बजाय कुछ काम करना बेहतर समझा था तो एक मेम साहब के पास पार्ट टाइम नेट का काम शुरू कर दिया था। उसी में लगन से काम करती। नीलम को मेम साहब भी दिलदार मिली थी। उन्होंने उसे बहुत से काम से लिखकर से करना और काम चला लो अंग्रेजी बोलना सिखा दिया था। अब उसे खाने पीने के लिए भी तरस नहीं पड़ता था कभी-कभी घर के लिए भी उसे सुबह का बना ताजा खाना मिल जाता था। होली के कुछ दिन पहले ही मैंने उसे बहुत बड़ा सुंदर पकड़ा दिया था। यह क्या है।नीलम के मुंह से निकल गया था नई नवेली बहू आएगी क्या यहां तेरी माया तो नहीं है मैं ही अपनी बेटी के लिए होली का सामान लेने के लिए भी ले लिए कपड़े हैं। मुंह मीठा करने को थोड़ी सी गुजिया है। बाकी तो हम ही बनाएंगे मुश्किल से थैंक यू के साथ होली खेलने वाले गीत जा रहे थी।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
लघुकथा साहित्य में होली को लेकर जो सृजन हो रहा है, अब अपेक्षाकृत कम ही है। होली के पर्व में सामान्यतः रचनाकार पद्य पर ज्यादा लिखते हैं। गीत, दोहे, मुक्तक,हास्य-व्यंग्य विधा में खूब लिखा जाता है। गद्य में भी हास्य - व्यंग्य पर ही ज्यादा रुझान होता है। वह चाहे लेखक पक्ष हो या पाठक पक्ष। 
    बाल गीत भी बहुत लिखे जाते हैं।
  लघुकथा विधा में भी लिखने को बहुत कुछ लिखा जा सकता है। सामाजिक और पारिवारिक  परिदृश्य में ऐसे सुलभ सामान्यतः
अच्छे - बुरे वाक्या देखने मिलते हैं। जिनमें लघुकथा का सृजन सहजता से हो सकता है। ऐसा भी नहीं है कि होली के संदर्भ में लघुकथाएं बिल्कुल भी नहीं लिखी जा रहीं हैं। लेखन हो रहा है, हाँ, ये कह सकते हैं कि अन्य विधा की अपेक्षाकृत कम।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
लघुकथा साहित्य में होली की स्थिति वो ही परंपरावादी ढंग से होली मनाने का अधिक वर्णन मिलता है। समय और परिस्थिति के अनुसार हमारे जीवन यापन मे बहुत परिवर्तन आया है। उसी के अनुरूप हमें त्योहारों  के रंग ढंग भी बदलने होंगे। 
      प्रत्येक त्योहार अपने आप में प्यार,स्नेह, खुशियाँ और मिलवर्तन की भावना लेकर आता है। वो तो हर हाल बरकरार रहनी चाहिए। सभी त्योहारों को मिलकर दिखावे से दूर प्रेम भाव से मनाने चाहिए। जैसे होली के त्यौहार में बाजारी गुलाल  पीला ,हरा आदि रंगों की भरमार रहती है। 
    हमें ऐसी लघुकथा साहित्य की रचना करनी चाहिए जिस में परंपरा को कायम रखते हुए कुदरत के साथ तालमेल बैठा कर त्योहारों को मनाया जाए।बाजारी रंगों की बजाय घर में लगे फूलों से इत्र तैयार किया जाए। बाजारी पीजा, बर्गर, चाइनीज को छोड़कर घर में तैयार व्यंजनों को प्रोत्साहन करने वाला लघुकथा साहित्य रचना चाहिए। यह खुशी की बात है कि इन दिनों जो भी लघुकथाएं पढ़ने को मिलीं, सभी समय और परिस्थिति के अनुकूल थी।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
आजकल लघुकथा साहित्य की ओर भी लोगों का झुकाव काफी हद्द तक बढा़ है किंतु  प्रश्न लघुकथा साहित्य में होली की स्थिति क्या है को लेकर है तो यह कहा जा सकता है कि होली में मंचीय हास्य कार्यक्रम कवि सम्मेलन होने से गद्य व्यंग कवितायें, पद्य में गीत ,छंद दोहे कुछ चुटकुलेनुमा हास्य गद्य का ही सृजन अधिक होता है किंतु अभी कोरोना के हिसाब से होली खेलने पर प्रतिबंध ,मंचीय कार्यक्रम नहीं हो सकते !
 हां! तकनीकी सुविधाएं मिलने से हम जरूर जूम में फेसबुक पर प्रोग्राम करते हैं किंतु लोगों का झुकाव इन दिनों लघुकथा की ओर बढ़ा है!  होली मौज मस्ती का त्यौहार है! इससे हमारी खट्टी मीठी यादें, कुछ कड़वी भीहोती हैं! गांवों से जुड़ी, ससुराल  में घटी कोई ऐसी घटना....... ऐसी अनेक घटनाएं....अथवा होली के रंगों का आनंद जिसे हम नहीं ले पा रहे हैं..... इन सभी घटनाओं को हम अपनी भावनाओं  के साथ लघुकथा में बहुत अच्छे से व्यक्त करते हैं ! एक साहित्यकार किसी भी तरह की रचना का सृजन करता है तो वह लिखी हुई अथवा कही हुई नहीं लगती घटित लगती है! लघुकथा  में यही होता है अतः इस कोरोना में साहित्य  प्रेमी होली की सभी छोटी छोटी घटितघटना का वर्णन लघुकथा में ही करना पसंद कर रहे हैं! चाहे किचन में बनी मिठाईयों का जिक्र हो! 
          - चंद्रिका व्यास
       खारघर नवी मुंबई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में "  लघुकथा साहित्य मे होली के प्रयोग को कुछ लघुकथाकार अच्छा नहीं मान रहें हैं । यह उन की अपनी मानसिकता है । अब लघुकथा साहित्य में होली भी विशेष स्थान प्राप्त करेगी । ऐसा विश्वास किया जा सकता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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