डॉ. धर्मवीर भारती की स्मृति में कवि सम्मेलन
जैमिनी अकादमी द्वारा साप्ताहिक कवि सम्मेलन इस बार " ग्रामीण जीवन " पर रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कवियों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल कविता के कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है । सम्मान डॉ. धर्मवीर भारती के नाम से रखा गया है ।
धर्मवीर भारती आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। इन का जन्म 25 दिसम्बर 1926 में प्रयागराज - उत्तर प्रदेश में हुआ । इन की शिक्षा एम.ए. हिन्दी , पी.एच.डी है । प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती पद्मश्री व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारती जी निरन्तर साहित्य साधनारत रहे हैं। उनका साहित्य उच्च कोटि व व्यापक का है : -
उपन्यास : 'गुनाहों का देवता', 'सूरज का सातवाँ घोड़ा'
कविता-संग्रह : 'सात गीत वर्ष, 'ठंडा लोहा'
खण्डकाव्य : 'कनुप्रिया'
कहानीसंग्रह : 'मुदों का गांव', 'चाँद और टूटे हुए लोग, 'बंद गली का आखिरी मकान '
एकांकी-संग्रह : 'नदी प्यासी थीं
काव्य-नाटिका : 'अन्धायुग', 'सृष्टि का आखिरी आदमी'
शोध : 'सिद्ध साहित्य'
समीक्षा : 'प्रगतिवाद : एक समीक्षा', 'मानवमूल्य और साहित्य'
ललित लेख: 'ठेले पर हिमालय'
अनुवाद : 'देशांतर', 'आस्कर वाइल्ड की कहानियाँ '
इन की मृत्यु 04 सितंबर 1997 को मुम्बई में हुई है ।
सम्मान के साथ कविता भी पेश : -
बुलाया हुआ सा है
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वह खेत की मेंड़ पर
खड़ा आदमी
वह गाँव की चौपाल पर
खड़ा आदमी
डरा हुआ सा है
शायद उसे शहर ने
बुलाया हुआ सा है।
डर है उसे कि अपसंस्कृति
से संक्रमित शहर के
नागफनी, बबूल और बेशरम कैक्टस
गाँव के नीम, पीपल और बरगद को
संक्रमण की पीड़ा ना दे दें
- - और उसके मन-आँगन में
प्रतिष्ठित ना हो जाये यह बीमार शहर
- सुहाने मन आँगन में - - -!!
जहाँ आज भी उसका गाँव बसा है जहाँ - -
सावन के झूले हैं
टेसू सरसों फूले हैं
तुलसी का बिरवा है
चौपाल का चौंतरा है
भाभी की ठिठोली है
बहना की राखी है
लड़कपन पगी दोस्ती है
भोर की प्रभाती है!!
जहाँ आज भी
सरयू का तीर है
गंगा का नीर है
कन्हैया का चीर है
मन में पराई पीर है
कन्यादान का पुण्य है
सात वचन का बंधन है
प्रकृति की छुअन है
गोधूलि की रुनझुन है!!
इसीलिए वह खेतों की मेड़ पर
खड़ा आदमी डरा हुआ सा है!!
मन आँगन को बचाने सहमा हुआ सा है।।
डर है उसे कि - - -
इस शहर का जहरीला पानी
खून बनकर बहने ना लगे
उसके बेटे की रगों में
मदहोशी ना घोल दे
उसकी कुँवारी बेटी की आँखों में
इस दौड़ते शहर की आवारा धूल
सिंदूर बनकर सजने ना लगे
उसकी भोली गृहिणी की माँग में--और
लौट जाये गाँव जो उसकी
देहरी पर पहरा देता है।।
हाँ वह खेत की मचान पर
बैठा आदमी
डरा हुआ सा है
कि - - -
इस चमकते शहर का नव-अर्थशास्त्री हिसाब-किताब का
वही-खाता ना बना दे
बूढ़े माँ-बाप की सद्भावनाओं को--या
इस मायावी शहर का नव-वैज्ञानिक
सींग और पूँछ ना उगा दे
उसके वफादार सेवक की पीठ और शीश पर।।
हाँ--बहुत डर है उसे कि
इस शहर का भ्रष्ट चिकित्सक
लगा ना दे प्लास्टिक या
काँच के संवेदनाहीन दिल
उसके साथियों बंधुओं के भीतर।।
डर है उसे कि--
इस निर्मम शहर का पंगु समाजशास्त्री
नवोन्मेष वाद की बैसाखियाँ लगाकर
उठा ना ले उसे काँधे पर
अंतहीन बेताल प्रश्नों के साथ।।
--और छटपटाती रह जायें
उसकी भावनाएँ संवेदनाएँ
अपने ही काँधे पर अपनी
ही लाश को ढोते।।
इसीलिए वह जमीन पर खड़ा आदमी
डरा हुआ सा है
शायद उसे शहरों ने बुलाया हुआ सा है
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
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ग्रामीण जीवन है हमारा
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ग्रामीण जीवन
चमक ना दमक
शोर ना गुल
शांत वातावरण
ग्रामीण जीवन हमारा
ना कोई मकान
हर मकान है घर
घर का आंगन
आंगन में तुलसी
पावन खुशबू
ग्रामीण जीवन हमारा
ना मोटर ना कार
बैलगाड़ी का चार्ट
बैल के गले की घंटी
मधुरिम आवाज
मधुमास कर देता
ग्रामीण जीवन हमारा
बिजली ना बत्ती
लालटेन हमेशा जलती
टीवी ना फ्रिज
घड़े का ठंडा पानी
मन हो जाए शीतल
ग्रामीण जीवन हमारा
मिट्टी की खुशबू
फसलों की हरियाली
पेड़ों की छंइया
चिड़ियों की चहचहाहट
मन को विभोर करता
ग्रामीण जीवन हमारा
तालाब की मछलियां
करती अठखेलियां
ताजी सब्जियां
भूल जाती तनहाइयां
ग्रामीण जीवन हमारा
खेतों की मेड़ों पर
संभल संभल कर चलना
फसलों को छूना
ग्रामीण जीवन हमारा
चौपाल की जमघट
पूरे दिन की खबर
ढोलक मजीरा का ताल
मनोरंजन का नहीं जवाब
मुखिया के घर दावत खाना
सोने में सुहागा लाना
विदाई में उपहार का मिलना
ग्रामीण जीवन है हमारा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
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स्मृति मेरे गाँव की
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सफर शुरु किया था खेलकर जिस माटी में।
लिपटती है जब पैरों में गांव की वो माटी।।
तस्वीरें पुरानी फिर से रंगों से भर जाती हैं,
मन में भावनाओं की लकीरें निखर जाती हैं।
साझा नीम का पेड़ साझी दहलीज वाला गाँव,
मोहे कोयल की कूक तो प्यारी कौवे की काँव।
आँखों को मेरे गांव की स्मृति नम कर जाती है,
ग्रामीण जीवन की मधुर याद उभर जाती है।।
याद आता है रसीले आमों का बाग,
चहचहाते पक्षियों का मधुरतम राग।
पवन जहाँ चलती हरदम मतवाली,
मनमोहक होती जहाँ की हरियाली।
मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबु न्यारी,
वो खेतों के संग पगडंडियाँ प्यारी।
ग्रामीणों की पावन निश्छलता याद आती है।
ग्रामीण जीवन की मधुर याद उभर जाती है।।
याद आता है संघर्ष भरा ग्रामीण जीवन,
सुविधा के अभावों वाला कठिन जीवन।
शिक्षा, चिकित्सा का कोई ठौर नहीं था,
जीवन संघर्ष-पथ का कोई छोर नहीं था।
कम कपड़े कम खाने में गुजारा होता था,
फिर भी मनुज गाँव का चैन से सोता था।
चौपालों की रौनकें आज भी बतियाती है।
ग्रामीण जीवन की मधुर याद उभर जाती है।।
समय बदला गाँव भी बदलता चला गया,
रौनकें शहर से उधार लेकर चमकता गया।
चकाचौंध के साये में ग्रामीण जीवन सो गया,
कर्ज के बोझ तले ग्रामीण जीवन खो गया।
दिखावा छीन बैठा ग्रामीण की सरलता को,
पलायन लील गया जीवन की सरसता को।
गाँवों में आज प्रेम का न दिया न बाती है।
दूजे के आँगन की तुलसी पराई कहलाती है।।
ग्रामीणों की पावन निश्छलता याद आती है।
ग्रामीण जीवन की मधुर याद उभर जाती है।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
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ग्रामीण जीवन
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ग्रामीण जीवन होता,
सीधा-साधा और सरल
प्रकृति से जुड़े होते हैं ग्रामीण,
प्रकृति- पुत्र कहलाते हैं,
ग्रामीण जीवन से जुड़े किसान,
उनके लहलहाते, मुस्काते खेत,
उनके अथक श्रम की गाथा गाते,
खुश होते वे,
संघर्ष को फसलों में बदलते देख,
साथ-साथ हाथ बँटाती उनकी महिलाएं,
प्रदूषण मुक्त, स्वच्छ गांव की ताजी हवा,
जो होती भरपूर ऑक्सीजन से,
स्वस्थ कर देती सबका तन-मन।
ग्रामीण मदद करने को रहते तत्पर,
वे मनोरंजन भी करते,तरह-तरह से,
उनकी उंमुक्त हँसी प्रकृति को गुंजित कर देती।
उनकी धार्मिक आस्था होती अनूठी,
कठोरता से वे पालन करते।
गाँवों में मेले भी लगते,
जो ग्रामीणों में जीवन भर देते ।
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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ग्रामीण जीवन
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गाँव की शुद्ध हवा मन लुभाती
पेड़ों की सां--सां--मन को भाती
सुबह पक्षियों का चहचहाना नींद से जगाता
मन को दिन भर के लिए तरोताजा कर जाता
खेत खलिहान में पीली सरसों खिली
आमों की शाखाएं बूर से भरी पड़ी
गेहूं की सुनहरी बिल्लियाँ खूब भाती
किसानों के लिए ढेरों खुशियां लातीं
कहीं कोयल की मीठी वाणी सुनती
कहीं मंदिर ,गुरूद्वारा की बाणी सुनती
दुःख सुख मे सब हामी भरते
चाहे खेतों की मेढ़ों पर लड़ते
सादा जीवन अपनेपन से भरपूर
लोभ लालच इन से कोसों दूर
पदार्थवादी युग में बदल रहा है गाँव
प्रदूषण की मार झेल रहा है गाँव
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
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ग्रामीण जीवन
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याद आये क्या बचपन के दिन
गांव की यादे क्या दोस्तो के बिन ।
याद सताए क्या दिन थे पुराने
मिट्टी के थे खेल जब खिलौने।
बहुत संभाला करते थे सब ,
टूटे को जोड़ा करते थे जब।
रखते थे सब खूब संभाल कर,
मिलता नहीं था किसी हाल पर।
अब देखो किया दिन है आए,
गांव भी जैसे कोई शहर बनाए।
अनब्रेके बिल है खिलौने बनाए,
उनको भी न कोई सम्भाल पाए।
नहीं संभाला करते हैं जिनको,
टूटे तो फेंका करते हैं उनको।
रखते नहीं है जी अब संभालकर,
ओर लेआते अब जाकर मालपर।
देखो भैया क्या समय की ताल,
मेरा गांव भी चला शहर की चाल।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
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ग्रामीण जीवन
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एक तरफ मेरा छोटा मकान,
दूसरी तरफ मेरे बैलों का ,
वो जरा टूटा सा ठिकाना,
गोबर की खुशबू आती,
ऐसा ग्रामीण जीवन अपना,
खेत खलिहानों की हरियाली,
वो त्योहारों के मेले अपने,
वो कुछ करना है वाले सपने,
दिल की बातें सीधे दिल से,
वो आज और अभी वाली बातें,
घंटों बैठकर कहानियां सुनाना,
उसकी बातें भी सुनना,
सबकुछ होता है ,
ग्रामीण जीवन में,
बैर कम करते हैं,
क्योंकि सब मिल झुलकर रहते हैं,
फिर बिना कारण भी ,
खूब बातें करना,
एक दूसरे की मदद को,
रातदिन बिना हिसाब लगे रहना,
ग्रामीण जीवन में ,
सुकून के पल हैं,
चिन्तायें भी हैं,
पर उनका यों ही निकल जाना,
इसी तरह का तो होता है,
ग्रामीण जीवन का छायाचित्र,
या कह लो लेखा जोखा।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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मनभावन मेरा गांव
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मेड़ों पगडंडियों के बीच बसा जीवन,
खेतों की हरियाली से सजा जीवन।
न सर्दी न गर्मी की हो परवाह जहां,
रात-दिन का परिश्रम कृषक जीवन।
चिड़ियों की चहचहाहट सदैव रहती,
गायों का रम्भाना मन का दुःख हरती।
तोता मैना गिलहरी मिलकर फुदकते,
खेतों में मटर की फलियां मन हर लेती।
स्वच्छ शुद्ध हवा मन को ताजा करता,
थका मांदा मन भी प्रफुल्लित हो जाता।
होली दीपावली त्यौहार की बात न पूछो,
रंग लगा होली पे बुढ़ा भी देवर बन जाता।
मिलती यहां रोगों की एक दवा शुद्ध हवा,
ऐ.सी. के बिना भी मिलता है शीतल हवा।
नलकूप व घड़ा में मिलता शीतल पानी,
पीपल नीम के पेड़ देते आक्सीजन सदा।
अपनापन दिखता है गांव की गलियों में,
सब प्यार दिखाते अपने-अपने रिश्तों में।
नहीं यहां कोई इंसान अजनबी दिखता,
सभी एक दूजे का भाई- बंधु है दिखता।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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गांव का मौसम
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शुद्ध हवा और ताजा पानी, जहां मिले हरदम।
बहुत सुहाना,प्यारा-प्यारा गांव का मौसम।
कितनी भी भी गर्मी,ठंडक देती नीम की छैया,
जाड़ों की गुनगुनी धूप,मन नाचे ता-ता थैया,
हंसी खुशी मिलते-जुलते सब,करते रहते श्रम।
खुशबू फैली भीनी भीनी,हर घर गली गली,
मस्त पवन मदमाती तन को, लगती बहुत भली,
पीछे को मुड़ देखें गोरी,हर पग थम थम।
हर चेहरे पर दिखी ताजगी,हर मन भरी उमंग,
यहां मिले हमको भैया,जीवन के सब रंग,
कहीं ठहाकों की महफिल,किसी की आंखें नम।
प्राकृतिक शोभा सुंदर,चंहु और है हरियाली,
बाग बगीचे फल फूलों से, लदीं सभी डाली,
कृपा है भोलेनाथ आपकी,जय हो प्रभु बम बम।
- डॉ. अनिल शर्मा अनिल
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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सुंदर एवं सरस
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बहुत ही सुंदर होता है ग्रामीण जीवन,
सुखद माहौल,अनुभूति वाला जीवन।
आपसी प्रेम और भाईचारे से परिपूर्ण,
खुशहाल माहौल वाला रसपूर्ण जीवन।
नहीं मिलता देखने जो कभी नगर में,
खोज लो जाकर किसी भी डगर में।
वह उन्मुक्त जोश और ख्वाबों से भरा,
देखने को भी नहीं मिलता है स्वप्न में।
मनमोहक हरे भरे,सजे हुए से खेत,
रहट,नहर और कुओं से सिंचते खेत।
गेहूं ,चना ,मसूर,अरहर ,सोयाबीन की,
लहलहाती , फसलों से भरे हुए खेत।
कुओं से जल भरती पनिहारिनों का रूप,
मिट्टी में खेलते हुए बच्चों का सुंदर स्वरूप।
ढोलकों की थाप पर गाते हुए "सक्षम",
ग्रामीण लोगों का सरस,लोकगीत रूप।
बड़ा मनभावन होता है ग्रामीण जीवन,
प्रकृति के सानिध्य में रहने वाला जीवन।
बेतहाशा खुशियां बिखेरता हुआ सुखद,
स्वच्छ वायु व निर्मल जल वाला जीवन।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्यप्रदेश
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चलें अब गांव
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आ फिर लौट चलें अब गांव।
जहां पनघट पे छाई है पीपल की छांव
आ फिर लौट चलें अब गांव।
नगरों के नटखट हैं नवयुवक अलबेले
नगरों की नारी के नखरे नवेले
गांवों की गोरी को घूंघट ही गमता
रहती वो सच्ची, न ठस्का न ठांव
आ फिर लौट चलें अब गांव।
शहरों की बातें हैं कपटी, भरमाली
गांवों की सादी, सच्ची निराली
सच से छलो छल औ धोखे से दूर
न शेर की गुर्राहट न कौवे की कांव
आ फिर लौट चलें अब गांव।
नगरों में चलना अब बना कवायद
गांव में फिरने से अब भी मोहब्बत
चलते हैं कारें, बस और स्कूटर
चलता है सब कुछ, न चलते बस पांव
आ फिर लौट चलें अब गांव।
- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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दही का खाना
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ग्राम्य जीवन सुंदर था
चला करती बैलगाड़ी
बैलों से हल चलते थे
सवारी में घुड़मचगाड़ी,
जनहितैषी प्यारी भाषा
सहयोग पूर्ण रवैया था
टीवी,फोन नहीं होते थे
गांव-गांव में गवैया था,
हट्टे कट्टे गबरू होते
घी,दूध, दही का खाना
रोटी सिर रख ले जाती
शाम ढले लौटके आना,
घी,शक्कर हाली खाते थे
मेहनत करते थे दिनरात
पूरा परिवार करे लावणी
बटाते एक दूजे का हाथ,
लुप्तप्राय हुई है बैलगाड़ी
निभाती थी किसान साथ
लौटकर आएगा फिर युग
यादव कहता सुन लो बात।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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गाँव लुभाते हैं
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गाँव लुभाते हैं ...
मुझे बुलाते हैं...
नहीं है ऐसी कोई मिट्टी जो
ख़ुशबू दे मेरे गाँव की।
जहाँ बंधा है रिश्तों का डोर,
बाँह पसारे बुलाता है जो।
गाँव लुभाते हैं ...
मुझे बुलाते हैं...
याद आता वो आँचल का छाँव
जिसमें बसता मसालों का गाँव।
ए सी की ठंडक की ताजगी,
मेरे गाँव के आँगन से है आती।
गाँव लुभाते हैं ...
मुझे बुलाते हैं...
चाचा की मीठी झिड़की जहाँ
भाभी के अचार का स्वाद वहाँ।
मज़े से लेते थे ख़ूब चटकारे,
सूखते अमावट छत पर जहाँ।
गाँव लुभाते हैं ...
मुझे बुलाते हैं...
पीते कुएँ का मीठा पानी,
फ़्रीज़ के जल में नहीं वो सानी।
जहाँ नहीं मोटर गाड़ी की पों पों,
लुभाए बैलों की घंटी टुन टुन।
गाँव लुभाते हैं ...
मुझे बुलाते हैं।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
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स्वर्ग से सुन्दर है
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सबसे सुन्दर सबसे प्यारा न्यारा गाँव हमारा ।
स्वर्ग से सुन्दर है , गाँव हमारा।
भाषा बोली खानपान गीत संगीत से गूँजती है गाँव हमारा ।
मौसम की मार झेलता मुस्कानों में जीता है ,गाँव हमारा ।
वृक्षारोपण से हरा भरा है गाँव हमारा ।स्वर्ग से सुन्दर है गाँव हमारा ।
पगडंडियो की राह भलि हैं ।
बैलगाड़ियाँ जब चलती हैं ।
रुनझुन गुनगुन सचेत खनक कर जाता गाँव हमारा हैं ।
ख़रगोश गिलहरी राह काटते हैं ।
पेड़ों की झुरमुठ पक्षी के,करलव से गूँज उठा है गाँव हमारा है
मधुर मन रस पान कराये गाँव हमारा हैं
सबसे प्यारा सबसे सुन्दर सबसे न्यारा हमारा गाँव हमारा
स्वर्ग से सुन्दर है , गाँव हमारा
मिट्टी पर पड़ती पानी की बुन्दो की
सोंधि ख़ुश्बू मन संचार जागती हैं ।
रबड़ी दूध मलाई ,माखन मिश्री
मीठे आम हरयाली साग संग
स्वाद बढ़ता गाँव हमारा
सबसे प्यारा सबसे सुन्दर सबसे न्यारा हमारा गाँव हमारा
स्वर्ग से सुन्दर है , गाँव हमारा
संवाद दादी नानी के नुस्ख़े से
भूख बढ़ता गाँव हमार है ।
सबसे प्यारा सबसे सुन्दर गाँव हमारा है स्वर्ग से सुन्दर है ,
गाँव हमारा
चाँद निकल वो सीख दे गया । वृक्षारोंपण पूर्वजों की सीख
पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाता गाँव हमारा हैं ।
आस्था प्रेम विश्वास जगाता हैं ।
स्वस्थ प्रसन्न दीर्घायु रहे
सबसे प्यारा सबसे सुन्दर गाँव हमारा है
स्वर्ग से सुन्दर सबसे प्यारा सबसे न्यारा गाँव हमारा है
स्वर्ग सुंदर सोच हमारी हो ।
बसे मानवता सच्चाई अच्छाई का विश्वास हो ।
सुन्दर होगा ,गाँव आशियाना हमारा ।
हो शहर या परदेस हों ।
सबसे सुंदर सबसे न्यारा सबसे प्यारा गाँव हमारा है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
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जाने कहाँ गये वो दिन
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याद आते है अभी भी
भूल न पाये कभी भी
जाने कहाँ गये वो दिन|1
नीम की वो छाँव ठण्डी
महकती गीली सी मिट्टी
जाने कहाँ गये वो दिन|2
तपती दोपहरी तेज धूप
नीचा सा पेड खट्टा आम
जाने कहा ..गये वो दिन|3
खेत चटनी.व मीसी रोटी
प्याज गुड घडे का पानी
जाने कहाँ ...गये वो दिन|4
देर से आना डाँट माँ की
और दुलारती... हुई दादी
जाने कहाँ ...गये वो दिन|5
सुबह ही ताजा सा गन्ना
बासी रोटी मक्खन मट्ठा
जाने कहाँ ..गये वो दिन|6
नन्ही ...चिडिया तितली
मुर्गे व बाँग कौवे व काँव
जाने कहाँ गये ..वो दिन|7
धमा चौकडी गिल्ली डण्डा
माँ का चिमटा व थप्पड
जानें कहाँ गये... वो दिन|8
प्यारे बचपन के सौ काम
गाय बछड़े गोधूलि शाम
जाने कहाँ ...गये वो दिन |9
- डा. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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शहर गांव चौराहों पर
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आओ सब मिल दीप जलाये , शहर गांव चौराहों पर ।
समृद्धि सद् भाव सफलता , आये सबके द्वारों पर ।।
जो अनभिज्ञ तमस में भटके , संस्कार शुभ भूल गये ।
परम्परा पाश्चात्य पकड़ ली , स्व संस्कृति को भूल गये ।।
अन्धकार अज्ञान समाया जिनके उर के द्वारों पर ।......................१
केवल पर उपदेश नही हो , स्वयं आचरण में लेना ।
करके दिखला लो समाज को , नही किसी से कुछ लेना ।।
अवगुण अति अन्त: व्यापे ,सत गुण मुख उचारों पर ।..................२
भारत माँ की जय न बोलें , बोलो उनको क्या कहें कहो ।
असुर आज भी मिले बहुत से , बिना दन्त सिर लखे अहो ।।
जो मातृ भूमि को सब कुछ सौपें , जोर दो उन जयकारों पर ।..............३
जो शूरवीर सैनिक सीमा पर , उनके मन उत्साह भरें ।
जो शहीद हुए है समर भूमि पर , उनकी जय जयकार करें ।।
स्वर्गीय सुख वह प्राप्त करें नित्य , शिविका चढ़ें कहारों पर ।...................४
- राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी - उत्तर प्रदेश
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ग्रामय जीवन
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आओ, गाँव चले हम, प्रकृति गोद में खेलें l
सरल, सहज, निर्मल है जीवन रोम रोम हर्षाये ll
गेंहूँ की लहराती बालें झूम झूम इठलायें
सरसों हँसती बगिया झूमें अमिया मन ललचाये
छप छप करती नदी किनारे मयूरा मन इतराये
धक धक ट्यूब बेल चलता जो गंग मन हर्षाये l
शहरों के तनाव से दूर जीवन रंग मुस्कायें
श्रम सौंदर्य से पूरित जीवन सरल सहज सरसाये
कोयल, मोर, पपीहे के स्वर कानों में घुल जायें
मखमली खेती दूर क्षितिज तक रवि किरणों से लिपटे l
खपरेलों पर रंग बिरंगी बेलें हँसती जाये
दूध, दही और छाछ परम्परा आथित्य की निभायें
हवा उड़ाती रंग बिरंगी चूनर है लहराये
हर त्यौहार है राग -रंगीले ग्रामय धरा पर पाये l
कटि पर लिए गगरिया गौरी आँचल में शरमाये
संग सखि से कह उठती वह"छाया" धरती पर आये
झटपट चल पनघट गगरी ले राह तुम्हारी तके
नयनों से नयना मिलते ही प्रीत की गागर भरे l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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ग्रामीण जीवन
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ग्रामीण जीवन से हम सीखेंगे
एक दूजे के संग जीवन गुजारने।
गाय को पाल कर सेवा करेंगे
दूध की नदियां बहा देंगे।
जीवन में अपनों के लिए कुछ अच्छा करेंगे
प्रदूषण से दूर रहना मुझे अच्छा लगता है।
चारों तरफ स्वच्छ वातावरण दिखाएंगे
मेहनती किसान चाचा को देख कर मन शांत हो जाए हरी-भरी फसल के बीच जाने में मजा आता है।
ग्रामीण जीवन बड़ी ही खुशियों का जीवन है
सादगी और परंपरा का जीवन है।
पढ़ लिखकर सरकारी योजना से ग्रामीण विकास का बेरा उठाऊंगा,
शाम को बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेकर
दुख में सुख में हमेशा साथ निभाऊंगा
यही है ग्रामीण जीवन का आईना इसे हम चमकाएंगे।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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गाँव
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शहरों की
भागा-दौड़ी के बीच
याद आते हैं अपने
सरल, सादगी भरे
अपनेपन से भरपूर
अपना गाँव!
जहाँ एक का अतिथि
सबका अतिथि होता है,
हर कोई उससे
मिलने आता है,
अपने घर आने का
न्योता देकर जाता है,
जाने पर
ये मेरे खेत की मूली
ये खीरा, लौकी, राई, पालक
ये कोदे की रोटी
भट्ट की दाल, गहथ की भरी रोटी, भांग की चटनी,
ये चावल, मक्का, बाजरा
जब खाते हैं तो
अलौकिक आनंद की
अनुभूति होती है,
शहर में इतना स्वाद
इन्हें खाने पर क्यों नहीं आता
अब समझ में आया
खिलाने वाले का
निश्छल प्रेम जो
उसमें नहीं होता,
हरे-भरे पहाड़
प्रदूषण मुक्त स्वस्थ
हवा और पानी
जी चाहता है
अपनापन/ निश्छल प्रेम लिए इन गाँवों में
सदा के लिए बस जाऊँ।
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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गांव
***
प्यारा सा गांव
सौंधी सौंधी सी खुश्बु
मेरी मिट्टी की !
छत में सोती
शशि दे शीतलता
मेरे गांव में!
भोर होते ही
सुनहरी किरणें
मुझे जगाये!
पक्षी चहके
वृक्षों की डाली पर
मेरे गांव में!
आंगन को मैं
गोबर से लिपती
मेरे गांव में!
हर आंगन
तुलसी क्यारा होता
मेरे गांव में!
पूजा करती
प्रतिदिन औरतें
मेरे गांव में!
दे ठण्डी छाँव
हर राहगीर को
जीवन देता!
हरित क्रांति
दृष्टिगोचर होती
मेरे गांव में!
सावन आते
बैठ सखियों संग
झूला झूलती
गोपी कहती
मोहन प्यारे आजा
मेरे गाँव में!
नदी झरने
कलकल करते
मेरे गांव में!
मान मर्यादा
संस्कार का गहना
कहलाता है!
सभी औरतें
धारण करती है
मेरे गांव में!
चबूतरे में
शाम ढले होती है
चौपाल गोष्ठी!
भौतिक सुख
की चाहत लेकर
शहर गया!
रोई ममता
विछोह के दुख में
मेरे गांव की!
निकाल दिया
शहर ने मुझको
दुत्कार कर!
आश्रय दिया
जीवन दे मुझको
मेरे गांव ने!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
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जड़ें
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धूल न धुआँ
हार्न न वाहन
शोर न गुल
साफ सड़कें
हर ओर हरियाली
पशुओं का चरना
पक्षियों का कलरव
घर के अन्दर न बाहर
कहीं न नाक भौं
सिकुड़ती
सुखशांति अभी
सुखदुख बांटने के लिए
कहीं पर कभी ।
संस्कृति भाषा
लोकाचार की जड़ें
मजबूत
जी हां गांव में
ग्रामीण जीवन में ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
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पनघट
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ओढ़े अंचल मन से चंचल
पनघट पर एक नार खड़ी ।
सखियों के संग करे ठिठोली
धारे गागर शीष बड़ी ।।
नैन बोलते बिन बोले ही
बात अनकही कह जाते ।
स्वप्न सलौने मनभावन से
आकर हिय में बस जाते ।।
कुछ कहते कंगन तो कुछ
पायल भी कहती रहती ।
बाली, टीका, बिछुआ भी
प्रिय की भाषा पढ़ती रहती ।।
प्यास बुझे जल की बूंदों से
भाव यही समझाना है ।
चलो सहेजें पनघट को हम
लौट यहीं फिर आना है ।।
- छाया सक्सेना ' प्रभु '
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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