क्या धर्म के नाम पर अन्धविश्वास उचित है ?
अन्धविश्वास तो अज्ञानता का प्रतीक है । जो समाज से लेकर देश - दुनियां के लिए खतरनाक साबित होता है । जब धर्म की आड़ में अन्धविश्वास पनपता है तो वह और भी खतरनाक होता है । जहाँ पर पढ़ें लिखें भी फेल नज़र आते हैं । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
धर्म आस्था का प्रतीक होता है। इसका आदर करना चाहिए और धर्म के प्रति आस्था रखते हुए पूजा अर्चना भी करना चाहिए। लेकिन धर्म के नाम पर अंधविश्वास कहीं से भी उचित नहीं है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हमारा समाज धार्मिक ढोंग, पाखंड और अंधविश्वास की बेड़ियों में लोभी और गुमराह मुल्लाह, पंडितों द्वारा जकड़ा हुआ समाज है। अधिकतर तो जाहिल इनका शिकार होते हैं, लेकिन धर्म और आस्था के नाम पर बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग भी शिकार होते रहे हैं। चमत्कारी बाबाओं और भगवानों द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से प्रकाश में आती रही है और धन तो इनके पास दान का इतना आता है कि जिसे या खुद भी नहीं गिन सकते। इसके दोषी केवल यह बाबा मुला धनवान नहीं बल्कि हमारा भटका हुआ समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों में भगवान को पहचानने की गलती किया करता है। धर्म के नाम पर महिलाओं का शारीरिक शोषण करने वाले आसाराम बापू उनके पुत्र सहित कई ऐसे बाबा जेलों में सड़ रहे हैं जिनका खुलासा खुद महिलाओं ने ही किया था। आदि मनुष्य ने किया और घटनाओं के कारणों को नहीं जान पाता था। वह अज्ञानता व समझता था कि इनके पीछे कोई अदृश्य शक्ति है। वर्षा, बिजली, रोग, भूकंप, वृक्ष पर विपत्ति आदि अज्ञात तथा आगे देव भूत प्रेत और विचारों के प्रकोप के परिणाम माने जाते थे। ज्ञान का प्रकाश हो जाने पर भी ऐसे विचार बिलिंग नहीं हुए। अभियुक्त में अंधविश्वास माने जाने लगे आदि काल में मनुष्य का क्रिया क्षेत्र संकुचित है। इसलिए अंधविश्वास की संख्या अधिक थी जो मनुष्य की क्रियाओं का विस्तार हुआ एवं विश्वास हो गया और इनके अनेक भेद भेद हो गए। अंधविश्वास और सर्वकालिक है विज्ञान के प्रकाश में भी रहते हैं अभी तक नहीं हुआ है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
धर्म तंत्र, अज्ञानता का दौर अभी चल रहा हैं। गांव कस्बों, शहरों में भी जादू टोने के साथ जोड़ा जाता हैं, उसी प्रकार से तरह-तरह की तांत्रिक विधाओं का जन्म हो चुका हैं, उसी से वशीभूत होकर जीवन यापन कर जीवित अवस्था में पहुँचने में सफलता अर्जित कर गौरवान्वित होना चाहते हैं, इसमें अनपढ़-गवार से लेकर विशालकाय शिक्षित तथा अनेकों प्रतिष्ठित समुदाय के जन जुड़ें, हुए हैं। यह देश शक्तिशाली होते हुए भी धर्म के नाम पर अंधविश्वास की कुंडलियों में लिपटा हुआ दिखाई दे रहे हैं, आज हम 21 वीं सदी में हैं, क्या हम इस माया जाल रुपी संसार में विचारों जंजीरों से निकल पायेंगे।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
धर्म तो क्या किसी के नाम पर अंधविश्वास उचित नहीं है। क्योंकि अंधविश्वास सच्चाई नहीं होती है मन की भ्रम और काल्पनिक होता ह। मनुष्य का धर्म चाहे कोई भी हो लेकिन धर्म का एक ही लक्ष्य होता है सुख शांति के साथ जीना ईश्वर सुख और शांति को पाने के लिए अनेक क्रियाकलाप हैं जिसको हम धर्म के नाम से जानते हैं। मनुष्य सुख धर्मी है ।सुख ही उसका धर्म है सुख का अर्थ है समस्या से मुक्ति होकर जीना अंधविश्वास में कोई समस्या का हल नहीं होता बल्कि और समस्या बढ़ती जाती है।अतः कभी भी अंधविश्वास पर विश्वास नहीं करना चाहिए किसी भी स्थिति में सच्चाई को जानकारी चलना चाहिए क्योंकि सच्चाई जी समाधान तक पहुंचाती है और समाधान हो कर के जी ना ही सुख है। आता अंधविश्वास के बदले में सच्चाई पर विश्वास करके जीने की मानसिकता बनाना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सौ सुनार की चोटों की गिनती न करते हुए एक लुहार का प्रहार करते हुए मेरा दावा है कि अन्धविश्वास किसी भी सूरत में उचित नहीं है। इसलिए जितना हो सके अन्धविश्वास से बचना चाहिए। क्योंकि अन्धविश्वास एक न एक दिन विश्वासघात अवश्य करेगा और उस समय उक्त धात असहनीय होगा। जोे हृदयाघात का कारण बनेगा और राम-नाम सत्य हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि विश्वास ही विश्वासघात की जननी है। तो फिर जानते हुए भी अंजान बनना मूर्खता नहीं तो और क्या है? जब विश्वास इतना घातक है तो अन्धविश्वास के तो कहने ही क्या हैं? हां, यदि विश्वास करना ही है तो आस्था के रूप में ईश्वर पर करो? जो विनाशक के साथ-साथ पालनहार भी है। जो सर्वव्याप्त और सर्वशक्तिमान भी हैं।
हालांकि यह मूर्खता मैंने एक बार नहीं बल्कि अनेक बार की हुई है और जैसे ही उपरोक्त मूर्खता को त्यागा, मेरे मानसिक संतुलन में अत्यन्त सुधार हुआ। जिससे मुझे अवर्णनीय एवं अपार सुकून प्राप्ति के साथ-साथ जीवन के सुखमय होने की अनुभूति भी हुई।
अतः गीता के उपदेश का अनुसरण करते हुए कर्म करें और सर्वविदित है कि कर्म ही पूजा अर्थात धर्म है। जिसे तीनों लोकों और चारों युगों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैै। जबकि सत्य यह भी है कि कर्महीनों को शनिदेव जी महाराज कभी क्षमा नहीं करते।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सर्वप्रथम धर्म के बारे में जानना जरूरी है, "धर्म " शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है जो धारण करने वाले 'धृ'धातु से बना है ,"धार्यते इति धर्म " इसका मतलब है जो धारण करते हैं वही धर्म कहलाता है लोक और परलोक के सुखों की सिद्धि के लिए सार्वजनिक पवित्र गुणों व कर्मों को धारण करना ही धर्म माना गया है। मेरी दृष्टि में धर्म एक शुद्ध हृदय की- सोच है,जो हिंसा, बुराई ,काम ,क्रोध, मद ,लोभ जैसी बुराइयों से नितांत दूर है। धर्म आपसी प्रेम ,सौहार्द का रूप है । धर्म में नफरत, अंधविश्वास सांप्रदायिकवाद नहीं है , अंध रूढ़ियां ,अंधविश्वास धर्म को पंगु बना देती है । शंका और वैमनस्य के गहरे कुएं में धकेल देती हैं ,जहां धर्म अत्यंत विकृत अवस्था ग्रहण कर लेता है । अतः धर्म मनुष्य के स्वभाव के अनुकूल अथवा मानवी प्रकृति का होने के कारण स्वभाविक है और उसका आधार ईश्वर या सृष्टि नियम है। धर्म जब मजहब का रूप ले लेता है तब उसमें अनेक भिन्न-भिन्न परस्पर विरोधी भाव पैदा हो जाते हैं जो मानव जनित होते हैं।
यही कारण है कि जब धर्म अंधविश्वास के चपेट में आकर तंत्र शास्त्र का गुलाम बन जाता है तो वह मनुष्य के लिए जानलेवा भी बन जाता है। यह विडंबना ही मानी जा सकती है कि धर्म को अंधविश्वास के गर्त में धकेलने वाला मनुष्य ही है। धर्म को ईश्वरीय शक्ति से जोड़ते हैं परंतु अंधविश्वासी धारणाएं सारी की सारी मानव जनित है। आज पढ़ा लिखा समाज भी धर्म के नाम पर अंधविश्वास का शिकार बन रहा है। अतः अंधविश्वास समाज में विकास नहीं बल्कि विनाश का कारण भी बनता है। जिससे बचाव आवश्यक है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
अंधविश्वास, दूसरे के लिए हो सकता है।जो मान रहा है उसको,उसका तो विश्वास ही होता है। अंधविश्वास,मानकर कोई कुछ नहीं करता।उसका मन मानता है, ऐसा किया जाए तभी करता है। बिना मन तो बिस्तर भी नहीं छोड़ना चाहता कोई। फिर भला अंधविश्वास क्या अपनाएगा। ऐसा लिखने का उद्देश्य किसी अंधविश्वास का समर्थन करना नहीं है। आजकल फैशन चल पड़ा है, धार्मिक मान्यता को अंधविश्वास कहने का, जबकि समस्त धार्मिक कृत्य मानव हित में बनाए गए, उनमें मानव ने स्वार्थवश मनमाना बदलाव कर लिया।
सूर्यग्रहण नंगी आंखों से न देखना, अंधविश्वास कहने वाले नजर उठाकर देखें तो विश्वास हो जाएगा। रात को पेड़ के नीचे न जाना,दिन छिपने पर झाड़ू न लगाना अनेक बातों को अंधविश्वास कहा जा रहा है, लेकिन इनके पीछे
हित छिपा है। कोई भी व्याधि,रोग पहले मन में आता है, फिर शरीर में।यह कथित अंधविश्वास
मन के उपचार के ही तरीके हैं।कभी ज्योतिष को अंधविश्वास बताने वाले देशों में भी अब ज्योतिष का अध्ययन हो रहा है। अंधविश्वास कहकर भारतीयों की मजाक बनाने वाले जब यहां आकर मूर्तिपूजक बनते हैं तो यह उनका विश्वास ही होता है, अंधविश्वास नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
धर्म के नाम पर अंधविश्वास उचित नहीं है बल्कि दंडनीय होना चाहिए। भारत में आस्था के नाम पर धर्म का धंधा खूब फलफूल रहा है। हजारों संस्थाएं धर्म के नाम पर लोगों को धर्म भीरू और निठल्ले बनाने में जुटी हुई हैं। आज हर गली मुहल्ले में मंदिर बनाने की होड़ लगी हुई है।
धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बना कर करोडों कमाए जाते हैं और लाखों रूपये धर्म पर प्रपंच रचने में खर्च कर दिए जाते हैं। अंधविश्वास न केवल अशिक्षित एवं निम्न वर्ग के लोगों मे देखने को मिलता है बल्कि काफी शिक्षित, बुद्धिमान, विद्वान और उच्च वर्ग और विकसित देशों के लोग भी इन चक्करों में फंसे हुए हैं।
हमारे देश के लीडर अपना वोट बैंक पक्का करने के लिए अंधविश्वासों को बढ़ाते हैं। उनको अपनी जीत से मतलब होता है, देश से नहीं।
डाक्टर दभोलक,पानसरे और कुलबर्गी के खिलाफ़ लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहात करने के आरोप में मामले दर्ज किए गए हैं जबकि वो लोग अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे।
अंधविश्वासों के खिलाफ विधेयक लाना चाहिए ता कि अंधविश्वास के नाम पर शोषण करने वालों से बचाने में सक्षम हो। लेकिन यह दूर की कौड़ी लगती है कयोंकि हमारे देश के नेतागण ऐसा विधेयक लाने की सहमति नहीं देंगे।
धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाकर लाखों कमा कर खर्च किए जाते हैं उन से बच्चों के लिए स्कूल और रोगियों के लिए अस्पताल खोलने चाहिए। यही असली धर्म (इंसानियत) है,पूजा है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
धर्म के नाम पर अंधविश्वास उचित है या नहीं निष्कर्ष करना बहुत कठिन है। मनुष्य वर्तमान में अन्य क्रियाओं और घटनाओं के कारणों को नहीं जानता है। यह अज्ञानवस समझा जाता है। जैसे:--बरसा बिजली रोग भूकंप बृक्षपात विपत्ति आदि अज्ञात है।
ज्ञान के प्रकाश हो जाने पर भी ऐसे विचार विलीन नहीं हो पाता है।
मनुष्य का क्रिया क्षेत्र संकुचित है इसलिए धर्म के नाम पर अंधविश्वास होता है।
अंधविश्वास एक ऐसा विश्वास है जिसका कोई उचित कारण नहीं है बचपन से परिवार एवं समाज में जिन परंपराओं मान्यताओं को देखता है एवं सुनता आ रहा है वह भी पालन करने लगता है। मन मस्तिष्क में इतना गहरा असर छोड़ देता है कि जीवन भर इन अंधविश्वासों से बाहर नहीं आ पाता।
अंधविश्वास समाज देश क्षेत्र जाति एवं धर्म के हिसाब से अलग-अलग के तरह तरह के होते हैं।
लेखक का विचार:--अंधविश्वास मन मस्तिष्क में इतना असर छोड़ता है कि जीवन भर व्यक्ति अंधविश्वास से बाहर नहीं निकल पाता।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
धर्म का मार्ग तो भौतिक उन्नति और आत्मिक शांति के लिए जीवन के लक्ष्य तक सफलतापूर्वक पहुंचना है। जिसमें अभीष्ट प्रयोजन के लिए बुद्धिमत्ता और धैर्य के साथ अपने गुण, कर्म और स्वभाव को परिष्कृत करते हुए कार्य चिरस्थायी प्रगति और सुख शांति के वरण के लिए होता है। आँख मूंद कर अंधविश्वास की दलदल में फँसना, बाजीगर बनकर कार्य करना धर्म नहीं है।
अंधविश्वास की कंटीली पगडंडी मात्र धोखेबाजी है। ये कष्टपूर्ण स्थितियाँ स्वयं को गुमराह करने वाली स्थितियाँ हैं; जो कि उचित नहीं है।
धर्म तो कर्तव्य- पथ पर सरल, सुनिश्चित पूर्णता प्राप्ति में समझदार लोगों राह है जबकि अंधविश्वास जल्दबाजी का भटकाव, कु मार्गगामी, जुगनू की चमक जैसा जादू है जो निष्फल रहता है । दोनों के रास्ते ही अलग है। अंधविश्वास को धर्म नहीं कहा जा सकता और कहना भी उचित नहीं है।
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
प्रत्येक धर्म का आधार विश्वास है। किसी भी धर्म में अंधविश्वास का कोई स्थान नहीं है। अपने धर्म पर पूरा विश्वास मनुष्य को मानसिक संबल प्रदान करता है।
19 वीं सदी में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अंधविश्वास के विरुद्ध प्रबल धार्मिक आन्दोलन चलाया था। आज भी अनेक व्यक्ति एवं संस्थायें, समाज में धर्म के नाम पर व्याप्त अंधविश्वास के प्रति जनसामान्य को जागरूक करने में सतत् रूप से प्रयत्नशील रहते हैं।
परन्तु खेद यही है कि प्रत्येक धर्म में कुछ लोगों ने अपने लाभ के लिए भयभीत करने वाले अंधविश्वास खड़े कर दिये हैं। ये अंधविश्वास धर्म के नाम पर पाखंड हैं जिनसे अध्यात्म की आड़ में लोगों को गुमराह करके उनको मानसिक और आर्थिक क्षति पहुंचाई जाती थी। अक्सर इन अंधविश्वासों की वजह से मनुष्य जीवन की भी हानि होती है।
उससे भी अधिक दुखद यह है कि लोग ऐसे स्वार्थी और लोभी लोगों का अंधानुकरण करके इन अंधविश्वासों पर आँख मूंदकर विश्वास करने लगते हैं।
निष्कर्षत: धर्म के नाम पर अंधविश्वास अनुचित है और ऐसे अंधविश्वासों का सभी को सदैव विरोध करना चाहिए।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
धर्म के नाम पर अन्धविश्वास करना एकदम अनुचित है । यह सब अशिक्षा की वजह से होता है ।अपने कर्म का मनवांक्षित फल पाने की लालसा लोग इस कुचक्र में फँसते है ।साधु जैसे दीखने वाले लोग धन के लोभ से निरीह लोगों को फँसाकर अपनी कमाई का जरिया बना लेते हैं । जीवन की समस्याओं का निदान तंत्र मंत्र और औगढ़ पंथी से नहीं होता उसके लिए सही मार्ग दर्शन चाहिए होता है । इनसब पर भूल कर भी विश्वास नहीं करना चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
यह सही है कि हमारे देश में धर्म के नाम पर अंधविश्वास का बोलबाला है और इसी के बल पर अनेक लोग धर्मभीरुओं को अंधविश्वास के नाम पर डरा कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। किन्तु धर्म के नाम पर या अन्य किसी आस्था के नाम पर अंधविश्वास उचित नहीं है। वैज्ञानिक आधार बनाकर स्थिति का आकलन करना चाहिए।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
धर्म का शाब्दिक अर्थ है-'धारण करने योग्य' अर्थात् वह संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, मानवीय मूल्य आदि जो जीवन को परिष्कृत करते हैं, जीवन उपयोगी बनाते हैं, उन्हें धारण करना यानी अपने जीवन में उतार कर उसी के अनुरूप चलना, आचरण करना ।
हम देखते आ रहे हैं कि उपरोक्त धार्मिक मान्यताएं चालाक लोगों के कारण धूमिल होती गई । धर्म में कर्मकांड और अंधविश्वास का कारण है - लोगों का अपने अपने निजि स्वार्थ और लाभ को लेकर धार्मिक मान्यताओं को बदलना
धर्म और अंधविश्वास अलग-अलग है । धर्म के नाम पर अंधविश्वास एक छलावा है ।
चालाक लोग, भोले - भाले लोगों को ठग कर अपना उल्लू सीधा करने में पीछे नहीं रहते जो कतई उचित नहीं है ।
जरूरी नहीं कि अंधविश्वास में सच्चाई हो । अंधविश्वास जैसा कि नाम से ही विदित होता है अंध+विश्वास । अर्थात् जहां आंखें बंद कर विश्वास कर लिया जाता हो, वहां अधिकांश धोखा ही होता है ।
विश्वास करना गलत नहीं है मगर आंख, कान खुले रखकर किया जाना चाहिए ।
धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने वाले शातिर लोगों से सावधान रहना चाहिए ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
यह बहुत ही सुखद पहलू है कि आज हम विकास के दौर में तेज गति से अग्रसर हैं। धर्म,आध्यात्म, ज्ञान, विज्ञान ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें हमने आशातीत सफलताएं प्राप्त की हैं और निरंतर इस ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में जब हम अंधविश्वास को लेकर कोई दुखद घटना सुनते या देखते हैं तो हैरानी तो होती ही है और मन को भी बड़ा क्षोभ होता है।
इसके लिए आस्था के प्रति अटूट विश्वास ही एक मुख्य कारण होता है और इसके पीछे संबंधितों का अशिक्षित होना भी दूसरा बड़ा कारण है। अभी भी समाज में ऐसे लोग बहुतायत से हैं जो गहन अंधविश्वासी हैं और इसे लेकर वे कोई समझौता भी नहीं करना चाहते। वे अंधविश्वास के नाम पर पीड़ा सहने को तत्पर भी रहते हैं और उत्साही भी। असफल होने पर भी वो इसमें उनकी ही कोई गलती,भूल या कमी मानकर अपनी सोच और संकल्प से पीछे नहीं हटते। न डिगते।
इसमें एक चालाक तंत्र भी शामिल होता है जो इन्हें छलावे से तरह-तरह के हथकंडों से बहकाये रखता है और अपना उल्लू सीधा करता रहता है। पीड़ित का अशिक्षित और अंधविश्वास ऐसे लोगों के लिए पूंजी कमाने और रुतवा जमाने का जरिया है।
जब तक पीड़ित जागरूक और ऐसे छद्म लोग गिरफ्त में नहीं होंगे तब तक अंधविश्वास का यह खेल चलता रहेगा।
इस खेल को खत्म करना बहुत ही आवश्यक है, और इसके लिए सभी को इसमें सहयोग करना होगा, आगे आना होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
धर्म हमें सही मार्ग पर चलना सिखाता है। कुछ स्वार्थी लोग धर्म के नाम पर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। कुछ पंडित लोग धर्म को धंधा बना दिए हैं। लोगों को डराकर अपना तिजोरी भरने का काम कर रहे हैं। लोगों को डराकर धर्म के नाम पर बलात्कार, क़त्ल जैसे मामले हर दिन अखबार, न्यूज़,चैनलों पर देखने- सुनने को मिल जाता है। आज विज्ञान के युग में लोग ओझा -गुणी के चक्कर मे पड़कर अपना या समाज का नुकसान कर बैठते हैं। हमारे देश मे शिक्षा की कमी है। जिसके कारण गाँव के जाहिल लोग कभी - कभी तो पढ़े लिखे लोग भी अंधविश्वास के चक्कर मे पड़कर अपने हाथों अपना घर बर्बाद कर लेते हैं।
जब इंसान के जीवन मे दुःख आता हैं तब लोग को वह हो जाता हैं कि फलाने ओझा या पंडित को दिखाने से हमारा समय ठीक हो जाएगा, इसी का फायदा उठाकर ठग इनसे पैसा का शोषण करते हैं। धर्म के नाम पर स्वार्थी नेता भी वोट बैंक के लिए अपने कार्यकत्ता से लोगो मे धर्म के नाम पर नफरत फैलाते है और राज करना चाहते है। धर्म के नाम से ठगी और अंधविश्वास फैलाने वाले लोगों से हम सभी को सतर्क रहना चाहिए।
- प्रेमलता सिंह
पटना - बिहार
धर्म के नाम पर अंधविश्वास कतई उचित नहीं है। लेकिन जितने भी अंधविश्वास हैं सब धर्म के नाम पर ही हैं। लोग धर्म के साथ जोड़कर ही अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। जो अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं वो जानते हैं कि अगर अंधविश्वास को धर्म से जोड़ दिया जाय तो लोग शीघ्र ही उसके जाल में फंस जायेंगे और फंस भी जाते हैं। पहले लोग कम पढ़े लिखे थे या अनपढ़ थे तो धर्म के नाम पर अंधविश्वास में फंस जाते थे लेकिन आज पढ़े लिखे होकर भी अंधविश्वास में फंस जाते हैं। परिवार में पुराने ख्यालात के बुजुर्ग भी अपने बच्चों को अंधविश्वास में फँसाते हैं या उसके तरफ जाने को प्रेरित करते हैं। लोग कहते हैं हमारे धर्म में ऐसा है इसे करना चाहिए या करो। जबकि वैसी बातें दूसरे धर्म में नहीं है तो उन लोगों का काम कैसे चलता है वो संकट में क्यों नहीं आते ? धर्म के नाम पर लोगों को इतना डरा दिया जाता हैं कि बहुत से कार्य न चाहते हुए भी करना पड़ता है। और अंधविश्वास को बढ़ावा मिल जाता है। हमारे हिन्दू धर्म में तो अंधविश्वासों की भरमार है। एक छोटा सा उदाहरण यहाँ दे रहा हूँ। कुम्भ नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं।तो इसका मतलब तो कोई ये भी सोच सकता है कि खूब पाप करें और जाकर कुंभ नहा लें। और पाप से मुक्ति पा लें। ऐसा कभी हो सकता है? नहीं। जो पाप किये हैं उसका तो दंड भुगतना ही पड़ेगा। लोग अपने फायदे के लिए अंधविश्वास को धर्म के साथ जोड़कर मौज मस्ती करते हैं। हमारे देश में तथाकथित बाबाओं के तो यही कारनामें हैं। भोली भाली जनता को ठगते रहते हैं। उनका शोषण करते रहते हैं।
इसलिए धर्म के नाम पर अंधविश्वास कभी भी उचित नहीं है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
गीता के अनुसार धर्म क्या है? अपने मात-पिता की सेवा, गरीब दीन दुखियों की मदद करना, उच्च ज्ञान का उपदेश दे भटकते हुओं को सही राह दिखाना, सद्आचरण मे रह सदा सत्य के मार्ग पर चलना, ईश्वर का ध्यानकर ईश्वर सत्य है को स्वीकारना और अहं का त्याग कर प्रभु के बताये मार्ग पर चलना ही हमारा धर्म है किंतु आज अज्ञानता के चलते लोग अधर्म के मार्ग पर चल रहे हैं! ढोंगी बाबा के चक्कर में फंसकर लोग अज्ञानतावश गलत दिशा ले लेते हैं! अपने धर्म को मानों ईश्वर पर श्रद्धा करो पर इतना भी नहीं कि कोई हमारे भोलेपन का फायदा उठा हमसे गलत कार्य कराये! ईश्वर पर विश्वास करो किंतु अंधविश्वास नहीं!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
"अपना कर्म देख न कि दुसरों का धर्म,
फर्क धर्म से नहीं कर्म से पड़ता है"।
हमारे देश मैं आस्था के नाम पर धर्म का धन्धा काफी जोरों पर है, देश में हजारों संस्थाएं धर्म के नाम पर कोई न कोई बहाना बना कर लोगों को लूट रहे हैं,
तो आईये बात करते हैं कि धर्म के नाम पर अन्धविश्वास उचित है?
मेरा मानना है कि धर्म के नाम पर लूट खसूट उचित नहीं है यह तो धर्म के नाम पर कलंक है,
आज कत गली चौराहे में मंदिर बनाकर भी लूट खसूट जारी है जो सिर्फ कमाई का धन्धे बनाए हुए हैं,
यही नहीं धर्म के नाम पर जादू टोना करना, फूंक झाड़ से इलाज करना सब कमाई के धन्धे हैं जिनसे कई लोगों की जाने चली जाती हैं,
यही नहीं किसी को बूढी औरत समझ कर डायन कहा जाता है फिर उस पर जुलम किए जाते हैं,
कुछ लोग तो सांप व विच्ठु के काटने पर भी फूंक झाड़ करबा कर अपनी जान गवां देते हैं,
यह सारे कार्य धर्म के विरूद हैं इन पर सख्त से सख्त रोक लगाने की जरूरत है सरकार को चाहिए कोई ऐसा नियम बनाये जिससे यह सारे काले धन्धे बन्द हों जो देवी देवताओं को बदनाम करने पर तुले हुए हैं,
कोई भी धर्म यह नहीं कहता की किसी को मुफ्त में बदनाम किया जाए और कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जो झाडं फूंक से इलाज कर दे,
लोगों के घर उजाड़े जा रहे हैं अलग अलग देवी देवाताओं के सपने दिखा कर कि किसी में देवी आ गई है किसी की दवाई से सिर्फ लड़का ही होता है यह मात्र वहम हैं
अन्त में यही कहुंगा कि हम सब को जागृत होना चाहिए व जागृत करना चाहिए कि ऐसा कुछ नहीं है, जो झाड़ फूंक से ठीक हो जाए सभी इंसाम भगवान ने बनाये हैं कोई भूत चुडैल नहीं है ,
न किसी में भगवान का वास है इसलिए, हमें वहम में वहीं पड़ना चाहिए और मुफ्त में धर्म के नाम पर अन्धविश्वास नहीं करना चाहिए।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अंधविश्वास सदैव अनुचित होता है चाहे वह धर्म के नाम पर हो या अधर्म के नाम पर ।
हमारे देश में आस्था के नाम पर धर्म का धंधा काफी फल-फूल रहा है। देश में हर रोज हजारों संस्थाएं धर्म के नाम पर कोई न कोई आयोजन कर लोगों को धर्मभीरु व निठल्ला बनाने में जुटे हैं ,इनमें से कुछ संस्थाएं तो ऐसी हैं जिनके लिए घर परिवार और समाज कोई मायने नहीं रखता।
यहां जिम्मेदारी उन लोगों की ज्यादा बनती है जो इन कट्टर वादियों के खड़े यंत्र को भली-भांति जानते हैं ।उन्हें चाहिए कि इसका विरोध करें ,सोशल मीडिया द्वारा लोगों को पिक्चर के दूसरे पहलू से अवगत कराएं। तभी अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाया जाता है।
नही तो यूं ही धर्म के नाम पर अंधविश्वास को पनपा का नफ़रतें फैलती रहेंगी ,भोले भाले इंसान गुमराह होते रहेंगे ।
इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
धर्म के नाम पर अंधविश्वास को कभी उचित नहीं कहा जा सकता। हमारे देश की विडंबना है कि प्रशासन में मौजूद लोग ही धर्म के नाम पर अवैज्ञानिक रीतियों में शामिल हैं तो समाज में बहुत कम बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। पढ़े-लिखे ज्ञानी लोग भी इस अंधविश्वास के चक्रव्यूह में फंसे दिखते हैं। टीवी एंकर खुलेआम ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं। जानकारी और शिक्षा के बावजूद भी दुख की बात है कि लोग देशवासियों को पीछे की ओर ले जा रहे हैं।
धर्म हमें सही तरीके से जीवन जीना सिखाता है उचित अनुचित, नैतिक-अनैतिक का ज्ञान कराता है पर हम जब किसी रीति रिवाज को बिना तर्क व आधार के अनुसरण करने लगे तब वह विश्वास, अंधविश्वास बन जाता है।
धर्म के नाम पर आस्था और विश्वास अपनी जगह सही है पर आंख मूंदकर धर्मावलंबियों के द्वारा कही गई हर बात को मान लेना अंधविश्वास है। वे अपनी रोजी-रोटी और धंधा को चलाए रखने के लिए लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं यह बात समझना भी जरूरी है।अंधविश्वास के कारण ही आज भी जादू टोटके, तंत्र-मंत्र के कारण नरबलि देने की घृणित समस्याएं मौजूद हैं। धर्म के नाम पर अंधविश्वासी बन कर अधर्म करना बिल्कुल अनुचित और अमानवीय कृत्य है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
धर्म के नाम पर अंधविश्वास बिल्कुल उचित नहीं है पर समाजिक गतिविधियां कुछ ऐसी है हर समाज का परिवार अंधविश्वास जैसे बातों पर पूरा विश्वास कर लेता है क्योंकि अपने परिवार में इसी प्रकार की परंपरा को देखता आया है जिसके कारण इंसान अंधविश्वास के जाल में उलझ जाता है उस जाल को तोड़ना भी बहुत ही कठिन माना जाता है अगर आप अंधविश्वास से जकड़े हुए दिमाग में नए विश्वास को लाना चाहते हैं उसे तोड़ना चाहते हैं तो मन में एक डर बना रहेगा क्योंकि समाज और परिवार यह कहेगा पीढ़ियों से ऐसा होता आया है अगर इसे तोड़ोगे तो कोई ना कोई अनर्थ हो जाएगा इस अनर्थ के डर से हम अंधविश्वास के जाल में हमेशा उलझे रहते हैं
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
कतई नहीं। धर्म के नाम पर अंधविश्वास बहुत ही गलत एवं भयानक कार्य होता है। कोई भी धर्म गलत शिक्षा नहीं देता, न ही किसी के साथ गलत करने का कहता है हर धर्म प्रेम और भाईचारे का संदेश देता है। धर्म के नाम पर गलत बातों को मानना एवं अन्य लोगों को भी उसी तरह मानने के लिए दबाव बनाना या प्रेरित करना भी सर्वथा गलत कार्य है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
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