जीवन में गति से उन्नति का क्या महत्व है ?
दुनियां का हर पल गति में है । ऐसा बड़े से बड़े वैज्ञानिक ने सिद्ध कर दिया है । फिर जीवन में गति बहुत ही आवश्यक है । गति के बिना उन्नति सम्भव नहीं है । जिसके जीवन में गति नहीं रहती है तो उस की उन्नति रूक जाती है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
उन्नति का स्वयं ही अपना बहुत महत्त्व होता है और फिर वह गति से हो तो उल्लेखनीय होता ही है। गतिपूर्वक उन्नति के पथ पर अग्रसर व्यक्ति शीघ्र ही लक्ष्य पा लेता है। इसके बाद फिर अन्य लक्ष्य की ओर बढ़ जाता है।
कुछ कार्यों में उन्नति के लिए एक गति समय सीमा निर्धारित होती है , उससे कम समय में अधिकृत लक्ष्य नहीं पाया जा सकता। जैसे शिक्षा, विभिन्न कोर्स,प्रशिक्षण आदि।कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिसमें गति से उन्नति हासिल की जा सकती है। जैसे व्यापार, सेवा कार्य, राजनीति आदि। इसमें महत्वपूर्ण है सतत गतिशीलता। इसके अभाव में उन्नति प्रभावित हो जाती है।जीवन में उन्नति का कोई शार्टकट नहीं होता।बस गति को बढ़ाकर शीघ्र उन्नति की जा सकती है,वह भी कुछ सीमित क्षेत्रों में ही। भारतीय संस्कृति तो 'चरैवेति चरैवेति' का संदेश देती ही है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जीवन में गति से उन्नति अर्थात निरंतरता ,अपने कर्म पथ पर निरंतर आगे बढ़ते जाना। बिना किसी अवरोध के मार्ग में आई हुई समस्याओं ,कठिनाइयों या विषमताओं का सामना करते हुए नवीन मार्ग निकालकर अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करते जाना ही जीवन में गति का उन्नति के लिए महत्व है। बिना रुके अपने श्रेष्ठ भाव या कर्म को क्रमशः आगे बढ़ाते जाना ही जीवन में गति प्रदान करता है जो की पूर्णता के लिए अत्यंत आवश्यक है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
उन्नति की गति मनुष्य जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। गतिशीलता जीवन की सजीवता का प्रमाण है। यही सजीवता मनुष्य को उन्नति की ओर ले जाती है जिससे मनुष्य का मन-मस्तिष्क उर्जावान रहता है। इसलिए जीवन में उन्नति की गति का अत्याधिक महत्व होता है।
प्राय: देखा जाता है कि पूर्ण परिश्रम के पश्चात भी उन्नति के मार्ग पर मनुष्य की गति धीमी रहती है जिससे उसके मनोबल का ह्रास होता है। जबकि इसकी अपेक्षा मनुष्य के प्रयासों को सकारात्मक उन्नति युक्त परिणाम मिलते हैं तो उसका मन उपवन रंग-बिरंगे फूलों के समान खिला रहता है।
"मन के उपवन में खिलते हैं, जब-जब रंग-बिरंगे फूल।
सुरभित होता है मन उपवन, लगता पावन गंगा कूल।।"
परन्तु यह भी सत्य है कि जीवन सदैव उन्नति के पथ पर गतिशील नहीं रहता है......
"छोटे से ही जीवन में हर पल, फूल विहँसते रहते हैं।
कंटक तो हैं साथी जीवन के, प्रियतम से संग रहते हैं।।"
इसलिए मनुष्य को जीवन-पथ पर अपनी उन्नति की गति की निरन्तरता हेतु सदैव अपने मन-मस्तिष्क में ये भाव संजोये रखने चाहिएँ कि......
"अपने मन में कुछ स्वप्न लिए, मैं अविरत चलता जाता हूँ।
स्वप्न छुएं धरा-अंबर इसलिए, मैं कर्म-पथ पर बढ़ता जाता हूँ।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
जीवन में गति करने से ही उन्नति होती है सबसे पहले समझ की और गति करनी चाहिए अगर समझ है तो समझ के अनुसार कोई भी व्यवहार करें होता है तो उसमें गलतियां नहीं होती गलतियां नहीं होने से हम जो भी उन्नति के लिए चाहते हैं वह क्रियाकलाप ना हो जाता है अगर हम श्रम की गति करते हैं तो श्रम से समृद्धि होती है। हर व्यक्ति बौद्धिक और भौतिक वस्तु की तरह गति करता है अगर उसे बौद्धिक ज्ञान और भौतिक वस्तु का ज्ञान दोनों मिल जाता है तो जीवन में उन्नति अपने आप होने लगती है अतः बहुत ही ज्ञान और भौतिक ज्ञान वर्तमान में समय की आवश्यकता है बौद्धिक ज्ञान अल्फा और भौतिक ज्ञान अधिक होने से संतुलन नहीं बन पा रही है अतः बुद्धि और भौतिक विज्ञान की ओर गति करने से ही उन्नति संभव है गति का यही महत्व है बिना गति की दुर्गति होती है और गति से सदगति होती है और सद्गति से उन्नति और उन्नति से सफलता की ओर चलने लगता है। यही जीवन में गति का महत्व है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
*जीवन में उन्नति करना ही जीवन का मूल मंत्र है।*
अनुशासन में रहकर धैर्य और समझदारी का विकास किया जा सकता है। जिससे समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता का बढ़ती है।इससे कार्य क्षमता विकास होता है तथा व्यक्ति में नेतृत्व की शक्ति जागृत होता है। अनुशासन ही सफलता की चाबी है।घर, परिवार ,समाज, गांव ,शहर, राज्य और राष्ट्र में हर जगह सभी कार्यों में अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
लेखक का विचार:--अनुशासन को अंगीकार करना पड़ेगा तभी समाज और राष्ट्र उन्नति और विकास के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ेगा। तब जल्द ही हमारा देश विश्व गुरु की ओर अग्रसर होगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
हमारी पूरी प्रकृति ,पूरा ब्रह्मांड, विश्व गतिमान है । संसार का कण कण गतिमान है । जड़ दिखाई देने वाला हर पदार्थ भी गतिमान है। प्रकृति हमें अपने इस नियम से अवगत कराती है ,कि सदा आगे बढ़ते चलो, प्रगतिशील बनो, सूर्य, चंद्रमा ,नक्षत्र सभी निरन्तर अग्रसर हो रहे हैं । नदियां अपने वेग से आगे बढ़ रही है । वायु बह रही है। वन, पौधे सभी अपने रूप को विस्तार दे रहे हैं। सभी एक नैसर्गिक नियम में बंधे हुए हैं। नियमों का पालन कर रहे हैं। सृजनात्मकता का गुण सभी पाल रहे हैं।
चैतन्य जगत् का निरंतर उन्नति करते रहना ईश्वर प्रदत्त नियम है,,निरंतर उन्नति के पथ पर अग्रसर है।
मनुष्य की उन्नति का क्रम कभी रुकना नहीं चाहिए । निरंतर बढ़ते रहना चाहिए ।जीवन में गति से ही उन्नति का महत्व है । जीवन में गति नहीं तो कुछ नहीं, जीवन महत्वहीन बनकर रह जाता है। मानव जीवन का मूल मंत्र उन्नति करना ,आगे बढ़ना ,ज्ञान हासिल करना ,शरीर को स्वस्थ, बलवान, सुंदर बनाना, निष्ठावान ,स्नेही, संयमित, सद्गुणों से भरपूर जीवन जीना होना चाहिए । जो व्यक्ति अपने प्रयासों से निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ता जाता है ,ईश्वर भी कदम कदम पर उसकी सहायता करते हैं। अतः जीवन में गति से उन्नति का विशेष महत्व है गतिहीन जीवन, जीवन नहीं बोझ है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जीवन में गति से उन्नति का बहुत महत्वक है। यदि जीवन में कोई गति ही नहीं रहेगी तो फिर उन्नति कैसे होगी। उन्नति के लिए तो गति आवश्यक है। उन्नति मतलब आगे बढ़ते रहना। जब जीवन में गति ही नहीं रहेगी तब हम आगे कैसे बढ सकते हैं। आगे बढ़ने के लिए गति आवश्यक है। जीवन में गति से ही उन्नति चलायमान होती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
गति का अर्थ है चाल और उन्नति काअर्थ है आगे बढ़ना ।जीवन चलने का ही तो नाम है ।हमारी गति ही हमारे जीवन का मूल्यांकन निर्धारित करती है । गति के अनेक क्षेत्र हैं जो जहाँ गतिशील है या कर्म कर रहा है उसे वहीं सफलता मिल रही है ।
वह जीवन में आगे बढ़ रहा है ।
सोचने से और खड़े रहने से रास्ता कभी नहीं तय होता है । पाषाण युग से आज तक के युग में कितना बदलाव आया है । पत्ते से तन ढ़कने वाला मानव आज चाँद की जमीन पर पहुँच गया है ।ाइस अवस्था या बदलाव को हम विकास या उन्नति कानाम देते हैं । अतः गति से ही जीवन में उन्नति होती है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवन में आलस्यता का त्याग कर संकल्प लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं। जब तक हम स्वयं को ऊंचा उठने की प्रतिरक्षा नहीं करेंगे तो, हर कार्यों में असफलताओं का सामना करना पड़ता हैं। जीवन में गति के साथ उन्नतियों के शिखर पर पहुँचने में महत्व की महत्ता पर विभिन्न प्रकार से योगदान परिभाषित होता हैं और अपने लक्ष्य का बोध होते जाता हैं, आवश्यकता प्रतीत होती हैं, अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार से विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता का सकारात्मकता सोच का परिचयात्मक निर्णय लिया जायें। कहा जाता हैं, आवश्यकता, विकास की जननेन्द्रियों को वृहद स्तर पर क्रियान्वित करने में सार्वभौमिकता होनी चाहिए।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जीवन में गति का तात्पर्य है परिवर्तन मूवमेंट गति विकास का पर्याय है स्थिरता ठहराव है
अगर जीवन में परिवार में समाज में देश में उन्नति या विकास की अपेक्षा रखते हैं तो हमें गतिमान होना पड़ेगा इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करती है किसी कपड़े के दुकान में जाइए और कपड़े खरीद कर लाई है फिर दूसरी बार आप जाते हैं तो यदि नया कुछ नहीं दिखलाता है तो आप वापस आ जाते हैं यह वापस आना है ठहराव है हर दिन कुछ नया करना कुछ नया देखना ही गति है कुछ नया सोचना ही विकास है अपने सोच के अनुसार उसको एक आकार देना विकास का सूचक है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज की चर्चा में जहां पर यह प्रश्न है कि जीवन में गति से उन्नति का क्या महत्व है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा कि जीवन में गति और उन्नति परस्पर एक दूसरे के पर्याय यदि आप अपने कामों को निरंतर गति देते रहते उन्हें ठीक तरीके से करते रहते हैं अनुशासित तरीके से करते रहते हैं तो आपकी उन्नति भी इसके साथ साथ निश्चित रूप से होती रहती है और जीवन में केवल धन और वैभव ही उन्नति के साधन नहीं है उसके साथ साथ आध्यात्मिक उन्नति भी आवश्यक है विचारों का परिष्करण भी आवश्यक है सही और गलत की पहचान भी आवश्यक है जो उम्र के साथ-साथ और अनुभव के साथ साथ बढ़ती है और यह सब कुछ तभी संभव हो पाता है जब हमारे आसपास का वातावरण शुद्ध और स्वस्थ हो अर्थात हमारे साथ उठने बैठने वाले लोग भी अच्छे विचारों के हो और यह सब निर्भर करता है हमारे अपने ऊपर हम किस तरह का वातावरण अपने आसपास बनाना चाहते हैं इसके लिए बहुत ही समझदारी भरा सम्यक प्रयास आवश्यक होता है !
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
इसमें कोई दो राय नहीं है कि जीवन में उन्नति का मूल्यांकन कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता है
सूर्य और चंद्र अन्य ग्रह जड़ हो गतिमान हैं तो चेतनशील मानव क्यों नहीं ? पेड़ -पौधों की जड़े भी अपनी आवश्यकतानुसार अपना विस्तार फैलाती है किंतु मनुष्य के गति का विस्तार भौतिक ,आध्यात्मिक, एवं बुद्धि विकास की ओर गतिमान होता है ! मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति कभी नहीं होती ! वह गतिशील होता है ! आज भौतिक सुख की लालसा से बुद्धि की गति का वेग प्रचंड हो गया है ! प्रकृति हिल गई है !
मानाकि उन्नति करना जीवन का मूलमंत्र है ! ( किंतु प्रकृति अपना रौद्र रुप दिखा रही है उसका क्या ?)
विकास और उन्नति की दौड़ में मन(आध्यात्म )एवं मष्तिष्क का तालमेल होना चाहिए !
उन्नति के लिए गति इतनी तीव्र भी ना हो कि वह अभिशाप बन जाये !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
"कितना भी कठिन हो राह मगर न कभी पीछे मुड़ते हैं,
पा लेते हैं कामयाबी को,
जो वक्त मुताबिक ढलते हैं
जीवन की कामयाबी के लिए वक्त का बहुत महत्व है जो लोग हर कार्य वक्त के मुताबिक करते हैं वो अवश्य अपनी मंजिल पानो में कामयाब हो जाते हैं अगर वेवक्त आप जितना मर्जी भी प्रयत्न करें, सही मंजिल नहीं मिल पाती इसलिए इंसान को निरंतर मेहनत करनी चाहिए ताकी अपने लक्ष्य को पाने में असानी रहे,
देखा जाए मानव जीवन हमें शरीर व आत्मा कि उन्नति के लिए मिला है इन दोंनो की उन्नति होने पर ही हम अपनी समाजिक एंव लौकिक उन्नति कर सकते हैं,
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि जीवन में गति से उन्नति का महत्व क्या है,
मेरा मानना है कि आगे बढ़ना निरंतर उपर उठने की चेष्ठा करना एक इंसानियत फर्ज है
और आगे बढ़ते रहने के लिए बराबर प्रयास करते रहना जरुरी है,
आज की जरूरत पूरी करके चुप वैठे रहना अच्छा नहीं
जो लोग उन्नत् स्वभाव के होते हैं उन्हें कहीं न कहीं से आगे बढ़ने की सहायता प्राप्त होती रहती है क्योंकी उन के मन में आगे बढ़ने की जिज्ञासा लगातार बनी रहती है,
मेरा मानना है कि उन्नति करना अपने जीवन का मूल मंत्र बना लेना चाहिए इसके लिए ज्ञान को आगे बढ़ाते रहना शरीर को स्वस्थ रखना व अपने कार्य क्षमता को बढ़ावा देना जरूरी हो जाता है,
यही नहीं जीवन की उन्नति के लिए मनुष्य को विद्दवानों व सच्चरित्र लोगों की संगति करनी चाहिए क्योंकी उन्नति करवा ही जीवन का मूल मंत्र कहा गया है,
देखा जाए जिंदगी का संघर्ष ही जीने की ताकत देता है व जीवन की संतुष्टि के लिए मेहनत और संघर्ष बहुत जरूरी है, इंसान कुछ भी कर ले लेकिन बिना संघर्ष कुछ भी हासिल नहीं हो सकता क्योंकी जीवन का सबसे मुल्वान सच संघर्ष ही है हमें इससे बचने की कोशीश नहीं करनी चाहिए,
जीवन में गति से उन्नति वोही कर सकता है जो अपने आत्म बल व वुद्दी को तीव्र गति से बढाता है तथा अपने अनुभव को बढावा देता है और अपने आप में भरोसा रखता है अपने को अशक्त एंव असहाय नहीं मानता है
याद रखें शक्ति का स्रोत साधनों मे़ नहीं भावनों में ही होता है,
आखिरकार यही कहुंगा अगर आप की आकांक्षाएं आगे बढ़ने के लिए व्यंग हो रही हैं व उन्नति करने की तीव्र इच्छांए जाग रही हैं तो विश्वास रखिये साधन आपको प्राप्त होकर रहेंगे परंतु उन्नति के लिए जीवन मे अनुशासन भी जरूरी है इसलिए स्वंय का स्वंय पर शासन रखिए व स्वंय पर विश्वास रख कर हर कार्य किजिए आप जीवन में गति से उन्नति पाएंगे जिससे आपका हर क्षेत्र में गुणगान होगा जिससे आपका आदर प्रेम भाव बना रहेगा यही उन्नति का बहुत वड़़ा पुरस्कार है,
सच कहा है,
पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को,
उनके मुकदर के सफेद पन्ने कभी कोरे नहीं होते।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी बिल्कुल सही बात है। "गति"ही जीवन का पर्याय है।स्वाभाविक है, कि गति होगी तो प्रगति और उन्नति भी होगी। नदी में निरंतरता एवं गति की विशेषता है,तो उसका प्रवाह,जीवंतता,पावनता,चंचलता और लालित्य से युक्त होगा,वरना अवरूद्ध सरिता का अस्तित्व जल के रूकने से बदबू और गंदगी से भरा प्रदूषण,बदसूरती और त्याज्य नदी का अहसास जगाएगा।ऐसा ही जीवन भी है। चैतन्य व्यक्तित्व गति की देन है। वैचारिक सोच और चिंतन बौद्धिक विकास में सहायक है। प्रखर और ओजस्वी व्यक्तित्व गतिमय सोच का सुफल है।ऐसे लोग ही लोकप्रिय हो जाते हैं। वाचन की गत्यात्मकता मधुरता और स्पष्ट बोललने की ओजस्विता जगाती है।सफल वक्ता को सभी सुनना चाहते हैं, गतिशील रहकर ही, समाज सेवक परहितार्थ काम करके,समाज की मुख्यधारा से जुड़ता है। इसके ठीक विपरीत,तटस्थता और रूक जाने की आदत से जीवन दूभर होने लगता है।
-"आलस्यं हि मूर्खाणां शरीरस्थो महारिपु" ऐसे ही बैठे छालों के लिये कहा गया है। उदासीनता, विषाद,नकारात्मकता और अवसाद का जीवन में आना मनुष्य को मृतप्राय दशा में लाकर छोड़ देता है। प्रकृति की ओर देखें, सीखें...यही सबसे बड़ी गुरू है,जोकि हमें अहर्निश गतिशील रहने की शिक्षा देती है। बीज का अंकुरित होना, क्रमानुसार शनै:शनै: पौधा बनना,पल्लवित,पुष्पित,फलित और सुरभित होना,मुरझाना,धूल धूसरित होना,फिर बीज बनकर उगना गति,प्रगति और खुशनुमा परिस्थिति को दर्शाता है।
स्पष्ट है,कि पृथ्वी का घूमना,वायु का चलते रहना,सांसों का आवागमन,धमनियों में रक्त का प्रवाह सभी तो गति को अपनाता है।
अंततः "गति ही जीवन है।"
- डा.अंजु लता सिंह
दिल्ली
हमारे जीवन में उन्नति के लिए हमारा परिश्रम करना बहुत ही आवश्यक है। बिना परिश्रम की हम अपने जीवन में उन्नति नहीं कर सकते हैं। उन्नति के रास्ते तभी खुलेंगे जब हम पुरुषार्थ जीवीअर्थात मेहनत और गति को महत्व देंगे। इसलिए उन्नति के लिए गति का होना बहुत ही आवश्यक है। अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल करने का एकमात्र रास्ता गति है। केवल सपने देखने से प्रगति नहीं हो सकती, बल्कि उसके लिए हमें कठिन परिश्रम करना होगा। यह भी कहा गया कि एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों इस दीए में तेल से भीगी हुई बात ही तो है आग जलाने के लिए माचिस तो चाहिए। सफल होना है तो हमें कर्म करना होगा। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो वर्तमान समय में देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की गति का ही कमाल है कि देश में हर क्षेत्र में प्रगति हो रही है। कोरोना काल में ही देखा जाए तो भारत एक ऐसा देश निकला जो कोविड-19 का इंजेक्शन बनाने में सफल हुआ और आज पूरी दुनिया इस पैक चीन को भारत से मंगवाने का काम कर रहे हैं। किसी भी सफलता और विकास के लिए प्रगति के लिए गति आवश्यक है। आप अपने देश के किसानों के बात को ही ले ली जाए आज के समय इतना विकसित हो गया है कि किसानों ने वैज्ञानिक ढंग से खेती करना प्रारंभ कर दिया है। तब से हम खदान में आत्मनिर्भर हुए और अच्छा उत्पादन कर रहे हैं किसान जैविक खादों का अधिक से अधिक प्रयोग कर कम लागत में अच्छी उत्पादकता लेकर अपने आमदनी बढ़ाकर आर्थिक स्थिति को मजबूत करें तभी किसान का विकास होगा और देश उन्नति करेगा। यह बातें डीएम चंद्रपाल सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्म दिवस पर आयोजित सम्मान समारोह में कही थी।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कैसे सवाल करते हैं साहब! गति है तो उन्नति है। गति के बिना उन्नति का कोई अर्थ नहीं है। यदि किसी पहिए की गति रुक जाएगी तो पहिए का गति के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। जिंदगी भी एक पहिया है उस जीवन रूपी पहिए में यदि गति नहीं होगी तो कोई काम नहीं होगा। कोई हलचल नहीं होगी। सब कुछ ठहर जाएगा अर्थात् सब कुछ समाप्त। उन्नति तो बहुत बाद की बात है सबसे पहले तो गति के बिना दिनचर्या ही रुक जाएगी। जितनी गतिशीलता के साथ कार्य होगा उतनी ही उन्नति होगी। दुनिया में जितने भी बड़े-बड़े कार्य, बड़ी-बड़ी मशीनें चल रही हैं, बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, कारखाने जो कुछ भी दुनिया में उन्नति का कारण है वह गतिशीलता के कारण है।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
जीवन सदैव मनुष्य की उन्नति के लिए बना है विनाश और अवनति के लिए नहीं। जीवन में गति से तात्पर्य भी यही है कि जैसे- जैसे हम बड़े होते हैं प्रायः गतिमान ही रहते हैं आगे ही बढ़ते रहते हैं; पर कब?? जब भौतिक जगत के परिवेश में सामाजिकता व अध्यात्म का सही जुड़ाव हो, साथ ही तदजन्य परिवेश में मानव शरीर में आत्मा की शुचिता हो और बुद्धि के प्रखरता हो तथा मन ऊर्जावान व संयमित हो। तब तीनों के उचित तालमेल से ही हम उन्नति कर पाएंगे अन्यथा अवनति के गर्त में गिरते जाएंगे। यथा मन मस्तिष्क द्वारा रोड पर गति के अत्यधिक होने से एक्सीडेंट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए गति में मन, बुद्धि ,मस्तिष्क और शरीर की क्रियाओं का उचित सामंजस्य होने से ही उन्नति का महत्व अवश्य ही दर्शनीय होता है।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
प्रकृति में जड़ दिखाई देने वाले पदार्थ दिन रात आगे बढ़ने में लगे हैं तो चैतन्य जीव चाहता है कि उसकी उन्नति गति से हो l यही ईश्वर प्रदत्त नियम और व्यक्ति की महत्वआकांक्षाएं होती हैं लेकिन
ध्यान रहे हमें अपनी सम्पूर्ण अपूर्णता से ऊपर उठकर ही गतिशील होना है, लेकिन यह भी ध्यान रखना है -
सकल पदार्थ हैं जग माहि,
कर्महीन नर पावत नाहि l
आज की जरूरतें पूरा करके शांत नहीं बैठना चाहिए l यद्यपि उन्नति की गति हमारी अंतःस्थ चेतना नियंत्रित होती है l चेतना जितनी प्रबल होगी, उन्नति की गति उतनी तीव्र होगी l
"शक्ति का स्रोत साधनों में नहीं अपितु भावना में होता है l "पुरुषार्थ और कर्म के प्रतिसमर्पण हमारी उन्नति की गति को रेगुलेट करते हैं l
जो समय के साथ गतिमान रहते हैं उन्नति /सफलता उनके कदमों में होती है l
हमें अपनी कार्य सिद्धि में समायोजन का प्रयास नहीं करना चाहिए अन्यथा लक्ष्य प्राप्ति में गति तेज होगी लेकिन लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग अवरुद्ध हो जायेगा, ऐसी गतिशीलता किस काम की l
गतिशीलता को रेगुलेट कीजिए l अनुशासन +समय का सदुपयोग +लक्ष्य की दिशा -दशा में गतिशील रहें l
आस्था एक सैद्धान्तिक शब्द है लेकिन यह कर्म के प्रति व्यवहार में आ जाती है तो उन्नति की गति तो बढ़ ही जाती है और वह लगन भी बन जाती है और लगन लगा हुआ मनुष्य गतिशील ही नहीं रहता अपितु दौड़ने लगता है l
चलते चलते --
जिंदगी में उन्नति करना हो तो
खुद पर एतबार रखना.....
कामयाबी मिलती ही जायेगी
एक दिन.....
खुद को गतिशील बनाये रखना l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जीवन, गति, उन्नति और महत्व मात्र शब्द हैं। जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। चूंकि उन्नति और गति जीवन रूपी नदी के वह किनारे हैं जो कभी नहीं मिलते।
उल्लेखनीय है कि उन्नति अर्थात विकास "भ्रष्टाचार" की दीमक से ग्रस्त हो चुका है। जिसका मार्ग भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े मगरमच्छ रोके रखते हैं और उन मगरमच्छों का गहरा संबंध "संविधान" के तथाकथित सशक्त चारों स्तम्भों से होता है। जिनमें विकास का जीवन एक के बाद एक में दम तोड़ देता है। जिसका संबंध सर्वश्रेष्ठ भ्रष्टाचारियों के प्रर्दशन से जीवन सफलता प्राप्त करता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
" मेरी दृष्टि में " आलस्य त्याग के गति का मार्ग अपनाना होगा । तभी कर्म से उन्नति सम्भव होगी। यही गति जीवन का आधार है । वरन् प्राकृतिक आगे नहीं बढ़ सकती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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