रावी की स्मृति में लघुकथा उत्सव : विधार्थी जीवन

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा इस बार  " लघुकथा उत्सव "  में  " विधार्थी जीवन " विषय को फेसबुक पर रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लघुकथाकारों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल  अच्छी व सार्थक लघुकथाओं के लघुकथाकारों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया है । सम्मान प्रसिद्ध लघुकथाकार रावी पर रखा गया है । 
रावी का मूल नाम रामप्रसाद विधार्थी है । इन का जन्म 16 दिसम्बर 1911 को  पहाडी कस्बे कुलपहाड़ ( हमीरपुर ) में हुआ है ।  ये आगरा में रहते थे । 1947 में लघुकथा लिखना शुरू किया । इन की प्रथम लघुकथा " शीशम का खूँटा "  है ।  इन का प्रथम लघुकथा संग्रह " मेरे कथा गुरु का कहना है " 1958 में प्रकाशित हुआ है । इसके अतिरिक्त 1984 में " रावी की परवर्ती लघुकथाएँ " प्रकाशित हुई है । इन्होंने लघुकथा के अतिरिक्त एकांकी नाटक , कहानी , उपन्यास , निबंध आदि की तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । परन्तु लघुकथा के रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध हुए है । इन का मृत्यु 09 सितम्बर 1994 में आगरा के निकट सिकन्दरा में हुई है । अब सम्मान के साथ लघुकथा पेश हैं : -
                     विद्यार्थी जीवन 
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आनंद जो कक्षा सात में था उसकी माता जी का देहांत हो गया था उसके पिता के गरीब मजदूर थे रिश्तेदारों के कहने पर आनंद के पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था आनंद की नई मां का व्यवहार आनंद के प्रति दिल खराब हो रहा था परंतु आनंद शांति के साथ पढ़ाई में लगा रहता उसने प्रथम श्रेणी में कक्षा 12 पास कर के बी 0ए 0में दाखिला ले लिया था आनंद के पिता उसे पहले जैसा ही प्यार करते थे परंतु वह पिता को कुछ भी बता कर उनकी चिंता नहीं बढ़ाना चाहता था परिवार में काफी दिनों बाद भी कोई दूसरा बच्चा नहीं था आनंद की सौतेली मां बीमार रहने लगी थी आनंद बहुत ही अच्छे स्वभाव का था बीमारी के समय उसने अपनी सौतेली मां की बहुत अधिक सेवा की यह देख कर सौतेली मां का व्यवहार उसके प्रति धीरे-धीरे बदलने लगा था आनंद ने बी0 ए0 में भी बहुत अधिक मेहनत की थी और उसने अपना विद्यालय टॉप किया था. धीरे-धीरे धीरे-धीरे परिवार में सब कुछ सामान्य हो गया था और आनंद की मां उसे प्यार करने लगी थी अब वह पूरी लगन के साथ सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था पहले वर्ष मैं ही उसने यह परीक्षा पास कर ली. उसे उप जिलाधिकारी के पद पर पोस्टिंग मिली आनंद की मां और पिता दोनों बहुत खुश थे और उन्होंने मिलकर पूरे मोहल्ले में मिठाइयां बांटी थी वास्तव मेंआनंद के संयमित विद्यार्थी जीवन की तपस्या फलीभूत हुई थी ....!

 - डॉ प्रमोद कुमार प्रेम
  नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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कल्याण
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कल्याणी देवी बसंतपुर की पार्षद थी। उनके पतिदेव अरुण कुमार जी बहुत बड़े वकील थे। 
आज सुबह से बहुत व्यस्त नजर आ रही थी क्योंकि   9 दिन  कन्या भोजन भी करना करवाना था।
एक बालिका विद्यालय में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था ।
सुबह से घर में फोटोग्राफरों को बुलाया  था ।उनकी बेटी रोशनी  ने 12वीं  की परीक्षा टॉप किया था ,और आगे पढ़ना  चाहती थीं।
  उन्होंने उनके बेटे राहुल जिसका पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था। उसको अपने मैनेजमेंट कोटा से एमबीए कर रही
थी।
कल्याणी देवी ने अपने नौकर को डांटते हुए कहा- "जल्दी से 9 कन्याएं लेकर आओ।"
   कन्याओं को भोजन के लिए बैठाया और प्लेट मैं चना ,पूरी, हलवा परोसा। माथे पर चुन्नी बांधी गई ।टीका लगाया गया । कल्याणी देवी ने फोटोग्राफर से कहा" मेरी फोटो अच्छे से खींचना मेरा चेहरा स्पष्ट दिखना चाहिए मैं पैर छूने का बस नाटक कर रही हूं  और कल अखबार के मुख्य पृष्ठ पर मेरी यही फोटो होनी चाहिए।"
फिर कल्याणी देवी नौकर से कहा " तुम घर पर यह सब संभाल लो अब  मैं स्कूल में जाकर वृक्षारोपण के कार्यक्रम में जाती हूं।" फोटोग्राफर अनिल से कहा कि देखो मेरी वहां पर फोटो अच्छे से खींचना  वह फोटो अखबार के मुख्य पृष्ठ पर आनी चाहिए।
अनिल ने कहा जी मैडम ऐसा ही होगा।
कल्याणी देवी अच्छे से तैयार होकर स्कूल गई और वहां पर स्कूल के प्रिंसिपल को डांटते हुए कहा " यह गड्ढा और पेड़ पहले से तैयार रखना चाहिए ना मैं बस इसे देख कर फोटो खिंचा लेती अब जल्दी करो।"
एक लगाए हुए पेड़ के पास जाकर फोटो खींच आने लगी और उन्होंने कहा कि इसकी फोटो ले लो मैंने यह पेड़ लगाया है ।
इसके बाद वह मंच पर जाकर बेटियों को लेकर उनका भाषण शुरू हुआ।
सभागृह खचाखच भरा था ।वहां पर बहुत सारी लड़कियां और उनके माता-पिता उपस्थित थे। कल्याणी देवी का भाषण शुरू हुआ बेटियों को पढ़ाना चाहिए ।आज बेटियां किसी से कम नहीं है। उन्हें जो भी पढ़ना है मैं उनकी हर संभव मदद करने के लिए तैयार हूं।   उसके लिए मेरे दरवाजे खुले हैं। आप आप कभी भी मेरे घर आ सकते हैं ।मैं उन बालिकाओं के लिए ₹50,000 स्कूल को दान देती हूं। जो बालिकाएं  आगे पढ़ना चाहते हैं ,उनको उनकी योग्यता के अनुरूप छात्रवृत्ति भी दी जाए।
इस छात्रवृत्ति के कारण लड़कियां जो चाहे उस क्षेत्र में पढ़कर अपना नाम बना सकती हैं।
सभागृह में जोर-जोर से ताली बजने लगी और कल्याणी देवी की जय हो कल्याणी देवी आप महान हैं ।आप बालिकाओं के बारे में कितना सोचती हैं ।सभी लोग कहने लगे यह महिला कितनी उदार है। हम सबका कितना दुख दर्द समझती है ।यही महिलाओं की रक्षक है, यह सब सुनकर कल्याणी देवी फूली नहीं समा रही थी। घर बड़ी खुशी - खुशी आई और उन्होंने अपने भाषण की तारीफ दूसरे दिन अखबार के मुख्य पृष्ठ पर देखा कि उन्हीं की तारीफों से पूरा अखबार भरा था। उन्होंने अपनी बेटी से कहा -आज तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे हैं बहुत ही खानदानी लोग हैं। मुंबई के माने हुए उद्योगपति हैं। वहां पर तुम्हारा रिश्ता तुम्हारे पापा ने तय कर दिया है।
रोशनी उन्हें टकटकी लगाए अपनी मां को और अखबार को देखती ही रह गई.....।

- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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परिणाम
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"पगली ये तुम क्या करने जा रही थी,माँ बापू के बारे में नहीं सोचा,क्या हाल होता उनका,?
"दीदी क्या  मुँह दिखाऊँगी .....? कितनी उम्मीदें थी उनको....!
"पगली तुम ने पूरी महनत के साथ पढ़ाई की,प्रतियोगिता के युग में सफलता के शीर्ष पर सब पहुँचना चाहते है ,पर ज़रूरी नहीं सफल हो ही जाए जिन्दगी की राहें अनन्त है ।
और अवसर भी बहुत मिलेंगे ।जिन पर आगे बढा जा सकता है ।
निराश ना हो ।धैर्य और परिश्रम के साथ आगे बढ़ो।और पराई करो ,आने वाले समय में सफलता ज़रूर मिलेगी।जिसके तुमने सपने देखें थे । 
जीवन बार बार नहीं मिलेगा।प्रकृति हमें जीवन प्रदान करती है ,जीवन जीने के लिएँ ।कुछ निश्चित समय के लिए ।उसको समाप्त करना प्रकृति के नियम के विरूद्ध है"।
रीता ने उसे समझाते हुए कहां 
"बेटी सविता "!माँ बापू की आवाज़ सुन सिसकती सविता माँ से लिपट गयी ।"बेटी रीता ने फ़ोन कर हमे बताया है ,बेटी हम उन माँ,
बाप में से नहीं है जो अपने बच्चों को समझ नहीं पाते ,और उनको ग़लत ठहरा कर उन का साथ नहीं दे पाते ,।उम्मीदों को उन पर थोपतें है ।
"हाँबेटी निराशा छोड़ दो "हम तुम्हारे साथ है"। दुबारा महनत से पढ़ना !
मां ने उसको बाहों में भरते हुए कहां 
उसके निराश मन को जैसे दो ओस की बूँदें मिल गयी हो।और उसकी सारी निराशा को धो दिया हो!
"माँ ,बाबू जी आप का साथ है तो मैं धैर्य और परिश्रम के साथ आगे बढ़ूँगी ।मेरे सपने ज़रूर पूरे होगे "।

- बबिता कंसल 
दिल्ली
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असफलता
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राजेश के ऑफिस से घर लौटते ही,अनामिका ने उससे बेटे आयुष्मान की शिकायतों की झड़ी सी लगा दी।लो और सर पर चढ़ा लो अपने इस लाडले को।आज ये वार्षिक परीक्षा में, अपने मुख्य विषय का पर्चा ही बिगाड़ आया है।
जिसके कारण अब मुझे तो इसका 12वी पास होना ही मुश्किल लग रहा है।और यदि यह कम अंको के साथ पास हो भी गया।तो अब आप ही बताओ इसे इतने कम अंको के साथ भला कौन सा अच्छा कॉलेज एडमिशन देगा।
शिकायत के दौरान अनामिका का चहरा ग़ुस्से से तमतमाया हुआ था ।और आयुष्मान भी एकदम उदास व खामोश ,जैसे किसी गहरे अवसाद में डूबता चला जा रहा था।
आयुष्मान का इतना निश्तेज चहरा, राजेश ने आज से पहले कभी नही देखा था।उसे देख राजेश का मन किसी अनहोनी की आशंका से भर गया।और वह अपनी पत्नी को चुप कराते हुए,आयुष्मान से बोला,बेटा सुन,जिंदगी की कोई परीक्षा,
कभी तुम्हारी योग्यता का सही सही आकलन नही कर सकती।तभी तो हमारे देश का इतिहास ऐसे अनगिनत उदाहरणों से भरा है।
जो अपने अध्ययन काल मे भी कुछ खास न कर सके।पर बाद में उनकी उपलब्धि पर पूरे देश को नाज हुआ।इसलिये बेटा हमे जीवन की हर परीक्षा का डट कर सामना करना चाहिये।फिर उसका परिणाम चाहे जो हो।
क्योंकि किसी एक परीक्षा में असफल हो जाने से, इस जीवन की वास्तविक हार कभी नही होती।
अपने पिता की बात सुन, आयुष्मान का चेहरा अब धीरे धीरे सामान्य होता चला जा रहा था।

- अविनाश अग्निहोत्री
         इंदौर - मध्यप्रदेश
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विद्यार्थी जीवन 
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रमन ने अपने पुत्र से कहा- बहुत कठिन समय होता है जब इंसान अपने जीवन में कष्टों को सहन कर आगे बढ़ता है। वो सुबह शाम का खाना तक भूल जाता है। उसे आराम और खाने की चिंता नहीं अपितु काम ही काम नजर आता है।
रमलू ने पूछा -ऐसा कौन सा जीवन होता है जिसमें इंसान को कोई फुर्सत नहीं होती। तपाक से रमन ने उत्तर दिया वह विद्यार्थी जीवन है।
विद्यार्थी जीवन कठिन तपस्या है। लोहे की तपती कढ़ाई में उबलते तेल में बैठने जैसी स्थिति स्थिति होती है। कभी चैन नहीं मिलता। यदि वह खरा उतरता है तो जीवन सफल और यदि खरा नहीं उतरता तो उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। इसलिए विद्यार्थी जीवन सबसे कठिन है।  रमलू ने अपने पिता के पैर छूते हुए कहा कि मैं विद्यार्थी जीवन पर खरा उतरूंगा। रमन ने विदेश में जा रहे पुत्र को विदा किया।

- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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प्रायश्चित
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सुनंदा घर आई तो पुलकित घर आ गया था । जल्दी आया देखकर पूछने लगी ......
"क्या हुआ"  ? 
"माॅम  टीचर ने आपको अभी के अभी स्कूल बुलाया है।" ड्राइवर से समान निकाल कर रखने को कहा....... "चलो फिर बाबा  के स्कूल चलो."..........
स्कूल मे टीचर ने बताया पुलकित ने चोरी की है ,सुनकर सुनंदा के पांव तले जमीन खिसक गई ।
चांदी की चम्मच हाथ मे लेकर पैदा होने वाला बेटा चोरी कैसे कर सकता है ये बात सुनन्दा की समझ के ऊपर थी।घर पहूंच कर बिना सोचे समझे अपने नौ वर्ष के बेटे पर बरस पड़ी l
झन्नाटे दार थप्पड़ पड़ते ही पुलकित रो पड़ा "माॅम  वट आर यू डूईग.".....
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई  स्कूल में चोरी करने की"?
"मैने कोई चोरी नही की...... आप होमवर्क नही करवा पा रही थी..... तो मैने केवल नोटस की कापी चुराई....
। रोते हुए  बोला
"आपने मुझे क्यो मारा आप भी तो चोरी करती हैं"।
 पुलकित को मारने दौड़ती हुई सुनन्दा दहाड़ी "किसने कहा तुमसे मैने क्या चुराया "?
रोते हुये पुलकित बोला उस दिन जब मै शोभित के घर खेलने गया था तो उसकी मम्मी अंकल से कह रही थी कि "सुनन्दा जी भी तो आंगन वाड़ी से गरीब औरतो और बच्चो का कितना समान आफिस से चुरा चुरा कर लाती है आप ही ज्यादा राम बनते रहते हो "। सुनंदा
 सन्न रह गई थी , सर पकड़ कर  अपने अाप को कोस रही थी  ।

- अपर्णा गुप्ता
लखनऊ -उत्तर प्रदेश
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प्रश्न
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मैं कॉलेज में  सबसे ऊपर की मंजिल के लंबे कॉरिडोर में अण्ने विभाग की ओर जा रही थी तो देखा एक प्रोफेसर ज़ोर ज़ोर से किसी लड़की को डांट रही है। लड़की छुई मुई सी खडी़ थी। गोरा रंग, पोनी टेल, सिम्पल सा सूट और भोला सा चेहरा।
"क्या हुआ," मैंने पूछा।
मैडम क्रोध से चिल्लाई, "यह ख़ाली लेक्चर हाॅल के बाहर पहरा दे रही थी और अंदर एक लड़का लड़की चिपटा चिपटी कर रहे थे। वो कमबख्त तो भाग गए हैं। अब यह उनकी क्लास और नाम बता नहीं रही।"
उन दिनों कॉलेज का चार्ज मेरे पास था। दोनो को मैंने ऑफिस में बुला लिया। लड़की अभी बीए प्रथम वर्ष में ही आई थी। सीमा नाम था। बार बार दोहरा रही थी कि वह उनको नहीं जानती। थोड़ा समझा बुझा कर मैंने उसे जाने दिया। तो मैडम कहने लगी,"मैडम आप नहीं जानती यह दिखती भोली है...।" 
खैर बात आई गई हो गई।
फर्स्ट ईयर की वेलकम पार्टी में उसे फिर से देखा। स्टेज पर हाथ में डायरी लिए स्वरचित कविताएं सुनाते हुए। बाद में मैंने उसे अपने पास बुलाया था। "बेटा तुम तो बहुत अच्छा लिखती हो पर सब इतना उदास क्यों। खुशी के गीत गाया करो। यू आर सो यंग।"
एक दिन मैं क्लास के बाद स्टाफ रूम में आई तो वही मैडम हाथ नचा कर कुछ बोल रही थी। मुझे देखते ही कहने लगीं,"अरे मैडम उसी सीमा के किस्से सुना रही हूं। अाप को बड़ी भोली लगती है ना। आजकल लड़के लड़कियां उसे चने के झाड़ पे चढ़ा कर खूब यूज कर रहे हैं। कभी किसी ग्रुप के साथ बैठी होती है कभी किसी। क्लास में आती नहीं। मै तो इसके लेक्चर शॉर्ट कर दूंगी।"
 ऐसे ही सैशन बीत चला था। फेयरवेल पार्टी वाले दिन देखा सीनियर्स उसे स्टेज पर  बार बार चढ़ा मज़ाक बना रहे थे। वैसे भी इस दिन विद्यार्थियों को कंट्रोल करना काफ़ी कठिन हो जाता है।
      ग्रीष्मावकाश के बाद आज कॉलेज खुला है। नयी एडमिशन की तैयारी चल रही है। स्टाफ रूम में आई तो देखा कि सबके चेहरों पर उदासी थी।
"वह सीमा लड़की थी ना फर्स्ट ईयर में! उसने परसों  सुसाइड कर लिया।  परसों ही रिजल्ट निकला था। फेल हो गई थी। पता चला है कि मां पागल है और बाप एक दर्जे का शराबी। कोई भार्इ बहन भी नही। बस गेहूं में डालने वाली गोलियां खा लीं।"एक प्रोफेसर ने बताया।
मै सन्न थी। बेचारी लड़की । मुझे समझ जाना चाहिए था।  अंतरंगता की तलाश में भटक गई। उसकी मनोदशा, उसकी मानसिकता को कोई समझ नहीं पाया। किसी ने कोशिश ही नहीं की। ना उसके सहपाठियों ने ना हम अध्यापकों ने।
 क्या अध्यापन केवल किताबों तक ही सीमित है? क्या उसे बुला कर काउंसलिंग नहीं करनी चाहिए थी?
यह प्रश्न मुझे जीवन भर झकझोरते रहेंगे।

- डा. नीलिमा डोगरा
नंगल - पंजाब
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लम्बी रेस का घोड़ा 
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                स्कूल में दसवीं कक्षा की विदायगी पार्टी में मुख्य अतिथि शहर के काॅलेज के प्रिंसीपल मनोहर लाल को बुलाया  गया। उन के माइक पर बोलने से पहले उन के व्यक्तितव के बहुत कसीदे पढ़े गए। उन को सुन कर मनोहर लाल की आंखों में आंसू छलक आये। 
                    विद्यार्थियों को संबोधन करने से पहले उन्होंने  अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं भी इसी सरकारी स्कूल का विद्यार्थी रहा हूँ। जब मैं इस स्कूल में विद्यार्थी था तो किसी ने  भी मेरी प्रतिभा पहचानने की बजाय मेरी सूरत,मेरे कपडे और मेरे परिवार को अहमियत दी। सभी विद्यार्थी मुझे चिढ़ाते कि मेरा नाम मनोहर लाल नहीं, कालू राम या दाँतूँ राम होना चाहिए था। मेरे काले रंग और ऊँचे दाँतों के कारण मेरा मजाक उड़ाते।मैं परेशान होकर बुरी तरह टूट गया। मैं गुमसुम रहने लगा ।जब यह सब बातें मेरे घर वालों को पता चलीं तो उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। मेरे पिता जी ने एक बात समझाई, "बेटा तुम अपनी सीरत से सभी को मात दो।सीरत लम्बी रेस का घोड़ा है। शक्ल-सूरत तो अपने वश में नहीं, लेकिन सीरत खुद को बनानी पड़ती है।विद्यार्थी जीवन में ही ज्ञान को आत्मसात् करने का स्वर्ण अवसर होता है। "
           मैंने उसी दिन जागती आँखों से सपना देखा और दिन रात एक कर दिया। बोर्ड की परीक्षा में राज्य में प्रथम रहा। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज सभी विद्यार्थियों को मैं  यही कहना चाहता हूँ कि विद्यार्थी जीवन तपस्या का समय होता है। अपने अंदर की प्रतिभा पहचानो। अपने साथियों की शक्ल-सूरत की बजाये उनकी सीरत को अहमियत दो और हौसला बढ़ाओ।पता नहीं आप को इन में से कितने मनोहर लाल मिल जाएं गे। उनकी इस बात पर सभी की तालियों की गूंज समर्थन की मोहर लगा रही थी।

- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
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प्रेरणा स्त्रोत 
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रिद्धि  व  उसकी कक्षा के विद्यार्थियों को आज राज्यपाल के हाथों से जागरूक विद्यार्थी का पुरस्कार दिया जा रहा था। सभी लोग बहुत खुश थे। विशेषकर रिद्धि की अध्यापिका जिन्होंने रिद्धि के इस सामाजिक कार्य में न सिर्फ  सहयोग दिया वरन पूरा  मार्गदर्शन भी किया।
 दरअसल रिद्धि हर दिन जब घर से विद्यालय जाती थी तो अपनी मां से सड़क के गड्ढों के बारे में शिकायत करते हुए कहती थी कि कोई कुछ करता क्यों नहीं और जब सामाजिक विज्ञान की अध्यापिका ने सभी विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट के तहत एक-एक सामाजिक कार्य करने के लिए कहा तो रिद्धि ने तुरंत ही अध्यापिका से कहा कि मैं इन सड़क के गड्ढों को भरने का कार्य करना चाहती हूं। लेकिन यह मैं अकेले कैसे कर सकती हूं ।
इसमें  कौन मेरी मदद करेगा । अध्यापिका रिद्धि के प्रोजेक्ट का विषय सुन  बहुत खुश हुई और कहा कि सारे विद्यार्थी मिलकर इसी सामाजिक कार्य को पूरा करेंगे और  मैं नगरपालिका से भी इस बाबत  बात करूंगी ताकि वे लोग आप सभी विद्यार्थियों के साथ मिलकर इस कार्य को अंजाम दे सके और आज परिणाम सामने था।
सभी विद्यार्थियों को , उन अध्यापिका को व विद्यालय को खूब वाहवाही मिली। राज्यपाल महोदय  ने कहा कि आपका विद्यालय  बाकी सभी विद्यालयों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना है। और रिद्धि को इस सकारात्मक कदम को उठाने के लिए बहुत-बहुत बधाई दी।
और भविष्य में भी इसे बरकरार रखने की प्रेरणा दी।

डाॅ शैलजा एन भट्टड़
- बंगलौर - कर्नाटक
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रणनीतिज्ञ
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"सक्सेना मैम... मैम... सक्सेना मैम..."
आश्चर्य हुआ उसे कि देश से इतनी दूर जर्सी के सड़क पर उसे कौन आवाज दे सकता है फिर भी मुड़कर देखी तो एक नौजवान दौड़ता हुआ उसकी ओर आता दिखा और वो करीब आकर उसके चरण-स्पर्श कर बोला "आप मुझे पहचान नहीं सकीं न ?"
"नहीं! नहीं पहचान सकी... आप कौन हैं और मुझे कैसे पहचानते हैं ?"
"बहुत पुरानी बात हो गयी.. दो साल मुझे विद्यालय में आये हो गये थे... सभी सेक्शन की शिक्षिकाएं मुझसे त्रस्त हो गई थीं.. क्योंकि मैं बेहद उधमी बच्चा था। आख़िरकार मुझे सुधारने के लिए आपके सेक्शन में भेजा गया...। आपने मुझे एक महीना उधम मचाने दिया बिना रोक-टोक के।एक महीना कुर्सी से बाँध कर रखा ,कक्षा शुरू होने से लेकर कक्षा अंत होने तक...। पूरे एक महीने के बाद जो आज़ादी मिली तो उधम-उत्पात खो गये थे..।
"ओह्ह्ह! कौशल?" चहक उठी सक्सेना मैम..।.

- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
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पढ़ाई
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"बाबाजी,आप सुबह ही नहा धोकर इतनी बड़ी किताब पढ़ने बैठ जाते हैं।कौन सी कक्षा की तैयारी कर रहे हैं आप"? बबलू ने श्रीरामचरितमानस पढ़ रहे बाबाजी से पूछा।
बबलू के इस मासूम सवाल पर बाबाजी मुस्कुराए और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए
बोले, -" बेटा, मैं जीवन के फाइनल एग्जाम की तैयारी कर रहा हूं। जीवन की आपाधापी में इसकी तैयारी ही नहीं कर सका।"
"ठीक है बाबाजी पढ़िए। हमारे सर भी कहते हैं कि सुबह सुबह पढ़ा हुआ जल्दी याद होता है।"
यह कहकर बबलू ने भी अपना बस्ता खोल लिया।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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उसका जवाब
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लॉग डाउन पीरियड में  पूरे समय लेपटॉप और मोबाइल में आंखें गड़ाए रखने के विषय पर सुबह-शाम माँ-बेटे  की नोकझोंक के बाद शुरू हुए स्कूल से पहले दिन लौटे बेटे से माँ ने पूछा - ^आज घर से बाहर निकलकर तुमको बहुत रिलेक्स फील हो रहा होगा?
अच्छा तो लगा मम्मा, पर सच कहूं तो  हेडफोन लगाकर  आपके लेक्चर से घर पर तो मुक्ति मिल जाती थी, पर काश कि स्कूल में मेडम को म्यूट करने के लिए काश कोई बटन होता!!!

- अंजली खेर
भोपाल - मध्यप्रदेश
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         समझदारी
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राहुल हॉस्टल में रहकर विज्ञान स्नातक की पढ़ाई पूरी कर रहा था। वह जानता था कि पापा से रुपए मांगो तो वे उनकी जरूरतों को रोककर  हमेशा एक हजार रुपए ज्यादा ही भेज देते हैं। यह सोचकर उसे जब पुस्तकें खरीदने के लिए दो हजार रुपए की जरूरत पड़ी तो उसने पापा को एक हजार रुपए भेजने के लिए आग्रह किया।
  दूसरे दिन उसने ए.टी.एम. से जब रुपए निकाले तो उसने पाया कि उसके खाते में पापा ने दो हजार रुपए जमा कर दिए हैं। 
        
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
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मेहनत रंग लाती है
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 राजीव शुरू से ही पढ़ने में बहुत तेज था ।गणित में तो हमेशा ही 90 या इससे अधिक अंक आते।  उनकी छोटी सी दुकान थी। दिन-रात पढ़ता रहता था। दुकान पर भी स्कूल से आते ही बैठ जाता। अब वह 12वीं कक्षा में आ गया है। दुकान पर बैठा रहता। वह अपनी कोचिंग से आते ही रात को भी बैठ कर पढ़ता रहता। एक दो बार तो चक्कर खाकर भी गिर गया  देखने में भरे बदन का था। माँ कहती बेटा आराम कर ले दुकान से आ कर कितना थक जाता है। आज उसका परीक्षा परिणाम आने वाला है ।उसने गणित में टॉप किया। माँ के खुशी के कारण आंसू आ गए। कहते हैं मेहनत रंग लाती है।

- अलका जैन आनंदी
मुम्बई - महाराष्ट्र
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अरमानों की सलीब
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मन का स्याह अँधेरा पूरे कमरे में पसर चुका था। एक कोने में पड़ा टेबल लैम्प लगातार जल-बुझ रहा था, ठीक वैसे ही जैसे उसके ख़ामोश ज़र्द चेहरे पर हताशा के गहरे रंग लगातार आ-जा रहे थे।
अचानक उसकी अंगुलियों ने लैम्प के स्वीच से खेलना बंद कर दिया और लैम्प की रौशनी टेबल पर पड़े नोट-पैड पर आ ठहरी। उसने पेन उठाया और लिखना शुरू किया।

प्यारे मम्मी-पापा 
मुझे माफ़ कर दीजिएगा। आपके अरमानों की कसौटी पर मैं खरा नहीं उतर सका। आप जानते थे कि मुझे कभी आइएएस-आइपीएस नहीं बनना था। नौकरी तो मेरी नज़र में महज़ एक जीविका भर थी। मैं तो अपने सपनों के सारे रंग कैनवास पर उतार देना चाहता था। पर अफ़सर बनकर ख़ूब पैसा कमाने की नसीहतें और मम्मी के उलाहनों पर पापा आपकी आँखों से झलकती बेचारगी, यह एहसास कराने के लिए काफ़ी थी कि एक मध्यवर्गीय परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते मुझे ऐसे सपने देखने का हक़ ही नहीं था।
मम्मी! सच कहता हूँ, मैंनें अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। सभी दोस्त-यार सेटल होते गए, भाई ने भी इंजीनियरिंग कर नौकरी पकड़ ली। पर मैं आपके कहने पर लगातार बिना हिम्मत हारे प्रतियोगिता की तैयारी में लगा रहा। पर अब मैं टूट गया हूँ।
लोगों के उलाहने तो फिर भी नज़रंदाज़ कर देता था पर तुम्हारी आँखों में अपने लिए उपेक्षा और निराशा के भाव बर्दाश्त नहीं कर सकता मम्मी। मुझे माफ़ करना। 
पापा! शायद आप मेरी हालत समझ पाएं। मैं जीवन भर अपने कंधों पर नाकामियों का बोझ लेकर नहीं जीना चाहता।
उम्मीद है आप मुझे माफ़ कर देंगे। 
प्यारे भाई! तुम मम्मी-पापा का ख़्याल रखना।
अलविदा।

आपका...

तभी पास रखा मोबाइल बज उठा। "पापा का काॅल। नहीं..नहीं,  मुझे किसी से बात नहीं करना।" 
"पर...आख़िरी बार तो उनसे..." मन के उधेड़बुन में उसने फ़ोन कब रिसीव किया, उसे पता नहीं चला।
"हैलो! मेहुल! अरे ऐसी भी क्या नाराज़गी बेटा जो मुझसे मिले बिना ही हाॅस्टल वापस लौट गए। मम्मी ने फ़िर कुछ कह दिया क्या? उसकी बातों का बुरा मत माना कर बेटा। दिल की बुरी नहीं है वो। बस कभी-कभी दुःखों की कड़वाहट उसकी ज़बान पर ज्यादा ही चढ़ जाती है।"

"...अरे तू कुछ बोलता क्यों नहीं।"

"पापा ...वो..क्या है ..." 

"तू टेंशन में है? अरे घबरा मत। सब ठीक हो जाएगा। बस तू हिम्मत नहीं हारना। वैसे अच्छा ही तो हुआ जो आइएएस नहीं निकला। सारी उम्र सरकार की जी हुजूरी करते बीत जाती। बेटा तेरे दादाजी कहते थे कि कामयाबी शीर्ष पर पहुँचने को नहीं कहते, बल्कि कामयाब तो वो है जो उपलब्ध संसाधनों में भी अपनी ज़िन्दगी बेहतर बना ले। नौकरी की कोई कमी है क्या। आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी। सुन रहा है न...।" 
"जी...पापा..." मेहुल इसके आगे कुछ नहीं बोल पाया। उसने देखा आँखों से झर-झर होती बारिश में नोट पैड पर फैले अवसाद के चिह्न अब धुलने लगे थे। □□

- अमृता सिन्हा
पटना - बिहार
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आवाज
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पवन कोचिंग से रूम में आकर मोबाइल देखा तो पापा का 14 मिस काल । वो समझ गया कि कोचिंग से मेरे टेस्ट के रिजल्ट का मैसेज पापा को मिल गया होगा और वो इसीलिए फोन मिला रहे होंगे । पवन खुद ही पाँच - छ: दिन से अपने टेस्ट को लेकर ही परेशान है । पवन मन ही मन --" आखिर मैं क्या करूँ मैं इतनी तैयारी के साथ टेस्ट देता हूँ फिर भी बैच ऊपर नहीं आता वही तीसरे चौथे बैच में रहता हूँ । एक साल हो गए । अब फिर फी जमा कराना होगा । फिर से लोन लेना होगा पापा को । उनलोगों ने मुझसे बहुत उम्मीदें लगा रखी है और मेरा क्या होगा मुझे खुद मालूम नहीं । "
उसी समय फिर फोन आ गया ----" हैलो , पवन ये क्या हो रहा है ? इस बार तो तुम्हारी रैंक और पीछे चली गई । तुम किसी गलत संगति में तो नहीं पर गए हो ? तुम्हें मैं अकेला कमरा इसीलिए दिला रखा हूँ, जिससे तुम्हें पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो । फिर भी तुम ...?" एक सांस में बोलते जा रहे थे पवन के पापा ---" हाँ तो इस तरह चुप क्यों हो गए । अच्छा चलो ये बताओ कि फी जमा करने की अंतिम तारीख क्या है ? मकान मालिक से कोई परेशानी तो नहीं है ? " 
पवन --" नहीं कोई परेशानी नहीं है । फी जमा करने की अंतिम तारीख मैं कल पता करके बता दुंगा । "
" अच्छा लो मम्मी से बात करो "
" हैलो पवन फोन जल्दी उठा लिया कर बेटा, चिंता हो जाती है । "--पवन की माँ बोली ।
पवन --" जी ठीक है । अच्छा मैं अभी फोन रखता हूँ । ".....कहकर पवन फोन रख दिया ।
पवन सोचने लगा --" अब फी नहीं जमा करूँगा , मगर पापा को क्या कहूं ? मैं उनकी उम्मीद को पूरा नहीं कर पाऊंगा ऐसा लगता है । फिर मैं ..??
 कम से कम मझ पर पैसे तो नहीं खर्च होंगे "
इसी कश्मकश में पवन बैठा रहा खाना खाने भी नहीं गया ।
पंखा देखा और उसमें फंदा लगाकर नीचे स्टूल रख दिया और स्टूल पर चढ़कर फंदा गले में डाल ही रहा था कि --मकान मालकिन आंटी की आवाज सुनाई दी वो अपने बेटे से कह रही थी -- "बेटा गोलू खाना खा लो फिर कहीं जाना " । 
पवन के आँखों के सामने अपनी माँ की तस्वीर आ गई, जो हमेशा कहती है 'तू मेरा संसार है  ।'
फिर सोचा --"मेरे जाने के बाद मम्मी क्या करेगी ?"
आँखें भर आयी और गले से फंदा निकालकर --" नहीं !!! "--
कहकर स्टूल से नीचे उतर गया ।
ऊपर मकान मालिक की टीवी में गाना बज रहा था-"हिम्मत न हार, ओ राही चल चला चल ...।"

- पूनम झा
कोटा - राजस्थान
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बगावत
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आर्थिक पृष्ठभूमि सुदृढ़ नहीं होते हुए भी उसके हौसले चट्टान की तरह बुलंद थे। न चाहने पर भी शादी का कार्ड छप चुका था,फिर भी राधा पारिवारिक सदस्यों की एक बात न सुनी।
      आठवी  कक्षा में पढ़ने वाली राधा अपनी समस्या जब स्कूल की सहेलियों को बतायी और उसके बाद जो कुछ हुआ...,उससे इस तबके की नयी पीढ़ी को एक पुख्ता तस्वीर मिल गयी।
         'सभी सहेलियो ने आपस में सलाह-मशविरा किया और एकजुट हो थाने पहुँच गयीं।' 
             उन्हें देख महिला थानाध्यक्ष किसी अनहोनी की आशंका से सिहर गयी लेकिन जब मामला सामने आया तो चौक गयीं।राधा अपने विवाह का निमंत्रण-कार्ड लेकर खड़ी थी,वह भी खुद की शादी को रूकवाने के लिए।
                मामला कानूनी तो था ही लेकिन उससे भी अधिक पारिवारिक और सामाजिक था।पंचायत बैठी, परिवारिक सदस्यों को समझाया गया लेकिन माँ-बाप के सामने बढ़ती हुई महँगाई एक विकट समस्या बन कर खड़ी थी।
                    इधर बेटी जोंक की तरह अपने भविष्य से चिपकी हुई  जिद्द पर थी,कि मुझे शादी नही अपनी पढ़ाई पूरी करनी है,तो दूसरी तरफ माँ-बाप को यह चिन्ता सता रही थी,कि पाँच साल बाद फिर इतना पैसा कहाँ से आएगा,कि...?,
              समस्या जटिल होते देख परिवारजनों का चेहरा तम तमा गया,फिर भी दुनियादारी की नसीहतों के साथ बेटी की खूब मान-मनुहार किया गया।माता-पिता सामाजिक व्यवस्था को सर्वोपरि रख दुहाई देते हुए शादी पक्की होने का अंतिम निर्णय सुनाते रहे लेकिन सारी कोशिशें फेल हो गयीं। 
          'राधा' लोक-राज को दरकिनार कर परम्परागत ढांचे से बाहर निकल आयी थी और भविष्य की सुरक्षा के लिए मोबाइल से विडियो बना कर वायरल कर देने का हथियार लिए एक योद्धा की तरह अपनी गर्दन ऊँची किए हुए बगावत का बिगुल बजाती रही।
             ऐसे  निर्णय से प्रभावित हो समाजिक संस्थाएं और मीडिया सामाजिक सैनिक बन 'विजयी योद्धा' के पताका को दूर-दराज तक फहरा दिए। 

- डाॅ. क्षमा सिसोदिया
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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विद्यार्थी जीवन 
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स्कूल में  5 सितंबर, शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी सभी विषयों के शिक्षक बनते हैं और सभी कक्षाओं  को पढ़ाते हैं। इसी संदर्भ में  शिक्षक बनने वाले विद्यार्थियों की मीटिंग रखी गयी थी। मीटिंग  के बाद लोकेश कक्षा में आया और  कक्षा अध्यापिका से बोला "मैडम मैं 5 सितंबर को बच्चों को  इंग्लिश पढ़ा रहा हूं ।"
कक्षा अध्यापिका बोलीं "लोकेश तुम्हारी केमेस्ट्री  अच्छी है तुम  केमेस्ट्री ही पढ़ाओ।" लोकेश केमिस्ट्री टीचर के पास गया और बोला  “मैडम मैं कक्षा 9, 10और 11को केमिस्ट्री पढ़ाना चाहता हूं तो पढ़ाने के लिये कुछ टि्प्स बतायें।”
केमेस्ट्री टीचर शेफाली  उसे संक्षिप्त में समझाते हुये बोलीं “ लोकेश जब पढ़ाने जाओ तो लैब से चार्ट्स भी ले लेना।”
लोकेश ने अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ाने के लिये टॉपिक्स चुने, चार्ट्स चुने ओर एक तरफ जमा कर रख दिये। 5 सितंबर के दिन 4(चार) शिक्षकों को  शिक्षक बने बच्चों का शिक्षण देखने के लिये निर्णायक बनाया गया था। केमिस्ट्री टीचर शेफाली ने कक्षा ग्यारहवीं  में प्रवेश किया,वे कक्षा में पीछे बैठकर लोकेश  की शिक्षण कला को देखने लगीं। निर्णायक बने अन्य  शिक्षकों ने भी  टीचिंग का जजमेंट किया। अगले दिन असेंबली में  विभिन्न विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों का रिजल्ट अनाउंस हो रहा था। लोकेश प्रथम आया था। लोकेश ने इंग्लिश टीचर के पैर छुए साथ ही शेफाली मेडम के भी। लोकेश ने महसूस किया इंग्लिशवाली मेडम और शेफाली मेडम के मार्गदर्शन के कारण ही वह प्रथम आया है। उसे विद्यार्थी  जीवन में मिले मार्गदर्शन  और उसके परिणाम सुखद लग रहे थे।

- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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विधार्थी जीवन
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रमेश और नरेश कक्षा दस के विधार्थी, जैसे ही मास्टर जी कक्षा में प्रवेश करते दोनों झगड़ने लगते। मास्टर जी उनके इस व्यवहार से बड़ा परेशान! क्या करें? वे रोज़ दोनों को कक्षा से बाहर निकाल देते। कई दिनों तक यह क्रम लगातार चलता रहा। एक दिन तो हद्द ही हो गई! जैसे ही वे कमरे में प्रवेश करते हैं तो क्या देखते हैं? कि वे दोनों बहुत ज़ोर-जोर से लड़ रहे हैं और पूरी कक्षा दो हिस्सों में बँटी हुई है। आधे एक तरफ़ और आधे एक तरफ़। उनकी लड़ाई पूरी कक्षा को प्रभावित कर रही थी और बात सिर के ऊपर से पार होती देख उन्होने दोनों के हाथ में एक-एक पत्र पकड़ाते हुए कहा कि “अब तुम दोनों अपने अभिभावकों के साथ ही विधालय में आयेंगें और सीधे प्रधानाचार्य जी के कमरे में ही मिलेंगें।” कहकर कमरे के बाहर निकल जाते हैं।
अगले दिन सुबह-सुबह दोनों अपने अभिभावकों के साथ प्रधानाचार्य जी के कमरे में तैनात मिलते हैं और दोनों के चेहरे पर ज़रा सी भी शिकन नहीं थी कि उन्होंने कोई ग़लत काम किया है। मास्टर जी को बड़ा ताज्जुब होता है उनका यह व्यवहार देखकर! अब तो उनके आश्चर्य की सीमा ही समाप्त हो रही थी जब अभिभावक यह कह रहे थे कि “ये तो बहुत पक्के दोस्त हैं और एक दूसरे के बग़ैर एक दिन भी नहीं रह सकते।” 
उस समय मास्टर जी के मन पर करोड़ों सवाल एकसाथ दस्तख दे रहे थे! उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अभिभावक ऐसा क्यों कह रहे हैं? बच्चे तो बच्चे बाप रे बाप! ये कैसा ज़माना आ गया है? अब उनके सब्र का बाँध टूटना शुरू हो गया था। आख़िर उन्होंने झट से अभिभावकों से प्रश्न किया? अगर ये दोनों पक्के दोस्त हैं तो फिर “वह रोज़ का झगड़ा क्या है?”
दोनों विधार्थी एकसाथ बोलने लगे क्योंकि आज़ उन्हें बोलने का मौक़ा जो मिला था “मास्टर जी आप सिर्फ़ पढ़ाते ही रहते हैं कुछ समझाते ही नहीं हैं और हमारे प्रश्नों के उत्तर भी नहीं देते। हमसे कहते हैं कि ख़ुद ही पता कर लो फिर कक्षा में बैठकर समय बर्बाद करने से अच्छा हमने सोचा कि क्यों न झूठे झगड़े करके वहाँ से खिसका जाये और पुस्तकालय में जाकर अपने प्रश्नों का उत्तर ढूँढ लिया जाये।”
“अब आप सब बताइए क्या हमने कुछ ग़लत किया है? हमने तो अपना अमूल्य समय ही बचाया है।” दोनों सबके सामने अपना सवाल रखते हैं?
दोनों की बात सुनने के बाद प्रश्नचिह्न की भाँति सब अध्यापक गण एक-दूसरे का मुँह देखने लगते हैं? क्योंकि इसका ज़वाब किसी के पास नहीं था?  

- नूतन गर्ग 
दिल्ली
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विद्यार्थी जीवन
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 मेरे विद्यालय में प्रतियोगिता परीक्षा के लिए एक्स्ट्रा क्लासेस चल रहे हैं इसलिए मैं आज  दो घंटे के लिए विद्यालय जा रहा हूं---राजीव अपनी मां को बताते हुए स्कूल बैग लेकर स्कूल के लिए घर से बाहर निकला था तब पड़ोस की चाची ने  उपहास उड़ाते हुए कहा था --पढ़ने जाता है या पढ़ाई के नाम पर मस्ती करने---- पर राजीव  लोगों की बातों का, भद्दी मजाक उड़ाने का --दिल पर न लेकर अपनी पढ़ाई करता रहा।
    वह पढ़ाई का महत्व और अपनी घर की हालात, मां की स्थिति से पूर्ण रूप से परिचित था। राजीव की मां जो पिता के गुजर जाने पर बचपन से ही राजीव को अकेले सिलाई बुनाई कर पालन-पोषण कर रही थी -उनकी बहुत ही दयनीय स्थिति थी।
इस कारण राजीव विद्यालय में बहुत हीं दिल लगाकर पढ़ाई करता। सभी शिक्षक की बात को ध्यान से सुनता और समझता। शिक्षक भी उसके मेहनत से प्रसन्न रहते और उसका भरपूर सहयोग करते।
 आज बोर्ड का रिजल्ट आया-- तब राजीव का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह अपने राज्य में टॉपर छात्र बन कर उभरा था।
टॉपर होने के कारण जगह-जगह से उसे ऑफर आने लगे थे। अच्छे विश्वविद्यालय  फ्री शिक्षा  उपलब्ध कराने का ऑफर दे रहे थे।
 आज उसकी मां के साथ उसके प्रधानाध्यापक और सभी गुरु उस पर गर्व कर रहे थे।
 राजीव भी अपने सुनहरे भविष्य का सपना संजोए सही मार्ग का चयन कर आगे की पढ़ाई के लिए आतुर 
था। राजीव समझ गया था कि विद्यार्थी जीवन ही है जो हमारे भविष्य को सुनहरा बना सकता है।

                   - सुनीता रानी राठौर
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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विद्यार्थी जीवन
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जब जेब कम बोलती है और हमारी जुबान केवल समय पर बोलती है तो समझ लो कि हमारा विद्यार्थी जीवन चल रहा है।हम बहुत जोश में भी होते हैं पर अगले ही पल चुप भी हो जाते हैं।ऐसा ही कुछ आजकल राकेश और सुरेश के साथ चल रहा था।दरअसल दोनों ही दोस्त हैं और कक्षा 11 के छात्र हैं। दोनों हॉस्टल में रहते हैं और अपने अपने घर से आए खर्चे पर अपना विद्यार्थी जीवन चलाते हैं।पढ़ाई लिखाई और खेल कूद में दोनो ही दोस्त अच्छे हैं। दोनों के ही परिवार मध्यम वर्ग के परिवार हैं पर किसी तरह दोनों को शहर में रहकर पढ़ाई करने का मौका मिला है।इसलिए दोनों ने ठाना है कि अच्छे से पढ़ाई करके नौकरी हासिल करेंगे और अपने अपने परिवार की मदद करेंगे।
        कभी कभी और छात्रों के चक्कर में जोश में आ जाते हैं और कुछ भी बोल देते हैं।प्रशासन के खिलाफ भी हो जाते हैं।लेकिन कुछ समय बाद ही जब अपने घर की स्थिति की याद आती है तो दोनों ही दोस्त शांत हो जाते हैं और अपना रास्ता बदल देते हैं।जोश उम्र का है पर संभलकर फिर चलना उनके परिवार की परवरिश है।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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विद्यार्थी जीवन
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 विभूतिकांत तरुणावस्था से ही साहित्य के अनुरागी थे। अपनी मातृभाषा हिन्दी से बहुत प्यार करते थे। परन्तु मात्र २१वर्ष की आयु में माँ-पिताजी ने विवाह कर दिया और गृहस्थी के दायित्वों का निर्वहन करने में ऐसे उलझे कि साहित्य सेवक बनना बस एक स्वप्न ही रह गया।
      जीवन पथ पर निरन्तर चलते-चलते और मन में साहित्यिक सृजन न कर पाने का क्षोभ समेटे उम्र के ४५ बसंत पर अचानक उनकी मुलाकात अपने बाल सखा रविकांत से हुई।
     रविकांत भी उनकी तरह साहित्य अनुरागी था और वर्तमान में साहित्यकारों के मध्य एक सम्मानित परिचय थे।
      बातचीत के मध्य जब विभूतिकांत ने अपने साहित्य सेवा और सृजन के सपने के अधूरे रहने के विषय में रविकांत को बताया तो रविकांत ने उसके कंधे पर हाथ रखकर एक गहरी मुस्कान से कहा, "विभूति! एक विद्यार्थी और वह भी साहित्य का विद्यार्थी सदैव विद्यार्थी ही रहता है। उसका अध्ययन कुछ समय के लिए रुक तो सकता है परन्तु कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। विद्यार्थी जीवन में अध्ययन और साहित्यिक जीवन में सृजन हेतु उम्र कभी भी बाधा नहीं बन सकती।"
     रविकांत ने विभूतिकांत को प्रोत्साहित करते हुए कहा," मित्र! अभी समय नहीं बीता है। चलो! उठो!आज से ही एक बार फिर साहित्य के विद्यार्थी बनो।
     विभूतिकांत की कामनाओं को पंख मिल गये और उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह एक बार फिर अपना साहित्यिक अध्ययन प्रारंभ करेगा, क्योंकि मनुष्य आजीवन विद्यार्थी ही रहता है।

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
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‌असली निबंध  
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" शाबाश बच्चो!" मानव और मानव का धर्म  विषय पर जो बतलाया, समझ कर सभी ने अच्छा लिखा।" सभी छात्र खुशी से गद्गद हो गए ।तभी एक लड़का अपनी जगह पर खड़ा हो गया ।       
‌मास्टर ने यह देख पूछा," प्रफुल्ल ,तुम खड़े क्यों हो?"
‌   लगभग रोता बोला प्रफुल्ल  जी मैंने  निबंध नहीं लिखा ।"
‌  " क्यों ,क्यों नहीं लिखा? “झल्ला पड़े मास्टर।
“ जी समय नहीं मिला |”
 “झूठ,बिल्कुल झूठ।“
 मास्टरजी,पूरी ईमानदारी से कहता हूँ। आधी रात तक दादा जी के साथ जागते रहा था ।वे दर्द से कराह रहे थे। माँ- बाबूजी कुछ ही देर तक उनके पास रहे फिर अपने कमरे में सोने चले। “
  “फिर...,?”
 “ फिर मैं दादाजी के पास जाकर उनके हाथ -पैर दबाने लगा ।जब तलवे रगड़ने लगा तो  उन्हें नींद आ गई। तभी कहीं मैं सो पाया हूँगा।“
  “ जब तुम्हारे माता-पिता ही सो गए थे तो तुम्हें क्या जरूरत थी जगने की?” मास्टर की इस बात पर लगभग सभी छात्र एक दबी हँसी हँस पड़े थे । मास्टर ने उनकी तरफ एक छोटी नजर तरेड़ी।
  “जी, कल ही तो आपने यह सब बतलाया था। ऐसा करना मैंने अपना धर्म समझा।“
   मास्टर आपादमस्तक झंकृत हो उठे । आँखें फटी -फटी जाती थीं उनकी। आत्मविभोर हो वहीँ से बाँहें फैलाए प्रफुल्ल की ओर  बढ़ चले ,”शाबाश बेटा ,शाबाश !इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था ।अरे यही तो सच्चा और असली निबंध  है।“

                             -  डॉ वीरेंद्र कुमार भारद्वाज  
                                 पटना - बिहार
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गुदडी़ का लाल
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भरत गांव में अपने पिता के साथ खेतों में जाकर उनका हाथ बंटाता है !काफी मेहनत मसक्कत के बाद दो जून की रोटी नसीब होती थी ! 
भरत का विद्यार्थी जीवन सहज नहीं था किंतु पढ़ने की लगन तीव्र थी ! 
गांव की सरकारी स्कूल में दसवी पास कर चुका था ! काफी होनहार था !उसने आगे शहर में पढ़ने की पिता से अनुमति मांगी ...पिता की पेशानियों में दुख एवं चिंता की लकीरे देख भरत ने पिता से कहा बाबा मैं मेहनत मजदूरी कर अपनी शिक्षा जारी रखूंगा आप चिंता ना करें  !
कामगार सुबह चौराहे पर काम के लिए खड़े रहते हैं वहीं भरत भी 9 बजे खडा़ रहता है ! 
एक व्यक्ति को मजदूर की जरुरत थी सभी मजदूर काम के लिए दौड़े  ...साहेब काम बताओ हम कर देंगे ! सेठ ने कहा कमरे के बीच की दिवार तोड़नी है दरवाजा लगाना है पूरी भीड़ नहीं चाहिए !
17-18 साल का भरत अपनी थैली लिए सामने खडा़ हो जाता है ...साहेब चलो हम कर देही...सेठजी ने उसे देख कहा तुम कर सकोगे? 
हां साहेब पिछले दो साल से मैं इसी काम में हूं !  सेठजी अपनी गाड़ी में बैठा ले गये !
काफी मजबूत ईंट थी ..भरत छैनी हथौडा़ मारते मारते पसीने से तरबतर होते हुए कहा ...साहेब यह दिवार हमसे नहीं टूटेगी !
सेठजी गुस्से में बौखलाए हुए कहते हैं जब काम नहीं होता तो क्यों पढ़ने लिखने की उम्र में बेलदारों की लाइन में मजदूर बन खडे़ हो जाते हो ! 
सेठजी मैं एक विद्यार्थी हूं ...काम के साथ पढा़ई भी करता हूं !  गर्व के साथ भरत ने कहा !
कौन सी क्लास में ?
12 वी में ...इसी शहर में
सेठजी ने फटी आंखों के साथ कहा....और पिता 
गांव में खेती करते हैं !
विषय क्या लिया है...गणित
क्या ? सेठजी ने पूछा प्रायवेट
नहीं साहेब... रेग्युलर लोकमान्य तिलक में...
दिनभर मजदूरी कर इतनी कठिन पढा़ई कैसे करते हो और स्कूल कैसे जाते हो ?
सेठजी सप्ताह में दो दिन जाता हूं !टीचर मेरी पढ़ने की लगन देख खुश होकर मेरी हाजिरी लगा देते हैं  !
सुबह 6-8 दो दिन मैथ्स का ट्यूशन लेता हूं और 3 दिन 6-7 केमिस्ट्री एवं 7-8 फिजीक्स की ट्यूशन लेकर पढ़ता हूं ....
सेठजी उसकी निखालसता और स्पष्टवादिता से प्रसन्न हो कहते हैं वास्तव में शिक्षा का वास्तविक अर्थ तुम जैसे " गुदडी़ के लाल "ही समझते हैं ! तुम्हारी यही शिक्षा की अभिलाषा तुम्हारा मार्ग प्रसस्त करेगी !
यह कहते हुए उनके दोनों हाथ अपने आप आशीर्वाद के लिए उठ गये ...!

- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
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नालायक
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          “ कितना मुश्किल से मिला है आपका फोन नम्बर मैम!  आप मेरी खुशी का अनुमान शायद ही लगा सको।”
          “ ऐसा कैसे हो सकता है मेरे बच्चे! तुम्हें आठ वर्ष पढ़ाया है मैंने। अरुणाचल प्रदेश तो मेरे जीवन में विशेष स्थान रखता है।”
          “ आपको याद है जब एक लम्बी अनुपस्थिति के बाद विद्यालय से मेरा नाम काट दिया गया था तब आप दो महीने तक रोज मेरे घर आती रही थी। आप मेरे साथ एक घंटे खूब सारी बातें करती थीं जिनमें किस्से-कहानियाँ होती थीं, मैं भी आपको बहुत सी बातें सुनाता था। ऐसा होते होते एक दिन मैं अपने पिता को लेकर फिर से विद्यालय पहुँचा था। प्रधानाचार्य मेरे बदले हुए रूप को देख कर हैरान थे। मेरा पुनः एडमिशन हुआ । मैं दौड़ते हुए स्टाफ रूम में आया था और आप के चरणों में झुक गया था।”
                “ वो तो मेरे जीवन का महत्वपूर्ण पल था बच्चे जब तुम्हें मैंने पुनः कक्षा में बैठे हुए देखा था।”
                  हाँ मैम! उसके कुछ दिन बाद आप ट्रान्स्फर लेकर चले गए थे, बाद में पता चला आपने वी आर एस ले लिया । तब से आपके बारे में पता करता रहा। सोचता रहता था जब मैम मिलेंगी तब उन्हें बताऊँगा कि आपके प्रयास और आशीर्वाद से ही आपका नालायक विद्यार्थी आपके ही विषय का शिक्षक बन कर आपके ही दिखाए रास्ते पर चल रहा है।”
              “ आज मुझे लग रहा है बच्चे मैंने जीवन में कोई एक अच्छा काम किया।”

- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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परचम
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 नहीं -अभी खेलने नहीं जाना है। तुम्हें पढ़ाई पर ध्यान देनी चाहिए।
माँ आज हमारा फाइनल मैच है। मेरा आज जाना बेहद जरूरी है। 
खेलने से ज्यादा पढ़ाई जरूरी है , ये तुम कब समझोगी?
माँ ! मेरी अच्छी माँ आज जाने दो।
ना चाहते हुए भी बेटी की जिद के आगे माँ को हामी भरनी पड़ी। 
अखबार पर से नजर हटा रामप्रसाद जी ने कहा--हमारी बेटी पढ़ाई के साथ-साथ अच्छा क्रिकेट खेलती है, फिर क्यूं उसको रोकती हो।
हाँ- हाॅ मिताली दास हीं बन जाएगी आपकी बेटी। 
हो सकता है बन भी जाए, वो कौन जानता है ।
पढ़- लिख जाए तो मैं हाथ पीले कर दूं। 
फिर ससुराल जाकर जो करे ।
अरे! जब तुम  माँ  होकर उस पर पाबन्दी लगा रही हो खेलने से फिर,  ससुराल वालो का क्या भरोसा ?
माँ अनमने मन से रसोईघर की और चल पड़ी।
अचानक ढोल- नगाड़े और हल्ला- हुजूम सुन दोनों बाहर निकले। 
अरे ! ये तो अपनी बिटिया को सब फूल माला से लादे हुए  हैं।
मुबारक हो रामप्रसाद जी आपकी बिटिया  राज्य स्तरीय क्षेत्र से सबका नेतृत्व करेगी, कोच ने ये जानकारी बड़े हर्ष पूर्वक बताया।
खुशी से माँ की आंखें छलक गई। 
अपनी बेटी के इस अद्भुत छिपी प्रतिभा को जानकर। माँ को अपनी बेटी पर आज सचमुच नाज हो रहा था कि उनकी लाड़ली पढाई के साथ हीं खेल के क्षेत्र में भी अपना परचम लहराने को इतना आगे बढ़ चुकी  है। माँ ने खुशी से कहा अब जल्दी से इन सब के लिए मिठाई तो लाओ। सब का मुंह मीठा करवाना है।
हाँ ! मैं अभी लाया। कह कर रामप्रसाद जी तेजी से निकल पड़े।

- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
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विद्यार्थी जीवन
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90 के दशक में मेरे दोनों पुत्र एक साथ इंग्लिश मीडियम स्कूल से क्लास ट्वेल्व पास किए। हम दोनों पति पत्नी की इच्छा थी कि मेरे बच्चे इंजीनियरिंग पड़े इसलिए बोकारो के अच्छे कोचिंग सेंटर में दाखिला करा दिए वहां के करीब करीब सभी बच्चे को किसी न किसी इंस्टिट्यूट के लिए क्वालीफाई कर जाते थे लेकिन  मेरे दोनों बच्चे को कहीं एडमिशन के लिए क्वालीफाई नहीं किए। हम लोग बहुत निराश हो गए।
  बाद में दोनों अपना अपना इच्छा जाहिर किये ।एक ने मैनेजमेंट कोर्स करना चाहा दूसरे ने कंपनी सेक्रेटरी करने की चाहत दिखाएं। 
अंत में पति पत्नी ने विचार-विमर्श करने के बाद बच्चों की ख्वाहिश के लिए हमलोग तैयार हो गए। दोनों बच्चे समय पर लगन के साथ कोर्स पूरा किए। 
आज  दोनों अपने अपने क्षेत्र में कामयाब व्यक्ति हैं।
इससे यही निष्कर्ष निकलता है बच्चों पर अपना ख्वाहिश ना थोप कर उनकी इच्छा को ध्यान दें। उन्हें अपने इच्छा अनुसार विद्यार्थी जीवन व्यतीत करने दिया जाए।
 आज के युग में बहुत तरह के कोर्स है। जहां जीवन के संभावना बहुत बड़ी है।
अगर बच्चे मैं हूंनर लगन हो तो उनका भविष्य उज्जवल है।

 - विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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विद्यार्थी जीवन
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चंदन एक गरीब घर का लड़का है जिसके पिता अकाल मृत्यु ग्रस्त हो गए थे और इसकी वजह से उसके पूरे परिवार का बोझ उसके कंधों पर आ गया है। वह शहर की एक  गरीब  बस्ती में अपनी मां और तीन छोटी बहनों के साथ रहता था। दिन भर वह एक दुकान पर नौकरी करता और रात को तीन घंटे चलने वाली एक क्लास में पढ़ने जाता। उसे पढ़ाई का बहुत शौक था और वह पढ़ लिख कर देश का एक अच्छा नागरिक बनना चाहता था। एक बार मज़ाक मज़ाक में उसके एक दोस्त ने उससे चुटकी लेते हुए कहा कि भाई चंदन तू इस तरह फीस भर कर व्यर्थ ही अपना समय और शक्ति क्यूं बर्बाद कर रहा है। आज जब देश में इतनी बेरोजगारी है और किसी भी पढ़े लिखे युवा को नौकरी नहीं मिल रही है तो तुझे कहां मिलने वाली है। इससे अच्छा है कि तू ये फीस के पैसे बचा कर अपने घर में कोई वस्तु खरीद ले, फायदे में रहेगा। यह सुन कर चंदन ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि भाई शिक्षा का सिर्फ एक ही उद्देश्य नौकरी पाना नही होता। इसके अनेक उद्देश्य होते हैं और उसमे से एक उद्देश्य है सभ्रांत , सुशील और संस्कारी बनना और मैं इसी कारण से शिक्षा प्राप्त कर रहा हूं। यह सुन कर उसका मित्र बहुत प्रसन्न हुआ और उसने प्रेम से चंदन का कंधा थपथपाया।

- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा  - गुजरात
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धूमकेतु की अपनी पहचान 
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 ध्रुव का रिपोर्ट कार्ड पत्नी को थमाते हुए पतिदेव ने कहा ९०% मार्क्स आये हैं । किस कालेज में और कहाँ एडमिशन कराना है ।
ये ध्रुव से विचार विमर्श कर बता देना । पत्नी ने पुछा - और धूमकेतु के मार्क्स? वो इस बार भी फ़ेल हो गया , अब उसे किसी अच्छे कालेज में एडमिशन नही मिलेगा ।  उसे अब से नानी के घर ही रहने दो , वहीं प्राईवेट परीक्षा देगा । केवल ध्रुव को वापस बुला लो ।
 धूमकेतु को अपने रिज़ल्ट का अहसास तो पहले से ही था । पढ़ाई की वजह से हीन भावना से ग्रसित अपने आप में खोया रहता । माँ का प्यार भी उसकी कमियों को ढाँक नहीं पाता । वो अक्सर छुट्टियों में नानी के गाँव आ जाता , नानी ही उसका प्यार भरा सम्बल थी । नानी ने अपनी गायों का नाम कारी, गोरी और डागी का नाम शेरू, ब्लेक़ी रखा था । 
धूमकेतु ने इन्हें ही अपने रोज़गार का ज़रिया बना लिया था । उधर माता पिता ने अपनी सारी पूँजी ध्रुव की उच्च शिक्षा के लिए विदेश  भेजने में लगा दी । 
नानी के बीमार होने पर जब माता पिता नानी को देखने आये ।तो धूमकेतु में अदम्य साहस विश्वास देख माँ ने नानी से कहा - अम्माँ हमारे धूमकेतु की चमक को तो आपने ही निखारा है । नानी ने हँसते हुए कहा - ये  बीमारी तो एक बहाना है ताकि तुम्हें यहाँ बुला कर धूमकेतु के छोटे से साम्राज्य की चमक दिखा सकूँ।  वरना तुम दोनो  अपने कामों में डूबे रहते । और ध्रुव को पढ़ाने में एक का वेतन चला जाता हैं । कहाँ आते, अब बताओ , 
मेरे नवासे  धूमकेतु की चमक किसी सितारे से कम है क्या?  

- अनिता शरद झा 
रायपुर - छत्तीसगढ़
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