क्या हदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है ?

हदय की पुकार कभी खाली नहीं जाती है । रही बात ईश्वर की..। वहां भी अक्सर पहुंचती देखीं गई है । बाकी तो सच्चें हदय से किसी को भी याद करों । वह सामने खड़ा नंजर आता है । ऐसे में सामने आये व्यक्ति की उम्र लम्बी समझते हैं । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
सृष्टि के कण कण में विद्यमान ईश्वर तक पुकार तो हर एक पंहुचती है, लेकिन प्रभावी हृदय की पुकार की ही होती है इसलिए ऐसा कहा जाता है कि ईश्वर तक हृदय की पुकार पहुंचती है।
मस्तिष्क लाभ हानि का विचार करता है,जबकि हृदय हमेशा सत्य का पक्ष लेता है। वैसे ईश्वर हमेशा न्यायकारी होता है,वह तो अन्याय करता ही नहीं।पुकारो या न पुकारो।मन से पुकारो या बेमन पुकारो। वह सब पर बराबर कृपादृष्टि रखता है।उस कृपा को कौन कितना ग्रहण करता है यह व्यक्ति की पात्रता पर निर्भर करता है। ईश्वर तो ईश्वर है,साधारण मानव पर भी हृदय की पुकार का असर होता है।क्यों किसी के बारे बार गिड़गिड़ाने पर भी हम सहायता को आगे नहीं बढ़ते और क्यों किसी की एक ही पुकार पर तुरंत सहायता करते और जोखिम से भी नहीं घबराते। इसमें है हृदय से प्रार्थना, पुकार का विज्ञान। निस्वार्थ भाव से की गई पुकार अवश्य ही प्रभावशाली होती है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
 धामपुर -  उत्तर प्रदेश
प्रत्येक मनुष्य के ह्दय में ईश्वर का वास होता है यह शाश्वत व सनातन सत्य है । इस कारण से ही जब भी हम कोई गलत काम करते है, हमारे ह्रदय के अन्तर्मन से हमें क्षणिक उस ओर रोकती सी ध्वनि महसूस होती है, सरल ह्दय वाले उसे सुनकर तत्क्षण अपने को उस दिशा से रोक लेते है परन्तु संवेदनहीन ह्दय अपने ही दुर्गुणों से उस पवित्र ध्वनि को नही सुन सकते और धीरे धीरे मन के पवित्र आंगन को मैला करते जाते है । उसी तरह पवित्र ह्दय से की गई पुकार शत प्रतिशत ईश्वर तक पहुँचती है और हम सभी इसे अनेकानेक बार अपने निजी जीवन में महसूस भी करते है जब हमें  जीवन की परेशानियों में कोई सदमार्ग नही देखता तो हम ईश्वर के समक्ष पूर्ण समर्पित भाव से अपने मन की पीड़ा  कह देते है और चमत्कार स्वरूप हमारी मुश्किल आसान हो जाती है बेशर्त हमारे मन व ह्दय में पवित्र भाव व हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक हो । अत :ईश्वर हमारी पुकार अवश्य सुनते है । 
         - विमला नागला
         अजमेर _राजस्थान
जी हां, सच्चे निर्मल हृदय से की गई पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है।  मैंने स्वयं अनुभव किया है और मेरे अपने अनेक उदाहरण हैं कि सच्चे दिल से निःस्वार्थ पुकार करने पर ईश्वर अवश्य ही उसे सुनते हैं और समस्या का समाधान करते हैं। माध्यम कोई भी हो। 
-  सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
प्रश्न यह नही है, प्रश्न है क्या हम ईश्वर को दिल से पुकारते हैं। यदि हां तो अवश्य ईश्वर तक हमारी पुकार पहुंचती है। 
प्रभु हमारी आस्था हमारी निष्ठा के भूखे हैं। वे हमारे अटूट विश्वास के प्रतीक हैं। वे तो अंतर्यामी हैं। हमारी आत्मा में निहित हैं। उन्हें पुकारने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। 
मेरी स्वर्गीय मां ने एक बार एक स्वामीजी से पूछा,"मैं जब भी ईश्वर की पूजा में बैठती हूं मेरे अश्रु निकलते हैं। ऐसा क्यों?" स्वामीजी ने कहा था,"तुम्हारे पांच बच्चे हैं। जब तुम काम मे व्यस्त होती हो, यदि बड़ा बच्चा पुकारता है तो तुम कहती हो आती हूं और अपना काम करती रहती हो। पर यदि छोटा शिशु ज़ोर से रोता है तो काम छोड़ कर भागती हो। ऐसा क्यों"? 
जब हम एक अबोध बालक की भांति सच्चे मन से प्रभु को पुकारते हैं तो वे भी सब कुछ छोड़ कर हमारी पुकार सुनते हैं। वे तो भाव के भूखे हैं। 
कहा कहौं छवि आप की, भले बने हो नाथ !
 तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ !!
 तुलसी दास जी की पुकार सुन कर कृष्ण भगवान ने भी बांसुरी छोड़ धनुष बाण उठा लिया था।
- डा. नीलिमा डोगरा
नंगल - पंजाब
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या ईश्वर तक पहुंचती है हृदय की पुकार तो इस पर मैं कहना चाहूंगा यह बिल्कुल सही बात है कि दयालु परोपकारी और चरित्रवान व्यक्ति के हृदय की पुकार ईश्वर तक निश्चित रूप से पहुंचती है यह बात अलग है कि उसे अपने कार्यों का प्रतिफल करने में थोड़ा विलंब हो लेकिन उसकी पुकार प्रभु सुनते जरूर है कहा भी जाता है कि ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं ईश्वर बहुत दयालु है और वह सभी के साथ न्याय कारी है और कभी भी ऐसा नहीं करते कि सुपात्र की मनोकामना को पूरी ना करें और यदि ऐसा होता है तो उसमें कहीं ना कहीं कमी हमारी ही होती है हमें उन सभी कमियों को दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए ईश्वर मनोकामना पूर्ण अवश्य करते है.
-  प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
ईश्वर सर्वज्ञ है ,दूर द्रष्टा है, तथा भविष्य दृष्टा है, जीव अल्पज्ञ हैं। जब श्रद्धा भक्ति भाव से मनुष्य ईश्वर के सामने विनीत होकर प्रार्थना करता है ,तो वह ईश्वर तक अवश्य पहुंचती हैं। परमात्मा को याद करने का सबसे बड़ा माध्यम प्रार्थना ही है । प्रार्थना व्यक्ति को आत्मिक शक्ति प्रदान करती हैं। यह सही है कि हम प्रार्थना के माध्यम से ईश्वर से वार्तालाप करते हैं ,अपने लिए भला चाहते हैं,परंतु किसी भी प्रकार की प्रार्थना के पीछे स्वार्थ अथवा लालच नहीं होना चाहिए । शुद्ध भाव से की गई प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनते हैं। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
परम शक्ति ईश्वर के स्मरण मात्र से ही हृदय को अनुपम शान्ति का आभास होता है। सच्चे मन से की गयी प्रार्थना ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है। 
ईश्वर निराकार है और यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह साकार रूपों पर अधिक विश्वास करता है और तत्काल परिणाम को पाकर अधिक उत्साहित होता है। 
जबकि निराकार शक्तियों के प्रभाव अप्रत्यक्ष तो होते हैं परन्तु मानव जीवन के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
सुख-दुख, हानि-लाभ और उतार-चढ़ाव मनुष्य जीवन का अंग है। अक्सर हम ईश्वर को समर्पित हृदय से तभी पुकारते हैं, जब मुश्किलों का सामना कर रहे होते हैं। जीवन की मुश्किलें समयानुसार समाप्त भी होती हैं। परन्तु ऐसे कठिन समय में सच्चे हृदय से ईश्वर को पुकारा जाय तो मनुष्य को जो अपरिमित शक्ति प्राप्त होती है, उसी से समझा जा सकता है कि हृदय की पुकार ईश्वर तक पहुंचती है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
यदि प्रार्थना मन से की जाए तो तो ईश्वर उसे जरूर सुनता है और ह्रदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती हैं। हृदय की पुकार श्रद्धा और विश्वास के भाव की अभिव्यक्ति का दूसरा नाम है प्रार्थना। प्रार्थना व्यक्ति को आत्मिक शक्ति प्रदान करती है। प्रार्थना हर व्यक्ति कर सकता है वह प्रभु सबका है ईश्वर भाव के भूखे हैं भाषा के भोजन के नहीं। श्रीमद भगवत गीता में अर्जुन भी भगवान श्री कृष्ण के समक्ष नतमस्तक होते हैं प्रार्थना करते हैं और भगवान उनका मार्ग निर्देशन करते हैं।जीवन की अंधेरी घड़ी में प्रार्थना ही आशा की किरण बनकर पथ प्रदर्शन करती है। सात्विक प्रार्थना हुआ है जो निष्काम है भगवान से कुछ मांगे नहीं प्रार्थना में समर्पित होकर यह कह दिया कि हे प्रभु जिसमें मेरा भला हो वही मुझे देना क्योंकि वह दूर रिश्ता है वह सर्वत्र के हैं जीव अल्पज्ञ है और हमारी सोच भी संकुचित है। प्रार्थना प्रभु को याद करने के साथ-साथ उसके प्रति कृतज्ञता का एक अहो भाव है। हृदय के पुकार से ही नानक जी नानक देव बने। गौतम बुध भगवान बुध बने। कबीर, तुलसी, मीरा, संत एकनाथ समेत सभी भगवान के भक्तों ने जीवन में प्रार्थना का ही सहारा लिया क्योंकि व्यक्ति की आध्यात्मिक सोच के साथ साथ संवेदना का प्रस्फुटन भी प्रार्थना से ही होता है। प्रार्थना याचना नहीं है बल्कि अपने इष्ट के प्रति व गुरु के प्रति की जाने वाली एक सरल व सशक्त अभ्यर्थना है। प्राथना सच्चे मन से हो तो भगवान उनकी ह्रदय की पुकार जरूर सुनते हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
हृदय की पुकार, श्रद्धा और विश्वास के भाव की अभिव्यक्ति का दूसरा नाम है प्रार्थना। प्रार्थना व्यक्ति के आत्मिक शक्ति प्रदान करती है। प्रार्थना हर कोई कर सकता है।
प्रार्थना करते हैं और भगवान उनका मार्ग निर्देशन करते हैं।
जीवन की अंधेरी घड़ी में प्रार्थना ही आशा की किरण बनकर पथ प्रदर्शन करती है।
लेखक का विचार;--भगवान से कुछ मांगे नहीं, प्रार्थना में समर्पित होकर यह कह दे कि प्रभु जिसमें मेरा भला हो वही मुझे देना। 
क्योंकि वह दूर द्रष्टा है और सर्वज्ञ हैं। प्रार्थना प्रभु को याद करने के साथ-साथ उसके प्रति कृतज्ञता का एक अहोभाव है। 
प्रार्थना जिसके अंदर किसी भी प्रकार का स्वार्थ ना हो वह प्रार्थना अवश्य पूरी होती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
      सच्चे मन से की गई पुकार चमत्कारिक होती है। जब हमारा शरीर, मन और वाणी तीनों आराध्य देव में एक रूप होते हैं तो वह सीधी पुकार ईश्वर के पास पहुँचती है बशर्ते यह पुकार किसी को हानि पहुँचाने के लिए न की गई हो।
           कई लोग तीन तीन घंटे प्रार्थना करते हैं परन्तु उन की पुकार ईश्वर तक नहीं पहुंचती।इस का कारण हमारा शरीर, वाणी और मन एक रूप नहीं होते होंगे। अगर हाथ जुड़े हैं लेकिन मन कहीं और भटक रहा है तो ऐसी प्रार्थना किसी काम की नही।आप चलते फिरते,काम करते भी ह्रदय से प्रार्थना कर सकते हैं। 
-  कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
     ईश्वरीय शक्ति का प्रतिफल हैं, जहाँ प्राकृतिक संसाधनों को सर्व व्यापक रुपों में केन्द्रित कर रखी हैं, जिसके माध्यम से पृथ्वी पर संतुलन बनाने में मानव जीवन में हमेशा आते-जाते उतार-चढ़ाव को सहन करते जा रहा हैं । एक ऐसा समय आता हृदय की आवाज ईश्वर तक पहुंच जाती हैं। इसी का परिणाम पूर्व ऋषि-मुनियों के त्याग का प्रतिफल, जिनकी ईश्वरीय चमत्कार ने पुकार सुनकर, उन्हें आनंदित किया। वर्तमान परिदृश्य में आधुनिकता के कारण समय जरुर लगता हैं, परन्तु उसका महाप्रसाद जरुर प्राप्त होता हैं, आवश्यकता प्रतीत होती हैं, आस्था और विश्वास स्थापित करने की शक्ति प्राप्त हो।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
ईश्वर के प्रति लोगों की अलग अलग धारणाएँ हैं एवं भिन्न भिन्न विचार हैं पर इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि इस सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड के रचयिता ईश्वर हैं।वे घट घट व्यापी हैं।सबके हृदय में निवास करते हैं।इसे वही समझ सकता है जिसके विचार शुद्ध होते हैं।जिसके हृदय में ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास होता है जो अपना सम्पूर्ण जीवन उन्हें समर्पित कर देता है ईश्वर उनकी पुकार अवश्य सुनते है जिसका उल्लेख प्राचीन कथाओं में किया गया है। मुझे भी इसका अनुभव हुआ है।आज से करीब बीस वर्ष पूर्व मेरी बेटी एक दुर्घटना में बेहोश हो गयी।डॉ काफी प्रयत्नशील रहे।उन्होंने कुल पाँच घण्टे का समय दिया कि अगर इस बीच उसे होश आ गया तब उसके जीवन की उम्मीद कर सकते हैं अन्यथा हम नहीं बचा पाएँगे।मेरे तो होश ही उड़ गए।उसके दो छोटे बच्चे थे।मैंने भगवान जी के सामने दीपक जला कर सम्पूर्ण हृदय से पुकारा।
"हे प्रभु आप ही जन्म देते हैं आप ही मरण देते हैं।अब मेरी बेटी आपके हवाले है और शिव महा मृत्युंजय का जप करने लगी।कुछ ही घंटों में उसके होश में आने की खबर मिली।अब आप इसे डॉक्टर्स का परिश्रम कहें या कुछ भी समझें पर मैने इसे ईश्वरीय चमत्कार माना और उस दिन से मुझे ईश्वर पर पूरा भरोसा हो गया कि शुद्ध हृदय से पुकारने पर ईश्वर हमारी पुकार अवश्य सुनते हैं।
- इन्दिरा तिवारी
रायपुर-छत्तीसगढ़
हाँ ! हृदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य  पहुँचती है। कहा गया है कि यदि सच्चे मन से ईश्वर को पुकारो तो वो अवश्य सुनते हैं। अक्सर सभी के साथ ऐसा होता है या सभी कहते हैं कि मैं आपको याद कर ही रहा था तबतक आप आ गए। मैं स्वयं कई बार सालों बाद किसी को याद किया हूँ और उनका फोन आ गया है। उज्जैन में मुझे एक आदमी से मुलाकात हुई थी ,मैं उन्हें कलकत्ता आने को कहा था लेकिन वो नहीं आये। जबकि वो बोले थे अवश्य आऊँगा। कई साल बीतने पर अचानक उनकी याद आ गई। मैं फोन नहीं कर सकता था क्योंकि नंबर गम हो गया था। तब मैं आवक रह गया जब दस पन्द्रह मिनट बाद अचानक उनका फोन आ गया। आज भी मेरे लिए वो घटना आश्चर्य की तरह ही है। इससे साफ सिद्ध होता है कि सच्चे मन की पुकार उस व्यक्ति तक पहुँच जाती है। जब मनुष्य के साथ ऐसा हो सकता है तो ईश्वर के साथ क्यों नहीं।
गज और ग्राह की लड़ाई में गज ने आर्त्त हो कर भगवान को पुकारा था तो भगवान नंगे पैर ही आकर ग्राह से गज को बचाया था। ये स्थान गंगा और गंडक नदियों के संगम स्थल सोनपुर बिहार में स्थित है जहाँ कार्तिक पूर्णिमा को विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है। इस तरह ये बात शत प्रतिशत सत्य है कि हृदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुँचती है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं बंगाल
        हां! निस्संदेह हृदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है। इसी पुकार को दूसरे शब्दों में दुआ और बद्दुआ की संज्ञा भी दी जाती है। 
        चूंकि जब कोई मानव किसी प्राणी या जीव-जंतु को अकारण सताता है तो संतप्त हृदय से विवशता की आह निकलती है। जो सताने वालों के लिए बद्दुआ प्रमाणित होती है और बिजली बन कर उसपर गिरती है। दूसरी ओर जब कोई मानव किसी पीड़ित/बीमार प्राणी अथवा जीव-जंतु की सहायता/तिमारदारी करता है तो उक्त पीड़ित/बीमार प्राणी या जीव-जंतु के हृदय से दुआ निकलती है। जो उक्त मानव का कल्याण करने में सक्षम होती है। इसीलिए कहते हैं कि बीमारों अथवा पीड़ितों के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करना चाहिए। ताकि उनकी बद्दुआओं से बचा जाए और दुआएं प्राप्त की जा सकें। 
        उल्लेखनीय है कि जब मानव को मानव जाति का तिरस्कार मिलता है। तब उसकी उंगली ईश्वर पकड़ लेता है और जिस मानव की उंगली ईश्वर ने पकड़ी हो, उस विकट परिस्थितियों में उसकी हर पुकार ईश्वर अवश्य सुनता है। चूंकि उस समय उसकी हर पुकार उसके शुद्ध हृदय से निकलती है और हृदय से निकली हुई पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है। जिसे वह सुनते भी अवश्य हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जब हमारा चित्त राग- द्वेष  की मलिनता से दूर आत्मा के स्तर पर ज्योतिर्मय होकर अलौकिक आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाले सत्य, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, दयालु, परमहितकारी ईश्वर को स्तुत्य भाव से पुकारता है तो उस दिव्य रोमांचकारी अनुभव में हम अपने को ईश्वर के करीब पाते हैं या फिर ईश कृपा के पात्र बनते हैं।
      ईश्वर तक पुकार पहुंचने के लिए चित्त- शुद्धि अति अनिवार्य है। जब हम "सिया राम मय सब जग जानी" की वास्तविकता को समझ अपने ज्ञान चक्षुओं को खोलकर पवित्र भाव से शुद्ध अंतःकरण से जग कल्याण अर्थ उसे पुकारते हैं तो हमारी पुकार  उस ईश्वर तक अवश्य  पहुंचती है। क्योंकि  हम जीवात्मा परमात्मा से अविच्छिन्न ही हैं।इसीलिए  गलत काम के लिए हमारी अंतरात्मा हमें पहले ही सचेत कर देती है उस सूक्ष्म क्षण में ही सच्चे अर्थ में हम ईश्वर के करीब होते हैं ।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जी हां अगर हृदय की पुकार सत्य होता है ,तो ईश्वर तक जरूर पहुँचती है। क्योंकि हृदय से तरंगित आत्मा सत्य ग्रहण करती है ।आत्मा का कनेक्शन ईश्वर से जुड़ा रहता है ।ईश्वर ही सत्य है। अतः आत्मा सत्यता से पुकार करता है ।अंतर्मन से तो ईश्वर जरूर सुनती है। ईश्वर मनुष्य के अंतर्मन में ज्ञान स्वरूप में विद्यमान है ।ज्ञान के प्रकाश में मनुष्य जीता हुआ सुख का अनुभव करता है ।अतः मनुष्य हर पल सत्य की दृष्टि से ईश्वर को पुकारता है ,तो ईश्वर जरूर सुनता है।
                        -  उर्मिला सिदार 
                     रायगढ़ - छत्तीसगढ़
ये सनातन सत्य है कि हृदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है । तुलसी दास  सुरदास  सरीखे कई सन्त हुए जिनकी पुकार पर भगवान दौडे दौडे चले आते थे ।
        आज अयोध्या में राम मन्दिर का बनना भी किन्हीं महान व्यक्तियों के हृदय की पुकार का ही परिणाम है ।
         यदि कोई आज भी सच्चे हृदय से किसी को भी पुकारे तो वो अवश्य ही उसे प्राप्त हो जाता है ।  ये अलग बात है कि सच्चे हृदय से पुकारने के बावजूद उसे गम्भीर कर्म भी करने वांछित हैं ।।
   - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जो आस्तिक है अर्थात् जो ईश्वर या परम शक्ति  को मानता है, वह यह भी मानेगा कि ह्रदय की पुकार ईश्वर तक पहुंचती है । क्योंकि एक विश्वास ही किसी देव या देवी की प्रतिमा के सामने सिर झुकाने को मजबूर करता है । इसीलिए कहा जाता है कि 'मानो तो देव नहीं तो पत्थर' ।
मेरे विचार से ह्रदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है ।
- पूनम झा
कोटा - राजस्थान 
हमारे अंतरह्रदय में एक ऐसी आस्था और विश्वास बनी हुई है कि हृदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है। जब हमारी मनोकामनाएं फलीभूत होती हैं तो वह विश्वास प्रगाढ़ हो जाती है। मनोकामनाएं पूर्ण होना सिर्फ हृदय की पुकार से ही फलीभूत नहीं होती-- उसके लिए लग्न,मेहनत परिश्रम और प्रयासरत होना भी जरूरी होता है।  मंदिर में बैठकर आस्था और विश्वास जगाए रखें और कर्म पर ध्यान न दें तब कुछ भी हासिल नहीं हो सकता।
भगवान कृष्ण ने भी कहा है कि कर्म करो फल की आशा मत करो अर्थात कर्म करोगे तो फल अपने आप प्राप्त हो जायेंगें।
   बचपन से ही हमारे हृदय में यह विश्वास बनाया जाता है कि सच्चे हृदय से ईश्वर से जो मांगो वह पूरा होता है और इसी विश्वास के आधार पर हम अच्छे कर्म की ओर प्रवृत्त होते हैं और हमारी मनोकामनाएं भी फलीभूत होती हैं पर जो गरीब,असहाय और दुखी लोग हैं--- ऐसा नहीं कि वह सच्चे हृदय से प्रभु से कामना नहीं करते।
    वास्तविकता यह है कि मनोकामना पूर्ण होने के लिए सही साधन, प्रयत्न और कर्मरत रहना भी जरूरी होता है।
                                - सुनीता रानी राठौर 
                               ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
ईश्वर कण कण में है ! ईश्वर को जब भक्त सच्चे मन से पूर्ण विश्वास के साथ  अपनी सारी परेशानियों को लिए कहीं भी किसी भी वक्त याद करते हैं वे उसके  साथ ही होते हैं ! ईश्वर सर्वत्र है !उन्हें देखने के लिये केवल हमारी मन की आंखें खुली होनी चाहिए ! ईश्वर के अनन्य भक्त हो किंतु जहां मैं आ जाता है  वहां हमारे ह्रदय से ईश्वर की छबि धूमिल हो जाती है बाकी प्रभु तो अपने भक्त के साथ ही होते हैं !
एक बार ईश्वर  का अनन्य भक्त कडी़ धूप में रेत में नंगे पांव प्रभु के मंदिर जा रहा था ! उसे पूर्ण विश्वास था अपनी भक्ती पर वह भगवान का नाम लेते हुए चलता रहा किंतु कुछ ही दूरी पर जाकर उसे चक्कर आने लगे !अतं में वह बेहोश हो जाता है ! होश आने पर वह मंदिर तक आ चुका था ! रोते हुए ह्रदय से पुकारते हुए उसने कहा प्रभु मैं तुम्हारा कितना बडा़ भक्त ,मैने आपकी कितनी सेवा की फिर भी आप न आये !ईश्वर ने कहा मैं तो तुम्हारे साथ था ! प्रभु आप साथ थे तो रेत पर चार पैर के निशान होने चाहिए किंतु यहां दो ही है ! भगवान ने कहा वह मेरे पैरों के निशान हैं तुम तो बेहोशी में मेरी गोद में थे ...जब तक तुम्हारे साथ मैं रुपी अहंकार था मुझे नहीं पहचान पाये किंतु जैसे ही अहंकार छूटा तुमने मुझे पहचान लिया ! तुम्हारे दिल से निकली आवाज मुझ तक पहूंच ही जाती है !
मुझे तो पूर्ण विश्वास है मेरी आवाज उन तक पहूंचती है !
        - चंद्रिका व्यास
      मुंबई - महाराष्ट्र
जी हाँ, अवश्य ही जीव के सच्चे और शुद्ध मन की  आवाज ईश्वर तक पहुँचती है । प्रत्येक प्राणी का मन दर्पण कहलाता है । कहा भी गया है कि--
"तोरा मन दर्पण कहलाये,
भले-बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाये ।"
 व्यक्ति की आत्मा में परमात्मा का निवास होता है । जब हम किसी समस्या का समाधान करने के लिये शांत निर्मल हृदय से ईश्वर से प्रार्थना करते हैं । तब हमारे मन में निश्चित ही कोई ना कोई उपाय सूझ जाता है । निश्छल प्रेम श्रद्धा और विश्वास से अवश्य ही प्रभु तक जीव की पुकार पहुँचती है क्योंकि प्रत्येक प्राणी उसी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं । 
बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि--
" ईश्वर अंश जीव अविनाशी,
चेतन अमल सहज सुखराशि"
 अर्थात --
अनश्वर परमात्मा का अंश यह जीव भी चेतन निर्मल सुख का स्वरुप अविनाशी है । '
परमात्मा का अंश यह आत्मा व्यक्ति के शरीर में अनाहत चक्र में अंगुष्ठ के आकार की होती है ।
हमारे सनातन शास्त्रों में प्राणियों के भृकुटी मध्य में स्थित आज्ञाचक्र मेंं बुद्धि का वास कहा गया है । इसी चक्र के माध्यम से व्यक्ति बुद्धि विवेक का प्रयोग करते हैं और शरीर के द्वारा कार्यों का निष्पादन करते है ।
हृदय और विवेक का प्रयोग करते सन्मार्ग पर चलने वाले परोपकारी प्राणी ईश्वर तक पहुँच सकते हैं । 
-  सीमा गर्ग मंजरी
 मेरठ - उत्तर प्रदेश
हाँ हृद्य की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुँचती है । विश्वास में अपनी शक्ति होती है उसी विश्वास के साथ हम ईश्वर को पुकारते हैं जिससे मन को शान्ती मिलती  है ।वही शान्त चित्त   आगे बढ़ने का रास्ता दिखाता है ।मन का विश्वास कामयाबी की पहली पायदान है ।ईश्वर को पुकार कर अपना  दुःख भगवान के साथ साझा करते हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
"खुदा के पास तो देने के हजार  तरीके हैं, 
मांगने वाले तू देख तुझमें कितने सलीके हैं"। 
कहते हैं जिसका कोई नहीं होता उसका खुदा होता है, जब इंसान के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो उसे एक ही सहारा दिखाई देता है वो भी परम पिता भगवान का और इंसान उस समय यही  फरियाद करता है कि  हे भगवान अब आप ही मेरे  पालनहार हो  आपके सिवाय मेरा कोई नहीं है, 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या हृदय की पुकार ईश्वर तक जरूर पहुंचती है? 
मेरा मानना है कि  सच्चे मन से कि गई प्रथाना ही सही मायने में हृदय की पुकार है और मन वचन से की गई प्रथाना अवश्य ईश्वर तक पहुंचती है लेकिन मन में श्रदा और विश्वास का भाव होना चाहिए ऐसी प्रथाना जरूर पूरी होगी क्योंकी प्रथाना ही परमात्मा से मिलने का सबसे कारगार उपाय है, 
सोचा जाए हृदय की पुकार, श्रदा और विश्वास का दुसरा नाम प्रथाना है और यही व्यक्ति को आत्मिक शक्ति प्रदान करती है जीवन की अंधेरी घड़ी में प्रथाना ही आशा की किरण बनकर  पथ प्रदर्शक करती है लेकिन यह ध्यान रहे प्रथाना सात्विक होनी चाहिए यानि  निष्काम होनी चाहिए क्योंकी भगवान खुद जानते हैं कि हमें क्या चाहिए, 
हमें चाहिए सिर्फ प्रथाना में समर्पित होकर यह कह दें हे प्रभु जिसमें मेरा भला हो वोही करना क्योंकी भगवान दूरदर्शी व सर्वज्ञ है, 
बैसे सवके भले के लिए की गई प्रथाना में कामना छिपी होती है और वो अवश्य पूरी होती है, 
प्रथाना तो हर कोई कर सकता है प्रभु सबका ही पालनहार है भगवान भाव और भाषा के भूखे हैं भोजन के नहीं इसलिए अपनी भाषा, भाव व  मन को साफ सुथरा रख कर प्रथाना करने से अवश्य ही जीत होगी व आपकी पुकार अवश्य ईश्वर तक पहुंचेगी, 
अन्त में यही कहुंगा कि प्रथाना तनाब, चिंता, व आकारण क्रोध से बचाकर व्यक्ति को जीने की कला सिखाती है लेकिन याद रखें अंहकार से प्रभु खीझते हैं और प्रथाना से रीझते हैं इसलिए अंहकार रहित कि गई भक्ति ही रंग लाती है, 
प्रथाना निश्छल हृदय से निकली अंतमर्न की सच्ची पुकार है, 
जब संकट में  वाहरी दूनिया के लोग किसी भी मानव को  महत्व नहीं देते या मदद नहीं करते तब उसकी पीड़ा प्रथाना के रूप में  भगवान तक पहुंचती है और एक अदृश्य हाथ उस मनुष्य की  मदद के लिए खड़ा हो जाता है निश्चित रूप में प्रथाना में बहुत बड़ी शक्ति है जो किसी भी असंभव को संभव बना देती है, 
यह एक ऐसी वार्ता है जो एकतरफा होती है लेकिन साकारात्मक परिणाम देती है
 मैं यह मानता हुं कि कोई  तो कोई अदृश्य शक्ति है जो जिसके आगे हम बेबस हैं और वो हमारी हृदय की पुकार को सुनती है व हमारी हर विप्पति को दूर करती है, 
सच कहा है, 
प्रथाना ईश्वर को भेजा गया एक सादर आमंत्रण होता है जिसे ईश्वर कभी नहीं ठुकराता, 
यह भी सच है, 
प्रथाना से धन प्राप्त हो न हो किन्तु प्रथाना करने वाला व्यक्ति जरूर धन्य हो जाता है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी बिल्कुल अगर सच्चे दिल से हम प्रार्थना करते हैं अर्थात हृदय से ईश्वर को पुकारते हैं तो वह पुकार  ईश्वर तक अवश्य पहुँचती है ।
प्रार्थना का सरल अर्थ है भगवान और मनुष्य के बीच विश्वास भरी बातचीत।
 प्रार्थना द्वारा हम ईश्वर से संपर्क स्थापित करते हैं ।प्रार्थना में बहुत शक्ति है अगर आप इस में विश्वास करते हैं ।प्रार्थना अंतर्मन की ईश्वरीय पुकार है। भावपूर्ण ह्रदय से निकली हुई है ऐसी पुकार है जिसका व्यक्ति के अपने तन मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रार्थना ईश्वरी शक्ति की कृपा के लिए भक्तों के व्याकुल हृदय से निकली एक ऐसी करुण पुकार है जो उसको सब प्रकार के संताप ओं से मुक्त कर देती है ।सुरक्षा कवच प्रदान करती है ।यह मन की पुकार है ।
 प्रार्थना का अर्थ यह नहीं होता कि सिर्फ बैठ कर कुछ मंत्रों का जाप करें या उच्चारण करें ।इसके लिए आप निर्मल शांत और ध्यान अवस्था में  हों ।पहले ध्यान फिर प्रार्थना ,,,तभी प्रार्थना प्रभावी होगी ।
जब आप प्रार्थना करते हैं तो आपको पूर्ण रूप से निमग्न होना चाहिए ।यदि मन पहले से कहीं भटक रहा है तो वह प्रार्थना नहीं हुई ।
जब आपको कोई दुख होता है तो आप एकाग्र चित्र हो जाते हैं। इसलिए दुख में लोग अधिक सुमिरन करते हैं,,, यह प्राकृतिक सत्य है।
 प्रार्थना तब होती है जब आप ईश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करते हैं या आप अत्यंत निराशा या निर्बल महसूस करते हैं, इन दोनों ही परिस्थितियों में आपकी प्रार्थना की पुकार सुनी जाती है। सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य स्वीकार होती है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " हदय से निकली हाय । कहते हैं कि कभी खाली नहीं जाती है । ऐसा सभी विश्वास करते हैं । फिर भी सच्चे हदय की पुकार ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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