क्या कभी खुद से पूछा है अपने बारें में ?

खुद से पूछों अपने बारे में , हम क्या है , हमारी स्थिति क्या है ' हम क्या कर रहें हैं , क्या यह उचित कर रहे है ? यह सब  अपने बारें में जानकारी होनी चाहिए । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ! समाज में रहकर हम अनेक रिश्तों से जुड़े हैं !   रिश्तों में जब तक मिठास है ठीक है किंतु कड़वाहट आते ही आपस में एक दूसरे पर अंगुली उठा कहते हैं तुझे तो मैं समझ लूंगा तब अक्सर सूनने में आता है ....पहले अपने आप को तो समझ ले तु क्या है ....? यह तो हुई बोलचाल की भाषा.....पर क्या वास्तव में हम अपने आप को पहचान पाये हैं यदि हां तो कैसे ?
बहुत बार हम गल्तियां तो करते हैं किंतु हम उसे स्वीकार नहीं करते...किंतु कहीं न कहीं हमारी आत्मा स्वीकार करती है...अथवा अपने आप से बातें करने लगते हैं कि आखिर मैं कहां गलत हूं !यह आत्म-मंथन ही हमें अपने आप से मिलाता है !
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ..यदि हम अपने बारे में ही जानना चाहते हैं तो हमें सभी बंधन को छोड़ना होगा ! मैं की आत्मा को प्रभु से यानी परमात्मा से जोड़ना होगा ! उसे ज्ञान हो जायेगा सांसारिक मोह में और प्रभु की तपन से निकले सोने में कितना फर्क है ! वह समझ जायेगा !
         - चंद्रिका व्यास
        मुंबई - महाराष्ट्र
"गुमान पाले रहे मन में हम हर इन्सान को समझने का। 
पर हमने उम्र भर खुद का खुद से बेगानापन देखा है।।"
       इस संसार में अधिकाँश मनुष्य बहुत कुछ पाकर भी जीवन के अधूरेपन की शिकायत करते हैं। पूर्णता और आत्मसंतुष्टि का भाव बिरले इन्सान को ही मिल पाता है।
       खुद से खुद के विषय में बात करने का विचार और समय इन्सान के पास न होना ही इस अधूरेपन का कारण होता है।    
       मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह दूसरों के दृष्टिकोण से खुद को देखने की कोशिश करता है। परन्तु जीवन-सरिता में सफल प्रवाह वही मनुष्य कर पाते हैं जो अक्सर अन्तर्मन के संग बैठकर खुद पर दृष्टिपात करते हैं। यदि ईमानदारी से खुद से अपने बारे में पूछा जाये तो कई ऐसे दृश्य सामने आते हैं, जिनसे हमारा मानव बनना सरल हो सकता है बशर्ते हम स्वयं के प्रति ईमानदार होने का भाव रखते हों। 
      निष्कर्षत: यह बहुत आवश्यक है कि मनुष्य समय-समय पर खुद से खुद के बारे में पूछता रहे सवाल-जवाब करता रहे। 
इसीलिए कहता हूँ कि...... 
पद, प्रतिष्ठा, धन, यश रह जाते कहां आंख बन्द होने पर, 
लोभ, मोह, लालच, अहंकार मिटते यहां जीवन खोने पर।
कामनाओं के प्रवाह में डूबे मनुज कभी बात कर खुद से, 
पूछ जरा स्वयं से गर्व है क्या स्वयं को स्वयं के होने पर।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
मम दर्शन फल परम् अनूपा,
तब पावहि सहज सरूपा l
       अपने सहज स्वरूप से साक्षात्कार करने के लिए आत्म निरीक्षण करना आवश्यक है l अतः अपने बारे में स्वयं से पूछना चाहिए कि मैं कौन हूँ? यहाँ क्यों आया हूँ? मुझे क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए l यदि हमारे मस्तिष्क में प्रकाशवान और प्रगतिशील विचारों का जल स्रोत नहीं होगा तो हमारा अन्तःप्रदेश गंदे नाले की भांति अवरुद्ध होकर दुर्गध देने लगेगा l
    हमारी संकल्प शक्ति मंतव्य पर अवलम्बित है lजब हम अपना मन आँगन बुहारते हैं तो जीवन तथ्यों का मनन, चिंतन हममें सुधार और प्रशिक्षण की आवश्यकता का प्रतिपादन करते हैं l यही स्वयं की प्रगति और लोककल्याण प्रगति का मार्ग है l
     अपने बारे में स्वयं से पूछना आत्मसुधार के लिए नितांत आवश्यक है क्योंकि हमारे मस्तिष्क में बुद्धि रहती है और हृदय में भावना... भावनाओं को कोमल, दया, स्नेह, और सेवा भावना से परिपूर्ण करना तथा स्वार्थपरता पर अंकुश लगाना एक साधना हैऔर इस तप में हमारे संस्कार सुहागे की भांति आत्मा पर से मल आवरण हटाकर निखार लाते हैं l
आत्मा का जीवन चिर स्थायी है l शरीर तो उसका वस्त्र मात्र है l इस वस्त्र को आत्म मूल्यांकन द्वारा स्वयं का परिचय स्वयं से कराकर परिष्कृत करते हुए रंगीन बना सकते हैं l
श्याम रंग में मीरा ने चूनर जो रंगी
वही चूनर जरा ओढ़कर देखिये
जरा अपने बारे में
 खुद से ही पूंछकर तो देखिये l
               चलते चलते ----
आँख भर आई खुद से खुद की मुलाक़ात जो हुई l
खुश्क़ था मौसम मगर झूमकर बरसात हुई ll
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
अगर हम खुद को जाने और पूछें जीवन के सफल होने के लिए क्या करना चाहिए?
आपके अंतरात्मा से यही आवाज आएगी सफलता कुछ और नहीं बल्कि संपूर्णता की एक भावना है। यह एक ऐसी मरीचिका है जिसका हम पीछा तो करते हैं लेकिन पाने में नाकामयाब रहते हैं, क्योंकि हम खुद से स्पर्धा करने की जगह दूसरों के साथ स्पर्धा में अपना समय और उर्जा लगाते हैं।
लेखक का विचार:-सही मायनों में सफल होने के लिए पहले हम खुद को पहचाने और फिर अपनी अंतरात्मा के साथ स्पर्धा करें। 
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
आज भागदौड़ की जिंदगी में हम इतना व्यस्त हो गए हैं कि देश विदेश की तो हर किसी को खबर है लेकिन कभी कभी तो अपने आप को आईने में कब देखा था याद भी नहीं रहता और यही आइना हमे अपने अंदर झांक कर देखने का भी मौका देता है कि हम क्या हैं कर रहे हैं | सामने वाला कैसा है यह तो पल भर में समझ जाते हैं पर हम खुद की परिभाषा खुद को दे पाने में समर्थ से रह जाते हैं | 
आज की चर्चा के इस विषय ने सच में खुद का हाल पूछने पर मजबूर कर दिया है हम रोज दूसरों से पूछते हैं क्या हाल है चलो आज से खुद से भी यह सवाल रोज़ पूछ लिया करेंगे कि बाकी बातें बाद मे मोनिका पहले यह बताओ कि क्या हाल है तुम्हारे....
कुछ सपने जो रह गए थे पीछे कहीं 
आज उन सपनों को हकीकत मे बदलना है
ढल चुके थे हम जमाने के हिसाब से
पर आज हमें अपने हिसाब से चलना है.......
- मोनिका सिंह
डलहौजी -  हिमाचल प्रदेश
प्रत्यक्ष रूप में नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप में सभी अपने बारे में पूछते हैं। अपने मन अपने शरीर के बारे में कुछ करना ही खुद के पूछने के बराबर है। जब कोई अपने मन की बात मानता है या अपने मन की करता है यही अपने बारे में पूछना हो गया। अपने शरीर के प्रत्येक अंगों की बात मानना ही अपने बारे में खुद से पूछना हो गया । शरीर आराम चाहता है।  मन कुछ करने या न करने की चाहता है। जीभ कुछ स्वाद चाहता है। नज़रें कुछ अच्छा देखना चाहती हैं। इत्यादि सभी बातों की पूर्ति ही या उन पर ध्यान देना ही खुद से अपने बारे में पूछना हो गया।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
अपने बारे में जानना और खुद से पूछना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि अपने आप को जानना और समझना आगे बढ़ने और विकास करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमें खुद से यह पूछना चाहिए कि हमारे अंदर क्या छमता है। हम क्या कर सकते हैं। हमारे हमारे अंदर क्या कमियां है जिसे किस तरह से दूर कर सकते हैं। कोई भी यदि नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू देने जाता है तो उनसे यह सवाल जरूर पूछा जाता है की पहले अपने बारे में कुछ बताइए। बहुत लोग इस बात को हल्का समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं और वह इंटरव्यू में फेल हो जाते हैं। प्राइवेट क्षेत्र की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद भी सरकारी नौकरी देश के युवाओं की पहली पसंद है। इसके लिए स्टूडेंट कड़ी मेहनत करते हैं और सफलता हासिल करने का हर संभव प्रयास करते हैं। हम तो पर हर नौकरी के लिए ली जाने वाली इंटरव्यू के बाद व्यक्ति की योग्यता का सही आकलन करने के लिए इंटरव्यू यानी साक्षात्कार का आयोजन किया जाता है, जबकि साक्षात्कार के नाम पर ही अधिकांश उम्मीदवार और परेशानी महसूस करते हैं और वह इस दौरान अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वह जानते हुए भी सवालों का सही जवाब देने में असमर्थ हो जाते हैं। यदि आप अपने बारे में खुद जानते हैं तो कहीं पर भी किसी भी मुकाम पर किसी भी सवाल का सटीक जवाब दे सकते हैं। इसलिए अपने आप को जानना बहुत ही जरूरी होता है। अपने आपको जानने के लिए इच्छाशक्ति का होना बहुत जरूरी है। यदि हम अपनी कार्य क्षमताओं के बारे में जान लेते हैं तो किसी भी क्षेत्र में हम काम कर रहे हैं तो उसमें सफल होना तय माना जाता है, क्योंकि हम जानते हैं कि हम इस काम को कर सकते हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
 यह प्रश्न हरेक के लिए इतना सटीक है, जिसका उत्तर देने में सभी झिझक जाते हैं। असल में हम सभी अपनेआप में विचित्रता लिए हुए हैं। यद्यपि जीवन जीना सरल है परंतु इसके लिए शर्त यही है कि जीवन और जिजीविषा के लिए जो मानक हैं, उनका पवित्रता से अनुपालन करें। ऐसा करना असंभव बिल्कुल भी नहीं, पर कठिन बहुत है।  जीने के लिए हमारी जरूरतें हमें विवश कर ही देतीं हैं कि हम उन मानकों को पवित्रता से नहीं निभा पाते... 
और ऐसे में जब कभी हम खुद से अपने बारे में पूछते हैं तो सकुचा जाते हैं, क्योंकि जो उत्तर होना चाहिए, वह हम देने में असमर्थ होते हैं। हमारी गलती या गल्तियां हमें साफ नजर आतीं हैं। इसीलिए हमेशा हम खुद से अपने बारे में पूछने से बचने के प्रयास में रहते हैं।
अस्तु।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अपने स्वरूप, आचार- व्यवहार, रुचि- अरुचि, गुण दोष पर स्वयम  विचार करना यानी आत्म निरीक्षण करना। यह करना अति अनिवार्य है क्योंकि दोषारोपण की प्रवृत्ति और गतानुगतिक पर चलना ही हमारी नियति बन जाएगी जहां मानव और पशु में कोई भेद नहीं रहेगा।
      विचार पूर्वक हमें अपनी कमियों अच्छाइयों का अवश्य निरीक्षण करना चाहिए ।तब ही हम मानवता के मूल रूप को भलीभांति समझ सकेंगे। हमारी जो भी प्रवृत्ति है; वह हम क्यों और किस लिए कर रहे हैं, यह सार्थक है या निरर्थक इसके शुभ और अशुभ परिणाम पर हमें विचार किए बिना सरासर  अपने प्रति ही अन्याय करना होगा। इसका कारण यह है कि हमारे विकास और अच्छाइयों और सत्कर्म के मार्ग अवरुद्ध होने लगेंगे।
      इस जगत में परमात्मा के अलावा कोई भी संपूर्ण नहीं होता फिर भी मैं तो अपनी कमियों और दोषों का पुतला हूं,, सर्वज्ञ नहीं हूं; ऐसा हर प्राणी को सोचना चाहिए। अतः मुझे अपने अवगुण पर आत्ममंथन भी अवश्य करना चाहिए। जिस प्रकार एक विद्यार्थी फेल हो जाने पर आत्मनिरीक्षण करके जान जाता है; तो यह अच्छा होता यदि शुरू में वह अपनी कमियों पर अवगुणों पर पूर्व ही सच्चे विद्यार्थी के लक्षण पर विचार कर लेता।
     हमें प्रतिदिन दिन भर के नैतिक और अनैतिक क्रियाकलापों पर रात्रि में बिस्तर पर जाने से पूर्व आत्ममंथन अवश्य करना चाहिए।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
शायद हां,शायद नहीं।खुद से खुद के बारे में बात करने का प्रयास ही कब करते हैं हम।
यूं तो हर शख्स खुद तलक ही सीमित है आजकल, लेकिन कोई भी खुद से मिलता नहीं कभी। खुद से खुद के बारे में जानना इतना सरल होता तो दुनिया का स्वरुप ही कुछ और होता।भटकना न पड़ता इधर उधर।
गुरु विरजानंद जी ने दयानंद जी के दस्तक देने पर पूछा, कौन? तो दयानंद जी ने कहा कि मैं यही जानने आया हूं।इतना विद्वान व्यक्ति कहता है मैं यही जानने आया हूं। तो आप और हम क्या है भला। स्वयं के बारे में जानना जितना कठिन, उतना ही सरल है और इसका एक मार्ग संतों ने कहा है, ध्यान,हरि चिंतन।हम दावा करते हैं,स्वयं के बारे में बात करने का, तो
यह भ्रम ही है,क्योंकि हमारा अहं बात करता है। मैं ये, मैं वो आदि आदि। बड़ी सहज सरल बात कही गयी है,जो तू,वो मैं।यथा ब्रह्मांडे,तथा पिंडे। ईश्वर अंश जीव अविनाशी। यही यथार्थ है,हम जिसके अंश है उसी में विलीन होना है और इस विलीन होने तक की यात्रा का नाम जीवन है जो हम मैं, मैं में गवां देते हैं। यह समझ ही नहीं पाते कि हम उस परमात्मा के अंश है। मैं तो ऐसा ही समझ सका हूं।यह शायद नहीं हो या शायद हां।
-  डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
 जी हां हमने खुद से पूछा है अपने बारे में मैं कौन हूं मैं क्या हूं मैं कैसा हूं और मेरे यहां आने का प्रयोजन क्या है अपना प्रयोजन समझ में नहीं आता है तो हम अव्यवस्थित होकर उथल-पुथल जिंदगी जीते हुए शरीर यात्रा करते हैं अगर हम खुद से पूछें कि मेरी यहां आने का प्रयोजन क्या है और हर मनुष्य को यहां आने का प्रयोजन पता चलता है तो उस प्रयोजन के अर्थ मे वह क्रियाकलाप करता है ।तो उसकी जिंदगी जरूर सुखद और सरलता पूर्वक गुजर जाती है ।अगर खुद का प्रयोजन पता नहीं है तो हम भटक जाते हैं और कितना भी धन संपत्ति एकत्र क्यों न कर लें मन में एक अभाव संतुष्टि का अहसास होता है मैं एक आत्मा हूं और शरीर मेरा साधन है और मैं इस साधन का सदुपयोग करते हुए मैं सुख को प्राप्त कर सकें पा लेता हूं यही मेरा यहां आने का प्रयोजन है ऐसा मुझे प्रतीत होता है और इसी उद्देश्य को प्राप्ति हेतु मैं जीने का प्रयास करती हूं अतः यही कहते बनता है कि खुद से पूछने से प्रयोजन का अर्थ पता चलता है तब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह यात्रा करना शुरू करते हैं हर मनुष्य का एक ही लक्ष्य ह "सुख पूर्वक जीना" इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर मनुष्य प्रयासरत है और अपने बारे जानकार को आगे जिंदगी जीने के लिए सोंच विचार करते हुए लक्ष तक पहुंचने का प्रयास करता है। 
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जीवन की भागदौड़ में कहां फुरसत मिली है कि स्वयं द्वारा स्वयं को स्वयं के बारे में पूछा जाए? हां इतना अवश्य है कि अब नहाने-धोने और कपड़े पहनने-ओढ़ने व बदलने का समय मिला है। जबकि अब सिर के बाल बर्फ की भांति सफेद हो चुके हैं।
       इसलिए ऐसा लगता है कि अनचाहे गर्भ की भ्रूणहत्या से बचकर जन्म मिला हो। जिसे मां की मृत्यु के बाद ममता के आंचल का सुखद सौभाग्य कभी भी प्राप्त नहीं हुआ। फिर भी उसे अपने बुरे कर्मों के कर्मफल मानकर मन को शान्त अवश्य करता रहा। परन्तु मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने में सक्षम नहीं हो सका। क्योंकि बाल्यावस्था से चले आ रहे शोषण को भूलना मेरे लिए सम्भव नहीं था। जिसके कारण मेरी आत्मा अमर होते हुए भी पल-पल मरती रही।
       चूंकि कड़वे सत्य विकराल रूप धारण कर चुके हैं। जिन्हें शब्दों की माला पिरोते हुए पुस्तकों का रूप दे रहा हूं और अच्छे दिनों की भरपूर कामना करते हुए ईश्वरीय भेंट से पहले माननीय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में विजय प्राप्ति हेतु सम्पूर्ण शक्ति से जूझ रहा हूं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आज का युग आपाधापी का युग है। हर एक मनुष्य पदार्थवादी दौड़ लगा रहा है। उसे ना खाने का समय ना सोने का ।बस रिशतों में बंधा भाई,पिता और पति आदि।इस के आगे उसे सोचने की जरूरत या फुर्सत नहीं। 
        मनुष्य कभी अपने लिए एक पल भी नहीं निकाल पाता कि बैठ कर सोचे।खुद के रूबरू हो सके।खुद से संवाद रचा सके।यही कारण है कि मनुष्य हर समय एक बोझा अपने कंधे पर लेकर घूम रहा प्रतीत होता है। जो अनमोल जीवन मिला है, उस का आनन्द लेता महसूस नहीं होता। कभी बैठ कर सोचता नहीं है कि जीवन का ध्येय क्या है। बस हमारे जीवन का लक्ष्य खाना, पीना और सोना है। जब मनुष्य इन बातों को जान लेगा तभी वह शांति से जीवन बसर कर सकता है। अपने खुद के लिए समय निकालना जरूरी है। 
- कैलाश ठाकुर 
 टाउनशिप - पंजाब
हां, जब जब असफलता हाथ लगी है, निराशा का माहौल बना है तब तब खुद से अपने बारे में पूछा है।  जब जब स्कूल के मित्र बहुत ऊंची स्थिति में मिले हैं तब तब पूछा है खुद से अपने बारे में। विश्लेषण के यही अवसर होते हैं जब खुद से अपने बारे में पूछा जाता है।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
इस पंक्ति का अर्थ है इंट्रोस्पेक्शन या आत्मनिरीक्षण
हर इंसान के हर बार हर प्रश्न का जवाब उसके पास है अगर वह आत्म निरीक्षण करें तो सही सही प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा पर इसके लिए आत्मविश्वास होना अति आवश्यक है सामान्य तौर पर हम आत्मविश्वास पर कम गौर करते हैं और दूसरों के बातों पर ज्यादा ध्यान देते हैं
इसलिए जब भी आप उलझन में पढ़िए या निर्णय लेने की कोई बात हो तो सबसे पहले आत्मनिरीक्षण करिए आत्मनिरीक्षण में दो तीन बातों पर अवश्य गौर करें आपका आर्थिक स्थिति क्या है मानसिक स्थिति क्या है शारीरिक स्थिति क्या है सामाजिक स्थिति क्या है और सभी को पृष्ठभूमि में रखते हुए निर्णय लेने का कार्य करें तो दिखी इंट्रोस्पेक्शन या आत्मनिरीक्षण बिल्कुल ही सही होगा।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
    हम जन्मते ही सांसारिक रिश्तों से जुड़ जाते हैं । कुछ रिश्ते खून के होते हैं और कुछ मन के जो आयु के साथ बनते बिगड़ते हैं । हम सब अपने सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक परिवेश के अनुरूप ढ़लने लगते हैं। हमारा व्यक्तित्व अनेक अंतः और बाह्य भावनाओं से बना एक विशाल बर्फ के शिला खंड़ की तरह है जो जितना दिखता है उससे अधिक छिपा रहता है। 
    अधिकतर तो हमारा समय  दूसरे क्या कहेंगे,सोचेंगे इसी में चला जाता है ।पर रह सच है कि जब हम अपने बारे में अपने ही दिल से पूछते हैं तो अनेक अनसुलझे प्रश्नों का उतर मिल जाता है।कई ग्रंथियाँ खुद ही घुल जाती हैं । जी हाँ ,जब भी खुद से बात की है तो कभी मन हल्का हुआ है और कभी भारी। कुछ ऐसे काम जो चाह कर भी नहीं कर पाए उसका अफसोस खुद से ही किया। 
हमारी आत्मा हमे हमेशा सही बात कहती है। यदि हम अपनी आत्मा की बात सुन ले तो व्यक्तिगत तौर पर उत्थान निश्चय ही होगा।
   खुद से बात ,खुदा के करीब ले जाती है।
      -  डा .नीना छिब्बर
        जोधपुर - राजस्थान
खुद से किसी विषय के बारे में पूछना अर्थात अपने आप से बातें करना, वार्तालाप करना।  कई बार यह वार्तालाप बड़े काम का होता है, हमें हमारी कमियों से अवगत कराता है, प्रश्नों के उत्तर देता है ,सलाह औरआदेश देता है। कुछ हद तक हमारी याददाश्त को पक्का भी करता है, जब हम किसी विषय के बारे में अपने आप से चर्चा करते हैं तो उस विषय पर हमारा ध्यान केंद्रित हो जाता है, उस कार्य को हम  बखूबी निभा लेते हैं। इस प्रकार अपने आप से बातें करना, सवाल जवाब करना, सलाह मशवरा लेना, सोच विचार करना फायदा ही करता है । 
समाज में अपने आप से बात करने वाले व्यक्ति को लोग बावला या सनकी प्रवृत्ति बाला कहते हैं, लेकिन खुले वातावरण में अकेले व्यक्ति का अपने आप से ही वार्तालाप करना कुछ अजीब सा लगता है लेकिन कमरे के भीतर एकांत में स्वयं से वार्तालाप करना हमारे मानस पटल पर यादाश्त को उभार कर लाता है । 
छोटे बच्चों में यह प्रवृत्ति ज्यादा पाई जाती है । 
यही कारण है कि छोटे बच्चे अपने आप से बातें करते हैं, तो उनका मानसिक विकास जल्दी होता है । 
अतः अपने आप से बातें करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन सीमित आकार में हो तो ज्यादा अच्छा होता है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
बहुत ही अच्छा प्रश्न। वक्त के झंझावातों में, पारिवारिक जिम्मेदारियों में, संघर्षों में ,जिंदगी ऐसी बीत गई कि खुद से खुद के बारे में पूछना ही भूल गई। अपने संबंध में कभी सोचा ही नहीं। इसके लिए यह करना है उसके लिए वह करना है बस यही सब ताउम्र चलता रहा ।अपने लिए  भी कुछ करना है यह ख्याल तो कभी भी मन में नहीं आया ।आदत ही नहीं बन पाई ,अपने लिए सोचने की। अब सोच रही हूं, अपने बारे में भी सोचना प्रारंभ करूं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
     जीवन-यापन करने के लिये उन अभिनव सृजन की ओर ध्यानाकर्षण करना जरूरी हैं, जब भविष्य के क्रियान्वयन हेतु सतत प्रयास करते हैं, किन्तु फिर भी स्वयं अपने व्यवहारिक व्यक्तित्व के बारे में भलीभाँति परिचित होना पड़ता हैं और खुद ही मन मस्तिष्क में विश्वास के साथ एकाग्रचित्त होकर एक तरंग उत्पन्न होती हैं, अपने ज्ञान रुपी संसार में विचारों से अवगत कराने की, एक अनुभूति के तहत अपने बारे में सोच कर रहस्यात्मक राहत प्राप्त करता हैं, हम दूसरे क्या कर रहे हैं उससे हटकर खुद से ही पूछने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं, ताकि भविष्य के क्रियान्वयन हेतु हम दूसरे को ज्ञानार्जन की प्रक्रिया और उससे भी वशीभूत करवा सकें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
बुरा जो देखन मैं चला---मुझसा बुरा न कोय।
     कबीर ने कहा है खुद को देखो खुद को जानो अपने आप को पहचानो। कमाल ये कि युगों युगों से ज्वलंत यह  प्रश्न  इस युग में शब्दों की कारीगरी के साथ हम सब पूछ रहे हैं - - तो निःसंदेह उत्तर में भी शब्दों की बाजीगरी अपेक्षित है कि - - हाँ जी परखा है खुद को लेकिन हीरा मुख से कब कहे लाख टका मेरो मोल ।हालाँकि सब जानते हैं हीरा जहरीला भी होता है - - चाट लो तो पानी ना माँगो--कभी चख कर नहीं देखा लेकिन भई हीरा तो हम हैं!!
         और हाँ खुद से पूछा हीरा पाया खुद को - - और किसी से भी तो पूछें। आइने से पूछ लिया - - चेहरे के पार असली सूरत दिखा सकते हो। जवाब मिला "क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छिपी रहे" अब बताइए कि जब आईना भी असली सूरत दिखाने को तैयार नहीं है तो हमारी क्या बिसात??
     लेकिन जानते मानते परखते पहचाननते हम भी हैं धूल आईने पर हो तो चेहरा बार-बार पोंछने से क्या फायदा? - - तो साहिबान कदरदान मानदान--मदारी का खेल देखिये - - तेल देखिए तेल की धार देखिए! व्यर्थ ही आईने को दोषी ना ठहरायिये। आइना पोंछ कर भी खुद को वही पाएंगे-- जो थे जो हैं वही रहेंगे क्योंकि संस्कार वे ही रहेंगे जो थे जो हैं तो भक्तों कथा समाप्त करते हुए कहेंगे कि हमारे मन ने साबित कर दिया है कि कोई कुछ भी कहे कहता रहे हम जानते हैं कि हम सच्चे भारतीय हैं थे और रहेंगे बस इसी एक रूप में अपने आप को पहचाना है वही रहेंगे !
- हेमलता मिश्र *मानवी " 
नागपुर - महाराष्ट्र
"काबलियत तो इंसान में है , 
इतनी कि जन्नत भी झुका दे, 
एक बार पहचान ले खुद को
तो पूरी दूनिया को हिला दे"। 
क्या आपने कभी खुद की पहचान कि है  कि मैं कौन हुं, 
क्या मैं एक पिता, पति, मित्र,  मुसाफिर डाक्टर या मरीज हूं अगर नहीं तो यह जो आपको विभिन्न नाम दिए गए हैं उनमे से आप क्या हैं
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या किसी ने भी कभी खुद से पूछा है आपने बारे में, 
मेरा मानना है अपने बारे में पूछने की कोशीश बहुत कम लोग करते हैं क्योंकी इंसान जो कार्य करता है उसको उसी कार्य के मुताबिक नाम दिया जाता है  और वो उसी में खुश होकर संतुष्ट हो जाता है, 
मेरे मुताबिक सच्चाई तो यह है एक पुत्र के  आधार से हम पिता और पत्नि के आधार से पति अगर सफर कर रहें हैं तो हम एक मुसाफिर के रूप में हैं, 
यानि हमारी सभी पहचानें दुसरों के कहने पर आधारित हैं तो फिर हम स्वंय कौन हैं यह हम ने कभी भी सोचने की कोशिश नहीं की, 
देखा जाए जीवन के सभी दुख स्वंय को नहीं पहचानने के कारण हैं हमें अपने सच्चे स्वरूप को पहचाने की जरूरत है, 
तो मेरा मानना है मैं स्वंय एक शास्भत आत्मा हुं जो एक परमात्मा का ही एक अंश है
तो में यहा़ं पर एक आत्मा के रूप में  मनुष्य का रूप धारण करके आया हूं  मैं क्यूं आया हूं मैने क्या करना है मेरा कर्तव्य क्या है यह मेरी  आत्मा पर निर्भर करता है कि मैं किसी दुसरी आत्मा की क्या मदद कर सकता हूं या नुक्सान दे सकता हूं लेकिन मैं एक आत्मा हूं जो परमात्मा का ही एक अंश है पर लोग मुझे अलग अलग नामों से पुकारते हैं, मेरे ख्याल में हम मनुष्य एक दिन में कई भावनाओं को अनुभव करते हैं और अपनी पहचान अलग अलग नामों से करबाते हैं, 
 देखा जाए हम आत्मा के रूप में एक समझदार  मनुष्य रूपी चौला पहन कर अच्छे  कार्य करने के लिए इस दूनिया में  आए हैं कि यहां  कि वभिन्न आत्माओं को सुख पहुंचाकर वापिस परमात्मा के साथ जुड़ जांए और वहां जाकर फिर अपने कर्मों के मुताबिक हमें नई आत्मा किसी दुसरे रूप में भी मिल सकती है और हम,  उसी रूप   के नाम से पहचाने जाते हैं, 
अन्त में यही कहुंगा कि अगर हम अपने खुद के बारे में अनुमान लगाएं तो हम एक परमात्मा रूपी  एक अंश हैं जिनको सृष्टी में भला कार्य करने के लिए भेजा गया है लेकिन इधर आकर इंसान सही रास्ता भटक कर अपनी अलग अलग पहचान बनाये बैठा है, 
सच कहा है, 
पहचान पाने की खातिर पूरा जीवन लगा दिया
चंद रूपयों के लालच मैं ईमान दांव पर लगा दिया। 
हमें चाहिए, 
लफ्ज मेरी पहचान बनें तो बेहतर है, 
चेहरे का क्या वो तो साथ
चला जाएगा। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

क्या कभी खुद से पूछा है अपने बारे में -यह एक ज्वलंत प्रश्न है जो हमें खुद के अंदर झांकने को और खुद को समझने को मजबूर कर देता है।
जीवन में सारे दुख अपनी असली पहचान न जानने के कारण होता है।आध्यात्मिक तौर पर समझे तब हम एक शाश्वत आत्मा है जो अज्ञानतावश माया-मोह के पाश में बंधकर आशा- निराशा के जंजाल में गोते लगाते रहते हैं। सांसारिक बंधन में बंध कर खुद को मृगतृष्णा में लिप्त रखते हैं पर अलौकिक को लौकिक धरातल पर जीवन के  अमूल्य क्षण के महत्व को आंकते हुए रिश्तो के बंधन में खुद को तराजू पर तौलें तब हजार गलतियां खुद में महसूस करेंगे।
वास्तविकता यही है कि इस कसौटी पर सभी खुद को परखना नहीं स्वीकार करते। अहम् खुद को झुकने नहीं देता। स्वाभिमान भी आड़े आ जाती है--इसी ऊहापोह में हम खुद के अंदर झांकने की हिमाकत नहीं करते। दूसरे को परखने में ही ज्यादा समय गुजर जाता है।
नश्वर शरीर, चंचल मन शाश्वत आत्मा को न समझ कर नैतिक-अनैतिक,सत्य- असत्य,उचित -अनुचित, लौकिक- अलौकिक, एकेश्वरवाद-अनेकेश्वरवाद को समझने से वंचित रह जाता है। हम अज्ञानता के बोझ तले दबकर मृत्यु को प्राप्त कर लेते हैं।
              -  सुनीता रानी राठौर 
             ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " खुद की जानकारी बहुत जरूरी है । जिससे जीवन का मार्गदर्शन होता है । कभी किसी ने मुझे समझाया कि प्रत्येक शाम को सारे दिन के कार्य पर विचार करना चाहिए । खासकर जिस दिन आपके साथ बुरा हुआ हो .. ।
ऐसा करने से अपनी गलती का सुधार सम्भव हो सकता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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