क्या कोरोना का लॉकडाउन अनुशासन जैसा साबित हुआ है ?

जब कोरोना वायरस जैसी बिमारी इंसान का काल बन कर सामने हो तो बचाओ के लिए कोई ना कोई रास्ता बनना ही पड़ता है । ऐसी स्थिति में जब इलाज की कोई दवाई भी ना हो । फिर लॉकडाउन ही कारगर साबित होता है । लॉकडाउन वास्तव में अनुशासन का एक रूप है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कोरोना का लॉक डाउन मानव लिए है अन्य किसी भी जीवधारी के लिए नही. मानव का स्वभाव देश काल परिस्थिति में बदलाव करता है अनुशासन में रहना भय के वशीभूत है जहां मानव को भय होता है तो वह हर उस नियम का पालन करता है जो उसे उस भय से मुक्ति दिला सके । कोरोना का लॉक डाउन इसीलिए अनुशासन जैसा लगता है परन्तु ये भी कड़वा सत्य है जिन्हें कुछ भय नहीं है उन्होंने अनुशासन भंग करने में कोई कमी नही छोड़ी है ।
   लॉक डाउन में अनुशासन का पालन हुआ है तो कहीं कहीं अनुशासन को ताक में रखे जाने की कोशिशों में जुटे लोग किसी से अछूते नहीं रहे । कभी सड़कों पर जाम जैसी स्थिति तो कभी रेलवे स्टेशनों पर तो कभी अस्पतालों में अनुशासन को तार तार किया गया है ये सारे वही लोग हैं जो भय से मुक्ति पा चुके थे या मुक्ति के लिए भाग रहे थे लोगों ने जान तक दे डाली ।
  अपवाद को छोड़कर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कोरोना का लॉक डाउन अनुशासन जैसा ही साबित हुआ है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
महामारी ने सारे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया। परन्तु जिस प्रकार अमेरिका, स्पेन, इटली, फ्रान्स, इंग्लैण्ड, जर्मनी, टर्की और रूस जैसे बड़े-बड़े देशों से रोगियों और मृत्यु के आंकड़े प्राप्त हो रहे हैं उसे देखकर लगता है कि जनसंख्या के हिसाब से दूसरा बड़ा देश होने के बावजूद भी भारत की स्थिति बहुत अच्छे नियंत्रण में है।े प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी बार-बार इसे सभी भारतवासियों की जीत बता रहे हैं। परन्तु हर भारतवासी यह महसूस कर रहा है कि इस मजबूती का सीधा श्रेय श्री नरेन्द्र मोदी जैसे मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व को जाता है जो अत्यन्त विनम्रता के साथ समस्त भारतवासियों से बार-बार एक ही अपील करते हुए दिखाई देते हैं कि एक-एक भारतवासी को इस भयंकर महामारी के विरुद्ध एक योद्धा के रूप में पूरी त्याग भावना के साथ संयम और संकल्प का प्रदर्शन करना है। आज यदि 135 करोड़ भारतवासियों को इस वैश्विक आपात स्थिति में कोई योद्धा बनाकर खड़ा कर रहा है तो स्वाभाविक रूप से वह स्वयं महायोद्धा माना जायेगा। क्योंकि उसी के नेतृत्व में भारत को इस युद्ध में विश्वयोद्धा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।कोई भूखा न सोये - विगत लगभग एक महीने में श्री नरेन्द्र मोदी की अनेकों नीतियों पर यदि एक दृष्टि डाली जाये तो हमें यह समझने में देर नहीं लगेगी कि आज इतनी बड़ी वैश्विक महामारी में भी भारत एक वैश्विक प्रेरणा बनकर उभरा है। सर्वप्रथम लॉकडाउन की घोषणा करते ही प्रधानमंत्री जी का एक-एक देशवासी के प्रति चिन्ता को उजागर करने वाला आह्वान था 
‘कोई भूखा न सोये’। अपनी इस चिन्ता को दूर करने के लिए उन्होंने सरकारी खजाने खुले दिल से खोल दिये और लाखों करोड़ रुपये सहायता आदि के रूप में जन-जन तक पहुँचाने के लिए बिना समय गंवाये तत्काल योजनाएँ घोषित कर दी गई। उनके निर्देशानुसार केन्द्रीय वित्तमंत्री ने जिस प्रकार इन सारी सहायता योजनाओं की घोषणा की उसे देखकर स्पष्ट लग रहा था कि जैसे कोरोना महामारी के लिए एक विशेष बजट घोषित हो रहा हो। भारत के इस प्रयास की तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भरपूर प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत की सरकार कोरोना के साथ-साथ गरीबी से भी लड़ रही है, यह अवश्य ही दूरगामी प्रभाव पैदा करेगा। गरीबों के लिए नि:शुल्क गैस सिलेण्डर, मासिक सहायता राशि, वृद्धों की पेंशन आदि अनेकों प्रकार की सहायताएँ घोषित कर दीं। उनके आह्वान को देखते हुए देश के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीति संगठनों ने जन-जन के प्रति सहायता सामग्री बांटने के दौर प्रारम्भ कर दिये। भाजपा ने तो अपने समूचे कार्यकर्ताओं को इस कार्य के लिए युद्ध स्तर पर जुडऩे के निर्देश भी जारी कर दिये। इसके बाद ‘पीएमकेयर’ नामक फण्ड में वित्तीय सहयोग आमंत्रित करते हुए कहा कि प्रत्येक नागरिक को यथासम्भव और न्यूनतम 100 रुपये का सहयोग अवश्य करना चाहिए। उनके इस आह्वान पर जहाँ सामान्य नागरिक इस सहयोग के लिए आगे आये वहीं देश के धन-सम्पन्न व्यक्तियों और उद्योग समूहों ने हजारों करोड़ रुपये इस फण्ड में आहूत कर दिये । 
सबने मिलकर यह लड़ाई लड़ी और आगे भी लड़ेंगे । 
अधिकांश लोगों ने पालन किया है 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना से सुरक्षा के लिए हुआ लॉक डाउन अनुशासन ही साबित हुआ है। अनुशासन अर्थात नियमों का पालन करना। इस लॉक डाउन में सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का देशवासियों ने भरपूर पालन किया है। उन नियमों को पालन कराने के लिए शासन और प्रशासन ने जिस मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी की वह प्रशंसनीय है। कुछ उद्दंड नागरिकों ने अनुशासन तोड़ने और सुरक्षाबलों पर हमला करने जैसा दुस्साहस किया। किंतु कुल मिलाकर अनुशासन में रहते, चलते अब स्वानुशासन में रहने की प्रवृत्ति विकसित हो गयी, हो रही है।उदाहरण हेलमेट लगाना शान के खिलाफ समझते हुए अपनी सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले लोग,बिना किसी दबाव और सख्ती के मुंह पर मास्क लगा रहे हैं। सिर ढक रहे हैं।बार बार हाथ धो रहे हैं।सुरक्षा नियमों का पालन कर रहे हैं। इससे लगता है देश अब अनुशासन के आगे स्वानुशासन की ओर कदम बढ़ा रहा है। इसे लाकडाउन की उपलब्धि मानना गलत न होगा।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
 धामपुर - उत्तर प्रदेश
यह बीमारी प्रकृति की लक्ष्मण रेखाओं को अपने रहन-सहन, खान-पान से लांघने वालों की वजह ही आई है। यह बाजार या प्रयोगशाला में पैदा हुई या प्रकृति ने पैदा की है? अभी इस पर बहस लम्बी चलने वाली है। हमें इस बहस से ऊपर उठकर अपने काम में लगना है।
अभी लॉकडाउन और भारतीयों के अनुशासन से हमारी जीत के लक्षण दिखाई देंगे। इस समय यदि काई जिता सकता है, तो वह है ‘अनुशासन’। अन्यथा हमारे जीवन में हम जितनी अनुशासनहीनता और लापरवाही बरतेगें, कोरोना का उतना ही परपंच बढ़ेगा। इससे बचने का समय बहुत कम है। इसलिए आज से संकल्प करें कि कोरोना के साथ कोई लापरवाही नहीं करेंगे। ये धोखेबाज बीमारी है। धोखा देकर आती है, जो इस बीमारी को लेकर आता है, उसे सबसे ज्यादा ईमानदारी और अनुशासन से अपने जीवन में व्यवहार करना चाहिए। एक व्यक्ति की लापरवाही से ही यह बहुत लोगों की जान ले सकता है। इसलिए जो यह जानता है उसे अपने आप को बचाने के साथ-साथ, दूसरों को बचाना भी उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए। तभी इस जानलेवा धोखा देने वाली बीमारी से भारत जीतेगा।
भारत में कोरोना जैसी बीमारी से बचने का व्यवहार और संस्कार पहले से ही मौजूद है। हम पहले किसी भी मित्र या दोस्त से मिलते वक्त हाथ नही मिलाते थे, उसका कंठ, गाल नहीं चूमते थे बल्कि दूर से ही अपने हाथों को जोडकर उनका सम्मान और प्यार करते थे। इसलिए हमारे देश में बीमारी आने के रास्ते हमारे पुराने आरोग्य रक्षण में निहित थे। लेकिन अब हम इस रास्तों को भूल गए है। अब हमनें दूसरे देशों के तरीके अपना लिए है, जो खुद बीमार होकर, बीमार न होने वाली व्यवस्था को बीमार बनाने का काम कर रहे हैं।अब हमें सोचना है कि हम अपने ‘‘स्वावलंबी जीवन के तरीकों को अपनाएं और कोरोना को भगाएं।” इस धोखा देने वाली बीमारी को फैलाने वाले देशों व व्यक्तियों से बचें। हां, हम वसुधैव कुटुम्बकम तथा जय जगत को मानने वाले थे और हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी विविधता को भूलकर, दूसरों की नकल करने लगें हैं।
। हम  जानते है कि आप मुझसे ज्यादा कोरोना को समझ सकते हैं, इसलिए इससे बचने के उपाय आप भी ढूंढ रहे होंगे, फिर भी मेरी कम बुद्धि में, हमे जो सूझा, वह हमने लिख दिया है।
- राघव तिवारी
कानपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना (कोविड - 19) वायरस महामारी को नियंत्रित करने के लिए देशभर में लॉकडाउन 3 चल रहा है जो 17 मई तक है। देश ।के जिस तरह से कोरोना के मामले तेजी 
से बढ़ रहे है इससे यही लगता है कि इसको नियंत्रित करने में काफी समय लगेगा। देश भर में लॉकडाउन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का लोगों ने ठीक तरीके से पालन नही किया। जैमिनी अकादमी द्वारा पेश शुक्रवार की चर्चा में सवाल उठाया गया है कि क्या कोरोना का लॉकडाउन अनुशासन जैसा साबित हुआ ? इस चर्चा में यही कहा जा सकता है कि सही मायने में कोरोना लॉकडाउन अनुशासन जैसा साबित नही हुआ। सबसे बड़ी समस्या सोशल डिस्टेंसिंग की रही। बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग को धज्जियां उड़ाई गई। अफवाहों पर हजारों की संख्या में मजदूर रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां सोशल डिस्टेंसिंग नही दिखी। हाल में जब शराब के ठेके खोल दिये गए तो लीगों ने सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह नही की। कोरोना को नियंत्रित करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना बहुत ही जरूरी है। ऐसा नही किया गया तो कोरोना को रोक पाना असंभव हो जाएगा।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की देश के मुख्यमंत्रियों के साथ कोरोना को लेकर बैठक हुई। इस बैठक में पंजाब, दिल्ली, केरल सहित देश के एक दर्जन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने लॉकडाउन को फिर से बढ़ाने की मांग की। लॉकडाउन 4 को 18 मई से बढ़ाया जाएगा जो संभवतः 30 मई तक जारी रहेगा। इसके साथ ही राज्य सरकारें उधमियों, मजदूरों व आम लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ बहुत सारी रियायतें देने जा रही है
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कोरोना की महामारी के चलते, देश में जो लॉक डाउन की जो व्यवस्था लागू की गई थी, उस व्यवस्था में दो पक्ष सामने प्रस्तुत हुए हैं। एक सकारात्मक पक्ष और एक नकारात्मक पक्ष। यह सत्य भी है क्योंकि किसी भी स्थिति, किसी भी नियम, किसी भी कार्य के सदैव ही यह दो पक्ष हुआ करते हैं। अब चर्चा करते हैं लॉक डाउन के कारण अनुशासन बढ़ा अथवा नहीं। मेरा अपना मानना है की लॉक डाउन के चलते कुछ लोगों ने इसका पूरी निष्ठा के साथ पालन किया है जिस कारण यह कहा जा सकता है कि इसने अनुशासन का भी एक पक्ष प्रस्तुत किया, परंतु वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सरकार द्वारा लागू किए गए इस लॉक डाउन की स्थिति को गंभीरता से ना लेते हुए अपने ही नियम और शर्तों पर इस भयंकर महामारी से उलझते दिखाई दे रहे हैं। यह वही लोग हैं जिन्हें ना तो अपनी चिंता है, ना अपने परिवारों की चिंता है, और ना ही अपने देश और समाज की चिंता है। अतः इस पक्ष को एक नकारात्मक पक्ष के रूप में देखा जा सकता है। जिस तरह हाथों की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती उसी प्रकार समाज में भी कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो स्वयं को दूसरों से अलग दिखाने के लिए कुछ ऐसे कार्य कर जाते हैं जो गंभीर परिणामों के रूप में देश के सम्मुख प्रस्तुत होते हैं। अंत में यही कहना चाहूंगा लॉक डाउन के चलते नियमों का पालन करने वाले लोग निश्चित रूप से अपने को अनुशासन में रखकर, अनुशासन के प्रति अपने समर्पण को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं,परंतु कुछ लोगों के कारण ये अनुशासन ध्वस्त होता दिख रहा है।कुल मिलाकर अब यह विचार खुद के आत्ममंथन का विषय बन गया है।
घर पर रहे,सुरक्षित रहें।
जय हिन्द, जय भारत
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तरप्रदेश
कोरोना वायरस से हमें समाज को ओर देश को जो नुकसान होना था हो गया एक अछछी बात सामने यह आ रही हैं की हमें अब धिरे धिरे अनुशासन में या कहे प्रतीबन्ध में  जीना आते जा रहा हैं। व्यक्ती सवयं ही मितव्य होता जा रहा हैं जो हमने जीवन में कल्पना नही की थी वह अब हमारें ही जीवन में होते जा रहा हैं।हमें अब अनुशासन को सवय॔ भी रहना हैं ओरों को भी आघा (सतर्क ) करतें चलना हैं मानों या न मानों हमें भी अनुशासन का पालन करना हैं ओर अपने ईर्द गीर्द लोगो को भी अनुशासन पाठ पढ़ा रहना हैं जो पालन नही करता हैं वह तुरंत ही हमारे दिलो दिमाग से निकल जाता हैं फिर हमारी भी इछ्छा नही होती की हम अनुशासनहिन व्यक्ती से कोई सम्बनध रखें कह सकता हु समाज में एक महत्व पुर्ण बदलाव हम देखने वाले हैं मुझे लगता हैं यह बदलाव सम्पुर्ण समाज के हित में होगा आओ  हम मिल कर अनुशासन का पालन करे देश समाज का नैतिक स्तर उठायें।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्य प्रदेश
समय पर उठाए गए कदमों और देशवासियों के त्याग ने भारत को संकट से बचाया। सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि अगर सख्त कदम नहीं उठाए होते तो क्या होता। हमें बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है, लेकिन लोगों की जान से बढक़र कुछ नहीं। हमने अब तक अनुशासन दिखाया है और आगे भी अनुशासन का पालन करते रहेंगे। जहां कोई हॉटस्पॉट नहीं होगा और ऐसी आशंका भी नहीं होगी, वहां कुछ छूट मिलेगी। पीएम ने कोरोना से लड़ाई के लिए लोगों से सात वचन मांगे। उन्होंने इन्हें सप्तपदी की संज्ञा दी। हिन्दू विवाह प्रक्रिया में सप्तपदी अहम चरण है, जिसमें विवाह करने वाले एक-दूसरे को सात वचन देते हैं। संबोधन के बाद सोशल मीडिया पर ‘सप्तपदी’ ट्रेंड करने लगा। मोदी ने ये सात वचन मांगे: घर के बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें। जिन्हें पुरानी बीमारी हो, उनकी हमें अतिरिक्त देखभाल करनी है। लॉकडाउन और फिजिकल डिस्टेंसिंग की लक्ष्मण रेखा का पूरी तरह पालन करें। घर में बने फेसकवर या मास्क का अनिवार्य प्रयोग करें। अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें। गर्म पानी और काढ़ा का निरंतर सेवन करते रहें।  कोरोना का प्रसार रोकने में मदद के लिए आरोग्य सेतु मोबाइल एप डाउनलोड करें। अन्य को भी यह एप डाउनलोड करने के लिए प्रेरित करें। जितना संभव हो सके उतने गरीब परिवारों की देखरेख करें। उनके भोजन की आवश्यकता पूरी करें। आप अपने व्यवसाय, अपने उद्योग में अपने साथ काम कर रहे लोगों के प्रति संवेदना रखें। किसी को नौकरी से न निकालें। देश के कोरोना योद्धाओं डॉक्टर, नर्स, सफाईकर्मी, पुलिसकर्मी आदि का पूरा सम्मान करें।
लोगों ने खुद ही अनुशासन का पालन किया, मास्क पहने और दूरी बनाई, हर जगह सोशल डिस्टेंसिंग नजर आई
जिन क्षेत्रों में अनुशासन की कमी थी वहां लॉकडाउन से अनुशासन आया है. ये एक वायरस है इसका रिस्क हो सकता है आगे भी बना रहे इसलिए इससे बचने के लिए लॉकडाउन के अनुशासन को इसके हटने के बाद भी जारी रखना होगा.
कई जगह अनुशासन था पर कई जगह अनुशासन का उल्लंघन भी हुआ है । 
जहां जहां उल्लंघन हुआ है वहाँ कोरोना की संख्या बढ़ी है । 
अधिकतर लोगों ने अनुशासन का पालन किया है। 
जो  निर्देशों कावरुरी तरह पालन नहीं करते उनके लिए मैं कहूगी 
मौत से नहीं लगता डर ..
मौत से नहीं लगता डर 
कोरोना से डरती हूँ 
आजाए जो अपनों से दूर करे 
घर द्वार सब छुड़वाए, 
सारे रिश्ते नाते दूर हो जाए 
कोरोना नाम से दहशत छा जाती
 चेहरे पर डर की परछाई आती।
आयेंगा तो क्या होगा ? 
ज़िंदा रह न पायेगें ...
यह सोच सोच मर जायेगें । 
ले जायेगे अस्पताल 
साथ कोई न जायेगा ।।
अंतिम विदाई जीते जी दे दी जायेगी ...
कोई मिलने भी नहीं पायेगा 
कैसी हैं यह महामारी 
कैसा कोरोना वायरस 
मरने पर न , हो पाये अंतिम संस्कार ,
न फूल माला न धूप दीप 
न मुखाग्नि दी जाए 
न राम नाम सत्य ही , 
पुकारा जाए ।।
न अस्थियाँ मिले 
न कर पायें विसर्जन ।।
बुढे तो झेल ही नहीं पाते 
चटपट झटपट मृत्युलोक पहुँचते। 
युवाओं पर करती कुछ कुछ रहम 
रुक रुक करती बेहाल ..
बच्चे सब जाग गये है , मान गयेहै 
कोरोना से लड़ना है हमको समझाते हमको , मास्क पहन कर रखो , 
हाथो को बार बार धोना , 
सबसे दूर ही रहना ..
योगा कर सेहत बनाओं  
वनस्पति का करों सेवन
गर्म पानी पीना , ठंडे पेय से दूरी रखना ...
निर्देशों का पालन करते ,बच्चे है समझदार ।।
कोरोना को भगाना , 
देश को उन्नत करना ।।
अफवाओ से बचना होगा 
सब को यह समझाना होगा ।।
नहीं डरेंगे , कोरोना से लड़ेंगे 
देश से मार भागायेगे !!
जीतेंगे हम जीतेंगे 
कोरोना से जीतेंगे ।।
मिल कर जंग लड़ेंगे 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
हां इस बात में कोई दो राय नही है कि लोकडाउन ने लोगो को असभ्य से संभ्य बनने के लिए सुनहरा अवसर प्रदान किया है । जिसे लोगो ने समझा भी है और अपनाया भी है , जिसका कहीं न कही लोगो पर असर भी देखने को मिला है और जिसका बडा बदलाव समाज मे जल्द देखने को मिलेगा । लोग बाहर का खाना त्याग कर घरेलू भोजन पर आ गए है, जिसके दुष्प्रभाव लोगो को पता चलने लगे है । वही अपने परिवार जनों के लिए एक मिनट का भी समय न रखने वाले लोग अब सारा समय अपने - अपनो के साथ बिता रहे है , जो निश्चित ही समाज मे भाई चारे वाली मिशाल व महज अपनी जरूरतों में सिमट कर रह जाने वाले लोगो को समाज हित के लिए प्रेरित करेगा ।
घरों में अपनो के बीच रहकर उनकी जरूरतों को समझना, मुसीबत के समय मे घर खर्च सहित अन्य बातों को आपसी विचार कर समय व्यतीत करने वाले लोगो के लिए ये लोकडाउन निश्चित ही एक बड़ी सफलता साबित होगा । जिसने न केवल लोगो को अनुशासित किया है बल्कि लगातार ही लोगों को अनुशासित कर रहा है । 
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
सभी के ऊपर मुसीबतआती है तो यह बात सच है।कि सब एक हो जाते हैं और एक होकर उसका मुकाबला करते हैं ठीक उसी तरह जो यह अज्ञात वायरस हमारे ऊपर आया है जो कैसे फैलता है उस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है हम अपने स्वक्षता और आयुर्वेदिक तरीकों के कारण हम एक होकर इसका मुकाबला कर रहे हैं इसके लिए हमें अपनी जीवनशैली को अनुशासित रखना चाहिए उसने हमें सबको अनुशासन और सात्विक रहना सिखा दिया है यदि हमें ज्यादा दिनों तक जीना है तो अपनी दिनचर्या को अनुशासित रखनी ही पड़ेगी।अनुशासन जीवन के लिए बहुत जरूरी है उसी तरह हमें अधिक समय तक जीने के लिए अपने आप को नियमों में तो बांधना ही पड़ेगा जो सदस्य सिंह को फॉलो करना पड़ेगा मुंह में हमेशा कपड़ा बांधना पड़ेगा योगा करना पड़ेगा अंकुरित अनाज पोस्टिक डालें सभी हमें खानी पड़ेगी जिससे हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़े और हम रुको से लड़ सके क्योंकि इसके ना कोई दवाई है और ना ही कोई टीका है।सिर्फ नियम ही हमें बचा सकता है।
मनुष्य बहुत स्वार्थी है जब अपनी जान पर बन आती है ,तो सभी नियमों का पालन करने लगता है।आज बड़े बुजुर्गों के बताए हुए सारे तरीकों को सभी लोग अपना रहे हैं और हमारे आयुर्वेद को सपने ही अपनाया है सबको जीवन की राह मिली है संपूर्ण विश्व ही शुद्ध और सात्विकता का पालन कर रहा है।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
कहते हैं 'भय बिन होत ना प्रीति'। उसी प्रकार 'अनुशासन' अर्थात् नियन्त्रण में रहना भी मानवीय प्रवृत्ति के लिए अत्यन्त कठिन होता है क्योंकि स्वच्छन्दता ही सबको प्रिय होती है। परन्तु बात जब स्वयं का जीवन बचाने की हो तो अनुशासन में रहना ही उचित होता है। लाॅकडाउन में भारतवासियों ने अनुशासन का परिचय दिया है इसमें कोई दो राय नहीं हैं। इसीलिए कहा जा सकता है कि कोरोना के भय के कारण उत्पन्न लाॅकडाउन अनुशासन जैसा साबित हुआ है। 
मेरे विचार से तो इस लाॅकडाउन में अनुशासन से अधिक 'स्वानुशासन' की प्रवृत्ति का विकास हुआ है। परिस्थितिजन्य अपवादों को छोड़कर अधिकांश नागरिकों ने शासन-प्रशासन द्वारा प्रदत्त अनुशासन का पालन तो किया ही परन्तु अधिकांश लोगों ने स्वानुशासन कर कोरोना से स्वयं का बचाव किया है। 
यह भी प्रत्यक्ष है कि लाॅकडाउन में अनुशासन में रहना जिन्हें स्वीकार नहीं हुआ उनके ऊपर इसके दुष्प्रभावों ने असर डाला है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
जी हां  कोरो ना  वायरस  के संक्रमण  में   कोई  भी  आ सकता  है इसके लिए लो कडाउन अनुशासन जैसा साबित हुआ है । 
   क्योंकि अगर लॉक डाउन नहीं होता तो अब तक हमारे  देश  में संक्रमित  व्यक्तियों  की  संख्या अनगिनत होती लॉक डाउन -१ में सक्रिय मामले  3219 
अस्पताल से ठीक हो कर घर पहुंचे  275 
और मृत्यु के मामले  83 थे
        अब लॉक डाउन -3 खत्म होने को है।
 सक्रिय मामले  -57401 अस्पताल से ठीक होकर घर पहुंचे  -27920 
और मृत्यु  -2649 
सभी ने लॉक डाउन के नियमों का पालन करते हुए कोरो ना के संक्रमण से बचाव किया  है परंतु जैसे ही लॉक डाउनखत्म होने वाला होता था जैसे लोग डाउन एक की समाप्ति से एक-दो दिन पहले वे प्रवासी  मजबूर हो गए जिनके पास अपने बच्चों का पेट भरने के लिए कोई सहारा नहीं मिला ।
 वे घर के लिए नहीं निकलते तो क्या करते  ?
प्रवासियो को वहां पर कुछ सुविधाएं मिलती तो अनुशासन का क्रम नहीं टूटता लॉक डाउन में बंदिश में रहने का डर तथा दूसरा लॉक डॉउन   शुरू होने का डर प्रवासियों को कोरोना से संक्रमण होने का  भयभी  नहीं रोक पाया। 
  परंतु स्थाई निवासियों ने लॉक डाउ न में सामा जिक  दूरी व अनुशासन का पालन करते हुए अपने आप, परिवार  व समुदाय को सुरक्षित रखा लॉक डाउन अनुशासन ही नहीं बल्कि संजीवनी सावित  हुआ है ।
                  - रंजना हरित 
    बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 कहा जाता है अनुशासन ही देश को महान बनाता है करोना का लाक डाउन अनुशासन जैसा साबित हुआ है बल्कि बेहतरीन साबित हुआ है तभी हम अन्य देशों की तुलना में हमारे भारतवर्ष को  काफी हद तक सुरक्षित रख पा रहे हैं किसी देश की बनाई है अनुशासन किसी एक व्यक्ति लंघन करता है तो उसका दंड वही भुगतना है लेकिन करो ना के लिए बनाया गया अनुशासन अगर एक गलती करेगा तो उसका परिणाम अनेकों अनेकों मिलेगा यही वजह है कि अनुशासन जैसा साबित हुआ है लाक डाऊन बल्कि बेहतरीन साबित हुआ है। अगर अनुशासन का पालन नहीं होता तो अन्य देशों की तरह हमारा भारतवर्ष जो जनसंख्या की अधिकता होने का गौरव प्राप्त है कितनी जनसंख्या होते हुए भी अपने लिए अनुशासन का पालन करते हुए सुरक्षा का अनुभव कर रहे हैं यह हमारे भारत वासियों के लिए बहुत उपलब्धि और गर्व की बात है कोई भी कानून या अनुशासन पूरी तरह से सफल नहीं हो पाता कुछ अंश गड़बड़ हो ही जाता है इसी तरह करो ना महामारी के लाक डाउन के चलते जो सरकार द्वारा जो नीति नियम बनाई गई है उसका पालन बहुत लोग कर रहे हैं कुछ ही लोग हैं जो अज्ञानता और लापरवाही के कारण लाक डाउन में नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं फिर भी विश्व स्तर पर देखा जाए तो भारत की स्थिति अन्य देशों की तुलना काफी हद तक ठीक है इन्हीं सभी को देखते हुए कहा जा सकता है कि वैश्विक बीमारी करो ना समूल नष्ट करने के लिए सरकार द्वारा जो लाभ डाउन का प्रस्ताव रखा गया जनता के सामने उसका पूरी तरह से पालन जनता कर रही है जो सबके लिए लाभदायक और उपयोगी है जान है तो जहान है वाली कहावत है अगर मनुष्य जिंदा रहेगा तो उनकी अन्य साधन से जाएं बाद में वह श्रम करके पूर्ति कर लेगा फिलहाल अभी किसी भी तरह से करुणा से निजात पाने के लिए एकजुट होकर मुकाबला कर अपने को सुरक्षित रखना है और करो ना को भगाना है अगर ऐसा करने में हम कामयाब है तो हम लाक डाउन अनुशासन जैसा साबित ही नहीं बेहतरीन साबित हो रहे हैं। यह भारत की जनता की समझदारी का प्रमाण है अगर हर कार्य समझदारी से किया जाता है तो जरुर सफलता मिलती है सफलता मिलने से ही समाधान होती है समाधान होने से ही हम सुख शांति से रह पाते हैं अभी हमारी लड़ाई समस्या से निपट कर कैसे समाधान आए इस दुख से निजात होकर कैसे हम सुख  पूर्वक जी पाए इसी के लिए लाफ डाउन की लड़ाई है इसमें सभी को  ईमानदारी के साथ भागीदारी करना जरूरी है। तभी करो ना से जीत पाएंगे।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
अनुशासन यानि स्वयं पर शासन या नियंत्रण करना! स्वशासित नियम होते हुए भी इसका पालन करना आसान नहीं है! यह बहुत बड़ी समस्या है किंतु भारत में इस संक्रमण काल में सभी ने अनुशासन में रहकर साबित कर दिया है कि वे कोरोना महामारी की जंग में विजयी होंगे!
आज इस संक्रमण से संक्रमित लोगों की संख्या अन्य देशों की तुलना में बेहतर है!
अनुशासन की वजह से ही देश की अधिकतम जनसंख्या का खिताब लेकर भी हम सुरक्षा का अनुभव कर रहे हैं!
हमारे प्रधान मंत्री ने साथ नियमों का पालन करने का प्रावधान रखा है कुछ कायदे कानून भी इस लॉकडाउन में प्रस्तावित किए हैं किंतु सभी कायदे कानून तो पूर्ण रूप से सफल नहीं होते! इस लॉकडाउन में भी जो नीति नियम सरकार ने बनाएं हैं उसका पालन बढीं संख्या में देश की जनता कर रही है कुछ अज्ञान इसका पालन नहीं कर पा रहे हैं किंतु विश्व देश की तुलना में कोरोना से ग्रस्त के आंकड़े कम है इसी से अनुशासन बेहतर साबित होता है!
 आज ऑनलाइन से सभी ऑफिस वर्क, शिक्षा, विडियो कॉल, चेटिंग कर हम कह सकते हैं की हम अनुशासन मे हैं!
अाज जनता इस महामारी के डर से स्वयं अनुशासन में चल अपने को सुरक्षा कवच देती है!

अंत में कहूंगी अनुशासन के इस सुरक्षा कवच से कोरोना का लॉकडाउन अनुशासन जैसा नहीं बल्कि बेहतर साबित हुआ है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
      देश में कई-कई प्रकार की बीमारियों का तांडव हुआ। जिसका ईलाज तत्परता के साथ हुआ। बीमारियां बताकर नहीं आती, किन्तु पूर्वाभास हो ही जाता हैं  और स्वयं ठीक होने हेतु प्रयास में लग जाता हैं।
वर्तमान समय में ऐसी बीमारी का जन्म हुआ, जिसके परिणामस्वरूप पूर्व बीमारियों को भूलशा गये,  अभी सुनने को नहीं मिल रहा हैं, कि किसी को हृदयाघात,  मस्तिष्क रोग, क्षय रोग, तपेदिक रोग हुआ होगा? सर्दी-खांसी तो आम बात हैं। वर्तमान परिदृश्य में कोरोना महामारी के कारण,  जिसका एक ही ईलाज हैं लाँकडाऊन जिसके कारण परिवार जनों को एक सूत्र में पिरोर कर रख दिया हैं। जहाँ सुरक्षात्मक दृष्टि से अनुशासित रुप से सफल तो हुआ ही साथ-साथ ही नवोदितों को सीखने  मिला, अनुशासन भी कुछ होता हैं?  किसी ने घरों से निकलने  का परिणामों को प्रत्यक्ष रूप से स्वाद भी चखा हैं। तीन भागों में लाल, संतरा, हरा रंग में विभाजित किया हैं और सह शर्त हरा रंग में आंशिक छूट दी गई हैं, जिसे नाॅकडाउन (माॅस्क) का भी अनुशासित रुप से विधिवत पालन करना हैं। अगर ऐसा ही सूक्ष्म में लाँकडाऊन अनुशासित रुप से रहा तो बीमारियां शरीर में प्रवेश भी नहीं कर सकती और अनुशासन ही सर्वोपरि जनसमूह को कर्तव्य बोध करा सकता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर '
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी ये सच है कोरोना का लॉक डाउन अनुशासन जैसा साबित हुआ है। बड़े बुढ़े बच्चे सभी ने अनुशासन का पालन किया । २० मिनट तक हाथ धोना बाहर जाते वक्त मुंह पर मास्क लगाना आवश्यक काम से बाहर जाना मुहल्लो मे भीड़ ना लगाना आपसी बातचीत करते वक्त एक मीटर की दूरी  बनाये रखना रखना।
बार बार हाथो को सेनेटाइजर करना । शहर और आसपास के इलाको मे किराना दुकानदारो के सामने मार्किंग गोले मे  खड़े होकर समान लेना ये सब अनुशासन रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है।
अनुशासन ही बचाब है आ० प्रधान मंत्री जी के आदेश अनुसार नियमो का पालन करना अनुशासन है यदि हम अनुशासन मे २हेगे तो कोरोना पर जीत निश्चित है।
हम अनुशासन का पालन ना कर के खुद के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे है। कोरोना लॉक डाउन से देश की गति रूक गई है मील फैक्ट्री कारखाने आदि सब बंद पड़े सब लॉक डाउन के नियमो का पालन कर रहे ही ये अनुशासन ही तो है। अनुशासन ही जीवन है अनुशासन मे रहे सुरक्षित रहे।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
वास्तव में आज की चर्चा सकारात्मक चिंतन की पक्षधर है। सुचारू जीवन जीने के लिए व्यवस्थित नियमों का पालन ही अनुशासन है।
       मेरा भारत देश एक परिवार है देखा जाए तो संकट की घड़ी में भय को मिटाने के लिए भरोसा बनाए रखने के लिए कानून नहीं अनुशासन ही सबका पोषक है और सभी का इस दृष्टि से यथाशक्ति तन,  मन, धन से अर्पण ही देश को महाविनाश से बचाने के लिए समर्पण बन जाता है; जहां फिर सिर्फ यही स्वर गुंजायमान होता है-
" सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।
 सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चित् दु:ख भाग भवेत्।।
 विदेशों में भी घूम कर देख लिया पर अपनी मां भारती की छत्रछाया सा सुकून और पितातुल्य प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी जैसा संरक्षक, सलाहकार व मददगार सा अनुशासित सुशासक कोई नहीं।
        जनधन को भारी क्षति पहुंचाने वाली कोरोना महामारी में 24 मार्च से लॉक डाउन की चरणबद्धता में मुख्यत:सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजर, आवश्यक वस्तुओं की होम डिलीवरी, स्वास्थ्य सेवाओं में कोरोना मरीजों को 24 घंटे आपातकालीन सुविधा मुहैया कराना, सभी वर्गों के लिए आर्थिक पैकेज से सहायता प्राप्ति के साथ- साथ निर्भय होकर आत्मविश्वास बढ़ाने वाले समस्त नियम बनाना और जनता जनार्दन द्वारा उनका पालन करना अनुशासन ही साबित हुआ है।
           कुछ अपवाद को छोड़कर इन दिनों वास्तव में अधिकतर जनता ने अनुशासित और सुरक्षित जीवन जिया है।अत:यह कहना उचित होगा --
  "लॉक डाउन बनाम अनुशासन "।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
मानव ने हमेशा अपनी जीवन शैली अपनी शैली अपनी इच्छाओं व अपनी सवाथ सिदी व अपने सवभाव समय परिस्थितियों के अनुसार जिनी सिखी है. अनुशासन में रहना उसनें कभी सिखा ही नहीं. परन्तु कोरोना लाक डाउन ने मानव जाति को वो सब कुछ सिखा दिया जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी.    जेसे.... घरों में बंद रहकर अपने बच्चों के साथ समय बिताना.घर का बना हुआ ही खाना खाना. गली मौहल्लै कके यार.. दोस्तों के साथ बाहर जाकर पिकनिक/सैर सपाटा न कर पाना. मासक लगा कर कहीं पर भी आना जाना. अपने हाथों को बार बार साबुन से धोना.2गज की दूरी बना कर रखना. हाथो को जोडकर नमस्कार/अभिवादन करना. डाक्टर. नही.पुलिस कमियाँ आदि का सम्मान  करना आदि ऐसे अनेक उदाहरण है जिससे कि कोरोना का लोक डाउन अनुशासन जेसा साबित हुआ है
- विनय कंसल 
त्रि नगर - दिल्ली

कोरोना संकट काल को देखते हुए लॉक डाउन अनुशासन जैसा रहा भी है और नहीं भी दर असल जितने अधिक अनुशासित लॉक डाउन की अपेक्षा सरकार ने की थी और जिसकी आवश्कता भी थी और जितना लाभ लॉकडाउन का होना चाहिए था उतना कुछ हम लोगो की लापकवाही के कारण नही हो सका जबकि सरकार व प्रशासन के प्रयास को कमतर नही माना जा सकता पर बहुत बडी आबादी वाले इस देश भारत के हालात यदि दुनिया के दूसरे देशों से अधिक बेहतर है तो सिर्फ इस लिए कि सही समय पर यह मुश्किल निर्णय ले लिया अन्यथा हालात बेहद खराब हो सकते थे अनेकता मे एकता वाले इस देश में कुछ लोगो ने लॉक डाउन का बहुत अनुशासित तरीके से पालन किया तो कुछ ने वास्तव ने इसे गंभीरता से नही लिया जबकि यह बहुत आवश्यक था और पुनीत कृतव्य भी परन्तु अभी भी समय है सचेत हो जाने का जिससे देश इस महामारी के चंगुल से निकल सके यही अच्छा है हम सभी के लिए कि सभी नागरिक लॉक डाउन का शत प्रतिशत पालन करें .अब तक के वसमय को देखते हुअ काफी हद तक कोरोना का लॉकडफन अनुशासन जैसा साबित हुआ है. 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
सभी लाकडाऊन के तीसरे चरण में है । प्रथम दृष्टि मे आपको लगेगा कि कोरोना पर लाकडाऊन का कुछ ज्यादा असर नहीं हुआ । लेकिन जब आप दूसरे देशो की तुलना मे भारत के कोरोना मामलो की बढोतरी देखेगे, तब आपको समझ आयेगा कि लाकडाऊन ने  हमारे देश मे कोरोना गति को मंद कर दिया है । एक प्रकार से लाकडाऊन का उद्देश्य सफल ही रहा 
कोरोना वायरस की एंटीबॉडी किट तैयार हुई है, जो इस बीमारी से लड़ने में मददगार सिद्ध होगी । 
सोशल डिसटैसिग के प्रति लोगो मे जागरूकता बढी है । 
कोरोना से लङना इतना आसान नहीं है लेकिन भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि हम भारतिय कोरोना काल से जूझकर जीत जायेगे । 
अमेरिका , फ्रांस और    इटली जैसे आर्थिक संपन्न देशो ने कोरोना के आगे हाथ  खङे कर लिये शवो को दफनाने के लिए भी जगह नसीब नहीं हो रही लेकिन भारत मे अभी भी ऐसी स्थिति उत्पन्न होने की संभावना ना के बराबर है । 
हमारे देश की जीवन शैली हमे कोरोना से बचने मे काफी हद तक सहायक होगी 
-  संगीता राजपूत 'श्यामा ' 
कानपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना आपदा ने पूरे विश्व को झकझोर के रख दिया है। इस आपदा के समय कोरोना से बचाव का ' लॉकडाउन ' का एक सही विकल्प निकलकर आया है, वह हमारे देश में निश्चित ही कारगर तो साबित हुआ है। साथ ही उसके परिपालन में आम नागरिक ने जो अनुशासन में रहते हुए, सरकार के दिशा- निर्देशों का निर्वहन,  पारस्परिक भाईचारे, सहयोग और सद्भाव के साथ किया है, वह अद्भुत और अद्वितीय  तो है ही, गर्व और गौरवमयी भी है। 
हमारे देश में विभिन्न जाति,धर्म, भाषा, वर्ग, आयु वाले रहते हैं, इस आपदा के समय 'लॉकडाउन'   में सभी ने मिलकर 'अनेकता में एकता' का परिचय दिया है। अनुशासन के एक सूत्र में बंधकर मिसाल कायम की है, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। यदि ऐसा न हुआ होता तो कोरोना संक्रमण का फैलाव अत्यंत भयावह होता। लेकिन हम भारतीयों की एकता और अनुशासन ने ऐसा होने से बचाया है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
ये सही बात है कि कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान भारत में लॉक डाऊन ने देश की जनता को अनुशासन का पाठ तो पढाया ही है ।  जब लॉक डाऊन का पहला चरण शुरु हुआ तो यहां वहां से खबरें आई कि फलां फलां जगह पर अनगिनत लोगों ने इसका उल्लंघन किया । पुलिस की जब सख्ती बढी तो जनता को इस बिमारी की भयंकरता  का आभास होने लगा और धीरे धीरे जनता भी अनुशासित होने लगी ।
       शुरु शुरु में तो स्वास्थ्य विभाग की टीमों,पुलिस के जवानों, और प्रशासनिक अधिकारियों को जनता के भारी विरोध वा पथराव और गोलीबारी तक का सामना करना पडा था ।
प्रशासन और पुलिस के कड़े ऐक्शन और मुकद्दमे डालने के बाद अब ऐसी वारदातों मेँ काफी कमी आ गई है ।
  उधर केंद्र वा राज्य सरकारों के लोगों को इस महामारी की भयानकता से अनेकों बार आगाह करवाया जाता रहा और अब भी करवाया जा रहा है ।
एक और कारण अनुशासन में आने का ये भी है कि पहले तो चुनिन्दा राज्यों में कोरोना के मामले आये किन्तु धीरे धीरे अब इस महामारी ने कमोबेश सभी राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है । यूं भी अब जनता इस की गम्भीरता को समझ चुकी है और स्वं ही अनुशासित हो चुकी है ।
      तो ये बिल्कुल सत्य है कि कोरोना महामारी के दौरान लॉक डाऊन ने जनता को अनुशासन का अच्छा पाठ पढाया है ।
     - सुरेन्द्र मिन्हास
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
   कोरोना नामक एक सूक्ष्म , अदृश्य और लाइलाज वायरस का संक्रमण सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है ।  इसके संक्रमण को नियंत्रित करने का कोई उपचार नहीं है  । इसके संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कुछ सावधानियाँ अपनाना ही आवश्यक है , और वो सावधानियाँ हैं -
1. मास्क पहनना 
2. हाथों को समय समय पर धोना 
3. सैनिटाइजर का प्रयोग करना
4. सामाजिक दूरी के नियम का पालन करना  ।
     कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक दूरी का नियम अति आवश्यक है  । इसलिए हालात और समय की नज़ाकत को भांपते हुए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देश में कर्फ्यू / लाॅकडाउन घोषित कर दिया । कुछ समय तक देशवासियों ने लाॅकडाउन का तन्मयता से पालन किया लेकिन जैसे जैसे इसकी अवधि बढती गई वैसे वैसे लोग लाकडाउन से उबते गए । कारण चाहे परिस्थिति हो या फिर असुविधा । लोगों ने लाॅकडाउन में ढील के समय का नाजायज़ फायदा उठाना शुरू कर दिया । ऐसा नहीं  कि सभी लोग लाॅकडाउन के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं  पर यहाँ पर " एक गंदी मछली... " वाली कहावत का उल्लेख करना तर्कसंगत है । मजदूरों - श्रमिकों का पलायन आरम्भ हो गया  । गंदम की फसल कटाई के लिए पास जारी करने का दुरुपयोग होने लगा । शराब के ठेके खोलना भयंकर भूल में गिना जाएगा । रही सही कसर एक राज्य से दूसरे राज्य में लाए गए फंसे छात्रों  , पर्यटकों  , मजदूरों  ने पूरी कर दी  । इस आवाजाही में जो हड़बड़ और भागदौड़ के लिए जो आतुरता सामने आई , उसने कई प्रश्नचिन्ह खडे कर दिए हैं । परिणाम यह कि कोरोना का कहर दिनोंदिन बढता जा रहा है । कोरोना लाकडाउन का यदि इमानदारी से पालन किया गया होता तो हालात इतने बिगड़ते नहीं । संक्रमितों और मरने वालों की संख्या बढती जा रही है । आंकड़े चिंताजनक हैं और संक्रमण की दर भयभीत कर रही है । 
- अनिल शर्मा नील 
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना लॉकडाउन एक बिना तैयारी की घोषणा थी । बिना तैयारी की घोषणा ही नही वरन सरकार को जागरूक ,जनहितैषी और सावधान साबित करने की कोशिश थी । यह मैं इसलिए कह रही हूँ कि जब लॉकडाउन की घोषणा कर ही दी थी और पुलिस को उसकी जिम्मेदारी दी ही थी तो उस समय सरकार ने मजदूर ,किसान और रोजमर्रा अपनी जीविका कमनेवालो की भूख व जरूरी जरूरतों का ध्यान न रखनकर उन्हें पैसे भेजने शुरू किए जिससे आपाधापी मचनी स्वभाविक थी । उससे निपटने में न पुलिस सक्षम रही और न ही सरकार । 40,45 दिन के लॉकडाउन निष्फल रहा ऊपर से अर्थव्यवस्था चौपट हुई अलग से ।  लॉकडाउन में यदि ढ़ील दी भी गयी तो लोगो की शराब पिला कर उकसा दिया । 
    पैसे भेजने की योजना जरूरतमन्दों को मदद नही थी वरन अपना वोटबैंक तैयार करना था । शराब की दुकान खोलने के पीछे क्या हित हो सकता है स्पष्ट दिखाई देता है ।
       भूख और जिल्लत से मरते मजदूर यदि अपने परिवार को याद नही करते तो क्या करते । 
    लॉकडाउन भी नोटबन्दी की तरह जनता में आतंकी माहैल पैदा करना ही था यह फिर उस योजना का क्रियान्वयन करना था जिसे वह सामान्य स्थिति में नही कर पा रही थी । 
     लॉकडाउन केवल कहने के लिए था । मेरे अपने शहर में लॉक 
डाउन केवल जीटी रोड पर ही था ।गली मुहल्लों में कोई पाबंदी नही दिखी और न कोई सख्ती ।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
  कोरोना जैसी महामारी जिसने किसी भी देश को अपने चपेट में लेने से नहीं छोड़ा उसका कड़ा मुकाबला भारत ने अपनी संस्कृति के आचार-विचार के नियमों का अनुशासन में रह कर सुनियोजित ढंग से किया। इसी के कारण जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा बड़ा देश होने के बाद भी हमारे देश में इसका सामना विवेक-बुद्धि से किया गया। प्रधानमंत्री जी के आह्वान... जो जहाँ है वहीं रहे, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करे, मास्क पहनें, साबुन से बराबर हाथ धोयें, सैनिटाइजर का प्रयोग करें, बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें, कोई भूखा न रहे, अपने आसपास के जरूरतमंदों की सहायता करें....का जनता ने पूरे प्राण-प्रण से समर्पित होकर पालन लिया, इसीलिए लॉक डाउन वरदान साबित हुआ।
         इसके कारण आर्थिक मोर्चे पर भी हम सभी को संघर्ष करना पड़ रहा है , लेकिन जीवन बचे, हम स्वस्थ रहें... इसके लिए यह संघर्ष कुछ अधिक नहीं है। सरकार ने इसीलिए आर्थिक पैकेज देने की भी घोषणा की है।
        कुछ सिरफिरों और मूर्खों ने लॉक डाउन के नियमों का उल्लंघन करके कोरोना को आगे पैर पसारने देने में अपना काम किया। इसके बाद भी जागरूक जनता अपने विवेक से अनुशासित है और सभी नियमों का पालन कर रही है तो विश्वास जगता है कि भारत जल्दी ही कोरोना को हराने और स्वदेशी को अपना कर आर्थिक मोर्चे पर भी विजय प्राप्त करेगा।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून- उत्तराखंड
कोरोना लॉक डाउन जैसे संकट में भी जाने अनजाने ऐसी अच्छी बातें हो रही हैं जो सामान्य दिनों में संभव नहीं हो पाता, चाहें पर्यावरण पर सकारात्मक असर हो या भारतीय संस्कृति में अभिवादन की परम्परा "नमस्ते "को बढ़ावा मिलने की बात हो, कहा गया है -"भय बिनु होय न प्रीति "कोरोना के भय ने हाय हैलो की पाश्चात्य संस्कृति के स्थान पर मानव जीवन को अध्यात्म और अधिभूत का सम्मिश्रण प्रदान कर अनुशासनबद्ध अर्थात ईश्वरीय शासन की अनुपालना हेतु प्रेरणा अवश्य दे दी है l आज घरों में डिस्को के स्थान पर "तेरा मंगल, मेरा मंगल, सबका मंगल होय l"
मानस की चौपाइयाँ और सुंदर कांड की स्वर लहरियाँ गुंजायमान हैं l लोग एक्ससाइज, प्राणायाम, ध्यान से दिन का शुभारम्भ कर रहे हैं l मानव दम्भ और भ्रांत अहंकार से कोसों दूर जा रहा है l 
आशा है कि लॉक डाउन के दरम्यान की ये आदतें आगे भी बनी रह जाएँ l 
   मानव जीवन कोरोना काल में आज स्वानुशासन दृष्टिगोचर हो रहा है l सोशलडिस्टेंसिंग, मास्क लगाना, मितव्ययी होना ये स्वानुशासन की तस्वीरे हैं l कोरोना लॉक डाउन में मानव मन 
को भी अनुशासित किया है l आपराधिक मामले 40%कम हुए है जो मन को जीते जाने की व आत्म नियंत्रण की मिसाल है l 
    पाश्चत्य अंधानुकरण के कारण मानव मूल्य अस्ताचल की ओर गतिमान थे, जैसे हाथ मुँह धोकर, साफ पोंछ कर आलती पालती लगाकर अन्न जल ग्रहण करने के स्थान पर बफर भोजन जो स्टेटस सिंबल बन गया था उस ओर व्यक्ति देखना भी पसंद नहीं कर रहा है क्योंकि यही संक्रमण का माध्यम है l यही आत्मानुशासन है. 
जहाँ असंयमित जीवन शैली चरम पराकाष्ठा पर थी वहाँ संयम की बात स्वीकार कर लेना इतना आसान नहीं था लेकिन जब रोग भयंकर होता है तो उसकी दवा भी कड़वी होती है अर्थात निज पर शासन, कोरोना पर शासन की पहली सीढ़ी है l संयमित व्यक्ति आज अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर संयम बरतते हुए अनुशासित सिपाही की तरह प्रशासन के निर्देशों की पालना कर रहा है l 
आइये, कोरोना मुक्ति की इस यात्रा में संयम अनुशासन के गुणात्मक पड़ावों पर ठहरे l वहाँ से शक्ति, आस्था, संकल्प एवं विश्वास प्राप्त कर पूर्णता पर पहुँचे l 
चलते चलते -
निखरती है, मुसीबतों से ही शख्सियत l 
   यारों चट्टानों से 
ही न उलझे वो झरना किस काम का ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
               कोरोना के कारण लंबे समय तक चलने वाला लॉक डाउन वर्तमान समय में  भारतीयों के जीवन में संभवतः पहला अनुभव रहा होगा ।इसके पूर्व कभी भी किसी संक्रमण के चलते ऐसा लॉक डाउन लागू नहीं किया गया। लॉक डाउन के दौरान  यदि हम अनुशासन की बात करें तो दो बातें मुख्य रूप से सामने आती है। अनुशासन दो प्रकार का होता है -- 1 बाह्य अनुशासन  2- आंतरिक अनुशासन 
 बाह्य  अनुशासन में  किसी प्रकार का भय या दंड व्यवस्था  प्रत्यारोपित होती है जबकि आंतरिक अनुशासन स्वयं के द्वारा स्वयं पर  लागू किया जाता है ।इस अनुशासन को श्रेष्ठ माना जाता है। यह मनुष्य का एक महत्वपूर्ण गुण भी माना जाता है। लाॅक डाउन के दौरान बहुत से लोगों ने अनुशासन तोड़ा लेकिन बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने आंतरिक अनुशासन का पालन किया और यह हमारे देश के प्रति समाज के प्रति हमारे स्वयं के प्रति एक निष्ठा के भाव को दर्शाता है। वर्तमान समय में लॉक डाउन का पालन अधिकांश जनसंख्या के द्वारा किया जा रहा है और यही उम्मीद की जा रही है कि बाह्य अनुशासन के साथ-साथ आंतरिक अनुशासन की सीख भी इसके माध्यम से लोग  ले रहे होंगे। धन्यवाद 
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया -मध्य प्रदेश
जी बिल्कुल ऐसा कह सकते हैं। थोड़ी तकलीफ़ तो हुई लेकिन इस डर के माहौल में घर में बंद मुझ जैसे शारीरिक रूप से कमजोर आदमी भी सुकून का अनुभव कर रहा है। करीब पच्चीस साल के अथक परिश्रम के बीच कभी ऐसा अवसर नहीं आया जो करीब दो महीने तक घर में बैठकर खाने और सोने का अवसर मिला है। हालांकि थोड़ी परेशानी है। मजदूर हैं ।थोड़ी बहुत जो जमा पूंजी है उसी के सहारे जी रहे हैं। हां यदि लाॅकडाउन कुछ दिन और चल गया तो आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। इस बीच पहले की अपेक्षा मानसिक तनाव भी कम हुआ है। जो कार्य करने के दौरान अधिक परिश्रम से होता है। कुल मिलाकर तो यही कहूंगा कि फायदा हुआ है। कुछ लोगों को नुक्सान भी उठाना पड़ा है। बेहतर देखभाल न होने की वजह से कुछ परिवार तबाह हो गए हैं। तो कह सकते हैं जो नफा और नुकसान दोनों इस लाॅकडाउन की वजह से लोगों को झेलना पड़ा है। कहते हैं जहां लाभ होगा वहां हानि भी हो सकता है। और इस लाॅकडाउन में दोनों का अनुभव लोगों को एक साथ हासिल हुआ है।यह अनुभव भविष्य में काम आने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि भविष्य में ऐसी कोई आपदा आई तो।
तथास्तु
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
      अनुशासन सभ्यता की वह आकृति है। जिसमें अपने-आप पर नियंत्रण करना है। अपने-आप को नियमबद्ध श्रृंखला में पिरोना है। जबकि लाॅकडाउन महामारी से स्वयं के बचने एवं दूसरों को बचाने हेतु प्रयोग में लाया गया है।
      क्योंकि अनुशासन जीवन और राष्ट्र के वर्तमान एवं भविष्य को सदृढ़ करने के लिए सिखाया जाता है। जिसमें संवरने-संवारने से लेकर साकारात्मक दृष्टिकोण को सशक्त किया जाता है।उसी प्रकार लाॅकडाउन का मुख्य उद्देश्य भी देश के नागरिकों को कोरोना महामारी से बचाने के लिए प्रयोग किया गया है। ताकि महामारी एक से अनेक में न फैले। जिसके लिए समाजिक दूरी को भी विशेष महत्व दिया गया। संगरोधक केंद्रों की भी भूमिका अच्छी रही। जिसे विशेष अनुशासनात्मक कार्रवाई की संज्ञा दी गई।   
      अनुशासन विहीन कुटुंब, समाज और राष्ट्र न तो विकासशील हो सकता है और ना ही अधिक समय तक संयुक्त व स्वतंत्र रह सकता है। लाॅकडाउन ने भी एकता, संयुक्ता, सदृढ़ता एवं लोकप्रिय माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व में निष्ठा दिखाई है। जिससे भारत की प्रशंसा विश्वस्तर पर हुई है।
      इसलिए निस्संदेह कोरोना महामारी का लाॅकडाउन अनुशासन जैसा ही साबित हुआ है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अनुशासन की पहली पाठाशाला  घर होता है ।  अनुशासन  के बिना सभ्य समाज की कल्पना नहीं कर सकते हैं । प्रकृति भी अनुशासन से चलती है । माता -  पिता भी घर में अनुशासन  से बंधे होते हैं । स्कूल , कॉलिज भी अनुशासन के सूत्र में बंधकर छात्रों  को अनुशासनबद्ध  रहना सिखाते हैं । हम कार्यस्थल पर काम करते हैं तो अनुशासन जे नियमों का पालन करते हैं । आप देश की जल , थल , नभ सेना को देखें ।  उनकी ताक़त अनुशासन होता है । वे सेना भी शारीरिक , मानसिक रूप से अनुशासित होती है ।वे  देश हित में हमारी रक्षा  के लिए  कड़े नियमों का पालन करते हैं ।
  इसी तरह पूरे भारत में कोरोना का लाकडाउन अनुशासन जैसा साबित हुआ  है । कुछ राज्यों के मनचले  लोगों को छोड़कर  सभी राज्यों ने सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कोविड -19  को तीसरे घातक स्तर पर जाने से रोका गया है । महाराष्ट्र में  मुम्बई के नगरपालिका के  मेडिकल अधिकारी  कोरोना की जाँच के लिए घर - घर जाकर  पूछताछ कर रहे हैं । पॉजिटिव केस की रिपोर्ट होने पर  उन्हें आइसोलेट , क्वारनटाइन  किया जा रहा है ।
अगर लोग लाकडाउन का पालन नहीं करते तो अमेरिका , इटली , रूस की तरह भारत में लाशें पट जाती  थी ।
हाल ही में गजियाबाद में नयी  आईपीएस अधिकारी लक्ष्मी जी ने अपने कड़े नियमों से चोरोहों पर पुलिस फोर्स के साथ गस्त लगा के  अव्यवस्थित  अनुशासनहीनता फैलानेवाले मनचलों को आजाद , बेमतलब घूमने पर सजा दे के रोक लगाई है । इस अनुशासनात्मक कार्यवाही की   भूरी - भूरी प्रशंसा वहाँ की जनता कर रही है ।
  कोरोना का इलाज अनुशासन , लाकडाउन का कढाई से पालन ही है । कोरोना न फैले हम   अनुशासन को कारगार बनाने के लिए लोग बाहर निकलते समय मॉस्क , गमछा से मुँह ढँके । सेनिटाइजिग करें , बार - बार साबुन से हाथ। धोएँ ।जिससे कोरोना का वायरस हाथों से  मार जाए ।बाहर से आये वस्तुओं का सेनिटाइजेशन करें ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
अनुशासन  ही  जीवन  को  महान  बनाता  है  ।  किसी  भी  कार्य  में  सफलता  की  पहली  सीढ़ी  अनुशासन  ही  है  । इसके  अभाव  में  उच्छ्रखंलनता  आ  जा  जाती  है  और  किसी  कार्य  का.......मेहनत  का  परिणाम  सकारात्मक  नहीं  मिलता  । 
         कोरोना  महामारी  में  जो  लोग  निर्देशों  का  पालन  करते  हुए  अनुशासन  में  रहे, वे  स्वयं  भी  इसकी  चपेट  से  बचे  एवं  अन्य  लोगों  को  भी  सुरक्षित  रखने  में  अपनी  महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाई  । इसके  विपरीत  जिन्होंने  अनुशासनहीनता  का  परिचय  दिया,  उन्होंने  इस  कोरोना  को  निमंत्रण  दिया  स्वयं  भी  इसकी चपेट  आए  तथा  अन्य  लोगों  को  भी  संक्रमित  किया  । 
        वैसे  तो  लाॅकडाउन  हमारी  सुरक्षा  के  लिए  लगाया  गया  यदि  हम  इसे  अनुशासन  भी  मानते  हैं  तब  भी  यह  हम  सबके  लिए  आर्थिक  दृष्टि  से  भले  ही  दुखदाई  रहा  हो  मगर  इसने  हमें  कई  सकारात्मक  लाभ  भी  प्रदान  किए  हैं  ।  हमारे  स्वास्थ्य,  दिनचर्या, विचारधारा, रहन-सहन  आदि  में  भी  सकारात्मक  परिवर्तन  हुए  हैं  ।  हम "मैं"  से  " हम" की  ओर  अग्रसर  हुए  हैं  । प्रकृति  और  अध्यात्म  से  हमारा  जुड़ाव  हुआ  है  । सामंजस्य  बना  कर  रहना  सीखा  है  । 
       कोरोना  के  लाॅकडाउन  ने  हमारे  जीवन  में  गुणात्मक  विकास  किया  है  । 
       - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर  -  राजस्थान 
लाकडाउन ने भारतीय नागरिकों को अनुशासन का पाठ अवश्य पढ़ाया है।इस समयावधि में हर मानव अधिकार कर्तव्य की सीमा में रहना सीख लिया।
मेट्रो में तो जीवन भागता और दौड़ता रहता है हर इंसान का घर एक रैन बसेरा की तरह बन कर रह गया था एक ही घर में अपने को अपनों से मुलाकात या बातचीत नहीं हो पाती।
इस लाक डाउन के समय जो ठहराव आया है वह सराहनीय है 
बच्चों की जिंदगी से देखते हैं बच्चे कौ अपने माता-पिता का जो प्यार स्नेह देख-रेख खेल कूद में सामंजस्य बना वह प्रशंसनीय के साथ प्रेरणात्मक है
बुजुर्ग की जिंदगी में एक अलग ही उत्साह है उन्हें तो बेटा बहु के साथ साथ अपने पोते पोतियों का भी आनंद मिल रहा है
युवाओं के तो बल्ले-बल्ले है 
घर में एक समय प्रबंधन दाम्पत्य सुख सकारात्मक माहौल सभी अनुशासन के ही तो लक्षण है 
सीमित संसाधनों के दायरे में  रहना सीख लिया । सकारात्मकता के साथ नकारात्मक पक्ष भी है पर जिन्दगी ने एक नया मोड़ अवश्य लिया है जो अनुशासित है 
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
शायद कुदरत   वर्तमान मानवीय प्रणाली को कुछ सिखाना चाह रही है ।बहु भृमित हो चुकी मानवीय सभ्यता  को,सुधार की राह पर लाना चाह रही है।
,,कोरोना,, अपने आप मे अनोखा है,मात्र एक वायरस ने देशो की सीमाएं तोड़ पूरा एक वैश्विक आकार ले लिया है   ।अब तो आपसी  युद्ध और नफरत इस समय लगभग   समाप्त है। इस वक्त न मिसाइलों की जरूरत है,न तोपो की,जरूरत है तो सिर्फ इंजेक्सन की, थर्मा मीटर की।
अब तो कही धार्मिक उन्माद भी नजर नही आता,मंदिर मस्जिद के झगड़े लगभग खत्म हैं।इस समय जाति पात के झगड़े  थम चुके हैं,,,,,।
अब तो लोग परम पिता परमेश्वर को मंदिर ,मस्जिद चर्च और गुरुद्वारों  मे खोजने के बजाय अपने अपने हृदय मे खोज प्रार्थना करने मे लगे हैं। खासा आध्यात्मिक हो चले हैं ।
आधुनिक समाज मे फैली अनैतिक सम्बन्धो की  बाढ़ लगभग थम चुकी है ,मांसाहार   भी अब बन्द है।अब नयी सभ्यता  का आलिंगन , चुंबन बन्द होकर प्राचीन मर्यादित प्रणाली ,,नमस्ते,,पूरे विश्व की सभ्यता बन रही है। पूरे मानव समाज ने अनुसाशन मे रहना सीख लिया है।
इस समय अमीर गरीब , सुन्दर कुरूप, अज्ञान विद्वान एवं राजा रंक का भेद  भी पूरी तरह इस ,,कोरोना,, ने मिटा रखा है  क्योंकि इस वायरस  की नजर मे सब बराबर हैं  केवल मानव है केवल मानव शरीर ,,,,,।
बेगानो की भीड़ मे खोया आधुनिक मानव समाज अपने अपने ,,परिवारों,, मे वापस लौट चुका है ।
विदेश प्रेमियों को अचानक स्वदेश से प्रेम उतपन्न हो गया है  सभी अपने वतन का रुख कर रहे हैं,,,,।
यही आज का कठोर सत्य है,मैं भी इस वैश्विक जनसमूह का  अति सूक्ष्म हिस्सा हूँ,,,।कोरोना के बहाने ,लॉक डाउन के बहाने  लोग खासा अनुशाषित हो चुके हैं।
मेरी परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह  सभी के गुनाह माफ़ कर ,,कोरोना,, नामक कुदरती प्रकोप से  रक्षा करें।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
कोरोना वाइरस एक छिपा वायरस  है जिस के स्वभाव को पहिचान कर लोकडाउन देश में लागू किया गया था ।अगर गंभीरता से सभी इसका अनुकरण करते ।पक्ष -विपक्ष देश की इस महामारी में एक जुट होकर कार्य करते तो यह अवश्य ही अनुशासनात्मक तोड़ होता। पर इतनी बड़ी महामारी पर जहाँ सत्ता पक्ष के मुट्ठी भर लोगों के साथ पुलिस बल ,नर्स ,डाक्टर ,सामाजिक कार्यकर्ता ,कुछ गुप्त मददगार भरसक कोशिश कर रहे हैं वहीं कुछ देश में छिपे भीतरी घातक तत्व व्यवस्था को भंग कर देश को पता नहीं किसओर धकेलना चाह रहे हैं। अगर ऐसा नहीं था तो लाखों मजदूरों ,कामगारों को किसने अनुशासन तोड़ कर इस तरह सड़क पर उतरने की सद्बुद्धि दी?जहाँ अनुशासन मान कर चला गया लोकडाउन को वह क्षेत्र दो माह में सुरक्षित हैं ।क्यों?
अनुशासन साबित होना चाहिये था पर भितरघात के चलते वह निरंकुशता बन कर रह गयी।
 - मनोरमा जैन पाखी
भिण्ड - मध्यप्रदेश
प्रधानमंत्री ने 19मार्च को देश को संबोधित करते हुए जनता कर्फ्यू लगाने की बात कही थी। 22 मार्च को देश भर मे सब कुछ बंद रहा।शाम को लोगों ने घरो के अंदर  ताली और थाली बजाकर कोरोना वॉरियर के प्रति आभार जताया था।
       मोदी जी ने पुनः 24 मार्च को संबोधित किया और कोरोना संक्रमण रोकने के लिए 25 मार्च से 14 अप्रैल तक देशब्यापी लाकडाउन का एलान किया। उन्होंने जोर दिया कि  कोरोना के चक्र को  तोड़ने के लिए घरों मे रहने की लक्ष्मण रेखा का पालन करना आवश्यक है। इसी दौरान लोगों से 5 अप्रेल की रात 9 बजे 9 मिनट के लिए घरों का लाइट बंद कर घरों मे दीप,मोमबत्ती या मोबाइल की रोशनी जला कर एक जुटता दिखाने की बात की।
      सभी जनता ने अपने प्रधानमंत्री की कही हुई बात काअनुशासन के साथ अनुपालन किया। एसा लग रहा था कि ताली थाली या शंख बजाकर या दीप या कैंडल जला देने मात्र से कोरोना हमारे देश को छोड़ कर भाग जायेगा। कहीं कहीं एक दो घटना छोड़ कर जनता ने अपने अनुशासन का परिचय दिया।
             लाकडाउन के दौरान सारे फैक्ट्रीयों,स्कूल ,कॉलेज और यातायात की सारी सुविधाएं बन्द हो गयी थीं। पंद्रह दिन होते होते मजदूर सड़क पर आ गए। ये रोज कमाने खाने वाले थे। इनकी नौकरियाँ खत्म और हाथ पर पैसे खत्म । मकान मालिक ने इन्हें घर से निकाल दिया। वो गाँव वापिस जाना चाहते तो पुलिस उन्हें बेहरमी से मारकर सड़क से  भगा देती थी। न खाने  की व्यवस्था ,न रहने की व्यवस्था और न उनके घर जाने की व्यवस्था। इस समय कोई अनुशासन नही दिख रहा था। सोशल डिस्टनसिंग की धज्जियां उड़ रही थी। मजदूरों को मास्क तक नही दिया जा रहा था। हमारे सरकार की  खोखली व्यवस्था साफ उभर के सामने आ रही थी। यानी कोई अनुशासन नही।
देश की अर्थ व्यवस्था भी चरमरा रही थी । उसी वक्त सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने का निर्णय लिया । उस समय शराब खरीदने के दौरान अनुशासन की धज्जियाँ ऐसी उड़ी की सब देखते रह गए।
स्तिथियाँ देख कर यह कहा जा सकता है कि लौकडाउन के दौरान पूरी तरह अनुशासन का पालन इसलिए नही हो पाया कि सरकार ने लौकडाउन के पहले कोई मुकम्मल तैयारी नही की थी।
- रंजना सिंह
पटना - बिहार
कोरोना काल में हमने कुछ नई आदतों को अपनाया है । ये आदतें जीवनपर्यंत हमारे साथ बानी रहें ।तभी हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होंगी अन्यथा इतने दिन का जो संकट काल हमने बिताया सब बेकार हो जाएगा । इसकी महत्ता मजदूर वर्ग अभी भी नहीं समझ रहा है । वह पहले भी किसी अनुशासन को नहीं मानता था और आज भी उसके लिए यह भूख से बड़ी नहीं है। 
मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग उम्मीद है कि इस अनुशासन का पालन हमेशा करेंगे ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
हां ,बिल्कुल सही कोरोना  लाॅक डाउन पूर्णतः अनुशासन साबित हुआ है ।इस महामारी के कारण हम एक बार पुनः अपनी पौराणिक परम्पराओं की ओर रूख करते दिखते हैं।सरल और सादा जीवन । ऐशों आराम से परे फिर एक बार हम अपनी पुरानी परम्पराओं का अनुपालन कर रहे हैं ।हाथ_ पैर धोना किसी काम से पहले,बजारू खाना बिल्कुल बंद , परिवार के साथ समय बिताना , पारिवारिक सहयोग घरेलू कामकाज में, इत्यादि । आधुनिक युग में मानव मशीन सरीखा जीवन व्यतीत कर रहा था भागम_ भाग में ही जिंदगी व्यतीत कर रहा था।आज बहुत सारे नियमों को मानते हुए  हम सभी अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। "थोड़ा है थोड़े की जरूरत है "यही बात सही लग रही है । सबसे अच्छी बात ये देखी गई कि लोग पारिवारिक सामंजस्य को परस्पर बखूबी निभा रहे हैं।हमारा जीवन जीतना अनुशासित रहेगा उतना हीं हमें इसका लाभ मिलेगा । अतः यह सही है कि यह दौर बहुत कठिन परीक्षा का था , लेकिन अनुशासन का सुंदर सबक सीखा गया जिसका हम सब को आगे भी पालन करना चाहिए तभी कुछ हद तक हम इस बीमारी  को फैलने से रोक पाएंगे ।
- डॉ पूनम देवा
पटना-  बिहार

" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन वास्तव में कोई बीमारी का इलाज नहीं है । परन्तु बचाओ का एक रास्ता है । जो अनुशासन में रह कर जीना सिखाता है । कोरोना वायरस जैसी बीमारी में मील का पत्थर साबित हुआ है ।
                                                     - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र  







Comments

  1. सही कहा, मनोरमा जैन पाखी दीदी जी आपने। सहमत हूँ आपसे। लॉक डाउन कापालन वाकई सही से न हो पाया। बधाई💐💐

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