क्या लॉकडाउन की चुनौतियां ही भविष्य की उम्मीदें हैं ?

कोरोना वायरस के  लॉकडाउन में अनेंक चुनौतियां का सामना करना पड़ रहा है ।यही चुनौतियां ही भविष्य की उम्मीदें भी है । संघर्ष से कोई ना कोई परिणाम अवश्य आयेगा । जो भविष्य का निर्माण करेगा । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते -हैं : -
यदि वर्तमान समय और दौर के सन्दर्भ में देखा जाये तो ये प्रश्न और इसी में छिपा उत्तर सही जान पडता है किन्तु हमें आशा वादी बने रहना चहिये ।आज के समय में तो यही लग रहा है कि ये कोरोना महामारी लम्बे समय तक हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाली और हमें लॉक डाऊन में ही लम्बे समय तक जीना पडेगा ।ऐसी ही स्थिति में हमें अपने भविष्य की उम्मीद करनी पड़ेगी ।कोरोना ने भारत समेत समूचे विश्व को पंगु बना कर रख दिया है लोगों को रोटी के लाले पड़ गये हैं उनके रोजगार छिन चुके हैं ।ऐसे हालात में लोग करें भी तो क्या? भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों की आर्थिकी पर गम्भीर संकट आ गया है ।
        ऐसा सब होने के बाद भी हमें आशावादी बने रहना होगा नहीं तो विश्व में स्थिति और विकट हो जायेगी ।हमें आशा ही नहीं विस्वास होना चहिये कि कोरोना की दवाई शीघ्र बनेगी और इस महामारी का अंत ही नहीं जड से ही सफाया हो जायेगा ।।
आशा वादी बने रहें ।
निराशा को त्याग दें ।।
    - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
यह तो सर्वविदित है कि आज कोरोना लगातार अपना रौद्र रुप दिखा रहा है और इसकी जद में अब तक लगभग पौने दो लाख लोग आ चुके है , जिनमे कई हजार लोग अब तक काल के गाल में समा गए है । कोरोना की ऐसी भयानक मार जो रोज जिंगदी लील रही हो यदि ऐसे समय मे लोकडाउन न हो तो मानो श्रष्टि से मनुष्य जाति का समूचा विनाश हो जाये और चारो ओर चीख पुकार मची हो । इसीलिए लोकडाउन केवल लोगो के लिए कष्टदायी तो हो सकता है परंतु जिंदगी को बचाये रखने वाला एकमात्र हथियार भी अभी तक यही है । यदि हम जीवित रहें तो ही संसार मे कुछ उम्मीद की जा सकती है । इसीलिए लोकडाउन की चुनातियां ही भविष्य की उम्मीदें है , इसमें कोई दो राय नही है ।
 - परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
जी हां, अब तो इन चुनौतियों के साथ ही भविष्य की आशा जुड़ी हुई है। सबसे बड़ी चुनौती है कोविड-19,वायरस का इलाज।इसके कारण ही लाकडाउन करना पड़ा और चिकित्सा, सुरक्षा, रोजगार, शिक्षा, आवागमन, उद्योग धंधे, सामाजिक संबंध, जैसी अनेक चुनौतियां सामने आ खड़ी हुई। इनके कारण काम जनजीवन बहुत प्रभावित हुआ। 'जान है तो जहान है' और 'पहला सुख निरोगी काया' जैसे सिद्धांतों को मानने वाले भारतीय समाज ने इन चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया और कर रहा है। अब भविष्य की आशा की बात, चिकित्सा में आयुर्वेद,घरेलू परंपरागत चिकित्सा। सुरक्षा में सेल्फ कोरेंटाइन। रोजगार में परंपरा गत स्वदेशी उत्पाद,हस्तकौशल। शिक्षा में आनलाइन और पारिवारिक शिक्षा। सामाजिक संबंधों में दिखावे और झूठी शान प्रदर्शन न होना। आवागमन में अत्यावश्यक आना जाना। उद्योग धंधों में कुटीर उद्योगों के बढ़ने की आशा है।जो समाज में दिखायी भी देने लगी है। बस, सबसे बड़ी चुनौती कोविड-19 का इलाज जब तक खोजा जाए,तब तक आयुष काढ़ा नियमित सेवन,ये ही भविष्य की आशा है
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत नियम है। कोरोना वायरस की वजह से लाॅकडाउन की स्थिति उत्पन्न हुई और लाॅकडाउन में अनेक नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अभी तक जीवन जिस प्रकार चल रहा था उससे अलग हटकर जीवन जीने का एक परिवर्तित रुप हमारे सामने आया है। मनुष्य को कोई भी परिवर्तन प्रारम्भ में सहजता से स्वीकार नहीं होता और एक चुनौती के समान प्रतीत होता है।
लाॅकडाउन में जिस तरह से अनेक नियमों में बंधकर जीवन जीना पड़ रहा है वह चुनौतियों के समान ही है, परन्तु वह हमारे वर्तमान को सुरक्षित रखने के लिए है और भविष्य को सहेजने में सहायक हैं। 
सामाजिक/शारीरिक दूरी बनाए रखना, मास्क का प्रयोग करना, स्वच्छता का ध्यान रखना, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने हेतु पौष्टिक आहार करना, अनावश्यक आवागमन से बचना तथा तकनीक का अधिकाधिक प्रयोग करने जैसी अनेक बातें प्रारम्भ में चुनौतियों के समान ही प्रतीत होंगी परन्तु यही सब भविष्य की उम्मीदें हैं। 
ऐसी ही चुनौतिपूर्ण जीवनचर्या लाॅकडाउन समाप्त होने के बाद हमें अपनाये रखनी होगी तभी कहा जा सकता है कि लाॅकडाउन की चुनौतियां भविष्य की उम्मीदे हैं।
साथ ही लाॅकडाउन ने हमारे श्रमिकों की वास्तविक दशा की ओर जो ध्यान दिलाया है यदि उसको सरकार और समाज द्वारा एक चुनौती के रूप में देखा जाये और भविष्य में श्रमिकों की स्थिति में सकारात्मक सुधारों हेतु अभी से कार्य किए जायें तो लाॅकडाउन की यह सबसे बड़ी चुनौती आने वाले समय में श्रमिकों के लिए एक उम्मीद हो सकती है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कहते हैं चनौतियां ही जीवन कौ निखारती हैं लम्बे समय से हम एक समान जीवन जी रहें थे और इसी को हमनें अपना सब कुछ मान कर, मान अभिमान करतेआ रहें थे इसी में रूठते मनातें थे यही अपमान यही हमारी जीद बनकर रह गई थी कुल मिलाकर जीवन की यही संस्कार संस्कृती सभ्यता नियम कानुन कायदें बन कर रह गये थे अब कोरोना वायरस ओर उससे बचने के उपाय के तौर पर लाॅकडाउन ओर उसके बाद की जीन्दगी है कल तक जो हमारे शान अभिमान की पहचान थें वे अब हमारें लिये दुख दर्द तनाव के कारक रहेगें मानो बच्चों को चाट खानी हैं या हमारे यहा शादी हैं कुछ शुभ कार्य हैं क्या पहले की तरह कर पाओगें ओर करोगें तो क्या तनाव मुक्त रह पाओगें। एसे अनेका अनेक किस्से सामने आने लगेगे। कोयोना वायरस एव लाकडाउन समाज में बहुत बढ़ा परिवर्तन लाने वाले हैं नई चुनोतियों से हमे अब समझौता कर अपना भविष्य तय करना हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
लॉ क डाउन की चुनौतियां हैं भविष्य की नींव है
 कहते हैं परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है ।
कोरोना संकट ने हम  इंसानों को यह शिक्षा दी है कि अगर प्रकृति से खिलवाड़ करोगे तो हमारे स्वास्थ्य और प्रकृति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा ।
लॉ क डाउन में हम  देख रहे हैं कि  प्रकृति  अपने नए रंग में लौट रही  हैं।
   कोरोना काल ने  हमें  यह शिक्षा दी है की जरूरत पड़ने पर ही घर के बाहर जाएं, घर का बना हुआ भोजन करें  ।फालतू खर्चे शादी समारोह आदि कार्यक्रम में यानी पैसे की बर्बादी नही करनी चाहिए                  
स्वच्छता का ध्यान रखें सामाजिक दूरी बनाए रखें ।
अपने राज्य या देश से पलायन न  करके आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करें। आदि
लॉ क डाउन की चुनौतियों को अगर हमने अपने जीवन का अंग बना लिया तब  भविष्य में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी  हम परेशान नहीं होंगे मजबूती से  सभी समस्याओं का सामना
 करेंगे ।
 - रंजना हरित            
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
निःसंदेह चुनौतियां जीवन को रोचक बनाती हैं और उन पर विजय पाना जीवन को सार्थक बनाता है l प्रतिकूल परिस्थितियों में कुछ व्यक्ति टूट जाते हैं और कुछ कुछ को उनमें भविष्य की उम्मीद नज़र आती है l कहा गया है -
1. कोई कश्ती में तन्हा जा रहा है 
  किसी के साथ दरिया जा रहा है. 
2. लॉक डाउन में मन को सामना करना होगा 
जीवन में अपने भय का 
डर से भी बड़ा निर्माण करूंगा 
"आत्मविश्वास "अपने ह्रदय का. 
            उपर्युक्त दोनों ही काव्य पंक्तियाँ हमें यह सोचने को बाध्य कर रही हैं कि चुनौतियां और संघर्ष से ही भविष्य की उम्मीदें जगती हैं l आप तन्हा जा रहें हैं या दरिया आपके साथ है l ये आपके विचारों पर निर्भर करेगा l 
          लॉक डाउन की चुनौतियों को स्वीकार करके, उम्मीद और आत्मविश्वास का दीप अन्तःकरण में जगाइये फिर ----
      ये धुंध कुहासा हटने दो 
कोरोना अंधकार को सिमटने दो
  प्रकृति का रूप निखरने दो 
        प्रकृति दुल्हन जब 
        नेह सुधा बरसायेगी 
   घर घर खुशियों की उम्मीदें 
    दस्तक अनवरत जगायेगी 
   आर्यावर्त की पुण्य धरा पर 
     नव प्रकाश जगमगायेगा l 
चुनौतियां ही भविष्य की उम्मीदें 
हैं l कुछ लोग भाग्य, देव, कोरोना संक्रमण तथा सामाजिक परिवेश आदि पर अपनी दयनीय दशा का रोपण करते हैं, यह न्याय संगत नहीं है l केवल इन असंबंधित नामों पर मिथ्या आरोप लगाने की अनाधिकृत चेष्टा करके अपने भाग्य को कोसते रहते है और दैव दैव अलसी पुकारा की वृति को रेखांकित करते है l ऐसे व्यक्तियों के लिए लॉक डाउन चुनौतियां नहीं हो सकतीं l स्पष्ट शब्दों में कहना चाहूँगी कि लॉक डाउन चुनौतियों को अपनी विचार शैली में परिवर्तन कर देखेंगे तो हम पाएंगे जहाँ नीरसता, उदासी, असफलता, निष्क्रियता, आलस्य, प्रमाद, असावधानी,अस्त व्यस्तता
जीवन एक भार लग रहा है वहीं हमें संसार में सर्वत्र एक नई उम्मीद /किरण का प्रकाश और आनंद का सागर लहराता दिखाई देगा l हर परिस्थिति में चाहें अनुकूल हो अथवा प्रतिकूल, उसमें भी आनंद आयेगा, उम्मीद की किरण नज़र आयेगी l 
             चलते चलते -
मुश्किलें दिल में इरादे आजमाती हैं l
 स्वप्न के परदे "निगाहों "से हटाती हैं l 
हौंसला मत हार हे वन्दे !
ठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैं ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
 यदि बचाब सुरक्षा की दृष्टि से देखे तो भविष्य से उम्मीदे है
यदि जीवन होगा तो भविष्य होगा उसके लिए जागरूकता जरूरी है। हमे लॉक डाउन की चुनौती को स्वीकारना होगा । घर में सुरक्षित रहकर भविष्य सुरक्षित कर सकते हैै। उसके लिए हमे हर चुनौती का सामना करना होगा दूरी बनाये रखेगे हाथ को अच्छे से धोयेगे मास्क लगाकर जीवन की चुनौतियों से लड़ना हैै। कोरोना  संक्रमण से बचाव के लिए हमे लॉक डाउन की चुनौतियो का सामना करना पडेगा अपने व अपनो के भविष्य को सुरक्षित करना है। यदि संक्रमण से बचेगे तभी देश समाज दुनिया के बारे में सोचेगे लॉक डाउन की  चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और भविष्य को उज्वल बनाना पड़ेगा ।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
 वर्तमान स्थिति को देखते हुए फिर हाल ऐसा ही कहा जा सकता है जब तक करो ना महामारी का अंत ना होगा तब तक लाभ डाउन को चुनौतियां श्री भविष्य की उम्मीदें नजर आ रहा है। जब तक करो ना महामारी की समाधान नहीं मिल जाता तब तक लाक डाउन की चुनौतियों को ही अपनाना होगा। वर्तमान में यही एक उम्मीद के रूप में दिखाई दे रहा है लाक डाउन भी एक भविष्य की उम्मीद लेकर आया है अतः भविष्य को देखते हुए हम मनुष्य जाति को धैर्य और संयम ता के साथ अपना जिंदगी समझ कर जीना होगा ।अभी तक कोरोना वायरस के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है कि उसका खात्मा हो सके ।अतः भविष्य में  फिर हाल अभी भविष्य की उम्मीद है ऐसा लग रहा है। अतः लाख डाउन का इमानदारी पूर्वक पालन करते हुए भविष्य की ओर आहिस्ता आहिस्ता संभलकर बढ़ना है। और करो ना से निजात पाने की उम्मीद बना हुआ है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
क्या लाकडाउन की चुनौतियां ही भविष्य की उम्मीदें हैं ?
     सही बात है लाकडाउन कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए नितांत आवश्यक है,पर लाकडाउन की अवधि सीमित भी करनी पड़ेगी ताकि आर्थिक जन जीवन सामान्य हो सके। लाकडाउन से कितनी परेशानियाँ हुई ,इससे तकरीबन सभी लोग विदित हैं। मजदूर वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हुआ है तथा बिलखते बच्चे और गर्भवती स्त्री का कष्ट रेलवे प्लेटफॉर्म से लेकर नेशनल हाईवे तक देखा जा सकता है।बहुतों की नौकरियाँ चली गई । शहर मे जिंदगियां गुजारना मुश्किल हो गया । अगर लाकडाउन मे ढील नहीं दी जाए तो कोरोना से कहीं ज्यादा लोग भुखमरी और गरीबी से  ताबाह हो जाएं और मर जाए।
      कोरोना ने हमारी जिंदगी जीने की शैली ही बदल दिया है।साबुन से हाथ धोना, सोशल डिसटेन्सींग रखना जिंदगी का अहम हिस्सा हो गया। बाहर निकलने पर मुँह और नाक पर मास्क लगाना आवश्यक हो गया है। सेनेटाइजर का उपयोग बहुतायत करना पड़ रहा है। पराया क्या अपनों से भी दूरी बनाना पड़ रहा है। घर या सगे संबंधियों मे भी किसी और  तरह का बुखार होने पर भी कोरोना का ही भय लगता है। सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक आयोजन लगभग बंद हो चुके हैं। यह ग्रीष्म ऋतु बिना शादियों के आयोजन का ही निकल गया। यह आश्चर्य की बात है।
        कोरोना हमारी भविष्य की चुनौती के रुप मे खड़ा है। हमें कोरोना संक्रमण से बचते हुए भविष्य के नये स्वरूप को तैयार करना होगा जिससे जीवन की आर्थिक तथा सामाजिक गतिविधि पटरी पर आ सके।
    - रंजना सिंह
     पटना - बिहार
          चुनौती जीवन का आभूषण है। इतिहास ही नहीं बल्कि ग्रंथ भी साक्षी हैं कि मरणोपरांत जो महापुरुष अमर हुए, उन्होंने अनमोल जीवन को सफल बनाने के लिए चुनौतियों को ललकारा था। उदाहरणार्थ (सवा लख नाल इक लड़ावां, तां ई गुरु गोबिंद सिंह नाम कहावां) पूज्यश्री गुरु गोबिंद सिंह जी के असंख्य शत्रु की चुनौती को ललकारते हुए कहा था कि सवा लाख से एक एक लड़ाऊं  गुरु गोबिंद सिंह नाम कहलाऊं। 
    उल्लेखनीय यह भी है कि वीर साहसी महापुरुष चुनौतियों के परिणाम गिना नहीं करते। वह तो भविष्य का निर्माण करते हैं। जिनके क्षणिक परिणाम भले ही कष्टदायक हों परन्तु दूरगामी परिणाम अत्यंत सुखद होते हैं।
    अतः चुनौती चाहे जीवन की हो, सुरक्षा की हो या लाॅकडाउन अर्थात तालाबंदी की हो एक बात पक्की है कि चुनौतियां का भविष्यफल सदैव उम्मीदों से कहीं मीठा और सुखद होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हाँ , लाकडाउन की चुनोतियों ही भविष्य की उम्मीदें हैं । देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में देश में रहनेवालों को नित नई चुनोतियों को सामना करना पड़ रहा है। 
 लाकडाउन  में ढ़ील देने से फिर से सभी व्यवस्थाएँ शुरू होनेे पर समय तो लगेगा ही ।
  हर व्यक्ति को कार्य स्थलों पर सामाजिक दूरी बनानी जरूरी है । मॉस्क को पहनना , हाथों को साबुन से धोना , 
स्वच्छता को बनाए रखना बेहद जरूरी है ।  शादी में अब लोग कम इकट्ठे होंगे । जिससे शादी पर होने वाले खर्चे पर लगाम लगेगी । 
  प्रदूषित  प्रकृति अपने   प्राकृतिक शुद्ध रूप में दिखाई दे रही है । सरकार  का गंगा  की सफाई में कोरोड़ों का खर्चा करके भी साफ नहीं हुई , ये काम  लाकडाउन की वजह से संभव हो गया । फिर इंसान नदियों में गंदगी घोल   के प्रदूषित  न करे विमान सेवाएं ठप्प होकर फिर
 सभी नियमों का पालन से  शुरू हुई हैं ।
देश के कठिन समय में   लाकडाउन ने देश को तैयारी करने का मौका दिया है । 
लाकडाउन 4 से कोरोना के मामले ज्यादा हो गये । राज्यों को स्वायता मिली ।सरकारी  नीतियों का  दिवालापन मजदूरों के रूप में सड़कों  में दिखायी दिया है । मजदूरों की रोजी  रोटी छीन गयी । 
समय ही जवाब देगा , कौन किस तरह आत्मनिर्भर  होगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
अगर कड़वी सच्चाई को हम स्वीकार कर लें तो यह बिल्कुल सत्य है।
सबसे पहली चुनौती ये है कि हम लोग जितना कम सामाजिक रूप से सक्रिय होंगे उतनी ज्यादा उम्मीद कोरोना से खात्मे की है।अगर गणित की भाषा मे कहूँ तो सामाजिक दूरी और कोरोना एक दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती हैं।पहले ले बढ़ने पर दूसरे घटता है।
कहते हैं ना कि कोई भी संकट हमे कुछ ना कुछ सीख दे कर जाता है।
सम्पूर्ण विश्व इस कदर कुदरत का दोहन कर रहा था कि कुदरत को खुद लोगों का इलाज करना पड़ा।
पर्यावरण को हमने नाश कर दिया।जंगल हमने नही छोड़े।वन्य जीव हमने खत्म कर दिए।उनके प्राकृतिक आवास खत्म कर दिए।नदियां हमने नालों में बदल दिये।समुद्र तक तो हमने छोड़ा नहीं।पहाड़ हमने प्रदूषित कर दिए।
धरती में खाद डाल डाल के उसको जहरीली बना दिया।आबादी आसमान छू रही हैं।
सही बात तो ये है कि प्रकृति का कोई संसाधन हमने नही छोड़ा।अब आगे अगर हम इसको छोड़ सके तो ही कुछ ठीक होने की उम्मीद है। वरना आगे और भी बदतर हालात आएंगे।
इस आपदा ने हमको चेताया है कि हे मनुष्य होश में आओ अब भी समय है। एक बात और कहना चाहूंगा इस आपदा में हमारी हिन्दू संस्कृति की सर्वश्रेष्ठता पुनः सिद्ध हुई है।चुम्बन आलिंगन हमारी संस्कृति का हिस्सा नही हैं।हम हाथ जोड़ कर प्रणाम करने वाले लोग हैं।हम शाकाहारी संस्कृति के वाहक हैं।हम जीवों पर दया करने वाले लोग हैं।जैन धर्म बौद्ध धर्म सिख धर्म में भी हिंसा का निषेध बताया गया है।
शारीरिक स्वच्छता का स्थान हमारे यहां सर्वोपरि है।हम तो आत्मा की भी शुद्धि वाले लोग हैं।अगर सही मायनों में देखा जाए तो कोरोना के जो भी संभावित कारण रहे हैं वो सभी भारतीय संस्कृति में निषेध हैं।
मुझे अच्छा लगेगा अगर अब हम लोग दिन में कई बार हाथ धोना सीख जाए। भीड़ से दूरी बनाना सीख जाए।बाहर का खाना भूल जाये।फिजूलखरची भूल जाएं।मांसाहार भूल जाये।
अगर कोरोना का ये सबक याद रख पाए तो निस्संदेह हम बहुत कुछ प्राप्त भी कर सकते हैं
अतीत से सबक ले कर वर्तमान को सुधार लें तो भविष्य अपने आप शानदार हो जाएगा।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
अब लॉक डाउन हो या न हो अब संक्रमण रुकनेवाला तो है नही । इसे इसी तरह खोल कर रखना था तो लॉक डाउन किया ही क्यो ? जब लॉक डाउन था तब भी क्या लॉक डाउन सफल रहा ? अभी किसी गुप्त नीति को क्रियान्वित करने होगा जो 17 जून तक बढ़ने के समाचार सुनने में आ रहे हैं । 
     लॉक डाउन की सबसे पहली चुनौती है देश की अर्थव्यवस्था जिसे कोरोना से पहले तक के स्तर कक लाने में 5 साल लगेंगे ।
 रोजगार गए , इंडस्ट्रीज ठप हुई ,नजो थोड़ा बहुत जमा था उसे ढाई महीने बैठ कर खा पी कर खत्म कर दिया ।
    दूसरी चुनौती शिक्षा की है ।शिक्षा से जुड़े कर्मचारियों के वेतन की हौ । 
      तीसरी चुनौती स्वास्थ्य की है जो अभी तक भी हाथो से बाहर है । कोई दवाई ,टीका या वैक्सीन अभी तक तो बन नही पाई । जब पैसा ही नही होगा तो भविष्य में कहाँ से काम होगा ।
        चौथी चुनौती मजदूरों की है जो एकदम नए किस्म की है । जिसका सरकार के पास कोई हल नही ।
     क्या इन   चुनौतियों से भविष्य की कुछ उम्मीद नजर आती है??,
- सुशीला जोशी -विद्योत्तमा 
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
चुनौतियों में अगर जीवन निखरता है तथा इंसान और भी अत्यधिक सुघड़ बनता है तो वो वक़्त आ गया है।जैसे ही 'लॉकडाउन' अपनी व्यथा कहानियों को दरकिनार कर के समय के पटल पर चस्पा मात्र करा के जा रहा होगा तो हमारी उम्मीदें चुनौतियों के संग भविष्य के हाथों सौंपी जा रही होंगी।जो लाज़मी भी होगा और सच कहें तो समय की मांग भी।
      अब यदि हम अपनी सामाजिकता पर कुछ मंचन करें और अपने इर्द-गिर्द इस वैश्विक महामारी या फिर लॉकडाउन से पूर्व में झाँकें तो पाएंगे कि ये तक पहले से ही विद्द्मान था और हम  सहर्ष उसे करते भी आ रहे थे।इसके बाद सबसे बड़ी चुनौती अगर कुछ होगी तो वो होगी सोशल डिस्टेंसिंग या सामाजिक सहज दूरी।परन्तु यदि हम देहात के भारत में देखें तो वहां बहुत कुछ मिलेगा जिसके दौरान हम स्वतः ही सोशल डिस्टेंसिंग कर लेते थे।जैसे प्रसूति महिला से प्रारम्भिक दिनों में।हम दूर से बच्चे को देखते थे और बातें करके आशीर्वाद दे दिया करते थे।वो इसलिए होता था या है क्योंकि नवजात शिशु बहुत नाजुक होता है हम कहीं उसे नुकसान ना पहुँचा दें।वैसे ही शहरों में होता था कि यदि किसी को चिकनपॉक्स या कुछ और संक्रमण वाली बीमारी होती थी तो उसे 'आइसोलेट'(वर्तमान का क्वारन्टीन)कर देते थे।वो भी सहर्ष उसे मानकर उपचार करके फिर वापस आ जाता था।
         यदि आज के परिपेक्ष में देखें तो लॉकडाउन की यही मांग है और भविष्य की प्रमुख चुनौती भी।परन्तु इसे इतना विकराल रूप देकर प्रस्तुत करना शायद हमें और भी भयभीत करता है और हम जसकी वास्तविकता से नहीं बल्कि इसके प्रसारित पक्ष से जुड़ने लगते हैं।अर्थात लॉकडाउन की चुनौतियों को मानकर तथा उनका पालन करके चलेंगे तो समाज और हमारा उज्ज्वल भविष्य भी उसी में निहित है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना महामारी से बचने के लिए केन्द्र सरकार ने पूरे देशभर में लॉकडाउन लगाया गया, ताकि कोरोना से देशवासियों की जान बचायी जा सके। लॉकडाउन 4 आगामी 31 मई तक जारी रहेगा। जैमिनी अकादमी द्वारा पेश गुरुवार की चर्चा में सवाल पूछा गया है कि क्या लॉकडाउन की चुनोतियाँ ही भविष्य की उम्मीदें हैं। सही बात है की अब भविष्य में हमें कोरोना के साथ ही जीने की आदत डालनी होगी। केन्द्र सरकार ने लॉकडाउन में जो पाबंदिया लगाई थी उसका हर हाल में पालन करना होगा। अब लॉकडाउन की चुनोतियाँ ही भविष्य की उम्मीदें हैं। इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइंस का पालन करना होगा। लॉक डाउन में सरकार ने जिन नियमों को लागू किया था उसका पालन करने से ही हम सब कोरोना जैसे छुआछूत की महामारी से जान बचा सकते है। हमे हर हाल से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा। मास्क पहनना पड़ेगा। हाथों को सेनेटर्राईएज करने के साथ साथ समय समय पर साबुन से हाथ धोना होगा। जरूरी होने पर ही घरोँ से निकले। 
जिस तरह से कोरोना वायरस (कोविड19) वैश्विक महामारी का रूप धारण कर मौत का तांडव मचा रहा है। इससे पूरी दुनिया परेशान और भयभीत है। सबसे अधिक नुकसान अमेरिका को हुआ है। दुनिया मे अबतक 3 लाख 52 हजार 694  मौतें हुई है,जबकि 57,01,498 संक्रमित हुए हैं। हालांकि 24 लाख से अधिक लोग ठीक भी हुए हैं। सबसे प्रभावित देशों में अमेरिका है, जहाँ कोरोना से अबतक 17,25 लाख संक्रमितों में से एक लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है। भारत मे संक्रमितों की संख्या 1,51,676 हो गई है। 4,337 लोग मर चुके हैं। पिछले 24 घंटे में 6,387 नए मामले सामने आए है, जबकि 170 की मौत हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश मे 83,004 कोरोना रोगियों का अस्पतालों में इलाज चल रहा है। जबकि राहत वाली बात है कि 64,425 लोग ठीक होकर घर आ चुके हैं। इन परिस्थितियों में 
अब एक ही रास्ता बचता है कि कोरोना से बचना है तो भारत सरकार ने लॉकडाउन में जो भी पाबंदियां लगाया है उसका सख्ती के साथ पालन करना होगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
यह विषय बहुत ही सकारात्मक है चुकी चुनौतियां शब्द का प्रयोग किया गया है जब किसी भी समस्या को इंसान ए ज चैलेंज या चुनौती के रूप में स्वीकार ता है तो एक मानसिक और शारीरिक उर्जा उसे मिलती है और यह ऊर्जा सकारात्मक होती है जिससे भविष्य की उम्मीद और तरह-तरह के आइडियाज मस्तिष्क में आने लगते हैं जो चुनौतियों को आगे बढ़ाने में या समाधान करने में प्रबल बन जाती है
वर्तमान समय भी इसी दौर से गुजर रहा है पूरे दुनिया में यह एक चुनौती बन गई है कोरोना संक्रमण का विनाश करना उसे हराना और मानव जीवन को सामान्य बनाना
सरकार अपनी योजनाओं के अनुसार बहुत सही कदम उठा रही है यद्यपि की हम नागरिकों को ऐसा महसूस होता है कि लॉक डाउन जल्द से जल्द खत्म हो जाए पर जिन शहरों में जिन देशों में इसे खत्म किया गया है वहां पुनः महामारी उत्पन्न हो गई है सरकार का यह पहल है कि जब तक वैक्सीन या प्रॉपर इलाज चिकित्सा सभी जगह उपलब्ध ना हो जाए तब तक हर इंसान को लॉक डाउन के बनाए गए नियमों का सतत पालन करते रहना है यह नियम सरकार की सुरक्षा के लिए नहीं है यह नागरिकों की सुरक्षा के लिए है इसलिए चुनौती तो बड़ा गंभीर है फिर भी समाधान का रफ्तार धीमी अवश्य है पर शुरू हो गया है और जब हम आगे बढ़ना शुरू कर देंगे तो मंजिल पा ही लेंगे कोरोनावायरस हारेगा भारत को जीत हासिल होगी प्रधानमंत्री मोदी जी का प्रेरणात्मक भाषण यह संकेत दिलाता है कि हम आपके साथ हैं आपके दुखों में साथ हैं आपके हर दुखों का समाधान खो जाएंगे नागरिकों के लिए ही हमारी सरकार है सरकार के सभी बंदे हैं और यह विश्वास दिलाना और उसके अनुरूप कार्य करना सराहनीय कदम है नागरिकों को सिर्फ धैर्य से चुनौती का सामना करना है।
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
 हॉ, लोक डाउन के बाद बड़े बदलाव होंगे,खास कर  इन राज्यों में झारखंड बिहार यूपी। मेरे मजदूर भाई अपने अपने पैतृक स्थान पर आ रहे हैं या आने कोशिश में और अब इन लोग का इच्छा है अपना गांव ही अपना है।
अतः औद्योगिक क्षेत्र के जानकार खिलाड़ी इस क्षेत्र की ओर नजर रखे हुए हैं चुकि मैन पावर आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे और उन्हें ज्यादा सुविधा देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मैंने बहुत लोग से बात किया सबका मानना है अपना गांव में रहकर पैतृक संपत्ति देखेंगे तथा रोजगार करेंगे। ऐसे हालात में पूंजीपति लोग भी इस राज्य में पूंजी लगाना चाह रहे हैं।
अब समय आ गया है केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार मिल कर दो -तीन काम करें।
1) श्रम नियोजन नियम और सुधारें और लचीला बनाएं।
2) एरिया डिवेलप यानी इंफ्रास्ट्रक्चर:- सड़क, बिजली पानी सुविधा प्रदान करें ।
3) प्रशासन और सरकार की ओर से संरक्षण।
 4) सबसे बड़ी बात नीति ऐसा बनाएं सिंगल विंडो सिस्टम ताकि जो भी कल कारखाना लगाना चाहते हैं तो उन्हें उचित समय पर सभी सुविधा मिले।
हम देख रहे हैं आईटी क्षेत्र में बड़े बदलाव आए हैं जैसे वर्क फ्रॉम होम का प्रचलन शुरू हो गया है। जो लोग मैनेजमेंट में रहेंगे वह घर से भी काम कर सकते हैं।
इन सब बातों को ध्यान में रखकर यह महसूस हो रहा है कि
 राज्य चौमुखी विकास की ओर अग्रसर हो  होगा।
बिंदु को देखते हुए भविष्य उमेश सुनहरा है।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
जिसने चुनौतियों का किया सामने जंग उसी ने जिता । 
अब हमें कोरोना वं लाकडाऊन के साथ साथ जींदगी को पटरी पर लानी है घर में बंद रह कर काम नहीं चलेगा बहार निकल रोटी तो कमानी ही है 
ऐसी खतरनाक बीमारियों का इतिहास बतलाता है।  एक लाइन में कहा जा सकता है कि “खता पासपोर्ट “ने की और सजा मिली “राशन कार्ड” को। भारत में भी कोरोना संक्रमण यहां के संपन्न समूह, उद्यमियों, विदेशों में नौकरी करने वालों, प्रवासियों, लगातार उड़ान भरने वालों, गायकों आदि के जरिए फैला है। लेकिन बाद के दिनों में अब दुकानदारों, टैक्सी ड्राइवरों, श्रमिकों और मध्यवर्गों तक पहुंच रहा है। लेकिन हम इसके लिए दोषी गरीब-मजदूर और स्लम के लोगों को मान लेते हैं। क्योंकि ये सुविधाहीन और लाचार होते हैं। गंदगी से भरे होने के कारण समर्थ सामाजिक समूहों से अलग दिखायी देते हैं, इसलिए उन्हें किसी महामारी का दोषी करार दे दिया जाता है। 
कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते इस वक़्त दुनिया के अलग अलग देशों में लॉकडाउन चल रहा है. इस कारण से लोग अपने अपने घरों में बंद हैं. उनमें वो महिलाएं भी शामिल हैं, जो अक्सर अपने जीवनसाथी के हाथों शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना की शिकार होती हैं.
लॉकडाउन का चैथा चरण सोमवार 18 मई से प्रारम्भ हो गया है। जो 31 मई तक चलेगा यानि अभी हमें तीन दिनों तक इस संक्रमण से बचने के लिए तथा दूसरे को बचाने के लिए जब तक बहुत आवश्यक न हो घर पर ही रहना पड़ेगा। वैसे फिलहाल इस बीमारी का यह इलाज नहीं है। और न ही इतनी जल्दी इलाज उपलब्ध होने वाला है। तो क्या जब तक कोविड 19 की वैक्सीन नही बनती हम अपनी गति विधियाँ बन्द कर दंेगे। हम अपने को घरों तक में ही सीमित कर लेंगे? शायद नहीं क्योंकि समय तो कभी रुकता नहीं और समय का चक्र भी लगातार ही रहता है। इसलिए हमें भी बगैर रुके तथा बगैर थकें चलते रहना है। आगे बढ़ते रहना है तभी तो हम एक आत्मनिर्भर भारत की कल्पना कर पायेंगे जिसकी उद्घोंषणा गत् दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी। उन्होंने कहा था और हम सब भी यह बात भली-भाँति जानतें है कि कोरोना का दंश अभी इतनी जल्दी हमारी जिन्दगी से जाने वाला नहीं है। ऐसे में समय की यही मांग है कि हम अपने को कोरोना के साथ रहने के लिए वैसे ही तैयार कर लें जैसे एड्स तथा इन्फलूयेन्जा के साथ आराम से अपना जीवन व्यतीत कर रहें है और अपने को सुरक्षित भी किये हुए है। बरसात को हम चाहकर भी नहीं रोक सकते बरसात अगर होनी है तो होगी ही लेकिन उससे बचाव का यही रास्ता है कि अगर बहुत जरुरी नही है तो हम घर में ही रहें और बरसात से बचे रहें। इसके अलावा यदि बाहर जाना आवश्यक है तो छाता लेकर चलें, इससे हम पर बरसात का असर कम होगा और हमारा कार्य भी प्रभावित नहीं होगा। यही बात और यही तरीका हमको कोविड 19 के साथ रहते हुए गुजारना है। यानि चेहरे को ढंक कर रखना है।
एक-दूसरे से दूरी बनाकर काम करना है, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से परहेज करना है तथा शारीरिक रुप से कमजोर, वृध्द जनों तथा बच्चों को जब तक बहुत आवश्यक हो घर से बाहर नहीं निकलना है। सही मानों में जिन्दगी का सही मजा जिन्दगी जीने में है, चलते रहने में है क्योंकि जब हम चलते रहेंगें तभी तो हम मंजिल तक पहुंच पायेंगे और अपने लिए कोई स्थान बना पायेंगे। ऐसे में यह जरुरी है कि हम इस वैश्विक महामारी से सचेत रहें सुरक्षित रहें तथा सामंजस्य बिठाते हुए अपने काम में लगे रहें यही समय की आवश्यकता है और यही हमारा कर्तव्य भी है। क्योंकि हम चाहकर भी बहोत दिनों तक हाथ पर हाँथ रखकर नहीं बैठ सकते क्योंकि इससे न केवल हमारा व्यक्तिगत न जीवन प्रभावित होगा बल्कि इसका असर राष्ट्र के विकाश और उत्थना पर भी पड़ेगा। हम सबको यह बात भंली भांति समझ लेना चाहिए कि कोविड-19 एक महामारी है जिससे छुटकारा पाने के लिए हमें लड़ना है। लेकिन यह लड़ाई कोई ऐसी लड़ाई नहीं है जो कुछ दिनों में ही समाप्त हो जायेगी। यह लड़ाई लम्बे समय तक चलेगी लेकिन इसी लड़ाई के बीच हमें अपने लिए कई नये रास्ते चुनने होंगे, कई नयी राहें निकालनी होंगी ताकि हम एक सशक्त और आत्म निर्भर भारत बनाने में कामयाब हों सके।
तो आईये सभी मिलकर चुनौतियों का सामना करते है 
जींदगी एक संघर्ष है चलते रहे बाधाओं से क्या डरना बँधाये हौसलो की उड़ान को रोक नहीं सकती .. ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
मनुष्य अकसर चुनौतियों से सीखता है । जूझता है  , संघर्ष करता है और जूझते - संघर्ष करते हुए वह एक रास्ता निकाल लेता है । यही रास्ता एक उम्मीद की लौ जगाता है । कोरोना संक्रमण एक वैश्विक विपति है । क्योंकि इस वायरस का कोई इलाज नहीं है इसलिए इसका संक्रमण लम्बा चलेगा । कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से नियंत्रित करने के लिए लाॅकडाउन लगाया गया लेकिन परिणाम ... सामने हैं ।  मर्ज बढता गया ज्यों ज्यों उपचार किया । समस्याएं बढती ही जा रही हैं । स्कूल कालेज बंद होने से छात्रों का भविष्य अंधेरे में है  । कुछेक की परीक्षाएं लटकी हुई हैं तो जो परीक्षा हो गई है उनका परिणाम नहीं निकल पाया है । दुकानें  , माॅल , फैक्टरियां बंद होने से अर्थव्यवस्था चौपट हो गई । मजदूरों के बिन कम्पनियों , फैक्टरियों , उद्योगों का क्या होगा  ? अपने गाँव में ये मजदूर कैसे जीवन निर्वाह करेंगे  ? शहरों में चले निर्माण कार्यों का क्या होगा  ? इनके भविष्य के सपनों का क्या होगा ? गाँव में नए जीवन की शुरुआत कैसे करेंगे ?  परिवहन बंद होने से आवागमन प्रभावित हो गया  । जो जहाँ फंस गया वहाँ वह सरकार - प्रशासन के लिए आफत बन गया  ।श्रमिकों  मजदूरों का रोजगार छिन गया । घर वापसी के लिए मजबूर हो गए  । होटल ढाबे बंद ... । पर्यटन बंद ... । लाॅकडाउन आगे से आगे बढता जा रहा है  । काम - धन्धे खत्म हो गए  । आदमी आदमी से डर रहा है  । एक दूसरे को आदमी शक की दृष्टि से देखता है  । भीड़ से डरता है  । कम्पनियां व फैक्टरियां पुनः चालू भी कर दी जाए तो काम करने वाले मजदूर कहाँ से लाएंगे  । विवाह , सामाजिक - धार्मिक आयोजनों  के  लिए एक सीमित प्रावधान की व्यवस्था की गई है । ऐसे में बैंड पार्टी व डीजे वालों का धन्धा फ्लाॅप हो गया । जब तक कोरोना वायरस के इलाज के लिए वैक्सीन या कोई ठोस उपचार सम्भव नहीं होता तब तक दहशत का साम्राज्य ही स्थापित रहेगा । उम्मीद की किरण अभी दूर दूर तक नजर नहीं आती ।  अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुत लम्बा  वक्त लगेगा  ।
- अनिल शर्मा नील 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
लाक डाउन की चुनौतियां ही भविष्य की उम्मीद हैं यह  बात बिल्कुल सच है ।जानलेवा वायरस से पूरी दुनिया ने काफी कुछ सीखा है ।इस वायरस ने दुनिया को भविष्य में आने वाले संकट से वर्तमान में ही तैयारी करने की जो सीख दी है उसका असर भविष्य में जरूर दिखाई देगा। कोरोनावायरस मे दुनिया के कई देशों ने जारी लॉक डाउन ने  सरकारों और लोगों को कुछ बातें जानने और समझने का मौका दिया है। यह वह बातें जिन को ज्यादातर लोग नकारते आ रहे थे। उनका मानना था कि ऐसा हो ही नहीं सकता लेकिन ऐसा हुआ है ,इसलिए यहां पर यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया में कोई चीज बेवजह या पूरी तरह से गलत नहीं हो सकती। हर चीज का कुछ ना कुछ मकसद होता है, कुछ ना कुछ वजह भी होती है जो समय के साथ सामने आती है।
 आइए बताते हैं कि कोरोना से  हमने क्या सीखा ?
कोरोनावायरस के चलते दुनिया को भविष्य में आने वाले हर खतरे से आगाह कराया है जिसके लिए हर वक्त तैयार रहना होगा ।ऐसे खतरों से निपटने के लिए वर्तमान में तैयारियां भी बड़े पैमाने पर करनी होंगी ।इसने पूरी दुनिया के कदमों को  तो रोका लेकिन साथ ही विभिन्न देश एक दूसरे की मदद को भी आगे आए और एक दूसरे की मदद की ।  आर्थिक चपत  तो  कोरोना ने वाकई लगाई लेकिन मानवता को बचाने का लक्ष्य सभी देशों को एक साथ लेकर आया ।अर्थव्यवस्था में मंदी की परवाह न करते हुए सभी ने जरूरी कदम पहले उठाए ।इसकी  वजह से जो भविष्य  मे बदलाव के संकेत दिखाई दिए हैं वह काफी अहम है ।भविष्य में इन्हें नकारना संभव नहीं होगा ।ऐसे कई बड़े बदलाव भविष्य में होंगे जो दुनिया को नई दिशा देंगे और तरक्की की राह पर आगे लाएंगे। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय  बैठको के लिए अब बड़े तामझाम की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि यह सब वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए होगा इससे तमाम प्रकार के फालतू खर्चे बचेंगे ।कोरोना ने लोगों को घर में बैठकर काम करने की जो सीख दी इसे भविष्य में व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा।
 चीन ,पाक ,भारत आदि देशों में सबसे अहम की जो सामने आई वह ,स्वच्छता ,कोरोनावायरस होने से साफ जलवायु युक्त वातावरण मिला है जो बेहतर स्वास्थ्य देकर अन्य कई बीमारियों से बचाव करेगा ।
लोगों ने महसूस किया है कि बेवजह सड़कों पर निकलना एवं वाहनों को निकालना ठीक नहीं, इससे दुर्घटनाओं व अपराध दर में भी कमी रहेगी ।कोरोना के लॉक डाउन मे लोगों को घरों या अपनों  का महत्व  भी दिखा दिया है परिवार व पड़ोस को महत्व  देना सिखा दिया है ।
 पहले सरकार  लोगों द्वारा प्रदूषण मुक्ति  में भागीदारी चाहती थी तो लोग काफी तूल देते थे और  अब खुद ही तैयार होंगे एवं सदैव साफ सफाई रखेगे ।
 सामाजिक जगहो पर शारीरिक टच की ओट मे महिलाओं से अभद्रता पूर्ण व्यवहार किया जाता था जो कि सोशल डिस्टेंस के चलते भविष्य में समाप्त हो जाएगा ,क्योंकि अब  दूर से ही नमस्कार से काम  चलाना होगा। नमस्कार पद्धति तो पूरा विश्व ही अपना रहा है जो कि भारत की प्राचीनतम परंपरा रही है ।अब आगे भी  यही रहेगी  ।इन चुनौतियों पर सुंदर भविष्य की दीवार खड़ी है ।लोगों ने कम खर्चे में  ही अपना घरेलू खर्च उठाना शुरू कर दिया है।फिजूलखर्ची  बंद  हो गईं ।  इस लॉक  डाउन से मानवतावादी दृष्टिकोण, स्वदेश प्रेम ,स्वच्छता ,परोपकार , भाईचारा ,मैत्री ,सहयोग ,परमार्थ आदि मानवीय गुणों को विकसित कर दिया है जो भविष्य मे काम  आयेगा ।
योग ,प्रार्थना ,सदाचार ,दयाभाव , घरेलू कामो मे आत्मनिर्भरता  ,रचनात्मकता ,सृजनात्मकता,आदि मानवीय गुणों को निखारा है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
आज भारत समेत पूरे विश्व में कोरोना ने कहर ढाया हुआ है। और सभी देशों में लॉकडाउन के कारण बहुत लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। छोटे बड़े सभी कार्य क्षेत्र पर इसका दुष्प्रभाव दिख रहा है। इसका जीत जागता उदाहरण:-
●प्रवासी मज़दूर है, जो रोज़ी रोटी के लिए घर से हज़ारो मील दूर काम की तलाश में जाते है, ताकि दो वक्त की रोटी उसके परिवार को भी नसीब हो सके। अगर यही  रोज़गार उन्हें अपने क्षेत्र में मिल जाता तो उन्हें यूँ भटकना न पड़ता। आज इस लॉक डाउनमें इनकी असहनीय पीड़ा से सब परिचित है। हज़ारों मील पैदल छोटे बच्चों के साथ अपने गांव की जा रहे हैं। जेब में पैसा नहीं, पेट में दाना भी नहीं, फिर भी ये लोग घर वापस जाना चाहते है।लंबे समय तक अपने घर से दूर रहकर दूसरों के खजाने भरकर भी खाली हाथ रहने को मजबूर है।
आज अब राज्य सरकारों को इन श्रमिको के लिए ठोस कदम उठाने का  निर्णय लेना होगा। उनके ही क्षेत्र में रोज़गार के विकल्प तैयार करने होंगे।यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है जिससे हमारे देश का भविष्य निर्माण होगा।
●बहुत से लघु उद्योगों के लिए अवसर प्रदान करने होंगे। आज चीन से आने वाले समान पर रोक लगानी होगी। और खुद के बल बूते पर अपने देश की आवश्यकताओ को पूरा करना होगा। जिससे स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग होगा और अपने देश का पैसा अपने लोगो के पास होगा।जिससे भारत का भविष्य मज़बूत होगा।
●इस वक्त वैश्विक बाजार, भारत को यह अच्छे विकल्प के रूप में देख रहा है। बड़ी बड़ी कंपनियां चीन से अपना व्यवसाय समेट कर भारत में पैर जमाना चाहती है। भारत सरकार को इस ओर पूरी आशा है और वह इस दिशा में पूरी सावधानी से नज़र बनाए हुए हैं, जो कि नव भारत के भविष्य निर्माण को सही दिशा और दशा दे सकता है। 
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
कोरोना वायरस में लॉकडाउन में  रहना ही एक चुनौती है! लॉकडाउन में आज हमारी आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक, हमारे गरीब मजदूर जो हमारे उद्योग की रीढ़ है उन्होने जो तकलीफ सहन की है और कर रहे हैं, जिनके चलते मालिक और मजदूर में दूरियां आ गई है वह क्या कम चुनौती है जो हमें  लॉकडाउन से मिली है! इसलिए पहले तो हमें सामंजस्य और संतुलन बनाना जरुरी है चूंकि फिलहाल वायरस का कोई समाधान नहीं है! अभी वैक्सीन नहीं बनी है! दवाई नहीं  मिली है! 
अतः हमें ही सावधानी रखते हुए एहतियाती कदमों को अपनी जीवनशैली बना कोरोना के साथ रहना होगा यह बहुत बड़ी चुनौती है! 
मानाकि लॉकडाउन ही ऐसा उपाय है जिससे संक्रमण नहीं फैलता किंतु इस चुनौती को स्वीकारते हुए ही हमें भविष्य की उम्मीदों को ले आगे बढ़ना होगा! 
लॉकडाउन की चुनौतियां हमें एक अवसर प्रदान कर रही है! 
हमें  अपने विचारों में सकारात्मकता लानी होगी! जीवन है तो मुश्किलें एवं कठिनाइयां भी है उससे बाहर निकलने की आशा रखने वाले ही चुनौतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ते हैं! हमने आत्मविश्वास होना चाहिए और अभी हमें इसी आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच की जरुरत है! संघर्ष और समय भी देना होगा! 
लॉकडाउन की चुनौतियों को करोना से बचने के उपाय का पालन करते हुए भविष्य को संवारेंगे! 
मास्क लगाना, शारिरीक  दूरी एवं सेनिटाइज़र का उपयोग करें  !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
     भारतीय इतिहास में पहली बार  इतना लम्बा लाँकडाऊन, जिसने जन जीवन को अस्त-व्यस्त करके रख दिया, पहले रात में भगवान नाम लेकर सोता था, प्रातः भगवान का नाम लेकर उठता हैं। अब सोते समय कोरोना की संख्या देख सोता हैं और उठे बराबर संख्या देखता हैं। इस तरह लाँकडाऊन में जकड़ गया, अपनी नैतिकता की जिम्मेदारी भूल सा गया, अपनी पहचान खो दिया हैं।  
कोरोना महामारी ने कभी नहीं कहां, तरह-तरह के लाँकडाऊन लगाकर जन जीवनों को प्रभावित किया जायें, फिर पुन: लाँकडाऊन के पूर्व की व्यवस्थाओं की ओर अग्रसर हो? ये तो उनके कर्त्तव्यपरायंता की स्थितियों से परिस्थितियां निर्मित हुई हैं और आमजन लाँकडाऊन की चुनौतियों को भविष्य की योजनाओं को क्रियान्वित करने में जूट गया।  गर्मी की व्यवस्थाओं में तो गंभीरतापूर्वक चुनौतियों का सामना कर तो लिया, अभी तो वर्षा-ठंड ॠतुएं शेष हैं? जहाँ बाढ़-शीत लहर का भी भीषण सामना करना हैं। इसलिए मानव को संसाधनों की ओर ध्यान केन्द्रित करते हुए समुचित व्यवस्थाऐं करनी चाहिए।।यह कह सकते हैं, मानव जीवन चुनौतियों से भरा पड़ा हैं? अगर शासन-प्रशासन  मानवाधिकार की ओर विचार-चिंतन-मनन करता हैं, तो भविष्य की उम्मीदों पर जाकर ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त करता हैं, तो सार्थक सार्वभौमिकता चुनौतियों से निपटने में कोरोना जैसी और बीमारियों का सामना नहीं करना पड़ सकता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
लाॅकडाउन से भविष्य में क्या कुछ हो सकता है। इस विषय पर कोई भी व्यक्ति सही आकलन नहीं कर सकता। हां ऐसा कह सकते हैं कि यदि यह बिमारी जड़ से समाप्त हो गया जैसे पोलियो वगैरा तब तो कुछ हो सकता है। अन्यथा लाॅकडाउन पूरी तरह से खुलने के बाद भी आम जनता इससे डरे हुए रहेंगे। भविष्य में उम्मीद के सपने देखना अभी कोसों दूर है। जब तक इसका कारगर इलाज नहीं ढूंढ लिया जाता। कुछ भी अटकलें लगाना बेईमानी होगा।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुरूग्राम -  हरियाणा
लॉक डाउन ने जिंदगी की जरुरतों को ही बदल दिया है । काम करने के तरीके में बदलाव आया है । आज लोग पैसों से ज्यादा स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे हैं । आज जो भी सीख रहे हैं वह भविष्य में भी स्वस्थ्य जिंदगी का फार्मूला बन जायेगा ।
इस परिस्थिति से जूझने वाले को आगे कदम बढ़ाने में कोई हिचक नहीं होगी । कोरोना काल ने लोगों को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की शक्ति को प्राप्त करने का अवसर दिया है। इससे आगे का भविष्य उज्जवल और बड़ी चुनौतियों से लड़ने की ताकत के साथ चलेगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
कोरोना आपदा में लॉकडाउन ने जीवन में उथल पुथल मचा कर रख दी है जैसे भूकंप में उलट पुलट हो जाता है. एक ढर्रे पर चली आ रही ज़िन्दगी की गाड़ी रास्ते से उतर गयी है. जीवन शैली में परिवर्तन हो गया है मानो एक नवयुग का निर्माण हो रहा है. इस लॉकडाउन ने निस्संदेह चुनौतियाँ पेश की हैं. जीने के अंदाज़ को बदलना होगा और यही बदलाव लाना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगा. इस जीवनकाल में जहाँ कुछ पुरानी आदतों को भूलना होगा वहीं जीवन शैली में समयानुकूल परिवर्तन लाकर खुशहाली लानी होगी. अर्थशास्त्र की बदली परिभाषा का सामना करना होगा. सबसे बड़ी चुनौती आत्मसंतोष जगाने की होगी.  इस युग परिवर्तन के हम सभी साक्षी होंगे और चुनौतियाँ स्वीकार कर एक नया भविष्य लिखेंगे.  
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
कोरोना का संक्रमण अभी अनिश्चितताओं से भरा है। उसके समाप्त होने को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे में एक ही रास्ता बचता है, बचाव का। लॉकडाउन इसी बचाव का विकल्प माना गया। मगर यह भी सच है कि लॉकडाउन की सीमाओं और प्रतिबंधों में सदैव या लंबी अवधि तक बाँधे रखना संभव भी नहीं और उचित भी नहीं कहा जा सकता। ऐसे में एक दूसरा विकल्प बनता है कि लॉकडाउन की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए सुरक्षा के अन्य महत्वपूर्ण उपायों का पालन करते हुए राहत और छूट के दायरे में रहते हुए जिजीविषा के लिए आवश्यक कार्य पुनः प्रारंभ किया जावे।
इसमें चुनौतियाँ बहुत हैं। सजगता और सावधानियां रखना भी नितांत आवश्यक है। इसका जितना शुचिता से पालन होगा,उतना सुखद और स्वस्थ्य भविष्य की उम्मीदें तय करेगा और इसके विपरीत जितनी लापरवाही होगी, भविष्य के लिए उतनी बल्कि कहीं अधिक मुश्किलें खड़ी होंगी।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
निःसंदेह लाकडाउन की चुनौतियाँ ही भविष्य की उम्मीदें हैं। जान है तो जहान है। जिंदा रहेंगे तो कल देखेंगे। और कल तभी देखेंगे यदि आज को बचा लेंगे और आज तभी बचेगा जब घर में रहकर लाकडाउन का पालन करेंगे
        आप कहेंगे भरे पेट की बातें हैं। आराम से घर में बैठकर खाने-पीने की व्यवस्था है इसलिए ये बातें हैं। सच है कि समाज में स्वैच्छिक संस्थाएं मजदूरों मजलूमों से लेकर मंदिरों के बाहर तक खाना पहुंचा रही हैं। आम आदमी अपने घरों के सेवकों कामवाली बधाईयों तक तनख्वाह दे कर अपना सामाजिक फर्ज पूरा कर रहे हैं। छोटे दुकानदार कमाने खाने लगे हैं। स्वदेशी की ओर लोगों का आकर्षण बढ रहा है तो बडे़ बडे़ माल्स पिक्चर सिनेमा अय्याशी के सामान के लिए क्यों हटे लाकडाउन?? आँकड़ों पर मुझे बिलकुल भरोसा नहीं है। आँकड़ों की झूठी दुनिया सच्चाई को छिपाती है। कितने मजदूर कहाँ पहुंचे। लाकडाउन के चलते कितने मजलूम भूख से मर गये। रेल्वे स्टेशन पर कितने प्रवासी मजदूरों ने लाॅक डाउन तोड़ कर कोरोना को आमंत्रित किया-- ये सब प्री-प्लान्ड कुक्ड् स्टोरिज मुझे नहीं भरमाती। मेरा मानना है कि समाधान सिर्फ लाकडाउन में है अगले कुछ समय जब तक वैक्सीनेशन या मेडीकेशन का स्थायी पर्याय नहीं है। सिर्फ और सिर्फ लाकडाउन बस।।।
लाशों के ढेर पर सामाजिक आजादी क्या करेंगे?? 
परिवार मित्र शत्रु जनों को खोकर अकेले जीकर क्या करेंगे?? 
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन से बहस कूछ सीखने को मिला है । चुनौतियों को किसी तरह उम्मीदें में बदला जा सकता है । यही भविष्य में  जीवन की ओर लेकर जाऐगा । लोग इसी से सफलता अर्जित करेंगे ।यही भविष्य की उम्मीदें हैं ।
                                              - बीजेन्द्र जैमिनी 
सम्मान पत्र 

आज फिर मिला बीजेन्द्र जैमिनी को कोरोना की जंग पर सम्मान पत्र



Comments

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी जी ..आप नए नए विषयों को उठा रहे हैं और हम जैसे कलमकारों को मौका दे रहे हैं लिखने के लिए.. ह्रदय से आभार धन्यवाद 🙏💐🙏😊

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  2. आदरणीय बीजेंद्र जी, सादर प्रणाम, इस सम्मान के लिए मैं आपका और सभी विद्वत जनों का हृदय से आभारी हूं तथा इस मंच की दिनोदिन प्रगति की कामना करता हूं।

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