बिना कामगारों के कैसे चलेंगे उद्योग-धन्धे ?
कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन हुआ है । सबसे अधिक पीड़िता कोई हुआ हैं । वह है कामगार । आज जो अपने - अपने घर जा रहे हैं । जाना भी स्वभाविक है । उन के रोजगार रहे नहीं है । अब बात आती है कि बिना कामगारों के उद्योग-धन्धो का भविष्य क्या है ? यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
यह बात हंड्रेड परसेंट सच है कि बिना मजदूरों के या कामगारों की कैसे उद्योग धंधे और देश की प्रगति हो सकती है। पर यह बात कोई नहीं सोचता गरीबी हटाओ का नारा तो सब देते हैं और जब हटाने की बात आती है तो सब पीछे पड़ जाते हैं उदाहरण के लिए जैसा हमने देखा कि बेचारे मजदूरों को खाना पीना नहीं मिल रहा है वे बेचारे घर जाना चाह रहे हैं तो ट्रेन की भी व्यवस्था की जा रही है पर टिकट भी उन विचारों को देना पड़ रहा है हजारों किलोमीटर का सफर वह साइकिल और पैदल चलकर पूरा कर रहे हैं मुसीबतों में हैं और इन्हें अपने उद्योग धंधे बंद होने के लिए रेलगाड़ियों को भी रोक दिया गया है उनके पास ना रहने को घर है और ना खाने को कुछ है वह बेचारी क्या करें इसीलिए अपने घरों को जा रहे हैं अगर उनके मालिक लोग उनके लिए सारी व्यवस्थाएं कर देते तो वे उन्हें छोड़कर कभी नहीं चाहते क्योंकि रोजी रोटी और काम की जरूरत तो सबको होती है लेकिन यह बात ना मिल मालिक नहीं सोचते क्योंकि इस दुनिया में अमीर सदा अमीर और गरीब सदा गरीब रहा है अमीरों का लोन और कर्जा तो सब माफ हो जाता है पर करीब लोन ₹500 का भी ले ले तो उसे आत्महत्या करनी पड़ती है अजीब विडंबना है दिवालिया घोषित होने पर उनका करजा माफ होता है पर गरीब के साथ अलग कानून है इस दुनिया में चाहे कुछ भी हो पतन तो गरीब का ही होता है। अपना खून पसीना एक करके देश का विकास करने वाला गरीब गरीब ही रहता है यह दुनिया बड़े लोगों का सुनती है, उनमें चाहे कितनी भी बुराई हो बहुत अच्छे बने रहते हैं भरे पेट में तो अच्छी बातें सब कुछ लोग सोचते है।भगवान तो सबको एक बनाता है पर इस संसार में आकर गरीबी और अमीरी की एक बहुत लंबी खाई है वर्षों से चला आ रहा है जिसे हम सभी को भर पाना बहुत मुश्किल काम है।
बहुत कम लोग कृष्णा होते हैं जो सुदामा जैसे गरीब मित्र का सुनते हैं।
सूरज अपना प्रकाश देने में भेदभाव नहीं करता ना ही यह प्रकृति करती है परंतु पता नहीं क्यों यह भेदभाव इंसानों में बहुत है।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार कोरोना वायरस के संक्रमण के दुष्चक्र में फंस गई है। उसके पास इससे निकलने की कोई रणनीति नहीं है। सरकार ने बिना सोचे-समझे कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन का कदम तो उठा लिया पर ऐसा लग रहा है कि सरकार के पास अब कोई एक्जिट स्ट्रेटेजी नहीं है। इससे कैसे निकलेंगे उसका कोई रास्ता नहीं है। और इसलिए लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री खुद राष्ट्र के सामने नहीं आए। पहले दो चरण की घोषणा उन्होंने खुद की थी और तब वे मान रहे थे या उनको बताया गया था कि 40 दिन के लॉकडाउन से वायरस के संक्रमण की शृंखला टूट जाएगी और इसका संक्रमण महामारी का रूप नहीं लेगा। पर 40 दिन पूरे होने से पहले ही यह समझ में आ गया कि लॉकडाउन से ऐसा नहीं हुआ है।
खुद प्रधानमंत्री के गृह राज्य में कोरोना संक्रमण न महामारी का रूप ले लिया है। बहुत मामूली टेस्टिंग के बावजूद हर दिन भारत में संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं। हर दिन नए मामलों और मरने वालों की संख्या नया रिकार्ड बना रही है। भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर के अधिकारी इस बात का दावा कर रहे हैं कि भारत में मामलों को दोगुना होने की दर 11 दिन की हो गई है। अगर यह सही है और यहीं रफ्तार आगे भी बनी रहती है तब भी लॉकडाउन का तीसरा चरण खत्म होने से पहले देश में एक लाख से ज्यादा मामले होंगे।
ज्यादा संभावना यह है कि मामले इससे भी ज्यादा हो सकते हैं। क्योंकि सरकार ने अब लॉकडाउन की शर्तों में ढील दे दी है। ढेर सारे दुकानों और सेवाएं खोल दी गई हैं। उत्पादन की पूरी शृंखला चालू कर दी गई है।
सरकार के पास कोई एक्जिट स्ट्रेटेजी नहीं है, इसका पता इस बात से भी चल रहा है कि सरकार वह सारे फैसले कर रही है, जिनसे कुछ समय पहले उसने इनकार किया था। जिस समय देश में कम मामले थे और तीन-चौथाई जिलों में कोरोना वायरस का एक भी केस नहीं था तब तो सरकार ने सख्ती से लॉकडाउन लागू किया। तमाम समझदार और दूरदर्शी लोगों की सलाह के बावजूद मजदूर और दूसरे प्रवासी, जहां अटके थे वहां से निकालने का प्रयास नहीं किया। गैर जरूरी सामानों की न तो डिलीवरी की इजाजत दी और न उनके उत्पादन की शृंखला चालू की। और अब अचानक ये सारे काम होने लगे हैं।
सोचें, जिस समय संक्रमण की संख्या कम थी उस समय पैनिक बनाने और सब कुछ बंद कर देने की बजाय सरकार ने औद्योगिक व कारोबारी गतिविधियों को चालू रखा होता तो रोजी-रोटी की चिंता में इतने बड़े पैमाने पर प्रवासियों का पलायन नहीं होता। कंपनियों का चक्का चल रहा होता तो वे मजदूरों को वेतन आदि देने की स्थिति में होते। या अगर सरकार ने सब कुछ बंद कर ही दिया था तो उसी समय मजदूरों को निकाल कर उनके घर पहुंचा दिया गया होता तो आज मुंबई, सूरत से लेकर दिल्ली तक में इतनी बड़ी संख्या में मामले नहीं आ रहे होते। लेकिन सरकार ने ये दोनों काम तब नहीं किए जब मामले कम थे। तब तो उद्योग-धंधे भी बंद करा दिए और प्रवासी जहां थे, वहीं उनको उनकी झोपड़ियों में बंद करके बाहर पुलिस का पहरा बैठा दिया। और अब जब कुछ समझ में नहीं आ रहा है तो उद्योग धंधे भी खोल दिए और मजदूरों को उनके घर भेजना भी शुरू कर दिया। सोचें, मजदूर घर चले जाएंगे तो उद्योग धंधे कैसे चलेंगे, उत्पादन शृंखला से लेकर आपूर्ति शृंखला के बीच असली तो मजदूर और कामगार हैं।
इसी तरह सरकार के पास आर्थिक और मानवीय मोर्चे पर भी कोई रणनीति नहीं है। सरकार की सबसे बड़ी और पहली गलती यह हुई कि उसने कोरोना वायरस के संक्रमण की गलत प्रोजेक्शन की और इसके खत्म होने की जो टाइमलाइन बनाई में दूरदृष्टि नहीं दिखाई। सरकार को लगा कि यह एकाध महीने की मुश्किल है और उसके बाद खत्म हो जाएगी। तभी कोई अतिरिक्त मेडिकल सुविधा नहीं जुटाई गई, समय रहते टेस्टिंग किट, पीपीई किट, वेंटिलेटर या मास्क आदि के ऑर्डर नहीं दिए गए और पहले से चल रही कुछ योजनाओं की रिपैकेजिंग करके एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का एक पैकेज घोषित कर दिया गया। उसके साथ ही रिजर्व बैंक ने कर्ज की किश्तों की अदायगी पर तीन महीने तक की छूट का ऐलान कर दिया।
हालांकि ब्याज और ब्याज के ऊपर लगने वाले दोहरे ब्याज का भुगतान भी आम लोगों को खुद ही करना है। बहरहाल, जल्दी ही इसकी सीमाएं जाहिर हो गईं और चौथे चरण का लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही रिजर्व बैंक इस मोराटोरियम को तीन महीने और बढ़ाने पर विचार करने लगा। क्या इस बारे में समग्रता से और आम लोगों को ज्यादा राहत देने वाली योजना नहीं बनाने की जरूरत थी?
अब सरकार ने अर्थव्यवस्था को बचाने की चिंता में देश में रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांट दिया और इनके स्थानीय प्रशासन को लॉकडाउन के निर्देशों को लागू कराने की जिम्मेदारी सौंप कर अपने को अलग कर लिया। इस बात के दूर-दूर तक संकेत नहीं दिख रहे हैं कि सरकार लॉकडाउन में ढील देने के बाद संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी का प्रोजेक्शन बनवाए हुए है या नहीं है और अगर बनवाया है तो उससे निपटने के क्या उपाय हुए हैं। अब तो इस बात की भी खबर नहीं आ रही है कि सरकार ने कितने वेंटिलेटर मंगा लिए या कितने आईसीयू बेड तैयार कर लिए। ऐसा लग रहा है कि पुरानी तैयारियों पर ही ज्यादा से ज्यादा मामलों से निपटने की सोच है तभी कहा जा रहा है कि कम लक्षण वाले मरीजों को घर ही में रहने को कहा जाएगा। सोचें, कितने लोगों का घर ऐसा है, जहां अगर कोई संक्रमित मरीज रह रहा हो तो दूसरे को संक्रमित नहीं कर पाए?
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिना कामगारों के कैसे चलेंगे उद्योग धंधे विषय अपने आप मे ही उधोग धंधों की दुर्दशा पर सवाल खड़े करते हुए उनके चौपट होने का हाल बता रहा है । ये उद्योग धंधे जो पहले ही लगभग दो माह से बंद है, उन पर तो कई प्रकार से अपने अस्तित्व को खोने का खतरा मंडरा रहा है । एक ओर जिन उद्योग व्यापारियों ने कर्ज लेकर अपना व्यापार खड़ा किया हुआ है , उनको न केवल कर्ज की बल्कि उस कर्ज पर लगातार चल रहे ब्याज की भी चिंता सताए जा रही है । वही इन लोगो के पास जो प्रवासी मजदूर काम कर रहे थे , उनके चले जाने से उनका व्यापार एकदम बन्द हो जाएगा । इसका बड़ा कारण ये है कि बड़े बड़े उद्योगो , कल कारखानों, फैक्टरियों में व कंपनियों में एक बड़ी मात्रा में बिहारी , बंगला, व उड़ीसा के मजदूर काम करते है जो फैक्टरियों व कंपनियों द्वारा दी गई झुग्गी झोपड़ियों में ही रहकर रात दिन काम करते है, इससे न केवल उन मजदूरों को अच्छी मजदूरी व लगातार काम मिलता रहता है बल्कि कंपनियों को भी ये बहुत बड़ा फायदा होता है कि वह अपनी फैक्टरियों में इन मजदूरों के द्वारा किसी भी समय काम कराकर इन्हें ओवर टाइम के पैसे देते हुए अपना कोई भी अर्जेंट आर्डर किसी भी समय तैयार करा लेती है । जबकि किसी भी उद्योग धंधे को चालाने के लिए यधपि लोकल मजदूरों को रखा जाए तो ये न केवल किसी भी कंपनी को महंगे साबित होंगे बल्कि इनसे ओवर टाइम व किसी भी समय माल तैयार करने की कोई उम्मीद नही रखी जा सकती है और वैसे भी इतनी फैक्ट्रियों, कल कारखानों व अन्य लोकल व्यापारों के लिए क्षेत्रीय मजदूर काफी नही है । मजदूरो के बिना न केवल उद्योग व्यापारों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है बल्कि ऐसी महामारी के चलते मजदूरों के घरों से बाहर जाकर मजदूरी न करने के चलते उनके के जीवन यापन पर भी खतरा मंडराता साफ देखा जा सकता है ।
- परीक्षीत गुप्ता
हीमपुर दीपा - उत्तर प्रदेश
आज जो देश पर संकट आया है उसका सबसे ज्यादा प्रभाव मजदूर वर्ग पर पड़ा है । जिस तरह अचानक सभी उद्योग लाकडाउन के चलते रूक गये और सभी कामगारों के हाथों से उनके पालन पोषण का माध्यम जाता रहा । इतना ही नहीं वो मजदूर लोग जो घरों से दूर जाकर मज़दूरी कर घर चला रहे थे उन पर तो अधिक विपदा आन पड़ी जैसे , रहने की,खाने की ,और घर जाने की इस पर स्थिति संभलने पर हर राज्य ने सुविधा कर मजदूरों को घर तक पहुंचाने की व्यवस्था की जिससे वो लोग घर पहुंचने लगे यहां तक तो सब सही था परंतु अब विचारणीय विषय यह है कि भयभीत मजदूर क्या फिर जल्दी से उद्योगों पर लोटेगे ?
स्वाभाविक सा उत्तर है नहीं ।
पर यह भी सत्य है कि बिना मज़दूरी के जीवन यापन सम्भव नहीं है तो वो लोग घर पर रहकर ही कुछ ना कुछ करने की सोचेंगे जिससे ऐसा कुछ होने पर वो लोग फिर विपदा में ना पड़े । पर बिना कामगारों के किसी भी तरह का उद्योग चलाने में परेशानी होगी
अतः। उद्योग मालिक को मजदूर वर्ग को कुछ अतिरिक्त सुविधाएं देनी चाहिए जैसे महामारी से सुरक्षा के बने नियमों हेतु जागरूकता के साथ उन्हें वस्तूए भी उपलब्ध करवाएं। उनको घर पहुंचने हेतू समय पड़ने पर सुविधा प्रदान करें और सरकार भी संकट पड़ने पर बड़े बड़े उद्योगपतियों को कुछ छूट दें ताकि वह मजदूर वर्ग को हर प्रकार की सुरक्षा व मदद कर सके। जो संकट आज मजदूरों पर आया वो इस परिस्थिति के चलते दोबारा न आए जैसे - कुछ मजदूर लोग तो पैदल ही घरों को निकल पड़े कुछ साईकिलों पर कुछ अन्य परेशानी उठाते हुए घर को निकल पड़े जिससे एक आध मजदूर पानी की कमी,ब्लड प्रेशर के शिकार हुए और जान से हाथ गंवा बैठे । इस लिए उद्योग फिर चलेंगे पर अब कामगारों की सुरक्षा की व्यवस्था प्राथमिकता होनी चाहिए।
क्योंकि-
साथी हाथ बढ़ाना एक अकेला चल ना सकेगा मिलकर काम बढ़ाना।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
फिलहाल ये विषय तब तक परेशानी में डालने वाला है जब तक हम लॉक डाउन में हैं उसके बाद आवाजाही जब सामान्य हो जाएगी तो कामगारों की कमी नहीं रहने वाली क्योंकि कामगार घर पलायन ही तो कर गए हैं वह सब घरों में नहीं रह सकते हैं और न ही अपना जीवन यापन कर सकते हैं ये कहा जा सकता है कि उद्योग धंधों के बंद होने, आधुनिक तकनीक के साथ उद्योग धंधों को जोड़ने से कामगारों का क्या होगा ।
छोटे बड़े उद्योग धंधों के मालिकों ने लॉक डाउन के चलते ख़ाली समय को कुछ नया करने के लिए सीखने में बिताया है ये उद्योग मालिक निश्चित ही अपने आप को अपडेट करेंगे बड़ी कम्पनियों में रोबोट सिस्टम को लेकर पहले ही जंग जारी है अब छोटे उद्योग धंधों में लगे लोग भी पीछे नहीं रहने वाले । दूसरी बात सभी को भविष्य साफ नज़र आ ही रहा है ये समस्या अभी पहली बार ज़रूर है लेकिन पुनः कब घट जाए चौकस रहना होगा । उद्योग धंधों के नवीनीकरण की दिशा तय हो गई है कार्य करने के तरीक़ों में बदलाव अनिवार्य रूप से होगा जो कम कामगारों पर आधारित मॉडल बनेगा । इसलिए ये बहुत अधिक चिंतित होने की बात नही है ये तो बहाना हो गया गंगा को आना था भगीरथ को यश मिल गया । महामारी न भी आती, लॉक डाउन न भी होता तब भी उद्योग परिवर्तन के दौर में है ये संक्रमण काल चल रहा है जब पुरानी टेक्नोलॉजी जा रही है और नई टेक्नोलॉजी आ रही है लॉक डाउन से ये गति तीव्र हो गई है जो उद्योग धंधे बंद है वो नए सिरे से चलेंगे । रोज़गार नए स्वरूप में पैदा होंगे इसलिए उद्योग धंधे कम कामगारों के साथ चलने में सक्षम हो जाएँगे ।
डॉ भूपेन्द्र कुमार
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
खेतों, मिलों, प्रतिष्ठानों में,वही सदा खटते हैं।
मज़दूरों के बिना चले कब, राष्ट्र प्रगति का पहिया।
आज लॉक डाउन में सब कैद होकर रह गए हैं। काम धंधे बंद है। और इस कोरोना काल में अगर सबसे ज्यादा कोई प्रभावित हुआ है तो वह और कोई नहीं प्रवासी मज़दूर है। ये लोग काम की तलाश में अपना घर, जमीन खेती बाड़ी, अपना समाज सब छोड़कर भारत के विभिन्न राज्यों में लाखों की संख्या में कारखाने, फैक्टरियों और दुकानों पर काम कर रहे थे।और अपने परिवार का पेट पाल रहे थे। परंतु अचानक से हालात इतने भयावह हो गए कि लॉक डाउन लगाना पड़ा। ये सभी मज़दूर बेरोज़गार हो गए।
और सब सड़क पर आ गए। खाने को रोटी नही, सिर पर छत नहीं। छोटे छोटे बच्चों के साथ अपने गांव की और चल पड़े,पैदल ही। हज़ारो कि.मी. का सफर बीबी बच्चे और सामान के साथ अपने पैतृक गांव जाना चाहते हैं। और किसी भी हाल में रुकना नही चाहते। धीरे धीरे इनको राज्यों सरकारें और केंद्र सरकार के प्रयासों द्वारा घर वापसी का इंतजाम करवाया गया। हालांकि अभी भी पूरे देश भर से ये लोग बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के लिए पैदल चलने को मजबूर हैं।
लेकिन अब जब सरकार लॉक डाउन में छूट देते हुए, बहुत से काम धंधों को खोलने की अनुमति दे रही है तो फैक्टरी कारखाने कैसे चलेंगे, बिना मज़दूरों के।अब चाहकर भी काम शुरू नहीं हो पाएगा।और जो बचे हुए कामगार है वो काम करना नहीं चाह रहे क्योंकि जब बिना काम किए पगार मिल रही है और सरकारें उनकी मदद भी कर रही है। जिससे इन लोगों को फायदा भी हुआ है।लेकिन इन मज़दूरों की संख्या गिनी चुनी ही रह गई है।
आने वाले समय में बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही, महँगाई भी बहुत बढ़ जाएगी। आपके पास सामान है कारखाने है फैक्टरियां है पर जब ये कामगार ही नही होंगे तो ये तरक्की का पहिया कैसे घूमेगा।
ये उधोगपति तो सब जानते थे कि आज नही तो कल लॉक डाउन खुलेगा ही। अगर ऐसे बुरे समय में इन कामगारों की थोड़ी देखभाल करते तो आने वाली विकट परिस्थिति के लिए हम तैयार रहते।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
वास्तव में यह चिंता का विषय तो है ही कि बिना कामगारों के उद्योग धंधे कैसे चलेंगे? इस संकट काल में, जबकि संपूर्ण विश्व का उद्योग जगत इस समस्या से जूझ रहा है,तब देश के बड़े उद्योगपति टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन जी टाटा का पिछले दिनों आया एक बयान बहुत ही महत्वपूर्ण है। उन्हीं के शब्दों में -" व्यापार की दुनिया की मेरे प्रिय दोस्त 2020 बस जीवित रहने का वर्ष है। इस साल आप लाभ और हानि के बारे में चिंता मत करें। सपने और योजनाओं के बारे में भी बात ना करें। इस वर्ष अपने आप को जीवित रखना सबसे महत्वपूर्ण है जीवित रहना एक लाभ बनाने जैसा ही है।"
इस कथन के आलोक में विचार करें, उद्योगपति ही जब बस जीवित रहने की बात कर रहे हैं। कामगार अपने घरों को लौट गये,लौट रहे हैं तो फिर निश्चित मानिए उद्योग,उत्पादन प्रभावित होना ही है। इसीलिए अब कुटीर उद्योग और स्वदेशी की चर्चा एक बार फिर मुखर हो गयी है।इस पर चिंतन,विचार मंथन शुरु हो गया है।निश्चित रुप से आने वाला समय लघु कुटीर उद्योग और स्वदेशी उत्पादों का ही होगा।कुशल कामगार समूह बनाकर यह काम कर सकते हैं।
रही बात बड़े उद्योग समूहों की,तो उनके लिए भारत में काम करने वाले लोगों की कमी नहीं है। पर काम तो तभी होगा,जब उद्योगपति चाहेंगे।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कलयुग (कल - मशीन) अर्थात मशीनी युग में उद्योग धन्धों की नींव मशीनें होती हैं परन्तु उस नींव की सुदृढ़ता बनाये रखना कामगारों पर निर्भर है।
कोरोना वायरस की वजह से बहुसंख्यक कामगार अपने मूल निवास स्थान को चले गये हैं और निश्चित रूप से उनकी शीघ्र वापसी में विलम्ब होना अनिवार्य है। क्योंकि कोरोना वायरस का खतरा अभी दीर्घ समय तक बना रहेगा इसलिए कितने कामगार अपनी जान हथेली पर रखकर उद्योग धन्धों में अपनी सेवायें देने हेतु वापिस आयेंगे, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।
परन्तु एक दूसरा पहलू यह भी है कि कामगारों के मूल निवास स्थान पर स्थाई रोजगार की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है जिस कारण उन्हें जीवन-यापन में अत्यन्त परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
जिस प्रकार उद्योग धन्धों का कामगारों के बिना चलना असम्भव है उसी प्रकार उद्योग धन्धों के बिना कामगारों का जीवन-यापन होना असम्भव है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उद्योग धंधे और कामगार दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
अत: इसका विकल्प यही है कि उद्योग धन्धों एवं सरकार द्वारा कोरोना से बचाव की सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं की गारन्टी कामगारों को दी जाये और इन व्यवस्थाओं पर अनिवार्य प्राथमिकता से कार्य किया जाये तभी कामगार उद्योग धन्धों में कार्य पर वापिस आयेंगे क्योंकि यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कामगारों के बिना उद्योग धन्धों का चलना असम्भव है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
देश मे कोरोना वायरस कोविड 19 को नियंत्रित करने के लिए देशभर में लॉकडाउन 3 चल रहा है,जो 17 मई तक चलेगा। लॉकडाउन के कारण उद्योग धंधे बंद है। करोड़ो की संख्या में मजदूर देश मे बेरोजगार है। वही कोरोना संक्रमण से अपनी जान बचाने के लिए देश के कई राज्यों। में फंसे मजदूरों की अपने राज्यों में घर वापसी शुरू हो गई है। इसके लिए भारत सरकार की ओर से 100 से भी अधिक स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है। देश भर में 10 करोड़ प्रवासी मजदूर है जो अपने घर लौट रहे है। स्पेशल ट्रेन के अलावे हजारों की संख्या में राज्य सरकारों द्वारा बसों से दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों, छात्रों को लाया जा रहा है। कोरोना के चलते लॉकडाउन में मजदूरों की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है। घर कैसे चलेगा इसकी चिंता उन्हें सताए जा रही है। इसी बीच केन्द्र सरकार देश मे बंद पड़े उद्योग को फिर से शुरू करने की छूट देने जा रही है। पर सबसे बड़ी समस्या कामगारों की कमी की होगी, जिसका खामियाजा कंपनी के मालिकों को अब चुकाना पड़ेगा। लॉकडाउन में देश के अधिकांशतः उद्योग धंधा व कंपनी चलाने वाले मालिकों ने वर्षों से उनके यहां काम करने वाले मजदूरों को उन्हें बेवसी की हाल में छोड़ दिया। यहां तक कि उन मजदूरों को दो वक्त की रोटी का प्रबंध नही कर सके। ये वही मजदूर है जिनके चलते कंपनी मालिक लाखों, करोडों रुपये लाभ कमाते हैं। अब इन्ही मजदूरों की कमी का उनकों सामना करना पड़ेगा। इसका एक कारण यह भो है कि जो मजदूर अपने गांव लौटकर आ गए हैं वो जल्दी काम करने के लिए दूसरे राज्यों में। फिर से जाने वाले नही है। साथ ही देश मे कोरोना के मरीजों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। अब तक देश भर में कोरोना मरीजों की संख्या 52 हजार के करीब पहुँच गई है। 1700 मरीजों की मौत हो चुकी है, जबकि 16 हजार के करीब कोरोना मरीज ठीक हुए हैं। इस स्थिति में बड़े कंपनी व उद्योग को चलाने के लिए कामगारों की बहुत ही संकट आनेवाली है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कामगारों के बिना उधोग चलाना बढ़ी ही विकट समस्या को जन्म देने वाला हैं। जो मजदूर लाॅकडाउन में अपने गाँव चले गये हैं उनका अब जलदी से काम पर लोटना नामुमकीन लगता हैं स्थानिय मजदूरों की मद्दत लेने पर मजदूरी भी बढ़ानी होगी एव कुशल कारिगरों के अभाव का भी सामना करना पढ़ेगा। कितनी विचित्र बात हैं न की जो कारीगरों की कमी हों रही हैं वे लाॅकडाउन के समय में 40-50 दिन भी घर बैठकर नहीं खा पायें उनकें मन पर क्या बित रही होगी यह भी सोचने का विषय हैं कुल मिला कर उधोगों को अब कुछ स्थानिय मजदूरों की मद्दत लेनी होगी उनहें कुशल बनाने के प्रयास करने होंगे ।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्यप्रदेश
कामगार देश की रीढ़ हैं। इनकी मेहनत के बदौलत ही उद्योग धंधे पूर्णता प्राप्त करते हैं। उद्योगपति अपने उद्देश्य में सफल हो पाते हैं और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। बड़े-बड़े उद्योग हों, कारखाने हों, या कृषक --कामगार के बिना अपना काम करवाने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।
इसी कड़वी सच्चाई को समझते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा जी ने उद्योगपतियों से सलाह मशविरा कर श्रमिक ट्रेन को कैंसिल करा दिया।कामगारों को घर वापस लौटने से रोक लिया। उनका मानना है कि श्रमिक के चले जाने से उद्योग धंधों पर बुरा असर पड़ेगा। राज्य का निर्माण कार्य भी प्रभावित होगा। हां , यह भी सही नहीं है कि हम किसी को जबरदस्ती रोक कर बंधुआ मजदूर की तरह काम करवाएं।
सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देशबंदी की घोषणा के बाद 5 से 6करोड़ मजदूर पैदल ही 500 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय कर अपने पैतृक गांव पहुंच गए । इसे 'रिवर्स माइग्रेशन' यानी 'उलटी दिशा में विस्थापन' कहा जा रहा है।
मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए उद्योग जगत चिंतित है कि लॉकडाउन के बाद कामगार के न होने पर फैक्ट्रियों में काम किस तरह पूर्ण होगा। अगर कामगार वापस नहीं लौटे तो उत्पादन पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।
भारतीय टेक्सटाइल उद्योग परिसंघ के आंकड़ों के अनुसार करीब 10 करोड़ लोगों को टेक्सटाइल उद्योग में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। हमारा देश परिधानों के निर्यात में अव्वल है। श्रमिकों की कमी से उत्पादन में बाधा उत्पन्न हो सकती है। छोटे मझोले उद्योगों में श्रमिकों की कमी से उत्पादन 20 से 25 तक घट गया है।
कृषि क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा है। पंजाब, हरियाणा के कृषक चिंतित हैं।फसल कटाई का समय है और दुर्भाग्यवश मजदूरों का पलायन हो रहा है जो भविष्य के लिए घातक साबित होगा। इसलिए सरकार और उद्योगपतियों को मिलकर देश हित में अपना और कामगारों की भलाई हेतु ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। कंपनियां औपचारिक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने से ना घबराए,श्रमिक कानून का पालन करें,नीतियों पर अमल करें। कर्मचारियों को बेहतर वेतन और सामाजिक सुरक्षा देने में सक्षम बनें।
कामगार उद्योग जगत के रीढ़ होते हैं। अतः उनको स्वस्थ व खुशहाल रखें। उनके दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें ताकि उद्योग जगत का कार्य सुचारू ढंग से संपन्न हो और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो ।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
लोक डा उन के कारण पूरे भारत में सभी काम- धंधे बंद हो जाने के कारण श्रमिकों के सामने रोजी रोटी और सर छुपाने की सम स्या का सामना करना पड़ा । इसलिए सभी मजदूर अपने अपने गृह राज्य पैदल ही निकलने को मजबूर हो गए बल्कि राज्य वह केंद्र सरकारों ने भी ट्रेन व बसो से उनको पहुंचाने की व्यवस्था की ।
परंतु जहां पर यह श्रमिक काम करते थे उन उद्योगों के मालिकों को चिंता का विषय है कि वे श्रमिक कहां से लाएं ?
क्योंकि जो श्रमिक छोटे बच्चों के साथ सर पर गठ री रखकर कई किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हो गया ।
वह कभी भी वापस काम पर जाने को तैयार नहीं होंगे तब उनके काम धंधे बिल्कुल चौपट ही हो जाएंगे।
अब कुछ दिन स्थानीय श्रमिकों को ढ़ उंडकर को अधिक पारिश्रमिक देकर अपने काम धंधे को पटरी पर लाने की कोशिश की जाएगी ।
ये समस्या तो अभी बहुत बड़ी समस्या बनने जा रही है कि बिना कामगारों के काम -धंधे कैसे चलेंगे? बिना कामगारों के काम धंधे चौपट ही हो जाएंगे
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
इसमें कोई शक नहीं काम दारों के पेट्रोल रूपी श्रम जल के बगैर उद्योग की गाड़ी तो चल ही नहीं सकती !
बिना मजदूरों के उद्योग का कोई अस्तित्व ही नहीं है! देश का आर्थिक स्तर और विकास इन छोटे-बड़े उद्योग पर ही निर्भर है एक तरह से देखा जाए तो विकास के क्षेत्र में इन मजदूरों का सैनिकों से कम योगदान नहीं है !आज लॉकडाउन के चलते तकलीफ तो सभी को आई है किंतु इस लोक डाउन में गरीब मजदूर खास प्रवासी मजदूर बहुत तकलीफ में आ गए !
40 दिन का लॉकडाउन कोई खेल नहीं है ! अच्छे-अच्छे समृद्ध लोग भी हिल गए हैं फिर ये तो दिहाड़ी मजदूर हैं रोज कुएं खोदने और पानी पीते हैं ! जिस पेट की आग बुझाने मीलों दूर अपने मालिक का विश्वास ले काम करने आते हैं उनकी तरफ से लोग डाउन में काम बंद होने से कोई मदद नहीं ,रहने का कोई ठिकाना नहीं ,खाने को नहीं तो अपने गांव वापसीके अलावा कोई चारा नहीं !
माना कि प्रशासन ने एवं अन्य संस्थाओं ने पूरी पूरी मदद खाना ,राशन देकर की है किंतु सभी को तो नहीं मिलता !
यह भी माना इस महामारी में लोग डाउन बढ़ाना आवश्यक था कोरोना की चेन तोड़ने आवश्यक है!
गरीब प्रवासी मजदूरों को अपने परिवार के पास अथवा परिवार के संग गांव जाने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा था आज धीरे धीरे हम लाकडाउन से बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं परिस्थिति सामान्य होती नजर आने लगी है! हमारी आर्थिक व्यवस्था को सुधारने में इनकी पूरी भागीदारी रहेगी !
अतः हमें भी ऐसी स्थिति में दोबारा मजदूर गांव में भागकर अपने घर न जाएं इसके लिए हमारा भी फर्ज बनता है कि उनका विश्वास जीते और उनकी सुरक्षा के लिए कुछ करें !सरकार को उन्हें एक पहचान देनी होगी श्रमिक बाजार में गांव से आए हुए मजदूरों को पहचान संख्या दें !और बैंक के साथ जोड़ देना चाहिए!
अंत में कहूंगी यदि उद्योग को बढा़ना है एवं हमारे आर्थिक स्तर को गति देनी है तो हमें श्रमिकों का,प्रवासी मजदूरों का विश्वास जीतना होगा उन्हें अपने विश्वास में लेना होगा!
महामारी की वर्तमान स्थिति को देख हिम्मत और संयम रख कोरोना से बचना है! नियमों का पालन करें! नई सुबह जरूर आएगी!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
भारत की अर्थव्यवस्था में उद्योग का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। लघु या दीर्घ जिसमें वृहद स्तर पर विभिन्न समुदायों को रोजगार मिल जाता था और अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ होती थी।
जिसमें विभिन्न प्रकार की योजनाएं संचालित होती थी। वर्तमान में अघोषित आपातकाल होने के कारण स्थाई-अस्थाई उद्योगों में कामगार पूर्णतः प्रभावित हो गये। उद्योगपतियों के माथे पर चिंता की लकीरें सामने आ गई। यह भी ठीक है कि काम के बदले वेतन? जब कामगार ही नहीं रहेंगे उद्योग कैसे चलेगा। प्रायः देखने में आता है कि सब तरफ से कामगार समुदाय ही पिसता है, क्योंकि प्रतिदिन कमाने वाला क्या जोड़ेगा, क्या खायेगा चरितार्थ हैं, उसका तो प्रतिदिन काम करना है। पूंजीपतियों की अर्थव्यवस्था व्यवस्था मजबूत हैं, किन्तु उनकी भी मजबूरी? यह गंभीरता तथा चिंतनीय प्रश्न हैं। जैसे-जैसे वर्तमान में स्थिति संभल तो गई, भविष्य में योजनाबद्ध तरीके से पहल करनी होगी। इसलिए कामगारों को परिभाषित करनी चाहिए।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
सच में यह अत्यंत ही विचारणीय प्रश्न है। अब जब लॉकडाउन का को धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है और शनैः शनैः हम सामान्य परिस्थितियों में वापस आने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में इन मजदूरों का वापस घर चले जाना और उसके बाद यहाँ उद्योगों का, कारखानों का चालू होना, सोचकर ही मुश्किल लग रहा है। कैसे होगा यह सब जब मजदूर ही नहीं रहेंगे, जब श्रमिक ही नहीं मिलेंगे तो काम धंधा कैसे होगा और उधर अपने अपने गाँव में पहुंचकर इतने सारे मजदूर वे लोग भी वहां अपनी रोजी-रोटी की तलाश में परेशान होंगे सच में सारा कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है।
फिर से उन मजदूरों को वापस बुलाना भी इतना आसान नहीं होगा और मजदूरों के बिना, श्रमिकों के बिना, कामगारों के बिना उद्योग धंधों को चलाना भी नामुमकिन सा ही प्रतीत होता है।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
रांची - झारखंड
बिना कामगारों के उद्योग धन्धे कैसे चलेगे। ये वाकई में समस्या का विषय हैै कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन की स्थिति पैदा हो गई । ऐसे मे सभी रोजगार उद्योग धन्धे बंद हो गये लॉक डाउन की वज़ह से मजदूरों की कमर टूट गई काम बंद होने से रहने खाने की परेशानी हो गयी उघोग धन्धे बंद होने से मालिको ने काम पर आने को मना कर दिया। मजदूर करते क्या आर्थिक स्थिति खराब हो गयी मजदूर अपने घरो की और पलायन करने लगे। मालिको के पास देने को पैसा नही था कहाँ से दे लॉक डाउन मे औद्योगिक गतिविधियों पर संकट मंडरा रहा है ऐसे मे मजदूरो को लाना सोशल डिस्टेशिंग का पालन करना कठिन है अगर इनका पालन कसौटी पर खरा न उतरा तो फैक्ट्री सील हो सकती है। ऐसे मे उद्योगपति कोई खतरा मोल नही ले सकते ऐसे में उद्योग धन्धे कैसे चलेगे बहुत बड़ी समस्या है लॉक डाउन के बाद मजदूरो की वापसी शीघ्र या नही हुई तो कैसे चलेगे उद्योग धन्धे बहुत बड़ी महामारी से देश गुज़र रहा है देश
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन थ्री में सभी श्रमिक अपने-अपने घरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि कारखानों में श्रमिकों को 50 ,50 की संख्या में बुलाया जाए। और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए ।ताकि कोरोना से भी बचाव हो सके और उद्योग धंधे भी विकसित हो सके। इन्हीं बातों को सुनकर सभी श्रमिक अपने -अपने घरों की ओर पलायन कर रहे हैं। अभी हाल में एक समाचार पत्र में पढ़ा गया था।कि पारले जी कंपनी में300 वर्कर्स द्वारा कार्य कराया गया तो उस कंपनी को सील कर दिया गया। हो सकता है,समाचार झूठ भी हो।ऐसे में अभी के हालातों को देखते हुए ऐसा लगता है। की जो श्रमिक अपने गांव लौट रहे हैं उनकी जीविका का क्या होगा..? क्या यदि यह प्रश्न सही है। तो कारखानों में पर्याप्त मात्रा में श्रमिक नहीं मिले तो उनकी गुणवत्ता कॉन्टिटी पर फर्क पड़ सकता है। बाजारों में उपभोक्ता तक पर्याप्त मात्रा में माल पहुंचाना बड़ा कठिन हो सकता है।यह बहुत ही बड़ा सवाल है।और चिंता का विषय भी, अर्थव्यवस्था के साथ संक्रमण का ध्यान रखते हुए सरकार को कुछ जरूरी कदम उठाने पड़ेंगे। तभी उद्योग धंधे और कामगारों की जीविका का प्रश्न हल हो सकता है।अन्यथा गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।यह बहुत ही चिंतनीय विषय है।
- वंदना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा के साथ ही मजदूरों को उनके घरों पर भेजने की योजना भी शुरू हो गई है। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से उन्हें उनके घरों तक भेजा जा रहा है। कामकाज के पटरी पर लौटने की अनिश्चितता के कारण ज्यादातर श्रमिक वापस अपने घरों को लौट जाना चाहते हैं।
इसी के साथ केंद्र और राज्य सरकारों की कोशिश ग्रीन जोन के कुछ उद्योगों को शुरू कर अर्थव्यवस्था को दुबारा पटरी पर लाने की है। लेकिन मजदूरों के पलायन के बीच सरकार की यह कोशिश कितनी कामयाब हो सकेगी, इसे लेकर अनेक सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
ट्रांसपोर्ट में मजदूरों की कमी लॉकडाउन के कारण भारी संख्या में मजदूर अपने घरों को लौट गए हैं। इसके कारण पल्लेदारों की कमी हो गई है। कई जगहों पर सामान चढ़ाने और उतारने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं।
अनेक फैक्ट्रियों और कंपनियों में भी इसी तरह के हालात बन रहे हैं। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट उद्योग को ट्रकों के लिए ड्राइवरों और सहयोगी कर्मचारियों की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है। अगर औद्योगिक क्षेत्रों में कामकाज शुरु होता है तो मजदूरों की कमी और अधिक बढ़ेगी।
मजदूरों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे में कोई भी मजदूर यहां नहीं टिकना चाहता है। राशन की लाईन में सुबह से शाम हो जाती है पर राशन नहीं मिलता आख़िर मज़दूर घर न जाए तो क्या करे
अब सरकार ने अर्थव्यवस्था को बचाने की चिंता में देश में रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांट दिया और इनके स्थानीय प्रशासन को लॉकडाउन के निर्देशों को लागू कराने की जिम्मेदारी सौंप कर अपने को अलग कर लिया। इस बात के दूर-दूर तक संकेत नहीं दिख रहे हैं कि सरकार लॉकडाउन में ढील देने के बाद संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी का प्रोजेक्शन बनवाए हुए है या नहीं है और अगर बनवाया है तो उससे निपटने के क्या उपाय हुए हैं। अब तो इस बात की भी खबर नहीं आ रही है कि सरकार ने कितने वेंटिलेटर मंगा लिए या कितने आईसीयू बेड तैयार कर लिए। ऐसा लग रहा है कि पुरानी तैयारियों पर ही ज्यादा से ज्यादा मामलों से निपटने की सोच है तभी कहा जा रहा है कि कम लक्षण वाले मरीजों को घर ही में रहने को कहा जाएगा। सोचें, कितने लोगों का घर ऐसा है, जहां अगर कोई संक्रमित मरीज रह रहा हो तो दूसरे को संक्रमित नहीं कर पाए?
मज़दूर बहुत भड़के हुए हैं उन लोगों का ख़्याल नहीं रखा गया
मैंने कुछ मज़दूरों से बात की तो उनका कहना है हम यहाँ मरे तो इससे अच्छा है की हम हमारे घर पर अपनो के बीच रह कर मरे
कुछ नहीं काम कर लेंगे खेती करेंगे पर काम पर वापस नहीं आयेंगे ।
मज़दूर परेशान और दुखी है ,
मालिकों ने उनका ख़्याल रखा होता भरपेट खाना दिया होता तो वो कभी पलायन नहीं करते ।
सरकार ने भी लाकडाऊन करने के पहले अनाऊसमेट कर सबको अपनी अपनी जगह सुरक्षित जाने की व्यवस्था करा दी होती तो लाकडाऊन खुलते ही वो वापस आ जाते ...
पर ग़रीबों के साथ बहुत बदसलूकियाँ हुई है ...
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कामगार और उद्योगपति मजदूर और कृषक एक दूसरे के पूरा खाएं पूर्णविराम हर व्यक्ति को जिंदगी जीने के लिए भौतिक वस्तु चाहिए। चाहे वह अमीर हो चाहे गरीब वस्तु की आवश्यकता सभी को होती है। तभी जिंदगी की गाड़ी चल पाती है। कामगार श्रम करके आय का स्रोत बनाते हैं उद्योगपति वस्तु बनाकर उस वस्तु को लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर अपना उद्योग में लगे पूंजी से आय का स्रोत बनाते हैं। कृषक वस्तु का उत्पादन कर आय का श्रोत बनाते हैं और अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति कर संतुष्ट होकर जीने का प्रयास करते हैं। इस तरह मानव समाज में देखा जाए तो एक दूसरे के पूरक बन कर ही व्यवस्था को बनाया जाता है। किसी एक का कार्यक्रम नहीं है हम सब मानव जाति अपनी योग्यता और श्रम से आय का स्रोत बनाकर वस्तुओं की पूर्ति कर पाते हैं गांव में मजदूर और कृषक मिलकर उत्पादन करते हैं और उत्पादित वस्तुओं को स्वयं उपयोग कर शहरों में घरों के लोगों की आवश्यकता पूर्ति हेतु पहुंचाई जाती है। इस तरह परिवार गांव से गांव शहर से जुड़कर उपयोगिता और पुख्ता के अर्थ में व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं गरीब और अमीर में तालमेल पूर्वक की व्यवस्था को बनाए रखते हुए दोनों अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं आवश्यकता की पूर्ति मूलभूत आधार पर देखें तो अमीर और गरीब दोनों अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और आपस में मैत्री भाव से एक दूसरे का विश्वास के साथ इसने उसे सम्मान करते हुए एक सुखद जिंदगी जीने की प्रयास करते हैं अतः कहा जा सकता है कि बिना कामगारों के बिना उद्योग उत्पादन नहीं हो पाएगा कृषक और मधुर कामगार और उद्योगपति दोनों का होना आवश्यक है। भक्त बिना भगवान विद्यार्थी के बिना शिक्षा रोगी के बिना डॉक्टर का कोई अस्तित्व नहीं है ठीक इसी प्रकार कामगार के बिना उद्योगपति मजदूर के बिना किसान का कोई पहचान नहीं है अतः दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं किसी के बिना किसी का काम धंधा नहीं चल पाएगा। बिना श्रम का विकास नहीं होगा और बिना मजदूर का श्रम नहीं होगा अतः हम सभी मानव जाति को श्रम का सम्मान करते हुए अपने देश के विकास में भागीदारी का निर्वहन करें और अपने देश को एक स्वस्थ और संस्कार देश बनाने में अपनी योग्यता को प्रमाणित करें कामगार और मजदूर से उद्योग और उत्पादन क्षमता रहे ऐसी व्यवस्था सबको मिलकर बनाना होगा सभी सब साथ-साथ संतुष्टि के साथ ही पाएंगे।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
बिना कामगारों के कैसे चलेंगे उद्योग धंधा निसंदेह चिंता का विषय है। लेकिन अभी उद्योग धंधों की शुरुआत करना खतरे से खाली नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं जो सरकार अथवा आमजन का नुक़सान नहीं हो रहा है। बिल्कुल हो रहा है। सरकार ने तो तोड़ निकाल लिया लोगों को बैठे ठाले मन बहलाने के लिए शराब के ठेके खोल दिया। कहीं कहीं तो एक दिन में चार पांच सौ करोड़ के शराब बिके हालांकि इल्जाम मजदूरों के मथे मढ़ दिया गया। मैं भी मजदूर हूॅं लेकिन हाथ भी नहीं लगाता। जिनके पास खाने के पैसे नहीं हैं वो भला शराब कहां से खरीदेंगे। जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती उद्योग धंधों का चलना मुश्किल है। मजदूर लोग जान बचाने के लिए घर में बंद पड़े हैं।पैंचा उधार से काम चला रहे हैं। जिनके पास जज्बा है वे मजदूर जान बचाने के लिए पैदल ही घर भाग रहे हैं। जो मजदूर भाग्यशाली हैं वे घर पहुंच जा रहें हैं।जिनका हिम्मत जवाब दे जाता है वे रास्ते में ही दम तोड़ दे रहे हैं। कुल मिलाकर उद्योग धंधों का चलना अभी सपना है और सपने जल्दी पुरा नही होते।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
यह प्रश्र सम्पूर्ण राष्ट्र के ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व के भविष्य निधि को तार-तार कर देंगे। क्योंकि खेती से लेकर बड़े-बड़े उद्योग बिना कामगारों के विफल हो जाते हैं।
जिस प्रकार परमाणु बम कोरोना विषाणु को मारने में असक्षम है। उसी प्रकार बिना परिश्रम के उद्योग-धन्धे फल-फूल नहीं सकते। खेती सूख जाती है। बाग और बाग के पुष्प मुरझा जाते हैं। आकाल के आसार दिखाई देने लगते हैं।
उल्लेखनीय है कि आधुनिक मशीनी युग में भी कामगारों का महत्व उतना ही है, जितना पहले था। अतः बिना कामगारों के उद्योग-धन्धे ठप्प होना स्वाभाविक एवं सम्पूर्ण सत्य है। क्योंकि सर्वविदित है कि विकास और समृद्धि के आधार कामगार ही होते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
वैश्विक महामारी कोरोना से मजदूरवर्ग लाकडाउन में जहां थे वहीं फंसे रह गये
राज्य सरकारों ने मज़दूरों की चिंता नहीं कि इसलिए मजदूर ट्रेन न चलने से पैदल , सायकिल से सैकड़ों मित्र दूर हालातअपने घर के लिए रवाने हुए । अब ट्रेन भी उनके लिए चलायी है । कुछ प्रतिशत मजदूर ट्रेन से अपने गांव भी पहुँचे हैं , लेकिन कितने मजदूरों को ई पास नहीं मिले , पीड़ा , दुख दर्द , भूख से पीड़ित मजदूर मजदूर मजबूर नहीं हैं ।
उनकी सुध नहीं ली गयी । मजदूरों के साथ अन्याय हुआ । इन हालातों मजदूर वर्ग पीस रहा है । कुछ सरकारों ने
मजदूरों को लाने से मना कर दिया । सरकार ने इनका योगदान भूला दिया क्यों ?
मजदूरों केपास राशन नहीं है , कैसे वे अपने परिवार का पालन करें ।
मजदूरों के नहीं होने से खेतों की फसल किसानों को खुद से काटने पड़ी है । मजदूरों को हाथों के लिए काम नहीं है , कमाएँगे नहीं तो खाएँगे क्या ? उद्योग धंधे चौपट हो जाएँगे। ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में मजदूर दिखायी नहीं दे रहे हैं । समान चढ़ाने , उतारने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं । सियासत की चक्की में मजदूर पीस रहे हैं । इसलिए मजदूरों का पलायन जारी है । रोज समान लाने खाने वाले मजदूर परेशान है । मजदूर का वापिस अपने कार्यस्थल पर आना मुश्किल लगता है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
कामगारों के कारण ही उद्योग-धंधों का अस्तित्व है, इनके बिना तो इन्हें चलाने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं । लेकिन जब लाॅकडाउन के कारण फैक्ट्रियों, अन्य उधोग को बंद करना पड़ा तो ये कामगार रोजी विहीन हो इन्होंने परिवार से दूर होते हुए भी धैर्य रखा पर आखिर कितने दिन ? कुछ लोगों ने नासमझ या उदंडता अथवा कोरोना को हलके में लेकर लाक के नियमों का पालन नहीं किया इसलिए कोरोना की चेन पूर्णरूप से टूट नहीं पायी ।
हार कर इन कामगारों ने घर जाना उचित समझा ताकि परिवार के साथ रहते हुए अन्य जीविका की तलाश कर सके ।
वर्तमान परिस्थिति में स्वयं को इस महामारी से बचाना ही प्राथमिकता है । ऐसे समय में सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं व अन्य भामाशाह निरंतर सहयोग के तत्पर रहें ताकि ऐसे लोगों को भुखमरी का सामना न करना पड़े ।
धीरे-धीरे स्थानीय कामगारों को शोसल डिस्टेंस , मास्क, सेनेटाइज के साथ काम पर बुलाया जाये, उन्हें पूरी पगार दी जाए, महामारी से सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए तो पुनः उधोग-धंधे प्रारम्भ किए जा सकते हैं । लेकिन धैर्य रखने की परम आवश्यकता है ।
बिगड़ने में तो समय नहीं लगता परन्तु सुधरने में सदियाँ लग जाती हैं ।
" धीरे-धीरे रे मना, धीरे सबकुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, रूत आयां फळ होय ।"
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
कामगार , हमारे लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनके लिए हम। समाज और राष्ट्र के लिए पारस्परिक संबंध मधुर और मजबूत रहना विकास और समृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण ही नहीं आवश्यक भी हैं। सभी की अपनी-अपनी सीमाएं और मर्यादाएं हैं। जिनको सद्भाव और सहयोग को प्राथमिकता देते हुए अपने दायित्वों का निष्ठा से निभाते हुए चलें तो सम्बंध भी मधुर रहेंगे और काम भी सरल,सहज और सफल होंगे। इस बात को जिन्होंने गंभीरता से समझा और निभाया वे सफल रहे हैं।
लॉकडाउन के इस बंधन और कोरोना संक्रमण की इस आपदा में यदि सबसे अधिक परेशान और उपेक्षित रहे हैं तो कामगार वर्ग ही ज्यादा हो रहा है। उनके जीवन में जो भटकाव आया है, जो अकेलापन आया है वह जितना दुःखद है, उतना चिन्ताजनक भी है। सबसे ज्यादा तो उनका अपने घर ,गृहराज्य पहुंचने में जो मुश्किलें आयीं हैं, उन्होंने जो पैदल यात्राएं की हैं और कर भी रहे हैं, उनका जो मनोबल टूटा है, निश्चित ही इससे भावी परिणाम काफी चिंतनीय हो सकते हैं। कामगारों को छोड़कर जो बाकी वर्ग के लोग हैं, उन्हें इस संबंध में मनन करना आवश्यक है। कामगारों ने इस परिवेश में जो सहा है या जो सह रहे हैं, उसमें उनका मनोबल भले ही कमजोर हुआ है पर वे अंदर से मजबूत भी हुए हैं। इसका प्रभाव उद्योग धन्धे पर भी बुरी तरह पड़ने वाला है। मजदूर, उद्योग की प्रथम ईकाई होती है। यदि यह सामंजस्य बिगड़ता है तो उद्योग चलाने में मुश्किलें आने की संभावनाएं हैं। इसके लिए नये सिरे से शुरुआत करनी होगी। ईमानदारी से कामगारों का दिल और विश्वास जीतना होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
ये बात सच है कि बिना कामगारों के उद्योग धन्धे चलाना अति कठिन है । पूरे देश में पिछ्ले दो माह से कोरोना के कारण सारा निर्माण कार्य ठप्प पडा है ।
एक सप्ताह से केंद्र सरकार ने कोरोना स्पॉट चिन्हित कर के ग्रीन जोन में निर्माण गतिविधियों को पुना शुरु करने की छूट दे दी है । इसी तरह सोशल डिस्टेंस के साथ कामगारों को भी कार्य करने की छूट दे दी है ।
ऐसे मे लगता है कि भारत धीरे धीरे इस महामारी के चंगुल से आजाद होता जायेगा और देश की आर्थिक गतिविधियां फिर से चालू होंगी ।
इससे हमारी अर्थव्यवस्था फिर से नई उंचाईयों को प्राप्त करेगी ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल
किसी भी प्रकार का धंधा एक सामूहिक श्रम का प्रतिफल है। चाहे कामगार हों या प्रबंधन सदस्य सभी के सामूहिक सहयोग ही उधोग को आगे बढ़ाता है ।
मुश्किल तो होगी अवश्य लेकिन वर्तमान परिस्थितियों का सामना करना भी उनकेे लिए एक चुनौती बन गयी है और वर्तमान की समस्या से निजात पाने के लिए यह कदम उठाया है। भविष्य की सोच को छोड़ना ही समझदारी है वर्तमान बचाना अधिक महत्वपूर्ण है जान बचेगी तो भविष्य सुधारने में मुश्किल नहीं होगी।
यह पक्ष तो कामगार के तरफ से था अब उधोग धंधा की आंध्र नज़र डालें तो मुझे यह समझ में आता है कि पुराने नहीं तो नये कारगर अवश्य मिलेगा एक नया सबेरा श्री पहल के साथ सभी के जीवन में आएगा और सफलता लाएगा
हमारी और देश की अर्थव्यवस्था एक ऊंचाई पर पुनः आएगी
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन के बाद अब सरकार ने कुछ ढील दी है। उसमें उद्योग-धंधों को खोलने का इजाजत मिली है । लेकिन अधिकतर कामगार तो गाँव में हैं या अन्यत्र कहीं फंसे हैं । ऐसी स्थिति में उद्योगों की फिर से चालू करने की व्यवस्था संभव नहीं है ।
जब तक कामगार लौटेंगे नहीं व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाना किसी भी व्यवस्थापक के लिए मुश्किल है । ऐसा नहीं है कि कामगार आना नहीं चाहते । बिना वाहन के उनका आना संभव नहीं है । जब तक यातायात की सुविधाएं नहीं मिलेंगी कामगारों का कार्यस्थल पर पहुंचना संभव नहीं है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आलम का ये सब नक्शा बच्चों का घरोंदा है
इक जर्रे के कब्जे में "सहमी हुई दुनिया "है l
इस सहमी हुई दुनियां में कामगार अपने रोजगार को छोड़कर अपनों की छत्र छाया में आ गए हैं, जिसमें जोखिम, अनिश्चितता
तथा अन्य खतरे की प्रबल संभावना है l
ऐसी परिस्थति में कामगारों का अभाव हो गया है जिसका प्रतिकूल असर उद्योगों पर पड़ना अवश्यसंभावी है l किसी उद्योग के सफल संचालन में भूमि, श्रमिक, पूंजी, कच्चा माल मुख्य इनपुट हैं l कोरोना संक्रमण लॉक डाउन के चलते प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या यूँ कहे कि कामगारों के अभाव में उद्योग धंधों का संचालन असम्भव सा प्रतीत होता है l
कोरोना संक्रमण की मार ऊपर से कामगारों का दुर्भाग्य यह है कि ये अपना श्रम बेचकर न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करते हैं और तो और किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती l आज आवश्यकता इस बात की है कि मजदूरों के श्रम का सम्मान होना चाहिए l यदि ऐसा होता है तो उद्योग धंधो के लिये कामगार उपलब्ध होंगे l
यह कटु सत्य है कि शहरीकरण की व्यापक प्रक्रिया ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था व उद्योगों के प्रति उदासीनता पैदा की है तथा ग्रामीण क्षेत्र केवल कच्चे
माल के स्रोत बनकर रह गए हैं,
तथा लॉक डाउन के चलते रोजगार के अभाव में शहरी क्षेत्रों से कामगारों का भारी तादाद में
पलायन गांवों में हुआ है l स्थिति सामान्य होने के अभाव में उद्योग धंधो का चलना असम्भव होगा l
ऐसे परिवेश में अध्यात्म से परिपूर्ण हमारे श्रमिक वर्ग संतोषी जीवन जीना चाहते हैं l ईश्वर के प्रति दृढ़ आस्था रखते हुए -
देख पराई चूपड़ी मत ललचाये जीव,
रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पीव l
इस प्रकार की जीवन शैली को जीना चाहते हैं l इनका निःश्छल मानव मन इस तथ्य का उपासक रहा है -
कबीरा आप ठगाइये और न ठगिये कोय,
आप ठगे सुख होत है और ठगे दुःख होय l
जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान ये है गीता का ज्ञान, ये है गीता का ज्ञान l मनरेगा न केवल ग्रामीण रोजगार के लिए लाभदायक सिद्ध हो रहा है अपितु ग्रामीणों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में लाभदायक सिद्ध हुआ है तथापि शहरी क्षेत्रों में उद्योग धंधे तो कुशल कारीगरों, मिस्त्री आदि पर ही निर्भर रहेंगे l
लॉक डाउन में दी गई छूट से असंगठित क्षेत्र के करीब पांच करोड़ लोगों को फायदा होगा l कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में 60% श्रमिक साईट के आस पास उपलब्ध है तथा घनी आबादी भी नहीं है l
संक्रमण की कम संभावना देखते निर्माण श्रमिकों को रोजगार दे सकते हैं l टेक्सटाइल, गारमेंट होम सप्लाई प्रारम्भ कर सकते
हैं lसिरेमिक उद्योग में चार लाख श्रमिकों को काम शुरू होने का इंतजार है l
लॉक डाउन के बाद उद्योग धंधे कामगारों की उपलब्धि पर ही
निर्भर नहीं रहेंगे वरन कंपनियों को राहत पैकेज के बिना बचाया जाना सम्भव नहीं होगा l एविएशन हॉस्पिटेबलिटी, ट्रांसपोर्ट शिपिंग, रेलवे पर्यटन, यातायात सब ठप्प पड़े हैं, पस्त हैं, लघु, मध्यम उद्योगों के सामने अपना अस्तित्व बचाने का खतरा पैदा हो गया है l दिहाड़ी और छोटे कर्मचारी, मशीन चलाने वाले मिस्त्री सब नगर महानगर छोड़कर चले गए हैं l इनके बिना उद्योग धंधे शुरू करना मुश्किल हो रहा है, लेकिन -
गतासून:गता संश्च नानुशोचन्ति स :पंडिता :l -भगवद्गीता
अर्थात जो हो चुका है और जो होने वाला है उसकी चिंता नहीं करके जो वर्तमान में जीने वाला है, वही पंडित है l
अंतःकरण से प्रेरित होकर
जीविकोपार्जन के लिए उद्योग धंधों को अपनावें l
किसी भी उद्योग धंधों की सफलता के लिए साहस Enterprise का विशेष महत्व
है -अपने को असहाय, असमर्थ अनुभव करते रहें और स्थिति बदलने के लिए किसी दूसरे पर आशा लगाए बैठे रहें l मानवी पुरुषार्थ कहता है, ऐसा नहीं होना चाहिए l
चलते चलते -
मेहनत हमारा जीवन,
मेहनत हमारा नारा l
मेहनत से जगमगादो,
तकदीर का सहारा ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बहुत विकट परिस्थितियां दिन ब दिन होती जा रही है इस कोरोनावायरस के कारण । हर दिन संक्रमित व्यक्तियो का गार्फ बढ़ता ही जा रहा है।सारे किए गए प्रयास का कुछ खास अच्छा नतीजा नहीं आ रहा है ।आज के समय में जितने भी मजदूर,ठेला, रिक्शा, रद्दी वाला, हमारे किसान भाई इन सबों को दोहरी मार का सहन करना पड़ रहा है । सब बड़े ही विषम परिस्थितियों से गुजर रहे हैं । सारे कामकाज ठप्प हो जाने के कारण और कोइ चारा दूर _दूर तक नजर नहीं आ रहा है , मजबूरी वश सब कामगार मजदूर अपने घरों को वापस लौट रहे है ।अब ऐसे में निश्चित रूप से उद्योग धंधे,कल कारखानों में काम करने वालों की भयंकर कमी हो जायेगी,फिर कैसे सब सुचारू रूप से सही चलेगा यह बहुत हीं सोचनीय और चिंतनीय विषय है । नुकसान दोनों का होगा , कामगारों का भी और मिल , फैक्ट्री के मालिकों का भी ,फलत: उत्पादन ठप्प हो जायेगा जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर होगा ,यानी सारी व्यवस्था चरमरा उठेगी ।यह बहुत ही विकट परिस्थितियां होंगी ।अभी सरकार को ऐसे समय में बहुत सोच समझकर कोई कदम उठाने की जरूरत है ताकि हर तरह की सुव्यवस्थित व्यवस्था बनी रहे ।यह तो हर कोई जान हीं गया है कि यह वायरस जंग अभी बहुत लंबी चलने वाली है । इसीलिए अब धीरे_ धीरे कुछ बंदी में पहले से अभी ज्यादा छूट दी जा रही है। जो करना भी जरूरी था । सरकार को नीचे पायदानों पर खड़े लोगों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है जिनपर हमारे देश के बहुत सारे सिस्टम निर्भर रहते हैं और वहीं बेचारे इस समय में सबसे बुरे अवस्था में दिन गुजार रहे हैं ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
Comments
Post a Comment