लॉकडाउन में क्या लोगों का जीवन स्तर गिर रहा है ?
लॉकडाउन में अच्छे - अच्छे की आर्थिक स्थिति डामाडोल हो गई है । खासकर व्यापार व प्राईवेट नौकरी करने वाले की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर होने के कारण जीवन स्तर भी गिरने लगा है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
लाकडाउन के चलते लोगों का जीवन स्तर, मेरे विचार से गिरा नहीं है ,बल्कि उसमें सुधार ही हुआ है। यदि लाकडाउन न होता तो, जीवन स्तर क्या, जीवन ही धड़ाम गिर जाता, समाप्त हो जाता। यदि आर्थिक रूप से स्तर की बात करते हैं तो वह ठहर जरुर गया है, गिरा नहीं। जान है तो जहान है,पहला सुख निरोगी काया को मानने वाला भारतीय समाज, इस समय को भी एक उत्सव की तरह ले रहा हैं। समाज में स्वास्थ्य, मानसिक बल, आत्मशक्ति, धार्मिकता, सामंजस्य,सहयोग आदि जीवन मूल्यों की दृष्टि से विचार करें, तो जीवन स्तर सुधरा है, गिरा नहीं। घर में रहकर पारिवारिक सहयोग चल रहा है,धर्म कर्म, धार्मिक ग्रंथों का पठन पाठन,चिंतन मनन चल रहा है,स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। खान-पान और रहन सहन पहले के मुकाबले स्वास्थ्यप्रद हुआ है इन दिनों। फास्टफूड की जगह, घर में बने व्यंजनों के कारण इसमें सुधार हुआ है। आपाधापी, भागमभाम वाली दिनचर्या थम गयी है। ऐसे भी बेहतर जीवन यापन हो सकता है, यह समझ में आया है। प्राकृतिक पर्यावरण भी सुधर ही रहा है।
- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
यह सचमुच एक विचारणीय प्रश्न है कि भारत जैसे विशाल देश में लंबे समय तक चलने वाले इस लॉक डाउन में लोगों के जीवन स्तर में क्या कोई गिरावट आई है। सबसे पहली बात यह विचारणीय है कि जीवन स्तर क्या है। दरअसल जीवन के स्तर का कोई मापदंड नहीं है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि अच्छा भोजन, बढ़िया हवादार मकान, स्वच्छ कपड़े स्वास्थ और मनोरंजन का उचित प्रबंध या देखरेख इसे जीवन स्तर के रूप में देखा जाता है लेकिन विभिन्न वर्गों का जीवन स्तर अलग अलग होता है। उनका जीवन स्तर उनके व्यवसाय उनकी आमदनी पर निर्भर करता है। एक गरीब आदमी का जीवन स्तर अलग होगा तो एक धनी आदमी का जीवन स्तर अलग होगा। उनका रहन-सहन उनके तौर-तरीके अलग होंगे। वर्तमान स्थिति में निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि धनी वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के जीवन स्तर पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन दैनिक मजदूरी पर जिनका जीवन यापन होता है ,छोटे छोटे दुकानदार ,सब्जी बेचने वाले, फल बेचने वाले आदि के जीवन स्तर में भारी गिरावट आई है। सरकारी मदद और तमाम देशभर में फैले हुए संगठनों के माध्यम से उनके लिए तमाम व्यवस्थाएं जुटाई जा रही हैं फिर भी उनके जीवन स्तर में गिरावट देखी जा रही है। यह कहा जा सकता है कि लॉक डाउन के दौरान कुछ प्रतिशत जनसंख्या का जीवन स्तर ज्यों का त्यों है और कुछ के जीवन स्तर में गिरावट आई है। धन्यवाद।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
दतिया - मध्य प्रदेश
जीवन स्तर गिरने का सही आकलन तो आने वाले दिनों में होगा जब बाजार खुलेंगे और लोग खरीदारी के लिए निकलेंगे। अभी तो अमीर गरीब सबकी हालत खराब है। सभी के असली चेहरे ढँक गए हैं। हाँ कुछ लोग जिन्हें खाने पीने को नही मिल रहा उनकी दशा देखकर ज़रूर निराशा हो रही है। आज की ज़रूरत ये है कि हमारे सोच का स्तर ऊंचा रहना चाहिए ताकि हम सबको इस संकट से निकलने का मार्ग जल्द से जल्द मिल जाए।
- मनोज पाँचाल
इंदौर - मध्यप्रदेश
लाॅकडाउन में लोगों का जीवन स्तर कितना गिरा यह सब कल की बातें हैं हा हम आज कुछ अनुमान जरूर लगा सकते हैं।
आज यदी हम देखे तो लाॅकडाउन में जो हमनें कभी नही सोचा या कल्पना की वह सब हो रहा है कल व्यक्ती के पास अपने ही परिवार के लिये समय नहीं था आज समय ही समय हैं ओर वह भी अपने परिवार के लिये पहले वह चाहते हुये भी परिवार को समय नही दे पाता था आज उसके विपरीत है आज लोगों के पास इतना समय परिवार के लिये हैं की वे जैसा चाहे अपने परिवार के साथ बिता सकते हैं। हा कुछ आर्थिक हानी जरूर उठानी पढ़ रही है पर उनके तमाम खर्चे भी कम हो गये हैं ओर जो खर्चे घटे है उनमें भी 90% खर्चे अनआवश्य ही लगते हैं कोरोना एव लाॅकडाउन ने हमें बता दीया की तुम्हारी असली जरूरतें कितनी हैं अब मैं इस मे कोई नतिजे तक नहीं पहुच पा रहा हुँ की जीवन स्तर गिरा लिखु या उठा लिखु देश के कुछ अमिर लोग कुछ उनसे कम ओर कुछ मध्यम वर्गी तक तो कोई विशेष फर्क मुझे नहीं लगता हैं हा कुछ आर्थिक हानी हो सकती है पर इन्सान की जरूरते पुरी होती रहेगी फर्क तो केवल कम आय वर्ग दिहाड़ी मजदूर ओर गरीबों को पढ़ेगा ओर उनही का जीवन स्तर गिरेगा मेरा ऐसा मानना है।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्यप्रदेश
लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से चरमरा चुकी है। नि:संदेह आर्थिक तबाही का मंजर प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे रहा है। फैक्ट्रियां कल- कारखाने बंद होने की वजह से लाखों -लाख लोग बेरोजगार हो गए ,भुखमरी के कगार पर खड़े हो गए , दाने-दाने को मोहताज हो गए ,दूसरों के समक्ष हाथ फैलाने को मजबूर हो गए।
लॉकडाउन की अवधि काल 7 सप्ताह से बढ़कर 9 सप्ताह हो गई और आगे भी खत्म होने की उम्मीद नहीं दिखाई देती। ऐसी कठिन विषम परिस्थिति में गरीबों का तो बुरा हाल है हीं, बड़े-बड़े उद्योगपति भी प्रभावित हो रहे हैं। लंबी अवधि तक कल कारखाने बंद होने की वजह से मशीनों पर बुरा असर पड़ रहा है साथ ही कच्चे माल खराब हो रहे हैं। दूसरे देशों से माल आयात करने में भी परेशानी हो रही है। बचे माल से सामान तैयार भी करा लें तो तैयार माल निर्यात करने में परेशानी आ रही है।
दूर दराज गांव में भी आवश्यक सामग्री की आपूर्ति नहीं हो पा रही । लोग खुद को बेबस और लाचार महसूस कर रहे हैं।
25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन होने के बाद से फैक्ट्रियां बंद है। केंद्र सरकार की जीएसटी में 15 फ़ीसदी हिस्सा वाहन उद्योग का है। विक्री शून्य रहने के कारण वाहन कंपनियों को करीब एक लाख करोड़ का नुकसान हुआ। सरकार को भी बड़ा राजस्व नुकसान हुआ है।
अगर सरकार घाटे में रहेगी तो वो कर्मचारियों के वेतन व महंगाई भत्ते में भी कटौती करेगी।
* केंद्रीय कर्मचारियों का जून 2021 तक DA में कटौती कर दी गई है।
लॉकडाउन की वजह से सरकारी नौकरी पेशा हो या प्राइवेट सभी के आमदनी पर बुरा असर पड़ रहा है और आगे भी पड़ेगा ।
बेरोजगारी दर एक माह में तेजी से बढ़ी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2020 में बेरोजगारी दर 14. 8% से बढ़कर 23.5 % पर पहुंच गई है।
लॉक डाउन की वजह से बेरोजगारी बढ़ी और बेरोजगारी की वजह से लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आने लगी है। भविष्य की चिंता से मानसिक रूप से विक्षिप्त हो कितनों ने आत्महत्या कर ली। अगर हालात नहीं संभले और लोगों को रोजगार नहीं मिला तब और अधिक खतरे की घंटी बज सकती है । युवा वर्ग आक्रोश और कुंठा में गलत राह भी पकड़ सकते हैं। जॉब ना मिलने की चिंता में युवा मानसिक तनाव में जा सकते हैं। गरीब व्यक्ति हर तरह के छोटे बड़े कार्य कर जीवन यापन कर लेता है पर मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे अपने आपको निम्न स्तर के कार्य में एडजस्ट नहीं कर पाते हैं। इस कारण जॉब छूट जाने पर वह ज्यादा तनाव ग्रसित हो जाते हैं ।
सामाजिक स्तर पर हर व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार हो, आर्थिक मजबूती हो, इसके लिए सरकार को जल्द से जल्द इस बीमारी पर नियंत्रण करते हुए लॉक डाउन को खत्म करने का प्रयास करनी चाहिए। देश हित में अर्थव्यवस्था का मजबूत होना बहुत जरूरी है ताकि लोगों का जीवन स्तर के ग्राफ में उछाल देखने को मिले।
- सुनीता रानी राठौड़
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
मेरा मानना है कि हमे किस रूप में इस विषय को स्वीकार करना है यदि हम देश की आर्थिक और वित्तीय व्यवस्था की बात करते है तो हाँ लॉकडाउन से हमारे देश की वित्तीय व्यवस्था पर बहुत गहरा असर पड़ा है, जो जो वित्तिय घटक है हमारे देश के वे सभी इस महामारी के चलते एकदम नीचे आ चुके है, सारे उत्पादनक्षेत्र,हमारे बंद पड़े हैं, आवागमन के साधन,व्यापार ट्रांसपोर्ट औद्योगिक क्षेत्र, कंस्ट्रक्शन साइट,बिल्डिंग, सड़के, जमीन,प्रोपर्टी,खेती, शिक्षा, सिनेजगत,खेल,मॉल पब्स और जितनी भी आधुनिक तकनीक से लैस जिसके द्वारा धन की क्रियाशीलता या पैसा पैसे को खींचता है कहावत को हम एक पैमाने मे रखते हैं वास्तव में इन सबके आंकलन को सामने रखा जाए तो हमारे देश को जो वित्तिय नुकसान हुआ है उसे पाट पाना आनेवाले कई वर्षों तक संभव नहीं हो पाएगा।और वही हम हमारे दैनिक जीवन के पैमाने को सामने लाकर देखते है तो हमारा देश वर्ग व्यवस्था से बंटा हुआ है और हमारे देश मे दीन हीन से लेकर धनपति वर्ग है और इसमें सभी की जीवन शैली अलग अलग है, अभी निम्न वर्गों को शासन द्वारा आर्थिक सहयोग, राशन,आदि मुहैया कराया जा रहा है इसमें भी एक दो परसेंट शिकायत आ रही है कि जहा तक पहुचना चाहिए सामान वहा तक नही पहुँचा, जिनको ज्यादा जरूरत थी उन्हें नही मिल पाया,कही लोग अपने स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए सिर्फ अपना ही घर भरे जा रहे है, ये सब हो रहा है, पर इसका सकारात्मक पहलू ये है कि शासकीय सेवक, सेवादार ,डॉक्टर नर्स,हॉस्पिटल स्टाफ,पुलिसकर्मी,आर्मी,सफाईकर्मी, विधुतविभाग, बैंक कर्मचारी टेलीफोन, डिजिटल मार्केट, मीडिया सारे के सारे सरकारी महकमे और निजी संस्थान अपनी भूमिका बड़ी ही मेहनत लगन और ईमानदारी के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे है ,वो प्रसंशनीय है और वो सब जुड़े हुए लोकजन कर्मयोद्धा हमारे इसी वर्ग व्यवस्था से आते हैं और कही न कही उनका भी अपना परिवार है जो अपना घर बाहर सब छोड़ कर आने वाली आपदाओं को सम्हाले हुए हैं, इन सभी मे सबसे ज्यादा संकट जन्य स्थिति उन लोगों की है जो अपने अपने राज्यो जिलों अपने अपने गाँव को छोड़कर पलायन कर कर खाने कमाने चले जाते है उनका जीवन जिनके पास इधर उधर होने के कारण जरूरी दस्तावेज नही रहता जिससे वो शासकीय चीजो का लाभ उठा सके ,कुल मिलाकर निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग को लॉक डाउन से ज्यादा फर्क पड़ा है जहाँ आय बहुत ही सीमित है,निजी कमाई है, कही किसी को वेतन मिलना है कही काम के बगैर कुछ नही मिलना है, नई नई कंपनी जो खुली ही थी और ये समस्या सामने आ गई ऐसे जगह काम करनेवाले लाखो लोग अभी अपने आप को अवैतनिक माने हुए हैं और ये निश्चित भी नही है कि वो आगे किसी भी प्रकार का काम कर पाएंगे,नॉकरी मे रहेंगे या निकाले जाएंगे,ये एक बहुत बड़ी समस्या है।रोज कमाने खानेवाले, एक सीमित आय वाले को तो लॉक डाउन से काफी ज्यादा सामना करना पड़ रहा है वही एक तरफ ऐसा भी वर्ग है जो कई महीने बैठ के खा सकता है और समान रूप से अपना जीवन यापन कर सकता है, ऐसे वर्ग के लोग अपने आप को परिवार के साथ जोड़कर चल रहे है क्योंकि आपाधापी के इस दौर मे वो सिर्फ कमाने में लगे थे उनके पास एक दूसरे के लिए समय नही था वो इस समय का इस्तेमाल बहुत सही तरीके से कर रहे है और लोगों की मदद के लिए भी आगे आ रहे हैं जो सिर्फ कलपुर्जे मात्र रह गए थे उनमें संवेदनाओं के सागर गोते लगा रहा है संवेदनशीलता आई हैं वो लॉकडाउन के पालन करते हुए समाज के लिए काम कर रहे है ,इनमें से कई लोग ऐसे हैं जो अपने परिवार को भी समय नही देते थे, आधुनिकता की दौर में भोगविलसीता से लिप्त समाजीकरण को न मानने वाले आज लोगो का साथ दे रहे है ,परिवार का साथ दे रहे है, देश का साथ दे रहे सेवादारों का साथ दे रहे है, लॉक डाउन के नियमों का पालन कर रहे है, नैतिक मूल्यों को बढ़ाये हुए है और अपने आसपास के वातावरण को बेहतर बनाये हुए हैं यदि इन सभी को ध्यान में रखा जाए और जीवन के इस पहलू को महत्वपूर्ण माना जाए तो वास्तव में लोगों का जीवन स्तर बिल्कुल नहीं गिरा है बल्कि उसमें मूलभूत योगदान ,दूर रहकर भी सामाजिक एकता,लोगो के जीवन की सुरक्षा भौतिकता से दूर आधुनिक युग से दूर बनावटी पन से परे हटकर कम संसाधनों में अपने जीवन को निर्वहन जीवन निर्धारण करने की जो बात अपनायी है, ये सीख एक सामाजिक दूरदर्षिता को दर्शाती है कही न कही आध्यत्मिकता के दर्शन कराती है हर इंसान को आत्म मंथन करना सिखाती है,इससे हमारा जीवन संवरा है ये कहने मे कोई अतिश्योक्ति नहीं है,इससे सामाजिक स्तर बहुत सुधरा है जो ,आधुनिकता के पीछे दौड़ने वाले मानसिकता के लिए अत्यावश्यक भी था।
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
लॉक डाउन में लोगों का जीवन स्तर गिर रहा है मैं इस बात को नहीं मानती हूँ। इंसान के अति महत्वाकांक्षी होते जाने के कारण वह संवेदनाहीन हो चला था, लाभ-हानि के रूप में उसने हर चीज यहाँ तक कि रिश्तों को भी इसी तराजू में तोलना शुरू कर दिया था। लॉक डाउन ने फिर से आत्ममंथन करने का अवसर प्रदान किया है। जिस प्रकार नोटबंदी के समय लोगों ने अपनी आवश्यकताएँ कम करके जीना सीखा, कम खर्च करना सीखा... अब उसी तर्क लॉक डाउन भी बहुत सारे जरूरी जीवन के पाठ हमें पढ़ा रहा है।
हर संकट जीवन के संघर्षों से लड़ना सिखा कर आत्मविश्वास से चलना सिखाता है। जिन चीजों के बिना हमें रहना असंभव लगता था, हम आसानी से उनके बिना आराम से और पहले से अधिक अच्छी तरह रह रहे हैं, क्योंकि सब समझ चुके हैं कि अपनी आदतें ही कष्ट का कारण होती हैं। संकट और समय के अनुसार जो इन्हें बदलता चलता है वह कभी पराजित नहीं होता
आर्थिक दृष्टि से समस्या अवश्य आई है, पर विवेक और समझ से नए उपायों को अपना कर उन पर भी पार पाया जा सकता है।
लॉकि डाउन के इस समय को हर व्यक्ति एक बदलाव के रूप में ले कर भविष्य की तैयारी की तैयारी करे तो इसका आने वाले दिन सुखदायक और संतोष प्रदान करने वाले होंगे।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
प्रत्येक घर की कुछ कहानी होती है,प्रत्येक घर के कुछ संस्कार होते हैं।सभी घरों की जीवनशैली अलग- अलग होती है। ऐसे में देखा जाए तो आज हम इतने समय से परिवार के साथ हैं। तो संबंधों में प्रगाढ़ता बड़ी है। जो समय हम बच्चों को नहीं दे पा रहे थे। आज हम अपने परिवार के साथ जीवन का अमूल्य समय व्यतीत कर रहे हैं। एक दूसरे के प्रति प्रेम, अपनत्व बड़ा है। मशीनीकरण के युग से पुनः शांत वातावरण में आकर हमें तो क्या प्रकृति को भी सभी सुकून की अनुभूति हुई है। कहीं लड़कियां पाक कला सीख रही हैं, तो कहीं बच्चे दादा के साथ बैठकर गेम खेल रहे हैं। परिवार के साथ रहकर बचपन की यादों को लेकर पुरानी बातों से कुछ सीख रहे हैं। ऐसे समय में रामायण, महाभारत, चाणक्य जैसे सीरियल घर में एक सुखद माहौल का वातावरण बना रहे हैं। अब लोगों को अपने परिवार से इतना मोह हो गया है। कि यदि लॉकडाउन खुल गया तो ऑफिस, स्कूल जाने के लिए रूटीन बनाने में कुछ वक्त तो सभी को लगेगा ही।आज समाज में सेवा भाव का कार्य भी बढ़ा है लूट, चोरी, नशाखोरी, दुष्कर्म, जैसे अपराध भी समाज में घटित नहीं हुए हैं। सभी सामान्य और सुखी जीवन जी रहे हैं।प्रत्येक व्यक्ति को यह एहसास हो चुका है। कि हम जरूरतों से ज्यादा पैसा और दिखावे की दुनिया में भाग रहे थे। अब प्रत्येक व्यक्ति चाहे गरीब हो या अमीर एक सामान्य स्थिति में जीवन यापन कर रहा है। ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं कि लॉकडाउन में जीवन का स्तर गिर रहा है। बल्कि जीवन जीने की कला लोग सीख रहे हैं। इन दिनों लोगों ने मौत को बहुत करीब से देखा है। तो आने वाले समय में थोड़ा बहुत तो संस्कारी भारत हमें देखने को मिलेगा ही... ऐसी मेरी सोच है। अन्यथा.. वही.., जैसे संस्कार, वैसे विचार उस पर तो कोई जीत ही नहीं सका है।उत्थान ही जीवन है।पतन नहीं...।
- वंदना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
अभी तक तो आम आज़मा का जीवन स्तर गिरा नहीं है ,
वह स्वयंम भी पौष्टिकता से भर पुर भोजन करने लगा है , सभी अपने स्तर पर जरुरत मंद की मददत कर रहे है , अगर यही हालात रहे तो आगे का कहाँ नहीं जा सकता , शायद धीरे धीरे आर्थिक स्थिति ख़राब होने क्या होगा पता नहीं
मज़दूर की दिनचर्या में बहुत फ़र्क़ पड़ा है वो खाने पीने के लिये परेशान हो रहे है
कहाँ कहाँ लोग फँसे है वो बहुत बुरी हालत में है ।
मिलाजुला असर है ।
क्या क्या सुधार हुआ है नज़र डालें ....
कोविड 19 वायरस के प्रकोप से दुनिया की आधी आबादी इस वक्त लॉकडाउन झेल रही है.
लाकडाऊन में अभी तक जीवन
वर्ष 2020 कोरोना की चपेट में है ! लगभग सारी दुनिया में लाकडाऊन की स्थिति है ! आज सबसे ज्यादा व्यथित वो लोग और उनका परिवार है जो लोग रोज कमाते , खाते थे ! किसी एक व्यक्ति को भी ये जरा भी अंदाजा नही था की कोरोना जैसी विपदा आने वाली है !
कभी भी कोई संकट कुछ बता कर नही आता ! किन्तु यदि हमें जीना है तो जीवन केे तमाम पहलुओं पर ध्यान देना अति आवश्यक है !
भौतिक जीवन केे पांच प्रमुख आयाम है
आर्थिक , सामाजिक , मानसिक शारीरिक , आध्यात्मिक ..
पृथ्वी पर सभी मनुष्य इन पाँच आयामों केे बीच जीवन और मृत्यु को प्राप्त करते हैं ! अपनी, अपनी जगह सभी आयामों का विशेष महत्व है ! इन पाँच आयामों में आर्थिक आयाम का स्तर काफी संघर्ष शील हैं ! धन का निर्माण जीवन को सरल बनाने और प्रत्येक मनुष्य को कर्मशील रहने केे लिए किया गया था ! धन केे सिस्टम में कोई बहुत आगे हैं कोई बीच में हैं और कोई बहुत पीछे हैं !
कोरोना जैसी आकस्मिक विपदा ने सभी मनुष्यों की पिछली सभी मान्यताओं को लगभग समाप्त कर दिया हैं ! कोरोना ने यह साबित कर दिया हैं की जीवन बहुत अनमोल हैं इसे लापरवाही से जीने की कोशिश कभी ना करें ! एक अमीर व्यक्ति जब भी इस दुनिया से जाता हैं तो , अपने परिवार और बंधु सदस्यों केे जीवन में आर्थिक मजबूती देकर जाता हैं !
जीवन केे उपरोक्त सभी आयामों में संतुलन बना कर चलना ही एक सफल जीवन को परिभाषित करना हैं ! एक सामाजिक और धन केे अभाव से ग्रस्त व्यक्ति अनेक सुखों की स्थिति में भी हमेशा दुखी ही रहता हैं !
मनुष्य अपने ज्ञान केे आधार पर , आहार , विहार करता है उसकी सेहत , उसका मानसिक स्तर , उसकी आगामी योजनाएँ , आध्यात्मिक , सामाजिक और आर्थिक संरचना आदि सब कुछ उसके अपने ज्ञान केे आधार पर ही होती है !
लाकडाऊन की स्थित में इंटेरनेट का सही प्रयोग करें , अपने काम केे प्रति अपनी स्किल को बढाने का प्रयास करें ! अधिक और अधिक सीखने की तरफ ध्यान देँ ! जिनका बिजनेसऑफलाइन है वो अतिशीघ्र उसे ऑनलाइन सिस्टम पर ले जाएँ ! जब लाकडाऊन में भी आप इनकम सोर्स बनाने में कामयाब हो जाएँगे तो , आने वाले समय में आपकी आर्थिक स्थित काफी बेहतर स्तर पर होंगी !
शायद आपने भी ख़बर सुनी होगी कि भारत में कई शहरों से हिमालय दिखने लगा है.
पंक्षियों ने दोबारा शहरों की ओर रुख़ करना शुरू कर दिया है.
वेनिस के जलमार्ग साफ-सुथरे हो गए हैं.
चीन के आसमान से प्रदूषण की परतें कम हो गई हैं.
जंगली जानवर उन इलाकों में फिर से देखे जाने लगे हैं जहां वो वर्षों से नहीं दिखे थे.
कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर में हो रहे लॉक डाउन के बीच लोगों ने इन अप्रत्याशित बातों को दस्तावेजो में संजोना शुरू कर दिया है.
कई सारे बदलाव हुए हैं लेकिन सबसे बड़े बदलाव अब तक जलवायु पर ही देखने को मिले हैं.
जनवरी में लॉकडाउन की शुरूआत होने के बाद से लगभग सभी महाद्वीपों में प्रदूषण का स्तर काफी गिर गया है साथ ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी.
प्रकृति ख़ुश हैं और अच्छे संकेत आ रहे है
अंत में यही कहूगी की जिनका आर्थिक पक्ष मजबूत है उनका जीवन वैसा ही है परन्तु गरीब मज़दूर का जीवन नारकीय होता जा रहा है सरकार कर रही है मददत पर क्या सब तक पंहूच रही हैं यह प्रश्न चिन्ह है ?
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
किसी भी मनुष्य का जीवन स्तर मनुष्य की आय, रोजगार के स्तर के आधार पर निर्भर करता है। उच्च आकांक्षाएं, रईसी ठाठ- वाट या फिर मात्र आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति, काम और आराम की सुख- सुविधा, बच्चों की शिक्षा, शैक्षिक स्तर की गुणवत्ता, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता इत्यादि से जीवन स्तर की उच्च, मध्यम तथा निम्न स्थितियों का प्रकटीकरण होता है।
लॉक डाउन में सभी का जीवन स्तर प्रभावित हुआ है पर विशेष रूप से निम्न वर्ग- श्रमिक, दैनिक वेतन भोगी रोजगार छूट जाने के कारण दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं रोटी और आवास के भी लाले पड़ गए हैं।
ऐसे ही अच्छा भोजन, आरामदायक आवास, स्वच्छ वस्त्र, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन के लिए समुचित प्रबंध की स्थिति में जीने वाले उच्च वर्ग बाहर न निकल पाने के कारण मानसिक रूप से कहीं न कहीं कमी महसूस कर रहे हैं ।
देखा जाए तो समाज के सभी वर्गों का जीवनस्तर मूल रूप से उनके व्यवसाय राष्ट्रीय आय द्वारा ही निर्भर होता है। इन दिनों सभी की कार्यक्षमता ,स्वास्थ्य, कहीं अंशत:, तो कहीं पूर्णरूपेण प्रभावित हुआ है। इन दिनों प्रत्येक मनुष्य के जीवन की गुणवत्ता आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक एवम सांस्कृतिक रूप से डूबी हुई है।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन में लोगो का स्तर गिरता जा रहा है लेकिन अगर आत्मबल और थोड़े से बदलाव से हम इस संकट को कम कर सकते है । कल तक हर ओर चहल-पहल थी, रौनक थी और जीवन था, देखते ही देखते, वहां ताले लटक गए। मजबूर हैं लोग घरों में ही दुबके रहने को। बदल रहा है जीवन पल-पल।
चाहे लॉक डाउन का समय हो या कोई अन्य। अगर कामयाब होना है तो सबसे जरूरी है इच्छाशक्ति।
किसी काम को जब्जे से करने की इच्छा और उसमें सफल होने की चाहत। हमे लगता है लॉक डाउन एक मनः स्थिति है। मन पल-पल बदलता है। मानव मन का स्वभाव है कि कुछ समय तक जो छुट्टी अच्छी लगती है वही समय बीतने के साथ हमारे लिए घातक सिद्ध होने लगती है।
हर कोई मानसिक दवाब में काम कर रहा है। इस समय चौतरफा दवाब हर किसी पर है। कोशिश करें कि अपने परिवारजनों और सम्बन्धियो के साथ रोजाना बातचीत करें।
असली नाविक की पहचान तो तूफान में ही होती है। इसलिए सहयोग के लिए सदैव तत्पर रहें। एक-एक बूंद से ही सागर बनता है। तभी यह कहावत चरितार्थ होगा।
यह घबराने का समय नहीं यह मिल-जुल कर एक-दूसरे से कंधा से कंधा मिलाकर काम करने का समय है। अगर ऐसा करने में हमसब कामयाब हो गए, तो समझ लीजिए वे बाजी तो मार ही लेंगे साथ ही हर घर में खुशी होगी, हर घर में रोशनी होगी, हर घर में आनंद होगा। बिना परेशानी के कोरोना से पार पा लेंगे। माना कि आज चारों तरफ अंधेरा है पर कुछ दिनों बाद रोशनी तो आएगी ही। आज को कठोर नहीं किया तो पांच तत्वों से बने इस शरीर को आप खो देंगे जरूरत है ।
ताकि कल का सवेरा उगते हुए सूरज की छटी हुई अंधेरे की रोशनी में स्वागत कर सके और सभी के जीवन में रोशनी भर सके। अंत में मैं यही कहना चाहता हूं कि संयम रखें आज की स्थिति में हमारे यही कर्तव्य है अपने मन के मनोबल को ऊंचा रखें. हम सब तो ड्रामा के किरदार है बस जरूरत है कि परदा गिरने ना दे।
- राघव तिवारी
कानपुर - उत्तर प्रदेश
अवश्य लॉक डाउन में जीवन स्तर में बदलाव तो आया है!
जीवन स्तर के इस उतार-चढ़ाव को में दो तरह से कहना चाहूंगी जो आर्थिक स्थिति से सशक्त हैं जिनकी नौकरी है, बंधी इनकम आ रही है उनके लिए तो खास दिक्कत नहीं है केवल उन्हें समय का सदुपयोग कैसे किया जाए ,परिवार की खुशी ,एवं आगे के लिए प्लान बनाना यही होता है किंतु वही गरीब व्यक्ति इस लॉकडाउन में काम बंद होने से कल पेट की आग कैसे बुझेगी उसकी चिंता में रहता है !
दूसरे के आऋय से बंध जाता है !
प्रकृति समय-समय पर हमें बहुत कुछ सिखाती है !
इस महामारी में अपनी भूल सुधारने का एक मौका भी दे रही है !
लॉकडाउन में हमारे संस्कार, संवेदनाएं ,परिवारिक दूरियां ,भेदभाव की भावना ,अहंकार छोड़ दूसरों की मदद करना ,रिश्ते-नाते ,खान-पान में सुधार ,पर्यावरण का महत्व ,एवं ईश्वर की लीला को समझने लगे हैं इस कोरोना महामारी ने यह तो सिखा दिया है कि जीवन में जीना है तो एक दूसरे को समझें!
उनसे प्रेम करें!
जीवन का जो अनुभव कोरोना ने दिया है वह सभी के लिए बहुत बड़ा सबक है ! इस लोक डाउन में सभी ने मुश्किलों का स्वाद चखा है अतः एक तरह से इस सामाजिक प्राणी यानी इस मानव की मानवता जाग गई है ! सभी जरूरतमंदों की सहायता कर रहे हैं ,जीवदया की भावना, लोगों की एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना जागृत हुई है !
यह दूसरा पहलू है जिससे लोग डाउन से मानव में समानता और समझदारी आने की बहुत बड़ी सीख है !
अंत में कहूंगी लॉकडाउन में गरीब जनता का जीवन स्तर बद से बदतर तो हुआ है किंतु साथ ही साथ सभी को इस महामारी से इतना तो सबक मिल गया है कि विज्ञान की दौड़ में प्रकृति से खिलवाड़ न करें !
बाकी फिलहाल तो हम सभी लॉकडाउन के नियमों का पालन निष्ठा से करें!
कोरोना को हराना है!
" जान है तो जहान है "
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
लाॅकडाउन में यदि लोगों के जीवन स्तर की स्थिति पर विचार किया जाये तो यही दृष्टिगत होता है कि लोग इस समय जीवन के वास्तविक स्तर पर हैं।
देखा जाता है कि मध्यम वर्ग के जीवनयापन के स्तर में सर्वाधिक विषमताएं होती हैं। लाॅकडाउन की इस अवधि में सबसे अधिक मध्यमवर्गीय परिवार अपने जीवन स्तर की स्थिरता पर हैं।
मनुष्य के जीवन में जो अनर्गल उपभोग, अनावश्यक विलासिता और अवांछनीय प्रदर्शन का स्तर होता है, लाॅकडाउन में वह मृतप्राय हो गया है।
इसके विपरीत लोग धैर्य, संयम, जीवनयापन के न्यूनतम आवश्यक साधनों पर निर्भरता और परिस्थितियों के अनुसार जीवनयापन कर रहे हैं साथ ही उसे स्वीकार भी कर रहे हैं।
अत: सच्चाई यही है कि इस समय सभी लोग एकसमान जीवन स्तर पर हैं। इसलिए मेरे विचार में लाॅकडाउन में लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आई है, कहना उचित नहीं है बल्कि वास्तविक जीवन-स्तर के दर्शन हो रहे हैं।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
वर्तमान में फैली इस महामारी से लाकडाउन 3 का आ जाना एक चुनौती है सभी के लिए क्योंकि जीवन के हर प्रकार के स्तर पर प्रशन चिन्ह लग गया है । आर्थिक, सामाजिक शारिरिक, मानसिक और राजनैतिक भी क्योंकि एक सीमा तक ही प्रत्येक प्राणी घर बैठे कर जीवन यापन कर सकता है। और वहीं दूसरी और उन लोगों की बात करें जो घर से दूर रह रहे हैं। रोजगार भी नहीं रहा उनके जीवन के स्तर का हर पहलू धुंधला सा गया है । इतने पर भी कुछ गैरजिम्मेदार लोग लाकडाउन की मज़ाक बना रहे हैं अतः इस लाकडाउन 3 को सफल करना ही होगा और पूरे देश की जनता को जागरूक होना होगा देश की अर्थव्यवस्था पर जो विपत्ति आई है अब अगला लाकडाउन उसके लिए भी खतरा ही लाएगा अतः घर रह कर सहयोग, मदद,और नैतिकता जैसी खूबसूरत गुणों को अपनाना होगा अपने जीवन स्तर को फिर पटरी पर लाना होगा।
यह तो रहा हमारे जीवन स्तर के वो पहलू जो रोज़ मर्रा की जिंदगी के लिए आवश्यक है और यदि उस पहलू की बात करूं जो इन पहलू को संवारने और आत्मा से सुन्दर बनाने के काम आता है और वो है आध्यात्मिक ।
तो यह स्तर मानव के जीवन का निखर रहा है किस तरह घर में रहने से इच्छाएं सिमट सी गई ।
परिवार के साथ समय बिताने से पारिवारिक सम्बंध सुन्दर, सुदृढ़ हो रहें हैं । मानव सुविधाओं को जुटाने में बिना रूके भाग रहा था और आश्चर्य की बात तो यह है कि उन्हें भोगने हेतू उसी के पास समय नहीं था आज वही मानव को वक्त मिला है । सोचने, समझने का की -
"संतोषी मन सदा सुख पावे
जीवन स्तर में उन्नति लावे"
पर यह भी सही है कि आध्यात्मिक चिंतन तभी रंग लाएगा जब जीवन सीमित जरूरतें पूरी होगी जैसे रोटी, कपड़ा और मकान।
अतः मेरे विचार में लाकडाउन से जीवन जीने के स्तर में दोनों प्रभाव पड़े हैं कुछ नाकारात्मक तो कुछ साकारात्मक पर हमें हमारे विचार,कर्म, साकारात्मक ही रखने है।
इरादा अगर है दृढ़ तो जीत जाएंगे।
इस कोरोनावायरस को मार गिराएंगे।
जीवन शैली होगी फिर सामान्य।
घर रह कर अपने कर्त्तव्य जो
निभायेंगे।
- ज्योति वधवा"रंजना'
बीकानेर - राजस्थान
लाफ डाउन के चलते लोगों का जीवन स्तर अभी तक गिरा नहीं है लंबा समय तक स्थिति ऐसे ही बनी रहेगी तो मजदूर एवं सामान्य लोगों का जीवन स्तर में कुछ बदलाव आ सकता है क्योंकि हर व्यक्ति को जीने के लिए भोजन चाहिए और भोजन उत्पादन से होता है और उत्पादन किसान और मजदूर करते हैं अगर भोजन करते रहे और श्रम से उत्पादन नहीं होगा तो जरूर कुछ हद तक लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आ सकती है अभी वर्तमान में देख रहे हैं सभी लाभ डाउन के चलते घर पर रह रहे हैं अपने संबंधों के साथ रह कर अपना व्यावहारिक संबंध अच्छा से निभा रहे हैं व्यवहारिक संबंधों में जीवन स्तर की गिरावट नहीं बल्कि और अपने परिवारों और अपने संबंधों के प्रति भाव बढ़ा है समाज में बहुत कम अप्रिय घटनाएं देखने को मिल रहा है और पर्यावरण भी पूर्व की अपेक्षा अच्छा हो रहा है सभी तरफ जो अनियंत्रित जिंदगी मानव जी रहे थे उसमें नियंत्रित जिंदगी जीते हुए अनैतिक जीवन स्तर में बदलाव आने लगा है ऐसा लग रहा है कि मानव दुनिया थम सी गई है ज्यादा अत्याचार समाज और प्रकृति में देखने को नहीं मिल रहा है सभी नियंत्रण होकर जीने का प्रयास कर रहे है किस दृष्टि से देखा जाए तो लोगों का जीवन स्तर फिलहाल अभी पूरा नहीं है बल्कि जीवन स्तर में सुधार हुआ है समाज और पर्यावरण में भी सुधार हुआ है मनुष्य सोचने के लिए मजबूर हो रहे हैं और चिंतन में लगने लगे हैं की आने वाली पिढ्ढी को कैसे सलामत रखा जाय।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लाकडाउन में जीवन का स्तर संवर गया है । इसके पूर्व इंसान की जिंदगी मैकेनिकल बनी हुई थी। आधुनिकता और भौतिकवादिता के पंक में उलझते उलझते स्वयं के अस्तित्व , पारिवारिक जिम्मेदारियों को आधुनिक बनाने में ही परेशान रहने लगा था।
लाकडाउन के समय में ऐसा लगा कि हम सभी जमीनी हकीकत से जुड़ गए हैं
परिवार के साथ समय बिताना
कम खर्च में घर चलाना
सभी काम अपने हाथों से करना
बाहर का खाना नहीं खाना
धैर्यवान , सहनशील बनना जैसे आत्मीय गुणों में वृद्धि हो गयी है
बच्चों के खान-पान में बदलाव आ गया है बच्चे घरेलू खाना पसंद करने लगे।
लेकिन परेशानी भी होने लगी है
शहर में छाया सन्नाटा है काम धंधे बन्द है आर्थिक तंगी बढ़ गई है
मजदूर वर्ग की विवशता यह है कि वे न घर के है ना घाट के।
गांव से शहर में पलायन किये थे पैसा कमाने के लिए और इस लाक डाउन में न नौकरी है न पैसा है न अपना गांव है।
मध्यम वर्ग के पास न नौकरी है न बी पी एल कार्डधारक है । इसलिए सहायता के अधिकार से भी वंचित हैं ।
तरह-तरह के उलझनों में सब उलझते जा रहें हैं।
हमारे चिकित्सीय सैनिक पुलिस कर्मियों ने इस लाक डाउन में अपने परिवार से दूर हो गये है।
इस संघर्ष काल में उपलब्धि के साथ साथ अनुपलब्धता भी है
बहुत कुछ खोया है और बहुत कुछ पाया है
इतना तो स्पष्ट है कि आधुनिकता और भौतिकवादिता के जाल से बाहर निकलने का सुनहरा मौका मिला है ।
हकीकत और सच्चाई से अवगत कराया गया है।
इसलिए सोशल लाइफ में सुधार हुआ है।
युवा पीढ़ी और बच्चों को जीवन की सच्चाई का अनुभव हो रहा है वे सिर्फ पुस्तकों में नहीं पढ़ेंगे।
इसलिए यह बदलाव जिंदगी के लिए बहुत ही लाभदायक है
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जिन लोगों का जीवन स्तर पहले से ही गिरा हुआ हो, लाॅकडाउन उनका क्या जीवन स्तर गिराए गा? विश्व जानता है कि भारत भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को पार कर चुका है। सर्वविदित यह भी है कि राष्ट्र के सर्वोच्च लिखित संविधान के चारों तथाकथित सशक्त स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता से जुड़े लोगों का जीवन स्तर इतना गिर चुका है कि वेश्यालयों की वेश्याओं का जीवन स्तर भी कहीं ऊंचा है।
चूंकि वेश्याएं खुल्लम-खुल्ला वह धंधा करती हैं। जहां उच्चस्तरीय पदाधिकारी एवं संभ्रांत सभ्यता के पुजारी जन्मजात नंगे होते हैं। चूंकि उपरोक्त दुष्ट लोग सर्वप्रथम भ्रष्टाचार के माध्यम से बीमार, गरीब, दिव्यांग एवं विवश राष्ट्रभक्त नागरिकों का रक्त चूसते हैं और उसके उपरांत जीवित मांस नोचने की अभिलाषा लिए वेश्यालयों में जाते हैं। जहां समाज द्वारा कलंकित संज्ञा देते हुए ठुकराई व दुत्कारी गई विवश सभ्य वेश्याएं जात-पात से ऊपर उठकर धन के बदले अपना सब कुछ न्यौछावर करते हुए अपने ग्राहकों को परम सुख सहित सम्पूर्ण संतुष्ट करती हैं।
जबकि उल्लेखनीय है कि विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं पत्रकारिता से जुड़े लोग धन लेकर भी अपने ग्राहकों को संतुष्ट नहीं करते। अर्थात चारों सशक्त स्तम्भों से जुड़े लोग राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों से संबंधित संविधान द्वारा दी गई सौगंध के प्रति न तो धर्म निभाते हैं और ना ही धर्मग्रंथों के अनुसार कर्म करते हैं।
अतः जिन लोगों के जीवन का संवैधानिक एवं धार्मिक स्तर पहले से ही गिर चुका हो, लाॅकडाउन की क्या औकात कि उन लोगों के जीवन स्तर को गिरा सके?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हां आजकल लोगों का रहने का और उनका जीवन स्तर बहुत बदल गया है लोग बहुत स्वार्थी हो गए पहले लोग निस्वार्थ भाव से काम करते थे पर लोग अब अपने फायदे के लिए ही काम करते हैं बहुत कम लोग दूसरों का भला सोचने वाले रहते हैं आजकल लोग यूज एंड थ्रो टाइप के हो गए हैं इसीलिए उनकी सोच के साथ-साथ उनके स्तर बहुत नीचे गिर गया है हर जगह लालच बार किया है आजकल दान के नाम पर भी लोग अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं बहुत कम व्यक्ति निस्वार्थ भाव रखते हैं जो लालची लोग होते हैं वह किसी से नजर से नजर मिला कर बात नहीं कर पाते यह सब बातें को जानते हैं फिर भी लालच के दलदल में फंसे चले जाते हैं। लोगों को अपना दृष्टिकोण स्पष्ट रखना चाहिए बच्चों के अंदर संस्कार देने चाहिए सबको एक होकर और समानता का भाव सीखना चाहिए क्योंकि मनुष्य जब तक जीता है तब तक संघर्ष करता है
जो मिला है वह मेरे पास जो है वह सबसे अच्छा है और मन में अपने संतुष्टि रखना चाहिए जिस दिन उसके अंदर संतुष्ट का भाव आ जाएगा उस दिन उसका और देश का सबका विकास हो जाएगा।
अंदर कुछ और बाहर कुछ आजकल मनुष्य में छद्म वेश धारण कर रखा है यह स्पष्ट होना चाहिए हम जैसे ही अंदर हैं वैसे ही हमें बाहर भी दिखना चाहिए बनावटी हंसी या बनावटी दिखावा पर हमसे दूर रहना चाहिए से अब दूर रहोगे तो बहुत खुश रहोगे।
संघर्ष करना और खुश रहना हमें चीजों से भी सीखना चाहिए जो मिलजुल कर कार्य करती हैं एक अपनी एक से अधिक वजन का दाना उठाकर ऊपर की ओर चलती हैं और उतरती हैं।
अपने जीवन स्तर को अपने मन से ऊपर उठाना चाहिए इसके लिए हमें अच्छी किताबें पढ़नी चाहिए अच्छे महापुरुषों की जीवनी पर नहीं चाहिए अच्छे लेख पढ़ने चाहिए इसी से हमारा सर्वांगीण विकास हो सकेगा और हम अच्छे इंसान अच्छी सोच के साथ आगे बढ़ सकेंगे किताबों से अच्छा गुरु कोई नहीं होता और सदा खुश रहना चाहिए खूब मुस्कुराना चाहिए सदा खुश रहने वाला व्यक्ति ही आशावादी रहता है आशावादी कभी भी निराशा की ओर नहीं जाता जीवन में तो उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं।
लॉक डाउन के चलते लोगों को परेशानियां तो हो रही। इस घड़ी में एक दूसरे की मदद और सहयोग करना चाहिए इसमें सबसे ज्यादा तो मुसीबत गरीब पर और मध्यमवर्गीय परिवार की होती है ज्यादातर लोगों की नौकरियां भी चली गई है सब घर में हैं उस परेशानी की हालत में सबको हमें मेंटली सहयोग करना चाहिए । और हम अनाज या जो भी अपने समर्थ के मुताबिक मदद कर सकते हैं इस संकट की घड़ी में हमें मदद करनी चाहिए।
क्योंकि हमें बचपन से यही सिखाया गया है मानवता ही परम धर्म है सच्ची सेवा ही करनी चाहिए।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
कोरोना वायरस के चलते लोकडाउन अब दिन प्रतिदिन बढ़ने पर है । ऐसा में लोगो की जीविका पर संकट गहराने लगा है । इसमें कोई भी संदेह नही है कि लोगो का जीवन स्तर न केवल गिरने लगा है बल्कि उस कगार पर पहुंचने को आमदा है , जहां से फिर उठ पाना बेहद कठिन है । इस संकट से उभरकर उठने वाले अधिकतर लोग दोनो पैर होने के बावजूद भी समाज में बैशाखी के सहारे ही नजर आएंगे । जो न केवल उन लोगो के लिए बल्कि देश की गिरती जीडीपी दर के कारण सरकार के लिए अतिचिन्ता का विषय है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस पूरी दुनिया मे तबाही मचा रखा है। भारत मे भी हालत बहुत ही भयावह स्थिति में पहुँच चुका है। देश में 1178 कोरोना मरीजों की मौत हो चुकी है। 33 हजार 639 लोग संक्रमित हैं, जबकि 25 हजार मरीजों का अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इस बीच 1200 मरीज ठीक भी हुए हैं। देश मे 10 करोड़ प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं। महाराष्ट्र, जुगरात, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, यूपी,एमपी, बिहार केरल जैसे राज्यों में कोरोना मरीज़ों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए केन्द्र सरकार ने देशभर में लॉकडाउन का तीसरा चरण की घोषणा कर दी है जो 17 मई तक रहेगा। देश की ख्याति प्राप्त संस्था जैमिनी अकादमी की ओर से साहित्यकारों से चर्चा में सवाल पूछा गया है कि लॉकडाउन में क्या लोगों का जीवन स्तर गिर रहा है। इस चर्चा में बहुत सारी बातें हैं जिसका जिक्र किया जा सकता है। सबसे अहम बात यह है कि जान है तो जहान है। कोरोना ऐसी महामारी है कि इसकी न तो दवा है और न ही उचित इलाज है। पूरा विश्व इस वैश्विक महामारी से लड़ रहा है। इसके उपचार के लिए वैज्ञानिक दवा की खोज कर रहे हैं। जान बचाने के लिए लोगों को घरों पर रहना पड़ रहा है। वर्षो बाद ऐसा समय आया है कि लोग सब काम छोड़कर अपने परिवार व बच्चों के साथ रह रहे है। घर का देशी शुद्ध भोजन का आनंद उठा रहे है। बच्चों के साथ खेलकूद कर आनंद ले रहे हैं। पर इस बीच यह भी समस्या आ रही है कि काम बंद है। रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न होने लगी है। बेरोजगारी बढ़ गई है। देशभर में करोड़ों मजदूर घर पर बैठे है क्योंकि उनके पास काम नहीं है। देश मे विकास की गति थम सी गई है। इन परिस्थितियों में लोगों का जीवन स्तर का गिरना स्वाभाविक है। भले ही लॉकडाउन में लोगों के जीवन स्तर गिर रहा है। पर कोरोना जे जंग जितना अभी सबसे बड़ी चुनौती देशवासियों के लिए है। जीवन स्तर को तो जान बचा तो बाद में भी सुधार सकते हैं
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
यह सही है की कुछ हद तक यह लॉक डाउन लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित कर रहा है, क्योंकि जब सामान्य जीवन से अलग जीवन में कुछ बाध्यता आ जाती है,तो किसी भी व्यक्ति का स्वाभाविक रूप से व्याकुल हो जाना एक सामान्य अवस्था है। मैं यह कहना चाहता हूं की लॉक डाउन में आम जनजीवन प्रभावित तो हुआ है मगर जहां तक जीवन स्तर गिरने की बात है मैं इससे सहमत नहीं हूं। जीवन स्तर केवल तभी गिरता है जब किसी व्यक्ति के समक्ष आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न होती है। आर्थिक तौर पर अभी हमारा देश संकट की स्थिति में नहीं है, और ना ही खाद्यान्न ना अन्य जीवन उपयोगी वस्तुओं की कोई अल्पता है। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में धन उपार्जन करता है और उसके कुछ भाग मुश्किल वक्त के लिए सहेज कर रखता है, ताकि वर्तमान में आए संकटों से सामना करने के लिए वह अपने आपको तैयार रख सके। विभिन्न सोशल मीडिया के माध्यमों से मैं देख रहा हूं कि लोग अपने अपने घरों में तरह-तरह के व्यंजन बना रहे हैं, जो स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है, कि हम शारीरिक रूप से बंदिश में अवश्य हैं, लेकिन किसी भी प्रकार से जीवन का गिरता स्तर हमारी समस्या नहीं है। बहुत जल्द ही हम सब मिलकर इस संकट के दौर से बाहर आ जाएंगे, भारत को पुनः विश्व पटल पर एक शक्ति के रूप में स्थापित कर सकेंगे।
आप सभी से अनुरोध है कृपया शासन प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हुए इस महामारी से लड़ने में राष्ट्र का सहयोग करें।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तरप्रदेश
लॉक डाउन में लोगों का जीवन गिर नहीं रहा बल्कि सँवर रहा है। मुश्किल दिनों में जीवन में कैसे सामंजस्य बनाकर संघर्ष को कम किया जा सकता है। लोगों को जीने का सही तरीका अब आ गया है। " संतोषी सदा सुखी " यह सूक्ति जो बचपन में कभी पढ़ाई और सिखाई गई थी , आज चरितार्थ हो गई है। अनावश्यक खर्चे, अपनों की उपेक्षा, अदूरदर्शिता,बेपरवाही जैसी नकारात्मक आदतों की नुकसानदेही को पहचान गया है। इसके साथ ही प्रेम,सद्भाव और सौहार्द्र से पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के निर्धारण की सामर्थ्य भी आ गई है। हरेक भारतीयों के दिलों दिमाग में खुद के,परिवार के,समाज के और राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी और जबाबदारी की चेतना आयी है, वह इस संघर्ष - काल की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। कहा गया है , मुसीबतें हमें समझदार और मजबूत बना देती हैं। ऐसा ही हो रहा है। हम इस आपदा- संकट में तपकर स्वर्ण की तरह खरे हो रहे हैं। निश्चित ही यह बदलाव हमारे और राष्ट्र के सुख और समृद्धि के लिए रामबाण साबित होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जी हाँ सामाजिक , शैक्षिक , मनोवैज्ञानिक , संवेगात्मक औऱ आर्थिक स्तर पर विश्व और हमारे देश में कोरोनो के वायरस से लोगों के हालात , जीवन स्तर को गिरा रहा है ।
कोरोना के कहर से अमेरिका में ट्रकों में मरे हुए लोगों की एक के ऊपर लाशें पटी पड़ी हैं । कब्रिस्तान में ताबूत को रखने की जगह नहीं है । लोगों को तब पता लगा इन लाशों से बदबू चारों तरफ फैलने लगी । मानवता आँखों के सामने मर रही है ।जब वे जिंदा थे । समाज में उनकी पहचान , नाम था । आज वे धूल में मिल गए ।
अफ्रीका के भूख से बेहाल लोग खाने के पैकेट लेने के लिए 4 किलोमीटर की लंबी पंक्ती में खड़े अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं ।
भारत में कोरोना से 1 हजार 2सो अठ्ठारह की मौत हो गयी ।।कोरोना के 26, 167 केस एक्टिव हैं ।
प्रवासी मजदूरों को के लिए विशेष ट्रेन सरकार ने चलायी है । वहीं दूसरी ओर अपने अजीजों से मिलने मजदूरों के काम नहीं मिलने से सीमेंट मिक्सर में छिपकर मजदूर लोग इंदौर से अपने गाँव में जा रहे थे ।पुलिस की चैकिंग से पकड़े गए ।
इससे पहले जब सरकार ने लाकडाउन में ट्रेन बन्द थी तब ये प्रवासी मजदूरों ने साइकिल खरीद के सड़क मार्ग से अपने घर पैरों में छाले लिए , धूप , गर्मी , प्यास , भूख को सहते हुए अपने घर में पहुँचे । कितन लोग े पैदल ही
घर की ओर रवाना हुए । कितनों की जाने भी चली गयी ।
सरकारी व्यवस्था ने बसों का इंतजाम कागजों पर ही कराया । जबकि प्राइवेट बसे छात्रों को दुगने रुपयों पर
एक राज्य से दूसरे राज्य में उनके घरों में लायी ।
जमात के लोग कोरोना वॉरियर्स डॉक्टर , पुलिस पर थूक फ़ेंक रहे हैं । पत्थर से मार रहे हैं ।
पालघर में दो साधुओं की मौत में नृशंस हत्या मानवता को रुला रही है ।
दिल्ली मरकज के मौलाना साद का काला खाजना और उसकी भड़काऊ वेबसाइट भारत को बदनाम करने में लगे हैं । भारत में रह के जिस थाली में खा रहे हैं , उसी थाली में छेद कर रहे हैं ।
चीन ने कोरोना का वायरस बनाके जिंदगियों से किया खिलवाड़ है ।
स्कूल कॉलिज बंद हो जाने से नर्सरी से लेकर कॉलिज , विश्वविद्यालय की पढ़ाई बंद हो गयी । ऑन लाइन छात्र पढ़ नहीं पा रहे हैं । घण्टो तक बैठ के नेट से मानसिक शारीरिक कमजोरी का सामना करना पड़ रहा है ।
लाकडाउन से देश में लगी पाबंदियों से अर्थ व्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है । भारतीय कोरोबार , उद्योग जगत के उत्पादन में गिरावट आयी है । लोगों की नोकरी नहीं रहेंगी । अमीरों की संपत्ति घट गयी है ।
दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी । लेकिन
चीन के उद्योगपतियों की संपत्ति बढ़ी है ।
कोरोना टैक्स। के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से हर भारतीय जेब कट गई है । दुनिया की ढाई करोड़ नोकरी खत्म होने से जीवन का स्तर तो गिर ही जाएगा । दौलत की चमक से ही इंसान का जीवन स्तर बढ़ता है ।
कोरोना के लाकडाउन ने दुनिया पर ऐसी गाज गिरायी कि शव को कंधे देना भी मौत को बुलावाा देना है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
जब भी जीवन शैली में कोई परिवर्तन आता है तो अवश्य ही उतार- चढ़ाव का सामना पीड़ित व्यक्तियों को करना पड़ता है । जिन लोगों को मासिक वेतन मिल रहा है व अपनी नौकरी सुरक्षित महसूस होती है वे चैन से आत्म मंथन करते हुए परिवार के साथ वक्त बिता रहे हैं । लॉक डाउन को वे लोग अपनी हॉवी पूरी करके उपयोगी बना रहे हैं ।
दूसरी ओर जिनके सामने रहने और खाने की कोई व्यवस्था नहीं है तथा वे लोग शासन या समाज सेवी संस्थाओं की मदद पर आश्रित हैं । उनको ये समय घातक लग रहा है । एक तो रोजी रोटी चली गयी साथ ही साथ अब वे किस तरह इस संकट का सामना करें ये भी नहीं सूझ रहा है ।
ऐसे समय में अवश्य ही लोगों का जीवन स्तर गिर रहा है । अधिकांश कार्य पैसों से ही संभव होते हैं । इसकी कमी न सिर्फ मानसिक , शारीरिक व भौतिक रूप से तोड़ती है वरन जीने की उम्मीद पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देती है ।
इस महामारी से निपटने हेतु लॉक डाउन ही एकमात्र उपाय है अतः हम सभी को एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए जिससे लोगों का जीवन स्तर एक समान बना रहे ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
हमारा समाज उच्च,मध्यम एवं निम्न आय वर्गों में बंटा हुआ है ।जहाँ आम दिनों में ही यह दिखने में आता है कि किस तरह से निम्न आय वर्ग या श्रमिक वर्ग अपने जीवन यापन की आवश्यकताओं के लिए दिन रात मेहनत करके प्राप्त करता है ,तो आज का समय तो उनके लिए विषम परिस्थितयों से घिरा हुआ है ।आर्थिक स्थिति के रूप में देखें तो वाकई इनका जीवन स्तर गिर गया है ,कई वर्षों से जिस शहर को अपनी जिंदगी समझ अपना गुजारा कर रहे थे ,अब वहीं से उनको पलायन करना पड़ रहा है ।वहीँ दूसरी और जो अपनी नौकरी ,उद्योग या व्यवसाय आदि के आमदनी से सुदृढ़ है वो अपना जीवन अपने परिवार के साथ आनंद पूर्वक बिता रहा है ।वहीं जीवन स्तर की चर्चा करते हुए अगर आज सामाजिक मूल्यों की बात करें तो हर तरफ मदद को हाथ बढ़े है ।सभी एक दूसरे के सहयोगी बने हुए हैं ।और इस विषम परिस्थिति से निकलने के लिए एकजुट होकर देश के साथ खड़े है ।
मेरे विचार से जब हम एक दूसरे का सहयोग करने का मानस रखेंगे तो आई हुई विषम संकट से एक न एक दिन बाहर आ ही जायेंगे ।
- ज्योति वाजपेयी
अजमेर - राजस्थान
लॉक डाउन में क्या लोगों का जीवन स्तर गिर रहा है ? इस प्रश्न का उत्तर व्यक्ति के दृष्टिकोण पर आधारित है आर्थिक स्तर पर तो निश्चित तौर पर गिरावट आई है और ये गिरावट तो विश्व स्तरीय है इसलिए ये बात आंकने योग्य नही है इसके अलावा मानसिक स्तर पर गिरावट का कोई विशेष मापदंड है नही वैसे भी ये लॉक डाउन से बहुत प्रभावित नहीं है क्योंकि मानसिक तनाव पहले भी था और अब भी है रही सोच के स्तर में गिरावट की बात तो इस समय सभी लोग लगभग अपने परिवार के साथ रह रहे हैं तो ऐसे में मानसिक विकृतियों पर विराम लगना स्वाभाविक है । अब रही बात सामाजिक स्तर पर गिरावट की तो वर्तमान में परस्पर दूरी होने के कारण मिलने की लालसा और प्रेम बढ़ेगा कहावत है तो *‘दूर के ढोल सुहाने लगते हैं ‘* निश्चित तौर पर लॉक डाउन के बाद लोगों को मिलने में आनन्द आएगा । अब रही धार्मिक स्तर की बात तो लोगों में चिंता बढ़ी है तो चिंतन करने का समय भी मिला है लोग घर में रहकर रामायण, महाभारत , संतों के प्रवचनों को देख सुन रहे हैं पौराणिक कथाओं के अनुसार जीवन स्तर को संवार रहे हैं इसलिए धार्मिक स्तर पर गिरावट नही कह सकते हैं । ये तो हुआ सकारात्मक विचारों वाले लोगों का दृष्टिकोण । और नकारात्मक दृष्टिकोण वाले लोग ना लॉक डाउन में सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं ना पहले सकारात्मक सोचते थे और ना बाद में कभी सोचेंगे । न ही उनके जीवन स्तर के बारे में चिंता करने की ज़रूरत है ।
हाँ लॉक डाउन में परेशानी ज़रूर हुई है परन्तु इसमें लोगों के जीवन स्तर को आंका जाए तो जिनके पास स्तर की चिंता थी उन्हें गिरावट नही बल्कि कुछ ठहराव अवश्य महसूस होगा और जो चिंतित ही नहीं थे उन्हें गिरावट से कोई लेना देना नहीं । इसलिए यह विषय निजी दृष्टिकोण पर आधारित है । मानव जीवन के स्तर को समस्त विश्व व प्रकृति के स्तर पर देखना चाहिए वर्तमान में हवा पानी ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण हुआ है जिससे लोगों के जीवन स्तर में गिरावट को न देखें ये पुनः उठाया जा सकता है पर्यावरण के स्तर को उठाने के लिए थोड़ी गिरावट भी दर्ज हो तो चिंता न करें । कुछ समय बाद सब ठीक हो जाएगा ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
ला क डाउन में लोगों का जीवन स्तर मापना बिना किसी मापदंड के तय करना असंभव सा है । क्योंकि निम्न वर्गीय परिवार का जीवन स्तर का क्या गिरना? निम्न वर्गीय परिवार के लोग सब्जी और फल तथा मनरेगा में कार्य करके परिवार के सदस्यों का पालन पोषण कर रहे हैं उच्च वर्गीय लोगों के जीवन स्तर मैं भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा साफ प्रतीत होती है वे जमा क्या हुआ धन खर्च कर रहे हैं मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों का जीवन अपने परिवार का भरण पोषण मैं बीत जाता है।मध्यम वर्गीय परिवार इन दोनों वर्गों के लोगों के बीच में आदि काल से पिसता चला आ रहा है सरकार की ओर से भी निम्न वर्गीय लोगों को सभी सुविधाएं मिलती है।
तथा उच्च वर्गीय लोगों को ऊपर से ऋण लोन और भ्रष्टाचार करने की छूट जीवन स्तर में दिखावे का रंग होता है।
परंतु जो समझदार लोग हैं उन्हें आज अमेरिका की स्थिति -मरने के बाद -आज का माहौल -क्या साथ लाए थे ? क्या ले जाओगे? पर विचार करें ?
तो उनका जीवन स्तर उच्च कोटि का होने जा रहा है।
को रो ना के अदृश्य -वार से ला क- डाउन में भले ही लोगों का रोजगार खत्म है
खामोशी है सन्नाटा है
एक बड़ा सा ताला पूरी दुनिया पर लग गया है।
परंतु प्रकृति हमसे जब कुछ लेती है तो समझना चाहिए के बहुत बड़ी चीज हमें मिलने वाली होती है ।
लाक डाउन में लोगों का जीवन स्तर सचमुच उठ रहा है। मनोबल बढ़ रहा है!
जान है - जहान है।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
वर्तमान में भौतिकवाद के चलते जीवन स्तर का मापदंड सुख सुविधा ,पद प्रतिष्ठा भोगविलास के साधनों पर अवलम्बित हो गया है l चाहें इन व्यक्तियों ने अपने ज़मीर को बेचकर येन केन प्रकारेण सुख सुविधा जुटाई हो l इनमें किसी प्रकार की कमी होने पर हमारा उन्मादी मन विचलित और बेचैन हो उठता है और लॉक डाऊन जो आमजन को बचाने के लिए है उसे "बंधन "मानकर चल रहा है और अपनी सुविधाओं को जीवन स्तर के रूप में मानकर चल रहे हैं तो निश्चित रूपसे लॉक डाउन में हमारा जीवन स्तर गिर रहा है क्योंकि हम अति भोगवादिता के पीछे अंधाधुंध दौड़ रहे हैं l
परम्परा से भारतवासी धार्मिक मनोवृति के हैं ,या यों कहे कि हमारा देश भारत धर्म और अध्यात्म की तपोभूमि है l आज कोरोना संकट काल में मानव जीने की कामना कर रहा है न कि स्तरीय जीवन जीने की l जीवन स्तर मानव मानव में विभेद करता है l इसी आधार पर मानव उच्च ,मध्यम ,निम्न वर्गो में विभाजित कर दिया है लिए उसी अनुरूप उनकी आकांक्षाएं और जीवन स्तर होता है l
उच्च स्तरीय जीवन जीने वाले व्यक्ति संवेदना शून्य होकर लॉक डाउन को बंधन मानकर छटपटा रहे हैं l वे लॉक डाउन में जीवन स्तर को गिरता देख रहे हैं -
तमन्ना दर्द -दिल की हो ,तो कर खिदमत फकीरे
नहीं मिलता ये गोहर ,बादशाहों के ख़जीने में l
गोहर =मोती ख़जीने =खज़ाना
उपर्युक्त पंक्तियों के उपासक इस त्रासदी में जीवन स्तर और भोगवादी प्रवृतियों पर अंकुश लगाकर लोक कल्याण की चिंता करतेहै l अगर हम बुरे वक्त को स्वीकार कर लें ,तो वह बुरा वक्त नहीं होता l सारा खेल स्वीकार्यता का है ,जिस दौर से हम गुजर रहे हैं उस पर हमारा कोई बस नहीं l इसलिए जीवन स्तर का परवाह न करते हुए "संयम "में रहना होगा l
अधिकांश लोगों की जीवन के प्रति सोच बढ़ती है l भोजन ,पानी ,घर और स्वास्थ्य ही लॉक डाउन में जीवन स्तर के प्रमुख घटक हैं l इसके अलावा जो भी मिलता है उसे कृतज्ञता के साथ सिर झुकाकर जीवन स्तर का पोषण समझे l
आज हम भय और शासन के प्रभाव में जीवन जी रहे हैं l
एक बहुत बड़ा वर्ग जीवन की अनिश्चितता को देख कर अध्यात्म की तरफ आमुख हुआ है l जीवन शैलीमें ईश्वर के प्रति आस्था प्रगाढ़ हुई है तो दूसरी तरफ मानव मात्र में आपसी विश्वास ,सोहार्द ,स्नेह ,संयम और सामाजिकता का अभाव जीवन शैली के स्तरीय अंग बन गये हैं l मानव मानव से डर रहा है l वर्तमान समय में जीवन स्तर की मांग है -
चैन से जीने के लिए चार रोटी और दो कपड़े काफी हैं ,
पर बेचैनी से जीने के लिए ,
चार मोटर कार ,दो बंगले और तीन फ्लेट भी कम है l
चलते चलते -मानव जीवन का कटु सत्य
चंद रिश्तों के खिलौने हैं
हम ,जो खेलते हैं
वरना सब जानते हैं
कौन यहाँ "किसका "है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
लॉक डाउन में आम इंसान का जीवन स्तर गिर गया हैं।आर्थिक, मानसिक , शरीरिक रूप से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रहा है ।बच्चों का भविष्य खतरा में दिख रहा है। गरीब को सरकार की तरफ से कुछ मदद भी मिल जा रहा है। ये भी सच है कि ये मदद (कम )नाकाफी हैं। मध्यम वर्गीय परिवारों की अवस्था खराब है। इनके मकान किराए पर बच्चे पढ़ने वाले हैं। महीना का खर्चा जैसे -तैसे पूरा होता था, इनके लिए सरकार भी कुछ नहीं कर रही। लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। जो नया कोई काम -धंधा कर्ज़ लेकर शुरुआत की है उनका तो जिन दुस्वार हो गया है। जीवन असत -व्यस्त हो गया है। देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही खराब था, अब और ज्यादा ही खराब हो गया हैं। कितने लोगों की नौकरी खत्म हो गई ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी उठाना कठिन हो रहा है। कुछ लोग तो आत्महत्या जैसे कदम भी उठा ले रहे हैं।
लॉक डाउन से कुछ फायदा भी हुआ है लोग ऐशो आराम के लिए भाग दौड़ की जिंदगी जी रहे थे उनको थोड़े दिन के लिए परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल गया है। प्रदूषण का स्तर कम हो गया है जिससे नदी की जल साफ दिख रहा है। आकाश नीला दिख रहा है। लॉक डाउन में कुछ अच्छा हुआ पर ज्यादा बुरा हुआ है।
- प्रेमलता सिंह
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन में गैरसरकारी लोगों की आय में कमी अवश्य आई है । जिससे लोगों का जीवन स्तर गिरना आवश्यक है । फिर भी सरकार ने बहुत कुछ किया है । जिससे जनता को काफी राहत मिली है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
अंकिता सिन्हा झारखंड की लेखनी सराहनीय है
ReplyDeleteअच्छी चर्चा ---
ReplyDelete