सरकार ने लॉकडाउन ढीला कर दिया है परन्तु कोरोना का क्या ?

सरकार ने लॉकडाउन ढीला कर दिया है । जिससे आर्थिक गतिविधि शूरू हो गई है । जिससे अर्थव्यवस्था पटली पर आने शुरू हुई है । परन्तु कोरोना पर लगाम नहीं लग पा रही है । दिनों दिन मरीजों की सख्या बढ रही है । लोगों को ही जागरूक हो कर कोरोना से जंग जारी रखनी पड़ेगी । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
 "सरकार ने लाॅकडाउन ढीला कर दिया है परन्तु कोरोना का क्या?" सामाजिक जन-चेतना के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। लाॅकडाउन - 1 और लाॅकडाउन - 4 के नियमों और छूट में जमीन-आसमान का अन्तर है। लाॅकडाउन ढीला करने के सन्दर्भ में सरकार के पास अपने तर्क हैं । परन्तु कोरोना किसी भी प्रकार के तर्क-वितर्क की परवाह न करते हुए वर्तमान में सवा लाख से अधिक लोगों को ग्रसित कर चुका है और दिन-प्रतिदिन संख्या में वृद्धि हो रही है। 
अब स्थिति यह है कि लाॅकडाउन के ढीलेपन और कोरोना के कहर के मध्य नागरिकों को स्वयं की भूमिका का निर्धारण करना है। 
आजकल एक बात सोशल मीडिया पर खूब प्रसारित हो रही है -
"ध्यान रहे लाॅकडाउन के ढीलेपन का इन्तजार केवल आप ही नहीं कर रहे, बल्कि कोरोना वायरस भी कर रहा है।"
इन पंक्तियों में सच्चाई स्पष्ट रूप से झलक रही है परन्तु हम लापरवाह लोग इन पंक्तियों को गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। समाचारों के माध्यम से जन-जन को पता है कि सामाजिक/शारीरिक दूरी का जगह-जगह पर मज़ाक उड़ाया जा रहा है। मास्क चेहरों पर लगे तो हैं परन्तु मास्क का सही उपयोग करना और उसके साथ बरती जाने वाली सावधानियों का कितने लोगों को ज्ञान है अथवा ज्ञान है भी तो पालन कितना किया जा रहा है? आप सेनीटाइजेशन की बात करते हैं लोग साबुन से हाथ धोने में भी आलस्य की परम्परा का खूब निर्वाह कर रहे हैं।
मुझे आश्चर्य होता है कि लोग सरकारी नियमों के डर से लाॅकडाउन का पालन कर रहे थे जबकि लाॅकडाउन का पालन तो कोरोना के कारण होना चाहिए - "लाॅकडाउन में छूट सरकार ने दी है, कोरोना ने नहीं।" 
अप्रत्यक्ष कोरोना अभी अपनी पूरी शक्ति से कायम है और कोरोना से बचाव हेतु सारी सावधानियों के विषय में पिछले दो माह से सोशल मीडिया, समाचार-पत्रों और हमारे मित्रों द्वारा इतना व्यापक प्रसार किया जा चुका है कि सभी को इनके विषय में पता है तो फिर ढीले लाॅकडाउन और कोरोना के मध्य शेष रहता है स्वयं के ऊपर स्वयं द्वारा लागू किये जाने वाला "स्व-लाॅकडाउन।" 
मेरी दृष्टि में, इस ढीले लाॅकडाउन में कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय "स्वानुशासन" है। 
बंदिशें, पाबन्दियां भला किसी को कहां अच्छी लगती है, 
स्वहित में हो बंदिशें तो स्वतन्त्रता कहां अच्छी लगती है। 
संकल्प आवश्यक है स्वहित में स्वानुशासन का 'तरंग', 
हृदय के पटल पर कोरोना की सत्ता कहां अच्छी लगती है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना के देश में प्रवेश करते ही हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस संक्रमण के बहुत ही तीव्रता से संक्रमित होने की गति का आभास होते ही हमें  लॉकडाउन में  रखा! एक तरह से हमने ट्रेनिंग सेंटर में  रह कोरोना से बचने की ट्रेनिंग ही ली है! आज हम लॉक डाउन 4.0मे हैं! इस लॉकडाउन में आय के सभी श्रोत बंद हो जाने से हमारी आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ने लगा !हमारा जीवन स्तर गिर गया !हमारे श्रमिक जो हमारे उद्योग के आधार है पेट की आग लिए पलायन होने लगे और फिर यह करोना तो फिलहाल जोंक की तरह चिपक गया है! जब तक इसकी दवा नहीं मिलती हमें करोना के साथ ही जीना है फिर क्यों न हम एहतियात बरतते हुए जीवन जीयें! 
आज सरकार ने लॉकडाउन ढीला किया है तो क्या साथ ही लॉकडाउन में  रख कुरूक्षेत्र में उतर कोरोना से युद्ध करने की ट्रेनिंग भी तो दी है! 
 यह प्राकृतिक प्रकोप कब जाएगा इसकी कोई निश्चित अवधि  नहीं  है अतः हमें  ही अपनी नैतिक जिम्मेदारी को निभाते हुए अपनी रक्षा करनी है ! साथ ही सरकार द्वारा दिए गए निर्देश का पालन करना है !
अंत में  कहूंगी जो ढील हमें मिली है वह हमारे जीवन को गति देने के लिए है ! इस प्राकृतिक आपदा  से निकलने का बस एक ही उपाय है कोरोना से बचने के नियमों का पालन करना है एवं इसकी चेन को तोड़ना है! 
हमारी जरा सी भी नासमझी और लापरवाही  दूसरे के लिए खतरे की घंटी बन सकती है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र

 कोरोना संक्रमण के चलते सरकार के सामने देश को चलाने के लिए आर्थिक एवं वित्तीय व्यवस्था की अति आवश्यकता है।अन्यथा हमारा देश अन्य देशों से बहुत ही पीछे आ जाएगा। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत वैसे ही कम है।और यदि अभी अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी तो आने वाले समय में हमें बड़ी आर्थिक मंदी से गुजरना पड़ सकता है। इन बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने लॉक डाउन ढीला कर दिया है। लेकिन कोरोना अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। यह तो हम सभी जानते हैं। महानगरों में रोज के नए संक्रमित मरीज आ रहे हैं। और आंकडों में भी वृद्धि हो रही है। कुछ प्रतिशत ठीक भी हो रहे हैं। लेकिन समस्या अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। और अभी इसका खत्म होना दिखाई भी नहीं दे रहा है। ऐसे में अपने उद्योग धंधों को आर्थिक मजबूती देने हेतु लॉकडाउन ढीला करना सरकार की नीतियों का एक मजबूत आधार है। किंतु हमें अभी कोरोना को कमजोर नहीं समझना है। हमें अभी सतर्क और सावधानी बरतते हुए अपने उद्योग व्यवसाय को चालू कर स्वयं को कोरोना संक्रमण से  बचाना है। ओर अपने परिवार को भी इस संक्रमण से बचना है। आज हमें दोहरी भूमिका का निर्वाह करना होगा।और उद्योगों को प्रगति पर लाकर उन्हें सुचारू रूप से चालू करना और कोरोना संक्रमण से बचाव यही दो नियमों को गांठ में बांध कर अपना काम कर देश और अपनी आर्थिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में अपना योगदान देकर देश परिवार की खातिर हमें कोरोना संक्रमण में अपना काम कर जीत का परचम लहराना है। 
            -  वंदना पुणतांबेकर 
                   इंदौर - मध्यप्रदेश
 सरकार ने कब तक लॉक डाउन करेगा लाख डाउन दिला करने से बीमारी और हावी होते जा रहा है मानव के पास ऐसी स्थिति बन गई है ना तो बाहर निकलते बन रहा है ना अंदर रहते इसको ऐसा भी कहा जा सकता है न मरते बन   रहा है न जीते। ऐसी करो ना आप डाल आई है संसार में यह व्यक्तिगत है ऐसा नहीं है यह हर एक मनुष्य जाति के लिए है कोई इस परोना से स्वतंत्र होकर जिएगा ऐसा नहीं है, सब मैं भय और आशंका बनी हुई है। भाई वर्क मनुष्य कब तक जी पाएगा आखिर इसका निदान तोड़ना ही पड़ेगा तब तक समझदारी और संयम और धैर्य के साथ मनुष्य को जीना होगा थोड़ा सा भी लापरवाही एवं को ले डूबेगा और औरों को भी ले डूबेगा अतः मनुष्य को जब तक परिस्थिति ठीक ना हो जाए, तब तक नियंत्रण होकर जीना होगा ।साथ साथ जीने के लिए मूल भूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने का उपाय सोचना चाहिए तभी मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो पाएगी ।जीने के लिए तो जरूरी आवश्यकता की पूर्ति के लिए कुछ ना कुछ करना ही होगा। कुल मिलाकर कहा जाए तो वर्तमान परिस्थिति कष्ट दाई ही है। अतः सभी मानव को एक दूसरे का सहानुभूति ,सहयोग की भावना रखकर धैर्यता से एक दूसरे का साथ देते हुए, आगे बढ़ना होगा ।तभी कुछ हद तक करो ना से दूर रहकर महामारी से निजात पाना होगा। जो समझदारी से जिएगा वही जिंदा रहेगा और जो मनमानी लापरवाही करेगा, वह मरेगा हमाको कैसा जीना है स्वयं के ऊपर निर्भर करता है और हमें कैसे जीना है विचार करना होगा। इसी के आधार पर चलकर जीना होगा। सरकार है करो ना के प्रति उत्तरदाई होगा ऐसा नहीं है हम सब मानव के प्रति उत्तरदाई है अतः हमको भी ईमानदारी के साथ वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए लाक डाउन का पालन करते हुए जीना होगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सरकार के हाथ मे अपनी गलती सुधारना था लॉक डाउन खोल कर । वह कर दिया जिसकी आड़ में अनचाहा , आवश्यक , सियासी और राजनीतिक सब हुआ । बिना कोरोना के भी खूब मौतें हुई । भूख भी बिलबिलाई और घर से बेघर भी हुए । 
      लेकिन कोरोना सरकार के हाथ मे नही । जिंदगी चलेगी या महामारी तांडव जारी रहेगा ,यह कोरोना वायरस तय करेगा । वह सरकार की धौस ,सियासत या षड्यंत्र से नही डरता । उस पर किसी का प्रभाव नही । 
      लॉक डाउन करके भी क्या कोरोना को डरा पाए ।  लॉक डाउन करके  लोगो बेरोजगार कर दिया । जो जमा था वह घर की जरूरतों में खत्म करवा दिया और भविष्य के लिए जनता को तनाव दे दिया । मौते तब भी हुई 
 अब थोड़ा  संख्या और बढ़ जाएगी  लेकिन रोज अगर 100₹भी मिलते रहे तो नमक रोटी अवश्य खाते रहेंगे । बीमार होने पर इलाज की भी संभावना बनी रहेगी ।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
ये सही है कि सरकार ने लॉक डाऊन के नियमों में इस बार काफी छूट दी है । ये आमजन और सरकार के लिये भी आवश्यक हो गया था ।पिछ्ले दो माह से अधिक समय से पूरा देश दहशत और डर के  साए में गुजर बसर कर रहा है। सब उद्योग धन्धे  चौपट हौ चुके हैं मजदूर और कामगार बेरोजगार हो चुके हैं यहां तक कि मजदूर वर्ग को खाने और रहने के भी लाले पड़ गये हैं ।ऐसे में कामगारों को रोजगार और उद्योगों को चलाना अति आवश्यक हो गया है । लॉक डाऊन-4में जबकी खुद देश में कोरोना महामारी ने एक विस्फोट का कार्य किया है ।
अब लोगों को कोरोना के साथ ही   लम्बे समय तक जीने की आदत डालनी पड़ेगी ।सरकार ने पहले लोगों को लॉक डाऊन का अर्थ समझाया फिर प्रधानमंत्री जी ने सब को खेल खेल में सावधानीयों  से अवगत करवा दिया है ।।
अब सभी जन जान चुके हैं कि कोरोना क्या बला है और इससे कैसे बच सकते हैं ।अता सभी को अपने अपने कार्य उपरोक्त सावधानीयों को अपनाते हुए शुरु कर देने चहिये । अपना बचाव करना चहिये साथ ही परिजनों   रिश्तेदारों और समाज की सुरक्षा  भी सुनिश्चित करनी चहिये ।
     - सुरेन्द्र मिन्हास
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
हमारी सरकार को इस बात का विश्वास हो गया है कि भारतीय नागरिक कोरोनावायरस के साथ जीना सीख लिए हैं
इस 2 महीने में सतर्कता एवं जागरूकता के माध्यम से यह प्रशिक्षण दिया गया कि अब इंसान को कोरोनावायरस के साथ जीने की कला आ गई है
यह लॉक डाउन का समय प्रशिक्षण का समय रहा और अमूमन सभी लोग मास्क लगाकर अपने कार्यों को कर रहे हैं मास्क लगाना जीवन का एक आदत बन गया है।
अब जन-जन यह जान चुका है कि कोरोनावायरस क्या बला है और इससे किस तरह अपने आप को सुरक्षित रखा जा सकता है परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं किन-किन नियमों को कितनी कठोरता के साथ पालन करना है अब शिकवा और शिकायत की गुंजाइश नहीं है पहला प्रयास इंसान का यह रहेगा की कम से कम संख्या में या प्रतिशत में कोरोना वायरस का संक्रमण हो। इस जागरूकता के कारण स्पष्ट है कि संक्रमण का प्रतिशत अवश्य कम हो जाएगा अब जैसे नियम बन गया है कि किसी भी प्रकार का आयोजन नहीं किया जाए यदि करना है तो मैक्सिमम 50 व्यक्ति ही सम्मिलित हो सकते हैं आयोजन करने वाले के घरों में यह समस्या अवश्य उत्पन्न होगी किसे बुलाया जाए और किसे छोड़ दिया जाए लेकिन यह बात स्पष्ट है कि नियम के अनुसार उन्हीं लोगों को बुलाना है उतनी ही संख्या में बुलाना है जो सरकार द्वारा मान्य है अब सूचना सभी को दी जाएगी पर उपस्थिति की अनिवार्यता पर कोई सवाल नहीं उठेंगे।
सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का उल्लंघन किया जाएगा तो उसके लिए भी दंड सजा और जुर्माना का प्रावधान है कहा ही गया है कि दंड से हर नियम का पालन होता है सरकार इस नियम को पूरी शक्ति के साथ लागू कर रही है।
उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि लॉक डाउन दिल में ढील दी गई है सामान्य नागरिक सामान्य जीवन यापन करने के लिए उत्सुक हैं तो कोरोनावायरस अपने आप लॉक डाउन हो जाएगा चुकी इन 2 महीनों में प्रशिक्षण के माध्यम से मानव अपने आत्म रक्षा शक्ति यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाने की कला सीख चुका है और उसे अपने जीवन में लागू भी किए हुए हैं तो जब हम मजबूत होंगे जब सिपाही मजबूत होंगे तो दुश्मन को हराना मुश्किल बात नहीं होगी इसलिए यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाकर रखना है खान-पान योगा प्राणायाम के माध्यम से इसे मजबूत बनाना है और यह जीवन शैली के रूप में अपना लेना ही बुद्धिमता है जो लोग नहीं अपना पाते हैं उनको संभवत कुछ परेशानी हो सकती है पर उनकी आत्मशक्ति ही इतनी मजबूत होगी कि शायद करो ना उनके आगे घुटने टेक देगा।
सरकार का मुख्य उद्देश्य जीवन को सामान्य रूपरेखा में लाना है और इसके लिए पहली प्रक्रिया शुरू हुई है लॉक डाउन में थोड़ी सी ढील दी गई है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
सरकार ने लॉक डाउन ढीला कर दिया है और कोरोना संकट अभी बना हुआ है परन्तु इसकी तीव्रता धीरे धीरे कम होगी ठीक होने वाले लोगो का प्रतिशत धीरे धीरे बढ रहा है जो अच्छा संकेत है और सरकार का ध्यान अर्थ व्यवस्था एंव जनता की परेशानियो की ओर भी है लॉक डाउन बहुत कठिन फैसला था जिसका बहुत सकारात्मक प्रभाव  पडा यदि दुनिया के दूसरे देशों के साथ तुलना करें तो पता चलता है कि भारत कोरोना के खिलाफ रणनीति बहुत सफल रही सरकार ने जो ढील दी है उसी के साथ साथ यह बात  भी ध्यान देने योग्य है कि जिन क्षेत्रों मे कोरोना है वहाँ  कुछ कडे नियम भी बनाये है जिनका पालन आवश्यक है जैसे जैसे कोरोना संकट दूर होगा हालात सामान्य होंगें.                                       - - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
पूरी दुनिया में दहशत फैलाने के बाद कोरोना वायरस जिस तरह से भारत में पांव पसार रहा था, उसे देखते हुए केंद्र सरकार ने लॉकडाउन जैसा कदम उठाना जरूरी समझा. लेकिन अब इसे खत्म करना भी जरूरी हो गया है. क्योंकि इससे आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हो गई हैं, जो रोजगार आदि जैसी समस्या पैदा कर रही है. हालात अगर ऐसे ही रहे तो हमारी इकोनॉमी तबाह हो जाएगी. ऐसे में केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के चौथे भाग में कुछ ढील देने की बात कही है. जिससे कोरोना महामारी के प्रसार पर भी काबू रहे, साथ ही देश की इकोनॉमी भी पटरी पर लौट सके.
जानकारी मिली है कि इस लॉकडाउन में भविष्य को देखते हुए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए हैं, जिससे कोरोना वायरस के साथ-साथ हमारी जिंदगी भी चलती रहे.
वर्तमान हालात को नई सामान्य स्थिति मानते हुए अब देश आगे बढ़ने की तैयारी कर रहा है. लॉकडाउन-4 में साफ-सफाई, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क आदि सुरक्षा का ख्याल रखते हुए कई चीजों में ढील मिलेगी. हालांकि कंटेनमेंट जोन के लिए स्थितियां पहले जैसे ही रहेंगी.
जाहिर है कोई भी राज्य पूरी तरह से लॉकडाउन खत्म किए जाने के पक्ष में नहीं है. सभी धीरे-धीरे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ रहे हैं. एक अधिकारी ने कहा, 'कोई भी राज्य सरकार लॉकडाउन खत्म नहीं करना चाहती है लेकिन सभी आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के पक्ष में हैं.'
नए लॉकडाउन यानी चौथे हिस्से में स्कूल, कॉलेज, मॉल और मूवी थियेटर किसी भी इलाके में नहीं खुलेंगे. वहीं सैलून, नाई की दुकान और स्पा सेंटर को रेड जोन में सावधानी के साथ खोला जा सकता है. हालांकि कटेंनमेंट इलाके में यह बंद रहेगा. इसके अलावा ग्रीन जोन और ऑरेंज जोन में भी यह खुला रहेगा.
बाजार कैसे करेगा काम?
केंद्र, ने इस मामले में राज्यों को कुछ छूट देगी. हालांकि यह छूट ऑरेंज और रेड जोन इलाकों के लिए ही होगी, जिससे कि दिल्ली जैसे राज्य अपनी सहूलियत के हिसाब से ऑड-ईवन की तर्ज पर सभी दुकानों को खोलने की पहल कर सके.
वहीं रेड जोन में भी ई-कॉमर्स के जरिए सभी तरह के सामानों की डिलिवरी की छूट दी जा सकती है. हालांकि यहां भी कंटेनमेंट इलाके में बंदिश रहेगी. सूत्रों का कहना है कि सभी राज्यों की कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अलग-अलग तैयारी है. इसलिए सबको एक हिसाब से नहीं चलाया जा सकता है. फिर चाहे वो ढील देने की बात हो या लॉकडाउन जारी रखने की बात.
अब सवाल हमारे ऊपर आता है 
हमें कोरोना से स्वंयम बचाव करना है । 
क्यों कि स्थित दिन पर दिन गम्भीर रुप ले रही है । 
लाकडाऊन रहे न रहे हमें जहां तक हो खुद को लाकडाऊन में रखना है 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना वायरस की बजह से हालात और खराब न हो इसलिए  लॉक डाउन ढीला कर दिया था किन्तु लोगो ने नियम के पालन की ऐसी धज्जियाँ उड़ाई की पहले जैसे हालात फिर होने लगे है। परन्तु किसी की गलती भी तो नही मान सकते। कारण इतने दिनों से जो लोगो को कुछ मिल नही पा रहा था। लॉक डाउन ढीला हुआ तो लोग टूट पड़े। लेकिन सरकार ने तो सबके सुविधा के लिए नियम का पालन करते हुए लॉक डाउन ढीला किया था।लेकिन मानव जाति के लिए यह बहुत ही कठिन है कि किसी भी कार्य के साथ नियम का पालन करें। वक्त आने पर इसका जबाब भी दे सकता हूँ। किन्तु अभी वक्त के हिसाब से नियम का पालन करना आवश्यक है नही तो कोरोना आपको निगल जाएगा और कोई भी सरकार किसी को नही बचा पाएगी। गलती करके सरकार या भगवान को दोष देने से कुछ नही होगा। किन्तु एक बात और इंसान जब तक स्वयं धोखा नही खाता तब तक नही सुधरता। चाहे कुछ भी कर लो। और समझ जाए तो कोई बात नही। लोग हजारो रुपये का दारू, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट खा / पी  सकते है तो क्या दो चार का सौ मास्क, सेनेटाइजर क्यो नही ले सकते परन्तु नियम जा उलंघन करने वाले ज्यादा है। ऐसे लोगो को कोरोना से सरकार क्या भगवान भी नही बचा पाएगा।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ
ये बात सही है कि सरकार ने लोकडाउन में रियायतें देते हुए इसे ढील दी है और कुछ लोगो के मन मे ऐसी ढील के चलते कोरोना पर अपनी चिंता व्यक्त करना लाजमी है परंतु अब ये समझने की भी जरूरत है कि महज कोरोना कोरोना गाने से और इसका हौआ बनाने से कुछ नही होगा । लोगो के पास पिछले लंबे वक्त से कोई रोजगार न होने व जमा पूंजी के समाप्त हो जाने के बाद आज दो वक्त की रोटी के भी लाले हो गए है , जिस कारण अब लोगो को कोरोना नही बल्कि सिर्फ अपने पेट की भूख दिखाई दे रही है । 
भारत सरकार दूरगामी सोच वाली सरकार है इसमें कोई दो राय वाली बात नही है , इसलिए वह भली भांति जानती है कि यदि लोकडाउन को काफी लंबा समय हो चुका है और जनता अब ऊब चुकी है । इसीलिए थोड़ी रियायतें देना जरूरी है अन्यथा लोग विदेशो की तर्ज पर सोशल डिस्टनसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए सड़को पर धरना प्रदर्शन करते नजर आएंगे । इसी दृष्टि के आधार पर थोड़ी रियायत भी जरूरी है ।
- परीक्षित गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
शुरुआती दौर मे जब हमारे देश मे कोरोना मरीज की संख्या तकरीबन सौ  के आस पास रही होगी तब सरकार द्वारा देश मे लाकडाउन लागू किया गया। अचानक बंदी होने से अफरातफरी मच गई। इस दौर मे सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग परेशान हुआ। वो जहाँ रह रहे थे वहाँ उन्हें भोजन नही मिल रहा था,काम पहले से ही छीन चुका था। वे अपने घर जाने को बेचैन थे। लाकडाउन मे यातायात के सभी साधन बंद थे।  इसलिए मजदूर अपने घर भी नही जा पा रहे थे। जब उनके पास के पैसे खत्म होने लगे ,मकान किराया का बोझ बढ़ने लगा तब वे पैदल ही अपने घर की ओर अपने छोटे -2 बच्चों एवं परिवार के साथ चल पड़े। रास्ते मे कितनी तरह की त्रासदियां  उन्हें झेलनी पडी़ इसका वर्णन शब्दों मे नही किया जा सकता है।
        सरकार की वित्तीय ब्यवस्था की चूल को भी लाकडाउन ने हिला कर रख दिया। सरकार को भी उम्मीद न थी कि उसे इस दौरान इतनी फजीहत झेलनी पड़ेगी। अंततः सरकार ने लाकडाउन  मे नियमों के साथ ढील देने का निश्चय किया। यह निश्चय उस समय किया गया जब कोरोना से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ रही थी। सरकार के सामने भी लाकडाउन ढील करने की मजबूरी थी। ऐसा सोचा जाने लगा था कि लोग अब कोरोना के साथ जीने की आदत डाल लिए हैं। सरकार भी यही सोच रही थी कि लोग मास्क पहनकर बाहर निकलेंगे,सोशल डिसटेन्सींग का पालन करेंगे तथा जहाँ काम करेंगे उस जगह को सेनेटाइज करेंगे। बीस सेकेंड के लिए समय -2 पर अपना हाथ धोया करेंगे। ऐसा करने से बाजार की गतिविधियां बढेंगी और अर्थव्यवस्था पटरी पर आयेगी। हमारे देश मे चालीस करोड़ से ऊपर मजदूर हैं, उनके भोजन की ब्यवस्था करने मे राज्य और केन्द्र सरकारें लगभग अक्षम हो गई। यह आशा बनी कि लाकडाउन मे ढील दिये जाने से इन मजदूरों को काम मिलेगा और इनके परिवार का पेट भरेगा। औद्योगिक गतिविधियाँ भी ढील देने से रास्ते पर आयेंगी। रेलवे एवं हवाई जहाज की सेवा शुरू होने से पूरे देश मे चारों तरफ आवागमन बढेगा। ऐसा होने से सरकार को भी टैक्स मे धन आने शुरू हो जायेंगे।
            परन्तु कोरोना की संख्या मे कमी के बजाय बढ़ोत्तरी ही नजर आ रही थी।ऐसा समझा जा रहा था कि इससे बचाव के जो नियम बताए गए हैं लोग उसका पालन करेंगे तथा साथ साथ सामान्य जीवन को भी पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे। ऐसे मे जब कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ रही हो तो सरकार की और भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। केन्द्र और राज्य सरकार को अस्पताल को उस योग्य बनाना चाहिए ताकि कोरोना पीड़ितों को चिकित्सय ब्यवस्था उत्तम रुप से दी जाए तथा मरनेवालों की संख्या ज्यादा से ज्यादा घटायी जाए ।
          लाकडाउन मे ढील देने का मतलब है कि हमें और सतर्क रहना है और सरकारो को ब्यवस्था दुरूस्त रखना है।
- रंजना सिंह
पटना - बिहार
सरकार ने लॉक डाउन ज़रूर ढीला कर दिया है परन्तु कोरोना तो फैलेगा ये हो सकता है मौसम के कारण वायरस के फैलने की रफ़्तार कुछ कम रहे । जब तक लॉक डाउन शक्ति से लागू था सरकार समझा रही थी सच तो ये है समझा क्या रही थी ट्रेनिंग दे रही थी जैसे बार बार हाथों को धोना, सोशल डिस्टेन्सिग, मास्क लगाना, घरों में रहना भीड़ में न जाना न लगाना, ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है अब बारी है जनता की ट्रेनिंग लेकर अपनी सुरक्षा में कितनी दिलचस्पी है भविष्य ही बताएगा । मेडिकल रिसर्च बता रही है कि कोरोना अब जल्दी समाप्त होने वाला नही है फ़िलहाल कोई दवाई नही है वैक्सीन बनी नही है ऐसे में ट्रेनिंग का लाभ उठाना न भूलें । तभी कोरोना को हराया जा सकता है जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जाए । योग व्यायाम, सही खानपान, और होम्योपैथी व आयुर्वेद की औषधियों का प्रयोग करें ख़ुश रहें ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
23 मार्च 2020 से हम लॉक डाउन में जी रहे हैं। तब से कोरों-  ना से बचने के लिए कई कई प्रयास किए गए। हमने देखा कि हर एक व्यक्ति अपने घर पहुंचना चाहता है, उसके घर वाले भी यही चाहते हैं। दूसरे आर्थिक व्यवस्था चरमरा कर रह गई है।
ये सब देखते हुए सरकार ने कुछ ढील दी है। ऐसा करना आवश्यक हो गया था।
कोरोना से लड़ने के लिए हम सक्षम हैं। यदि नहीं तो हमें सक्षम बनना होगा। ढील से हमें कुछ सुविधाएं मिलेंगी। हम कई छोटे मोटे काम कर सकेंगे। ये सब करते हुए हमें सावधानी रखनी होगी। इसके लिए हमें प्रणायाम, व्यायाम , खाद्य पदार्थों की सफ़ाई और अनुशासित दिनचर्या अपनानी होगी। सामाजिक दूरी, निरंतर हाथ धोना, सेनेटाइजर व मास्क के उपयोग को व्यावहारिक बनना होगा।
- केवल सिंह भारती
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
सरकार ने लॉकडाउन ढीला कर दिया है,पर कोरोना का क्या? इस बात को हम यूं पूरा करते हैं, पर कोरोना को भी अपने शिकार करने का पूरा अवसर है अब। जिस तेजी से संक्रमण के आंकड़ों में वृद्धि हो रही है,वह चिंता जनक है।
जन-जागरूकता कम होने से सुरक्षा के उपायों के प्रति लापरवाही हो रही है।सोशल डिस्टेंसिंग  सेनेटाइजेशन और हैंड वाशिंग,पर पर्याप्त ध्यान नहीं।बाजार पुराने ढर्रे पर नजर आ रहा है,इतनी घोर लापरवाही कि मुंह पर मास्क या कपड़ा भी कम ही नजर आ रहा है। जिन शर्तों के साथ लाकडाउन में ढील दी गयी उनका पालन न के बराबर करने वाले लोग यह समझते हैं कि हम
सुरक्षित है।पर यह भ्रम है जो टूटने में देर न लगेगी।कोरोना ऐसा दुश्मन है जिससे निपटने का एक ही उपाय है बचाव।यह बचाव ही लापरवाही की भेंट चढ़ रहा है ।ऐसी स्थिति में पर कोरोना का क्या? इसका एक ही शब्द में उत्तर है,विस्तार। यह उत्तर नकारात्मक, निराशा जनक लग सकता है,पर इसे नकारा नहीं जा सकता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल' 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना महामारी को नियंत्रित करना पूरे विश्व के सामने बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि किसी भी देश के पास अभी तक सही दवा नही बन पाया है। सरकार ने लॉकडाउन ढीला कर दिया है परन्तु कोरोना का क्या ? देश की ख्याति प्राप्त संस्था जैमिनी अकादमी द्वारा पेश शनिवार की चर्चा में इसी सवाल को उठाया गया है। लॉकडाउन में ढील देना बहुत ही जरूरी था जिसे सरकार ने पूरा किया है। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना बहुत ही जरूरी है। इसके साथ ही देश के करोड़ों मजदूरों के सामने रोजगार की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। कोरोना काल मे परिवार का पेट भरने के लिए रोजगार की जरुरत है। साथ ही व्यापारियों के लिए भी लॉकडाउन में छूट की जरूरत थी। अब राज्य सरकारें मजदूरों के लिए अपने ही राज्य में रोजगार देने की रणनीति बना रही है, ताकि उन्हें काम के लिए दूसरे राज्य में न जाना पड़े। अब रही कोरोना की बात तो यह महामारी ओर भी तेजी से बढ़ेगी। इसका मूल कारण आम लोगों, प्रवासी मजदूरों व छात्रों का दूसरे राज्यो से अपने शहर व गांव में आना बताया जा रहा है। इन्हीं लोगों के कारण कोरोना के मामले देश मे बढ़ रहे हैं। पिछले 24 घंटे में देश मे 6654 कोरोना के नए मामले सामने आए है और 137 लोगों की मौत हुई है। भारत मे कोरोना के 1 लाख 25 हजार संक्रमित, 3720 की मौत हुई, जबकि 51 हजार से अधिक ठीक हुए। एम्स दिल्ली के निदेशक ने पहले ही स्पस्ट कर दिया है कि जिस तरह से कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे है। यही रफ़्तार रही तो आने वाले जून जुलाई में कोरोना संक्रमण चरम पर होगा। कोरोना से बचना है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइंस को मानना पड़ेगा। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कोरोना से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हर हाल में करना होगा। साबुन से बार-बार हाथ धोए। बहुत जरुरी होने पा ही घर से बाहर निकले। मास्क का उपयोग करें। कोरोना से बचने के लिए जरूरी गाइडलाइंस का पालन करने से सफलता मिलेगी। सरकार ने लॉकडाउन में जो ढील दिया है। उसमें कोरोना से बचाव के लिए सरकार के द्वारा दिए गए गाइडलाइंस का पालन हर हाल में करना होगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
लाकडाउन 4 में कुछ ढील दी गई परन्तु कोरोना को जैसे बढ़ने की आजादी मिल गई क्योंकि ‌कुछ गाड़ियां कुछ  हवाई जहाज प्रारंभ हो गये जिसके चलते कुछ असावधानी ‌ हुईं नहीं कि कोरोना का पैर पसर जाएगा और यही नहीं कुछ उद्योगों को कुछ दुकानों को खोलने की सरकार ने इजाजत दे दी है जिससे भी कई समस्याओं का जन्म होगा और शहरी वाहन भी प्रारंभ हो चुके हैं एक व्यक्ति को बैठाने की ही इजाजत दी है सरकार ने पर देखा जा रहा है कि कुछ टैक्सियों में एक से अधिक लोगों को बिठाया जा रहा है जिससे कोरोना को खुलेआम न्योता दिया जा रहा है।
और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मई,जून को करोना का महाकाल कहा है क्योंकि कितनी भी सावधानी बरती जाए कहीं न कहीं चूक हो ही जाती है।
परन्तु यदि हम सभी अर्थात भारत की एक सौ तीस करोड़ जनता ठान ले कि कोरोना को हराना है तो वो हारेगा ही सरकार कब तक देश बन्द रख सकती है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था पर हम टिके हैं और हमारे उद्योग , व्यापार आदि पर टिकी है देश की अर्थव्यवस्था अतः अब हमें कोरोना सम्बंन्धी नियमों के साथ ही जीना होगा और बहुत सावधानी बरतते हुए इसे जिन्दगी से बाहर भी निकालना है।
 "ढीला हुआ है लाकडाउन पर
  नियमों का पालन कठोरता से हो
 हाथ धोकर,मास्क लगाकर , दो फुट दूर हो कर
कोरोना को हराएगा मानेगा इन नियमों को जो "
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
 लाॅकडाउन ढीला करना सरकार की मजबुरी हैं अधिक दिनों तक लोगों को लाॅकडाउन में रखने से उनके भोजन पानी एव अन्य सम्सायें जन्म ले रही थी लोगों के पास पैसा समाप्त हो चला था लाॅकडाउन ढीला करने से कुछ तो राहत मिलना सुरू हो चुकी है लोगों को भी अवस्यकता की वस्तु खरिदने को मिल रही हैं कम्पनीया सुरू होने से कम्पनी मालिक मजदूर दोनो को राहत हैं।कुछ रेल चालु हो रही हैं कुछ बसे चलने से भी काफी राहत हैं आम लोगो को राहत हो रही हैं पैसा पुनः चलन में आने से बाजार में कुछ तरलता आ रही हैं।अब कोरोना वायरस के बढने के चान्स बढते जा रहें जनता अपनी सुविधाओं के लिये कोरोना को मानो भुल चुकी हो अब तो ऐसा लगता हैं की कोरोना वायरस रूपी बम फटकर ही मानेगा जहा जहा जनता की भीड़ हो रही हैं वहा कोरोना वायरस के फेलने की भी सम्भावना हैं कोरोना से सुरक्षा से ही बचाव सम्भव हैं। 
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
कोरोना को पैर फैलाते ही सरकार ने हमें लॉक डाउन में रखा |अब 4.0 के दौरान सरकारी दफ्तर और  जरूरत के हिसाब से दुकानें आदि खोलने की छूट दी गई है ,पहले हमे सिखाया गया लोग डाउन में कैसे रहना है और अब उसका पालन करते हुए एहतियात बरतते हुए जिनको जरूरी है बाहर जाना है जा सकते हैं पर यह छूट हमें किसी परिचित से मिलने जुलने के लिए  या सैर सपाटा के  लिए नहीं  मिली है | हमे खुद  को  संयमित  रखना होगा | कार दुपहिया वाहन पर आने जाने के लिए भी निशा दिशा निर्देश है |कोरोना से हमें बहुत जल्दी निजात नहीं मिलने वाला है इसके लिए हर एक जन को योद्धा बनना होगा | सरकारी दिशा निर्देश का पालन करते हुए हमें हमारी आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाने में सरकार की मदद करनी होगी| जिससे विश्व पटल  पर भी  हम मजबूती के साथ खड़े  रह सके|
-  मिनाक्षी सिंह
पटना - बिहार
कोरोना तो खुश हैं नये इंसान के शरीर में घुमने को मिल रहा है । 
मेरी शक्तियाँ व विरादरी बढ़ रही है कोरोना बहुत खुश है 
ये तो मज़ाक़ था ..
अब हालात पर ध्यान देते है । 
लॉकडाउन 4.0 के दौरान बाहर जाने की योजना बनाने वाले सभी लोगों के लिए अब भी एक रोक है. नए दिशानिर्देश का मतलब यह नहीं है कि आप स्वतंत्र रूप से एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा कर सकेंगे और पुलिस ,आपको नहीं रोकेगी. दरअसल, प्रत्येक राज्य अभी तक अपने लिए दिशानिर्देश जारी नही कर सका है, जो यह तय करेगा कि क्या आपके लिए ऐसा करना संभव है?
इस दौरान कार में मौजूद लोगों की संख्या सभी क्षेत्रों में समान रखी गई है. ध्यान रखें, लॉकडाउन 4.0 के दौरान ड्राइवर के अलावा अधिकतम दो यात्री कार के अंदर बैठ सकते हैं, ऐसा ही पिछले चरण में भी था. दोपहिया वाहनों के मालिकों के लिए भी दिशानिर्देश नहीं बदले हैं, जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति अकेले ही बाइक की सवारी कर सकता है. एक कार में या दोपहिया पर सवार लोगों की आयु 65 साल से ऊपर या 10 साल से कम नहीं होनी चाहिए. केंद्र ने स्वास्थ्य संबंधी सावधानियों के तहत इन दोनों ही आयु वर्ग के लोगों के लिए सभी तरह की यात्रा को प्रतिबंधित करने के दिशानिर्देश जारी किए हैं.
रेड ज़ोन इस ज़ोन में निषिद्ध क्षेत्र में पूरे देश में प्रतिबंधित गतिविधियों के अलावा भी कुछ गतिविधियों पर रोक रहेगी. इस क्षेत्र में रिक्शा, ऑटो रिक्शा, टैक्सी या कैब, अंतर जिला या जिले के भीतर बसों का परिचालन, नाई की दुकान, स्पा और सैलून पर रोक जारी रहेगी. अन्य गतिविधियां कुछ पाबंदियों के साथ रेड ज़ोन में शुरू करने की अनुमति होगी.

ऑरेंज ज़ोन रेड ज़ोन में जिन गतिविधियों की अनुमति है उनके अलावा टैक्सी और कैब को चालक के अलावा एक यात्री के साथ परिचालन की अनुमति होगी. अनुमति दी गई गतिविधि के लिए व्यक्ति और वाहन एक जिले से दूसरे जिले जा सकते हैं. चार पहिया वाहन में चालक के अलावा दो यात्री की अनुमति होगी जबकि दुपहिया वाहन पर दो लोग सवारी कर सकते हैं.
ग्रीन ज़ोन सभी तरह की गतिविधियों की अनुमति होगी सिवाय उन गतिविधियों की जिनपर पूरे देश में रोक है. हालांकि, बसों का परिचालन 50 प्रतिशत क्षमता के साथ ही किया जा सकता है और बस डिपो भी आधी क्षमता से काम करेंगे. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बृहस्पतिवार के एक पत्र का हवाला देते हुए केंद्रीय गृहमंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ‘रेड’, ‘ओरेंज’ और ‘ग्रीन’ ज़ोन के वर्गीकरण के अनुसार गतिविधियों को अनुमति दी गई है, लेकिन कुछ सीमित गतिविधियां पूरे देश में बंद रहेंगी. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में 130 रेड ज़ोन हैं, जिनमें सर्वाधिक 19 उत्तर प्रदेश में और 14 महाराष्ट्र में हैं. देश में ओरेंज ज़ोन 284 और ग्रीन ज़ोन 319 हैं. राष्ट्रीय राजधानी के सभी जिले रेड ज़ोन में रखे गए हैं. किसी जिले को तब ग्रीन ज़ोन समझा जाएगा जब वहां अब तक या 21 दिनों के अंदर कोई सत्यापित मामला नहीं सामने आया हो. बयान के अनुसार ओरेंज ज़ोन में रेड ज़ोन की मान्य गतिविधियों के अलावा टैक्सियां, कैब एग्रीगेटर, की अनुमति होगी और उसमें एक ड्राइवर और बस एक सवारी होगी. केवल सीमित गतिविधियों के लिए एक जिले से दूसरे जिले में व्यक्तियों एवं वाहनों की आवाजाही की अनुमति होगी. स्थानीय प्रशासन कानून के उपयुक्त प्रावधानों के तहत आदेश जैसे धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा जारी करेगा और सख्त अनुपालन सुनिश्चित करेगा. शराब की दुकानें लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने, पान, गुटखा, तंबाकू आदि खाने की इजाजत नहीं होगी. हालांकि ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन में न्यूनतम छह फुट की दूरी ग्राहकों के बीच सुनिश्चित करने के बाद शराब, पान, तंबाकू की बिक्री करने की इजाजत होगी तथा दुकान पर एक समय में पांच से अधिक लोग नहीं होंगे. सार्वजनिक स्थानों एवं कार्यस्थलों पर मास्क लगाना सभी के लिए अनिवार्य है तथा पर्याप्त मास्क उपलब्ध कराया जाएगा. शादी समारोहों में एक दूसरे से दूरी के नियम का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा और आमंत्रित मेहमान 50 से अधिक नहीं होंगे. अंतिम संस्कार कार्यक्रम में भी एक दूसरे से दूरी के नियम का अनुपालन जरूरी होगा और अधिकतम 20 लोग मान्य होंगे. सार्वजिनक स्थानों पर थूकना दंडनीय होगा. लॉकडाउन का पालन नहीं करने पर एक साल की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. इन गतिविधियों की अनुमति नहीं होगी हवाई, रेल, मेट्रो या सड़क मार्ग से अंतरराज्यीय आवागमन पर रोक रहेगी. स्कूल, कॉलेज और दूसरे शैक्षणिक, प्रशिक्षण और कोचिंग संस्थानों के संचालन पर प्रतिबंध रहेगा. होटल और रेस्टोरेंट सहित अतिथ्य सत्कार सेवाएं बंद रहेंगी. सिनेमा हॉल, मॉल, जिम, खेल भवन, जहां लोग बड़ी संख्या में जमा होते हैं, वे बंद रहेंगे. सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और दूसरी गतिविधियां बंद रहेंगी. धार्मिक स्थान, सार्वजनिक पूजा के स्थान भी खोलने की अनुमति नहीं होगी. सभी गैर आवश्यक गतिविधियों के लिए लोगों की आवाजाही पर शाम सात बजे से सुबह सात बजे तक सख्ती से प्रतिबंध जारी रहेगा. सभी जोन में 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्तियों, बीमार लोगों, गर्भवती महिलाओं और 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को आवश्यक जरूरतों और स्वास्थ्य उद्देश्यों को छोड़कर घर पर ही रहना होगा.
पुलिस की सख़्ती कम होने से बहार लोग बिना काम टहलने लगे है , जिस कारण कोरोना को अपने पुरे पैर पसारने का मौक़ा मिल रहा है , 
सरकार की नहीं हर नागरिक को चाहिऐ की वह अपनी सुरक्षा खुद करे , कोरोना से लड़ना एक एक व्यक्ति की जरुरत है हमारी सुरक्षा परिवार कीसुरक्षा है । 
कोरोना को हराना ही हमारा मक़सद होना चाहिये 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
सरकार ने लाॅक डाउन में ढ़ील दे दिया,लेकिन अब कोरोना प्रसार तीव्र गति होता जा रहा ।सच पूछा जाये परीक्षा की घड़ी अभी आयी है।लाॅकडाउन  में हमें इस विषम परिस्थिति में खुद को सुरक्षित रहना तथा इससे कैसे  बचे यह सब सीखना  था।कोरोना वायरस के फैलते प्रसार में महायुद्ध जैसी परिस्थिति में योद्धा बनने का अवसर लाॅकडाउन में सभी को मिला ।अब सभी को इस रणभूमि उतरना ही होगा और खुद इसी माहौल जीते हुए,इसके बचाव के सभी नियमों का पालन करते हुए, खुद को तथा अपने परिवार को सुरक्षित रखना होगा ।
              -  रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
                राँची, झारखंण्ड
सरकार ने लॉकडाउन ढीला कर दिया है, जो आवश्यक भी था। अब ये हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के सभी दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन करें। सच पूछा जावे तो कोरोना आपदा एक प्राकृतिक प्रकोप की तरह है जहाँ सरकार और हमारी याने दोनों की अपने-अपने हिस्से का दायित्व शुचिता और गंभीरता से निभाना है। यह तो निश्चित है कि यह आपदा एक न एक दिन खत्म होगी परंतु उस एक दिन के बीच की जो अवधि है, उसमें पीड़ित कम से कम हों, यही हमारी विजय है। कोरोना का क्या, वह तो दैत्य की तरह है। रक्षा हमें स्वतः ही करनी है।
सार यह कि कोरोना. से जो बचाव के जो तरीके हैं, उनका हर हाल में पालन करना है। जरा सी चूक, जरा सी लापरवाही, जरा सी भी उपेक्षा हमारे और हमारी वजह से औरों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
लाक डाउन सरकार ने  ढीला कर दिया है परन्तु  कोरोना  तो  आग की तरह फैल रहा है । आज कोरोना  के मरीजो की संख्या हिंदुस्तान मे करीबन सवा लाख हो चुकी है ।
  फिर भी लापरवाही  पूरी तरह बढ़ गई है तो यह लापरवाही का सौदा कहीं महंगा ना पड़ जाए।लॉक डाउन  में ढील होने से लोग सड़कों पर बेवजह टहलने लगे हैं, बिना अनुमति सड़कों पर ई रिक्शे दौड़ने लगे हैं ,और शारीरिक  दूरी का भी पालन नहीं हो रहा, जबकि लॉक डाउन 4 में आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सार्वजनिक वाहनों के संचालन पर रोक लगी है। लाक डाउन 4 शुरू होने के साथ ही प्रशासन ने कुछ छूट भी जारी की है ,इसका मतलब यह नहीं कि कोरोना का संक्रमण थम गया है। दिन होते ही लोग अपनी डफली अपना राग की तर्ज पर चलने लगे हैं ।नतीजा यह है कि जो जिले ग्रीन जोन में थे वहां कोरोना  ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए। लापरवाही मंहगी पड़  सकती है ।यह चिंता सड़क पर बढ़ रही भीड़ को देखकर सता रही  है ।लोग छोटी-मोटी जरूरतों के लिए दोपहिया और चौपहिया वाहनों को लेकर बाजार जा रहे हैं ।यह स्थिति तब है जब तेजी से रोजाना  ही कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं ।यहां तक कि लोग बिना कार्य के भी घूमने लगे हैं । सड़कों पर चार पहिया वाहनों का दबाव बढ़ गया है ।बैंक, डाकघर ,सब्जी खरीदने के बहाने एवं अनावश्यक रूप से   भी लोग बाहर निकलने लगे हैं ।आलम यह है कि दूसरों की देखा देखी लोग बाहर निकलने लगे हैं। इसका नतीजा है कि पुलिसकर्मियों को और अधिक मशक्कत करनी पड़ रही है ।
लोगों मे ठहरी हुई जिंदगी को शुरू करने की होड़ सी लगी हुई है ।आज का आंकड़ा एक लाख सात हजार को पार कर चुका है ।उधर शराब की दुकाने खुलते ही  भयानक भीड़ दिखी ,तो प्रवासी श्रमिक ,पर्यटक ,छात्र  आदि को घर पहुचाने के लिये स्पेशल श्रमिक ट्रेने ,बस  आदि चलाये जा रहे है उनमे  शारीरिक दूरियों का पालन नही हो रहा ।
इतने दिनों की कठोर तपस्या के बाद राहत मिली तो उसमे सावधानी रखनी चाहिए ।
जान है तो जहाँ है मूल मंत्र याद रखना चाहिए ।जनता को जागरूक होकर अपना फ़र्ज  निभाना होना चाहिए ।अगर महामारी से बचने के लिये लॉक डाउन जरूरी है तो बिगड़ी अर्थ व्यवस्था को सुधारने के लिए राहत भी उतना ही जरूरी है ।
अतः सरकारी आदेशो व नियमो का पालन करना चाहिए।
लापरवाही नहीं करनी चाहिए खतरा अभी टला नहीं ,लापरवाही महंगी पड़ सकती है ।
राहत सरकार ने दी है  कोरोना ने नही ,यह सभी को  याद रखना चाहिए।
 - सुषमा दीक्षित  शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
      कोरोना महामारी का जब उदर हुआ बीमारियों की संख्या सूक्ष्म रूप में थी। जनता कर्फ्यू, बर्तन बजाओ, दीप जलाओं, लाँकडाऊन, समयावधि, लाल, संतरा,  हरे रंग में विभाजित किया गया। हरे को लाल में सम्मिलित कर,  दो पृथक से फिर बनायें गये। यह सब करने के उपरांत भी कोरोना महामारी का कहर बंद नहीं हुआ, अपितु संख्याओं में  बढ़ोत्तरी हुई हैं। मृत्यु तो एक पंसग हैं,   मृत्यु ने हर बीमारियों का स्वाद चखा हैं । फर्क इतना ही हैं, पूर्व में बीमारियों के नामों से मृत्यु को नमन किया जाता रहा, अब कोरोना महामारी के रूप में?  कोई विशिष्ट पहचान की मृत्यु हूई तो "कर्म वीर" के नाम से अभिनन्दित किया गया, जब गरीब की मृत्यु हूई तो दहा संस्कार का पता नहीं चल पाया, मात्र हाथ आया "मृत्यु प्रमाण-पत्र"? इस प्रकार की व्यवस्थाओं का जन्म हुआ। पूर्व में कोरोना का प्रकोप सीमित राज्यों में था, विभिन्न व्यवस्थाओं के तहत विभिन्न समुदायों का अपने-अपने घर संसार में पहुँचने लगे, जो पूर्व से अनेकों बीमारियों से ग्रसित थे,  सफर की थकावट, फिर जहाँ-तहाँ भोजन-पानी तथा अनिद्रा के कारण बीमार तो हुआ ही। जिसे कोरोना महामारी के लक्षण के तहत चिकित्सा पद्धति से ईलाज हुआ। जिसे नाम दिया गया कोरोना महामारी की संख्या, इतने आये, इतने सुधरे, इतने की मृत्यु? मैं किसी बीमारी का विरोध, पक्षपात नहीं कर रहा हूँ, किन्तु हकीकत यही हैं। आज दोष मानव को दिया जा रहा हैं, गलत खान पान, अपने-अपने गृह राज्यों में पहुँचे इस कारण कोरोना महामारी फैली? ऐसा था तो लाँकडाऊन लगाने के पूर्व ही व्यवस्था बनाई जा सकती थी। सब अपने-अपने घर संसार में पहुँचने के बाद। फिर आंकलन किया जा सकता था बीमारियों की संख्याओं का? आज वर्तमान परिदृश्य में कोरोना महामारी के कारण लाँकडाऊन ढीला तो कर दिया हैं,  किन्तु संख्याऐं कम नही बल्कि बढ़ती जा रही हैं। इस पर गंभीरता पूर्वक सोचिए परिणाम सार्थक होनी चाहिए। नकारात्मता की जगह सकारात्मकता की पहल करनी होगी। कोरोना महामारी के मायाजाल से निकलना होगा। आज वर्तमान परिदृश्य में झाँक कर देखिए, बच्चों से लेकर वृद्धों तक, व्यापारी से बेरोजगारों तक, शिक्षित से अशिक्षित तक सबके माथे पर चिंता की लकीरें झलक रही हैं। पहले रोड़ पर निकले डंडों का कहर, अब मास्क नहीं पहने तो जुर्माना, अपने-अपनों की अंत्येष्टि, विवाह समारोह में नहीं पहुँच पा रहा हैं। इन सब पर पुनर्विचार की आवश्यकता प्रतीत होती हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट -  मध्यप्रदेश
कोरोना के मध्य अच्छी ख़बर यह है कि लॉक डाउन की वजह से दिल्ली सहित तमाम बड़े शहरों में वायु, जल व ध्वनि प्रदूषण में काफी कमी आई है किन्तु संक्रमण के चलते दी गई ढील के कारण बढ़ते आंकड़े लोगों के चेहरे पर भय की लकीरें खेंच रहें है l आज कोरोना से लड़ने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है l इस वायरस में मनुष्य की इन धारणाओं को गलत साबित कर दिया कि स्वास्थ्य विज्ञान के बल पर रोगों के उपचार की विकसित प्रणाली के दम पर कोई भी बीमारी मानवता को डरा नहीं सकती l लेकिन कोरोना ने इस विश्वास, इस मिथक को करारा झटका दिया है और दुनियाँ के 214 देशों में फैला कोविड -19,ब्याँलीस लाख लोगों को चपेट में ले चुका है तथा चार लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं l 
आज हम विचार करें कि दुनियाँ bhr की स्वास्थ्य प्रणाली के पास कोरोना से निपटने की न कोई दवा है, न कोई टीका है और न कोई उपचार विधि उपलब्ध है l यही सबसे बड़ी चुनौती है l हम चाहें इस चुनौती काल में भी दी गई ढील को स्वच्छंदता के रूप में लें या संघर्ष के रूप में l हम तो इतना ही कह सकते हैं कि केवल मात्र उम्मीद पर ही दुनियाँ टिकी
है l उपर्युक्त परिवेश में लगता है कोरोना किसी प्रकार की ढील देने वाला नहीं है l कोरोना का संबंध जीव -माँस भक्षण से है l चीन के खानपान से सब वाकिफ हैं l 
     भारतीय वैदिक परम्पराओं के पीछे जीव और प्रकृति संरक्षण का संदेश हमारे लिए कारगर साबित सिद्ध होगा l आज मानव तकनीकी रूप से कहीं अधिक विकसित और बलशाली हो गया है परन्तु इसका यह अर्थ कदापि यह नहीं हो सकता कि वह प्रकृति से खिलवाड़ करनेलगे l कटु सत्य तो यह है कि मनुष्य को अपनी सीमा ज्ञात होनी चाहिए l उसे पता होना चाहिए कि यदि वह उस सीमा को लांघने का प्रयास करता है तो उसे इसकी एक निश्चित क़ीमत चुकानी ही पड़ेगी और कोरोना संक्रमण के मामले में चुकाई जाने वाली क़ीमत का आंकलन भी संभव नहीं है l अतः हम इस भ्रम में न रहें कि कोरोना ने हमें छूट दे दी है lवहीं सरकारों ने भी सशर्त गाइड लाइन के निर्देशों की पालना के साथ ढील दी हैं l हम दिग्भर्मित होकर स्वयं का और लोक जगत का नुकसान न कर बैठे l कोरोना की चेतावनी आप तक -
ये सोचना गलत है कि तुम पर मेरी नज़र नहीं 
मसरूफ हम बहुत हैं, मगर बेखबर नहीं 
वर्तमान आलम यह है कि 
नजदीकी अक्सर दूरी का कारण बन जाएगी 
सोच समझ कर घुलना मिलना ए वंदे, 
अपने रिश्तेदारों से l 
चलते चलते -
1. न इलाज़ है, न कोई दवाई है, 
 ए इश्क, तेरे टक्कर की ये बला आई है l 
कोरोना वायरस की गिद्ध दृष्टि हमारे ऊपर हैं l हम किस प्रकार इस बला से बचते हैं यह हमरेविवेक पूर्ण क्रिया कलापों पर निर्भर करेगा l 
2. राजस्थानी कहावत है -बलतो गूदड़ो कोई माथा पर न लेवे l 
कहने का तातपर्य यह है कि बिस्तरों में आग लगी हुई है उस बिस्तर को कोई अपने सर पर नहीं लेना चाहता l कोरोना की लपटें आप तक पहुँचने का प्रयास कर रही हैं आप उसे दूर धकेलने का माजदा रखिए l
- डॉ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान

सरकार ने लाॅकडाउन कर दिया पर कोरोना का क्या। कोरोना का अभी कुछ नहीं होने वाला कोई भी लाईलाज बिमारी जिसकी दवा उपलब्ध नहीं हो आसानी से जाने वाला नहीं। यह बिमारी अभी लोगों को लीलने में लगा हुआ है। लोग अब भी मर रहे हैं या फिर इसके शिकार होकर विस्तर पकड़ लिए हैं। कोरोना से जितने वाले इंसान भाग्यशाली हैं जो इसका शिकार होकर भी बच निकले। थोड़ा बहुत समय लगेगा या ज्यादा भी लग सकता है। कई देश के वैज्ञानिकों ने इसके इलाज में उपयोग होने वाले दवा इजाद करने का दावा किया है।पर अभी तक कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं हुआ है। जब तक दवा बाजार में उपलब्ध हो पाएगी तब तक करोड़ों लोग इसके शिकार हो चुके होंगे। जैसे पुराने जमाने में मलेरिया, हैजा, प्लेग जैसे बिमारियों ने हजारों जानें ले ली थी।तब दवा उपलब्ध नहीं था। लेकिन कुछ अंतराल के बाद जब दवा इजाद हुई तो करीब करीब हर उस शख्स को बचा लिया जाता है जिसके बचने की कोई उम्मीद भी नहीं था। अभी सब्र रखना होगा कोरोना से भी आम जनता को एक दिन छुटकारा मिल जाएगा। जब तक दवा नहीं आ जाती तबतक एहतियात बरतना जारी रखना चाहिए।कहावत भी है।
"बचाव में ही बचाव है"
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव -  हरियाणा
कोरोना गायब ही हो  रहा था , लाकडाउन की ढ़ील से कोरोना का दुबारा ग्रीन जॉन में संक्रमण फैल गया है । 
 सरकार का  यह कदम सही नहीं है ।सरकार की  महानारी से निपटने की पूरी तैयारी नहीं कर सकी है ।  लापरवाही की ढील से कोरोना हावी हो रहा है । नियमों को लोगों ने किनारा कर दिया है ।  कोरोनो के महाजाल में लोग फँसते जा  रहे हैं ।  राजस्थान , महाराष्ट्र , गुजरात  में यह कोरोना आंकड़ा बढ़ गया है ।
 प्रवासी मजदूरों की घर वापसी से समस्या कोरोना की बढ़ती जा रही है ।
ईद का पर्व आया है । बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है । भीड़  से बाजार पटे पड़े हैं । जिससे कोरोना का संक्रमण फैलेगा । मज़दूर रेल्वे स्टेशन पर अपनी टिकट निकालने के लिए भूखे प्यासे धूप , गर्मी में इकट्ठे खड़े हैं । यह तो कोरोना के वायरस फैला रहे हैं।
   विधायक अपने घर पर मुरादाबाद  में राशन बाँट रहे हें । वहाँ  पर लोग जमा हो के लूट मचा रहा है । अब इस लाकडाउन   की ढील  का कौन दोषी है ।  ये भूख मिटा रहे हैं या कोरोना बाँट रहे हैं । सामाजिक दूरी भूल गए ।
लाकडाउन 4  -0 में बाजार खोलने की इजाजत तो मिली है । बड़ी दुकानदारों को ग्राहक  का इंतजार हो रहा है । 31 मई तक लाकडाउन है । ओड , इविन  नम्बरों से दुकानें खुल रही हैं । 
दीनदयाल जंक्शन पर पानी की बोतलों की लूट मजदूरों ने मचायी ।  सामाजिक दूरी अनियंत्रित हैं । 
ऐसी स्थिति में कोरोना की गंभीर समस्या है ।जागरूकता ,  सतर्कता नहीं रखेंगे तो रोम , अमेरिका बनने में देर नहीं लगेगी ।
-डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोरोना ने विश्व भर में कहर मचाया हुआ है  । दहशत और मौत का खेल दिन प्रतिदिन बढता ही जा रहा है  । संक्रमितों और मृतकों के आँकड़े डरा रहे हैं  । कोरोना वायरस को भगाने के लिए ताली - थाली बजाई  । दिये  , मोमबतियाँ और टॉर्च - मोबाइल की फ्लैश लाइट भी जलाई  । वर्तमान में लाॅकडाउन का चौथा चरण चला हुआ है  । चरण दर चरण इसमें राहत रूपी ढील की सौगात भी देशवासियों को दी जा रही है लेकिन कोरोना है कि मानता ही नहीं  । जैसे जैसे लाॅकडाउन की पाबंदी में और ज्यादा ढील दी जा रही है वैसे वैसे कोरोना और उग्र होता जा रहा है  । यदि आँकड़ों पर नजर ड़ालें तो बोलती बंद हो जाती है  -- 
1. 22 मार्च 2020 : 391 केस , 07 मौतें
2. 31मार्च 2020  : 1251 केस , 32 मौतें
3. 15 अप्रैल 2020 :11933केस , 392 मौतें
4. 30 अप्रैल 2020 : 33610 केस , 1075 मौतें
5.15 मई 2020 : 81970 केस , 2649 मौतें
6. 20 मई 2020 : 106750 केस , 3303 मौतें
7. 23 मई 2020 : 126405 केस , 3754 मौतें ( 6:00 पी. एम.) 
आँकड़े परेशान करने वाले हैं । जब कोरोना के मामले व मृतकों की संख्या कम थी तो लाॅकडाउन में सख्ती बरती गई और आज जब आँकड़ों में वृद्धि हुई है तो लाॅकडाउन में बहुत ढील दी जा रही है  । होना तो इसके उलट चाहिए था मगर ... । विडम्बना कहें या मजबूरी ... । प्रश्नचिन्ह हमेशा ही सवाल पूछता रहेगा  । कोरोना का संक्रमण तेज रफ्तार से बढ रहा है और इससे मरने वालों की संख्या भी निरन्तर बढ रही है ।  रिकवरी रेट लगातार बढ रही है । यह 41.39 प्रतिशत है  । बेशक रिकवरी रेट अच्छी है लेकिन कुछ खामियों  , लापरवाही  , दिशा - निर्देशों का उल्लंघन  और गलत एप्रोच की वजह से कोरोना का संक्रमण फैलता ही जा रहा है  ।
- अनिल शर्मा नील 
   बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
               यह सही है कि लाॅक डाउन वर्तमान समय में सरकार द्वारा  ढीला किया गया है लेकिन यह तो अपेक्षित था ।एक लंबे समय तक लॉक डाउन को लागू रख पाना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं था इसलिए  लाॅक डाउन तो ढीला होना ही था। अब  प्रश्न यह  है कि कोरोना का क्या। कोरोना के लिए अभी तक कोई प्रभावशाली दवा, वैक्सीन या कोई  इंजेक्शन आदि का आविष्कार अभी तक नहीं हो पाया है इस कारण से कोरोना वायरस के संक्रमण  का प्रभाव तो बना ही रहेगा लेकिन लाॅक डाउन के दौरान सरकार के द्वारा हमें जिन सावधानियों या सतर्कताओं के बारे में  प्रशिक्षित   किया गया अथवा बताया गया है उन्हें अब हम अपने जीवन में  निरंतर लागू करके सुरक्षित रह सकते हैं। यदि हम  सावधानियों को अपने जीवन में अपनाएंगे जैसे सोशल डिस्टेंसिंग , सैनिटाइजेशन का उपयोग , भीड़-भाड़ से दूरी आदि तो संक्रमण से बचे रहेंगे ।इसके साथ-साथ इम्यूनिटी में बृद्धि कर सकने बाली औषधियां, योग व व्यायाम को भी दिनचर्या में शामिल करना होगा ।लगता है जिस तरह डेंगू, एच•आय•बी• आदि के संक्रमण को रोकने के लिए कोई प्रभावकारी उपाय  अभी तक नहीं ईजाद हो सका है, वैसा ही कोरोना के मामले में होने बाला है ।
    - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम ' 
दतिया -मध्यप्रदेश
लाॅकडाउन  की  लंबी  अवधि  और  कोरोना  से  बचाव  के  निर्देश  जो  प्रतिपल  जागरूक  करते  रहे  हैं ......करते  जा  रहे  हैं  ।  साथ  ही  किसी  अबोध  बच्चे  को  समझाने .....रटवाने  का  प्रयास  किया  गया  ।  जिसे  एक  तरह  का  प्रशिक्षण  कहा  जा  सकता  है  । 
         इतना  कुछ  करने  के  बाद  लाॅकडाउन  चार  में  ढील  दी  गयी  ।  कोरोना  तो  जब  जाएगा  तब  जाएगा  ।  लेकिन  हमारे  रोजगार  को  पूर्णरूप  से  घर  पर  बैठ  कर  तो  चलना  संभव  नहीं  है  ।  सामान्य  जनजीवन  और  सरकार  की  आर्थिक  स्थिति  जो  लाॅकडाउन  के  कारण  प्रभावित  हुई  है, उसे  धीरे-धीरे  पटरी  पर  लाना  जरूरी  है  । 
       लाॅकडाउन  में  ढील  मौजमस्ती  के  लिए  नहीं  अपितु  ऐसे  लोग  जो  प्रतिदिन  के  रोजगार  पर  निर्भर  है  उन्हें   भरपेट  भोजन  मिल  सके .....कारोबार .....उद्योग-धंधे  पटरी  पर  आ  सके .....पुनः  धीरे-धीरे  सभी  कार्य  सुचारु  रूप  से  चलने  लगे  इन्हीं  प्रमुख  मुद्दों  को  मद्देनजर  रखते  हुए  दी  गयी  है  । 
       " धीरे-धीरे  दर्द  ही  दवा  बन  जाता  है "  की  तरह  हमें  अपना  व  सभी  का  ध्यान  रखते  हुए  निर्देशों  का  कठोरता  से  पालन  करते  हुए  कोरोना  के  साथ  चलते  हुए  उस  पर  विजय  प्राप्त  करनी  होगी  । 
        - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
आज देश मे  कोरोना संक्रमित मरीजो का आंकड़ा सवा लाख से ऊपर पहुँच गया है। यह दिन में देश मे 6654 नए केस सामने आए हैं । जब से लॉक डाउन में ढील मिली है आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।
इस आंकड़े में तेज़ी लॉक डाउन 3.0 के बाद से देखी जा रही है। जब शराब की दुकानें खोली गई थी। और 17 मई के बाद लॉक डाउन 4.0 आया। दिल्ली में दुकाने खुलने लगी है। बड़े बड़े बाजार करोल बाग, चांदनी चौक खुलने लगे हैं। और तो और सड़कों पर पानी की रेहड़ी,जूस, लस्सी और मैंगो शेक आदि खुले बिकने शुरू हो गए हैं। आज सड़को पर पूरा ट्रैफिक दिख रहा है। बसों में भी भीड़ देखी गई है। रेलवे स्टेशन पर भी आज अजब नज़ारा देखने को मिला।पानी के लिए रेलवे स्टेशन पर जो लूट मची थी, उससे क्या सरकार कोरोना को हरा पाएगी।
डेढ़ लाख मज़दूर अपने घरों को जिन प्रदेशो में लौटे हैं वहाँ पर आंकड़ा तेजी से ऊपर पहुँच गया है। सिक्किम जैसे प्रदेश जो अब तक कोरोना से अछूता था, वहाँ भी कोरोना ने दस्तक दे दी है। ये सब किसका नतीजा है। गलत समय पर ढील देने का।
सभी जानते है कि दिल्ली में पूरे देश में  कोरोना संक्रमण के तेजी से फैलने का कारण। तब लॉक डाउन का सख्ती से पालन करवाया गया। सभी ने होली हो या राम नवमी सिर्फ घर रह कर मनाए और कोई फरियाद नही की कि हमें मंदिर जाने दिया जाए।
अब ईद नजदीक है और बाज़ारो में रौनक लौटने के लिए ढील दी दी गई। क्यों नहीं 31 मई तक इसे पूरे देश में सख्ती से लागू किया गया। क्यों ढील देकर मौत को दावत देने की तैयारी की है। फिर ये कैसा लॉक डाउन रह गया।
पूरे देश को 60 दिनों तक लॉक डाउन में बंद रखने के बाद, इतना आर्थिक नुकसान सहने के बाद, अगर सब को कोरोना को परोसना ही था तो क्यों लॉक डाउन का तमाशा दिखाया  क्यों हर एक को ख़ौफ में रखा कि बाहर गए तो आपको कोरोना हो जाएगा। तो अब क्यों खुद ही बाहर भेजने को मजबूर कर रहे हो। 
अब ये कहकर कि हमें कोरोना के साथ ही जीना पड़ेगा तो क्यों कैदी का जीवन बिताने पर जनता को मजबूर किया।सरकारें खुद ही समझ नहीं पा रही कि हमें आगे करना क्या है? देशवासियों की इतनी बड़ी तपस्या क्या यूँ ही विफल हो जाएगी।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
जैसा कि आप सब जानते है साथ ही साथ पूरा देश ये जानता है कि कोरोना हम सबके बीच से बहुत जल्दी विदा होनेवाला नही है, साथ ही साथ इस बात से भी सभी परिचित हो गए है कि हमे अपनी सुरक्षा स्वयं करनी है,3 सप्ताह के लॉक डाउन के दौरान सरकार की गाइड लाइन को अधिकांश लोग अपनाने लगे हैं और आगे हमको क्या क्या सतर्कता बरतनी चाहिए और किस तरह से इसको हमको साथ मे लेकर चलना है इसका सभी को पालन करना है,साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को पटरी मे लाने के लिए बहुत आवश्यक है कि सभी नियमों का पालन करते हुए सावधानी पूर्वक फिर से सामान्य जनजीवन की और लौटना होगा।
और सभी लोगो का इसका पालन करना होगा।
सावधानी सतर्कता का रहेगा साथ
तभी होगा कोरोना अनाथ।
सामाजिक दूरी रखना होगा
जीवन को सुरक्षित रखना होगा।
सब करेंगे नियमों का पालन
तभी जीवन का होगा संचालन।
और फिर से कोरोना को मात कर एक नई सुबह होगी,बहुत समय तक लॉक डाउन करना बहुत ही मुश्किल है हमारे देश की 80 प्रतिशत आबादी कामगार और अलग अलग धंधे और लघु उद्योग के भरोसे चलते हैं रेहड़ी ,ठेलेवाले,सब्जीवाले,छोटे स्कूल, दर्जी ,छोटे छोटे सैलून,प्लम्बर परचूनी दुकान पान वाले छोटे छोटे होटल और  भी बहुत से काम ऐसे हैं जिससे रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा किया जाता हैं और जो ये काम करते हैं उनका घर इसी से चलता है और मध्यम वर्गीय परिवार को कही से कोई शासकीय सहयोग प्राप्त नही होता है उनको अपनी सारी जरुरतों को पूरा करने के लिए अपना काम व्यवसाय पर ही निर्भर रहना पड़ता है,इसलिए लोकडौन को ढीला करना आवश्यक भी है और सरकार की मजबूरी भी है, अबलोगों ने सतर्कता के साथ जीवन यापन करना सीख लिया है इसलिए तालाबंदी पर ढील दी गई हैं।
आत्मविश्वास के साथ चलना होगा।
देश का साथ निभाना होगा।
और कोरोना मुक्त संसार बनाना होगा।
- मंजुला ठाकुर 
भोपाल - मध्यप्रदेश
सरकार द्वारा लॉक डाउन ढीला किया जाना आवश्यक था। आखिर कब तक आर्थिक गतिविधियों को बंद रखा जा सकता था। जीवन को सुचारु रूप से चलने देने के लिए कुछ नियमों का पालन करवाते हुए लॉक डाउन को ढीला किया गया है।
        लॉक डाउन की अवधि में हर व्यक्ति समझ चुका है कि कोरोना तो जाते-जाते ही जायेगा, पर उससे अपना बचाव करते हुए, नियमों का पालन करते हुए कैसे रहना है, कैसे काम करना है... यह भी समझ जान चुके हैं।
         इस जानने और समझ लेने की वास्तविक परीक्षा की घड़ी तो अब आयी है। अब व्यक्ति को स्वयं यह यह निर्णय करना है कि वह स्वस्थ रहने के लिए पूर्ववत नियमों का पालन करते हुए अपने सभी कामों को गति देगा, स्वयं स्वस्थ रह कर अपने घर-परिवार, मोहल्ले, समाज और देश के हित में जागरूक रहेगा या समस्याओं को बढ़ाने में अपना योगदान देगा।
         हमें अपनी बदली हुई इस जीवन को एक लम्बे समय तक ही नहीं सदा के लिए अपने जीवन का अंग बना कर कोरोना को हराने के लिए अपना युद्ध जारी रखना होना।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
      सरकार ने लाॅकडाउन ढीला नहीं किया बल्कि सरकार स्वयं ढीली हो गई है। सरकार के समस्त कलपुर्जे ढीले हो गए हैं। जिन्हें ग्रीस लगाने के लिए भी सरकार के पास धन नहीं बचा और मंदिरों को खोलने से पहले शराब की दुकानें खोल रही है।
      कोरोना ने जहां एक तरफ अर्थव्यवस्था को पटरी से नीचे उतारा है। वहीं दूसरी ओर सरकार को पारदर्शी भी बनाया है। यही नहीं सरकार के उच्च अधिकारियों के अनुशासनात्मक कर्त्तव्य/कार्रवाई और अनुशासनहीनता के दृश्यों का भी पर्दाफाश किया है। जिससे अगामी सरकार और नागरिक आपसी तालमेल से पहले से अधिक विकास करेंगे।
      क्योंकि नागरिक जागरूक हो गया है और प्रधानमंत्री जी से सीधे अपनी बात रखने में सक्षम हो गया है। जिससे प्रशासन भी चुस्त दुरुस्त होकर भ्रष्टाचार से तोबा करने में ही अपनी भलाई समझने लगेंगे। चूंकि सरकारी कर्मचारियों को पता चल गया है कि वह नौकरी से अधिक निजी व्यवसाय में नहीं कमा सकेंगे। इसलिए मेरा दावा है कि कोरोना भ्रष्टाचार को खत्म करने में भी अपनी अच्छी भूमिका निभायेगा।
      उल्लेखनीय है कि राष्ट्र भ्रष्टाचार से मुक्त होकर जितना विकास 70 वर्षों में नहीं कर पाया वह सात वर्षों में करेगा। 
      चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने युवाओं को 'लोकल फार वोकल' स्कीम देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जो प्रयास किया है। वह अत्यंत सराहनीय है। जिसमें कोई भ्रष्टाचार या कालाबाजारी का साहस नहीं करेगा। उससे विधायिका, कार्यपालिका, न्यायापालिका और पत्रकारिता के चारों स्तम्भ स्वस्थ व सक्षम हो जाएंगे। क्योंकि मेरा निजी अनुभव है कि कोरोना से अधिक घातक भ्रष्टाचार है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सरकार ने लॉक डाउन में 75% ढील दे दी है। दिल्ली, बिहार व अन्य प्रदेशों में भी छूट दी गई है । यह ढील मजदूर वर्ग, छोटे व्यापारी और छोटे उद्योग-धंधों को देखते हुए दी गई है। इसके साथ-साथ मजदूरों की घर वापसी भी जरूरी हो रही थी । उन्हें खाने-पीने की परेशानी भी कोरोना के डर से ज्यादा भयावह लग रहा था। सारी व्यवस्था करने में समय तो लगेगा ही।
 इन सभी सुविधाओं ने कोरोना को गति तो अवश्य दी है, और आगे भी गति तेज होने की आशंका है। क्योंकि अनेकों लोग इसके खतरे से वाकिफ़ नहीं है। वे छिप-छिप कर घर भाग रहे हैं। इससे वे अपने परिवार को भी संक्रमित करेंगे और देश की समस्या को भी बढ़ा रहे हैं । इस ढील के साथ अब सारी जिम्मेदारी जनता की है । अगर जनता खुद से सुरक्षा के नियम का पालन नहीं करेगी तो कोरोना से बचाव मुश्किल है। क्योंकि अभी तक दवा की खोज नहीं हुई है । अब तो खुद ही बचाव करना होगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार


" मेरी दृष्टि में " कोरोना वायरस से बचने के लिए लोगों को जागरूक रहना पड़ेगा । तभी कोरोना से जंग को जीता जा सकता है । जीवन में सोशल डिस्टेंसिंग , मुहँ पर कपड़ा , आदि का पालन हर स्थिति में करना पड़ेगा ।  तभी कहीं जा कर जीवन को सुरक्षित रख पायेंगे ।
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी
                                   
सम्मान पत्र 
    



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