कोरोना की जंग में युवा कहाँ खड़ा है ?
कोरोना वायरस ने दुनियां में हाहाकार मंचा रखा है। भारत में लॉकडाउन से लोगों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है । इससें सबसे अधिक युवा ही प्रभावित हुआ है। जो
देश के भविष्य हैं । कोरोना की जंग में भी सबसे आगे हैं । चारों तरफ देखने को मिल जाते हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कोराना की जंग में आज का युवा उस जगह खड़ा है जहां से उसे अपने आने वाले कल की एक बदली हुई तस्वीर दिखाई दे रही है।किसी भी जाति,वर्ग समाज व देश का युवा ही वो शक्ति होता है जो आने वाले दिनों की नींव तैयार करता है।इस महामारी को करीब से देखने वाले ये युवा ही देश के आगामी दिनों की कथा लिखेंगे।कोराना की जंग में युवा ही अपने कन्धों पर सबसे अधिक जिम्मेदारी लेकर खड़ा है।इस महामारी के बाद आने वाले दिनों में,यही युवा वर्ग ही नए भारत की दिशा तय करेगा।बुजुर्ग अपने हिस्से की भागीदारी लगभग निभा चुके हैं,और बच्चे अभी सीखने कि अवस्था में हैं,तो सिर्फ और सिर्फ युवा वर्ग ही तैयार है अंधकार के बाद रोशनी की नई किरण का स्वागत करने के लिए।इस वर्ग को बुजुर्ग और बच्चों दोनो के साथ सामंजस्य बिठाने की युक्ति के साथ ही साथ संयम को नई जिम्मेदारियां का बोझ उठाने को तैयार करना होगा। इन्हीं युवाओं में हम नए भारत को ढूंढ़ रहे हैं।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तरप्रदेश
कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में अगर किसी का महत्वपूर्ण योगदान है तो वह है हमारे युवा
कोई सा भी क्षेत्र हो चिकित्सा का हो या सुरक्षा का डॉक्टर और पुलिस के रूप में इन्होंने कोरो ना संक्रमित को भगवान बनकर बचाया है।
सामाजिक क्षेत्र में इन्होंने निस्वार्थ भाव से सुबह-शाम भोजन पहुंचाना
घर घर राशन पहुंचाना दिन रात काम किया है ।
कश्मीरी युवा जो सिर्फ पत्थर फेंकते थे आज वे युवा नया आविष्कार कर रहे हैं । मास्क व किट बना रहे हैं। आत्मनिर्भर हो रहे हैं।
युवा चाहे महिला हो चाहे पुरुष दोनों ने कभी पुलिसकर्मी के रूप में कभी स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में अपने परिवार की चिंता किए बिना दिन रात कोरो ना जंग में काम किया है ।
आज जबकि लॉ क डाउन हैं अधिकांश युवा वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं ।
कोई भी युवा खाली समय नहीं व्यतीत कर रहा नए युवा जो अभी अध्ययनरत हैं उन्हें भी एक नई दिशा मिली है कि आत्मनिर्भर होना जरूरी है ।
वह देख रहे हैं कि वर्क फ्रॉम होम यानी घर बैठे ही अधिकांश कर्मचारी अपनी सर्विस को अच्छी तरह से अंजाम दे रहे हैं तब उनका भी रुझान इस और बढ़ा है की हम भी आगे पढ़कर ऐसा प्रशिक्षण लेंगे की जिससे हम भी वर्क फ्रॉम होम कर सकें ।
यानी कोरोना की जंग मैं सभी नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो रहे हैं और युवाओं को ऐसा होना भी चाहिए आजकल ऑनलाइन पर प्रशिक्षण चल रहे हैं कंप्यूटर युग है पूरा वर्क कंप्यूटर से कहीं पर भी कहीं पर से भी चलाना संभव हो गया है परंतु इसके लिए जरूरी है उसका मनोयोग से किसी भी जंग के लिए तैयार होना आत्मनिर्भर होना ।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
करोना की जंग ने युवाओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है। उनकी जीवनशैली में कैसे बदलाव आए ताकि बिना से विकास की ओर चल सके हर परिवार में तीन आयु के मनुष्य पाए जाते हैं बच्चे युवा और वृद्धा बच्चे और वृद्धा की जिम्मेदारी युवाओं की होती है क्योंकि युवा ही श्रम शील होते हैं बच्चे और वृद्धा कुछ हद तक सहयोग घर में करते हैं लेकिन मुखिया का रोल युवा की जिम्मेदारी होती है इस करुणा के मारने युवाओं को झकझोर कर दिया है। गांव के युवा अधिक पैसा कमाने शहरों की ओर पलायन करते हैं अपने घर परिवार को छोड़कर और शहरों के युवा विदेश जाते हैं अधिक पैसा कमाने या अधिक हाई लेवल का स्किल सीखने पढ़ने अपने घर परिवार से दूर करो ना महामारी ऐसा दिलवा दिया है लोगों को कि पैसा बड़ा है या अपना घर परिवार हजार किलोमीटर दूरी भी टैग कर युवा अपना घर परिवार की ओर पलायन किया और पैसे की हवस चकनाचूर हो गया वर्तमान में युवा का यही सोच रहा पैसा ही सब कुछ है शहरों में पैसा की कमी नहीं है उद्योगपतियों के पास लेकिन फिर भी असंतुष्ट है यही संतुष्टि परिवार में पैसा कमाने के लिए मजबूर करती है साधन संपन्न होते हुए भी दुखी दरिद्र की तरह जीवन व्यतीत करते हुए अमीरों को देखा जा रहा है वर्तमान के युवा उद्योग पर पैसा वाला व्यक्ति भी उद्योग लगाने पर ध्यान दिया इसी की मानसिकता शारीरिक मेहनत श्रम पर नहीं गया। यही बेरोजगारी का कारण है आज जहां मनुष्य को शक्ति लगाना है वहां टेक्नोलॉजी की दुनिया में मशीनों से काम लिया जा रहा है यही मानव समाज में अव्यवस्था का कारण है धनवान और अधिक धनवान और गरीब और अधिक गरीब अर्थात समाज में गरीब अमीर में समानता दिखाई देती है जबकि गरीब और अमीर के बीच आए और आवश्यकता संतुलन होना है ताकि दोनों की आवश्यकता की पूर्ति हो सके लेकिन ऐसा नहीं चाहे गरीब हो या अमीर सभी की मानसिकता में पैसा ही पैसा ही सब कुछ है ऐसा माना जा रहा है पैसा में ही संतुष्टि ढूंढ रहे हैं पैसा से आज तक कोई भी व्यक्ति संतुष्ट नहीं हुआ है पैसा से तारीख सीधा की पूर्ति हो सकती है मानसिक कि नहीं अभी करो ना मारने सचेत की सूचना के रूप में प्रकट हुआ है ऐसा प्रतीत होता है इसी सभी परिस्थिति को देखते हुए करोड़ों युवाओं को सोचने समझने के लिए मजबूर कर दिया है युवाओं का भविष्य अगर सकारात्मक सोच की तरफ होगा तो उनका उज्जवल भविष्य जरूर विकास की ओर नहीं तो विनाश की ओर आज करो ना युवाओं को एक नई दुनिया में जीने की शैली के लिए इंगित कर रहा है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हमारा युवा वर्ग आज का भविष्य है!
कोरोना की जंग में हमारे युवा वर्ग ने जो कार्य किया है वह तारीफे काबिल है!
वह किसी फौज में लड़ रहे योद्धा से कम नहीं है! डाक्टर, पेरा मैडिकल स्टाफ सफाई कर्मचारी, पुलिस डिपार्टमैंट, फौजी ,मीडिया सभी क्षेत्र में काम करने वाले निःस्वार्थ अपने जान की परवाह किए बिना अपना कर्तव्य निष्ठा से निभाने वाले युवा वर्ग को लोग भगवान की श्रेणी में आंकने लगे !
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के उपायों को हर तरीके से जनजागृत करने का प्रयत्न किया! भूख से पीड़ित गरीब मजदूरों को भोजन राशन दे अनवरत सेवा में लगे रहे!
वृद्धो में इस संक्रमण का खतरा ज्यादा है ऐसी स्थिति में हर जवान बेटा उनका श्रवण कुमार बना!
सार यही की हर युवा इस कोरोना की जंग में समाज परिवार के साथ कंधे से कंधा मिला परिस्थिति का सामना करते हुए इस संक्रमण को नियंत्रण करने का प्रयत्न कर रहे हैं!युवाओं का इस जंग में ऐसा जोश देख पूर्ण विश्वास है कि हम कोरोना को जरूर हराएंगे!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज के इस समय में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कुछ न कुछ सीखने को अवश्य ही मिला है।समय का चक्र अपने साथ कब क्या लेकर आएगा यह कोई नहीं बता सकता। ऐसे में इस कोरोना की जंग में युवाओं की बात करें तो 80% युवा आज अपने परिवारों से दूर हैं। कोई कहीं तो कोई कहीं ऐसे में हर कोई समय के हिसाब से अपने आप को ढाल लेता है। आज के इस कोरोना के जंग में युवा स्वालंबन के साथ-साथ आत्मनिर्भर भी बन गया है। जिम्मेदारियों को ज्यादा समझने लगा है। आज का युवा एक समाजसेवी बनकर कहीं होम डिलीवरी कर रहा है।तो कहीं राह चलते राहगीरों को जल पिला रहा है। कहीं अस्पतालों में ब्लड डोनेट कर रहा है। तो कहीं पुलिस बन अवाम की मदद कर रहा है।तो कहीं ड्राइवर बन लोगों को अपने गंतव्य की ओर पहुंचा रहा है। हमारे देश का युवा आज हर क्षेत्र में अपनी भूमिका बहुत ही ईमानदारी से निभा रहा है। यह एक बहुत ही सराहनीय और प्रशंसनीय कार्य है।हर व्यक्ति समय के साथ चलकर बहुत कुछ सीखता है। इसी कोरोना की जंग में युवा एक सशक्त मजबूत ढाल बनकर खड़ा है।यही आगे चलकर उसके उज्जवल भविष्य का मार्ग बनेगा ऐसी उम्मीद है।
- वंदना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
वैश्विक कोरोना महामारी की आंच जब भारत में भी आने लगी तो प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी ने समय पर उचित फैसले ले कर देश का अत्यधिक नुक्सान होने से बचा लिया दूसरे अपने अनेकों संबोधनों में देश की जनता को इस लडाई के लिये मानसिक और आर्थिक रुप से भी तैयार कर दिया । यही कारण है कि भारत में ये महामारी अभी भी काफी हद तक काबू में है ।
लॉक डाऊन के चारों खंडो 01-02-03-04 में देश के युवा वर्ग ने वो उत्कृष्ट कार्य किये हैं कि इस वर्ग की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है ।।
01 युवा वर्ग ने प्रभावितोँ को खाने रहने की व्यवस्था की
02 इन्होनें समाज में सरकारों के दिशा निर्देशों को सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचाया ।
03 युवा डाक्टरों ने मरीजों की दिन रात सेवा की
04 युवा पुलिस कर्मियों ने 24घन्टे अपनीडियूटी का बहादुरी से पालन किया
05 युवा पत्रकारों ने जान की परवाह किये बगैर रिपोर्टिंग की
06युवा और उत्साही युवाओं ने समूह बना कर कोरोना योधाओं की सेवा की ।
और भी अनेकों कार्य इस दौरान युवा वर्ग ने किये जिस कारण एक ओर महामारी पर अंकुश लगा वहीं दूसरी ओर सरकार,प्रशासन,पुलिस,स्वास्थ्य कर्मियों,तथा कोरोना के प्रत्येक योद्धा की सहायता की गयी ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
यह समाचार जितना चिंताजनक है उतना ही भयावह भी है. कोरोना महामारी के भारत पर प्रभाव को लेकर एक शोध किया गया है जिसकी रिपोर्ट भारत के युवाओं के लिए शुभ नहीं लगती. अमेरिका के प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप दी वाशिंगटन पोस्ट ने तैयार की है ये रिपोर्ट.
भारत में कोरोना संक्रमण को लेकर किये गए इस शोध का परिणाम डरावना प्रतीत होता है क्योंकि विश्व में भारत की साख एक नौजवान देश के रूप में है. किन्तु दी वाशिंगटन पोस्ट की हालिया रिपोर्ट भारत की इस छवि को लेकर चिंता पैदा करती है. यह रिपोर्ट बताती है कि भारत और ब्राजील जैसे विकासशील देश कोरोना महामारी के हॉट स्पॉट बनते जा रहे हैं और इसका परिणाम ये हो रहा है कि अब ये संक्रमण इन दोनों देशों के युवाओं को तेजी से अपना शिकार बना रही है.
भारत में कोरोना महामारी को लेकर तैयार की गई इस अमेरिकी रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत और ब्राज़ील में कोरोना वायरस अपना विनाशकारी रूप दिखा रहा है. इस रिपोर्ट के अनुसार इन दोनों देशों के अस्पतालों में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले और अस्पताल में भर्ती होने वालों लोगों में युवाओं की बहुतायत है. हैरानी की बात तो ये है कि चीन अमेरिका और इटली जैसे इस महामारी के दुसरे एपिसेन्टर्स में युवाओं में संक्रमण की दर इतनी अधिक नहीं देखी गई है जितनी अब इन दोनों देशों में नज़र आ रही है.
संक्रमण लगातार फैलता जा रहा है. कोरोना का संक्रमण युवाओं पर ज्यादा अटैक कर रहा है. इस उम्र के युवा सबसे ज्यादा अस्पताल में पहुंचे. इसका प्रमुख कारण इन युवाओं का बाजारों व सड़कों पर ज्यादा घूमना-फिराना रहा. इससे ये सबसे ज्यादा संक्रमित हुए हैं.
कुछ युवाओं की नौकरी जाने से इन्होंने तय किया है कि वो अब गाँव में रह कर काम करेंगे
युवाओं के सामने बेरोज़गारी की भंयकर समस्या आ खड़ी हुई है ।
वह समझ नहीं पा रहा है क्या करना है और क्या नही ...!!
लाकडाऊन खलने पर हाँ स्थिति का अंदाज़ा लगेगा , इस समय कुछ नहीं कहाँ जा सकता !
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज का युवा बेरोजगारी की कतार में खड़ा है इस महामारी के आ जाने से इस सवा सौ करोड़ जनसंख्या वाले देश में वह अपने आप को लाचार महसूस कर रहा है क्योंकि पहले ही उसके लिए रोजगार के अवसर बहुत कम थी और आप तो और भी कम हो गए हैं उसकी पढ़ाई लिखाई करने के लिए जो वह विदेश गया था वहां से भी वह किसी तरह जान बचाकर भाग गया है आया है और नहीं तो फंसा हुआ है कुछ के एग्जाम नहीं हुए हैं कुछ कंपलीट एग्जाम भी ढीले हो गए हैं आगे जाने क्या होगा आगे ऑनलाइन पढ़ाई की नींव पड़ गई है।
युवा पहले से ही भटका हुआ था पढ़ाई ना करना प्रकृति की परवाह नहीं करना बड़ों की इज्जत नहीं करना अब इस महामारी से उसे कुछ अक्ल आ जाए क्योंकि उसे अपने आसाराम की सारी चीजें चाहिए पर पढ़ाई लिखाई और मेहनत करने की उसको आदत नहीं थी इस महामारी के बाद वह कुछ अच्छा ही सीख ले तो यह उसके लिए बहुत अच्छा होगा और वह सही रास्ते पर आ जाए प्रकृति ने सभी को एक कड़वा आइना दिखा दिया है क्योंकि प्रकृति के ऊपर हमने बहुत अत्याचार कर दिया था आज आप किसी भी झूमे जा कर देखिए जानवर खुश हैं और प्रकृति एकदम साफ हो गई है रोहतक से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं दिख रही हैं।
हर आपदा के बाद कुछ अक्ल आती है अगर हमारा युवा भी कुछ अक्ल ले ले और अपने काम करने के तौर-तरीकों को बदल दी तो वह देश का आर्थिक विकास कर सकता है और स्वयं को भी प्रकृति की राह में ले जा सकता है युवा को सोचने समझने की बहुत ताकत है वह अपने लिए कोई ढंग का व्यवसाय या नौकरी सोचकर समाज और देश की सेवा करें और अपना भी जीवन स्तर को सुधार सकता है।
उम्मीद बहुत है और गम बहुत छोटा है एक दिन यह अंधकार जरूर मिलेगा और देश का युवा ही इसे मिटाएगा।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि अपनी सोच को वैज्ञानिक रखो।
इस देश का युवा जाग जाएगा तो इस देश की प्रकृति को कोई नहीं रोक सकता ।
*उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त ना हो जाए।*
*स्वार्थ सिद्ध से सुख मिलता है,
यह कोरा भ्रम, कुछ और नहीं
त्याग में ही सच्चा सुख
है सत्य ही और कुछ नहीं*
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
कोरोना की जगं में हमारे नवजवानों ने बहुत संघर्ष किया हर क्षेत्रों में समाजसेवा , में , डा. ने पुलिस नवजवानों नें रातदिन एक कर समाजिक राहत कार्य में लग कर कोरोना से पुरी तरह लड़ रहे है । अपनी सेहत व नींद गँवा कर काम में लगे हैं ।
जंग जीतने की ज़िम्मेदारी योद्धाओं के साथ देश के नेतृत्व पर भी होती ...!
महाभारत के युद्ध के समय भगवान कृष्ण महारथी थे, सारथी थे. आज 130 करोड़ महारथियों के बलबूते हमें कोरोना के ख़िलाफ़ इस लड़ाई को जीतना है."
जानकारों का कहना है कि कोरोना संक्रमण से उन लोगों की जान को ख़तरा हो सकता है जो बूढ़े हैं और जिन्हें पहले से ही दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं हैं.
कहते हैं कोरोना का युवाओ पर कम ख़तरा है , पर ऐसा है नहीं युवा भी कोरोना से जूझ रहे है यह युवाओं को नहीं होता ,ऐसा बिल्कुल नहीं है ।
कोरोना संक्रमण से युवाओं को कम ख़तरा है. पर कई युवा भी इस वायरस के कारण आईसीयू में पहुंच चुके हैं। और लड़ रहे हैं यें जगं और जीत कर घर वापस आ रहे है , कुछ काल के मूंह भी लग गये ...! जो बचे हैं वो धैर्य रख रहे है ..
परन्तु लाकडाऊन ने उनके सपने तोड़ दिये है , नौकरियाँ चली गई व्यवसाय बंद हो गये क्या करे ..!
एक-एक करके सेक्टरों को छूट देने के बाद खुल रहा है और असंगठित क्षेत्रों के कामगारों को छूट देने की योजना बनानी होगी. अर्थव्यवस्था को वापस अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जरूरी है कि उपभोक्ता अपने घरों से बाहर निकलें. एक बार फिर कहना पड़ेगा कि हमारी युवा आबादी हमारी सबसे बड़ी पूंजी साबित होगी.
हम नहीं जानते कि कोविड-19 के खिलाफ समूहों की प्रतिरोध क्षमता हासिल करने के लिए कितनी बड़ी आबादी की जरूरत पड़ेगी या किस सीमा के बाद ऐसा हुआ माना जाएगा. लेकिन एक सीमा के बाद, जब आबादी के करीब 85 प्रतिशत हिस्से यानी अधिकतर युवाओं को वायरस से सुरक्षित किया जा सकेगा तब उसका वाहक कोई नहीं होगा.
बुज़ुर्गों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए. भारत में सेवानिवृत्ति की सामान्य उम्र 60 साल ही है. लॉकडाउन खत्म होने के बाद दफ्तर वगैरह जब खुलें तो उनमें युवाओं की संख्या ही ज्यादा हो, 60 से ऊपर की उम्र वालों को घर में ही रहने को कहा जा सकता है. 60 से कम उम्र वालों में अगर दूसरी रुग्णता हो तो उन्हें भी विकल्प चुनने का मौका दिया जा सकता है. इससे अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में मदद मिलेगी. हो सकता है कि कुछ युवाओं को वायरस का संक्रमण हो जाए लेकिन उन्हें आपात स्वास्थ्य सेवा की कम ही जरूरत होगी और उन्हें जल्दी स्वस्थ किया जा सकेगा.
लेकिन सबसे अहम सवाल आज यह है कि लोग अपनी आजीविका फिर से कैसे हासिल करें, जबकि अस्पताल लोगों की जान बचाने में लगे रहें. दीर्घकालिक सवाल यह है कि लोग कोरोनावायरस से लड़ने की ताकत कैसे हासिल करेंगे. वैक्सीन हासिल होने तक युवा ही कोरोना के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा हैं. उनकी ताकत बढ़ाकर ही वायरस के फैलाव को रोका जा सकता है.
युवाओं को बहुत से मेर्चे सम्भलना है ।
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
युवा हमेशा से ही समाज का नेतृत्व करता हुआ , देश व समाज के लिए अपनी प्रथम भूमिका निभाता आया है । परंतु एक ओर तो
युवाओ के सामने बेरोजगारी जैसी समस्या पहले ही चुनौती बनी हुई थी , जिसका वह लंबे समय से दंश झेल रहा है और हद अब है जब लोगो के पास थोड़ा बहुत रोजगार व नौकरियां हैै भी तो वो इस महामारी के चलते उनसे छिन गया है और बचा कुचा छिनने को तैयार है । युवाओ के सामने रोजगार व नौकरियों की एक बड़ी समस्या है और अब तो दूर दूर तक रोजगार का अता पता नही है । जिस कारण युवा बेहद चिंतित भी है । ऐसे में युवाओ के मन को न केवल संबल देने की आवश्यकता है । बल्कि रोजगार के प्रमुख इंतेजामो की भी अतिआवश्यकता है ।
देश व समाज का नेतृत्व करने वाला युवा , समाज की प्रथम इकाई , भले ही आज व्यापार, नौकरी व रोजगार न होने के कारण सबसे पिछड़ा नजर आ रहा हो परंतु कोरोना जैसी महामारी के चलते समाजहित मे अपने दायितावो का निर्वहन करते हुए (खाना खिलाते हुए, खाने के पैकेट बाटते हुए ) तथा जरूरत मन्दो की आर्थिक व शारीरिक मदद करते हुए समाज के प्रथम मोर्चे पर नजर आ रहा है ।
परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
वर्तमान में युवाओं के लिए निःसंदेह एक बड़ी चुनौती है ये एक ऐसा काल है जो कुछ छोड़ने और कुछ अपनाने के मध्य उहापोह की स्थिति है और ये निश्चित तौर पर युवाओं के लिए एक चुनौती है । ऐसी स्थिति में सारी दुनिया बदलाव के कारण समस्याओं से निपटने के लिए तैयारी कर रही है बहुत पुरानी हो रही काम काज करने की शैली कार्य क्षेत्र से बाहर हो रही है और नई टेक्नोलॉजी ऐन्ट्री करने रही है ये सब युवाओं के लिए एक अनूठा समय है जिसमें युवाओं को कुछ नया कर दिखाने के साथ रोज़गार के अवसर भी प्राप्त होंगे । युवाओं के लिए नई टेक्नोलॉजी एक खेल के रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ना होगा ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस से जारी जंग में पूरे देश में कोरोना वाॅरियर्स के रूप में युवा वर्ग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
युवाओं ने अपने-अपने क्षेत्र में टीम बनाकर मास्क वितरण, सेनिटाइजेशन की व्यवस्था, निर्धन वर्ग के लिए भोजन के साथ-साथ नकद धनराशि की व्यवस्था करते हुए सकारात्मक भूमिका निभाई है।
कुछ युवाओं ने अपने समूह के माध्यम से लाॅकडाउन की अवधि में पशु-पक्षियों के लिए भोजन-पानी की स्वयं तो व्यवस्था की ही है, साथ ही अपने परिचितों को भी इसके लिए प्रेरित किया है, जो सराहनीय है।
मजदूरों की सहायता करने में भी युवा वर्ग पीछे नहीं है। युवाओं ने यथासम्भव अधिकाधिक मजदूरों के भोजन की व्यवस्था की है।
कोरोना से युद्ध में प्रथम पंक्ति पर लड़ रहे कोरोना योद्धाओं (चिकित्सा, सुरक्षा स्वच्छता कर्मी) के उत्साहवर्धन एवं आभार हेतु युवा वर्ग ने सम्मान व्यक्त करने हेतु भी महति कार्य किया है।
इसके अतिरिक्त तकनीकी रूप से दक्ष युवा वर्ग ने सोशल मीडिया एवं व्यक्तिगत रूप से कोरोना से बचाव हेतु सावधानियों का प्रचार-प्रसार कर जन-जागरण को जागरूक करने का कार्य किया है।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि कोरोना की जंग में हमारा युवा वर्ग पूर्ण उर्जा के साथ महत्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका निभाते हुए प्रथम पंक्ति पर खड़ा है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
आज की चर्चा 29 मई कोरोना की जंग मैं हमारे कर्ण धारों ने घर पर रहें सुरक्षीत रहें के साथ सब को घर पर ही रोक दिया था अब सवाल यह उठता हैं की जंग में युवा कहाँ खड़ा हैं युवाओं में भी जीनहें कुछ कर गुजरने की लालसा हैं वे ही आगे बढ़ कुछ काम करते इस जंग में हमे नजर आये ओर अपने अपने स्तर पर कार्य करने लगे फिर वह गरीबों को भोजन पहुचाना हो या उनकी अवस्य जरूरी चिजे उपलब्ध करवाना हों हमारे शहर का ही ले लो यहा पर जब पता चला की लाखों लाख मजदूर गरीब लोग भुखे प्यासे हायवे से जा रहे हैं तो सेवा धारियों का मेला सा लग गया कोई खिचड़ी खिला रहा था कोई बिस्किट बाट रहा था तो कोई सब्जी पुड़ी खिला रहा था कोई पानी के पाउच लेकर सेवा दे रहा था इसमें भी संघ, राष्टीय स्वयं सेवक संघ अग्रणी पगती में खड़े नजर आये में कह सकता हुँ की कोरोना काल में युवाओं का सराहनीय योगदान रहा हैं।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्यप्रदेश
भारतीय इतिहास उठाकर देख लीजिए जब-जब देश में किसी भी तरह का संकट आया हैं, तब-तब
युवाओं की अहम भूमिका रही हैं।
उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया हैं।
वर्तमान में भी परिदृश्यों को देख लीजिए। कोरोना महामारी के लाँकडाऊन के दौरान भी युवा महिला-पुरुष बड़ी तत्परता के साथ अपने-अपने कार्यालयों, अस्पतालों, विभिन्न क्षेत्रों में कर्तव्यनिष्ठ होकर प्रशासनिक हो या समसामयिक व्यवस्था पूर्णतः कार्य सुचारू रूप से सम्पादित कर रहे हैं, युवाओं के सामने पहिला प्रकरण सामने आया हैं, जिसके परिवेश में अपने आपको अपनी योग्यता परिदृष्टी करना चाहते हैं। लेकिन पूर्व तो युवा वर्ग इसे समझ नहीं पा रहा था, लाँकडाऊन के दौरान भी रोड़ों पर बे-हिचक घुमे जा रहा था, किन्तु जब धीरे-धीरे-धीरे समझ में आया तो, विभिन्न जगहों-जगहों पर राहत सामग्रियां वितरित करने लगे, खून दान देने सामने आने लगे तथा आर्थिक व्यवस्थाओं में मदद करने लगे। वाहन व्यवस्थाओं के माध्यम से अहसास जनों को घर-घर तक पहुंचानें लगें। युवाओं पर निर्भर हैं, अब पुनः भविष्य?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
इस कोरोना से उत्पन्न परिस्थितियों ने हमारी कई धारणाएँ बदल दी हैं। आज के युग के आधुनिक और प्रगतिवादी युवाओं के प्रति हमारे समाज जो कुछ गलत धारणाएँ थीं उसको इन युवाओं ने आज की इस विकट परिस्थिति में अपनी सहृदयता और सूझबूझ दिखलाकर, समाप्त कर दिया है। आज का युवा अपनी सरकार और समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर परिस्थिति को नियंत्रण करने के प्रयास में अपनी जो सहभागिता दिखाई है उसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। चाहे गरीबों और जरूरतमंदों के मध्य खाद्य सामग्री या अन्य आवश्यक वस्तुओं का वितरण हो या फिर अपने आसपास के एकाकी बुजुर्गों की सहायता करनी हो, प्रत्येक कार्य में इन युवाओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया है। जीवन के साथ ही साथ मृत्यु की स्थिति में भी उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं उठाए हैं। महामारी के इस काल ने जिन्हें लील लिया और उनका अंतिम संस्कार करनेवाला भी कोई नहीं था तब इन युवाओं के सहयोग से ही उस कार्य को अंजाम दिया गया। इसके लिए वे सभी सम्मान के पात्र हैं।
वहीं दूसरी तरफ वैश्विक आर्थिक संकट के इस दौर में कई कंपनियों ने जो छँटनी का एक तरह से अभियान ही चला दिया है उससे हमारा युवा वर्ग आहत हुआ है। यदि ये प्रक्रिया बंद नहीं हुई तो बेरोजगारी का संकट भी अत्यधिक बढ़ जाएगा। इस संबंध में हमारी सरकार को विशेष संज्ञान लेना होगा।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
महाभारत के समय श्री कृष्ण महारथी और सारथी थे,लेकिन आज कोरोना युद्ध में पूरा देश 130 करोड़ महारथियों के बलबूते जंग लड़ रहा है l युवा वर्ग जिस क्षेत्र में भी अपनी सेवाएं दे रहें हैं वे कर्तव्य, निष्ठा लगन और आत्मविश्वास के साथ अपना योगदान दे रहें हैं l युद्ध के मुख्य चेहरे के रूप में डॉक्टर, पेरामेडिकल स्टॉफ से लेकर सफाई कर्मचारी तक जो अचानक आये कोरोना तूफ़ान में मास्क की कमी, किट की कमी, बेड पर वेंटीलेटर की कमी और उन्मादी समाज कंटकों की शरारतें लेकिन किसी डॉक्टर या योद्धा कर्मवीर ने यह नहीं कहा कि हम इलाज़ नहीं करेंगे या काम से विमुख हुए हों l डॉक्टर व चिकित्साकर्मी पहिले सारथी हैं जिनके बल पर हम इस जंग को जीतने वाले हैं l वैसे देश का हर नौजवान अपने स्तर से शत प्रयासों से लड़ाई लड़ रहा है l ये सभी साधुवाद और मंगल कामनाओं के पात्र हैं लेकिन कोरोना संक्रमण से बची परिस्थतियाँ यों है कि -
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गए श्रंगार सभी, कोरोना रूपी बबूल से
कारवाँ गुजर रहा, हम गुबार देख रहे
एक दिन मगर यहाँ से कुछ हवा ऐसी चली
लुट गई कली -कली
कि घुट गई गली -गली
और हम लुटे -lute, वक्त से पिटे पिटे
सांस की शराब का खुमार आज देख रहे
कारवाँ गुजर रहा हम गुबार देख रहे l
और इन परिस्थितियों में हमारा युवा कहाँ खड़ा है? कोरोना संक्रमण के चलते युवा वर्ग -
1. भय, भूख और मानसिक दवाब के मध्य जीवन जी रहा है l 2. उद्योग धंधे ठप्प होने से रोजगार संकट में इधर उधर देख रहा है l युवा वर्ग में बेरोजगारी की भारी समस्या है l
3. लोगों में बीमारी की जानकारी कम और डर ज्यादा है l ऐसे में युवाओं को संयम और विवेक से काम लेते हुए कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आगे आना चाहिए l जिससे उपर्युक्त परिस्थिति में वे मनोरोग के शिकार न हो l
4. कोरोना संक्रमण का खतरा युवा वर्ग पर भी कम नहीं है l अतः इसे हल्के में नहीं लेवें l 5. कोरोना ने मानव मानव के बीच संदेह की दीवार ख़डी कर दी l किस मित्र, किस परिजन, किस रक्त संबंधों पर इसका आक्रमण होगा l यह भय पहिले से ही कमजोर पड़ चुकी पारिवारिक -सामाजिक व्यवस्था पर निर्णायक आघात कर रहा है ऐसे में युवा वर्ग अपने कर्तव्यों व दायित्वों से विमुख भी हो रहा है l
6. हर प्रवासी देश के कोने कोने से अपने गाँव लौटकर अपने को सुरक्षित करने के लिए नंगे पाँव दौड़ रहा है और आने के बाद चिकित्सकीय पाबंदियाँ उसे भयभीत कर रही हैं l
7. युवाओं की भयंकर मनः स्थिति है l कोरोना की संक्रामकता रोगी को अपने परिजनों की मौजूदगी में मानसिक संबल मिलता था, वह उपलब्ध नहीं है l यही कारण है कि युवाओं की जीवन शक्ति संक्रमण काल में कम हो रही है l
8. कोरोना वायरस से भी अधिक युवाओं में व्याप्त उसका भय है जो मानवीय संबंधों की परीक्षा ले रहा है और ये कपटी कोरोना दया, प्रेम, करुणा, सहयोग, त्याग जैसे बुनियादी जीवन मूल्यों, अवधारणाओं को त्यागने का आह्वान कर रहा है l युवाओं को स्वार्थी व आत्मकेंद्रित संदेही अस्तित्व में बदल रहा है l
लेकिन धर्म और अध्यात्म की वसुधैव कुटुंबकम की उपासक यह धरा और यहाँ का युवावर्ग कोरोना से भयभीत होने को तैयार नहीं हैं, चाहें कर्मवीर योद्धा हो, समाज सेवी हो या व्यावसायिक l हर आम और खास कोरोना के इरादों को नाकाम करने के लिए संघर्षरत है l कोरोना मनुष्यों को तो जरूर मार रहा है किन्तु मनुष्यता को समाप्त करने की उसकी कोशिश कभी कामयाब नहीं होगी l
चलते चलते -
पुरुषार्थ एवं परिश्रम के तेज से ही जीवन में चमत्कार उतपन्न होता है l साहस और संकल्प के द्वारा ही बाधाएं दूर होती हैं l इस प्रकार आदर्शो के साथ युवा वर्ग बहुमूल्य मानव जीवन का पूरा श्रेय प्राप्त कर कोरोना संघर्ष में विजय श्री प्राप्त कर रहे हैं l
मुश्किलों को थाम ले
सब्र से जो काम ले
चीर के भँवर को
जो किनारा मोड़ ले
आदमी उसी का नाम है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
इस जंग में हमारे देश के युवा पहली पंक्ति में खड़ा है।चूँकि हमारे देश मे स्वस्थ युवा है यही कारण है करोना के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा हथियार है।
हमारी औसत आयु 29 साल है।
चीन में 37 साल और जापान में 48 साल है।
यहां पर एक उदाहरण पेश कर रहे हैं:- युवाओं का सोच और उसे कार्य में परिवर्तन करने का 40000 से कम वेंटीलेटर्स तीन कंपनियां बनाती थी।जब माहमारी से लड़ने के लिए कुछ गारमेंट्स कंपनियां बनाना शुरु कर दिए जिसके कारण पूरी दुनिया से मांग आने लगी और हमारे युवा लोग सप्लाई करने में जुट गए।
सबसे बड़ी बात हमारे युवा में ए सोच है कि मेरा उर्जा खुश रहने पर खर्च करें जिससे बेहतर इम्यूनिटी प्राप्त होगा।
जीवन मंत्र:- हमारे युवाओं का सोच करोना के खिलाफ हम तब तक नहीं जीतेंगे जब तक हम अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वंय खुद पर नहीं लेते तब तक जितना मुश्किल है।यह केवल सरकार पर नहीं है। अतः प्रत्येक देशवासियों के जिम्मेदार व्यवहार से ही तय होगा।
इसलिए हमारे युवाओं का सोच है हम खुश रहेंगे मेरा देश खुश रहेगा यही सोच के कारण हमारे युवा पहली पंक्ति में खड़ा है और रहेंगे।
हमारे देश के प्रधान सेवक का चिंतन युवाओ जैसा है इसलिए हमारे देश के औसत मृत्यु दर पूरी दुनिया के देश से कम है। इसी कारण भारत की सोच को पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है।
- विजेंयद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
मेरा ये मानना है इस महामारी ने युवाओं को चिन्तन मनन करने का पर्याप्त समय दिया है जो सुबह से शाम तक टयुशन, दोस्त और एक तरह से देखादेखी मे मेडिकल, नानमेडिकल की तरफ़ भाग रहे थे बिना सोचे समझे बिना अपनी योग्यता को परखे । उनके लिए ये ठहराव का समय बड़ा क़ीमती है । बहुत से युवा ऐसे होंगे जिन्होंने शायद पहली बार मन की बात माता पिता से कही होगी या जो वो करना या बनना चाहते है उसके बारे मे विस्तार से न केवल स्वयं सोचा होगा अपितु उसके लिए पुरी तरह से योजना बनाकर माँ बाप को भी अवगत करवाया होगा । अपने समय को व्यर्थ ना गवाँ कर उसका सदुपयोग अपने जनून और पैशन के लिए किया है ।
- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
आज आपने बहुत ही सार्थक और चिंतनीय विषय पर "आज की चर्चा" में प्रश्न उठाया है कि कोरोना की जंग में आज का युवा वर्ग कहां खड़ा है? यदि देखा जाए तो स्थिति संतोष जनक नहीं है। इन दिनों युवा वर्ग को ज्यादातर मजबूरियों का बोझा ढोते हुए सपरिवार सड़कों पर हताश निराश चलते हुए देखा गया। जहां भविष्य में भी ना उम्मीदी के सपने थे। कहीं काम से उन्हें लाॅकडाउन के कारण निकाल दिया गया और कहीं को रोना के भय से उन्होंने स्वयं हाथ खड़े कर दिए। मालिकों के बुलाने पर भी वह लोग लौटकर नहीं आए।
अनेक उदाहरण ऐसे भी हैं जिन्होंने कोरोना के दिनों का भरपूर फायदा उठाया है। युवा वर्ग घर में बैठे-बैठे भी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं ट्यूशन ले रहे हैं ऑनलाइन क्लासें लग रही हैं और फीस देने- लेने पेटीएम, गूगल आदि अनेक साधन भी हैं ऐसे में जब बाजार कम खुलते हैं तो संक्रमण के कारण लोग बाहर आना- जाना, खाना- पीना पसंद नहीं करते तो प्रत्येक व्यक्ति सब कुछ ऑनलाइन चाहता है ऐसा नहीं है कि कोरोना के दिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए दु:ख का कारण बने हैं। युवाओं को अच्छे अवसर भी हाथ लगे हैं उन्होंने इन दिनों अपनी मनपसंद की पुस्तकें पढ़ी हैं। अपने मन की बातों को एक दूसरे से शेयर भी किया है, माता पिता की सेवा- अपने बच्चों को समय देना, पत्नी जिसकी हमेशा शिकायतें रहती थी,घर की भूली बिसरी यादों को संभालना आदि इतनी मानसिक शांति भरे दिन शायद किसी ने कई पीढ़ियों में भी नहीं देखें होंगे। ऐसे में ऑनलाइन काम करते युवा वर्ग अपना खर्च निकाल रहे हैं। व्हाट्सएप और फेसबुक पर पब्लिसिटी कर रहे हैं। कहीं समाचार पत्र प्रकाशन वालों की डिमांड भी रहती है वहां काम करके भी पैसा कमा सकते हैं।
माना कि युवा वर्ग नौकरियां कम मिलने के कारण तनाव के दौर से गुजर रहा है परंतु इतनी बड़ी बात सिर्फ भारत में ही नहीं कोरोना ने पूरे विश्व की सारी अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है। इस जंग से युवा वर्ग उभरेगा। परिस्थितियाँ सदा एक जैसी नहीं रहती। युवां आज हताश् हैं वह फिर से काम पर लौट आएंगे। फिर से रोज़गार के अवसर हाथ लगेंगे। कोरोना की जंग को हम जीतेंगे। काॅम्पीटीशन एग्जाम नहीं दे पाए तो क्या हुआ इसी वर्ष की तो बात है सब कुछ ठीक हो जाएगा । ऐसी कठिन घड़ियाँ.. किस काल में किस पर नहीं आई ..सीता जी, राम, कृष्ण, गौतम, हरिश्चंद्र, रानी लक्ष्मीबाई आदि बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने भी कष्ट भोगे हैं। देश पर आई विपदा के प्रश्न आगे आज का प्रत्येक कष्ट छोटा है। यह दौर गुजरेगा और हमारे देश की ताकत युवा वर्ग फिर से अपने पैरों पर खड़ा होगा। हम अवश्य जीतेंगे..।।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
दोस्तों "आज की चर्चा " बड़ी जोशीली और सकारात्मक ऊर्जा लिए होगी--और क्यों ना हो भला! जहाँ बात युवाओं की हो।।
कोरोना की जंग में युवा कहाँ खड़ा है?
वाकिफ कहाँ जमाना उनकी उड़ान से
कोई और रहे होंगे जो हार गए आसमान से
जी हाँ आज का युवा कोरोना की जंग में भी ऊंचाईयों पर है। कोरोना वारियर्स के रूप में हो या राहत कार्य करते सामाजिकता से जुड़े स्वयंसेवी हों-- या घर में बैठकर "वर्क फ्राॅम होम" में तत्परता से जुटे सर्विस क्लास युवा हों - - हर एक कोरोना से एक अदृश्य जंग लड़ रहा है। दुकानदार पिता की इम्युनिटी कम है इसलिए वकील की डिग्री वाला युवा बेटा खुद परचून की दुकान में बैठकर हल्दी नोन तेल बेचने में शर्मा नहीं रहा है। संयुक्त परिवार में दिनभर काम करके थकी पत्नी के साथ बर्तन माँज रहा है--दूसरी ओर देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अपने हिस्से का सहयोग दे रहा है वर्ण फ्राॅम होम के साथ।
इस विश्वास के साथ कि
देर से ही सही मिलता जरूर है
समस्या का हल हो या मेहनत का फल हो।
इन सब सच्चाईयों से परे एक सच ये भी है कि कुछ दिशाहीन युवा लाकडाउन का उल्लंघन करने में शान समझकर और शराब गुटखा की लतों में अपने आप को बर्बाद कर रहा है
युवाओं के लिए एक सबसे दुखःद पहलू है बेरोजगारी जिसके चलते एक बड़ा युवा वर्ग मजदूर पलायनवाद का हिस्सा बन चुका है लेकिन उनका साहस नहीं चुका है। वे अपने साथ एक संकल्प लेकर जा रहे हैं कि अपने स्थान पर ही कुछ नया करेंगे पैतृक व्यवसाय करेंगे खेती करेंगे - - इन संकल्पों में इस पलायन उनकी हिम्मत ने कोरोना को अंगूठा दिखाने का दृढ़ इरादा दिखाया है।
तात्पर्य यही कि आज कोरोना की जंग में युवा मानस स्थिर सहज है - - न दैन्यम न पलायनम की संकल्पना के साथ अपने पथ पर अग्रसर है
नादान है पर बडों सा दिल रखता है
खेलने सोने की उम्र में सबको जगाने का दम रखता है।
- हेमलता मिश्र "मानवी"
नागपुर - महाराष्ट्र
कोरोना के जंग में आज का युवा ऐसी स्थिति में खड़ा है जहाँ एक तरफ अंधेरे में भविष्य और दूसरी तरफ कोरोना का सामना कर रहा है। कोरोना के जंग में वह भी लड़ रहा है। और मदद के लिए अपनो को लेकर मदद भी कर रहा है और नही भी। कारण हर युवा मदद के लिए हाथ भी नही बढ़ा रहा है। फेसबुक, ट्विटर, और नेटवर्क के जरिए सावधान होने का प्रचार तो कर रहा है लेकिन जमीनी स्तर से दूर हो रहा है। मगर हजारो युवा ऐसे भी है जो दिन रात एक करके अपनी चिंता छोड़कर गरीब और असहाय लोगो की मदद भी कर रहा है। ऐसे ऐसे युवा भी है जो बिना स्वार्थ के पुलिस, डॉक्टर और समाज सेवियो की पानी पाउच, फल और अन्य खाद्य पदार्थ देकर मदद कर रहा है। ये सब देखकर कह सकते है कि आज का युवा कोरोना जंग में लोगो की मदद करते हुए स्वयं जागरूक हो रहा है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
कोरोना की जंग में युवा खड़ा है एक ऐसे दोराहे पर, जहां एक ओर है ढे़र सारी जिम्मेदारी और अनिश्चित भविष्य तथा दूसरी ओर है रोजगार का संकट। बहुत विषम परिस्थितियां बन गयी है इस जंग में, युवाओं की स्थिति चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु के जैसे हो गयी है। पढ़ाई कर रहे युवाओं के कालेज बंद, परीक्षाओं का पता नहीं, आनलाइन लेक्चर और मोबाइल लेपटाप पर पढ़ाई, आंखों में दर्द,जलन,लाल होने की समस्या। फैक्ट्री और कारखानों, विभिन्न निजी संस्थानों में काम करने वालों की घर वापसी और परिवार की पूरी जिम्मेदारी, बाजार में दुकान तो बिक्री की समस्या,ग्राहक न आना,भविष्य की अनिश्चितता, आमदनी बंद या कम होना और खर्च पूरा।अब ऐसे हालात में, कुछ करे तो तभी जब हालात सामान्य हो।मजदूरी तक नहीं मिल पा रही इन दिनों। फिर भी पूरी हिम्मत के साथ हालात से जूझ रहा है युवा। आंकड़ों के मायाजाल की चकाचौंध में कुछ भी हो, किंतु वास्तविक हालात ये ही हैं।जो बदलेंगे तो अवश्य, लेकिन अभी तो अभिमन्यु,चक्रव्यूह में फंसा हुआ है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
हम सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण देश में लाॅक डाउन की स्थिति पैदा हुई और लॉक डाउन के दौरान हमारे निजी क्षेत्र ,सार्वजनिक क्षेत्र ,लघु उद्योग व अन्य रोजगार सभी बुरी तरह प्रभावित हुए। इनमें सबसे अधिक प्रभावित हमारा युवा वर्ग हुआ युवा वर्ग के सामने पढाई पूर्ण करने के पश्चात् रोजगार से संबंधित समस्याएं बनी रहती है। पूरे देश में बेरोजगारी का प्रतिशत बढ़ा है ।यह वर्तमान में 7•2 %से बढकर 7•8% तक पहुंच चुका है।ग्रामीण क्षेत्र में 6% से बढकर 7•4 % पहुँच गया है।लाखों युवा जो छोटे- छोटे व्यवसाय नौकरियां आदि कर रहे थे वे सभी नौकरियों से बाहर हो चुके हैं ।सारी स्थिति देखते हुए यह कहा जा सकता है की कोरोना की जंग में हमारा युवा वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हुआ है और बैकफुट पर खड़ा है ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
दतिया - मध्य प्रदेश
"कोरोना की जंग में युवा वहॉं खड़ा है जहाँ वो एक गुजरी पीढ़ी को संभाल रहा है,वर्तमान की पीढ़ी को थामे है और भविष्य की पीढ़ी का आधार बना है।ये वो जंग है जिसका हथियार मानव है और विनाशक भी वही बन सकता है या यों कहें बन रहा है।परंतु बात यदि आज के युवा की हो तो इस कोरोना की जंग में वो सबसे ससख्त हथियार नजर आता है और साबित भी हो रहा है।उसने स्वयं ही बीड़ा उठाया है।फिर चाहे वो अपने आस-पड़ोस या मोहल्ले में हो,शहर में हो या देश स्तर फिर अन्तोगत्वा विश्व स्तर पर ही क्यों न हो।उसका जज्बा और उसका साथ हमेशा आशा की किरण बना हुआ है।
यदि आप अपने ही आप-पास ध्यान से देखेंगे तो आपको अकेले,छोटे-छोटे एन जी ओ या स्वतंत्र समूह में इनका अस्तित्व खुद ब खुद नजर आ जायेगा।इनके मन में एक उमंग है,एक लहर है जो कहती है "चल जग को सुंदर बनाएं इस वैश्विक महामारी से मुक्त कराएं।"
युवा पीढ़ी ने केवल इंसान ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों और प्रकृति के लिए भी अपने मदद वाले हाथ खुले रखे हैं।वो बहुत अलग सोचता है तथा इस जंग में कोरोना मुक्त विश्व की अलख खुद में जगा रखी है।समाज का हर उम्र का मानस यदि इनका साथ दे तो सबकुछ सम्भव है।कुछ भी हो सकता है,कुछ भी कर सकते हैं।"
अर्थात कोरोना की इस जंग में युवा एक मजबूत आधार का स्तंभ बनकर बखूबी खड़ा है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी पूरी दुनिया मे तबाही मचा रखा है। इस वैश्विक महामारी में करोड़ों की संख्या में मजदूर बेरोजगारी की दंश झेल रहे हैं, जिसमें युवा वर्ग भो शामिल है। कोरोना की जंग में युवा कहां खड़ा है ? शुक्रवार की चर्चा में जेमिनी अकादमी की ओर से सवाल उठाया गया है। सही में कोरोना काल मे युवा वर्ग भी काफी परेशानी में है। उनकी पढ़ाई का तरीका ही बदल गया है। स्कूल से लेकर कॉलेज तक कि पढ़ाई ऑनलाइन चल रही है। यहाँ तक कि परीक्षा भी ऑनलाइन लिया जा रहा है। यह कब तक चलेगा कहना मुश्किल है। जो युवा मेडिकल, इंजीनियरिंग, एमबीए या फिर तकनीकी शिक्षा पूरा कर लिए हैं, उनके लिए सर्विस मिलना मुश्किल हो गया है, जिसका कारण कोरोना के चलते बाजार में छाई मंदी है। देशभर हजारों की संख्या में उधोग धधे बंद पड़े हैं। देश मे बड़े कल कारखनो में आने वाले समय मे युवा मजदूर खोजने के लिए मिल मालिकों के पसीने छूटने लगेंगे, जिसका कारण लाखों की संख्या में मजदूरों का बड़े शहरों से अपने गांव में पलायन बताया जा रहा है। अब राज्य सरकारें भी अपने यहां बाहर से आये अपने स्थानीय मजदूरों के रोजगार देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। बाहर से आये युवा वर्ग का यही कहना है कि अब वो दोबारा दूसरे शहर काम करने नही जाएंगे। भले ही अपने गांव या राज्य में मजदूरी कर लेंगे। इसका मुख्य कारण कोरोना के बढ़ते मरीजों की संख्या है। युवा वर्ग भी कोरोना के कारण डरा हुआ है। इसलिए आज का युवा वर्ग मझधार में खड़ा है, जिसको संभलने में काफी समय लग जाएगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कोरोना की जंग में युवाओं ने आशातीत समझदारी दिखलाते हुए, जो सहयोग, सद्भाव और जरूरतमंदो के लिए सेवाभाव किया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जावे,कम होगी। सामान्यतः ऐसे कठिन समय में युवा वर्ग को समझाना और संभालना मुश्किल हो जाता है और इनकी हठधर्मिता, उतावलेपन से स्थितियां बिगड़ जाती हैं। मगर कोरोना की जंग में इन्होंने नियम-कानून,दिशानिर्देशों का न केवल पालन किया है बल्कि जिम्मेदारी से औरों को जागरूक भी किया है और ढाढ़स भी बंधाया है। इस संकट काल में अपनी सभी जरूरतें,शौक, आदतें एक तरफ रखकर,अपने पालकों को अतिरिक्त आर्थिक भार से बचाते हुए तनाव मुक्त तो रखा ही है, बल्कि हर काम में आगे आकर उन्हें संबल भी दिया है। यही नहीं परिवार और पड़ोस में भी युवा वर्ग सेवा,सहयोग और सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर है और ढाल बनकर डटा भी है।
यह तो निश्चित ही है कि यह संकट तो एक न एक दिन खत्म होगा ही किंतु यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी, कोरोना की जंग में युवा वर्ग की इस सकारात्मक भूमिका को सदैव याद रखा जावेगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह प्रश्न अत्यन्त समसामयिक है। आपदा की किसी भी स्थिति में कोई भी देश अपनी युवा शक्ति पर विश्वास कर सकता है बिल्कुल वैसे जैसे कोई परिवार किसी संकट की घड़ी में अपने युवा सदस्यों से आशाएं रखने लगता है। देश का युवा शारीरिक शक्ति में मजबूत तथा मानसिक शक्ति में अत्यन्त सक्रिय होता है। कोरोना की जंग में युवा वर्ग ने अदम्य साहस का परिचय दिया है। वर्तमान आपदा में युवा बढ़ चढ़कर कोरोना वारियर्स के रूप में समाज की मदद कर रहे हैं। चाहे वे विद्यार्थी हों, डाॅक्टर हों, नर्स हों, इंजीनियर हों, कम्प्यूटर विशेषज्ञ हों, सफाई कर्मचारी हों - कहने का तात्पर्य किसी भी क्षेत्र से संबंध रखते हों, उनमें सेवा का अभूतपूर्व जज़्बा देखने को मिला है। एक बात कहना चाहूंगा कि ये सभी युवा हमारे, आपके परिवार के सदस्य हैं और हम आप सभी ने उनमें भारतीय संस्कृति व संस्कार कूट-कूट कर भरे हैं। जिसका परिणाम है कि कोरोना की जंग में आज युवा नेतृत्व कर रहा है, पीछे नहीं खड़ा है। हमें अपने देश के युवाओं पर गर्व है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
युवा शब्द जोश से भरा होता है। युवा अपने देश की शान होता है।। युवा प्रगति का पर्याय होता है। वह सपनों की उछलती नदी होता है। उसकी वेग में रवानी होती है। युवा को देश का भविष्य कहा गया है।
कोरोना काल में युवा फूल मुरझा गया है। उसकी रफ्तार में कमी आ गई है। उसकी ऊंचे आकाश में उड़ने की चाह मैं विराम सा लग गया है।
कहां तो युवाओं ने नए मकाम हासिल करके अपने जीवन को नई दिशा देनी थी। बड़े-बड़े उत्तरदायित्व को पूर्ण करना था और कहां युवा कोरोना की जंग में आहत होकर रह गया है। युवा शिक्षा, प्रशिक्षण, खेल और व्यवसाय आदि सभी क्षेत्रों में उन्नति करता करता रुक सा गया है।
कोरोना के कारण युवा के भविष्य को नहीं तो वर्तमान को तो डामाडोल कर दिया है। हाथ पर हाथ धरकर बैठने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है। दूसरे स्वयं को बचाए रखने की भी चुनौती उसके सामने है।
इस महामारी के चलते युवा रुक कर अथवा बंध कर रह गया है। उसकी निराशा स्वाभाविक है। परंतु उज्जवल भविष्य की कामना को सजाए रखने की आवश्यकता है। बस, काली रात गुजर जाए आगे उजला सवेरा हमारे रास्ते प्रशस्त अवश्य करेगा।
- केवल सिंह भारती
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
अदृश्य लाइलाज कोरोना वायरस वैश्वीकरण रूप धारण कर गया है । इस वायरस के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए लाॅकडाउन लगाया गया है । इस संदर्भ में , मुझे न्यूटन के तीसरे नियम का स्मरण हो आया है । जब किसी वस्तु पर बल लगाया जाता है तो उसका परिणाम समान एवं विपरीत होता है । कोरोना संक्रमण मामले में यह नियम लागू हो , आवश्यक तो नहीं है , पर मेरा मानना है कि इस संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए जितना प्रयास किया गया और जितना खर्चा किया गया उसका सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया । संक्रमण के वजह से बच्चे नौजवान महिलाएं बुजुर्ग सभी अपने अपने घरों में कैद हैं । कामकाजी युवा पीढ़ी घरों में निठ्ठले बैठे हुए हैं । कम्पनियों फैक्टरियों में कार्यरत युवा वर्ग बेरोजगार होकर घरों में रूके हुए हैं । ऐसे युवाओं को रोजी रोटी के लाले पड़े हैं । कुछेक जो सरकारी नौकरी में हैं वो आनलाइन कार्य कर रहे हैं । उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे युवा लटके हुए हैं । परीक्षाएं चाहे शैक्षणिक हो या प्रतियोगितात्मक नहीं हो पा रही है । उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है । वो करे तो क्या करे ? समय यूँ ही बीत रहा है । सम्भावना कोई नजर नहीं आ रही है ।
- अनिल शर्मा नील
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
भारत में बेरोजगारी के चलते युवा भी दो श्रेणी में विभक्त हैं एक तो स्वावलंबी और दूसरे बेरोजगार । परंतु फिर भी कोरोनावायरस में जो भी जैसी स्थिति में है युवा वर्ग अपनी क्षमता के आधार पर सेवा भाव से परिपूर्ण होकर सबसे आगे डटे रहे एवं लोगों की यथासंभव मदद की।
हमारे युवावर्ग रक्तदान समिति सेवा कार्य में जुटे रहे ,आर्थिक मदद भी यथा संभव करने में युवा पीछे नहीं रहे। कोरोनावायरस की जंग मे मदद को डटे रहे युवा वर्ग द्वारा काफी सराहनीय कार्य किये गये जैसे जहाँ से कॉल आती ज्यादातर युवा मदद को निकल पड़ते ।युवा दान देते वक्त फोटो तक नहीं खिंचवाते रहे ।
हमारे युवाओं की टीम जरूरतमंद लोगों को राहत पहुंचाने का काम कर रही हैं इनका कहना है कि उन्हें कोई दिखावा नहीं करना ,उनका मकसद सिर्फ संकट के समय लोगों को राहत पहुंचाना है ।किसी को मदद मिलने पर उसके चेहरे पर जो मुस्कान खिलती है वही हमारे लिए काफी है ।
वैश्विक महामारी ने लोगों की कमर तोड़ कर रख दी ऐसे में यूथ मदद को आगे आए ,खाद्यान्न वितरण ,भोजन पैकेट वितरण मास्क ,सेनेटाइजर जिससे जो बन पड़ा वितरित किया ।मोबाइल नंबर के माध्यम से लोगों की डटकर मदद की , वह भी बिना किसी स्वार्थ के ।
बेरोजगारों को कोई सरकारी आदेश तो था नही और न तो नौकरी में आदेशित होकर वह ड्यूटी निभा रहे थे ,वह तो सिर्फ परमार्थ भाव से लोगों की मदद को कोरोनावायरस कहर मे आगे आए वह भी बिना किसी दिखावे के बिना फोटो खिंचवाने के और अपनी जान भी दाँव पर लगाते रही क्योंकि वायरस बहुत खतरनाक है जो किसी को भी चपेट मे ले सकता है ।
जो कुछ लोग सक्षम थे स्वावलंबी थे उन्होंने भी पैसे से भी लोगों की मदद की प्रधानमंत्री राहत कोष मे बहुत युवाओ ने पैसे जमा किये और एक मिसाल पेश की ।
तो कुल मिलाकर हम भी कह सकते हैं कि कोरोना की जंग में युवा आगे डटे रहे जबकि भारतीय बेरोजगार युवाओं के भविष्य का तो कोई अता पता नही है। नहीं यहां पर बड़ी जनसंख्या के कारण नौकरी मिलना तो भगवान भरोसे ही है। खुद के अनिश्चित भविष्य के बाबजूद युवाओं का कोरोना जंग मे आगे डटे रहना अति सराहनीय है , प्रसंशनिय है ।क्योंकि कोरोना की जंग में जिससे जो बन पड़ा वहाँ हमारे युवा मदद को आगे आए ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
कोरोना ने छोटे बड़े सभी पर अपना जाल कसा हुआ है। कोई भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है। लेकिन युवा वर्ग जिस पर देश का, परिवार का, भविष्य टिका है, जिसके जीवन का एक एक पल वो सुनहरे मोती है जिस में वह खुल कर, बाँहे फैला कर अपने सपनो को अंजाम दे सकता है। पिछले दो महीने से सब कुछ थम गया है।राष्ट्र के निर्माण की धुरी युवा ही तो है। परंतु अभी कुछ भी तय नहीं है कि आने वाला समय कैसा होगा। हालात कितने संभलेंगे या बिगड़ेंगे। आज ही दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीज़ एक हज़ार से ऊपर नए और जुड़ गए हैं। ये अब तक की एक दिन की सबसे ज्यादा संख्या है।ये आंकड़े डराने वाले हैं।
युवाओं के लिए आत्मनिर्भर होना सबसे बड़ी चुनौती है।हमारे देश में पहले ही बेरोजगारी का आलम यह है कि पढ़े लिखे नौजवान छोटे छोटे काम करने को मजबूर हैं।
अब सरकार को अपने कंधे मज़बूत करने के लिए नौकरियों के अवसर उपलब्ध करवाने होंगे। और कुछ कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा देना होगा। नहीं तो आने वाले वक़्त में हालात बहुत खराब हो जाएंगे।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
कोरोना की मार हर वर्ग पर पड़ी है वो चाहे बच्चा ,बूढ़ा या युवा और युवा तो पहले ही बेरोजगारी की मार से मर रहा था अब यह कोरोना की मार अमेरिका जैसे विकसित देश में भी लगभग डेढ़ से दो करोड़ लोग बेरोजगार हो जाने की संभावना जताई जा रही है तो भारत का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं । अतः इस कोरोना की मार सबसे ज्यादा युवा वर्ग पर ही पड़ी है। और यदि दूसरे पक्ष से देखा जाए तो कोरोना के चलते युवा वर्ग अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहा है और हजारों विवेकानंद बन देश में मदद के हाथ बन रहें हैं माना कि आज शिक्षा सम्बंधित विभाग बन्द हैं पर सच्चे भी घर पर बैठ अच्छी अच्छी योग्यताओं से देश में नियमों सम्बंधित सन्देश पंहुचा रहे हैं और भावी नेता होने का कर्त्तव्य निभा रहे हैं।
निर्भर है देश युवाओं पर
उन्नति भी यही लायेंगे
कोरोना हो या महायुद्ध
जीत यही दिलायेंगे
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
लाॅकडाउन के दरम्यान करीब ग्यारह करोड़ दो लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खोई है जिसमें यह स्पष्ट नहीं है उनमें कितने युवा हैं और कितने बुजुर्ग। इस तरह की खबरें सरे-आम है कि लोग बस किसी तरह जीवन यापन में व्यस्त हैं। थोड़ी बहुत ही लाॅकडाउन में कम्पनियां खुली है उनमें भी जहां तीन हजार लोग काम करते थे जिसमें से अभी दो ढाई सौ लोगों को ही रोजगार उपलब्ध हो पा रहा है। हां कुछ लोग जो खाद्य आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवाएं, प्रशासनिक विभाग, सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मी,रसोई गैस सप्लाई से जुड़े कर्मचारियों की नौकरियां सुरक्षित है। कुछ अन्य उपक्रम जैसे दवा की दुकान, छोटे छोटे परचुन की दुकान खुली है।जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती सरकारी विभागों में नई नौकरियों की भेकेंसीज बंद है। तो ऐसे में पहले से बेरोजगार चल रहे युवाओं की फेहरिस्त लंबी है। अतः ऐसा कह सकते हैं कि फिलहाल युवा पीढ़ी बीच मझधार में या फिर सड़क पर खड़ी है।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
युवा देश के कर्णधार हैं। आज हमारे देश मे युवाओं की जनसंख्या सबसे अधिक है। परिणाम स्वरूप देश का भविष्य का बोझ इन्हीं युवाओं के कंधों पर है। युवाओं की कार्यशीलता एवं सृजनशीलता सदैव बनी रहे, यह सरकार एवं समाज का प्राथमिक कर्तव्य है। युवा अगर शारीरीक और मानसिक रुप से प्रबल होंगे तो देश भी हमारा मजबूत होगा।
सर्वविदित है कि पूरा विश्व आजकल कोरोना के संकट से गुजर रहा है। कोरोना ने विश्व की आर्थिक एवं सामाजिक ब्यवस्था को पंगु बना दिया है। इससे युवा वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। जो स्कूल और कालेज मे पढ़ रहे हैं उनकी शिक्षा बाधित हो रही है। इंजिनीरिंग और मेडिकल मे पढ़ रहे छात्रों का भविष्य अधर मे अटका हुआ है। समय पर परीक्षाऐ नहीं हो पा रही हैं।रोजगार के लिए प्रतियोगी परीक्षाऐ नही हो रही है। जिन युवाओं को सरकारी नौकरी नही है उनकी नौकरियाँ जा रही हैं या उनके वेतन में कटौती हो रही है। युवा मजदूर वर्ग सड़क पर भूखे प्यासे चलने को मजबूर हो गया है। घर वापसी के लिए मजबूर हैं।
युवाओं का अपना एक भविष्य और सपना होता है जो उन्हें टूटता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे मे समाज और सरकार को आगे आकर युवाओं को अवसाद से बचाना चाहिए।
- रंजना सिंह
पटना - बिहार
युवा वर्ग पहले भी राम भरोसे था और आज भी राम भरोसे ही है। उसका भविष्य पहले भी अंधकारमय था और आज भी है। वह जहां कोरोना से पहले खड़ा था वहीं अब भी खड़ा है।
चूंकि बेरोजगारी कोरोना महामारी से कहीं अधिक घातक है। इसके साथ ही कड़वा सच यह है कि जिन भाग्यशालियों की सरकारी नौकरी लग जाती है। वे काम करने से परहेज़ और भ्रष्टाचार में अग्रिम भूमिका निभाते हैं। जो दुखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण है।
उदाहरण स्वरुप जो कृषि विभाग में कार्यरत अधिकारी हैं। उन्हें यदि खेती करने वाली भूमि दे दी जाए तो वह दूसरे दिन नौकरी छोड़ कर भाग जाएं। इसी प्रकार पशुपालन या मछली पालन के अधिकारियों पर यही उदाहरण लागु किया जाए तो उनकी योग्यता स्पष्ट हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि सरकार समस्त बेरोजगार युवाओं को रोजगार नहीं दे सकती। इसलिए वह युवाओं को भेड़-बकरी पालन, पशुपालन, मछली पालन, मुर्गी पालन, मशरूम उत्पादन, लघु उद्योग, कृषि उत्पादन एवं कृषि उद्योग, किरयाना दुकान, मोमबत्ती उत्पादन इत्यादि अनेक इकाईयों के लिए सरकार प्रशिक्षण एवं आर्थिक सहायता सब्सिडी के रूप में देकर प्रोत्साहित करती है। जिसके लिए युवा वर्ग आगे भी आता है। किन्तु सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों की भ्रष्ट प्रवृत्ति उन उद्यमियों को आत्मनिर्भरता के स्थान पर आत्महत्या के लिए विवश कर देते हैं।
जिससे राष्ट्र और राष्ट्र के युवा वर्ग की रीढ़ की हड्डी टूट जाती है। इसी रीढ़ की हड्डी को टूटते 40 वर्ष पहले भी देख चुका हूं और आज भी लोकप्रिय माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के नेतृत्व में 'लोकल फार वोकल' के रूप में देख रहा हूं।
अतः कोरोना को साक्षी मानकर लेखकों से विनम्र आग्रह कर रहा हूं कि यदि युवा वर्ग को हष्ट-पुष्ट देखना चाहते हो तो 'भ्रष्टाचार' नामक महामारी के विरुद्ध शंखनाद करो। जिसने संविधान के चारों स्तम्भों को खोखला कर रखा है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कोरोना की जंग से हर तबका एक अनिश्चितकालीन जंग लड़ने को बेबस है । हमारे देश के युवा वर्ग पर ऐसे समय में बहुत बड़ी चुनौती पूर्ण जिम्मेवारी है ।जिसका निर्वाह युवा वर्ग को निभाना हीं चाहिए ।देश के युवा वर्ग पर हर क्षेत्र में इस विपत्ति की घड़ी में अपना फर्ज निभा सकते हैं । गांवों में लोगों को इसके लिए जागरूक करना, किसी को किसी तरह की सहायता कर सकते हैं।खास कर बड़े बुजुर्गो को उनके लिए जरूरी समान ला कर देने की जिम्मेदारी निभा सकते हैं।कहा जाता है कि बुजुर्गो के लिए यह बीमारी काफ़ी घातक हो सकती है फलत: युवावर्ग उनकी पूरी तरह से सुरक्षा में मददगार हो सकतें हैं। नयी योजनाओं और नयी तकनीक का इस समय युवावर्ग नया कुछ अन्वेषण कर सरकार और देश की सहायता कर सकते हैं। युवा वर्ग को समय ने एक सुनहरा मौका दिया है देशहित के लिए कुछ करने का।ऐसे में उनको अपनी योग्यता और सामर्थ्य दिखाने की जरूरत है । युवावर्ग अभी अपनी भविष्य की चिंताओं से भी भी जूझ रहा है क्योंकि कुछ की नोकरियां छूट गयी हैं ,जो विदेश से वापस आ गए हैं । कुछ युवाओं की पढ़ाई बाधित हो रही है, परिक्षाएं स्थगित हो गई है जिसके कारण वो बेचारे बहुत परेशान हैं । सिविल सर्विसेज परीक्षा की तिथि आगे बढ़ा दी गई है जिसके कारण भी बहुत सारे परिक्षार्थियों को दिक्कतें हो रहीं हैं । लेकिन ऐसी तमाम दिक्कतों का युवावर्ग को डट कर सामना करना है । हौंसला बनाए रखना है हर मुसीबत का समाधान होता हीं है ।ये बुरा वक्त चल रहा है ।इसके बाद सुनहरा कल भी आयेगा हीं । युवाओं पर देश का भविष्य निर्भर करता है ।देश को संबल और सामर्थ्य बढ़ाने में युवाओं पर हीं देश सदा से निर्भर करता रहा है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
आज का विषय है कोरोना के इस जंग में युवा वर्ग कहां खड़ा है ।विषय बहुत ही ज्वलंत है हमारे प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जो मूल मंत्र दिया है और जिसके आधार पर भारत देश के नागरिक अपने आप को सुरक्षित रखे हैं और जो संक्रमित हुए हैं उनकी चिकित्सा की गई है वह मूल मंत्र निम्न है
पहला मूल मंत्र था सीनियर लोगों को घर से बाहर नहीं निकलना है साथ ही साथ जो 10 साल से कम के बच्चे हैं उन्हें भी बाहर नहीं निकलना है अब इन दोनों तथ्यों को यदि देखा जाए तो सीनियर वर्ग अलग हो गए जूनियर अलग हो गए तो बच्चे कौन सिर्फ युवा वर्ग और प्रौढ़ तो यह जंग जो है वह युवा वर्ग के कंधों पर ही टिका है आज इतनी भी सफलता मिली है वाह युवा वर्ग के अथक परिश्रम सेवा भाव लगातार अपनी जिम्मेदारी निभाने का जज्बा के फल स्वरुप यह आगे बढ़ रहा है सबसे पहले मेडिकल की ओर जाते हैं तो मेडिकल्स में डॉक्टर पारा मेडिकल स्टाफ सभी अपनी पूरी निष्ठा ईमानदारी से अपने घर परिवार को छोड़कर संक्रमित मरीजों की चिकित्सा में अपने जीवन को उत्सर्ग कर दिया है दूसरी ओर पुलिस डिपार्टमेंट को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि इनकी भी तो परिवार हैं पर सभी की चिंता छोड़ देश की चिंता में दिन-रात अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभा रहे हैं।
युवा वर्ग इस जंग का मुख्य पिलर है जिसके सहारे यह युद्ध लड़ा जा रहा है युवा वर्ग को महा योद्धा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी
युवा वर्ग के कारण ही डिफरेंट डिफरेंट जगहों पर लोगों को खाने पीने की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं हमारे देश के वैसे मजबूर मजदूर और अन्य सामान्य लोगों के साथ युवा वर्ग सहायता देकर अपनी जिम्मेदारी और नागरिकों की उत्तरदायित्व को भली-भांति निभाया है और निभा भी रहे हैं
दूरदर्शन पर जब समाचार देखती हूं तो कई ऐसी महिलाओं को दिखाया जाता है जो महीनों से घर नहीं लौटी हैं उनके बच्चे अपने पिता के पास अकेले हैं कितने ऐसे पुरुष डॉक्टर को दिखाया गया है जो जो 10 दिनों से घर नहीं लौटे हैं और यह जितने भी हैं वह युवा वर्ग के ही साथ ही साथ प्रौढ़ भी हैं
कितने पुलिसकर्मियों ने तो घर जाकर सीनियर लोगों को खाना पहुंचाया है उनके जन्मदिन का भी मनाया है यह सभी कार्य इतने लगन और मन से किए गए हैं कि यह कर्म वीर योद्धा ही कर सकता है
दूसरी ओर एक यह भी दृश्य है युवा मजदूर चीन की कंपनियां लॉक डाउन हो गई है उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है फिर भी अगर उनके जीवन का दूसरा पक्ष देखती हूं तो यह महसूस होता है उनमें इतनी साहस और हिम्मत रही कि अपने परिवार को लेकर वह गांव की ओर चल पड़े
एक ज्योति नाम की लड़की अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर 12100 किलोमीटर दूरी तय की और अपने गांव पहुंच गई यह दूरी उसने 7 दिनों में तय किया यह उस युवा वर्ग की ही कहानी है जिसमें इतनी साहस और हिम्मत बनी क्यों इतना साहस हुआ इस जंग से अपने आप को बचाने के लिए
इसलिए युवा वर्ग के कंधों पर ही वर्तमान परिस्थिति की जिम्मेवारी है और वह पूरे आत्मविश्वास निष्ठा और लगन के साथ निभा रहे हैं बच्चे हमारे भविष्य हैं सीनियर सिटीजन सलाहकार हैं और युवा वर्ग कर्मठ हमारे दोनों हाथ हैं जिसके कारण पूरा देश आज उन पर गौरवान्वित हो रहा है
- डॉ.कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " युवा को अच्छी से अच्छी सलाह देनी चाहिए । वे ऊर्जा से भरपूर होते हैं । हर कार्य को करने में सक्षम होते हैं । इसलिए कोरोना की जंग में सबसे आगे चारों ओर नज़र आते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
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