क्या कोरोना की वजह से लोक कलाकारों का भविष्य अधेरे में है ?

कोरोना की वजह से काफी तरह के कामकाजों पर खतरा मंडरा रहा है । लोक कलाकार उन में से एक है । कोरोना की सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से कोई भी कार्यक्रम नहीं हो सकता है । कोरोना का खत्म होने में काफी समय लग सकता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कोरोना वायरस ने जो आज महामारी का रुप ले लिया हैं ओर उससे उपज रही असंख्य सम्सायें आज जन्म ले चुकी हैं कल क्या होगा? हम कह नहीं सकते हर वर्ग को आज एक नई सम्साओं से झुझना पढ़ेगा तो सव्भाविक हैं की लोक कलाकारों को भी झुझना ही होगा यही कोरोना से लढ़ाई लम्बी चली तो सोसल डिस्टेन का पालन माक्स लगाना अनिवार्य रहने की भी संभावना हैं तब तो लोक कलाकारों का भविष्य मुझे तो अधर में ही लगता हैं।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
हां, मौजूदा परिस्थिति में कोरोना वायरस की वजह से जो लॉकडाउन हुआ उससे लोक कलाकारों का भविष्य कुछ समय के लिए अंधेरे में दिखाई दे रहा है पर हमेशा अंधेरे में रहेगा यह कहना उचित नहीं होगा।
 ग्रामीण स्तर पर मेलों में या शहरों में छोटे-छोटे आयोजनों में जो लोक कलाकार अपने नाट्य अभिनय  या नृत्य संगीत के द्वारा जो आमदनी प्राप्त करते थे फिलहाल वह लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से पूरी तरह से बंद है। 
     राजस्थान के कलाकार जयपुर, जोधपुर जैसलमेर जैसे शहरों में वहां के दर्शनीय स्थलों पर वाद्य यंत्र के द्वारा गीत-संगीत व नृत्य प्रस्तुत करते थे, पर्यटकों के ना आने से उनका रोजगार ठप्प गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए वहां के मुख्यमंत्री ने 'कलाकार प्रोत्साहन योजना' शुरू की है जिसके माध्यम से कलाकारों द्वारा भेजी गई वीडियो को यूट्यूब पर प्रसारित किया जा रहा है और उन्हें 2500 रुपए की मदद राशि प्रदान की जा रही है। कालबेलिया डांस, कठपुतली कला, बहुरूपिए कला आदि के कलाकारों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। हां यह भी सच है कि सारे कलाकार इस स्तर तक पहुंचने में सक्षम नहीं हो पाते।
    मुंबई जैसे महानगरों में भी तमाशा थिएटर जैसे जगहों पर काम करने वाले कलाकार हो या ग्रामीण स्तर पर मेलों में, छोटे स्टेज पर शादी विवाह के आयोजनों में प्रोग्राम देने वाले कलाकार हों फिलहाल सभी का वर्तमान व भविष्य कोरोना की वजह से प्रभावित हुआ है।उनकी आमदनी का स्रोत बंद हो चुका है पर हमारे देश के लोक कलाकार अपने अभिनय का ऐसे समय में सदुपयोग भी कर रहे हैं।
      झारखंड सरकार 'लोक कल्याण संस्थान' के द्वारा अधिकांश लोक कलाकारों को अपने अभिनय से कोरोना से बचाव संबंधी जागरूकता फैलाने के कार्य में लगाये हुए है। वे अपनी प्रांतीय भाषा में गीत- संगीत गाकर, नुक्कड़ नाटक, कठपुतलियों आदि के कार्यक्रम कर जन संदेश दे रहे हैं जो बहुत ही चर्चा का विषय बना हुआ है। वीडियो बनाकर  यूट्यूब , फेसबुक के जरिए लोग अपनी कला का प्रचार करने में भी लगे हुए हैं। सरकार भी बढ़ावा दे रही है।
     इन सभी कलाकारों को देखते हुए कह सकते हैं कि जिसमें हुनर है वह भूखा नहीं मर सकता है। भले ही कुछ समय के लिए विकट स्थिति आई है। आमदनी का स्रोत बंद है पर भविष्य अंधेरे में है यह कहना ठीक नहीं । उम्मीद हीं जिंदगी है।
                            - सुनीता रानी राठौर
                            ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
देश में कोरोना के संक्रमण के  खतरा से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है फिर भी काफी हद तक इसके संक्रमण से बचने की गाइडलाइन जारी है  ।
इसे सब अच्छी तरह से पालन करें तब   ही   कोरो ना    के  संक्रमण से  बचा   जा   सकता   है  
कोरोना से बचने के तरीके सब अच्छी   तरह   से   अपना भी  रहे हैं परंतु सोशल डिस्टेंस का पालन न करने से   सारी मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है  ।
लोक कलाकार अपनी एक्टिविटी सीमित कलाकारों व  सीमित क्षेत्र में   ही  करते हैं  ।
लॉ क डाउन  के  समय  भी उनकी  प्रतिभा  में  और  ज्यादा निखार  आया  है  लॉकडाउन के समय भी सभी कलाकारों ने   अपनी कई वीडियो बना बना कर यूट्यूब पर डाल दी है जिससे लॉक डाउ न  में घर बैठे ही सभी मनोरंजन कर रहे हैं  ।  
लोक  कलाकारों  की नाटिका जिसे गांव की भाषा में सॉन्ग के नाम से जाना जाता है  वे कलाकार अपने नाटिका को कम खर्च में तथा अधिक मनोरंजन वाली बनाकर यूट्यूब पर डाल रहे हैं और वे वीडियो काफी सराही जाती है ।
परंतु अब जैसे शादी वगैरहा की कार्यक्रम होने शुरू हो गए हैं तो शादी में 50 व्यक्तियों की उपस्थिति के कारण इन लोक कलाकारों के कार्यक्रम होने असंभव है ।
 इन कार्यक्रमों में अब क्षेत्रीय  लोकगीत तथा मनभावन वादन मनमोहक संगीत आदि का अभाव रहेगा ।अतः  जब तक  कोरो ना  की  रोकथाम  के  लिए कोई दवाई या वैक्सिंन नहीं आएगी तब तक इनका भविष्य अंधकार में तो नहीं  कह सकते ।
       परंतु कुछ नए लोक कलाकारो  का लोक कलाकार में इंटरेस्ट कम   या   नया दृष्टिकोण  भविष्य में हमारे सम्मुख आएगा ।
हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं  अपितु  प्रतिभा  को संभालने वे निखारने बालों की कमी है।
हम सभी का धर्म है है कि हम अपने क्षेत्रीय लोक कलाओं की संस्कृति व लोक कलाकारों  के सम्मान  को बचा कर रखे ।
- रजना हरित   
        बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लोक संस्कृति कला हमारे भारत की पारंपरिक विरासत की देन है। लेकिन आधुनिककरण में यह धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। यह एक बड़े विस्तारित पैमाने पर कभी हुआ करती थी। लेकिन अब इसका दायरा सिमट सा गया है। लेकिन आज भी हर जाति, संप्रदाय की अपनी अलग-अलग लोक कलाएं हैं, इन्हीं कलाओं से भाषा, संस्कृति, जाति, संप्रदाय की पहचान होती है। वनवासी ग्रामीण अंचलों में आज भी नट ,भील आदि  कलाकार कलाओं द्वारा अपना उदर पोषण करते है। मेले हाट बाजारों में कलाओं और कलाकारों का प्रदर्शन हमें उनकी संस्कृति की पहचान करवाते हैं। शिल्पकला, हस्तकला,जुट  आदि की कलाकृतियों के अद्भुत नमूने हमें मेले प्रदर्शनों में खूब देखने को मिलते हैं। इन हुनर बाजो पर भी कोरोना की गाज पड़ी है।अब कुछ समय तक सामूहिक भीड़ एकत्रित होने पर पाबंदियां लगा दी गई हैं। तो मेले प्रदर्शनी जैसे सामाजिक आयोजन ना होने के कारण मेले, प्रदर्शनीयां प्रतिबंधित रहेगी। उसकी वजह से इन कलाकारों को उनके हूनर  का मौल मिलना अब नामुमकिन सा होता दिखाई दे रहा है। ऐसे में इनके आय का कोई साधन दिखाई नहीं देता।इनका भविष्य खतरे में ही नजर आ रहा है। इनके परिवार की एकमात्र ही आय का साधन उनकी कला है। अब इनकी कलाओं का प्रदर्शन अभी नहीं हो पाएगा। ऐसे में इनकी कमाई का जरिया अब कुछ शेष नहीं है। इनका भविष्य अभी तो अंधकार में ही दिखाई दे रहा है। आगे कुछ न कुछ इनके उदर पोषण हेतु। कुछ  प्रशासनिक सहयोग की आशा है। अपनी भारतीय संस्कृति की पारंपरिक लोक कला और कलाकारों के भविष्य के लिए कुछ नीतियां बनाई जाए।ताकि हमारी  सांस्कृतिक लोक संपदा जीवित रहे।
         - वंदना पुणतांबेकर 
                 इंदौर - मध्यप्रदेश
हमारे देश में लोक कला राष्ट्रवाद की प्रतीकात्मकता   का प्रतिनिधित्व करती है यह देश की विविधता उससे जुड़े स्थानीय समुदाय की कलात्मक गतिविधि को संगीत, नृत्य, नुक्कड़ नाटक, किवदंतियों में समाहित, रोचकता के साथ- लोक के रीति-रिवाजों को कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करता है।
        मूल रूप से ग्रामीण जीवन की आवश्यकता, आत्मनिर्भरता के उपादान- किसानों का कृषि कार्य, लोहार ,नाविक, कारीगर द्वारा हस्तनिर्मित कलाएं हैं; जो लकड़ी, कागज& मिट्टी, मोम, धातु सहित उपयोगिता पूर्ण माध्यमों से कला रूप दर्शाती है।
      ऐसे ही नाटयपूर्ण  कला मंचन ,चित्रात्मकत  कठपुतली, महाराष्ट्र में कीर्तन, उत्तर भारत में रासलीला, रामलीला मंचन, मुखौटा नृत्य, उत्तर प्रदेश के लोक कला हेतु प्रयोग में आने वाले वाद्य यंत्र के निर्माण, चित्रकारी, कलाकारी के कलाकारों एवं चित्तेरो की लोक कला बहुत प्रभावित हुई है।
           इन कलाकारों का भविष्य एक तो आधुनिकता और औद्योगीकरण के कारण वैसे ही कम हो रहा था। ऊपर से *कोरोना* के कारण इनका कार्य पूर्णता प्रभावित क्या, अवरुद्ध सा ही हो गया है। जीविका- उपार्जन की विकट समस्या इनके सामने मुंह बाए खड़ी है; जो कि वास्तव में सोचनीय है। इन्हें जीवंत रखने के लिए सरकार को इन्हें भी धन मुहैया कराना होगा। क्योंकि इन कलाकारों की कला से ही भारतीय संस्कृति जीवित है।
- डॉ. रेखा सक्सैना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
         कोरोना महामारी के संक्रमण से बचने के लिए कुछ नियम और संयम अपनाने पड़ रहे हैं। जैसे -सोशल डिसटेनसिंग बनाए रखना , मास्क पहनना , 20 सेकंड तक साबुन से हाथ धोना , सार्वजनिक चीज को सेनेटाइज करना इत्यादि। यह बीमारी कम्युनिटी तक ना फैले इसी को ध्यान मे रखते हुए पूरे देश मे सरकार ने लाकडाउन रखा। लाकडाउन के वजह से यातायात के साधन , फैक्ट्री, सामुहिक आयोजन - शादी-ब्याह सब बंद हो गये। इससे देश मे आर्थिक संकट पैदा हो गया, करोड़ो लोगों की नौकरियां एवं रोजगार चले गए और इस संकट से लोक कलाकार भी अछूता नही रहा।
          लोक कलाकार के सामने भी एक संकट खड़ा हो गया कि वे मजमा लगाकर अपने कला का प्रदर्शन कैसे करे। उन्हें तो सामुहिक आयोजन चाहिए जो उनकी कला को परखे और सम्मान करे। परन्तु कोरोना काल मे सामाजिक दूरी बनाये रखना है । सरकार के द्वारा छोटे कलाकारों को मदद भी नही मिल रही है। ये कलाकार  अन्य गरीब लोगों की तरह पंक्ति मे लगकर सरकार या एन.जी.ओ.द्वारा चलाई जा रही योजना का लाभ भी नहीं उठा पा रहे हैं। सर्विदित है कि कलाकार को कला की सूझ होती है और वह कई ऐसे मौके पर अपने सम्मान के साथ झिझकबस समझौता भी नही कर सकते हैं परिणाम स्वरूप गरीबों के नाम पर चलाई जा सरकारी योजनाओं के लाभ से भी बंचित राह जाते है। यही कारण है कि  कोरोना ने जो स्थिति पैदा कर दी है उसमे छोटे कलाकार जो अपनी दैनिक  कला प्रदर्शन से जीविका चलते थे वे बड़े त्रासदी मे हैं। कलाकारों को इस त्रासदी से समाज और सरकार बेखबर है। निश्चित रुप से इन कलाकारों की समस्याओं के प्रति सरकार और समाज को जागरूक होना चाहिए तथा आर्थिक मदद का हाथ उन तक पहुँचना चाहिए।
       -  रंजना सिंह
       पटना - बिहार
मेरा काम भी यही है मेरी इंवेट कम्पनी है , 
महिनो से काम नहीं हैं । आगे सारे काम कैन्सल हो गयेंहै शादीयां , पीकनीक , बर्थडे पार्टी 
आदि सारे इंवेट कैन्सल हो गये है । 
लगता है कम्पनी ही बंद करनी पड़ेगी ...भविष्य अंधकार मय दिख रहा है । 
लोकगीतों पर आधारित मेरे नाटक होते थे । 
सब बंद ...
रंगमंच सूना-सूना सा है। कलाकार आर्थिक संकट में हैं। लोककलाकार जिसकी आजीविका का साधन था लोकसंगीत लोककथाएँ और नुक्कड़ नाटक। लाकडाऊन में ये कलाकार फांकाकशी के शिकार हो गए हैं। सबसे बदहाल हैं नुक्कड़ नाटक करने वाले फ्रीलांस आर्टिस्ट। इन्हें पाई-पाई के लिए मुसीबत झेलनी पड़ रही है। सबके शो रद हो गए हैं। लाकडाउन में नुक्कड़ नाटकों का अनुबंध भी लॉक हो गया है। लॉकडाउन की स्थिति पहली बार देखी है। इस आपदा ने सबको ‘घर बैठा’ कर दिया है। हमारे सभी शो और अनुबंध रद हो चुके हैं। नुक्कड़ नाटकों में आमतौर पर फ्रीलांस कलाकार ही शामिल होते हैं। इन आर्टिस्टों के लिए अब दो वक्त का भोजन जुटा पाना कठिन हो गया है। लाकडाउन से हमें भारी नुकसान हुआ है।
 रंगमकर्मियों में बेचैनी बढ़ रही है। स्टेज शो के लिए न कहीं किसी स्क्रिप्ट की चर्चा और न ही कोई तैयारी। दर्शकों से रूबरू होकर संवाद बोलने का वो नशा कहीं हिरन हो गया है। अभिनेता-अभिनेत्रियों के मन में कुलबुलाहट है, बेचैनी है। अपनी अदायगी से ‘आह’ और ‘वाह’ सुनने के लिए तरस गये हैं थियेटर आर्टिस्ट। लाइट मैन के पास काम नहीं। ड्रेसमैन का रोजगार ठप है। मेकअपमैन की जेब खाली हैं। नाटकों में साउंड इफेक्ट्स और संगीत देने वाले हुनरमंद घर बैठे कुनमुना रहे हैं। जितना मजा मंच पर नाटकों के पेश करने में आता है, उससे कहीं अधिक रोमांच नाटकों के रिहर्सल में आता है। उस वक्त संवाद बोलने से लेकर एक्टिंग के दौरान जो गलती होती है, उससे उत्पन्न कॉमेडी की बड़ी याद आ रही है।
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण जारी लॉकडाउन ने मानो पूरे रंगकर्म को भी डस लिया है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन जरूरी है। सो, कहां और कैसे लाएं आडिएंस और किसे दिखाएं अपनी प्रतिभा। इस मौसम में नाट्य प्रशिक्षण कार्यशालाओं में हिस्सा लेने का मन महीनों पहले बना चुके लोग हताश हैं। शहर में सालभर महीने-दो महीने पर नाटकों का मंचन होता रहा है। गर्मी के इस सीजन में तो शहर में मानो नाट्यकर्म की बाढ़ ही आ जाती है। कहीं ड्रामा वर्कशॉप होते हैं तो कहीं नाटकों का पूर्वाभ्यास चलता है, और कहीं प्रस्तुतियां भी होती रहती हैं। लेकिन इस बार कोरोना महामारी ने रंगमंच को भी ब्रेक लगा दिया है। 
इस क्षेत्र में पैसा मिलता है तो सिर्फ लाइट-साउंड, मेकअप और ड्रेसमैन को। इन लोगों को पेमेंट करने की बाध्यता यह है कि एक्टर्स को छोड़कर सभी प्रोफेशनल हैं। थिएटर के जरिये कमाने वाले रंगकर्म के ये महत्वपूर्ण हिस्से भी इस लॉक डाउन में बेरोजगार हैं। नाटकों में लाइट उपलब्ध कराने और उसका संचालन करने वाले को बीते दो महीने से कोई काम नहीं है। लाखों रुपये के लाइट्स कबाड़ की तरह पड़े हैं। उन्हें मेंटेन करना भारी चुनौती है। आर्थिक संकट गहराने लगा है। अपने स्टाफ को किसी प्रकार वेतन दे रहे हैं। सभी लॉक डाउन से परेशान हैं। , पीक सीजन कोरोना की भेंट चढ़ गया। बंदी के चलते नवरात्र में बिजनेस नहीं हो सका। वर्तमान में नाटकों का मंचन और कार्यशालाएं भी नहीं हो रही हैं। दो माह से प्रोडक्शन भी ठप है। स्थानीय कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं और अब जुलाई-अगस्त में बाहर के व्यापारी नहीं आएंगे।
लॉक डाउन के चलते न तो कहीं नाटकों का रिहर्सल चल रहा है और न ही कोई तैयारी। मंच पर एक्टिंग करते वक्त सामने बैठे दर्शकों से मिलने वाली सजीव प्रतिक्रिया को अकुला रहे कुछ रंगकर्मियों ने घर बैठे डिजिटल थिएटर का रास्ता चुना है। वह इन दिनों अपने-अपने घर से ही स्मार्ट फोन और लैपटॉप पर या तो प्रस्तुतियां दे रहे हैं अथवा दूसरों की प्रस्तुतियों को देख रहे हैं। डिजिटल थिएटर फेस्टीवल वगैरह के जरिए ऐसा काम जारी है।
इस आनलाइन सिस्टम से वह उतने संतुष्ट नहीं हैं जितना उनको स्टेज पर लाइव परफॉर्मेंस करके मिलता है। सामने बैठे दर्शकों के रिएक्शन को तरस रहे यह रंगकर्मी डिजिटल सिस्टम के माध्यम से खुद को किसी प्रकार दिलासा दिए हुए हैं। नाटकों का मंचन न होने के कारण इस विधा से आर्थिक रूप से जुड़े लोग बेहद मुश्किल में हैं।
कब तक यह स्थिति रहेगी क्या कहाँ जा सकता है 
हो सकता है नया रास्ता चुनना पड़े 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
वैसे कला में निपुण कलाकार का भविष्य कभी अंधेरे में नहीं होता है लेकिन जब कलाकार उपेक्षाओं का शिकार होता है तो निश्चित ही उसका भविष्य अंधेरे में हो जाता है परन्तु ऐसा देखा गया है कि जब भी कलाकार की उपेक्षा होती है तो कलाकार को लगता है कि उसके अभिनय में कमी रह गई और वह और मेहनत करता है 
 कोरोना की वजह से लोक कलाकारों का भविष्य अंधेरे में है ये कहना कलाकारों की घोर उपेक्षा के जैसा है कोरोना के कारण वर्तमान में कठिनाई ज़रूर हो सकती है पर भविष्य अंधेरे में नहीं रहेगा क्योंकि कहते हैं लोक कलाकारों के पास लोक अनुभवों के आधार पर कला प्रदर्शन करने की विशेष कला होती है और ये देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने आप को ढालने में सक्षम होते हैं । टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बहुत सस्ता हुआ है ऐसे में लोक कलाकारों को भी इसके साथ आगे बढ़ने का अवसर है और उम्मीद है लोक कलाकार अवश्य लाभ उठायेंगे । भविष्य वर्तमान की तस्वीर होता है कोरोना कलाकारों को प्रभावित तो कर सकता है पर सीखने और प्रदर्शन करने से नही रोक सकता ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन के चलते सभी का जीवन अस्त व्यस्त हो गया है एक अनजाने खौफ में हम सभी अपना जीवन जी रहे हैं।
उसी तरह हमारे लोक कलाकार जो अपनी संस्कृति को प्रस्तुत करते थे सोशल डिस्टेंसिंग के कारण यह प्रोग्राम कहां होंगे। कुछ होटलों में पिकनिक में शादी ब्याह में आदि फंक्शन ओं में कलाकार अपनी कला लोक संस्कृति को दिखाया करते थे आप सब की तरह वह भी बेचारे बेरोजगार हैं उन्हें भी आर्थिक मदद की जरूरत है या वे अपने काम के तरीके को बदल सकते हैं लेकिन यह भी सब के लिए संभव नहीं हैं उदाहरण के लिए जो कठपुतली डांस दिखाते थे वह कठपुतली डांस अपना खुद का यूट्यूब चैनल बना सकते हैं या उस प्रोग्राम को रिकॉर्डिंग कर फेसबुक में या सभी अपने मित्रों के ग्रुप में भेज सकते हैं। अपने सभी को काम करने का तरीका बदलना पड़ेगा यदि जीवन जीना है तो यह एक ऐसा अंजाना संकट हम सब के ऊपर आ गया है जिसका कोई हल नजर नहीं आता है संकट की घड़ी में हमें हिम्मत नहीं आनी चाहिए और जो कोई भी तरीका अपने को समझ में आए वह शांति दिमाग से सोच कर करना चाहिए क्योंकि यह विश्वास रखना चाहिए कि भगवान एक रास्ता बंद करता है तो जरूर कोई ना कोई और रास्ता खोल देता है आप स्वयं ढूढेंगे तो जरूर कुछ ना कुछ रोजगार आपके लिए जरूर निकलेगा मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि भगवान सब को सुखी रखो और दाल रोटी की व्यवस्था करो जैसा यह संकट दिया है इस घड़ी को उभारे और एक नया सवेरा दो हर अंधकार के बाद प्रकाश होता है उसी प्रकार की आशा में हूं।
उम्मीद है एक दिन सब अच्छा होगा।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
कोरोना संकट के कारण लोक कलाकारों का भविष्य अंधेरे में है? इस विषय पर विचार करते हुए लगा लोक कलाकार ही क्यों,सभी का भविष्य अंधेरे में ही होता है। बस भविष्य के प्रति आशा की एक किरण होती है,और वह आशा जितनी मजबूत होती है, उतना ही उजला होता है भविष्य। यह शब्दजाल नहीं, वास्तविकता है। आदरणीय बीजेन्द्र जैमिनी जी का आभार जो नित नया विषय देकर चिंतन का अवसर देते हैं।इन दिनों हर व्यक्ति आशंकित है भविष्य के प्रति। लोक कलाकार भी इससे कैसे बच सकते हैं। मनोरंजन आवश्यक आवश्यकताओं के बाद की बात होती है,अब तो आवश्यक आवश्यकताओं से जुड़े लोगों के मन में भी भविष्य के प्रति आशंका है। फिर भी लोक कलाकारों का भविष्य अंधकारमय नहीं होगा,क्योंकि उनमें आम आदमी से अधिक साहस और धैर्य होता है। वो किसी भी स्थिति से घबराकर हाथ पर हाथ धरे तो नहीं बैठे रह सकते। कुछ ऐसा काम जो आवश्यक आवश्यकताओं से जुड़ा हो और लोक संस्कृति सभ्यता का भी पोषण करे, करते रहते हैं। जैसे पारंपरिक चटाईयां,मूढ़े बनाना, विभिन्न डिजाइन में खाट बुनना, पारंपरिक अचार, मुरब्बे और क्षेत्र विशेष के व्यंजन बनाना,शहद और जड़ी बूटियों का एकत्रीकरण, हस्तकला, क्षेत्रीय चित्र कला और रंगोली,विशेष कढ़ाई बुनाई आदि।
केवल नाच गाना ही तो लोक कला नहीं। यहां एक बात और कहना चाहूंगा,जो वास्तविक लोक कलाकार हैं, उनकी आजीविका का साधन केवल नाच गाना नहीं है। ये तो अपनी संस्कृति और लोक कला के वास्तविक संरक्षक है। विभिन्न चैनल्स पर, समारोह में जो लोक कला के नाम पर नाच गाना करती टीम दिखती है,वो कलाकार है,लोक कलाकार नहीं।वो बस अभिनय करते हैं लोककला का। लोककला मानव जीवन के साथ साथ समृद्ध हुई है। इसे समृद्ध बनाने वाले लोक कलाकार उन गुणों से भरपूर है, जिनके कारण उनका भविष्य अंधकारमय हो ही नहीं सकता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
 धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना ने जीवन के प्रत्येक परिदृश्य पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ा है।  गीत, संगीत, अदाकारी जैसी सभी कलाओं पर कोरोना ने विराम लगा दिया है। इस तकनीक के युग में भी लोककला और लोक कलाकारों का जन मानस के हृदय में महत्त्वपूर्ण स्थान है परन्तु लाॅकडाउन और सामाजिक दूरी का पालन करने के आवश्यक नियम के कारण लोक कलाकारों की कला के कदम भी ठहर से गये हैं और वर्तमान में उनके लिए अपनी कला को जीवित रखने के साथ-साथ उनके समक्ष जीवनयापन का संकट भी खड़ा हो गया है। इनमें से अधिकांश लोक कलाकार अनभिज्ञता के कारण सोशल मीडिया पर चल रहे आनलाइन कार्यक्रमों में भी सम्मिलित नहीं हो पा रहे हैं। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि लोक कलाकार वर्तमान में संकट की स्थिति में हैं। 
परन्तु इससे लोक कलाकारों का भविष्य अंधेरे में है, कहना उचित नहीं होगा। आज के मोबाइल संस्कृति वाले दौर में भी लोक कला भारतीय जन मानस के हृदय के अत्यन्त निकट है और लोक कलाकारों को पर्याप्त सम्मान मिलता है। 
परिवर्तन जीवन का आवश्यक नियम है इसलिए कोरोना का यह संकट काल भी एक दिन अवश्य समाप्त होना है और जीवन के अनेकानेक क्षेत्रों की भांति लोक कला और लोक कलाकारों के जीवन में भी बसन्ती बहार आयेगी ऐसा मेरा विश्वास है। 
क्योंकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है.... 
"हर निशा भोर का इन्तजार करती है, 
हर चुप्पी शोर का आगाज करती है। 
युगों-युगों से कला आत्मा है जीवन की, 
पतझड़ में भी जो स्वयं का श्रृंगार करती है।।" 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना महामारी ने जिस तरह से देश दुनिया में मौत का तांडव मचा रखा है, उससे लोगों का जीवन समान्य कोरोना महामारी ने जिस तरह से देश दुनिया में मौत का तांडव मचा रखा है, उससे लोगों का जीवन समान्य होने में महिनों का समय लग जाएगा। क्योंकि अभी हम सबको अपनी जान बचाने की बहुत ही बड़ी चुनौती है। जैमिनी अकादमी द्वारा पेश " आज की चर्चा " का विषय है कि क्या कोरोना की वजह से लोक कलाकारों का भविष्य अंधेरे में है ? सही मायने में कहा जाय तो कोरोना की वजह से लोक कलाकारों का भविष्य अंधेरे में है। सिर्फ लोक कलाकार ही नही बल्कि देखा जाय तो साहित्यकारों, कवि-कवियत्रियों, रंगमंच के कलाकारों का भी भविष्य अंधेरे में है, जिसको सामान्य होने में महिनों लग सकते हैं। 
केन्द्र सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार किसी भी शादी समारोह के लिए 50 व्यक्ति की एकत्र होने अनुमति है। इसी तरह किसी व्यक्ति की मौत पर उसकी अंतिम क्रियाकर्म के लिए 20 से अधिक लोग शमशान घाट पर नही जा सकते। अब रही बात लोक कलाकारों की तो कोरोना के कारण उन्हें मंच पर कार्यक्रम करने की अनुमति मिलने में अभी बहुत समय लग जाएगा। 
क्योंकि सरकार इसकी अनुमति अभी नही देगी। इस स्थिति में लोक कलाकारों का भविष्य अंधेरे में है। वही दूसरी तरफ देखा जाय तो कोरोना महामारी जिस तेजी से दुनिया मे पाव पसार रहा है, उससे लगता है कि इसे नियंत्रित करने में काफी समय लग जाएंगे। एम्स दिल्ली के निदेशक ने पहले ही अस्पस्ट कर दिया है कि जिस तरह से कोरोना के मामले देश मे तेजी से बढ़ रहे है उससे जून जुलाई में कोरोना के केश चरम पर होंगे। कोरोना महामारी बढ़ने का कारण दूसरे राज्यों से आने वाले लोग भी हैं। चाहे वो मजदूर हो, छात्र या फिर आम आदमी। उदाहरण के तौर पर झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला को ही ले लिया जाय तो एक पखवाड़ा पहले कोरोना का एक भी पोजेटिव केश नही था। पहला दो केश चाकुलिया से मिला। दोनों छात्र बंगाल से आये थे। इसके बाद एक केश पटमदा का मिला वह भी बंगाल से आया था। 20 मई को तो जमशेदपुर में 9 कोरोना पिजेटिव पाए गए। उनकी भी हिस्ट्री बाहर की ही है। लाखों की संख्या में लोग दूसरे राज्यों से अपने गांव व शहर लौट रहे हैं। उनसे कोरोना केश बढ़ रहे हैं। ताजा आंकड़ा कोरोना केश का देखा जाय तो पिछले 24 घंटे में 5, 611 मरीज मिले, जबकि 140 मरीजों की मौत हुई। देशभर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1 लाख 6 हजार 750 तक पहुंच गई है। जबकि 3 हजार 303 कोरोना मरीजों की मौत हुई है। कोरोना से स्वस्थ होने वालों की संख्या भी बढ़ी है। अब तक 42,298 मरीज ठीक हुए हैं। वही दुनिया भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 50 लाख 37 हजार 099 पहुँच गई है। विश्व मे सवा 3 लाख लोग अपनी जान गवा चुके है, जबकि 19 लाख से अधिक लोग ठीक भी हुए हैं। इस परिस्थिति में सबसे पहली प्राथमिकता यही है कि जान है तो जहान है। देश के बड़े उधोगपति रतन टाटा ने भी यही कहा है कि वर्ष 2020 लोगों के लिए जान बचाने का है। नफा नुकसान नही देखना है। सही मायने में वर्षब 2020 
साहित्यकारों, कलाकारों, लोक कलाकारों का भविष्य कोरोना के कारण अंधेरे में है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड 
     भारतीय संस्कृति में लोक कलाकारों महिलाा-पुरुष का समस्त ॠतुओं में  वैभव शाली इतिहास रहा हैं, जिनके माध्यम से लोक कला प्रेमियों को कुछ सिखने को मिलता था , साथ ही रोजगार का अवसर प्राप्त होता था। इनकी कलाओं में वह जादू हुआ करता था, हर समुदायों के जन प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे। लोक कलाओं का विस्तार हुआ, जहाँ प्रतिदिन प्रात: काल से सायंकाल तक कक्षाओं में सिखाया जाता था।  जिसकी परीक्षाएं भी होती थी, जहाँ उत्तीर्ण होकर अपनी प्रतिभाओं की प्रस्तुति प्रस्तुत कर उल्लेखनीय योगदान देते थे। कई-कई प्रतियोगिताओं के माध्यम से जीत हासिल कर पृष्ठभूमि तैयार की हैं। विशेष रूप से उन भाषाओं में तो तरह-तरह के शब्दभंडारों  से अपने राज्य की पहचान बनाने में अनुकरणीय भूमिकाएं रही हैं। विशेष पर्वों में लोक कलाकारों का काफी महत्व बढ़ जाता था और उन्हें आमंत्रित कर सभी को विश्वास में लेने की पहल की जाती थी, अपनी ओर आकर्षित करते थे। किन्तु वर्तमान परिदृश्य में कोरोना महामारी के कारण जीवन शैली की दिनचर्या को काफी हद तक बदल कर रख दिया हैं। उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया हैं। सभी तरफ, तरह-तरह के समारोह बंद पड़े हैं, अपनी कला को पथ-पदर्शित करने का मौका नहीं मिल पा रहा हैं। जिनका परिवार इसी पर निर्भर था। कई-कई क्षेत्रों में,  कई-कई प्रकार की छूट दी गई हैं, परन्तु इन्हें प्रतिबंधित कर दिया हैं। जिनके माथे पर चिंता की लकीरें झलक रही हैं। इस पर भी गंभीरता पूर्वक सोचने की आवश्यकता हैं, नहीं तो,  वह दिन दूर नहीं?  जब लोक कलाकारों का भविष्य का वैभव शाली इतिहास अंधेरे में अस्तित्व समाप्त न हो जाए। आज वर्तमान परिदृश्य में लोक कलाकारों के महत्व को देखते हुए प्रभावित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
ये सच है की कोरोना की वजह से लोक कलाकारो का भविष्य अंधेरे में है। कोरोना संक्रमण के चलते सोशल डिसेशिंग का पालन करना है और भीड़ एक स्थान पर इकट्ठा नही होनी है कोरोना संक्रमण के कारण विवाह समारोह व अनेक राज्य स्तर प्रदेश स्तर के रंगारंग कार्यक्रम स्थगित कर दिये गये । लम्बे समय तक जिसके कारण लोक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन नही कर पा रहे लोक कलाकारो का कमाई का साधन उनकी कला है लॉक डाउन और कोरोना संक्रमण की वजह से ठप है जीविका चलाने मे बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। राजस्थान जयपुर आदी पर्यटक स्थल बंद होने के कारण लोक कलाकारो का भविष्य खतरे मे है छुट्टीयो मे विभिन्न राज्यो से भ्रमण के लिए पर्यटक आते थे लोक कलाकार गायन वादन नृत्य करके मनोरजन करके पैसा कमाते थे प२न्तु  कोरोना संक्रमण के चलते अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा वास्तव मे कोरोना के चलते तो क कलाकारो का भविष्य संकट में है।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन लगने से हर आदमी घर पर बैठा है। रोज कमाकर खाने वालों के समक्ष रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं। फिलहाल सरकार एवं सामाजिक संगठनों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाए हैं जिससे दो वक्त का भोजन नसीब हो रहा है। बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनका जीवन उधारी पर चल रहा है, ऐसे ही लोगों में वे लोककलाकार भी और मंचीय कलाकार भी शामिल हैं जिनकी रोजी-रोटी मंचों पर प्रस्तुति देने से ही चलती थी। चूंकि पिछले डेढ़ माह से कलाकार खाली बैठे हैं और निकट भविष्य में भी मंचों पर प्रस्तुति होना संभव नजर नहीं आ रहा है। इससे कलाकार चिंतित हैं कि उनके सामने भूखे मरने की नौबत न आ जाए। कलाकारों ने शासन से मांग की है कि छोटे कलाकारों की स्थिति देखकर आर्थिक मदद की जाए।
कलाकारों ने बताया कि लोक कला को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने चिन्हारी योजना के अंतर्गत प्रदेश भर के लोक कलाकारों का पंजीयन करवाया था। इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ी कलाकारों की प्रतिभा निखारने और लोक कला को बचाने के लिए क्रमवार कलाकारों को मंच दिया जाना था। इसमें प्रदेश भर में गांव-गांव से तीन लाख कलाकारों ने पंजीयन करवाया है।
जनधन योजना की तरह खातों में पैसा जमा करें
कलाकारों का कहना है कि चूंकि लॉकडाउन के कारण शारीरिक दूरी का पालन करना अनिवार्य है, इसलिए भविष्य में भी सांस्कृतिक आयोजन नहीं हो सकते। कलाकार पूरी तरह से कला पर ही निर्भर रहते हैं। सरकारी आयोजनों के अलावा निजी शादी, विवाह, पर्व, त्योहारों में भी प्रस्तुति देने का अवसर मिलता था, जिसकी उम्मीद आने वाले कई महीनों तक नहीं है। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार को चाहिऐ 
जनधन योजना की तरह कलाकारों के खातों में हर महीने रोजी-रोटी के लायक राशि जमा करे ताकि किसी भी कलाकार के समक्ष भूखे मरने की नौबत न आए।
लोककलाकार बहुत तकलीफ़ में है लाकडाऊन खुलने के बाद भी कई महिने इन का काम नहीं होने वाला क्या करेंगे .......? 
कलाकारों की स्थिति बहुत ख़राब है आगे का भविष्य भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा कब तक रहेगा यह कोरोना कब पीछा छूटेगा , कलाकारों के जीवन में तभी रोशनी आयेगी जब कोरोना 
मुक्त संसार हो जायेगा । 
जब तक कोरोना ताडंव करेगा 
कलाकार आराम ही करेगा !
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना वायरस की वजह से लोक कलाकारों की रोटी के भी लाले पड़ गए है । आलम ये है कि लोककलाकार आज आस पड़ोस व जानकारों से पैसे उधार लेकर अपना पेट भरने पर मजबूर है । इन लोगो के पास न कोई प्रोग्राम है और न ही कोई सरकारी कार्यक्रम और कमाल ये भी है कि सरकार को इनका ध्यान भी नही है , जिसके चलते इन्हें कोई सरकारी मदद भी प्राप्त नही है । लोक कलाकारों की ही तरह बहरूपियों का भी बुरा हाल है ।
दरसल गर्मी का महीना बहरूपियों के लिए गांव गांव यजमानों के यहाँ जाकर सांघ कर पैसा इक्कट्ठा करने की दृष्टि से बहुत अच्छा होता है । परंतु इस बार कोरोना ने उनके पेट पर बुरी तरह लात मार दी है , जिससे उन्हें खाने के भी लाले पड़ गए है । इसी तरह पेंटरों आदि के जीवन बस थमकर रह गए है । जिनकी और सरकार को शीघ्र अतिशीघ्र अपनी दृष्टि करनी चाहिए ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 फिलहाल अभी ऐसा ही कहा जा सकता है क्योंकि लोग कलाकार अपना कला का प्रदर्शन किसी विशेष कार्यक्रम नहीं दे पाते हैं अभी मांगलिक संस्कृति एवं अन्य कार्यक्रम तो क्या घर से निकलना दूभर हो गया है ऐसी स्थिति में कलाकारों का जो रोजी-रोटी कला के माध्यम से चलाने का जो तरीका है वह अभी  अवरूद्ध है। लेकिन कलाकारों फोटो जीना भी है वह इस संकट की घड़ी में किस तरह अपने आय का स्रोत बनाएं और अपने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाए इस पर कलाकारों के साथ विचार चल रहा होगा। ऐसी ही स्थिति बहुत लंबे समय तक चलेगी तो अवश्य लोक कलाकारों का भविष्य अंधेरे में होगा और उन्हें इस कला को त्याग कर अपना आवश्यकता की पूर्ति कैसे हो ऐसे कार्य की तलाश पर अपना परिवार की व्यवस्था करने में अपना मन तन को लगाएगा। तभी जीना संभव हो पाएगा सरकार फिलहाल उन्हें मदद करने की अपने से जितना बन पा रहा है कर रही है लेकिन सरकार भी कब तक करेगी अंतिम में श्याम कलाकारों के ही कोई रास्ता आय का स्रोत के लिए निकालना होगा मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति श्रम से ही संभव है। श्रम से उत्पादन उत्पादन के उद्योग वस्तु का निर्माण उद्योग से वस्तुओं को परिवहन के माध्यम से बाजार तक ले जाना बाजार से उपभोक्ताओं तक पहुंचाना और आवश्यकता की पूर्ति का तृप्ति के साथ जीना कि मनुष्य की मूलभूत व्यवस्था है। बाकी जो कार्यक्रम है महत्वाकांक्षा है मूलभूत आवश्यकता के बिना मनुष्य नहीं जी सकता। महत्वाकांक्षा आवश्यकताओं के बिना जी सकता है अतः मनुष्य को मूलभूत आवश्यकता रोटी कपड़ा मकान की संपूर्ण मानव को कैसे पूर्ति हो सके ऐसा योजना या व्यवस्था बनाने पर चिंतन करने की आवश्यकता है। कलाकारी जीने की व्यवस्था नहीं है मात्र मनोरंजन है मनोरंजन तभी संभव है जब मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।इससे मनोरंजन से शरीर की पोषण नहीं होती है। श्रम से ही वस्तु की समृद्धि होती है और वस्तु से ही पोषण होता है यही मनुष्य का जीने का आधार बाकी जो कार्य है निराधार ही है इसलिए समस्या आ रही है वर्तमान में कृषक और कृषको  से जुड़े मत रो मैं यह पोषण की समस्या नहीं है वस्तु की खराब और ना बिक्री होने से ही कृषक  समस्या से घिरा हुआ है लेकिन रोजी-रोटी की समस्या कृषको और मजदूरों में नहीं है। तृषा पर मधुर एक-दूसरे का पूरक बन कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर पोषण कार्य में लगे हैं उनका आश्रम रुका नहीं है अगर उनका श्रम रुक गया तो दूसरा महामारी भुखमरी होगा अतः हर मनुष्य की दृष्टिकोण बदलनी होगी वास्तविकता को पहचानना होगा और वास्तविकता को पहचानकर सभी को जीना होगा तभी कुछ हद तक समस्या से निपटा जा सकता है इतना दिखावा कार्यक्रम है या अनावश्यक कार्यक्रम है उस पर हम को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और एक सभी की व्यवस्था बन जाए ऐसे भविष्य में चिंतन करने की आवश्यकता है ।फिलहाल अभी की समस्या से निपटने के लिए लाभ डाउन का पालन करते हुए एक दूसरे का सहयोग करना है और करो ना से निजात पाना है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
      मात्र लोक कलाकारों का भविष्य ही अंधेरे में नहीं है। बल्कि रेहड़ी-फड़ी, मजदूर, ट्यूशन पढ़ाने वाले बेरोजगार युवा शिक्षक, पहले से आत्महत्या कर रहे किसान और विद्वान अधिवक्ता इत्यादि जैसे लोगों का भविष्य भी अंधकारमय है।
      चूंकि  लोक कलाकारों  एवं ट्यूशन पढ़ाने वाले युवा शिक्षकों ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किराये पर स्थान ले रखे हैं। जिनका किराया देना भी उनके बस में नहीं रहा। जिससे उनके भविष्य की कमर टूट रही है। उन्होंने तो अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना करते हुए अल्पधन से अपने जीवन की यात्रा आरम्भ की थी। उन्हें क्या पता था कि उनके पथ में कोरोना बैठा है। जो उनके सुनहरे भविष्य को कालख पोत देगा। जिसके फलस्वरूप उनका भविष्य पहले से भी बद्दतर हो जाएगा।
      अब जब अन्य व्यापार और संस्थान खुल गये हैं। तो उसके बावजूद साहित्य गतिविधियों, लोक कलाकारों एवं ट्यूशन पढ़ाने वाले युवा शिक्षकों को अभी भी प्रतिबंधित सूची में ही रखा गया है। जिससे उनका मनोबल भी टूट रहा है।
      अतः यदि उपरोक्त उद्यमियों का भी शीघ्र उचित हल न निकाला गया तो वह 'कमर व मनोबल' टूटने पर दिव्यांग हो जाएंगे। जिससे उभरना कोरोना से बड़ी चुनौती होगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कोरोना का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए देश में लाॅकडाउन घोषित हुआ है ।  सामाजिक दूरी के नियम का पालन करने के लिए दो गज की दूरी आवश्यक है  , इसलिए सामाजिक  एवं  धार्मिक आयोजनों पर पाबंदी लगाई हुई है  । इस हेतू एक सीमा निर्धारित की गई है  । यही वजह है कि मेले , विवाह , भागवत कथा  , जागरण , स्टार नाइटस  जैसे आयोजन प्रतिबंधित किए हुए हैं । बेशक आज  फेसबुक , यूट्यूब  जैसे सोशल मीडिया प्रचार प्रसार के सशक्त माध्यम हैं लेकिन पब्लिसिटी ही सब कुछ नहीं है  । पेट भरने के लिए भोजन - रोटी जरूरी है  । रोजी रोटी के लिए चंद रूपये पैसे चाहिए  । बिना आय के साधन से यह कहाँ सम्भव है  । ना तो कहीं आ जा सकते  , ना ही कोई आयोजन हो रहा है  । और रियाज़ के लिए उनके सहयोगी वादक - हारमोनियम  , ढोलक  , तबला  , गिटार  ,  वायलिन ,  की बोर्ड  , सैक्सोफ़ोन  , ट्रम्पैट  , बैग पाइपर  , बांसुरी आदि एक जगह इतने कैसे इकट्ठे हो पाएंगे  । ऐसे में अपना और परिवार का भरण - पोषण कैसे होगा  , एक चिंतनीय विषय है  । वीडियो  बगैरह बनाकर शेयर कर प्रचार प्रसार तो कर सकते हैं  लेकिन सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति ना होने की वजह से वितीय नुकसान तो उठाना ही पड़ रहा है  । कैरियर का भविष्य तो तब बना पाएंगे जब पेट भूखा नहीं होगा  । कहते हैं कि भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता है  ।
- अनिल शर्मा नील 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना महामारी की भयावहता से उपजे संकट ने लॉक डाउन, सोशल डिस्टेंसिंग को मानने को बाध्य कर दिया है जिसके कारण सभी बाहरी गतिविधियाँ रुक गयी। उच्च, उच्च मध्यम और मध्यम वर्ग इससे प्रभावित तो हुआ पर सबसे अधिक प्रभावित निम्न वर्ग, रोज कमाने वाले, लोक कलाकारों का जीवन बहुत अधिक प्रभावित हुआ है क्योंकि उनका काम एकदम ठप्प पड़ गया है।
         इस बदली हुई परिस्थिति में अब सभी लोगों को अपने काम करने के नये तरीके अपनाने होंगे, नये काम तलाशने होंगे, अॉनलाइन क्या-क्या और कैसे काम किए जा सकते हैं यह देखना, सोचना और करना होगा। जिन कामों को हम करते आए हैं उन्हें करने के लिए भी अॉनलाइन करने के तरीके समझने-सीखने होंगे।
         सरकार इसके लिए योजनाएँ बना रही है, साथ ही साथ स्वयं भी इसके लिए सोचना होगा। जो रुक गया, बंद हो गया... उसी के बारे में सोचते रहने से कुछ नहीं होने वाला। आगे अब क्या, कैसे करना होगा यह सोचें और करें। बदली हुई परिस्थिति के अनुसार अपने को ढाल कर काम के, आजीविका के नए विकल्प तलाश करते हुए चलना होगा तभी जीवन चलेगा।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
हां अंधेरे में तो है इससे कोई दो राय नहीं है! कोरोना काल में हमे उससे बचने के उपाय का पालन करना है चूंकि इस वायरस का संक्रमण एक से दूसरे मे तुरंत संक्रमित होता है अतः सोशलडिस्टेंसिंग बनाए रखना है! फिलहाल कोई शादियां या विशेष कार्यक्रम नहीं हो पाते जिससे ये अपना गुजारा कर सके! 
आज हमारे देश में लोक कलाकार वैसे भी कम हो गए हैं! लुप्त होने के कगार मे है कहें तो अतिशयोक्ति नहीं  होगी! 
देश के हर प्रांत के गांव में लोकगीत, लोकसंगीत, नाट्य कलाकार अपनी कला का हुनर शादी में, बच्चे होने पर, फसल करने पर, चाक घुमाता समय ऐसे अनेक प्रोग्राम में अपनी कला का प्रदर्शन कर अपना पेट पालतू हैं! 
हमारी सरकार लुप्त होती इस लोककथा को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रोग्राम में इन्हें मौका देती है! 
पहले नये साल में 31दिसंबर को टीवी में लोक संगीत प्रोग्राम ही दिखाया जाता था! विदेश से किसी मंत्री के आने पर हमारे लोक कलाकार के द्वारा ही प्रोग्राम दे हमारे देश का कल्चर हमारी संस्कृति बताई जाती है! 
आज कोरोना  के चलते हमारे लोक कलाकार भूखे बिना काम के हो गए हैं !नाट्य कलाकार के साथ ड्रेसवाले, साजसज्जा वाले, लाइटिंग वाले कहने का मतलब और लोगों की रोजी रोटी जुड़ी होती है! 
पहले बहुरुपिये रप बदल बदल कर आते थे अंतिम रुप अंतिम दिन पैसे लेते थे, राजस्थान का घूमर डांस घुंघरु के ताल पर नर्तकी थिरकती थी इस कोरोना  में घूंघरु की आवाज शांत हो गई है! 
छत्तीसगढ़ की तेज बाई पांडवा लोक प्रोग्राम करती थी सरकार ने उसे पद्म विभूषण सम्मान के साथ भलाई स्टील प्लांट में  प्यून की नौकरी भी दी! 
जो सरकारी प्रोग्राम दे रहे हैं उन्हें मदद मिल रही है किंतु घुमघुम कर हुनर दिखाने वाले कलाकार भूखो मर रहे हैं! 
गुजरात में  डायरा होता है !देश के सभी प्रांत में लोक कलाकार तो हैं ही! 
इन प्रोग्राम को बड़े रुप में आर्गनाइजर करने वालों का भी काम बंद हो गया है! 
इस कोरोना के चलते लोक कलाकार का भविष्य अंधेरे में तो है ही साथ ही हमारे गांव का कल्चर भी लुप्त हो रहा हैजिसे बचाने की जरुरत है! 
अब तो प्रदेश का हर लोक
कलाकार यही दुआ कर रहा है कि जल्द ही कोरोना  का बादल छटे तो उनकी जिंदगी मे कलाएं के रंग फिर से सजे !
कोरोना के नियमों का पालन करेंऔर कोरोना  से बचे!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
निसंदेह लोक संस्कृति के वाहक इन कलाकारों का भविष्य कोरोना की वजह से अंधकार में है l लोक संस्कृति व्यापक तथा अनेक तत्वों का बोध कराने वाली तथा जीवन की विभिन्न प्रवृतियों से संबंधित है तथा लोक मानस पर अमिट छाप छोड़ती है l यह कभी शिष्ट समाज के आश्रित नहीं होती उलटे शिष्ट समाज लोक संस्कृति से प्रेरणा प्राप्त करता है क्योंकि लोक साहित्य में मानव का ह्रदय बोलता है तथा प्रकृति स्वयं गुनगुनाती है l इसी धरोहर को लोक कलाकार पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण करके पुनीत कार्य करते है l ऐसे कलाकारों का भविष्य कोरोना ने अंधकारमय कर दिया है l 
     भारतीय लोक कलाओं में तंजोर कला, मधुबनी चित्रकारी वारली लोक चित्रकारी, राजस्थानी लोक साहित्य तथा लोक नृत्य आदि है लेकिन कोरोना काल में और उसके संक्रमण के चलते अपनी कलाओं में निखार लाना चाहिए l इन कलाकारों को आत्मविश्वास बनाये रखना होगा क्योंकि जिसे अपने में कोई शक्ति दिखाई नहीं देती केवल हीनता, अयोग्यता और दुर्बलता ही दिखाई देती है वह कैसे अपने अस्तित्व को कायम रख सकेगा, बहती धारा में जिनके पाँव उखड़ जाते है उसे पानी बहाकर ले जाता है l अतः लोक कलाकारों को अपना संयम और विवेक नहीं खोना है l 
  सामान्यतः लोक कलाओं से गुलजार रहने वाले राजस्थान में लोक डाउन के चलते सन्नाटा पसरा है l कलाकार आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं l 
इनके लिए सरकारी योजनाएँ भी कारगर नहीं हुई l हाँलाकि राजस्थान के मुख्यमंत्री ने कोरोना संक्रमण के चलते 11, अप्रैल, 2020को लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना शुरू कर लोक कलाकारों से वीडिओ आमंत्रित किये जिसमें बड़ी तादाद में आवेदन मिले लेकिन मात्र 100 कलाकारों को दो हजार पानसौ 
रूपये की आर्थिक सहायता मिल सकी l राजस्थान में चकरी डांस,  कालबेरिया डांस, पाबूजी का भोपा, सारंगी वादन, कठपुतली का नृत्य, किशनगढ़ की बनी ठनी चित्र शैली आदि में कम से कम चार कलाकार चाहिए lजो वीडिओ सरकार ने मांगे हैं उनमें सोशलडिस्टेंसिंग की अनिवार्यता की गई है l ऐसे में समूह में काम करने वाले कलाकारों को नुकसान हो रहा है l स्पष्ट कहें तो कुल मिलाकर लोक कलाकारों से गुलजार रहने वाले आज परेशान हैं l 
गहराई अस्पर्शित रहे, स्थितियों के संघात से l 
सागर बिखर नहीं जाता, हवाओं के आघात से ll 
लोक कलाकारों को दुगने जोश से अपनी माटी और लोक कला के लिए समर्पित होना होगा l 
      चलते चलते -
1. कोरोना संक्रमण के चलते लोक कलाकारों को भविष्य में सम्भलना होगा l 
हर बार जमाने का सितम होगा हमीं पर, 
हाँ, हम भी बदल जाये अभी, तो नहीं होगा l
2. डर मुझे भी लगा, फासला देखकर 
पर मैं बढ़ता गया, रास्ता देखकर 
खुद -ब -खुद मेरे नजदीक, आती गई
मेरी मंजिल, मेरा हौंसला देख  
कर l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
    
                     वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए और लाॅक डाउन के कारण जो स्थिति निर्मित हुई  है,  उसका प्रभाव लोक कलाकारों पर बहुत अधिक पड़ा है और इस समय उनके आर्थिक हालात भी  बिगड़ी हुई स्थिति में प्रतीत होते  हैं लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे कोरोना का संक्रमण समाप्त होने की तरफ बढ़ेगा लोक कलाकार अपने स्थान व स्थिति  को प्राप्त कर लेने में फिर से सफल हो जाएंगे ।किसी भी कलाकार का समय कुछ समयावधि तक विपरीत हो सकता है लेकिन ऐसा हमेशा बना रहे यह भी संभव नहीं है ।वर्तमान समय में कला- प्रदर्शन के अवसर सीमित है मंचीय  कार्यक्रम बंद हो चुके हैं। सार्वजनिक प्रदर्शन आदि पर रोक लगी हुई है ।ऐसी स्थिति में लोक कलाकारों को अपनी मंचीय  प्रस्तुति देने की अनुमति प्राप्त नहीं है लेकिन यह विपरीत समय बहुत लंबा नहीं चलने बाला है। आने वाले समय में लोक कलाकारों का  प्रदर्शन व प्रदर्शन के अवसर  पहले जैसे फिर से प्रारंभ हो सकेंगे; ऐसी उम्मीद की जा सकती है। धन्यवाद ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश
जी बिल्कुल ऐसा कह सकते हैं। अपने मुहल्ले में रोज सुबह ढोलक की थाप पर पीठ पर कोरे बरसाते कलाकार को रोज देखते थे। लाॅकडाउन की वजह से उनकी क्या स्थिति हो गई यह उनसे करीब एक महीने बाद मिलने से पता चला। वैसे ही पहले ही उनका जीवन बहुत दुष्कर स्थिति में था। अपनी आप बीती बयान करते हुए कहा कि क्या करें साहब दिन भर हजारों कोड़े खाने के बाद बामुश्किल दो वक्त का खाना जुटा पाते थे। लेकिन जब लाॅकडाउन हो गया तो वह भी बंद हो गया था। जो कुछ थोड़ा बहुत था उससे कभी सुबह में कुछ खा लेते तो शाम को नागा हो जाता और ठीक वैसे ही शाम को खा लेते तो सुबह का।कोरोना महामारी का डर तो है। मन तो कहता है अपनी खोली में रहें लेकिन पेट नहीं मानता इसलिए बाहर आना पड़ता है।न जाने ऐसे ही कितने लोक कलाकार होंगे। कोई बंदर नचाने वाले मदारी तो कोई सांप का खेल दिखाने वाला सपेरा तो कोई बच्चों को दो खंबे बीच बंधी रस्सियों पर बच्चों का खेल दिखाने वाला जिसपर बच्चे चलते हैं। और नीचे मधुर संगीत बजता रहता है।इस लाॅकडाउन की वजह से सब नदारद उन सभी के तो राम ही रखबार हैं। हमारे आपके जैसे ही लोग अपने आस-पास उन्हें देखते हैं।तब आह निकल जाती है। निसंदेह लोक कलाकारों पर लाॅकडाउन का बहुत बड़ा असर हुआ है।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
 गुड़गांव - हरियाणा
वास्तव में समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता और परेशानियाँ सभी के साथ है कहते है कि सुख और दुख आते जाते रहते है हर जैसे हमेशा अच्छा समय नही रहता वैसे ही बुरा समय भी गुजर जाता है जीवन में हमेशा आशा के साथ ही आगे बढा जाता है निराशा ठीक नही लोक कलाकारों की यह विशेषता होती है कि वे अपने आप को समय के अनुसार बहुत जल्दी ढाल लेते है और इसी लिए जीवंत अभिनय कर पाते है वह समाज से गहरा लगाव रखते है यह समय हमेशा के लिए नही है जैसे धीरे सभी कुछ कार्य सावधानी के साथ आरम्भ हो रहे है लोक नृत्य संगीत व नाटक भी अवश्य फिर शुरू होगा और हम सभी इन लेक कलाकारों को उसी प्रकार पुन:पूरी ऊर्जा के साथ नाचते गाते नाटक करते अवश्य ही देख सकेंगे हाँ कुछ समय अवश्य लग सकता है.                                 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना ने तो एक बच्चे से लेकर बड़े-बड़े लोगों का भविष्य अधर में लटका दिया है।हर किसी को सहारे की जरूरत होती है। उद्योग के लिए सरकार ने पैकेज घोषित कर दिया । लेकिन लोक कलाकार तो घूम-घूम कर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। उन्हें  तो मजमा लगाने की आदत होती है । उनकी कला एक हुजूम के सामने ही प्रदर्शन खोजती है। तभी कला निखरती भी है। अधिकतर लोक कलाकार सांस्कृतिक समारोह, वैवाहिक कार्यक्रम या पर्व-त्योहार पर भाग लेते हैं।
   इनका कहीं कोई डाटा-परिचय अंकित नहीं है। इनकी संख्या भी कहीं निश्चित नहीं है। ये लोग स्वरोजगार के रूप में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और उसी आमदनी से इनका घर-परिवार चलता है ।  कहीं भी अंकित नहीं होने के कारण इनके लिए कोई ठोस योजना सरकार के पास नहीं है । यूँ तो इनकी परम्परा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इन्हें प्रादेशिक कार्यक्रमों से जोड़ा है । लेकिन 3 महीने से हर कार्यक्रम पर रोक लगी है तो उससे ये लोग भी प्रभावित हुए हैं। इनका आमदनी का जरिया बिल्कुल समाप्त है। सरकार ने जब लॉक डाउन में शर्तों के साथ छूट दी है तो इनके लिए भी रोटी का इंतजाम करना फर्ज होगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
कोरोना  महामारीे  ने  सभी  के  जीवन  में,  सभी  क्षेत्रों  में  अनेकों  बदलाव  किये  हैं  ।  ऐसे  में  लोक  कलाकार  जो अपनी  विभिन्न  कलाओं  के  माध्यम  से  लोगों  का  मनोरंजन   करते  थे,  बेकार  हो  गये  हैं  । 
         लाॅकडाउन  और  उससे  संबंधित  निर्देशों  के  तहत  वै  अपनी  कला  का  प्रदर्शन  नहीं  कर  पाने  के  कारण  उनकी  रोजी-रोटी  चली  गई  है  । 
          ऐसे  समय  में  इन्हें  नवाचारों  का  उपयोग  जैसे  रेडियो,  मोबाइल  द्वारा  यूट्यूब  चेनल,  आॅनलाइन  कार्यक्रमों  के  प्रदर्शन  के  साथ-साथ  छोटे-मोटे  अन्य  उद्योग  (जो  पारिवारिक  सदस्य  मिलकर  कर  सके)  जो  थोड़ी  पूंजी  लगाकर  कर  सकते  हैं,  करें ।
     घर  की  महिलाएं  ही  अपनी  योग्यतानुसार  सहयोग  कर  सकतीं  हैं  ।  डिजाइनर  मास्क  जिसकी  अभी  बहुत  अधिक  मांग  है, जरा  से  क्रिएटिव  सोच  तथा  कम  खर्च  में  तैयार  किए  जा  सकते  हैं  । 
      लोक  कलाकारों  का  भविष्य  अंधेरे  में  जरूर  है  मगर  समय  को  बदलते  देर  नहीं  लगती  ।  जल्दी ही  अच्छा  समय  भी  आएगा  । 
       - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
लॉक डाऊन के कारण देश की अर्थ व्यवस्था चौपट हो गई है 
ऐसा नहीं कि ये स्थिति हिंदुस्तान में ही है  बल्कि कमोबेश पूरे विश्व के हर देश की अर्थव्यवस्था को ग्रहण लग गया है ।हिंदुस्तान में हरेक क्षेत्र और हर वर्ग त्राहिमाम कर रहा है हालांकि केंद्र वा राज्य सरकारें लोगों के लिये फिक्रमंद हैं और बहुत कुछ कर रही हैं ।
ऐसे ही लोक कलाकारों का एक वर्ग हैं जो इस कोरोना की चक्की में बुरी तरह से पिस रहा है ।
लोक कलाकार ऐसा वर्ग है जो अपनी कला का प्रदर्शन कर के अपने परिवार की दो जून की रोटी का इन्तजाम कर पाता था ।
अब इस कोरोना काल के लॉक डाऊन में ये कलाकार और उनके परिवार भूखे मरने के कागार पर हैं ।केंद्र और राज्य सरकारों को चहिये कि इस वर्ग के खाने पीने वा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक पैकज दिया जाये ।
      - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना के कारण लोक कलाकार के कला प्रदर्शन में एक बाधा उत्पन्न हो गई है काम उनका बिल्कुल ही बंद हो गया है जिसके कारण उनकी आमदनी बंद हो गई और जीविका भी अधर में लटकी हुई है यह ऐसे कलाकार हैं जो वेतन भोगी नहीं है जिनकी जमा पूंजी भी बहुत नहीं होती है और वह दूसरे काम को करने में भी अपने आप में सक्षम नहीं हो पाते हैं ऐसे लोगों के लिए तो जीविका एक आफत आफत बन गई है 
      ‌ छोटे शहरों में गांव में लोक कलाकार बड़े ही पॉपुलर होते हैं खासकर लगन के समय या कोई त्यौहार के समय उनको बड़े आदर्श सम्मान से बुलाया जाता है और उनके कलाकारों का मान सम्मान किया जाता है लेकिन इस लॉक डाउन में वह सोशल डिस्टेंस ई के कारण सब कुछ बंद पड़ा है और यह डिजिटल के माध्यम से थोड़ा बहुत जो प्रदर्शन कर पा रहे हैं वह सिर्फ एक इंगेजमेंट बन रहा है उससे आय का स्रोत उनका विकसित नहीं हो रहा है उनके लिए बहुत ही समस्या है यह लॉक डाउन सिर्फ लोग लोगों के लिए समस्या तो उत्पन्न कर ही दी है आय का स्रोत भी बंद कर दी है इससे आर्थिक मंदी भी बढ़ती जा रही है धीरे-धीरे मन में असंतोष हो रहा है ऐसा लग रहा है कि कब कोरोनावायरस चला जाए और सामान्य जीवन जीने का मौका मिले ताकि सभी का कल्याण हो सके लोग कमा सके बच्चे पढ़ सकें लेकिन वर्तमान परिस्थिति को देखने से ऐसा महसूस होता है कि यह जाने वाला नहीं है हमें ही कोई दूसरा रास्ता अपनाना होगा अब उस पर सोच विचार कर कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा कि जीवन है तो जीविता भी पैदा करना हमारा कर्तव्य बनता है परिवार देखना मेरा कर्तव्य बनता है और सुरक्षित रहना भी मेरा कर्तव्य बनता है इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए कोई न कोई तरीका ढूंढ निकालना है और सभी लोग कोशिश में लगे हुए हैं
       ‌ लोक कलाकार जब तक अपनी कला का प्रदर्शन नहीं करते हैं तालियों की गड़गड़ाहट नहीं सुनते हैं वाह वाह की आवाज उनके कान तक नहीं पहुंचती है वह उत्साहित नहीं हो पाते हैं और यह उनके लिए वर्तमान समय में एक सजा बन गई है।
   समस्याएं तो अवश्य हैं पर हौसला बुलंद रखना है आज समस्या है तो कल निदान भी निकलेगा हो सकता है पहले से ज्यादा अच्छा समय आने वाला है अच्छे उपाय मिलने वाले हैं जिसमें की हमेशा एक जीवन जीने की गारंटी बनी रहे जीविका का एक निर्धारित स्रोत उत्पन्न हो जाए इसलिए हमारी सरकार भी इस बार पूरा प्रयत्नशील है और तरह-तरह के योजनाओं को बना रही है हर तबके के लोगों के सुख सुविधाओं का ध्यान रखते हुए योजना का गठन किया जा रहा है और उस पर कार्य करने की पहल की जा रही है इसलिए थोड़ा धैर्य रखना है आज जरूर अंधेरा है कल सुबह होगी और कल का सूरज जो होगा वह एक नया सवेरा लेकर आएगा सभी सभी के जिंदगी में एक रोशनी आएगी और उसमें हम एक नया जीवन देखेंगे यह करो ना हमें प्रदूषण से मुक्त किया है हमारी गंगा जल पवित्र हो गई है साफ हो गई है स्वस्थ हो गई है शुद्ध हो गई है तो सोचिए जिस पर इतना दिनों से प्रयास किया जा रहा था और वह संभव नहीं हो पा रहा था जिसे कि 2 महीने के दरमियान को रोना ने कर दिखाया तो संभव है अंधकार से फिर एक नई रोशनी सभी को अवश्य मिलेगी और उस रोशनी में हम एक नया सूरज देखेंगे एक नया सवेरा खिलेगा एक नया काम मिलेगा जो हमारी जिनका के लिए बहुत ही खुशहाली लाएगा इसलिए हमें उदास नहीं होना है धैर्य से काम करते जाना है जो काम मिले उसे करना है कितने लोगों को तो मैं देख रही हूं कि है चश्मे वाले अवैध रहे हैं आप तो अपने मनु प्रीति को ही थोड़ा सा बदलाव लाना होगा यह परिधि तोड़ना होगा कि हम यह नहीं कर सकते हम सब कुछ कर सकते हैं ऐसा कुछ नहीं है जो हम नहीं कर सकते ठीक है अभी कलाकार प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं कि सोशल डिस्टेंस मेंटेन करना है तो हम दूसरी तरह का कार्य करेंगे निराश नहीं होंगे हताश नहीं होंगे तनाव में नहीं रहेंगे नए जुगाड़ में जुटे रहेंगे और नए जुगाड़ से नई रोशनी मिलती चली जाएगी नए रास्ते इसी तरह से मिलते हैं जब सभी रास्ते बंद होते हैं तो नए रास्ते खुलते हैं इसलिए हिम्मत रखना है और हिम्मत रख कर के पूरे जोश के साथ जीवन को जीना है
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में "  कोरोना की वजह से लोक कलाकारों का भविष्य  खतरे में पड़ गया है । हो सकता है कि लोक कलाकारों के काम का रंग रूप बदल सकता है । सोशल मीडिया के माध्यम से कार्यक्रम को.लोगों तक पहुंचा जा सकतें है
                                                     - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र





Comments

  1. बहुत सुंदर अंक सभी प्रकाशित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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