शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ से क्या लॉकडाउन खतरें में पड़ गया है ?

लॉकडाउन में शराब के ठेके खोलने के पीछे सरकार का एक मात्र उद्देश्य सरकार की आय है । परन्तु जनता ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करते हुए ठेके पर बेहिसाब भीड़ ने सबके होश उड़ा दिया है । सरकार के साथ - साथ जनता भी चिन्ता में पड़ गई है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। क्या पहले ही दिन की स्थिति देखने के बाद इस विषय पर कुछ कहने के लिए रह गया है? 
शराब की दुकानों का खोलना और कोरोना से युद्ध - दोनों घोर विरोधात्मक हैं। मुझे आश्चर्य है कि यह निर्णय किन मानदंडों को सामने रखते हुए लिया गया है। 
जिस कोरोना वायरस से बचाव के लिए जब एक ओर सामाजिक/शारीरिक दूरी ही एकमात्र उपाय बताया जा रहा हैं वहीं दूसरी ओर शराब की दूकानें खोलने का आदेश जारी किया जा रहा है - अद्भुत।
पहले दिन की बिक्री से हुई कमाई के आंकड़ों को देखते हुए जो लोग खुश हो रहे हैं वे जरा यह भी देखें कि पिछले 24 घंटे में 3900 कोरोना के नये मरीज सामने आये हैं।
पहले ही दिन शराब के ठेकों पर उमड़ी भीड़ से जिस प्रकार लाॅकडाउन की धज्जियां उड़ी हैं उसके परिणाम जब आयेंगे तो जो विश्व आज भारत के सही समय पर लिए गए लाॅकडाउन के निर्णय पर प्रशंसा के गीत गा रहा है वही विश्व मात्र इस निर्णय की वजह से घोर निन्दा करेगा। 
इस भयंकर त्रासदी में शराब के लिए इकट्ठी भीड़ की महामूर्खता के विषय में तो क्या कहें - विनाश काले विपरीत बुद्धि। 
जिस लाॅकडाउन की वजह से भारत कोरोना वायरस के भयावह रूप से युद्ध कर रहा है उसी की धज्जियाँ उड़ते देखकर कोरोना वायरस को जश्न मनाने का अवसर मिल गया है।
सबसे प्रमुख बात कि जो कोरोना योद्धा अपनी जान की परवाह न कर इस युद्ध में दिन-रात लगे हुए हैं उनके समर्पण, लगन, मेहनत और निष्ठा के उपहारों की अवहेलना करते हुए शराब के ठेकों को खोलकर क्या हमने उन सभी कोरोना योद्धाओं के प्रति कृतघ्नता नहीं दिखाई है? 
निश्चित रूप से शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ से लाॅकडाउन खतरे में नहीं बल्कि भयंकर खतरे में पड़ गया है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमें इस निर्णय से ऐसी स्थिति न देखनी पड़ी जब पछताने का भी समय ना हो।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
यह बिल्कुल सत्य है की शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ निश्चित रूप से,लॉक डाउन को खतरे में डालने वाली है। जिस तरह से अभी तक हमने इस महामारी को रोकने के लिए एक शारीरिक दूरी बना कर रखी थी, वह शराब के ठेकों पर आकर ध्वस्त होती दिखाई दे रही है। निश्चित रूप से शराब कि दुकानों पर उमड़ी ये भीड़ इस महामारी के विरूद्ध हो रहे युद्ध में एक कमजोर कड़ी साबित होगी।जिस तरह से इस भीड़ ने सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा कर रख दी हैं,वो एक भयानक स्थिति की ओर संकेत करती प्रतीत हो रही है।ये भी सत्य है की कुछ अनुशासनहीन  लोगों के कारण, देश की वह अनुशासित जनता भी खतरे में पड़ रही है जो स्वयं को अनुशासन के दायरे में रखकर इस महामारी के विरुद्ध लड़ने में अपना योगदान दे रहे हैं।
मदिरा की यह प्यास कहीं इन लोगों के जीवन के साथ-साथ समाज के अन्य नागरिकों के जीवन की आस की डोर को ही खत्म ना कर दे। हम सभी नागरिक एक चेन की भांति जुड़े हुए हैं, जिसकी एक भी कड़ी कमजोर होने का अर्थ है पूरी चेन का कमजोर हो जाना और टूट जाना। शराब की दुकानों पर उमड़ी येभीड़ निश्चित रूप से कोई अच्छा संदेश नहीं देने जा रही है। अगर शीघ्र ही स्थिति को काबू नहीं किया गया है तो यह भीड़ देश के लिए आगामी समय में एक बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकती है।
घर पर रहिए, सुरक्षित रहिए
देश सेवा में ,योगदान देते रहिए।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद -  उत्तर प्रदेश
     यह सत्य है कि नशा प्राचीन काल से ही चला आ रहा हैं, वर्तमान परिदृश्य में महत्व बढ़ता जा रहा हैं। नशा जो आय का साधन बन गया है, लेकिन जिसका दुष्परिणाम गंभीर होते जा रहा है। खैर नगर में तो बनी बनाई मिल जाती हैं। सूक्ष्म में ही तांडव नृत्य प्रारंभ हो जाता हैं। ग्रामीण कस्बे में तो प्रातः काल की शुरुआत नशे से होती हैं। बच्चों को सुबह से ही महुआ को चुन्ने भेजा जाता हैं। हम ही तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, मदिरा आदि लाने भेजते हैं। वह एक-दो, तीन बार लायेगा, उसके बाद वह भी करके देखेगा, क्या होता हैं, जब अंकुर की दिनचर्या ऐसी होगी तो सोच लो भविष्य कैसा होगा।  क्या हम प्रारंभ में ही इसे अंकुश नहीं लगा सकते। दीर्घ समय से ही साधु संत भांग, धतूरा  का सेवन करते थे। नशे के प्रभाव से उनका मन भक्ति में केन्द्रित हो जाता था। लेकिन बाद में चरस, गांजा,  अफीम और कोकिन के प्रचलन से हमारी युवा पीढ़ी दिग्भ्रमित हो कर पतन की ओर अग्रसर है। जिसका दुष्परिणाम वर्तमान परिवेश में दिखाई दे रहा है। नशा पूरे देश के लिए एक भयानक अभिशाप है। जैसे-तैसे लाँकडाऊन आंशिक रुप से खुलने की व्यवस्था हुई। शराब के प्रतिष्ठित प्रेमियों की अपार भीड़ उमड़ पड़ी। अगर ऐसा रहा तो लाँकडाऊन खतरे पड़ सकता है, इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अगर लाँकडाऊन की समय सीमा निर्धारित करनी हैं, तो 
जिस तरह से चुनाव प्रक्रिया में उगली में स्याही लगाकर संख्या निर्धारित की जाती हैं, उसी तरह शराबी की उगली में स्याही लगाकर संख्या निर्धारित करनी चाहिए। तब जाकर शराब-शबाब में महत्व हो जाये।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
आज शराब के ठेको पर उमड़ी भीड़ से न केवल सोशल डिस्टनसिंग खतरे में पड़ी है बल्कि इससे कई और मुद्दों पर विचार करने का अवसर प्राप्त हुआ है , जिसने जनता की आंखे खोलकर रख दी है । दरसल शराब की दुकानों पर उमड़ी भीड़ ने कहीं न कहीं ये बताने की कोशिश की है कि जनता के पास खाना खाने अथवा परिवार पालने के लिये पैसा नही है परंतु न केवल शराब पीने बल्कि उसे स्टॉक करने के लिए भी बहुत पैसा है । दूसरा इस हरकत ने ये भी सिद्ध किया है कि समाज से कितनी ही आवाजे शराब बंदी के लिए उठती रहे या कितनी ही महिलाएं सड़को पर शराब के विरोध में प्रदर्शन करती रहे परंतु अब तक ये कहने वाली सरकार की लोग शराब के बिना नही रह सकते और इसीलिए एकदम शराब पर रोक नही लगाई जा सकती है । 40 - 42 दिन से शराब के बिना रह रहे लोगो ने तो ये सिद्ध कर दिया कि वे लोग बिना शराब के रह सकते है परंतु ऐसे महामारी के समय मे सरकार का शराब की दुकानों को खोलना ये सिद्ध करता है कि सरकारे बिना शराब बिक्री के राज नही कर सकती है । 
वहीं शराब के ढेको पर उमड़ी भीड़ से पनपने वाले कोरोना को सरकार कैसे नियंत्रण करेगी न केवल इसके लिए सरकार को तैयार रहना चाहिए बल्कि यदि हालात बेकाबू होते है या एक बड़ी संख्या में मरीजो का इजाफा होता है तो उसकी जवाबदेही के लिए भी सरकार को तैयार रहना चाहिए । 
- परीक्षीत गुप्ता
हीमपुर दीपा - उत्तरप्रदेश
एक ओर जहां पूरे देश में लॉकडाउन के कारण सभी संस्थान बन्द रखे गये हैं जिससे आवाजाही ना हो, वही दूसरी ओर कल लॉकडाउन 3.0 में सरकार द्वारा शराब की बिक्री पर लगी रोक हटा दी। खाली हो चुके खजाने को भरने के लिए ये एकमात्र विकल्प ही राज्य सरकारो को दिखा, जब केन्द्र ने पैसे देने में अपने हाथ खींच लिए 
परंतु क्या इस खजाने से हम कोरोना को तो नहीं ला रहे!!!
जी हां, शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ से एकबार फ़िर से देश में लॉकडाउन ख़तरे में पड़ सकता है क्योंकि मधुशाला के बाहर लगी भीड़ ने लॉकडाउन के नियमों की पूर्णतः धज्जियां उड़ायी और '2 गज की दूरी' का पालन न करते हुए एक दूसरे के ऊपर चढ़ने को तैयार रहे। देश में विभिन्न स्थानों पर तो स्थिति को बेकाबू होता देख पुलिस द्वारा इन मधुशालाओ को बन्द तक कराया गया और इन पर लाठिया भांजनी पड़ी। 
केवल शराब के ठेके पर ही नहीं अपितु कही पर भी जहाँ 2 गज की दूरी सिद्धांत का पालन नहीं किया जायेगा, निश्चित ही पिछले 40 दिनों की मेहनत पर पानी फ़िर ही जायेगा अतः सरकार को चाहिये कि राजस्व की कमी को पूरा करने के लिए एेसा कोई कार्य न करे जिससे पिछली मेहनत एकदम बेकार साबित हो जाये।
विभोर अग्रवाल 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
नियमों की अनदेखी कर जमा भीड़ चाहे शराब के ठेकों पर हो, राशन की दुकानों पर, घर जाने के लिए आतुर प्रवासी लोगों की भीड़ या बैंक में लगने वाली क़तारें हो लॉक डाउन ख़तरे में ही पड़ रहा है इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ये देखना होगा ।
   पिछले कुछ दिनों से कोई शराब पी नही रहा था या चोरी से पीने की पूर्ति की जा रही थी इससे तो बहुत बड़ा नुक़सान सरकार का हो रहा था रेवेन्यू डिपार्टमेंट के आँकड़े बताते हैं कि एक दिन में करोड़ों की वसूली हुई है तब तो खोलने से प्राप्त आय लॉक डाउन के लिए खर्च व्यवस्था में काम आएगा इस आधार पर ठेकों को खोलने में कुछ गलत नही है ये लगातार खल जाने चाहिए और यदि शराब पीने के लिए शराबी नियमों की अनदेखी करे तो उस पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए ऐसा करने से सरकार की आय भी बढ़ेगी और लॉक डाउन भी प्रभावित नहीं होगा । नशा मुक्ति के लिए ठेकों को बंद करने या खोलने का प्रावधान उचित नही है ये निर्णय स्वविवेक पर छोड़ना चाहिए क्योंकि शराब की बोतल लेबल पर तथा विज्ञापनों में साफ़ तौर पर लिख दिया जाता है कि *शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है * फिर भी पीने वाला पी रहा है तो निश्चित ही वह वर्ग मृत्यु की परवाह किए बिना संलग्न है और जिसे परवाह है वह पीना तो दूर छूने से भी परहेज़ कर सकता है उसके लिए ठेकों को बंद रखें या न रखें । इसी प्रकार लॉक डाउन भी उनके लिए महत्वपूर्ण है जो विवेक से जी रहे हैं ।
 इससे प्रभाव अवश्य पड़ेगा क्योंकि बीमारी संक्रामक है सोशल डिस्टेन्स ज़रूरी है फिर भी बचाव के लिए लॉक डाउन हुआ है उसका पालन करना चाहिए । 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन के चलते प्रत्येक राज्य की अर्थव्यवस्था लगभग डगमगा चुकी है। और इस महामारी से जो मजदूर या राज्य पर आश्रित जनता है उन सब की हर प्रकार की मदद व सुरक्षा की जिम्मेदारी भी निभानी है । वो खर्च भी बढ़ रहा है । हां यह भी सच है कि भारत देश के सभी नागरिक बढ़ चढ़ कर सहयोग भी कर रहे हैं पर यह कहावत ‌भी झुठलाई नहीं जा सकती।
‌ घर बैठ कर खाते खाते तो कुएं खत्म हो जाते हैं।
    अतः अर्थव्यवस्था को देखते हुए सरकार ने उस उद्योग को चालू करने की सोची जिससे सरकार को ज्यादा मदद मिले और शराब की दुकानों को खोलने की इजाजत दे दी चालीस दिन की सुरक्षा,मदद ,लागू नियम, कुछ शर्ते, जिस तरह चलती रही उन्हें देखकर शायद सरकार को विश्वास हो आया था कि जनता अब अपनी सुरक्षा को लेकर जागरूक हो चुकी है और जनता का सहयोग मिलेगा पर हो गया उल्टा । जनता ने तो यह साबित कर दिया कि सरकार अपने फायदे के लिए हम सब को क़ैद कर के बैठी थी और अब हम आजाद हैं। और अब जीवन उन नियमों में नहीं बल्कि शराब पीने ‌में है। जिसके चलते सभी को सरकार का निर्णय ग़लत लग रहा ‌है।
  गूंज रही है विनती आज
उन पीने वालों के नाम
दोष हमारा हम ना पिते
पर रखते हम भी जान
मान सभी नियमों को
बचा लो मिल भारत की शान।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
जी हा ! सरकार की यह सबसे बढ़ी गलती भी साबित हो सकती हैं एक ओर सरकार शक्ती से लाॅकडाउन पालन करवा रही हैं दूसरी ओर शराब के ठेके खोल रही है 40 दिनों की शान्ति को हमनें शराब ठेके चालु कर भंग कर दिया हैं एक ओर समाज में शराब को पुर्ण रूप से बन्द करने (प्रतिबन्ध ) लगाने की मांग उठती रही है दूसरी 40 दिन के लाॅकडाउन ने उसे काभी हद तक सफल बनाया था की शराब ठेके खोल कर लाॅकडाउन का भी मजाक उढ़या गया है शराब के ठेको पर लग रही लम्बी 2 लाइन तो यही बता रही हैं।मुझे तो एसा ही लगता हैं कि लाॅकडाउन जरूर खतरे मे पढ़ जायेगा।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
कोविड - १९ Corona से संक्रमित  रेड जोन  वाले एरिया- दिल्ली से मुंबई तक  भी  वाइन शॉप पर उमड़ी भारी भीड़ ने अब तक दोनों चरणों के लॉक डाउन की भी धज्जियां उड़ा दी हैं ।मेरे समझ से परे है कि केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के बीच यह कैसी डील हुई?
शायद-
"#  विनाश काले विपरीत बुद्धि"#
#          #        #      #     #
      अब  करोना  से  बढ़ने  वाले संक्रमण  को  रोकना  असंभव  ही  है ।
राज्य सरकारों को अपनी आय बढ़ाने थी   .....?
     तो क्या मुर्दों का कफन बेच कर अपनी आय बढ़ाएगी  ?
       फिर उस  आय  से ज्यादा कफन खरीदेगी ?
 जिस तरह से शराब खरीदने वालों ने लाक डाउन में सोशल डिस्टेंसिंग  का  मजाक उड़ाया है! यह भयानक स्थिति है  अब तक जनता lockdownमें रहकर अपने परिवार के सदस्यों के साथ आत्मीयता के साथ रहना सीख गई थी  ।
  परंतु  अब  अपने परिवार के सदस्यों को संक्रमित तो करेंगे ही  
                मदिरापान करके अनुशासनहीनता के साथ अपने घर के सदस्यों पर अत्याचार भी करेंगे   - 
जिससे उपद्रव आत्मघाती हमलों को रोकना भी असंभव है । 
शराब के ठेकों पर उमड़ी भीड़ को पुलिस वाले संभाले ।
लाक डाउन के नियम तोड़ने वालों को भी पुलिस वाले संभाले 
      फिर घर- घर में लड़ाई झगड़ा मारपीट में मर्डर को भी संभालने  के लिए पुलिस कहां से आएगी? सचमुच शराब के ठेकों पर उमड़ी भीड़ से ला क डाउन  में  खतरे की घंटी  बज  गई  है ।
         यदि इसे शीघ्र ही न रोका गया तो कहीं आम आदमी को भी अपनी सांसों से भरोसा  न उठ जाए ।
ला कडाउन में खाना खूब मंगाया
सुबह भी मंगाया शाम भी लगाया
गरीबी का नाटक खूब रचाया । घर में राशन को खूब  भरवाया।
          पर       ला क डाउ न में ,
  महंगी शराब का जाम देखकर
मरने        से     भी  न घबराया ।
कोरोना संक्रमण घर में  लाया  ।
          - रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
हमारे देश में 40 दिवसीय तालाबंदी के बाद दिनांक 4 मई 2020 से देश में दुकानें व दफ्तर खुलने लगे । तालाबंदी के तृतीय चरण में 600 जिलों में दुकानें खुली । इन दुकानों में सबसे ज़्यादा भीड़ शराब दुकानों पर देखी गई । 
राज्य सरकारों को सबसे अधिक राजस्व शराब से ही  प्राप्त ‌होता है । जहां दिल्ली की बात कहें वहां शराब पर 70 प्रतिशत स्पेशल कोरोना फीस लगाने का फैसला किया । इसके बाद भी वहां शराब खरीदने वालों को तो ऐसा लगा मानो अब शराब पीने को मिलेगी या नहीं । लोगों ने शराब की दुकानों के आगे नतमस्तक होकर श्रद्धा भाव दिखाया । 
वहीं तालाबंदी 3 में कुछ शर्तों के साथ दुकानों व आफिसों को खोला गया । जिसमें सामाजिक दूरी बनाए रखना महत्वपूर्ण थी लेकिन जिस तरह शराब के प्रति लोगों ने मोहब्बत दिखाई वह नजारा दिन-प्रतिदिन नए रूप में सामने आयेगा । जैसे अखबार में छपी खबर है शराब खरीदते समय हुआ विवाद, शराब के लिए लाकडाउन के नियमों की धज्जियां उड़ी .... ऐसी न जाने कितनी ख़बरें आती रहेगी । 
सरकारें अपना हित साधने के लिए शराब के ठेके चालू कर पैसा कमाएगी पर भीड़ नियंत्रित करने में उसे बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी । इस प्रयास में कोरोना जैसा खतरनाक वायरस फैलेगा और आंकड़ों में तेजी से वृद्धि होगी । 
मेरा सोचना है कि शराब की केवल आनलाईन डिलेवरी होना चाहिए और आधार कार्ड ज़रूरी होना चाहिए । जो गरीब शराब खरीद रहा हो उसे बीपीएल कार्ड दिखाना जरूरी करना चाहिए । जिसकी मात्रा भी निश्चित होना चाहिए । एक पते पर सप्ताह में एकबार ही शराब दिए जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए ।  और इसका रेकार्ड दुकानदार को रखना आवश्यक होना चाहिए । 
तभी भीड़ को नियंत्रित कर लाकडाउन 3 को सही तरीके से सफल बनाया जा सकता है ।
- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
शराब की दुकानों पर उमड़ी भारी भीड़, जिसने 2 गज की दूरी, सोशल डिस्टेंस जैसी सावधानी की धज्जियां उड़ा दी, इसके कारण लाकडाऊन खतरे में ही नहीं पड़ा, बल्कि खतरनाक हो गया है। इतनी सारी भीड़ का एक साथ जमा हो जाना, जबकि विवाह-शादी ,मृत्यु अंतिम संस्कार आदि में भी दो,चार लोगों से ज्यादा को अनुमति नहीं मिल रही। ऐसी स्थिति में हजारों की संख्या में एक साथ शराब की दुकानों पर भीड़ होना खतरनाक स्थिति है । इससे सावधानी हटी दुर्घटना घटी जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इससे लगभग 45 दिन के लाक डाउन में देश में सुधरी और नियंत्रित हुई कोरोना की स्थिति,भारी संक्रमण के दौर में पहुंच सकती है। जब सरकार स्वयं कह रही है,सोशल, फिजिकल डिस्टेंस ही बचाव का एकमात्र उपाय है तो फिर यह भीड़ जुटने की छूट सुरक्षा की अनदेखी, आत्मघाती कदम है। इससे लाक डाउन की स्थिति भी प्रभावित हो रही है,वह असफल ही नहीं हो रहा बल्कि भयावह स्थिति बन सकती है अब।
- डॉ.अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस कोविड 19 वैश्विक महामारी को नियंत्रित करने के लिए देश मे लॉकडाउन का तीसरा चरण चल रहा है, जिसे 17 मई तक लागू किया गया है। इस बीच केन्द्र सरकार के आदेश पर शराब की दुकानों को सोमवार से खोल दिया गया। यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी भी है। पर सोमवार व रविवार आज जिस तरह से शराब दुकानों में लोगों की हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ी उसमे न तो लॉकडाउन का पालन लोगो ने किया और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग का। यदि ऐसा ही शराब दुकानों में भीड़ रहा और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन लोगों ने नही किया तो लॉकडाउन खतरे में पड़ जाएगा। सबसे आश्चर्य की बात तो यह देखने को मिली कि दिल्ली का पूरा इलाका रेड ज़ोन में है और दिल्ली सरकार ने शराब दुकानों को खोल दिया, जहाँ शराब के ठेके पर लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई। अभी देश मे पिछले 24 घंटे में 3900 कोरोना संक्रमित मरीज मिले। भारत मे 46433 कोरोना मरीज हैं, जिसमे 32338 मरीजों का इलाज अस्पतालों में चल रहा है। कोरोना से 1568 लोगों की मौत हुई है। हालांकि 12727 मरीज ठीक भी हुए हैं। अब दुनिया की बात की जाय तो 2500000 ढाई लाख मौत हुई है, जबकि 36 लाख कोरोना से संक्रमित हैं।  भारत मे जिस तरह से कोरोना मरीजो की संख्या बेहताशा बढ़ रही है। यह चिंता की बात है। इस बीच शराब में ठेके पर जिस तरह से पिछले 2 दिन में लॉकडाउन का लोगो ने उल्लंघन किया शराब लेने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई। इससे लॉकडाउन का खतरे में पड़ना तय माना जा रहा है इसके लिए शराब के ठेके, पुलिस व लोगो को लॉकडॉउन का पालन करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सख्ती से करना होगा। हालांकि शराब की कीमतों को कोरोना टेक्स लगाकर 70 प्रतिशत महंगा कर दिया गया है। इसके बाद भी खरीदारों की कमी नही है। देश की ख्यातिप्राप्त संस्था जैमनी अकादमी की ओर से चर्चा का विषय शराब के ठेके ओर उमड़ी भीड़ से क्या लॉकडाउन खतरे में पड़ गया है। सही समय और यह बहुत ही सटीक चर्चा है। यदि शराब दुकानों में लोग सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन नही करेंगे तो लॉकडॉउन खतरे में पड़ जाएगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ से लॉक डाउन खतरे में है । सोशल मिडिया अखबारो में लॉक डाउन की धज्जियां उड़ाती भीड़ दिखाई पड़ी सोशल डिस्टेशिग का पालन ना करते हुए लोग घरो से बाहर भीड़ के साथ शराब के ठेको पर जमा हुए। संक्रमण फैलने का खतरा हैै लोग भीड़ मे शराब के लिए मारामारी करते नज़र आये किसी को कोरोना महामारी का खोफ नही दिखा सरकार के इस कदम की निन्दा करती हुं। सरकार का यह कदम कोरोना महामारी को आमंत्रण है। एक भी संक्रमित व्यक्ति भीड़ मे आ जाये तो सोचो खतरा बढ़ा या घटा प्रतिदिन संक्रमण बढ़ रहा है। सरकार ने लॉक डाउन बढ़ा दिया पर क्या फायदा हुआ शराब के ठेके खुलने से । लॉक डाउन खतरे में है।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
सरकार खुश तो ज़रूर हो रही होगी कि एक ही दिन में शराब इतनी बिक गई कि उसके ख़ज़ाने में करोड़ों रुपये आ गए। लेकिन जिस तरह ठेकों पर भीड़ उमड़ी उसने अभी तक कि मेहनत पर पानी फेरने का काम कर दिया। एक बार फिर ये सिद्ध हो गया कि हम एक अविकसित देश के आदत के गुलाम लोगों के साथ रह रहे हैं। शराब हमारे यहाँ एक बुरी आदत से ज्यादा कुछ नहीं है और इस पर खर्च करने को बेताब लोग हमारी हर तरक्की पर सवालिया निशान खड़े कर रहे है। 
अब जब लोग बाहर आ ही गए हैं तो क्या वे शराब पीने के बाद मारे खुशी के एक दूसरे से हाथ नही मिलाएंगे। एक दूसरे से पैसे उधार नहीं मांगेंगे? भीड़ नही उमड़ेगी ठेकों पर। जो पुलिस अभी योध्दा दिखाई दे रही थी फिर से पथ भ्रष्ट नहीं होने लगेगी? सरकार ने भले ही अपनी तिजोरी भर ली हो लेकिन अब तक कोरोना से जी जान से लड़ रहे बाकी लोग हाथ मलते रह गए हैं। 
- मनोज पाँचाल
 इंदौर - मध्यप्रदेश
पावर और पैसा क्या नहीं करवाता। शराब के ठेके का खुलना सरकार की बहुत बड़ी लापरवाही है। शोशल मीडिया में वायरल हो रहे तस्वीर बयां कर रही है कि विपत्ति की घड़ी में भी लोग कितने समझदार हैं। जहां एक तरफ लोगों के पास खाने के लिए पैसे नहीं हैं। वहीं इतने बड़े समूह के लोगों के पास पीने के लिए पैसे कहां से आ गए। और यदि नहीं बर्दाश्त हो रहा था तो कम से कम शोशियल डिस्टेनसिंग का पालन तो कर ही सकते थे। अभी कल ही गुड़गांव सब्जी मंडी सील कर दी गई। वजह वही आठ लोग संक्रमित मिल गए।अब आठ लोग कितने लोगों को संक्रमित किए होंगे कुछ पता नहीं। ठीक उसी तरह शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ में से यदि एक भी मिल गए तो गई भैंस पानी में। पैसे तो यदि जिंदा रहे तो फिर भी कमाया जा सकता है लेकिन। काम का आदमी कमाना बड़ी मुश्किल है। कुल मिलाकर सरकार का यह सबसे बड़ी गलतियों में से एक वैसे भी पहले ही बहुत बड़ी गलतियां कर चुकी है। यदि समय रहते ध्यान दिया गया होता तो शायद बेहतर स्थिति में होता अपना देश। कहा जाता है बचाव में ही बचाव है। अपना ख्याल स्वयं रखना चाहिए।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
शराब की दुकानें खुलने से मदिरा प्रेमियो में बड़ी उत्साह दिख रही है।इनके उत्साह के सामने पुलिस भी फेल हो रही है। शराब के लिए लोग तपती धूप में भी लोग  खड़े होकर अपने बारी का इंतजार करते दिखे। लाइन की कतार दो दो किलोमीटर तक लगी। ऐसा लग रहा है जैसे मदिरा प्रेमियो की दिवाली आ गई हो।  इन्हें अभी शराब के सामने किसी प्रकार का खतरा नही दिख रहा है। वाह रे शराब तेरे इतने प्रेमी की आगे पीछे सब भूलकर तपती और चिलचिलाती धूप मे भी खड़े रहे । लेकिन इसका असर बुरा होने की संभावनाएं है क्योंकि सोशल डिस्टेंस नही है। सब एक दूसरे से चिपककर शराब ले रहे है। नियम की धज्जियां खुलेआम उड़ रही है। इससे ऐसा लगता है कि शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ से लॉक डाउन खतरे में पड़ सकता है और पड़ भी गया है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
नि:संदेह शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ से लॉक डाउन खतरे में पड़ गया है।इसके लिए जनता के साथ-साथ सरकार भी पूर्ण रूप से जिम्मेदार है। जिस देश में संक्रमित लोगों की संख्या 46000 से ऊपर हो चुकी है। लगभग 3000 से ज्यादा लोग जान गवां चुके हैं। मजबूरीवश लॉकडाउन को तीसरे चरण में 2 सप्ताह के लिए बढ़ाना पड़ा , परन्तु जनता की जरूरतों को ध्यान में रखकर कुछ रियायतें देनी पड़ी, जिसमें शराब की दुकानों को
खोलने की भी इजाजत दे दी गई जो आम जनता के लिए बहुत महंगा और डरावना साबित हुआ।       लॉकडाउन और उसमें भी रेड जोन की धज्जियां उड़ाते हुए जिस तरह दुकानों पर भीड़ उमड़ी। जान से प्यारी जाम दिखाई देने लगी। ये स्थिति बहुत ही हास्यास्पद लगने लगी।
 मोदी जी का मंत्र "दो गज दूरी का" और फिजिकल डिस्टेंसिंग को धत्ता बताते हुए जिस तरह लोग एक-दूसरे से चिपक कर खड़े हुए वह बहुत ही चिंतनीय दृश्य बन गया और लॉकडाउन पूर्ण रूप से खतरे में पड़ गया।
      सरकार ने अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए शराब की दुकानों को खुलवा कर खुद ही लॉक डाउन की धज्जियां उड़वा दी। शराब की दुकान खोलने की इजाजत देना ही गलत निर्णय था।
    जब फैक्ट्रियां, स्कूल,ट्रेन, बस सब को बंद रखा जा सकता है तो क्या शराब संजीवनी बूटी थी जिसके बिना लोग जिंदा नहीं रह पाते।सरकार को इसे खोलने की इजाजत ही नहीं देनी चाहिए थी। अगर कोविड-19 पर नियंत्रण करना है, अपने देश को सुरक्षित रखना है तो लॉकडाउन का पूर्ण रुप से पालन होना भी जरूरी है नहीं तो लॉकडाउन लगाने का कोई फायदा नहीं बेवजह हमारी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। 
    इस ज्वलंत प्रश्र व मुद्दे से संबंधित मैं अपनी स्वरचित कविता भी प्रस्तुत कर रही हूॅं-----
        शराब बनाम कोरोना वैक्सीन
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दिल्ली में दुकानों पे टूटी भीड़ शराब के लिए
जैसे दौड़ी जनता कोरोना वैक्सीन के लिए।
हर धर्म, जाति,मज़हब सब एकजुट हो गये।
राजस्व बढ़ाने में शराबी सफलीभूत हो गये।

शराबियों का हुजूम देख मैं अचंभित रह गई 
यूं लगा बेरोजगारों में काम की होड़ लग गई।
 इतनी बेचैनी,बेसब्री किसी ने देखी है कहीं ।
 यकीकन दूध,सब्जी,राशन के लिए भी नहीं।

लॉकडाउन,रेड जोन सरेआम धज्जियां उड़ गई
2 गज दूरी तो दूर एक-दूजे से भीड़ चिपक गई।
संजीवनी बूटी शराबियों के लिए शराब बन गई।
नशा कारोबार सरकार की आय- स्रोत बन गई।
- सुनीता रानी राठौर
‌    ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
  लोगों को जैसे ही पता चला की  कल शराब की सरकारी दुकानें खुल जायेंगी।उनके खुशी का कोई
ठिकाना ही नहीं रहा इतनी खुशी तो उन्हें तब नहीं हुई होगी जब उनके घर में उनकी संतानों का आगमन हुआ होगा। रात से ही गाड़ी बाइक सब ठीक किया जाने
लगा। एक दो को और भी साथ ले
लिया गया।कोरोना यमदूत बनकर
बाहर खड़ा है इसका भी उन्हें कोई भय नहीं रहा। एटीएम से पैसे निकला जाने लगा । बड़ा थैला तलाशा जाने लगा और 
न मिलने पर घर को सिर पर उठा लिया गया।
      सुबह भोर में ही सभी शराब की दुकान के सामने लाइन लगाकर खड़े हो गये।पैसे वालों ने
अपने चमचों की ड्यूटी लगाई तो
कम पैसे वाले स्वयं लाइन में लग
गये। 
      इन लाइनों में आदमी ,औरत , लड़के , लड़कियां तथा अस्सी साल के बूढ़े तक नजर आ रहे थे।
इन लाइनों में अमीर भी खड़ा था
और वह तथाकथित गरीब भी खड़ा था जो दो किलो चावल आटे के लिए चार चार जगह पर
जाकर लाइन लगा रहा था उसके
पास भी शराब खरीदने के लिए
पैसे आ गये थे।
    लाइनों को देखकर तो ऐसा लग रहा था मानों अमृत बिक रहा है जिसे पीने के बाद कोरोना यमराज उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पायेंगे। दूर दूर खड़े लोग पहले तो ठीक से खड़े थे फिर जैसे ही शराब की दुकान खुली
एक दूसरे को धक्का मुक्की देने
लगे । आखिर पुलिस वालों को हस्तक्षेप करना पड़ा और उन्होंने
लोगों को लाठी लेकर भगाया तब
जाकर मीलों लम्बी लाइनों को काबू में किया जा सका।सारा लॉकडाउन धरा रह गया उस हुजूम के सामने। आखिर बहुत सी दुकानों को तो बन्द ही करवाना पड़ा ‌।
    शाम तक सी.एम साहब को खुद बयान देना पड़ा की अगर
लोग सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं करेंगे तो शराब की दुकानों को नहीं खोला जाएगा। इसी के
साथ शराब का दाम भी सत्तर प्रतिशत बढ़ा दिया गया। पेट्रोल का दाम दो चार प्रतिशत बढ़ने पर
हंगामा करने वाले लोग शराब का दाम  सत्तर फीसदी बढ़ने पर भी
हतोत्साहित नहीं हुए वे और भी
दुगुने उत्साह के साथ शराब की
दुकानों के सामने लम्बी लाइनों में
खड़े नजर आये। 
          लॉकडाउन ख़तरे में पड़े
या न पड़े सरकार को तो अपने
आय की चिंता है ।वोट भी जनता
का ,नोट भी जनता का और खोट
भी जनता का ।जय हो सरकार की।
- डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
पूरे देश में शराब की  दुकानें खुलते ही  शराबियों की लंबी भीड़ लग गयी । शराब के ठेके खुल गए ।  सरकार ने शराब पीने वालों के लिए सरकारी खजाना भरने के लिए शराब के रेट में  70 प्रतिशत भी बढोत्तरी कर दी   ।
लाकडाउन में ढील से कोरोना फैलने का खतरा और बढ़ गया । सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है ।
देश में शराब के दाम बढ़ने से भी भीड़ कम नहीं हुई है ।
सरकार की आर्थिक मोड  वेंटिलेटर पर  आ गया । 
क्या सरकार इस तरह मंहगाई बढ़ाकर अपना आर्थिक तंत्र मजबूत करेगा ।
शराब के लिए देश का स्वास्थ दांव पर लगा दिया है । क्या दारू के नशे के बिना देश नहीं चलेगा ।
शराब की लाइन के लिए लोग कड़ी धूप , कहीं बर्फबारी में लोग घण्टों से पँक्ति में खड़े अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं । 4 किलोमीटर की लंबी लाइन में खड़े हैं 
शराब की दुकान न खुलने से देश को 27 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा ।
देश की सरकार का संकल्प 40 दिन का लाकडाउन का पालन शराब की दुकानों ने  पानी में मिला दिया । 
मजदुरों के पास पेट भरने के लिए पैसे नहीं और शराब खरीद के ग़दर मचा रहे । यही लोग अपने घरों में परिवार से घरेलू हिंसा करेंगे । 
किसी ने कहा 
मंदिर सूने -सूने होंगे 
भरी होंगी मधुशाला ।
     -डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
चालीस दिन तक लॉक डाउन में घनघोर तकलीफों को सहकर मानव हित ,राष्ट्र के लिए भारत माँ के हर सपूत ने तपस्या की है किन्तु लॉक डाउन -3 के साथ ही मदिरालय खोलने का फैसला किये कराये पर पानी फेरने जैसा आत्मघाती कदम है l सोशल डिस्टेंसिंग नहीं ,भीड़ भरा माहौल ,कोरोना संक्रमण का भय नहीं ,सब मदमस्त ,ये मस्ताने कोरोना संक्रमण वाहक बनने को तैयार हैं l 
कहीं ऐसा न हो कि घर ,परिवार, समाज ,गाँव ,राज्य और पूरे राष्ट्र में कोरोना विस्फोट हो और लॉक डाउन 4/5/6 का  पता नहीं क्या होगा ?फिर भी इन उन्मादी लोगों और मदिरालयों के मदमस्तों की करनी की सजा आज देश ,समाज आखिर क्यों और कब तक भोगे ?
शराब पीने के बाद व्यक्ति लड़खड़ाने लगता है ,पूरी तरह अपनी सुध बुध तो खो ही देता है साथ ही साथ अपना सामाजिक सम्मान और सेहत गवाँ बैठता है -
सब तो मिलाके पीते हैं ,
पानी शराब में l 
में "पी "गया मिलाके 
"जवानी "शराब में ll 
   कसूर मेरा नहीं है साहब !
मेरा कसूर क्या है ?"पपीहे "से पूछिए ,
पी .पी .पी .पी .ई .ई .....वो कह रहा है ,
       तो मै पीये जा रहा हूँ l 
कोरोना संक्रमण के लॉक डाउन में "दवा "तो आवश्यक है लेकिन "दारू "भी आवश्यक है तो दवा के जैसे ही ऑन लाइन बुकिंग करके सरकार घरों तक पहुंचाकर लोक कल्याणकारी "भागीरथी "प्रयास करे l 70%कोरोना सेस लगाया गया है जो सराहनीय है l साथ ही साथ 75%राजस्व आय भी बढ़ेगी लेकिन आमजन में कोरोना संक्रमण का जहर मत बाँटिये l 
नियमित पीने वालों को चिकत्सीय अनुमोदन पर शराब उपलब्ध कराने से कच्ची व जहरीली शराब से जिन्दगानियाँ बचा सकेंगे l अवैध व्यापार पर प्रतिबंध लगेगा l 
लेकिन ठेके पर उमड़ने वाली भीड़ से लॉक डाउन खतरे में तो निश्चित रूप से पड़ ही गया है l 
पारिवारिक वातावरण भी बुरी तरह प्रभावित हुआ ही है l 
नायिका की जुबानी ....
         शराब की कहानी -
मेरे पिया जी ने पी ली शराब ,
रंगत बदल गई ,हो मेरे पिया ....
मै तो देख के रह गई दंग ,
रंगत बदल गई l 
अजब हैं हाल ,बिखरे हुए हैं बाल 
जिस ओर वो देखे ,देखता ही चला जाये .
चले अटपट चाल ,कैसा है ये बुरा हाल ,
चटनी को कहे "खीर ",खीर को कहे पनीर 
और दाल को कहे सलाद ,ये सब्जी को कहे दाल 
रंगत बदल गई ...मेरे पिया ने पी ली शराब 
वो तो कहे भैंस का गोरा रंग 
रंगत बदल गई ,मेरे पिया ......
             चलते चलते -
धर्म ,ग्रंथ सब जला चुकी है ,
जिसके "अंतर "की" ज्वाला "
मंदिर ,मस्जिद गिरजे सब को 
तोड़ चुका है ,जो मतवाला 
पंडित ,मोमिन ,पादरियों के
 "फंदो "को जो काट चुका 
 कर सकती है आज भी 
"स्वागत "उसका मेरी "मधुशाला "
         - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जी हां,, शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ को देखकर सहज हीं अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस कदर सोशल डिस्टेंसी की धज्जियां उड़ाई गई ।इस कोरोनावायरस से बचाव के लिए यह सख्त निर्देश दिए गए हैं कि लोग १ मीटर की दूरी एक _ दूसरे से बनाए रखें ,इसका कल सबने देखा हीं होगा न्यूज चैनल पर प्रसारित बेतरतीब भीड़ ।सारे नियम निर्देशों का कल बेहद उल्लंघन हुआ ।फिर जो हम सब इतने दिनों से लाॅक डाउन का पालन‌ कर घर में हैं,तो फिर कल ऐसा क्यूं हुआ। कहीं _कहीं तो पुलिस को बल प्रयोग भी  करना पड़ा ओवर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ।यह कैसी विडम्बना है कि शराब के लिए सारे नियमों की लोग अन्देखी कर गये । सरकार को इस पर पुनः विचार करनी चाहिए या सख्ती से शराब के ठेके पर बल प्रयोग और नियम बनाना पड़ेगा ।अगर यही स्थिति रही तो‌ बेशक लाॅकडाउन ‌खतरे में ‌पड जायेगा और सरकार को जितनी राजस्व धन की प्राप्ति ना होगी , उससे अधिक यह भयानक बीमारी के फैलने की मुसीबत को झेलनी पड़ सकती है, और हम आगे बढ़ने के बजाय पीछे गर्त में भी जा सकते हैं । 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
शराब के दूकान में लगी लम्बी कतार तो यह साबित कर रहा है कि हमें कोरोनावायरस का ख़तरा नहीं है सरकार अपनी रेभनयु के लिए 70प्रतिशत कर के साथ दूकान खोलने-बंद का आदेश जारी किया और जनता उसे दूसरे तरीक़े से आज़ादी हासिल कर ली। इससे तो यही लगता है कि पुनः लाकडाउन को आमंत्रण दे रहें हैं थोड़ी सी लापरवाही से समाजिक पारिवारिक संकट बढ़ जाएंगे।
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हां लोगों के पास खाने पीने को नहीं है जो मजदूरों को या यात्री जो फंसे हुए हैं उनको एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए रेलवे और सरकार किराया ले रही है , देश में अनेक समस्याएं हैं पर यह अजीब विडंबना है कि देश में शराब की दुकान और पीने के लिए लोगों की इतनी लंबी लाइन और अफरा तफरी मच गई और लॉक डाउन जैसे नियम और महामारी वाली समस्याओं को भी लोग भूल गए लोगों के लिए शराब पीना इतना जरूरी हो गया कि वह जो सोशल डिस्टेंसिंग को भी फॉलो करना भूल गए यह तो पता ही नहीं था की देश में लोगों को शराब इतनी पसंद है कि सारी समस्याएं एक तरफ और शराब एक तरफ और सरकार भी वैसे तो प्रतिबंध लगाई है इन सब चीजों पर लिखा भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इन्हीं से अपने राजस्व की कमाई करना चाहती है और इनकी बात सुन रही है। कुछ समझ नहीं आ रहा है कि सरकार को ऐसा क्या दबाव था देश में महंगाई गरीब लोगों को काम लेकिन लग रहा है कि सारी समस्याओं से जरूरी ठेके ही खुलने थे जाने कितनी महिलाओं के घर उजड़ गए हैं लेकिन शायद इस कलयुग में बुराई और बुरा करने वालों का ही भला   मदिरा पीने को मदिरालय में जाते लोग मंदिर खुले ना खुले मदिरा जरूर खोलना  चाहिए।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
शराब के रास्ते  राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास कहीं घातक न साबित हो जाए। लॉक डाउन के दरमियान शराब की दुकाने राहत के बदले आफत बनकर टूटेंगी इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। सोचिए अगर शराब की दुकानों पर कोरोनावायरस की मौजूदगी रही तो यह किस कदर लोगों में फैल जायेगा ।
शराब की दुकानों पर स्टाक करने के लिए उमड़ी भीड़ भारत को अमेरिका बनाकर छोड़ेगी ।शराब प्रेमियों की भीड़ ने कोरोनावायरस के मुख्य हथियार सोशल डिस्टेंसिंग को तहस-नहस कर डाला है। कोरोना से जंग के प्रयासों को ठेंगा दिखाती और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाती भीड़ ने कोरोना संक्रमण के मामले पहले के अपेक्षा और ज्यादा होने की आशंका बढ़ा दी है। अगर ऐसा हुआ तो कोरोना फैलाने में तबलीगी जमात के बाद शराबियों की भूमिका भी कमतर नहीं आंकी जाएगी ।इसका बड़ा खामियाजा शराब न पीने वालों को भुगतना पड़ सकता है। इस प्रकार कोरोना संकट से निपटने के प्रयासों पर पलीता लग जाएगा।
 इस समय कोविड-19  से होने वाली मौतों के मामले सोमवार को 1390 हो गए ,संक्रमित  आंकड़े 43000 के पार पहुंच गए हैं। लॉक डाउन  शुरू होते ही शराब के ठेकों को खोलने की इजाजत दी गई ,लेकिन शराब की दुकान खोलने का फैसला सिरदर्द बन जाना पक्का है। शराब के शौकीनों ने सोशल डिस्टेंस  की सारी लक्ष्मण रेखाओं को तोड़ डाला है ।नतीजा यह है कि शराब के ठेकों के आगे लंबी कतारें लगी हैं ।
कवि कुमार निर्दोष ने भी अपने ट्विटर पर  मेराज फैजाबादी का शेर पोस्ट किया है  कि,, किसने कितनी  पी खुदा जाने मगर मैकदा तो मेरी बस्ती के घर पी गया ,, 
लोगों के घर में खाने को पैसा नहीं है मगर शराब की दुकानों पर उमड़ी भीड़ को देखकर तो नहीं लगता कि खाने को पैसा नहीं है। शराब की दुकानों पर कोई बोरी तो कोई  बैग भरने पहुंच रहा है, जिसमें फिजिकल डिस्टेंस  तो कतई नही दिख रहा ,लोग स्टाक करने के लिए खरीद रहे हैं। गाइडलाइन के मुताबिक एक बार में केवल 5 लोग ही दुकान पर खड़े हो सकते हैं ।इसके साथ ही 6 फुट की दूरी का पालन करना अनिवार्य होगा ।मगर भीड़ तो ऐसी जिस पर काबू कर पाना  नामुमकिन है। ऐसे में कोरोना का खतरा कितना बढ़ेगा यह अंदाज  लगाया जा सकता है ।इन लोगों ने सरकार के एडवाइजरी  तार-तार कर दी है ।पुलिस को कंट्रोल करना पड़ रहा है। मगर क्या करें अब तो पुलिस की मजबूरी है वह शहर की व्यवस्था संभाले  ,कोरोना से निपटे और शराब की व्यवस्था सम्हाले ।आगे अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत इटली और अमेरिका से बढ़कर बर्बादी की कगार में खड़ा होगा ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
यह बात निसंदेह सत्य है की लॉक डाउन के दौरान शराब की बिक्री पर रोक के कारण शराब के नशे के शौकीन लोग बिक्री प्रारम्भ होते ही पूरी तरह अनियंत्रित हो गए । शराब की दुकानों पर बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हो गए। दिल्ली, उत्तर प्रदेश,राजस्थान में स्थिति नियंत्रण से भी बाहर हो गयी।   अन्य स्थानों पर भी  जैसे ही शराब की बिक्री प्रारंभ हुई लोगों ने लाॅक डाउन  के सारे नियम -कायदे और अनुशासन पूरी तरह से भुला दिए ।ऐसी स्थिति निर्मित हो गई की पुलिस को लाठी चार्ज करने की जरूरत पड़ गई। कुछ शहरों में शराब की दुकानें प्रशासन द्वारा बंद करा दी गई। यह एक सभ्य देश के लिए सोचनीय विषय है कि शराब के लिए लाठियां खाने के लिए शिक्षित लोग भी तैयार है । शराब के लिए अपने स्वास्थ्य व जीवन  को खतरे में डालने के लिए सामान्य लोग भी   तैयार है ।ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले समय में लोग कुछ सबक लेंगे तथा शराब के लिए  स्वास्थ्य और जीवन  को खतरे में नहीं डालेंगे और वर्तमान में निर्मित हुई स्थिति का पुनर्निर्माण नहीं करेंगे ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश 
जरा सोचिए उन गरीब महिलाओं के बारे में जो घरों में झाडु पोंछा करके खर्च चलाती हैं। हम सब उनकी मदद के लिए और सरकार लॉकडाउन में भी पैसे भेज रहे हैं और अब अगर उनके पति वही पैसे शराब में उड़ा देंगे तो उनके बच्चे खाएंगे क्या?
क्या हम गरीब परिवारों की इस बर्बादी के लिए तैयार हैं।
अफसोस शराब बेचने की अनुमति दे दी गई है गरीब लोगों को पेट भरने के लिए जो सब से सस्ता खाना चने का सत्तू है जिसे बनाने बेचने पर प्रतिबंध लगा हुआ है सरकार को चाहिए कि भारत देश भर में  चने का सत्तू बनाने बेचने की अनुमति दे ।
चने का सत्तू गरीब लोगों के लिए बना बनाया बेहद आसान सस्ता खाना शराब बेचने की अनुमति है पर चने का सत्तू बनाने के लिए भरमुजे नही
यह बात सारे हिंदुस्तान के लोगों को समझ नहीं चाहिए की आखिरकार किस तरह से बेवकूफ बनाया जा रहा है और यह उन लोगों के साथ हो रहा है जो अपने मेहनत की कमाई को इस बड़े बड़े दारू बनाने वाली कंपनियों को देखकर अपने गरीबी का जीवन जी रहे हैं और बड़ी-बड़ी दारू कंपनियों के मालिक पैसे से मालामाल है उन्हें कोई समस्या नहीं।
आज भारत की ऐसी दुर्दशा है कि इसको रोना के समय में जो लोग दारू गुटका बीड़ी सिगरेट चरस भांग गांजा हीरोइन आदि मादक पदार्थों का सेवन करते हैं उन लोगों को अपने घरों में रात को नींद भी नहीं आ रही है यहां तक कि चोरी छुपे वह लोग हर नशा करने वाले पदार्थ का दुगुना दाम देकर खरीदने को भी तैयार हैं इन लोगों की बहुत दुर्दशा रही है बहुत से ऐसे लोग तो सिर्फ नशा का सामान न मिल पाने के कारण मर गए,
मित्रो यदि आप और अपने परिवार को ऐसी समस्याओं से बचाना चाहते हैं तो सर्वप्रथम उन्हें प्रकृति की शक्ति का एहसास कराइए और आप विश्वास कीजिए जो लोग प्रकृति के शक्ति को महसूस कर जाते हैं उन्हें दारु शराब की शक्ति से जीने की कोई आवश्यकता नहीं है।
- राघवा तिवारी
कानपुर - उत्तर प्रदेश
कही पर भी भीड़ हो तो यह वर्तमान स्थिति में बहुत बड़ी समस्या है जब सामाजिक दूरी,सभी नियमों का पालन देशहित में लोग कर रहे थे तो यह कोई आवश्यकता नहीं थी कि शराब के दुकानों ठेकों को खोला जाए,ये कोई ऐसा पेय तो है नही की इसके सेवन न करने से लोगो की जान चली जाएगी और, सबसे बड़ी बात तो अब यहा देंखने मे आएगी की जो आज तक हमारे पास खाने को नही है एक एक पैसे को तरस रहे है ऐसे ही लोग वहा सारे नियमो की बलि चढ़ाते हुए भीड़ मे नजर आएंगे,और अभी तक जो लड़ाई झगड़े लूट खसोट,घरेलू हिंसा सब जो कम हो गए थे वो बढ़ते नजर आएंगे।
लॉक डाउन के लिए वाइन शॉप को खोलना बहुत ही बड़ा खतरा साबित हो सकता है क्योंकि जब
दिमाग मे चढ़ेगी लाल परी तो फिर
कहा रह जायेगी सामाजिक दूरी,मेरा मानना है जब तक कोरोना का संकट कॉल लोगों के लिए चल रहा है तब तक देश की आर्थिक व्यवस्था को न देखते हुए सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में देना होगा नही तो कोरोना के लिए   उठाए गए सारे कदम नाकाम हो सकते है, इसलिए मेरी राय मे ये भीड़ बहुत से लोगो को संक्रमित करने मे और देश को और आज तक के जनमानस की मेहनत को ध्वस्त करने मे सुरसा साबित होगी।
- मंजुला ठाकुर
 भोपाल - मध्यप्रदेश
शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ देख कर तो यही लगा है कि लोगों को कोरोना से बचे रहने, पौष्टिक खाना खाना खा कर स्वस्थ रहने की इतनी आवश्यकता नहीं है जितनी शराब की है। यदि कोरोना से बचे रहने और स्वस्थ रहने की प्राथमिकता होती तो आज शराब की दुकानें लोगों की इतनी भीड़ से मुक्त होती। इसी से पता चलता है कि हमारे समाज की प्राथमिकता क्या है?
         लॉक डाउन के दो चरणों में हमने घर में रह जो सही कार्य किया, हमारे कोरोना योद्धाओं ने दिन-रात एक कर जो लोगों के लिए सेवा भाव से काम किया.. उसे लोग इतनी जल्दी भूल कर जरा सी छूट मिलते ही शराब के लिए दौड़ पड़े। जो भी हो ऐसा तो नहीं ही होना चाहिए था, पर हुआ तो इसका खामियाजा भी निकट भविष्य में भुगतना पड़ सकता है।
       लॉक डाउन जून तक चलता, लोग धीरे-धीरे बाहर निकलते, काम करते।
चाहे यह निर्णय राज्य सरकारों का ही हो, पर सही नहीं हुआ। लॉक डाउन तो निश्चित ही खतरे में पड़ा ही है, लोग इसकी धज्जियाँ और उड़ा रहे हैं।
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून -  उत्तराखंड
40 दिनों का लॉक डाउन झेलना कोई खेल नहीं है और जाने शराब के ठेके खुलने से हुई भीड़ की स्थिति को देखते हुए  कितने दिन झेलना पड़े !लोग डाउन में आदमी कैद होकर रह गया है मानाकि कोरोना काल में देश का आर्थिक तंत्र डगमगाते गया है केंद्र भी अपना कर्तव्य पूरा कर रही है , हर राज्य प्रवासी मजदूर को खाने की आपूर्ति करते रहे अन्य सुविधाएं भी प्रदान की!
 उन्हें उनके गंतव्य स्थान तक रेल में बिना पैसे लिए सुरक्षित भेजा और भेज रहे हैं अतः राज्य का कोष खाली होना स्वाभाविक है और उसे भरना भी पड़ेगा ,
 यह भी माना शराब से उन्हें 1 दिन में ही 28 से 30 करोड़ की पूर्ति होती है किंतु शराब के लिए खड़े लोगों की भीड़ देख ----
सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गई  ! हिंसा अलग भड़केगी !
40 दिनों के इस लॉक डाउन से बाहर निकलने के लिए जो हमने तपस्या की क्या वह व्यर्थ जाएगी ?
लॉक डाउन में रहना कोई खेल नहीं है इतने कंट्रोल में रहकर भी इस लॉक डाउन में देश का आर्थिक तंत्र बिगड़ गया है तो निम्न स्तर में रहने वालों की आर्थिक स्तर का ग्राफ कैसा होगा ? 
शराब से कोष जरूर भरेगा किंतु कोरोना के इस लॉक डाउन से हम बाहर नहीं आ पाएंगे !
जिनके पास खाने को नहीं है वह बीबी का मंगलसूत्र बेचकर भी शराब की लाइन में खड़ा है वह भीड़ से शराब ही नहीं परिवार के लिए कोरोना भी लेकर आता है !
40 दिन के इस लोक डाउन में प्रशासन की व्यवस्था भी प्रशंसनीय है  !प्रजा ने भी एक योद्धा की तरह कोरोना से युद्ध किया और कर रही है और ऐसी स्थिति (शराब के ठेके खुलने पर) देख पता नहीं कब तक करना पड़े !
 अतः शराब के ठेके खुलने 
 से बढ़ती भीड़ को देखते हुए तो लगता है लॉकडाउन तो बढ़ेगा ही !
लॉक डाउन के चलते मानसिक तनाव तो पहले ही बढा़ है अब शराब से हिंसक प्रवृत्ति का जन्म होना स्वाभाविक है !
 अंत में कहूंगी शराब के ठेके खोलना आत्मघाती कदम तो है साथ ही साथ लॉक डाउन के बढ़ने से हम 20 - 25 वर्ष पीछे चले जाएंगे ! 
मदिरालय की मदिरा से
कोरोना  की जीत  भली
ठेके बंद ना हुए तो 
लॉकडाउन ही चल्ही
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
कल लॉकडाउन में शराब की दुकानों पर उमड़ी भीड़ एक शर्मसार घटना है। हालांकि चार करोड़ का व्यवसाय हुआ है। और सरकार को अर्थव्यवस्था में सहायता मिली है। लेकिन जिस तरह से लोगों ने अपना प्रदर्शन कर अपना परिचय दिया है।यह  बहुत ही शर्मनाक बात हुई है।लॉकडाउन की सख्ती के बावजूद लोगों ने एक शहर में ही नहीं, बल्कि कई शहरों में लॉकडाउन का उल्लंघन किया है। ऐसे में हम कहां आ गए....यह कहां जाना अभी मुश्किल है। डेढ़ महीने से लॉकडाउन का पालन कर लोग घरों में बैठे थे। आज इन लोगों ने इसे पूरा मिट्टी में मिला दिया। ऐसे में देश में इस तरह की घटनाओं के होने के बाद लॉकडाउन खतरे में पड़ गया हैं, या नहीं..आज जिस तरह से लॉकडाउन की धज्जियां उड़ी है। उसे देखते हुए तो लगता हैं, कि लोगों के लिए शराब जरूरी है। स्वास्थ्य जरूरी नहीं..., हमारे हिंदुस्तान की जनता नशाखोरी में अपनी जिंदगी  इस तरह दांव पर लगा सकती है,यह देखकर पढ़े लिखें और अनपढ़ों में कोई फर्क ही नहीं रहा..अनपढ़ों को तो समझया जा सकता है.. लेकिन पढेलिखों को कैसे समझाया जाय..? यह बहुत ही शर्मनाक घटना घटित हुई है। तो अब यह कहना कहीं उचित ही है,कि जिस प्रकार लॉगडाउन का उलंघन किया गया है, तो कोरोना का संक्रमण फैलने की संभावनाएं ज्यादा नजर आ रही है। क्योंकि यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया गया। ऐसे में यह कहना उचित होगा कि.... "विनाश काले विपरीत बुद्धि"
क्या अब लॉकडाउन खतरे में पड़ गया है।इसका परिणाम अभी नहीं बीस दिनों के बाद ही पता चलेगा।कि अब तक रुके थे....अब कबतक और रुकना होगा..
            -  वंदना पुणतांबेकर
                     इंदौर - मध्यप्रदेश
कोरोना महामारी से चल रही जंग में लॉकडाउन 3.0 का पहला ही दिन इतना भारी पड़ेगा, शायद किसी ने सोचा न होगा। पहले और दूसरे चरण के लॉकडाउन के बाद चार मई से गृह मंत्रालय की गाइडलाइन के मुताबिक देशभर के जिलों को तीन जोनों में बांटकर कई तरह की व्यवसायिक गतिविधियों को छूट दी गई। लेकिन इसका सबसे बड़ा असर दिखा, शराब की दुकानों और ठेकों पर।
करीब डेढ़ महीने की कैद के बाद शराब के लिए लोग घरों से ऐसे निकले जैसे अगले ही दिन फिर से शराब की दुकानें बंद होने वाली हों। बहुत सारे लोगों ने शराब की खरीदारी भी ऐसे की, मानों महीने भर के लिए स्टॉक करना जरूरी हो। शराब दुकानों पर लोगों की भीड़, दो-दो किलोमीटर तक लगी लंबी कतारों की तस्वीरें दिनभर मीडिया में छाई रहीं। 
देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य शहरों में शराब की खरीदारी के लिए हजारों की संख्या में जो भीड़ उमड़ी, उसने कोरोना के खिलाफ करीब डेढ़ महीने से जारी जंग में सबसे बड़े हथियार 'सोशल डिस्टेंसिंग' को ही खंडित कर डाला है।
कोरोना से जंग में किए जा रहे प्रयासों को ठेंगा दिखाती और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाती इन तस्वीरों ने देश में कोरोना संक्रमण के मामले पहले के अपेक्षाकृत और ज्यादा होने की आशंका बढ़ा दी है। अगर ऐसा हुआ तो कोरोना फैलाने में तब्लीगी जमात के बाद शराबियों की भूमिका भी कमतर नहीं आंकी जाएगी। इसका बड़ा खामियाजा शराब न पीने वाले लोगों को भी भुगतना पड़ सकता है।
पिछले दोनो लॉकडाउन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी, पर लॉकडाउन 3.0 की घोषणा पीएम मोदी ने नहीं की, इस बारे में गृह मंत्रालय की ओर से दिशानिर्देश जारी किए गए। मंत्रालय ने कुछ शर्तों के साथ आर्थिक गतिविधियों को छूट दी, जिनमें शराब की दुकानें खोलने का फैसला सबसे अहम रहा।
पहले ही दिन दिल्ली, लखनऊ समेत देशभर के शहरों में रिकॉर्डतोड़ बिक्री हुई। स्वास्थ्य विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और चिकित्सक शुरुआत से कहते आ रहे हैं कि भीड़ में कोरोना महामारी फैलने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है और सोशल डिस्टेंसिंग इससे बचने का सबसे जरूरी तरीका है।
ऐसे में आप सोचिए कि अगर शराब की दुकानों पर कोरोना से संक्रमित मरीज की मौजूदगी रही होगी तो यह किस कदर लोगों में फैला होगा। लक्षण वाले मरीज न भी हों तो एसिम्प्टोमैटिक यानी बिना लक्षण वाले मरीजों से भी संक्रमण फैलने का उतना ही खतरा रहता है।
लॉकडाउन में दुकानदारों तक सप्लाई कब और कैसे हुई? दुकानदार नई शराब पिला रहे या फिर पुराना माल थमाया जा रहा, इसका जवाब ढूंढना बहुत जरूरी नहीं। लेकिन शराब के रास्ते अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास पहले दिन ही वर्तमान में चल रहे कोरोना संकट से निपटने के प्रयासों में पलीता लगा गया। 
मंदी के दौर में लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था
दुनियाभर में मंदी का दौर शुरू हो चुका है, जो कि आने वाले दिनों में और बढ़ने वाला है। आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगने के कारण बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो रहे हैं। विकसित देशों की सूची में शामिल अग्रणी देश अमेरिका की हालत भी पतली हो चुकी है। 
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में केवल मार्च में करीब 10.40 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं, जोकि 1975 के बाद अमेरिका में बेरोजगारी का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
भारत में भी आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगे करीब डेढ़ माह हो गया है और इस दौरान बड़ी-बड़ी कंपनियां घाटे में चल रही है। कंपनियों पर पड़ी इस मार ने बेरोजगारी बढ़ाई है। गरीब और मजदूर वर्ग का एक बड़ा तबका पाई-पाई को मोहताज हो गया है। सरकार के कंधों पर इस चरमराती अर्थव्यवस्था को संभालने की भी बड़ी जिम्मेदारी है। 
देश के सभी राज्यों से करीब 2.5 लाख करोड़ का राजस्व केवल शराब की बिक्री से हासिल होता है। ज्यादातर राज्यों के कुल राजस्व का 15 से 30 फीसदी हिस्सा शराब से ही आता है।
वित्तीय वर्ष 2019-20 के आंकड़ों पर गौर करें तो शराब की बिक्री से महाराष्ट्र को 24,000 करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल को 11,874 करोड़ रुपये, तेलंगाना को 21,500 करोड़, उत्तर प्रदेश को 26,000 करोड़, कर्नाटक को 20,948 करोड़, पंजाब को 5,600 करोड़ रुपये और राजस्थान को 7,800 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था।
वहीं, इन राज्यों के मुकाबले छोटी, दिल्ली को करीब 5,500 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। बिहार और गुजरात में पहले से ही शराबबंदी लागू होने के कारण राजस्व में फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन बाकी राज्यों के राजस्व में काफी फर्क पड़ा है। 
केरल ने गृह मंत्रालय के दिशानिर्देश से इतर शराब की दुकानें फिलहाल नहीं खोलने का निर्णय लिया है। कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए सीएम पिनराई विजयन ने इसे जरूरी बताया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि ये अस्थाई कदम है। दिल्ली में शराब की दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाती भीड़ पर पुलिस ने थोड़ी लाठियां चटकाई और कुछ दुकानें बंद करवा दी गईं। 
दिनभर बिगड़े हालात के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने शराब के लिए भीड़ जुटने और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ने पर दुकानें सील करने की चेतावनी दी है।
दिल्लीवालों से डेंगू को हराने की तरह कोरोना को भी हराने की एक भावुक अपील भी कर डाली। उन्होंने 'स्पेशल कोरोना फीस' नाम से नया टैक्स( एमआरपी पर 70 फीसदी ) लगाने की घोषणा की। हालांकि कहना मुश्किल है कि यह कितना काफी होगा। 
राजस्थान में शराब की दुकानों पर भीड़ होने की खबर लगते ही आबकारी विभाग ने आनन-फानन में शराब की दुकानें और ठेके तत्काल बंद करवा दिया। जयपुर समेत अन्य शहरों में ऐसा होने के बाद अफवाह ये फैली कि गहलोत सरकार ने शराब की दुकानें बंद करने का आदेश दिया है।
हालांकि सच्चाई ये है कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ने के बाद ऐसा किया गया। कहा जा रहा है कि अब ऐसी दुकानों पर टोकन सिस्टम लागू होगा और सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाएंगे। हालांकि दिशानिर्देश तय होना बाकी है। 
शराब की दुकानें खोलने के संबंध में गृह मंत्रालय की ओर से दी गई छूट पर फैसला लेना राज्य सरकारों के जिम्मे था। दिल्ली में कोरोना के हर दिन बढ़ते मामलों और इतने खतरे के बीच केजरीवाल सरकार ने केंद्र सरकार की ओर से दी गई छूट को झट से लागू करने की घोषणा कर दी और केवल कंटेनमेंट जोन छोड़कर बाकी जगहों में शराब की दुकानें खोल दी गई। केरल सरकार ने इस छूट को फिलहाल लागू नहीं किया है।
कहने का सार यह कि राज्य सरकारें चाहतीं तो शराब की दुकानें खोलने की छूट तबतक लागू नहीं करतीं, जबतक सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए जरूरी उपाय और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित न कर ली जाए। 
जीएसटी, नोटबंदी, लॉकडाउन जैसे बड़े-बड़े फैसले लेने से पहले संभावनाओं का आकलन करने वाली सरकार को क्या शराब दुकानें खुलते ही सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाए जाने का अंदाजा नहीं था? या फिर क्या होता अगर गृह मंत्रालय ने शराब दुकानें खोलने की छूट ही न दी होती या फिर इसे केवल ग्रीन जोन तक सीमित रखा होता!
इस पर मेरी रचना 
खुले मदिरालय ....
आज खुल गई मदिरा की दुकान 
पिनें वाले झूम उठे खुली दुकान 

छ फ़िट की दूरी पर सब लगा रहे क़तार 
खबर मिलते सब आते जा रहे लगातार 

मदिरा बेचने वाला भी आज मस्त 
मदिरा ख़रीदने वाला बहुत मस्त 

आज सारे साक़ी तेरे पैमाने झूमेंगे 
मदिरा पी पी कर सारे मदहोशीमे झूमेंगे 

परेंशान सारी घर की लुगाई 
क्यों मेरे ही घर आई ये बुराई 

बड़ी मुश्किल से लाकडाऊन में थी राहत 
आज फिर ये कहाँ से आ गई आफ़त 

आज खुल गये शहरों के मदिरालय
पर कईयों  को कोरोना ने गले लगाया ।
वायरस आज ख़ुश है , देर से आये तो क्या ...
 मदिरा ने मेरा काम बना दिया 
अब मेरा राज होगा ...
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉकडाउन पार्ट-- 3 पहले ही दिन ध्वस्त हो गया। शराब के ठेके पर उमड़ी भीड़ की भयंकरता ने सोशल इंजीनियरिंग की तो धज्जियां उड़ा दी। लगता है सरकार के कोरोना से बचाव के प्रयास, और इतनी मेहनत कहीं निष्फल न हो जाए।
        हर शहर, जिले में सुबह से ही शराब और बीयर की दुकानें खुलीं; तो खरीदारों की भीड़ ऐसे जुट रही थी जैसे राशन एवं गैस के लिए भी इतनी मशक्कत न करनी पड़ती हो; आलम यह था कि लाइनों को तोड़कर जल्दी से 4, 4,5,5 बोतल लेकर धक्का-मुक्की करते व्यक्ति महासमर का विजेता बना हुआ था। पुलिस भले ही लाठियां भांज रहे हों; पर अमृत पाने के लिए व्यक्ति यह सब सहने को तैयार था और लुक- छिपकर उसे  पाकर ही दम ले रहा था। केवल चेहरे पर कपड़ा बांधकर या मास्क लगाकर लोग बेखौफ हो गए थे; कि कोरोना किस चिड़िया का नाम है? कोरोना  हमारा क्या बिगाड़ लेगा। शराब के मद में ऐसा ही होता है।
      देखा जाए सरकार लंबे समय से चले लाॅक डाउन से राष्ट्रीय आय को ध्यानस्थ करते हुए एवं जनता में कुछ खुशियां लौटाने के लिए यह सारी छूट दे रही है; पर यह सब हालात ऐसे हैं कि और भी बिगड़ सकते हैं। अभी सरकार को जब तक इतनी बड़ी संख्या में नए केस आ रहे हैं; रुकना चाहिए। जनता की नासमझी का दोष सरकार पर ही लगेगा ।फिर से कहीं कोरोना  बम न फूट जाए; सबको सचेत होना पड़ेगा। जान है तो जहान है।
 - डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन में ढील देने की व्यवस्था को खतरे में डालना कोई बहादुरी का तमगा नहीं है । शराब में पहली ढील मिली और लोगों ने सारे अनुशासन को तोड़ दिया । क्या शराब इतनी बड़ी और जरूरी पेय है कि उसके आगे कोरोना भी भूल गया । दो महीने की अपनी तपस्या को लोग सत्यानाश करने पर तुले हैं । यह तो जंग में पीठ दिखाने की तरह हो गया । 
माना कि सरकार की आय का साधन शराब है , लेकिन एक छोटे समूह के लिए छूट देना कैसा न्याय है ? अनेकों ऐसी जरूरी वस्तुएं हैं जो एक बड़े समूह की आवश्यकता हैं । उन्हें तवज्जो नहीं दे कर इस तरह के हानिकारक वस्तुओं को महत्व देना सही नहीं है । अब इसका परिणाम होगा कि कोरोना पीड़ितों की संख्या तेजी से बढ़ेगी और देश की सारी मेहनत , लोगों की मौत , शहीदों की शाहदत सभी पर प्रश्न-चिन्ह लग जाएंगे ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
शराब के  ठेके पर  उमड़ी  भीड़  ने यह सिद्ध  कर  दिया  है  कि  दो  जून  की  रोटी  उसके  आगे  गौण  है  ।  शराब  न  हुई  अमृत  हो  गया  जिसे  पीते  ही  सब  अमर  हो  गए । यह  मिल  गई  अब  कोरोना  की  क्या  औकात  है  जो  वह  किसी  को  संक्रमित   कर  सके । 
       लोग  यह  भूल  गए  कि  हमारी  चोकीदारी  अगर  सरकार  करेगी  भी  तो  आखिर  कितने  समय  तक.........
        फिर  कहां  जरूरी  था  कि   शराब  की  दुकानें ......ठेके  खोले  जाते  ।  खोलनी  ही  थी  आवश्यक  सामग्री  की  दुकानें  खोलते.......रोजगार  की  व्यवस्था  करते ........व्यवसाय  को  सुचारू  रूप से  चलाने  के  लिए  रास्ते  तलाशते  । 
        एक  तरफ  लोग  भूख-भूख  कर  रहे  हैं, उनके  पास  पेट  भरने  के  भी  पैसे  नहीं  हैं  फिर  शराब  खरीदने  के  लिए  पैसे  क्या  आसमान  से  टपके  ? 
       कुछ  ही  घंटों  में  इतने  लंबे  समय  तक  की  गयी  तपस्या  पर  पानी  फिर  गया  । यहां  तक  कि  पुलिस  वाले  भी  झूमते  नज़र  आए  । 
        सबका  खामियाजा  महिलाओं  और  बच्चों  को  भुगतना  है ।  उन्हें  ही  हिंसा  का  शिकार  होना  है । 
       कोरोना  वायरस  से  बचाव  के  नियमों  का  पालन  न  कर  इस  भीड़  ने  दूसरों  की  जान  भी  संकट  में  डाल  दी  है  । संक्रमित  बढ़ेंगे  तो  लाॅकडाउन  और  बढ़ेगा  । 
     " गेहूं  के  साथ  घुन  भी पिसेंगे ।" 
       सरकार  से  अनुरोध  है  कि  ये  ठेके  तुरंत  प्रभाव  से  बंद  करवाएं  ।  अथवा  ऐसे  लोगों  के  प्रति  शक्ति  से  पेश  आएं  । 
       - बसन्ती  पंवार 
       जोधपुर  -  राजस्थान 
शराब के  ठेकों पर उमड़ी भीड़ सचमुच में लॉक डाउन की धज्जियां उड़ा रही हैं इतने दिनों की साधना का का सत्यानाश हो गया है लोगों को नशे के आगे अपने सुरक्षा की भी फिक्र नहीं है लोगों को नशे के आगे अपनी सुरक्षा की फिक्र भी नहीं है अपनी सुरक्षा की ।  लोग अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को भी नहीं समझ रहे हैं और ना ही उन्हें अपने परिवार की फ़िक्र है
- नीलम पाण्डेय 
गोरखपुर - उत्तर प्रदेश
     लाॅकडाउन को चारों ओर खतरा ही खतरा है। वह खतरा चाहे शराब के ठेके पर उमड़ी भीडतंत्र का हो या लोकतंत्र से क्षुब्द नागरिकों का रोष हो। जबकि उक्त भीडतंत्र से जानकारी मिल रही है कि हमारा भारत सशक्त राष्ट्र है। चूंकि विश्व के किसी भी देश में ऐसा दृश्य जहां दूर-दूर तक कतारों में खड़े लाॅकडाउन की धज्जियां उड़ाते हुए, पुलिस की लाठियां खाते हुए, अपना रक्त बहाते हुए राष्ट्रहित में शराब खरीदने के चित्र देखने को नहीं मिले होंगे। ऐसे राष्ट्रीय कर्त्तव्यनिष्ठ क्रांतिकारियों को मेरा शत-शत नमन है। जो गरीबी रेखा से नाम कटने की चिंता न करते हुए अपनी 'गरीबी रेखा' की रेखा भी पारदर्शी कर रहे हैं।
     क्योंकि यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है कि लाॅकडाउन में इसी शराब की काला बाजारी कई गुना बढ़ गई थी। जैसे ₹500 की बोतल ₹2000 से ₹3500 तक में बिक रही थी। इसलिए शराब पर 70-75 प्रतिशत बढ़ोतरी कोई मायने नहीं रखती। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि गैस सिलेंडर तो मांगने से मिल जाता है। किन्तु ऐसे विकट समय में शराब की बूंद की सुगंध तक कोई नहीं देता। इसलिए शराब के ठेकों  पर उमड़ी भीड़ के जमावड़े का दोष ही क्या है?
     इसके साथ ही सरकार की धूल चाट रही अर्थ व्यवस्था भी इन्हीं शराबी योद्धाओं पर निर्भर है। कदाचित इसी आधार पर सरकार शराबियों को गरीब रेखा का लाभ देती है। चूंकि लाॅकडाउन जैसे संवेदनशील कोरोना कार्यकाल के शराबी भी वह बुद्धिजीवी योद्धा हैं, जो जानते हैं कि आटा दाल नमक तो सरकार दे ही देगी, परंतु उसे पचाने के लिए शराब खरीदना अत्यंत आवश्यक हैं।
                                 - इन्दु भूषण बाली
                                 जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन मे शराब के रेट तीन गुण कर के सरकार को अपनी आय बढानी चाहिए । जिससे शराब का भण्डार कोई नहीं करेगा । जिससे लॉकडाउन का पालन होने की कुछ सम्भावना बन सकती है । बाकी प्रशासन की शक्ति पर निर्भर करता है ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 

प्रत्युष नव बिहार 
राँची - झारखण्ड
दिनांक 06 मई 2020






Comments

  1. मदिरा के कारोबार से सरकार और कारोबारी खूब धन अर्जित करते हैं. अब तक के व्यवहार से यह तो स्पष्ट है कि लोग अक्सर लॉकडाउन को तोड़ते आ रहे हैं. चाहे वह ताली थाली बजाना था या दीया जलाना था. लोगों ने खूब धूम धाम से जश्न मनाया, पटाखे फोड़े. ऐसे में सरकार को यह चेतावनी के रूम में लेना चाहिए था. मदिरा का लत ऐसा है कि लोग आपा खो देते हैं. ऐसे में यही उचित था कि मदिरा की होम डिलीवरी की जाती.

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