क्या कोरोना से भविष्य के सिनेमा हॉल की स्थिति बदल जाऐगी ?


कोरोना वायरस से मुक्ति में काफी समय लग सकता है । ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना जीवन के लिए अवश्य हो जाऐगा । सोशल डिस्टेंसिंग के लिए सिनेमा हॉल में परिवर्तन  निश्चित है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय बनाया गया है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कभी हमने सोचा ही नहीं था कि हम एक प्रकार के वायरस से ग्रसित होने वाले हैं ! आज इस महामारी के चलते जो लॉक डाउन हुआ है उससे समस्त विश्व प्रभावित हुआ है! हमारी अपनी जीवनशैली ,पारिवारिक ,सामाजिक ,आर्थिक ,प्रकृति की व्यवस्था आदि आदि में सकारात्मक बदलाव तो आए हैं साथ ही   सकता !उसके संचालन का वैकल्पिक तोड़ हो सकता है  हॉल को सेनेटाइज किया जाए साथ प्रवेशित लोगों को भी सेनेटाइज करे! 
सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखें सिनेमा हॉल में कुछ ना खाएं!
 बहर हाल तो हमें जाना ही नहीं चाहिए इंटरनेट की सुविधा से हम घर पर ही देख सकते हैं आज इंटरकनेक्टेडनेस के कारण पूरी दुनिया एक परिवार बन गया है !सिनेमा सामाजिक सार्वजनिक स्थल होने की वजह से वहां परहेज मुमकिन नहीं है अतः महामारी के आज की स्थिति को देखते हुए सिनेमा हॉल नहीं जाना चाहिए वरना संक्रमण को फैलने से हम रोक नहीं सकेंगे ! 
जीवन में परिवर्तन तो आना ही है अपने विजय के लक्ष्य के साथ संयम और धैर्य रखते हुए कोरोना से बचने के नियमों का पालन करते हैं तो भविष्य में सिनेमा हॉल की स्थिति भी बदल सकती है !
अंत में कहूंगी कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही दुनिया का हर इंसान एक ना एक दिन इस महामारी पर विजय प्राप्त कर लेगा किंतु उसके बाद की जो दुनिया होगी वह निश्चित रूप से महामारी से पहले वाली नहीं होगी!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना से भविष्य के सिनेमा हॉल की तस्वीर सौ प्रतिशत बदलेगी। क्यों कि बदलते  हालातों का असर मस्तिष्क  पर ज्यादा पड़ता है। पढ़ा लिखा व्यक्ति भी विवेक से ज्यादा गॉसिप पर भरोसा करता है। कोरोना के चलते औद्योगिक क्षेत्र व अर्थ व्यवस्था कुछ हद तक बिगडेगी ही। 
व्यक्ति आर्थिक समस्याओं और जरुरतों को पूरा करने में लग जायेगा।तो कुछ सिनेमा हॉल शायद बंद हो जायें।
मनोरंजन सोशल मीडिया व नेट के कारण मोबाइल ,लेपटाप पर मौजूद है ।फील्ड गेम या मनोरंजन के बजाय इन होम ज्यादा अभी हैं हीं।
- मनोरमा जैन पाखी
भिण्ड - मध्यप्रदेश
निकट भविष्य में लॉक डाउन से हम यदि बाहर निकले तो सिनेमाहॉल की स्थिति नहीं बदली तो ये मानव जीवन की बलि लेने वाले प्रमुख कारक होंगे l 
सिनेमा हॉल की स्थति बदलनी ही होगी हमें कोरोना संक्रमण में भावी जीवन जीना है l अतः सिनेमा के स्थान पर मनोरंजन का परिष्कृत रूप अपनाने होंगे जो मन के साथ साथ तन को भी लाभ पहुंचाएl खेलकूद, क्रीड़ा 
प्रतियोगिता, केरम, चौपड़, बागवानी साहित्य सृजन आदि l 
सस्ता एवं सुलभ मनोरंजन का साधन सिनेमा हॉल अब इतिहास बनने की दिशा में बढ़ रहा है टी.  वी. इंटरनेट के मनोरंजन ने इसका स्थान ले लिया है लेl कोरोना संक्रमण को बढ़ाने का वातावरण इसी स्थान से मिलता है अतः अपने प्राणों को संकट में डालकर आने वाले समय में इससे स्वयं बचें, परिवार, समाज की रक्षा करने में एक सैनिक की भूमिका का निर्वाह करें l कोरोना की कहानी शुरू हुई है तो खत्म भी होगी l 
"क़िरदार काबिल हुए तो याद भी रखे जायेंगे l"संसार में जो कुछ भी है वह मनुष्य के द्वारा मनुष्य के लिए ही बनाया गया है l मनोरंजन के विभिन्न साधन भी मनुष्य के लिए है, आवश्यकता इस बात की है उन सबका प्रयोग रूचि पूर्ण ढंग से उचित मात्रा में किया
 जावे l जिस प्रकार "अति सर्वत्र वर्जयेत "उसी प्रकार मनोरंजन के क्षेत्र में भी यही वर्जना सर्व मान्य है l 
जहाँ और जितने तक मानव जीवन सुखी, स्वस्थ्य, शांत और आनंदमय रह सके l मनोरंजन और उसके साधनों का उपयोग भी वही तक सीमित रहना चाहिए l कोरोना संक्रमण के दूरगामी परिणामों को देखते हुए हमें स्वस्थ्य मनोरंजक जीवन जीकर प्रगति के अनेक पड़ाव पार करने और करते रहना है l यही जीवन और प्रकृति दोनों का नियम है और नियमों के उल्ल्घंन कर्ता दण्ड के भागी हो रहे हैं और आगे भी होंगे l तन मन का चोली दामन का साथ कहा जाता है "मन चंगा तो कठौती में गंगा "मनोरंजन प्रक्रिया मन से जुडी है l अतः व्यक्तित्व की अनेक परतें इससे अछूती नहीं रह सकती l इसलिए मनोवैज्ञानिकों ने इसकी शुद्धत और स्वस्थ्यता को अनिवार्य बताया है l मनोरंजन के वर्तमान साधनों में फ़िल्म व साहित्य प्रमुख है l लेकिन विडंबना है कि दोनों ही कसौटी पर निराशजनक परिणाम दे रहे हैं l 
चलते चलते -
1. हे ईश्वर !हमें उन चीजों को स्वीकार करने की स्थिरता दीजिए जिन्हें हम बदल नहीं सकते उन चीजों को बदलने का साहस दीजिए, जिन्हें बदल सकते हैं l दोनों में अंतर करने का ज्ञान हमको दीजिए जिससे हमारे समस्त कार्य यथा समय, यथा विधि निर्वहन रूप से सम्पन्न हो सकें l 
2. जीवन में पहली बार घर बैठकर देश बचाने का मौका मिला है इसे सिनेमाघरों में जाकर हाथ से न खो देना l 
 राजपूत कृपाण सा ये वक्त, 
निकले फिर न जाता म्यान 
होता कभी नहीं वो निष्प्राण l  
- डॉ . छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कोरोना वायरस के चलते पूरा उद्योग जगत अभी सदमे में है।कि आगे की गतिविधियां क्या और कैसे होंगी। ऐसे में हम सिने जगत की बात करें तो यह एक बहुत ही बड़ा उद्योग है इसमें न जाने कितने लोगों की रोजी-रोटी चलती है। और अरबों खरबों का व्यापार होता है कोरोना वायरस के चलते सिनेमा हॉल की स्थिति की बात कहें ।तो वैसे सिनेमा हॉल में 9% युवा वर्ग ही जाता है।और उन्हें देखते हुए ही आजकल की पिक्चर्स बनाई जाती है। कोरोना वायरस के चलते सिनेमा हॉल में कुछ नियम और कानून लागू करने पड़ेंगे और आने वाले समय में उन नियमों का पालन करते हुए ही सिनेमाघरों को खोला जाए।और वैसे भी आजकल के युवा फायर स्टिक और यूट्यूब के चलते फिल्में सिनेमा हॉल में आने से पहले खरीद कर घर पर ही की देख लेते हैं। ऐसे में सिनेमा हॉल में युवाओं का जाना महज एक टाइमपास ही होता है। लेकिन कोरोना के चलते अब वह ओर भी सजग हो जाएंगे। और अधिकतर युवा घरों में ही फिल्में देखेंगे यदि सिनेमा हॉल मे जाते है तो सिनेमा हॉल के मालिकों को सबसे ज्यादा सीटों के रखरखाव पर ध्यान देना होगा। पूरा हाल उन्हें दिन में तीन बार  सैनिटाइज करना होगा।ताकि अगले शो के लिए हॉल तैयार हो सके। और कैंटीन की व्यवस्था का और साफ सफाई का ध्यान भी रखना होगा। उन्हें आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को खाद्य सामग्री बिक्री की जानकारियों की प्रामाणिकता देनी होगी। कि यह स्वच्छता में बनी है। तभी दर्शक विश्वास के साथ खरीद सकेंगे। इस तरह की कुछ नीतियां तय करनी होंगी।प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान में रखकर कोरोना से बचने के लिए मास्क को अनिवार्य करना होगा। ताकि दर्शक विश्वास के साथ जाकर अपना मनोरंजन कर सके। रही स्थिति बदलने की बात तो बाकी आने वाला कल ही तय कर पाएगा कि भविष्य में सिनेमा हॉल की स्थिति क्या हो सकती है।और कैसी हो सकती है।
             - वंदना पुणतांबेकर 
                     इंदौर - मध्यप्रदेश
      निस्संदेह कोरोना से सिनेमा और सिनेमा हॉल के भविष्य की स्थिति बदल जाएगी। यूं तो हर व्यक्ति और उसके व्यापार की स्थिति बदल जाएगी। चूंकि लाॅकडाउन की मार जितना बड़ा उद्योग उतनी बड़ी हानि हो रही है।
      बदलाव हर कोई चाहता था। किन्तु ऐसे बदलाव की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि इतने दिनों तक सिनेमा हॉल बंद रहेंगे।
      फिल्म जगत सबसे बड़ा उद्योग है। ‌जिसमें करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। कइयों ने तो फिल्म की शूटिंग के लिए किराए के स्थान ले रखे हैं। जो अकस्मात कोरोना लाॅकडाउन से भविष्य के सिनेमा हॉल की स्थिति बदलने के कारण बंद पड़े हैं। किन्तु उन पर किराया चढ़ रहा है। जिसके फलस्वरूप कई उद्यमी कंगालीे की सीमा पर आ गए हैं। यही हाल सिनेमा हॉलों का होने वाला है।
      अतः कोरोना के कारण देश के अन्य व्यवसायों की भांति सिनेमा हॉलों के भविष्य पर भी आर्थिक संकट और चुनौतियों की तलवार लटकने की पूरी-पूरी संभावना है।
- इन्दु भूषण बाली
मुम्बई - महाराष्ट्र
लाकडाउन के बाद फ़िल्म रिलीज की बाढ़ आई हुई है ।3 मई तक सभी सिनेमा हॉल , मल्टीप्लेक्स बन्द हैं ।6 महीने लग सकते हैं ।  जगत में 20 लाख लोग कोरोना से संक्रमित है । संक्रमण का दौर चल रहा है ।हर भाषा की शूटिंग बन्द पड़ी हैं ।फ़िल्म उद्योग को हर हफ्ते 400 करोड़ का नुकसान हो रहा है ।सीने प्रेमियो को कोरोना में सामाजिक दूरी बनानी है , सुरक्षा यह जरूरी है ।  उसके लिए सिनेमाघरों को सेनिटाइजिग के साथ पीवीआर कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाएगा । पीवीआर के सिनेमाघरों में लगभग दस करोड़ लोग मनोरंजन करते हैं । अब कोरोना संकट से  23 साल के  मनोरंजन के इतिहास में पहली बार सिनेमा हॉल बन्द करने पड़े हैं ।
  कोरोना के  नियमों  का पालन करना पड़ेगा । लोगों को सिनेमा हॉल में एक सीट छोड़कर सिनेमा प्रेमियों को बैठाना होगा । मॉस्क , सेनिटाइजिग का भी ध्यान रखना होगा ।  अब तो कोरोना का लोगों में डर बैठ गया है । पहले के मुकाबले कम ही लोग सिनेमा देखेंगे । हमें निराशा के अंधकार में आशा का दीप जलाए रखना चाहिए।
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
सिनेमा हाल की स्थिति अब पहले जैसी नही रहेगी। यदि चालू भी होता है तो सोशल डिस्टेंस का पालन करना होगा।साथ ही कोरोना जाँच की व्यवस्थाओं को भी रखना होगा।लेकिन लोग सिनेमा  अभी इतनी जल्दी जाएंगे नही क्योकि अब घर की टीवी ही सिनेमा हॉल की कमी पूरी कर रही है। कारण है कोरोना डर और अनेक अफवाहे भरी बातें। कोरोना से यदि  भविष्य में यदि सिनेमा हाल खुलते है तो मास्क, सेनेटाइजर, हाथ मे दास्तान यदि नियम का प्रावधान हो सकता है।और ऐसे में सिनेमाघरों की स्थिति बदल सकती है। टिकट दर और अंदर मिलने वाले खाद्य पदार्थ की कीमत बढ़ सकती है। और सिनेमाघरों में जाने के लिए लंबी लाइनों का भी सामना करना पड़ सकता है। लेकिन अब तो स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में कोरोना के साथ ही नियम का पालन करते हुए हर कार्य करना पड़ेगा। उसे स्वीकार करना ही होगा।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
सिनेमा घरों में भी परिवर्तन तो लाना ही होगा। चूंकि यह ऐसा स्थान है जहां निरन्तर मूवी चलती ही रहती है। सोशल डिसटेनसी  बनाए रखने के लिए या तो शो कम। करना होगा अन्य बदलाव तो लाना ही होगा
वालीवुड में काफी परेशानी होगी यह तो निश्चित है कि मार जाने की आदत ही बदल जाएगी।भय हर इंसान के मन में भरा है पर धीरे धीरे वक्त के साथ साथ कम हो जाएगा। छोटे छोटे शहरों में सिनेमाघर बिल्कुल बंद होने के कारण आर्थिक क्षति अत्यधिक हो गया है। आजकल व्यक्तिगत गैजेट पर घर में ही मूवी का आनंद उठाया जा रहा है 
हर परिवर्तन एक नया आयाम लेकर आता है। इसलिए धैर्य के साथ इंतजार करना है
- डॉ कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना से बहुत कुछ बदलते हमें आज देखना होगा जीसमें सिनेमा हाॅल की स्थिती अवश्य ही बदलने वाली हैं कोरोना का इलाज या टिका न निकलना इस समस्या को ओर विकट करता जा रहा हैं।अब नयें दौर में सिनेमा के द्वारा  मनोरंजन की परिभाषा बदलने वाली हैं ओर बहुत महंगी होने वाली हैं यह कोरोना वायरस ओर कितने दिन मानव जाती को परेशान करेगा कुछ कहा नही जा सकता हैं ओर कोरोना से बचने के उपाय सिनेमा हाॅल की समस्या ओर बढ़ा रहा हैं जीसे देखते हुये निसचित ही भविष्य में सिनेमा हाॅल की स्थिती बदली हमें नजर आयेगी ऐसा मेरा मान्ना हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
लॉकडाउन पर हर तरह के लेखन, ज्ञान, हंसी-मजाक आदि की भरमार सोशल मीडिया में हर जगह है। इन सब के बीच जो एक गंभीर बात सामने आती है, वो यह कि कोरोना और लॉकडाउन हमारे जीवन जीने के तरीके में कई तरह के बदलाव ला सकता है। अभी तो यह एक अनुमान मिश्रित ज्ञान लग रहा है लेकिन आगे क्या होगा, यह आगे ही पता चलेगा। अभी तो ऐसा लग रहा है जैसे यह श्मशान में बैठे मनुष्य के अंदर आया क्षणिक वैराग्य है जो मुर्दे को जलाकर बाहर आते ही खत्म हो जाता है। 
बहरहाल, एक बात तय है। सिनेमा और मनोरंजन देखने का तरीका बदल जाएगा। और इसी एक बात का बड़ा भय सिनेमा वालों को अभी सबसे ज्यादा सता रहा है। अगर इस लंबे लॉकडाउन और उसके बाद की सामाजिक व्यवहारिक बंदिशों ने सिनेमा देखने की आदतों को बदल दिया, तो? अगर लोगों को अपने मोबाइल पर ही हर तरह की फिल्में देखने में ज्यादा मजा आने लग गया, तो? तो फिर सिनेमा हॉल का क्या होगा? बड़ी-बड़ी फिल्मों का क्या होगा?
फिर कहना चाहूंगी यह एक काल्पनिक परिदृश्य है- ऐसा होगा, तो क्या होगा? ऐसा न हुआ, तो क्या होगा? हां, एक बात जो हम सबने देखी है, और जो हम सब महसूस कर रहे हैं, वह यह कि पहली बार मोबाइल पर ढेर सारी फिल्में देखी जा रही हैं। कुछ ऐसी फिल्में भी लोग देख रहे जो हम सामान्य परिदृश्य में शायदन हीं देखते। लोग वेब सिरीज भी देख रहे हैं। लॉकडाउन का नतीजा यह हुआ है कि जितने भी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म हैं- अमेजन प्राइम, नेटफ्लिक्स, वूट, डिज्नी, हॉटस्टार...इन सबकी व्यूअरशिप बढ गई है। हाल में एक वेब सिरीज आई है। नाम है ‘पंचायत’। मेरा खयाल है कि अगर यह लॉकडाउन का मामला न होता तो शायद लोगों की इस पर नजर भी नहीं जाती। लेकिन खाली होने की वजह से लोगों ने इसे देखा। और जब देखा तो खूब पसंद किया। उन्हें लगा कि अरे, ऐसी भी वेब सिरीज है जिसमें जबरन मार-कुटाई, गाली- गलौज, सेक्स वगैरह का तड़का गायब है। गांव की कहानी है। हल्के-फुल्के तरीके से कही गई है। अभिनय जोरदार है। इसे अच्छे रिव्यूज भी मिले हैं।
हमें लगता है कि इसका बड़ा फायदा मिलेगा। अमेजन प्राइम जिस पर यह सिरीज उपलब्ध है, वह यह पक्का सोचेगा कि जब ऐसे सिरीज लोगों को पसंद आ रहे हैं तो फिर हमें आगे भी ऐसे सिरीज बनाने चाहिए-ऐसे सिरीज जो गांव, देहात, कस्बों की कहानियां कहें, इस अंदाज से कहें जो वास्तविकता के करीब हो। जिनमें कुछ नयापन हो। अगर आप देखें, तो हिंदी सिनेमा ने हाल में जो काम छोटे कस्बों की कहानियां कह कर किया है, वही काम वेब सिरीज बनाने वाले गांव की कहानियां बना कर कर सकते हैं। कुछ लोग पूछ सकते हैं कि क्या गांव की कहानियों में आम लोगों की दिलचस्पी होगी? जब पहली बार ‘पंचायत’ का कॉन्सेप्ट लेकर इसका प्रोड्यूसर स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के पास गया होगा तो उससे इसी तरह के सवाल किए गए होंगे। इसे कोई देखेगा क्या? हाल में एक इंटरव्यू में फिल्मकार शुजीत सरकार ने कहा कि जब वह ‘विकी डोनर’ बना रहे थे तो फिल्म में पैसा लगने वाले समेत अन्य कई समझ रहे थे कि वे कोई अश्लील फिल्म बना रहे हैं। बाद में पता चला कि यह न केवल एक कल्ट फिल्म साबित हुई बल्कि इसने आयुषमान खुराना का भविष्य तय कर दिया।
आज के डायरेक्टर सिर्फ़ अश्लिल गंदी गालियों से भरे हुए संवाद! इनका एक ही मकसद है। किसी तरह हिट्स मिल जाएं। सब्ज़क्राइबर्स बढ़ जाएं। बस, टारगेट है यूथ! यूथ! और यूथ! दरअसल, यह भी एक अजब-गजब सी सोच है। बल्कि बड़ी गलत फहमी है कि यूथ चूंकि इस मुल्क में सबसे ज्यादा हैं तो उन्हें फंसाया जाए, उनके लिए फिल्में बनाई जाएं, उनके लिए सिरीज बनाए जाएं, उनके लिए यूट्यूब शोज बनाए जाएं...तभी विज्ञापन आएंगे, तभी सिनेमा की टिकटें बिकेंगी, तभी यूट्यूब से पैसा आएगा। कमाल है। जैसे, इस देश में सिर्फ युवा ही बसते हैं। बच्चे, औरतें, उम्र दराज, अधेड़, सीनियर सिटीजन... इन सबका कोई अस्तित्व ही नहीं है! और... सारे युवा भी एक जैसे ही होते हैं। छिछोरे और लंपट!!
अरे भाई, एक बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है जिन्हें अच्छा मनोरंजन भाता है। वे बोलते समय हर वाक्य में चार गालियां नहीं देते। उनका सारा समय दारू पीने और सेक्स करने या उसकी बात करने में नहीं बीतता। वे हमेशा चाकू-छुरी लेकर नहीं चलते। रहम करो, मेरे भाई। रहम करो! इतनी गंध न फैलाओ कि बाद में झाड़ू देते-देते लोगों की जान चली जाए। सीधी-सी बात है कि जब तुम इसी बात का रोना रोते रहोगे कि आजकल लोग ‘यही’ देखना चाहते हैं तो तुम सिर्फ ‘यही’ बनाओगे। लेकिन अगर तुम इस थ्योरी को मानते हो कि भाई, जब पब्लिक के सामने खराब ही परोसोगे और उसके साथ कोई विकल्प नहीं दोगे तो मजबूरन उसे वही खाना पड़ेगा जो तुमने परोसा है। कोई नई डिश परोस कर तो देखो। हां, ऐसा भी न हो कि नई डिश ऐसी बकवास तरीके से बनाई गई हो कि आदमी पहले ही निवाले को थू-थू करते हुए फेंक डाले!
मेरा कहना है अच्छी साफ सुथरी फ़िल्में बनाओ खूब  चलेगी 
पर नहीं  हमें गंदगी में ही मज़ा आता है ...
यदि साफ़ सुथरी फ़िल्में बने तो समाज देश युवाओ का भला तो होगा आपकी जेब भरने के साथ साथ मानसिक संतुष्टि भी मिलेगी ।
कोरोना के चलते सिनेमा हाल कुछ समय तो बंद ही रहेंगे और भविष्य में भी स्थिति काफ़ी चिंताजनक  रहेगी । 
जब तक दवा नहीं आ जाती कोरोना भाग नही जाता हाल में ताला ही लटकेगा ..
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
         हां यह सत्य है कि कोरोना की वजह से भविष्य के सिनेमा हॉल की स्थिति बदल जाएगी ।
 हम कह सके है कि यह भी समय को देखते हुए अपग्रेड हो जायेगी।
             कुछ सिनेमा हाल तो बंद हो जायेगे । वहीं पर कुछ सिनेमा हाल में सीटों को एवं बैठने की व्यवस्था में फिजीकल डिस्टेंस का खास ध्यान रखा जायेगा। सीटे दूर-दूर एवं कम संख्या में होगी।
            कोरोनावायरस दूसरों में न फैले और संक्रमण का खतरा न हो इसके लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा तथा प्रत्येक शौ पर पूरे हाल को सेनिटाइड्ज किया जायेगा।
यह सब बार बार करने पर खर्च भी अधिक होगा अतः यह स्वाभाविक है कि फिर टिकिट की कीमत की बहुत बढ जायेगी और यह सब बोझ दर्शकों की जेब पर भारी पड़ेगा जिसके परिणामस्वरूप दर्शक पहले की तुलना में  फिल्में कम देखने  जायेगा और वह हर नयी फिल्म नहीं देखेगा।
              वह केवल वही फिल्में देखने जायेगा जो कि हिट हो रही है और लोगों द्वारा पसंद की जा रही है।
दाम बढ़ने से ये सिनेमा हॉल आम दर्शकों को लगभग खो ही देंगे। क्योंकि आम आदमी इतना अधिक खर्च वहन नहीं कर सकता वो भी केवल कुछ घंटों के मनोरंजन के लिए। इसीलिए यह तो तय है कि भविष्य में सिनेमा हॉल की स्थिति में मूलभूत परिवर्तन अवश्य ही आयेगा।
- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
  टीकमगढ़ - मध्यप्रदेश
निश्चित रूप से कोरोना से सिनेमा हॉल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा। वैसे भी अब सिनेमा हॉल में फिल्म देखने के लिए लोगों को समय कहां मिलता है।वह एक जमाना था जब एक भी रविवार ऐसा नहीं था कि रविवार को सिनेमा हॉल में फिल्म न देखी हो। अब सिनेमा हॉल की जगह घर में लगे टेलीविजन और पैकेट में रखा मोबाइल ने ले लिया है। तो मैं समझता हूॅं‌, दर्शकों न होने की वजह से कई सिनेमा हॉल बंद हो गए। यहां गुड़गांव में ही देव सिनेमा, शकुंतला,राज और कई छोटे छोटे मिनी थियेटर बंद हो गए। अब पहले से ही घाटे में चल रहे सिनेमा हॉल पर तो कोरोना का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ेगा। जो मल्टी प्लेक्स सिनेमा हॉल हैं। उनमें आम दर्शक को देखना तो ख्याली पुलाव पकाने जैसा है। तो सिनेमा हॉल निश्चित प्रभावित होंगे ऐसा मेरा विश्वास है।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
कोरोना वायरस (,कोविड19) वैश्विक महामारी जिस तरह से दुनियां भर में तबाही मचा रही है, इससे तो यही लगता है कि स्थिति सामान्य होने में काफी समय लग जाएगा। भारत मे भी कोरोना संक्रमण बहुत ही तेजी से पाव पसार रहा है। जैमिनी अकादमी द्वारा पेश आज की चर्चा में सवाल उठाया गया है कि क्या कोरोना से भविष्य में सिनेमा हॉल की स्थिति बदल जाएगी। सही सवाल है। सिनेमाघरों की स्थिति कोरोना के कारण बदल जाएगी। इसका एक कारण सोशल मीडिया है। साथ ही टीवी में प्रसारित टीवी सीरियल, फिल्मों का प्रदर्शन है। सबसे बड़ी बात है कि कोरोना के मामले इसी रफ़्तार से देश भर में बढ़ते रहे तो जून जुलाई में कोरोना चरम पर होगा। यह बातें कोई और नही बल्कि पिछले गुरुवार को दिल्ली एम्स के डायरेक्टर ने कही है। देश मे महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, तमिलनाडु, एमपी, यूपी में कोरोना के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। दुनियाभर में कोरोना से 2 लाख 76 हजार से अधिक लोगों की जान गई, जबकि विश्व मे संक्रमितों की संख्या 40 लाख के पार है। भारत मे कोरोना संक्रमितों की संख्या 63 हजार तक पहुचा, जबकि 2109 मौत हुई। इसी बीच 19358 मरीज ठीक होकर अस्पतालों से घर लौटे। 
इस स्थिति में नए फिल्मों की शूटिंग ही नही होगी। क्योंकि इससे कोरोना मरीज़ों की रोकथाम में परेशानी होगी। और फिल्मों की शूटिंग की अनुमति न तो केन्द्र सरकार देगी और न ही राज्य सरकारें। अब जबकि नई फिल्में बनेगी ही नही तो सिनेमा हॉल में पुरानी फिल्मों का ही प्रदर्शन होगा। दर्शक सिनेमाघरों में नई फिल्मों को ही देखने के लिए जाते हैं। इस परिस्थिति में दर्शकों को जब पुरानी फिल्मों को ही देखना होगा तो वो घर बैठे टीवी व मोबाईल पर ही फिल्में देखना पसंद करेंगे। इसका कारण यह भी है कि कोरोना से बचाव के लिए लोगों को महिनों तक सतर्कता बरतनी होगी। क्योंकि जान है तो जहान है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कोरोना वायरस के चलते सिनेमा हॉल की स्थिति बदलना स्वाभाविक है । सिनेमा हाल में इकट्ठा होने वाली भीड़ को एक दूजे के संपर्क में न आने देना सिनेमा हॉल मैनेजमेंट के लिए कितना चुनौती पूर्ण होगा , इसका स्वयं ही अंदाजा लगाया जा सकता है । हालाँकि इसका प्रभाव कम होने के बाद भी तथा सरकार से जिला प्रशासनों पर छोड़ी गई कार्यवाही में भी जल्दी से कोई भी जिला प्रशासन सिनेमा घरों को खुलवाकर स्वयं आफत मोल नही लेगा । फिर भी भविष्य में जब भी सिनेमा घरों के खुलने का माहौल बनेगा तब जिलाप्रशासन के लिए काम बढना तो तय है ।
फिर भी सतर्कता बरतते हुए सिनेमा घरों में सेनेटाइजर का आते जाते समय दर्शकों को प्रयोग कराना , दर्शकों की कुर्सियों को इस तरह हाल में सेट करना कि उचित व पर्याप्त दूरी का ख्याल उसमे रखा गया हो तथा आते , जाते समय लोग एक दूसरे के संपर्क में न आये इन बातो का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए , यधपि इन पूरे पैमानों पर कोई सिनेमा हॉल खरा उतरता है तो समझिए कि न उसकी स्थिति बदल जाएगी बल्कि दशा और दिशा भी ऐसी बदलेगी की देखने वालो की आंखों का अचंभित होना स्वाभाविक है । एक बात यह भी स्पष्ट है कि आज तक पूरे पैमानों पर तो न सरकारें खरी उतरी है और न प्रशासन फिर अपनी कमाई का जरिया देखने वाले सिनेमा हॉल भी तो इसी संभ्य समाज की देन है , उनसे उम्मीद करना दिल को दिलासा देने मात्र से अधिक कुछ नही है ।
    परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश 
आज  ‌पूरे विश्व पर जिस महामारी ने आतंक फैला रखा है उसके चलते हर प्रकार के उद्योगों पर संकट मंडरा रहा है। और वह ‌काफी हद तक प्रभावित भी हो रहें हैं।
आज जो लाकडाउन 3 लागू हुआ है उससे कुछ उद्योग तो समाप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं।
   इसमें अगर बात की जाए सिनेमा जगत की तो उनकी स्थिति पूर्णतः चिंता जनक है क्योंकि वह स्थान ऐसा है जहां कोरोनावायरस संम्बंधी नियमों का पालन लगभग मुश्किल सा लगता है । सोशल डिस्टेंसिग जैसी अवस्था का पालन दुविधा जनक लगता है।
   और सबसे बड़ी बात है कि लोगों के हृदय में इस वायरस ने जो भय बनाया है लोग स्वयं सिनेमा हॉल से दूर रहने लग जाएंगे।
   हां यह भी सत्य है कि।
जहां चाह वहां राह निकल ही आती है । अतः कुछ समझ से लिए गए निर्णयों से सिनेमा ‌हाल चालू किया जा सकता है जैसे-
 सीमित टिकिट बैची जाएं
एक समय में एक ही फिल्म लगाई जाए
मास्क लगाना , दस्ताने पहनना जैसी शर्ते लागू की जाए
सिनेमा हॉल में लगी कैंटिन आदि पर सफाई का खास ध्यान रखा जाए और प्रत्येक सिनेमा घरों के मालिक अपने राज्य में बने उन सभी नियमों का कठोरता से पालन भी करें जो कोरोनावायरस जैसे खतरनाक प्रभाव को असंभव बनाने के लिए बनाए गए हैं। हां इन सब के चलते सिनेमा घरों की स्थिति और कार्य प्रणाली में पूर्णतः बदलाव होगा पर यह भी कटु सत्य है।
   परिवर्तन का अर्थ ही उन्नति है।
परिवर्तन ही आपकी आगे बढ़ने की पहचान है।
परिवर्तन ही आपके जिन्दा होने की पहचान है।
जो जिंदा है वही परिंदा है उडान भरने को निरन्तर तैयार है।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
कोरोना के कारण सभी जगह परिवर्तन हो रहा है तो सिनेमा हालों में भी परिवर्तन होंगे। सोशल डिस्टेंसिंग ध्यान रखा जाएगा लोग पास पास न बैठकर दूर-दूर बैठेंगे। मुंह पर मास्क कपड़ा बांधकर बैठेंगे। बीमार और संक्रमित व्यक्तियों को जीने सर्दी जुखाम आदि कुछ भी है उन्हें इंट्री नहीं देनी चाहिए।
खाने की चीजें और पानी भी बाहर करना लेकर सब को अपने साथ लेकर जाना चाहिए।
सिनेमा हॉल यदि साफ सैनिटाइज किया हुआ है तभी वहां अंदर जाकर फिल्म देखनी चाहिए।
कभी काल चले जाए तो अलग बात है वैसे यह सब को पब्लिक प्लेस में अभी कुछ दिनों तक जाना  नहीं चाहिए,
क्योंकि लॉक खोलने के बाद संक्रमण का खतरा और बढ़ जाएगा।
जान है तो जहान है।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्यप्रदेश
परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है और इसे रोका नहीं जा सकता है वैसे भी मानव स्वभाव परिवर्तन पसंद करता है जिन चीजों में परिवर्तन नही होता है वो नीरस लगने लगती हैं इस लिए मानव परिवर्तन लाने के लिये रिसर्च करता रहता है ।  सिनेमा हॉल का इतिहास बहुत पुराना नही है लगभग सौ साल में सिनेमा हॉल विभिन्न रूपों में बने चले और बदल रहे चल रहे हैं टेक्नोलॉजी के युग में परिवर्तन बहुत तेज़ी से हो रहे हैं सिनेमा हॉल तो पहले ही ख़स्ताहाल हैं पब्लिक सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने के बजाय घर में डिस्क टीवी चैनल के माध्यम से मनपसंद फ़िल्म व कार्यक्रम देखना पसंद करती है समय की कमी के कारण अब हॉल में फ़िल्म देखने कम ही भीड़ जाती है और कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना ज़रूरी है जो सिनेमा हॉल में संभव नही है इसलिए निश्चित तौर पर भविष्य के सिनेमा हॉल की स्थिति बदल जाएगी संभव है सिनेमा हॉल इतिहास की बात रह जाएगी । 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
निश्चित रूप से सिनेमा हॉल की स्थिति भविष्य में बदलेगी।जिस प्रकार सामान्य सिनेमाघरों से परिवर्तित हो, मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों का चलन हुआ था। अब कोरोना संकट के बाद या इसके साथ चलते हुए ,इन मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों का स्वरूप भी बदलना सुनिश्चित है। इनमें सुरक्षा के बेहतर इंतजाम किए जाने प्रस्तावित हैं। इन सिनेमाघरों की एसोसिएशन ने इस विषय पर विचार करना शुरू कर दिया है। जिसके तहत दर्शकों के लिए आटो सेनेटाइजिंग मशीन,हैंड वाश, बुकिंग विंडोज पर कीटाणु रोधक फिल्म चढ़वाना आदि व्यवस्था की चर्चा शुरू हो गई है। हाल के भीतर सीटिंग प्लान भी बदलना निश्चित है ।इसमें पर्याप्त दूरी रखी जाएगी। वैसे तो इंटरनेट और मोबाइल के युग में, सिनेमा हॉल का व्यवसाय पहले ही कमजोर पड़ा था। अब बदलते हालात में यह कितना गति पकड़ेगा? अभी कहा नहीं जा सकता। इतना जरूर है कि इसकी व्यवस्था और स्वरूप में बहुत से सकारात्मक परिवर्तन आने वाले हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर- उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस के प्रकोप से वर्तमान में सभी सिनेमा हॉल बन्द हैं। परन्तु यह विचारणीय है कि भविष्य में सिनेमा हॉल की क्या स्थिति होगी? यह अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है कि कोरोना की वैक्सीन अथवा दवा कब तक धरातल पर आयेगी। परन्तु यह तय है कि हमारी जीवनचर्या में विभिन्न आयामों पर परिवर्तन अवश्य आयेगा और चूंकि कोरोना की वर्तमान स्थिति के बाद भी कोरोना का भय समाप्त नहीं होगा इसलिए सामाजिक/शारीरिक दूरी की आदत हमें डालनी ही होगी परन्तु जैसा कि दृष्टिगत है कि सरकार के लाॅकडाउन के महत्वपूर्ण प्रयास को भी आम जनता द्वारा अनदेखा किया जा रहा है, जबकि इस अनदेखी से खतरा स्वयं को ही है, उसी प्रकार कोरोना का प्रकोप कम होने पर तथा लाॅकडाउन की व्यवस्था समाप्त होने पर सिनेमा हॉल की स्थिति में आम जनता द्वारा स्वयं किसी सुरक्षात्मक परिवर्तन के प्रयास किए जायेंगे, मुझे नहीं लगता क्योंकि एक तो मानवीय प्रवृत्ति घटनाओं को जल्दी भूल जाने की है दूसरे लापरवाही मानव-मन की नस-नस में भरी होती है। परन्तु मेरा मानना है कि सिनेमा हॉल की वर्तमान व्यवस्था की स्थिति में परिवर्तन अत्यन्त आवश्यक है और भविष्य में सिनेमा हॉल में सामाजिक/शारीरिक दूरी जैसी व्यवस्था बनाए जाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरॉना के संक्रमण का हर क्षेत्र पर असर पड़ेगा कोरॉन्ना  के संक्रमण से सामाजिक ,आर्थिक, सांस्कृतिक, मनोरंजन का क्षेत्र अछू ता नहीं रहा है। कोरोना से फिलहाल फिल्मों  की क्या सीरियल की भी शूटिंग नहीं हो पा रही । जिन फिल्मों की शूटिंग भी कंप्लीट हो चुकी है वे निर्माता निर्देशक अपनी फिल्मों को डिजिटल मीडिया द्वारा ऑनलाइन रिलीज कर रहे हैं। सिनेमा हॉल में जनता सोशल डिसटेसिंग के कारण नहीं जाएगी। अधिकतर फिल्में देखने थिएटर मैं उच्च वर्ग की फैमिली जाती है।  या निम्न वर्ग की कभी-कभी।
           उच्च वर्गीय फैमिली  अब टीवी की जगह प्रोजेक्ट खरीदने लगे हैं जिस पर फिल्म रिलीज होते ही सब घर पर देख लेते हैं।  भविष्य में सिनेमा हॉल की स्थिति कुछ हद तक बदल ही जाएगी।
               - रंजना हरित
                  बिजनौर -  उत्तर प्रदेश
 करोना वैश्विक महामारी वायरस के आने से पूरे विश्व प्रभावित हो रहे हैं। स्वयं मनुष्य की जीवन शैली , परिवार की व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था और प्रकृति की व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहा है। सुषमा तृप्ति से समीक्षा करने से यह बात निकलकर आती है की करोना के आने से लोगों में जागृति आने लगी है। जिसके परिणाम स्वरूप लोगों की अनावश्यक घूमना खाना-पीना रहन सहन सभी क्षेत्र में नियंत्रण और संयम देखने को मिल रहा है। यही शायद ही युग परिवर्तन है जैसा लग रहा है। एक तरफ करो ना महामारी की त्रासदी और दूसरी तरफ लोगों में जागृति दिखाई  दे  रहा है। सभी तरफ वर्तमान में बदलाव दिख रहा है। यह बदलाव भविष्य में भी दिखाई देगा क्योंकि जरा सा भी लापरवाह से करो ना का संक्रमण होने की संभावनाएं बनी हुई है अतः आने वाली भविष्य में सिनेमा हॉल की स्थिति भी बदल सकती है ऐसा संभावना व्यक्त किया जा रहा है हमारा जीने का जो सिस्टम व्यवस्था बनी है वह करुणा के अनुकूल होगा तो करुणा के चपेट में आने की संभावना बन रही है और हमारा जीने का व्यवस्था करो ना कि प्रतिकूल रहेगा तो करुणा को हराने का प्रबल प्रयास हो रहा है। सिनेमा हॉल एक सामाजिक सार्वजनिक स्थल है जहां विभिन्न जाति संप्रदाय क्रियाकलाप करने वाले लोग सिनेमा देखने आते हैं वहां पर परहेज संयम नहीं हुआ अर्थात लाभ डाउन का पालन नहीं होगा तो निश्चित ही करो ना पर विजय पाना बड़ा जटिल समस्या हो जाएगा। अतः करो ना को मात देने के लिए हमारी जीवनशैली को बदलना पड़ेगा। तभी हम करो ना को अपने देश से भगा पाएंगे। अगर लाख डाउन कि नियमों का निर्वहन ना होगा तो इसका परिणाम भविष्य में और भयंकर हो सकता है। मनुष्य को अपने दिशा और दशा दोनों को स्पष्ट करना होगा और अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विभिन्न योजनाओं को सुनिश्चित कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होगा परिवर्तन तो निश्चित रूप से हो ही रहा है और आगे भविष्य में परिवर्तन होने की संभावनाएं बनी रहेंगी। उपरोक्त संदर्भ से विश्लेषण किए जाने से यह पता चलता है कि भविष्य के सिनेमा हॉल की भी स्थिति बदल जाएगी क्योंकि यह संसार परिवर्तनशील है विकास और जागृति निश्चित है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
     भारत में चल चित्रों के पथ-प्रर्दशन से प्रारंभ हुआ। शहर-कस्बों में चल चित्रों के माध्यम से एक डब्बे रुपी में प्रस्तुत कर मनोरंजन किया जाता था, जिसे देख बच्चों से लेकर वृद्धों तक आनंदित होते थे। नाटक, राम लीला अन्य भी प्रभावित होते रहे, जिसे देख नव ऊर्जा का संचार होता गया। फिल्म उद्योग सामने आया। मुक चल चित्रों में  कलाकारों ने जान डाल दी, जिसे देखने अपार भीड़ उमड़ पड़ी। शनै:-शनैः  बोलती फिल्मों की पट कथा ने जन्म लिया, यह बहुत बड़ी फिल्म उद्योग की सफलता थी। जिसके कारण शहरों में टाकिजों का बनना प्रारंभ हो गया। फिल्म उद्योग की पेटियों के लाईन लगने लगी। यह फिल्में श्याम-श्वेत में भी आकर्षित करने लगी, जिसका प्रतिफल यह हुआ कि जहां शहरों में एक टाकीज हुआ करती थी, अनेकों टाकीजे का जन्म हुआ। नये-नये कलाकारों की भर्ती होने लगी, सब फिल्म उद्योग की ओर बढ़ने लगे। संगीत भी पीछे कहां रहते, वहां भी संगीत प्रेमियों को रोजगार मिल गया। कई-कई कलाकार परिवार  सदस्यों के साथ पट कथा लिखने लगे। फिल्म पट कथा निर्माता-
निदेशक  नये-नये शब्दावली को गहराई तक पहुँचने लगे, एक फिल्म में तीन घंटे में ही प्रस्तुति। पट कथाओं के शब्दों को प्रतिबंधित करने समितियों का गठन हुआ। श्याम-श्वेत फिल्म के बाद रंगीन फिल्में क्या आई, फिल्म उद्योग में चमत्कार सा हुआ। रातों-रात फिल्में बिकने लगी,  शहरों की टाकीजे में विस्तार होता गया। दर्शकों की अपार भीड़ उमड़ें लगी और आय का साधन भी हो गया। सम-सामयिक, राजनैतिक, धार्मिक पट कथाओं का जन्म होने लगा, शिक्षा पद के साथ-साथ अन्य ऐसी पट कथाऐं जो कभी परिवार के साथ देखने में अच्छी लगती थी, तो कुछ नहीं .....? टाकिजों में दिनोंदिन संख्या बढ़ने लगी । इसी परिप्रेक्ष्य में छोटे पर्दे वाली (टीवी) सामने आ गयी। जहाँ घर परिवार घर संसार में ही देखने लगे।
शनैः-शनैः टाकिजों में जन समुदाय कम होने लगे,  टाकीजे बंद होने लगी,  माॅल सामने आ गया। वर्तमान परिदृश्य कोरोना महामारी के कारण टाकीजे बंद पड़ी हैं, फिल्म उद्योग की पेटी भी बंद हो गयी। कर्मचारियों की व्यवस्थाओं का प्रभाव देखने को मिल रहा है। भविष्य में ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि फिल्म उद्योग-टाकिजों को बंद करना पड़ सकता है, क्योंकि एक साथ दर्शक सिनेमा देख नहीं सकते  और दूर-दूर बैठ नहीं सकते। इसलिए सिनेमा हाॅल की स्थिति भविष्य के लिए चिंतनीय हैं। यह गंभीर प्रश्न हैं,
विचारणीय है। आज 100 बैठक व्यवस्था हैं, 50 की व्यवस्था कर नहीं सकते। जिस पर भारी खर्च की संभावना हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सिनेमा हॉल की स्थिति की अगर बात की जाए तो आजकल नई तकनीकी के युग में लोग सिनेमाघरों की तरफ पहले के मुकाबले काफी कम ही रुख कर रहे हैं। मीडिया के अनेक माध्यमों से घर बैठे ही एचडी एचडी प्लस वीडियो के माध्यम से लोगों को फिल्म देखने के लिए मिल रही है। लेकिन यह बात पूर्णता सत्य है कि कोरोना के प्रभाव को देखते हुए भविष्य में हर व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित रखना चाहेगा, और सरकार के द्वारा ऐसे दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं ,जिसमें यह भी कहा गया है कि आप आने वाले समय में ऐसे स्थानों पर जाने से बचें जहां पर भीड़ अधिक हो। सिनेमा घर में भी यही स्थिति होती है सभी सीटें पास पास होती हैं अतः भविष्य में लोग यहां भी जाने से बचेंगे।निश्चित रूप से कहने में कोई संकोच नहीं है कि आगे आने वाले समय में सिनेमाघरों की स्थिति और भी दयनीय अवस्था में होगी। और यदि सिनेमाघरों को लोग चलाना चाहते हैं तो उन्हें नई तकनीकी के साथ ऐसे प्रयोगों के साथ लोगों को फिल्म देखने के लिए बुलाना होगा जिससे वह सामाजिक दूरी का पालन भी कर सकें और फिल्म का आनंद भी ले सकें। अतः मैं स्पष्ट रूप से कह सकता हूं कि भविष्य में कोरोना के कारण सिनेमा हाल की स्थिति निश्चित रूप से बदलेगी।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना ने दुनिया की स्थिति और विचार बदल दिए हैं । इसी में सिनेमा हॉल की स्थिति पर भी विचार करना बहुत बड़ा प्रश्न है। आजकल के सिनेमा घर पहले के सिनेमा-घरों से अलग हैं । एक ही जगह पर कई पर्दे और उनपर अलग-अलग फ़िल्म देखना सपनों की दुनिया है। नाम भी अलग 'सीने काम्प्लेक्स', जो हमारे लिए तरक्की का पायदान है। 
अब इतने बड़े आर्थिक लाभ के व्यापार पर असर तो पड़ेगा ही । अभी तक तो लॉक डाउन की मार झेलता हुआ फिर सोशल डिस्टेंसिंग का प्रभाव, इतने बड़े निवेश पर मंदी तो अवश्य आएगी। अगर वहाँ डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किया  गया तो शायद हालात सुधार जाएं ।लेकिन समय तो लगेगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
 यह मनोरंजन से जुड़ा हुआ प्रश्न है और आज की स्थिति और कोरोना संक्रमण के रोकथाम के बारे में हमारे प्रयासों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में  भी हमें कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहना होगा।  जब तक कोई प्रभावशाली वैक्सीन या दवा उपयोग  में नहीं आती है तब तक सोशल डिस्टेंसिंग के कारण सिनेमा हॉल में बैठने की अनुमति पाना संभव नहीं है। अनुमान लगाया जा रहा है कि  इस वर्ष के अंत तक दुनिया में उपयुक्त      वैक्सीन या दवा ईजाद हो चुकी होगी।  इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि भविष्य  में सिनेमा हॉल की स्थिति यथावत बनी रहेगी। किसी फिल्म को देखने का जो आनंद सिनेमा हॉल में होता है वह घर में या किसी अन्य जगह पर नहीं । अनुमान यह है कि   सिनेमा हॉल की स्थिति में बदलाव नहीं होगा,कोरोना संक्रमण  समाप्त होते ही सिनेमा हाॅल  अपने पुराने स्वरूप में आ जाएगा। 
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
 दतिया - मध्य प्रदेश 
कोरोना  महामारी  ने  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  को  प्रभावित  किया  है  । यदि  हम  इस  वर्ष  के  जनवरी  माह  और  वर्तमान  चालू  समय  पर  दृष्टिपात  करें तो  बदलाव  के  प्रभाव  को  देखा  जा  सकता  है । सिनेमा   हाॅल  की  बात  करें  तो  अभी  सब कुछ  अनिश्चय  के  घेरे  से  घिरे  हैं  । इनका  सुचारू  रूप  से  संचालन  इस  वर्ष  तो  संभव  नहीं  लगता  ।  कोरोना  के  संपूर्ण  सर्वनाश  के  बाद  भी  लंबे  समय  तक  इसका  भय  बना  रहेगा  । कोरोना  समाप्ति  के  पश्चात  सिनेमा  संचालन  की  वैकल्पिक  व्यवस्था  की  जा सकती  है  जिसके  तहत  सिर्फ  एक  शो  ही  चले  उससे  पहले  और  बाद  में  पूरा  हाॅल  सेनेटाइज  किया  जाय  । टिकट  सीमित  मात्रा  में  दिए  जाय  साथ  प्रवेशित  लोगों  को  भी  सेनेटाइज  किया  जाय  । कोरोना  से  बचाव  के  नियम- मास्क,  दूरी, बार-बार  साबुन  से हाथ धोना, छींकने, खांसने  पर  मुंह  पर  रूमाल  या  कोहनी,  थूकने  पर  प्रतिबंध  आदि  के  पालन  को  जीवन  का  हिस्सा  तो  बनाना  ही  होगा  । 
          - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर  - राजस्थान 
कोरोना से भविष्य में स्थिति बदलेगी नही जैसा समय और वक्त चल रहा है उसे देखकर नही लगता स्थिति जल्दी बदल जायेगी। कोरोना संक्रमण से उभरने मे वक्त लगेगा ऐसी स्थिति मे संक्रमण के डर से लोग सिनेमा घर मे जाने से बेचेगे। और भीड़भाड़ वाले स्थानों पर नही जायेगे सोशल डिस्टेशिंग के नियम का पालन करेगे। संक्रमण खत्म नही हुआ है इसका प्रभाव लम्बे समय तक रहेगा। संक्रमण से बचाव के लिए व्यक्ति घरो में २हना पसंद करेगे आवश्यक कार्य के लिए घर से बाहर निकलेगे।कोई भी सिनेमा घरो में जाकर फिल्म नही देखेगा। हाँ कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद सिनेमा घरो मे नियम बदलने होगे सिनेमा घर में सभी तरह के व्यक्ति आते हैै एक सीट छोड़कर एक व्यक्ति बैठना पड़ेगा इससे उनके कारोबार पर असर पड़ेगा आर्थिक स्थिति खराब होगी इससे भविष्य मे सिनेमा घरो की स्थिति बदल जायेगी।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
हां ,, कोरोनावायरस का संकट ना तो अभी गया है और ना ही अभी इसके जाने की कोई संभावना ही  दिख रहा है ।हम सब एक लंबे समय से लाॅक डाउन के कारण अपने घरों में बंद पड़े हैं । बहुत जरूरी होने पर हीं कोई बाहर निकल रहा है ।सारे मनोरंजन के साधन बंद है । लेकिन आखिर कब तक ? ऐसा सब जान चुके हीं है कि अब इसके साथ ही हम सब को उचित निर्देशों का पालन कर आगे बढ़ना है । इसीलिए हर चीज का अब नया तरीका निकाल कर हीं हमें आगे बढ़ना है । सरकार ऐसा विचार कर रही है कि सोशल डिस्टेंस को मेंटेंन करते हुए सिनेमाघरों को फिर से आबाद किया जाए । इसी के तहत सिनेमा हाॅल की स्थिति बदलने की  व्यवस्था की जा रही है जैसे  टिकट वैगरह सब आन लाइन,खाने पीने का सामान भी आन लाइन और सीटों में भी दूरियां बनाने की तैयारियां की जा रही है ताकि दूरी एक_ दूसरे से बनी रहे । ऐसा विचार है आगे जो भी निर्णय लिया जायेगा बहुत सोच विचार कर के हीं ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में "  लॉकडाउन के बाद सिनेमा हॉल की सिटिंग प्लान में परिवर्तन निश्चिंत है । क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन जीवन के लिए अनिवार्य हो जाएंगे । यहीं सिनेमा जगत के लिए बहुत जरुरी होगा । 
                                                  - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 







Comments

  1. आदरणीय पाखी दीदी जी, सही लिखा आपने। बहुत बहुत बधाई हो दीदी जी💐💐💐💐

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