शील निगम से साक्षात्कार

शिक्षा : बी.ए. , बी.एड.
सम्प्रति : मुंबई में १५ वर्ष प्रधानाचार्या तथा दस वर्ष  हिंदी अध्यापन.
लेखन : काव्य, कहानी तथा स्क्रिप्ट

ई - पुस्तकें : -

मंद-मंद मुस्कान
काव्य बीथिका
कथा मंजरी

साझा संकलन : -

अनवरत, 
मुंबई की कवयित्रियाँ,
१४ काव्य रश्मियाँ,
प्रेमाभिव्यक्ति,
सिर्फ़ तुम,
मुम्बई के कवि.
बुजुर्ग ( ई- लघुकथा संकलन )

सम्मान : -

- जनवरी २०१४ में बाबा साहब अम्बेडकर राष्ट्रीय  पुरस्कार (देहली).
- जून २०१५ में 'हिंदी गौरव सम्मान' (लंदन).
- मार्च २०१६ में  'हम सब साथ साथ'द्वारा 'प्रतिभा सम्मान' (बीकानेर).
- नवंबर २०१७ में  सिद्धार्थ तथागत साहित्य सम्मान
- जून २०२०आखर आखर सम्मान - २०२०
- जुलाई २०२१ हिन्दी अकादमी शिक्षा रत्न सम्मान
अगस्त २०२१ ' सुभद्रा कुमारी चौहान' सम्मान
- 'नया लेखन नये दस्तखत' द्वारा लघुकथा प्रतियोगिता में बहुत सी कहानियाँ सर्वश्रेष्ठ घोषित.
- 'शीर्षक साहित्य परिषद' द्वारा आयोजित दैनिक प्रतियोगिता में कविताएँ, लघुकथाएँ तथा कहानी 'माँ' सर्वोत्कृष्ट घोषित.
- साहित्य प्रहरी समूह द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में कहानी 'ज्योति-पुंज' को प्रथम पुरस्कार.
- यश पब्लिकेशन द्वारा आयोजित 'कलम की कसौटी' कहानी प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त.
- स्टोरी मिरर द्वारा लघुकथा 'काठ की हाँडी' तथा कहानी 'ज्योति पुंज' पुरस्कृत.
- अगस्त २०११ में 'द संडे टाइम्स' के स्पेशल इश्यू में इक्कीसवीं सदी की १११ लेखिकाओं में नाम घोषित. 
- जून २०२१ में भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा वरिष्ठ लघुकथाकार सरेश शर्मा स्मृति लघुकथा रत्न सम्मान

विशेष : -

- विद्यार्थी  जीवन  में  अनेक  नाटकों, लोकनृत्यों तथा साहित्यिक प्रतियोगिताओं में  सफलतापूर्वक  प्रतिभाग एवं पुरस्कृत.
- दूरदर्शन  पर  काव्य-गोष्ठियों  में  प्रतिभाग, संचालन तथा साक्षात्कारों  का प्रसारण.
- आकाशवाणी के मुंबई केंद्र से  रेडियो तथा ज़ी टी.वी. पर कहानियों का प्रसारण. प्रसारित  कहानियाँ -'परंपरा का अंत' 'तोहफ़ा प्यार का', 'चुटकी भर सिन्दूर,' 'अंतिम विदाई', 'अनछुआ प्यार' 'सहेली', 'बीस साल बाद' 'अपराध-बोध' आदि .
- बच्चों  के लिए नृत्य- नाटिकाओं का लेखन, निर्देशन  तथा मंचन.
- कहानियों के नाट्यीकरण ,साक्षात्कार,कॉन्सर्ट्स तथा स्टेज शो के लिए  स्क्रिप्ट लेखन.
- हिंदी से अंग्रेज़ी तथा मराठी से हिंदी अनुवाद कार्य-
'टेम्स की सरगम ' हिंदी उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद.
- एक मराठी फिल्म 'स्पंदन' का हिंदी में स्क्रीनप्ले लेखन.
- अंतरराष्ट्रीय  सेमिनार में सहभागिता : विषय- पर्यटन और मनोविज्ञान ,ऑस्ट्रेलिया में हिन्दी, विश्व मैत्री और भाईचारे पर  सोशल मीडिया का प्रभाव
- आलेख प्रकाशित : एक सवाल हूँ मैं (ज्योतिर्मयी पत्रिका)
  पर्यटन और मनोविज्ञान (अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 'लेखनी')
  स्त्री पुरुष का पर्याय- शिखंडी (अंतरराष्ट्रीय पत्रिका लेखनी),  पत्रकारिता का बदलता स्वरूप: आम आदमी की नज़र में (न्यू मीडिया) , आदिवासी कला: एक झलक (आदिवासी साहित्य एवं संस्कृति)

विदेश भ्रमण : -

युनाइटेड  किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर,जर्मनी,हॉलैण्ड, फ्राँस,फ़िनलैंड तथा मालदीव्स.

पता : बी, ४०१/४०२, मधुबन अपार्टमेन्ट, फिशरीस युनीवरसिटी  रोड, सात बंगला के पास, वर्सोवा,
अंधेरी (पश्चिम), मुंबई-६१ महाराष्ट्र

प्रश्न न.1 -  लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ?
उत्तर- कथ्य महत्वपूर्ण तो और तत्व भी हैं पर कथ्य पर ही लघुकथा की संरचना टिकी होती है.
       
प्रश्न न.2 -  समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताओं ? जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ?
उत्तर -  श्रीमती कांता राय , श्री वीरेन्द्र वीर मेहता ,श्री राम देव धुरन्दर , श्री योगराज प्रभाकर , सुश्री चित्रा मुद्गल
    
प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन - कौन से मापदंड होने चाहिए ?
उत्तर-समीक्षा की दृष्टि से लधुकथा की समीक्षा के लिये जिन मुद्दों या तत्वों पर ध्यान देना चाहिये वे हैं- कथावस्तु,चरित्र,संवाद,वातावरण,शैली और संप्रेषणीयता. वातावरण और शैली को गौण मान लिया जाय तो बाकी चार महत्वपूर्ण है.परन्तु लघुकथा किसी बने-बनाये साँचे में फिट हो जाने वाली विधा नहीं है. क्षणिक घटना,  संक्षिप्त कथन तथा तीक्ष्ण प्रभाव होना जरूरी है. इन में से कोई एक भी न हो या कमजोर हो तो लघुकथा  प्रभावहीन होगी. लघुकथा बिना भूमिका के लिखी जाती है.इस में पात्र और कथा एक दूसरे के पूरक होते हैं कभी-कभी कथा में पात्र की उपस्थिति लेखकीय प्रवेश मान ली जाती है जो एक भ्रम है. "मैं" करके यदि पूरी लघुकथा लिखी जाये तो उसमें लेखकीय प्रवेश नहीं माना जाता है.नये लेखकों का भ्रम तब दूर होता है जब वे गुरुजनों से सही निर्देश लेते हैं या दोनों प्रकार की लघुकथाओं को पढ़ कर मनन करके समझने का प्रयास करते हैं.इसी प्रकार पंचलाइन के महत्व को भी नकारा नहीं जा सकता.किन्तु केवल पंचलाइन को ही पूर्ण रूप से संप्रेषणता का आधार मान लेना सही नहीं. वैसे तो बहुत सी बातें हैं जो समीक्षक को ध्यान में रखनी चाहिये.हर लघुकथा एक नये रंग-रूप व आकार ले कर जन्म लेती है तथा प्रस्तुत की जाती है.पर समीक्षक को नियमों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा करनी चाहिये.

प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन - कौन से प्लेटफार्म बहुत ही महत्वपूर्ण है ?
उत्तर - मेरी जानकारी में हैं- 'नया लेखन नये दस्तख़त' व 'लघुकथा के परिन्दे' , भारतीय लघुकथा विकास मंच

प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है ?
उत्तर - जो लेखक सीखने की अवस्था में हैं वे छोटी छोटी गलतियों से सीख कर स्वयं को  सुधारने की कोशिश करते हैं.जो नियमों का पालन करते हैं वे सही दिशा की ओर बढ़ जाते हैं.जिन्हें नियमों का कुछ अता-पता ही नहीं वे कुछ भी लिख कर लघुकथा का नाम दे देते हैं.वरिष्ठ जन पूरी तरह जानकार हैं उनके लिये लघुकथा लिखना चुुटकियों का काम है.पर आज के साहित्यिक परिवेश में वे लेखक दिगभ्रमित हैं जो नहीं जानते कि किसको लघुकथा माने किसको नहीं.उनके लिये सही दिशा निर्देशन की आवश्यकता है.

प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप सतुष्ट हैं ?
उत्तर- पूरी तरह नहीं.

प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें  किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उत्तर- मैं शिक्षा के क्षेत्र से लेखन में आई हूँ.शिक्षा के क्षेत्र में ही मार्गदर्शन कर सकती हूँ.

प्रश्न न.8 - आप के लेखन में, आपके परिवार की भूमिका क्या है ?
उत्तर- सर्वप्रथम, मेरी लेखन की गतिविधियों के चलते मेरे परिवार की दिनचर्या प्रभावित नहीं होती.हालांकि परिवार की देख-रेख उनकी आवश्यक्ताओं की पूर्ति तथा घर संभालने की पूरी जिम्मेदारी मेरी है और मैं उन सब कामों को पूर्णतया ईमानदारी से निभाती हूँ फिर भी लेखन कार्य के लिये समय निकाल लेती हूँ.परिवार का योगदान इतना है मुझे कंप्यूटर व मोबाइल पर टाइप करना,इ मेल भेजना वगैरह मेरे बच्चों ने ही सिखाया.यहाँ तक कि मेरी कुछ समस्याएँ मेरी नातिनें ही सुलझा देती हैं जैसे मोबाइल तथा प्रिंटर की मदद से प्रिंटआउट निकालना,मेरे सारे पेपर्स की फाइल बनाना,कहीं साहित्यिक कार्यक्रम में जाना हो तो अपने पर्स में अपना पॉकेट मनी डाल कर मुझे हिदायतें दे कर भेजना जैसे मैं कोई छोटी बच्ची हूँ.विशेषकर जब मैं उनके साथ विदेश में होती हूँ तो किसी साहित्यिक कार्यक्रम में मेरे दामाद जी मुझे गंतव्य तक छोड़ने-लेने जाते है कि मम्मी कहीं खो न जायें.इन सब से मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है और लिखने की प्रेरणा मिलती है.जब मेरी कोई रचना पुरस्कृत होती है तो हम सब मिलकर विशेष आयोजन करते हैं बाहर कहीं जा कर या घर पर. बच्चे मेरी उपलब्धियाँ अपने मित्रों को बताते हैं जिससे उनके मित्र मेरे भी और निकट आ जाते हैं. मेरी हर रचना मेरी बहन ( जो फ़िनलैंड में रहती है ) बड़े ध्यान से पढ कर टिप्पणी करती है. उसके पति और मेरे पति भी मुझे प्रोत्साहन देते हैं. यही नहीं मेरा बेटा मेरी रचनाओं को अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके यू टयूब पर प्रस्तुत करता है. घर परिवार की ओर से इतना प्रोत्साहन मिलने पर मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझती हूं.

प्रश्न न.9 - आप की आजीविका में , आपके लेखन की क्या स्थिति है ?
उत्तर- मैं स्वांत सुखाय लिखती हूँ.मानदेय की अपेक्षा नहीं रखती, फिर भी जब चेक मिलता है तो लिखने का उत्साह और बढ़ जाता है.

प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा ?
उत्तर- लघुकथा का भविष्य उज्जवल है पर वरिष्ठ जनों का दिशा-निर्देश  बहुत आवश्यक है. यहाँ मैं श्रीमती कांता राय के कठोर अनुशासन का उदाहरण देना चाहूँगी जिस तरह वे लघुकथा के परिन्दों को ठोक-पीट कर तैयार करती हैं वैसे भी और गुरुजनों के आगे आने की आवश्यकता है.

प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ?
उत्तर- मैंने 'नया लेखन नये दस्तखत' समूह में लघुकथा लिखना शुरू किया. 'करत करत अभ्यास के...'मैं लिखती चली गई और जब मेरी कई लघुकथाएँ पुरस्कृत हुईं तो अन्य समूहों में भी भेजने लगी.स्टोरी मिरर में मेरी लिखी लघुकथा 'काठ की हाँडी पुरस्कृत हुई तो मुझे अपार प्रसन्नता हुई.नया लेखन नये दस्तख़त में 'ब्लैक ब्यूटी',मुखौटे,मिलन, कलमकांड, नया सवेरा स्वाद अधिवेशन तथा 'शीर्षक साहित्य परिषद' द्वारा 'वात्सल्य' आदि पुरस्कृत हुई तो लघुकथा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती गई.



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