क्या दलाई लामा को भारत रत्न सम्मान दिया जाना चाहिए ?
दलाई लामा को भारत का सवोच्च सम्मान " भारत रत्न " देने की काफी दिनों से चर्चा हो रही है । क्या अब समय आ गया है कि भारत रत्न देकर विश्व शान्ति रखने वालें को सम्मानित किया जाना चाहिए । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
कहा जाता है की अतिथि देवो भावः। हमारे भारतवर्ष के संस्कृति में अतिथियों देवता के समान माना जाता है अर्थात उनके सम्मान की जाती है बौद्ध धर्म के प्रचारक धर्मगुरु दलाई लामा हमारे भारत के लिए मेहमान स्वरूप आए है उनका आना हमारे भारत के लिए सौभाग्य था धर्म गुरुओं में अपना पराया नहीं होता उनके अंदर अनन्यता का भाव होता है। वह पूरे विश्व के मानव जाति को अपना मानते हैं अतः जहां वह रहते हैं अपने आचरण के साथ सभी के हित के लिए कार्य करते हैं दलाई लामा भी हमारे मूल्क का ना होते हुए भी हमारे देश के लिए उन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में लोगों को जागृत करने का कार्य किए। जो भी व्यक्ति समाज के लिए हित का कार्य करता है वह चाहे कोई भी व्यक्ति हो किसी भी देश का हो वाह विश्वशांति बनाए रखने के लिए अपना सारा जीवन उसी में खपा देता है और लोगों के हित के लिए कार्य करता है तो ऐसे लोगों को जरूर भारत रत्न सम्मान दिया जाना चाहिए लेकिन भारत की स्थिति के अनुरूप भारत रत्न सम्मान वक्त की अनुकूलता देखा कर देना चाहिए ताकि कहीं भी इसका विरोध ना किसी के मन में गलत
भाव ,ना पहुंचे। भारत की वस्तुस्थिति को भागते हुए जरूर धर्मगुरु दलाई लामा को भारत रत्न सम्मान दिया जाना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मेरे दृष्टि में नोबेल पुरस्कार प्राप्त शांतिदूत को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत कर देना चाहिए।
85 वे जन्मदिन पर भारत सरकार का यह सर्वश्रेष्ठ उपहार होगा। साथ ही तिब्बत को पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन किया जाना चाहिए।
17 मार्च 1959 को दलाई लामा ने 24 वर्ष की आयु में भारत में शरण ली थी।
कम्युनिस्ट शासन वाले चीन की सेना सीमा पर भारत में घुसने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। चीन के विस्तार वादी नीति पर लगाम लगाना भी जरूरी है। अच्छे पड़ोसी की तरह सीमा विवाद हल करें।
तिब्बत को महामहिम दलाई लामा को सौंप देना चाहिए।
तिब्बत के निर्वाचित संसद दलाई लामा के कार्यालय ने कहा है की धर्मगुरु के जन्मदिन के अवसर पर दुनिया भर के नेताओं ने शुभकामनाएं भेजी है।
संसद में 200 सांसदों ने बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा को भारत रत्न देने की पैरवी की है।
तिब्बत मे सर्वदलीय संसदीय की फोरम ने भारत सरकार से धर्मगुरु दलाई लामा को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत करने की को अनुरोध किया है।
लेखक का विचार:- शांति के अग्रदूत दलाई लामा पिछले छः दशकों से आजादी और मानव अधिकार की बहाली के लिए निरंतर शांतिपूर्वक और अहिंसात्मक रूप से संघर्ष कर रहे हैं ।उन्हें सर्वोच्च नागरिक भारत रत्न से अलंकृत करना चाहिए।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा बौद्ध धर्म का प्रचार करते हैं धर्म गुरुओं को भारत रत्न से सम्मानित करना चाहिए, क्योंकि वह देश समाज के हित में सोचते हैं।
लेकिन अभी उचित समय नहीं है भारत रत्न देने से चीन के साथ और विवाद बढ़ जाएंगे सीमा पर अभी युद्ध की स्थिति बनी हुई है। और देश में महामारी प्रकोप है बहुत सारी समस्याएं हैं ।अभी चीन का कब्जा तिब्बत में है तो उन्हें भारत रत्न देने का उचित समय अभी नहीं है मेरा यह सोचना है कि अभी बहुत सारी समस्याओं को निपटा करने के बाद ही इस विषय में सोचना चाहिए। वैसे भी जो भगवान की आराधना में लीन रहते हैं। उन्हें तो भगवान अपना दूत बनाकर धरती पर भेजता है ।उन्हे तो खुद ही एक भगवान का आसन प्राप्त होता है। गुरु दलाई लामा को कोई सम्मान आवश्यकता नहीं ।वे भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में पूजे जाते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति में तो गुरुओं का वैसे ही सर्वोच्च स्थान हैं। धन्य है वह देश जहां पर ऐसे धर्म गुरु निवास करते हैं।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
भारत में विशेष क्षेत्रों में उपलब्धियों के परिपालन में महान विभूतियों को भारत रत्न सम्मान प्रदत्त करने की परम्परा चली आ रही हैं। कुछ सम्मान तो विषय विशेषज्ञ, सहानुभूतियों के आधार पर दिया गया हैं। कुछ ने तो लेने से इंकार किया, कुछ तो राजनीतिक दबाव वश, कुछ तो विचाराधीन हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में भारत रत्न का महत्व भविष्य में कम होता चला जायेगा और आस्था खत्म हो जायेगी। जब-जब सत्ता परिवर्तित हुई हैं, तब-तब भारत रत्न सम्मान प्रदान करने में विचारों का विकेन्द्रीकरण हुआ हैं। विश्व के राष्ट्रों में अपनी कौशलता दिखाने वाले कर्म वीरों
को "भारत रत्न सम्मान" प्रदत्त किया जाना चाहिये, वैसे भी भारत का हृदय
विशालता का हैं और अपनी पहचान बनाने में अनुकरणीय भूमिकाएं अदाएं की हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
अध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को भारत रत्न जरुर देना चाहिए ! दलाई लामा बौद्ध धर्म की तिब्बती शाखा के सर्वोच्च धर्म गुरु हैं । वे लोगों में शांति और सद्भाव का प्रचार करते हैं । दुनिया भर में उनके अनुयायी हैं ।
चीन की दमनकारी तानाशाही सरकार के सम्मुख इनका शांतिपूर्ण आंदोलन बेहद प्रशंसनीय है ।
दुनिया ने दलाईलामा के विश्व शांति में उनके योगदान को वर्षों पहले ही स्वीकार कर लिया है और उन्हें 1989 में ही नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया है।
हमने चीन की संवेदनशीलता का जरूरत से ज्यादा ख्याल रखा और दलाईलामा को भारत रत्न देने से बचते रहे । अब भी अगर हम उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करते हैं तो कहा जाएगा कि देर आयद दुरुस्त आये ...
आज से ठीक साठ साल पहले, मार्च 1959 के अंतिम सप्ताह में दलाई लामा तिब्बत से भागकर भारत पहुंचे थे। कारण था, तिब्बती विद्रोह को चीन की सेना द्वारा क्रूरतापूर्वक कुचल दिया जाना। वह अरुणाचल प्रदेश में दाखिल हुए, जो तब नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी के नाम से जाना जाता था। याक पर बैठकर जब वह यहां पहुंचे, तो पेचिश (दस्त) से गंभीर रूप से जूझ रहे थे। जिन भारतीय अधिकारियों ने उनका स्वागत किया, उनमें एक सिख (हरमंदर सिंह) थे और दूसरे, दक्षिण भारत के एक हिंदू (टीएस मूर्ति)। इस स्वागत का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ था, क्योंकि चीन में जहां कम्युनिस्टों ने अपने तमाम नागरिकों पर सिर्फ ‘हान’ संस्कृति थोपनी चाही, वहीं लोकतांत्रिक गणराज्य भारत अपनी धार्मिक और भाषायी विविधता को पेश कर रहा था।
एक ख़त लिखा था दलाई लामा ने प्रधानमंत्री को -
खत काफ़ी बड़ा था कुछ चंद बात यहाँ पेश है ..
, मैं और मेरे सरकारी अधिकारी तथा यहां के लोग तिब्बत में शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। पर चीन सरकार धीरे-धीरे तिब्बती हुकूमत को निगलती जा रही है। इस गंभीर स्थिति में हम तसोना होकर भारत में दाखिल हो रहे हैं। उम्मीद है, आप भारतीय क्षेत्र में हमारे लिए जरूरी व्यवस्था करेंगे। आपकी दयालुता पर मुझे भरोसा है।’
जवाब में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा, ‘मैं और मेरे सहयोगी आपका स्वागत करते हैं, और आपके भारत में सुरक्षित प्रवेश के लिए आपको शुभकामनाएं देते हैं। आप, आपके परिवार और आपके साथ आए तमाम लोगों की जरूरी सुख-सुविधाओं को पूरा करने में हमें खुशी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत के लोग, जो आपके प्रति बहुत श्रद्धा रखते हैं, अपना पारंपरिक सम्मान देते रहेंगे।’
ऐसा हुआ भी। छह दशकों से दलाई लामा भारत में हैं, और उन्हें यहां भरपूर स्नेह और सम्मान मिला। उनके बाद आने वाले तिब्बतियों को भी यहां अपनी जिंदगी फिर से संवारने के लिए हरसंभव मदद दी गई, जबकि यह उनकी मातृभूमि नहीं थी। दलाई लामा और उनके लोगों को दिया गया आतिथ्य एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हमारे इतिहास का प्रशंसनीय अध्याय है। दलाई लामा खुद भी इस सहायता के लिए आभारी हैं। वह जानते हैं कि उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं इसीलिए जीवित हैं, क्योंकि उन्हें भारत में नया जीवन मिला, चीन उनको न जाने कब खत्म कर चुका होता
भारत के लोगों ने दलाई लामा को प्यार और सम्मान दिया, तो बदले में उन्होंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मगर हाल की भारतीय सरकारें सार्वजनिक तौर पर उनका स्वागत करने और उन्हें सम्मानित करने में एहतियात बरतती रही हैं कि कहीं चीन नाराज न हो जाए।
पुरानी एक तस्वीर कई बार देखने में आती है जिसमें
युवा दलाई लामा बड़ी सौम्यता के साथ बुजुर्ग शास्त्रीजी को देख रहे हैं, दोनों के चेहरे पर मुस्कान है। क्या दलाई लामा की इस तरह की तस्वीर बाद के किसी प्रधानमंत्री के साथ भी है?
दलाई लामा के लिए हमारे मन में जो प्यार और सम्मान की भावना है, उसका इजहार न सिर्फ आम लोगों को, बल्कि भारत सरकार को भी करना चाहिए। पहले तो उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए, और फिर उनके भारत-आगमन के साठ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में उनके सम्मान में राष्ट्रपति को एक आधिकारिक स्वागत समारोह का आयोजन करना चाहिए। सार्वजनिक रूप से दलाई लामा को सम्मानित करना हमारा एक अच्छा रणनीतिक कदम भी होगा। हमारे वामपंथी बुद्धिजीवियों के साथ-साथ दक्षिणपंथी रुझान वाले कारोबारी बेशक चीन के साथ द्विपक्षीय रिश्ते को लेकर अत्यधिक सावधानी बरतने का आग्रह करते हैं, मगर ऐसे तुष्टिकरण का समय अब बीत चुका है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान की आतंकी कार्रवाइयों का चीन जिस तरह से समर्थन करता है, उसे देखते हुए हमें अपने तईं सख्त कदम उठाने चाहिए। हमारे नेताओं को लाल बहादुर शास्त्री की तरह व्यवहार करना चाहिए और इस महान आध्यात्मिक नेता की संगति पर गौरवान्वित महसूस करना चाहिए।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
दलाई लामा जो जन्मदिन की बधाई मोदी जी ने 2014 से देना बंद कर दी थी।मतलब जब से प्रधानमंत्री बने हैं।भारत सरकार या PMO से कही से भी कोई बधाई नहीं आयी है।
भारत रत्न क्या खाक देंगे?
और वैसे भी भारत रत्न के लिए कोई खास दावा भी नही बनता।ये बौद्ध धर्म गुरु हैं।भारत के लिए कोई विशेष योगदान मुझे तो नही दिखता।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
विस्तारवादी नीति को अपनाने वाला चीन न केवल भारत बल्कि अपनी सीमा से लगे , ताइवान , नेपाल , पाकिस्तान आदि देशों की सीमा के निकटवर्ती जगहों पर अपना आधिपत्य जमाने मे लगा है । तिब्बत भी इसी श्रेणी में आता है । जिसे चीन अपना ही हिस्सा मानता है । जबकि तिब्बत को बहुत पहले ही 13 वे दलाईलामा ने स्वतंत्रत घोषित कर दिया था । परंतु चीन को यह बात और भी बुरी लगी थी ओर उसने अपने 14 वे दलाईलामा चुनने के समय तिब्बत पर हमला बोल दिया था । जिसमे तिब्बतवासियो को हार का सामना करना पड़ा । तब दलाईलामा को लगा था कि वह चीन के जल में बुरी तरह फंस जयेंगे इसीलिए उन्होंने भारत की ओर आना बेहतर समझा । तब से आज तक दलाईलामा यदि अमेरिका जाते है अथवा भारत आते है तो चीन के पेट मे दर्द होंने लगता है । वह दलाईलामा को भारत आने से रोकने की भरपूर कोशिश करता है , चाहे वह प्रलोभन देकर हो अथवा धमकी देकर । परंतु बुद्धिहीन चीन एक बुध्दिजीवी को थोड़ी ही रोक सकता है । अतः वह हर बार विफल हो जाता है । दलाईलामा को उनके अनुयायी शिक्षक, गुरु और एक नेता के रूप में देखते है ।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार भारत मे होने के चलते अब तिब्बत वासियो की तिब्बत के स्वतंत्र होने की उम्मीद प्रबल हो गई है । तिब्बतवासियो हमेशा से भारत की सराहना करते रहे है । अब तो सांसदो तक ने भारत सरकार से ये कहा कि नोबल पुरस्कार प्राप्त दलाई लामा को भारत रत्न से नवाजा जाना चाहिए ।।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर -उत्तरप्रदेश
मानवता शांति व अहिंसा की जीवित प्रतिमान सलाखा पुरुष
को भारत रत्न दिया जाना समय की मांग है। तिब्बत का समर्थन करने वाले संगठनो ने भारत सरकार से तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा को भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं। यह मांग दलाईलामा के 85 वे जन्मदिन पर उनके चाहने वालों ने की। चीन को छोड़ दुनियाभर के सत्ता, विपक्ष और
आम लोगों ने दलाईलामा को उनके जन्मदिन पर बधाई व शुभकामनाएं दी। इससे चीन की चिंता बढ़ गई है दलाईलामा को भारतरत्न देने की मांग तब उठ रही है जब भारत के साथ सीमा पर चीन का जबरदस्त तनाव चल रहा है। धर्मशाला में आयोजित चौथे तिब्बती समर्थन समूहों के सम्मेलन में दलाईलामा को भारतरत्न देने का भारत सरकार से आग्रह किया गया। तीन दिनों तक चलनेवाले इस सम्मेलन में 100 भरत्तीय समर्थकों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर प्रतिनिधियों ने घोषणा की कि सितम्बर-अक्टूबर में भारत पर चीनी आक्रमण के पचास साल पूरे होने पर प्रदर्शन आयोजन किया जाएगा। दलाईलामा 23 वर्ष की उम्र में तिब्बत छोड़कर भारत आ गए थे। वो 61 साल से भारत मे निर्वासित जीवन जी रहे है। यह सही समय है कि दलाईलामा को भारतरत्न दिया जाना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
नहीं, मैं इस बात से सहमत नहीं कि दलाई लामा को भारत रत्न दिया जाए। क्यों दिया जाए? क्या उन्होंने भारत में कोई सेवा कार्य चलाएं?, क्या उन्होंने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों वाली भूमिका निभाई?क्या उन्होंने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में, रोजगार के क्षेत्र में विकास के लिए कोई महत्वपूर्ण उल्लेखनीय कार्य किए? दलाई लामा मात्र एक धर्मगुरु हैं जो तिब्बत से भारत में आए एक शरणार्थी के रूप में। अपने देश से भगोड़े के रूप में भागने वाला व्यक्ति,जो दूसरे देश में शरणार्थी के रूप में रह रहा है, वह भले ही कितना विद्वान,धर्मनिष्ठ, त्यागी जीवन वाला हो, किंतु उसे देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की बात करना कतई सही नहीं है। भारत रत्न आज तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस को नहीं मिला जो कि इसके वास्तविक हकदार हैं। मित्रो, मेरी बात कटु हो सकती है। हो सकता है किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे, लेकिन भारत रत्न किसी भगोड़े को देना तो दूर, देने की बात करना भी भारत रत्न का अपमान है। याद रखें देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान सिर्फ और सिर्फ उन्हें मिलना चाहिए जिन्होंने इस देश के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण त्याग किया है, या सेवा की है। वैसे तो देश में राजनीति के कारण ऐसे कई लोग इस सम्मान को ले गए जो इस के योग्य नहीं थे जनता में उनका जबरदस्त विरोध भी हुआ लेकिन राजनीतिक पहुंच और राजनेताओं की वोट बैंक की राजनीति के चलते जन-मन की भावनाओं को अहमियत नहीं दी गयी। खैर जो हुआ सो हुआ, लेकिन अब इस सम्मान के सम्मान व गरिमा का ध्यान रखना चाहिए।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
क्यों? परिचर्चा के विषय को पढ़कर सर्वप्रथम यही प्रश्न मस्तिष्क में जन्म लेता है। भारत-रत्न सम्मान हमारे देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह सम्मान कला, साहित्य, खेल, विज्ञान और सार्वजनिक सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले को दिया जाता है। यह भी सही है कि इसमें कोई लिखित प्राविधान नही है कि भारत रत्न सम्मान केवल भारतीय नागरिकों को ही दिया जाये।
इससे पूर्व भारतीय नागरिक बन चुकी मदर टेरेसा के अतिरिक्त दो गैर-भारतीय - खान अब्दुल गफ्फार खां और नेल्सन मंडेला को भी इस सम्मान से नवाजा जा चुका है।
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा भारत के मेहमान बनकर तिब्बत की स्वतन्त्रता की मांग कर रहे हैं। तिब्बत और तिब्बत के लोगों के लिए उनका समर्थन और समर्पण पूजनीय और प्रशंसनीय है परन्तु क्या दलाई लामा की समानता नेल्सन मंडेला से की जा सकती है जिन्होंने अपना सारा जीवन जेल में बिताकर संघर्ष किया? मदर टेरेसा की भारतीय नागरिकों के लिए कई गयी सेवा सर्वजन हिताय के सन्देश का परिचायक है।
भारत द्वारा दलाई लामा के साथ खड़े होकर चीन से तिब्बत की स्वतंत्रता का आह्वान करना एक सही कूटनीतिक कदम हो सकता है परन्तु दलाई लामा को भारत-रत्न सम्मान देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।
यहां यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में ऐसे नायकों की कमी नहीं है जो सही अर्थों में इस सम्मान के हकदार हैं परन्तु हम अपने नायकों को देख नहीं पाते या जान-बूझकर अनदेखा करते हैं, यह स्वयं एक प्रश्न है।
क्या हमारी आजादी की लड़ाई में अपनी सम्पूर्ण आहुति देने वाले भारत मां के वीर-पुत्रों की लम्बी सूची भारत-रत्न सम्मान की पात्र नहीं है?
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग
देहरादून - उत्तराखण्ड
नोबल पुरस्कार प्राप्त शांति दूत दलाई लामा को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत किया जाना निःसंदेह गौरव की बात होगी l
चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत तिब्बत के लोगों के साथ ज्यादतियाँ कर शांति प्रिय हिमालयी देश को हथिया लिया
है, यह दुर्भाग्य पूर्ण ही कहा जायेगा l चीन पड़ोसी देशों को हड़पने के लिए आदतन अपराधी
है l इस अपराधी को चाहिए कि बिना किसी हिंसा के सीमा -विवाद हल करते हुए तिब्बत को महामहिम दलाई लामा को सौंप देना चाहिए l अन्यथा वैश्विक स्तर पर प्रतिकार करते हुए चीन से तिब्बत को मुक्त कराने के लिए वैश्विक आह्वान होना चाहिए l
17मार्च 1959 को दलाई लामा ने 24 वर्ष की आयु में भारत में शरण ली थी l तिब्बत का समर्थन करने वाले संगठनों ने भारत सरकार से इस धर्म गुरु को भारत -रत्न दिये जाने का अनुरोध किया है l इसी तर्ज पर देश के करीब 200 सांसदों ने बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा को भारत- रत्न देने की पैरवी करते हुए अनुरोध -पत्र गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भेजा है l
शांति के अग्रदूत दलाई लामा पिछले छह दशकों से तिब्बत की आजादी और मानव अधिकारों की बहाली के लिए निरंतर शांति पूर्वक और अहिंसात्मक रूप से संघर्ष कर रहे हैं l समय और धैर्य देखिए -विश्व ने उनके शांतिप्रिय प्रयासों को सर्वोच्च विश्व सम्मान नोबल पुरस्कार देकर भी स्वीकारा है l
अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि चीन अपने विस्तारवादी मंसूबों को अंजाम देने की दिशा में हमेशा चार कदम आगे बढ़ाकर दो कदम पीछे हटने की रणनीति पर काम करता आ रहा है l ऐसे परिवेश में यदि दलाई लामा को भारत -रत्न सम्मान दिया जाता है और साथ ही साथ चीनी दूतावास के सामने वाली सड़क का नामकरण दलाई लामा के नाम पर किया जाता है तो अमेरिका सहित यूरोप के कई देश भारत के इस कदम का स्वागत करेंगे और यह चीन को नागबार गुजरेगा l चीन मनोवैज्ञानिक दवाब में भी आ जायेगा l
लेकिन मेरी दृष्टि में इस पर प्रश्न चिन्ह है क्योंकि कुछ दिन पूर्व दलाई लामा के 85वें जन्म दिन पर चीन से मिले ताजा धोके और ज़ख्म के बावजूद प्रधानमंत्री जी ने बधाई और शुभकामनायें देने तक की औपचारिकता नहीं निभाई है l फिर भी दिल में एक विश्वास का दीपक जल रहा है कि दलाई लामा को भारत -रत्न सम्मान से अवश्य ही नवाज़ा जायेगा l
चलते चलते ---
कहीं ख़बर ऐसी न आये कि नेकी बाँझ हो गई l
बदी का तो आज यहाँ काफिला हो गया है ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
यह विषय गम्भीर है और विचारणीय भी। नोबेल पुरस्कार विजेता शांति के दूत 85 वर्षीय श्री दलाई लामा विश्व-प्रसिद्ध बौद्ध गुरु हैं। हाल ही में 6 जुलाई को उनका जन्मदिन मनाया गया। तिब्बत को स्वतन्त्र कराने में उनके अहिंसात्मक संघर्ष के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे हमेशा से ही शांति प्रिय रहे हैं और सभी धर्मों का सम्मान करते हुए वे विश्व को शांति, अहिंसा, करुणा का संदेश देते रहे हैं तथा बिगड़ते पर्यावरण के प्रति अपनी चिन्ता जताते रहे हैं। वे एक साहित्यिक विद्वान् भी हैं और उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। ऐसे किसी भी महापुरुष का सम्मान करने में सम्पूर्ण मानव जाति सम्मानित होती है। विश्व के अनेक देशों ने उनके विचारों को सम्मानित करने के उद्देश्य से उन्हें सम्मानित किया। भारत में भी अनेक संगठन उन्हें भारत रत्न सम्मान से सम्मानित करने की अनुशंसा कर रहे हैं। श्री दलाई लामा को भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया जाना गांधी जी की विचारधारा का सम्मान है, अहिंसा का सम्मान है, सहिष्णुता का सम्मान है, शांतिप्रियता का सम्मान है, हर धर्म का सम्मान है, मानवता का सम्मान है। ये सम्मान व्यक्ति से ऊपर उठकर है, राजनीति से ऊपर उठकर है। अतः श्री दलाई लामा को भारत रत्न से सम्मानित कर एक उत्तम उदाहरण पेश किया जाना चाहिए।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
दलाई लामा एक बौद्ध गुरु हैं विश्व में इनका सम्मान आदर किया जाता है
भारत की वर्तमान स्थिति अभी कोरोनावायरस से संक्रमित है।
चीन सीमा पर भी युद्ध की स्थिति बनी हुई है
इसलिए मेरे विचार से अभी भारत रत्न सम्मान देने का उचित समय नहीं है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
भारत सरकार से नोबेल पुरस्कार प्राप्त शांतिदूत तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को भारत द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत करना चाहिए। यह महामना दलाई लामा के लिए उपयुक्त एवं उचित उपहार होगा ।
सोमवार को दलाई लामा 85 साल के हो गए ।
बताते चलें कि तिब्बत पर चीन द्वारा कब्जा करने के लिए सशस्त्र आक्रमण शुरू करने के लगभग एक दशक बाद 17 मार्च 1959 को दलाई लामा ने 24 वर्ष की आयु में भारत में निर्वासन के बाद शरण ली थी।
दलाई लामा को भारत रत्न दिलाने के पक्ष में 200 से अधिक सांसद भी आगे आ चुके हैं ।
शांति में अग्रदूत दलाई लामा पिछले छह दशकों से तिब्बत की आजादी और तिब्बत में मानवाधिकारों की बहाली के लिए निरंतर शांतिपूर्वक और अहिंसात्मक रूप से संघर्ष कर रहे हैं ।उन्हें शांति प्रयासों के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जा चुका है।
वह निर्वासन के बाद से भारत की शरण में मैक्लोडगंज में रह रहे हैं।
भारत सरकार को चाहिए कि ऐसे महान व्यक्ति को महान शांतिदूत को भारत रत्न से अवश्य अलंकृत करना चाहिए।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
दलाई लामा धर्मगुरु हैं। तिब्बत से भाग कर उन्होंने भारत में शरण ली। कारण था चीन। वह इनको समाप्त करना चाहता था। क्योंकि इस तिब्बत को चीन के कब्जे से आजाद करवाना चाहते थे। यहाँ के प्रवास के दौरान इन्होंने कोई भी ऐसी गतिविधियाँ नहीं दिखाईं जिससे देश को नुकसान हो। बल्कि संरक्षण में रह कर भारत में बौद्ध धर्म का विकास ही किया।
ये हमेशा से शांति के प्रचारक रहे, परन्तु चीन ने कभी इनको इनका हक नहीं दिया। इनकी मांगों को पूरा नहीं किया । लामा ने कई देशों की यात्रा की । लेकिन परिणाम जीरो रहा ।
फिर भी प्रश्न है कि शांति के लिए इन्हें नोबल पुरस्कार मिल चुका है फिर भारत रत्न क्यों दिया जाए। यह भारत के लिए किए गए कार्यों के लिए दिया जाता है । ये केवल शरण में रहते हैं, तो यहाँ के किसी सम्मान के ये अधिकारी नहीं हो जाते । सभी सम्मान के नियम होते हैं, कुछ बंदिशें होती हैं उन सब का पालन होने के बाद ही व्यक्ति सम्मान का अधिकारी होता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
दलाई लामा को भारत रत्न देने का मतलब भारत के लिए मिटने वाले जवान, सामाजिक कार्यकर्ता, और लोगो का जो देश के लिए मर मिटे ऐसे लोगो का घोर अपमान होगा। इससे ज्यादा अपमान की क्या बात हो सकती है कि हमारे देश के हजारों बलिदानी मरकर भी कोई भी रत्न की मांग नही किये। मगर दलाई लामा जैसे लोगो को भारत रत्न देने का विचार किसी उच्च स्तर की लगती है। यह गलत है और यदि रत्न ही देना है तो तिब्बत रत्न दिया जाए। भारत रत्न के लिए दलाई लामा का नाम किसी भी प्रकार से उचित नही है। मैं भारतीय होने के नाते यह व्यक्तिगत विचार है कि यह रत्न उन लोगो को मिले जो योग्य हो। क्योकि सम्मान का भी सम्मान होता है इसलिए भारत के रत्न को ही भारत रत्न मिलना चाहिए। किसी गैर भारतीय को नही।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और यह सम्मान असाधारण राष्ट्रीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल शामिल है।
बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा हिमाचल के धर्मशाला के तवांग मठ में बीते कई दशकों से रह रहे हैं और यहां से ही तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है। भारत सरकार ने उन्हें राजनीतिक संरक्षण दे रखा है।
शांति के अग्रदूत दलाई लामा पिछले छह दशकों से तिब्बत की आजादी और वहां मानवाधिकारों की बहाली के लिए निरंतर शांतिपूर्वक और अहिंसात्मक रूप से संघर्ष कर रहे हैं। तिब्बतियों के और दलाई लामा के सहयोग से चीन पर भारत सरकार भी दबाव डाल सकती है और शांतिपूर्ण तरीके से तिब्बत को आज़ादी दिलवाने के साथ-साथ अपना भी मामला सुलझा सकती है।
महामहिम धर्मगुरु दलाई लामा को शांतिपूर्ण प्रयासों के लिए विश्व का सर्वोच्च सम्मान नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। दलाई लामा शांति दूत के रूप में कार्य कर रहे हैं पर भारत के लिए कोई खास विशेष योगदान नहीं है। परंतु दो गैर भारतीय नागरिक अब्दुल गफ्फार खान और नेल्सन मंडेला को सराहनीय कार्य हेतु भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। उसी आधार पर धर्मगुरु दलाई लामा भी विश्व शांति दूत के रूप में अहिंसावादी मार्ग पर चलकर जो सराहनीय कार्य कर रहे हैं उसके लिए अगर उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाता है तो कोई अनुचित कदम नहीं होगा।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
भारत के सपूतों को भारत रत्न मिलना चाहिए। यदि दलाई लामा उपरोक्त पंक्ति में आते हैं तो उन्हें 'भारत रत्न सम्मान' अवश्य दिया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान करने की मांग भी उठी हुई है। उन्हें केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने उनकेे जन्म दिन पर शुभकामनाएं भी दी हैं। यूं भी वे महात्मा बुद्ध के संदेशवाहक हैं और महात्मा बुद्ध जी भारत भारतीय और भारतीयता का गौरव हैं। जिसके आधार पर उनके संदेशवाहक को भारत रत्न सम्मान देने में कोई हानि नहीं है।
चूंकि भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। जो भारत के उन सपूतों को मिलना चाहिए, जिन्होंने भारत के लिए अपना जीवन न्यौछावर किया हुआ हो। ताकि नागरिक हमेशा राष्ट्रहित के कार्यों में कार्यरत रहें। जिससे राष्ट्र विकसित होगा।
प्रथा तो यह भी है कि उपरोक्त सम्मान भारत के प्रथम नागरिक अर्थात भूतपूर्व राष्ट्रपति जी को दे दिया जाता है। जबकि वह पहले ही माननीय और सर्वोच्च व्यक्तित्व होते हैं। फिर भी भले ही उन्हें कोई चुनौती नहीं देता। किन्तु चुनौती देने की मंशा कई रखते हैं। उनमें से कई एक भारत रत्न सम्मान के योग्य भी होते हैं।
विचारनीय तर्क यह भी है कि यदि भारत के 130 करोड़ नागरिक भारत रत्न सम्मान की प्रतिस्पर्धा की दौड़ में भाग लें, तो सोचिए कि भारत का भविष्य कितना प्रकाशमान होगा? कितने अच्छे व सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे?
कटु सत्य यह भी है कि जब से माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी ने यह स्पष्ट कर दिया हुआ है कि कोई भी भारतीय नागरिक राष्ट्र के प्रति अपने किये सुकार्यों की योग्यताओं के आधार पर किसी भी सम्मान पर अपना अधिकार प्रकट करते हुए भारत सरकार को आग्रह कर सकता है। तबसे कई छुपे रुस्तमों को उच्च कोटि के सम्मान मिल भी चुके हैं। जिसका श्रेय निःसंदेह माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी की यथार्थवाद और परिवर्तनशील सोच के लक्ष्य को जाता है।
अतः माननीय प्रधानमंत्री जी की अद्वितीय यथार्थवाद और परिवर्तनशील श्रृंखला को बढ़ावा देने के लिए दलाई लामा को 'भारत रत्न सम्मान' दिया जाना चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है । यह असाधारण राष्ट्र सेवा के लिए दिया जाता है ।इन सेवाओं में ...कला ,साहित्य ,विज्ञान ,
सार्वजनिक सेवा और खेल शामिल हैं ।इस सम्मान की स्थापना प्रथम राष्ट्र्पति डा० श्री राजेन्द्र प्रसाद ने २ जनवरी १९५४ में की ।एक पीपल के पत्ते पर सूर्य की प्लैटिनम छवि ,देवनागरी लीपी में खुदा भारत रत्न ।
दलाईलामा को चीन ने अलगाव वादी नेता माना उनके प्रशंसको की भीड़ देख वहाँ की कम्यूनिष्ट पार्टी को खतरा दिखा ,दलाईलामा के प्रशंसक उग्र हो रहे थे ।तिब्बत में आपसी खूनी संघर्ष न हो इसलिए अपने प्रशंसको के साथ दलाईलामा ने भारत के हिमाचल प्रदेश में सरकार की अनुमति से शरण ली ।
उस समय भारत और तिब्बत की सीमा खुली थी ।आज भी हिमाचल की गलियों में चीन के खिलाफ नारे लगाये जाते हैं ।साथ वो इस विश्वास के साथ रह रहें हैं कि या तो स्वयं चीन तिब्बत को आजाद करेगा या फिर दुनिया तिब्बत की आजादी का समर्थन करेगी ।दलाईलामा बहुत सम्मानित हैं तथा शान्ति के दूत कहे जाते हैं हमारे देश में कोरोना फैलने पर उन्हों ने अपने जन्मदिन पर कोई आयोजन नहीं किया ,बहुत ही संवेदन शीलता ,लेकिन भारतरत्न के लिए मन में शंसय हेता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " भारत शान्ति प्रिय देश है । शान्ति के दूत को सम्मानित कर के भारत को विश्व में संदेश देना चाहिए कि शान्ति भारत का मूल मंत्र है । शान्ति से रहता है , शान्ति का सम्मान करता है । शान्ति से जीने की इच्छा रखता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
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