डॉ . हीरालाल नन्दा " प्रभाकर " की स्मृति में ऑनलाइन कवि सम्मेलन
डॉ हीरालाल नन्दा " प्रभाकर " की स्मृति में ऑनलाइन कवि सम्मेलन रखा गया । जिससे " सागर की लहरें " विषय पर 43 कवियों ने भाग लिया है । सभी की कविताएं एक से बढकर एक रही है । परन्तु नियम के अनुसार 11 कवियों को सम्मानित किया गया है । जो इस प्रकार हैं : -
सागर की लहरें
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सागर की लहरें देख मैं सोचती
उछल उछल कर क्या ये खोजतीं
कितनी गहराई इन की जाने कौन
किनारे से टकरा कर हो जाती मौन
पीछे छोड़ जाती कीमती मोती हीरे,जवाहरात
खुद बता देतीं लहरों के भीतर की बात
मन भी तो सागर की लहरों जैसा
मन में भरता भावों का उछाल भी वैसा
मन की गहराई भी कहाँ मापी जाती
भावों के उछाल से गमी,खुशी आती
भावों के आक्रोश से आते शब्दों के मोती
बनती फिर "सागर की लहरें " जैसी कृति
जैसे जरूरी है सागर की लहरों का उछाल
वैसे आते रहें मानस पटल पर भावों के बवाल
भावों के आक्रोश से आते शब्दों के मोती
लिखती फिर मैं "सागर की लहरें "कृति ।
- कैलाश ठाकुर
नंगल - पंजाब
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लेकर ज्वारभाटा
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सागर में लहरें उठे, मन में उठे हिलोर,
सावन आया झूम के,मचा हुआ है शोर,
भोर की लालिमा देख,मन हुआ विभोर,
लुक्का छिपी कर रहे, देख देख चितचोर।
सागर में लहरें उठी, बादल गरजे घोर,
बदली अंबर देखके, नृत्य करता मोर,
बिजली की चकाचौंध, छाई घटा घोर,
बरसे या ना बरसे, किसका चला जोर।
सागर में लहरें उठी, लेकर ज्वारभाटा,
नष्ट कर दिये तट भी, जन कहते टाटा,
भीग गया खाना भी, नहीं बचा आटा,
बिना कारण देखलो, कैसा लगा चांटा।
सागर में लहरें उठी, दे रही है संकेत,
ज्वार अगर आई तो, नहीं बचेगा खेत,
फसल तो बर्बाद हो, बच जायेगा रेत,
विनाश कगार खड़ा, अब तो आ चेत।
सागर की लहरें उठे, छोड़ा है उपहार,
उपजाऊ मिट्टी बचे, उससे करो प्यार,
मेहनत अगर कर ले, खुशी मने हजार,
उठ जाग, चल दे, मेहनत से कर प्यार।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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सागर की लहरें
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कभी शांत स्वरूप में बहती सागर की लहरें
कभी विप्लव भी हैं मचाती सागर की लहरें।
हंसने गाने रूठने मचलने का ही नाम है जिंदगी
बन अल्हड़ बह सिखाती हमें सागर की लहरें।
हों क्रुद्ध दशकों में कभी मचाती हैं तांडव
वरना तो मर्यादा हमें समझाती हैं सागर की लहरें।
बस बहते रहो जीवन में यही है हाथ में अपने
दर्शन जीवन का गंभीर सिखाती सागर की लहरें।
दिखती हैं स्थिर मंद गति से बहती हुईं
बहते बहते मगर दूर निकल जाती सागर की लहरें।
सागर क्या है मूलतः ये लहरें ही तो हैं
बड़ा भी है छोटा बताती सागर की लहरें।
कितनी नदियां थक अंत में मिल जाती सागर में
सबको प्रेम से गले लगाती सागर की लहरें।
- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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सागर की लहरें इठलाती
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सागर की लहरें इठलाती, बलखाती,
बार-बार धरा से कुछ कहने आती।
दौड़ कर नभ से भी रिश्ता निभाती।
जलधि की लहरें ,जीवन की पतंग उड़ाती।
सागर के गूढ़ रहस्यों को,
अपने में समाहित रखती वो।
धरा के सारे संताप को, सरलता से उड़ा ले जाती वो।
जीने का हमें हुनर सिखलाती,
पयोधि की लहरें, जीवन की पतंग उड़ाती।
रेत के बने अनगिनत महलों को,
क्षण में सागर में मिला देती वो।
जीवन की क्षणभंगुरता को,
सहजता से सब को समझा देती वो।
समन्वयता का पाठ पढ़ाती,
अर्णव की लहरें, जीवन की पतंग उड़ाती।
क्या तेरा है, क्या मेरा है,
प्रश्न पर मुस्कुराती वो।
छीन कर सर्वस्व धरा का,
दूसरे क्षण वापस लौटा जाती वो।
संग्रहित निधियाँ न्योछावर करती ।
नीरनिधि की लहरें ,जीवन की पतंग उड़ाती।
- रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
राँची - झारखंड
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सागर की लहरें
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कितना कुछ क्यों समेट लेती हैं,
कितना कुछ क्यों बहा ले जाती हैं
जिजीविषा की सतत परिधि में,
चट्टानों से फ़कत रोज टकराने में।
गूंजती है कुछ सन्नाटों को चीर,
लिखतीं है कुछ अनकही सी पीर।
सदियों से बनती रहीं मूक गवाह,
अब पुरोधा बन हुईं हैं सवाक।
स्वरालिका सुन लें अट्टालिका के
बहरे..........,
अवाम सी गरजती हैं सागर की
लहरें..........।।
- श्रीमती रजनी शर्मा
रायपुर - छत्तीसगढ़
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शान्त - चंचल सी सागर की लहरें
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शान्त-चंचल सी सागर की लहरें,
कल-कल करती स्वरित तरंगे,
जीवन की हमारे प्रदर्शक,
सदा बहती रहतीं निरन्तर।
शान्त-चंचल सी.......
लहरें सागर की बहती रहती,
खामोश-मौन सी अविरल,
हिलोरे लेती,मन्द-मुस्काती,
न किसी से कुछ कहती,
अपनी ही मौज में रहती,
कल-कल करती बहतीं,
शान्त-चंचल सी.......
विस्तृत क्षेत्र में फैला सागर,
ऊँची-ऊँची उठती लहरें,
कहतीं लहरें उठो जीवन में,
हार न मानो परिस्थितियों से,
सब में रहो एक-समान,
हताश कभी न हो जीवन में,
शान्त-चंचल सी.........
कहती लहरें उठो जीवन में,
कर्म करते चलो सदा,लेकिन
बिना क्षति पहुंचाए प्रकृति को,
मानव संम्भलो अभी,
नहीं मिलेगा फिर समय,
शान्त-चंचल सी सागर की लहरें,
कल-कल करतीं स्वरित तरंगें,
जीवन की हमारे पथ-प्रदर्शक,
सदा बहती रहती निरन्तर।
- डॉ०विजय लक्ष्मी
काठगोदाम - उत्तराखण्ड
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सागर की लहरें
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लहरें नाचें ता ता थैया।
शोर मचाएं डोले नैया।
रत्नाकर इनको जो देता है ,
झोली भर -भर लाती हैं।
सागर तट पर फैले मिलते,
घोंघे, शंख और सीपियां ।
लहरें नाचें ता ता थैया
शोर मचाए डोले नैया ।
ज्वार उठता जब चांद बढ़ता. है।
रूप इनका विकराल बनता है
घटता जब चांद, चुप हो जाती हैं।
सागर सीने लग करती निंदिया ।
लहरें नाचें ता ता थैया ।
शोर मचाएं डोले नैया ।
जीवन सागर में भी तो यूं
मन की कश्ती बढ़ती रहती है।
वह भी सागर सा गहरा होता है।
उठती है भावों की लहरिया।
लहरें नाचें ता ता थैया।
शोर मचाएं, डोले नैया।
- डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
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बैचेन रहती हैं
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किनारों से मिलकर शांत हो जाती हैं
सागर की वो लहरें जो बैचेन रहती हैं
सागर के आंगन जवान होकर अंगड़ाई जो लेती हैं
अपनी अटखेलियों से बेटियों सा प्यार पाती है
उम्र भर संभाल कर रखता सागर
अपनी लहरों को
हृदय स्पंदन जब होता इसके भावों में बह जाता है
वही भाव जब लहरों के हृदय प्रस्फुटित होते हैं
इक उफान सा उठता है और सागर में तूफान सा उठता है
भावों का ये खेल इसकदर
रंग लाता है
लहरों और किनारों का संगम हो
जाता है।
इक जीजिविषा पाले निर्झर
इधर उधर जो डोलती हैं
सागर से नदी और नदी से सागर में जाकर झूमती हैं
हसरतें जवान सागर की जब होती हैं
नदी सी बन जन्म लेती हैं
वही नदी जीवन के सफर को अकेले तय कर थक सी जब जाती है
अपने आपको फिर से सागर के
आगोश खो जाती है
सागर और नदी की लहरें इसी तरह कभी घर तो कभी बाहर
उफनती हैं
और अपने उफान में
सभी संग अपने बहा ले जाती हैं।
-ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
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सागर के तल पर
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जल लहरों की कलकल छलछल अपने ही अन्तर्द्वन्द को लेकर
शांत होती है वह उस पल
मिलती है जब सागर के तल पर !
पल-पल उठती और थमती
जलांधर के बोझ से दबती
हलाहल को निष्क्रिय है करती
शांत भाव लिए फिर से है उठती !
लहरे अपना काम दिखाती
सागर फिर भी कुछ न कहता
आगोश में अपने भर लेने को
हर दम बाहें फैलाए रखता !
बन ओस की बूंदे ये लहरे
सीप के मुख में जाती है
मोती बन ये लहरे
सागर से मिल जाती है
गर्भ में रत्नों को समा
रत्नाकर लहरों को
आगोश में अपने भर लेता है !
वायु संग हिलोरे लेती लहरे
रत्नाकर का आलिंगन करती
तेज गर्जना संग उछलती
सागर को रिझाती है!
निशानाथ की पूर्णता में
प्रसन्नचित हो ये लहरें
करती सागर संग अठखेलियाँ
ऊँची ऊँची ले उड़ान
मदहोश हो उछलती है!
चट्टानों से टकराकर भी लहरे
पुनः हिलोरे लेती है
संग,
समुद्र के बीच भवर में
नाविक की नैया घिर जाने पर
पुनः गिरकर उठने का पाठ
लहरे सिखला जाती है
लहरे सिखला जाती है !!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
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समुद्र की लहरें
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उदधि की विशाल काया
उन्मत्त लहरों की उच्छृंखलता
धरा पर मनोरम पटल
मनुज के हृदय का आकर्षण
उठती लहरें विशाल कनात-सी
नत-मस्तक हो पाँव चूमती
खो जाता मन अठखेलियों में
नापता सागर की पराकाष्ठा
विश्व का जीवन, उदधि का नाता
लहरों की उमंग, मेघों का आना
अनगिनत जीवन शरण पाते
विचित्र जगत का शरण दाता
चंद्रप्रभा से तरंगों का रिश्ता
उठता गिरता शोर मचाता
लहरें तट पर छोड़ जाती
हमारी बदनियति।
अब तो शर्म करो है मानव !
प्रकृति तुम से अच्छी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
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लहरों सा मेरा प्यार
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सागर की लहरों सा मेरा प्यार
कभी इज़हार कभी तकरार ।
कभी इकरार कभी इंकार
वेपनाह होता प्यार ॥
मेरे दिल की गहराई मे
लहरे उठती कभी कभी ।
साहिल से मिलने को
है तरसती कभी कभी ॥
फैला देता बाहें साहिल
मुझको पास बुला लेता ।
अपने अधरो से धर चुंबन
सीने से लगा लेता ॥
बुझती न प्यास मेरी
फिर वापस आ जाती ।
मै लहर हूं सागर मेरा
मै इसमे खो जाती ॥
- नीमा शर्मा ' हंसमुख '
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
इन के अतिरिक्त सत्येन्द्र शर्मा तरंग , शिवानी गुप्ता , नरेश सिंह नयाल , प्रज्ञा गुप्ता , गीता चौबे , डॉ. अनिल शर्मा अनिल , सुनीता रानी राठौर , डॉ. छाया शर्मा , डॉ. अलका पाण्डेय , हितेन प्रताप सिंह तड़प , रामनारायण साहू राज , कमला अग्रवाल , ममता बारोट , अंजू अग्रवाल लखनवी , गजेंद्र कुमार घोगरे , डॉ. अ कीर्तिवधन , कनक हरलालका , रश्मि लता मिश्रा , डॉ. नेहा इलाहबादी , जगदीप कौर , राजश्री गौड़ , सोनिया प्रतिभा तानी, गायत्री ठाकुर सक्षम , देवेन्द्र सिंह राजपुरोहित , डॉ. साधना तोमर , सोनिया पाण्डेय, उदय श्री. ताम्हणे , उर्मिला सिदार , रंजना हरित, रवि रश्मि अनुभूति , दिनेश चंद्र प्रसाद दीनेश आदि कवियों ने भाग लिया है । सभी कवियों का बहुत - बहुत धन्यवाद ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सभी को बहुत बहुत बधाइयाँ
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
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