क्या वामदल भारतीय सस्कृति के विरोधी हैं ?

भारत की राजनीति , जाति प्रथा पर आधारित है । कोई भी दल जाति प्रथा से अछूता नहीं है । फिर भी लोकतंत्र सफल माना जाता है । वामदल का उद्देश्य क्या है ।यही से " आज की चर्चा " शुरू होती है । भारतीय सस्कृति अपने आपमें सर्वोत्तम है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
     भारत में वामदलों की स्वतंत्रता के पूर्व से विशेष रूप से भूमिकाएं रही हैं।  वैसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना एम.एन.राय ने 26 दिसंबर, 1925 को कानपुर नगर में की थी। माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के साथ मिलकर। राजनीति के संदर्भ में "वाम" और "दक्षिण" शब्दों का प्रयोग फ्रांसीसी क्रांति के दौरान शुरु हुआ।   1928 में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल ने ही भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की कार्य प्रणाली निश्चित की, लेकिन 7 नवम्बर, 1964 में फूट पड़ी। देखने में यह आया कि वामपंथियों को गरम दल की संज्ञा दी गई हैं और नरम दल जो भारतीय संस्कृति के रक्षित थे, जो शांति पूर्वक अपनी विचारधारा को प्रस्तुत कर, अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में माहिर थे, परन्तु गरम दल जल्दी उत्तेजित हो आगजयी, हड़ताल, तालाबंदी आदि घटनाओं को अंजाम देते हुए दिखाई देते थे। इसी कारणों से  भारतीय संस्कृति में विरोधाभास उत्पन्न होने से आपसी तालमेल का अभाव नजर आ रहा हैं। भारतीय संस्कृति की पार्टी के साथ ही साथ वामदलों में नैतिकता की फूट नजर आने लगी हैं। वामपंथी की संस्कृति तथा अपनी संस्कृति में काफी कुछ परिवर्तित हैं, खानपान आदियों में विपरीत परिस्थितियों में निर्मित होने लगी हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
 वामदल भारतीय संस्कृति के विरोधी के पहले क्या है उसे समझा जाए वामदल उस विचारधारा को कहते हैं जो समाज को बदल कर अधिक आर्थिक और जाति  समानता लाना चाहते हैं इस विचारधारा में उन लोगों के लिए सहानुभूति जताई जाती है जो किसी कारणवश अन्य की तुलना में पिछड़ा हुआ है अर्थात वामपंथी दल वास्तविकता को पहचान कर मध्यस्था में जीने के लिए उनकी जो खामियां होती हैं उन खामियों की पूर्ति हेतु अपना विचार उनकी उन्नति के लिए रखते हैं ऐसे लोग वामपंथी कहलाते हैं वह भारतीय संस्कृति का विरोधी नहीं है भारतीय संस्कृति मेजो दोष पाए जाते हैं उन दोष को दूर करने का प्रयास करने वालों को वामपंथी कहा जाता है हमारे देश धर्मनिरपेक्ष राज्य है सभी को अपने धर्म अपने संप्रदाय अपना पूजा पाठ तीज त्यौहार और अन्य संस्कृति को अपनाने का पूरी आजादी है हां कहीं कहीं ऐसा भी होता है इसकी आड़ में एक दूसरे को नीचा दिखाते हुए लोग नासमझी में लड़ते हैं झगड़ते हैं ऐसी संस्कृति का क्या मतलब जो आपस में प्रेम और भाईचारा ना हो ऐसी संस्कृति का ही नकार होता है तो इसको क्या कहा जाए भारतीय संस्कृति के विरोधी कहा जाए या भारतीय संस्कृति की खामियों के सुधारक कहा जाए या अपनी अपनी सोच पर डिफरेंस करता है।  हर मानव का लक्ष्य होता है वह सुख शांति के साथ जिए अगर इस सुख शांति में कोई सहयोगी होता है तो इसे भारतीय संस्कृति की विरोध विरोधी ऐसा नहीं कहा जा सकता चाहे वह अपने देश का हो या विदेश का हो कोई भी व्यक्ति में अगर सच्चाई है और उस सच्चाई का वहां इस्तेमाल करके जो समस्या है उसको सुधारना चाहता है चाहे वह अपने देश में हो चाहे पराए देश में हो ऐसे लोगों को संस्कृति विरोधी नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनके अंदर मानव मूल्य होता है अतः वह मानव के उद्धार के लिए ही कार्य करते हैं ऐसे उदाहरण व्यक्ति को कैसे विरोधी कहा जा सकता है हां इसके आड़ में बहुत भी ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अर्थ का अनर्थ करके वाम दल का या कोई भी दल का निंदा करते हैं दल से कुछ नहीं होता है आदमी की सोच उसकी सच्चाई उसकी मौलिकता उसकी अच्छाई पर होता है मानत्व में जीने वाला व्यक्ति ही मानव को मानवता सिखाता है और मानव बनकर अपना पहचान बनाता है ऐसे कोई भी व्यक्ति हो वही व्यक्ति हमारी संस्कृति का विरोध ना करें उसका सम्मान करता है ऐसे सम्मानित व्यक्ति ही देश को आगे बढ़ाने में सहयोगी होता है और सभी के कल्याण का कामना करते हुए वह आगे बढ़ता है
     अभी जो राजनीति वर्तमान में चल रही है कोई भी राजनीति तीन उद्यान से घिरा हुआ है लाभ  , भोग,  काम इसी की वशीभूत होकर वर्तमान की राजनीति चल रही है। वर्तमान में किसी को वर्तमान में किसी को जीना नहीं आ रहा है और भविष्य में सुख पूर्वक जीने की सोचते हैं तो अजीब सा लगता है विचारणीय मुद्दा है अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि भारतीय संस्कृति के जो भी विरोधी हैं कुछ भी कहें लेकिन हमारी संस्कृति को तो हम प्रमाणित करते हैं ना अतः हमारी संस्कृति पर जो हमारी भले के लिए है उस पर हमें विश्वास करना चाहिए और हमारी संस्कृति जो हमारी आन बान शान की गौरव बनाए रखती है उस पर हमारा भरोसा होना चाहिए और उसकी सम्मान को हमें बनाए रखना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हमारे देश में साम्यवादियों ने जो कि पहले मात्र वर्ग संघर्ष की बात करते थे, जब देखा कि उन्हेँ सफलता नहीं मिल रही है तो उन्होँने अपनी रणनीति बदली और यहाँ भारतीय संस्कृति, धार्मिक और जातीय आधार पर देश को विभाजित करने व कमजोर करने की कोशिश की। इन्हें पहली सफलता एक वृहद राज्य बंगाल 1977 तथा त्रिपुरा में 1978 में मिली। वामपंथियों का प्रभाव बढ़ने लगा।  बंगाल में विशेष सफलता के फलस्वरूप इन्होंने लगभग 28 वर्ष तक राज्य किया. यह भारत का सौभाग्य है कि इन्हेँ भारतीय सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों व सामाजिक व्यवस्था में जनता के विश्वास के कारण अधिक सफलता नहीं मिली. यदि यह एक बार देश की संसद पर आधिपत्य स्थापित कर लेते तो फिर संविधान परिवर्तन करके सिर्फ एक दल का साम्यवादी व अधिनायकवादी सत्ता को सदैव स्थापित कर देते जहांँ कोई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। वामपंथी स्वयं बुद्धिजीवी होने का भ्रम पैदा करते हैं।  इस समझ ने वामपंथियों को प्रेरित किया और वे सामाजिक संवाद के साधनों, शिक्षा, साहित्य, कला, फिल्म और गीत, मीडिया पर कब्जा करने में जुट गए. शिक्षा में जैसे जे एन यू, जाधवपुर जैसे कुछ शिक्षा संस्थानों पर इनका आधिपत्य है. साहित्य में अनेक लेखक साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित लेख, पुस्तके, उपन्यास, कविताएँ लिखते हैं. हमारी फिल्मों में जब सामाजिक विषय आने लगे तब इस प्रकार की फिल्में बहुत बनती थी जिसमें गरीब होना महानता और अमीर होना एक अपराध के समान होता था. सारे गुण गरीब में व सारे अवगुण अमीर में होते थे. और यह अवगुणी सदैव एक ब्राहमण, राजपूत या वैश्य ही हुआ करता था. मंदिर का पुजारी या ब्राहमण या या तो एक खलनायक होता या हंसी का पात्र, उसकी वेष भूषा का भी मजाक बनाया जाता है। इसके लिये पोंगा पंडित शब्द का प्रयोग किया गया. 
ठाकुर एक अन्याय व अत्याचार का प्रतीक, वैश्य एक लालची सूदखोर, जमाखोर ही होगा. किसी कारखाने का मालिक मजदूरों का वेतन न देने वाला, और नायक गरीबों के हित में संघर्ष करने वाला और सारा धन मजदूरांें में बांट देने वाला ही होगा. यह समाज को और विशेषकर हिंदू को प्रताड़ित करके हिंदुओं को अपमानित व विखंडित करने का एक षडयन्त्र था। अभी कुछ वर्ष पूर्व पुणे फिल्म संस्थान में सभी कलाकार की नियुक्ति पर जो शोर वामपंथी विचारधारा के कलाकारों ने किया था उस पर आप गौर करेंगे तो आपकी समझ में आ जायेगा कि क्यों इस प्रकार की फिल्में बनती हैँ जो नक्सलियों का समर्थन व सुरक्षा बलों का विरोध करती हैं. कुछ टी वी चैनल भी वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हैं और हमारी सेना के विरुद्ध अनर्गल आरोप लगाते हैं. 
स्वतंत्र भारत के प्रथम सेनाध्यक्ष थे जनरल रोबर्ट लॉकहार्ट।  भारत की सेना को भंग करने का प्रस्ताव यह कहकर दिया था कि हमारी नीति अहिंसा की है, इसलिये हमें सेना की आवश्यकता नहीं है. पर सरदार पटेल सहित अन्य नेताओँ के विरोध के कारण ऐसा न हो सका। फिर रोबर्ट लॉकहार्ट ने जब कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण के समय जो ढील-ढाल दिखाई थी, इससे सरदार पटेल सहित अनेक नेता उनके विरुद्द थे इसलिये रोबर्ट लॉकहार्ट ने त्यागपत्र दे दिया।
शाहीन बाग के आंदोलन से वामपंथियों को अराजकता फैलाने का अवसर भी मिल रहा था। हमारे देश में वामपंथी सफल नहीं हो सकते इसलिये वह अब वह नकाब ओढे हुए हैं छिपकर भारतीय संस्कृति पर वार कर रहे हैं। 
अगर आप वर्तमान के समय की राजनीति को देखें तो यही हो रहा है. मुद्दे लगातार बदल रहे हैं, आरोप लगाओ और भाग जाओ। कभी एक ही मुद्दे पर न रहो जनता ऊब जाती है। इसलिये कभी अखलाक, कभी अवार्ड वापसी, कभी असहिष्णुता, कभी मौब लिंचिंग, कभी इवीएम, कभी राम मंदिर, कभी कश्मीर, कभी भारत तेरे टुकडे़ होंगे। कभी सुप्रीम कोर्ट पर सवाल, कभी जज पर सवाल, कभी चुनाव आयोग पर सवाल, कभी अर्थव्यवस्था, कभी जीडीपी, कभी शाहीन बाग, आजकल मजदूर और कोरोना का रोना। इनको बस रोना ही रोना है। वामपंथी बहुत बौखलाए हुए हैं और भारतीय संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को दबाना चाहते हैं। पर वामपंथी विचारधारा असफल हो चुकी है इसलिये अब वह किसी भी असंतोष को या तो अपने अर्बन नक्सलों द्वारा उत्पन्न करती है, लोगों को भ्रमित करती है, और उनके पीछे उपस्थित होकर स्वयँ के अस्तित्व को एक भ्रामक वृहद रूप देने की कोशिश करती है। लोग समझते हैं वामपंथ समानता चाहता है, पर वह अराजकता के द्वारा सत्ता प्राप्ति चाहता है और फिर तानाशाही लादना चाहता है। वामदल हमेशा ही भारतीय संस्कृति का विरोधी रहेगा। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
वामदल भारतीय संस्कृति के विरोधी हैं। यह बात बहुत हद तक सही है। उन्हें भारतीय संस्कृति से कुछ भी लेना देना नही है। वहीँ दुनियां के कई देश भारतीय संस्कृति को अपना रहे हैं। उससे प्यार करते हैं और सम्मान देते हैं।
भारतीय संस्कृति बहुआयामी है जिसमे भारत का महान इतिहास, विलक्षण, भूगोल और सिंधु घाटी की सभ्यता के समय बनी और आगे चलकर वैदिक युग मे विकसित हुई। बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और अगस्तगम के साथ फली-फूली। अपनी खुद की विरासत शामिल है। इसके साथ ही पड़ोसी देशों के रीति-रिवाज, परम्पराओं और विचारों का भी इसमें समावेश है। पिछली पांच सहस्रबदियौं के अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज, भाषाएं, प्रथाएं और परम्पराएं इसमें एक दूसरे के परस्पर संबधो के महान विविधताओं का एक आदित्य उदाहरण देती है। भारत कई धार्मिक प्रणालियों का देश है जैसे कि यहां हिन्दू धर्म, बोद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म मुस्लिम जैसे धर्मो का जनक है। इस मिश्रण से भारत में उत्पन्न हुए विभिन्न तरह धर्म और परम्पराओं ने विश्व में अलग-अलग हिस्सों को भी प्रभावित किया है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
इस बात में तो कोई शक ही नहीं,ये विरोधी ही नहीं,घोर विरोधी हैं। इसके साथ ही षड़यंत्र रच भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने से भी बाज नहीं आते। धर्म और अध्यात्म से परिपूर्ण भारतीय संस्कृति को ये न समझ सके,न समझ पाएंगे। ये तो धर्म को अफीम मानने वाली थ्योरी के समर्थक और पोषक हैं। भगवान राम और भगवान कृष्ण को काल्पनिक कहने वाले इन अधर्मी लोगों ने षड़यंत्र के तहत भारतीय शिक्षा प्रणाली में  पाठ्यक्रमों में ऐसे परिवर्तन कराएं, जिससे हमारे बालक भारतीय संस्कृति और गौरवशाली परंपरा के अध्ययन की जगह मुगलों और अंग्रेजों के गुणगान पढ़ने लगे । इन्होंने,
विधर्मी  गुंडों से मिलकर केरल जैसे राज्यों में हत्या,धर्म परिवर्तन का कुचक्र चला। इनकी देश विरोधी हरकतें, घुसपैठियों को संरक्षण देने की नीति,धर्म और उसकी मान्यताओं पर वैचारिक प्रहार,धर्म परिवर्तन कराने में सहयोग आदि कार्य
बताते हैं कि इनकी नीति वह नीयत हमेशा भारतीय संस्कृति विरोधी रही। 
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
वामदल भारतीय संस्कृति का विरोधी है क्योंकि वे ऐसे लोगो का साथ देते है जो देश के खिलाफ बोलते है और देश विरोधी भाषण देते है। देश के खिलाफ दुसरो को भड़काते है। वे ऐसे लोग है जो नक्सलवाद, आंतकवाद जैसे विधार रखते है। वे लोग भारतीय संस्कृति के साथ साथ भारत के  देशद्रोही भी है जो देश का खाते है और देश के साथ गद्दारी करते है। वामदल के लोग भारतीय सभ्यता के नही है। वे शायद पश्चिमी सभ्यता का पालन करते है।ऐसे लोगों को देशद्रोही कहने में कोई एतराज नही। दीमक रूपी वामदल को खत्म करना चाहिए।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
भारतीय संसद भारत के संस्कृति के प्रतीक है। देश की सांस्कृतिक विरासत की आवश्यकता पूरी दुनिया को है। 
भारतीय संस्कृति को लेकर सबसे ज्यादा शोर करने वाले वाम दल अपना विरासत ढो  रहे हैं।
हमारी संस्कृति कहती है की सच क्या है। उस पर निर्भर करता है, धर्म का सच अलग होगा। विज्ञान का सच अलग होगा। इसे समझने की जरूरत है।
भारतीय संस्कृति बहुआयामी है। भारत के रीति रिवाज भाषाएं प्रथाएं और परंपराएं इसके एक दूसरे के पूरक हैं। 
महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती है। 
भारत में कई धार्मिक प्रथा है ;- हिंदू,बौद्ध, ईसाई ,मुस्लिम जैसे धर्मों का जनक है।
इस सिलसिले में एक फिल्म का याद आता है उसमे दिखाया गया था  कुछ आदिवासी कलाकारो का एक समूह भारत में बतौर अतिथि कलाकार आया था उसमें कुछ लोग ओझा,गुनिया,झाड़-फूंक,और दवा- दारू से इलाज करते थे। उस समूह के एक व्यक्ति बीमार हो गया तो अस्पताल में जाकर इलाज कराया। दूसरे समूह  के सह कलाकार ने आदिवासी कलाकार से पूछा आप लोग खुद ही इलाज कर सकते थे। उनका जवाब था यह मेरा इलाका नहीं है। मेरा इलाज मेरी दुनिया में चलेगा।
लेखक का विचार:- भारतीय सांस्कृतिक विकास का ऐतिहासिक प्रक्रिया है ।हमारे पूर्वजों ने बहुत सी बातें अपने पुरखो से सीखी है।जैसे जैसे समय बीतता है उनमें नए विचार नई भावनाएं जुड़ते चले जाते हैं ।और जिसको उपयोगी नहीं समझते हैं छोड़ते  चले जाते हैं।
अभी कोरोनावायरस के युग में विवाह,मृत्यु में सोशल गैदरिंग कम किया गया है।यह समय का पुकार है। 
वामदल सिर्फ संसद में शोर करते हैं। सच्चाई यह है कि अपने-अपने निजी उत्सव में भारतीय संस्कृति को अपनाते हैं।
 मेरे विचार से वाम दल के लोग विरासत ढो रहे हैं।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
वामदल हमारे देश की संस्कृति के लिए विरोधी है।क्योंकि हमारे भारत का इतिहास पुराना रहा है यहां पर मुगलो अंग्रेजों और जिन्होंने भी राज्य किया उन्होंने हमारे देश की संस्कृति को नष्ट करना चाहा और यहां के धन को लूटा नेता भी अपना अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं किसी को देश और जनता की चिंता नहीं है वह सब अपने नोट कमाने की राजनीति कर रहे हैं और कुछ तो अपने बच्चों को नेता बनाने के लिए स्टेशन में लाने के लिए कार्य कर रहे हैं अब राजनीति तो दुष्ट व्यक्ति नेता और गुंडों की ही 3 हो गई है ।अच्छे लोग देश में आना ही नहीं चाहतेकुछ पार्टियां तो काम कुछ नहीं करती हैं बस टीवी पर न्यूज़ चैनल में आकर चिल्लाती रहती हैं । काम नहीं करते हैं बस चलाते रहते हैं मंत्री कुछ भी बोले उनको बस विरोध करना रहता है। राजनीति बहुत पूछी हो गई है।
दुष्ट व्यक्ति की जन्म स्थली राजनीति हो गई।नेताओं की बहुत कमी है आज के समाज को चाहिए कि अच्छे और ईमानदार नेता आए और नेतृत्व को संभाले।
-  प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
वामपंथी राजनीति  में उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक और जातीय समानता लाना चाहते हैं। इस विचारधारा में समाज के उन लोगों के लिए सहानुभूति जतलाई जाती है जो किसी भी कारण से अन्य लोगों की तुलना में पिछड़ गए हों या शक्तिहीन हों। राजनीति के सन्दर्भ में 'वाम' और 'दक्षिण' शब्दों का प्रयोग फ़्रान्सीसी क्रान्ति के दौरान शुरू हुआ। धर्मनिरपेक्षता चाहने वाले अक्सर बाई तरफ़ बैठते थे। आधुनिक काल में समाजवाद (सोशलिज़म) और साम्यवाद (कम्युनिजम) से सम्बंधित विचारधाराओं को बाईं राजनीति में डाला जाता है , फ्रांस की क्रांति के समय वामपंथी विचारधारा को गणतंत्र की स्थापना की विचारधारा माना जा सकता है।
मेरा मानना है की वामपंथी विचार धारा , भारतीय संस्कृति की विरोधी नहीं है , बल्कि यह तोउसमेंऔर बेहतर बनाने की कोशिश को कहाँ जा सकता है 
पर बातों से काम नहीं होता , उसके लिए मेहनत करना होता है 
है , हर दल में कुछ ग़लत लोग होते है ,बाम दल अपने आप को ग़रीबों का मसीहा बताते है ,परन्तु हाल के कुछ वर्षोमें ऐसा कोई ठोस काम नजर नहीं आया , वामदल अब तो सिकुड़ गया है , ख़त्म होने के कगार पर है , 
वामपंथी पार्टियां अप्रसांगिक होती जा रही हैं. इनकी नीतियों और कार्यक्रमों को जनता स्वीकार करना तो छोड़िये सिरे से ख़ारिज करती जा रही है
वाम नेता दूसरे किसी मुद्दे पर कोई विशेष छाप नहीं छोड़ सके. संगठन के स्तर पर भी इन्होंने  कोई जमीनी काम नहीं किया, सिवाय इसके कि फर्जी एनजीओ बनाकर सरकारी योजनाओं का पैसा कांग्रेस के सहयोग से भरपूर लूटा और हर तरह की मौज-मस्ती करने में अपना समय और लूट के धन का अपव्यय किया.
केरल में वाम दलों का एक अलग चेहरा भी देश देख रहा है. वहां पर इनकी सरकारों के संरक्षण में गुंड़े बीते दशकों से भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतरवा रही हैं. अभी तक सैकड़ों कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं. लेकिन बेशर्म  सरकारें खूनियों को बचाती रही हैं. सारा देश केरल में खेले जा रहे इस खूनी खेल को देख रहा है. निस्संदेह इन तमाम कारणों के चलते ही देश का मतदाता वाम दलों की चुनावों में भरपूर दुर्दशा कर रहा है.
निति सही क्या करेगी काम भी सही होने चाहिए , जो वामपंथी राह भटक गये है 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
यदि भारत के वामदलों का इतिहास और कृत्य देखे जायें तो यही वामदल रंग दे बसंती चोला, भारत माता की जय, वंदे मातरम  आदि भी बोलते थे पर आज इन से दूर दिखाई देते हैं। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ( जिन्हें जनेऊधारी भी कहते थे ) साथ मिल कर अंग्रेजों से लड़ रहे थे। भगत सिंह का झुकाव  वाम को ओर थे। इन्हें भारत और भारतीयता प्यारी थी।
       वोट को राजनीति ने वोट बैंक बनाये। प्रतिक्रिया में बहुसंख्यक भी सक्रिय हुए। उन्होंने संस्कृति का ज्यादा हल्ला मचाया। पुनः प्रतिक्रिया और प्रतिक्रिया के विरुद्ध फिर प्रतिक्रिया का दौर शुरू हुआ। यह वैचारिक संघर्ष में बदल गया। राजनैतिक उद्देश्यों से लामबंदी प्रारंभ हुई। दो पाटों के बीच भारतीय संस्कृति पिसने लगी। वकालत और उसका विरोध कड़वाहट के स्तर पर पहुँच गया। बाल की खाल निकालने के स्तर पर राष्ट्रहित हाशिये पर जाता दिखाई देने लगा।
       यदि वामपंथियों ने भारतीय संस्कृति को किस रूप में मानेंगे... यह कहा होता तो संभवतः वे संस्कृति विरोधी दिखाई न देते। रुस, चीन आदि ने कुछ हद तक अपनी भाष और तौर-तरीकों को बनाये रखा, पर हमारे वामपंथियों ने यह भी नहीं सीखा। ये आज उनकी गुलामी करते प्रतीत होते हैं। मीडिया, शिक्षा और लेखन के माध्यम से भारतीय संस्कृति के बुरे पक्षों पर तो प्रकाश डाला मगर इसके उज्जवल पक्षों का नाम लेने से भी परहेज किया।
       आज वर्तमान में हिंदुत्व, मोदी, भारतीयता...सभी इनके विषाक्त बाणों के निशाने पर रहते हैं। इस परिस्थिति में ये भारतीय संस्कृति के विरोधी ही प्रतीत हो रहे हैं। आजकल तो ये या इनके प्रवक्ता राष्ट्र विरोधी जेहाद तक का पक्ष लेते देखे जा सकते हैं।
          पर जमें समझना होगा साम्यवाद या वामपंथ किसी भी संस्कृति का विरोध नहीं करता। उसका उद्देश्य तो विशेषकर आर्थिक शोषण का अंत करना था। संभवतः यह तथ्य वामपंथी भी कुछ समय बाद समझ जायेंगे।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
 हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश है जहां हर धर्म, हर विचार, हर दल के लोग अपना स्वतंत्र विचार रखने के हकदार हैं। मेरा मानना है कि सभी दल में कुछ सामाजिक हित और संस्कृति से जुड़े रखने के बहुमूल्य विचार समाहित होते हैं।
  हमें अपने विरोधियों से भी कुछ अच्छे विचार हासिल हो जाते हैं यही हमारी संस्कृति सिखाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम जी ने रावण के मरने के पहले लक्ष्मण जी को उनके पास ज्ञान अर्जित करने हेतु भेजा था। हम भी श्रीराम के अनुयायी हैं।
   जहां तक मैं वामदल के विचारों के बारे में जान सकी हूं वे सामाजिक समानता, मानवता, धर्म निरपेक्षता आदि की बात करते हैं। वे परिवर्तन में विश्वास रखते हुए सर्वहारा समाज, साम्यवादी राज्य की स्थापना चाहते हैं। वे दक्षिणपंथी विचारधारा के विरोधी हैं। उनके अनुसार पूंजीपतियों और मेहनतकश वर्ग का समान हक हो, श्रम की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ हो, वर्ग विहीन समाज हो। पूंजीपति वर्ग इनके विचारों से सहमत न होने के कारण इनको अपना विरोधी मानता है।
   आज हमारी संस्कृति पर कोई उंगली उठाता है तो हमें भी अपनी खामियों पर ध्यान देकर उसे दूर करने की आवश्यकता है।
  हमारे विचार से वामदल भारतीय संस्कृति के विरोधी नहीं हैं। जिस तरह प्रभु राम सर्वहारा वर्ग को साथ लेकर युद्ध में विजय प्राप्त किए उसी तरह हमें जन-जन को सम्मान और प्रतिष्ठा देते हुए सबको साथ लेते हुए अपनी संस्कृति को ऊंचाई पर पहुंचाना है। हमारी भारतीय संस्कृति प्राचीन और महान है। सभी को समेट कर समय के साथ अमूल-चूल परिवर्तन के साथ खुद को विश्व पटल पर महान साबित करना है।
                      - सुनीता रानी राठौर 
                       ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
विषय राष्ट्रीय के साथ-साथ राजनैतिक भी है यह एक ऐसी पार्टी है जिनका मुख्य उद्देश्य रहा पिछड़ी जातियों निचले वर्ग जो आर्थिक समाजिक शैक्षणिक तौर पर पिछड़े हुए हैं उन्हें ऊपर उठाना।
वामपंथी का गठन का उद्देश्य उत्तम था लेकिन लोलुपता के कारण उद्देश्य से अलग हटकर इनकी कार्यप्रणाली शुरू हो गए वह भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विरोध में एक दुश्मन के रूप में उभरने लगे
इनकी बहुतायत संख्या पश्चिम बंगाल केरल और आसाम में देखने को मिलता है समाजवाद और साम्यवाद दोनों को मिलाते हुए यह वामपंथी लोग अपनी विचारधारा को जनता के सामने प्रस्तुत किए विचारधारा के तौर पर सराहनीय है पर कर्म के आधार पर जब निरूपण किया जाता है तो यह स्पष्ट होने लगता है कि भारतीय सभ्यता की मान मर्यादा का उन्हें ख्याल नहीं है
सिद्धांत और कर्म में व्यवहार में बहुत भिन्नता देखी गई इसका मुख्य कारण है जब कोई विचारधारा लेकर कोई पार्टी का निर्माण किया जाता है तो उसमें भिन्न-भिन्न प्रकृति वाले लोग शामिल होते हैं और धीरे-धीरे जो है यह उद्देश्य कौन होता चला जाता है और मुख्य मुद्दा रहता है कि पार्टी में मत दान के समय जीत हो अपनी पार्टी की संख्या बढ़ाने के लिए जीत की संख्या बढ़ाने के लिए सब सिद्धांत इनके पन्नों पर लिखे रह जाते हैं यही कारण है कि वामपंथी व्यवहारिक तौर पर भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विरोधी माने जाते हैं पर सिद्धांत तौर पर जो मुद्दा लेकर दल का गठन किया था वह सराहनीय है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिल्कुल सही! वामदल सदा से ही भारत और भरतीय संस्कृति के दुश्मन रहे हैं । इन दलों की भारत के आजाद होने के बाद से ही भारत को वाम राष्ट्र बनाने की कोशिश रही । किन्तू भारत की जनता ने इन वाम दलों को आईना दिखा दिया और आज ये दल केवल पश्चिमी बंगाल और केरल में सिमट चुके है और वहां भी अन्तिम सांसें ले रहे हैं ।
    यही वामदल हमारी भरतीय संस्कृति के दुश्मन भी हैं और समय समय पर षड्यंत्र रचते रह्ते हैं । किन्तु ये भूल गये है कि जिस ने भी भरतीय संस्कृति को मिटाने की चेष्टा की वे खुद मिट गये किन्तू भरतीय संस्कृति ऐसे षडयंत्रों के बाद और निखर कर फली फूली ।।
    - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
वाम दल भारतीय संस्कृति के विरोधी रहे हैं इसका प्रमाण है भारत में अपने अस्तित्व को बनाए रखने में असफल रहना । भारतीय संस्कृति का विरोध भारतीय राजनीति में कभी भी सफल नहीं होने दे सकता है । विश्लेषकों को विविधता में एकता के दर्शन करने हों तो भारत दर्शन करना चाहिए यही कारण है जो दूसरे देशों से भारत भ्रमण करने आया वह भारत का होकर रह गया और यदि वापस गया तो उसका मन भारत का हो गया अपने लेखन में उसने भारत की सुंदर संस्कृति का वर्णन अपने शब्दों में सदैव किया । वाम दल कम्युनिस्ट विचारधारा से सम्बंध रखता है जो धर्म जाति और ईश्वर आत्मावाद को महत्व नहीं देता है और यही कारण है कि धर्म से सराबोर संस्कृति का धनी देश कभी वाम दल का प्रिय नहीं हो सकता हाल ही में एक बड़ा उदाहरण है त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने कहा कि कम्युनिस्टों ने कैडर की बजाय गुंडों का ऐसा समूह बनाया है जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने की कोशिश में लगा हुआ है जिन्होंने भारत ही नही पूरी दुनिया को ‘लाल’ बनाने की असफल कोशिश की है । वाम दल वही है जो भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर सवाल उठाता है जो हज़ारों बरसों से इतिहास का हिस्सा रहे हैं जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं ऐसे में यही कहा जा सकता है कि वाम दल भारतीय संस्कृति के विरोधी हैं ।
वाम आंदोलन संस्कृति को तहस-नहस करने का एजेंडा लेकर 1925 में शुरू हुआ था। वे रूसी क्रांति से प्रेरित होकर भारत में सर्वहारा क्रांति लाना चाहते थे। भारतीय संस्कृति वाम अभियान में बाधक थी। उन्होंने सांस्कृतिक प्रतीकों को निशाना बनाया। भारत के पास दुनिया का प्राचीनतम ज्ञान ऋग्वेद था। इसके रचनाकार आर्य थे। कम्युनिस्टों ने आर्यों को लुटेरा और हमलावर बताया। वैदिक संस्कृति और समाज को असभ्य सिद्ध करने के प्रयास किए। वे वैदिक संस्कृति से टकराकर औंधे मुंह गिरे। उन्होंने श्रीराम को निशाना बनाया। उन्हें काव्य कल्पना बताया। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की राष्ट्रीय अभिलाषा का परिहास किया। कुछेक ने तो श्रीराम और सीता को भाई-बहन बताया। वे विशाल हिंदू मन की थाह लेने में असफल रहे।संस्कृति विरोधी वाम विचार का वायरस निष्प्रभावी है। जैसे नेपाल और भारत एक सांस्कृतिक इकाई हैं वैसे ही दोनों देशों के वामदल भी एक जैसी संस्कृति विरोधी धारणा से लैस हैं। नेपाल की जनता प्रबुद्ध है। वह भारत से आत्मीयता चाहती है। इसी कारण नेपाल में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं । वाम दल की भारतीय संस्कृति विरोधी मानसिकता ने वाम अस्तित्व को धीरे-धीरे भारत में अंतिम पड़ाव के रास्ते पर ला दिया है ये संस्कृति विरोधी मानसिकता का परिणाम भी है और उदाहरण भी ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
      दल तो दल-दल हो चुके हैं। राजनीति अराजकता फैला रही है। सरकारी तंत्र सरकार से शक्तिशाली हो चुका है। जो भारतीय संस्कृति के ही नहीं बल्कि राष्ट्रहित में भी विचारणीय है।
      उल्लेखनीय है कि भारतीय राजनीति में चरित्र लुप्त हो चुका है। कुर्सी की दौड़ में राष्ट्र पीछे छूट रहा है।जिसकी चिंता किसी को नहीं है। यह तक भूल चुके हैं कि राष्ट्र सर्वोपरि है।
      विवशता देखो बुद्धिमत्ता मतदाताओं की संख्या से की जा रही है। जिसके कारण झूठ का बोलबाला और सच का मूंह काला हो रहा। जबकि भारतीय संस्कृति सच का बोलबाला और झूठ का मूंह काला की पक्षधर हैं?
      आज समय की मांग है कि चिंतक चिंतन करें और राष्ट्रीय दल चाहे वामपंथी हों या दक्षिणपंथी राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने पर बल दें। चूंकि राष्ट्र सर्वोपरि है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर


" मेरी दृष्टि में "  वामदल  अपने आप में सत्ता पर कब्जा करने का एक हथियार से अधिक कुछ नहीं है । चाहें वह रास्ता सही है या गलत । सिर्फ सत्ता हासिल होनी चाहिए । इस से अधिक कुछ नहीं हैं ।
                                                       - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 


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