बोलती चिड़िया ( काव्य संंकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी
जनकवि टेकचन्द गुलाटी की स्मृति में ऑनलाइन कवि सम्मेलन में आई रचनाओं का ई - संंकलन को तैयार किया गया है । इस संंकलन में सभी कवियों को स्थान दिया गया है । क्योंकि रचनाएं एक से बढकर एक है । पांचवीं कक्षा का कवि भी इसमें शामिल है । अधिकतर कवियों की राय रही कि रचनाओं को यादगार बनया जाना चाहिए । इसलिए संंकलन तैयार करना आवश्यक हो गया । बाकी तो पाठकों पर छोड़ देना चाहिए । सभी से अनुरोध है कि अपनी राय ब्लॉग पर अवश्य दे । ताकि हमें भी इस प्रयोग का परिणाम पता चल सकें ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्पादक
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क्रमांक - 01
बोलती चिड़ियाँ
**********
बोलती बहुत थी पहले जो चिड़ियाँ
आज कहाँ है रौनक वो
बढ़िया ।
ची ची ची ची खिड़की में
चिड़ियाँ
आवाज मधुर थी उसकी
बढ़िया ।
जब से बदली जीवन शैली
बदली दुनियां
तब से यहाँ दिखी नहीं वो
बोलती चिड़ियाँ ।
अपने अपने में ही गुम है ये
सारी दुनिया
तब से सबसे दूर हुई वो
बोलती चिड़ियाँ ।
जब तक नहीं बदलेगी
दुनियां
तब तक नहीं दिखेगी वो
बोलती चिड़ियाँ ।
प्रयास सभी के करने से बदले
ये दुनिया
फिर वापस लौट आए वो
बोलती चिड़ियाँ ।
उसके बोलने से सवरती ये
सारी दुनिया
ची ची ची ची आवाज़ करती
बोलती चिड़ियाँ।
- ममता बारोट
गांधीनगर - गुजरात
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क्रमांक - 02
फुर फुरैया
*******
जा !
जाकर !
उसके मुंडेर पर बैठ जाना
जो बीता है साथ मेरे रातभर
तू उनको सुना देना,
पर सुनो!
वो सोई होंगी!
शायद रात को देर से
तो जरा इंतजार करना
देख फ़ुरैया तू उन्हें
कच्ची नींद से ना जगा देना,
चिलमन!
खुलेगा तो!
दीदार तुम ही पहला करना
मेरे होने का अहसास
उन तक अपनी सुरीली
चह चहाहट से पहुंचा देना,
ठहराना!
वहीं पर!
उनको उगता सूरज
देखना पसंद बहुत है
तुम्हें भी तो वही बेला
खूब लुभाती है,
पर देखो!
तुम अपना!
आपा जरा भी ना खोना
धीरे से उनके
खुले बालों के भीतर
छिपे कानों तक पहुंचना
तब मेरा संदेशा भी
तुम उनको सुना देना,
तुम्हारा तो!
संसार ही!
देखो कितना फैला है
बन्धन कोई नहीं तुम पर
हर साल पर ही
तुम्हारा अपना बसेरा है,
अच्छा सुनो!
जरा हमें भी तो!
तुम कभी बताओ ना
कैसा होता है तुम्हारा
सफर उड़ान का
यह बतलाओ ना
तुम तिनका एक एक लेकर
घरौंदा अपना बनाती हो
पर कहीं ऐसा तो नहीं
कि तुम हर तिनके से
बातें अपनी करती हो,
इतना ही तो!
मेरा उस से कहना था
वो फिर से फुर्र हो गई
दूर पेड़ पर जाकर
खलिहानों का रुख कर गई
अब देखता है
आसमान भी उसे गौर से
वो लौट आती है धरा पर
कुछ देर उसे लजाकर,
वो फिर फुर्र हो जाती है
हमें एक आश सी
फिर से अपने लौटने का देकर
वो बोलती है कहानियां सारी
हम सभी की दास्तां सुनकर।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 03
क्यों मैं तेरे आंगन आऊं
***************
मैं गौरैया नन्ही प्यारी,
सबसे मेरा प्रेम से नाता
मानव तुम बन गए स्वार्थी
साथ न मेरा तुमको भाता
आंगन से पेड़ कटवाया,
बोलो कहां मैं नीड़ बनाऊं
क्यों मैं तेरे आंगन आऊं?
जब छत पर छज्जे के नीचे,
मैंने अपना नीड़ बनाया
तुम झुंझलाए थे बच्चों पर,
डंडा मारा नीड़ गिराया
फूटे मेरे अंडे सारे
किसको अपना दर्द सुनाऊं
क्यों मैं तेरे आंगन आऊं?
धन के लालच में छत पर
मोबाइल टावर लगवाएं
विकिरण होता इनका इतना
मेरे प्राणों पर बन आए
बस्ती सारी लगती दुश्मन
कैसे अपनी जान बचाऊं
क्यों मैं तेरे आंगन आऊं?
कीटनाशकों के प्रयोग से
पानी हवा बने जहरीले
इनको कैसे सहन करें हम
इनसे बचकर कैसे जी ले
इस कारण ही लुप्त हो रही
और भला क्या तुम्हें बताऊं
कर्मों मैं तेरे आंगन आऊं?
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 04
बोलती चिड़िया
***********
अमुआ की डाल पर बैठी चिड़िया।
मधुर संगीत सुनाती है।
सुबह सवेरे संदेशा चिड़िया।
रोज हमको दे जाती है।
अमुआ की डाल........
तिनका तिनका जोड़कर
चिड़िया।
सुंदर घोंसला बनाती है।
हमको प्रेरणा दे ,चिड़िया।
श्रम का भाव जगाती है।
अमुआ की डाल........
सुबह शाम मेहनत करती।
दाना चुग -चुग खिलाती है।
जिम्मेदारी का भाव पढ़ाकर।
संदेशा हमें दे जाती है।
अमुआ की डाल ...........
आसमान की बोलती चिड़िया।
मधुर गीत सुनाती है।
अपना पराया छोड़ो रे मानव।
ममता भाव जगाती है।
अमुआ की डाल..........
बैर भाव त्याग कर मानव।
प्रेम का भाव जगाओ रे।
प्रेम ही जीने का आधार ।
तुम सुपथ मार्ग अपनाओ रे।
अमुआ की डाल.........
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 05
बोलती चिड़िया
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उड़-उड़ आँगन में आती।
दाने सारे चुग-चुग जाती।
लड़-झगड़ कर शोर मचाती
दानों के लिए होड़ लग जाती।
नन्हें-नन्हें चूजे झांकते नीड़ से
आई देखो रिमझिम बूंदें
भींगी-भींगी चिड़िया
आँगन में इधर-उधर कूदे।
स्वतंत्र जीवन जीना है
तो आसमान को छू लो
कहती चिड़िया आओ
सावन की मस्ती से
तन-मन भिगो लो।
स्वच्छ होगी धरती
स्वच्छ मानव मन।
आनन्द भर जीवन
मत बांधो बंधन।
- संगीता गोविल
पटना -बिहार
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क्रमांक - 06
बोलती चिडिया
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मेरे घर के आँगन में चहकती व फुदकती
गौरैया हो गयी है खामोश ।
उजड़ गया उसका घोसला बिखर गया
परिवार कौन कहाँ कुछ नहीं पता ।
जब से गाँव शहर की तरह
कंकरीट के जंगल हो गये ।
नहीं कूकती अब आम के पेड़ पर कोयल
न अब झूले ही पड़ते गाँव में ,
कच्चे मकानो में थोडा़ हक़ मेरा भी था ।
मुझे व मेरै बच्चों को लोग देते थे कभी,
दाना तो कभी दूध में सनी रोटी भी ,
मगर अब किसी को भी इजाज़त नही
बोलने की ।
चाहे वह इन्सान , पशु , पक्षी या कोई और ,
अगर जीना चाहते हो तो बन जाओ मूक दर्शक ,
देखते रहो समय का चक्र मर चुकी हैं ।
संवेदनाएँ, खत्म हो गये एहसास ,
फिर भी चाहती हूँ जीना ,
अपनो के लौटने का इन्तजा़र जो है ।
इसलिए अब यह जीती जागती ,
बोलती चिडिया शिकारियों के डर से
खामोश हो गयी कभी न बोलने के लिए
चहचहाती , फुदकती बोलती गौरैया
मेरी बोलती चिडि़या ।
गौरैया हो गयी है खामोश ।
उजड़ गया उसका घोसला बिखर गया
परिवार कौन कहाँ कुछ नहीं पता ।
जब से गाँव शहर की तरह
कंकरीट के जंगल हो गये ।
नहीं कूकती अब आम के पेड़ पर कोयल
न अब झूले ही पड़ते गाँव में ,
कच्चे मकानो में थोडा़ हक़ मेरा भी था ।
मुझे व मेरै बच्चों को लोग देते थे कभी,
दाना तो कभी दूध में सनी रोटी भी ,
मगर अब किसी को भी इजाज़त नही
बोलने की ।
चाहे वह इन्सान , पशु , पक्षी या कोई और ,
अगर जीना चाहते हो तो बन जाओ मूक दर्शक ,
देखते रहो समय का चक्र मर चुकी हैं ।
संवेदनाएँ, खत्म हो गये एहसास ,
फिर भी चाहती हूँ जीना ,
अपनो के लौटने का इन्तजा़र जो है ।
इसलिए अब यह जीती जागती ,
बोलती चिडिया शिकारियों के डर से
खामोश हो गयी कभी न बोलने के लिए
चहचहाती , फुदकती बोलती गौरैया
मेरी बोलती चिडि़या ।
- डॉ. नेहा इलाहबादी
दिल्ली
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क्रमांक -07
बोलती चिडिय़ा
**************
चीं-चीं कर बोल रही,
जग के भेद खोल रही,
उल्टे सीधे होते काम,
व्यर्थ में गरीब बदनाम।
भ्रष्टाचार और पाप बढ़े,
अधर्म की लगी दुकान,
अहिंसा,अत्याचार होते,
करके बंद निज मकान।
चोर-चोर चिल्ला रहे है,
करो इशारा वो ही चोर,
चोरी के इस चक्कर में
बदनाम हुआ वन मोर।
घोटालों का देश भारत,
ऋण लेकर छुपों विदेश,
हिसाब लगा कर देखो
कितने ईमानदार हैं शेष।
कोई दोनों हाथ लुटता,
पी रहे गरीब का खून,
कोई मुर्ग मुसल्लम खाये,
कोई बेचारा तरसे चून।
चोर, डकैत, कितने सारे,
बदल रहे हैं प्रतिदिन भेष,
जवानी का जुनून चढ़ा है,
कर रहे अपने काले केश।
चीं चीं भूखी प्यासी फिरती,
मिलता न कहीं दाना पानी,
अधर्मी और पापी बढ़ गये,
कहती छोटी चिडिय़ा रानी।।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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क्रमांक -07
बोलती चिडिय़ा
**************
चीं-चीं कर बोल रही,
जग के भेद खोल रही,
उल्टे सीधे होते काम,
व्यर्थ में गरीब बदनाम।
भ्रष्टाचार और पाप बढ़े,
अधर्म की लगी दुकान,
अहिंसा,अत्याचार होते,
करके बंद निज मकान।
चोर-चोर चिल्ला रहे है,
करो इशारा वो ही चोर,
चोरी के इस चक्कर में
बदनाम हुआ वन मोर।
घोटालों का देश भारत,
ऋण लेकर छुपों विदेश,
हिसाब लगा कर देखो
कितने ईमानदार हैं शेष।
कोई दोनों हाथ लुटता,
पी रहे गरीब का खून,
कोई मुर्ग मुसल्लम खाये,
कोई बेचारा तरसे चून।
चोर, डकैत, कितने सारे,
बदल रहे हैं प्रतिदिन भेष,
जवानी का जुनून चढ़ा है,
कर रहे अपने काले केश।
चीं चीं भूखी प्यासी फिरती,
मिलता न कहीं दाना पानी,
अधर्मी और पापी बढ़ गये,
कहती छोटी चिडिय़ा रानी।।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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क्रमांक - 08
बोलती चिड़ियाँ
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भोर भई , रविरश्मियों ने उजाला किया !
चिड़िया चहचहाने लगी , ची ची कर सबको जगाया
चंचल बड़ी फुर्तीली है ,
फुदक फुदक डाली डाली डोले !
भूख लगे तो मेरी खिड़की में आ मुझे पुकारे
हाथो से मेरे खाती खाना और फूर्र हो जाती !!
हरदम ख़ुश रहती , बच्चों को बहुत लुभाती !!
सुंदर सुंदर पंख निराले
आँखों है काली कजरारी !
चोंच से करती हर काम
कभी न रहती है उदास
चीं -चीं चूँ -चूँ गाकर हमें हंसाती है ।
पंखफैलाकर ख़ुशी दिखाती है !!छोटी सी प्यारी चिड़िया ज्ञान बहुत देती है ।
समय पर उठना , समय पर सोना पाठ पढ़ाती है !!
सुबह सुबह आकर मुझे जगाती
दिन भर की सारी बातें बतलाती !!
चिड़ियाँ बोलती है , मन की बाते
कह हंसती और हंसाती है !!
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 09
बोलती चिड़िया
************
अपने परों को खोलती चीं-चीं बोलती चिड़िया।
खुले आसमान में निर्विघ्न डोलती चिड़िया।।
फुदकती चहकती मिलती मुझसे,
अरुण बेला में घर के उपवन में,
स्वप्निल आंखों में लिये जीवन्त चाहतें,
ढूंढे निर्मल दाना-पानी आंगन में,
सुहानी सुबह में शुद्ध हवा ढूंढती चिड़िया।
शिकायतें प्रदूषण की बोलती चिड़िया।।
भरी हुई नव उर्जा से चुगती दाना-दाना,
देता उत्साह उसका तिनका-तिनका लाना,
उद्यमता उसकी सन्देश यही दे जाती,
हो जाये कुछ भी ऐ मानव! नहीं घबराना,
कर्मठता से घरौंदा बनाती चिड़िया।
कहानी अपने संघर्ष की बोलती चिड़िया।।
मोहित हुआ एक दिन चिड़िया पर मन मेरा,
पास सदा रखने को बनाया पिंजरे का घेरा,
आकर बैठी लेने दाना पिंजरे के अन्दर,
देख बंधन में खुद को आंखों से बहा समुन्दर,
चीं-चीं करती कातरता से बिलखती चिड़िया।
कुटिलता से मेरी आहत व्यथा बोलती चिड़िया।।
भाषा उसकी समझ में मेरी कुछ ना आये,
मार्मिकता ने फिर भी अर्थ सब समझाये,
परतन्त्रता का दर्द हृदय को द्रवित कर गया,
खोल द्वार पिंजरे का पाप से मैं बच गया,
पर आंगन है सूना तबसे ना आयी चिड़िया।
कुत्सितता से मेरी पल में हुई परायी चिड़िया।।
ऊंचे आसमान से मुझे आवाज देती है चिड़िया,
टूटा विश्वास कभी पास नहीं आती है चिड़िया,
कभी सूना आंगन कभी खुद के कर्म देखता हूं,
मानव होकर मैं क्यों नहीं मानव-धर्म देखता हूं,
निष्ठुरता का मेरी अहसास कराती चिड़िया।
गुजरती ना पास से ना मुझसे बोलती चिड़िया।।
अपने परों को खोलती चीं-चीं बोलती चिड़िया।
खुले आसमान में निर्विघ्न डोलती चिड़िया।।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
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क्रमांक - 10
चिड़िया बोली
**********
बालकनी में एक चिड़िया देखा,
अरे, यह तो है अपनी प्यारी गौरैया ।
मैंने पूछा,
दिखती नहीं आजकल तुम,
कहाँ चली गई हो तुम?
गौरैया बोली,
मैं तो तुम्हारे पास थी,
तुमने ही मुझे दूर किया है।
तुम्हारे घरों में ,
तिनका तिनका जोड़ कर ,
अपना घर बनाती थी।
रोशनदानों को घरों से हटाकर,
तुमने ही तो मेरा आशियाना गुजारा है।
छतों पर ,आँगन में,
कपड़े ,अनाज सूखते थे तुम्हारे,
अचार पापड़ तिलौड़ी से,
आँगन सजते थे तुम्हारे।
गायब हो गए आंगन सारे,
घरों से बालकनी निकाल रखा है।
बालकनी में भी शीशे परदे,
दीवार तुमने ही तो बना रखा है।
मैं तो हूं एक आजाद पंछी,
कैसे आऊ तुम्हारे घर।
तुमने तो घर को,
जेल बनाकर रखा है।
- रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
रांची - झारखण्ड
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क्रमांक - 11
बोलती चिड़िया
*********
स्वच्छ हुई धरती अपनी, गुनगुना रही है चिड़िया।
खुश होकर देखो कितनी, चहचहा रही है चिड़िया।।
एक तरफ इस विपदा ने, परेशान कर डाला है।
दूजी ओर इसी कारण , फैला नया उजाला है।
अपने मीठे चहचह से, यही बता रही है चिड़िया,
खुश होकर देखो कितनी, चहचहा रही है चिड़िया।
मंद-मंद पवन के संग, झूमे पेड़ों की डाली।
खुलकर मेघ बरसते हैं, छायी भू पे खुशहाली।
रिमझिम-रिमझिम वर्षा में,अब नहा रही है चिड़िया,
खुश होकर देखो कितनी, चहचहा रही है चिड़िया।
कारखाने के धुँए से, लुप्त हुई थी ये चिड़िया।
वाहन जब हो गए बंद, वापस फिर आयी चिड़िया।।
मस्ती में पर को अपने, फड़फड़ा रही है चिड़िया,
खुश होकर देखो कितनी, चहचहा रही है चिड़िया।
काश! कि ऐसा हो जाता, स्वच्छ धरा को रख पाते।
अपने मन के लालच पे, तनिक नियंत्रण जो लाते।
मानव की इस करनी पे, अश्रु बहा रही है चिड़िया,
खुश होकर देखो कितनी, चहचहा रही है चिड़िया।।
स्वच्छ हुई धरती अपनी, गुनगुना रही है चिड़िया।
खुश होकर देखो कितनी, चहचहा रही है चिड़िया।।
- गीता चौबे "गूँज"
राँची - झारखंड
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क्रमांक - 12
बोलतीं चिड़ियां
***********
डालियों पर बैठीं चिड़ियां,
आपस में बात करतीं चिड़ियां,
सुनातीं अपनी दास्तान चिड़ियां,
जंगल कट रहे,
शहरों में पेड़ कट रहे,
रहने को आसरा नहीं,
इधर-उधर भटक रहीं,
खाने को दाना नहीं,
पीने को पानी नहीं,
जेठ की तपती गर्मी में कंठ हैं सूखते,
सूरज की गर्मी से पंख हैं झुलसते,
छाया दूर-दूर तक नहीं,
ठहरने को जगह नहीं,
संख्या हमारी नित घट रही,
हमारी प्रजाति लुप्त हो रही,
तभी आदमियों को देखा चिड़ियों ने,
चहक-चहक के उनसे बोलीं-
"जागो!
मानव जागो!
अस्तित्व के संकट से उबरो,
प्रकृति और पर्यावरण बचाओ,
खुद बचो, हमें भी बचाओ।"
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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क्रमांक -13
चिड़िया रानी
**********
मेरे घर मैं चिड़िया चार,
बच्चे भी हैं उनके चार,
सुबह उड़ते पंख पसार,
दाने खाते कई कई बार,
मेरे घर चिड़िया के बच्चे चार।
मुझे अपने पास बुलाते
बच्चे कंधे पर आ जाते,
रहते अपनी मां के साथ,
मेरे घर में चिड़िया के बच्चे चार।
चीं -चीं -चीं शोर मचाते,
फुदक- फुदक कर गाने गाते,
बादल में उड़ उड़ जाते,
मेरे घर में चिड़िया के बच्चे चार।
उन बच्चों को देखकर
सोचती एक दिन सब छोड़कर मैं भी उड़ जाऊंगी जाने किस लोक जाऊंगी।
मेरे घर में चिड़िया के बच्चे चार।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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क्रमांक - 14
नन्हा प्रयास - बोलती चिड़िया
*********************
एक डाल पर झूले चिड़िया
मस्ती में इठलाती चिड़िया
चिहुक चिहुक वो इत उत डोले
सबके मन का द्वार है खोले
स्वप्न सजाने का है मन में
सुंदर भाव सजाती चिड़िया
तिनका जोड़ के घर है बनाया
आँधी -तूफां ने उसे ढ़हाया
धाराशायी स्वप्न हुए पर
फिर हिम्मत न हारी चिड़िया
स्तम्भ प्रयास का उसने बनाया
जीत का अंकुर उसने सिखाया
एक नहीं दस दिन लग जाएं
नीड़ बनेगा सुंदर प्यारा
तिनका तिनका जोड़ दिखाया पुनः नया निर्मण बनाया
एक प्रातः संसार जगाने
उषा ने कर अपना बढ़ाया
चहक उठा सुंदर नीड़ प्यारा मिलकर एक परिवार बनाया
नन्हें -नन्हें बच्चे जन्में
दाना मुँह में लाके खिलाया
बड़े हुए और फ़ुर्र से उड़ गये
मोह तनिक न उसको भाया
चीं चीं कर वह सुबह जगाती
कर्म -पथ की राह चलाती
भर ऊँची उड़ान, बढ़ जाती
जिंदादिली से जीना सिखाती
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 15
बोलती चिड़िया का संदेश
****************
चीं चीं कर बोलती चिड़िया,
अपने धुन में क्या कहती है।
घर ऑंगन में इधर उधर ,
वो कूद फांद ही करती है ।
सुबह दाने के खोज में वह,
घर से दूर चली जाती है ।
तुम भी ऐसा करो चिड़िया,
सबको बतलाती रहती है ।
तिनका-तिनका जोड़कर वह,
सुंदर से घोंसला बनाती है ।
प्रेम से अपने बच्चों को वह,
निःस्वार्थ भाव से पालती है ।
मनुष्यों तुम भी ऐसा करना,
चिड़िया चींचीं कर बतलाती है ।
उड़ने लायक बच्चों को बना,
वह उसे अलग कर देती है ।
मत रखो बच्चों से कोई आशा,
चींचीं चिड़िया यही सुनाती है ।
बोलती चिड़िया का यही संदेश,
आशा ही दुःख को जन्म देती है।
"दीनेश" बच्चों को पालो पोशो,
मुक्त छोड़ो बोलती चिड़िया कहती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
=================================
क्रमांक - 16
बोलती चिड़ियां
************
घर के आंगन में जब चिड़ियां बोलतीं
नींद से जाग कर आंखें मैं खोलती
भोर होने का संदेश ये देतीं
बदले में हम से न कुछ लेतीं
फुदक फुदक कर आंगन की शोभा बढ़ातीं
दूर गई बिटिया की याद ये दिलाती
अकेलेपन से जब मैं ऊब जाती कभी,
चीं-चीं करके दिल बहलाती ये सभी ।
मानव ने सदा देखा अपना ही सुख
इसके रहने के लिए छोड़ा न रुख
जंगल बेले सब काट कर घर बनाए
प्रकृति की छेड़छाड़ से दुख उठाए
ये पक्षी हमारे आंगन का श्रृंगार
प्रण करो,न करो इन का संहार
जीओ और जीने दो का करें पालन
दाना पानी डाल करें इन का लालन
घर के आंगन में जब चिड़ियां बोलतीं
नींद से जाग कर आंखें मैं खोलती।
- कैलाश ठाकुर
नंगल - पंजाब
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क्रमांक - 17
बोलती चिड़िया
***********
चिड़िया चली चिड़ा के संग, नदी की ओर नहाने को।
रास्ते से घास और फूस बटोर रहे, नया महल बनाने को।
गरज रहे है बदल गड़ गड़, चमक रही है बिजली कड़ कड़।
दोनों पेड़ में जगह खोज रहे, कुछ देर छुप जाने को।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 18
बोलती चिड़िया
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याद आाते हैं वो दिन चिड़िया ,
माँ से मांग दाना तुझे खिलाती ,
जहाँ पहुँचती पास तेरे
चीं,चीं कर तू उड़ जाती ।
बाट जोहती सुबह होने की ,
सुन चीं-चीं तेरी मैं ऊठ जाती ,
दौड़ती तेरे पीछे-पीछे
चीं-चीं कर तू शोर मचाती ।
एक दिन एक चिड़े के साथ गई ,
तिनका चुन-चुन घोंसला एक बनाई ,
तेरे मन का मीत मिला ,
तू वापस लौट के ना आई
नाती -पोते संग तेरी राह निहारुँ ,
इस कंकरीट के जंगल मे तुझे पुकारुँ ।
छज्जे से आवाज वापस लौट के आती ,
चीं -चीं तेरी याद बहुत सताती ॥
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 19
वो बोलती चिड़िया
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कुछ अनकहे शब्दों में
विलक्षण प्रतिभा की धनी
अपने जीवन को सार्थक करती
मानव को कुछ बोध कराती
अपने शब्दों में
वो बोलती चिड़िया
वो बोलती चिड़िया
तिनका तिनका चुनकर लाती
सपनों का संसार बसाती
दाना चुग कर वो है लाती
चोंच से अपने बच्चों को खिलाती
नभ में उड़ना उन्हें सिखाती
आत्मनिर्भर उन्हें बनाती
मानव को भी आत्मनिर्भरता का बोध कराती
कुछ वो अपने शब्दों में
वो बोलती चिड़िया
वो बोलती चिड़िया
मानव के जैसे नहीं वो करती
कभी भी धन का अर्जन
नहीं कभी सन्तान के लिए करती धन उपार्जन
सिखाती खुद से आत्मनिर्भरता
जिससे जीवन हो उसका सार्थक
सीख देती वो संसार को
कुछ अनकहे शब्दों में
वो बोलती चिड़िया
वो बोलती चिड़िया
- शिवानी गुप्ता
हरिद्वार - उत्तराखंड
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क्रमांक - 20
चिडिया
*****
हररोज सबेरा होने पर
चिडिया चिंऊं-चिंऊं करती है
एक डालीसे दुसरी डालीपर
उडकर बैठ जाती है
भोसले मे के अपने बच्चे को
एक-एक दाना पिसकर खिलाती है
बच्चो के लिए चिडिया देखो
कितना कष्ट उठाती है
आखिर बहू भी तो एक माही है
माका फर्ज निभाती है
अपने बच्चो के लिए हर दिन हर
वक्त चिडिया काम करती है
एकेक दाणा उठाती है
चोंचमे भर कर उड जाती है
और सहेलीयो को लेकरआती है
चिडिया ची ची ची करती है.
- अनोमा मालसमींदर
कक्षा -पाचवी
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क्रमांक - 21
बोलती चिड़िया
***********
चीं चीं करती प्यारी लगती
तिनका तिनका जोड़ बुनती
घोंसला अपना प्यारा सा
चुग आती दाना
सारे दिन
फुदक फुदक
चहचहाहट
हर घर जा बिखराती
प्यारी सी गोरैया लगती
सोन चिरैया लगती
जब भी आती मेरे घर में
बोलती चिड़िया मुझको भाती
इसकी चहक से हर घर महके
बच्चे देख देख चहके
यह बोले तो लगता
जैसे घर का हर कोना चहके
मुझको भाती इसकी बोली
लगती मुझको प्यारी भोली
यह चिड़िया की बोली
हाँ इस चिड़िया की बोली
-दीपा परिहार
जोधपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 22
चिड़िया के प्रश्न
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भोर हुई सब चिड़िया चहके
कोयल तोते और गौरैया
चिड़िया चहके, कोयल गाये
जिज्ञासा से सब ये पूछें
कहाँ गए? जो मानव रहते
क्यूँ खाली ये गलियाँ
ना है कोई शोर शराबा
ना कोई हंगामा
क्यूँ मानव से मानव डरता
क्या है ये सब मसला
क्या खत्म हो गए सारे झगड़े ?
खत्म हो गया धुआँ
खत्म हो गई अठखेलियां
खत्म हो गया रेला
खत्म है सब मेरी , मेरा
अजब है प्रभु की लीला
बहती पवन ये उनसे बोली
पूछो मुझसे वो ये बोली
सब देशों की यही कहानी
देख कर हूँ मैं आई
विपदा है ये भारी आई
फैल गई है महामारी
खग भर गए करूणा से भारी
मन ही मन में करते पुकार
हे परमात्मा अपरंपार
कर दो करूणा हम पर अपार
देख कर ये सारा दृश्य
मानव का भी मन है भीगे
कर दो बहुड़ी हम पर नाथ
महामारी का कर दो नाश।।
- जगदीप कौर
अजमेर - राजस्थान
====================================
क्रमांक - 23
चिड़िया हूँ मैं
*********
चिड़िया हूँ मैं उड़ जाने दो
नील गगन में पंख पसारे
मैं उड़ान की बाट जोहती
हे! मानव अब तेरे सहारे।
इस डाली से उस डाली पर
मैंने तो उड़ती रहती हूँ
पेड़ न काटो धरती वालो
मैं चिड़िया ही कहती हूँ।
नदी, ताल से पानी पीकर
अपनी प्यास बुझाने वाली
नीर कटोरी का पी-पीकर
रह न सकूँगी उड़ने वाली।
छप्पन भोजन नहीं चाहिए
लौह सलाखों में रहकर
उड़ उड़ कर चुग लेंगे दाने
अपने नीड़ों में रहकर।
व्याकुलता है खूब सताती
मेरी दुनिया सिमट गई
हम चिड़ियों की दुनिया से
कितनों की दुनिया ही लुट गई।
- गजेंद्र कुमार घोगरे
वाशिम - महाराष्ट्र
===================================
क्रमांक - 24
बोलती चिड़ियां
**********
सुबह-सुबह नीम के पेड़ से शहद टपका।
चिड़ियों के झुंड से मेरा घर चहका।
मेरे आंगन में बिखरे थे
मुट्ठी भर चावल और मिट्टी की नाद में था ठंडा पानी।
मैं निहार रही थी सबको।
कुछ चिड़ियां फुदक-फुदक कर चावल खा रही थी।
कुछ पंख फैलाकर पानी में डुबकी लगा रही थी।
तृप्त मन से चिड़ियों ने चीं- चीं कर मुझे संगीत सुनाया।
मैंने भी फिर अपने जी का हाल बताया।
अकेलेपन से जूझ रही हूं।
देखो मैं थोड़ी बूढ़ी हो चली हूं।
बच्चों के परदेशगमन के बाद
आंगन मेरा गुमसुम - सा रहता है।
चिड़ियों तुमलोगों के आने से
मेरा घर आंगन खिल रहा है।
देखो ये बुढ़ा पेड़ भी झुम उठा है।
चिड़ियों ने जैसे पढ़ ली हो मेरी आंखें।
स्वीकार कर लिया हो मेरा मौन निमंत्रण।
चहक- चहक कर सब कहने लगीं,
अम्मा तूम बैठो वहीं खारे नीम तले ठंडी छांव में।
बस हम अभी आतें हैं पास तुम्हारे।
- मीरा जगनानी
अहमदाबाद - गुजरात
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क्रमांक - 25
बोलती चिड़िया
**********
पंछी इस डाली से उस डाली पर चहक रहे ।
बागों में खिलते गुलाब के गुल भी महक रहे ।।
एक दूजे में खोकर देखो मौसम बदल गया ।
सावन की हरियाली से तन -मन भी मचल गया ।।
गौरैया के बिन तो आँगन सूना लगता है ।
दाना - पानी रख दो तो हिय दूना लगता है ।।
नेह की भाषा समझे है ये पास तभी आ जाती ।
मीठी बोली बोलती चिड़िया देखो हमें बुलाती ।।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
=====================================
क्रमांक - 26
विश्वास
******
चिड़िया निकली सुबह सुबह, चुगने को थोड़ा दाना।
चिंता बच्चों की थी उसको, मन बोला ना घबराना।
छोड़ दिया फिर रब पर उसने, हाँ! रक्षा वही करेंगे।
रब की मर्जी होगी जब तक, ये तब तक साँस भरेंगे।
चुगते चुगते दाना चिड़िया, चिंता घर की करती थी।
उमड़ घुमड़ जब बदरा छाए, घर जाने को डरती थी।
पंख जोड़ ईश्वर से बोली, अभी न बारिश बरसाना,
भूखे मेरे बच्चे बैठे, कौन खिलाएगा दाना।
बारिश बिन पर ये धरती, सूखी सूखी हो जाएगी।
मेरे जितनी कितनी चिड़िया, कैसे दाना पाएगी।
इसलिए यही फरियाद करूँ, कुछ देर रोक लो बारिश।
मैं घर को जैसे ही पहुँचूँ , तब तुम बरसाओ बारिश।
- कमल पुरोहित अपरिचित
कोलकाता - प. बंगाल
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क्रमांक - 27
गौरैया बोल सुनाओ
**************
मेरी नन्हीं गौरैया लौट आओ।
मेरे अँगना बोलो चिरैया
लौट आओ।
बच्चों की तरह चुग कर नर,
मादा को अन्न खिलाता है।
घोंसला गौरैया का,
हम सबके बीच बनाता है।
पर हमारे बड़े घरों में गौरैया
अब न रह पाती।
जो कटवर्म खिला बच्चों को,
पर्यावरण है स्वास्थ्य बनाती।
इन की घटती संख्या पर
विश्व ने संज्ञान लिया।
20 मार्च को गौरैया दिवस,
मनाने का ऐलान किया।
नए घर में तिनका देख,
मालिक क्रोध में आता है।
तुरंत हटा गौरैया घोंसला,
घर को साफ कराता है।
इसीलिए अब लुप्त हो रही,
चिंता काहे विषय बनी।
यूरोप में गौरैया संरक्षण
तो ब्रिटेन में रेट लिस्ट बनी।
हल्की भूरी सफेद रंग की,
पीली चौथ छोटे पंख,
पैरों का रंग लिए पीला
आंगन फिर चहक जाओ,
क्षमा करो अब हमें गौरैया
हमसे ना कहीं दूर जाओ
मेरी नन्हीं गौरैया।
मेरे अँगना बोलो,डोलो
लौट आओ बोलो चिरैया
लौट आओ
- रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर - छत्तीसगढ़
=====================================
क्रमांक - 28
बोलती चिड़ियां
**************
धरा ने ओढ़ ली धानी चुनरिया,
सुमन खिलखिलाने लगे ।
कलियों ने ली अंगड़ाई,तो
निर्झर गीत गाने लगे।
प्रकृति सज गई अब दुल्हन सी ,
छा गई चहुंओर मादकता सी।
सुरीली कज़री तानें छिड़ने लगीं,
सावन की फुहारें दिल को भाने लगीं।
फलगुच्छ के भार से झुक गईं डालियां,
नमन वसुधा को ,मानो करती हैं डालियां।
वाष्प निर्मित मेघ घूमकर वर्षा करने लगे,
नदी ,तालाब ,पोखर ,सागर सब भरने लगे ।
निर्मल समीर की खुशबू फैल रही चहुं ओर,
फ़िजाओं में घुलने लगी वह सभी ओर।
नभ में कलाबाजी दिखाते विहंगों का ,
आगाज़ करने लगी वह तो पुरजोर।
वृक्षों पर आशियाने सजने लगे फिर से,
कोटर भी सभी पेड़ों के भरने लगे फिर से।
वतन छोड़कर जाने वाले,उन्मादी,
प्रवासी वापस वतन आने लगे फिर से
पक्षियों के कलरव से गूंज उठा सारा गगन,
नाचते मयूरों ने भी मोह लिया सबका मन।
चहचहातीं ,सबसे बोलतीं रंगीन चिड़ियां ,
प्रकृति का आभार जतातीं प्यारी चिड़ियां।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
==========================
क्रमांक - 29
नन्ही चिड़िया
*********
नन्ही चिड़िया
उड़ती आसमान
मुझे लुभाती
दाना चुगती
कलरव करती
आसमान में
नन्हे चोंचों में
भरकर अनाज
बच्चे पालती
झुण्ड झुण्ड में
अविरल उड़ती
आसमान में
- विशाल चतुर्वेदी " उमेश "
==========================
क्रमांक - 30
बोलती चिड़िया।
************
चिड़िया चह- चहाती है
डाल-डाल उड़ जाती है
चिड़िया चह -चहाती है
तूफानों के डर से उसने
बिजड़े डालों से लटकाए
अंडे अपने सेक -सेक कर
नवजीवन और उमंग लाए
चिड़िया चह -चहाती है
दाना चुगने जब वह जाए
चौंच अपनी भर -भर लाए
देख उसे सब बच्चे हर्षाए
भाव -अनुभाव बोलती चिड़िया
चिड़िया चह -चहाती है
पंखों से अपने गगन नापति
फुर्र- फुर्र कर पवन बतियाती
लहराती फसलें उसे भाती
जीवन चक्र हमें सिखलाती
चिड़िया चह -चहाती है
- नरेंद्र परिहार
नागपुर - महाराष्ट्र
=====================================
क्रमांक - 31
बोलती चिड़िया
***********
चिड़िया बोलती है
केवल दो ही भाषा
एक प्यार की
दूजा बेबसी की
जबकि जानती है एक और भाषा
गुस्से की भी
मगर
बोल नहीं सकती
क्योंकि
मनुष्य प्रकृति-भक्षी हो गया है
साथ ही सर्वभक्षी भी
इसलिए नन्हीं चिड़िया
कुछ बेबसी दिखाती है
कुछ प्यार जताती है
और इन्हीं दो भाषाओं के साथ
अल्प जीवन जीती है
कुछ अच्छे की आस लिए
अकाल मरती है
काश! सीख लेता मनुष्य भी
सिर्फ और सिर्फ
प्यार की भाषा।
- डॉ अवधेश कुमार अवध
गुवाहटी - असम
========================
क्रमांक -32
उड़ती चिड़िया
*************
उड़ती चिड़िया नील गगन में
सबके मन को भाती है
इस डाली से उस डाली पर
उड़-उड़ कर वह जाती है।
दाना चुन-चुन कर वह कैसे
बहता पानी पीती है
छोटी सी वह नन्हीं चिड़िया
चूँ - चूँ करके जीती है।
उड़ जाती वह आसमान में
अपने पंख पसारे
कलरव करती यहाँ-वहाँ जब
देखते उसको सारे।
- डॉ. अरुण घोगरे
अमरावती - महाराष्ट्र
====================
क्रमांक -33
बोलती चिड़िया
******"****
कहां गई तुम चिड़िया रानी ?
कहां गई तुम चिड़िया रानी ?
आंगन में जब तुम आती थी
सुबह सवेरे मुझे जगा कर
खुद फुर्र से उड़ जाती थी
इस डाली से उस डाली पर
इस मुंडेर से उस मुंडेर पर
फुदक- फुदक कर कर
ची..ची.. ची.. बतियाती थीं
तिनका तिनका चुन चुन तुम
कुशल कारीगरी दिखाती थी
बोली चिड़िया -$$$$$$$
मैं तो आती !
तुमको शायद
अब मैं नहीं सुहाती ,
जब भी डाली पर
मै नीड़ बनाती ।
अगले दिन नीड़ तो क्या ,
पेड़ भी मैं उजड़ा ही पाती ।
घर में तुमने जाल लगाया ,
छत पर टावर
विकिरण फै लाया,
खुले गगन में भी जल बिछाया ।
हम सब का अस्तित्व मिटाया ,
फोन तुम्हें है अब मन भाया ।
फोन तुम्हें है अब मन भाया ।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
=========================
क्रमांक -34
आदमी और चिरैया
**************
चिडिया ने
दर्पण में अपना
प्रतिबिम्ब देखा।
पहले घबराई
फिर साहस किया ।
अपनी चोंच से
बार-बार वार किया
और करती रही,
जब तक उसकी चोंच
रक्त रंजित न हो गई
वह उड गई
मन में संतोष मान
प्रतिद्वंदी को मात दे दी ।
अज्ञानता थी उनकी
जो अपने अक्स को ही
अपना दुश्मन मान बैठी
पर आदमी तो जानकर
दूसरों को आहत करने में खुश होता है ।
- डॉ चन्द्रा सायता
इन्दौर - मध्यप्रदेश
======================
क्रमांक -35
बोलती चिरय्या
**********
और ऐसा ही मानव हृदय है मेरा //
हर बार घायल होता है
अपने एहंकार से पराजित होता है
पराजित होकर रक्त रंजित भी होता है
फिर भी चौंच मारना नही छोड़ता
सदियों से सदियों तक ये मानव
ऐसा ही करता आया
पीढ़ियों की पीढियां नष्ट हो गई
लेकिन अपुष्ट अधूरी अधकचरी
क्षणिक दंभ से व् असंतोष दूषित
अज्ञानता का सलीब अपने
काँधे से उतारने को तय्यार नही
और ऐसा ही मानव हृदय है मेरा //
हर बार घायल होता है
अपने एहंकार से पराजित होता है
अंततः // अनन्त की यात्रा में
पुनह पुनह धकेला जाता है
- एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
===========================
क्रमांक -36
चिड़िया की चूं चूं
**************
बाथरूम की खिड़की से
हर वक्त सुनु मैं चूं चूं चूंचूं
उनकी,
रात दिन की अविरत चुं चूं सुनकर
मेरा मन झल्लाया
खिड़की खोल उठकर देखा तो
मां की ममता बैठी थी उसपर
अपने गले से रस निकालकर
बच्चों को मुख में देती थी!
इधर उधर जो बच्चा होता
तुरंत सम्भाल लेती थी उसको
मां बाप दोनों सेते थे उनको
बढ़कर क्या दे जाते वो उनको !
अपने परिवार के सुख की खातिर
संघर्ष भरा वे जीवन जीते
दाना चुग चुग कर लाते
जीवन में अमृत रस पाने को
जाने कितनी बार पंख फैलाते
पंखों के थक जाने पर भी
हार तो उसने मानी ना
बच्चों के पंख आने तक
चक्र वही दोहराता रहा!
संघर्ष पूर्ण हुआ न अब तक
उड़ना उनको है सिखलाते
हर डाली हर शाखों पर
कदम कदम पर कांटे चुभते
हर उडा़न में संघर्ष भरा था
हार तो उसने मानी ना
बच्चे के फुर्र से उड़ जाते तक
वही क्रिया दोहराता रहा !
पंखों के आ जाने तक ही
रहता उनका रिश्ता है
निःस्वार्थ की भावना लिए
ये बच्चे फुर्र से उड़ जाते हैं!
पुख्त वय में आते ही
चक्र वही दोहराते हैं
और,
अपने बच्चों को भी
वही निःस्वार्थ प्यार दे पाते हैं !!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
============================
क्रमांक - 37
नन्हीं चिड़िया
***********
नन्हीं सी इक प्यारी चिड़िया
यहाँ वहाँ उड़ती रहती है
इस डाली से उस डाली पर
जैसे वह खेला करती है।
छोटे छोटे पंखों से वह
दूर गगन में जाती है
फिर पल भर में उड़कर वह
धरती पर आ जाती है।
मेरे घर के आँगन में वह
चुपके से आ जाती है
मीठे-मीठे अमरूद खाकर
जल्दी से उड़ जाती है।
- तनुश्री घोगरे
वाशिम - महाराष्ट्र
==============================
क्रमांक - 38
बोलती चिड़िया
***********
छोटी-छोटी सी प्यारी चिड़िया,
चूं-चूं- करके शोर मचाती,
चूं-चूं करके बोलती चिड़िया,
देती हमें यही संदेश,
मुस्कुराते रहना यहाँ सदैव।
छोटी-छोटी.......
जीवन-संघर्ष से न घबराती,
मेहनत सदा ही करती जाती,
चूं-चूं करके बोलती चिड़िया,
कर्म-पथ पर चलती जाती।
देती हमें यही संदेश,
मुस्कुराते रहना यहाँ सदैव।
छोटी-छोटी......
करके मेहनत घोंसला बनाती,
नन्हीं-नन्हीं चोंच से,
बच्चों को अपने दाना खिलाती,
देती हमें यही संदेश,
मुस्कराते रहना यहाँ सदैव।
छोटी-छोटी........
निरन्तर पथ पर चलते जाना,
किसी पर न निर्भर रहना,
कार्य स्वयं ही करते जाना,
देती हमें यही संदेश,
मुस्कुराते रहना यहाँ सदैव।।
छोटी-छोटी........
संयम,धैर्य रखना सिखलाती,
दृढं-संकल्प मन में है रखती,
चिड़िया कभी नहीं है थकती,
चूं-चूं करके बोलती चिड़िया,
संदेश हमें ये है देती,
मुस्कुराते रहना यहाँ सदैव।
छोटी-छोटी......
- डॉ०विजय लक्ष्मी
काठगोदाम - उत्तराखंड
========================
क्रमांक -39
बोलती चिड़िया
**********
अपना दर्द, अपना ग़म
प्रकृति का प्रदूषण
खोटे आभूषण
आदमी की नीति
धर्म की रीति
बता रही हैं
चीं चीं करके
बोलती चिड़िया
आने वाले खतरों को
सफेद वस्त्रों को
काले कोट को
नोट और वोट को
ढोंगी गिरगिट को
होती छुटपुट को
व्यभिचार और अत्याचार को
दुष्ट, पापी और दुराचार को
सब समझती है
इशारो में कहती है
बोलती चिड़िया
- छगनराज राव "दीप"
जोधपुर - राजस्थान
================================
क्रमांक 40
बोलती चिड़ियां
************
सुबह मेरे घर की ड्योढ़ी पर बैठीं चिड़ियां,
एक नहीं बहुत सारी चिड़ियां,
चीं-चीं-चीं-चीं...का गीत सुनातीं चिड़ियां,
मेरे मन को हर लेती हैं चिड़ियां।
फुदक-फुदक दाना मुंह में डाल,
आंखों से टमक-टमक करतीं चिड़ियां,
कभी दाना उठाती, कभी नाचतीं चिड़ियां,
मेरे घर में विचरण करतीं चिड़ियां।
कोई हल्की भूरी तो कोई गाढ़ी भूरी चिड़िया,
भिन्न-भिन्न प्रकार की आईं चिड़ियां,
एकजुट होकर आईं चिड़ियां,
भाईचारे का पाठ पढ़ाने आईं चिड़ियां।
मैंने पूछा क्यों इतने दिन दूर नहीं मुझसे,
शुद्ध वायु न मिलने से हम हुए बेहाल,
जब आई सांस में सांस,फिर लौट आईं चिड़ियां,
सब एक सुर में बोलतीं चिड़ियां।
मैंने लॉकडाउन का किया धन्यवाद,
सज़ाया बग़ीचा प्यारा सा,
किया प्रण! न जाने दूंगी अब इन नन्हीं चिड़ियों को,
अपने इस भारतवर्ष से कहीं दूर।
इन सबसे ही तो हमारी शान है,
इन सबमें बसते हमारे प्राण हैं,
इन सबके बगैर भारत विरान है,
इन सबसे मिलकर ही तो भारत बना महान है।
- नूतन गर्ग
दिल्ली
=============================
क्रमांक - 41
गौरैया
******
प्रात:मधुर गान सुनाकर
मुझे उठाती
फिर चल देती
दाना ढूँढने
दोपहर होते घर लौटती
जो कुछ
चोंच भर ला पाती
मिल बाँट
अपने परिवार संग खाती
पहर दोपहर
विश्राम कर
फिर
निकल पड़ती
भरने पंखों में ताज़गी
उड़ती दूर-दूर अंबर में
मैं कमरे में
बंद सोचती
काश ! मैं गौरैया होती
डाॅ .आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद -गुजरात
=====================================
क्रमांक - 42
बोलती चिड़ियां
********
चूं चूं करके चिड़िया
बच्चों को बोलती है।
उड़ के जाऊं दूर देश।
संदेशा यूं सुनाती है।१
दाना पानी लेकर आऊ।
फिर मैं तुम्हें खिलाऊ।
चिंता तुम ना मेरी करना।
पल मैं उड़कर आ जाऊ।।२
तुतलाकर बच्चे बोले।
मां जल्दी घर आ जाना।
तेरे बिन माता हमको।
पल भर चैन नहीं आना।३
तू ममता की सागर।
और प्रेम की गागर है
नील गगन आकाश भी
तेरे आगे पल में छू मंतर है।४
- पूरण मल बोहरा
माधोपुर - राजस्थान
==========================
क्रमांक -43
गौरैय्या के बच्चे
**********
एक गौरैया के ..
दो नन्हे बच्चे..
आजकल..
थिरकते हैं मेरे आंगन में..
मैंने तो बस..
थोड़ा सा पानी ही रखा था वहाँ..
चूहों के डर से..
दाना भी तो नहीं दिया उन्हें, फिर भी..
एक गौरैया के दो नन्हे बच्चे आजकल थिरकते हैं..
मेरे आंगन में!
तभी ध्यान दिया तो पाया एक घोंसला भी था वहां.. तभी याद आया...
आजकल...
व्यस्तता के चलते...
कम ही आती हूं आंगन में, आंगन के पेड़ और फूल ही,
भोजन जुटाते रहे उनको.. और मेरे आंगन में..
चहकते रहे..
वो गौरैय्या के दो नन्हे बच्चे!
मैं प्रफुल्लित होती रही.. देख-देख देख कर उन्हें.. चार-पांच दिन बाद... अचानक... एक दिन..
नहीं सुनाई दी.
उनकी चहचहाट..
मै ढूंढती रही उन्हें..
पर ना मिले वो..
तब मैंने जाना..
मेरा आंगन छोड़..
अनंत आकाश में..
उड़ गए थे वो..
गौरैया के दो नन्हे बच्चे
वो घोंसला अब भी वही है.. अशोक के पेड़ के बीच बना..
स्मृति-चिन्ह-शेष...
पर नहीं है वो..
गौरैया के दो नन्हे बच्चे!
- अंजू अग्रवाल 'लखनवी'
अजमेर - राजस्थान
==================================
क्रमांक - 44
नन्ही चिड़िया
********
नन्ही चिड़िया आती है
मन को बहुत लुभाती है
चीं चीं करती अंगना में
नभ में फुर्र उड़ जाती है
कुछ अपने शब्दों में
सबको वो बतलाती है
नहीं काटना वन उपवन
मानव को बोध कराती है
नन्ही चिड़िया मेहनत करती
दाना चुग कर उड़ान भरती
नहीं कभी वो लालच करती
स्वच्छंद विचरण वो है करती
नील गगन में यहां वहां
सर्वत्र घूमती जहां तहां
स्वतन्त्रता का बोध कराती
है नन्ही प्यारी सी चिड़िया
- ललित जैन
हरिद्वार - उत्तराखंड
================================
क्रमांक -45
स्मृतियांशेष हैं
*********
मुझे तो नहीं दिखती
आज कल चिड़ियां
हा! बचपन में जरूर
मेने देखी हैं चिड़ियां
चहकती हुई चिड़ियां
मचलती हुई चिड़ियां
इठलाती हुई चिड़ियां
पानी से खेलती चिड़ियां
खुशनुमा माहौल बनाती
नटखट सी चिड़ियां
आनंद का आभास
हमें कराती चिड़ियां
पर अफसोस!
आज मुझे नहीं दिखती
प्यारी प्यारी चिड़ियां
अब आप ही बताओं
आज क्या लिखु मैं?
बोलती चिड़ियां
के सन्दर्भ में
सब कुछ सुना सुना हैं
बिन चिड़ियां के
आज हमारा आंगन सुना हैं
अगर कुछ हैं मेरे पास तो
कल की बोलती चिड़ियां की
स्मृतियांशैष हैं।
- कुन्दन पाटिल
देवास -मध्य प्रदेश
=============================
क्रमांक - 46
चिड़िया
******
लॉकडाउन में आई चिड़िया,
मानो हो पुरवाई चिड़िया।
नन्हीं सी, प्यारी सी चिड़िया,
मुंह में तिनका लाई चिड़िया।
इस डाली से उस डाली पर,
नाच रही मनभायी चिड़िया।
ताल ठोकते नन्हें-मुन्हें,
घर आंगन में आई चिड़िया ।
फड़-फड़ करती पंखों से वो,
खुशियों की परछाई चिड़िया।
-प्रकाश सूना
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
=============================
क्रमांक -47
बोलती चिडिया
***********
हें!
प्राणी,
बोल रही है,
छोटी सी चिड़िया,
सुन ले मेरी एक पुकार,
बड़ी मुश्किल से,
इधर - उधर से,
तिनका तिनका,
इकट्टा करके,
मेरे बच्चों के लिए,
छोटा सा घोंसला,
तैयार करती हूं,
अपने स्वार्थ के लिए,
पेड़ - पौधो को मत काटो,
पेड़ - पौधो ही,
मेरे घोंसले की है जगह,
हें!
प्राणी,
बोल रही है,
छोटी सी चिडिया,
मेरे घोंसले के लिए,
पेड़ पौधों को रहने दो,
मेरे प्यारे बच्चों के,
अनमोल जीवन के लिए,
पेड़ पौधों को रहने दो,
- कुमार जितेन्द्र "जीत"
बाड़मेर - राजस्थान
===================================
क्रमांक -48
बोलती चिड़िया
***********
मुंडेर पर बैठी चिड़िया रानी
बोलती चिड़िया गाती रानी
आसमान से आई हूं
परियों की कहानी लाई हूं
आओ चंदू आओ नंदू
आओ रानी सुनो कहानी
इक परी थी
संग जादू की छड़ी
थी
राह जो कोई मिले दुखियारा
छड़ी घुमाए हंसी लौटाई
चली जा रही थी मस्ती में वो
प्रेम के गीत गाती थी वो
देखा अचानक चंद लोग
घसीट रहे थे बोरा एक
समझ ना पाई परी हमारी
सूझबुझ अपनी दिखाई
छड़ी घुमाई जादू चलाया
बोरा जो उनका
उसे
दो बनाया
कशमकश में पड़ेे बेचारे
छोड़ बोरा भागे बेचारे
परी रानी ने खोला जो बोरा
बेहोश था उसमें रामू बेचारा
होश आते रोने लगा
मां, मां कह सिसकने लगा
पूछ उससे घर पहुचाया
परी ने फिर जादू चलाया
प्यारे बच्चों प्रेम का हमको
पाठ पढ़ाया।
- ज्योति वधवा " रंजना "
बीकानेर - राजस्थान
===================================
क्रमांक - 49
बोलती चिड़िया
************
यह वृक्ष पर बैठी चिड़िया
अपनी भाषा में कहती है-
अरे मानव!
कितना प्रदूषित किया
तूने इस प्रकृति को।
केवल अपने लिए सोचा
काट ड़ाला वनों को
सूना कर दिया धरती को।
छीन लिया आसरा हमारा
हमारी प्रजाति ही लुप्त कर दी।
बन बैठा मालिक इस धरा का
इसकी मणियाँ ही गुप्त कर दी।
भूल गया मालिक तू नहीं
तेरे ऊपर भी कोई ओर है।
देता है दंड जब तो
कांपता हर एक छोर है।
समझ जा अब भी
इस प्रकृति के कहर को।
मत फैला इस भू पर
प्रदूषण के जहर को।
वह प्रदूषण जल, वायु,भावों
या फिर हो प्रकृति विनाश का।
मान जा अभी भी भान कर
हर प्राणी के दर्द के अहसास का।
प्रेम, दया, ममता भाव को
हृदय में समा ले।
अन्य प्राणियों के प्रति भी
करुणा मन में रमा ले।
- डा. साधना तोमर
बड़ौत - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 50
आई चिड़िया
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सुबह प्रातः बैठी छज्जे पर
लेकर दाना और पानी भरकर
देखती रहती चिड़ियों की उड़ान
कभी उड़ती कभी फुदकती
कभी आकर पी जाती पानी
कभी चुग जाती है दाना सारी
ची ची करती आई चिड़िया
दाना चुगने आई चिड़िया
पल भर में उड़ जाती चिड़िया
सखीसाथ लेकर आती चिड़िया
पल भर भा जाता है चहचहाना
इनकी बोली इनका चहकना
ऐसा लगता बातें करती है चिड़िया
अपना दाना उठाती चिड़िया
उड़कर खो जाती है नील गगन में
फिर से पानी पीने आती चिड़िया
चिड़ियों का भी बैंकिंग है
डालना उसमें रखती चिड़िया
अपने बच्चों को खिलाती चिड़िया
दाना चुगने आई चिड़िया
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 51
चिड़ियों की देखभाल
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चिड़ियों का गुनगुना कवि करते हैं ।
चिड़ियों का सम्मान सरकार करती है ।
फिर भी चिड़िया खतरें में क्यों -
चिड़ियों का घोसला पेड़ होते है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत - हरियाणा
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पानीपत - रत्न सम्मान से सम्मानित होते हुए जनकवि टेकचन्द गुलाटी
डॉ अरुण कुमार शास्त्री // @ एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
ReplyDelete*साहित्य जगत के ऑनलाइन पटल पर जैमिनी अकादमी पानीपत ने आज एक विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया है* - मैं बहुत ही उत्साहित व् प्रेरित हुआ *आ ० बीजेन्द्र जैमिनी साहिब* आपके इस सम्मेलन व् इसकी संचालन शैली से
विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया है
२ घंटे में अंदाजन ४० या ४२ साहित्यकारों ने प्रतिभाग किया
इन्ही २ घंटे के भीतर बुलेट ट्रेन की स्पीड से सभी सम्मानित सहभागियों को बहुत सुंदर प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी कर दिया गया
( WhatsApp ग्रुप से साभार )
आज "जनकवि टेकचंद गुलाटी स्मृति सम्मान-2020" पाकर मन अभिभूत हो गया। इनके साथ 1990 के दशक में बहुत सी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं और संकलनों में प्रकाशित हुई। जैमिनी अकादमी पानीपत ने उनकी स्मृति में आज आनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन किया और हर कवि को उसकी प्रस्तुति के तुरंत बाद सम्मान पत्र देते रहने का अभिनव प्रयोग किया।यह प्रयोगवादी सोच गुलाटी जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
ReplyDeleteडॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
( WhatsApp ग्रुप से साभार )