क्या शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम है ?
भारतीय शिक्षा नीति में सबसे बड़ी कमी क्या है ? पढ़ें - लिखें को बेरोजगार बनती है । जो जीवन की बुनियादी समस्या बन कर सामने खड़ी है । ऐसी ही समस्याओं का प्रमुख विषय " आज की चर्चा " है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
परिवर्तन सतत् होता है और होना भी ज़रूरी है वर्तमान शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को अवश्य ही दूर करने में सक्षम होगी क्योंकि जो भी परिवर्तन किए गए हैं वो निश्चित तौर पर गत शिक्षा नीति का परिष्कृत रूप ही प्रस्तुत करेंगे ।
बदलाव तो भले के लिए ही किया गया है परन्तु कितना लाभकारी सिद्ध होगा ये तो दूरगामी परिणाम ही बताएगा । केंद्र सरकार ने बुधवार को नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी है करीब 34 साल बाद आई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं। बच्चों पर से बोर्ड परीक्षा का भार कम किया जाएगा तो उच्च शिक्षा के लिए भी अब सिर्फ एक नियामक होगा। पढ़ाई बीच में छूटने पर पहले की पढ़ाई बेकार नहीं होगी। एक साल की पढ़ाई पूरी होने पर सर्टिफिकेट और दो साल की पढ़ाई पर डिप्लोमा सर्टिफिकेट दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में नई नीति पर मुहर लगाई गई। इसमें 2030 तक प्री-प्राइमरी से लेकर उच्चतर माध्यमिक तक 100 फीसदी और उच्च शिक्षा में 50 फीसदी प्रवेश दर हासिल करने की बात कही गई है। शिक्षा पर सरकारी खर्च 4.43 फीसदी से बढ़ाकर जीडीपी का छह फीसदी तक करने का लक्ष्य है। ये सब बदलाव बुनियादी समस्याओं को लेकर ही किए गए हैं बेरोज़गारी एक बड़ी चुनौती है बढ़ती हुई महंगाई जिसमें स्कूली फ़ीस भी शामिल है जो अभिभावकों की बड़ी समस्या है शिक्षा नीति के बदलाव के साथ उतनी ही बड़ी वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगी ।
स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति हो पूरी तरह फ़ीस फ़्री शिक्षा हो आरक्षण जैसी व्यवस्था शिक्षा के क्षेत्र में न रखी जाए ये शिक्षा नीति के साथ लागू किया जाए तो अवश्य बुनियादी समस्याओं को दूर किया जा सकता है । दूरगामी परिणाम क्या होगा ये शिक्षा नीति नियंताओं निश्चित विचार कर ही परिवर्तन को मंज़ूरी दी होगी ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कदाचित सत्य कहें तो वर्तमान शिक्षा पद्धति स्वयं गंभीर बुनियादी समस्या है। चूंकि जो पढ़ जाता है उसे अहंकार हो जाता है और जो नहीं पढ़ पाता,वह हीन भावना से त्रस्त तनावग्रस्त हो जाता है। अर्थात दोनों असामान्य हो जाते हैं। जिसका प्रमाण यह है कि चपरासी की चंद नौकरियों के लिए लाखों की संख्या में निवेदन किए जाते हैं। क्योंकि पढ़ा-लिखा युवा वर्ग बेरोजगार है और 'धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट का' के समान किसी के भी आंखों के तारे नहीं बन पाते।
लेखक को लेखक और वैज्ञानिक को वैज्ञानिक बनने का सपना 'सपना' ही रहता है। क्योंकि बच्चों के भविष्य का निर्णय बच्चों के अभिभावकों के पास होता था। जबकि भारतीय शिक्षा प्रणाली में विदेशों की भांति वैज्ञानिक विधि का अभाव है। यहां तक की व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली की कमीं को भी कभी पूरा नहीं किया गया।
यही कारण है कि सरकारी योजनाएं भी फाइलों में ही पूरी होती हैं। भले ही कृषि, पशुपालन, मछली पालन, मशरूम उत्पादन इत्यादि क्षेत्रों का बुनियादी अध्ययन कर के देख लें। यही कारण है कि किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं और राष्ट्र विश्व स्तर पर पिछड़ रहा है। यहां तक कि भारत में भारतीय अधिकारियों को हिन्दी का ज्ञान नहीं है और अंग्रेजी किसानों को नहीं आती। जो दोनों के बीच एक ऊंची दीवार है। क्योंकि शिक्षा नीति है ही नहीं, जिसके अभाव में भारत माता सहत्तर वर्षों से अधिक की स्वतंत्रता के पश्चात भी खून के आंसू रो रही है।
शिक्षा नीति के अभाव के कारण ही भारतीय न्यायाधीश शीघ्र उचित निर्णय नहीं ले पाते और याचिक तारीख पर तारीख सुनते हुए स्वर्ग सिधार जाते हैं। चूंकि चुनिंदा होनहार विद्यार्थी डाक्टर व इंजीनियर बन जाते हैं और कुछ भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रशासनिक अधिकारी बन जाते हैं। जबकि बचे-खुचे विद्यार्थी कानून की पढ़ाई कर अधिवक्ता बन जाते हैं। जिनमें से कुछ न्यायाधीश बन स्वयभू विद्वान न्यायधीश कहलाते हैं। जोकि कोरा झूठ है। किन्तु कोई बोलता नहीं। चूंकि बुद्धिमान शत्रु से मूर्ख मित्र अधिक घातक होता है।
अतः शिक्षा नीति में सकारात्मक संशोधन की परम आवश्यकता है। ताकि राष्ट्र को साधारण अधिकारी से लेकर माननीय न्यायालय के न्यायाधीश अत्यंत कुशल, बुद्धिमान और अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में निपुण हों। अन्यथा स्पष्ट कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वर्तमान शिक्षा नीति सार्थक नहीं है और ना ही बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम है। जबकि वर्तमान सरकार द्वारा पारित नई शिक्षा नीति लागू होने पर नकारात्मकता समाप्त होकर सकारात्मकता आएगी और भारत आत्मनिर्भर राष्ट्र कहलाएगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन की बुनियादी समस्याओं को दूर करने मी शिक्षा ही एक ऐसा तकनीक है जिसके माध्यम से समस्याओं का निराकरण हो सकता है वर्तमान शिक्षा नीति का उद्देश्य बुनियादी समस्याओं के निराकरण करने के उद्देश्य से बनाई गई है नीति बहुत अच्छी है लेकिन मेरे दिमाग में हमेशा एक बात उलझती रहती है शिक्षा जगत में नीति अच्छी बनाई जाती है लेकिन नीति का पालन सही तरीके से नहीं हो पाता है
शिक्षा जगत से 40 50 साल का पुराना नाता रहा है इसलिए हर नीति के संबंध में समझ है सरकार की नीतियां बहुत अच्छी होती हैं पर अनुपालन नहीं हो पाता है
बिहार की शिक्षा नीति हायर एजुकेशन में यह नीति बनाई गई
वित्त रहित शिक्षा नीति जिसकी शुरुआत 1980 की गई। दूसरी नीति यह बनाई गई निशुल्क शिक्षा
अब यहां पर कितना विवादास्पद नीति है एक संस्था जिस की मान्यता वित्त रहित शिक्षा नीति के अंतर्गत की गई है और वहां के छात्राओं से किसी भी प्रकार का शुल्क लेने की अनुमति नहीं है वह संस्था किस आधार पर आर्थिक मुझको सहन करेगा और यह नीति अभी भी वहां लागू है जिसके कारण शिक्षा का क्षेत्र में बहुत ज्यादा ही अराजकता फैली है
दूसरी सवाल यह है स्कूल प्राइमरी शिक्षा में दो तरह के स्कूल आते हैं एक सरकारी स्कूल और दूसरा प्राइवेट स्कूल सरकारी स्कूल में शिक्षा निशुल्क है और शिक्षकों का वेतन सरकार द्वारा अच्छे मानदेय दी गई और वहां से शैक्षणिक स्तर पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है यदि है अभी तो सिर्फ फाइलों में व्यवहारिक रूप से नहीं फल स्वरूप हर शहर का हर राज्य का वैसा स्कूल जो प्राइवेट है उसकी शैक्षणिक स्तर उम्दा है फल स्वरूप समाज का हर वर्ग की प्राथमिकता यह होती है कि वाह प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों की दाखिला दे यह प्राथमिकता के कारण जितने भी प्राइवेट स्कूल वाले हैं वह शुल्क किताब कॉपियां स्टेशनरी स्कूल ड्रेस इत्यादि में मनमाना मूल्य लेते हैं
तीसरी बात यह है कि हर वर्ष पाठ्यक्रम में एक बदलाव रहता है जिसके कारण प्रतिवर्ष हर परिवार के हर बच्चा को नई किताबे खरीदनी पड़ती है तो कहीं ना कहीं सामाजिक संरचना सरकार की इस प्रकार की नीति में कुचली जा रही है
शिक्षा नीति बनाई अच्छी जाती है पर शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से विश्वविद्यालय राज्य विद्यालय इत्यादि पर नियंत्रण नहीं रखी जाती है जिसके कारण अभिभावक को विद्यार्थी को बहुत सारे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इसके अतिरिक्त नियुक्ति का जो सिलसिला है वह भी दोषपूर्ण है
आने वाला समय बताएगा शिक्षा नीति सामाजिक बुनियादी समस्याओं को दूर करने में कितना सफल रहा है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
नहीं, शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम नहीं है ।उसकी पद्धति ब्रिटिश गवर्नर मैकाले की तरह है जिसने सिविल सर्विसेज वाली शिक्षा नीति बनाई थी। भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है जहां ग्रामीण क्षेत्र बहुतायत से हैं। बुनियादी समस्याओं का उद्गम भी यहीं से होता है ।अतः ऐसी शिक्षा नीति बनना चाहिए जिससे प्रशिक्षित उद्यमी तैयार हो सकें और अपने गांव ,समाज तथा देश की तरक्की में सहायक हो सकें। बुनियादी समस्याओं का उन्हें अधिक ज्ञान होने से वे उन्हें हल करने का प्रयास करेंगे और प्राप्त ज्ञान के आधार पर समर्थ भी होंगे। स्थानीय होने से उन्हें संपर्क करके समझाइश देने में भी सहायता मिलेगी।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
शिक्षा प्रकाश का दिव्य पूंज है जो मानव को सदैव अंधेरे से निकालकर सद्मार्ग पर बढाता है।नयी शिक्षा नीति इसी आधार पर फिर से आयी है।इसमें बहुत सारे ऐसे तथ्य हैं जो वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल है।आज के इस भौतिक युग में ऐसी शिक्षा नीति की नितांत आवश्यकता थी।नयी शिक्षा नीति हर वर्ग के शैक्षिक समस्याओं का हल लेकर आयी है।हम कह सकते हैं कि नयी शिक्षा नीति समस्याओं को दूर करने में सफल होगी।हम सभी भारतीय पुष्प की माला बनकर इस नीति को सफल बनाने की कोशिश करते रहेंगे और राष्ट्र नव निर्माण में अंतर्मन से सहयोग करेंगे।
- रीतु देवी प्रज्ञा
दरभंगा - बिहार
मेरे ख्याल में शिक्षा नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे बढ़ रही विधार्थियों की आत्महत्याओं पर रोक लगाए।
दिन-प्रतिदिन शिक्षा पर बढ़ता बोझ दिन-प्रतिदिन अपने बच्चों से बढती मां - पिता की आकांक्षाएं
माना कि शिक्षा नीति लगभग तीस वर्षों बाद आई है जिसमें विश्वास दिलाया जा रहा है कि राजनीति की छत्रछाया से परे होगी बुनियादी समस्याओं को दूर करेगी ।
दो हजार बीस सब नया लेकर आया है तो यह भी तय है कि
शिक्षा नीति में भी जरूर बदलाव आएगा प्राईमरी व सीनियर सेकेंडरी स्कूल को एक तर्ज पर करने का विश्वास वह विषय जो बालकों को कठिन लगते हैं उन पर ध्यान दिया गया है
N.C.E.R.T को नोड्स एजेंसी बनाना
आदि काफी साकारात्मक बदलाव हैं और यह शिक्षा में सुधार के साथ साकारात्मक बदलाव लाते हुए शिक्षा की बुनियादी समस्याओं को अवश्य हल करेगी।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
प्राचीन काल में शिक्षा पद्धति का महत्वपूर्ण योगदान था, जहाँ पर सभी तरह-तरह की शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी। शनैः-शनैः समय परिवर्तित के साथ शिक्षा में सुधार होता गया और अंग्रेजी कार्यकाल तो बिल्कुल ही बदलाव आया। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लिखित नीति निदेशक तत्वों में कहा गया हैं, कि प्राथमिक स्तर के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये। 1948 में ड़ाँ. राधाकृष्णन जी की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गठन के साथ ही भारत में शिक्षा-प्रणाली को व्यवस्थित करने का काम शुरू हो गया था। लेकिन जब-जब सत्ता परिवर्तित होती गई, तब-तब शिक्षा प्रणाली में सुधार होता गया। प्रायः देखने में आया हैं, कि विभिन्न राज्यों में अपने-अपने स्तरों पर शिक्षा प्रणालियों में अनावश्यक रूप से बार-बार सुधारों के कारण दूसरे राज्यों में परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, जिसके कारण रोजगार प्राप्तियों में अनेकों कठिनाईयों का सामना करना पड़ता हैं? वर्तमान परिदृश्य में पुनः नई नीतियों में देश में स्कूलों और उच्च शिक्षा में परिवर्तन कारी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करेगी। नई नीति का उद्देश्य 2030 तक स्कूल शिक्षा में सार्वभौमिकता का लक्ष्य निर्धारित कर स्थायित्व करने का प्रयास किया जायेगा और उनके विचारों को सार्थकता की ओर अग्रसरित करेगी।
माध्यमिक विद्यालय तक सभी विषयों पर अध्ययन यापन कर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तदोपरान्त उच्चतम स्तर पर विषयों को चयनित कर ज्ञानार्जन होगा, जो दूरगामी पहल को दर्शित करने में सार्थकता झलकेगी और बुनियादी समस्याओं को दूर करने सक्षमता का परिचय देती रहेगी?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
आज शिक्षा के बदलते स्वरूप और भारतीय शिक्षा प्रणाली को देखते हुए इस पर गंभीर विमर्श की जरूरत है और उसके लिए कुछ बुनियादी सवालों से जूझना होगा। सबसे पहला प्रश्न यह है कि शिक्षा क्या है और वह कौन-सा परिवेश है जिसमें शिक्षा बदल रही है? शिक्षा के इस बदलते परिवेश में शिक्षकों की नई भूमिका क्या होनी चाहिए? देखा जाए तो जैसे ही मनुष्य अपनी प्राकृतिक अवस्था से निकल कर सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में संगठित हुआ, शिक्षा उसका अभिन्न अंग बन गई। दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षा के चलते ही वह अपने पशु समान जीवन से मुक्त हो सका। ज्ञान साध्य है वहीं शिक्षा उस ज्ञान को प्राप्त करने का साधन।
शिक्षा मुक्ति और आजादी का सशक्त माध्यम है। शिक्षा ऐसी ताकत है जो भय, अंधकार, अज्ञान, अंधविश्वास, घृणा तथा हीन भावना से मुक्त करती है। वह जीवंत है, ऊर्जा और उम्मीदों से भरी है, इसमें किसी प्रकार का अवसाद या किसी भी तरह की हताशा नहीं है। शिक्षा में सापेक्षता की भावना निहित है। यह जहां अपनी तकलीफों के प्रति सचेत करती है वहीं दूसरों के दुख को अनुभव करने की क्षमता भी उत्पन्न करती है।
जीवन में संतोष और स्थिरता को जन्म देती है, साथ ही व्यक्ति को नवीनीकृत करते हुए उसे भविष्यद्रष्टा, समकालीन और नए विचारों से लबरेज भी करती है।
शिक्षा में इतनी विषमता पहले कभी नहीं थी, जितनी उदारीकरण और वैश्वीकरण के इस दौर में दिखती है। कुछ स्कूल बहुत महंगे और हैसियत के प्रतीक हैं। दूसरी ओर, अधिकतर स्कूल ऐसे हैं जहां न पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं हैं, न विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षक। व्यावसायिक पाठ्यक्रम वाले कॉलेजों में दाखिला पाने की मारामारी मची रहती है, क्योंकि इन पाठ्क्रमों से अच्छे कैरियर का रास्ता खुलता है। लेकिन इन कॉलेजों में प्रवेश पाना पैसे की ताकत पर निर्भर करता है।, वहां की पढ़ाई खरीदी जाती है। यह योग्यता की पूछ है, या पैसे की?
इन परिस्थितियों ने समाज को प्रभावित करना और बदलना शुरू कर दिया। फलस्वरूप भारत में शिक्षा भी प्रभावित हुई और उसका परिदृश्य बदलने लगा।
आज आम आदमी बच्चों को पेट काट पढ़ाता है सारी पूँजी झोंक देता है इस आशा में की अच्छा पैकेज मिलेगा पर प्रतिस्पर्धा की दौड़ में वह हताश व राजनिति के कारण कई दवाब नही झेल पाता तो आत्महत्या कर लेता है !
माँ बाप पैसे व बेटे दोनों से हाथ हाथ धो बैठते है ।
योग्यताओं को नज़र अंदाज न कर उन्हें आगे लाना चाहिए तभी शिक्षा आदमी की सोच बदलती है । आशा है नई शिक्षा निति जरुर बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम होगी ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
सरकार के किसी भी नीति का मूल मकसद होता है समस्याओं को पहचानना और उसका वेतन समाधान करना। नई शिक्षा नीति इस कसौटी पर कमोवेश खरी उतरती दिख रही है। नई शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में बहुत हद तक सक्षम साबित होगी। वर्तमान समय में शिक्षा की घटती गुणवत्ता देश के लिए सबसे गंभीर समस्या है। नई शिक्षा नीति इस पर ध्यान दे रही है। कई दूसरी समस्याओं का भी इसमें सैद्धांतिक हल ढूंढा गया है, मगर बड़ा और अहम सवाल यह है कि इसे व्यवहारिकता की जमीन पर उतारना बहुत आसान नहीं है। इसका उत्तर खोजने से पहले हमें शिक्षा क्षेत्र की घटती गुणवत्ता की वजूद पर ध्यान देना होगा। हमारा शिक्षा क्षेत्र योग्य शिक्षकों की कमी से लगातार जूझ रहा है।उनको प्रशिक्षण देने वाले b.ed और d.El.Ed कॉलेज शिक्षा माफिया के गढ़ बन गए हैं। इनमें से कई कालेज तो ऐसे हैं जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है,लेकिन डिग्रियां खूब बांटते हैं। यहां से प्रशिक्षण पाने वाले शिक्षक बच्चों को कैसे शिक्षा दे पाएंगे इसे तो आसानी से समझा जा सकता है। नई शिक्षा नीति इस परंपरा को तोड़ने के लिए कृति है राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद शिक्षकों के लिए मांगा तो तैयार करेगा ही शिक्षकों के ट्रेनिंग के लिए एक नया सिलेबस बनाएगा, जिसके कारण शिक्षण कार्य के लिए कम से कम योगिता 4 वर्षीय इंट्रीग्रेटेड हो जाएगी। इस विषय पर फैसला 3 साल पहले ही हो गया था, लेकिन नई नीति के माध्यम से अब इसे अमल में लाने का प्रयास हो रहा है। शिक्षकों का चयन भी एक बड़ी समस्या है। एक पूर्व मुख्यमंत्री शिक्षण के फर्जीवाड़े के कारण इन दिनों जेल में बंद है। नई शिक्षा नीति उसके लिए चयन परीक्षा की वकालत करती है। इसके अलावा वह यह भी सुनिश्चित करती है कि चयन के बाद शिक्षक पठन-पाठन में लगातार शामिल रहे और अपनी योग्यता को निखारने के लिए प्रशिक्षण कार्य करते रहें। स्कूली बच्चों को मातृ भाषा में पढ़ने के छूट देना भी एक अच्छी सोच है। हालांकि इसे व्यवहारिक रूप में अमल में लाना बहुत ही मुश्किल होगा, क्योंकि आज स्कूलों में जितने शिक्षकों की जरूरत है उतने की भी नियुक्ति नहीं हो पा रही है। फिर मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने में ऐसे शिक्षकों की जरूरत बढ़ जाएगी, जो दो भाषाओं में दक्ष हो। जाहिर है इन सब के लिए योग्य शिक्षकों के अलावा पर्याप्त धनराशि की भी जरूरत होगी, जिसके बारे में नई शिक्षा नीति स्पष्ट रूप से पर कुछ नहीं कहती। खराब शैक्षणिक व्यवस्था की दूसरी वजह है बच्चों के आकलन की गलत प्रक्रिया मौजूदा मूल्यांकन प्रक्रिया से यह पता नहीं चलता है कि बच्चे कितना सीख रहे हैं। इसके लिए आप एक राष्ट्रीय संस्था बनाई जाएगी जो समय समय पर मूल्यांकन करेगी। आप तक यह काम एनसीईआरटी के जिम्मे था जो अच्छा काम तो कर रही थी मगर एक विशेषज्ञ संस्कृत बन जाने से हालात और बेहतर होंगे। इस संस्था को नात शरीफ धरातल की समस्याओं का ज्ञान होगा। बल्कि उनके समाधान का मार्गदर्शन भी यह कर सकेगी।इसके अलावा तीसरा कारण था नैनीताल की शिक्षा पर नाम मात्र का ध्यान देना। अभी तक इस बारे में ज्यादा सोचा ही नहीं गया था, जबकि साथ 8 साल का बच्चा दिमागी रूप से स्वस्थ्य हो जाता है। नई शिक्षा नीति बताती है कि इसके लिए शिक्षा विभाग और बच्चों के बेहतरी में जुटी संस्थाएं आपस में मिलकर काम करेगी। जाहिर है कि नई शिक्षा नीति समस्याओं पर 2 गए तो गौर कर रही है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर उसका आधा अधूरा है समाधान पेश कर रही है। इसमें पहली समस्या तो जाहिर तौर पर धनराशि के अभाव की है। पैसों का इंतजाम कैसे होगा इस पर नई नीति चुप है इसमें सिर्फ मान लिया गया है कि बजट का इंतजाम हो जाएगा फिर अन्य कठिनाइयां भी है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
34 साल के बाद मैकाले की शासन करतीं शिक्षा पद्धति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने शिक्षा नीति में आमूल चूल परिवर्तन करके देश की शिक्षा नीति को पूरी तरह से बदल दिया है. विकास मंत्रालय का नाम बदल के देश को नया शिक्षा मंत्रालय नाम दे दिया है, नया शिक्षा मंत्री भी मिलेगा.
3 साल पांचवीं कक्षा तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने को अनिवार्य बताया है ।
मेरे मत से प्राइवेट या फिर मिशनरी स्कूलों में यह फार्मूला लागू होने में सन्देहास्पद लगता है
हमारर जमाने से अब तकनशिक्षा नीति में जो 10+2 की थी, अब उसकी जगह सरकार 5+3+3+4 की बन रहे र है.
5+3+3+4 में 5 का मतलब है - तीन साल प्री-स्कूल के और क्लास 1 और 2 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 3, 4 और 5 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 6, 7 और 8 और आख़िर के 4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12.
यानी अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में फ़ॉर्मल स्कूल में जाने लगेंगे. अब तक बच्चे 6 साल में पहली क्लास मे जाते थे, तो नई शिक्षा नीति लागू होने पर भी 6 साल में बच्चा पहली क्लास में ही होगा, लेकिन पहले के 3 साल भी फ़ॉर्मल एजुकेशन वाले ही होंगे. प्ले-स्कूल के शुरुआती साल आंगनवाड़ी के रूप में होंगे ।
जहाँ बच्चों को पढ़ाएँगे नहीं बल्कि खेल- खेल बच्चा सीखेगा और संस्कार स्कूल के शिक्षक सीखाएँगे ।
शिक्षानीति के बदलाव से जीविकोपार्जन हर भारत के भविष्य को नसीब हो सकेगा । मुझे सन्देह लगता है ।
अब तो वक्त ही बताएगा बेरोजगार देश में नहीं रहेंगे ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
मेरे विचार से नई शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम होगा। नई नीति में बताया गया है,पांचवी क्लास तक मातृभाषा स्थानीय भाषा या छेत्रीय भाषा में पढ़ाई होगी ।
छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे।
जिस बच्चों को जिस और रुझान होगा उसको वोकेशनल कोर्स कराया जाएगा।
यह नीति 9 सदस्य कस्तूरीरंगन समिति द्वारा तैयार की गई है।
शिक्षण व्यवस्था को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है पहले भाग में विद्यालय शिक्षा दूसरे में उच्च शिक्षा तीसरे में प्रौद्योगिकी व्यवसायिक व वयस्क शिक्षा को रखा गया है चौथे भाग में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के जरिए शिक्षा में बदलाव लाने की बात कही गई है।
नए पाठ्यक्रम और शिक्षण वर्ष 2022 तक स्कूली पाठ्यक्रम और शिक्षण के तरीके में बदलाव किया जाएगा। ताकि बच्चों को बदलाव समग्र विकास हो जिससे गहन सोच-विचार,वैज्ञानिक मनोवृति,सामाजिक दायित्व, डिजिटल साक्षरता जैसी 21 वी सदी के पद्धति को 5+3+3+4 के रूप मे रखा गया है।
समावेशी व न्यायसंगत शिक्षा बिना किसी भेदभाव के सभी बच्चों को समान अवसर मिले सभी लड़कियों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा उपलब्ध हो।
स्कूल रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन:- रेगुलेशन के लिए स्वतंत्र राज्य विद्यालय नियामक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा।
उच्च शिक्षा :-गुणवत्ता आधारित विश्वविद्यालय और कॉलेज में विषयों और क्षेत्रों के अध्ययन को सुविधाजनक बनाया जाएगा।
अधिक उदार शिक्षा की ओर:- छात्रों के बहुमुखी विकास हेतु पहल की जाएगी।
सभी उच्च शिक्षण संस्थान में वोकेशनल एजुकेशन कोर्स और प्रोग्राम संचालित होंगे।
प्रौढ़ शिक्षा एवं व्यवसायिक शिक्षा के लिए भी नई कार्य योजना बनाने की बात कही गई है।
लेखक का विचार :-शिक्षा सुधार के स्वागत योग पहल। इसमें बहुत सी चीजें हैं जो काफी फलदाई होगी।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
केन्द्र सरकार ने 34 वर्ष बाद नयी शिक्षा नीति को स्वीकृति प्रदान कर दी है। इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम परिवर्तित कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।
संचार माध्यमों द्वारा नयी शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण बिन्दु जन-जन तक पहुंच चुके हैं।
मैं मुख्य तौर पर कुछ बिन्दुओं की ओर ध्यानाकर्षित करना चाहूंगा:-
1. नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत अब 5वीं तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्र भाषा में ही पढ़ाया जाएगा। इससे ज्ञानार्जन करने में विद्यार्थियों को सुलभता होगी।
2. अब पाठ्यक्रम का चयन छात्रों की अभिरुचि पर निर्भर होगा अर्थात् कला, वाणिज्य, विज्ञान स्ट्रीम का कोई कठोर पालन नहीं होगा। इससे छात्रों पर अनावश्यक दबाव नहीं होगा।
3. अब केवल 12वीं में ही बोर्ड परीक्षा होगी। इससे बोर्ड परीक्षाओं का भय कम होगा।
4. कक्षा-6 से व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रारम्भ किए जायेगा। जिसमें इच्छुक छात्रों को इस कक्षा से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी। व्यवसायिक पाठ्यक्रम वर्तमान समय की महत्वपूर्ण मांग है।
5. इसके अलावा म्यूज़िक और आर्ट्स को बढ़ावा दिया जाएगा। जिससे इन विषयों में विद्यार्थियों की उदासीनता कम होगी।
6. नई शिक्षा नीति में संगीत, दर्शन, कला, नृत्य, रंगमंच, उच्च संस्थानों की शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जायेगा। इससे विद्यार्थियों के लिए नयी जीवन राह खुलेंगी।
7. उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50 फीसदी शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा में शामिल होना होगा। यह लाभकारी होगा।
इसके अतिरिक्त नयी शिक्षा नीति में अनेक बिन्दु ऐसे हैं जिनसे छात्रों को लाभ होगा। उपर्लिखित जिन बिन्दुओं का उल्लेख किया है उन्हीं से प्रतीत होता है कि नयी शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम है। क्योंकि वर्तमान समय में किसी भी बालक की प्रारम्भिक शिक्षा उसके जीवन की नींव होती है। इसमें प्रारम्भिक शिक्षा का ठोस रूप दृष्टिगत हो रहा है। इसके साथ ही आज के समय में व्यवसायिक प्रशिक्षण भी अति आवश्यक है जिनको प्रारम्भ (कक्षा-6) से ही करने की व्यवस्था शिक्षा नीति में है, जो विद्यार्थियों के लिए अति हितकर होगी।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
यदि शिक्षा की बात की जाए, तो प्रत्येक छात्र के अंदर कुछ गुण होते हैं, जिन्हें उभारने को शिक्षा कहते हैं। लेकिन श्री विवेकानंद जी के अनुसार मानव में जो शक्ति है। उसका सम्पूर्ण विकास ही शिक्षा है। जिसमें मानसिक, तकनीकी एवं चरित्र का निर्माण एवं विकाश इत्यादि समलित हैं। किन्तु वर्तमान में जो शिक्षा मिल रही है। उसमें शिक्षा उचित ढंग से नहीं मिल रही है।
इस समय तक की शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम नहीं है। यही नहीं असंख्य पढ़े-लिखे युवा शक्ति बेरोजगारी से त्रस्त है।
उल्लेखनीय है कि जब भारत आजाद हुआ था तो सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा पर ही बल दिया था। जिसे तकनीकी शिक्षा भी कहा गया था। जिससे बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ रोजगार करने की शिक्षा भी दी जाए,जो अभी भी अधूरी है।
सर्वविदित है कि यदि बुनियादी शिक्षा पर बल दिया होता तो हमारा देश भी विदेशों की भांति अग्रणीय होता है। क्योंकि गांधी जी ने 'थ्री एच' सिद्धांत पर जोर दिया था। जिसमें मस्तिष्क,हृदय और हाथ महत्वपूर्ण हैं। ताकि बच्चों का सर्वोत्तम विकास हो सके। जिससे बच्चे आत्मनिर्भर हो सकें।
अभी-अभी जो नई शिक्षा लागू होने जा रही है।वह बुनियादी शिक्षा ही है।जिसको वर्तमान सरकार ने मंजूरी दे दी है। जो 34 वर्ष के बाद उठाया गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि नई शिक्षा नीति और इस शिक्षा नीति में वो सारी बातें हैं। जिनसे बुनियादी समस्याएं ही दूर नहीं होंगी बल्कि हमारा देश जो 'बेरोजगारी सहित विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है' से उभर कर प्रथम श्रेणी पर आ जाएगा।
अतः वर्तमान सरकार द्वारा पारित नई शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
समय और परिस्थिति के अनुसार सामाज में तबदीली आती रहती है। तबदीली कुदरत का नियम है। उसी तरह समय-समय पर शिक्षा नीति में भी बदलाव करने पड़ते हैं। देश में आजादी के बाद 1968 में शिक्षा नीति बनी। उस में समय के अनुसार काफी कमियां नजर आईं। फिर 1986में शिक्षा नीति लागू हुई, जिस में समय के अनुसार संशोधन किए गए। 2009 में संशोधन के बाद बच्चों के लिए शिक्षा को बुनियादी अधिकार माना गया और 14वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा के दायरे में लाना अनिवार्य कर दिया। इस में काफी सफलता भी मिली। इस से हमने साक्षरता के टीचे को पूरा किया।
लेकिन अब तक हमारी शिक्षा बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए सक्षम नहीं है। इंसान की बुनियादी जरूरतें हैं रोटी, कपड़ा और मकान। लेकिन आज हमारे देश में बेरोजगारों की लाइनें लगी हुई हैं। नौकरी नहीं है।
दूसरा हमारी शिक्षा नीति में विद्या गौण है। हमें शिक्षा और विद्या के अंतर को समझना होगा। मेरा मतलब नैतिक मूल्यों में गिरावट। हमारी शिक्षा नीति डिग्रियां तो धड़ाधड़ दे रही है और इंसान अपनी इंसानियत से नीचे की ओर जा रहा है।इतना पढ़ लिख कर भी अपनी रुढिवादी और संकीर्ण सोच से बाहर नहीं निकल पाया।
हमारी शिक्षा में पुस्तकीय ज्ञान को बढावा दिया गया है और तकनीकी ज्ञान पर कमतर।इस से सामाज में असंतुलन पैदा हो गया है। इस लिए हमारी शिक्षा नीति हमारी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए सक्षम नहीं है बल्कि गरीब और अमीर में बहुत बड़ा पाट (फर्क) आ गया है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
बुनियादी समस्याओं रोजगार, स्वास्थ्य और सुरक्षा को दूर करने में नई शिक्षा नीति सक्षम होगी या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन प्रथम दृष्टया यह अवश्य है लग रहा है देश में बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी करने में यह शिक्षा नीति विशेष योगदान देगी। विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में आने, विदेशी और क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा देने की नीति,चार वर्षीय स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम में प्रवेश और बाहर जाने की छूट, डिप्लोमा सर्टिफिकेट डिग्री जैसी व्यवस्था विषम परिस्थितियां बढ़ाने में सहायक होंगे। क्षेत्रीय भाषा में ग्रेजुएशन कराने की नीति,इससे रोजगार कैसे संभव होगा स्पष्ट नहीं है।
प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था एक अच्छी पहल है लेकिन शिक्षा के व्यवसायीकरण और निजी करण पर कोई व्यवस्था न देना पहले जैसी ही परिस्थितियां बनी रहने का कारण रहेगा। अमीर और गरीब के बीच का शिक्षा संस्थानों में अंतर पहले की तरह ही बना रहेगा। इस संबंध में नयी शिक्षा नीति कुछ नहीं कहती। पहले कक्षा 5 फिर कक्षा 8 और अब कक्षा 10 से भी बोर्ड की परीक्षाओं को समाप्त कर,परीक्षा का भय तो कम किया गया है किंतु इससे छात्रों में लापरवाही, काम चलाऊ तैयारी करने की प्रवृत्ति को बढ़ाएगा। वैसे अभी
यह राज्यों पर निर्भर है कि वह इसे किस तरह लागू करते हैं। परिवर्तन की इस बयार में नमी शिक्षा नीति एक ताजा हवा का झोंका जैसा है,जो बीमार व्यवस्था को कितनी आॅक्सीजन दे पाएगा,यह भविष्य ही बताएगा।
डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
समता के आधार पर देखें तो अभी तक जो शिक्षा नीति बनी है उच्च शिक्षा नीति से बुनियादी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका है क्योंकि इसका कोई ना कोई कारण तो जरूर होगा चाहे वह शिक्षा नीति में कमियां हो सकती है या लोगों को शिक्षा नीति पूर्ण रूप से स्वीकार ना होना इसी को आधार मानकर लोग अपनी समस्याओं की पूर्ति करने में लगे हुए हैं लेकिन अभी तक हमारी बुनियादी समस्याएं पूर्णा नहीं हो पा रही है वर्तमान में शिक्षा नीति में बदलाव किया जा रहा है शायद नई शिक्षा नीति में इसका कोई ठोस विकल्प का चुनाव किये होंगे तो जरूर नई शिक्षा नीति से बुनियादी समस्याओं का हल हो सकता है ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है इच्छा माध्यम है ज्ञान का शिक्षा के माध्यम से ही अगर मनुष्य को वास्तविक ज्ञान का पता होता है तो मनुष्य इस ज्ञान का सदुपयोग कर हर समस्याओं से निजात पा सकता है रही बात ऐसी कौन सी ज्ञान दी जाए जिससे हर आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके हमारी मन स्वस्थ और तन स्वस्थ और वातावरण स्वस्थ हो ऐसी शिक्षा की आवश्यकता वर्तमान समाज में महसूस की जा रही है लेकिन देखेंगे की नई शिक्षा नीति में कौन सा ज्ञान का समावेश किया गया है आने के बाद ही पता चलेगा अंतिम में यही कहा जा सकता है कि अगर शिक्षा नीति हमारी मानव की कल्याण आरती के लिए हो तो जरूर बुनियादी समस्याओं से निजात हो सकते हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लगभग 34 साल बाद नई शिक्षा नीति का जो लगभग 60 पन्नों का मसौदा आया है उसके अनुसार बुनियादी समस्याएं दूर होंगी यह सुनिश्चित है। इससे पहले कि आगे बात करूं यह आप सभी को मालूम होना चाहिए कि इस नीति को अपनाने में 15 से 20 वर्ष का समय लग सकता है। ऐसा नहीं कि आज नीति घोषित हुई और कल से ही लागू हो गई। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। अब बात करें तो बुनियादी समस्याएं बहुत विस्तृत हैं। 60 पन्नों के इस मसौदे में 25 से 30 पन्ने तो केवल प्राथमिक शिक्षा के बारे में बात करते हैं। वोकेशनल एजूकेशन पर बहुत अधिक जोर दिया गया है। यह सबसे बड़ा सुधार कार्य होगा। छठी कक्षा से ही व्यावसायिक पाठ्यक्रम आरम्भ कर दिये जायेंगे। इन्हें गंभीरता से लिया जायेगा और छठी से आठवीं तक इन्टर्नशिप जैसी व्यवस्था भी लागू होगी। विदेशों में भी यही व्यवस्था होती है। इस आयु में बच्चे बहुत जल्दी सीखते हैं। वर्तमान में 12वीं कक्षा में व्यावसायिक पाठ्यक्रम रहता है वह इतना कारगर सिद्ध नहीं होता। नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत जब बच्चा स्कूल से पढ़कर निकलेगा तो उसके पास उसके हुनर का भी विवरण होगा जिससे उसे नौकरी मिलने में आसानी होगी। यह एक बहुत बड़ा सुधारवादी परिवर्तन होगा। 10$2 के स्थान पर 5़$3$3$4 की शिक्षा पद्धति लागू की जायेगी। इस शिक्षा नीति को इस सदी की युवा पीढ़ी के हित में बताया जा रहा है। इस नीति के अन्तर्गत व्यक्तित्व तथा कौशल के विकास, व्यावसायिक कुशलता, मानसिक जागृति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, आरम्भिक स्तर पर स्थानीय अथवा मातृभाषा में शिक्षा जिससे कि शीघ्र समझ आ सके, विषयों में रुचि पैदा करने वाली योजनाएं सम्मिलित हैं। अनेक ऐसे विकल्प दिए गए हैं कि छात्र जीवन की आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम का एक स्तर पूरा करके छोड़ सकता है तथापि उसकी योग्यता में अधूरापन नहीं रहेगा। कुछ लोगों का मत है कि इस नीति के प्रभाव से शिक्षा महंगी हो जायेगी जबकि शुल्क नियंत्रण से लम्बी दूरी का फायदा होेने के प्रबल संकेत हैं। इस शिक्षा नीति के अन्तर्गत भारतीय शिक्षा का स्तर अन्तरराष्ट्रीय शैक्षिक मापदंडों से तालमेल स्थापित कर सकेगा। एक और बड़ा सुधार है कि यदि किसी कारणवश किसी को पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ती है और बाद में उसे लगता है कि वह अब पढ़ाई कर सकता है तो उसके लिए यह सुविधा होगी कि उसने जहां तक पढ़ाई की थी वहीं से ही आगे चालू कर सकता है। ये भी एक बुनियादी समस्या थी जो हल हो जायेगी। एम.फिल. हटा दिया गया है। यूजीसी और एआईसीटीई संस्थाएं नहीं रहेंगी। इनके स्थान पर एक रैग्युलेटरी बाॅडी की स्थापना होगी जो सभी व्यवस्थाओं को देखेगी। इससे अनेक बुनियादी समस्याएं समाप्त हो जायेंगी। उच्च शिक्षा में मोटी फीसों को ध्यान में रखते हुए उन पर नियंत्रण करने के लिए अंकुश लगेगा। शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य शिक्षा को रुचिकर बनाना है और इसका विस्तार करना है जिससे कि वर्तमान में हो रहे ड्राप-आउट्स की संख्या बहुत कम हो सके और शिक्षा के प्रति अधिकार का लक्ष्य प्राप्त हो सके। एक और बुनियादी समस्या है कि 99.9 प्रतिशत वाले को भी प्रवेश मिलना मुश्किल हो जाता था। इससे छात्र. अवसाद में चले जाते थे और आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लिये जाते रहे। अब एक कामन प्रवेश परीक्षा होगी जिसके अनुसार प्रवेश मिलने में आसानी होगी। मिनिमम कट-आ फ निर्धारित कर दी जायेगी। यह बुनियादी समस्या भी समाप्त हो जायेगी। यूनिवर्सिटी में कालेजों की संख्या भी 50 तक सीमित कर दी गई है। इससे नयी यूनिवर्सिटीज़ बनेंगी। बहुत सी बाते हैं जिनकी चर्चा करने से आलेख बहुत लम्बा हो जायेगा। कुल मिलाकर नई शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
शिक्षा नीति के निर्धारण के पहले हमें शिक्षा का उद्देश्य और उसकी समस्याओं को समझना होगा। उसकी उपयोगिता को बढ़ाने पर भी विचार किया जाना चाहिए।
आज की शिक्षा छात्रों को कभी इस पार कभी उस पार लुढ़का रही है।
इस बार की नीति में देशवासियों की भागीदारी है। इस बार 5 वीं तक स्थानीय भाषा को महत्व दिया गया है, परन्तु स्थानीय भाषा भी तो अनेकों हैं। उसका क्या ? यह निश्चित होना चाहिए कि एक भाषा में पढ़ाई हो और वह भाषा सबके द्वारा ग्राह्य हो।
दूसर तथ्य है व्यवसायिक शिक्षा का प्रशिक्षण छठे वर्ग से ही शुरू की जाएगी। यह एक उत्साहवर्धक बदलाव है। सबसे अच्छी बात है कि छात्रों को अपनी पसंद के विषय चुनने की छूट दी जा रही है। अनावश्यक विषय उन्हें नहीं पड़ने पड़ेंगे।
इस तरह शिक्षा नीति को पारदर्शी और उपयोगी बनाया जा रहा है। हाँ, समस्याएं शायद कम हों और रुचि बढ़ेगी। ऐसी हमारी उम्मीद है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
हमारी बुनियादी समस्यायें हमारे खुद के जीवन से जुड़ी हैं ।यह समस्यायें शिक्षा के माध्यम से ही दूर हो सकती हैं ।इसके लिए जरुरी है अच्छी शिक्षा प्रणाली हो जो सरल और मितव्ययता से युक्त हो ।शिक्षा देश और व्यक्ति दोनों का भविष्य तय करती है ।यह विषय किसी एक से नहीं सबसे जुड़ा है ।पढ़ने के लिए उचित माहौल चाहिए योग्य शिक्षक चाहिए ।आज की नयी निती में मुझे कौशल विकास ,और रुचि के अनुसार शिक्षा को ग्रहण करने की नीति बहुत अच्छी लगी ।डिग्री के साथ हुनर हो तो व्यक्तित्व में चार चाँद लगते हैं।शिक्षा विभाग का कुछ भी नाम हो ,नाम परिवर्तन से फर्क नहीं पड़ता ,सरलता हर दृष्टि से विषय को रुचिकर बनाती है ।शायद इससे विदेशी पद्धति के मुकाबले स्वदेशी की तरफ झुकाव हो ।अमीर -गरीब सबके लिए शिक्षा बराबर की मान्यता रखेगी । शिक्षा की नयी जमीन तैयार हो रही है ,नये वृक्ष लग रहे हैं ,नया मानक तैयार खड़ा है ये बदलाव जरुर व्यक्ति और देश दोनों को सुदृढ़ बनायेंगे ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
जिस कार्य को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी वह क्षेत्र शिक्षा का ही है। नई शिक्षा नीति में मात्रृभाषा को प्राथमिकता दी गई है यह सही दिशा में उठा एक बड़ा कदम है।
नई शिक्षा नीति में बच्चों पर दबाव कम करने व उनके हुनर को देख उसे बढ़ाने का जो लक्ष्य रखा गया है वह बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। मात्र डिग्री लेने से व्यक्ति कलर्क या सहायक तक ही सीमित रहता है लेकिन जब उसे मनचाही शिक्षा मिलती है तो उसके व्यक्तित्व का विकास पूर्णता के साथ होता है।
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत उच्च शिक्षा में मल्टीपल एंट्री एंड एक्जिट होगा यानी मान लें आप बीटेक में एडमिशन लिए, 2 सेमेस्टर बाद उस में रुचि खत्म हो गई पढ़ाई करने की, तब वो साल खराब नहीं होगा। एक साल के आधार पर सर्टिफिकेट मिलेगा और 2 साल पढ़ने पर डिप्लोमा कोर्स। पूरा पढ़ाई करने पर डिग्री मिलेगी। इस तरह की व्यवस्था होगी। कहीं नई जगह एडमिशन लेने के लिए रिकॉर्ड कंसीडर किया जाएगा। इसे सरकार की पॉलिसी में क्रेडिट ट्रांसफर कहा गया है। आपने कोर्स पूरा नहीं किया लेकिन जितना किया उसका क्रेडिट आपको मिल जाएगा। इससे उन सभी विद्यार्थियों को फायदा मिलेगा जो परिस्थितिवश बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं या उस विषय को न समझ पाने के कारण बीच में अपना सब्जेक्ट बदलना चाहते हैं।
देश भर की हर यूनिवर्सिटी के लिए शिक्षा के मानक एक समान होंगे। इसी तरह से महत्वपूर्ण बिंदुओं पर तरह-तरह के जो बदलाव किए गए हैं वह अभी सही महसूस हो रहे हैं।
नई शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर कर विद्यार्थी को दबाव मुक्त कर व्यक्तिगत विकास में सहायक बनने का प्रयास है। शिक्षा में लचीलापन और व्यावहारिकता होना छात्रों के लिए हितकर साबित होगा। पूर्ण विश्वास है कि नई शिक्षा नीति बुनियादी समस्याओं को दूर करने में सक्षम साबित होगी।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
"शिक्षा "शब्द का सामान्य अर्थ है कुछ सीखना l कुछ सीखने के लिए पढ़ना लिखना आना विशेष आवश्यक नहीं है l संत कबीर ने मसि -कागद कभी छुआ तक नहीं फिर भी महान ज्ञानी थे l वर्तमान शिक्षा प्रणाली बुनियादी समस्याओं कोसुलझाने में समर्थ (सुशिक्षा तो कतई नहीं )नहीं हो पा रही है l
कोई भी शिक्षा प्रणाली तभी अच्छी सफल और सार्थक कही जाती है जब वह शिक्षा पाने वाले का वास्तविक हित साधन कर सके, उनके मन मस्तिष्क में ज्ञान का प्रकाश आलोकित करके उत्साह और आनंद का संचार कर भविष्य के लिए आश्वस्त कर सके l
वर्तमान शिक्षा नीति ने हमें अपने जीवन, अपनी सभ्यता संस्कृति और उसके मूल्यों से तोड़ कर अलग कर ही दिया है l लार्ड मेकाले द्वारा चलाई इस शिक्षा पद्धति ने भारतीयता ही नहीं छीनी, उससे उसकी ऊर्जा, श्रम करके आगे बढ़ पाने की मानसिकता तक छीन ली है l उसे मात्र नौकरी से प्राप्त होने वाली कुर्सी पाने की इच्छा का गुलाम बना दिया है, फिर चाहें वह कुर्सी एक क्लर्क या चपरासी की ही क्यों न हो l
आज का युवक पंद्रह सोलह वर्ष गवांकर हाथों में डिग्री -डिप्लोमा के नाम पर एक मोटा कागज़ लेकर आता है तो अपने आप को नितांत असहाय पाता है l फलतः नशाखोरी, जुआ, सिगरेट, रिश्वत, चोरी चकारी का बाज़ार गर्म हो रहा है l यह उस विवेक को जागृत ही नहीं कर पाती जो जीवन की नींव बनकर उस पर अपने स्वाभाविक व्यवहारों का महल खड़ा करने की प्रेरणा दिया करता है l
शिक्षा को बुनियादी तौर पर व्यवसायोन्मुख बनाना आवश्यक है l उसे नैतिक उत्थान करने तथा अपनापन प्रदान करने में समर्थ बनाना आवश्यक है l
शिक्षक को शिक्षक नहीं रहने दिया जाता वह न जाने कितने विभागों का सूचनावाहक बना हुआ है l उस पर सूचनाओं, आंकड़ों का दवाब हरपल बना रहता है l ऐसी शिक्षा नीति को यदि न बदला गया तो भगवान ही रक्षक है इस देश का l
तकनीकी ज्ञान एक सीमा तक ठीक है पर उसका दुरूपयोग प्रभु मालिक है l
चलते चलते ---
1. शिक्षित व्यक्ति के चेहरे पर एक विद्व्ता एवं जागृत योग्यता का ऊर्जस्वित भाव कहाँ दिखाई देता है?
2. शिक्षा का भारतीयकरण हो l
3. शिक्षक को शिक्षक रहने दो
शिक्षण कार्य है उसका करने दो
चॉक कलम को छोड़ के पीछे
दस्तावेजों को थमा दिया l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
34 साल बाद आई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं बच्चों पर से बोर्ड परीक्षा का भार कब किया जाएगा उच्च शिक्षा के लिए एक नियामक होगा पढ़ाई बीच में छूटने पर पहले की पढ़ाई बेकार नहीं होगी 1 साल की पढ़ाई पूरी होने पर सर्टिफिकेट और 2 साल की पढ़ाई पूरे होने पर डिप्लोमा सर्टिफिकेट दिया जाएगा-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में नई शिक्षा नीति पर मुहर लगाई गई हैइसमें 2030 तक प्री प्राइमरी से लेकर उच्चतर माध्यमिक तक सब फ़ीसदी और उच्च शिक्षा में 50 फ़ीसदी प्रवेश दर हासिल करने की बात कही गई है शिक्षा पर सरकारी खर्च 4. 43 फीसदी से बढ़ाकर जीडीपी का छह फ़ीसदी तक करने का
लक्ष्य है।
स्कूलों में टेन प्लस टू खत्म कर शुरू होगा 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 फॉर्मेट
नई शिक्षा नीति के बाद बच्चों को 5 साल फाउंडेशन स्टेज से गुजरना होगा। छठी कक्षा से ही रोजगार परक शिक्षा नई शिक्षा नीति 2020 पांचवी कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाई बड़ी बात संस्कृत भाषाओं के साथ-साथ तमिल तेलुगु और कन्नड़ में पढ़ाई पर भी जोर दिया गया परीक्षा का स्वरूप बदल कर अब छात्रों की क्षमताओं का आंकलन भी उनके याददाश्त और बौद्धिक स्तर क्या आधार पर किया जाएगा।
डॉक्टर कस्तूरीरंगन ने कहा अब छठवीं कक्षा से ही बच्चों को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी।
स्थानीय स्तर पर इंटरशिप व्यवसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा,इससे बेरोजगार तैयार नहीं हो स्कूल के बच्चों को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी।
10वीं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के प्रारूप बदले जाएंगे। नई शिक्षा नीति में एमफिल खत्म कर 4 साल ग्रेजुएशन फिर M Aऔर उसके बाद सीधा पीएचडी यह बड़ा बदलाव है। यूजीसी एनसीटी एआईसीटीई रेगुलेटरी बॉडी, उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने कहा इनके जगह नया नियामक होगा उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन प्रवेश परीक्षा दी जाए। स्कूल में प्राइमरी लेवल पर स्पेशल सिलेबस तैयार होगा । शिक्षा में तकनीकी में विशेष जोर दिया जाएगा।
प्रोफेसर जगदीश कुमार ने कहा या राष्ट्रीय शिक्षा नीति ऐतिहासिक है ग्राम पंचायत ब्लॉक स्तर जिला स्तर पर हम पूरे विषय पर परिचर्चा करने के बाद ही इसका अंतिम प्रारूप रखा गया है।
पांचवी कक्षा तक के मातृभाषा में ही पढ़ाई हो त्रिभाषा फार्मूला विद्यार्थियों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को एक विकल्प के रूप में चुनने का अवसर दिया जाएगा किसी भी विद्यार्थी पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगीभारत के अन्य पारंपरिक भाषा और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे विद्यार्थियों को एक भारत श्रेष्ठ भारत पहल के तहत 6 से 8 ग्रेड के द्वारा किसी समय भारत की भाषाओं पर एक आनंद परियोजना गतिविधि में भाग लेना होगा।
नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति मिलेगी विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत के विद्यार्थियों को विश्व के बेहतरीन इंस्टिट्यूट व यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के लिए विदेशों में नहीं जाना पड़ेगा।यूपी 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग दो करोड़ बच्चों को मुख्यधारा में वापस लाया जाएगा।
बुनियादी समस्याओं को दूर करने में
नई शिक्षा नीति अवश्य सक्षम है।
इस नई शिक्षा नीति के जरिए शिक्षा में समानता लाई जा सकती है इसके साथ ही देश में बढ़ती बेरोजगारी की समस्याओं को समाप्त करने में बहुत हद तक कारगर सिद्ध होगी।
नई शिक्षा नीति का तहे दिल से स्वागत करती हूं।
- आरती तिवारी सनत
- दिल्ली
" मेरी दृष्टि में " शिक्षा ऐसी होनी चाहिए । जिससे रोजगार , तुरन्त मिल सकता हो । शुरू से ही रोजगार को प्राथमिकता देना चाहिए । तभी शिक्षा व्यवस्था ठीक कहा जा सकता हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
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