क्या प्रतिभा सिर चढकर बोलती है ?
कहते हैं कि प्रतिभा इंसान लेकर पैदा होता है । वह प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है । कई बार प्रतिभा को मौका नहीं मिलता है । ऐसी स्थिति में प्रतिभा का कोई महत्व नहीं रह जाता है । यहीं कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को देखते हैं : -
प्रतिभा कभी किसी की मोहताज नहीं होती वह हर देश काल परिस्थिति में अपना रास्ता स्वयं बना सकता है और अपनी मंज़िल तक पहुँच जाता है ऐसे हजारों उदाहरण हमारे सामने हैं जहाँ पर लोगों ने अलग – अलग क्षेत्रों में सफ़लता अर्जित की है | जहाँ लोगों ने अपने भीतर छुपी प्रतिभा को पहचाना और उसी क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए सफ़लता को पाया । आपने ये बात पहले भी सुनी होगी कि इन्सान तभी कामयाब होता है कि “जब वह वो काम करे जिससे वह प्यार करता है, या फिर जो भी काम वह करता है उससे प्यार करना सीख ले |” यह क्वालिटी प्रतिभाशाली व्यक्तियों में कूट कूटकर भरी होती है । महान दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि “जीवन का आनंद स्वयं को जानने में है”। स्वयं का निरिक्षण करना, अपनी प्रतिभा का पता लगाना और अपनी उस विशेष प्रतिभा का निरंतर विकास करना । वास्तव में यही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिये । यदि हम ऐसा कर लेते हैं, तभी सही मायने में हम सफ़ल हो पायेंगे । यह समझ प्रतिभा सम्पन्न में प्रकृति प्रदत्त होती है । अब तक सफ़ल हुए लोगों में से किसी का भी इतिहास उठा कर देख लीजिये । आप पायेंगे कि उनमें एक बात समान है, और वह यह है कि उन्होंने अपनी प्रतिभा को पहचाना और केवल उसी पर ध्यान दिया । परिस्थिति चाहे जो रहीं हों उन्हें देरी तो हुई है पर असफल नहीं रहे वैसे भी सफलता और असफलता का कोई अर्थ प्रतिभाशालियों के लिए किसी काम का नहीं होता है । ऐसे अनेक उदाहरण है । बल्ब बनाने वाला एडिशन हो या मिसाइलमैन डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम हो या चाय बेचने वाले प्रधानमंत्री मोदी ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
प्रतिभा जब सफलता और प्रतिस्पर्धा से आच्छादित हो जाये तो सिर पर चढ़ कर बोल सकती है। एक प्रतिभा वह है जो हमें जन्म से और संस्कारों में मिलती है। यह हमेशा अटल रहती है। दूसरी प्रतिभा वह है जो हम शिक्षा ग्रहण करने के बाद विकसित करते हैं। अब यह हमारे मन की स्थिति और संस्कारों पर निर्भर करता है कि हम इस प्रतिभा से घमंड करने लगते हैं या विनम्रता की मूर्ति बन कर रहते हैं। स्वामी दयानन्द जी से अनेक पंडितों और विद्वानों ने शास्त्रार्थ किए जिसके पीछे उनका मंतव्य होता था स्वामी दयानन्द जी को नीचा दिखाना। इन पंडितों और विद्वानों की प्रतिभा जो कभी सिर पर चढ़ कर बोलती थी स्वामी जी के तर्कों के सामने अपने घमंड के कारण पराजित हुई। प्रतिभा को कभी भी सिर पर चढ़ कर न बोलने दें। विनम्र रहें। धन्यवाद।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
प्रतिभा सभी में होती है! केवल उसे पहचानने और निखारने की जरुरत है! बचपन में माता पिता अपने बच्चे की प्रतिभा को देख और समझ उसे बढ़ावा देते हैं!
प्रतिभा है क्या? उसकी रूचि!
यदि व्यक्ति को उसकी रूचि के अनुसार कार्य करने को मिलता है या यों कहें सही दिशा मिलती है तो उसकी प्रतिभा को निखार मिल जाता है और वह सिर पर चढ़कर बोलती है !
किसी की रूचि पढ़ने में होती है, किसी की खेल में, किसी की ड्राइंग, पेन्टिंग, पाकशास्त्र ,साइन्टिस्ट आदि आदि अनेक क्षेत्र हैं बस हमें उसे पहचानना है! हमारी प्रतिभा को माता, पिता, और गुरु पहले पहचान लेते हैं किंतु इस प्रतिभा में निखार लाने में मेहनत, लगन की जरुरत है और यह उस व्यक्ति की अपनी होती है!कभी कभी प्रतिभा और परिश्रम होने पर भी सफलता नहीं मिलती इसका यह मतलब नहीं है कि आप उसके लायक नहीं हैं! सकारात्मक सोच लिए पुनः प्रयास करने से सफलता अवश्य मिलती है!
प्रतिभा को निखारना जरुरी है एक दिन वह अवश्य सिर चढ़कर बोलेगी यानीकि खिलकर उभर आयेगी!
प्रतिभा सिर पर चढ़कर बोलती है इसका मतलब यह भी निकाले हैं कि व्यक्ति को अपनी सफलता पर घमंड आ गया है!
प्रतिभा तो प्रभु का दिया प्रसाद है जिसे उन्होने सभी को दिया है बस पहचान कर उसे निखार देना है!
बच्चा गीली मिट्टी की तरह है जैसा ढा़लेंगे ढल जायेगा ठीक उसी तरह प्रतिभा को यदि सही दिशा मिल जाए तो वह सिर चढ़के बोलेगा! यानी अपने क्षेत्र में बुलंदियों को चूमेगा!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
हां,ऐसा बहुत बार देखा जाता है कि अपनी प्रतिभा के बल से यदि व्यक्ति अप्रत्याशित सफ़लता प्राप्त कर लेता है ,तो कभी -कभी उसमें अहंकार का समावेश हो जाता है । लेकिन ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है, इसलिए इसको हम आधार भी नहीं मान सकतें हैं। व्यक्ति प्रतिभा शाली कभी जन्म से हीं, ईश्वर प्रदत्त होता है तो, कभी अपनी मेहनत के बल से प्राप्त करता है।जो व्यक्ति प्रतिभावान होने के बावजूद वह खुद पर काबू रखता है और अहंकार से परे रहता है वह व्यक्ति हीं सही मायने में सफल होता है, हर क़दम - क़दम पर । एक कहावत है कि जब वृक्ष फलों से लदे हुए होते हैं तो स्वत: हीं थोड़े से झुक जाते हैं । अतः जो व्यक्ति सही मायने में प्रतिभाशाली होते हैं उनमें विनम्रता जैसे गुण भी स्वयं हीं परिलक्षित होती है। अच्छाईयां और बुराइयों का तो हम सभी व्यक्ति में समावेश होता हीं है अब यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह अपने ऊपर उन बुराइयों को हावी ना होने दे और हर परिस्थिति में स्थिर रहे।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
प्रतिभा कभी किसी की मोहताज नहीं होती l संघर्षो में भी आगे कदम बढ़ाती है, बस चाहिए उसे एक जूनून l हम अक्सर पढ़ते हैं अमुक व्यक्ति यहाँ तक की असक्षम व्यक्ति के सामने प्रतिभा अपना सर झुका देती है l एक जूनून कार्य के प्रति उसे सफलता के चरम शिखर तक पहुंचा देता है l कविवर कालिदास कवित्व शक्ति प्राप्त करने से पहले निपट जड़मति वाले ही थे l जिस डाली पर बैठे उसी डाली को काट रहे थे
और अंत में पत्नी विद्योत्तमा के ताने से घायल होकर कठिन परिश्रम और जूनून सेमहाकवि कालिदास बने l एक निकम्मा और जड़ बुद्धि वाला भी सफलता और सिद्धि का स्पर्श कर सकता है l
प्रतिभाशाली तो रावण भी था किन्तु उसके अहंकार ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा l प्रतिभा के साथ जीवन में सकारात्मक सोच भी आवश्यक है l प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने ज्ञान के आधार पर सदा विनम्र बना रहता है l ये किसी अन्य लोक के प्राणी न होकर इस हमारी धरती के, हमारे आसपास के लोग ही हुआ करते हैं l वे एक दो बार की हार से चुप नहीं बैठा करते बल्कि असफलताओं को धकेल विजय सिंहासन पर आरूढ़ हो सभी को चकित -विस्मित कर दिया करते हैं l उनकी डिक्सनरी में असंभव नाम
का कोई शब्द नहीं होता l
आज जरा सी असफलता से युवा मन घबरा उठता है l एक नन्हीं चींटी चावल का दाना लेकर चलती है एक दाने के लिए कितना संघर्ष करती है l आज हम अख़बार के पन्नों पर लटकते पेंडुल की तरह थोड़ी सी सफलता से गर्व में फूले नहीं समाते हैं l
मानव प्रगति का इतिहास गवाह है कि आज तक न जाने कितनी शिलाओं को निरंतर अभ्यास से घिसते आकर, बर्फ की कितनी दीवारें पिघलाकर वह आज की उन्नत दशा में पहुँच पाया है lप्रतिभा कभी छिपती नहीं, संघर्षो में निखर जाती है l
पांडव जंगलों की धूल फांकते हुए भी कौरवों से जीते, राम शक्तिशाली रावण से जीते केवल मन की शक्ति के कारण, सत्य, न्याय और नैतिक बल और जूनून के कारण l
चलते चलते -----
1. करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान l
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान ll
2.नर हो न निराश करो मन को l
आशा का दीप ले आगे बढो l
3.खुदी को कर बुलंद इतना
कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से यह पूछे
बता, तेरी रज़ा क्या है?
मन पर विजय पाने वाले की शक्ति के सामने खुदा को भी झुकना पड़ता है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
यह विषय बहुत ही सारगर्भित है इस विषय के दो पक्षों में विश्लेषण किया जा सकता है पहला पक्ष है सकारात्मक और दूसरा पक्ष है नकारात्मक
अब सकारात्मक पक्ष की ओर हम आगे बढ़ते हैं प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है बिल्कुल सही जिस इंसान के पास प्रतिभा है तो वह किसी न किसी रूप में अपनी प्रतिभा को एक प्लेटफार्म अवश्य दे देता है कहां गया है
होनहार बिरवान के होत चिकने पात
इस देश के प्रधानमंत्री इस प्रतिभा के सकारात्मक उदाहरण हैं दूसरा हमारे राष्ट्रपति आदरणीय डॉक्टर अब्दुल कलाम मिसाइल मैन इस प्रतिभा के अद्भुत अद्वितीय उदाहरण हैं इन इनकी जीवनी को देखने के बाद स्पष्ट हो जाता है की प्रतिभा किसी का इंतजार नहीं करती वह अपना रंग अवश्य दिखलाती है अपने लिए प्लेटफार्म खोजी लेती है उनके विचार उनके कर्म को गहराई से देखा जाए तो बहुत ही सहनशील धैर्यवान त्याग और व्यवहारिक व्यक्तित्व देखने को मिलता है।
इसके अतिरिक्त इस भारत देश में अनेकों नौजवान और व्यक्तित्व सामने है जो बड़ी-बड़ी कंपनियों में अपने बलबूते पर सीईओ बने हुए हैं
इस देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवनी को देखिए तो बिल्कुल ही स्पष्ट हो जाता है की प्रतिभा किसी का इंतजार नहीं करती अटल बिहारी बाजपेई यह लोग का व्यक्तित्व अद्वितीय रहा यह किसी परिचय का मोहताज नहीं है अपने परिश्रम के बल पर अपनी प्रतिभा को एक नया आयाम दिया है इस आधार पर आज का जो विषय है प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है वह बिल्कुल सही है सकारात्मक है वह कभी रुकती नहीं है
इस विषय का दूसरा पक्ष भी हमारे समाज और देश में देखने को मिलते हैं जो नकारात्मक कहलाते हैं अपनी प्रतिभा के कारण इतने प्रतिष्ठित हो जाते हैं कि उनमें अहंकार की भावना आ जाती है और उस भावना के कारण इंसानियत को भूल जाते हैं यह उनका नकारात्मक व्यक्तित्व का परिचय देता है
हमारा इतिहास गवाह है की प्रतिभा जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व में विद्यमान हैं वह संसार के लिए अभूतपूर्व अद्वितीय अनुसंधान कर देता है जिससे उसकी परिचय ही बदल जाती है
हमारे धर्म ग्रंथ में इसी प्रकार का एक उदाहरण मिलता है रावण बहुत ही प्रतिभाशाली विद्वान तेजस्वी व्यक्तित्व वाला शक्तिशाली राजा था लेकिन अहंकार के कारण आज उसका विनाश हुआ और जिसे हम लोग हर साल बुराई के तौर पर रावण दहन के रूप में मनाया करते हैं
स्पष्ट है कि अहंकार से दूर होने के बाद ही प्रतिभा का मान सम्मान और प्रतिष्ठा है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हां यह बात बिल्कुल सच है यदि किसी व्यक्ति को सफलता मिलती है जैसे उदाहरण के लिए उसके ज्यादा 12वीं में उसके ज्यादा अंक आते हैं जैसे 98 या 95 में आते हैं। या 90 तो कुछ भी कहते हैं तो उनके अंदर एक अजीब सा ओवरकॉन्फिडेंस आ जाता है कि मैं सब कुछ कर लूंगा। या कोई भी एग्जाम को निकाल लेता है। उदाहरण समाज और घर में लोग देते हैं। कम नंबर वाले को कोई दिलासा नहीं देता है। कोई भी आईपीएस अधिकारी बन जाता है, तो उसकी चाल डाली बदल जाती है , बात करना बंद कर देता है बहुत कम लोग होते हैं जो सफलता को पचा पाते।
सिक्के के दो पहलू होते हैं कुछ लोग होते हैं जो सफलता को पचा जाते हैं और कुछ लोग अधजल गगरी होते हैं।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
प्रतिभा के सिर चढ़कर बोलने के निहितार्थ को मैं सकारात्मक रूप से समझ पा रहा हूं। जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब मनुष्य विशिष्ट प्रतिभा का धनी होता है तो उस पर गर्व करना स्वाभाविक है। किसी भी क्षेत्र में पारंगत होने के लिए मनुष्य को बड़ी लगन, मेहनत करनी पड़ती है और प्रतिभाशाली होने के लिए पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण का होना आवश्यक है। इन सब गुणों के समावेश से ही प्रतिभा का निखार होता है।
परन्तु यह भी सत्य है कि प्रतिभाशाली मनुष्य के मन-मस्तिष्क में अपनी प्रतिभा के प्रति घमण्ड का भाव आ जाये तो ऐसी प्रतिभा नकारात्मक हो जाती है और समाज के हितों के विपरीत कार्य करती है।
इसलिए प्रतिभा सिर चढ़कर बोले अवश्य परन्तु प्रतिभा के नैसर्गिक गुणों जैसे विनम्रता, सकारात्मकता का भाव समेटे हुए हो, तभी उसकी सार्थकता सिद्ध होती है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
हमारे हिन्दी के काव्य शास्त्र में प्रतिभा काव्य का एक हेतु है और उसमें प्रतिभा के तीन प्रकार बताएं है ।
नैसर्गिक प्रतिभा
अभ्यास प्रतिभा
व्युत्पत्ति प्रतिभा
और दण्डी जी ने अभ्यास को महत्व देते हुए कहा भी है कि-
"करत करत अभ्यास जड़ मत होत सुजान"
अतः प्रतिभा ईश्वर प्रदत है उसका सदुपयोग शालीनता का प्रतीक है और यदि प्रतिभा सर चढ़ कर बोलने लगे तो यह अभिमान का प्रतीक है। और जब प्रतिभा पर अभिमान हो जाता है तो प्रतिभा का पतन होने लग जाता है अतः प्रतिभा को दिल में उतारें न की दिमाग पर हावी होने दें।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
प्रतिभाओं का महत्व योगदान हैं। जो किसी भी क्षेत्रों में हो, अपने अनुभवों को जनमानस के बीच प्रदर्शित करते हुए, भावी रणनीति तैयार करते हैं। कई-कई शासकीय एवं अर्द्धशासकीय कार्यों संलग्न रहते हुए, अपनी प्रतिभाओं पथ-प्रदर्शित
करते हैं, उन्हें सर्वसुविधाएं प्राप्त होती हैं, किन्तु कुछ गरीबी के बीच रहते हुए, अपनी प्रतिभाओं को प्रस्तुत नहीं कर पाती तथा सही मार्गदर्शन प्राप्त नहीं होने के कारण उनकी इच्छाऐं दबी रह जाती हैं। कई तो राजनीतिज्ञ के आशीर्वादों से ऊंचाइयों की बुलंदियों की ओर अग्रेषित होते चले जाते हैं। अगर निष्पक्षता से आंकलन किया गया तो वास्तविक प्रतिभाओं का जन्म होगा और उनका ही सिर चढ़कर बोलेगी?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी हां! प्रतिभा सिर चढ़कर ही बोलती है। चूंकि वह प्रतिभा ही क्या जो सिर चढ़कर न बोले?
प्रतिभाशाली व्यक्ति अपनी प्रतिभा से ही जाने जाते हैं। जैसे प्रतिभा के कारण कई प्रतिभाशाली व्यक्तियों को सूली पर चढ़ाया गया। कईयों को विष पिलाया गया। कईयों को आरे से चीर दिया और कईयों को जिंदा दिवारों में चिनवा दिया।
सर्वविदित है कि प्रतिभा के कारण ही आत्मा परमात्मा बन जाती है। प्रतिभा के कारण ही लेखक व कवि बन जाता है और सूरदास, तुलसीदास, कालीदास इत्यादि महालेखक काव्यग्रंथ लिखने में सफल हुए। प्रतिभा ने समंदर की गहराईयों और आकाश की ऊंचाइयों को छुआ। अंतरिक्ष यान और चांद पर चंद्रयान प्रतिभा ने ही उतारे हैं। प्रतिभा ने ही विश्व को 'शून्य' देकर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की थी।
प्रतिभा प्रत्येक प्रतिभाशाली व्यक्ति को विभिन्न गुणों में प्राप्त होती है। जिसे सामाजिक प्राणी बुद्धिमान या पागल की संज्ञा देकर व्यक्त करते हैं। जबकि प्रतिभा 'प्रतिभा' ही रहती है।उसे लाख बेड़ियां पहना दी जाएं परंतु फिर भी प्रतिभा छुप नहीं सकती। क्योंकि प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हां,प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है।छिपाए नहीं छिपती यह,कहते भी हैं होनहार बिरवान के होता चीकने पात। प्रतिभा यानि हुनर,इसे छिपाया ही नहीं जा सकता,अब यह अलग बात है कि वह सृजनात्मक है या नकारात्मक। नकारात्मक वह जिससे समाज व राष्ट्र को हानि हो। जैसे चोरी, है तो हुनर ही लेकिन,नकारात्मक होने के कारण बुरी मानी जाती है। वहीं हाथ की सफाई को सकारात्मक होने के कारण जादू की कला कहा जाता है। किसी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति,प्राणी में उसकी कला स्वत: ही झलकती है। हम सुनते, कहते भी है वाह कितनी सुरीली आवाज है।जादू है इनके हाथों में तो।मोती से टांक दिये अक्षर।मस्तानी चाल है,खूब मटकते हो।जीवंत अभिनय करता है यह।जादू है उंगलियों में छूते ही साज बज उठा आदि आदि। प्रतिभा नैसर्गिक होती है,जिसे समुचित अवसर व माहौल में विकसित किया जा सकता है। कभी हमने महसूस किया कि ढोल की आवाज सुन हमारा मन स्वयं ही थिरकने को करता है,यानि प्रतिभा जो है वह माहौल मिलते ही सिर चढ़कर बोलने लगती है।कोई गीत या धुन सुनते ही मन गुनगुनाते को करता है।आपने देखा होगा बारात में जब उत्साह में बैंड वाले से बाजा लेकर मुंह से लगा लेते हैं भाई साहब। याद करें लाकडाउन में भागदौड़ की जिंदगी से,मजबूरी में ही सही,जब निजात मिली तो कितनी ही लेखन,वादन गायन, पाक-कला, चित्रकला, बागवानी, नृत्य,अभिनय, टेलरिंग, भाषण, कबाड़ से जुगाड़ बनाने,मूर्तिकला आदि के प्रतिभावान कलाकार सोशल मिडिया के माध्यम से समाज के सामने आये। सच, प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जी हाँ , ! शीर्षक प्रतिभा के प्रकाश की सार्थकता को दर्शाता है । प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है क्योंकि प्रतिभा का स्थान भी मस्तिष्क में होता है । मस्तिष्क भी सिर के भाग में स्थित होता है । बिना प्रतिभा यानी हुनर , ज्ञान के तो जीवन अमावस्या की घोर काली रात के सामान ही है । जिस व्यक्ति में प्रतिभा नहीं है । उसे मूर्ख ही कहा जाता है ।
कबीर , सूरदास जी अनपढ़ थे । लेकिन उन में ज्ञान का सागर बहता था । आज भी दार्शनिक , महापण्डित कबीर के दोहे, वाणी मानव जीवन का पथ प्रदर्शन करती हैं । अतः हमें ज्ञान प्राप्त करने के लिए शिक्षा लेनी पड़ेगी । गुरु ही हमें सर्वोच्च ज्ञान देते हैं । कबीर ने रामानन्द जी से शिक्षा दीक्षा ली थी । कबीर अपनी कविता अपने शिष्यों को सुनाते थे और शिष्य उन्हें लिख लेते थे । जो कबीर - वाणी से विख्यात हुयी ।
स्वामी विवेकानन्द जी ने तो रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली थी । विवेकानन्द जी ने अपनी प्रतिभा के दम पर अमेरिका के शिकागो के धर्म सम्मेलन में भारत की हिन्दू संस्कृति , आध्यात्म के झंडे गाड़े थे । सोए हुए भारत को जगा दिया था । विदेश में भारत माता का नाम ऊँचा किया था ।
संत कबीर का गुरु को समर्पित दोहा है
गुरु गोविंद दोऊ खड़े , काके लागूं पाँव ।
बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो बताय ।
गुरु तो गोविंद से बड़ा होता है । क्योंकि गुरु से ही भगवान के बारे में पता चलता है ।कहा भी जाता है अगर नारी शिक्षित हो जाती है । तो पूरा परिवार , पूरी पीढ़ी शिक्षित हो जाती है । शिक्षा , समाज की एक पीढ़ी से आने वाली पीढ़ी को ज्ञान का हस्तांतरण ही है । नयी संतति को हमें ही सौंपेगे । आज की पीढ़ी बहुत ज्यादा प्रतिभावान है । कारण आज उसके इंटरनेट की दुनिया है । जैसे किसी गाने सीखने है तो उसे गूगल से आसानी से प्राप्त हो जाते हैं । उनको सुन , सुन कर वह गाना का संगीत सीख लेता हर बच्चा जो भी जिज्ञासु है जो चाहे सीख सकता है कोरोना महाममारी में वायरस से बचने केलिये सामाजिक दूरी 2 गज की बनाके रखनी जरूरी है। लाकडाउन में और अनलॉक में प्रतिभाओं को दुनिया के सामने दिखाने का मौका सोशल मीडिया के फेसबुक ने वॉच पार्टी करके खूब दिया है । जिसे जिस चीज में रुचि है । वह अपनी प्रतिभा उजागर कर सकता है । बच्चे से लेकर जवान , युवा , बूढ़े हर किसी की प्रतिभा सिर चढ़ कर बोल रही है ।
शिक्षिका होते हुए भी मुझे कम्प्यूटर तकनीकी का ज्ञान नहीं था । मेरे जमाने में कंप्यूटर नहीं था । मेरी बेटी डॉक्टर शुचि ने मुझे इस ज्ञान को सिखाया और इंटरनेट के संसार से परिचित कराया । आज बीजेन्द्र जैमिनी जी के ब्लॉग से आपके सामने हूँ ।
मेरी किताब दोहों में ' मनुआ हुआ कबीर " का विमोचन मधुवन रेडियो , माउंटआबू से मेरे ही साक्षात्कार प्रोग्राम में उन्होंने करा दिया । मुझ में प्रतिभा थी , इसलिए मुझ को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया ऑन लाइन मेरा यह कार्यक्रम हुआ ।
मुझे खुशी इस बात की अगर बेटी कंप्यूटर नहीं सिखाती तो क्या मैं दुनिया से जुड़ सकती थी , उत्तर नहीं है ।
बेटी ने कंप्यूटर सिखाया और इस ज्ञान से मैंने अपने की हुन्नर मंचों पर दिखाए जैसे फ्लावर अरेंजमेंट , फूल सज्जा , पेंटिंग , नृत्य , कविता , कविसम्मेलन , स्पर्धाएं आदि । मुझे तो लगता मेरा हुनर सिर चढ़कर बोलता है ।
लोगों को नई पीढ़ी को मेरे से प्रेरणा मिलती है ।
लिजेंड अमिताभ बच्चन अपने हुनर से 70 साल की उम्र में फ़िल्म इंडस्ट्रीज में जमे हुए हैं । लीग उनके पद चिन्हों पर चलना पसन्द करते हैं ।
फ़िल्म इंडस्ट्री की प्रसिद्ध अभिनेत्री करीना , करिश्मा पढ़ी लिखी नहीं हैं । लेकिन अभिनय के दम से दुनिया ने
उनका लोहा माना है । संगीत की प्रतिभा आशा भोंसले दीदी कक्षा 4 उत्तीर्ण हैं । संगीत की विद्या से गीतों में संसार में नाम कमाया । देश , समाज निर्माण , देश की प्रगति , उन्नति के लिए शिक्षा के अस्त्र से हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । ज्ञान ही हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है । भारत में जनसंख्या विस्फोट हो रहा है । शिक्षित देश होता तो जनसंख्या पर नियंत्रण हो जाता । लेकिन ऐसा नहीं हुआ है । केरल राज्य साक्षरता के नाम पर अव्वल है । जनसंख्या भी अन्य राज्यों के मुकाबले कम है । ज्ञान ही सही को सही , गलत को गलत कहने दृष्टिकोण देता है । बिना ज्ञान से प्रतिभा प्रकाशविहीन है । अंत में दोहे में मैं कहती हूँ । ये पंक्तियाँ आपके पास पहुँचे ।
सबके अंतर में बसे , प्रतिभा की है खान ।
गुरु ज्ञान ,कृपा बरस के , मिलती है पहचान ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
प्रतिभा ईश्वर द्वारा दिया अनुपम उपहार है। माना गया है कि हरेक मनुष्य को ईश्वर ने कोई न कोई प्रतिभा दी है। स्वयं को तो अपने में छिपी इस प्रतिभा को पहचानना है और निखारना है। संबंधित परिजनों को भी चाहिए कि वे अपनों में छिपी प्रतिभा को तलाशें और तरासने में अपना अमूल्य सहयोग देवें। जिसने भी स्वयं में छिपी प्रतिभा को पहचाना और फिर सतत अभ्यास एवं ज्ञान से उसे सजाया-संवारा है, वे सफल हुए हैं। इसके लिए यह भी बहुत आवश्यक है कि कभी भी असफलता पर निराश और हताश नहीं होना है। कहते हैं, " असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास सच्चे मन से नहीं किया गया। " अतः दृढ़ संकल्प, सच्ची लगन और पूरे आत्म विश्वास के साथ स्वयं में विद्यमान प्रतिभा को इस सूक्ति के साथ निखारें,
"करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। "
तब देखना, सही समय और सही अवसर पर आपकी प्रतिभा सिर चढ़कर बोलेगी और आप सफलता के साथ सुखद और समृद्ध होंगे।
सार यह कि "प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है।" बस परिपक्वता और अवसर की प्रतीक्षा करें।संकल्प,उत्साह और ध्येय बनाये रखें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हर इंसान को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सही अवसर मिलने की देरी होती है। अवसर मिलते हीं युवा हीं नहीं बुजुर्ग और बच्चे भी अपने हुनर प्रदर्शित करने लगते हैं। सभी में एक होड़-सी लग जाती है अपनी प्रतिभा को दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करने की। वास्तव में प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है।
विद्यालय द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम एक सुनहरा प्रयास होता है बच्चों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर खुद को निखारने का।
डांस इंडिया डांस टीवी शो हो, सा रे ग म प गायन प्रतियोगिता हो या साहित्यिक ऑनलाइन प्रतियोगिता एक से बढ़कर एक प्रतिभावान लोग उभरकर अपनी प्रतिभा की श्रेष्ठता का परिचय देते हैं। जज के लिए अवलोकन करना मुश्किल हो जाता है कि किसे प्रथम स्थान पर रखें किसे द्वितीय स्थान पर। हम भी दांतो तले उंगली दबा लेते हैं कि कितने टैलेंटेड, प्रतिभाशाली लोग हमारे मध्य हैं।
गायन-क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चे भी स्टेज पर ऐसे कमाल दिखाते हैं जैसे पेशेवर गायक गायिका। दूरदराज गांव से आए हुए बच्चों का अद्भुत नृत्य की प्रस्तुति देखकर फिल्मी अभिनेता अभिनेत्री भी अपने को छोटा महसूस करने लगते हैं।
वर्तमान में सोशल मीडिया अपनी प्रतिभा को प्रस्तुत करने का सुनहरा प्लेटफार्म और सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। सभी अपने हुनर को बेहतरीन अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं। ऑनलाइन संचालित तरह-तरह के प्रतियोगिता द्वारा सभी को प्रतिभा का जौहर दिखाने का मौका मिल रहा है। पहले सिर्फ अमीर लोगो की प्रतिभा हीं आम जनता को दिखती थी। अब सोशल मीडिया के माध्यम से हर तबके के कलाकार , रचनाकार अपनी प्रतिभा को प्रर्दशित कर रहे हैं। वास्तव में देखकर लगता है कि प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
प्रतिभा के धनी व्यक्तियों की प्रतिभा कभी छिप नही पाती ,जिसके चलते वह कहीं न कहीं झलक ही जाती है और अक्सर कहा जाता है कि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ तो खास होता ही है । बस जरूरत है तो ये की उसे अपनी उस प्रतिभा का बस पता चल जाये । या फिर कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाये जो उस व्यक्ति को उसकी प्रतिभा के बारे में बता सके और प्रेरित कर सके ।
यह बात भी बहुत हद तक सही है कि इंसान की प्रतिभा कभी छिपती नही है , उसका पता चलते ही वह सिर चढ़कर बोलती ही है और बोलना भी चाहिए नही तो इससे न केवल उस इंसान का पतन होता है बल्कि समाज उस प्रतिभा से स्थापित होने वाले नये आयामो से भी वांछित रह जाता है ।
-परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
प्रतिभा निरंतर कोशिश और कड़ी मेहनत करने मिलती है। ऐसी भी कोई बात नही है कि कोई अमीर घर मे पैदा लिया और उसमें प्रतिभा आ गई। यह भी बात जरूर सच है कि कुछ लोग ऐसे भी होते है जिन्हें सफलता मिल गई तो उनकी प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है। उन्हें अपनी प्रतिभा का अहंकार हो जाता है। वो समझने लगते हैं कि उनके सामने दूसरा कोई है ही नही। जो हैं वही हैं। इसके साथ ही देश मे ऐसी हजारों हस्तियां है जो सफलता के शिखर पर हैं, लेकिन उनको अपनी प्रतिभा का जरा सा भी गुमान नही हैं। उदाहरण के तौर पर टाटा और अम्बानी जैसे उधोगपति हैं तो सचिन तेंदुलकर, महेंन्द्र सिंह धौनी जैसे क्रिकेटर के रूप में। कला, संस्कृति, गीत संगीत, साहित्य, फ़िल्म, समाजसेवा, राजनीति हो या फिर किसान व देश की रक्षा करने वाले सैनिक हर किसी मे उसकी प्रतिभा छुपी रहती है। जरूरत है कि वो अपने भीतर छुपे प्रतिभा को पहचाने। व्यक्ति तभी सफल होता है जब वह काम करे। जिससे वह प्यार करता है या फिर जो भी काम करता है उससे प्यार करना सीख ले। महान दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि जीवन का आनंद स्वयं को जानने में है। स्वयं का निरीक्षण करना, अपनी प्रतिभा का पता लगाना और उस विशेष प्रतिभा का निरंतर विकास करना। वास्तव में हमारे जीवन मे उद्देश्य होना चाहिए। यदि ऐसा कर लेते हैं तो सही मायने में सफल हो पाएंगे। पर यदि आपमे प्रतिभा आ गया है तो उसे सिर पर चढ़कर कभी भी नही बोलने देना चाहिए। तभी लोग आपका सम्मान करेंगे।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
प्रतिभा हमेशा सिर चढ़कर बोलती है।इसलिए कहा जाता है कि प्रतिभावान व्यक्ति न तो कभी थकता है और ना ही रुकता है।उसमें उसी प्रतिभा का जुनून होता है जो उसे हमेशा बढ़ते रहने को आधार प्रदान करता रहता है।उसमें जोश भरता रहता है।प्रतिभा वो रवानगी है जो खून में जोश को प्रवाहित करती है तथा वह रग रग तक पहुंचकर प्रतिभावान को आगे बढ़ाता रहता है।प्रतिभा न केवल यश दिलाती है बल्कि हमें जीवन में एक अच्छी और स्वावलंबी आजीविका भी प्रदान करती है।
प्रतिभा हमें कभी भी बैकफुट पर नहीं लाती।हम अपने जीवन में अपनी प्रतिभा की वजह से फ्रंटफुट पर लगातार खेलते रहते हैं।जीवन का अर्थ बदल जाता है प्रतिभावान लोगों के लिए इसलिए वो हमेशा सिर चढ़कर बोलती है तथा हमें अडिग रखती है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
क्या प्रतिभा सर चढ़कर बोलती है जहांँ तक इस बात का प्रश्न है कि प्रतिभा सर चढकर बोलती है उसे पहचाना जा सकता है प्रतिभाशाली व्यक्ति की प्रतिभा को उपयुक्त अवसर मिलना बहुत आवश्यक है समाज और देश में ऐसी बहुत सी प्रतिभाएें हैं जिन्हें उपयुक्त अवसर नहीं मिल पाता और वह संसाधनों के अभाव में दम तोड़ देती हैं यदि उपयुक्त संसाधन और अवसर समय पर मिले तो इस देश में ग्रामीण परिवेश में भी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है यह अवश्य है कि इन ग्रामीण प्रतिभाशाली बच्चों को उपयुक्त संसाधन अवसर उपलब्ध नहीं हो पाते और कभी-कभी तो उन्हें पहचानने वाला कोई नहीं होता वह गरीबी और अभाव में ही अपना जीवन बिता देते हैं और उनकी अच्छी से अच्छी प्रतिभा भी बेकार हो जाती है जिससे समाज एंव देश को कोई लाभ नहीं मिल पाता इसलिए यह आवश्यक है कि समय रहते ऐसी प्रतिभाओं की पहचान करके उन्हें उपयुक्त अवसर व समुचित संसाधन उपलब्ध कराए जाएं और एक ऐसा स्थान दिया जाए जिससे वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन व उसका उपयोग समाज व देश हित में कर सकें तथा दूसरों को भी उनसे प्रेरणा मिल सके तो यह देश के लिए बहुत अच्छा होगा
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
मेरे दृष्टिकोण से यह सच है की हॉ प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है। उसके लिए प्रतिभा पहचानने वाला व्यक्ति या संगठन का होना अनिवार्य है। इसी सोच को लेकर बच्चों को शिक्षा देने और शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
मैं उदाहरण के तौर पर पेश कर रहे हैं:-१) हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब एक साधारण घर से आते हैं। उनके अब्बा जान को हैसियत नहीं था की कलाम साहब को इंजीनियरिंग में दाखिला दिला सकें।उनके प्रतिभा को देखकर आईआईटी मद्रास ने प्रतिभा पहचाना और दाखिला दीया।
अपने प्रतिभा के चलते *मिसाइल मैन*की उपाधि से सम्मानित भी हुए। और अंत में देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए।
२) गुड़गांव के अक्षय भारद्वाज भले बोलने और सुनने में असमर्थ है उसके प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया जिन तैराको का चयन किया( मूक -बधिर) ओलंपिक गेम्स के लिए उसमें अक्षत भी है वह अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए बुलगारीआ की राजधानी सोफिया पहुंचा।
३) हमारे बोकारो जिला के उपायुक्त जो 1 सप्ताह पहले आए हैं देश के पहला नेत्रहीन आईएएस हैं। अपना पहला प्रेस से बात करते हुए काहॉ मेरा आईएएस में चयन होने के बावजूद पोस्टिंग आर्डर नहीं मिल रहा था तो मैंने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया तो फैसला मेरे पक्ष में हुआ। फैसला में लिखा हुआ था यह नेत्रहीन है लेकिन दृष्टिहीन नहीं है। अतः इन्हे बहाली किया जाए । देश के पहला नेत्रहीन आईएएस मैं हूं।
आज हम सफल आईएस के गिनती में हूं।
आजकल टीवी के हर चैनल पे एक प्रोग्राम आ रहा है प्रतिभा की खोज के अलग-अलग कार्यक्रम चलता है। जिसमें संगीत,डांस, वाद विवाद ,लेखनी ,नुक्कड़ नाटक, मंचीय नाटक,कॉमेडी, क्रिएटिव थिंकिंग,इत्यादि। यह संगठन या समूह प्रतिभा के खोज कर के आगे का मार्गदर्शन कर रहे हैं। प्रतिभा की खोज में सोशल मीडिया भी जागरूक है।
लेखक का विचार:- प्रतिभा की जादू हर जगह है सुरो में,कलम में खेल में, हर क्षेत्र में है सिर्फ पहचानने की आवश्यकता
है और प्रोत्साहन देने की जरूरत है। मैं समाज से अनुरोध करते है,की प्रतिभा को कुंठित होने से बचाएं। हमारे देश के प्रतिभा यूएसए में सिर चढ़कर बोल रहा है। वहां जीतने सीईओ सभी भारतीय हैं ।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
प्रतिभावान व्यक्ति कभी भी सिर चढ़कर नहीं बोलता क्योंकि वह प्रतिभा संपन्न होता है प्रतिभा संपन्न व्यक्ति उसे कहते हैं जो ज्ञान विज्ञान विवेक संपन्न होता है विवेक संपन्न व्यक्ति में अहंकार कभी नहीं होता बल्कि उनके अंदर विनम्रता का भाव होता है वहां दूसरों को भी अपने जैसे दिखता है वह स्वयं विवेक संपन्न ना होकर दूसरों को भी विवेक संपन्न बनाने के लिए सहयोगी होता है ऐसा व्यक्ति कभी भी सिर चढ़कर बात नहीं करता। वर्तमान में हम स्किल ज्ञान को ही प्रतिभावान मानते हैं इसके लिए हम तो कला है इसे कोई भी व्यक्ति अभ्यास करके पा सकता है वह उसके रूची के ऊपर है। लेकिन प्रतिभावान व्यक्ति एक अलग का एक अलग ही पहचान होता है जो एक विशेष व्यक्ति के अंतर्गत आता है। वह सामान्य व्यक्ति से श्रेष्ठ होता है श्रेष्ठता ही उसकी पहचान है। जो कभी भी अहंकार नहीं करता ना सिर चढ़कर बात करते हैं वह सामान्य रूप से साधारण आदमी की तरह व्यवहार करता है गुणों से भरा होता है जो सभी को सुखी एवं खुद सुखी होता है वह दूसरों की उपकार ही करना चाहता है वह स्वयं उपकारी होता है प्रतिभावान व्यक्ति यही पहचान है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
प्रतिभा उस प्रज्ञा का नाम है जो नित्य नवीन रसानुकूल विचार उत्पन्न करती है।
प्रतिभा वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति को काव्य की रचना, गायन, वादन ,नृत्य ,नाट्य, खेल युद्ध कौशल ,चित्रकारी, कलाकारी आदि अनेक विधाओं में महारत को सिद्ध करती है , प्रमाणित करती है।
गीता में भगवद्विभूति गिनाते गिनाते भगवान कृष्ण ने कहा है अर्जुन अब हम कहां तक तुमसे भगवद्विभूति गिनाते रहें, समझ लो जिस मनुष्य में कोई बात असाधारण और लोकोत्तर बात हो उसे भगवत विभूति ही मानो, यह लोकोत्तर चमत्कार ही प्रतिभा है।
कृष्ण भगवान ने अपने विभूति में कहा है कि,, वे जिनमें किसी तरह की प्रतिभा है जन्म तो उन्हीं का सफल है ,,।
जो प्रतिभाशाली होते हैं हीरे की तरह अँधेरे मे भी चमकते हैं ।असली प्रतिभा हमेशा चमकती रहती है ,चाहे जितनी भी विपरीत परिस्थितियां क्यों न हो ।
देर जरूर हो सकती है मगर अंधेर नहीं ।
यह जरूर है कि मनुष्य की प्रतिभा प्रतिकूल समय में निखरती है।
प्रतिभा को सफलता में ज्यादा ही महत्व दिया जाता है ।कोई प्रतिभा जन्मजात होती हैं तो कोई हासिल भी की जा सकती हैं। प्रतिभा वह शक्ति है जो जन्म को सार्थक करती है व अपूर्व सौंदर्य की रचना करती है ।
प्रतिभाशाली होना ईश्वर का वरदान तो है ही ,ईश्वर प्रदत्त भी होता है ।
जिस तरह अंधेरे में भी हीरा नहीं छिपता उस तरह प्रतिभा भी सर चढ़ कर बोलती है एक दिन जरूर सामने आती है ।
प्रतिभा बुद्धि का वह गुण और मनुष्य की वह शक्ति है जो स्वाभाविक होती है और अभ्यास से अधिक से अधिक बढ़ाई जा सकती है ।
प्रत्येक क्षेत्र की प्रतिभा का अलग-अलग तारतम्य है ।
प्रतिभा का प्रसाद गुण के साथ बड़ा घनिष्ठ संबंध होता है।
मनुष्य में प्रतिभा का होना पुनर्जन्म का पक्का सबूत भी माना जाता है ।कहते हैं यह पिछले जन्मो से गुजरते हुए आता है।
जब शिक्षक एक पाठ 2 बच्चों एक साथ ही पढ़ाता है तो एक के समझ में आ जाता है और दूसरे की समझ में नहीं आता तो प्रतिभा के कारण ही होता है ।
जिसकी समझ में आ जाता है उसके प्रतिभाशाली होने का ही सबूत है ,और यह इसे पुनर्जन्म से जोड़कर देखा गया है ।
धर्म की स्थापना ,समाज का नेतृत्व यह महान प्रतिभा है जो हर किसी में नहीं होती यह प्रकृति प्रदत्त होती है ।
ये सत्य है की प्रतिभा एक दिन सर चढ़कर बोलती है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
"होनहार विरवान के होत चिकने पात" ये कहावत कुछ लोगों चरितार्थ होता हैं। कुछ बच्चे जन्म से ही प्रतिभाशाली होते है। पढ़ने में, खेलने में अन्य कार्यों में भी आगे रहते हैं। ऐसे बच्चे कम होते है। कुछ बच्चे पढ़ने थोड़ा कमजोर होते हुए भी कड़ी मेहनत, जुनून, दृढ़ संकल्प और अपने आत्मविश्वास अपने प्रतिभा को निखारते हैं और ऊंची उड़ान भरते हैं। अपने जीवन मे सफलता हासिल करते है।
ये सच है कि प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती हैं।
- प्रेमलता सिंह
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " प्रतिभा जन्म से हो सकती है । परन्तु मौका मिलने पर ही प्रतिभा का लौहा मनवा सकते हैं । बिना मौके के प्रतिभा का विस्तार नहीं हो सकता है और प्रतिभा का दमन हो जाता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं पूनम मैम।
ReplyDeleteआपके विचार वास्तव में उचित हैं। ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं