चीन का लोकतन्त्र कैसा है या सिर्फ तानाशाही ?

चीन में लोकतन्त्र की क्या स्थिति है । इसके लिए वहां के लोगों की अभिव्यक्ति कैसी है ।वहां पर सभी को सैनिक ट्रेर्निग लेना आवश्यक है । सरकार के हर नियम का पालन करना अनिवार्य है । सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोला जा सकता है । ऐसा सब कुछ लोकतन्त्र में नहीं होता है । यहीं चीन का लोकतन्त्र कहें या तानाशाही ?  यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
जहां तक इस बात का प्रश्न है चीन का लोकतंत्र कैसा है या सिर्फ तानाशाही है तो  चीन में सिर्फ तानाशाही ही है चीन की सरकार लोकतंन्त्र के नाम से ही घबराती हैअपने विरोध की हर आवाज उसे लोकतन्त्र की समर्थक नजर आती है कोरोना संकट के कारण के चीन उत्पादो का निर्यात घटने के कारण बहुत खराब दौर से गुजर रहा है वह अपनी बदहाली अपने शहरों की चमक दमक के पीछे छिपा लेता गाँव की दशा का कही कोई जिक्र नही करता न कोई जान पाता कि कितने खरब है बद सेबदतर होते जा रहे है चीन के युवा का सपना है लोकतन्त्र वह शोशल मीडिया पर मन की बात जाहिर करने की कोशिश कर रहा है जबकि सरकार इसे दबा रही है शोशल मीडिया सेंसरशिप के सख्त कर दिया है सरकार की आलोचना पर एक्शन लिया जा रहा है चीन इस सब से युवाओ का ध्यान हटाने के लिए ही भारत के खिलाफ युद्ध का माहौल बना रहा है कोरोना संकट के बाद जिस प्रकार का माहौल दुनिया में बन रहा है यदि चीन ने अपना रवैया नही बदला तो उसकी बदहाली तय है वह खुद ही खत्म हो जायेगा आर्थिक रूप से वास्तव म्ं चीन मे सिर्फ तानाशाही है.       
- प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
जिन्होंने चीन का इतिहास पढ़ा है वह यही कहेंगे कि लोकतंत्र की आड़ में चीन में तानाशाही का डंका बजता है।  माओ त्से तुंग जिसे आधुनिक चीन का निर्माता कहा गया उसने चीन में कम्युनिस्ट राज की स्थापना की चाहे इसके लिए हजारों लोगों की हत्याएं करनी पड़ीं। हालांकि माओ को बाद में चीन में दुत्कारा गया। माओ क्रूर तो था पर उसने एक नये चीन का जन्म दिया था, नई दिशा दी। तानाशाह कहा जाने वाला माओ खुद के लिए नहीं चीन के लिए जिया। उसने सेना के बल पर और कानूनों के जरिए हर चीज पर अपना नियंत्रण रखा। कानून का दुरुपयोग होता रहा और उसकी गलत नीतियों से लाखों लोग काल के गाल में समा गए। माओ की विचारधारा से निकलते चीन में अब पूंजीवाद का मार्ग अपना लिया गया है। महत्वाकांक्षी चीन इतना लालची हो चुका है कि उसने तानाशाही रवैया अपनाना शुरू कर दिया है।  वह लगातार अपने पड़ोसी देशों से सीमा विवाद कर रहा है। हाल ही उसने रूस के शहर व्लादिवोस्तोक भी अपना ठोकते हुए कहा है कि 1860 से पहले वह चीन का हिस्सा था।  जापान ने भी एक चीनी पनडुब्बी को अपने जलक्षेत्र से खदेड़ दिया था। खुराफाती तानाशाह चीन ताइवान पर खुलेआम सेना के प्रयोग की धमकी दे चुका है। चीन ने भारत के अलावा फिलीपींस, मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ भी विवाद पैदा किया हुआ है। हांगकांग में भी चीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की आड़ में हांगकांग की स्वतंत्रता में रोड़े अटका रहा है जिससे वहां के नागरिकों की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। आंकड़ों के मुताबिक हांगकांग के लगभग 3 लाख 50 हजार लोगों को ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त है. जबकि, 26 लाख अन्य लोग भी ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज स्टेटस के जरिए नागरिकता पाने के हकदार हैं।  चीनी तानाशाही से ग्रस्त हांगकांग के नागरिकों को ब्रिटेन ने यूके की नागरिकता देने का फैसला किया है जिससे चीन बौखला गया हैै और उसने ब्रिटेन को चेतावनी देते हुए गम्भीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे दी है। किन्तु ब्रिटेन ने हांगकांग को पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया हैै।  दुनियाभर में कोरोना फैलाने का दोषी चीन अब अलग अलग मुद्दों पर विश्व के देशों पर अपनी तानाशाही झाड़ रहा है। लोकतंत्र कहलाये जाने वाले चीन का इतिहास देखें तो वह चीन के लोकतंत्र को झुठलाता है। चीनी तानाशाही के चलते बनाये कानूनों के कारण 1948 से 1951 के मध्य 45,00,000 लोग मारे गये, 1950 और 1951 में करीब 20,00,000 लोग मारे गये। 1955-56 में लगभग 53,000 लोग मारे गये। 1957 में करीब 5,50,000 लोग या तो मारे गये या लापता हुए।  ये सिलसिला थमा नहीं है और लगभग हर वर्ष लोग मारे जाते हैं सिर्फ चीन की तानाशाही नीतियों और क्रूर कानूनों की वजह से।  इससे सिद्ध होता है कि चीन का लोकतंत्र सिर्फ तानाशाही का क्रूर उदाहरण है। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
चीन न तो लोकतंत्र देश है और न तानाशाही यह कम्युनिस्ट देश है दोनों का मिलाजुला असर ..
लगभग सात करोड़ लोगों की सदस्यता वाली चीन की कम्युनिस्ट पार्टी विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है. ... इस तरह से इसमें पूरे चीन के लोगो का प्रतिनिधित्व नहीं है. इसके सदस्यों में केवल 17 प्रतिशत महिलाएँ है जबकि 78 प्रतिशत सदस्यों की आयु 35 वर्ष से अधिक है.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की राजनीति को नया रूप दिया है. वह टीवी पर नज़र आ रहे हैं और आसान भाषा में नीतियों को आम लोगों को समझा रहे हैं.
उनके भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के शिकंजे में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना(सीसीपी), के बड़े-बड़े नेता फंस रहे हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि वह सिर्फ़ शी के विरोधी और उनके सहयोगी ही हैं.
उधर चीन में घरेलू और विदेशी बिज़नेस कॉर्पोरशन, मध्यवर्गीय घर मालिकों के नेटवर्क, बेदख़ल किसान, प्रदूषण या असुरक्षित भोजन के शिकार, प्रवासी मज़दूर और ऐसे ही लोग अब राजनीतिक असर रखने लगे हैं.
लेकिन सवाल यह है कि क्या शी जिनपिंग सीसीपी और चीनी सरकार की राजनीतिक प्रवृत्ति को बदल पाएंगे.
ऐसा नहीं कि शी जिनपिंग से सब ख़ुश हैं. एक के बाद एक हाई-प्रोफ़ाइल लोग उनके अभूतपूर्व भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का शिकार हो रहे हैं. यह न सिर्फ़ मामूली रिश्वतख़ोरी का पर्दाफ़ाश कर रहा है बल्कि चीनी नेताओं के बड़े घोटालों को भी सामने ला रहा है.
शक्ति, धन और संगठित अपराध का मिश्रण किस स्तर तक पहुंच गया है और सीसीपी और उसके सत्ता करने के साधन- राजनीतिक संगठन को कितना बदला है, और चीनी राजनीति में वह खाई कितनी चौड़ी है जो सिद्धांत और हकीकत को अलग करती है.
चीन का राजनीतिक तंत्र अब भी इस तरह से विकसित हो रहा है कि हम पूरी तरह इसकी थाह नहीं पा सकते. चीन पश्चिम के बहु-दलीय लोकतंत्र की दिशा में नहीं बढ़ रहा है तो अब यह भी साफ़ है कि यह पूरी तरह तानाशाही भी नहीं है.
इसके बजाय यह थोड़ा-थोड़ा दोनों है और इसके साथ ही कुछ पूरी तरह से नया भी.
सीसीपी अब एकदम नई दिशा में बढ़ रही है. सीसीपी के नेतृत्व समेत कोई भी नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा. अभी आगे बहुत से चुनौतियां हैं- आर्थिक, कूटनीतिक, रणनीतिक, सामाजिक और राजनीतिक.
कुछ कह पाना सम्भव नहीं है मेरे लिये तथ्यों के आधार पर यही कहा जा सकता है 
चीन के सरकारी मीडिया ने भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली का जमकर मजाक उड़ाया है। चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने व्यंग्य करते हुए लिखा है- अगर चीन ने लोकतंत्र अपनाया होता, तो वह दूसरा भारत बन गया होता। जहां दुनिया के करीब 20 फीसदी गरीब रहते हैं। एजेंसी ने अपनी टिप्पणी में लिखा है- जनसंख्या नियंत्रण के बाद पहला विकसित देश बनने की चीन की उपलब्धि को कभी सराहा नहीं गया।
नई ख़बर यह भी है ...
दुनिया में अनेक तानाशाहों के उदय और उनके वीभत्स अंत का इतिहास हमने देखा और पढ़ा है। इस सप्ताह हम एक नए तानाशाह का उदय देख रहे है। चीन में इस समय नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (जो हमारी संसद का चीनी रबर स्टैम्प संस्करण है) का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिवेशन चल रहा है जिसमें माना जा रहा है कि वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आजीवन के लिए राष्ट्रपति घोषित कर दिया जाएगा। कम्युनिस्ट संविधान के अनुसार कोई भी राष्ट्रपति 2 अवधि से अधिक राष्ट्रपति नहीं बने रह सकता किंतु वर्तमान अधिवेशन में इस कानून को उखाड़ दिया जाएगा। शी जिनपिंग ने पहले ही सारे महत्वपूर्ण अधिकारों को अपने हाथों में केंद्रित कर लिया है। 
वरिष्ठ राजनीतिज्ञों को भी अपनी कथनी और करनी में शी जिनपिंग का अनुसरण करने के आदेश दे दिए गए हैं यानी शी जिनपिंग चीन के भाग्य विधाता होने का दर्जा प्राप्त करने के समीप हैं। 140 करोड़ जनसंख्या वाले देश की संसद यदि यह सोचती है कि उस देश को चलाने के लिए मात्र एक ही आदमी सक्षम है, तो समझ लीजिए कुछ सामान्य नहीं है।
कोई भी राष्ट्र, राष्ट्र के साथ सहयोग और समझौता चाहता है न कि किसी व्यक्ति के साथ, क्योंकि तानाशाह की सत्ता बदलते ही सारे निर्णय उलट कर दिए जाते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी का तर्क भले ही यह हो कि इस निर्णय से राजनीतिक स्थिरता आएगी और नीतियों में दृढ़ता, किंतु विश्व की राय इसके विपरीत है
एक व्यक्ति के हाथ में जब सारी सत्ता चली जाती है तब वह हिटलर ही बन जाता है 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
चीन में लोकतंत्र नाम की कोई चीज ही नही है। यहां सिर्फ और सिर्फ तानाशाही है। चीन में बच्चों को होश सम्हालते ही खेल-कूद के नाम पर बेरहम के साथ शारिरिक यातनाएं दी जाती है। बच्चों को कितना दर्द हो रहा है इसकी परवाह नही की जाती है। कम उम्र से ही बच्चे पीड़ा सहने को मजबूर हो जाते हैं। जब वे जवान हो जाते हैं तब उनको दो साल के लिए जबरन सेना में भर्ती कर दिया जाता है। उनके इक्छा के विरुद्ध सेना में सेवा देनी पड़ती है। चीन के राष्ट्रपति जिंकपिक बहुत ही क्रूर इंसान हैं। पूरी दुनियां में कोरोना का संक्रमण फैलाने वाला चीन में कोरोना संक्रमण से काफी जानें गई। पर चीन ने इसे दुनिया से छिपा दिया। कोरोना संक्रमण जीवाणु चीन के लैब में बनाया गया है जब इसका खुलासा एक वैज्ञानिक ने किया तो उसे गायब कर दिया गया। चीन में तानाशाही के कारण वहां के नागरिक सरकार से दुखी और आतंकित रहते हैं। दुनियाभर को सिर्फ दिखलाने के लिए चीन लोकतंत्र का दिखावा करता है। लेकिन सच्चाई यह है कि चीन में लोकतंत्र नही है बल्कि तानाशाही है।
अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
तानाशाही विचारधारा दुनिया के लिए खतरनाक है। लोकतंत्र की खामियों के कारण तानाशाह पैदा होते हैं। और तानाशाह डिक्टेटरशिप इस तरह से चलाते हैं कि उसके कारण उसकी सजा संपूर्ण देश को भोगनी पड़ती है। आगे आने वाली बहुत सारी पीढ़ियां भी याद रखती हैं जैसे हिटलर आदि तानाशाह थे।
वर्तमान समय में तानाशाही अधिनायक वादी उस शासन प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति विद्यमान नियमों की अनदेखी करते हुए डंडे के बल पर शासन करता है।
शासन उत्तराधिकार के फल स्वरुप नहीं वरना बलपूर्वक प्राप्त होता है।
इस समय पूरे विश्व में चीन ने संकट पैदा कर रखा है एक तरफ वायरस का और दूसरी तरफ व भारतीय सीमाओं में प्रवेश करना चाह रहा है और बहुत सारे इलाकों को कब्जा करके वह अपना बना रहा है।
चीन ने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विवादित विधेयक का मसौदा पेश किया और ब्रिटेन के उपनिवेश रहे हांगकांग पर नियंत्रण को मजबूत कर लिया। 1997 ब्रिटेन ने हांगकांग में एक देश दो विधान के समझौते के साथ चीन को सौंप दिया था पिछले 7 सालों से वह अपने स्वतंत्र होने के लिए प्रदर्शन कर रहा है।
और अब यह प्रदर्शन एक गंभीर रूप ले लिया है।
तानाशाह आम जनता की भावना की कोई अहमियत नहीं रहती है। वाह सिर्फ विस्तार करना चाहते हैं और अत्याचारी क्रूरता की हद को भी पार कर लेते हैं।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
जहां लोगो की स्वैच्छा पर उन्ही का अधिकार न हो , जिस देश की मीडिया को केवल सरकार की अच्छी बातें जनता तक पहुंचाने के लिए ही काम करने की अनुमति हो , ऐसे देश में लोकतंत्र का होना कल्पना मात्र ही है । कमाल बात ये भी है कि वहां की जनता स्वयं अपनी सरकार के ऐसे रवैये और ग़लत नीतियों से परेशान होकर लगातार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है । ये तानाशाही नही तो क्या है साहब ? अभी तक केवल विश्व को उत्तरकोरिया के तानाशाह के बारे में ही जानकारी थी परंतु चीन द्वारा लगातार किये जा रहे विश्व विरोधी कार्यो से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने किम जोंग उन के भाई होने का प्रमाण दे दिया है । इस तानाशाही का केवल एक ही इलाज है कि चीन द्वारा निर्मित सामानो का बहिष्कार किया जाए और चीन की हठधर्मिता और विश्व को संकट में डालने के लिए उस पर प्रतिबंध लगाए जाएं । जिस ओर अमेरिका कई कदम उठा भी चुका है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
चीन में लोकतन्त्र है कहां? वहां मात्र तानाशाही का ही राज है। तानाशाही सत्ता केवल अपने स्वार्थ की लालसा से भरी होती है और अपनी तानाशाही को बरकरार रखने के लिए उसके लिए देश या देश के नागरिकों का कोई मूल्य नहीं है। तानाशाही बर्बरता के चीन में एक नहीं अनेकों उदाहरण हैं। 
क्या जून,1989 में चीन के थियानमेन स्क्वायर पर घटी घटना लोकतन्त्र में हो सकती थी जिसमें केवल अपनी तानाशाही को बरकरार रखने के लिए चीनी पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने अपने ही हजारों नागरिकों की जान ले ली थी। 
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने अपने कानून में संशोधन कर राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का प्रमाण पत्र दे दिया है, ऐसा केवल तानाशाही अर्थात् अधिनायकवाद में ही सम्भव है, लोकतंत्र में नहीं। 
चीन की कथित सरकार के खिलाफ एक शब्द बोलना भी गम्भीर अपराध है। मानवतावादी विचारधारा को क्रूरता से कुचल देना चीन की फितरत है। 
कितना हास्यास्पद है कि यदि कोई व्यक्ति चीन के राष्ट्रपति जैसा दिखता है तो उसे अपराधी समान माना जाता है। जबकि वह प्राकृतिक रूप से होता है। एक व्यक्ति को दो वर्ष की जेल की सजा केवल इसलिए दी गयी क्योंकि उसने शी जिनपिंग की हंसी उड़ाई थी। 
कुटिल विस्तारवादी नीति के कारण ही चीन का अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ जमीनी विवाद है। 
इसके अतिरिक्त तिब्बत को अपने कब्जे में रखना, ताइवान पर गिद्ध जैसी नजर रखना, हांगकांग के लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलना, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों को कर्ज देकर अपना गुलाम बनाने की प्रवृत्ति जैसे अलोकतांत्रिक कृत्य चीन की तानाशाही का ही परिणाम है। 
जिस देश के अन्दर लोकतंत्र की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं, जो निरन्तर मानवतावादी कदमों का मखौल उड़ाता है और पूरी दुनिया पर राज करने की निकृष्ट मानसिकता रखता हो, वहां लोकतंत्र की कल्पना करना भी असंभव है। चीन में सिर्फ तानाशाही ही व्याप्त है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
     राष्ट्र की लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं  उसकी  कार्य प्रणाली के ऊपर निर्भर करती हैं। किस तरह से संचालित किया जायेगा और क्रियान्वयन करने में परेशानियों का सामना तो नहीं करना पड़ेगा। समस्त राष्ट्रों की अलग-अलग संवैधानिक अधिकार हैं तथा सीमा नियंत्रण रेखाएं निर्धारित हैं, लेकिन  उसके उपरान्त भी यह देखने में आता हैं, कि अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों का अचानक बदलाव करके युद्ध स्तर पर घेराव किया जाता हैं। जब समस्त राष्ट्रों को स्वतंत्रता का पूर्ण रूपेण महत्वपूर्ण दिया गया हैं, तो उस के तहत ही समाधान करने की पहल करनी चाहिए, यह सब तटस्थ संविधान के ऊपर निर्भर करता ?  किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ और सैनिक छावनी बन चुकी भारत-चीन सीमा के बीच? 1962 में ही तटस्थ नीति अपनायी जाती तो आज यह देखने को नहीं मिलता? वर्तमान परिदृश्य में उसी का फायदा उठाकर चीन ने लोकतंत्र की धज्जी उड़ाते हुए दिखाई अपनी तानाशाही रवैया? चीन को दी जा रही हैं, अपने ही पड़ौसी राष्ट्र की अलौकिक शक्ति के कारण ही, उसकी शक्तियों में बल मिला हैं।  चीन की व्यापकता व्यापार व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी हैं और आर-पार की लड़ाई के माध्यम से अहसास जनों को बृजपात करने की नीति अपना चुका हैं, अप्रत्यक्ष रूप से विरोधाभास पैदा कर, भारत के ऊपर दबाव डाल कर 
अपनी अर्थव्यवस्था पुनः जीवित और मजबूत करने की योजनाओं को क्रियान्वित करने में जूट गया हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
 चीन का लोकतंत्र कैसा है उसके व्यक्तित्व से ही पता चलेगा वर्तमान में उसका व्यक्तित्व बड़े निम्न स्तर पर है। उसके व्यक्तित्व से यही कहा जा सकता है की चीन ना तो लोकतंत्र जैसा है ना तानाशाही जैसा बल्कि चीन का लोकतंत्र समस्यात्मक लोकतंत्र है। जब भी देखो विश्व में समस्या पैदा करता रहता है ।चीन का लोकतंत्र लोगों के आधार पर नहीं  अपने मनमानी के आधार पर  बना है। मनमानी करने वाला व्यक्ति कभी भी जन कल्याण हेतु कार्य नहीं करता है स्वार्थी व्यक्ति पापी होते हैं निस्वार्थ और जगत के कल्याण हेतु कार्य करने वाले
 पुण्यशील मानव होते हैं।  चीन क्या औकात जो पुण्यातील बनकर दिखाइए। वह तो समस्यात्मक देश है। जो हर पल  खुराफाती दिमाग लगाकर दूसरों के शोषण में ही लगा रहता है ।ऐसे देश की लोकतंत्र को क्या कहा जा सकता है। समस्या ग्रस्त लोकतंत्र ही तो कहेंगे ना। इसकी बनाई गई लोकतंत्र से किसी को प्रेरणा मिलने वाली नहीं है। इनका लोकतंत्र मनमानी और समस्या ग्रस्त लोकतंत्र है। हमारे देश के लोकतंत्र जनता के कल्याण हेतु बनाई गई है भारत के लोग भारत के लोकतंत्र पर गर्व करते हैं। हमारा देश ना किसी का अहित करता है ।ना किसी को अहित करने देता है  जो हमारे देश को  अजीब करते हैं  यहां पर देखता है तो उसका करारा जवाब देने में हमारा भारत  सक्षम है।  और जो हमारे भारत से मित्रवत व्यवहार करते हैं उस पर हमारी भारत जान लुटा देते हैं यही हमारी भारत की संस्कृति है। चीन जैसे मक्कार दे क्या जाने भारत की संस्कृति। समस्यात्मक देश समस्या में ही जीता हुआ औरों को भी समस्या में धकेलने का कार्य करता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
     चीन देश ही मक्कार देश है। जो पड़ोसी के नाम पर कलंक है। इसलिए उसके तानाशाह और लोकतंत्र होने का अर्थ ही नहीं रहता।
      क्योंकि किसी भी राष्ट्र या व्यक्ति के व्यक्तित्व का आधार विश्वास होता है। जिसके बाद चरित्र को महत्व दिया जाता है।
     जबकि सर्वविदित है कि चीन न तो विश्वासपात्र है और ना ही उसका कोई चरित्र है।
     इसलिए उसकी कुटिलता के चारों ओर चर्चे हैं। कोरोना महामारी भी उसकी कुटिलता की उपज है। 
    अतः कुटिल राष्ट्र का हर तंत्र कुटिलता पर निर्भर होता है। उदाहरणार्थ जो अपने मृत सैनिकों की आत्माओं को श्रद्धांजलि तक नहीं दे सकता। वह अपने देश के लोगों को क्या लोकतंत्र देगा? वहां तो भैंस उसी की होती है जिसके पास लाठी होती है। इसलिए चीन में सिर्फ और सिर्फ तानाशाही है। जिसके आगे किसी तंत्र मंत्र और जंतर की कोई औकात नहीं है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
लोकतंत्र का सामान्य अर्थ है जनता के द्वारा जनता के लिए जनता द्वारा चुने गए सदस्यों के माध्यम से सरकार बनाना।
पर चीन जैसे देश में करने को लोकतंत्र है पर जनता के सभी अधिकारों को बलपूर्वक तानाशाही के माध्यम से सरकार निर्धारित करती है इसलिए यह एक कम्युनिस्ट शासन का ही प्रतिनिधित्व करती है
चीन की राजनीति को नया रूप देने का एक प्रयास अवश्य किया जा रहा है जिसमें वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग सभी को संदेश दे रहे हैं जिसके कारण बड़े-बड़े राजनेता पूंजीपति उस शिकंजे में फसते चले आ रहे हैं रिश्वत लेने वाले की संख्या सामने आ रही है उनका भंडा फूट रहा है घोटाले भी सामने आ रहे हैं जिसके कारण सामान्य तौर पर दो तरह का वातावरण वहां देखने को मिल रहा है एक और लोकतंत्र है और दूसरी ओर तानाशाही है इसलिए चीन जैसे देश में वर्तमान में कहने को सिर्फ लोकतंत्र है तानाशाही की ही सरकार है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
चीन के संविधान में इस बात का जिक्र है कि वहाँ लोकतंत्र है तथा वहाँ लोगों को अपनी विचाराभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है ।लेकिन चीन की वास्तविक पर स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। कोई भी व्यक्ति यदि मीडिया में चीन की सरकार के खिलाफ थोड़ी  भी समालोचना करें तो उसे निश्चित रूप से दंड दिया जाता है। अब एक बार फिर से चीन के कुछ बुद्धिजीवियों ने यह मांग की है कि देश में मीडिया की स्वतंत्रता बहाल हो तथा आम जनता के मानवाधिकारों का हनन रुके ।कुछ समय पहले चीन के एक प्रमुख बुद्धिजीवी झी चाओपिंग को बरसों के कठोर कारावास के बाद रिहा किया गया है। उनके सम्मान में बीजिंग के कुछ बुद्धिजीवियों ने एक आम सभा की और मांग की कि चीन में बुद्धिजीवियों का दमन समाप्त किया जाए। लोगों के विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिले तथा मीडिया से हर तरह की पाबंदी समाप्त की जाए। आज चीन में प्रकाशित होने वाले सारे समाचार पत्रों का सेंसर  होता है और यदि कोई आपत्तिजनक समाचार प्रकाशित हो जाता है तो उस समाचार पत्र के संपादक और मैनेजर को कठोर कारावास की सजा मिलती है।चीन में नाम का लोकतंत्र है ।वास्तव में यहाँ हर तरफ चीन का तानाशाह ही व्याप्त है।
              -  रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
रांची - झारखण्ड
चीन का लोकतंत्र खामियों से भरा है। वह लोकतंत्र का अपभ्रंश मात्र रह गया है। लोक को तो उसने निकल फेंका है , केवल तंत्र की बात रह गई है। पूरी तरह से तानाशाही को अपना हथियार बना कर चीन अपना वर्चस्व कायम करने में लगा है। उसे सरकार या प्रजा के सम्बन्धों की कोई चिंता नहीं है। वह तो बस अपने को ऊपर करके चलने की राजनीति कर रहा है। आज वह हांगकांग में लोकतंत्र को कायम नहीं होने दे रहा है,जिससे वहाँ अराजकता बढ़ती जा रही है।
सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का अपनी विस्तारवादी नीति के कारण तिब्बत पर कब्जा हो गया । तब से वह भारत में घुसपैठ का प्रयत्न कर रहा है। चीन ने लोकतंत्र को तानाशाही में बदल दिया है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
चीन में तेग़ के शासन काल तक लोकतंत्र ठीक रहा। उनके शासनकाल में उद्योग चलाने की अनुमति भी मिली लेकिन नियंत्रण अपने पास रखें। जिससे लोकतंत्र पर कोई आंच नहीं आया।
शी जिनपिंग 2012 में पार्टी के नेतृत्व संभालने के बाद सत्ता अपने मुट्ठी में अनिश्चित काल तक कर लिए। पहला काम सिविल सोसाइटी को कमजोर किए कार्यकर्ताओं और मानव अधिकार वकीलों को डरा कर चुप करा दिए। कार्यकाल की सीमा पर ऑनलाइन चर्चा को पूरी तरह सेंसर कर दिए। चीन दलील देता रहा है कि हमे पश्चिमी शैली वाला लोकतंत्र नहीं चाहिए।अमेरिका और दूसरे देशों में राजनीतिक और कूटनीतिक अड़चनों का हवाला देता है। 
चीन के राष्ट्रपति का मानना है मार्क्सवादी लेलिन वादी अपनी सत्ता को लोकतंत्र से ऊपर बताया। विश्लेषण कर्ता का कहना है की देश का इतिहास उसी दौर पर पहुंच गया है, जहां से उसने आगे चलना शुरू किया है।
शी. जिनपिंग के उदय से धाराशाही लोकतंत्र को अब उम्मीद है तानाशाही के कारण वर्चस्व है लंबी चौड़ी अर्थव्यवस्था में दुनिया के कोने कोने में कारोबार का विकास करके। अपने हाथों में ले कर लोकतंत्र का धाराशाही कर दिया।
इसी वर्ष अक्टूबर महीने में चुनाव की प्रक्रिया होने वाली है लेकिन वहां के समाचारों से यह अवगत हो रहा है फिर से शी. जिनपिंग चुने जाएंगे। उनके विकल्प के रूप में अभी तक कोई उभरा नहीं है। जिसे पार्टी का नेतृत्व दिया जाए।
लेखक का विचार:- चीन में लोकतंत्र धाराशाही हो चुका है वहॉ तानाशाही जैसा माहौलहै। जिस से चीन का अर्थव्यवस्था मजबूत भी हुआ है।जब तक सत्ता मे शी. जिनपिंग रहेंगे लोकतंत्र बहाल होना नामुमकिन है।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
चीन ओर लोकतन्त्र! क्यों मजाक करते हो भाई, पुरी दुनियाँ जानती हैं चीन में लोकतन्त्र नाम की कोई चीज नही हैं वहा वही होता हैं जो प्रमुख पदों पर आसिन लोक हैं वे किसी की नही सुन्ते यहा तक भी ठिक था किन्तु चीन में नियम कायदो को मानने पर विवस किया जाता हैं या यु कहें कानुन लादे जाते हैं। किसी को ऐसा सच बोलने की आजादी नही होती जो प्रमुख पदों पर आसिम को पंसन ना हों यहा तक की समाचार पत्र तक को सच छापने तक की आजादी नही हैं तब आप कैसे कह सकते हो की चीन में लोकतन्त्र हो सकता हैं। ओर तानाशाह कहने की किसी की हिम्मत नही हैं तो ऐसा हैं यह चीन।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्य प्रदेश
मंदारिन भाषा में एक शब्द आता है-'मिन्यून'। चीनी शासक हमेशा इस शब्द से नफ़रत करते रहे हैं।मिन्यून का अर्थ होता  है लोकतंत्र।
चीन में हमेशा तानाशाही ही चली है लोकतंत्र के नाम पर। लेकिन चीन में 2012 में शी जिनपिंग के उदय के साथ ही तानाशाही का ऐसा दौर शुरू हुआ जिसमें लेखकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। इस तानाशाही को अधिक बल मिला 2018 में जब शी जिनपिंग को उनकी अनिश्चितकालीन स्वैच्छिक अवधि तक राष्ट्रपति पद पर बने रहने का अधिकार मिल गया। अब शुरु हुआ तानाशाही का वह नंगा नाच जिसमें इसने सभी पड़ोसी देशों की ज़मीन पर अवैध कब्जा कर लिया,इसकी सीमा से लगता कोई ऐसा देश नहीं जिसकी भूमि इसने न कब्जा रखी हो। इसकी मानसिकता इतनी हद तक विकृत हो चुकी है कि समूचे  विश्व को कोविड-19 जैसी आपदा परोस दी।
लोकतंत्र से चीन की नफरत और तानाशाही की चर्चा करते हुए 1989 की 30 मई की घटना की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। चीन के लोकतंत्र समर्थकों ने बीजिंग के थियानमेन चौक पर, लोकतंत्र की देवी की,10 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की। देश में लोकतंत्र समर्थक आंदोलित थे। अभी मूर्ति स्थापना को 5 दिन ही हुए थे कि 4 जून 1989 को इस चौक पर टैंक से उस मूर्ति को तोड़ दिया गया। हजारों छात्र वहां पर जमा थे,सरकार ने उन पर गोलियां चलवा दी,टैंक से कुचलकर और गोली लगने से 3 हजार जानें गयी। कुछ रिपोर्ट में मरने वालों की संख्या 10 हजार का उल्लेख भी मिलता है। यह है लोकतंत्र के चेहरे में छिपी चीन की तानाशाही का काला अध्याय।
मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक,आज चीन की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, हजारों उद्योग बंद हो चुके हैं। कोविड-19 वाली हरकत के परिणाम झेलते चीन में आज बेरोजगारों की संख्या 13 करोड़ से ऊपर जा पहुंची है। शी जिनपिंग की तानाशाही के विरुद्ध देश में सुगबुगाहट चल रही है। जिनपिंग विरोधी लोगों को  जेलों में डाल। दिया गया है। लोकतंत्र के नाम पर  तानाशाही का नंगा नाच कर रहा चीन,
विश्वमंच पर लोकतांत्रिक देश होने का दिखावा कर रहा है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
चीन का लोकतंत्र कैसा है या सिर्फ ताना शाही ? पर चर्चा करने बैठें तो शायद चीन लोकतंत्र के दायरे से हमेशा बाहर ही खेलता नजर आता है।यदि उसके हुक्मरानों के अपनी जनता के लिए,लिए जाने वाले निर्णयों की बात हो या उसके अपने पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों की।जिस प्रकार से वहां की सरकार काम करती है तो वह तानाशाही के अंदर ही उचित बैठता है।अपने देशवासियों संग जोर जबरदस्ती तथा पड़ोसी मुल्कों के संग सीनाजोरी।ऐसा लगता है कि केवल राजा नहीं है वरना तो पूरी की पूरी प्रधानमंत्री की तानाशाही जोरों पर रहती है।
          ये वो वाली बात है कि यदि खिलौना मेरा है तो मैं सबके साथ मिलकर खेलूंगा अपना खिलौना खेल खत्म होने के पश्चात घर ले जाऊंगा तो यह एक प्रकार से लोकतांत्रिक विचारधारा होगी।परंतु दूसरी तरफ यदि हम अगर अपने खिलौने को हाथ में रखकर भी दूसरों के खिलौनों को लेकर उनसे जबरदस्ती खेलकर और फिर जाते समय उसे तोड़ भी दें तो यह तानाशाही होगी।जो केवल तब तक चल सकती है जब तक सामने वाला पलटवार ना करे।जो कि चीन की मनसा रहती है।परंतु सामने वाला जब अपनी शक्ति के साथ टकराने लगता है तो चीन जैसे देश धराशाई हो जाते हैं और तब कुछ अपने जैसे मुल्कों से अपनी लोकतांत्रिक गुहार लगाकर अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं जो कि चीन की वर्तमान स्थिति है। यानि चीन लोकतंत्र के मुखौटे में केवल एक तानाशाह है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
विश्व में अन्य देशों की  भांति स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है। चीन में सिर्फ तानाशाही है चीन में चीन की सरकार के खिलाफ कोई नहीं बोल सकता किसी को भी स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं है ।
चीन की तानाशाही व कूरुर सोच   करो ना कॉल के संक्रमण   के सामने आ गई ।मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन की कुरुर ता के दिन प्रतिदिन कई बड़े खुलासे हो रहे हैं।
 कोरिया के तानाशाह की दोस्ती के कारण चीन भी तानाशाह के उसूलों पर उतर आया है चीन में किसी भी धर्म को स्वतंत्रता का अधिकार भी नहीं है उसमें मुस्लिम  महिलाएं  बुर्का नहीं पहन सकती मस्जिद नहीं बना सकते। मस्जिद में नमाज पढ़ना तो दूर की बात जिस तरह भारत में मीडिया को स्वतंत्रता का अधिकार है चीन में मीडिया को स्वतंत्रता का कोई भी अधिकार नहीं है सरकार के बिना कोई भी न्यूज़ या आदेश का फरमान नहीं चल सकता ।
कोरोना संक्रमण के समय भी परिवार के सदस्यों को भी डेड बॉडी का पता ही नहीं होने दिया जिससे  की चीन में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या का पता ना चल सके।
चीन में कोई भी सरकारी सर्विस से पहले  सेना में ज्वाइन करना आवश्यक होता है ।
चीन में सभी नियम और कानून सभी नियम और कानून  न मानने वाले अपराधी की श्रेणी में आते हैं जनसंख्या नियंत्रण के लिए पहले एक बच्चा का कानून था अब सरकार ने दो बच्चे की अनुमति प्रदान की है।
इसीलिए कई कारणों से हम कह सकते हैं कि चीन का लोकतंत्र सिर्फ तानाशाही है । चीन पर ही नहीं फिलीपींस ,वियतनाम, ताइवान, कंबोडिया , नेपाल तिब्बत  पाकिस्तान आदि पर भी तानाशाही का रवैया  अपनाना चाहता है।
- रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
दुनिया के सबसे मज़बूत लोकतंत्र की बात करें तो भारत के लोकतंत्र को सबसे अधिक मज़बूत लोकतंत्र की श्रेणी में रखा जाएगा और सबसे मज़बूत तानाशाही की बात करें तो निश्चित ही कोरिया के बाद वर्तमान चीन का ग्राफ़ लगातार तेज़ी से बढ़ता नज़र आएगा । वैसे भी जहां जहां कम्युनिस्ट पार्टियों की सरकारें हैं उनका मूल मंत्र ही तानाशाही है । चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने अपने कानून में संशोधन कर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ही आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का प्रमाण पत्र दे दिया है इससे बड़ा तानाशाही का क्या उदाहरण हो सकता है । चीन धरती पर एकमात्र ऐसा देश है, जिसका अपने सभी पड़ोसियों से जमीनी विवाद है । भारत, भूटान, मंगोलिया, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजीकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, लाओस और वियतनाम ही क्यों न हो - यहां तक कि चीन के खासमखास मित्र उत्तर कोरिया के साथ भी इसका जमीनी विवाद है ।
चीन रिपब्लिक ऑफ चाइना या ताइवान को भी अपना एक अहम अंग मानता है उसका कहना है कि ताइवान कभी न कभी चीन में मिल ही जाएगा जबकि ताइवान अपने आपको स्वतंत्र राष्ट्र मानता है । वावजूद इसके चीन ने उसे कभी भी एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा नहीं दिया, यहां तक कि ताइवान के साथ रिश्ता रखने वाले देशों के साथ भी चीन दुश्मनी का रुख रखता है ख़बरें बताती हैं कल तो तानाशाही की हद ही हो गई जब एक देश में दो संविधान बता कर हांगकांग में नया संविधान थोप दिया अब आंदोलन हो रहें हैं और चीन की सेना आंदोलनकारियों पर दमन कारी नीतियों का पालन कर रही है । इसके अलावा चीन अपने सभी पड़ोसी छोटे देशों को धमकाता रहता है कि वह उनके पक्ष में ही रहें हथियार भी चीन से ही खरीदें चीन कहे तो ये करें, और चीन कहे तो वो करें. और तो और पिछले दिनों उसने अमेरिका को भी बोला कि वह भारत का पक्ष न लें पर चली नही । वर्तमान में चीन जैसा साम्यवादी देश खुद अपने देश में तानाशाही शासन करता है, जिसके खिलाफ कई बार आंदोलन हो चुके हैं हांगकांग प्रांत में छात्र चीन की कम्युनिस्ट तानाशाही के खिलाफ लगातार हल्ला बोल करते रहे हैं ।
सितंबर 2017 में हजारों छात्र लोकतंत्र की मांग को लेकर चीन की सड़कों पर एकत्र हुए थे, चीन में सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने की आजादी नहीं है ऐसे में छात्रों के इस आंदोलन को भी दबा दिया गया और भविष्य में ऐसे आंदोलनों को कुचलने के लिए बड़े छात्र नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया ये तानाशाही का बड़ा उदाहरण है ।
तानाशाह चीनी सरकार चीनी नागरिकों पर धार्मिक प्रतिबंध भी धोप रही है इसका एक नमूना उइगर मुस्लिम हैं चीन के उत्तर पश्चिमी कोने पर एक प्रांत है, जिनजियांग, जहां रहने वाले ज्यादातर लोग तुर्की मूल के उइगर मुस्लिम हैं चीनी सरकार इन्हें धार्मिक स्वतंत्रता नहीं देती इनके तो रोजा रखने पर भी प्रतिबंध है इसके अलावा एक पार्टी राजनीतिक प्रणाली के तहत चीन में शासन करने वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने लगभग 9 करोड़ सदस्यों से कहा कि वो अपने धर्म का त्याग कर दें ये कितनी बड़ी तानाशाही है । इसके अलावा भी कई ऐसे प्रतिबंध के मुद्दे चीन के अंदर ही दबे रह जाते हैं, जिन्हें कई बार उठाया तक नहीं जाता क्योंकि वहां की मीडिया को भी इसकी आजादी नहीं है । चीन में लोकतंत्र केवल नाम मात्र का है वहाँ पूरी तरह से तानाशाही शासन है।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
चीनी युवाओं के लिए लोकतंत्र सपने की तरह है।
 चीन में लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही शासन है।
चीनी सरकार का दलील है कि पश्चिमी शैली वाला लोकतंत्र चीन के लिए उचित नहीं।
     2012 में पार्टी का नेतृत्व संभालने के बाद शी जिनपिंग ने सिविल सोसाइटी को कमजोर कर दिया। लेखकों, कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार वकीलों को या तो कैद कर लिया या फिर उन्हें चुप करा दिया। इंटरनेट और वीडियो सर्विलेंस का इस्तेमाल लोगों पर निगरानी में रखने पर किया। 
मौजूदा सरकार की कार्यकाल की सीमा पर ऑनलाइन चर्चा को पूरी तरह सेंसर किया गया। अब राष्ट्रपति शी जिनपिंग का तानाशाही रूप देखने को मिल रहा है जो जनता के हित में नहीं है। 
   कोरोना संकट की वजह से चीन में भी आर्थिक तबाही और बेरोजगारी के आंकड़े आसमान छू रहे हैं। नौकरियां खो चुके नौजवानों के द्वारा विरोध की लहर को कुचलने का प्रयास किया जा रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग को लोकतंत्र की आंधी में अपना तंबू उखड़ने का डर सता रहा है। इसी वजह से जिनपिंग चीनी जनता को हॉगकॉग का ट्रेलर दिखा कर संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि जो भी तानाशाही सरकार को चुनौती देगा उसे कुचल डाला जाएगा।
     चीन के युवा अपनी मन की बात को सोशल मीडिया पर जाहिर कर सरकार से जवाब मांगने की कोशिश कर रहे हैं पर उसे भी दबाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर सेंसरशिप और सख्त कर दिया गया है पर क्रांति की आहट की दहशत सरकार को भी महसूस हो रही है कि ज्यादा दिन तक हम लोकतंत्र को दबा नहीं सकते। 
    दूसरे बड़े-बड़े देशों ने भी तानाशाही का विरोध किया है ।अब वायरस फैलाने के लिए चीन को जिम्मेदार मानते हुए चीनी सामान का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। चीनी सरकार चारों तरफ से घिरते नजर आ रही है और उसे महसूस हो रहा है कि हमारी तानाशाही शासन ज्यादा दिन चलने वाली नहीं। लोकतंत्र को खत्म कर हम ज्यादा दिन शासन नहीं सकते।
                                 - सुनीता रानी राठौर
                              ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
वैसे उतनी जानकारी नहीं है लेकिन पहले वहां काॅमनिष्ट पार्टी का शासन था। वहां राजतंत्र कभी रहा हो यह पता नहीं लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था तो है ही। वहां तानाशाही नहीं बल्कि शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए काबिल लोग हैं।
चीन में दहेज प्रथा लूट खसोट अधिक नहीं है। सभी लोग काम धंधे से जुड़े हैं। जिसका व्यापक असर भी देखने को मिलता है। भारत के जैसे ही वहां भी कुछ चीजें सस्ती तो कुछ महंगी है। खान-पान रहन-सहन के मामले में भी लोग औसत हैं। लेकिन एक चीज बहुत बुरा है कि वहां के लोग भारत के जैसे ही कुपोषण के शिकार अधिक हैं चुकी आवादी अधिक और क्षेत्रफल कम है। खाद्य उत्पादन में भी औसत है लेकिन लोग अधिक अनाज अनुपलब्ध होने के कारण कीट पतंगों को खाकर भी जीवन यापन करते हैं। अभी जो कोरोनावायरस जैसी बीमारी चल रही है वह इसी का परिणाम है।
जनसंख्या नियंत्रण में भी औव्वल स्थान रखता है। कुछ दिन पहले तक तो किसी शादी सुदा दंपति को सिर्फ एक बच्चे की ही इजाजत थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि वहां युवा पीढ़ी की जनसंख्या कम हो गई तो मजबूरन वहां कि सरकार ने दो बच्चे की इजाजत दे दी। चीन डिजिटल मार्केटिंग के मामले में भी किसी विकासशील देश से कम नहीं है। आज दुनिया भर में सस्ते इलेक्ट्रॉनिक उपकरण चीन की ही देन है।चाहे वह फलस लाइट, मोबाइल फोन,झालर, टार्च,लाइटर, और भिन्न-भिन्न प्रकार के उपकरण इतना सस्ता उत्पादन होता है कि दुनिया भर में छाया हुआ है। यदि तानाशाही होता तो शायद मेरे हिसाब से ऐसा संभव नहीं था। चीन के बारे में इससे अधिक जानकारी नहीं।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव -  हरियाणा


" मेरी दृष्टि में " चीन की दुनिया में पहचान तानाशाही के रूप मे है । फिर भी चीन अपनी स्थिति को साफ करना नहीं चाहता है । इस का अर्थ स्पष्ट है कि चीन दुनिया को यही संदेश देना चाहता  है कि वह जो करता है वही सही है । परन्तु ऐसा नहीं है । दुनियां लोकतंत्र पर चलतीं हैं । यहीं अटल सत्य है
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी
                                 सम्मान पत्र

Comments

  1. आदरणीय बीजेन्द्र जी, सादर प्रणाम. इस मंच पर आप जिन विषयों पर विचार आमंत्रित करते हैं, कभी कभी उनके बारे में अधिक न मालूम होने पर उन्हें विभिन्न माध्यमों से पढ़ समझ लिखने से ज्ञान वृद्धि हो रही है.  एक तरह से यह मंच एक विद्यालय की भांति साबित हो रहा है. बहुत बहुत  शुभकामनाएं

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