क्या बहुत महंगा पड़ता है चीन का सस्ता और घटिया माल ?
चीन का माल कभी भी अच्छा नहीं माना गया है । क्योंकि इन की लाईफ बहुत कम होती है ।जैसी कीमत होती है वैसा ही माल निकलता है । कहते हैं महंगा ले तो रोये एक , सस्ता ले तो रोये बार - बार ..। यह कहावत चीनी माल पर एक दम सही बैठती है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है ।अब आये विचारों को देखते हैं : -
हमारे यहां एक कहावत है सस्ता रोए बार-बार महंगा रोए एक बार सस्ता सामान के लालच में कभी नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि हमें बार-बार सामान खरीदना पड़ता है और महंगा सामान एक बार हम ज्यादा पैसा लगाकर खरीद लें तो हम बहुत समय के लिए हमारी छुट्टी हो जाती है यह उदाहरण आप अपने घर के आस-पास कोई भी सामान आपने यदि किसी भी कंपनी का खरीदा है तो वह बहुत दिनों तक स्थाई चलेगा। जिस देश में उसकी नियति ठीक नहीं है विस्तार वादी नियत है और जो हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है वह अच्छा सामान हमें कैसे दे सकता है उसके अंदर ही विश और जलन जरूर रहेगी वह हमें सस्ता और घटिया माल ही बेचेगा यह बात हम सभी को अपने दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कोई भी देश या कंपनी अपना मुस्कान करके सामान को नहीं बनाएगी और ना ही बेचेगी अपना फायदा तो सभी देखेंगे हमारा सामान महंगा पड़ता है लेकिन व टिकाऊ रहता है क्योंकि हम भारतीयों की नियत ही साफ है आज आई थी और सॉफ्टवेयर क्षेत्र में हमारे देश के युवाओं का कोई मुकाबला नहीं कर सकता विश्व में सभी जगह नौकरी करने वाले सब से ज्यादा संख्या भारतीयों की है। हमें अपने बुद्धि के बल पर हर क्षेत्र में आगे निकलना है और दुश्मन को सबक सिखाना है हमारे प्रधानमंत्री जी ने बहुत अच्छा कार्य किया है जो चाइनीस ऐप को बंद कर दिया है और अब हम सभी को स्वदेशी आंदोलन चलाना चाहिए। लालच और दिखावे में नहीं पड़ना चाहिए।
वास्तविकता में जिए
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
चीन के सामान के बारे एक कहावत प्रचलित है कि चले तो चाँद तक ओर ना चले तो शाम तक ! जिसे सुनकर ही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि चीन का सामान कितना घटिया होगा । परंतु भारत की लगभग 60 प्रतिशत आबादी घटिया बढ़िया नही देखती , उसे बस सस्ते से तलब है और यही वजह है कि चीनी सामान सस्ता होने के कारण लोग उसे ही लागतार पसन्द करते है और कमाल तो ये भी है कि वह सामान खराब हो जाने के बाद भी पुनः उसी चीनी सामन को खरीदते है क्योंकि मेड इन इंडिया उनके बजट में नही होता है ।
मेड इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए सरकार को लोगो का बजट ठीक करना होगा । ताकि लोग उसे खरीद सकें और व्यापारी उसे बेच सकें । तभी इस मेड इन चाइना से छुटकारा पाया जा सकता है । क्योंकि भारतवासियों को कोई शौक नही लगा है कि वह चीनी उत्पादों को प्राथमिकता देते हुए अपने घर मे सजाएं ये तो मजबूरी है उस जनता की जिनका बजट सरकार दुनियाभर के टैक्स लगाकर हिला देती है । महज इसीलिए जनता विदेशी प्रोडक्ट्स पर निर्भर हो जाती है । जो देश की आर्थिक सेहत को मापने वाली जीडीपी दर को ले डूबने के लिए कारगर साबित होती है ।
- परीक्षित गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
"सस्ता रोये बार-बार, मंहगा रोये एक बार" यह कहावत चीन के सामान पर पूरी तरह सत्य सिद्ध होती है। चीन का सस्ता सामान उपभोक्ताओं को केवल क्षणिक तौर पर राहत देकर मूर्ख बनाने का कार्य करता है। चीन का सामान घटिया होते हुए भी आम जन-मानस के दैनिक उपयोग में अधिकाधिक भूमिका अदा कर रहा है तो इसका कारण यही है कि हम केवल तात्कालिक लाभ के विषय में ही सोचते हैं जबकि उसकी दूरगामी हानि के बारे में जानते हुए भी अनदेखी कर देते हैं, यही सोच उपभोक्ता को हानि और चीन को लाभ दे जाती है।
अब समय आ गया है कि चीन के सस्ते परन्तु घटिया सामान के विरूद्ध एक युद्ध सा लड़ा जाये और प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही स्वेच्छापूर्वक चीन के घटिया सामान का बहिष्कार करे।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
भारत में पूर्व से ही अच्छी वस्तुओं का पूर्ण रूपेण उत्पादन हो रहा था। जहाँ आमजन प्रंशसा करते थे। किन्तु जब बाहरी वस्तुओं का आगमन होने लगा, तो उसके प्रति आकर्षित होते चले गये, एक कहावत हैं-"दूर के घोल सुवाहने" इसी चरित्रार्थ पर चीनी सस्ता माल आदि की खरीदारी की जा रही थी। जो कुछ दिनों तक तो ठीक-ठाक रहता था, शनैः-शनैः उस घटिया माल की चमक कम होते जा रही थी। जो भविष्य में मंहगा पड़ता गया? भारत के दुकान ठेकेदारों द्वारा जरूर से ज्यादा चीनी वस्तुओं की आयत-निर्यात किया जा रहा था, उनका बहुतायत कमीशन बंधा हुआ था, जिसकी खपत कराने, अपने ही जनों के घर वासी गुनगान करने से नहीं थकते थे। आज वही ठेकेदार जरुरत से ज्यादा असहाय और वे ही प्रभावित होते जा रहे हैं। अब चीन का माल, माल नहीं रहा, स्वदेशी उत्पादन सस्ता और टिकाऊ हैं। स्थानीय रोजगारों की महत्ता बढ़ाने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
लेते वक्त चीन का सस्ता और घटिया माल बहुत सस्ता लगता है लेकिन जब उसका उपयोग शुरू करते हैं तो उसकी टिकाऊ पर बहुत घटिया होता है उस समय चीन का सस्ता और घटिया माल बहुत महंगा पड़ता है चीन बहुत चतुर और नालायक मानसिकता का देश है इसीलिए वह नालायक ना काम में आने वाली वस्तु तैयार करता है और दूसरे देशों को आकर्षण वस्तुओं का व्यापार कर धन्य एकत्र करता है और इस धन से अपनी वर्चस्व को बनाए रखने के लिए अपने सीमा क्षेत्र के राज्यों को विस्तार वादी मानसिकता से परेशान करता है। इस नीति का अब अन्य देश वह भी पता चल गया है इसीलिए इसकी मानसिकता को देखते हुए चीन की व्यापार संबंध को दौड़ने लगे हैं चीन बहुत आकर्षक और घटिया माल बना करके लोगों को आकर्षित करता है लोग इसकी मक्कारी चाल को समझ नहीं पाते हैं और सस्ता और सुंदर समझकर के अधिक से अधिक चीन का माल उपयोग करते हैं अब समझने लगे हैं कि चीन की माल आकर्षक दिखता है लेकिन टिकाऊ नहीं होता घटिया माल होता है इसलिए चीन जी सस्ता और घटिया माल को बहिष्कार करने लगे हैं। हर देश की जनता को समझना चाहिए कि ऐसे मक्कार गद्दार और धोखेबाज देश के दूसरे देश को धोखा देकर अपना वर्चस्व बनाना चाहता है वह देश किसी का नहीं होता है सिर्फ उसे धन की आवश्यकता होती है मानवता उससे बहुत दूर रहता है मानवीयता उसको पता नहीं होता है ऐसा देश कभी भी दूसरे देश की विकास नहीं चाहता है चीन चाहता है कि इस संसार में मैं ही विकास करू वह दूसरों की भलाई कभी नहीं चाहता वहां की इंसानियत मर गई है वह कभी इंसान बन के नहीं जी पा ता है इसीलिए इसके अंदर इंसानियत की कोई कदर नहीं है ऐसे घटिया और सस्ता माल को लेकर लोग अपने आप को धोखा दे रहे हैं अतः इस बात को समझ जाना चाहिए कि चीन का माल का बहिष्कार करके अपने ही देश में अपने आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक वस्तुओं का निर्माण कर अपने ही देश का विकास में सहयोग करना चाहिए ऐसा हम कर पाते हैं तो जरूर हमारा देश विकास की ओर जाएगा और हम किसी के लाले नहीं पड़ेंगे यह काम सरकार और जनता दोनों की सहयोग से ही हो सकती है एक तरफ दिन का बहिष्कार और दूसरी तरफ अपने देश के विकास के बारे में सोचना चाहिए और सब एकजुट होकर के अपने देश के विकास के लिए संकल्प लेना चाहिए तभी हमारा देश का उद्धार होगा नहीं तो ऐसे ही देश बर्बाद होता जाएगा हमारा देश को बर्बाद देखते हुए हम कितना दिन तक जी पाएंगे हम को जीने के लिए बर्बाद विवाद की ओर जाना है। और दुश्मन देश को हराना है मुंह तोड़ जवाब देगा उसे सबक सिखाना है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जी हां! बहुत महंगा पड़ता है चीन का सस्ता और घटिया माल। चूंकि सर्वप्रथम यह संदेश मिलता है कि हम घटिया देश से भी कहीं अधिक पिछड़े हुए हैं। फिर एहसास होता है कि उक्त घटिया माल से धन अर्जित धन को उपरोक्त घटिया देश हमारे सैनिकों के विरुद्ध हथियारों के रूप में प्रयोग करता है। वही धन वह पाकिस्तान और नेपाल को हमारे विरुद्ध उकसाने में लगाता है। हमें चुनौती देता है।जिसका हमारे वीर साहसी सैनिक जान की बाजी लगा कर सामना करते हैं।
किन्तु प्रश्न स्वाभाविक है कि हम चीन का सस्ता और घटिया माल खरीदने पर क्यों विवश हो रहे हैं? हम अपना माल बनाने में असमर्थ क्यों हैं? हम सहत्तर वर्ष की स्वतंत्रता के पश्चात भी आत्मनिर्भर क्यों नहीं हैं? क्यों माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी की 20 लाख करोड़ रुपए की घोषणा को सरकारी अधिकारी ही राजनैतिक ड्रामा कह रहे हैं और उन्हें प्रधानमंत्री जी दण्ड देने में असमर्थ क्यों हैं? क्यों उनकी सरकार के ही अधिकारी/कर्मचारी उनके आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं? कौन और कब इन गम्भीर प्रश्नों के उत्तर देगा?
उल्लेखनीय है कि प्रार्थी माननीय प्रधानमंत्री जी के आग्रह पर 'वोकल फार लोकल' के अंतर्गत उन्हें प्रार्थना पत्र देता है। जिसपर विभाग के उच्च अधिकारी उसे राजनैतिक ड्रामा कहते हैैं। जिसपर प्रार्थी माननीय प्रधानमंत्री जी को लिखित शिकायत करता है। जिसपर भारत सरकार के मछली पालन मंत्रालय के विभागीय निदेशक 17 जून को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित सरकार के मछली पालन मंत्रालय के प्रधान सचिव को लिखित आदेश जारी करते हुए 30 जून तक कार्रवाई कर जांच रिपोर्ट मांगते हैं। परन्तु उसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती है।
तो ऐसीे विशेष दुर्गम आर्थिक संकट भरी परिस्थितियों में भी सरकारी अधिकारी कब तक अपनी बैठकों में बादाम पिस्ता और काजु खाकर राष्ट्र और राष्ट्रवासियों को धोखा देंगे एवं कौन बताएगा कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी की 20 लाख करोड़ रुपए की अद्वितीय घोषणा का क्या अर्थ शेष रहेगा? लोकल फार वोकल में लगे उद्यमियों का भविष्य क्या होगा और भारत आत्मनिर्भर कैसे बनेगा?
यह बात बिल्कुल सही है कि इनका सस्ता और घटिया सामान बहुत महंगा पड़ता है कहावत भी है सस्ता रोए बार-बार और महंगा रोए एक बार चीन का यह घटिया और सस्ता सामान हर दृष्टि से महंगा है इसे बनाने में चीन में जाने किन-किन ऐसी चीजों का प्रयोग करता है जो आप सोच भी नहीं सकते जैसे यदि मैं एक उदाहरण हूं तो बच्चों के खिलौने बनाने में वह प्रयुक्त हुए निरोध तक का इस्तेमाल कर लेता है जो बच्चों के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं और अनजाने में ही उपभोक्ता अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण जीव अपनी सन्तान के जीवन से खिलवाड़ करता है दूसरी ओर जब तुम कोई चीज घटिया और सस्ती खरीद लेते लेते हो तो वह मैं तो सही से उपयोग की जा सकती और न ही उसका जीवन अधिक दिन होता जिसका परिणाम यह होता है कि हम मानसिक रूप से ही परेशान होते हैं और आर्थिक रूप से भी हमें नुकसान होता है यानी हमें वह सामान फिर खरीदना पड़ता है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि जिनका यह संसार घटिया सामान बहुत महंगा पड़ता है इससे होने वाली आय को चीन हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल करता है वर्तमान में सीमा पर हो रहा संघर्ष उसके इसी आर्थिक घमण्ड का परिचायक है चीन को भ्रम हे गया है कि यह सदा चलता रहेगा पर अब भारत में शुरुआत कर दी है उसके उत्पादों को बहिष्कृत करके चीनी एप्स पर पाबंदी लगाया जाना इसका एक नमूना भर है और यदि चीन के सभी उत्पाद ही खरीदना बंद कर दें तो उसे आर्थिक रूप से इतना नुकसान होगा जिसकी भरपाई नहीं हो सकेगी और वह अपनी सारी चाल बाजियां भूल जाएगा जो बहुत जरूरी भी है दुनिया में स्थिरता और शांति के लिए इस प्रकार से हम कह देते कि चीन का यह सस्ता और घटिया सामान वास्तव में बहुत महंगा पड़ता है.
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
वापरने से पहले किसी माल को घटिया कहना उचित न होगा चाहे वह सस्ता ही क्यों न हो? चाहे चीनी हो या भारतीय। जब से चीन का माल भारत में बिकने लगा तब से मानो एक क्रांति सी आ गई। लोग हैरान हो गये। न केवल सस्ता अपितु देखने में सुन्दर। उदाहरण के तौर पर छोटी से छोटी वस्तु में इलैक्ट्रानिक और एलईडी के प्रयोग ने सभी को हैरान कर दिया। दीवाली की लड़ियों ने देसी लड़ियों को बहुत पीछे छोड़ दिया। अलग अलग तरीकों से जगमगाती बल्बों की लड़ियां और पट्टियां देखते ही बनती हैं। भारतीय उद्योग चाह कर भी यह न कर सका। और उस कीमत पर कर पायेगा यह फिलहाल असंभव है क्योंकि इसमें तकनीक का जबर्दस्त इस्तेमाल किया गया है। भारत में निर्मित लड़ियां बहुत ही महंगी पड़ती थीं और फिर उनमें वह कमाल नहीं आ पाया। ऐसा करते तो कीमतें और भी बढ़ जातीं। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि भारत में निर्मित एक लड़ी के मुकाबले चीन में बनी दस लड़ियां मिल जाती हैं तो क्या हर्ज है। ऐसी बहुत सी वस्तुएं हैं। यही वजह रही कि न केवल आम आदमी अपितु अमीर तबका भी इसकी जद में आया। बड़े बड़े बैंक्वेट हाल और फार्म हाऊसों की तो सदा ही शोभा बढ़ाती रही चीनी लाइटें। भारतीय उद्योगपति भी चीन से आयात करके लाभ उठाने लगे। इतना ही नहीं हर कोई ऐरा गैरा नत्थू गैरा जो आर्थिक रूप से मजबूत था वह चीन से कन्टेनर के कन्टेनर मंगा कर लाभ कमाने लगा। लोग बार बार चीन की यात्रा कर रहे थे। भारत से जाने वाले वहां सौदेबाजी कर सस्ते से सस्ता सामान लाकर मुनाफा कमाने में मशगूल थे। चीनियों को भी हमारा मनोविज्ञान समझ में आ गया था। वह भी सस्ते और घटिया उत्पाद बनाने लगे। भारतीय व्यापारियों की और मौज हो गई। भारत में बेचते समय जान छुड़ाने के नाम पर भारतीय व्यापारी यहां तक कहने लगे कि यह चीनी माल है, यहीं चला कर देख लो। दुकान से बाहर निकलने के बाद की कोई गारंटी नहीं। यह व्यापारी और ग्राहक दोनों का ही लोभ था जो सस्ता और घटिया माल भारत में लाया जा रहा था। तो हम कैसे कह दें कि बहुत महंगा पड़ता है चीन का सस्ता और घटिया माल। हमारी सोच ही सस्ती और घटिया है। सौदेबाजी हमारी नस-नस में है। चीन के माल को क्या दोष दें। वहां बढ़िया क्वालिटी का माल भी बनता है। पर भारतीय व्यापारी उसे लाने में कतराते रहे क्योंकि उसके खरीदार भारत में गिनती की थे। और शायद ही यह प्रयास किया गया हो कि वैसे उत्पाद हमारे यहां उसी कीमत में बन सकें। हमारे यहां भी श्रमिकों की कमी नहीं है। कमी है तो बस उन्हें तकनीकी रूप से सक्षम करने की और उसके अनुरूप आधारभूत ढांचे की तथा भ्रष्टाचारमुक्त सरकारी सहयोग की। चीन का सस्ता और घटिया माल महंगा पड़ना हमारी घटिया सोच के कारण है। - - - सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
चीन दुनिया में सबसे सस्ता सामान बनाता है। इसके अलावा चीन में हर प्रकार के सामान का निर्माण करता है। सस्ता होने के कारण दुनिया के अन्य देशों का सामान चीन के सामान के आगे टिक नहीं पाता है। यही कारण है कि कई देशों ने चीनी सामान के आयात पर रोक लगा रखी है। भारत में भी चीनी सामान बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है। सस्ता होने के कारण कई छोटी-बड़ी कंपनियां और व्यापारिक संगठन सरकार से चीनी सामान के आयात पर रोक लगाने की मांग करती रहती हैं। लेकिन शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि चीनी कंपनियां इतना सस्ता सामान कैसे बना लेती हैं।.
श्रम की उपलब्धता: किसी भी सामान की लागत में सबसे बड़ा हिस्सा श्रम का होता है। महंगा श्रम होने के कारण किसी भी सामान की लागत बढ़ जाती है। चीन में सस्ता और बहुतायात में श्रम मौजूद है। इस कारण चीन में बने सामान में श्रम की लागत काफी कम आती है। इस कारण चीनी सामान सस्ते होते हैं।
कंपनियों को सुविधाएं: चीन की सरकार वहां की कंपनियों को कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। इसमें आधारभूत संरचना, बिजली, सड़क आदि शामिल हैं। इन सुविधाओं के अच्छा होने से भी उत्पादन की लागत में कमी आता है। इसके अलावा चीन सरकार निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर कई प्रकार की कर छूट देती है। इससे सामान सस्ता हो जाता है।
विदेशों को ध्यान में रखकर उत्पादन: चीन की अधिकांश कंपनियां घरेलू बाजार के बजाए विदेशी बाजारों को ध्यान में रखकर उत्पादन करती हैं। इसके अलावा चीन सरकार दुनिया के किसी भी देश की किसी भी वस्तु की कॉपी करने की अनुमति देती है। इस कारण चीनी कंपनियां कॉपीराइट समेत अन्य कानूनी प्रक्रिया के चक्कर में नहीं पड़ती हैं। इससे कंपनियों की लागत कम हो जाती है। दूसरा विदेशों से मांग ज्यादा होने कारण अधिक उत्पादन करना पड़ता है। इससे चीनी सामान सस्ता हो जाता है।
वैश्विक मंदी की मार से पीड़ित भारत को चीन से आयातित माल पर रोक लगाने का विचार पहली नजर में आकर्षक लग सकता है। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताकर कुछ खिलौनों पर रोक लगाकर हमने प्रयोग भी कर लिया है। हालांकि चीन का माल सस्ता, आकर्षक और विविधतापूर्ण होने की वजह से हमारे बाजार में छाया रहा। यदि हमने वैद्य आयात पर प्रतिबंध लगाया, तो चीन डंपिंग, तस्करी और भ्रष्टाचार का सहारा लेकर हमारी रोक को व्यर्थ कर देगा। इसलिए यह निर्णय हानिकारक है। इसलिए हमें भी प्रतिस्पर्द्धी माल तैयार करने पर जोर देना चाहिए।
आज समय ऐसा आ गया है कि सीधे हमले से बचा जाए। वैसे आर्थिक हमला बहुत ही आसान और सस्ता होता है। सस्ती वस्तुएं किसी भी देश भेजकर उसकी आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित किया जा सकता है। हमारे देश में चीन से आयातित सामान का सीधा असर घरेलू उद्योग पर पड़ रहा है। लघु उद्योग तो इस प्रहार से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इस वजह से बेरोजगारी भी बढ़ रही है। आयातित माल में सिर्फ आकर्षण है, मजबूती नहीं। हमारे सामान मजबूत तो होते हैं, लेकिन वे महंगे होते हैं। चीन से आयातित सामान हर हाल में हमारा नुकसान करते हैं।
सस्ते और खराब गुणवत्ता का सामान बाजार में उतार कर चीन हमारे कारोबारियों को पंगु बना रहा है। यही हाल रहा, तो देश के अंदर कारोखानों में उत्पादन बंद हो जाएगा। सरकार के साथ कारोबारियों और जनता को भी सोचना होगा कि चीन से आने वाले उत्पाद इतने सस्ते कैसे पड़ते हैं। गुणवत्ता में ध्यान न देकर सस्ता माल बाजार में उतारना चीन की पुरानी आदत रही है और जनता सस्ते के चक्कर में पड़कर सामान खरीद लेती है जो हमारे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा साबित हो रहा
अक्सर देखा गया है कि चीनी सामान दाम में तो कम होता है, पर साथ ही उसकी क्वालिटी घटिया होती है। अक्सर ग्राहक खराब क्वालिटी का सामान होने पर दुकानदार को दोष देती है। सरकार को सबसे पहले गुणवत्ता पर कड़ा नियंत्रण रखना होगा, जिससे कि हमारे बाजारों में घटिया माल पहुंचने ही न पाए।
चीन ने अब हिंदू देवी-देवता, राखी, पिचकारी और पटाखे तक बनाना शुरू कर दिया है। ज्यादातर माल सस्ता तो होता पर क्वालिटी मे खराब होता है। अगर सही क्वालिटी का माल चीन से आए तो कीमत में अंतर खत्म हो जाएगा।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
यह गलत सोच है।चीन का माल सस्ता तो होता है लेकिन घटिया नही होता। हमारे यहां का माल मंहगा और घटिया होता है इसी वजह से वो चीनी माल के आगे टिक नहीं पाता। हमको चाहिए कि हम लोग खुशफहमी को छोड़ कर चीन से सीख लें और क़्वालिटी में उसकी बराबरी करबे की कोशिश करे
सीख तो दुश्मन से भी लेना चाहिए। क्यों हम अपनी नाकामियों को स्वदेशी के ढोल के अंदर छुपाते हैं? अब समय आ गया है अपना ईमानदार मूल्यांकन करने का। सरकार की नीति साफ एवं स्पष्ट है।अब बड़े व्यापारिक घरानों और उद्योगपतियों के पाले में गेंद है। जनता तो हमेशा की तरह भ्रमित ही रहेगी।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
चीन का सस्ता और घटिया माल बहुत महंगा पड़ता है। सस्ता होने के कारण चीन निर्मित माल भारत, अमेरिका, सहित कई बड़े देश मंगाता है। पर चीन का माल टिकाऊ नही होता। चीन निर्मित इलेक्ट्रॉनिक्स सामान सबसे छोटी अवधि तक चलता है। चीन में उत्पादित मोबाइल का मदरबोर्ड सबसे कम गुड़वता का होता है। जिसकी उम्र डेढ़ से दो वर्ष तक कि होती है। इसके बाद वह मोबाइल अनुपयोगी हो जाता है। उसे फेक ही देना पड़ता है। लेकिन खराब मोबाइल का निस्तारण भी पर्यावरण के दृष्टिकोण से दूषित होता है। इसके साथ ही चीन निर्मित इलेक्ट्रिकल्स समान दुनियाभर में सबसे सस्ता तो जरूर होता है, परंतु टिकाऊपन नही होता है। सबसे महत्वपूर्ण मोटरपार्ट्स है। वर्ष 2000 से पहले भारत में निर्मित वचनों के निर्माण में देशी उत्पाद का प्रयोग होता था जो टिकाऊ होता था और लंबी अवधी तक चलता था। वहीं 2000 के बाद चीन निर्मित स्पेयर पार्ट्स भारत के वाहनों में उपयोग होने लगा तब से ऐसे ऑटो पार्ट्स में खराबी आना आम बात रही है। इन कल पुर्जो की खराबी के कारण वाहनों का खराब होने से दुर्घटनाग्रस्त होना सबसे बडी बात रही है। जिसमे यातायात नियमों का उल्लंघन, स्पीड रफ्तार शामिल है। इसके साथ ही भारत मे चीनी खिलौने का भी बहुत बड़ा बाजार है, परंतु चीन निर्मित खिलौनों में प्रयुक्त कच्चा माल निम्न व घटिया होने के कारण बच्चों में प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस कारण बच्चों में स्वास संबंधित समस्या व मुंह के संसर्ग में आने के कारण अन्यान्य बीमारियों की संभावना बने रहती है। इसलिए चीन का सस्ता और घटिया माल सस्ता
पर बहुत महंगा पड़ता है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
जी बिल्कुल!देशप्रेम और विरोधी की छलयुक्त कूटनीति के समक्ष तो मंहगा ही नहीं घातक भी लगता है चीनी सामान. हालाँकि चाइनीज वस्तुएं देश विदेश में अपना जमावड़ा बहुत गहरे तक कर चुकी हैं.अन्य वस्तुओं की अपेक्षा ये चीजें सस्ती,सुंदर, लुभाने वाली और भ्रामक तो जरूर हैं,लेकिन इस्तेमाल के बाद पोल खुलने पर बेकार,घटिया श्रेणी की,बेकार मटेरियल से निर्मित साबित होती हैं.हमारे देश में बहुसंख्यक वर्ग निम्न आर्थिक स्तर होने के कारण इन चीजों के भ्रमजाल में फंस जाता है. हमारे देश में निर्मित खेस,दरी,दुतई,परदे,चादरें, रजाई,गद्दे ,पहनने वाले वस्त्र जैसे सभी सामान यहीं पर उगाई गई कपास से बनते थे,जिनका स्थान चीनी वस्तुओं ने ले रखा है.जो सुख और फायदे स्वदेशी माल बरतने में था वह अनिवर्चनीय ही है.अब फिरसे हमें पलटकर वही सब चीजें अपनानी चाहियें. कहा भी गया है-मंहगा रोए एक बार,सस्ता रोए बार बार... चीजों की गुणवत्ता जरूरी है संख्या और मिथ्या दिखावा नहीं.
- डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
यह प्रश्न बहुत ही रोचक है चीन के सस्ता और घटिया माल पर विचार करना है।
चीन से आयातित सामान सस्ता जरूर होता है,लेकिन गुणवत्ता
बहुत ही खराब होता है, और स्वास्थ्य की दृष्टि से बच्चों के लिए अच्छे नहीं होते हैं।
दूसरा बड़ी कारण ;-स्वदेशी उत्पादकों को बाजार में प्रतिस्पर्धा से बाहर करने की काम करता है।
पहले देशवासियों ने सस्ते सुंदर वस्तु की ओर आकर्षित हुए, लेकिन जल्द ही समझ गए सस्ते, घटिया सामान सिर्फ आकर्षण की चीज है उपयोग के लिए नहीं। यह धीरे-धीरे महंगाई की ओर ढकेलता है।मोनो:- कोई खिलौना खरीद कर अपने बच्चे को दिए एक-दो दिन में टूट गया या खराब हो जाता है तो वैसे हालत में हम स्वदेशी खिलौना क्रय कर के बच्चों को देते हैं। यानी पहला लागत आपका नष्ट हो गया इसलिए चीन से आयात किया हुआ वस्तु खरीदने की जरूरत नहीं है।
भारत सरकार * घटिया चाइनीस सामान के आयात पर अंकुश लगा सकती है। मुख्य रूप से चीन से आयातित खिलौना प्लास्टिक के सामान खेलने का सामान और फर्नीचर जैसे गैर -आवश्यक वस्तु पर प्रतिबंध लगा सकती है* । अभी चीन से व्यापार घाटे को भी कम करना है।
आज पूरी दुनिया में चीनी सामान का भरमार है इसका कारण चीन दुनिया में सबसे सस्ता सामान बनाता है। सस्ता होने के कारण:-
सस्ता श्रम की उपलब्धता है। किसी भी सामान की लागत में सबसे बड़ा हिस्सा श्रम का होता है। जो वहां आसानी से उपलब्ध है।और वहां की सरकार कंपनियों को नाना प्रकार के सुविधा प्रदान करती है जैसे:- इंफ्रास्ट्रक्चर बिजली पानी की सुविधा और कर में छूट भी देती है साथ ही साथ विश्व बाजार देती है इन्हीं कारण से लागत कम हो जाती है और मांग विश्व में ज्यादा हो जाता है।
लेखक का विचार:- चीन के सामान सस्ता आकर्षक होने के बावजूद भी अब हमारे भारतवासियों बहिष्कार कर रहे है।यह धोखेबाज पड़ोसी देश चीन एक महान काम कर दिया है, हम भारतीयों को आत्मविश्वास जगा दिया है, आत्मनिर्भर होने के लिए। जल्द ही यह देश हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा और यही है समय की पुकार।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो -झारखण्ड
चीन अब नाम से ही हमें तो स्वार्थी, लालची, धोकेबाज, मतलबी देश लगने लगा हैं। यह पुरा विश्व जान टुका हैं और मान भी चुका हैं। चीन को बस अपना व्यापार करने से मतलब हैं माना की चीन का सामान सस्था हैं किन्तु उतना ही घटिया भी हैं। सस्थे के चकर में हम एक ही वस्तु को कई बार खरीदना पढता हैं और यदी हम वही वस्तु भारत या अन्य देश का लेते हैं तो उसकी उपयोगीता कई गुना बढ जाती हैं माना वही वस्तु या सामान चीन का 1 एक रूपये का हैं ओर वही सामान भारत का 3 तिन रूपय का हैं तो वहा अपको पैसा दौ गुना ज्यादा लग रहा हैं पर उसकी उपयोगीता 8 से 10 गुना भी बढ जाती हैं। हमारे यहा एक कहावत भी हैं मंहगा रोये एक बार सस्ता रोये बार बार और चीन वही बार बार रूलाने वाला काम करता हैं। इसी लिये लिख रहा हुँ।चीन का सस्ता और घटिया माल हमें बहुत महंगा पड़ता हैं।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्यप्रदेश
सस्ता रोये बार बार,महंगा रोये एक बार।तो अब समझ जाइए बार बार का रोना ठीक या एक बार का। इसी के आलोक में चाइनीज सामान को परखें तो दाम कम होने के कारण आम आदमी की पहुंच में तो है,पर टिकाऊ कितना है? सब भुक्तभोगी है। हमारे देश में 100% लोग ऐसे हैं,जो चाइनीज प्राडक्ट के उपभोक्ता रहे हैं।हर घर में कोई न कोई चाइनीज उत्पाद है। ये उत्पाद सस्तें है तो क्वालिटी में भी कमजोर है।दूसरी बात यूज एंड थ्रो हैं।बार बार खरीदने पर औसतन ज्यादा ही खर्च होता है।हमारे घरों में जो भी आइटम दादा परदादा के जमाने का है,चल रहा है,वह स्वदेशी ही है। चाइनीज आइटम तो साल दो साल ही चल पाता है। शायद कोई भी चाइनीज आइटम ऐसा नहीं जो अगली पीढ़ी तो करता,अगला बच्चा भी प्रयोग कर सके।चलता ही नहीं भाई साहब,यूज एंड थ्रो की संस्कृति के चलते फेंक ही दिया जाता है,क्योंकि मरम्मत हो नहीं पाती।कबाड़ी भी नहीं पकड़ता उन्हें। इस तरह से वह सस्ता टिकाऊ दिखने वाला सामान महंगा ही पड़ता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
चल जाए तो किसी ब्रांडेड कंपनी के सामान से कम नहीं और यदि नहीं चले तो भी कोई ग़म नहीं। गरीब अमीर सब लोग उपयोग करते हैं। सस्ता मतलब ये नहीं कि बिल्कुल ही घटिया है। भारतीय कम्पनियों पर क्यों और कब तक विश्वास करेंगे। सबके सब धोखेबाज हैं। अभी दो दिन पहले की बात है।आधे किलो की सुजी का पैकेट खरीदने गया। जो कि आधे किलो के पैक में ही आता था।कीमत वही वजन घटा दिया वह भी इतना कि पचने योग्य नहीं। पैकेट पर लिखा था वजन दो सौ पच्चीस ग्राम और मैटेरियल तीन सौ पचास ग्राम आप सीधे मूल्य क्यों नहीं बढ़ा देते।धोखे से ग्राहकों का जेब काटना बहुत बड़ा गुनाह है। ठीक ऐसे ही सर्फ साबुन टूथपेस्ट वगैरा में भी देखा देखी शुरू हो गया है।कल को पांच किलो के आटे की थैली में चार किलो मिले तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हम किसी दूसरे देश में उत्पादित सस्ते सामान की बुराई नहीं कर सकते जब-तक वैसे ही सस्ता सामान अपने उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध न करा दें। चीन या किसी अन्य देश को दोषी ठहराया जाना जायज नहीं है।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
जी हां बहुत और कहूं बहुत महंगा पड़ता है चीन का सस्ता और घटिया माल तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।अब प्रश्न यह उठता है कि यदि ऐसा है तो वह हिंदुस्तान में इतनी अधिक मात्रा में बिकता क्यों है?आइए पहले तो यह जानते हैं कि महंगा या बहुत महंगा कैसे पड़ता है।हम केवल दाम की बात करें तो वो इसलिए कम होता है क्योंकि ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होता है और इसके कारण बिक्रेता को भी जल्दी उपलब्ध हो जाता है तथा उसे इसको बेचने में भी ज्यादा मेहनत इसलिए नहीं करनी पड़ती क्योंकि इसके दाम इतने कम होते हैं कि खरीददार खुद ब खुद खिचे चले आते हैं।इसलिए इसकी पहुंच विस्तृत हो जाती है तथा वो हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे का एक कारण भी बन जाता है क्योंकि सभी की जानकारियां इन्हीं से लिंक्ड होती हैं।ये तो बात हुई मोबाइल्स या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की।अगर खिलौनों वाली तरफ देखें तो ज्यादातर में आप एक वार्निंग लिखी पाएंगे कि इनको मुंह से न लगाएं या बच्चों से दूर रखें।सस्ते होते हैं तो जल्दी खराब हो जाते हैं और उन्हें फिर से नया खरीदना पड़ता है।अर्थात ग्राहक का नुक़सान और साथ में मनोवैज्ञानिक रूप से भारतीय जनता का ह्रास होना भी प्रारम्भ।
अब आता है कि ये यदि खराब या घटिया है तो फिर इतना बिकता क्यों है?उसका उत्तर देखें तो सबसे पहला है इसके दामों का बहुत कम होना।दूसरा बाजार में इसकी प्रचूर मात्रा में उपलब्धता।तीसरा इसके बहुतायत डिजाइन और आकर में उपलब्धता।चौथा इनके आकर्षक रंगों में मौजूद होना।पांचवा है कि विक्रेता का माल जल्दी निकल जाना जो कि उसे चीनी माल रखने की तरफ आकर्षित करता है।
इस प्रकार हम पाएंगे कि चीन का सस्ता और घटिया माल हमें उक्त कारणों की वजह से उपलब्धता के बावजूद भी बहुत महंगा पड़ता है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
कहते हैं, मंहगा रोए एक बार और सस्ता रोए बार-बार। यही हाल चीनी सामानों का है चीनी सामान देखने में आकर्षक और सस्ते होते हैं लेकिन गुणवत्ता में नहीं । आकर्षक रंग रूप और कम कीमत होने के कारण लोग चीनी सामान की ओर आकर्षित होते हैं और उन्हें खरीद लेते हैं। चीनी सामानों का दुनिया भर में बोलबाला है। हमारे देश में भी दुकानों पर, लोगों के घरों में बहुत बड़ी संख्या में चीनी सामान देखे जा सकते हैं। संख्या में अधिक और आकर्षक रंग रूपो वाले चीनी सामान के चलने की कोई गारंटी नहीं होती है। अभी जब भारत और चीन के बीच के रिश्तों में खटास आई है तथा चीन के दुष्टतापूर्ण हरकतों के कारण देश में चीनी सामानों का बहिष्कार हो रहा है तो देखा जा रहा है कि चीनी सामानों का विराट संम्राज्य हमारे देश के दुकानों और घरों पर छाया हुआ है। सस्ती एवं आकर्षक होने के कारण लोग चीनी सामानों को खरीदते थे, अपने देशी सामानों को नहीं। इससे हमारे देश के लोगों की तथा देश के राजस्व की हानि होती थी। इस तरह हम कह सकते हैं कि चीनी चीन का सस्ता और घटिया सामान टिकाऊ नहीं होने से अधिक दिन नहीं चलता तथा इन सामानो के अधिक लोकप्रिय होने के कारण देसी सामानों की बिक्री नहीं होती थी,इससे देश को हानि होता है। इस तरह चीन का सस्ता और घटिया समान हमें बहुत महंगा पड़ता है।
- रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
रांची - झारखण्ड
चीन की व्यापार नीति का अगर विश्लेषण करें तो हमें पता चलता है कि कैसे वह इतना सस्ता सामान बेच सकता है। चीन बहुत ही शातिर देश है। वह घटिया से घटिया सामान बेचने का हुनर जानता है।आज भारत क्या समूचे विश्व को यह पता है कि दुकानदार किसी भी चीनी सामान की गारंटी नहीं देता। घर जाकर अगर तुरंत ही कुछ खराबी आती है तो भी न तो सामान बदला जाएगा और न ही ठीक होगा। लेकिन भारत जैसे अनेको देश सस्ते के चक्कर में घटिया माल खरीद लेते हैं।और उस माल से उन्हें पैसे से लेकर, समय और स्वस्थ्य सम्बंधी बहुत सी परेशानी भी झेलनी पड़ती है। उसके बाद पर्यावरण को भी चीनी सामान से काफी नुकसान होता है, क्योंकि उसके माल में प्लास्टिक का बहुतायत में प्रयोग होता है। जो आने वालों नस्लों और धरती के लिए भी घातक हो सकते है।
चीन अपने सस्ते और घटिया सामान से कमाकर हम जैसे देशों के खिलाफ काम करता है। दोस्ती की आड़ में व्यापार और फिर पीठ पर वार। यही है चीन की नीति।और कहा भी गया है.... महंगा रोए एक बार
सस्ता रोए बार बार।।
चीन देशों की जड़े खोखली कर अपनी सैनिक शक्ति से भी उन्हें डराकर अपने लिए रास्ता बनाता है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
चीन का सस्ता और घटिया माल इस कहावत को चरितार्थ करता है --'सस्ता रोए बार-बार मंहगा रोए एक बार'।
आम जनता जानती है कि चाइनीज माल टिकाऊ नहीं होते, पर कुछ आर्थिक मजबूरी की वजह से कुछ नए-नए डिजाइन में चीजें उपलब्ध होने की वजह से खुद को आकर्षित होने से रोक नहीं पाते।
पर वह हमारे लिए महंगा साबित होता है क्योंकि तुरंत खराब हो जाता है, खराब होने के बाद उसकी रिपेयरिंग भी नहीं हो पाती और हमें मजबूरन यूं ही उसे फेंक कर दूसरा खरीदना पड़ता है।
कारोबारी भी सस्ते माल से होने वाले मुनाफे के कारण चीन की ओर आकर्षित होते गए और उसका दुष्परिणाम हुआ घरेलू उत्पादन उद्योग का धीरे-धीरे खत्म होना, रोजगार भी खत्म होना।
आज हमारा बाजार मेड-इन-चाइना के सामान से पटा पड़ा है। भगवान की मूर्ति से लेकर खिलौने तक, कपड़े से लेकर कंप्यूटर तक, गैर पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र सभी पर उसका एकछत्र राज है।
भारत जो सामान बनाता था, चीन, भारत में वही सामान सस्ते दाम में बेच रहा है। चीन पर भारत की निर्भरता दवा बनाने को लेकर भी है। जेनेरिक दवाएं बनाने और उसके निर्यात में भारत बहुत आगे है पर इसके कच्चे माल के लिए 90 फीसद भारत चीन के भरोसे है। 70 फ़ीसदी मोबाइल फोन के लिए भारत की निर्भरता चीन पर है। कॉस्मेटिक के कई ऐसे उत्पाद जो पूरी तरह चीन के कच्चे माल पर निर्भर है।
निर्यातकों के अनुसार चीन से सस्ते दाम पर कच्चे माल मिलने की वजह से उनकी लागत कम होती है और वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुकाबला करने में सक्षम होते हैं।
आज की परिस्थिति में भारत को खुद को सक्षम साबित करने का एक अवसर मिला है। यहां चीन जितना बड़ा बाजार है। कई गुना मैन पावर है और लोगों को रोजगार की भी सख्त जरूरत है। छोटे उद्योग संजीवनी साबित होते हैं। सरकार इसे बढ़ावा देकर अच्छी गुणवत्ता का सामान तैयार करा सकती है। सरकार को टैक्स भी मिलेगा और चीन पर निर्भरता भी कम होगी। सरकार को भारतीय फार्मा उद्योग और विविध उद्यमियों के साथ मिलकर लंबी योजना बनाने की जरूरत है।
चीन से आने वाले उत्पादों पर ज्यादा टैक्स लगाया जाए और देश के कच्चे माल पर टैक्स कम किया जाए ताकि यहां के उद्योग धंधों का विस्तार और विकास तीव्र गति से हो सके और आम जनता को अच्छी गुणवत्ता वाली समान कम दाम में मिल सके ताकि उनका झुकाव घटिया चाइनीज सामान से दूर हो सके। भारतीय अपने देश में निर्मित सामानों को खरीदने की ओर अग्रसर हो। इससे हमारा देश भी आर्थिक रूप से मजबूत और सक्षम होगा।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
चीन का सस्ता और घटिया माल बहुत ही महंगा पड़ता है कोरोना काल से ज्यादा महंगा और क्या सबूत होगा दूसरा सबूत गलवान घाटी में हमारे वीर जवानों का अपने प्राणों की परवाह किए बिना दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए शहीद हो जाना।
- रंजना हरित
बिजनौर -उत्तर प्रदेश
एक पुरानी कहावत है गोइठा में घी सुखाना
चीन के उत्पादक जैसे खिलौना डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स इलेक्ट्रिक के सामान मार्केट में भरे पड़े हैं सामानों का ऊपरी बनावट बहुत ही आकर्षक है कीमत भी कम नहीं होते हैं सिर्फ कहने को यह रहता है कि कीमत कम है इन सामानों को खरीदने का अर्थ यह है कि पैसों को डस्टबिन में फेंक देना जिनके पास पैसे अधिक या काले धन के होते हैं उनके लिए तो सहनीय हो सकता है पर जिनका परिश्रम का पैसा है वह आंखों में आंसू भर लेते हैं इन सामानों को खरीदने के बाद क्योंकि चीन के उत्पाद में कोई गारंटी नहीं है एक बार खराब होने के बाद उसका रिपेयर भी संभव नहीं है उसे फेंक देना ही उचित है इसीलिए कहा गया है
सस्ता रोए बार-बार महंगा रोए एक बार
स्वदेशी सामान्य की गुणवत्ता बहुत अधिक रहती है दोनों के कीमत में यदि तुलना किया जाए तो मात्र सौ डेढ़ सौ का ही अंतर पड़ता है तो जहां आप मूलधन को चीन के उत्पाद में खर्च कर रहे हैं वहां थोड़ा और पैसा लगाकर स्वदेशी सामान खरीदें तो वह टिकाऊ होगा
अपने देश का राजस्व भी अपने देश में रहेगा
चाइनीस सामानों को खरीदने के बाद हर इंसान को डबल लॉस होता है व्यक्तिगत पूंजी का बर्बाद होना और अपने देश का राजस्व दूसरे देश में जाना
इसलिए चकाचौंध की दुनिया से बाहर निकल कर ठोस टिकाऊ गुणवत्ता के आधार पर खर्च किया गया धन में आत्म संतुष्टि के साथ देश का विकास का होना निश्चित है
इसलिए सस्ता सामान खरीदना उस पर पैसों का खर्च करना मूर्खता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मेरे दृष्टि से तो चीन का सस्ता और घटिया माल हम सबके लिए काफी महंगा है ।बहुत से लोग तो चीन का है सुनकर ही मुँह मोड़ लेते हैं ।ये टिकाऊ नहीं होते हैं ।जिसकी नियत में बेइमानी है ,वह हर क्षेत्र में यही फारर्मूला अपनायेगा ।वैसे भी इन सामानों के बिक्री के बल पर ही वह आगे बढ़ा है और हर देश से दादागिरी कर जमीन हड़पना चाहता है ,सस्ते सामानों के बदले अपनी जमीन देना सौदा काफी महंगा है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
चीन का सामान देखने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन उसकी जो क्वालिटी होती है वह घटिया किस्म की होती है । हम सस्ते के चक्कर में और तत्कालिक उसकी बाहरी गुणवत्ता से प्रभावित हो जाते हैं इस कारण से उसको झटपट खरीदते हैं लेकिन उसका कोई भरोसा नहीं होता जैसा कि हम आजकल देखते हैं कि जो वह कहते हैं वह नहीं करते। वह हमेशा से धोखा देते हैं। इसी तरह उनकी चीजों में भी उनके उत्पादन में भी धोखा है। हम भारतीय भोले हैं। बहुत जल्दी दूसरों की बातों में आ जाते हैं और हम यह नहीं सोचते कि उसमें हमारा नुकसान क्या हो रहा है। साथ- साथ देश का नुकसान होता है जब हम उनकी कंपनियों द्वारा बनाया गया सामान खरीदते हैं।
हमने यह भी देखा है बेचने वाला जबकि हमें हमेशा कहता है यह सामान चाइना का है और इसकी कोई गारंटी नहीं है। फिर भी हम नहीं समझते.. हम सस्ते के चक्कर में उसको खरीद लेते हैं और जब कि अपने देश की बनी हुई जो चीजें होती हैं उसका जो लाभ होता है वह हमारे देश में रहेगा.. हमारे देश के लोगों को लाभ मिलेगा। यदि चाइना की वस्तु खरीदेंगे तो हम चाइना को मजबूत बना रहे हैं।
हम सब जानते हैं इस बात को भलीभांति फिर भी हम सस्ते के चक्कर में उनकी वस्तुएँ खरीदते हैं और उसका जो नतीजा निकला है वह हम सब देख रहे हैं, भुगत रहे हैं उसको। चाइना कैसे हम पर कब्जा करने पर जमा हुआ है अगर हमने आरंभ से ही इसकी और ध्यान दिया होता तो आज वह हम पर हावी ना होता। तो मैं कहना चाहूंगी कि हम सस्ते के चक्कर में घटिया माल खरीद कर स्वयं का नुकसान न करें। अपने देश की वस्तुएं खरीदी जाएँ ताकि उसका लाभ हमारे देश को मिले। जैसे हम हर बात के लिए प्राथमिकता अपने परिवार को देते हैं उसी प्रकार हमें अपने देश की बनी हुई वस्तुओं को देनी चाहिए।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ
" मेरा दृष्टि में " भारत में चीनी माल का वक्त जा रहा है । आत्म निर्भर भारत का भविष्य उज्ज्वल है । जिस की जेब में पैसा सही है । वह चीनी माल नहीं लेता है । भारत में अच्छी किस्म के माल की मांग बहुत अधिक है ।यही चीनी माल का फेल कर देगा ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
आपका हृदय से आभार आदरणीय बीजेंद्र जी ..आपके कारण रचनाकारों की लेखनी को बल मिलता है। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐🙏🇮🇳🙏
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