क्या अपराधियों की जाति पर राजनीति होनी चाहिए ?
अपराध की कोई जाति नहीं होती है । यह सब जानते हैं । फिर भी विकास दुबे की जाति को लेकर राजनीति हो रही है । क्या यह उचित है ? यही कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
शैतान किसका सगा हुआ है आज तक? सब इस बात को जानते हैं कि अपराधी अपने अपराधों की दुनिया बसाये रखने और अपने बचाव के लिए अपनी जाति के व्यक्तियों तक के प्रति अपराध को अंजाम देता है, यहां तक की अपराधी अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु अपने सगे भाई तक को नहीं छोड़ता। कानपुर में विकास दुबे द्वारा सी०ओ० देवेन्द्र कुमार मिश्रा की हत्या तो ताजा उदाहरण है।
जब यह सर्वविदित है कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती तब भी अपराधियों की जाति पर राजनीति करने वालों की कमी नहीं है, जो कि सर्वथा अनुचित है। अपराधियों की जाति पर राजनीति करने वाले सच्चाई से भली-भांति परिचित होते हुए भी वोट बैंक की खातिर जाति-विशेष को भावनात्मक रूप से अपने साथ जोड़ने के लिए यह गैर-राजनीतिक कार्य करते हैं जो कि लोकतन्त्र में किसी प्रकार से भी स्वीकार्य नहीं है बल्कि एक निन्दनीय कृत्य है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
भारतीय राजनीति में अपराधियों का प्रभाव शुरू से ही रहा है। देश मे अपराधियों की जाति पर राजनीति भो होते रही है, परन्तु यह गलत है। भारत मे अपराधियों की जाति पर राजनीति कतई नही होनी चाहिए। पर देश की यही विडंबना है कि राजनीति में अपराधियों और उनकी जाति का बोलबाला रहा है। भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रितानी शासन द्वारा भारतीय नेताओं पर कई झूठे मामले दर्ज कर दिए गए थे। इसलिए उस समय आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को चुनाव में हिस्सा लेने पर किसी तरह का भी प्रतिबंध नही था। लेकिन देश की स्वतंत्रता के बाद आपराधिक पृष्ठभूमि वालों के बारे में प्रश्न उठते रहे हैं। इधर पिछले कुछ वर्षों में इनमें भारी वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2004 में संसद के कुल सदस्यों में 24 प्रतिशत मामले लंवित थे। वर्ष 2009 और 2014 में यह मामले बढ़कर 30 प्रतिशत हो गए। वर्ष 2019 में संसद के कुल सदस्यों में 43 प्रतिशत सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं, जिनके उपर आपराधिक मामले लंवित हैं। देश की राजनीति में जातिवाद हावी है। उदाहरण के तौर पर बिहार में लालू प्रसाद की यादवों की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कोइरी व कुर्मी का समर्थन है तो रामविलास पासवान अपनी जाति के दम पर राजनीति कर रहे हैं। उतर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव व उनके पुत्र अखिलेश सिंह यादव है। इसी तरह मायावती अपने हरिजन जाति के लोगों के दम पर चुनाव लड़ती है। मुस्लिम जाति के नेता बिहार के बाहुबली पूर्व सांसद शहाबुद्दीन, यूपी में मुख्तार अंसारी अपनी जाति की राजनीति करते हैं। इस तरह सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे कि अपराधी अपनी जाति के आधार पर राजनीति कर रहे हैं, लेकिन अपराधियों की जाति पर राजनीति गलत है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
भारत में अपराधियों की संख्याओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तियां होती जा रही हैं। अपराधियों की कोई जातियां नहीं होती, लेकिन जातियों के आधार पर राजनीति कर संरक्षण प्रदान करना गलत प्रतीत होता हैं? अपराधियों के बलवृत्ति प्रवृत्तियों के कारण हौसले बुलंद हैं। उन्हीं के आधार पर बहुमतों से चुनाव जीतने में सुविधाऐं होती और उनकी इच्छानुसार ही राजनीतिज्ञ चलते हैं। अगर राजनीति संरक्षण,जातिवाद के आधार पर प्राप्त नहीं हुआ, तो अपराधियों को वृहद स्तर पर अंकुश लगाने में सुविधाऐं होगी। अगर जातिज्ञ अपराधियों की जनगणना की जायें, तो पता चल जायेगा। कौन-कौन जातियों के कितने अपराधी उपलब्ध हैं। उनकी पूर्व में क्या पृष्ठभूमियाँ थी? कभी-कभी-कभी देखने में आता हैं, कि जाति विशेष का अपराधी हैं और राजनीति कर रहा हैं? अपना वर्चस्व पूर्ण रूपेण स्थापित कर लिया हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
अपराधियों की जाति पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अपराधी राजनीति को उल्लंघन करके अपराध करता है अगर उसे राजनीति का अर्थ पता होता तो कभी अपराध नहीं करता लेकिन वर्तमान में राजनीति का अर्थ आना समझते हुए नेता लोग राजनीति का अनर्थ अकारा अपराधियों को सबल देते हैं यह बहुत गलत बात है यह हमारी भारतीय राजनीति की अपमान है अपराधियों के लिए राजनीति बिल्कुल नहीं होना चाहिए अगर वह अपराध है तो अपने अपराध को सुधारने की कोशिश कर देश की राजनीति की मुख्यधारा में उन्हें जुड़ना चाहिए ना की राजनीति का गलत फायदा उठा कर अपराध करना चाहिए अपराधी की कोई जाती तो नहीं होती अपराधी की प्रवृत्ति को ही जाति कहा जा रहा है अपराधी प्रवृत्ति की जितने भी लोग हैं वह अपराधी जाति के कहलाते हैं या अपराधी प्रवृत्ति के कहलाते हैं चाहे वह किसी भी जाति का हो अपराध तो अपराधी होता है वर्तमान में देखा जाता है कि जातीयता को लेकर के जो कोई मंत्री होते हैं और अपने जाति बिरादरी के होते हैं तो उस पर उनका रहम होता है ऐसा नहीं होना चाहिए जो अपराध करता है वह किसी का नहीं होता है अपराध करते समय वह मेरी बिरादरी का है ऐसा नहीं समझता है वह राज्य की नीति का उल्लंघन कर अपराध करता है जो अमानवीय व्यवहार के अंतर्गत आता है सामान्य व्यवहार किसी भी व्यक्ति को मान्य नहीं होता अतः अपराध मानव समाज के लिए बहुत खतरनाक एवं घृणास्पद प्रवृत्ति होता है अतः अपराधी के लिए किसी भी प्रकार का राजनीति नहीं होना चाहिए राज्य नीति सर्व धर्म के लिए है ना किसी व्यक्तिगत अपराधी के लिए है अतः बिल्कुल राजनीति अपराधियों के लिए नहीं होना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि अपराधियों पर भी राजनीति होती है। अपराधियों पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। राजनीति का किताबी मतलब है कि विशेष रूप से निर्धारित नीति के द्वारा शासन करने की कला। आचार्य चाणक्य की नीतियों पर आधारित राजनीति में बहुत से रास्ते अपनाये जाते हैं। चाणक्य के मुताबिक देश के शिक्षक, विद्वान और रक्षक चतुर और साहसी होने चाहिए। व्यवहार में उन्होंने उन्नत नीति मूल्यों के आचरण को श्रेष्ठ बताया किंतु गलत लोगों से आवश्यकता पड़ने पर वज्रकुटिल बनने का मार्ग दिखाया। राजनीति किसी भी समाज का अविभाज्य अंग है। परन्तु समाज के दुश्मन अपराधियों पर तो वज्रकुटिल बनने की नीति ही सर्वोत्तम है। इस नीति के अनुसार अपराधी को तुरंत दण्ड देने की नीति होनी चाहिए इसमें राजनीति का कोई काम नहीं।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
बुद्धि तो यही कहती है की अपराधी की जात पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, अपराधी , अपराधी है गुनाहगार है और कुछ नहीं !
गुनाह गार -अपराधी का कोई जाति धर्म नहीं होता उसका ईमान धर्म सब “अपराध “होता है । उसकी जात ही गुनाह है !
भारत देश आज भी जातिवाद से ऊपर नहीं उठ पाया है ,जाति की राजनीति हर जगह हावि है ।
अपराधी को जाति और धर्म के आधार पर प्रश्रय देने से। वहां लोकतांत्रिक आंदोलन तेज होना चाहिए और उसी के साथ तेज होनी चाहिए पुलिस सुधार। उसी के साथ होना चाहिए न्यायिक प्रणाली का सम्मान। लेकिन न्यायिक प्रणाली व्यक्तियों पर कार्रवाई करती है। वह भ्रष्ट हो चुकी पूरी की पूरी जाति और संप्रदाय पर कार्रवाई नहीं कर सकती।
जाति और संप्रदाय का ढांचा आखिरकार हिंसा और अपराध पर ही टिका होता है। वह जितना हिंसा से दूर होता जाएगा उतना उदार होता जाएगा और अपनी पहचान खोता जाएगा। यही एक लोकतांत्रिक समाज की पहचान है!
जातिवादी अपराधी जब सांप्रदायिक रूप से लेता है तो वह और ज्यादा सम्मान का हकदार हो जाता है
आज तमाम अपराधी राष्ट्रवादी आंदोलन का हिस्सा बनकर हैसियत पा रहे हैं।
जातिवादी अपराध के सम्मानित होने की अपनी सीमा है। फिर भी जाति अपने में एक बीमा है और वह जाति के नाम पर अपराधियों को एक हैसियत और सम्मान देती है। हालांकि किसी भी जातिवादी गैंग में सारे लोग उसी जाति के हों ऐसा जरूरी नहीं। न ही यह जरूरी है कि किसी जाति के नाम पर गैंग चलाने वाला व्यक्ति विजातीय व्यक्ति को ही निशाना बनाए।
आज अपराध राजनिती संरक्षण पाकर खूब फल फूल रहा है ।
कितने अपराधी चुनाव जीत कर सत्ता का सुख भोगतेहै ।
जो नहीं होना चाहिए , जनता को जागरुक होना पड़ेगा अपराधी को वोट नहीं देना चाहिए , बहिष्कार करना चाहिए!
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराधियों की जाति पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। हम तो समर्थन में है इसके। उन राजनेताओं का क्या किया जाए ? जो ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं कि कैसे जातिगत मुद्दों को वोट में बदला जाए। जाति की राजनीति ने बिहार,उत्तर प्रदेश को कहां से पहुंचा दिया।मेरा मानना है अपराधी,सिर्फ अपराधी है किसी जाति धर्म से उसको जोड़ कर उसे महिमा मंडित करना कतई ठीक नहीं है। भारतीय जनमानस ने इस बात को सदैव माना है, मान रहा है,और मानता रहेगा। भगवान परशुराम और श्रीराम इसके उदाहरण हैं। दुष्ट, अपराधी क्षत्रिय आतताइयों का संसार करने वाले ब्राह्मण भगवान परशुराम को भला कौन क्षत्रिय नहीं नहीं मानता, सब मानते हैं।यहां तक कि स्वयं श्रीराम ने भी उनका चरण वंदन किया। इसी प्रकार ब्राह्मण कुल के रावण का संहार,क्षत्रिय श्रीराम ने किया तो क्या ब्राह्मण श्रीराम को नहीं मानते,सब मानते हैं। भारतीय जनमानस ने दुष्ट को दुष्ट ही माना।उसकी जाति को लेकर कभी राजनीति नहीं की। पिछली सदी के अंतिम दो दशकों से अपराधियों की जाति पर राजनीति का चलन बढ़ा। इससे अछूता कोई दल नहीं रहा,तभी तो अपराधियों को माननीय बनते देर नहीं लगी। लेकिन यह आत्मघाती कदम होता है,इसका प्रत्यक्ष प्रमाण जेल काट रहे वो राजनेता हैं,जिनकी राजनीति ही जातिवाद और अपराधियों के सहारे परवान चढ़ी थी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
क्या अपराधियों की जाति पर राजनीति होनी चाहिए जहाँ तक इस बात का प्रश्न है तो यह किसी के लिए भी अच्छी बात नहीं है क्योंकि जो अपराधी है उसका कोई जाति और कोई धर्म नहीं होता न ही वह जाति और धर्म देखकर अपराध करता है अपराधियों का एक ही धर्म है केवल उनका अपना निहित स्वार्थ जिसे देखकर वह सब काम को अंजाम देता है और यह नहीं देखता की जिसके विरोध में कोई कार्य कर रहा है वह किस जाति या बिरादरी का व्यक्ति है वह केवल देखता है तो सिर्फ और सिर्फ अपना निहित स्वार्थ अतः यह बिल्कुल साफ है कि किसी अपराधी का कोई धर्म नहीं होता उसकी कोई जाति नहीं होती उसका एक ही धर्म है केवल उसका अपना निस्वार्थ और उसी के वशीभूत होकर वह अपने लाभ के लिए उचित अनुचित को दरकिनार करके अपराधों को अंजाम देता रहता है
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आज की राजनीति में अपराधी पर राजनीति करना एक परम्परा बन गई है क्योंकि राजनीति जातियता पर टिकी हुई है ।कुछ विशेष लोग अपनी जाति के लोगों को राजनीति में ले आते हैं । उनसे ,अपने फायदे के लिए उलटे -सीधे काम कराके संरक्षण देते हैं यहीं से अपराध का जन्म होता है ।अब अपराधी यदि पकड़ा गया तो उसको पालन- पोसने वाले उसका बचाव करते हैं ।बस अपराध और अपराधी पर राजनीति शुरु हो जाती है । राजनीति कोई बुरी चीज नहीं है ।राजनीति तो वह जगह हैं जहाँ से भारत का भविष्य तय होता है ।समझना तो यह है कि विचारों कि राजनीति करनी चाहिए या अपराधी और जातियता की । अनैतिकता की शुरुआत अपराध को जन्म देती है ।मेरे विचार से
नीति की राजनीति हो अपराध और अपराधी की नहीं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
मेरे विचार से अपराधियों की जाती पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
जातिगत राजनीति इसलिए है क्योंकि लोग जाति के नाम पर वोट देते हैं। इस परंपरा को खत्म करने के लिए सामाजिक बदलाव जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट भी कहा है कि राजनीति की सफाई की जिम्मेदारी संसद की है और इसके लिए कानून बनाना चाहिए। लेकिन क्या राजनीतिक पार्टियां को इसमें कोई रुचि है?
जीवन के किसी भी क्षेत्र में चाहे वह व्यापार हो सेवा हो या राजनीति सामाजिक रुप से अपनाई गई नैतिक परंपराएं मे भी राजनीति दिखती है।
परिवर्तन लाने की जरूरत है।
नेता एक निश्चित सीमा तक चीजों में सुधार कर सकते हैं। लेकिन अपने हितों को त्याग करने की जरूरत है।
राजनीति में अपराध और अपराधियों की भूमिका तभी समाप्त हो सकती है। जब राजनीतिक दल ऐसे व्यक्तियों को टिकट ही ना दें तो यह समस्या बिना कानून बनाए समाप्त हो सकेगा। इसमें निर्वाचन आयोग स्वयं जोड़ सकता है कि आपराधिक मामले में लिप्त उम्मीदवार को पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं दें।
लेखक का विचार:- राजनीति के अपराधिक कारण पैसा और बाहुबल है। राजनीति दलों को वोट हासिल करने में मदद करता है। चुनावी राजनीति अधिकांशत जाति और धर्म जैसे कारकों का पर निर्भर करता है। अभी के समय में संसद में यह कानून नहीं बन सकता है क्योंकि 233 अपराधियों सांसद हैं। बिल पास नहीं हो पाएगा।
चुनाव आयोग स्वयं यह नियम जोड़ सकता है की अपराधिक मामले में लिप्त उम्मीदवार को पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं दें।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
मेरे विचार से अपराधी की तो कोई जाति होती हीं नहीं वह तो सिर्फ और सिर्फ "अपराधी" होता है ।उसकी कोई जात- पात हीं नहीं होती ,लेकिन ये हमारे देश कि विडंबना है कि आज तक "जातियों की परम्परा" बरकरार है । बहुत से लोग वोट देते हैं तो जाति के आधार पर ना कि व्यक्ति विशेष की योग्यता पर ।इसी के कारण आज तक राजनीति में जाति प्रथा का अत्यधिक बोल - बाला है।जब कोई भी व्यक्ति अपराध करता है तो वह व्यक्ति अपने फायदे के लिए तो कभी नहीं सोचता कि फलां व्यक्ति मेरी हीं जाति का है मुझे उसे नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।ऐसा जब अपराधी नहीं सोचता , तब भी राजनीति में लोग अपने लिए ऐसे अपराधियों को खुद के फायदे के लिए अपना संरक्षण भी देते हैं और इन अपराधियों का मनोबल बढ़ाते रहते हैं।
इस तरह की ओछी राजनीति करना सरासर ग़लत है। अभी कुछ हीं दिन पहले घटित घटना से हम सब वाकिफ हैं और उस जैसे कुख्यात अपराधी को भी बहुत सारी राजनीति वाले रसूखदार लोगों का संरक्षण प्राप्त था।ऐसे अपराधियों के लिए राजनीति करना बेहद निंदनीय है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
साथियों की जाति पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए क्योंकि अपराधियों और आतंकवादियों का मकसद भी आतंक फैलाना होता है वह देश विरोधी और राष्ट्र विरोधी सर फेरे गुमराह लोग रहते हैं यह पथ भ्रष्ट व भ्रमित लोग देश में भय आतंक अहिंसा अव्यवस्था अराजकता फैला देते हैं इन व्यक्तियों का कोई धर्म से लेना देना नहीं होता ना ही इनका कोई ईमान होता है यह सब उचित अनुचित का भी कोई ज्ञान नहीं रहता है यह लोग निर्दोष स्त्री बच्चों को शो काफी पद करने से नहीं चूकते हैं माता और बहनों की भी लाज को लूटते हैं। आतंकवाद वेफ अनेक रूप, चेहरे और प्रकार हैं यह स्थानीय प्रांतीय एवं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भी होते हैं । यह राजनीतिक धार्मिक राज्य संस्थापक और बाहरी शक्तियों की ही देन है। आवागमन और दूरसंचार वेफ साधनों में व्रफांति तथा मारक हथियार वह असाधारण विकास के आतंकवाद को नया आयाम गहराइयों और प्रभाव प्रदान किए हैं। इन लोगों का मकसद होता है देश में अराजकता फैलाना धार्मिक व सांप्रदायिक तनाव झगड़ा बनाए रखना चाहते हैं।
मैं इस बात को बिल्कुल गहराई से समझना होगा कि हम आज के युवा को भटकने से रोके और धर्म के नाम पर दंगे भड़के या यदि हमें कोई जाति के नाम पर कुछ करने को कहे तो हमें नहीं करना चाहिए क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा घृणा और द्वेष नहीं सिखाता सभी धर्मों में संप्रदायों में नैतिक से छूटता बा शांति का पाठ पढ़ाते हैं कुछ पंडित और मॉल विशन संत लोग जरूर धार्मिक भावनाओं को भड़का ते हैं हमें उनके बहकावे में नहीं आना चाहिए।
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
अपराधी मां की कोख से पैदा नहीं होता। इसलिए अपराधियों का कोई धर्म या जाति नहीं होती। जिस पर राजनीति की जाए।
अपराध तो अपराधियों की मानसिक उत्तेजना का गंभीर दुष्परिणाम है। जिस पर चिंतन और मंथन की अति आवश्यकता है।
बीमार मानसिकता किसी की भी हो सकती है। वैसे भी भारत में तनाव कम नहीं था।जिस पर कोरोना महामारी ने सोने पर सुहागे का काम कर और बढ़ा दिया है।
उस बढ़ते तनाव पर 'चर्चा' समय की मांग है। दाल रोटी पहले ही पहुंच से बाहर हो रही थी और ऊपर से लाॅकडाउन और अनलाॅक के कारण हो रही कारोबारी मंदी गंभीर सोचनीय विषय है। उससे भी बड़ा सोचनीय विषय यह बन रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी की 20 लाख करोड़ रुपए की घोषणा को राजनैतिक ड्रामा कह कर 'अपराध' को जन्म दिया जा रहा है।
इसलिए प्रदानमंत्री जी द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत घोषणा यदि विफल हुई हुआ तो अपराध और अपराधियों की संख्या पहले से अधिक होने का अंदेशा है। जिसे राजनीति का विषय न बना कर आत्ममंथन की कड़ी चुनौती मानना चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
इसमे कोई दो राय नहीं अपराधी की कोई जाति नहीं होती!अपराधी अपराधी ही होता है! उसका इमान धर्म केवल लूट, मारपीट, खून खराबा कर डर का माहौल पैदा कर अपनी धाक जमाना होता है! जितना बड़ा अपराधी उतनी ऊंची उसकी साख होती है! आज ये अपराधी राजनीति से डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तरीके से जुड़े हैं!
हमारा देश लोकतांत्रिक होने की वजह से सभी समान अधिकार रखते हैं अतः सभी चुनाव लड़ सकते हैं! अपराध की क्रिया राजनीति में आने से पहले तीव्र होती है किंतु राजनीति में प्रवेश करने के बाद सभ्यता का चोला पहन लेती है! बाकी उनके राजनीति में आ जाने से अपराध को बढावा मिलते रहता है!
हां यहां हम कह सकते हैं कि वह अपने बिरादरी वाले को (आपराधिक वृत्ति के लोग) राजनीति में लाना चाहता है!
हमारे संसद में जितने भी सदस्य हैं चाहे वे विधान सभा के हों अथवा लोकसभा के सभी दलों में अधिकांश ऐसे नेता हैं जो पहले अपराध जगत के कुख्यात अपराधी रह चुके हैं आज सफेद पोश में किसी ना किसी पद के अधिकारी हैं! चाहे उनके आपराधिक केश चल रहे हैं!
और यह मान्यता भी है कि राजनीति के अखाड़े में उतरना कोई खेल नहीं है कुर्सी बरकरार रखने के लिए ऐसे लोगों को(अपराधी) संरक्षण दे उनकी हिफाजत करना पड़ता है अतिरिक्त अपना एक अंग दाहिना या बांया भी बनाना पड़ता है!
अपराध का गढ़ जहां अपराधी सुरक्षित रह सकता है राजनीति क्षेत्र ही है !आराम से अपनी आय भी बढा़ता है एवं स्वछंदता से निडरता के साथ अपराध करते रहता है!
इसमें अपराधी की जात देखकर नेता उसे पालते नहीं अपितु लोगों पर कितनी धाक है, कितना डरते हैं उससे उस पर निर्भर करता है!
अतं में मैं यही कहना चाहूंगी लोकतांत्रिक देश है अतः संविधान के जितने भी सदस्य विधान सभा एवं लोकसभा के चुनाव में टिकट उसी को दिया जाय जिसका अपराध अथवा आपराधिक प्रवृति से दूर दूर का नाता ना हो!
तभी हमारे देश की छवि, न्याय प्रणाली सुंदर एवं साफ होगी!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
अपराध की कोई जाति नहीं होती। राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण से आज जनता त्रस्त है। राजनीति की भी एक सीमा होती है। हर बात पर जाति के नाम पर बवाल ठीक नहीं। अपराधी किसी भी जाति का हो अपराधी ही होता है और उसे उसके अपराध की कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
एक राजनीतिशास्त्र ज्ञाता के अनुसार राजनीति शास्त्र अपराध शास्त्र की एक शाखा है। आज जाति के नाम पर अपराध में लिप्त लोग भी राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते हुए संसद भवन में बैठ रहें हैं और अपराधियों को अपने फायदे के लिए संरक्षण दे रहे हैं। जो ऊंचे पद पर बैठकर अपराधियों का साथ दे रहे हैं वह अपराधियों से कई गुना ज्यादा अपराध कर रहे हैं। उन्हें आम अपराधी से दुगुनी सजा मिलनी चाहिए।
आज ऊंचे आदर्शों के कमल कुम्हलाने लगे हैं। जाति के नाम पर बुद्धिजीवी भी अपराधियों का समर्थन करते नजर आ रहे हैं जो कि सरासर गलत है। लोकतांत्रिक प्रणाली को बनाए रखने के लिए निरपेक्ष भाव से जाति और पद को नजरअंदाज कर न्यायिक प्रक्रिया को बहाल करने की जरूरत है। पुलिस की कार्यप्रणाली में भी बहुत सुधार और बुनियादी परिवर्तन की मांग है।
संदेहास्पद एनकाउंटर मन में शंका का सौ बीज बोता है। जाति को नजरंदाज कर अपराधी को कड़ी सजा मिलनी चाहिए पर न्यायिक प्रक्रिया के तहत। कोई भी अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हुए सजा देने का अधिकारी नहीं है। अपराधी के अपराध में साथ देने वाले राजनेता भी उतने ही गुनाहगार हैं जितना कि उस अपराधी का सहयोगी। अदालत को सख्त कदम उठाते हुए न्यायिक प्रक्रिया के तहत उन्हें भी सजा सुनाने की जरूरत है ताकि आइंदा कोई ऐसी गुस्ताखी न करें जाति के नाम पर भी राजनीति न करें। ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करने की जरूरत है जो समाज में एक अच्छा सकारात्मक संदेश दे।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
अपराधिओं की बस एक जाति है है और वो है अपराधी।अपराधियों की जाती पर राजनीति करना बिल्कुल गलत होगा।अपराधी को उसके अपराधानुसार सज़ा मिलनी चाहिए बगैर उसकी जाति पर ध्यान दिए।एक अपराध एक सज़ा की नीति पर अमल करना उचित है।अपराधी चाहे किसी जाति धर्म या वर्ग से संबंधित हो इससे उसकी सजा में कोई अंतर नहीं आना चाहिए
- संगीता सहाय
राँची - झारखंड
अपराधियो की जाति पर राजनीति करना सरासर गलत है। जब अपराध की कोई जाति नहीं होती , अपराध से अपराध है चाहे वह किसी भी जाति के बंदे ने किया हो । त ब अपराधियों की जाति पर राजनीति भी नहीं होनी चाहिए ।
परंतु अफसोस भारत के प्रजातंत्र में अशिक्षा के कारण जातियों के बल पर चुनाव लड़कर राजनीति में आना नेताओं का सपना पूरा हो चुका था इसलिए वो राजनेता अब भी यही सोच रहे हैं कि जाति पर राजनीति करके सरकार बना सकते हैं तो सरकार गिरा कर लोकतंत्र का मखौल भी बना सकते हैं ।
अपराधियों की जाति पर राजनीति करना बोखलायापन है।
क्योंकि अब तक राजनीति जातियों का ही खेल बन कर रह गई थी हर पार्टी जातिगत आधार पर बनने लगी थी परंतु अब राजनीति का पासा पलटा तो बौख लाए हुए वही नेता अपने पाले हुए अपराधियों की पोल खुलती देख उनकी हत्या का अंजाम दिखाकर सरकार को घेरने पर लगे हैं ।जोकि जग हाजिर है।
किसी विशेष जाति के लोगों को उ कसाकर यानि जाति का पासा फेंक कर सरकार के कामकाज में बाधा डालकर राजनीति करने के प्रयास कर सकते हैं।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
अपराधियों की जाति पर राजनीति होना अपने आप में एक सबसे बडा प्रश्न हैl आखिर क्यों? अपराध भी ऐसे कि क़ानून के रखवालों तक को चुनौती l देश भर में विकास जैसे अपराधियों की कमी नहीं है l पुलिस व अपराधियों के गठजोड़के साथ राजनीति संरक्षण अपराधियों को बढ़ावा देने से नहीं चूकता l विकास दुबे उत्तर प्रदेश में ख़ौफ़ का पर्याय बन चुका था l उसके राजनीतिक रसूखात भी जगजाहिर थे l कोई अपराधी संगीन अपराध के बाद भी बेखौफ नज़र आता है l ऐसा गठजोड़ ही माफिया राज को बढ़ावा देता है l ये रसूख और धन के बूते पर समूची प्रक्रिया को ठेंगा दिखाते नज़र आते हैं l
अपराधी तो अपराधी है उसकी कैसी जाति? उसके लिए राष्ट्रीयता का, मानवता का कोई भी मूल्य और महत्त्व नहीं होता l जब तक नेता लोग कुर्सी बचाने की खातिर सियासत करते रहेंगे अपराधी को पनाह देंगे तो आपराधिक प्रवृति के लोगों कासंरक्षण कर आपराधिक जाति ही बनाएंगे l लगता है इसे खत्म कर पाने की दुनियाँ में रहना और अपने आप को धोका देने जैसा ही है l इसके लिए सूझ बूझ, विवेक सम्मत रीति नीति बनाने -अपनाने की आवश्यकता है l अन्यथा कोढ़ में खाज की तरह यह बीमारी निरंतर बढ़ती ही जायेगी l
किसी भी राष्ट्र का निर्माण एक विशेष प्रकार की मानसिकता विशेष प्रवृति और चरित्र निर्माण से संभव है l जब अराजकता और अराजक तत्वों का राज हो इन सभी का जिम्मेदार भी तो नेता ही है l जिस पर भारत के नव निर्माण की जिम्मेदारी है l सोचने की बात है कि नेताओं की कृपा से नया बन रहा भारत आखिर जा रहा किस दिशा में है?
चलते चलते ---
1. खड़े मौन क्यों? अपनी शक्ति दिखाओ
न नाचों स्वयं विश्व को तुम नचाओ
कि संसार को है तुम्हारी जरूरत l
2. भूल गये सब प्यार की बोली
चलन चला है गोली का कोई मुझको ये बता दे, निर्दोषों पर वार क्यों? इतना अत्याचार क्यों... जवाब दो l
3.एक जाति है सभी की, लहू का रंग एक है, फिर ये सियासत क्या?
-डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अपराधी की कोई जाति नहीं होती है उसकी एक ही जाती है अपराध और इसलिए इस पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए अपराध के सजा दंड अपराधी को मिलना अति आवश्यक है
यदि जातिवाद की बात की जाएगी तो यह सोचना की उच्च जाति निम्न जाति दलित जाति क्यों किया जाए यह सब बिल्कुल वाहियात बात है अपराध की एक ही जाति होती है अपराध और उस पर ही सोचना है कोई राजनीति नहीं करनी है अपराध चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो अपराध अपराध है
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
भारत में राजनीतिक दलों में अपराधियों को शरण मिलती रही है। यह सर्वविदित है। ये राजनीतिक दल धर्म व जाति के नाम पर सदा खेलते रहे हैं। दल बदल जाते हैं चेहरे बदल जाते हैं समय बदल जाता है मगर नहीं बदलता तो राजनीति करने का तरीका। विपक्ष हो या सत्तारूढ़ दल, सभी दूसरों पर कीचड़ उछलने से बाज नहीं आते। चाहे कितना ही संवेदनशील मसला हो, इनका काम दूसरों की टांग खींचना होता है।
अपराधियों की जाति धर्म पर भी आज राजनीतिक दल खुल कर राजनीति में लिप्त हैं। विकास दुबे के मरने के बाद भी देश में उसकी जाति को लेकर जो छींटाकशी हो रही है वह बहुत ही निंदनीय है।
अपराधी को उसकी सजा धर्म या जाति के अनुसार नहीं, अपराध के अनुसार मिलती है जो हमारे सविंधान में भी वर्णित है।ये समाज के रखवाले खुद ही इन सब मे इतने लिप्त हैं कि इन्हें कानून और देश से ऊपर सिर्फ अपना स्वार्थ नज़र आता है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
यदि राजनीति जाति आधार पर होगी तो राजनीति करने वाले लोग अपराधी की जाति और धर्म अवश्य देखेंगे। यदि वे अपराधी की जाति के बारे में वक्तव्य नहीं देंगे तो निश्चय ही उनके रजनैतिक सहयोगी उन्हीं को ताने देना आरंभ कर देंगे। यदि राजनीति का आधार जाति नहीं होगा तो अपराधी की जाति से भी कोई अंतर नहीं पड़ेगा।
जिस देश में जाति आधरित रजनैतिक डाल होंगे उस देश में मरने वाला चाहे अपराधी ही क्यों न हो, दबी जुबान से ही सही जातिगत टिप्पणी आ ही जायेगी। विकास दुबे एनकाउंटर के मामले में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। संभवतः यदि कोई और दल उत्तर प्रदेश में सत्ता में होता तो संभवतः न तो एनकाउंटर होता और न ही कोई टिप्पणी होती। वैसे कोई भी पूरी की पूरी जाति राजनैतिक दल में है नहीं। किसी की छवि बिगाड़ने के उद्देश्य से भी ऐसी टिप्पणियाँ की जाती हैं, मगर अब ऐसा प्रतीत हो रहा है राजनीति जातीय आधार से हट कर राष्ट्रीय आधारों की ओर मुड़ रही है। यह एक अच्छा संकेत प्रतीत होता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
" मेरी दृष्टि में " अपराध तो अपराध होता है । अपराधी को सजा अवश्य मिलनी चाहिए । तभी कानून का शासन कहलाता है । पुलिस भी कानून का ही हिस्सा है ।पुलिस को अपनी सुरक्षा करने का अधिकार है । पुलिस को अपनी सुरक्षा करते हुए अपराधी को मार गिरना कोई अपराध नहीं माना जाना चाहिए । ऐसे एनकाउंटर से जनता अपनी खुशी भी प्रकट करती है । परन्तु राजनीति जाति के आधार करना भी , किसी भी तरह से उचित नहीं है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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