क्या राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है विकास दुबे ?
विकास दुबे से साबित होता है कि हमारा सरकारी तन्त्र कैसा है । साधारण जनता इन्हें कैसे झेलती है । अपराध कैसे पैदा होता है । उसका अन्त कैसे होता है । यही सब कुछ " आज की चर्चा " का उद्देश्य है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
विकास दुबे जैसे चरित्र संस्कारों, समाज और परिस्थितियों की उपज हैं। जन्म से कोई अपराधी नहीं होता। उसके संस्कार, उसकी संगति उसे इस दिशा में धकेल सकने में सक्षम होते हैं। युवा शक्ति का दुरुपयोग किए जाने का परिणाम हैं। अपने स्वार्थ के लिए युवाओं को भटकाने का परिणाम है विकास दुबे जैसे चरित्र। इन युवा शक्तियों का राजनीतिक दल बेशक लाभ उठाते हैं। उसकी निर्भीकता को दुर्दांदता की ओर मोड़ दिया जाता है। विवेक को मार दिया जाता है। जब विवेक ही नहीं रहेगा तो सोचने समझने की शक्ति कहां रह जाएगी और जन्म लेंगे विकास दुबे जैसे चरित्र।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
बदले की भावना, निराशा, अहंकार, नशा व लालच चाहे वह धन का हो या स्त्री का ,व्यक्ति को अपराध की ओर धकेलता है।
परंतु किसी भी अपराधी का अपराध तब और फलता फूलता है जब उसे गुमराह करने वाले,उसे इस्तेमाल करने वाले लोग मिल जाते हैं ,,,और अगर उस पर राजनैतिक संरक्षण भी प्राप्त हो जाए तो फिर क्या कहना वह दुर्दांत अपराधी बन जाता है वह ,विकास दुबे, बन जाता है ।
जितना कि खबरों के जरिये विकास दुबे के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है उसके अनुसार लिख रही हूं कि 90 के दशक से ही उसने अपराध जगत में कदम रखा ।1992 में अपने गांव के व्यक्ति की निर्मम हत्या कर दी और वहीं से उसका दबदबा बढ़ने लगा ।उस की दबंगई के चर्चे चारों ओर फैलने लगे साथ ही उसको राजनैतिक संरक्षण भी मिलने लगा ।
उसका हौसला तो राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने की वजह से ही बढा
1996 में विकास दुबे को किसी दबंग विधायक का राजनैतिक संरक्षण प्राप्त हुआ।
मगर बड़ा सवाल यह है कि राजनेताओं ,पुलिस और अदालत जिसने भी उसे संरक्षण देने की कोशिश की उसे भी इसके लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए। लोगों ने उसका इस्तेमाल किया और उसने भी इन लोगों का इस्तेमाल किया ।
वह 30 सालों से अपराध जगत में एकछत्र राज्य कर रहा था तो जाहिर है कि उसे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था ।
अपराध की दुनिया में बिना किसी राजनीतिक संरक्षण के इतनी दबंगई असंभव थी ।
60 क्रिमिनल केस तो उस पर अभी भी चल रहे थे।
उसने थाने के अंदर एक मंत्री की हत्या कर दी थी तो यह बहुत बड़ी बात थी ,इसके बावजूद वह आजादी से घूमता था उसके खिलाफ थाने में किसी ने जुबान तक नही खोली , ना कोई अदालत में गवाही देने गया ।
बिना किसी मजबूत हाथ के बिना किसी संरक्षण के कोई अपराधी कैसे इतना बच सकता है ।
राजनीतिक पार्टियों में तो उसकी अच्छी पकड़ रही होगी क्योंकि वह जल्दी जेल से रिहा हो जाता था, और उसका अपराध दिनों दिन बढ़ता रहा ,,फलता फूलता रहा ।
अपराधी को एक दिन उसके कर्मों का दंड अवश्य मिलता है लेकिन सवाल यह उठता है कि कोई अपराधी न्याय प्रणाली के चलते अपराध की दुनिया मे इतना आगे कैसे बढ़ सकता है ।
तो जाहिर है कि उसकी इस अपराधिक दुनिया के कुछ और लोग भी जिम्मेदार रहे होंगे ,, लेकिन दंड तो उसे ही अकेले मिला ।
अपराध का कहां से प्रारंभ होता है और कहां से अंत होता है वह कैसे फैलता है कैसे बढ़ता है ।
जब तक पूरी न्याय प्रणाली पूरा सिस्टम अपराधियों के प्रति सोच को नहीं बदलेगें उनका बचाव करके उनका मनोबल बढ़ाना नही छोड़ेंगे तब तक अपराध यूं ही फलते रहेंगे फूलते रहेंगे और विकास दुबे पैदा होते रहेंगे ,,,मरते रहेंगे ,,,फिर पैदा होते रहेंगे ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
गैंगस्टर विकास दुबे राजनैतिक गंदगी की उपज है।सियासत, अपराध और पुलिस गठजोड़ का नमूना है विकास दुबे जैसे लोग जो जुर्म का बादशाह बन खून-खराबा कर दहशत फैलाते हैं।
8 पुलिस वालों की मौत हुई तो पुलिस और प्रशासन जाग उठी। आम आदमी मरता तो अभी वह छुपा बैठा रहता क्योंकि उसके सिर पर सभी पार्टियों के नेताओं का हाथ था। उसके एनकाउंटर से नेताओं और बड़े अधिकारियों के नाम उजागर होने से रह गए।
एक पर चढ़ा कफन और सौ का राज दफन।
गैंगस्टर विकास दुबे पर 60 से ज्यादा हत्या, रंगदारी जैसे संगीन धाराओं के मामले दर्ज हैं लेकिन राजनैतिक संरक्षण की वजह से कोई सख्त एक्शन नहीं लिया गया। हिस्ट्रीशीटर अपराधी जिसने 2001 में राज्य मंत्री संतोष कुमार शुक्ला को जेल में पुलिस के सामने मारा, कालेज प्रबंधक से लेकर कितने नामी लोगों की हत्या की और उसके खिलाफ गवाही देने या मुकदमा दर्ज कराने की हिम्मत लोग नहीं कर पाए। वो खूंखार बनता गया आखिर क्यों ? क्योंकि राजनेताओं ने उसे पनाह दे रखी थी।
कोई भी अपराधी कितना भी खूंखार क्यों ना हो पर पुलिस पर गोली चलाने की हिमाकत नहीं कर सकता जब तक कि उसे राजनेताओं और पुलिस अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त ना हो।
जब थानाध्यक्ष विनय तिवारी जैसे लोग अपराधियों के मुखबिर बन जाए, राजनेता संरक्षण दे तो समाज में ऐसे कुख्यात अपराधियों को फलने-फूलने में समय नहीं लगता। असली अपराधी विकास दूबे के साथ- साथ देश के वे राजनेता और अधिकारीगण भी हैं जो ऐसे अपराधियों को संरक्षण देकर गुनाह को दबाने में साथ देते हैं। इन्हें भी फांसी की सजा मिलनी चाहिए।
- सुनीता रानी राठौर
नोएडा - उत्तर प्रदेश
यह बात बिल्कुल सच है कि राजनीतिक संरक्षण के बिना कोई इतना बड़ा गुंडा नहीं बन सकता।
राजनीति दुष्ट व्यक्तियों की शरण स्थली है। अरस्तु का कथन
यह बिल्कुल सच्ची बात है आजकल अधिकतर नेता और पुलिस में सभी गुंडे बदमाश लोग ही रहते हैं एक आम आदमी चुनाव लड़ने से डरता है चुनाव लड़ने की बात तो हम बदमाश लोग ही सोचते हैं। गलती तो हमारी है जो हम ऐसे व्यक्तियों को वोट देते हैं। विकास दुबे सपा पार्टी
का कार्यकर्ता था। सभी नेता लोग उसके पास चुनाव के समय जाते थे अपनी पार्टी में आने का निमंत्रण भी देते थे।
उसके गांव में भी उसकी गुंडागर्दी के बहुत सारे किस्से हैं कोई भी उसके डर के मारे बोलता नहीं था। उसने पुलिस वालों को थाने में घुसकर मारा और ऐसा बताया जाता है कि पहले पुलिस वाले थानेदार उससे डरते। यह सब तो राजनीति नेताओं के संरक्षण के कारण ही संभव है। जब तक व्यक्ति काम का था तब तक उसको नेताओं ने पाल के रखा जब उनके लिए ही बोझ बन गया तब उसे मरवा दिया। और उसे एनकाउंटर का नाम दे दिया यह सब सोची समझी चाल है। नेताओं ने उसको इसलिए मरवा दिया कि कहीं उनके राज ना खुल जाए। यह बहुत बड़ा राजनीतिक मसला यह राजनेताओं की चाल समझ पाना आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल है।
आर्य समाज में डालो हटाने कितने विकास दुबे जैसे इंसानों को पाल के रखे हुए हैं उसी से उनका रुतबा कायम है।
सत्यमेव जयते तो लिखते हैं और कहते हैं सच्चाई की जीत होती है पर सही मायने में यह सब आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल है।
जाने देश और समाज का क्या होगा?
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
समसामयिक परिस्थितियों के आधार पर ये कहना कि राजनीतिक संरक्षण में विकास दूबे जैसे अपराधियों को पाला जाता है अनुचित नहीं होगा ये पहली बार नहीं हुआ है जब अपराधी को पकड़ने से लेकर एनकाउंटर तक की फ़िल्म जैसी बनी । वैसे अगर राजनीतिक संरक्षण अपराधियों को मिलता है तो राजनीति भी अपराधियों से चमकती है क्योंकि ये कभी भी, कहीं भी हिंसक और हत्यारी भीड़ या भाड़े के अपराधी बर्बर अपराधों को अंज़ाम दे सकते है। पिछले कुछ सालों में निर्दोष बुद्धिजीवियों की हत्या और बढ़ते अभिव्यक्ति के खतरे भी राजनीति के अपराधीकरण का ही परिणाम है। आश्चर्यजनक है कि अधिकांश अपराधी नेता जमानत पर हैं या फरार (भगोड़े) या कानून की पकड़ से परे अभेद्य विदेशी किलों में सुरक्षित हैं ।
आपराधिक छवि वाले राजनेताओं के विरुद्ध भारतीय अदालतों में कितने ही संगीन मुकदमे दशकों से लंबित पड़े हैं? पूछो तो फंड नहीं, जज नहीं, पद खाली पड़े हैं, भवन नहीं, कंप्यूटर नहीं, स्टाफ नहीं आदि..आदि की लिस्ट सामने है। मतलब यह कि आई बला को दूसरों की तरफ धकेलो और यथास्थिति बनाये-बचाये रखो।विभिन्न सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार राजनीति में अधराधियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 2004 में जहां 24 प्रतिशत आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसद थे, वह संख्या 2009 में 30 प्रतिशत और 2014 में बढ़ कर 34 प्रतिशत हो गई। ऐसे नेताओं को संसदीय लोकतंत्र से दूर रखने की जिम्मेवारी संसद की है, मगर ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि राजनीतिक दलों पर इनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि उनके बिना सत्ता और चुनाव की राजनीति संभव नहीं। सच है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के, आवारा पूंजी,धर्म और अपराध के विषवृक्ष कैसे फलते-फूलते! महंगे चुनावों का आर्थिक बोझ कौन उठाएगा! बाहुबली जो पहले नेताओं का पीछे से समर्थन करते हैं , बाद में खुद राजनेता बन कर उभरने लगते हैं । साम्प्रदायिक राजनीति के दौर में मंदिर-मस्जिद और मठों की भूमिका भी, निरंतर निर्णायक होती चली जा रही है । वस्तुस्थिति यह भी है कि सब कुछ जानते हुए भी मतदाताओं ने आपराधिक छवि वाले नेताओं को भी, भारी बहुमत से जीतने दिया जाता है। धनबल, बाहुबल के अलावा सामंती संस्कार और जातीय वर्चस्व के सामने मतदाता हमेशा कमजोर और असहाय रहता है ऐसे में इस असहाय स्थिति में अपराधियों की बड़ी भूमिका देखी जा सकती है । जो अपराधी ऐडी चोटी का ज़ोर लगाकर नेता जी जीता देता है वह बाद में बदले अवश्य ही संरक्षण की आकांक्षा रखता है ऐसा ही विकास दूबे एक उदाहरण है आगे भी अनेक विकास दूबे जैसे अपराधियों की गिरफ़्तारी और एनकाउंटर होंगे राजनीति अपना काम करेगी और अपराधी अपना । अपराध और राजनीति का आपस में रिश्ता क्या है ये बुद्धि और विवेक वाले लोग तय करेंगे ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
इतिहास गवाह है कि कोई भी अपराधी या आतंकवादी पैदा तो स्वयं होता है परन्तु उसका आतंक-काल बिना किसी की सरपरस्ती के दीर्घकालिक नहीं होता। विकास दुबे को किस-किसका राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था, यह रहस्य तो उसके साथ ही चला गया लेकिन यह स्पष्ट है कि वह लगभग 30 वर्षों तक बेखौफ होकर अपराधिक कृत्य करता रहा और उस पर लगभग 60 क्रिमिनल केस चल रहे थे, तब भी वह खुलेआम अपना अपराधिक जीवन जी रहा था तो यह राजनीतिक संरक्षण की वजह से ही संभव हुआ।
मीडिया से प्राप्त समाचारों के आधार पर साफ है कि विकास दुबे को प्रारम्भ से ही राजनीतिक सरपरस्तता हासिल थी। विभिन्न राजनैतिक दलों में उसकी गहरी पैठ थी। सच्चाई यही है कि ऐसे अपराधी किसी राजनीतिक दल के भी नहीं होते, जिस दल की सरकार बनती है ऐसे अपराधी अपना सिर बचाने को उसी दल के हो जाते हैं। इसी के साथ कोई राजनीतिक दल भी इनका नहीं होता, जब तक काम निकल रहा होता है तभी तक इन अपराधियों का सिर सुरक्षित होता है। जब पानी सिर से ऊपर निकल जाता है तो राजनीतिक सरपरस्त भी इनके ऊपर से हाथ हटा लेते हैं।
विकास दुबे के साथ भी यही हुआ। आठ पुलिस कर्मियों की हत्या बहुत बड़ी बात थी और इस भीषण अक्षम्य लोमहर्षक कांड के बाद कोई भी राजनीतिक सरपरस्त यदि उसका साथ देता तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान होता।
ऐसे अपराधियों के साथ ऐसा ही होता है जब तक राजनीतिक संरक्षण है तब तक बादशाहत कायम है और जब यह संरक्षण हटा तो खेल खत्म।
आदरणीय अतुल पाठक जी की पंक्तियां याद आती हैं....
"ये सियासत की हवेली जब कभी तोड़ी गयी।
साजिशों के कुछ न कुछ सिक्के मिले दीवार में।। "
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
भारत में स्वतंत्रता के बाद प्रतिदिन अपराधियों की संख्याओं में रिकॉर्ड तौड़ बढ़ोत्तरी हो रही हैं। अत्याचार, भ्रष्टाचार, बलात्कार आदि कोई भी हो अपराधियों की श्रेणियों में आता हैं।
बाल जगत से वयोवृद्ध तक कोई अछुता नहीं रहा हैं। कई-कई अपराध परिस्थितियों के कारण जन्म लेते हैं, जो मजबूर कर देते हैं। हमारा संविधान लचीला, दयावान होने के परिप्रेक्ष्य में तत्काल निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। जो कई-कई सालों तक फौजदारी एवं सिविल के केस लंबित होने के कारण अपराधियों को वृहद स्तर पर संरक्षण प्राप्त होते जाता हैं, ऐसी परिस्थितियों में अपराधी प्रवृत्तियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। आज लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा, विधान परिषद्, जिला पंचायतों, जनपदों, महापौर, अध्यक्ष नगर पालिका आदियों में चुने हुए प्रतिनिधियों अपराधियों का प्रवेश द्वार
हैं। कुछों को छोड़कर? कई शिक्षित और कई अशिक्षित हैं। जब देश का अशिक्षित प्रतिनिधि जब शिक्षा, कानून मंत्री बनेगा तब सोच लीजिए, अपराध जगत का हाल क्या होगा? यही से अपराधियों के बलवृत्तियों का मार्ग प्रशस्त होता चला जाता हैं और उन्हें आजीवन संरक्षण मिलता चला जाता हैं। उसी का परिणाम प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, विकास दुबे? जिसने बड़ी हिम्मत के साथ आठ पुलिस कर्मियों की हत्या कर भाग निकला? फिल्म उद्योग के निर्माता-निर्देशक भी देखते रह गये। वे तो काल्पनिक तथ्यों का चित्रांकन निष्पक्ष रूप से सम्पादित करते हैं लेकिन प्रत्यक्ष रूप से स्व.विकास दुबे ने कर दिखाया। जो एक उच्च प्रथम ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर अपराधित्व को अग्रेषित किया। त्रैत्रायुग में परसुराम ने ब्राह्मण में अवतरित हुए थे और क्षत्रियों का नरसंहार किया था आज कलयुग में स्व. विकास दुबे अवतरित हुए थे। जिसने राजनीति संरक्षण के बीच हौसला अफजाई करते हुए, निरंतर आगे बढ़ते चले गये। कानपुर, हरियाणा, दिल्ली से आगमन करते हुए मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर श्रावण मास में शिव आराधना का केन्द्र बिन्दु में चौकीदार के हस्ते नाटकीयता के आधार पर स्वयं को प्रस्तुत कर तो दिया, क्या उसकी ही योजनाबद्ध तरीके से इच्छानुसार कानपुर की सीमावर्ती में पुलिस सशस्त्र संघर्ष में मृत्यु का स्वाद हुआ?
वृहद रुप से राजनीति संरक्षण का अपराध का फल, राज ही रह गया?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
पिछले दो ढाई दशक से विकास दुबे अपराध जगत में चर्चित रहा है l थाने में घुसकर हत्या करने जैसे अपराध उसके नाम दर्ज हैं फिर भी वह राज्य में आज़ाद घूमता रहा l जाहिर है उसे पुलिस महकमे और राजनितिक संरक्षण प्राप्त था l यदि ऐसा नहीं होता तो एक अपराधी का दुस्साहसी बना रहना इतना आसान भी नहीं रहता l यू पी के क़ानून व्यवस्था के काबू में होने के दावे किये जाते हैं, लेकिन वहाँ अभी भी कई विकास दुबे हैं l
हम तानाशाही नहीं लोकतान्त्रिक शासन में रहते हैं l पुलिस ही क़ानून का मखौल उड़ाएगी तब हालात विकास दुबे जैसे ही बनेंगे l पुलिस के बड़े बड़े अफसरों से लेकर राजनेताओं तक कितने ही नाम सामने आ गए l विकास ko नाजायज सरपरस्ती देने वालों में सभी दल के नेताओं के नाम आते हैं l भलेही उन्हें बेनक़ाब करने के लिए आज विकास नहीं रहा लेकिन न्याय पालिका इस कार्य को कर सकती है l उसकी पत्नी सहित अन्य परिजन, सहयोगियों के साथ अत्याधुनिक तकनीक वाले उसके मोबाईल, लेपटॉप और कैमरे यह आसानी से बता सकते हैं l जिस तरह 25वर्ष पहले वोहरा कमेटी ने नेता -अपराधियों के गठजोड़ का खुलासा किया, सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले की जाँच अपने एक जज को सौंपकर ऐसा कर सकती है l जितने आरोप यूपी की पुलिस और वहाँ के राजनेताओं पर हैं, उनसे ऐसे काम की उम्मीद नहीं की जा सकती l न्याय में देरी ही ऐसे मामलों में जनभावना को पुलिस की गलत कार्यवाही के साथ खड़ा कर देती है l
आज राजनीती के नाम पर नेताओं का एक मात्र उद्देश्य स्वयं की आर्थिक सम्पन्नता, आपराधिक भूमिका, राष्ट्र विरोधी ताकतों के साथ गठबंधन, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि के आधार पर देश में अराजकता फैलाकर केवल अपना ही काम सिद्ध कर लेना रह गया है l यदि वर्तमान में देश में किसी प्रकार की कोई भी अस्थिर स्थिति है तो उसके पीछे उन सफ़ेद पोशों का हाथ है जो "येन, केन प्रकारेण, सत्ता रमणी वरेण्यम "नीति का अनुसरण करते हुए राजनीतिक अपराधीकरण को बढ़ावा देते हैं l यदि विश्लेषण किया जाये कोई संदेह शेष नहीं रह जाता कि राजनीतिक अपराधीकरण के केंद्र में नेताओं की कारगुजारियों का ही विशेष हाथ है l राजनीतिक अपराधीकरण की समस्या ने प्रजातांत्रिक स्वरूप को विद्रूपित कर दिया l अपराधियों को शरण देना या स्वयं अपराधी होना सब क्या सिद्ध करता है l
चलते चलते ----
1. अपराधियों को पुलिस व राजनीतिक संरक्षण मिलता रहेगा तो कोई भी सरकार अपराधियों पर काबू पाने का दावा नहीं कर सकती l
2. देश में फर्जी मुठभेड़ किसी भी क़ीमत पर रुकनी चाहिए अन्यथा अपराधी और पुलिस में कोई फर्क नहीं रह जायेगा l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बिना राजनीतिक संरक्षण के कोई अपराधी गैंगस्टर नहीं बन सकता। अर्थात बिना राजनीतिक खाद-पानी एक पौधा वटवृक्ष नहीं बन सकता। वह इतना फूल-फल नहीं सकता। जितना विकास दुबे नामक वटवृक्ष फूला-फला है।
पैसा, शक्ति और रसूख के चलते किसी भी राजनीतिक पार्टी की राल टपकने लगती है। उस पैसे, शक्ति और रसूख के पीछे क्या भूमिका है कोई पूछना भी नहीं चाहता। जिसका लाभ वर्तमान अपराधी उठा कर गैंगस्टर बन रहे हैं।
जिसका उदाहरण विकास दुबे ने बाखूबी प्रस्तुत किया था। यह बात अलग है कि 'बुरे काम का बुरा नतीजा' को पुलिस ने भी उदाहरण प्रस्तुत करने में अग्रिम भूमिका निभाई है। भले ही मिली-भगत के बहुत से प्रश्नों से पर्दा नहीं उठ सकेगा।
विकास दुबे के एनकाउंटर को कुछ भी कहा जाए। मगर एक बात पक्की है कि पुलिस भी पीड़ित नागरिकों की भांति न्यायपालिका से निराश है।
परंतु पुलिस की नाटकीय दुर्घटना में निभाई भूमिका से जहां एक ओर फंसने वाले राजनीतिक संरक्षक एवं अन्य सहयोगी बच गए हैं। वहीं दूसरी ओर विकास दुबे भी मृत्यु से कहीं अधिक कड़े दण्ड की असहनीय यातनाओं से मुक्ति पा गया है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
विकास का अंत राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण का एक ज्वलंत उदाहरण है। सब एक हैं।
सबके अपने अपने हिसाब हैं।भ्रष्टाचार और राजनैतिक अपराध का नंगा स्वरूप आज एक बार फिर से उजागर हो गया।राजनाथ सिंह के कमजोर साशन काल मे ये लोग फले फुले।आप कल्पना कर सकते हैं कि एक राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त व्यक्ति की हत्या हो जाती है थाने में और उसका सरकार कुछ नही बिगाड़ पाती?
ऐसी कमजोर सरकारों की वजह से ही देश और कानून व्यवस्था नष्ट होती है।
आज समय वो नही रहा।देश और प्रदेशों में मजबूत इच्छाशक्ति वाली सरकारें है । आज ऐसे तत्व कम से कम उप्र में तो नहीं ही रह पाएंगे।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
एक कहावत है कि किसी के पास भी धन बढ़ना अच्छी बात होती है, पर मन बढ़ना अच्छी बात नही होती। यही बात उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन विकास दुबे पर लागू होती हैं। राजनीतिक संरक्षण का परिणाम ही है विकास दुबे। उतर प्रदेश में कई दल के नेताओ, पूर्व मंत्रियों का संरक्षण उसे प्राप्त था। राजनीति संरक्षण के कारण ही विकास दुबे आपराधिक घटनाओं का अंजाम देने के बाद बच जाता था। पुलिस पदाधिकारियों को तो वह कुछ समझता ही नही था। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज हो या अन्य दल उसे संरक्षण मिला था। एक सप्ताह
पहले ही उसने 8 पुलिसकर्मियों को गोली मारकर बेरहमी से हत्या कर दिया था। विकास दुबे सीओ सहित 8 पुलिसकर्मियोंबाकी हत्या का मुख्य आरोपी था। इसी हत्याकांड में पुलिस उसे मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर से गिरफ्तार कर 4 गाड़ियों के साथ कानपुर ला रही थी। अहंकार इतना कि उज्जैन महाकाल मंदिर में पकड़े जाने पर जोर जोर से चिल्ला कर बोल रहा था कि मैं ही कानपुर का विकास दुबे हु।
वह शायद भूल गया था कि यूपी में अभी बसपा सपा की नही बल्कि योगी की सरकार है। जहाँ बड़े से बड़े अपराधी या तो जेल में हैं या फिर भूमिगत हो गए हैं। जो जेल में हैं वो बाहर आने के लिए बेल नही करा रहे हैं। क्योंकि बाहर निकलते ही उन्हें उनकी औकात दिखा दी जाएगी।इसके बाद भी विकास दुबे आपने आप को शहंशाह समझ रहा था। वही आतंक का पर्याय बना 5 लाख रुपए का इनामी विकास दुबे शुक्रवार की सुबह कानपुर पहुचने से पहले पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। विकास दुबे का मारा जाना उचित कदम है। ऐसे दुर्दांत अपराधी को जीने का कोई हक नही मिलना चाहिए। भले ही उसकी मौत पर मानवाधिकार का जो भी पक्ष रहे। विकास दुबे के मारे जाने पर उसकी पत्नी रिचा ने पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर कहा कि जिसने गलती की उसको सजा मिली। वही उसकी माँ सरला ने कहा कि विकास को उसकी करनी की सजा मिल गई। इससे स्पस्ट होता है कि विकास के आपराधिक जीवन से उसके परिवार वाले भी खुश नही थे। यह अकेला विकास दुबे नाहीब है जिसे राजनीतिक संरक्षण मिला है। देशभर में ऐसे साइकिल अपराधी हैं जो राजनेताओं के संरक्षण के कारण समाज के लिए कोढ़ बने हुए हैं।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
सौफीसदी सच कह सकते हैं। हमारे देश की पुलिस बहुत सक्षम और योग्य है। इसके आगे हर अपराधी नतमस्तक है। कहा भी गया है कि पुलिस से कोई अपराधी बच नहीं सकता। वह डूबे हुए को भी निकाल सकती है। परंतु जब अपराधी को कोई राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है तो पुलिस वर्ग कमजोर पड़ जाता है और उसकी पकड़ उस संबंधित अपराधी के प्रति ढीली पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में यदि पुलिस वाला राजनीतिक दबाव की उपेक्षा कर संबंधित अपराधी के प्रति सख्ती करना चाहता है तो उस पुलिस वाले का तुरंत स्थानांतरण करा दिया जाता है।
इसके अलावा अन्य कारण भी हो सकते हैं। उनमें धनबल भी प्रमुख है। बहरहाल यह एक गंभीर मसला है। जिस पर विमर्श कर निष्कर्ष करना आवश्यक है और सच तो यह है कि जब तक सभी अपने-अपने नैतिक दायित्वों का निष्ठा से पालन नहीं करेंगे, इस चक्र और जाल से निकल पाना नामुमकिन है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह बात समझ में आती है कि विकास दुबे को राजनितिक संरक्षण प्राप्त था । समाचार के अनुसार प्रान्त की पिछली सरकारों के गठन में उसका हाथ हुआ करता था क्यों कि कानपुर के आस -पास के ब्राहमण बोट उसके पास थे ।किसी की सहायता लो तो बदले में कुछ देना भी पड़ता है ।निर्भर है कि पलड़ा किसका भारी है देने वाले का या लेने वाले का ।इस तरह के मददगार भस्मासुर होते हैं जहाँ से वरदान मिला उसीपर अजमाइश करते हैं ।राज सत्ता के भूखे ,ऊलट फेर करने वाले इनके चंगुल में फँस जाते हैं ।
आठ पुलिस वालों की हत्या ,बिना घरके भेदी के नहीं हो सकती ।े विकास दूबे जैसे लोगों का मनोबल बढ़ता ही जाता है , भयंकर से भयंकर वारदात को अंजाम देते हैं ।
इतिहास गवाह है हमेशा से ।राजनितिक हत्यायें होती रहीं हैं ।सफेदपोश अपनी गलतियों को बेनकाब होने के डर से मददगार को ही रास्ते से हटा देते हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
बेशक राजनीतिक संरक्षण का ही उदहारण है विकास दुबे । दरअसल विकास दुबे के केस में लगातार केवल पुलिस वालों को ही निशाना बनाकर उन्हें ही विकास दुबे को शय देने का आरोप लगता आ रहा है । परंतु कोई भी व्यक्ति ये कहने को तैयार नही है कि पुलिस किसी को इतना बड़ा अपराधी या आतंकवादी नही बना सकती । इतनी हिम्मत तो केवल खादी में ही होती है , जो कुर्सी और सत्ता के नशे में चूर होकर अपनी पावर का नाजायज फायदा उठाकर न केवल पुलिस से बचाते है बल्कि ऐसे अपराधियों को पालते है , उन्हें ओर ताकतवर गुंडा व अपराधी बनाते है । ताकि वह आने वाले समय मे उनके जरिये अपने लिए वोट ओर पैसा दोनो इकट्ठा कर सके ।
अब भी विकास दुबे का मारा जाना बुद्धिजीवी व्यक्तियों के गले से नही उतर रहा है । ये तो पहले से ही तय था कि विकास दुबे को बहुत से राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त था और इसके पकड़े जाने के बाद न केवल उन नेताओं की कुर्सी हिलने वाली थी बल्कि कुछ का तो जेल जाना तक तय था परंतु फिर से खादी जीत गई और खाकी न फिर से खादी के इशारों पर ही काम किया और विकास दुबे को मार गिराया । किसी ने सच ही कहा था कि खाकी खुद खाकी की दुश्मन है । विकास दुबे को मारते वक्त कम से कम उन्हें उन डीएसपी सहित बाकी पुलिस वालो की शहादत तो याद आनी चाहिए थी । और ऐसे विकास दुबे तभी बनने बन्द हो सकते थे जब विकास दुबे उन राजनेताओ और उन्हें संरक्षण देनी वाली ऐसी राजनीतिक पार्टियों का खुलासा करता परंतु बदकिस्मती इतने पुलिस कर्मियों की शहादत के बाद भी खादी जीत गई । शायद उत्तरप्रदेश में अभी ओर विकास दुबे बनेंगे ।।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
ऐसे व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त रहते हैं । ये कोई भी कार्य बिना दिमाग लगाए करने को तैयार हो जाते हैं इसलिए अनैतिक कार्य करवाने हेतु ऐसे लोगों का संरक्षण किया जाता है ।
राजनीति में अक्सर ही उठा पटक चलती रहती है ; ऐसे लोग रखने ही पड़ते हैं । जब ये भस्मासुर की तरह आचरण करने लगते हैं तो इन्हें रास्ते से हटाना मजबूरी हो जाती है ।
पर कहते हैं न बुरे काम का बुरा नतीजा सो देर सबेर करनी का फल तो मिलना ही था । न्याय व्यवस्था में बरसों लग जाते सो , जिसको भी धमकाना होता वो उसका ही नाम लेता और खुद बचने के लिए अनेकों तोड़ ढूंढ ही लेता सो प्रकृति ने ही न्याय कर दिया ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
हमारे देश के कानून कितने कमजोर हो गये की अपराध का सरगना विकास दूबे ने अपना बम बारूद को जखीरा , बंकर , कुओं में बन्दूकों का गौदाम बना लिया ।
पुलिस और सत्ता में लिप्त नेताओं ने उसके साम्राज्य को फलने फूलने दिया ।
लानत है ऐसी सरकारों पर उन भ्रष्टाचारी वर्दीवालों पर जो उसके नमंबर2 की कमाई से अपनी जेबें भरते रहें ।
जब 8 पुलिसकर्मी मारे गए तब सरकार की नींद भी मीडियावालों ने खुलवाई । गैंगेस्टर का सारा एपिसोड कैसे फलता , फूलता रहा है ।
आम जनता , गरीब को कैसे पकड़ लेते हैं ?
बिकरु से लेकर बैंकाक तक उसका आर्थिक साम्राज्य फैला हुआ है ।
30 साल तक अपराध की सल्तनत निर्दोष लोगों की हत्या करके ,डरा , धमाके से इकट्ठी की । हत्यारे को मारने सेव
उन सभी वर्दी वालों को शान्ति मिली होगी ।
विकास के गाँव के लोग ईद , दीवाली मना रहे हैं । 1992 से विकास ने कत्ल का सिलसिला शुरू किया था । उस जुर्म की दुनिया का गुंडा राजनैतिक , पुलिस की शरण होने से से उसके दंबगई हौंसले पर पंख लगते गए । गुनाहों का रावण ने शिवली कानपुर सभी स्थानों पर खून खराबा करके अपना काम करवाना उसका बाएँ हाथ का खेल ही गया ।
हर अपराधी अपना डर दिखा के अवैध संपत्ति का काली कमाई का साम्राज्य बनाता है ।
12 मकान 21 फ्लैट , ड्यूपलेस बंगला , लग्जरी गाड़ियों का शौकीन था । दीवारों में हथियार, बारूद , असला चिनवाए ।
विकास के राजनैतिक मददगारों , वर्दीवालों पर कन नकेल कसेगी ?
यह विकास को एकाउंटर पहले क्यों नहीं किये , सवाल उठते हैं । यह एनकाउंटर जरूरी था या मजबूरी थी ।
अपराध तंत्र से उसने काली कमाई से साम्राज्य बनाया ।
सभी गरीबों की जिसने जमीन हड़पी है , उद्योगपतियों से रंगदारी वसूल करता था ।
समाज में अपराधियों का कोढ़ तभी खत्म होगा जो विकास के मददगार हैं । उन्हें पकड़े तभी यह अपराध तंत्र का नस्ताबूर होगा ।
विकास दूबे का अंत हो गया
है । विकास अरबपति बना तो सरकारी एजेंसी ने क्यों सोती रहीं?
भारत की राजसत्ता , पुलिसवालों ने इन गुंडों , गुर्गों को संरक्षण देते हैं । विकास जैसे लोग पैसों से इन्हें खरीद लेते हैं । हिस्ट्रीशीटर विकास के अर्थ का लालच , डर से उसे संरक्षण मिलता होगा ।
डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
प्रश्न बहुत संवेदनशील है। राजनीति वही लोग कर सकते हैं जो गैंगस्टर उग्रवाद आतंकवाद जो भी उपनाम दे सभी ऐसे गिरोह को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रहता है।पक्ष के लोग दे या विपक्ष के लोग उन्हें पता है हमारे देश में लोकतंत्र है हर 5 साल में चुनाव होना निश्चित है अगर हमारा संगठन मजबूत रहेगा तो सत्ता पर काबिज हो जाएगा। अगर सत्ता पर हम आ गए तो हम फले-फूलेंगे ।
अब मुख्य प्रश्न पर आते हैं गैंगस्टर विकास दुबे का राजनीतिक संरक्षण का दावा उसका एक वीडियो सोशल मीडिया में आ रहा है, जिसमें वह अपने राजनीतिक पहुंच के बारे में बताते हैं। वीडियो में दावा करते नजर आ रहे हैं ,उत्तर प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजनीतिक गुरु थे और वही राजनीति में लेकर आए थे।
विकास दुबे रियल एस्टेट चलाते थे वहीं से राजनीति में प्रवेश किए जिला स्तर का चुनाव जीते और राजनीतिक हस्तियों के साथ भी नजर आने लगे अपने क्षेत्र में दबदबा रखें।
कांग्रेस ने दावा किया था यह दिखाकर की उसे राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है।
कांग्रेस पार्टी डरा हुआ है। इसीलिए मीडिया में इस तरह का अपना विचार प्रकट किया।
अभी हर राजनीतिक पार्टी कह रहा है मेरा सदस्य नहीं है।
हमारे देश में लोकतंत्र न्यायपालिका का पूरा सिस्टम चरमरा गया है। हमारे पिछले 70 साल का देन है।
लेखक का विचार:- कोई भी राजनीति नहीं कर सकता है जब तक इनलोग को संरक्षण न दें। लोकतंत्र का दुर्भाग्य है राजनीतिक पार्टी में कितने लोग ब्लैक लिस्टेड हैं और वही हमारे नेता बने बैठे हुए हैं। इन्हीं लोग ऐसे लोग को पैदा करते हैं। मेरे समझ में कोई भी व्यक्ति जन्म से गैंगस्टर उग्रवाद आतंकवाद नहीं होते हैं।हमारे लोकतंत्र और सिस्टम इन लोगों को बना देते हैं।
विकास दुबे का अंत इसलिए हुआ कि जिस पार्टी से फल फूल रहे थे वह पार्टी अभी सत्ता में नहीं है विपक्ष मैं बैठते हैं।
हमारे सत्ता पक्ष के भी विकास दुबे के तरह है। अभी सफेदपोश में घूम रहे हैं।
जब सत्ता पक्ष,विपक्ष में बैठेंगे तो उन का भंडाफोड़ होगा। यही है हमारा देश का लोकतंत्र।
लोकतंत्र में सिस्टम को चलाने वाला सत्ता पक्ष होते हैं वह अपनी मर्जी से हैंडल करते हैं।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
क्या राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है विकास दुबे?
विकास दुबे के व्यक्तित्व की चर्चा से यही पता चलता है कि अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति है इस प्रकृति को देने के लिए राजनीतिक संरक्षण का हाथ है। ऐसा सुनने को मिलता है। जो व्यक्ति प्रभाव और दबाव में जीता है वह व्यक्ति भयभीत होकर कुछ भी कर लेता है बिना संस्कार के अपराधिक प्रवृत्ति अंदर ही बना रहता है अंधा को कुछ दिखाई नहीं देता मरे हुए की समान समाज में समस्या के रूप में जीता है ठीक इसी तरह विकास दुबे हैं और यह भी कहने के लिए सुनने को मिलता है कि मैं ब्राह्मण हूं मैं पूजा पाठ करता हूं अगर वह ब्राह्मण होता तो कभी ऐसा नहीं करता ब्राम्हण परिवार में जन्म लेने से कोई ब्राम्हण नहीं बन जाता मैं ब्राह्मण हूं कहता है पहले मानव बन के तो देखें कि मानव क्या है मानव का मानत्व क्या है ।ब्राह्मण की बात तो दूर की है ।ब्रह्मा जाणोति इति ब्राहम्णः अर्थात जो ब्राम्ह को जानता है वही ब्राम्हण है ।जीव चेतना में जीता हुआ अपराधी विकास दुबे खुद को पता नहीं है कि वह क्या है? क्या वह ब्रह्म को जानता है ।वह ब्रह्म तो क्या खुदको नही जानता है। ऐसे लोगों को पनाह देने वाले और महा अपराधी होते है। इन्हीं की छत्रछाया में अपराधी लोग और फलते फूलते हैं। अपराधी और संरक्षण देने वाले की एक ही मनोवृति होती है। इसीलिए अपराधि अपराध करने से बाज नहीं आता है इसी तरह विकास दुबे है। लाभो उन्माद, भोगोउन्माद ,कामोउन्माद प्रवृति में जीने वाला व्यक्ति संस्कारित नहीं हो सकता और बिना संस्कार के जीने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता। जिसका परिणाम समाज को भुगतना पड़ता है। ऐसी ही स्थिति दुबे के चलते समाज के लोग भुगत रहे हैं ।
अंतिम यही कहते बनता है राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है विकास दुबे जो समाज के लिए समस्यात्मक है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
विकास दुबे राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है। राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु नेता लोग गुंडे पालते आ रहे हैं ।यह राजनीति का बहुत ही बुरा चेहरा है। नेता लोग अपनी शक्ति वृद्धि तथा प्रभाव बढ़ाने और आम लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए इन गुंडों से मदद लेते आए हैं बदले में इन गुंडों को अपना राजनीतिक संरक्षण देते हैं और पुलिस तथा उन्हें गिरफ्तार होने से बचाते हैं। राजनीतिक संरक्षण पाकर ये गुंडे इतने बेखौफ और शक्तिशाली हो जाते हैं कि यह बेलगाम हो इनके नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं तब नेता और पुलिस इनके नियंत्रण में हो जाते है। ऐसे अपराधी देश के लिए, समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाते हैं। जब नेता और पुलिस ही उनके खिलाफ कुछ नहीं बोल पाते तथा कर पाते तब आम आदमी की हालत कितनी खराब हो जाती होगी, यह कल्पना से परे है । विकास दुबे बहुत शक्तिशाली हो गया था और उसकी पहुंच बड़े-बड़े नेताओं और पुलिस अफसरों तक थी। वह इतना बेखौफ है कि पुलिस के ऊपर भी गोली चलाने से नहीं हिचकिचाया। जब उसके फायरिंग से आठ पुलिस शहीद हो गए ,तब जाकर सरकार की आँख खुली और विकास दुबे के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू हुई।
- रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
रांची - झारखण्ड
आज के इस सड़ी_ गली सिस्टम का साक्षात प्रमाण है " विकास दुबे" ।पूरी व्यवस्था राजनीति करण के कारण आज ध्वस्त और ध्वंस होता जा रहा है । पुलिस बहुत बार जान पर खेल कर अपराधियों को पकड़ती है और किसी एक राजनेता का एक फोन चुटकियों में उन्हें छुड़वा देता है फलस्वरूप इन जैसे टुच्चे , लफंगें अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का मन बढ़ जाता है और बेचारे कर्तव्य निष्ठ पुलिस बल का मनोबल टूट जाता है। ना जाने कितने लोगों को मारने वाला विकास दुबे मारा गया और लगातार यह खबर कल से मिडिया पर दिखाया जा रहा है। लेकिन जब ८ कर्त्तव्य निष्ठ पुलिस कर्मियों को इसने एक हीं बार मार गिराया उन जांबाज पुलिस कर्मियों को लगातार इतना नहीं दिखाया मिडिया वालों ने। अपितु ना हीं उनके परिवारों की हीं सुध ली गई सिवाए एक डी ०एस० पी० साहब के अलावा बाक़ी उनसे जो जूनियर थे उन सब की । यह भी एक विडम्बना है हमारे सिस्टम की । लेकिन आज यही सच्चाई है इस देश की।आज झूठ का बोलबाला और ,,,,,,,,,,,,,,,वाली कहावत कभी_ कभी सच लगने लगती है ।अब पहले जैसे ना राजनेता हीं हैं जिनके लिए उनका देश सबसे प्रिय होता था ना कि उनकी कुर्सी ।आज अपनी कुर्सी,अपनी जेब और अपना रौब ,अपना परिवार इन सब के बाद हीं ये लोग देशहित के बारे में सोचते हैं। अनगिनत लोगों की राजनीतिक संरक्षण में विकास दुबे फला _फूला ।फिर भी ,ये भी सच है कि बुरे काम का बुरा नतीजा होना भी निश्चित है देर भले हो ,पर होता जरूर है जिसका परिणाम कल हम सब ने देखा कुख्यात अपराधी विकास दुबे का मारा जाना ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
विकास दूबे जो उत्तरप्रदेश के कानपुर के एक गांव में जिसने 8 पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या 2 जुलाई कर दी थी और छुपते छुपाते फरीदाबाद और फिर बड़े ही नाटकीय ढंग से उज्जैन के महाकाल मंदिर से 9 जुलाई को पकड़ा गया। जो एक आत्मसमर्पण की तरह दुनिया के सामने दिखाया गया।वहां से जैसे ही वह उत्तरप्रदेश के कानपुर जिले की सीमा पर पहुचता है अचानक वह एक पुलिसकर्मी की बन्दूक छीन कर भागने की कोशिश करता है और एनकाउंटर में मारा जाता है।
विकास दुबे जिस पर सरकार ने 5 लाख का इनाम रखा था।जो कि एक हिस्ट्रीशीटर था। और उस पर अलग अलग थानों में 160 केस दर्ज थे।जो अरबों रुपयों का मालिक था। उसकी राजनीतिक दलों से भी गहरी पहचान थी।जो पिछले 30 साल से अपना गैंग चला रहा था और पुलिस महकमे में उसकी ऊपर तक पहुँच थी। वह धड़ल्ले से हाइवे के ट्रक लूटता था और फैक्टरियों से मौत पैसा वसूलता था। किसी की उसके खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं थी। उसके सुराग दिल्ली, मुंबई ही नही, विदेशों में भी मिले हैं। दुबई में आलीशान फ्लैट इस मलेशिया में सम्पत्ति क्या ये सब बिना ऊपर की पहुँच के संभव था।
उसका पकड़ा जाना बेहद नाटकीय रहा। फिर एनकाउंटर में मारा जाना। क्या ये गले उतरता है कि जो इतना शातिर अपराधी हो और खुद को गलत पहचान पत्र के बाद गिरफ्तार करवाता है वही फिर भागने की कोशिश करता है।
आज विकास दुबे का एनकाउंटर होना भी योजना के तहत लगता है क्योंकि अब जब पता चल जाता कि कौन कौन सी राजनैतिक पार्टियों का भी उसके साथ सम्बंध था, वह पर्दाफाश होने का ख़तरा अब नजर आ रहा था, इसलिए विकास दुबे के मरने से सारे राज़ उसके सीने में ही दफन हो गए और ये राजनेता लोगों ने चैन की सांस ली होगी।
ऐसे न जाने कितने विकास दुबे राजनीतिक संरक्षण में पलते है जो आस्तीन के सांप है और उनका दंश समाज के निर्दोष लोगों के झेलना पड़ता है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी दिल्ली
" मेरी दृष्टि में " अपराध का जन्म पुलिस से होते हुए राजनीति के सरक्षण प्राप्त करते हुए कानून का अपमान है । जो गली - गली , शहर - शहर में अपने चारों और देख सकते हैं । इन सभी का अन्त कभी होगा ? शायद कभी नहीं .... ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
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