क्या अपराधियों को सुख - सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों को क्या सजा होनी चाहिए ?

    अपराधियों को जेल में सुख - सुविधा देने वाले जेल अधिकारी  को सख्त सजा की मांग होती रहतीं है । परन्तु विशेष सजा की   कोई व्यवस्था नहीं है । जिसके कारण से जेल में अपराधियों का राज चलता है । जेल अधिकारी , अपराधियों को हर प्रकार का सहयोग करते हैं । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
                                     
अपराधियों को सुख सुविधा देने वाले जेल अधिकारी जेल के नियमों की अनदेखी करके ही ऐसा कर सकते हैं जो अनुचित है और नियम के विरुद्ध दुस्साहस इसलिए ये व्यक्तिगत अपराध की श्रेणी में आता है इसलिए अपराधी को सुख सुविधा दे रहे अधिकारियों को सजा मिलनी ही चाहिए । सरकार अपनी जेलों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए लगातार जिला अधिकारी जिला जज के निगरानी में लगातार निरीक्षण करवाती है, लेकिन उसके बाद भी अपराधी जेलों में अपने गैंग चला रहे हैं। जेलों में बंद कुख्यात अपराधी जेल प्रशासन की मिलीभगत से और अधिकारियों की जेबें गर्म कर जेलों से अपनी गैंग चला रहे हैं, बल्कि जेल की सारी सुख सुविधाएं का लाभ उठा रहे हैं। इससे सरकार की साख पर भी सवाल तो उठते ही हैं साथ ही ये भी निश्चित तौर कहा जा सकता है कि जेल अधिकारियों की मिली भगत से ही जेल के अंदर बहुत से अपराधी जेल के अंदर व बाहर अपराध कर सकते हैं इसका कारण यह भी है कि क़ैदियों से मिलने वाली धनराशि या किसी न किसी नेता के दबाव के चलते डर अधिकारियों को ऐसा करने को मजबूर करता है परन्तु अपराधी की मदद करना अपराध ही है और हर अपराध की सजा होती है चाहे वह छोटी हो या बडी ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     वर्तमान समय में जेल, जेल नहीं रहा आरामदायिनी जीवंत हो गया हैं। पूर्व काल में अपराधी एकबार जेल जाने पश्चात, दूसरी बार जेल जाने को डरता था। काला पानी और अन्य प्रकार की सजाऐं हुआ करती थी। जेल अपराधियों के पास, जेल अधिकारियों की दूरियां रहा करती थी।  आज तो अपराधियों के लिए जमानत पर रिहा होना आम बात हैं? अगर जमानत नहीं होने पर जेल में समस्त प्रकार की सुख सुविधाओं का केन्द्र बिन्दु बन गया हैं। आज जेल नहीं ऐसा प्रतीत होता हैं, कि किसी वी.आई.पी. जेल में हैं। आज कितने सुप्रसिद्ध तत्व जेलों में बंद हैं, उन्हें, उनकी सुख-सुविधाओं को देखिये? अगर  खुदा-ना-खास्ता कोई वी.आई.पी. जेल चला जाये, तब देखिये, ऐसा लगता हैं, कि जेलर का रिश्तेदार आ गया हो, जिसके आगे-पीछे दौड़ता, फोटो, सेल्फी लेता नजर आता हैं। 
यह व्यवस्था आज प्रजातंत्र में देखने को मिल रहा हैं। जब तक कठोर कानून नहीं बनेगा, तब तक ऐसी ही व्यवस्था चलते रहेगी और जेल अधिकारियों को आशीर्वाद संबल होते चले जायेंगे। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए अपराधियों को सुख-सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों को भी जेल नियमों के तहत सजाऐं देनी चाहिये, ताकि भविष्य में कानून व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया जा सकें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट  - मध्यप्रदेश
अपराधियों और नीरा अपराधियों दोनों में सुख सुविधा पूर्वक जीने की कामना होती है। अपराधी अपराध करके अपनी सुख-सुविधा जुगाड़ कर लेता है और अन्य अपराधी श्रम करके अपना सुख सुविधा का जुगाड़ करता है अपराध करने वाले व्यक्ति अपराधी कहलाते हैं जो समाज में अमान्य घोषित की जाती है। अपराधियों को समाज में सम्मान नहीं दिया जाता है और जब अपराध करता है तो अपराध की सजा भुगतने के लिए जेल भेजा जाता है जेल भेजने का यही कारण होता है की जेल में रहकर उसकी जो अपराध प्रवृति है और ठीक हो करके समाज की मुख्यधारा में मिलकर आगे उसकी जिंदगी सुधर जाएगी। इसी अपेक्षा वस जेल की व्यवस्था अपराधियों के लिए की गई है जेल में अधिकारी का दायित्व होता है कि उसे जिंदा रखने के लिए मूलभूत जो आवश्यकताएं हैं उसकी पूर्ति की जाती है। लेकिन अपराधिक जो सुविधाएं होती है उसके लिए अधिकारी अपराधियों को पूरा करने में लगे रहते हैं तो अधिकारी भी अपराधी है अपराधी  के  सुख सुविधा पूर्ण करने में अधिकारी में में दो प्रवृत्ति देखी जाती है।  भयऔर प्रलोभन   वह मजबूरी वश भय के कारण उसे सुख सुविधा देने में शामिल होता है ताकि भविष्य में उस अपराधी से उसे कोई खतरा ना हो और प्रलोभन वस  वह सुख सुविधा देने के लिए कार्य करता है प्रलोभन से उसे पैसा मिलेगा तो इस तरह अपराधी को सुख सुविधा देने का कारण अधिकारी का भय और प्रलोभन मानसिकता है भयऔर प्रलोभन मानसिकता मनुष्य का सबसे बड़ी कमजोरी मानसिकता है इसी कमजोरी मानसिकता सेवा अपराधी को पनाह देता है जो पूरे समाज के लिए हानिकारक होता है ऐसे कमजोर मानसिकता वाले अधिकारी को जो स्वयं के हित के लिए सोचता है सर्व मानव समाज के लिए नहीं सोचता है ऐसे अधिकारी को नौकरी से ही निकाल देनी चाहिए। ना रहे बांस न बाजे बांसुरी वाली कहावत चरितार्थ होता। और इस अपराध कार्य में अधिकारियों के साथ और लोग जुड़े होते हैं उन सभी की खोज खबर करनी चाहिए और उन्हें भी इस अपराध में लिफ्त  होने की सजा देनी चाहिए। व्यक्ति जब तक व्यवस्था को नहीं समझेगा  स्वयं को नहीं समझेगा समाज को नहीं समझेगा वह व्यक्ति स्वार्थी होकर अपराध कार्य ही करता है परमार्थी नहीं बन सकता अतः स्वार्थी व्यक्ति को सबक सिखाने के लिए नौकरी से ही निकाल देनी चाहिए तभी उसे समझ आएगा की एक-एक पैसा इतना मेहनत से मिलता है वह अपने आप ठीक हो जाएगा या तो और अपराध में लग जाएगा दो स्थिति बनेगी अतः अपराधियों को सुख सीधा देने वाले जिला अधिकारियों को पूर्ण रूप से अपराध कर रहा है तो उसे नौकरी से निकाल देनी चाहिए। 
    - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 नेता या सरकार या सरकारी संस्थान या दफ्तर अपनी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रहे है ? अपराधी , दबंग नेता बन जाते है और छह महीनों में ही करोड़पति बन जाते है । उनके सारे अपराध गुण बन जाते है । अपराधियो को सुख सुविधा आप या मैं नही देते । ये भी उन्हें अपराधी नेता , पुलिस , या फिर नकाब लगी  सरकार  ही देती है ।आज सुशांत सिंह का केस इसका ज्वलंत उदाहरण है । सबूत मिल रहे है लेकिन FIR तक होने में कितना संघर्ष करना पड़ा । डॉक्टर ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट  तक नही दी । महाराष्ट्र पुलिस आज तक  नकली पुलिस तक नही पकड़ी पाई और न पकड़ पाएगी कभी क्योकि बहुत मोटी रकम तय की गई है ।  अब रिया गायब है । वह ऐसे समय मे स्वयं भूमिगत नही हुई ,उसमे भी  किसी की सलाह ,किसी का संरक्षण ,किसी का मार्गदर्शन ही होगा जैसे राम रहीम का रहा । इतने जोखिम भरे काम या काण्ड कोई शरीफ ,शिक्षित , ईमानदार ,समझदार ,मध्यवर्ग या गरीब तो नही कर पायेगा । जो सब तरह से सक्षम हो , दबंग हो ,निडर हो वही कर सकता है और ऐसे आदमियों के सामने कानून भी घुटने टेक कर बैठता है । ऐसे दबंग व खुराफाती लोगो को चौराहे पर खड़ा करके जनता को सौप देना चाहिए और इनका सामाजिक बहिष्कार ,ग्राम बहिष्कार , बिरादरी बेदखल ,परिवार ,पार्टी से बेदखल  जैसे दंड मिलने चाहिए । पर क्या ऐसा हो पायेगा ? जब बिना परिश्रम किये बोरी भर के रुपये घर पर आ कर रखे जायंगे तो कोई किसी भी दण्ड के विषय मे कोई क्यो सोचेगा । 
      भारत एक ऐसा देश है जिसमे विश्व के अपराधी आ कर बस जाते  है और  बेहद इज्जतदार बन कर और देश के तंत्र का दाहिना हाथ बनते है जिनके सामने कानून बौना है और व्यवस्था गुलाम है । अपराधियो की  सहायता करनेवाले मास्टर माइंड होते है जो केवल हुक्म देने का ही खाते है ई ।उनका कोई कुछ नही बिगाड़ सकता ।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
      जेल जाने का सौभाग्य मुझे कई बार मिल चुका है। इसलिए राजनैतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं एवं अपराधियों से मिलने का दुर्भाग्य भी झेला हुआ है। जिनमें पूर्व मंत्री, पदाधिकारी व कार्यकर्ता और टाडा, हत्या, बलातकार एवं चोर भी थे।
      वर्णनीय है कि जम्मू एंड कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के सुप्रीमो एवं उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफैसर भीम सिंह जी भी उन अनेक नेताओं में से एक हैं। जिन्होंने मुझे जेल ना जाने का परामर्श भी दिया था। किन्तु राष्ट्रप्रेम के आगे कोई परामर्श कैसे टिक पाता? इसलिए जम्मू की सेंट्रल जेल, हीरानगर की जेल सहित जेल यात्राएं कर चुका हूं। जो एसएसबी की सरकारी नौकरी से पहले का अनुभव है।
      उल्लेखनीय है कि राष्ट्रप्रेम के कारण आंतड़ियों में क्षय रोग एवं विभागीय अधिकारियों की पीड़ा-प्रताड़ना के तनाव सहित वर्तमान माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी एवं गृहमंत्री अमित शाह जी के पैतृक राज्य गुजरात की जामनगर जिला जेल में भी अपने अधिकारों के लिए कई दिन न्यायिक दण्ड भोग चुका हूं। जहां के कई संस्मरण आज भी ताजा हैं।
      जैसे जेल के उच्च अधिकारियों के दौरे के दौरान उनसे आंखों में आंखें डालकर जय हिन्द के साथ टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करना, उन्हें एक वर्ष में छः स्थानांतरण के बारे में बताना, जिसे अपराधियों द्वारा जम्मू-कश्मीर का दुर्दांत उग्रवादी समझना और मुझसे डरना, गर्दन ना झुका कर जेल नियम तोड़ना, दूसरे दिन एक किलो दूध का मिलना, अपनी बैरक से निकल कर जेल के डाक्टर के पास चले जाना, जेल कर्मियों से थप्पड़ खाना और गंदी गालियां सुनना, जिसके विरुद्ध अनशन करना व सुध-बुध खो देना, अपराधियों द्वारा अपने-अपने धर्म अनुसार पूजा करना, चहलकदमी करना, समय पर खाना मिलना व खाना और चिकित्सालय जेल रूम में रसूख वाले अमीर अपराधियों का सहयोग मिलना इत्यादि चलचित्र की भांति मन-मस्तिष्क में याद हैं।            
      किन्तु मस्तिष्क पर भारी बल डालने पर भी अपराधियों को सुख-सुविधा देने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों की कोई आकृति प्रकट नहीं हो रही। मुझे जेल में कोई जेल अधिकारी या कर्मचारी ऐसा दयावान दिखाई नहीं दिया,जो अपराधियों को सुख-सुविधा दे रहे थे। जिसके लिए उन्हें सजा होनी चाहिए।
      अतः सजा की बात करनी है, तो उनकी करें जो सरकारी कार्यालयों में सफेदपोश हर गरीब को चक्कर पर चक्कर लगवा कर अपने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के माध्यम से लूटते हैं। जिससे भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच चका है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जेल अधिकारियों को देश के संविधान और कानून के अंतर्गत जिम्मेदारियां दी गई होती हैं और वे शपथ लेकर अपना पद ग्रहण करते हैं और उन्हीं नियमों के अन्तर्गत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है ।  प्रश्न यह है कि क्या अपराधियों को सुख सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों को सजा होनी चाहिए ? जेल में कैद जो अपराधी होते हैं उनमें छोटे अपराधों से संगीन अपराध करके सजा काट रहे होते हैं। कुछ अपराधी एक बहुत बड़े जाल का हिस्सा होते हैं और वे संगीन से संगीन अपराध करने से नहीं घबराते और न ही उन्हें जेल की सजा का कोई डर होता है। उनके पीछे भ्रष्ट लोगों का समर्थन होता है।  यहां पैसा बोलता है। इसी पैसे के बल पर वे कुछ जेल अधिकारियों को लालच देकर अपनी सुख सुविधाओं का प्रबंध कर लेते हैं।  लालच में आकर अपराधियों को सुख सुविधा देने वाले जेल अधिकारी भी बराबर की सजा के भागी बन जाते हैं।  इससे जाहिर होता है कि इन संगीन अपराधियों के मन में कानून का लेशमात्र भी डर नहीं है। अपराधियों को सुख सुविधा देने वाले जेल अधिकारी उनके कड़ी सजा काटने के अदालती आदेश की तौहीन करते हैं जो स्वयं में एक अपराध है। अतः अपराधियों को सुख सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों को सजा होनी चाहिए तथा उनके साथ भी कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
बिलकुल मिलनी चाहिए क्यो की जल के अधिकारी पैसे ले गुनाहगारो को सब सुविधाएँ देता है मोबाइल से लेकर हर एक जरुरत की वस्तु , ऐसे भ्रष्ट आफिसरो पर सख़्त कार्रवाही करनी चाहिए ! 
सरकार अपनी जेलों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए लगातार जिला अधिकारी जिला जज के निगरानी में लगातार निरीक्षण करवाती है, लेकिन उसके बाद भी अपराधी जेलों में अपने गैंग चला रहे हैं. जेलों में बंद कुख्यात अपराधी जेल प्रशासन की मिलीभगत से और अधिकारियों की जेबें गर्म कर जेलों से अपनी गैंग चला रहे हैं, बल्कि जेल ही सारी सुख सुविधाएं का लाभ उठा रहे हैं. इससे सरकार की साख पर भी सवाल उठते हैं.
जेलों में मिलने आने वालों की नियमित जांच और जेल में लगे सीसीटीवी की भी नियमित तौर पर चेकिंग करने की जरूरत है. एक कैदी से एक आदमी कितने बार मिलने आ रहा है, उसका ब्यौरा दर्ज होना चाहिए. ! 
जेलों में मोबाइल का प्रचलन गंभीर चिंता का विषय है. जेलों में घटनाएं न हों, मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक लगे, इसे लेकर सभी जेलों में अधिकारियों को खास रणनीति बनाने के आदेश दिए गए हैं, पर अमल में नहीं है आराम से जेलों में मोबाइल यूज हो रहा है । 
हर एक मामले को गंभीरता से जांचा परखा जाए , सख़्ती बहुत जरुरी है । 
उत्तर प्रदेश की जेलों की खबरे अक्सर देखने पढ़ने को मिलती है वहाँ की जेलों को एयाशी का अड्डा माने जाने लगा है , 
आये दिन कुछ न कुछ अंबर आती पर कार्यवाही कुछ नहीं 
उत्तर प्रदेश की जेलें अपराधियों के लिए ऐशगाह बनती जा रही हैं। बैरकों में कुख्यात बंदियों के मुर्गा व शराब पार्टी से लेकर जुए की तस्वीरें हर दूसरे दिन आ रही हैं।
 इससे जेलों की सुरक्षा-व्यवस्था से लेकर जेल के भीतर कुख्यात अपराधियों को मिल रही सुविधाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़े होते हैं।
पहले नैनी जेल, फिर रायबरेली जेल, सुल्तानपुर जेल और अब उन्नाव जेल की वायरल तस्वीरें उप्र की जेलों की हकीकत बयां करने के लिए काफी हैं। जेल में हत्या और मोबाइल सहित कई आपत्तिजनक वस्तुएं पहुंचने के बाद जेल प्रशासन इस पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रहा है।
जिला जेल उन्नाव में पार्टी करते बंदियों के चार वीडियो वायरल हुए हैं। बंदी योगी आदित्यनाथ सरकार को चुनौती दे रहे हैं। इनमें एक बैरक के भीतर पार्टी के दौरान शराब परोसने, दूसरा असलहों के साथ दबंगई दिखाने का है।
बुधवार को वायरल वीडियो में दो बंदी कह रहे हैं कि "जेल में जो बोलेगा, उसे मार दिया जाएगा और जो बाहर बोलेगा उसे भी मार दिया जाएगा।" यही नहीं, किसी अंशुल दीक्षित हिस्ट्रीशीटर के बारे में बात की गई तो वहीं आगे का क्या प्रोगाम है, इस पर मंडली लगी दिखी। एक बंदी कह रहा है, "मेरठ हो या उन्नाव, योगी सरकार क्या बिगाड़ पाई। जेल हमारे लिए कार्यालय होते हैं।"
जब यह सब हो रहा है तो ज़ाहिर है किसी बड़े नेता का हाथ होगा जब जेल अधिकारी कुछ नहीं कर पा रहा है ! 
दुर्भाग्य है हमारे देश का हम आज़ाद होकर भी अपनों से ही ग़ुलाम हो गये है । 
न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह है ये ऊपर की खबरे । 
ऐसी बहुत सी खबरे है किस किस का हवाला दे जब सब अधिकारी आंख , कान बंद कर अपाहिज हो गये हैं तो किसके पास गुहार लगाये । 
सरकार को चाहिए जेलों में हो रही मनमानी को रोके व सख़्त सजा उन अधिकारियों को दे 
नहीं तो जनता का भरोसा न्याय व सरकार पर से उठ जायेगा 
गुनाहगार , गुनाहगार है चाहे वो कोई भी हो उसे रियायत नहीं देनी चाहिए क़ानून की नज़रों में सब एक है , 
ये अनैतिक आचरण वाले कभी माफ़ी के हक़ दार नहीं हो सकते 
और पुलिस वर्दी पर कंलक लगाने वाले को माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए ! 
समाज में अमन चैन चाहिए तो गुनाहगार की गुनाहों को माफ़ नहीं सजा ही मिलना चाहिए 
गुनाहगार को पनाह देने वाले आफिसरो पर सख़्त क़ानूनी कार्यवाही होनी चाहिए , 
जेल को जेल ही रहने दे , तभी जेल का डर रहेगा ...
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराधियों को सुख-सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों की सजा का प्रावधान संविधान में है, किंतु उसका पालन नहीं होता। उसकी एक वजह पैसा तो है ही, दूसरे इसमें अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ी टीम होती है। जो पारस्परिक रूप से मिले होते हैं। स्थानीय से लेकर और बड़े तक राजनीतिक संरक्षण भी होता है।
सच कहा,जब तक नैतिक विकास नहीं होगा हम अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निष्ठा से पालन नहीं करेंगे। ऐसी स्थितियां और परिस्थितियां बनी और बनती रहेंगी। ऐसा नहीं है कि अच्छे और सच्चे जेल अधिकारी नहीं हैं, यकीनन वे हैं मगर उन्हें उस ढंग से काम करने नहीं दिया जाता। इस प्रकार के उदाहरण फिल्मों में बेहतर तरीके से दिखलाए भी जाते हैं।
सार यह कि अभी तो इसे लाइलाज बीमारी की तरह ही माना जा सकता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अपराधियों को सुख सुविधा देना वाले कानून के रखवालो के चलते ही उस प्रदेश से कभी गुंडाराज खत्म नही होता है । यही वजह है कि ऐसे अपराधी सलाखों के पीछे रहकर भी स्वयम का घर में रहना जैसा महसूस करते है और सलाखों के पीछे रहने के बावजूद भी ये लोग अपने गुर्गों द्वारा समाज मे अपराधों का बोलबाला रखते है । ऐसे पुलिस कर्मी जो इन अपराधियो को मोबाइल फोन से लेकर बाकी सारी सुविधाएं मुहैया कराते है , उन पर भी देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए । ऐसे आस्तीन के सांपो को उम्रकैद की सजा मिलनी चाहिये ।
न जाने कितनी बार ही तिहाड़ जेल हो अथवा अन्य जगहों से कैदियों के पास से मोबाइल फोन और सिम हो अथवा तमंचे तक बरामद किए गए है । और इन्ही तमंचों के बल पर कितने ही अपराधी जेलों से भागे भी है परंतु आज तक भी पुलिस महकमे के आलाधिकारियो ने इन आस्तीनों के सांपो पर लगाम लगाने की कोशिश नही की । ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस या तो इन अपराधियों से डरती है जो मिलते हुए लड्डुओं को छोड़कर मौत को गले नही लगाना चाहती अथवा पुलिस अंदरखाने ही सब काम कराकर ये सोचती है कि दोनों हाथों में लड्डू रहेंगे और किसी को पता भी नही चलेगा । या फिर यह कहावत भी सही हो सकती कि एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है । जो भी हो ये तीनो बाते किसी भी प्रदेश की सरकार को ले डूबने और वर्दी पर स्याही पोतने तथा उस प्रदेश में अपराधों का बोलबाला रखने के लिए काफी है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
देश के जेल में वास्तविक क्षमता से लगभग 20 -25% अधिक है।
इसलिए अपराधियों ने जेल प्रशासन की मिलीभगत से अपना मनमाना खाना शराब उसके चखना भी मंगा रहे हैं। सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए सरकारी मशीनरी को आइना दिखा रहा है।
जिम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारी चुप्पी साधने के लिए मजबूर है। चुकी लचर व्यवस्था के कारण "भ्रष्टाचार सर्वोपरि"हो गया है।
अपराधियों जेल से ही गैंग चला रहा है।
कैदियों को पता है अधिकार:- आर्थिक या आयोग्यता के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता है कानून की नजर में कैदी भी व्यक्ति है, पशु नहीं।जब भी कैदियो के ऊपर अभिघात किया जाता है ,उससे संविधान को प्रघात पहुंचता है।
सजा बदला लेने को नहीं,
सुधार के लिए दी जाए ।सजा पुनर्वास के लिए होनी चाहिए।
लेखक का विचार:-
अपराध से घृणा कीजिए अपराधी से नहीं। कोई अपराधी बन कर पैदा नहीं होता। 
न्याय केवल पीड़ित के लिए नहीं बल्कि अपराधी के लिए भी काम करना चाहिए। 
जेल अधिकारियों की सजा उनका मनोबल राष्ट्र के प्रति जगाना एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना  जेल में सभी सुविधाएं उपलब्ध होगा तो अपने-आप अधिकारियों से भ्रष्टाचार मिट जाएगा यही बहुत बड़ी सजा है।
"भ्रष्टाचार समाप्त करना"
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
अपराध तो अपराध है फिर अपराधियों को जेल में कैसी सुख सुविधा? आखिर क्यों? वो क्या जाने पीर पराई, जाके फ़टी न कभी बिवाई l अपराधी जब सुख सुविधाएँ अपने आतंक के बल पर हासिल करता है तो क्या वह उचित है? जिस आतंकवाद और अपराधों ने हमारे समाज के नैतिक पक्ष को बहुत ही बुरी तरह क्षति ग्रस्त किया है l नैतिक मूल्यों के प्रति अनास्था के फलस्वरूप समाज अनेक असामाजिक कार्यो को सहज भाव से स्वीकार करने लग गया है, क्यों? हम सही बात और खरी बात कहने से डरने लगे हैं क्योंकि अपराधी का फंदा हर एक के सामने झूलता रहता है l नैतिक पतन, सबसे बड़े खतरे की घंटी है l राजनीतिक संरक्षण और ऑफिसरों की मिली भगत से ही जेल में सुख सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं यहाँ अपराधी अपने साथियों को आतंकवाद के बल पर जेल तक से छुड़वा लेते हैं l वस्तुतः अपराध राज्य और समाज के विषैले चरित्र की उपज है l अपराध के विशाल जाल से प्रभावित और पीड़ित राज्य व्यवस्थाओं के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इनसे निपटा कैसे जाये l 
हमारा क़ानून सख्त होना चाहिए l क़ानून का पालन किया जाना चाहिए l जो अफसर अधिकारीयों को सुख सुविधा प्रदान करते है वह भी अपराधी की श्रेणी में आते है l नियम के अनुसार वह भी दण्ड के भागी है l सरकार को उनके ऊपर भी सख्त कार्यवाही करनी चाहिए l वह अपने पद की गरिमा को कलंकित करते हैं l अपनी वर्दी का मान गिराते हैं l जब रक्षक ही निडरता से अपराधियों से सामना नहीं करेंगे तो समाज सुरक्षित कैसे रहेगा? 
        चलते चलते ----
1. अभी सुरक्षित नहीं भारती, दिनकर सी हुंकार चाहिए l 
2. तुम्हें, भारती का दर्द क्यों कर याद आयेगा? चाहें अमरनाथ का द्वार हो, कैलाश हो, कश्मीर हो या समाज में अपराध हो l धधकता हुआ ये देश तुझको क्यों 
जलायेगा?
 3.अपराध बोध का दंश सहने को स्वयं ही प्रस्तुत होना होगा l 
              - डॉ. छाया शर्मा 
                अजमेर - राजस्थान
विषय न्याय संगत है अपराध की सजा चाहे अपराधी हो या जेल अधिकारी दोनों ही हकदार होते हैं अपराधी अपराध की सजा भुगत रहा है जेल में जेल में सुख सुविधा प्रदान करने वाले किसी भी अधिकारी को अगर कानून उसे सहमति देता है तो सही है लेकिन अगर कानून की किताबें में इस बात की कोई चर्चा नहीं है कि अपराधी को जेल में सुख सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाए तो उन्हें सुख सुविधा उपलब्ध कराने वाले जेल अधिकारियों को भी किसी न किसी प्रकार की सजा तो होनी ही चाहिए क्योंकि वह वर्दी का मजाक उड़ाते हैं पावर का मजाक उड़ाते हैं जिलाधिकारी का मुख्य कर्तव्य है अपराधियों की सुरक्षा प्रदान करना उन्हें सुख सुविधा प्रदान करना नहीं तो ऐसे व्यक्ति वर्दी पहन कर भी अपराधी बन जाते हैं कोई भी अधिकारी जब उस पद पर आता है तो पद की गरिमा बनाना उस व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है और अपने पद की गरिमा को बनाने के लिए न्याय संगत कर्तव्य को करना ही उचित है जेल में बहुत तरह के अपराधी होते हैं संगीन से संगीन जुर्म अपराध किए हुए रहते हैं कुछ ऐसे भी रहते हैं जो संख्या के दृष्टिकोण में बंधे रहते हैं पर अपराधी की श्रेणी में रहते हैं जैसे ही आप एक जेल के अंदर चले गए चाहे अपराध का कोई भी प्रकार है आप अपराधी ही कहलाएगा सामान्यता यह सुविधाएं तो नहीं प्रदान होनी चाहिए सुख सुविधा पर वर्तमान समय में ऐसे बहुत सारे दृष्टांत देखने को मिलते हैं जो कहने को जेल के भीतर हैं पर अपनी पूरी मान सम्मान के साथ जीवन यापन कर रहे हैं
हमारे समझ से तो अपराध चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा हो अपराध की जो सजा मिली है वह कानून के नियमों के अनुकूल हो और नियम में अगर सुख सुविधा प्रदान नहीं की गई है तो नहीं होना चाहिए
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराध और अपराधियों का समय अत्यन्त संक्षिप्त होता है यह बात सोलह आने सही है परन्तु यही समयावधि जब बढ़ती है और सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण होकर बढ़ती है तो इसमें निश्चित रूप से उन भ्रष्ट अधिकारियों का हाथ होता है, जो अपने कर्तव्यों का पालन करने में जान-बूझकर कोताही बरतते हैं। 
कानून व्यवस्था को समर्पित ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी-अधिकारी अपनी मेहनत से जिन अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाते हैं उन्हीं अपराधियों को जब जेल में गैरकानूनी रूप से सुख-सुविधायें मिलती हैं तो इसमें जेल के भ्रष्ट कर्मचारियों-अधिकारियों का सीधा हाथ होता है वरना ये सम्भव नहीं है।
आये दिन इस तरह के समाचार आते हैं कि जेल में रहकर ही कोई अपराधी अपने अपराधिक साम्राज्य का संचालन कर रहा है। बहुत से अपराधियों को जेल में सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं। जेल में अपराधियों के पास मोबाइल मिलना तो सामान्य बात है।
क्या यह सब जेल अधिकारियों की शह के बगैर सम्भव है? 
नहीं। कदापि नहीं। 
वास्तव में अपराधियों को सुख-सुविधा प्रदान करने वाले अधिकारी भी अपराधी हैं। 
चूंकि प्रत्येक व्यवस्था में अच्छे और बुरे दोनों ही तरह के व्यक्ति पाये जाते हैं। ऐसी स्थिति में व्यवस्था के नियमों का ईमानदारी से पालन करने वालों को प्रोत्साहित करने और अपराधियों को उनके अपराधों की वास्तविक सजा देने हेतु अपराधियों को सुख-सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों को अवश्य सजा होनी चाहिए?
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
        जब कोई व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत अपराध करता है। तो उसे अपराधी कहा जाता है। जो कई प्रकार के होते हैं। जिनमें से कुछ अपराधों को बिरादरी, पंचायत एवं थाना स्तर तक ही समाप्त कर दिया जाता है। किन्तु कुछ अपराध ऐसे होते हैं। जिनको निचले स्तर पर खत्म नहीं किया जा सकता। अपितु अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे काल कोठरी में बंद कर दिया जाता है। ताकि वो जेल की काल कोठरी में अपने किए हुए अपराधों का पश्चाताप कर सकें, साथ-साथ में घोर नरक का जीवन व्यतीत करें। अथवा उनको कुछ वर्ष मनुष्य जाति की सुविधाओं से वंचित रखा जाए। जिससे उन्हें अपनी काली करतूतों से घृणा अनुभव हो। 
        कहा जाता है कि बड़े-बड़े अपराधियों को जेल में भी वो सभी सुविधाएं दी जाती हैं। जो एक आम इंसान को घर में मिलती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जितनी बड़ी शिफारिश उतनी ही अधिक सुविधा।
        यह सब कार्य जेल अधिकारियोंं की मिली-भगत से चलता है या घूस देकर उनको खरीद लिया जाता है। जिससे अपराधी बार-बार अपराध करता रहता है। चूंकि उसे मालूम होता है कि उसे जेल में बेहतर से बेहतर सुविधा मिल जाएगी। जिसके कारण अपराध का ग्राफ दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है।
       बो दिन दूर नहीं जब भारत में अपराधियों की संख्या चरम सीमा को ही पार नहीं कर जाएगी अपितु इमानदार व्यक्ति समाप्ति की कगार पर चले जाएंगे।
        अतः इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए जेल अधिकारियों को सूचित कर देना चाहिए कि जो जेल अधिकारी नियम के विरुद्ध अपराधियों को सुविधा देगा।उसे सबसे बड़ा अपराधी घोषित कर दिया जाएगा और सजाए मौत तक दी जाएगी।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हमारी देश में काफी समय से लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो रही हैं।जिस भी लीडर को बहुमत मिल जाता है वो राज -पाट मिलते ही सेवक की जगह मालिक बन जाता है और अपनी ही नीतियों को चलाता है। सारी अफसर शाही उस की अंगुलियों के इशारे पर नाचती है। ऐसे ही लीडर लोगों की जुबान बंद करवाने के लिए भी अपने गुर्गे पाल लेते हैं। जब कभी ये गुर्गे किसी इमानदार अफसर के द्वारा पकड़े जाने पर जेल में डाल दिए जाते हैं तो जेल में भी इन पर इनके आकाओं की छत्रछाया बनी रहती है। जेल में भी इन के आका इनको वी.आई.पी. सुख सुविधा उपलब्ध करवाते हैं। उलटे जिस अफसर ने इन्हें जेल में डाला होता है, उस का तबादला कर दिया जाता है या जुबान बंद रखने की धमकियाँ दिलवाई जाती हैं। मरता क्या नहीं करता के अनुसार वो ही जेल अधिकारी फिर अपराधियों को सुख सुविधा उपलब्ध कराने लगता है। ऐसे जेल अधिकारियों को सजा तो मिलनी ही चाहिए परन्तु इस की तह तक जाना भी जरूरी है कि इस सब के पीछे किस का हाथ है और  साथ में उस को भी कड़ी सजा देनी चाहिए क्योंकि कानून की नजर में सब  बराबर हैं।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप  - पंजाब 
जरुर इनको भी सजा होनी चाहिए।अपराधियों को  जेल में सुख सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले अधिकारी भी उन अपराधियों से कम दोषी नहीं, क्योंकि वो ये सब अपने लिए सुविधाएं जुटाने के लिए लालच में करते हैं और जाने अंजाने उन अपराधियों के अपराध में सहयोगी की भूमिका निभा रहे होते हैं। इसके पीछे राजनीतिक दबाव,कमजोर इच्छा शक्ति,भय और असुरक्षा की भावना भी कारण होते हैं। अपराधियों का राजनीतिकरण अथवा राजनीति का अपराधीकरण,  इस प्रवृत्ति को बढ़ाने में सहायक हुआ। पुलिस अधिकारी को पता है कि आज जो इस जेल में उसका कैदी है,कल माननीय बनकर उसकी नौकरी के लिए खतरा बन सकता है। सिस्टम की खामी है यह। अपराधियों के आसानी से माननीय बनने के अनेक उदाहरण है,कुछ एक नाम लेना बेमानी होगा।जब जनता इन्हें नहीं चुनती तो इनके आका, हाईकमान बेकडोर से मनोनयन करके,करके,या इनके ही जैसे माननीयों की सहायता से सदन में पहुंचाकर उनको माननीय बना देते हैं। बात कहां से चली और कहां आ गयी। नौकरी वाले व्यक्ति पर विभिन्न दबाव होते हैं, मजबूरी होती है।फिर भी एक बार ऐसे अधिकारियों को सजा मिलनी शुरू हो जाए तो इस स्थिति में सुधार हो जाएं। अपराधियों के माननीय बनने को रोकने के लिए भी दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जो फिलहाल तो नजर नहीं आती।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
           अपराधियों को जेल में सुख सुविधा प्रदान करने वाले जेल अधिकारी अपराधियों से भी अधिक अपराधी है। उनके संरक्षण की वजह से अपराध को फलने फूलने में मदद मिलती है। इसलिए उन्हें भी अपराधियों के समान ही सजा मिलनी चाहिए ताकि न्याय प्रणाली सही ढंग से कारगर हो सके एवं जनता के समक्ष एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत हो।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जेल में बंद कैदियों और बंदियों के लिए जेल मैनुअल के अनुसार बहुत सारी सुविधाएं दी गई है। इसके बावजूद जेल अधिकारी अपराधियों को जेल में बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं जो गैरकानूनी है। ऐसे जेल अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि जेल में बंद अपराधियों का मनोबल उचा ना हो। जेल में बंद अपराधियों के लिए सरकार के अनुसार नाश्ता, खाना, नित्य क्रिया कर्म करने की सुविधा दी गई है। जेल मैनुअल के अनुसार अपराधियों को शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन उपलब्ध कराए जाते हैं। पर्व त्योहार के मौके पर उन्हें परिवार और रिश्तेदारों सहित अपनों से मिलने की छूट दी जाती है। रक्षाबंधन में बहने जेल में बंद बंदियों को राखी बांधने की सुविधा मिलती है। इसके साथ है जो सजायाफ्ता कैदी हैं उनको काम दिया जाता है, जिससे उनकी आमदनी बढ़ती है। अभी करोना काल में जेल में कैदी मस्त बना रहे हैं, जो समय की मांग है। जो अपराधी ऊंची पहुंच वाले होते हैं। उन्हें जेल अधिकारी हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। जेल में मोबाइल फोन, घर और होटल का खाना, नशे के लिए शराब, गांजा, सिगरेट, गुटका यह सारी सुविधाएं मिलती है, जिसके बदले में जेल अधिकारियों को अपराधियों द्वारा मोटी रकम नजर आने के तौर पर मिल जाती है। पैसे के लालच में अधिकांश तो जेल अधिकारी अपराधियों को हर सुख सुविधा उपलब्ध कराते हैं जो गैरकानूनी है। ऐसे ही प्लस जेल अधिकारियों के कारण अपराधियों को हर तरह की सुख सुविधाएं मिलती है। वह जेल को जेल नहीं बल्कि होटल समझते हैं। उन्हें उस सारी चीजें मिलती है। जिसकी वह मांग करते हैं। अपराधियों को इस तरह से सुविधा देने वाले ऐसे जेल अधिकारियों के खिलाफ जांच कर दोषी पाए जाने पर उनका निलंबन से लेखक बर्खास्तगी तक की जानी चाहिए। जेल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होने से कानून की रक्षा तो होगी ही साथ में अपराधियों पर नकेल भी क्सा रहेगा।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
  आये दिन जेलों से अपराधियों द्वारा दारू पीकर तमंचे पर डांस और मौज मस्ती करते हुए वीडियो वायरल हो रहे हैं। ये सारे करतूत पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से होते हैं।आखिर उन तक कैसे दारू बोतल, मोबाइल और पिस्टल तक पहुंच जाते हैं। इन खूंखार अपराधियों के डर से या कभी रिश्वत के लालच में पुलिस अधिकारी मदद करते हैं। कभी-कभी राजनीतिक आकाओं के आदेश पर भी पुलिस अधिकारी मजबूरी में मदद करते हैं। यह तो निष्पक्ष जांच के द्वारा ही पता चल सकता है कि आखिर अपराधियों की मदद किसके द्वारा और किस तरह से की जा रही है।
   अपराधियों को जेल में सुख-सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों को सस्पेंड करने के साथ-साथ जुर्माना भी ठोकना चाहिए। जो अधिकारी रिश्वत लेकर कानूनी नियम को अपना जागीर समझने लगे, अपराधी को पनाह दे, जेलों में सुख सुविधा प्रदान कर उसे प्रोत्साहित करने जैसा घृणित कार्य करें उन्हें भी अपराधी घोषित कर जेल में डाल देनी चाहिए ताकि दूसरे अधिकारी के मन में भय पैदा हो। रिश्वत के लालच में अपराधी का साथ न दें। कर्मचारियों और अधिकारियों का समयानुसार स्थानांतरण भी होते रहना चाहिए। एक जगह ज्यादा दिन टिके रहने पर अपराधियों से सांठगांठ होने की संभावना रहती है। पुलिस अधिकारी मनमानी न करें इसके लिए सरकार को भी सख्त रुख अपनाने की जरूरत है।
‌- सुनीता रानी राठौर 
                   ग्रेटर नोएड - उत्तर प्रदेश
आज के परिपेक्ष में यह विषय बहुत विचारणीय है.. हम जिस देश और राष्ट्र में रहते हैं वहां के नागरिकों की सुरक्षा का दायित्व सरकार का होता है , इसके लिए सरकार की तरफ से व्यवस्थाएं बनाई गई है न्याय व्यवस्था और कानून व्यवस्था जिसका कि हम सभी नागरिक को पालन करना पड़ता है।
हमारे भारतीय संविधान में सभी को जीवन जीने रहने निवास करने नौकरी व्यापार करने का  और अपने विचारों को रखने भाषण देने की स्वतंत्रता भी बनाई गई है परंतु ऐसा कोई कार्य ना करें जो देश के लिए अहितकर हो (या देशहित ना निहित हो)
और मानव जीवन के लिए घातक और खतरा उत्पन्न करें, ऐसे में पुलिस विभाग का दायित्व बहुत अहम किरदार निभाता है इस विभाग में जाने वाले सम्मिलित चयनित  अधिकारियों को नियुक्ति के बाद प्रशिक्षण दिया जाता है और शपथ दिलाई जाती है कि वह देश और राष्ट्र के हित में कार्य करेंगें
पुलिस विभाग के कर्मचारी उस समय ऐसा शपथ लेते हैं तो निश्चित ही उन्हें अपना कर्तव्य हमेशा याद रखना चाहिए क्योंकि देश की जनता अपनी सुरक्षा और न्याय के लिए ही उनके पास जाती है। जनता का विश्वास होता है पुलिस विभाग पर विश्वास को बनाए रखने के लिए इनका पूर्ण दायित्व होता है यह इमानदारी पूर्वक कर्तव्य निष्ठा के साथ अपनी भूमिका का निर्वाह करें ।
यदा-कदा अपवाद स्वरूप यदि कोई अधिकारी अपने कर्तव्य से भटकता है और अपराधियों को सुख सुविधा देता है तो निश्चित ही सरकार उस विभाग से संबंधित जेल अधिकारी को ड्यूटी से कुछ समय के लिए हटा देना चाहिए।
और सभी मामलों की फिर से जांच की जानी चाहिए। सही तथ्यों का आकलन किया जाना चाहिए।
जिससे कि देश के नागरिकों को पुलिस विभाग पर विश्वास और सुरक्षा की भावना बनी रहे और हम पुलिस विभाग पर गर्व कर सकें ।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
सुख सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों को कड़ी से कड़ी सजा भी कम है क्योंकि अपराधी का साथ देने वाला उससे बड़ा गुनाहगार होता है। किन्तु उनके उच्च अधिकारी भी पैसे के लालच में लिप्त होने के कारण छोटे लोगो की हिम्मत है।  यदि सजा का प्रथम प्रावधान बड़े अधिकारियों को कर दिया जाए तो अपराधियों को सुख सुविधा देने वाले जेल अधिकारियों की हिम्मत अपने आप खत्म हो जाएगी।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
जेल में ही सभी अपराधियों को एक समान सुविधा देने का इंतजाम ही होना चाहिए जेल अधिकारियों को तो उन्हें सुविधा अपराधियों के डर से देनी पड़ती है क्योंकि अपराधियों का परिवार भी समाज में रहता है और अपराधियों के कई गुंडे भी समाज में रहते हैं उनके परिवार को खत्म करने जैसी धमकी देकर जेल में ही अपना राज चलाते रहते हैं। और मनमानी सुविधाएं जेल में ही प्राप्त करते रहते हैं ।
अतः जेल अधिकारियों को यह अधिकार मिलने चाहिए अपराधियों के कक्ष में एक  सीसीटीवी कैमरा उनकी गतिविधियों की रिकॉर्डिंग  के लिए रखना चाहिए ,जो जेल अधिकारी अपराधियों के गतिविधि की रिकॉर्डिंग में ही सहयोग  न करें उन्हें सजा के तौर पर प्रोन्नति से वंचित रखना चाहिए।
या अपराधियों को ही अपने ग्रह नगर से बहुत दूर जेल में रखना चाहिए  । तथा जेल में सुख सुविधा देने का इंतजाम धीरे धीरे बंद होने का शक्ति से कार्य होना चाहिए।
                    - रंजना हरित                
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश

 " मेरी दृष्टि में " जेल अधिकारी कोई भी हो , अपराध किया हैं तो सजा अवश्य मिलनी चाहिए । सरकार को सरकारी अधिकारियों के खिलाफ विशेष कानून बनाने चाहिए । जिसमें नौकरी छिनने से लेकर सम्पत्ति जब्त करने तक का नियम होना चाहिए । वर्तमान में जो नियम हैं । वह नाममात्र के हैं । इससे सरकारी अधिकारियों में डर का वातावरण नहीं पैदा होता हैं ।
                                                       - बीजेन्द्र जैमिनी   
सम्मान पत्र 




Comments

  1. जेल में रहने वाले अपराधी तत्वों को संरक्षण देने वाले जेल अधिकारियों पर दबाव डालने वालोंं को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए क्योंकि उनके संरक्षण में अपराध फल फूल रहा है। वास्तव में तो जेल अधिकारी उनके मोहरे मात्र होते हैं।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?