आज के परिवेश में भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेश की प्रासंगिकता क्या है ?
भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेश जीवन पर आधारित है। जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाता है । ये जीवन का मूल मंत्र है । आज के युग में भी उपयोगिता कम नहीं हुई है । यहीं " आज की चर्चा " का मुख्य विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
आज के परिवेश में भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए गीता में उपदेश, उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रसांगिक हैं जितने उस काल में थे। उन्होंने मानव जाति को परंपराओं और मर्यादाओं की बेड़ियों से मुक्त होकर जीवन जीने का उपदेश दिया। कर्म को प्रधानता दी। कर्म को ही धर्म बताया। बिना फल की आशा के कर्म करने की शिक्षा दी।
सामाजिक व व्यावहारिक परेशानी हो या भावनात्मक तकलीफ गीता में हर समस्या का समाधान है। कर्म वही करें जिसकी ज्ञान इजाजत देता है। इस तरह से व्यक्ति सही-गलत और पाप- पुण्य के बीच का फर्क आसानी से समझ सकता है।
वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता कुछ इस तरह है कि व्यक्ति को ईश्वर और धर्म को जानने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में वह कभी किसी भी गलत दिशा में नहीं जा सकता। उनके सफल होने की संभावनाएं अधिक होगी।
जिस तरह से श्रीकृष्ण ने धर्मसंकट में पड़े अर्जुन को उपदेश दिया कि अधर्म के रास्ते पर अगर गुरु हैं या अपने पूज्यजन तो उनका संहार करना अधर्म नहीं कहलाता ठीक उसी तरह आज भी जिस तरह सत्ता पक्ष ,विपक्ष या उच्च पद पर बैठे लोग भी जो गलत नीतियों पर चल रहे हो, भ्रष्टाचार में लिप्त हो, बलात्कारी हो, अगर उन्हें हम संरक्षण देते हैं तो हम भी अधर्मी ही कहलाएंगे। उनका संहार करना भी हमारा धर्म है। निष्पक्ष होकर पक्ष- विपक्ष सभी लोगों के गलत व्यवहारों के सजा का उचित प्रावधान होना चाहिए। अगर हम भगवान कृष्ण को मानते हैं तो हमें उनके दिखाए आदर्शों पर भी चलने की जरूरत है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
सदिया बीत गई। युग बदल गए मगर आज भी भगवान श्री कृष्ण के उपदेश हमें जीने की राह दिखाते हैं। जीवन जीने का नाम है हताश होकर हार मानकर बैठने का नहीं। हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना है। वर्तमान ही जीवन है।कल जो बीत गया है सर तुम बदल नहीं सकते और भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है कोई नहीं जानता। जो हैं बस वर्तमान ही है। यही गीता का सार है। मनुष्य अपने कर्म को अगर धर्म के अनुसार करता है तभी वह जीवन जी पाता है। विवेक और बुद्धि बल से ही विकट परिस्थितियों में निर्णय लिए जाते है जो वर्तमान के लिए कटु हो सकते हैं परंतु वही भविष्य में इतिहास के पन्नो पर दर्ज हो जाते हैं।
आज कोरोना काल में हर कोई परेशान हैं। रोजगार छिन्न गए हैं। वैश्विक महामारी ने जीवन की रूपरेखा बदल दी है परंतु फिर भी जीवन चलता है। समय कभी रुकता नहीं है। और आज जो समय के अनुसार खुद को तैयार कर सामंजस्य स्थापित कर लेगा वही सफलता की राह पर कदम रख सकता है।
समय हमें सही दिशा में कर्म करने को प्रेरित करता है। यानि वर्तमान को संवार कर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। कोरोना काल हो या अन्य कोई भी परिस्थिति, गीता के उपदेश हर युग मे हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। यह शाश्वत सत्य है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
आज के परिवेश में भगवान श्री कृष्ण का उपदेश की प्रासंगिकता पर यह चर्चा है गीता के उपदेश में भगवान श्री कृष्ण ने कई मुख्य बातों पर विशेष चर्चा की है पहली बात है जीवन कर्म प्रधान है कर्म करना मानव जाति का एक धर्म है और परिणाम या फल के विषय में सोचना नहीं है
दुसरी गीता के माध्यम से जीवन जीने की कला को भगवान श्री कृष्ण ने दर्शाया है
तीसरी बात यह है कि धनी निर्धन ऊंच-नीच जाती पाती का विषय निरर्थक है
कर्तव्य को सर्वोपरि माना गया धर्म अधर्म के बीच एक लंबी रेखा खींची गई है पारिवारिक रिश्तो को निभाने के लिए भावुकता संवेग को महत्व दिया है लेकिन धर्म को कर्तव्य को सर्वोपरि माना गया श्री कृष्ण अर्जुन को बार-बार यह उपदेश दे रहे हैं की युद्ध के भूमि में रिश्तो का महत्व नहीं है युद्ध धर्म और अधर्म के बीच जो चल रहा है उसमें धर्म की जीत होनी ही है अपना कर्तव्य करते जाओ
गीता का उपदेश है परिवर्तन संसार का नियम है इतिहास बिंदु पर परिस्थिति जब पहुंच जाती है तो उसमें परिवर्तन होना निश्चित होता है वर्तमान परिवेश भी शायद इसी परिवर्तन का एक जीता जागता प्रसंग दिखाई पड़ रहा है पूरे भूमंडल में किसी न किसी तरह से एक परिवर्तन होता जा रहा है वर्षों से जो काम पूरे नहीं हुए थे वह पूरे हो रहे हैं चकाचौंध की दुनिया इतनी चकाचौंध हो गई थी जिसके कारण दुनिया बिखरने की स्थिति में पहुंच रही थी फल स्वरुप एक परिवर्तन का माहौल जाग गया है
इसलिए वर्तमान परिवेश गीता के उपदेश या श्री कृष्ण के उपदेश के साथ बिल्कुल प्रासंगिक है
कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
उनके उपदेश के अनुसार ,बिना सोचे विचारे अपनी राय कहीं भी प्रकट नहीं करनी चाहिए ।संभव है कि मित्र के भेष में कोई शत्रु ही हो ।
यदि आपके बोलने व कार्य करने से समाज का भला हो रहा है तो वह कार्य करने से कदापि न हिचकें ।
अन्याय का प्रतिरोध तो अवश्य करें।
यह सत्य है कि सभी लोग सभी तरह की परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाते ।
यदि आप अच्छे उद्देश्य से कोई कार्य करना चाहते हैं तो कोई कार्य करना चाहते तो सहयोग में कई सारे कदम अवश्य उठेंगे ।
यदि साहस और समूह का साथ मिले तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है ।
पानी की हजारों धारा जब एक साथ गिरती है तो उस पर सामूहिक शक्ति के बल पर ही नदियां और तालाब भरते हैं।
श्री कृष्ण ने फल की चिंता किए बिना कर्म करने की शिक्षा दी।
तत्काल सफलता न मिले तो भी सच्चे मन से किया गया कार्य निष्फल नहीं होता ,समय आने पर किसी न किसी रूप में अच्छा परिणाम सामने अवश्य आता है।
श्री कृष्ण का अनुसरण किया जाए तो कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक व सफल बना सकता है।
समाज में जब जब प्रेम, त्याग और परोपकार जैसे मानवीय गुणों का ह्रास होता है ,अन्याय, अत्याचार,अधर्म जैसे अवगुणों की वृद्धि होने लगती है तो इससे संपूर्ण मानवता प्रभावित होती है।लेकिन बुराइयां अधिक समय तक नहीं टिकती यह अच्छाई से एक दिन अवश्य हार जाती हैं।
यह जीत सर्वश्रेष्ठ मानव सुनिश्चित करते हैं जो ईश्वर के प्रतिनिधि माने जाते हैं ।
इन्हीं को अवतार कहा जाता है, इन्ही को भगवान माना जाता है।
जब धरती पर कंस ,जरासंध, दुर्योधन जैसे दुष्ट राजाओं के अत्याचार बढ़े ,लोलुपता ,दुष्टता बढ़ी तो समाज को ऐसा महापुरुष को जरूरत हुई जो धरती पर जन्म लेकर अधर्मियों से धरा को मुक्त कर सके ।
मगध नरेश जरासंध छोटे छोटे राजा को कैद कर उनके राज्य हड़प लेता था ।
मथुरा के दुष्ट राजकुमार कंस ने बूढ़े पिता महाराज उग्रसेन को बंदी बना लिया था व स्वार्थपरता की हद तक जाने वाले दुर्योधन की घोर उद्दंडता चरम सीमा पर थी ।समाज में बुराइयां इतनी बढ़ गई थी उन दिनों सज्जन लोग भी खुद को सुरक्षित करने के लिए अत्याचारियों से संधि करने लगे थे। लोगों की रुचि गलत कार्यों में होने लगी थी ।अधर्म का नाश होने लगा था ।द्रोणाचार्य जैसे विद्वान और ज्ञानी भी अधर्मी कौरवों के पक्ष में हो गए थे।ऐसे घोर संकट की स्थिति में संपूर्ण समाज एक ऐसे महापुरुष की राह देख रहा था जो अधर्म का नाश कर पुनः धर्म की स्थापना करें।तभी लोगों की अभिलाषा भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण के जन्म के साथ पूरी हुई ।
भगवान श्री कृष्ण ने सुन्दर समाज की स्थापना की ।
गीता के माध्यम से उपदेश देकर विश्व में नव चेतना का नव प्राण का संचार किया जो आज भी प्रासंगिक है ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
आज 21 वीं सदी में श्रीकृष्ण भगवान जी के उपदेश प्रासंगिक हैं । आज से 5 हजार वर्ष पूर्व करुक्षेत्र की रणभूमि पर श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को युद्ध के लिए अग्रसर करने के लिए अपने मुखारविंद से गीता का अनमोल ज्ञान प्रवाह किया था । भारतीय संस्कृति , आध्यात्म जीवित हो गयाऔर पावन गीता का धार्मिक ग्रन्थ देश की विरासत , इतिहास बना और पूरा देश , विश्व का गीता मार्गदर्शन करती है । जीवन प्रतिपल आने वाले संग्रामों , संघर्षों के सामने खड़े रहने की शक्ति तो देता है और समस्याओं को समाधान भी देता है । का हल करने के सात्ज अवसर को अनुकूल करने
अदालतों में गीता पर हाथ रख कर पक्ष , प्रतिपक्ष के गवाह हाथ रखकर कसम लेते हैं । सच की रोशनी फैले ।कृष्ण सामाजिक , राजनैतिक , पारिवारिक , कूटनीति , आर्थिक , आध्यात्मिक आदि सभी क्षेत्रों में आज उनके उपदेश प्रासंगिक हैं । जहां धर्म है वहाँ भगवान कृष्ण हैं ।
आज देश , विश्व में झूठ , अन्याय , अधर्म का बोलबाला है । गीता धर्म , न्याय , सच कस मार्ग प्रशस्त करती है ।गांधी जी ने 150 वर्ष गीता की सार्थकता को अपने जीवन में आत्मसात किया ।
कृष्ण का संदेश मानवजाति के लिए श्लोक है -
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
अर्थात मानव कर्म करना ही तेरा अधिकार है ।तो फल की चिन्ता मत कर ।
कहने का मतलब यह है कि संपूर्ण मन को कर्म में लगा के सुफल प्राप्त कर सकता है।भगवान कृष्ण की बाल लीला से लेकर सारी रासलीलाएँ आज भी समाज के लिए प्रासंगिक हैं ।
जब कंस के द्वारा भेजी राक्षसी पूतना बाल कृष्ण को जहरीला दूध अपने स्तन से पिलाने लगी तो कृष्ण ने उसका स्तन खींच के वहीं मार दिया ।
आज समाज में , अस्पतालों में दूध पिलाने के बहाने नवजातों की अदला - बदली , चोरी हो जाती है । ऐसे राक्षसों के रैकेट को खत्म कर देना चाहिए ।
कृष्ण योगेश्वर हैं । कृष्ण ने ही स्वस्थ रहने के योग का सूत्रपात किया था । आज यही स्वास्थ्य चेतना का काम पूरे विश्व में बाबारामदेव और मोदी जी की योग क्रांति से हो रहा है ।
बचपन में कृष्ण अपने ग्वाल वालों के संग गेंद से खेल रहे थे तो गेंद जमुना में गिर गयी । कलिया नाग ने जमुना का जल जहरीला कर दिया था । कृष्ण ने कालिया नाग को मार के जमुना के जल को प्रदूषण मुक्त कराया ।
आज भारत में सभी नदियों को प्रदूषित इंसान किया है ।
जो हमारे जीवन का आधार और प्राण हैं । जल है तो कल है । हम नदियों में गंदगी न बहाएं । यह संदेश जन- मन माने ।
कृष्ण से अँधे धृतराष्ट्र ने महाभारत देखने के लिए दिव्य दृष्टि मांगी तो तो खुद न लेकर संजय को देने को कहा ।
संजय ने आँखों देखा हाल अपने राजा को बताया ।
आज इंरनेट से जानकारियों का पिटारा पलभर में दुनिया के सामने हैं ।
कृष्ण और गरीब सुदामा की मैत्री आज भी प्रासांगिक है । हमें अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति की समस्याओं को हल करें मित्र बनके ।
संदीपन गुरु जी से कृष्ण ने शिक्षा - दीक्षा ली थी । गुरु का सम्मान करते थे । आज की पीढ़ी अपने से बड़ों , माता - पिता शिक्षकों का सम्मान करें ।
अंत में मेरी 9 वीं पुस्तक दोहों में मनुआ हुआ कबीर के
दोहे कृष्णजन्माष्टमी के पर्व पर , प्रसंग पर सटीक हैं
आध्यात्म, योग के विश्व गुरु 64 कलाओं में सम्पूर्णता को समेटे हुए योगेश्वर श्री कृष्ण का विराट व्यक्तित्व का
लौकिक जगत में जन्माष्टमी का पर्व मानते हैं जो कि हमें सदियों से सदियों तक अधर्म पर धर्म की विजय दिखाता रहेगा ।
दोहों में जन्माष्टमी
कृष्ण सम हो मानवता , है गीता का सार ।
जो इसको है धारता , पूजे है संसार ।
तेरा मेरा मत करो , करो कृष्ण का ध्यान ।
तर जाता नर जन्म है , ले के गीता ज्ञान ।
बिन प्रेम के जुड़े नहीं , माया का संसार ।
जब लगन श्याम की लगे , होता बेड़ापार ।
जन्म अष्टमी कृष्ण की , मनाय जग त्योहार ।
कृष्ण झांकियों में सजे , मंदिर , घर ओ द्वार ।
एक अर्ज करूँ तुम से , रहूँ तुम्हारे संग।
देखूँ लौकिक जगत में , लीलाओं के रंग ! ।
डॉ मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
परिवर्तन कुदरत का नियम है। परिवर्तन से ही हम पत्थर युग से कंप्यूटर युग में आए हैं। मनुष्य का जीवन जितना सुख सुविधाओं से भरपूर है उतना ही बैचैनी और दुखों से भर हुआ है। आज मनुष्य मुकाबले बाजी में अपना संतुलन खो चुका है। जिससे घर-परिवार, समुदाय के झगड़े और देश की सीमाओं के झगड़े बढ़ रहे हैं।
आज के परिवेश में भी भगवान श्री कृष्ण जी के उपदेश उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे।उन्होंने मानव जाति को परंपरा और मर्यादा की बेड़ियों से मुक्त होकर जीवन जीने का उपदेश दिया। भारत कॄषि प्रधान देश है ।पशु-धन,पर्यावरण, और कर्म करना आज भी प्रासंगिक है। भौतिक वादी युग में संगीत और विविध कलाएँ आज के युग में अनिवार्य हैं। श्री कृष्ण जी ने यही जीवन जीने की कला उस युग में सिखाई थी।मानव को अपने भीतर और बाहर संतुलन बनाकर काम करने की आवश्यकता है जिससे अहंकार, लोभ,मोह और ईर्ष्या से दूर हो कर अच्छा मानव बना जा सके ।जब कर्म, फल की इच्छा के बिना किया जाए तो उस से आध्यात्मिकता बढ़ती है और मानव अच्छा सामाज बनाने में सहायक होता है। इस लिए आज के परिवेश में भी भगवान श्री कृष्ण जी के उपदेश की प्रासंगिकता उतनी ही है।
- कैलाश ठाकुर,
नंगल टाउनशिप - पंजाब
भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का संग्रह श्रीमद् भागवत गीता में हैं महाभारत के दौरान अर्जुन जब युद्ध से उपराम होने लगा तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देकर उसकी मनःस्थिति पर ऐसी छाप छोड़ी कि युद्ध से भाग रहे अर्जुन ने युद्ध करना स्वीकार ही नहीं किया बल्कि विजय भी हासिल की । तब से लेकर अब तक दिये गये उपदेशों को सार्वभौमिक रूप से सभी ने स्वीकार किया है वर्तमान में भी ये उपदेश उतने ही प्रासंगिक हैं जितने महाभारत युद्ध के समय में । श्रीकृष्ण के दिए उपदेशों का सार बीते कल और आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो होना है वही होगा। जो होता है, अच्छा ही होता है, इसलिए वर्तमान का आनंद लो।कोरोनावायरस के प्रकोपों से उत्पन्न परिस्थितियों में यह जनधारणा बलवती हुई है कि जो है उसका आनंद लो कल का क्या पता है क्या होगा ।वर्तमान जीवन में उत्पन्न कठिनाईयों से लडऩे के लिए मनुष्य को गीता में बताए ज्ञान की तरह आचरण करना चाहिए। इससे वह उन्नति की ओर अग्रसर होगा । श्रीकृष्ण जी के उपदेशों का सार है- क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए , अदृश्य किन्तु महाशक्तिशाली मन पर नियंत्रण, दृष्टिकोण में बदलाव, स्वआत्म मंथन, कल्याणकारी सोच को उत्पन्न करना, निष्काम कर्म करना फल की इच्छा न रखना और ऐसे काम न करना जो प्रकृति के विपरीत कर्म हो इन्हें करने से मनुष्य तनाव युक्त होता है। यही तनाव मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। केवल धर्म और कर्म के मार्ग पर ही तनाव से मुक्ति मिल सकती है यही श्रीकृष्ण के उपदेशों का सार तत्व है ये वर्तमान में भी और जब तक मनुष्य धरती पर रहेगा समाधान देते रहेंगे ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
द्वापर युग में कृष्ण का अवतार, दूसरे अवतारों में से महत्वपूर्ण रहा हैं, जहाँ उनके द्वारा विभिन्न लीलाओं के माध्यमों से सामूहिकताओं में परस्पर प्रेम, सदभावनाओं को पथ-प्रदर्शित कर एकता का संदेश देने में अहम् भूमिका निभाई हैं। महाभारत के समय युद्ध के मैदान में अर्जुन ने जब अपने-अपनों देखा, उसका मन युद्ध से झंझोर उठा और धनुष को रथ में रख, बैठ गया, तब श्री कृष्ण ने उसे सांत्वना देने के उपदेश से गीता रुपी 1 से 18 अध्याय तक विभिन्न प्रकार के वाक्यांशों से परिपूर्ण जो व्याख्यान प्रस्तुत किया। वहीं आज जनमानस के बीच एक रास्ता रुपी बन गया हैं, जिसे सुधी पाठक,गणमान्य जन, पठन-पाठन कर अपने कार्यों को सम्पादित करने में प्रगति के सोपानों की ओर अग्रेषित हैं, जिनके एक-एक शब्दावलियों में रहस्यमय हैं। मृत्यु शय्या के समय अध्याय 11 तथा 18 का काफी महत्व हैं, जिसे पढ़ने और सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं, वैसे समस्त अध्याय आध्यात्मिकता दृष्टि से अपना एक महत्व हैं। आज कलयुग चल रहा हैं, आज के परिवेश में श्री कृष्ण जी के उपदेश की प्रासंगिकता को वृहद स्तर पर जनमानसों के बीच प्रस्तुति करने से और सार्थकता हो सकती हैं। श्री कृष्ण जी के उपदेश को गीता ग्रंथ में अनेकों पुस्तकों में प्रकाशित जाता रहा हैं, गीता प्रेस एक उदाहरण हैं। आज कालांतर में इन्टरनेट के माध्यमों से काफी प्रचार-प्रसार होता जा रहा हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेशों की आज के परिवेश में पहले से भी अधिक प्रासंगिकता है। उपदेशांे को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिभाषित करने का यहां प्रयास किया गया है ताकि प्रासंगिकता सिद्ध हो सके। अनुशासन हमारे जीवन का ध्येय होना चाहिए। स्वयं को आत्म-ज्ञान से बोधित कर हमें अनुशासित रहना चाहिए। हमें अपने क्रोध पर काबू करना आना चाहिए। क्रोध भ्रम को जन्म देता है जिससे बुद्धि व्यग्र होती है और तर्क नष्ट हो जाता है। यह अंततः हमारे पतन का कारण बनता हैै। ज्ञान और कर्म को एक ही रूप में देखना चाहिए तथा हमें अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि हमारा मन अशान्त रहता है और उसे अभ्यास से ही नियंत्रित किया जा सकता है। हमारे नियंत्रण से बाहर मन हमारा शत्रु है। विश्वास एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हम अपने विश्वास से निर्मित होते हैं क्योंकि हम जैसा विश्वास करते हैं वैसे ही बन जाते हैं। हम कुछ भी बनने का लक्ष्य रखें और यदि विश्वास के साथ उस पर चिंतन करें तो हम वह बन सकते हैं। हम यह भी याद रखें कि हमें हर कर्म का फल मिलता है। हमारा कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता, फल चाहे जैसा भी हो। सेवा भाव बहुत अच्छी बात है। दूसरों की मदद करना बहुत अच्छी बात है। पर इसके योग्य बनने के लिए हमें पहले अपना कार्य पूर्ण करना होगा तभी हम प्रेरित होकर दूसरों के कार्य भली-भांति कर पायेंगे। यहां भी हम जो कर्म करें उसे पूर्ण आनन्द के साथ करें, उसमें पूर्ण रुचि लेकर करें। अधूरे मन से किया गया कार्य विफल होता है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
गीता का ज्ञान जीवन है गीता सच्चे अर्थों में जीने की कला है
श्रीकृष्ण हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की पहचान है। कोई भी चीज अपने एक नियत समय के बाद अपनी प्रासंगिकता खो देती है या उसके स्वरुप में बदलाव आ जाता है। खुद कृष्ण ने ही कहा है- 'परिवर्तन संसार का नियम है।' लेकिन कृष्ण की शिक्षाएं कृष्ण का जीवन और कृष्ण की गीता आज भी हमारे लिए उतना ही प्रासंगिक है। कृष्ण मर्यादाओं के बोझ से मुक्त थे। वह सुसंस्कृत ढंग से उन्मुक्त जीवन जिया और मानव जाति को परंपराओं और मर्यादाओं की बेड़ियों से मुक्त होकर जीने का उपदेश दिया।
आज भारत में सशक्त लोकतंत्र होने के बावजूद लोग भ्रष्ट नेताओं और राजाओं (ए राजा) से त्रस्त हैं। लोगों को भ्रष्ट सत्ताधीशों, मठाधीशों और बलात्कारियों से छुटकारा चाहिए। उन्हें 56" के सीने वालों की दरकार है। 56 इंच अर्थात चौड़ी छाती वाले। अर्जुन ने कृष्ण को कुरुक्षेत्र में चौड़ी छातीवाले कहकर भी संबोधित किया है।
कृष्ण के शुरुआती जीवनकाल से ही हम बहुत कुछ सीख सकते है। उनके मनमोहक बालरुप से शिशु-मृत्युदर और बच्चों के कुपोषण पर काम करने की प्रेरणा मिलती है। उन्हें गाय बहुत पसंद थी। भारत एक कृषि-प्रधान देश है। गाय का इसमें बहुत बड़ा योगदान है। एक गाय दूध, दही, मक्खन, पनीर और घी के अलावा भी बहुत कुछ देती है। गाय का बछड़ा जब बैल बन जाता है तो इससे खेत की जुताई करते हैं। आज भी छोटे किसान खेत जुताई और माल ढुलाई (बैलगाड़ी) के लिए बैलों पर ही निर्भर है। इसके अलावा ऑर्गेनिक खेती के लिए भी इन्हीं पशुओं पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके गोबर से किसान कंपोस्ट खाद और ऑर्गेनिक खाद बनाते है।
गीता का ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। गीता को लेकर आज भी बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में शोध हो रहे हैं। गीता हमें जीवन को भरपूर जीने की प्ररणा देती है, कर्मयोग की शिक्षा देती है। हमारे लिए जीवंत गुरु, मार्गदर्शक और पथप्रदर्शक का काम करता है। यह हमारे लिए एक संविधान की तरह है जो कर्तव्यों के साथ-साथ जिम्मेदारियों का भी ज्ञान कराती है। वह हमें अन्याय के खिलाफ लड़ने की भी प्रेरणा देते हैं। आज हम जहां भी कुछ अपने और दूसरों के साथ गलत होते देखते हैं उसका विरोध करने के बजाय हम अपने जिम्मेदारी से भागने की कोशिश करते हैं।
गीता के माध्यम से कृष्ण ने अर्जुन को अनासक्त कर्म यानी 'फल की इच्छा किए बिना कर्म' करने की प्रेरणा दी। इसके पीछे का मूलभाव यह है कि हम यदि फल की इच्छा किए बिना काम करते रहें तो विभिन्न तरह की टेंशन-फ्रस्टेशन से बच सकते हैं।
संगीत और कलाओं का हमारे जीवन में विशिष्ट स्थान है। कृष्ण ने मोरपंख और बांसुरी धारण करके कला, संस्कृति और पर्यावरण के प्रति अपने लगाव को दर्शाया। इनके जरिए उन्होंने संदेश दिया कि जीवन को सुंदर बनाने में संगीत और कला का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
कमजोर और निर्बल का सहारा बनने की सीख कृष्ण से ले सकते हैं। निर्धन बाल सखा सुदामा हो या षड्यंत्र के शिकार पांडव, श्रीकृष्ण ने सदा निर्बलों का साथ दिया और उन्हें मुसीबत से उबारा।
गीता के उपदेश जीवनदर्शन हैआज भी उसकी प्रसांगिकता उतनी ही उपयोगी है जैसे पहले थी गीता कर्मों की व्याख्या है कर्म ही हमारे जीवन का मूल्य है
कर्म सही हो मानव के तो सब कुछसही चलता है
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
भगवान श्री कृष्ण भारतीय संस्कृति की पहचान है उनका जीवन उनकी शिक्षा और गीता आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थी समय के साथ साथ हर चीज में सुधार की आवश्यकता रहती हैं परंतु गीता आज भी संविधान की तरह से है और जीवन के लिए गुरू व पथ प्रदर्शक का काम करती है श्री कृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षा मर्यादाओं के बोझ से परे थी परंतु उन्होंने सुसंस्कृत ढंग से अपने जीवन और कर्म का निर्वाह किया हमेशा निर्बल का सहारा बनने की प्रेरणा दी अधर्म पर धर्म की स्थापना पर बल दिया उन्हें गाय बहुत अधिक प्रिय थी उन्होंने यह भी समझाया कि गाय से हमें दूध के अतिरिक्त और बहुत कुछ भी मिलता है उसके बछड़े खेती में काम आते हैं जिस से प्राप्त उनके द्वारा हम जीवन यापन करते हैं उन्होंने मोर पंख और बांसुरी का उपयोग करके यह समझाया कि पर्यावरण हमारे लिए कितना जरूरी है और संगीत एवं कला का जीवन में बहुत महत्व है निष्काम कर्म की बात करते हुए उन्होंने यह समझाया कि ऐसा करने से हम सब चिंताओं से परे रहते हैं और अपने कार्य को ठीक ढंग से कर पाते वास्तव में उनकी शिक्षा उनके उपदेश और गीता अभी भी उतने ही प्रासंगिक है जितनी उस समय थी परंतु हम ही उस पर चलना नहीं चाहते
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
भगवान श्री कृष्ण हमारे सांस्कृतिक मूल्य की पहचान है ।कोई भी चीज अपने एक नियत समय के बाद अपनी प्रासंगिकता खो देती है। श्रीकृष्ण खुद कहा है:- परिवर्तन संसार का नियम है।
लेकिन श्री कृष्णा जी ने गीता के माध्यम से जो उपदेश दिए हैं वह आज भी प्रासंगिक है, समाज में प्रेम त्याग और परोपकार जैसे मानवीय गुणों का हव्वास होता है अन्याय-अत्याचार जैसे दुर्गुणों के वृद्धि होने लगती है।
लेकिन बुराइयां अधिक समय तक टिकती नहीं है और बाद मे अच्छाई की जीत होती है।
राजनीतिक सामाजिक धार्मिक कला आदि कई क्षेत्रों में कार्य करने वाले को सन्मार्ग पर चलने के लिए सुझाव दिए हैं।
भगवान श्री कृष्ण अपने कार्यों के माध्यम से आम जनों को अन्याय का प्रतिशोध करना सिखाया शान से जीना सिखाया और प्यार से रहना सिखाया।
फल की चिंता किए कर्म करने की शिक्षा दी तत्काल सफलता नहीं मिले लेकिन सच्चे मन से किया
गया कार्य निष्फल नहीं होगा।
उनके उपदेशों का अनुसरण किया जाए तो कोई भी व्यक्ति उनकी तरह महान बन सकता है।
लेखक का विचार:- भगवान श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से जो उपदेश दिए हैं वह आज भी प्रासंगिक है, बिना सोचे विचारे अपनी राय कहीं प्रकट नहीं करना चाहिए संभव है कि मित्र के बीच में कोई शत्रु है।
अगर अच्छे उद्देश्य से काम करना है तो जरूर करें तो साहस,समूह और साथ मिलेगा। *असंभव को संभव*किया जा सकता है।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
गीता का उपदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया जो आज के परिवेश में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना की उस समय अर्जुन को दिया l गीता सब शास्त्रों का सार है l
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन "ही गीता का मूल मंत्र और शिक्षा है l मनुष्य जीवन परम् सौभाग्य से चौरासी लाख योनियों में से श्रेष्ठ है और जीवन में श्रेष्ठ कर्म की प्रधानता है l इस संसार में मनुष्य कर्म करे और फल की चिंता प्रभु पर छोड़ दे l निष्काम कर्म करे l प्रश्न उठता है निष्काम कर्म मनुष्य कैसे करे? कर्म करेगा तो फल प्राप्ति की इच्छा रहती ही है l लेकिन जब एक डॉक्टर मरीजों की सेवा करता है तो निष्काम भाव से सभी को दवा देता है, यह निष्काम भाव है वही यदि वह अपने पुत्र का इलाज़ करता है और मृत्यु हो जाती है, वह बिलखता है, यह उसका मोह है l अतः कर्म करते हुए हमें आगे बढ़ना है भाग्य के भरोसे नहीं बैठना है l
गीता नित्य नवीन जीवन पैदा करने वाली तथा मनुष्य में मनुष्यत्व का भाव लाने वाली है l इसमें गागर में सागर की भाँति ज्ञान, वैराग्य, योग, सद्गुण, सदाचार आदि अध्यात्म विषय प्रासंगिक तो है ही, इसके सिवा शारीरिक, बौद्धिक, व्यावहारिक तथा नैतिक शिक्षा और उपदेश भरे हुए है जिनकी भौतिक परिवेश में आवश्यकता है l
शारीरिक शिक्षा से तातपर्य -शरीर विषय की उन्नति की शिक्षा lजिसमें अनुचित आहार विहार के त्याग और उचित सात्विक सेवन शारीरिक उन्नति हेतु आवश्यक है, जिसको अपनाने की आज आवश्यकता है l
गीता में कृष्ण ने बौद्धिक शिक्षा -अर्थात बुद्धि को तीक्ष्ण, निर्मल और सात्विक बनाने वाली शिक्षा l
जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक पृथक सब भूतों में एक अविनाशी परमात्म भाव को विभाग रहित समभाव से स्थित देखता है, वह ज्ञान सात्विक ज्ञान है l न्याय युक्त बर्ताव करना नीति है और इस विषय की शिक्षा नैतिक शिक्षा है l जिसकी आज बहुत आवश्यकता है l
पहले अध्याय के तीसरे से ग्यारवें तक द्रोणाचार्य के प्रति दुर्योधन के वचनों में राजनीति भरी है l जहाँ कही गीता में नीति की बात है हमें आज शिक्षा लेनी चाहिए l
हमारी शिक्षा नीति के तहत बालकों के पाठ्यक्रम में गीता का अध्ययन आज की प्रासंगिता है l आज भौतिक परिवेश में श्री कृष्ण के उपदेश की नितांत आवश्यकता है l
चलते चलते ---
1. अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति कृष्ण उपदेश से ही संभव है l
2. जैसा बोवोगे बीज मिलेगा वैसा
जैसा करता जो, फल पाता वैसा l
दुःख न दो किसी को, करो न कभी बुराई
सुख चाहो तो नित करते रहो भलाई ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
भगवान श्रीकृष्ण और उनके उपदेश भारतीय जन-मानस के लिए सदैव प्रेरणादायी रहे हैं। श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र का प्रत्येक दृश्य उपदेशात्मक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रीकृष्ण ने यह उपदेश मात्र कहकर नहीं बल्कि अपनी कर्म-लीला के माध्यम से दिए हैं। अनासक्त कर्म का सन्देश मनुष्य को निर्बाध रूप से कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।
सुदामा के माध्यम से मित्रता के निर्वाह का सन्देश, बांसुरी के द्वारा कला से लगाव और सुदर्शन चक्र द्वारा अन्याय का दमन मनुष्य को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि मानव को निर्बल का साथ देना चाहिए और अपनी संस्कृति से प्रेम करते हुए सदैव अन्याय का प्रतिरोध करना चाहिए।
अर्जुन का सारथी बनकर श्रीकृष्ण ने अंहकार को त्यागने का सन्देश दिया है।
सर्वविदित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने रासलीला भी मातृशक्ति के सम्मान की रक्षा करने के लिए ही रचाई। जिससे मातृशक्ति के प्रति आदर करने का सन्देश दिया।
इस प्रकार से देखा जाए तो भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला में एक सन्देश है, एक उपदेश है परन्तु इन उपदेशों को पढ़ना जितना सरल है, उतना ही कठिन है इनको अपने जीवन में उतारना।
भगवान श्रीकृष्ण ने इसके लिए भी उपदेश दिया कि यदि मनुष्य अपने जीवन को निर्विकार भाव से जिये तो अनासक्त, सहज-सरल, अंहकार से मुक्त, मानवीय गुणों से परिपूर्ण जीवन जी सकता है।
आज के परिवेश में तो भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों की प्रासंगिकता बहुत अधिक है क्योंकि आज के भौतिकतावादी मनुष्य को मानव बने रहने के लिए इन उपदेशों को अपने जीवन में उतारने की बहुत अधिक आवश्यकता है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
भगवान श्रीकृष्ण जी का अवतार कई युग पहले हुआ था। किन्तु उनके द्वारा दिए गए उपदेश अभी भी सारे संसार में विराजमान हैं। जो श्रीमद्भागवत गीता के सार में से उभर कर आए हैं। जिनको श्रीकृष्ण जी ने गीता के अठारह अध्यायों में विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है। जिनको गीता सार के नाम से जाना जाता है। जिनको पढ़कर मनुष्य शान्ति से हर कार्य करता है। यही नहीं हमारे हिन्दू धर्म में जब भी कोई मृत्युशैय्या पर अंतिम सा़ंस ले रहा होता है उसको गीता पढ़कर सुनाई जाती है। जिससे प्राणी के प्राण आराम से निकलते हैं और यह भी कहा गया है कि प्राणी सीधे स्वर्ग में जाता है। कहने का मतलब यह है कि भगवान श्रीकृष्ण पर आज तक लोगों की आस्था टिकी हुई है और लोग गीता को एक महान ग्रन्थ मानते हैं। गीता सार की बात करें तो इस को पढ़ कर मन का लोभ मोह दूर हो जाता है और मनुष्य का ध्यान शान्तिपुर्वक अच्छे कामों की तरफ लग जाता है।
जैसे कृष्ण भगवान जी ने कहा है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा बह भी अच्छा ही होगा। इत्यादी, एेसी सब बातों को पढ़ कर पता चलता है कि इन्सान को हर कार्य निष्ठापूर्वक करना चाहिए, बाकी सब भगवान पर छोड देना चाहिए वो सब ठीक ही करेंगे।
अता भगवान श्रीकृष्ण के सभी कथन ठीक उतर रहे हैं जिनको संसार अभी तक मानकर चल रहा है। युगों युगों तक जन्माष्टमी का त्योहार बड़ी धुमधाम से मनाया जा रहा है। जिससे यही प्रतीत होता है किआज के युग में भी लोग भगवान श्रीकृष्ण पर आस्था रखे बैठेै हैं।
यही नहीं कोई भी शुभ कार्य हो या बड़े पद पर बैठनेे से पहले गीता को हाथ में रखकर कसम खाई जाती है कि मैं अपना काम पूरी ईमानदारी से करुंगा, चाहे वो माननीय चीफ जस्टिस की गद्दी हो या प्रधानमन्त्री की ही क्यों न हो? इन सभी बातों से यही अनूमान लगाया जा सकता है कि आज के परिवेश में भी भगवान श्रीकृष्ण जी का गुण गान पूरे जोरों पर है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भगवान योगीराज श्री कृष्ण के उपदेश जितने प्रासंगिक 5000 वर्ष पूर्व थे, वर्तमान में भी उतने ही प्रासंगिक है। श्रीमद्भगवतगीता में भगवान की वाणी मिलती है। अठारह अध्यायों में संग्रहित श्रीकृष्ण के उपदेश मानव जीवन की हर समस्या का समाधान करते हैं।कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग जैसे गूढ़ विषयों पर बहुत सहजता से भगवान ने जो कहा उसकी व्याख्या आज भी विद्वान लोग अपने अपने ढंग से करते हुए जीवन को सफल करते हैं। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। अवश्यमेव भोक्तव्यं शुभाशुभ कर्म फलम्। मामेकं शरणं ब्रज।नैनन छिंदंति शस्त्राणि। जैसे वचन हर जन मन की जुबान पर रहते हैं और हमेशा जीवन को निर्भीकतापूर्वक, सत्य और ईश्वर पर विश्वास के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं। वर्गभेद,जाति भेद न करने की प्रेरणा देते हैं।सबके साथ यथायोग्य व्यवहार का विचार देते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात अन्याय के खिलाफ खुलकर खड़ा होने की बात कहते हुए श्रीकृष्ण ने कभी भी किसी का अन्याय न सहने की जो शिक्षा दी, वह संपूर्ण मानवजाति के लिए कल्याणकारी है। श्रीकृष्ण हर रुप में जन मन को प्रभावित करते हैं, उनकी शिक्षाओं की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
भगवान श्री कृष्ण जी ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का जो ज्ञान दिया वह सदा ही मानव के लिए कदम कदम पर सीख प्रदान करता है।
यह ग्रहण करने वाले के ऊपर हैं कि वह उसको किस रूप में देखता है।
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानि भवति भारत अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् धर्म संस्थापनाय संभवामि युगे युगे परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम ।।
जब-जब धर्म की हानि होती है और जब जब पाप बढ़ जाता है तब नानक रूप में प्रभु अवतार लेते हैं।
आज यह बात अयोध्या में राम मंदिर का पुनः निर्माण भूमि पूजन सत्य है।
श्री कृष्ण का ज्ञान सारे विश्व में माना जाता है भागवत गीता हमारे कानून में भी इस की शपथ दिलाई जाती है।
श्री कृष्ण योगी राजनीतिज्ञ कूटनीतिज्ञ और सत्य धर्म न्याय प्रिय प्रसांगिक बातों को ही महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है
आज के परिवेश में कृष्ण का एक-एक ज्ञान पूर्णतया मानव के लिए सीखने व
व्यवहार में लाए जाने योग्य है।
अपने देश को, अपने राज्य को, अपने
धर्म यानी आपका कर्तव्य क्या है कर्तव्य से विमुख मत हो अपने कर्तव्य को निष्ठा पूर्वक करो परिणाम की चिंता तुम मत करो आपका कर्तव्य इमानदारी पूर्वक सत्य के लिए न्याय के लिए धर्म के लिए होगा तो निश्चित ही उसका परिणाम बहुत ही अच्छा होगा।
जो आपके देश राज्य समाज के हित में होगा। भगवान श्री कृष्ण जी का उपदेश तार्किकता पूर्ण हैं।
निश्चित ही आज सभी मानव जाति को भगवान श्री कृष्ण के उपदेश की याद
हर कदम पर अपने मनोबल को मजबूत उत्साह पूर्वक ऊंचा बनाए रखने के लिए आवश्यक है। जीवन जीने की अद्भुत शैली छिपी है ।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
मैं भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता में दिया गया उपदेश ,
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन"।
अर्थात "कर्म करते जाओ फल की प्रतीक्षा मत करो"।
को ही इस विचार का आधार समझती हूं। हम केवल कर्म ही कर सकते हैं परिणाम हमारे हाथ में नहीं होता। फिर आगे तो ,
"होई है सोई जो राम रचि राखा,
को करि तरक बढ़ावे साखा ।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेशों की प्रासंगिकता हर काल में, हर युग में, हर मौसम में और यहाँ तक कि हर घर में है। उनके उपदेश केवल महाभारत काल में ही नहीं या द्वापर युग में ही नहीं सब समय है।
गीता में उन्होंने जो उपदेश दिए कि हे अर्जुन तुम कर्म करो। जिस काम के लिए तुम यहाँ युद्ध क्षेत्र में आये हो वो काम करो।तुम माया मोह के चक्कर में मत पड़ो। तुम भाग कर के भी नहीं भाग सकते।तुम्हें कर्म करना ही होगा।बिना फल की चिंता किये हुए। ये बात आज भी शतप्रतिशत लागु होती है।
लेकिन हम माया मोह में फंस कर गलत कार्य करने लगते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं तुम केवल कर्म करो।अगर नहीं करोगे तो नियति तुमसे कर्म करवा लेगी।जिस कार्य हेतु तुम इस धरा पर आए हो वो तुम्हें तो करना ही है। इससे तुम भाग नहीं सकते।अपने अधिकारों के लिए तुम्हें ही लड़ना होगा।
इस दुनिया में कोई किसी का नहीं।सब स्वार्थ बस एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। सब रिश्ते मतलबी हैं। अपना पराया कुछ नहीं सब माया का खेल है।धर्म के लिए जो लड़ता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।धर्मो रक्षति रक्षितः।
आज हम देश दुनिया में देख रहे हैं कि कैसे कहाँ क्या हो रहा है। इन सब बातों से साफ जाहिर है कि भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगे।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं बंगाल
आज के परिवेश में भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेश की प्रासंगिकता क्या है ? भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश युद्ध के क्षेत्र में दिया बताया कि कर्म करना हमारा सर्वोपरि धर्म है ।सिखाया कि कौन से कर्म करने योग्य हैं और कौन से न करने ।सबके साथ समता का व्यवहार करने को कहा ।आज क्लेश के वातावरण में इन सब की समझ जरुरी है ।कहा कर्म करो फल की इच्छा त्याग दो ,हम सब ऐसा मान कर चलें तो मानव समाज कितना सुखी होगा ,इसकी कल्पना करना मुश्किल है । यह विषय मानसिक शान्ति का है जो आज पूर्णतया खो चुकी है ।श्रीकृष्ण बुद्धि को स्थिर रखने की बात करते हैं ऐसा तभी हो सकता है जब हम माया भयऔर क्रोध को दूर रखेंगे सभी बातें वर्तमान युग में नहीं है आज फिर से कृष्ण जन्म लें ज्ञान को सभी को समझायें तभी अत्याचार का नाश हो
फिर से धर्म की स्थापना हो ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
वर्तमान परिवेश में भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेश की प्रासंगिकता मानें तो उतनी ही है जितनी द्वापर में थी और ना मानें तो कुछ भी शेष नहीं है।
जैसे जिस प्रकार लोकतंत्र के सशक्त एवं विश्वसनीय स्तम्भ न्यायपालिका की न्यायालयों के न्यायाधीश प्रासंगिक साक्ष्यों को ना मानते हुए अपनी बुद्धि का हवाला देते हुए अलग फैसला देने में सक्षम हैं।
उदाहरणार्थ मैं मानसिक प्रताड़ना के विरुद्ध आंतड़ियों के तपेदिक रोग के उपचार हेतु जम्मू-कश्मीर की माननीय उच्च न्यायालय में अपनी धर्मपत्नी के माध्यम से 'सुशीला बाली विरुद्ध सरकार एवं अन्य केस' में माननीय न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित हुआ था और अपनी पीड़ा विस्तारपूर्वक व्यक्त की थी। किन्तु माननीय न्यायालय के तथाकथित विद्वान न्यायाधीश ने आंतड़ियों की तपेदिक के रोग के डाक्टरों के प्रमाणपत्र को अस्वीकार करते हुए विभाग को मेरा मानसिक उपचार कराने का ही आदेश दे दिया था। जबकि सरकारी चिकित्सालय के मनोरोग चिकित्सकों के मेडिकल बोर्ड ने अपने जारी प्रमाणपत्र में लिखित में 'नो ड्रग्स फार ट्रीटमेंट' का मुझे सुझाव दिया हुआ है। जिसके विरुद्ध मैं आज भी न्याय हेतु दर-बदर भटक रहा हूं। क्योंकि उस आदेश से मेरा और मेरे परिवार का जीवन नरक से बदतर हो चुका है। जबकि माननीय भारतीय उच्चतम न्यायालय कहती है कि न्यायालय न्याय का वह मंदिर है जिसका दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता। जिसकी प्रमाणिकता हेतु मैंने अपनी याचिका स्वयं दाखिल की है।
क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेश अनुसार सत्य कभी हार नहीं सकता। इसलिए मैं न्याय पाने हेतु प्रयासरत हूं। चूंकि मेरा विश्वास है कि एक मछली पूरा तालाब गंदा नहीं कर सकती और गीता के उपदेशानुसार सत्य असत्य से पराजित नहीं हो सकता। ऐसा भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में ही नहीं बल्कि त्रेता युग में श्रीराम जी ने भी विजय दशमी के रूप में सिद्ध किया हुआ है।
अतः मेरी भांति आज भी 'सत्य मेव जयते' पर विश्वास करते हुए मेरे कई साथी संघर्षरत हैं और विजयश्री के लिए अग्रसर हो रहे हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
" मेरी दृष्टि में " भगवान श्रीकृष्ण जी के उपदेश , आज के युग मे भी बहुत उपयोगी है । जो अपने जीवन में उतारे जा सकते हैं और जीवन को जीने के लिए सार्थक बनाया जा सकता है । यही जीवन संघर्ष को मार्गदर्शन देता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान पत्र
आदरणीय बीजेन्द्र जी, आप नित नए नए विषय चर्चा हेतु प्रस्तुत कर हम सभी का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं. यह बहुत ही सराहनीय कार्य है. ह्रदय से आभार.
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