क्या निंदा की परवाह किये बिना आगेंं बढते चलना चाहिए ?

कुछ लोगों का काम सिर्फ निंदा करना होता है । कहीं आपको रास्ते से  भटकाने का कार्य नहीं हो  रहा है । ऐसा होता हुआ , मैंने देखा है । निंदा का उद्देश्य यहीं होता है । इसी का समाधान " आज की चर्चा " का उद्देश्य है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
कुछ  तो  लोग  कहेंगे  लोगों  का  काम  है  कहना ........लोग  तो  चढ़े  को  भी  कहेंगे  और  पैदल  को  भी  । कुछ  लोगों  का  तो  वक्त  भी  निंदा  किए  बगैर  नहीं  कटता  ऐसी  स्थिति  में  हाथी  बन  जाना  ही  ठीक  रहता  है  ।  जैसे  वह  किसी  की  भी  टिप्पणियों  की  परवाह  किए  बगैर  झूमता  हुआ  अपनी  मस्ती  में  चलता  रहता  है, उसी  प्रकार  हमें  भी  हमारी  निंदा  की  परवाह  किए  बगैर  अपने  लक्ष्य  की  ओर  बढ़ते  रहना  चाहिए  । 
        निंदा  से  एक  बार  तो  इंसान  विचलित  हो  ही  जाते  हैं, ऐसी  स्थिति  में  उस  निंदा  की  सत्यता  परखने  के  लिए  आत्मनिरीक्षण  अवश्य  कर  लेना  उपयुक्त  रहता  है  । ताकि  हम  हमारी  उन  गलतियों  अथवा  कमियों  को  दूर  कर  सकें  ।  आगे  बढ़ने  और  सफलता  प्राप्ति  के  लिए  फालतू  की  टीका- टिप्पणी  को  नजरअंदाज  करना  ही उचित  रहता  है  । 
      हंसते-गाते  जहां  से  गुजर, दुनिया  की  तू  परवाह  न  कर  ऐसी  बातों  से  क्या  घबराना ........
        - बसन्ती  पंवार 
      जोधपुर  -  राजस्थान 
'निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय'--यह पंक्ति बचपन से ही हृदय से अनुसरण करते हुए जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। निंदक भी दो तरह के होते हैं --कुछ निंदक सिर्फ राह में रोड़े डालने वाले, कुछ निंदक हमें सचेत करने वाले।
 हमें अपने विवेकानुसार निंदक के विचारों और सुझावों पर ध्यान देते हुए निरंतर अपनी त्रुटियों को दूर कर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। अगर हम निंदा की परवाह किए बिना हमेशा आगे बढ़ते रहे तो हमारे अंदर अभिमान का भाव भी जागृत हो सकता है। खुद को सर्वश्रेष्ठ मानकर आलोचना को नजरअंदाज करते रहेंगे और इस वजह से हम गलत राह पर भी जा सकते हैं जो धीरे-धीरे पतन का कारण बन सकता है।
 निंदा कभी हमें हतोत्साहित कर आगे बढ़ने से रोकती भी है पर हमें खुद पर पूर्ण विश्वास हो तब निंदा को हम सकारात्मक रूप से ग्रहण कर अपने व्यक्तित्व को निखारते हुए अपने जीवन पथ पर सुदृढ़ता से बढ़ते हुए मंजिल प्राप्त कर सकते हैं।
             - सुनीता रानी राठौर 
           ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना।।
लोगों का तो काम है दूसरों के काम में गलतियां निकलना।खुद चाहे कुछ न करें, लेकिन जिसने काम करने के लिए कदम बढ़ाया है उसकी निंदा चुगली पूरी आत्मीयता से करते हैं।क्योंकि उन्हें ये बर्दाश्त ही नहीं होता कि कोई उनसे आगे कैसे निकल गया। और ऐसे लोग भरसक प्रयास करते हैं कि वह अपने लक्ष्य से भटक जाए। उन्हें मानसिक रूप से निर्बल बनाने का बीड़ा इन्हीं लोगों ने उठाया हुआ है।परंतु जो लोग अपने लक्ष्य पर नज़र रखते हैं वे कभी भी इन सब बातों से विचलित नहीं होते हैं। और अपने लक्ष्य को पाकर ही रहते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि आगे बढ़ना है तो इन सब को अनदेखा व अनसुना करना पड़ेगा। 
परन्तु कई बार ये निंदा भी बड़े काम आती है। खासकर राजनीति में और सितारों की फिल्मी दुनिया में। बिना किसी परिश्रम के ही लोग का ध्यान बरबस इस ओर चला जाता है। कुछ लोग गलत बयानबाज़ी करके रातोरात लाइम लाइट में आ जाते हैं जिसका उन्हें भरपूर फायदा भी मिलता है क्योंकि उनकी प्रसिद्धि को भी राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिए भुनाया जाता है।
निंदा का एक पहलू और भी है। वह है कि निंदक हमारा बहुत अच्छी तरह विश्लेषण करता है और जो छोटी छोटी कमियां रह जाती है,जिनपर हमारा ध्यान नहीं जाता, उसे भी ठीक करने का अवसर हमें मिल जाता है और हमारा कार्य और अधिक कुशलता से होने पर अच्छा परिणाम देता है।
तो इस प्रकार निंदा होनी भी एक तरह से सफलता की सूचक होती है, बशर्ते कि अपनी कमियों को ठीक करके विचलित न होते हुए हमें आगे बढ़ना चाहिए तभी सफलता कदम चूम सकेंगी।
- सीमा मोंगा
रोहिणी -  दिल्ली
क्या निंदा की परवाह किये बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए
          आगे बढ़ने वाले निंदा की परवाह नहीं करते। क्योंकि निंदा हमेशा पीठ पीछे होती है। आगे बढ़ने वाला यदि पीछे मुड़कर देखे तो वो आगे बढ़ ही नहीं सकता। निंदा करने वाले हमेशा आगे बढ़ने से रोकते हैं।
           दूसरी तरफ कहा गया है कि निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय, बिन पानी बिन साबुन बिना निर्मल करे सुभाय। यानी को अपने पास रखिए और उसके किये निंदा से अपने में सुधार लाते रहिये। और आगे बढ़ते रहिये।
              आगे बढ़ने वाले को देख कर सभी को जलन होती है।कोई भी नहीं चाहता कि उससे कोई आगे बढ़ जाय।इसलिए लोग तरह-तरह बातें करते हैं जिससे आगे बढ़ने वाले का हौसला कम हो जाये या खत्म हो जाये। आगे बढ़ने वाला जब इस झमेले में पड़ेगा तो वो आगे बढ़ ही नहीं पायेगा। निंदा सुनने औऱ उसमें बहस करने में ही उसका समय चला जायेगा। ऐसे में वो आगे कभी नहीं बढ़ पायेगा।
              बड़े-बड़े महापुरुष, क्रांतिकारी, संत, समाज सुधारक,नेता इत्यादि निंदा के शिकार हुए हैं लेकिन वो सब  इस तरह की बातों को कभी भी ध्यान में नहीं रखते थे। तभी वो महान बने और इतिहास में उनका नाम अमर हुआ।
                 गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर भी इसलिए कहे थे कि यदि तुम्हारे बुलाने से कोई नहीं आता है तब तुम अकेला ही चलो। यहाँ पर तात्पर्य इस बात से भी है कि यदि तुम किसी काम के लिए आगे बढ़ते हो और लोग उस काम के लिए तुम्हारी निंदा करते हैं तब भी तुम उनकी परवाह किये बगैर आगे चलते रहो।
                 महाभारत में भी भगवान श्री कृष्ण की शकुनि,दुर्योधन वगैरह बार-बार उनकी निंदा करते हैं लेकिन वो बेपरवाह उनकी बातों पर ध्यान न देते हुए धर्म स्थापना का महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करते हैं।
         इस तरह हम देखत हैं कि जो लोग निंदा की परवाह किये बिना आगे बढ़ते रही वही सफलता हासिल कर सके। इसलिए हमें भी निंदा की परवाह किये बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
यह बात बिल्कुल सही है की निंदा की परवाह किए बगैर हमें आगे की ओर बढ़ते रहना चाहिए। मनुष्य के अच्छे कर्मों की या बुरे कर्मों की दोनों पक्षों में निंदा होते रहती है। क्योंकि आप जब बहुत कुछ पा लेते हैं ,तो लोग आपसे जलने लगते हैं और आपकी निंदा करने लगते हैं ।यदि आप पैसे से ओहदे से या अन्य तरह से समाज में पीछे रह गए तब भी आपकी निंदा होती है ।इसलिए निंदा की परवाह मत कीजिए। जो आपको सही लगे वही कीजिए । क्योंकि--
"कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना"
मनुष्य की प्रवृत्ति है कि वह किसी न किसी बात पर चर्चा करते रहता है ।लेकिन कुछ खास व्यक्ति भी होते हैं जो दूसरों की चर्चा पर ज्यादा ध्यान रखते हैं। इसलिए ऐसे लोगों का क्या है-
कबीर दास जी ने भी कहा है- "निंदक नियरे राखिए ,
 आंँगन कुटी छवाय।।
- मीरा प्रकाश 
  पटना - बिहार
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
जो निंदा की परवाह नहीं करते वही जीवन में आगे बढ़ते हैं अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि लोगों का मुंह हम नहीं पकड़ सकते वे कुछ न कुछ बोलते ही रहेंगे।
 ऐसे भी कहते कि हाथी अपनी धुन में मस्त चलता रहता है और कुत्ते भोंकते रहते हैं।
वही व्यक्ति जीवन में आगे अपने लक्ष्य की प्राप्ति करता है जो किसी की निंदा की परवाह नहीं करता है क्योंकि जब हम कोई अच्छा काम करते हैं सही दिशा में आगे बढ़ते हैं तो हमारे टांग खींचने वाले लोगों की कमी नहीं रहती है कोई किसी को आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकता। उदाहरण के लिए हमें चींटी को देखना चाहिए वह हजार बार गिर के भी ऊपर की ओर चलती जाती है ऐसे हमारे पर्यावरण में बहुत सारे उदाहरण हमें मिल जाएंगे।
सफलता प्राप्ति के लिए सबसे पहले हमें अपने लक्ष्य को सोचना चाहिए और फिर उसी और आगे बढ़ते रहना चाहिए किसी की बुराइयों की परवाह नहीं करना चाहिए।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर मध्य प्रदेश
     जब से संरचना हुई हैं, तब से निंदाएं प्रारंभ हो चुकी थी, शनैः-शनैः राजाओं-महाराजाओं के अभिअंग हो चुके थे, जब तक अपनी निंदाएं नहीं सुन नहीं लेते थे, तब तक दूसरा कार्य सुचारू रूप से प्रारंभ नहीं करते थे। जिसका उदाहरण प्रत्यक्ष रूप से राम राज्य में देखने को मिला। कृष्ण ने 100 गालियाँ सुनने पश्चात शिशुपाल का वध किया। ऐसे अनेकानेकों  निन्दनीय व्यक्तव सुनने को मिलते रहे हैं, जिसे अंसुना कर अपने कार्यों को अंजाम देते हुए दिखाई देते हैं। कभी-कभी निंदा भी चरम सीमा पर पहुँच जाती हैं, जिसके कारण प्रबुद्धजनों के बीच वृहद स्तर पर विवाद की स्थिति निर्मित हो जाती और जीवन्त तक रहती हैं। अगर हम निंदा की परवाह किये बिना आगे बढ़ते चले गये तो प्रगति होगी। आज वर्तमान परिदृश्य में राजनीति तंत्र प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जहाँ कह सकते 
हैं, निंदा का अविष्कार हुआ हैं, किस तरह से सामना करना पड़ता हैं और प्रगति के सोपानों की ओर अग्रेषित होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहें हैं, इसी प्रकार से महापुरुषों ने भी तरह-तरह की निंदाओं सामना करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हुए हैं। कुछ निंदाओं का सामना तो करते ही हैं, किन्तु ज्यादा निंदाएं होने के फलस्वरूप आत्महत्या करने के लिए बाध्य होना पड़ता हैं। निंदाएं सभी में विधमान हैं, जो समयांतर अग्रेषित होते जा रहे हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
निंदाकरना कुछ लोगों का काम है । निंदा करने वालों की कभी परवाह नहीं करना चाहिए अपने काम को बेहतर ढंग से करने में जुट जाए वही काम आयेंगा 
दूसरों को खुद से आगे बढ़ते हुए मत देखो। प्रतिदिन अपने खुद के कीर्तिमान तोड़ो, क्योंकि सफलता आपकी अपने आप से एक लड़ाई है!
“अब्दुल कलाम ने कहाँ है “
किसी को हराना बहुत आसान है, लेकिन किसी को जीतना बहुत मुश्किल।"
तो हमेशा जीतने की कोशीश करे निंदा करने वालों से दूर रहे 
निंदा करने वालों को लोग पंसद नहीं करते और उनकी बातों का प्रभाव भी नहीं रहता लोग चुगलखोर कह कर उपहास उड़ाते है ,
निंदा की परवाह जो नहीं करते वही आगे बढ़ते है क्यों की निंदा करने वाले तो हर बात में निंदा ही करेंगे और उनकी निंदा से हमारा काम  निखरता है तो निंदा की परवाह कदापि न करें ! 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
यह बात अक्षरशः सत्य है कि हर बात और काम के लिए किसी से सराहना मिलती है तो किसी के द्वारा उसी की निंदा की जाती है। लेकिन यह बात सरासर ग़लत है। व्यक्ति को सिर्फ अपने कर्म और काम पर बगैर किसी  के निंदा की परवाह किए बिना निरंतर आगे बढ़ते जाना चाहिए,क्योंकि कुछ लोगों की ऐसी आदत हीं होती है कि वह हर बात में नुक्ताचीनी करें।एक कहावत भी है कि _ हाथी चले बाजार ___ भूके हजार । यह बात सदा देखी गई है। इसलिए व्यक्ति अगर सही राह चल रहा है तो फिर उसे बिना किसी की परवाह किए आगे बढ़ते हीं जाना चाहिए।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
जीवन में सफलता यूं ही नहीं मिल जाती काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ! कितने अवरोध आते हैं जिसमें  से यह भी एक है ! यदि आप अपनी मेहनत से लगातार आगे बढ़ रहे हैं  सफलता की सीढ़ियां चूमते जा रहे हैं तो जो आपकी कामयाबी को नहीं झेल पा रहे हैं वे जलन से कुछ न कुछ तो आप पर छीटाकसी अथवा आपकी निंदा तो अवश्य करेंगे ,आपके कार्य को गलत ठहरायेंगे यूं कह़ो आपके काम में कुछ न कुछ गल्तियां निकालेंगे मोरल डाउन करने की कोशिश करते हैं किंतु हमे सकारातमक सोच रखनी चाहिए !  यह सोचना चाहिए शायद वह इससे बेहतर की अपेक्षा रखता है ! यदि कोई निंदा करता है तो हमे सोचना चाहिए कि मुझमें कौन सी बुराई है और यदि बुराई दीख जाती है तो हमें उसका आभार करना चाहिए !
मनुष्य का एक रोचक स्वभाव है कि वह अपने दोष कम देखता है और दूसरों के दोष अधिक ! इससे भी रोचक एक सच्चाई  यह है कि हमारे दोष बताने वाला हमें इतना बुरा लगता है तो हमारे स्वयं के दोष तो हमे और बुरे लगने चाहिए ! अतः हम स्वयं के दोष को ही क्यों न दूर करें ! स्वभाव बदलना मुश्किल है किंतु कोशिश तो कर सकते हैं ! यदि कोई हमारी आलोचना करता है तो हमे  सकारात्मक सोच के साथ सोचना चाहिए कि शायद वह हमे सचेत कर रहा है ! हमे उसके सदगुणों को देखते हुए आगे बढ़ना चाहिए !हमे तो उसका आभार करना चाहिए कि कटु बनकर भी  वह हमे बेहतर बनाना चाहता है ! 
कबीर जी ने भी कहा है:-- 
"निंदक नियरे राखिए,आंगन कुटी छवाय
बिन साबुन,पानी बिना निर्मल करे सुभाय !
अंत में कहूंगी यदि आप सही हैं और फिर भी मार्ग में अवरोध आ रहे हैं हमारी निंदा हो रही है तो सकारात्मक सोच लिए नई उर्जा के साथ आगे बढ़ो !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।
कविवर रहीम के इस दोहे से स्पष्ट है कि निंदा और निंदक दोनो ही व्यक्तित्व विकास में सहायक हैं।
चापलूसी एवं खुशामद व्यवहार क्षणिक कर्णप्रिय मधुर ध्वनि है परंतु आलोचना हमें उत्तम की ओर अग्रसर करती है।
 अंततः मेरे  विचार से निंदा हमें निखरने व सँवरने का बहुमूल्य अवसर प्रदान करती है। बशर्ते हम और हमारी सोच की दिशा सकारात्मक होनी चाहिए।
- संगीता सहाय "अनुभूति"
रांची - झारखंड
निंदा किसी को भी किसी की भी नही करनी चाहिए । जिसकी निंदा हो रही है तो अगर वह सही राह पर जा रहा है तो उसे लोगों की परवाह नहीं करनी चाहिए । सफलता असफलता को अगर हम अलग भी रख दे तो दूसरों की सुनने वाला कभी अपने रास्ते पर आगे नही बढ सकता ।निंदा की परवाह किए बग़ैर ही व्यक्ति को अपनी मंज़िल पर सतत आगे बढ़ते रहना चाहिए । अपने पर विश्वास रख अपने अच्छे करम करने चाहिए सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए 
- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
निंदा या प्रशंसा दोनों काम की उपलब्धियाँ हैं। किसी भी काम को करने की हर किसी का अपना तरीका होता है। लोगों का कार्यविधि को देखने का अपना नजरिया होता है। इसलिए अगर अपनी नजरों में कार्य सही है तो जमाने के द्वारा की गई टीका-टिप्पणी पर ध्यान नहीं देना है। लेकिन सुझाव को ज़ेहन में बैठाकर उसकी अच्छाइयों पर ध्यान देना आवश्यक है।
 आगे बढ़ना तो वक्त की माँग है। आज कदम आगे बढ़ाया है हौसला बढ़ाने वाले कम और तोड़ने वाले ज्यादा मिलेंगे। हर व्यक्ति अलग स्वभाव का भी होता है। अनेक लोग अपनी प्रवृत्ति से मजबूर होते हैं। उन्हें निंदा की भाषा विचलित करती है, जिससे वे हताश हो जाते हैं। उनका मनोबल टूटता है। ऐसे समय में निंदा करने वालों की बातों को सुनें अवश्य, लेकिन उन बातों को मन के पिटारे में बंद कर कुछ समय बाद उस पर विचार करें। तब उसमें से कम की बातें निकल कर सामने आएगी। तभी हम कबीर के दोहे (निंदक नियरे राखिए......) को सही अर्थ में चरितार्थ कर सकेंगे।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आज की चर्चा में जहँं तक यह प्रश्न है कि क्या निंदा की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए तो बिल्कुल सही बात है दुनिया का यही रिवाज है कि आप कितना ही अच्छा कार्य क्यों न कर रहे हो कुछ लोग उसमें कमियां जरूर निकाल देते हैं परन्तु इससे हतोत्साहित नहीं होना चाहिए और ठीक ढंग से सच्चाई और ईमानदारी के साथ अपने कार्य पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता मुश्किल जरूर हो सकता है लेकिन  उसका परिणाम बहुत ही सुखद रहता है और गलत तरीके से यदि आपने अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाए हैं और उसे प्राप्त कर भी लिया है तो उसका परिणाम बहुत सुखद नहीं होता और ऐसी सफलता बहुत अधिक समय तक आपके पास नहीं रहती आपको उसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है तो यही आवश्यक है कि बिना किसी की परवाह किए सच्चाई और ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य पथ पर अपनी मंजिल की ओर दृढ़ता से आगे बढ़ते रहना चाहिए हाँ इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारे किसी कार्य आचरण से कहीं कोई गलत प्रभाव पढ़ रहा हो
-  प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आगे बढ़ने के लिए या इसे यूँ कहें कि अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित, सच्ची लगन और कड़ी मेहनत की बहुत आवश्यकता होती है। इस कार्य में अनेक बाधाएं भी आती हैं। असफल भी होते हैं, हताशा भी होती है। परंतु हमें उनसे कभी ना तो लड़खड़ाना चाहिए और ना ही हतोत्साहित होना चाहिए बल्कि हमें अभ्यास एवं मेहनत और अधिक करना प्रारंभ कर देना चाहिए। इस स्थिति में कुछ ऐसे लोग भी मिलेंगे जो आपकी निंदा करेंगे, आपकी कमियों और खामियों को निकालकर उनका ढिंढोरा पीटेंगे। कटाक्ष करेंगे। आपके अन्य मित्रों,पड़ोसियों, संबंधियों से आपकी निंदा करेंगे।   मगर, आपको अपने लक्ष्य के लिए जितना सजग और सावधान रहना है, उतना ऐसे कुटिल लोगों से बेपरवाह भी होना है। आपको अपना बहुमूल्य समय इनके लिए व्यर्थ में नहीं गंवाना है। हाँ, उन आत्मीयों, हितैषियों की बातों को जरूर गंभीरता से लेना और समझना है और उनके सुझावों पर समुचित निर्णय लेते हुए अमल भी  करना है। साथ ही सदैव उत्साहित और निर्भीक रहते हुए आगे बढ़ते रहना है। सफलता पाने का यही राज और रास्ता होता है। मूलमंत्र भी यही है।
सार यही कि निंदा की परवाह किये बिना आगे बढ़ते चलना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
किसी ने कहा है कि कुत्तों के भौंकने से हाथी अपना रास्ता नही बदल देता । बल्कि वह डट कर उसी रास्ते पर चलता रहता है , क्योंकि उसे स्वयं पर भरोसा होता है । इसीलिए यदि आप किसी रास्ते पर चलने का निश्चय कर ही चुके है तो उसपर चलिए नही दौड़ पड़िये । किसी भी रास्ते पर दो कदम चलकर फिर पीछे मुड़ने का विचार और उसी कश्मकश में उलझे रहने से इंसान को कभी कोई मंजिल हांसिल नही होती है ।
हां ये जरूर है कि किसी भी रास्ते को चुनने से पहले उस पर अच्छे से विचार करना और उसके भविषयी परिणाम देखने बहुत जरूरी है । यदि जरूरत पड़े तो किसी से राय मशवरा लेने में भी कोई हर्ज नही है । दरअसल ये उलझने दूर होने के बाद यदि हम अपने पथ पर विफल भी हो जाते है तो हमारे मन मे किसी प्रकार की कोई ग्लानि नही रह जाती है । वैसे भी इन पंक्तियों से कौन वाकिफ नही है कि " कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना , छोड़ो बेकार की बातें , कहीं बीत ना जाये रैना "।। इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए भी
 हम अपने पथ पर अडिग रह सकते है ।।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
निंदा या ठोकर के परवाह किए बिना आगे बढ़ते जाना चाहिए निंदा इंसान को चलना सिखाती है। निंदा कौन करता है जो आपके हितकर हैं वही आलोचना करते हैं । उनकी बातों पर अमल करते हुए अपने सूझबूझ से सही रास्ता पर चले तो सफलता आपके कदम चूमने लगेगी। 
सफर में हर तरह के मौसम से गुजारना पड़ता है जिसमे हमारा हौसला को बरकरार रखते हुए तो कदम बढ़ने लगती है और हम जीवन में कामयाब होते हैं ।
मैं एक शायर के कुछ पंक्तियां लिख रहा हूं:-
मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती है,
सपने के परदे निगाहों से हटाती है,
हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर,
ठोकर इंसान को चलना सिखाती है।
इस पंक्ति में शायर ने यह कहने के कोशिश किया है कि अगर इरादा मजबूत है गिरना या ठोकर खाकर भी इंसान को चलना सिखाती है।
लेखक का विचार:- निंदा से आत्मविश्वास को खोने नहीं देना चाहिए बल्कि, निंदा या ठोकर को नेक इरादा से देखना चाहिए और उसे समझ बूझ कर आगे की ओर अपना सफर तय करते रहने से मंजिल हासिल  होना निश्चित है।
- विजयेंद्र मोहन 
बोकारो - झारखंड
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय..... कबीरदास जी 
      सत्य कहा है कबीरदास जी ने अपने निंदक, अपनी आलोचना करने वालों को आँगन में बसाये रखना है l हम उससे घृणा नहीं करें, शत्रुता नहीं रखें l अरे, वह तो हमारा सबसे अच्छा गुरु, मित्र और सहयोगी है l जैसे हमें अपनी पीठ स्वयं दिखाई नहीं देती है वही हमारी पीठ देखता है l अपने अवगुण, बुराई, निंदा दिखाने वाले को घर के आँगन अर्थात मन के आँगन में बैठाना चाहिए l आपके साथ जो आलोचक हैं उनके गुण हमारे मन को निर्मल बनाते हैं l वे हमारे मन के कलुष को हटाते हैं l 
सबसे बड़े हमारे हितेषी हैं, क्योंकि वह हमारी कमजोरी या कमी को बताते है तो बुरा नहीं मानना चाहिए बल्कि चिंतन कर हमारे उन दोषों को, कमियों को दूर कर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए l 
गाँधी जी ने कहा था -मेरा विचार आपको पसंद नहींया आप सहमत नहीं तो मैं कोशिश करूंगा कि मैं आपको अपने विचार से सहमत कराऊंगा l मैं प्रतिपक्षी को मिटा दूंगा, अपने विरोधी को मिटा दूंगा, ऐसा संभव नहीं l जो विचारों की स्वतंत्रता के प्रतिपक्षी नहीं होते वे प्रतिपक्षी विचार उचित नहीं हैं l विचारों की अभिव्यक्ति के लिए सभी स्वतंत्र हैं l वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियाँ बताकर हमारे स्वभाव को साफ करता है l 
      जो आज समय निंदा में व्यक्त करते हैं, आसक्तिवश निंदा निंदा खेल खेला करते हैं उन्हें इसी में संतोष प्राप्त होता है lजो निंदा करता है वह हमारे पापों का क्षय करता है किन्तु वह अपने पाप कर्मों में वृद्धि करता है l नकारात्मकता में वृद्धि करते हैं l  
     निंदा से कभी प्रभावित नहीं होना चाहिए l निंदक जीभ से हमारे पापों को धो देता है l आपके ह्रदय की सफाई, पापों की सफाई बैठे बैठे ही वह कर देता है l उसका हमें आभारी होना चाहिए l         -----चलते चलते 
1. निंदा नहीं करनी चाहिए यह कीचड है यही कर्म एक न एक दिन हमारे ऊपर फिर कर आ जाता है l बिन बैटरी प्रभु का कैमरा जीवन के कर्म रिकॉर्ड करता है l 
2.हमें अपने कर्म पथ पर सतकर्म करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए l
 - डॉ. छाया शर्मा 
                             अजमेर - राजस्थान                          
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। 
कबीरदास जी ने जिस प्रकार के निंदक की अपने मन में कल्पना करते हुए कहा है, ऐसा निंदक हमारे जीवन में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है परन्तु आज के समय में अधिकाधिक निंदक सही राह दिखाने के लिए निंदा नहीं करते बल्कि दूसरे की उन्नति से ईर्ष्याग्रस्त होकर बाधाएं खड़ी करने के लिए निंदा करते हैं। इस प्रकार की निंदा का सामना करने के लिए हमें बहुत सावधानी और समझदारी से काम लेना चाहिए। 
"वे निंदक जो रोकते हैं राह तेरी दुश्मन समान होंगे तेरे,
फकत अहम होगा उनका उनसे आगे तू बढे़ क्यों।
हादसें बदसूरत निंदा की शक्ल में सामने होंगे तेरे, 
समझ तेरी बताएगी उन्हें डरकर तू पीछे मुड़े क्यों।।"
परन्तु जीवन में हमें ऐसे निंदक भी मिलेंगे जो निर्मल और स्वच्छ हृदय से हमारी कमियों की ओर हमारा ध्यानाकर्षित करेंगे। इसलिए हमारे अन्दर भी इतनी समझदारी और सहनशीलता होनी जरूरी है कि हम स्वस्थ निंदा को स्वीकारते हुए अपनी कमियों को दूर करने के लिए प्रयास करें। 
मानवीय प्रवृत्ति है कि निंदक की नियत से परिचित हुए बिना ही हम उन सभी लोगों से दूर रहना पसन्द करते हैं जो हमारी निंदा करते हैं। जबकि उनमें हमारा भला चाहने वाले एवं हमारी उन्नति से जलने वाले दोनों ही तरह के लोग होते हैं। 
इसलिए सर्वप्रथम हमें नकारात्मक निंदा (बुराई) और सकारात्मक निंदा (आलोचना) के अन्तर को महसूस करने की समझ होनी अति आवश्यक है। हमें अपनी निंदा को शान्त भाव से सुनना चाहिए और उसको सुनकर स्वयं के कार्यों के विषय में अवश्य विचार करना चाहिए। यदि निंदा स्वस्थ भाव से की गयी है तो उसमें वर्णित अपनी कमियों को दूर करना चाहिए परन्तु ईर्ष्यालु और हमारी उन्नति में बाधक निंदक द्वारा कही गई किसी भी निंदा की परवाह न करते हुए अनवरत आगे बढ़ते रहना चाहिए। 
क्योंकि..... 
"आलोचना और बुराई में बस इतना सा ही फर्क है 'तरंग' ।
पहली तुझे सर्वोत्तम, दूसरी दूसरे को निकृष्टतम बनाती है।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
हर व्यक्ति के मन में आगे बढने की अभिलाषा होती है कि वो  हर कार्य में आगे बढे किन्तु किसी कारणवश  वो आगे नहीं वढ़ पाता, इनमें निदां भी एक है, जो कार्य करने से पहले ही  मनुष्य को  सोचने पर मजवूर कर देती है कि अगर वो यह कार्य करेगा  तो लोग पता नहीं क्या कहेंगे जिससे वह तरक्की करने से दुर हो जाता है अथवाअपने गुण उजागर नहीं कर पाता जिससे उसे उम्र भर अन्दर ही अन्दर यही महसूस होता रहता है  कि अगर  वह उक्त कार्य समय पर कर लेता तो उसके हलात कुछ  अलग से होते। 
कहने का तत्पर यह हुआ कि कई वार गुण होते हुए भी उनको लोगों की निंदा के भय से नहीं करता जिससे वो न अपना भला कर सकता है न हि दूनिया का  इसलिए किसी की विना प्रवाह किए हुए अच्छे कार्य करते रहना चाहिए जिससे अपने कदम भी बढत की तरफ रहें और दुनिया भी फले फूले, 
इन्सान जव भी कोई कार्य शुरू  करता है उसमें  टीका टिप्णी तो होती रहती है लेकिन यह  मनुष्य को खुद समझना चाहिए की जो कार्य मैं करने जा रहा हुं वो मुझे किस मोड़ पर ले जा सकता है, इससे मेरा  यश वढ़ेगा या घटेगा अता दुसरों की वातों को अनदेखा कर देना चाहिए, 
यही नहीं कई वार  निंदा करने से हमारे दोश भी दूर  हो जाते हैं अथवा मनुष्य अपनी गल्तियों को दुर करके  उँचा स्थान प्राप्त कर लेता है। 
इसलिए कबीर जी ने लिखा है, निंदक नियरे रखिये ऑगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय कहने का भाव यह हुआ की निंदा करने वाला हमारे लिए फलदायक भी सावित होता है  इसलिए निंदक की विना प्रवाह किए हुए हमें अपने कदम हमेशा बढ़त की तरफ रखने चाहिए  जो देशहित मे़  हों जिससे हमारा और हमारी जनता का भला हो।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
समाज अलग-अलग विचार-धारा के लोगों का समूह है। इस समाज में निंदा  करने वाले अधिक और कर्ता कम हैं। मेरे ख्याल से अगर मनुष्य अपनी आत्मा के आगे सच्चा है तो उसे निंदा की परवाह नहीं करनी चाहिए। कोई भी काम शुरू करने से पहले अपने भीतर से निर्भर होना चाहिए। मन डावांडोल नहीं होना चाहिए। फिर हमें निंदा की चिंता नहीं करनी चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए क्योंकि ऐसे कारक हमारे उत्थान के लिए हानिकारक होते हैं। निंदा से तो महापुरुष भी नहीं बच पाये। अगर महान लोग निंदा से घबराते तो क्या वो इतने महान काम कर पाते 
निंदा और निंदक को कभी भी अपने उपर हावी नही होने देना चाहिए। निंदा के खौफ को दिल से निकाल देना चाहिए। बस अपनी आत्मा की आवाज को दरकिनार नहीं करना चाहिए। जिस काम को करने के लिए आत्मा न माने वो काम कभी नहीं करना चाहिए। हमें समझ लेना चाहिए कि यह काम समाज हित और स्वयं हित के लिए हितकर नहीं। हमें निंदा की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए ।लेकिन अगर हमारी निंदा हमारे बड़े बूढ़े करते हैं तो फिर जरूर चिंतन मनन करना चाहिए क्योंकि वो सदा हमारे हित की सोचें गे ।उन के द्वारा की गई निंदा हमारी पथ-प्रदर्शक हो सकती है 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
निन्दन्तु नीतिनिपुणा, यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मीः स्थिरा भवतु, गच्छतु वा यथेष्टम् ।
अद्यैव वा मरणमस्तु, युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति, पदं न धीराः ।।  
अर्थात,नीति में निपुण मनुष्य चाहे निंदा करें या प्रशंसा,धन या लक्ष्मी आयें या इच्छानुसार चली जायें ।आज ही मृत्यु हो जाये या फिर युगों के बाद हो,परन्तु धैर्यवान मनुष्य कभी भी न्याय के पथ से डगमग नही होते है .....। 
संत कवि वचन भी है 
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
निंदक हमारे लिए प्रेरक का काम करते हैं, हम उनको सकारात्मक दृष्टिकोण से लेकर अपनी कमियों में सुधार कर सकते हैं। अपने गंतव्य की ओर बढ़ते चले हम बस, निंदक की बात को नकारात्मक ढंग से लेकर विचलित न हो।अगर ऐसा हुआ तो हमारी गति को प्रभावित करने में निंदक सफल हो जाएगा।
यह भी एक रोचक तथ्य है कि सफलता मिलने पर वह निंदक ही सबसे पहले बधाई देने वालों में शामिल होते हैं। कुछ मौनी स्वभाव के लोग भी होते हैं,खुद कुछ नहीं कहेंगे आपके विरोध के लिए दूसरे लोगों को तैयार करते रहेंगे। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि निंदा उसी की होती है,जो कुछ करता है।मान लीजिए यदि निंदा हो रही है,तो आप सफलता की ओर बढ़ रहे हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अगर हम अपने वेद पुराणों शास्त्र में लिखी बातों को पढ़ते हैं उस पर अमल करते हैं और जीवन में अपनाते हैं
गीता में श्रीकृष्ण ने भी कहा है--
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
यही बात जीवन के कर्म क्षेत्र में भी लागू होती है आप किसी भी क्षेत्र में आपको आगे बढ़ने के लिए निरंतर मेहनत लगन धैर्य और अभ्यास सतत करना होगा तभी आप लक्ष्य को प्राप्त होंगे लक्ष्य को ऊंचा रख कर वहां तक पहुंचने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और इस बात की परवाह किए बिना कौन क्या कहेगा कैसे करेंगे सफल होंगे असफल होंगे इन सारी बातों को अपने मस्तिष्क में ना रख कर केवल अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे तभी हम आगे बढ़ पाएंगे।
इतिहास गवाह है इस संसार में सफलता की ओर बढ़ते हुए लोगों को पीछे खींचने वाले हाथ बहुत होते हैं जीतता वही है जो लक्ष्य से कभी पीछे हटा नहीं लक्ष्य को माध्यम बना और जो कुछ उसे साधन मिलता है उसी‌ को
अथक परिश्रम धैर्य प्रयास दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर साध्य तक वह पहुंच जाता है सफल से सफल लोगों की जीवन की यही सच्चाई है। बार बार असफलता मिलने के बाद भी जो लक्ष्य से पीछे नहीं हटता जीत उसी की निश्चित होती है जैसे जैसे आप सफल होते हैं निंदा करने वाले की संख्या बढ़ने लगती है इससे डटकर मुकाबला करें घबराए नहीं जिंदगी का ही एक हिस्सा है यह मानकर चलें और निरंतर आगे बढ़ते रहें यही जिंदगी की सच्चाई है। बड़े-बड़े विद्वानों ने भी यही विचार प्रस्तुत किए हैं सफल लोगों के जिंदगी के बहुत से ऐसे उदाहरण भी हैं।
जिसे हम आए दिन पत्र पत्रिकाओं और अखबारों में पढ़ते रहते हैं।
उनसे हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा लेनी चाहिए। कर्म क्षेत्र में बढ़ते रहना ही 
जीवन का एक मात्र लक्ष्य होना चाहिए
जिससे हम अच्छे कर्मों के द्वारा समाज को कुछ दे सकें हमारा स्वयं का जीवन सफल हो । 
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
       यदि सकारात्मक सोच के साथ हम सही दिशा में जा रहे हों तो निंदा की परवाह किये बिना आगे बढ़ते चलना चाहिए। हर अच्छे कार्य में रुकावटें तो आती ही हैं, उनको नजरअंदाज करके अपने पथ पर अग्रसर होने में ही समझदारी है। परिणाम कुछ भी हो उसकी चिंता नहीं करना चाहिए। मार्ग सही हो तो निश्चित रूप से सफलता मिलेगी।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
कुछ तो लोग कहेंगे ..आपके काम के कई प्रशंसक मिलेगें कई आलोचना करने वाले ,प्रश्न यही है कि आपकी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिये ।हमें अपने हृदय के माप दंड से नापना चाहिये कि हमें प्रथमिकता किसे देनी है यदि हमारा लक्ष्य प्रथम है तो हम बिना किसी की परवाह किए अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहेंगे और यदि हम स्वयं में कमजोर हैं या ढ़ुलमुल रवैया है तब दूसरों की निंदा हमारी कमजोरी बनेगी और हम लक्ष्य तक नहीं पहुँच पायेंगे ।
अपना आत्मविश्वास ही स्वयं का सहायक होता है । हमें सुनना आना चाहिए आपके कर्म  के लिए अनेक अनुभव जमाना बाँट रहा होता है  । हम अच्छे अनुयभवों का संग्रह करें । कदम ताल मिला कर चलते चलें ,अच्छे अनुभव हमारी  पूँजी बनेंगे ।  रोजमर्रा की छोटी छोटी सफलतायें  एक दिन बड़ी सफलता देगी  । मैं तो यही कहूँगी सुनो सबकी करो मन की ।दिल दुखाने वाली बातें तो होती रहेंगी उसे बिसार दो हर काम को नियमित और व्यवस्थित ढ़ंग से करो और सफलता पाओ ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
       निंदक निंदा द्वारा व्यक्ति का मनोबल तोड़ने का प्रयास करते हैं और वीर साहसी पराक्रमी व्यक्ति उसी पल अपने व्यक्तित्व का परिचय देते हैं। जिस परिचय को इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में प्रदर्शित करते हुए उन पलों को विशेष बना देते हैं। जो व्यक्ति का सौभाग्य बनकर उभर जाता है और निंदक का दुर्भाग्य यह है कि वह निंदक का निंदक ही रहता है
       इतिहास साक्षी है कि देशभक्तों को 'देशद्रोह' के निंदनीय विषैले घूंट पीने पड़ते हैं। जिसके फलस्वरूप जीवन कष्टदायक बन जाता है।
       उल्लेखनीय है कि निंदा का प्रसाद ग्रहण करने वाला फर्श से अर्श पर चला जाता है और निंदक अर्श से फर्श पर आ जाता है। यह महापुरुषों का कहना है कि निंदा वह चुनौती है। जिसके मार्गदर्शन से सागर ही नहीं भवसागर पार हो गए और आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई।
       अतः मानव को निंदा की परवाह किए बिना मानवता के कठोर पथ पर अग्रसर होते रहना चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
निन्दक अर्थात् निन्दा करने वाला वास्तव में हमें अनजाने में सजग करता है। हमें अपनी निन्दा को ध्यान से सुनना चाहिए और उसमें यदि हमें अपने में कोई कमी नज़र आती है तो उसे समझ कर स्वयं में सुधार लाना चाहिए। हमंे तो निन्दकों का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने हमें सुधरने का अवसर दिया। स्वयं को सुधार कर हम जब आगे बढ़ेंगे तो हम बेहतर इन्सान होंगे।  हमारी काफी कमियां उस निन्दक द्वारा निन्दा के दौरान बताए जाने पर हम उन्हें दूर कर पायें। यदि कोई हमारी निन्दा नहीं करता है और सभी हमारी हां में हां मिलाते हैं या हम जो भी कार्य करते हैं उस पर हमारी खूब प्रशंसा करते हैं तो ऐसी स्थिति में हम यही समझते हैं कि हमने अपना लक्ष्य पा लिया और हम आगे बढ़ना बन्द कर देते हैं। पर निन्दक हमें आगे बढ़ने का अवसर देता है। हां, हमें यह याद रखना होगा कि हम सकारात्मक निन्दा सुनकर स्वयं को सुधारें।  नकारात्मक निन्दा की हमें परवाह नहीं करनी चाहिए। निन्दक के लिए हम फुटबाल की तरह हैं और उससे किक खाते रहते हैं।  हमें किक लगाने वाला निन्दक तो वहीं धरा पर रह जाता है और हम आकाश की ऊंचाई को छू लेते हैं। यह सब निन्दक के कारण होता है।  निन्दक हमें सीख ही देकर जाता है।  स्मरण रहे कि जीवन में सीखना कभी भी बन्द नहीं करना है, क्योंकि ज़िन्दगी कभी भी हमें सबक पढ़ाना बन्द नहीं करती है। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
सफल होने के लिए अपने लक्ष्य पर ध्यान रखना चाहिए न कि हमारे कार्यों की निंदा करने वालों पर।कुछ लोगों का काम बस निंदा करना और त्रुटि ढूंढना ही होता है,ऐसे में अगर हम विचलित हो जाएंगे तो मंज़िल तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा।एक प्रचलित मुहावरा भी है"हाथी चले बाजार कुत्ता भुके हज़ार"मतलब कुत्ते कितना भी भुके हाथी नहीं रुकता।कुछ लोग अपनी सफलता के घमंड में या दूसरों को हतोत्साहित करने में हमेशा निंदा करते हैं पर हमें उन बातों पर ध्यान न देकर अपने कार्य मे लगे रहना चाहिए,सफलता जरूर मिलेगी
                       -  संगीता सहाय
                         राँची -  झारखंड
 निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय ।
अर्थात कहते हैं जो हमारी निंदा करें उसे अधिकाधिक अपने पास ही रखना चाहिए ,वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ करता है ।अर्थात निंदा की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए।
 कबीर दास जी की यह पंक्तियां सार्थक ही कही जाएगी ,लेकिन इसके लिए हमें खुद के अंदर सहन शक्ति विकसित करनी होगी, कि हम अपनी निंदा स्वीकार कर पाए और अपने आलोचकों के साथ रह पाए ।
वैसे तो हम सब ऐसे लोगों से दूर ही रहना पसंद करते हैं जो हमारी निंदा करते हैं  ,क्योंकि हम खुले दिल से अपनी आलोचना स्वीकार नहीं कर पाते ।
आज भी बहुत ही कम होंगे जो वाकई में हमारी कमियों को सही तरीके से बताएं ।
और उन्हें  सुधार करवाने का प्रयास करें। 
 हमें  अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान केंद्रित रखना होगा और  निंदकों की ज्यादा परवाह नहीं करनी चाहिए ।अन्यथा हमारा मनोबल गिर जाएगा और हम लक्ष्य तक पहुंचने में सफल नहीं होंगे ।तो इस तरह निंदक की मंशा भी पूरी हो जाएगी ।
निंदक  भी दो तरह के होते हैं एक तो जलकर ईर्ष्या  बस निंदा करने वाले दूसरे आलोचना के जरिए सुधार करवाने की इच्छा रखने वाले।
 ऐसे में अपने विवेक से उनकी मंशा को पढ़ कर लोगों की बात को नजरअंदाज करना है या फिर सुधार करने का प्रयत्न करना है यह आप पर निर्भर करता है।
यदि आप यह पहचान पाते हैं कि वह जलन में निंदा कर रहा है या आपका हितेषी है ।
यूं तो किसी की पीठ पीछे बुराई करना अर्थात निंदा करना नहीं चाहिए ।
यदि हम ऐसा करते हैं तो उसके किए हुए पाप कर्म हमारे खाते में आते हैं ,और उन पाप कर्मों का भोग हमें भुगतना पड़ता है ।
यह मनुष्य का स्वभाव है कि जहां 4 लोग एक साथ बैठे हो वहां जो अनुपस्थित होता है उसकी बुराई शुरू हो जाती है।
 लोगों की निंदा किए बिना दुष्ट व्यक्तियों को आनंद नहीं आता, जैसे कौवा  कितने भी रसों का भोग करता है परंतु गंदगी के बिना उसकी तृप्ति  नहीं होती ।
यदि  हम किसी व्यक्ति  की बुराई करते हैं  तो पाप के भागीदार होते हैं।
अगर आपको लगता है हमारे आगे पीछे निंदक  हैं और मेरे लक्ष्य मार्ग में बाधा पहुंचा रहे हैं तो आपको वाकई उनकी बात पर ध्यान ना दे कर आगे बढ़ना है,,,, अपने लक्ष्य तक पहुंचना है ,,,यही श्रेयस्कर है और यही उन निदको एवं जलने वालों  का जवाब भी है ।
 - सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  निंदा करने वालों पर कभी ध्यान नहीं देना चाहिए । अपने काम पर आगे बढतें रहना चाहिए । यहीं जीवन के संघर्ष में काम आता है । जो चलता रहा , उस का निंदा कुछ नहीं बिगाड़ पाती है ।
             - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान








Comments

  1. यदि सकारात्मक सोच के साथ कोई अच्छा कार्य करने जा रहे हैं तो निंदा की परवाह किए बिना उसे करते जाना चाहिए। कुछ लोगों का स्वभाव ही निंदा करने का होता है। उसमें यदि कुछ सुधारने लायक हो तो सुधार करके अपने कार्य पथ पर आगे बढ़ते चले। यदि फालतू बकवास हो तो उसको नजरअंदाज कर देंं।

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