क्या चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत - अमेरिका में बढेगा सहयोग ?

चीन के खिलाफ दुनिया में वातावरण तैयार हो गया है । ऐसे में भारत - अमेरिका में सहयोग बढना बहुत साधारण सी बात है । कोरोना ने अमेरिका मे बाहरी तबाही मचा रखी है । इससे कोरोना की सख्या बढती जा रही है । ऐसे में भारत - अमेरिका एक जुट हो कर कार्य करने लगता है तो भविष्य के लिए सब - कुछ बदल जाऐगा । यही " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
भारत अमेरिका में आपसी सहयोग से निःसंदेह चीन पर दबाव बनेगा । भारत को अपना सहयोगी अमेरिका को बनाना भी चाहिए क्योंकि चीन विश्व स्तर पर अपनी किरकिरी करा चुका है ऐसे में विश्व बिरादरी चीन से सम्बंध कम कर रही है तो निश्चित तौर पर भारत को भी बह हवा के रूख रहना होगा । भारत और अमेरिका दोनों देशों का द्विपक्षीय सहयोग वैश्विक शांति और समृद्धि पर एक बडा प्रभाव डाल सकता है । युद्ध की बात को न भी सोचें तो भी यह भारतीय लोगों के लिए ज्यादा बडे आर्थिक अवसरों के सृजन के लिए और जलवायु परिवर्तन पर ज्यादा करीबी से काम करने के लिए  हितकर रहेगा । यह सहयोग हमारे राष्ट्रीय हितों के लिए आज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक दूसरे के करीब लाएगा । वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के मुताबिक फोरम की बैठक में दोनों देशों की तरफ से ऐसी नीति बनाने और उसे लागू करने जरूरत महसूस की गई जिससे मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में भारत और अमेरिका के बीच आपसी सहयोग में बढ़ोतरी हो सके। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से हेल्थकेयर, फार्मा, एयरो स्पेस, रक्षा व इंफ्रास्ट्रक्चर के अन्य क्षेत्र शामिल हैं। निवेश के प्रोत्साहन को भी ध्यान में रखते हुए नीति बनाने की आवश्यकता दोहराई गई। छोटे कारोबार, उद्यमशीलता, ऊर्जा, जल व पर्यावरण, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय सेवा जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने पर विचार-विमर्श किया गया। यदि ये सब विचार गंभीरता से लागू हुए तो दोनों देशों में सहयोग भावना को मज़बूत करेंगे ऐसे में आयात निर्यात किया जाना आसान हो जाएगा फिर तो निश्चित ही चीन दबाव में जाएगा ।क्योंकि ऐसे में चीन के माल की माँग व खपत कम हो जाएगी और चीन दबाव में आ जाएगा ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     चीन को समस्त प्रकार से परास्त करने के लिए भारत-अमेरिका में सहयोगात्मक रुप से दूरदर्शिता का परिचय देना होगा, तभी स्वच्छ क्रांति की शुरुआत हो सकती हैं। क्योंकि पूर्व  से जिस तरह चीन ने व्यापक रुप में व्यापारिक दृष्टि कोण अपना मायाजाल बिछाकर आमजनों को आकर्षित किया और पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने योगदान देकर, आत्मा निर्भर बनाया, अपना अभिभूत आर्थिक स्थिति की मजबूत किया। साथ ही अपनी सैन्य शक्तियों की पहचान बना कर अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाई हैं, जिसे हलके में लेकर  निरुपित करना संभव नहीं हैं। भारत को अमेरिका ही नहीं, अन्य संबंधित राष्ट्रों से सहयोग की अपेक्षा करते हुए हैं, हमेशा के लिए पंगु बनाना होगा। अन्यथा भविष्य में चीन आक्रामक हो सकता हैं। जिस तरह से चीन की युद्ध नीतियाँ प्रत्यक्ष प्रणाली के माध्यम से छापा मार तथा छुपकर वार करने की हैं, चीन की समस्त प्रकार की नीतियों को गुप्तचरों के माध्यमों समझना चाहिए?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
 चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत अमेरिका में बढ़ेगा सहयोग यह बात ठीक नहीं बैठता है। क्योंकि हम किसी दूसरे को दबाने के लिए अपने से अधिक शक्तिशाली देश से संबंध बनाते हैं, तो बाद में हमें ही दबना होता है।अमेरिका से सहयोग अगर हमारे देश की उन्नति के लिए है। तो जरूर स्वागत करना चाहिए। और किसी देश को तबाह करने के लिए या दबाने के लिए अमेरिका से सहयोग की अपेक्षा की जा रही है तो यह गलत बात है बाद में जो देश हमें सहयोग किया वही देश हमारी कमजोरी का फायदा उठाकर हमें ही दबाने की कोशिश करेगा। ऐसे सदियों से देखते आ रहे हैं ।हां अगर चीन को तबाह करना है ,तो बुद्धि बल से दबाव चीन की कमजोरी को पकड़ो और उसकी कमजोरियों का अवसर रहते ही उन्हें मात दो। यह युक्ति मेरे विचार से ठीक लगती है कहने का मतलब है कि चाइनीस जितने भी समान हम भारतवासी इस्तेमाल करते हैं। उसको बंद करके स्वयं अपने लिए माल का उत्पादन करें और अपने मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करें इससे अपने आप चीन का आय का स्रोत कम होने लगेगा और चीन अपने आप टूटने लगेगा ।अगर  हमारे भारत की सीमा को कब्जा करता है तो हमारी सेना मुह तोड़ जवाब देने के लिए काफी है। इसमें सहयोग लेने की आवश्यकता महसूस मेरे विचार से नहीं हो रही है बल्कि हमारे  देश में जो भी संसाधन है  उसका  टेक्नोलॉजी तरीके से  समान का  निर्माण करना चाहिए जो टिकाऊ  मजबूत और आकर्षक हो । हमें आत्मनिर्भर होना है तो हम भारतवासियों को हमारी संसाधनों का सदुपयोग हमें खुद करना होगा और निर्माण भी करना होगा। यही हमारी भारतीय संस्कृति है। दूसरों कीसहयोग लेकर के दूसरे को तबाह करना यह हमारी संस्कृति नहीं है ।हां अगर चीन पुनः  गलती करता है तो उस गलती का एहसास कराने  की ताकत हमारी भारत में है। हमारा भारत भौतिक संसाधन में पीछे है लेकिन  समझ क्षेत्र में सर्वोपरि है। इसीलिए भारत की संस्कृति के कारण भारत को विश्वगुरु के नाम से जाना जाता है।
  - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
       शत्रु पर दबाव बनाने के लिए अपनी विभिन्न शक्तियों का प्रदर्शन करना अत्यंत आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है। जिनमें सेना और सैन्य बलों का प्रदर्शन, अस्त्रों-शस्त्रों का प्रदर्शन, धन-संपत्ति का प्रदर्शन और शक्तिशाली मित्रों से मित्रता का अंतराष्ट्रीय प्रदर्शन शामिल हैं।
     सर्वविदित है कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनते ही विदेश नीति पर बल दिया और विश्व के विभिन्न राष्ट्रों से मेल-जोल बढ़ाने के लिए दौरे पर दौरे किए। जिसका महत्त्व समझते हुए विरोधी दलों ने अपत्ति भी जताई। किन्तु राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत पर अमल करते हुए मोदी जी ने अपनी कार्रवाई जारी रखी। जिससे भारत आत्मनिर्भर व सशक्त हुआ और बिना युद्ध के पाकिस्तान को विश्व से अलग-थलग कर दिया। जिसे राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों की सूची में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।
        भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय ख्याति और पाकिस्तान के अलग-थलग होने से चीन का माथा ठनका।वह अपने पड़ोसी राष्ट्र की बढ़ती शक्ति से घबरा गया और पाकिस्तान से मेल-जोल बढ़ाने में सफल हुआ। यही नहीं वह वर्षों से चली आ रही भारत-नेपाल की मित्रता में खटास डालने में भी सफल हो गया। जिसे हम अपनी दूरदृष्टी की हानि भी कहने में आनाकानी नहीं करेंगे। परंतु गलवान घाटी में हमारे शूरवीरों द्वारा चीनी सैनिकों को दी करारी मात से गौरवान्वित भी हैं।
      उल्लेखनीय है कि भारत और भारतीयों के शिरोमणि प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी एवं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में मित्रता है। जिसके चर्चे चारों ओर हैं और उसका राजनैतिक लाभ लेना चतुराई के साथ-साथ हमारा राष्ट्रीय धर्म भी है। कहते हैं कि शत्रु का शत्रु परम हितैसी और परममित्र होता है। जो वर्तमान समय में भारत-अमेरिका दोनों के पक्ष में है।
      अतः रूसी मित्रता निभाते हुए भारत-अमेरिका के सहयोगी संबंधों से चीन पर शत प्रतिशत दबाव बनेगा और भारत विश्व शक्ति बनने में अग्रसर होगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अमेरिका के लिए जरूरी है कि वह भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए मिले इस अवसर को न गवाएं ,क्योंकि चीन पर दबाव बढ़ाने का सुनहरा मौका है, जिसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।
 अमेरिका और भारत की साझा डिजिटल रणनीति में चीन की सामरिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाई जा सकती है ।
दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश एक साथ आ सकते हैं, जिससे कि चीन के जमीनी अतिक्रमण और साइबर दुनिया में उसकी सामरिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाई जा सके।
 इस समय अमेरिका के लिए बहुत बड़ा अवसर इंतजार कर रहा है ,जिससे 3 बड़े फायदे होंगे नंबर 1 चीन को फौरी तौर पर आर्थिक क्षति पहुंचेगी ,नंबर 2 भारत की साइबर सुरक्षा क्षमता विकसित होगी ,नंबर 3 सूचना और संचार तकनीक के प्रमुख निर्माण केंद्र के तौर पर भारत की प्रगति को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
 आज भारत और अमेरिका की साझेदारी की जरूरत बढ़ गई है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
भारत- अमेरिका एक शक्तिशाली लोकतांत्रिक देश है ।अगर दोनों आपस में सहयोग करेगें तो चीन पर दबाव बनाने में आसानी होगा ।
चीन के आक्रमक रुख के मद्देनजर ,भारत -अमेरिका की करीबी संबंध अहम् हुए ।
ट्रंप ने टिक टॉक,वी चैट पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पर हस्ताक्षर किए। भारत पहले ही कर चुका है। इससे चीनी इंटरनेट कंपनियों पर असर पड़ेगा।
ताजा खबर :-भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों कि फोन पर बात हुई,दोनों नेताओं ने फोन पर आपसी सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया जैसे कोरोना महामारी,हिंद  और प्रशांत महासागर इलाके पर द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर बात हुई है।
अमेरिका और भारत का साझा डिजिटल रणनीति से चीन की सामरिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाई जा सकती है।
अमेरिका के लिए जरूरी है कि वह भारत के रिश्ते मजबूत करे और इस अवसर को ना गवाएं। यह सुनहरा मौका है जिसे बर्बाद नहीं होने देना चाहिये।
 जिससे कि वो चीन के जमीनी अतिक्रमण और साइबर दुनिया में उसके सामरिक महत्वकांचाओ पर लगाम लगा सके।
लक्ष्य :- 1)चीन को फौरी तौर पर आर्थिक क्षति पहुंचाना।
2) भारत के साइबर सुरक्षा क्षमताओं को विकास करें।
3) सूचना और संचार तकनीकी के प्रमुख निर्माण केंद्र के तौर पर भारत के प्रगति को बढ़ाने में मदद करना।
लेखक का विचार :-अमेरिका लगातार चीन पर आक्रमक है, बीते  दिनों भारत -चीन के बीच हुए विवाद में खुले तौर पर भारत के साथ खड़ा हुआ नजर आया।
इन सब कारणों से पता चल रहा है ,भारत -अमेरिका में सहयोग बढ़ेगा। चीन के मनमानी पर रोक लगेगी, साथ ही साथ आर्थिक नुकसान होगा। ताकि उसका मनोबल टूटे।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
यह विषय 2 देशों के सहयोग से संबंधित है यदि चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत अमेरिका में सहयोग बढ़ाने की अपेक्षा रखी जाती है तो मेरे ख्याल से यह अनुचित है जहां तक मेरी विचारधारा है कोई एक देश अगर दूसरी देश को हानि पहुंचाने के लिए अगर सहयोग लेता है तो कभी न कभी सहयोग देने वाला देश भी सहयोग मांगने वाले के साथ हानि पहुंचा सकता है भारत अपने आप में समृद्ध सशक्त देश है और इसे विश्व गुरु भी माना गया है यह अपने आप में इतनी ताकत रखता है कि चीन जैसे देश से अपने बल पर मुकाबला कर लेगा अब है तरीका खोजना है चीन की सीमा पर होने वाले के साथ भारत अपने सैन्य दल के माध्यम से हमेशा यह दिखला पा रहा है कि चीन को भारत पर कब्जा नहीं होने देने दिया जा सकता है
दूसरे महत्वपूर्ण कारक है चाइनीस सामानों का भारत में धड़ल्ले से मार्केटिंग होना जिस दिन चाइनीस सामानों का भारत में मार्केटिंग बंद हो जाएगा खरीदारी बंद हो जाएगी चीन अपने आप ही टूट जाएगा इसलिए पहला कर्तव्य बनता है सभी नागरिकों का कि चाइनीस सामानों का इस्तेमाल ना करें चाइनीस सामान बहुत अच्छा होता भी नहीं है पहला तो टिकाऊ नहीं है दूसरा सिर्फ आकर्षक है और पैसों का लूट है इसलिए चाइनीस सामानों का खरीदारी नहीं करना है देश को सुरक्षित रखने के समान है देश के साथ-साथ समाज और परिवार भी सुरक्षित रहेगा भारत देश के आर्थिक अंश इन सामानों के माध्यम से चीन में चला जाता है जिसे रोकना अति आवश्यक है अब यदि इन सामानों को खरीदारी में बंद कर दिया जाए तो इसके बदले किया क्या जाए यह एक महत्वपूर्ण सवाल सामने में उठ खड़ा होता है तो कहीं ना कहीं हमें अपनी जरूरतों के साथ समझौता करना होगा चकाचौंध से बचना होगा और अपने देश का माल खरीदना होगा और अपने देश में ही उत्पादन की अवस्था को बढ़ाना होगा जहां पर यह चीज बढ़ जाएगा एडवर्टाइजमेंट कम करना होगा चाइनीस चीजों का जो एडवर्टाइजमेंट आता है विदेशी चीजों का जो एडवर्टाइजमेंट आता रहता है उसे रोकना होगा यह काम सरकार ही कर सकती है और यह सरकार का ही मुख्य कर्तव्य बनता है कि इस विषय पर कोई ना कोई सख्त कानून बनाया जाए जिससे कि चीन से उत्पादित वस्तुओं का भारत में मार्केटिंग ना हो और भारत अपने आप में इस बात के लिए सक्षम हो जाएगी वह चीन से मुकाबला कर सकता है और उसे अमेरिका से सहयोग की कोई आवश्यकता नहीं होगी
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
एक कहावत है कि 'दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त'। चीन की वजह से भारत-अमेरिका के मध्य सहयोग का एक महत्वपूर्ण कारण यही है। अमेरिका कोरोना की उत्पत्ति का जिम्मेदार चीन को मानता है और इसी से उसके प्रति आक्रोशित है। भारत के प्रति चीन की कुटिल, कुत्सित हरकतों को पूरा विश्व देख चुका है। अमेरिका सहित विश्व के अनेक देश चीन पर लगाम कसना बहुत आवश्यक समझते हैं।
भारत चीन की हरकतों का माकूल जवाब दे चुका है और प्रत्येक मोर्चे पर उसके सामने सीना तानकर खड़ा है। चीन को धूल चटाने के लिए भारत को यदि अमेरिका का सहयोग प्राप्त होगा तो चीन को सशक्त प्रत्युत्तर मिलेगा। इसलिए चीन पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका का सहयोग लेने में कोई हानि नहीं है परन्तु अमेरिका की स्थिति केवल एक सहयोगी की होनी चाहिए। भारत द्वारा अमेरिका को केवल उतना ही महत्व दिया जाये जितना एक सहयोगी को दिया जाता है। ऐसा न हो कि सहयोग देते-देते अमेरिका, भारत के सिर पर बैठने की मंशा बना ले और भारत के अन्दरूनी मामलों में दखल देना अपना अधिकार समझले।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत अमेरिका का सहयोग जोरों पर है क्योंकि चीन पर कोरोना फैलाने का सीधा सीधा अरोप है, जिसका हरजाना सारी दुनिया झेल रही है। अव कोरोना कांड का कहर ड्रैगन पर टुटने वाला है
इसलिए चीन पर प्रतिवन्ध लगाने की तैयारी में  अमेरिका ओर भारत एकजुट  होते हुए नजर आ रहे हैं क्योंकी कोरोना के कहर ने सवसे ज्यादा तवाही इन दोनों देशों  में मचाई है,  क्योंकी चीन नही चाहता यह देश उभर कर आगेऑए इसलिए उसने इन दोनों देशो की आर्थिक स्तिथी कमजोर करने का षडयंत्र रचा है। 
इसलिए अव जल थल अोर वायु यानी हर तरफ से होगा संग्राम भारत अोर अमेरिका दोनों हर पल चौकसी पर हैं जिससे ड्रगैन की परैशानी साफ झलक रही है, यहि नहीं जापान, कोरिया अस्ट्रलिया दक्षिणी कोरिया इत्यादी चीन की घेरावन्दी कर वैठे हैं इन सभी ने चीन को चारों खाने चित करने की निती वना ली है, अव सभी देश मिलकर चीन के व्यपार को करेंगे तवाहा भारत पहले ही चीन की चीजों पर प्रतिवन्ध लगा चुका है, अब ट्रंप चीन पर प्रतिवऩ्धों की कर सकते हैं वरसात, पहले कोरोना पर तकरार अव अमेरिका लेकर आया है एैसा विल जिसमें अमेरिका दे सकता है नौ एैंट्री का पैगाम जिससे चीन का गौरखधऩ्धा वन्द हो जा़एगा अमेरिका के पास एैसे अधिकार  मिलने जा रहे हैं कि वो उसके व्यपार की सम्पत्ति सीज कर सकता है। 
भारत ने चीन को आगे ही धमकी दी है कि अगर वो ़अपनी खैर चाहता है तो सीमा पर हरकतों से वाज आ जाए, इसलिए भारत के साथ वडे चीन को चिंता सताने लगी  है कहीं भारत और अमेरिका इकट्ठे न हो जांए इसलिए चीन डरा हुआ है कि अमेरिका और भारत के जाल से पूरा समीकरन उसके खिलाफ वनने लगा है, इससे साफ जाहिर होता है कि चीन पर दवाव वनाने के लिए भारत अमेरिका में सहयोग वढ रहा है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
संकेत तो यही है कि चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत का सहयोग करेगा अमेरिका। श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीरामंदिर के शिलान्यास वाले दिन अमेरिका का हर्षित उल्लासित व्यवहार संकेत दे रहा है कि वह भारत के साथ मन से सहयोगी रुप है। कोरोनावायरस के फैलाव से अमेरिका को भी भारी जन धन की हानि उठानी पड़ी है।उसने स्पष्ट कहा था कि यह वायरस चीन की देन है। भारत में गलवन घाटी में चीनी सेना के कब्जे की साज़िश का मुंहतोड़ जवाब भारत ने चीनी विरोध की अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति जाहिर कर दी।राफेल विमान देश में आने के बाद विश्व मंच पर भारत का रुतबा बढ़ा है। अमेरिका भारत की कोरोनावायरस रोकथाम की व्यवस्था,गलवन घाटी में सैनिकों के पराक्रम, चीनी एप्स पर प्रतिबंध,और विभिन्न चीनी कंपनियों से हुए करार रद्द करने की भारत की कार्रवाई से बहुत प्रभावित नजर आ रहा है।कल ही अमेरिका ने घोषणा की कि वह अपने देश में टिकटाक पर प्रतिबंध लगाएगा। चीन से व्यापारिक गतिविधियों पर  रोक लगाने का सिलसिला चल ही रहा है। माना जा रहा है कि चीन के पास कोरोनावायरस की तरह की खतरनाक जैविक हथियार है। दुनिया अब तक परमाणु अस्त्रों से डर रही थी कि यह जैविक हथियारों खतरा आ गया। अब अमेरिका ही नहीं विश्व के अधिकांश देश चीन पर दबाव बनाने के प्रयास में है, और भारत के इस पर पहल करते ही वह भारत के सहयोगी बनने की राह पर बढ़ना शुरू कर दिया है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
विगत सभी घटनाक्रम पर नजर डालते हैं तो हम यह देखते हैं कि --  भारत और अमेरिका के संबंधों में कभी
निकटता और सहयोगात्मक रवैया नहीं रहा लेकिन  विगत 20 वर्षों में चीन ने भारत के बाजार पर अपना बहुत आधिपत्य जमा लिया है और टिक टॉक अन्य चीनी एप के जरिए उसकी रोज की करोड़ों की कमाई है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी 45 दिनों के अंदर टिक टॉक को अमेरिका से हटाने के लिए कहा है इसके जरिए चीन लोगों की पर्सनल जानकारियां हासिल करता है। भारत में 9 अगस्त से चीन भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने जा रहा है अमेरिका के विषय यह नहीं कहा जा सकता कि वह भारत का सहयोग करेगा यदि अमेरिका भारत का सहयोग करे तो निश्चित रूप से चीन पर दबाव हो सकता है वैश्विक महामारी करोना के काल में अमेरिका में मृत्यु दर संख्या अत्यधिक रही अमेरिका चीन से नाराज है कि उसने इस बात की जानकारी नहीं दिया इस तथ्य को छिपाया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन से नाराज है और चीन भारत सीमा विवाद आए दिन बढ़ता जा रहा है ऐसी स्थिति में भारत अमेरिका सहयोगात्मक रवैया अपनाएं तो निश्चित चीन पर दबाव बनेगा।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
       जिस तरह से भारत और अमेरिका अभी तक सहयोगात्मक रवैया अपना रहे हैं उससे तो लगता है कि चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत अमेरिका में सहयोग बढ़ेगा। अभी कुछ दिन पहले दोनों देशों की सैन्य शक्तियों ने एक साथ युद्ध अभ्यास भी किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी तथा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जी के बीच भी आपसी समझ का तालमेल है ।अतः उम्मीद तो यही है कि चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत अमेरिका में सहयोग बढ़ेगा।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर  "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
चीन से तनाव के बीच भारत और अमेरिका के बीच सहयोग बढ़ेगा। इसके लिए दोनों देशों ने रणनीति बनानी शुरू कर दिए हैं। लद्दाख के गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में और मजबूती देखने को मिल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अमेरिका के साथ हर स्तर से सहयोग के लिए आगे बढ़ रहा है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने हाल ही में कहा कि पिछले 15 जून की भिड़ंत चीन की आक्रामक कार्रवाई थी। बीजिंग की यह रणनीति है जिससे वह अपने पड़ोसी देशों के साथ गलत तनाव  बढ़ाते रहता है। चीन को औकात दिखाने के लिए भारत ने सिर्फ अमेरिका के साथ ही नहीं बल्कि जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी अपने साथ कर रखा है। अमेरिका के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान कवार्ड बनाया है। चीन के साथ यदि युद्ध के हालात बने तो अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भारत के समर्थन में एक साथ आ सकते हैं। हिंद महासागर में साझा युद्ध अभ्यास कर भारत और अमेरिका ने चीन को सख्त संदेश दे दिया है। अमेरिका ने चीन पर दबाव बनाने के लिए अपने तीन एयरक्राफ्ट कैरियर को भेज चुका है। अमेरिका के सबसे बड़े और शक्तिशाली एयरक्राफ्ट कैरियर निमितज सुपर कैरियर साउथ चाइना सी में अभ्यास कर लौट रहा है। और लौटने के क्रम में अंडमान के पास भारतीय समुद्री इलाके में भारतीय नौसेना के साथ एक युद्ध अभ्यास कर चुका है। चीन को कड़ा जवाब देने के लिए अमेरिकी नौसेना ने हिंद महासागर में भारतीय नौसेना के साथ संयुक्त नौसेना अभ्यास शुरू कर दिया है। इस संयुक्त नौसेना अभ्यास की जानकारी अमेरिका नौसेना की सार्वजनिक मामलों के अधिकारी लेफ्टिनेंट कमांडर लिया डोघर्ती ने दी है। भारत और अमेरिका ने चीन पर दबाव बनाने के लिए आर्थिक अस्तर से भी प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है जिससे चीन की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। चीन ने जिस तरह से कोरोना संक्रमण महामारी को विश्व भर में बढ़ाकर वैश्विक महामारी फैलाया है इससे दुनियाभर के देश चीन के खिलाफ है। अमेरिका ऑस्ट्रेलिया जापान और भारत हर हाल में चीन को उसकी औकात बताने के लिए संयुक्त रूप से एक साथ है। चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत और अमेरिका हर स्तर से एक साथ है और रणनीति के तौर पर काम कर रहे हैं।
-अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
कतई नहीं! फिलहाल हमारा भारत पूर्ण रुप से सक्षम है !आज हमारी सेना जल, थल,वायु सभी तरह  से सशक्त है! सबसे बड़ी बात हमारी सेना में जीत के विश्वास की है! आज औरों की तरह हम भी आधुनिक हथियारों की ताकत रखते हैं! यह अलग बात है के चीन के कारण कोरोना से प्रताणित होकर सभी देश मिलकर  उसे सबक देता हो तो एक दूसरे का साथ देना बनता है किंतु यह भारत और चीन की लड़ाई है अतः सहयोग की जरुरत  नहीं है !वैसे भी अमेरिका चीन से नाराज है तो सहयोग लेना यानी भारत के कंधे पर बंदूख रख अमेरिका चीन पर गोली बरसायेगा और वह क्लीन चीट ले बहती गंगा में हाथ  धो लेगा! आज भारत की सोच बहुत ही विशाल है! आत्म निर्भय बन अपने उद्योग को फैलाने का प्रयास करेगा! आर्थिक स्तर पर अपने बलबुते पर जन जन को आत्म निरभर बना मिसाल खड़ी कर चीन को आर्थिक मार देगा! चीन के सामान का बहिष्कार करना भी बहुत बड़ी जीत है ! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
           वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सीस लगता है कि चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत-अमेरिका का सहयोग अवश्य बढ़ेगा। क्योंकि चीन की गलत नीतियों को देखते हुए ये जरूरी है कि भारत और अमेरिका इस कार्य में कर काम  करें।
           चीन हमेशा भारत के विरुद्ध रहा हो। हमेशा उसकी हड़प नीति रहती है। पहले भी और अभी भी भारत की बहुत सी भूभागों पर उसका कब्जा है। बीच -बीच में वह हमारी भुभि को अपना बताता रहता है। ऐसी स्थिति में भारत को एक मजबूत सहयोगी की जरूरत है। फिलहाल अमेरिका ही इस कार्य के लिए उपयुक्त साथी साबित होगा। औऱ अमेरिका को भी अपने हितों के लिए चीन के एक मजबूत पड़ोसी की जरूरत है जो भारत ही है। ऐसी स्थिति में भारत-अमेरिका का एक दूसरे का सहयोगी बनना लाजिमी है।
    अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि दुनिया में कोई भी शक्ति उससे बड़ी हो । ऐसी स्थिति में चीन को दबाने के लिए वो भारत का सहयोग अवश्य चाहेगा। वैसे भारत आज के दिन में चीन को सबक सिखाने में स्वयं सक्षम है। फिर भी यदि अमेरिका का साथ मिल जाता है तो ये सोने पे सुहागा साबित होगा।
         कोरोना को लेकर भी अमेरिका चीन से खफा है।वाणिज्य दूतावास तो बंद कर ही दिया है।
       इसलिए मेरे विचार से चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत-अमेरिका में सहयोग अवश्य बढ़ेगा।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं बंगाल
चीन की उल्टी गिनती अब शुरू हो चुकी है। इस जंग की शुरुआत भारत ने की है। शुरुआती जंग के समय कोरोना का आक्रमण से विश्व उथल-पुथल में फंसा था। लेकिन आज जब गाड़ी पटरी पर आ गई है तो सभी देश इस समस्या को गहराई से सोच रहे हैं । इस प्रक्रिया के अंतर्गत भारत की नजदीकियाँ सभी चीन विरोधी देशों से बढ़ती नजर आ रही हैं । सभी भारत के द्वारा उठाये कदमों के महत्त्व को समझ रहे हैं । अब एकता हमें देशों के बीच दिखानी है। भारत ने अपने बल पर विरोध की नीति तैयार की थी। आज अमेरिका साथ में खड़े होने को तैयार है तो  हम मिल कर लड़ाई लड़ेंगे।
 अमेरिका अभी शक्तिशाली देश है। उसके पास ताकत है । उसे किसी की सहायता की जरूरत नहीं है। फिर भी वह भारत से सलाह मशविरा करने को तैयार है। इसके पीछे जो भी राजनीति हो, लेकिन मोदी जी ने सभी देशों का विश्वास जीता है। 
सभी के साथ मिलकर रहना भारत ने ही विश्व को सिखाया है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
चीन पर दवाब बनाने के लिए भारत अमेरिका में सहयोग तो भारत की शक्ति के आधार पर ही बनेगा l भारत तो सदैव विश्व गुरु रहा है, स्वयं अपने आप में समर्थ और सक्षम है उसे किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता कहाँ? 
इतिहास उठाकर देखें तो भारत अमेरिका संबंध कभी सुदृढ़ नहीं रहें l फिर भी शुक्र है कि अमेरिका के किलंटन प्रशासन ने, वहाँ के राजदूत और प्रवक्ताओं ने अब जमीनी सत्यों को पहचानना शुरू कर दिया है l अतः आशा की जा सकती है कि अब जल्दी ही भारत अमेरिका में सहयोग बढ़ेगा l 
       भारत को अपनी शक्ति पर विश्वास है l वह आत्मनिर्भर भारत है जिसकी तर्ज पर आज अमेरिका भी चल पड़ा है l हमारे देश की प्रगति में बिना स्वार्थ के यदि कोई आगे बढ़कर आता है तो हमें भी उसका स्वागत करना चाहिए l अमेरिका दवाओं और चिकित्सा आपूर्ति के लिए चीन जैसे देश पर अपनी आत्म निर्भरता खत्म करेगा l कोरोना को लेकर चीन पर हमलावर ट्रम्प का यह चीन को नया झटका है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कहते हैं जिसका जो स्वभाव रहता है वह वक्त -वक्त पर अपना रुप दिखाता है ।चीन की भी अतिक्रमण कीआदत जा नहीं सकती ।उसको सबक सिखाने के लिए अमेरिका और भारत की जुगलबंदी कोई बुरी नहीं है ।अरे !हम किसी का दिया खा नहीं रहे है ,लेकिन यदि अनावश्यक कोई तंग करता है और कई लोग पीड़ित हैं तो एक साथ आने में और चीन को सबक सिखाने में कोई हर्ज नहीं है ।इतिहास गवाह है   जब किसी राजा का अत्याचार बढ़ा है कई रियासतें एक साथ आयीं और अत्याचार का दमन किया । भारत और अमेरिका विश्वसनियता को आगे बढ़ाना चाहते हैं क्यों कि कई देशों का चीन पर से विश्वास उठ गया है वो भी उम्मिद है इस संगठन में शामिल होंगे ।मिल जुल कर तकनीक क्षेत्र को विश्वस्यनीय बनायेंगे ।सबका चीन को कमजोर करने का एक ही नजरिया है ,आर्थिक रुप से चोट पहुँचाना ।मेरे नजरिए से चीन पर दबाव बढ़ाने के लिए भारत और अमेरिका में सहयोग बढ़े ,हमारे प्रधान मंत्री और रक्षाविषेशज्ञ अपनी नीति को सफलता तक पहुँचाने में सक्षम हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश


" मेरी दृष्टि में " कोरोना ने पूरी दुनिया का ध्यान चीन के ऊपर कर दिया है । चीन को इस का भुगतान देर सबेरे करना तो पड़ेगा । ऐसे में भारत - अमेरिका की एक नीति बन कर कार्य कर सकती है ।बाकी भविष्य के गर्भ में है
            - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान पत्र

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