क्या दुश्मन को भी दोस्त बनाना एक कला हैं ?

दुश्मन बनाना बहुत ही आसान है । परन्तु दुश्मन को दोस्तों  बनाना कोई आसान कला नहीं है । फिर भी मैने अपने जीवन में दुश्मन भी दोस्त बनते देखें हैं । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
 दोस्तों अर्थात हमारी अनुकूलता के आधार पर कार्य व्यवहार करना दोस्त ।दुश्मन अर्थात हमारे प्रतिकूल के अनुरूप कार्य व्यवहार करना दुश्मन ।गलत करना दुश्मन ।सही करना दोस्त। इसी भवर में मनुष्य फंसा हुआ है। दुश्मन को भी दोस्त बनाने की कला है ।पहले जिसको आप दुश्मन समझते हो उसकी मनोदशा को जानो उसकी क्या मनोदशा है ,उसकी मनोदशा के अनुरूप अगर उसे समझाइश और स्नेह भाव से प्रेम पूर्वक मित्रवत व्यवहार किया जाए, तो एक न एक दिन दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं ।इस संसार में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता हर वस्तु इस संसार में उपयोगी होने के लिए प्रगट हुए हैं। मानव तो ज्ञान अवस्था की इकाई है अर्थात मानव के पास ज्ञान है उस ज्ञान का सही पहचान ना होने के कारण लोग गलतियां करते हैं। यही गलती करने वाले दुश्मन बन जाते हैं अगर ऐन मौके पर उन्हें सही की समझ दी जाए तो कोई भी व्यक्ति इस संसार में दुश्मन नहीं होगा सभी सही कार्य करने लगेंगे सब एक दूसरे का सहयोग करने लगेंगे सभी का एक लक्ष्य है। ऐसा मानकर लक्ष्य को पाने के लिए सभी को एक दूसरे की सहयोग की आवश्यकता है ।अतः मनुष्य जाति दुश्मनी से नहीं दोस्ती व्यवहार करने से ही अपने लक्ष्य को पाते हैं दुश्मन को दोस्त बनाना सिर्फ व्यवहार पर ही निर्भर रहता है हमारे अनुकूल अगर कार्य नहीं करता है तो पहले से ही उसको दुश्मन मान बैठते हैं। उसकी मनोदशा पर ध्यान नहीं जाता है जिस व्यक्ति की ध्यान जिसे वह दुश्मन मानते हैं उस पर चला जाता है तो जरूर एक न एक दिन उनसे सही व्यवहार कर दोस्त में परिवर्तन कर देता है यही व्यक्ति सच्चा दोस्त होता है ।दोस्त बनाना एक कला है ।ऐसी कला हर मनुष्य में रहता है 
बशर्ते कि उन्हें पता नहीं होता अगर पहले से पता होता तो कोई दुश्मन नहीं मानते अतः अंत में यही कहते बनता है कि दुश्मन  को भी दोस्त बनाना एक कला है। 
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ -छत्तीसगढ़
आज मानवीय संवेदनाओं एवं आपसी रिश्तों की जमीं सूखती जा रही है। ऐसे समय में एक दूसरे से जुड़े रह कर जीवन को खुशहाल बनाना और दिल में जादुई संवेदनाओं को जगाने का रिश्ता दोस्ती ही है।
दोस्ती वह रिश्ता है जो आप खुद तय करते हैं, जबकि बाकी सारे रिश्ते आपको बने-बनाये मिलते हैं। जरा सोचिए कि एक दिन अगर आप अपने दोस्तों से नहीं मिलते हैं, तो कितने बेचैन हो जाते हैं और मौका मिलते ही उसकी खैरियत जानने की कोशिश करते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह रिश्ता कितना खास है !
हमारे जिंदगी में हमें बहुत सारे दोस्त होते हैं, लेकिन कई बार किसी दोस्त के साथ हमारा झगड़ा हो जाता है | किसी दोस्त के साथ झगड़ा होने के बाद हमारी उस दोस्त के साथ पूरी तरह से दुश्मनी हो जाती है, जिसके कारण कुछ दिनों के बाद हमें पछतावा होकर उस दोस्त से फिर से दोस्ती करनी होती है |वही हमारी कला है की हम दुश्मन को। दोस्त बना ले । 
हमारा व्यवहार व पहल दुश्मन को दोस्त बना देती है !
दुश्मन को दोस्त बनाना हमें हमारी कला है जो सबको पंसद आती है तभी कहते हैं न वह तो बहुत बड़ा कलाकार है । जादु है उसके पास वह दुश्मन को भी दोस्त बना लेता है ! 
कुछ नहीं करना होताहै अपना व्यवहार अच्छा व मधुर रखना होता है ? 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जहांँ तक आज की चर्चा का यह प्रश्न है कि क्या दुश्मन को भी दोस्त बनाना एक कला है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा वास्तव में यह बहुत ही बड़ी कला है और बहुत ही सुलझा हुआ व्यक्ति ऐसा कर पाता है लेकिन यह असंभव भी नहीं है परंतु आज के दौर में जब व्यक्ति अपने पारिवारिक ताने-बाने को ही संभालने में असमर्थ प्रतीत हो रहा है और अधिकतर परिवारों में आपसी सामंजस्य एवं प्यार स्नेह परस्पर सौहार्द की भावना का विलोप होता जा रहा है ऐसे में इस चीज की कल्पना करना अपने आप में एक अचरज भरा सुखद एहसास हो सकता है यदि ऐसा संभव हो तो बहुत सारे लड़ाई झगड़े वैमनस्य बहुत आसानी के समाप्त के साथ समाप्त किए जा सकते हैं यह किया जाना बहुत आवश्यक है समाज के लिए भी परन्तु यह एत बहुत ही दुष्कर कार्य है और कोई मनीषी व विशाल हृदय व्यक्ति ही ऐसा कर पाता है क्योंकि यदि किसी दुश्मन को दोस्त अथक प्रयासों के बाद बना भी लिया जाए तो उसकी विश्वसनीयता की संभावना बहुत कम रहती है और कभी भी किसी भी समय पर किसी भी अवसर पर विश्वासघात की संभावना बनी रहती है आज के दौर में व्यक्ति कहता कुछ और है करता कुछ और है बताता कुछ और है यह एक सर्वविदित सत्य हैं परंतु हम सब सामाजिक प्राणी है और सभी को यहीं पर रहना भी है इसलिए सभी के साथ रहते हुए आगे बढ़ना है और इस सब से बचा भी नहीं जा सकता परंतु बहुत ही सतर्कता के साथ रहने की आवश्यकता है और यह प्रयास करते रहने की आवश्यकता है कि जहां तक हो सके सभी के साथ सामंजस्य बना रहे यदि किसी के साथ हमारा कोई वैमनस्य या मनमुटाव है भी तो इस तरह से रहे कि और ज्यादा दुर्भावना न बढे और एक दूसरे का अहित करने की सोच बलवती न हो अन्यथा यह न केवल हमारे लिए परिवार के लिए समाज के लिए भी बहुत घातक सिद्ध हो सकता है यह एक सुखद अहसास वाली बात है यदि हम सब मिलकर प्यार सद्भाव सौहार्द की भावना के साथ रहे और न केवल अपने अपने परिवार वाले सगे संबंधियों के साथ प्यार से रहे बल्कि अपने दुश्मन के साथ भी ठीक से व्यवहार करते रहे और ताकि वह समय भी आए जब वैमनस्यता और कड़वाहट दूर हो और वह भी हमसे सामान्य व्यवहार कर सके .
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
दुश्मन को भी दोस्त बनाना एक कंला है, यह कहना उचित प्रतीत नहीं होता, बल्कि यूँ कहें कि ऐसा करना अच्छे गुण का परिचायक है। जीवन में यह बात सदा रखने योग्य है कि हमारे दोस्त भले ही कोई न बन पाए परंतु हमें इतना अवश्य प्रयास करना चाहिए कि कोई दुश्मन न बन पाए। कहा गया है, जीवन चार दिनों का है। इस दुनिया में  सभी मेहमान हैं। अतः सभी से प्रेम से ,मिलजुल कर रहें तो अच्छा होगा। इसे निभाने के लिए समझदारी बहुत आवश्यक है। स्वार्थ, छल, कपट आदि से परे, हमें अपने व्यवहार में निःश्छल, प्रेम,त्याग, विनम्रता लानी होगी। क्षमा मांगने और क्षमा करने की खूबी अपनानी होगी। छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना होगा। स्पष्ट वादी होना भी जरूरी है। कटाक्ष, उपहास और उपेक्षा करने से बचना होगा। मर्यादा और सीमाओं का पालन करना होगा।
ऐसे अनेक व्यवहारिक गुण और आदतें हैं, जो हमें दुश्मनी से बचा सकती हैं और अच्छा दोस्त बनने में सहायक हो सकती हैं। 
 हाँ, लेकिन दोस्ती में छल या गद्दारी करना अक्षम्य अपराध है। इसे अवश्य गंभीरता से लेना चाहिए।
वरना दोस्त तो वह पवित्र रिश्ता है जो खून का भले ही न हो, दिल का होता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
दुश्मन को दोस्त बनाना वास्तव में एक बेहतरीन कला है। अपने सद्व्यहारों एवं नैतिक आचरण द्वारा हम दुश्मन का भी दिल जीत सकते हैं, उनका हृदय परिवर्तित कर सकते हैं और अपना खास दोस्त बना सकते हैं। ऐसी दोस्ती अमिट होगी।
   कोई भी इंसान न जन्मजात दोस्त होता है ना ही दुश्मन। हम अपने व्यवहार और कार्य के द्वारा दोस्त बनाते हैं और किसी को दुश्मन।
  अगर हम अपनी गलतियों को महसूस कर स्वीकार करें, उसके लिए क्षमा मांग लें तो सामने वाले विरोधी का भी हृदय द्रवित हो जाता है और वह भी अपने अक्कड़पन को त्याग अपनी खुद की खामियों को महसूस करने लग जाता है और वह दुश्मन भी दोस्त बन जाता है।
   अहं,आन और जिद  इंसान के पथ का रोड़ा है।  इसे त्यागकर विचार-विमर्श कर दुश्मन को दोस्त बना सकते हैं पर यह भी सबके वश की बात नहीं है क्योंकि यह भी एक कला है।
    महात्मा गांधी अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अपने व्यवहार से विरोधियों के चहेते बन गए और यही कारण है अफ्रीका से लेकर अन्य देशों में भी श्रद्धा पूर्वक उनकी प्रतिमा लगाई जाती है। ऐसे अनेकों उदाहरण हमारे समाज में विद्यमान हैं 
           -  सुनीता रानी राठौर
       ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
 हॉ, अपने को संयम यानि स्वार्थ अहंकार अवसरवादी  को त्याग कर महत्वकांक्षी कला से आपसी संवाद द्वारा विवाद को परिवर्तित किया जा सकता है। 
तब दुश्मन अगर हमारे प्रिय दोस्त बन जाते हैं तो यह मेरी योग्यता साबित होगी।
देखे! भारत के आजाद हुए 74 साल हो चुके हैं इसमें कई प्रधानमंत्री बने उनके कार्यकाल में कुछ ही देश के मित्रता के साथ हाथ बढ़ाएं ।लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मोदी जी अनेक गुणावगुण से युक्त है फिर भी उन में मित्रता बनाने की कला है ,और विश्व के महाशक्ति वाले देश भी भारत की ओर पावन संकल्प लेकर मुश्किल की घड़ी में साथ निभाने का वचन दिया है। यह है मित्रता निभाने का कला। आवश्यक नहीं है उन देशों के साथ वैचारिक मतभेद ना हो यह भी आवश्यक नहीं है कि उनके बीच कोई स्वार्थ और अपेक्षा ना हो। विचारों मैं सहयोग का सामंजस्य बना कर विश्व के नेतृत्व करने में भारत सक्षम होगा यह मेरा विश्वास है।
लेखक का विचार:-" *मुसीबत के समय मित्रता की कसौटी पर खरा उतरने"* का सीधा अर्थ यही है कि एक दूसरे से आशा और अपेक्षा रखना।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
स्वयं जीवन जीना भी अपने आप में एक कला है। तो इसका अर्थ यह भी है हर काम एक कला है। काम तो सभी करते हैं पर कोई इस तरह इस तरह काम करता है कि उसे देख कर कोई कह उठता है कि काम करने की कला तो कोई इससे सीखे। 
        कोई अच्छा बच्चा है तो उसे किसी भी सरकारी या गैर सरकारी, विद्यालय में पढ़ाइए वह पढ़ाई में अच्छा ही निकलेगा। पर यदि कोई विद्यालय सामान्य, अति सामान्य बच्चे को अपने विद्यालय के पढ़ाने के विशेष तौर-तरीकों से उसे पढ़ाई में अच्छा बना पाते हैं तो यह उनकी विशेष कला ही कही जायेगी
         यही बात दोस्त बनाने पर भी लागू होती है। अच्छे लोगों से सब ही दोस्ती करना चाहते हैं और करते भी हैं, निभाते भी हैं। जीवन है.... इसमें सभी दोस्त नहीं हो सकते, दुश्मन भी चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने बन जाते हैं। ऐसे में जो दुश्मन को भी दोस्त बनाने की कला जानता होगा वह अपने दुश्मन को भी दोस्त बना सकता है। यह कला सीखना, इस कला का मर्मज्ञ होना कोई बहुत कठिन काम नहीं है। मितभाषी, मिष्टभाषी होना, निस्वार्थ भाव से निष्काम कर्म करना, परमार्थ हेतु विनम्र और सेवाभाव से सबके लिए सोचना और करना, छल-छद्म से दूर रहना, जैसे हो वही दिखना, जैसा सोचना, वही बोलना और वही करना, 
समान भाव से सबको देखना....ये बातें जिसके व्यवहार में, व्यक्तित्व में होंगी उसका कोई दुश्मन अधिक समय तक दुश्मन बना ही नहीं रह सकेगा। इन बातों को अपने में समाहित कर लेना ही वह कला है जो आपके दुश्मन को भी दोस्त बनने की ओर मोड़ेगी। इस कला के व्यक्तित्व वाले ही अजातशत्रु कहलाते हैं।
- डा. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
 आज के आधुनिक , वैज्ञानिक, तकनीकी युग में जहाँ प्रत्येक मानव अपने बारे में ही सोचता है।अपनी प्रगति और जीत के लिए खून के रिश्तों का भी खून करने में झिझकता नही तब दुश्मन को दोस्त बनाना एक चमत्कार से कम नहीं है। दोस्त जो हमारे साथ बिना किसी शर्त के दोस्ती निभाए। यह निभाना भी एक कर्तव्य या दिखावा नहीं पर सहज, सरल प्रेमिल भावों का आदान -प्रदान। वहीं दूसरी ओर दुश्मन यानि वो व्यक्ति जिससे हमारे स्वभाव ,मन काम, व्यवहार ,कुछ भी नहीं मिलता है ।दोस्त हमेशा हमारी कमियों को, हमे अकेले में बताता हैं जबकि दुश्मन का पहला काम है हमारी कमी दिखते ही उसे सब के सामने बड़ा चढ़ा कर उजागर करे।
      हम सोचिए दुश्मन को दोस्त बनाना तो कला ही है ।यह कला कोई जादू नहीं पर हमारे अंदर की वो सात्विक ताकत है जो हमें मजबूत रखती है और हमारे काम, हमारा व्यवहार दुश्मन को भी हमारी अच्छाई व सज्जनता देखने को मजबर कर दे ।
   यह कला है । कलाकारी नहीं । सब से कठिन काम ।अगर कोई कर ले तो उसकी नीयण पर कभी शक मत करना।
- ड़ा.नीना छिब्बर 
जोधपुर - राजस्थान
दोस्त और दुश्मन - दोनों विपरीत प्रकृति धारण किये होते हैं। जो सच्चा दोस्त है वह कभी दुश्मन बनेगा ही नहीं। परन्तु प्रश्न यह है कि जो दुश्मन है उसे दोस्त बनाना क्या एक कला है? 
इसका उत्तर देते हुए यह विचार नहीं कर रहा हूं कि दुश्मन और दुश्मनी किस स्तर के हैं। क्योंकि किस दुश्मन को दोस्त बनाना है या नहीं बनाना है, यह एक अलग विचारणीय बिन्दु है। 
कहते हैं कि "दुश्मनी से दोस्ती भली"। फिर कौन नहीं चाहेगा कि उसका कोई दुश्मन हो और यदि कोई दुश्मन है भी तो उसे दोस्त बनाना एक सुन्दर मानवीय प्रयास है। 
दुश्मन को दोस्त बनाना निश्चित रूप से एक बहुमूल्य कला है। 
1- इस कला का सबसे पहला गुण "क्षमा" है। हमारी क्षमाशीलता ही दुश्मन को अपने कृत्यों पर ग्लानि करने को विवश करेगी। 
2- मनुष्य की "विनम्रता" एक ऐसा अनमोल गुण है जिससे प्रथमतः तो कोई दुश्मन बनेगा ही नहीं और यदि किसी कारणवश दुश्मनी की स्थिति उत्पन्न भी हो जाये तो विनम्रता दुश्मन को दोस्त बनने पर विवश कर देगी। 
3- "आत्मसम्मान" मनुष्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है। स्वाभिमानी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को भी अपना सम्मान करना सिखा देता है। यदि हम आत्म सम्मान के प्रति सजग नहीं होंगे तो दुश्मन भी हमारा महत्व नहीं समझेगा और फिर हमारी दोस्त बनाने की कला को हमारी कमजोरी समझकर दुश्मन ही बने रहकर हम पर हावी होना चाहेगा। 
4- इसके साथ-साथ "धैर्य" इस कला का एक महत्वपूर्ण भाग है क्योंकि दुश्मन को दोस्त बनाने में हमारे "धैर्य" की भी परीक्षा होती है इसलिए मनुष्य को धैर्यवान होना आवश्यक है।
निष्कर्षत: कहना चाहूंगा कि दुश्मन को दोस्त बनाना एक कला तो है परन्तु व्यवहारिक स्तर पर इस कला का प्रयोग तभी करना चाहिए जब हम दुश्मन से सशक्त स्थिति में हों। यदि उससे कमजोर हुए तो हमारे दोस्ती के प्रयास को वह हमारा डरना समझेगा और यह कला काम नहीं आयेगी।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
क्या दुश्मन का भी दोश्त बनना एक कला है। 

 दुश्मन और दोस्त एक दुसरे के विपरीत शब्द हैं, किन्तु जब कोई दुश्मन दोस्त बन जाए तो सोने पै सुहागा जैसा चमत्कार  अनुभव होता है, अता दुश्मन का दोस्त बनना एक अद्भुत कला है, यह सभी के पास नहीं होती , किन्तु एेसा ब्यक्ति बहुत गुणबान हेता है, जो दुश्मन को भी दोस्त बनाने में सक्ष्म होता है, 

ऐसे इन्सान दिल के साफ होते हैंऔर इन्सानियत का सही मोल जानते हैं। 
सही में इन्सान को ऐसा ही होना चाहिए, ताकी दुश्मनी पैदा ही न हो फिर भी किसी कारणवश कभी ऐसे हालात बन भी जाऐं तो समझदारी इसमें है की थोड़ी गुंजाईश   रखी जाएे ताकी फिर से मिल सकें। 
जैसे कहा  कहा गया है,  

"दुश्मनी जम के करो पर इतनी गुंजाईश  रहे, कल जब हम दोस्त बन जाऐं तो शर्मिदा  न हों। 
असल में दुश्मनी को दफन करना ही अच्छा होता है, कोई भी इन्सान दुश्मन बनाना नहीं चाहता मगर अगर कोई दुश्मन बन भी जाए तो समझदारी इसी में है की दुश्मनी को दोस्ती में तब्दील किया जाए लेकिन यह  भी ध्यान रहे की  मन में  कोई ऐसी खोट न रखी जाए जिससे दोबारा झगड़े की नौबत  न आ पाए  इसी को इन्सानियत कहा जता है।  
अगर दिल मेें खोट ही रहे तो  सारा जीवन नरकीय हो जायेगा, 
 सच कहा है। 
"दुश्मनों की महफिल में चल रही थीं मेरे कत्ल की तैयारी, 
मैं पहुंचा तो बोले यार बहुत उम्र है तुम्हारी"। 
 एेसी दोस्ती से दुश्मनी ही भली, कहने का मतलब है मन मुटाव दोनों पक्षों से,  मिटना चाहिए ताकी फिर से भाईचारा बना रहे नहीं तो हम उम्र भर सुधर न पाएंगे। 

सच कहा है, 
" उम्र भर मिलने नहीं देती हैं, 
अब तो रंजिशे, वक्त हमसे रूठ जाने की अदा तक ले गया, "। 
 दुश्मन को दोस्त बनाना या दुश्मन का दोस्त बनना एक सराहनीय कदम वा कला है किन्तु साथ साथ में सतर्क रहना भी जरुरी है की कहीं  दुश्मन दोस्त बन कर दुश्मनी तो नहीं निभा रहा, ऐसी दोस्ती इन्सानियत पर धब्बा है, जैसा की   सुशांत    के विषय  में सुनने को मिल रहा 
है।   
ऐसा देखकर  कई बार   दोस्ती को लेकर भी सबाल  उठने लगते हैं की, 
"दुशमनों की जफा का खौफ नहीं, दोस्ती की वफा से डरते हैं। 
लेकिन यहां तक संभव हो सके दुश्मनी को खत्म करना ही  एक अद्भुत कला है  इससे दोनों पक्षों को लाभ ही लाभ है, यही नहीं  दुश्मन का दोस्त बनने से मन में शान्ति मिलती है, कभी रूठे को मना कर तो देखो आपको अपने आप में गर्व महसुस होगा की मैने एक अच्छा कार्य किया है, 
इसलिए हम सब को कोशीश करनी चाहिए की हमारी सबसे दोस्ती ही बरकरार रहे  तथा दुश्मनी हमारे पास पनपने ना  पाए अगर  कभी ऐसी नौभत आ भी जाए तो तरुंत   दुश्मन के भी दोस्त बन जा ओ या उसे दोस्त वना लो, इससे बढ़कर कोई इन्सानियत नहीं है, और यह एक बहुत वड़ी कला  है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी
छवाय बिन पानी बिन साबुन के निर्मल होत सुभाय... 
दुश्मनों को भी अपना दोस्त बना लेना
यह बहुत बड़ी बात होती है लेकिन यह 
हर आदमी के बस की बात नहीं यह 
रीत तो वही निभाना जाने जिसके मन 
में समता माफ करने की भावना हो
माफ करने वाला इस संसार में सबसे निर्मल पावन हृदय का सर्वोच्च श्रेणी  का माना जाता है उच्च विचारों का
इसीलिए जैन धर्म में एक मिच्छामी  दुक्कड़म होता है क्षमा और मैत्री  का संदेश देते हैं जो कुछ भी जाने अनजाने गलत हुआ उसे माफ करें यह ठीक भी है क्योंकि कोई  सदा दुश्मन नहीं होता
कोई सदा दोस्त नहीं रहता है
यह बात आदमी के अनुभव से भी
सिद्ध होती है निश्चित ही कह सकते हैं
दुश्मन से भी दोस्ती निभाना एक कला है
*कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर.. ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर*
सबको आता नहीं महफिल को सजाकर हंसना यह बात समझ आए तो क्या बात होती..
ना कोई दुश्मनी ना कोई भी बैर..
रमता जोगी  बहता पानी वाली बात है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
             दुश्मन को भी दोस्त बनना एक कला ही है। यह दो संदर्भों में हो सकता है। एक तो यह कि वह शत्रु के गुणों से अभिभूत हो उसका प्रशंसक या मित्र बन जाए और दूसरा इसके माध्यम से वह शत्रु की सारी जानकारी  जुटाकर अपना पक्ष तैयार करने का प्रयास करके अपना मार्ग प्रशस्त करे।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
हम अपने वचनों को दो प्रकार से बोलते हैं ।  एक सार्थक वाणी दूसरी निर्रथक वाणी ।सार्थक वाणी में सकारात्मक ऊर्जा होती है ,सुनने में मन भावन लगती है वहीं नकारात्मक वाली निर्रथक वाणी हृदय को चोट पहुँचाती है ।हम दुश्मन बना बैठते हैं ।अब प्रश्न है दुश्मन को दोस्त कैसे बनाया जाय ।हमारे देश में कई पर्व ऐसे हैं जो दुश्मनी को दोस्ती में बदलने के लिए मशहूर है ।होली और रक्षाबंधन ,कहीं राखी के धागे से रिश्ते की शुरुआत होती हैं कहीं होली के अबीर से ।यह कला हम भारतियों को ही आती है ।जिंदगी में अनबन  तो होती ही रहती है दुश्मनी की शुरुआत वहीं से हो जाती है । इसे दूर करने के लिए हमे अहंकार त्यागने की कला आनी चाहिए ।आप दुश्मनी को मनोवैज्ञानिक ढ़ग से भी खत्म कर सकते हैं ।दुश्मन से मदद माँग कर उसे अहसास दिलाना पड़ेगा कि वह हमसे श्रेष्ठ है । बार -बार ऐसा करने से उसका स्वभाव जरुर बदलेगा । मेरे पति पेशे से वकील थे एक बार तलाक के केस में एक लड़की आयी ,वह सुलह करना चाहती थी ,मेरे पति ने  कहा "  तुम उसको रोज फोन करो " 
लड़की "वह उठाते ही नहीं है " 
मेरे पति "प्रयास जारी रखो ".
प्रयास जारी रहा समस्या का समाधान हुआ । वास्तव में दुश्मनी को दोस्ती में बदलना एक कला है और यह अच्छे व्यवहार से ही हो सकता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
       दुश्मन का दोस्त बनना या दुश्मन को दोस्त बनाना एक विशेष कला है। जिसे बुद्धिमत्ता एवं दूरदर्शिता की श्रेणी में रखा जाता है। 
       इसी दूरदर्शिता एवं बुद्धिमत्ता पर ध्यान केंद्रित करते हुए हमारे माननीय शक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी जी ने सर्वप्रथम विदेशी यात्राओं पर बल दिया था और पाकिस्तान को बिना युद्ध के धराशाई कर दिया था। जिसके कारण चीन को चींटियां काटने लगीं और वह सकपका गया था। जिसका परिणाम गलवान घाटी का षड़यंत्र प्रकाश में आया और उसमें भी उसने मूंह की खाई। जिस पर खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे वाली कहावत चरितार्थ करते हुए नेपाल को हमारे विरुद्ध उकसाने में लगा हुआ है।
        जबकि चीन के उस पार भारत का मित्र राष्ट्र रूस बैठा है और अमेरिका भी भारत के पक्ष में चुटकी बजाकर मित्रता का दम भर रहा है। जो शत्रु को मित्र बनाने की कूटनीतिक कला है।
         जिससे स्पष्ट होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों में भारत का पक्ष सशक्त है। चूंकि यूएन सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में चीन को छोड़ कर फ्रांस रूस यूके और अमेरिका की वीटो पावर भारत के पक्ष में है।
      उल्लेखनीय है कि यह सारा परिवर्तन माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी की दूरदर्शिता और शत्रु को भी मित्र बनाने की 'कला' का प्रदर्शन मात्र है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सबसे पहले यह जानना होगा कि कोई हमारा दुश्मन क्यों बना?  दुश्मनी के कारण कई हो सकते हैं।  इस विश्लेषण के बाद ही हम उस दुश्मनी को दोस्ती में बदल सकने का प्रयास कर सकते हैं। कभी-कभी किसी गलतफहमी के कारण दुश्मनी हो जाती है तो उस गलतफहमी को दूर कर दुश्मन को दोस्त बनाया जा सकता है।  इस विषय पर अनेक फिल्में भी बन चुकी हैं।  अक्सर पुरानी चली आ रही पारिवारिक दुश्मनी के उदाहरण देखने को मिलते हैं।  ऐसे में नयी पीढ़ी अपनी समझ से उस दुश्मनी को दूर करने का यत्न कर सकती है जिसे हम कला की संज्ञा दे सकते हैं।  कभी-कभी कोई ऐसी संवेदनशील घटना भी घट जाती है जिससे दुश्मनी दोस्ती में बदल जाती है।  दुश्मन को कभी मुसीबत में घिरा देखकर यदि उसकी मदद की जाए जिससे वह मुसीबत से बाहर निकल आए तो ऐसी स्थिति में दुश्मनी को दोस्ती में बदल सकती है।  यदि ऐसा अवसर आता है तो उसका पूरा लाभ उठाकर दुश्मनी को दोस्ती में बदलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। स्कूल में प्रतिस्पर्धात्मक दुश्मनी अल्पायु होती है और समय के साथ समाप्त हो जाती है।  व्यापार में प्रतिस्पर्धात्मक दुश्मनी लम्बे समय तक खिंच सकती है और इसे दोस्ती में बदलने के लिए कला की आवश्यकता हो सकती है। कार्यालयों में बास की नज़रों में एक दूसरे को नीचा दिखाने की हरकत से दुश्मनी पैदा हो सकती है।  ऐसी स्थिति को उत्पन्न न होने देना ही एक कला है। कुल मिलाकर दुश्मन को भी दोस्त बनाना एक कला ही है। 
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
हर व्यक्ति हर कला में पारंगत नहीं होता। इसी प्रकार हर व्यक्ति को दोस्त नहीं बनाया जा सकता। दोस्ती उन्हीं से होती है जिनसे हमारा मन मिलता है। जिनके आचार- विचार, व्यवहार अच्छे लगते हैं और जो संकटों में भी निस्वार्थ होकर दोस्ती निभाते हैं। यदि कभी गलतफहमी से कोई हमारा निकट संबंधी, साथी, पड़ोसी, ऑफिस का कार्यकर्ता या सहपाठी इत्यादि का व्यवहार दुश्मनों जैसा हो जाए तो उस विरोधा वास के कारण को खोज कर एक मनोचिकित्सक की भांति उसके साथ व्यवहार करना होगा। उसकी अच्छाई- बुराई, प्रेम- स्नेह, वाणी की मधुरता, ईमानदारी  और सत्यता के व्यवहार से उसका अपने प्रति नकारात्मक रुख को बदल सकते हैं।
    एक दोस्त में यह कला होना जरूरी है------
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा ।
गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा।।
    अत: अपने मधुर व्यवहार, सोच- समझ से दुश्मनी को भी दोस्ती में परिवर्तित किया जा सकता है।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
दुश्मन को दोस्त बना लेना सबसे बड़ी कला है जो व्यक्ति इस कला को सीख लेता है वह भय मुक्त रहने लगता है और जो भय मुक्त जीवन जीता है वह सम्पूर्ण जीवन की आधी जंग जीत जाता है क्योंकि भूख और भय दो ही जीवन की गतिविधियों को लेकर पूरा जीवन गतिमान रहता है । वैसे भी अगर दुश्मन दोस्त बन जाए तो भय मुक्त रहने के साथ ही ख़ुशियों का माहौल बन जाता है जिसकी तलाश व्यक्ति हर पल करता है । जिस दुश्मन ने अपना पूरा ध्यान और समय आपकी कमज़ोरियाँ जानने समझने में लगाया हो सोचो वह दोस्त बन जाए तो निश्चित ही उन कमज़ोरियों को दूर करने के लिए आगाह करेगा ताकि कोई दूसरा उसके दोस्त को हानि न पहुँचा सके । अत: दुश्मन को दोस्त बनाने की कला विकसित करने के लिए प्रयास करना चाहिए । उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है बहुत से हिंसक जीवों से दोस्ती करके मनुष्य ने जीवन लाभ अर्जित किए हैं जब जीवों की दोस्ती लाभ दे सकती है तो मानव की दुश्मनी को दोस्ती में बदलकर तो निश्चित ही अच्छा होगा । वास्तव में दुश्मन को दोस्त बना लेना एक कला है और ये विरले ही सीख पाते हैं ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     प्राचीन काल से दोस्ती और दुश्मनी चली आ रही हैं। दोस्ती से बढ़कर दोस्ती नहीं और दुश्मनी से बढ़कर दुश्मनी नहीं? किसी व्यक्तित्व में दोस्ती करना एक कला होती हैं, जो किसी भी अनजान व्यक्ति से दोस्ती कर, फर्ज निभाते हुए दिखाई देते हैं। दोस्ती कर बड़े-बड़े साम्राज्य की स्थापित्व का महत्ता समझते हुए, विस्तारवादी कर प्रभुसत्ता को चरम सीमा पर पहुँचने दृढ़ संकल्प लिये जाते थे, आज भी यह  दोस्ती की कला प्रथा चली आ रही हैं। दोस्ती में आयु नहीं देखी जाती हैं। जिसे अपनी हर परेशानियों से अवगत कराते हुए निष्पक्ष निर्णय लिया जाता हैं।  दोस्ती इंसानों और पशुओं में भी देखी जाती हैं। महिला-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, जिसमें दोस्ती आ अहसास प्रतीत होता हैं। यह सत्य हैं, कि जब तक दुश्मनी न हो तब तक दोस्ती में मजा भी आता और उसी के बाद प्रबुद्धता 
, सम्पन्नता का सुख सुविधाओं का स्वाद चखने को मिलता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
बिल्कुल दुश्मन को दोस्त बनाना भी एक कला है ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । इस समाज और परिवार के बीच सामंजस्य बनाते हुए व्यक्ति को जीवन व्यतीत करने हेतु बहुत से रिश्तों के बीच खट्टे मीठे अनुभवों से गुजर कर जीवन यापन करना पड़ता है । 
चूँकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दोस्त या दुश्मन के रिश्ते यहीं इसी समाज के बीच में रहकर बनाता और निभाता है । 
मानव हृदय में गुण दोष समाहित होते हैं । जब किसी व्यक्ति में सत्य अहिंसा त्याग शुचिता करूणा कर्तव्यनिष्ठा जैसे गुणों की अधिकता होती है तो उसके मित्र अधिक संख्या में होते हैं ।
 इसके विपरीत यदि उसके व्यक्तित्व में व्यवहार दोष होता है अथवा उपर्युक्त गुणों के स्थान पर दोष की अधिकता होती है तो उसके जीवन में दुश्मनों की संख्या अधिक होती है । 
सही मायने में किसी व्यक्ति का सच्चा दोस्त वो होता है जो अपने मित्र के जीवन में सुख दुःख के पल छिन आने पर सबसे अधिक उसके साथ साये की तरह खड़े मिलता है । आजकल के आधुनिक परिवेश में ऐसे सच्चे मित्र अब बहुत मुश्किल से मिलते हैं ।
इसके विपरीत यदि कभी कहीं किसी एक से जाने अनजाने कुछ कटुता पूर्ण व्यवहार हो जाता है ।
या एक मित्र दूसरे मित्र की बातों को महत्व नहीं देते तो उन दोनों के बीच दुश्मनी होते भी देर नहीं लगती । 
कभी-कभार किसी भरी महफ़िल में अनजाने में मित्र ने अपमान कर दिया हो तो भी दोनों के बीच झगड़ा होता है और दुश्मनी बँध जाती है । 
इस तरह उनके मध्य गलतफहमी की दीवारें खड़ी होती जाती हैं। और बेहद स्नेहिल अपनत्व के दोस्ती भरे रिश्तों में दुश्मनी की खटास बढती चली जाती है 
जब कभी भी किसी व्यक्ति के जीवन में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए तो आपसी मृदु संवाद के द्वारा व्यर्थ पैदा हुये मन के मैल साफ करने का प्रयास करना चाहिए ।
किसी तीसरे व्यक्ति को जो उन दोनों का सच्चा हितैषी हो उसके माध्यम से भी अपनी दुश्मनी को समाप्त किया जा सकता है।
दोनों ही पक्षों को अपने व्यवहार की कमी स्पष्टता के साथ स्वीकार कर लेना चाहिए ।अपनी जिद पर अड़े नहीं रहना चाहिए ।
 इस तरह से जिससे मन का मैल धुल जाता है और दुश्मन फिर से मित्र बन जाते हैं ।
इसी विषय में रामायण ग्रंथ का एक प्रसंग याद आ रहा है मुझे कि
युद्ध समाप्ति पर भगवान श्रीराम ने मृत्युशैया पर पड़े अपने सबसे बड़े शत्रु रावण के पास अपने अनुज लक्ष्मण जी को जीवन शिक्षा लेने हेतु भेजा था ।
- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
दुश्मन को दोस्त बनाना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है। यूं तो दोस्ती और दुश्मनी में आपसी रिश्ता होता है क्योंकि दुश्मन और दोस्त दोनों ही आप आपके ज़ेहन में  कहीँ न कहीँ जरूर मौजूद रहते हैं ।आपकी भावनाएं और आप उनके प्रति संवेदनशील रहते हैं ।
फर्क यही है कि मित्रों के लिए आपके हृदय में प्रेम की भावना होती है और दुश्मनों के लिए आपके जेहन में नफरत की भावना होती है।
 जब कोई व्यक्ति किसी दुश्मन को भी दोस्त बना ले तो समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति बहुत ही समझदार एवं उदार है ।
जिन्हें दुश्मन को भी दोस्त बना लिया समझ लो बहुत बड़ा जादूगर है ।
 यह बहुत बड़ी कला है  और यह सबके बस की नहीं है ।
इसके लिए आपके अंदर क्षमा की भावना ,उदारता और दया  व कुछ मामलों मे प्रायश्चित करना ,ऐसे संवेग हैं जिनके जरिये  दुश्मन भी दोस्त बन सकता है ,बशर्ते उस दुश्मन को भी संवेदनशील होना चाहिए । अन्यथा आपकी क्षमा की भावना आपकी उदारता की  भावना  व दयालुता व  आपका प्रयाश्चित  उसको उल्टा ही नजर आएगी ।
तो ऐसा नहीं है कि दुश्मन को दोस्त बनाना असंभव है लेकिन थोड़ा मुश्किल जरूर है ,लेकिन इतिहास गवाह है कि कई दफा दुश्मन भी दोस्त बन गए हैं ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जी हाँ, हम अपने सकारात्मक विचारों, भावों और कार्यो से दुश्मन को भी अपना बना सकते है l 
प्रेम की ज्योति कम न हो..
दुश्मन को भी ऐ दोस्तों 
अपने गले लगाओ तुम l 
भारतीय सभ्यता और संस्कृति तो आरम्भ से ही "जियो और जीने दो" के सिद्धांत को मानने वाली रही है l तभी तो कोल -मंगोल, हूण आदि कितने ही आक्रमणकारी  यहाँ आये और यही के होकर रह गये l कुछ इस तरह घुलमिल गये कि आज उनकी कोई अलग पहचान तक शेष नहीं रह गई है l 
अपने आप कोई श्रेष्ठ बताना ठीक है किन्तु हम अपनी बात दूसरों पर थोपने का प्रयत्न करने लगते हैं या थोप नहीं पाते तो भावनाओं में बहकर उसे बलात दूसरों पर आरोपित करने लगते हैं जैसा कि मध्यकाल में हुआ तब वैमनस्य, और शत्रुता ठन जाती है फिर यह शत्रुता उन्माद रूप लेने के बाद ठंडी भी पड़ जाती है l 
कवि नीरज ने कहा है -अब तो मज़हब कोई ऐसा चलाया जाये 
जिसमें हर इंसान को इंसान बनाया जाये l 
प्यार का खून क्यों हुआ ये समझने के लिए 
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाये l 
       चलते चलते ---
जिस्म दो होके भी दिल एक हो अपने ऐसे, 
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाये l          ---नीरज  

दुश्मनी लाख सही तर्क न कीजे रिश्ता 
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए l 
प्रेम बिना ये जीवन अनजाना है
बस थोड़ा सा मन में प्यार जगाना है l 
         - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
दुश्मन को दोस्त बनना एक कला ही नहीं बल्कि यह कला से भी कुछ ऊपर ही की बात है
एक इंसानहै दुश्मन पर अच्छे दोस्त बनकर धीरे धीरे उसके जीवन को काटता रहता है यह बहुत बड़ी कला है पहले विश्वास पैदा करना दोस्त बनना और फिर दुश्मन के गुणों का उसके साथ इस्तेमाल करना एक कहावत है पीठ में छुरा भोंक ना दोस्त बनकर दुश्मन ही ऐसा काम कर सकता है वर्तमान परिवेश में बहुत ही अच्छा उदाहरण सुशांत और रिया चक्रवर्ती का सामने देखने को मिल रहा है दोस्त बनकर जिंदगी को काट डालना भरोसा पैदा करके विश्वास पैदा करके विश्वासघात करना ऐसे ही व्यक्तित्व के लिए विश्वासघात शब्द का प्रयोग किया जाता है यह बहुत बड़ी कला है इस कला में अच्छे सही इंसान फस जाते हैं
दोस्त का गुण अपनाकर दुश्मनी का काम करना यह बहुत बड़ी  कला है।गलत सोच का‌ परिणाम है विद्रोही क्रोधित ईर्ष्यालु व्यक्ति ही ऐसा करने में सफल होता है
एक दोस्त मित्र हमेशा अपने मित्र का भला चाहता है उसकी कमी को उसे बताकर सुधारना चाहता है ना कि दूसरों के सामने उसे लज्जित करवाता है यह तो सही दोस्त का परिभाषा है लेकिन वैसे व्यक्ति जो कहने को दोस्त होते हैं दोस्ती का नाटक करते हैं पर सही अर्थ में दुश्मनी का फर्ज निभाते हैं विश्वास पैदा करके धोखा देना यह एक बहुत बड़ी कला है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
दुश्मन कभी दोस्त रह चुका होता है ।लेकिन समय और परिस्थिति वश कई बार यह दोस्ती दुश्मनी में परिवर्तित हो जाती है ।क्योंकि जो व्यक्ति हमें जानता नहीं वह हमारा दुश्मन भी नहीं हो सकता ।अब प्रश्न यह है कि दुश्मन को दोस्त कैसे बनाये? दोस्ती और दुश्मनी के बीच बहुत कुछ घट चुका होता है ।उसे अनकिया करना ही बहुत बड़ी कला है ।
सबसे पहले हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए । तांकि हमारे भीतर  बीती बातों को याद करके कोई उथल-पुथल न हो । 
हम सिर्फ और सिर्फ उसकी अच्छाइयों को याद करें । 
एक बात और जब भी कोई हमारे साथ दुर्व्यवहार करता है तो उसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वह व्यक्ति गलत है ।बल्कि यह सोचना चाहिए कि हो सकता है उसका पालन- पोषण ऐसी परिस्थितियों में हुआ हो जो उसे हमारे व्यवहार में केवल नकारात्मकता ही दिखाई पड़ती है । इस प्रकार ऐसी सोच हमारी सहायता भी कर सकती हैं कि हम तो उसमें उसकी अच्छाइयों को देख सकें।
जब भी कोई व्यक्ति  संबंधित व्यक्ति के बारे में बात करे तो उसकी बुराई करने की अपेक्षा उसके गुणों की बात करें ।
आमना- सामना होने पर बुलाने में भी कोई बुराई नहीं ।हमारे सकारात्मक विचार और हमारा प्रेम कहीं भी किसी भी प्रकार के वातावरण में परिवर्तन ला सकते हैं । प्रेम दुनिया मे सबसे बड़ी शक्ति है ।और वैर सबसे बड़ी संहारक शक्ति । अपने जीवन में प्रेम और सद्भावना के दीप जलाएँगे तो दुश्मनी का अंधेरा जरूर दूर होगा ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
जीवन को शांतिपूर्ण तरीके से जीने के लिए दुश्मनी को भी दोस्ती मे बदलने की कला बेहद खूबसूरत होती है।और जिंदगी आसान तरीका से आगे बढ़ा जा सकता है। जीवन को सफलता से भरपूर आनंद मय बनाने की अद्भुत शक्ति दोस्त ही है।दुश्मनों को दिल मे इक दीप जलाकर भरोसा का महत्व को कायम करता है।दुश्मन को दोस्त बनाकर जीवन की राहों को आसानी से दिशानिर्देश किया जा सकता है।हरदम सैद्धांतिक सहमति को अपने अहम से उपर रखने की क्षमता होनी चाहिए।और दुश्मन को दोस्त बनाने की सरलीकरण से जीवन को आसान बनाता है।दोस्त कठिन परिस्थितियों मे साथ देते हैं।दिल मे दुश्मनी के भाव को खत्म करके जीवन को खुशहाल बनाने की विधा ही उच्चतम स्तर की कला होती है।दुश्मन के हृदय मे प्रेम का दीपक जलाएं।ऐसे भी जीवन का खुशहाल मूल्यांकन और मुलमंत्र शांति, अहिंसा प्रेम है।तभी जीवन की डोर मजबूत हो सकती है।अंहकार को दरकिनार करके दुश्मन को दोस्त बनाने की अद्भुत क्षमता और कला बेहद मनभावन होती है।जीवनशैली की सफलतापूर्वक कार्य संपन्न होती है बैर और द्वैष की भावनाओं का खंडण करके।दुश्मन चाहें कितना बुरा ही क्यों ना दोस्त की पाठ संदेश से कठिन रास्ते भी आसान हो जाता है।दुश्मन को दोस्त बनाने से सफलता प्राप्त होती है।यह वो कला है जहाँ खुशियां विराजमान होती है।दिल मे गलत भावनाओं का समावेश नही होना चाहिए।दुश्मन की कसौटियों को चाहतों की माला से सजाना चाहिए तब ही जीवन की तकलीफों को विरामावस्था मे पहुँचाया जा सकता है।दुश्मन को दोस्त बनना एक सफल राह है।ताकि दुश्मन भी हमेशा दोस्ती की अहमियत को समझ सकता है।कटुभाषी और कठोर व्यवहार से मन पीडा़ के खाई मे गिरता है ।और दुश्मनी की चिगांरी तेज गति से जलने लगती है।परंतु जब इंसान प्रेम की वाणी को समावेश कर ले तो दुश्मन भी दोस्त की कतार में लगे होते है।
वो धागों की गाँठ बडी मजबूत थी 
वो दुश्मन की दुश्मनी बेहद पुरानी थी
उसमे प्रेम रस की मित्रता ने नफरत की परतों को आसूंओं से धो डाला।और मोम की भातिं दुश्मन का हृदय पिघलने लगा।
मित्रता ही जीवन की वफादारी है।दुश्मन को दोस्त बनाने की कला ही अग्रसर करती है ।जीवन शैली को।दुश्मन के रूप धारण करने से मानवीय संवेदनाओं कि अपमान होता है।परंतु दोस्त कठिनाई मे एक साथ बनकर हृदय को प्रफुल्लित करता है।दुश्मन की बात को भूलकर दोस्त बन जाना ही गतिविधियों को जीवनदान और सफलता से भरती है।मुलमंत्र दुश्मनी मे नही दोस्ती की सीमाओं मे है जो जिंदगी के थपेड़ों को आसानी से सहने की कला देती है।अद्भुत कला है दुश्मन को दोस्त बनना।आज शीतयुद्ध, गृहयुध्द आपसी पड़ोसी देश मे होते हैं ।तबाही और विनाश के आलावा कुछ नही मिलता है।मौत का ताड़व मच जाता है। हिस्से कुछ नही मिलता है। जीवन की डोर को प्रेम से बिताना चाहिए क्योंकि जिंदगी हमेशा करवटें बदलती है।दुखद पहलू का जब समावेश हो तब दुआएं भी बेअसर होती है ।इसलिए कटीलीं राहों मे दोस्त का साथ साथ होना बेहद आवश्यक होता है।दुश्मन का दोस्त बनना ही अद्भुत कला और सफल जीवन का परिचायक है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
        हाँ ! दुश्मन को भी दोस्त बनाना एक कला है। ये कला आज की नहीं हमारे देश में सदियों से है। बस इस कला का हमें प्रयोग करना आना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि एक ऋषि ने रत्नाकर डाकू को कैसे अपना बना लिया।वो उन्हें जान से मारने आया था लेकिन उन्होंने उसे अपना शिष्य ही नहीं बनाया बल्कि उसका जीवन ही बदल दिए। पूरे मानवता का दुश्मन बदलकर पूरी मानवता का हितैषी बन गया। तो ऐसी है दुशमन को दोस्त बनाने की कला।
             भगवान राम जब वह में रहे तो अपने कितने दुश्मनों को अपना दोस्त बन लिया और अपने कार्यों में उनका उपयोग किये। कहा जाता है प्रेम एक ऐसी भाषा है जिसके चलते दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं।
         दुश्मन के मनोभावों को समझ कर प्यार और चतुराई से वार्तालाप कर के उसे अपना दोस्त बनाया जा सकता है।ऐसे बहुत से उदाहरण है जब लोगों ने ऋषियों मुनियों ने अपने दुश्मनों को अपना बनाया है।
       महात्मा बुद्ध बहुत से ऐसे खूंखार लोगों को जो उनके घोर दुश्मन थे उन सबको अपना दोस्त शिष्य बन लिए। ये एक अद्भुत कला है जिसमें साहस धैर्य और बुद्धि की जरूरत होती है।आज के दिनों में इस कला की बहुत जरूरत है।दुश्मन को जो दोस्त बना लिया वो महान हो गया।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - प.बंगाल
दोस्त इंसान स्वयं बनाता है और दुश्मन भी .दोस्त कीहर खता माफ़होती है और दुश्मन की छोटी सी गलती भी पहाड़ नज़र आती है .
व्यक्तिगत तौर पर मैं दुश्मन न बनाती हूँ न किसी को दुश्मन मानती हूँ .यदि किसी विशेष कारण से कोई स्वयं दूरी बनाये और व्यक्ति बात न करना चाहे तो उसकी मर्ज़ी
कब किसको किसकी ज़रूरत पड़ जाए यह नहीं कहा जा सकता है .
दोस्त बनाना वो भी दुश्मन को  एक कला हैव हर व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता क्यूंकि इस कार्यमै एहम को एक किनारे पर रखना पड़ता है और हर आम व्यक्तिअपना  अहम् त्याग नहींसकता
अतः दुश्मन को  दोस्त बनाना एक ऐसी कला है जो हर आम व्यक्ति के पास नहीं व अगर सबको आ जाए तो विश्व मैं अमन फ़ैल जाए
- नंदिता बाली
 सोलन - हिमाचल प्रदेश
दुश्मन को कभी भी कमजोर नहीं समझना  चाहिए । उसके इरादों को परोक्ष अपरोक्ष रूप से जानना अति आवश्यक है।  ईर्ष्या ,द्वेष ,घृणा दुश्मन के अंतर्मन के हथियार हो सकते हैं। दुश्मन की सोच उसकी जीवन स्थिति, सामाजिक स्तर तथा पद, प्रतिष्ठा और आय के आधार पर आंकी जा सकती है ।दुश्मन यदि हमसे ज्यादा धनी ,संपन्न, सक्षम ,प्रतिष्ठित ,सम्मानित है तो हमें मित्रता भाव दिखाना ही सही होता है, भले ही वह बनावटी  ही क्यों ना हो क्योंकि दुश्मन हरसंभव चोट पहुंचाने की चेष्टा करता है। हमारा व्यवहार उसकी मन स्थिति व मनोभावों को कुछ हद तक बदल सकता है। दुश्मन अपनी निंदा आलोचना का भी विरोध करता है अतः हमें ऐसी आदतों से बचना चाहिए। यद्यपि दोस्ती विश्वास पर टिकी होती है परंतु यही विश्वास जब डगमगा जाता है तो अंतर दुश्मनी के भाव जाग जाते हैं। कई दोस्त भी आस्तीन के सांप होते हैं। दुश्मन की कोई सीमित या विशेष पहचान नहीं है वह कहीं भी ,किसी भी रूप में प्रकट हो सकता है। जीवन जीने की कला भी हमें यही सिखाती है कि आत्मरक्षा व आत्म उन्नति हेतु  बाहरी रूप से दुश्मन के प्रति  सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए। आत्म बचाव सर्वोपरि होना चाहिए । दुश्मन के साथ दोस्ती की भूमिका तो निभाई जा सकती हैं परंतु पूर्ण विश्वास नहीं। व्यक्ति की दयालुता ,प्रेम भावना दुश्मन के सीधे ,तीखे  भाव रूपी तीरों से बचाव भी करते हैं। दुश्मन की मंशा जानने के लिए तथा आत्म कार्य पूर्ति हेतु कुछ अंश तक दोस्ती का भाव जरूरी है पूर्ण रूप से नहीं ।  अतः दुश्मन को दोस्त बनाना भी एक कला है मैं इससे सहमत हूं।
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
दुश्मन को भी दोस्त बनाना एक कला ही है, और यह कला हर मनुष्य के पास नहीं होती।
यहां  एक गीत की पंक्तियां याद आ रही हैं - रूठे रब को मनाना आसान है, रूठे यार को मनाना मुश्किल है।
जब रुठे को मनाना आसान नहीं तो फिर जो दुश्मन है उसे दोस्त बनाना कितना कठिन होता होगा। इसलिए दुश्मन को दोस्त बनाने वाला बहुत बड़ा कलाकार होता है। वह कलाकार अपने व्यवहार से दुश्मन को भी मजबूर कर देता है कि वह दोस्ती का व्यवहार करें।
यह अलग बात है कि वह दोस्ती टिकती कितना है। राजनीति में तो दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन बनते देर नहीं लगती। भारतीय की राजनीति में तो पग पग पर ऐसे उदाहरण मौजूद हैं। वर्तमान में बिहार और महाराष्ट्र इसके ताजा उदाहरण है।
हमारे जीवन में भी ऐसी स्थिति होती है, लेकिन उसमें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। अधिकांशतः ऐसे मामलों में धोखा ही मिलता है। चाणक्य ने कहा था कि जब शत्रु,मित्रवत व्यवहार करें तो और भी सतर्क हो जाना चाहिए। 
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
दुश्मनी और दोस्ती जिंदगी के दो पहलू हैं। कभी-कभी सबसे अच्छा दोस्त सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है, और कभी-कभी सबसे बड़ा दुश्मन सबसे अच्छा दोस्त बन जाता है। बस यह निर्भर करता है आपके व्यक्तित्व और आपके व्यवहार पर। अगर आपके पास सहनशक्ति और सब्र का गहना है, तो आप किसी भी दुश्मन को अपना दोस्त बना सकते हैं, और यदि आपके पास यह चीजें नहीं है तो आप दोस्त को ही दुश्मन बना लोगे। और इन सब के बीच सबसे बड़ी चीज है। विश्वास, दोस्ती विश्वास की नीव पर ही टिकी होती है। अगर विश्वास किसी दुश्मन पर भी कर लिया जाए तो वह भी दोस्त ही बन जाता है। और अगर किसी दोस्त पर भी विश्वास ना करें तो वह भी दुश्मन बन जाता है। दुश्मन बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है दोस्त बनाना मुश्किल काम है। उससे भी मुश्किल काम है दुश्मन को दोस्त बनाना और इसके लिए हमें बहुत चीजों का त्याग करना पड़ता है। हमारे अंदर प्रेम सद्भाव सहनशक्ति और त्याग की भावना होगी तो ही हम यह कारनामा कर सकते हैं। बाकी दुश्मन को 1 दिन में 1000 बना सकते हैं लेकिन दोस्त हजार दिन में एक बन पाता है। इसलिए दुश्मन बना कर जीवन में लेने से बेहतर है कि दोस्त बनाकर अच्छाइयां प्राप्त करें। ताकि मरणोपरांत भी लोग हमारी अच्छाई करें प्रशंसा करें ना कि बुराई करें। हमें हर आदमी की खूबी देखनी चाहिए उसकी अच्छी बातें देखनी चाहिए और बुरी बातों को नजरअंदाज कर देना चाहिए। तो ही हम एक एक दुश्मन को दोस्त बना सकते हैं। हमें अकड़, घमंड ,गुरुर इन सब चीजों से परे रहना चाहिए तो ही हम दुश्मन को दोस्त बना सकते हैं।
 । इसलिए हम कह सकते हैं कि दुश्मन को दोस्त बनाना एक कला ही नहीं बल्कि एक बहुत कठिन कार्य है और इसमें सफलता प्राप्त करने वाला कोई महारथी ही होगा। क्योंकि दुनिया में 99 परसेंट लोग दुश्मन को दोस्त बनाने में असफल रहते हैं। जबकि दोस्त को दुश्मन बनाने में उनको देर नहीं लगती।
 अब तक वाकई यह एक अद्भुत कला है। जो हर किसी के पास नहीं होती। जिस दिन हर इंसान को यह कला आ जाएगी पूरा विश्व एक भाईचारे की डोर में बंध जाएगा। काश! यह दिन भी आए।
 - संजय सिंह मीणा 
 करौली - राजस्थान
जी बिलकुल दुश्मन को भी दोस्त बना लेना एक कला हैं इसी बात पर मुझे एक कहावत याद आ रही हैं कहते हैं "दुश्मनी से दोस्ती भली" और ये ही सत्य हैं | देखिए दुश्मनी कभी किसी को पार नहीं उतरती बल्कि और डुबाती हैं चाहे वो हम हो या फिर हमारा दुश्मन ये दोनों के लिए ही नुकसान दायक हैं | अब हम बात करते हैं क्या दुश्मन को भी  दोस्त बनाना एक कला है जी बिल्कुल यह एक कला ही है, कि कैसे हम दूसरे के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में परिवर्तित करते हैं | दूसरे व्यक्ति के विचार नकारात्मक है और हम से बिल्कुल नहीं मिलते हैं इसीलिए उसके मन में हमारे प्रति द्वेष का भाव है | अब उसकी नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में परिवर्तित करना यह एक कला है उसके मन में हमारे प्रति जो गलत भावनाएं हैं उनको दूर करना और अपने प्रति अच्छे अच्छे भाव उसके मन में जागृत करना | क्योंकि दो लोगों के बीच दोस्ती तभी होती है जब उन दोनों के भाव विचार आपस में मिलते हो, तभी वह एक सच्चे दोस्त कहलाएंगे | अगर हम यह सब करने में सफल रहे तो हम कह सकते हैं कि दुश्मन को दोस्त बनाने की कला हमारे अंदर है,  और यह कला हर व्यक्ति के अंदर होनी चाहिए क्योंकि अगर आपके पास यह कला है तो आपका कोई भी दुश्मन नहीं होगा | अगर आपका कोई दुश्मन ही नहीं होगा तो आपका जीवन यापन एक अलग ही स्तर का होगा ।
 रजत चौहान
  बिजनौर - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " दुश्मन को कोई ना कोई जलनशीलत अवश्य होती है या फिर आपने उसका कोई ना कोई नुकसान अवश्य किया है । यही दुश्मनी की सीमा है । अब बात आती है कि दोस्त कैसे बनाए ? दुश्मन को मुशीबत में फंसा देखकर उसकी असीमित सहायता करें । अगर वह इंसान है तो दोस्त बनना पक्का है ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान



Comments

  1. दोस्त बनाना तो आसान है किंतु दुश्मन को दोस्त बनाना एक बहुत बड़ी कला है जो हर किसी में नहीं होती। सिकंदर महान भारत आया यूनान से भारत तक के लंबे सफर में कितने ही राज्यों को जीता किंतु वह प्रभावित हुआ केवल राजा पोरस से। परिणाम स्वरूप दोनों अच्छे दोस्त बन गए। यह सब व्यक्ति के स्वभाव और आचरण पर भी निर्भर करता है जिसकी बदौलत वह सामने वाले को अपने प्रभाव में ले लेता है जिससे दुश्मन भी दोस्त बन जाता है।

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