क्या बिना मतलब का झूठ याद रहते हैं ?
एक बार झूठ बोलने पर कई बार झूठ बोलना पड़ता है यानि एक झूठ को छुपाने के लिए कई बार झूठ बोलना पड़ता है । सत्य को छुपाने की जरूरत नहीं पड़ती है । सत्य तो सत्य है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है ।अब आये विचारों को देखते हैं : -
मानव का स्वभाव है, अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए झूठ बोलना।सच यह भी है कि बिना मतलब के झूठ,कम ही बोला जाता है।
ऐसा व्यक्ति आदमी तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि आदमी तो मतलबी होता है।
बिना मतलब का झूठ, इंसान ही बोल सकता है। इंसान हमेशा ही परोपकार करने, किसी की मदद करने तैयार रहता है। वह दूसरे का सहयोग करने के लिए या किसी की जान बचाने के लिए, किसी को नुकसान से बचाने के लिए, किसी का भला करने के लिए, बेमतलब का झूठ बोलता है।
इतिहास में प्रसिद्ध है कि पन्ना धाई ने युवराज को बचाने के लिए, अपने नन्हे पुत्र को आततायी के हाथों सौंप दिया था।ऐसा इंसान फरिश्ता होता है। यह बात अलग है कि ये बिरले होते हैं।
ऐसे इंसान द्वारा बोला गया झूठ, याद रह जाता है। पन्ना धाई की तरह।ऐसा झूठ, झूठ न होकर ,सत्य के करीब होता है। ।
- डॉ. मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
सच तो अडिग है
झूठ इक कपट है
सच ही कहा है कि बिना मतलब के झूठ याद नहीं रहते।
मेरेे घर बर्तन वाली ने एक दिन यह कहकर कुछ रूपए अपनी तनख्वाह से अतिरिक्त लिए कि उसे अपने बच्चों की फीस भरवानी है ।
मैने पूछा कि कितने बच्चे हैं तुम्हारे तो उसनेे बताया कि तीन बच्चे हैं उसके
चूंकि सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं तो हजार रुपए मैने दे दिए जो उसने अपनी तनख्वाह में से धीरे धीरे चुका दिए।
कुछ दिन बाद मेरे ससुर जी की बर्सी पर सासु मां ने कुछ गरीब बच्चों को कपड़े बांटने की इच्छा जताई मैं बाजार जाकर ग्यारह बच्चों को जो लगभग सात,आठ और दस वर्ष के हों
अगले दिन मेरी सासु मां ने बर्तन वाली से अपने तीनों बच्चों की उम्र बताने को कहा जो वह चिल्ला कर बोली "अरे। मांजी मेरेे तो दो बच्चे हैं" यह सुनते ही मैं रसोई से बाहर निकल कर उसे घूरने लगी और वो शर्म से नजरें जमीन पर शायद उसे अपना बोला झूठ याद आ गया था।
अतः स्पष्ट है कि बिना मतलब के झूठ याद नहीं रहते।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
बिना मतलब का झूठ जो कभी भी याद नहीं रहता है और जो झूठ याद रहता है तो इसका यह मतलब है कि वह झूठ किसी अच्छे कार्य के लिए बोला गया हो। झूठ बोलने से किसी की व्यवस्था बिगड़ती है ऐसे झूठ याद नहीं रहते हैं और झूठ बोलने से किसी की व्यवस्था बनती है तो ऐसे झूठ याद रहते हैं क्योंकि सत्य की स्रोत होती है लेकिन झूठ की स्रोत नहीं होती ।झूठ किसी को स्वीकार नहीं होता है।
लेकिन कभी-कभी ऐसे झूठ बोली जाती है जिससे किसी का नुकसान ना होगा उसके सुख के लिए होती है अर्थात समाधान के लिए होती है तो ऐसे झूठ याद हो सकते हैं सत्य हमेशा याद रहती है। सत्य नित्य वर्तमान है और झूठ नासमझी के कारण होता है नासमझी के कारण ही झूठ बोलते हैं लेकिन झूठ ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाती है और जो सच्चाई में तब्दील हो जाती है। अतः कहा जाता है कि सत्य कभी मिटती नहीं है झूठ धीरे धीरे मिट जाती है अतः हमें सत्य का सहारा लेना चाहिए जो सत्य की राह पर चलते हैं वही सुख शांति से जी पाते हैं और जो झूठ की पुलंदियों पर पलते हैं। वह कभी सुखी नहीं रहते समस्या से घिरे रहते हैं अतः यही कहा जा सकता है कि बिना मतलब का झूठ याद नहीं रहते हैं और किसी व्यवस्था को बनाने के लिए झूठ बोला जाता है वह याद रहते हैं। क्योंकि सत्य नित्य वर्तमान है और सत्य स्वीकार होता है सत्य की प्रकाश में ही मानव जीने की कामना करता है। झूठ कुछ हद तक याद रहता है स्थाई याद नहीं रहता। सत्य हमेशा स्थाई होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
ये तो सर्वविदित है की सच और झूठ की तुलना में सच हमेशा याद रहता है पर कुछ झूठ भी ऐसे होते हैं जो भुलाये नहीं जाते झूठ का जन्म होता है सच्चाई को छुपाने हेतु और बहाने बनाने हेतु .पुरानी कहावत है की झूठ के पैर नहीं होते और एक सच छुपाने के लिएअनेक झूठ बोलने पड़ते हैं .व्यक्तिगत तौर पर मुझे आज भी याद है की एक व्यक्ति मेरे पिताजी के साथ काम करता था और छुट्टी के लिए अपने घर के किसी सदस्य की मृत्यु बताता था .एक बार उसने उसी की मृत्यु बता दी जिसे वह पिछले महीने मृत घोषित कर चूका था अतः कुछ झूठ भुलाये नहीं जाते !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
हां बचपन की नादानी में बोला गया झूठ कभी कभी ऐसा भयानक और विकराल रुप ले लेता है कि वह ताजिंदगी याद रह जाता है!
यह सत्य घटना है हम सभी घर की बगल में हर्रा गोदाम में खेल रहे थे!सभी की उम्र तकरीबन 8-9 वर्ष की रही होगी !सभी रेसटीप(छुपा-छुपाई) खेल रहे थे!ट्रक से हर्रे के बोरे गोदाम में रखे जा रहे थे !बहुत लंबा और बड़ा गोदाम था! हम लोग बोरे के पीछे छुप जाते फिर बाहर आकर दांव खेलते! ऐसा बार बार खेल रहे थे तभी काम होते ही गोदाम बंदकर वे चले गए !दो बच्चे अंदर ही रह गए ! और लोग बाहर भी छूपे थे जिसको जहां ठीक लगता छिप जाता! अंधेरा होते सभी अपने घर चले गये! आज के जैसे पहले के बच्चे चतुर नहीं थे !उन बच्चों के माता-पिता ने कहा कहीं गोदाम में तो नहीं खेल रहे थे ?हम सभी ने बार बार पूछने पर भी डरकर ना में सर हिलाया !पूछने पर इतना बताया छूपा-छूपी खेल रहे थे फिर क्या था गोदाम वाले के घर सायकल लेकर भागे जो लगभग दोन तीन किलोमीटर दूर था !तभी केवल स्ट्रीट लाइट थी !फोन भी नहीं था !उनको गोदाम से निकालते लगभग रात के 1-2 बज गये! दोनो बेहोश थे! उस दिन का बोला गया बिना मतलब का झूठ जिसमे कोई लेना देना नहीं था आज भी याद है !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
झूठ की शुरुआत का कारण ही गलत कार्य को छुपाना होता है। झूठ को जब अनजाने में बोला जाता है तो उसके पीछे कुछ अच्छे विचार होते हैं। लेकिन जब यह जान-बूझ कर बोला जाता है, तो किसी बुरे कर्म को छिपाने के लिए होता है। लेकिन बिना मतलब का झूठ - वह या तो छोटे बच्चों की हरकत होती है या बहुत गन्दी हरकत।
गन्दगी से भरे या बुरे कर्म के लिए बोले गए झूठ कालांतर में याद नहीं रह जाते । फिर से वही झूठ दोहराते हैं। लेकिन कभी-न-कभी सच सामने आ ही जाता है। बच्चों की हरकत ताउम्र याद रहती है, लेकिन बदनियती से बोला गया झूठ कभी याद नहीं रहता। हाँ, ये हो सकता है कि सुनने वाले को याद रह जाये। तब बोलने वाले की इज्जत सुनने वाले कि नजर में दो कौड़ी की रह जाती है।
कभी-कभी कडुवे सच को छिपाने के लिए झूठ बोला जाता है, उसके पीछे नियत में खोट नहीं होती। अल्प समय में ही सच सामने आ जाता है। इसलिए बिना मतलब झूठ बोलने से बचना चाहिए।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
झूठ हो या सच, दोनों ही रूप जीवन में कभी-कभी कुछ ऐसा अच्छा या बुरा कर जाते हैं, जो जीवन भर याद रहते हैं और उनको भुला पाना मुश्किल होता है। कई बार बिना मतलब के बोले गए झूठ के परिणाम भयावह हो जाते हैं। किसी पर बेमतलब के झूठ का सहारा लेकर चारित्रिक लांछन लगा देना, कोई भद्दा मजाक कर देना, ईर्ष्या वश किसी को अच्छे अवसर से गंवा देना ऐसे ही अनेक प्रकार के झूठ जीवनभर याद रह जाते हैं और संबंधित के प्रति कड़वाहट बनाए रखते हैं।
इसके विपरीत कई बार के बेमतलब के झूठ किसी के पक्ष में बोलकर उसके लिए सकारात्मक रूप में जीवनभर भी याद रहते हैं।
अतः झूठ मतलब को हो या बेमतलब का, किस स्थिति, किस उद्देश्य और कहाँ, कब ,किससे बोला गया, ये सभी बातें उस झूठ का भविष्य तय करती हैं। वह चाहे कड़वाहट भरी हों या मिठास से भरी हूं।
वैसे जीवन में झूठ और सच को लेकर दो बातें हमेशा याद रखनी चाहिए। एक, झूठ के पांव नहीं होते और दो, सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप l
जाके ह्रदय साँच है ताके हिरदय आप ll
लेकिन कभी किसी की जान बचाने के लिए झूँठ बोलना कहीं कहीं ठीक भी होता है l जो बार बार झूँठ का सहारा लेते हैं उन्हें कोई अपना झूँठ याद नहीं रहता है l झूँठ बोलने वाले व्यक्ति पर से विश्वास उठ जाता है l बिना मतलब का झूँठ याद नहीं रहता l
कभी कभी अपने काम के लिए भी झूँठ का सहारा लेना पड़ता है, वह याद रहता है l
कुछ भी कहो, झूँठ तो झूँठ ही है l कार्य से जी चुराकर झूँठ बोला जाये, पाप की श्रेणी में ही आता है l कितने लोग घर में कार्य होने पर जल्दी जाने के लिए झूँठ का सहारा लेते है, जो गलत है l ऐसे झूँठ कब तक याद रहेंगे l किसी अच्छे कार्य के लिए झूँठ बोला है, जिंदगीभर याद रहेगा l
मिथ्याचरण करने वाला व्यक्ति झूँठ का सहारा ले कर एक के बाद एक लगातार झूँठ की राह पर बढ़ते जाने के लिए विवश हो जाता है फिर झूँठे व्यवहारों से पिंड छुडापाना उसके लिए कठिन हो जाता है l ऐसे झूँठ याद नहीं रहते l
चलते चलते ---
अच्छा तो यह है कि हमें गलती हो जाने पर सुधार हेतु सच स्वीकार करना चाहिए l
रोग प्रकट करने पर ही रोग का इलाज़ संभव है, छिपाने पर वह शरीर को सड़ा गला कर नष्ट कर देगा l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
सच और झूठ की कहानी है या व्यक्ति विशेष के ऊपर निर्भर करती है कुछ व्यक्ति झूठ का सहारा लेकर ही आगे बढ़ते रहते हैं और एक झूठ को छुपाने में 100 झूठ बोल डालते हैं
झूठी झूठी होता है इसे झूठ ना कह कर रॉन्ग या गलत अभिव्यक्ति भी कर सकते हैं अपने आप को बचाने के लिए गुनाह करने के बाद अपने आप को बचाने के लिए झूठ बोलने की झड़ी लगा देता है झूठ भी इतनी सफाई से बोलता है ऐसा लगता है कि वह बिल्कुल ही सच बोल रहा है पर कहीं ना कहीं झूठ के पैर तो होते नहीं इसलिए सत्य का सामना हो जाता है
अब यहां पर सवाल है कि झूठ बिना मतलब के बोले जाते हैं या याद रख रहते हैं झूठ का रूपरेखा सत्य से अलग होता है इसलिए झूठ बिल्कुल याद नहीं रहते क्योंकि वह काल्पनिक होता है और यही कारण है कि झूठ पकड़ा जाता है क्योंकि दो समय में बोला गया झूठ दो तरह का होता है इसलिए झूठ याद नहीं रहते हैं क्योंकि वह घटित नहीं होते हैं वह काल्पनिक होते हैं
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
सत्य सदा अडिग होता है ,झूठ के पाँव होते हैं वह जगह -जगह भागता फिरता है ।झूठ बोलना एक आदत है जिसे इन्सान अपनी आत्म छवि को बढ़ाने या बचाने के लिए बेलता है ।वह दूसरे को नहीं स्वयं को धोखा देता है बार -बार का झूठ समाज में अप्रतिष्ठा का कारण बनता है सच बोलने पर भी समाज उसका विश्वास नहीं करता ।एक सत्य को छुपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं ।एेसे तो प्रायः झूठ याद नहीं रहते लेकिन कोई-कोई झूठ जिन्दगी तक याद रह जाते हैं ।एक दूध दुहने वाला ग्वाला पैसे की जरुरत बताते हुए कहता है कि बेटी का श्वसुर मर गया कुंछ पैसे दे दिजिए ,वही अादमी महीने भर बाद अपने समधी के मरने का जिक्र कर पुनः पैसे माँगता है ।जब कि दोनों रिश्ते एक ही आदमी के लिए हैं । वक्त तो चला गया पर बात याद रह गयी ।झूठ केवल प्राणों की रक्षा के संदर्भ में ही बोलना चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
झुठ नहीं बोलना चाहिए यह सत्य है पर हम सब बहुत झूठ बोलते है झूठ बोला गया याद नहीं रहता , जो अधिक झूठ बोलते हैं वो अपना बोला हुआ भूल जाते है , बिना मतलब का बोला झूठ कभी याद नहीं रहता !
झूठ, एक असत्य बयान के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है, जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता है और प्रायः जिसका उद्देश्य होता है किसी प्रतिष्ठा को बरकरार रखना, किसी की भावनाओं की रक्षा करना या सजा या किसी के द्वारा किए गए कार्य की प्रतिक्रिया से बचना. झूठ बोलने का तात्पर्य कुछ ऐसा कहने से होता है जो व्यक्ति जानता है कि गलत है या जिसकी सत्यता पर व्यक्ति ईमानदारी से विश्वास नहीं करता और यह इस इरादे से कहा जाता है कि व्यक्ति उसे सत्य मानेगा. एक झूठा व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जो झूठ बोल रहा है, जो पहले झूठ बोल चुका है, या जो आवश्यकता ना होने पर भी आदतन झूठ बोलता रहता है
झूठ बोलने को मौखिक या लिखित संचार में आमतौर पर धोखे को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। धोखाधड़ी के अन्य रूप जैसे, छद्म वेश बनाना या जालसाजी को आम तौर पर झूठ नहीं माना जाता है, हालांकि इसमें अंतर्निहित आशय वही हो सकता है। हालांकि, एक सच्चे बयान को भी धोखा देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस स्थिति में, झूठ माने जाने वाले किसी भी व्यक्तिगत बयान की सत्यता के बजाए इसमें एक समग्र रूप से बेईमान होने का इरादा होता है।
गंभीर झूठ (जैसे झूठी गवाही, धोखाधड़ी, मानहानि) कानून द्वारा सजा योग्य हैं।
बिना मतलब आदतन बोला गया झूठ याद नहीं रहता व कई बार हंसी का पत्र बनाता है
-डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्रश्न है कि क्या बिना मतलब बोले हुए झूठ याद रहते है तो यह हम सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि एक झूठ को छुपाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते हैं तो सबसे अच्छी बात यह है कि जहाँ तक संभव हो सके यही प्रयास करते रहना चाहिए कि झूठ न बोलना पड़े अन्यथा जब कोई झूठ बोलता है तो फिर उसे छुपाने के लिए उसे और भी झूठ बार-बार बोलने पड़ते हैं और सच की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि सच तो सच है वह छोटा या बड़ा नहीं होता और ना ही उसे याद रखने की आवश्यकता पड़ती और झूठ बोलने वाले की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उसे यह ही पता नहीं रहता कि उसने कब कहा क्या कैसे और क्यों बोला था और वह अपने इसी झूठ के भ्रम जाल में फंसता चला जाता है तो इस पर मेरा अपना मत यही है कि बिना मतलब बोले हुए झूठ किसी को याद नहीं रहते और यदि कहीं याद रहते भी हैं तो उन्हें छुपाने के लिए फिर बार-बार झूठ बोलना पड़ता है और आदमी ऐसा करके सामाजिक रूप से अपने प्रतिष्ठा को दांव पर लगाता है अपनी छवि खराब करता है ऐसा नहीं होना चाहिए झूठ बोलने से बचना चाहिए ।
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
हां,जब कोई बिना मतलब, बेवजह हम पर झूठा आरोप लगा दे तब वह आरोप मन को भेद देता है और हम उस झूठ को जीवनपर्यंत भूल नहीं पाते।
दूसरा, अगर हम कभी हंसी मजाक कोई झूठ बोल दें और उस झूठ का परिणाम सामने वाले व्यक्ति पर बुरा पड़ता है। कुछ गंभीर नुकसान के रूप में झेलना पड़ता है तब वह झूठ हमारी आत्मा पर बोझ बन जाता है और हम उसे कभी नहीं भूल पाते।
बिना मतलब का झूठ बोलकर अगर कोई किसी व्यक्ति का सामाजिक क्षति पहुंचाता है मानसिक चोट पहुंचाता है तो वह व्यक्ति को आघात तो पहुंचाता ही है पर जो झूठ बोला उसकी भी कभी ना कभी आत्मा धिक्कारती है। वह चाह कर भी भूल नहीं पाता भले ही वह ऊपर से भूलने का दिखावा करता हो ।
अतः परिस्थितिश कभी झूठ बोलना भी पड़े तो उतना ही बोले जिससे किसी व्यक्ति को मानसिक और सामाजिक आघात न पहुंचे। बिना मतलब का झूठ ज्यादा खतरनाक होता है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
झूठ जिसे हम असत्यता भी कहते हैं। एक ज्ञात असत्य है। जिसे सत्य के रूप में प्रयोग करते हैं। झूठ बयान के द्वारा दिया हुआ एक प्रकार का धोखा है जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता है। जिसका उद्देश्य होता है प्रतिष्ठा को बरकरार रखें ,किसी के भावनाओं की रक्षा करना और सजा़ दिलाना, या किसी के द्वारा किए गए कार्य की प्रतिक्रिया से बचाने के लिए झूठ का सहारा लेता है।
झूठ बोलने के पीछे राज़ होता है की वह व्यक्ति जानता है कि गलत है जिसकी ईमानदारी से विश्वास नहीं कर पाता फिर भी वह इस इरादे से कहता है कि व्यक्ति उसे सत्य मान लेगा।
अगर कोई व्यक्ति एक बार झूठ का सहारा ले लिया है तो, आवश्यकता पड़ने पर वह झूठ बराबर बोलते रहेगा।
झूठ बोलने को मौखिक या लिखित संचार में आमतौर पर धोखाधड़ी के रूप है।
कुछ लोग मनोवैज्ञानिक कारणों से भी झूठ का सहारा लेते हैं चुकी अपना जो खामियां है वह प्रगट ना हो पाए।
" झूठ अगर यह है कि तुम मेरे हो तो यकीन मानो मेरे लिए सत्य कोई मायने नहीं रखता......!!!"
लेखक का विचार:- एक सच्चे बयान को भी धोखा देने के लिए इस्तेमाल लोग करते हैं। गंभीर झूठ जैसे:-( झूठी गवाही धोखाधड़ी मानहानि) कानून द्वारा सजा योग्य है।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
जीवन में कदम-कदम पर मनुष्य का सामना झूठ और झूठों से होता रहता है। मनुष्य स्वयं भी झूठ बोलता है। यह झूठ अक्सर किसी न किसी मतलब के लिए होते हैं। बिना मतलब के झूठ अक्सर नहीं होते। वैसे झूठ, झूठ होता है। किसी के लाभ के लिए हो, या किसी की हानि के लिए। झूठ के पीछे मतलब तो होता ही है।
अक्सर लोग रिश्तों में आयी दरार को पाटने, अपना प्रभाव जमाने, खुशामद करने, अपनी गलती छिपाने के लिए, मजाक के लिए अथवा स्मृति दोष की वजह से झूठ बोलते हैं।
फिर भी बिना किसी मतलब के बोले जाने वाले झूठ के पीछे भी बोलने वाले की क्या मंशा रहती है, यह जानना जरूरी है। अक्सर बिना मतलब के झूठ स्मृति दोष की वजह से अथवा मजाक करने के लिए होते हैं। इस प्रकार के झूठ भी याद तो रहते ही हैं। साथ ही यह मजाक भी यदि हानिकारक हो जाये तो यह झूठ भी एक मतलब का कारण बन जाता है और सदैव याद रहता है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
आजकाल अधिकतर लोग मतलब के पीछे भागते हैं जब तक मतलब हो तो सब अपने लेकिन जैसे ही उनका काम हो गया मैं कौन अौर तुम कौन वाली वात आ जाती है।
यह सच है, मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं, कहने का मतलब यह है कि मतलब की वात हमेशा याद रखी जाती है और यह भी सच है की झूठे लौग ही मतलबी होते हैं, झूठ और मतलब का आपस में गहरा तालमेल है, सच्चाई के आगे झूठ टिक नहीं पाता और जो सच्चा इन्सान होता है उसको मतलब से क्या लेना देना इसलिए उसको झूठी वातें याद नहीं रहतीं।
अब वात रही झूठ की, जितना गहरा मतलब होगा इतना ही झूठ वोलना पड़ेगा क्योंकी एक झूठ के पीछे कई झूठ छिपे होते हैं मतलब के पीछे बडे़ से बडां इन्सान अपनी इन्सानित खो वैठता है। राबण ने सन्यासी बन कर अपने मतलब के लिए झूठ बोला था जव सीता माता जी का हरण किया था जो अभी तक सब को याद है सुदामा ने झुठ बोल कर भगबान कृष्ण जी के हिस्से के चने खा लिए थे जो अब तक सभी को याद है कहने का मतलब यह है कि मतलब का झूठ हमेशा याद रहता है। हम दिन में झूठ बोलते हैं लेकिन हमें कोई भी याद नहीं रहता, किन्तु मतलब वाले झूठ को हम वार वार दोहराते हैं की कहीं गल्ती न पकड़ी जाए, इसलिए मतलब का झूठ हमेशा याद रहता है क्योंकी उसे हम मुनाफे की ताक पर रख करचलते हैं।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
यह याद रहना न रहना बोलने और सुनने वाले की मानसिकता पर निर्भर करता है। वैसे आज के घोर व्यक्तिवादी युग में जहां कोई किसी से बिना मतलब बात भी करना न चाहता हो वहां बिना मतलब झूठ को याद रखना संभव ही नहीं।मानव हर वो बात याद रखता है, जिसको अपने पक्ष में प्रयोग कर सके। इसके अलावा उसे झूठी क्या,वो सच्ची बात और आंखों देखी भी याद नहीं रखता जिससे उसका कुछ हित न सधता हो। इसी प्रवृत्ति के चलते कितने ही अयोग्य लोग तिकड़म से आगे बढ़ जाते हैं। यदि झूठ अपने पक्ष में हो तो उसे दिन रात बोला जाता है। हमारे देश में कितने ही ऐसे घोटाले प्रचारित प्रसारित किए गए जो कभी हुए ही नहीं। राजनीति में तो झूठ बोलना, प्रचारित प्रसारित करना और उसे सच की तरह स्थापित करने के लिए इवेंट मैनेजमेंट का सहारा लिया जाता है।मेरा मानना है कि बिना मतलब के झूठ याद नहीं रहते और बिना मतलब के झूठ बोला ही नहीं जाता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -उत्तर प्रदेश
बिना मतलब का झूठ याद रहता है,ये तो वही बता सकते हैं जो झूठ बोलते होंगे। वैसे किसी न किसी बात को लेकर सभी लोग कुछ न कुछ झूठ बोल ही देते हैं। जैसे हम कभी किसी के यहाँ जाते हैं और वह व्यक्ति चाय नाश्ता के लिए पूछता है तो अक्सर सभी लोग कहते हैं नहीं नहीं अभी पीकर रहे हैं या अभी खा कर आ रहे हैं।जबकि उन्हें खाने या पीने का मन रहता है। ऐसे झूठ भला किसको याद रहेंगे।
मेरे ख्याल से बिना मतलब का कोई झूठ नहीं बोलता है। झूठ बोलने के पीछे झूठ बोलने वाले का कुछ न कुछ मक़सद अवश्य होता है।
चाहे अपने लिए हो या जिससे बोलता है उसके लिए हो।
किसी अच्छे काम के लिए कोई झूठ बोलता है वो शायद याद रखता होगा। बिना मतलब वाला झूठ कोई याद नहीं रखता।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
"सत्यमेव जयते"
अगर झूठ और सच का तुलनात्मक अध्ययन किया जाएं , तो हमें शेषफल के रूप में सच ही प्राप्त होगा। क्योंकि सत्य सदैव प्रमाणिक होता है असत्य की बुनियाद ही खोखली होती है।
परिस्थितिवश हम सभी एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलते हैं परंतु अंततः "ढाक के तीन पात" वाली बात सिद्ध होती है।
और सत्य उजागर हो ही जाता है।
ऐसे में बिना मतलब के बोले गए झूठ को याद रखना या बेवजह याद आना तर्कसंगत नही है।
- संगीता सहाय "अनुभूति"
रांची - झारखंड
झूठ बोलने की क्षमता उम्र के लगभग तीसरे साल से उभरती हैं और उम्र के साथ-साथ तेजी से विकसित होती हैं। झूठ बोलने का मनोविज्ञान में झूठ बोलने की क्षमता को मानव विकास जल्दी ही लगभग सार्वभौमिकता रुप में दर्ज किया गया हैं। कुछ लोग दूसरों से बेहतर "झूठ खोजी" हो सकते हैं। वे झूठ को चेहरे की अभिव्यक्ति, बातों की स्वरसंक्रम, कुछ हरकतों और अन्य तरीकों कुछ अन्य पद्धतियों से पहचान लेने में सक्षम होते हैं। एक झूठा व्यक्ति ऐसा हैं जो झूठ बोल रहा हैं, जो पहले झूठ बोल चुका हैं या आवश्यकता ना होने पर भी आदतन झूठ बोलता रहता हैं। गंभीर झूठ (जैसे झूठी गवाही, धोखाघड़ी, मानहानि) कानून द्वारा सजा योग्य हैं। झूठ, एक असत्य बयान के रुप में दिया गया एक प्रकार का धोखा हैं, जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता हैं और प्रायः जिसका उद्देश्य होता हैं। किसी राज या प्रतिष्ठा को बरकरार रखना, किसी की भावनाओं की रक्षा करना या सजा या किसी के द्वारा किए गए कार्य की प्रतिक्रिया से बचना। झूठ बोलने का तात्पर्य कुछ ऐसा कहने से होता हैं, जो व्यक्ति जानता हैं या जिसकी सत्यता पर ईमानदारी से विश्वास नहीं करता और इस इरादे से कहा जाता हैं, कि व्यक्ति सत्य मानेगा? अन्त में काल्पनिक तथ्यों का बखान और बिना मतलब का झूठ याद करने की कला में माहिर होते हैं, वर्तमान परिदृश्य में देखिए झूठ के साये में राजतंत्र, आमजनों को झूठे आश्वासनों देकर, अपनी-अपनी प्रगति के सोपानों की ओर अग्रेषित हैं, क्या ऐसा ही चलता रहेगा, प्रतिदिन देखिए सच-झूठ का बयान कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायपालिकाओं में जहाँ चरण, चरणों से प्रगति के सोपानों की ओर अग्रसर हैं, प्रश्न उत्पन्न होता हैं, क्या भविष्य में नियंत्रित हो पायेगा?
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
" कहा जाता है कि झूठ की कोई बुनियाद नहीं होती यह रेत के महल बनाने जैसा है "--
हमेशा यही कोशिश करनी चाहिए कि झूठ नहीं बोलना पड़े , एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलना पड़ता है और अंततः एक दिन सत्य सबके सामने प्रकट हो जाता है स्वयं ही --
फिर भी बहुत से लोग ऐसे हैं अनायास ही जरूरत ना हो फिर भी झूठ बोलते
शायद यह आदत में शामिल हो या वह
यह नहीं समझ पाते कि इसकी कोई जरूरत नहीं है हम अपनी बातों को सीधी और सपाट तरीके से भी कह सकते हैं और ऐसी बातों का परिणाम समय पर और सही होता है।
बात बिना बात झूठ बोलने वाले को याद ही नहीं रहता कि कब उसने कहां
पर और क्या बात कही थी किस परिपेक्ष में कही थी इसलिए मेरा मानना है कि बिना मतलब के झूठ याद नहीं रहते हैं
इसलिए हर व्यक्ति को ऐसी बातों से प्रायः बचना चाहिए सच बोलने में कम समय और सही निर्णय होता है।
और बिना मतलब का झूठ किसी को भी याद नहीं रहता यह बात 100% सत्य है। यह बात शाश्वत है।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
भाई मैं तो झूठ बोलती नहीं। इसलिए इसकी ज्यादा जानकारी मुझे नहीं है। मेरे ख्याल से तो बिना मतलब का झूठ जो भी बोलेगा ,उसे याद नहीं रहेगा कि उसने कब कहां और क्या बोल दिया?
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
बिना मतलब की झूठ याद रहने या न रहने परिस्थिति पर निर्भर होता है । अगर हम झूठ बोलते हैं तो हम भूल जाते हैं ,दूसरा व्यक्ति याद रखताहै। और यदि दूसरा व्यक्ति झूठ बोलता है, तो हम याद रखते हैं वह भूल जाता है।
एक बार झूठ बोलने के लिए कई बार झूठ बोलना पड़ता है क्योंकि झूठ को, या अपने गलत कार्य को छिपाना पड़ता है ।
और अगर य दि भी हम सत्य बोले और अगर हम सही बोले तो हमें उसे छुपाने की जरूरत नहीं होती ।
अगर हम किसी व्यक्ति से कोई बात पूछते हैं तो हम मानते हैं कि वह सत्य बता रहा है वही बात अगर हम दूसरी, तीसरी बार पूछें तो उसका उत्तर अलग-अलग बताएगा यानी कि वह बार बार झूठ बोलता है ।ऐसे इंसान को गप्पी भी कहा जाता है। इसलिए सही कहा गया है कि बिना मतलब के झूठ याद नहीं रहते।
इसलिए कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
कहावत थी -कि अगर किसी की जान बचती हो तो झूठ बोलना पु न्य के बराबर है। पाप नहीं है। परंतु अब अधिकांशतः देखने को मिलता है कि किसी की जान लेने के लिए ही झूठ पर झूठ बोला जाता है। यानी किसी का माल या किसी की जान लेने के लिए ही झूठ का प्रपंच रचा जाता है । जैसा कि सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती के विषय में सुनने में आ रहा है।
कवि कबीर का दोहा
सच बराबर तप नहीं ,
झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे सांच है ,
ताके हिरदे आप।
- रंजना हरि त
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
झूठ कितना भी चलाकी से बोला जाए। झूठ 'झूठ' ही रहता है। उसका कभी न कभी पर्दा हट जाता है। जिसका दण्ड भी निर्धारित होता है। ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि कोई बिना मतलब के झूठ क्यों बोलेगा?
सर्वविदित है कि डाक्टर भगवान के रूप माने जाते हैं और बहुत से डाक्टर उस पर चरितार्थ भी होते हैं। किन्तु पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती। इसलिए इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कुछ डाक्टर शैतान का रूप ही नहीं बल्कि शैतान से भी बढ़ कर होते हैं। जो अपने कर्त्तव्य से अधिक घूस के धन को प्राथमिकता देते हैं और पीड़ित रोगी के विरुद्ध झूठे प्रमाण-पत्र जारी करते हैं। जिससे पीड़ित रोगियों का जीवन बर्बाद ही नहीं हो जाता बल्कि उस पर आश्रित पूरे परिवार का जीवन नारकीय हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि मेरा सम्बन्ध उपरोक्त दोनों प्रकार के डाक्टरों से चोली-दामन का रहा है। इसलिए मैं न्यायालय में याचिका दायर कर उन डाक्टरों को नंगा कर चुका हूं। जिन्होंने मेरे विभागीय अधिकारियों से घूस लेकर मेरा और मेरे परिवार का सम्पूर्ण जीवन नारकीय बनाया हुआ है।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब-जब उन्हें माननीय न्यायालय का नोटिस मिलता था तब-तब उन्हें अपने झूठ के कारण अपने-आप से घृणा होती थी और बदनामी एवं जेल जाने का डर अलग से उन्हें सताता रहता है।
मेरा दावा है कि झूठ मतलब के बिना बोला ही नहीं जाता और स्वार्थ के आधार पर बोले गए समस्त झूठ अंतिम सांस तक याद रहते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
"झूठ" यह शब्द ही अपने आप में नकारात्मक प्रभाव डालता है। लेकिन कहा जाता है कि अगर कोई झूठ बसकिसी की भलाई के लिए बोला जाए तो कोई ग़लत बात नहीं ।
लेकिन यहां बात हो रही है बिना मतलब के झूठ की ,और यह विषय सुनते ही मन नकारात्मक विचारों से भर जाता है,तो जब जिस विषय को सुनते ही मन दु:खी हो जाए उस विषय को याद रखना मेरे विचार से कोई बुद्धिमत्ता की बात नहीं।
अगर हमारे मुंह में कोई मीठी गोली हो तो मुंह बार बार मीठा होकर हर्षित हो जाता है लेकिन कड़वी गोली बार बार मुंह का स्वाद बिगाड़ देता हैं,उसी तरह झूठ भी कड़वी यादों की तरह होता है जिसे याद रखने से मन बार-बार कड़वा होता है,दु:खी होता हैं, रिश्तों में कड़वाहट आती है,मन नकारात्मक विचारों से भर जाता है जीवन दु:खो से भर जाता है । और जब बात बिना मतलब के झूठ की हो मेरे विचार से भुल जाने में ही भलाई है ।
इसलिए बिना मतलब के झूठ का कोई वजूद नहीं हैं और किसी को यह याद नहीं रहता।
इन पंक्तियों के साथ मैं अपने विचार को विराम देना चाहुंगी।
" सत्य में ही परमेश्वर है,
सत्य हीओमकांर हैं,
झूठ का न कोई आधार है,
झूठ का इस जग में,
अपमान है, तिरस्कार है।"
- सुधा कर्ण
रांची - झारखंड
झूठ तो झूठ है चाहे मतलब में बोला जाए या बिना मतलब, रही बात याद रखने की तो झूठ बोलते समय हमारा ब्रेन बचाव पक्ष के रूप में कार्य करता है इसलिए याद रहना स्वभाविक है अतः झूठ बोलने के पल भूलना असंभव हो जाता है ।
झूठ की प्रक्रिया ये है दरअसल, झूठ बोलना या असत्य बोलना एक विशेष योग्यता है। अगर आपको झूठ का जाल बुनना है, तो आपको बहुत कुछ करना पड़ता है। सत्य वह है, जिसे कोई निपट मूर्ख भी कर सकता है, क्योंकि इसमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती। यह तो है ही, इसके लिए करना क्या है? सत्य को बनाए रखने की जरूरत नहीं होती, जबकि असत्य की काफी देखभाल करनी पड़ती है। इसलिए यह याद रहता ही है कभी भूला ही नहीं जाता झूठ बोलने के लिए आपके पास काबिलियत होनी ही चाहिए।क़ाबिलियत जुटाने के लिए किए गए प्रयास एक अभ्यास के रूप में हमारी आदतों में विकसित हो जाते हैं इसलिए यह आदत बन जाती है और हमेशा याद रहने लगते हैं ।
आप किसी चीज के साथ अपनी पहचान बना लेते हैं और दिमाग का स्वभाव कुछ ऐसा है कि इसे आप जो भी पहचान देंगे, यह भरोसा करने लगता है कि यह वही है। अगर आप खुद को मोर मान लेंगे तो आप उसी की तरह व्यवहार करने लगेंगे। आपका दिमाग आपको यह भरोसा दिला देगा कि आप वही हैं। और एक बार अगर झूठ के साथ पहचान बन गई तो असुरक्षा की भावना आ जाएगी, क्योंकि झूठ की हमेशा रक्षा करनी पड़ती है और उसका पोषण भी करना पड़ता है। अगर आप किसी से झूठ बोलते हैं तो आपको हर पल उस झूठ को याद रखना पड़ता है, क्योंकि अगर आपसे किसी ने अचानक कुछ पूछ लिया तो आप कहीं कुछ और न बता बैठें। दूसरी तरफ फर्ज कीजिए आपने सच बोला है। कोई आपसे पूछता है और मान लीजिए आप इसके बारे में भूल गए हैं, तो आप उससे पूछ सकते हैं कि अरे, कल मैंने क्या कहा था? मैं महज सच बोलने की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि पूरा का पूरा जीवन इसी तरह का है। अगर आप सच के साथ हैं तो आप हमेशा आराम में रहते हैं और अगर आप झूठ के साथ हैं तो आपको हरदम, रात-दिन मेहनत करनी पड़ती है। आपको अपना झूठ नींद में भी याद रखना पड़ता है। सपने में भी आप वही देखते हैं, क्योंकि अगर आपने इसे हर पल याद नहीं रखा तो यह मिट जाएगा। इसे पोषण की ज़रूरत पड़ती है इसलिए झूठ को याद रखना ही झूठ की खुराक है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
झूठ कभी भी बिना मतलब के नहीं बोला जाता। यदि हम किसी लक्ष्य को सत्य बोलकर प्राप्त करने में अक्षम हैं तब झूठ का सहारा लिया जाता है। झूठ की कोई बुनियाद नहीं होती और सत्य को किसी बुनियाद की जरूरत नहीं होती। चूंकि झूठ की कोई बुनियाद नहीं होती वह स्थिर रह ही नहीं सकता। झूठ की अस्थिरता ही उसे भुला देने का कारण बन जाती है। सत्य स्थिर रहता है। यह याद रखना कि अमुक काम करवाने के लिए कौन-सा झूठ बोला था अधिकतर मामलों में संभव नहीं है। परन्तु कुछ मामले ऐसे हो सकते हैं जहां हमेशा एक जैसा झूठ बोलने से काम बनता हो तो वह झूठ याद रह सकता है। किन्तु यह कहना कि बिना मतलब के झूठ याद रहते हैं संभव नहीं है क्योंकि किसी मतलब को साधने के लिए ही झूठ बोला जाता है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
वैसे तो झूठ बोलना पाप है,ऐसा हम सब बचपन से हीं सुनते आए हैं। झूठ बोलना सदैव ग़लत रहा है यह बात अक्षरशः सत्य है।लेकिन यदि हम किसी के भले के लिए कभी कोई झूठ बोल कर कुछ भला करते हैं तो फिर वैसी परिस्थिति में बोला गया झूठ सही कहा जा सकता है क्योंकि इसमें छिपी हित की भावना होती है। बचपन में शरारती भाव के तहत कभी -कभी हम खेल- खेल में कुछ झूठ बोल कर मस्ती कीए होते हैं तो वह हमेशा याद रहता है कि ---हमने ऐसा किया था। भेड़िया आया , भेड़िया आया वाला बोला गया झूठ तो सबके लिए एक सबक हीं बन गया। मंदिर के बाहर मिली एक भिखारिन कभी पति की बीमारी के लिए सहायता मांगती थी,तो कभी पति के क्रिया- कर्म हेतु।उसे शायद मैं याद ना रही और वह बराबर इन्हीं दो बातों को पारा- पारी दोहराती थी।एक दिन मैं ने उसके बोलने और मांगने से पहले हीं उसके द्वारा बोले जाने वाले वाक्य को दोहरा दिया।वह बुरी तरह झेंप गई और बोलने लगी क्या बोलूं लोग बिना ज्यादा दुःख बंया के देते नहीं।
ये झूठ मुझे बराबर याद भी रहता और उसकी बेबसी,लाचारी भी उसका एक हाथ भी नहीं था।
-डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
बिना किसी मतलब के कोई झूठ नहीं बोला जाता है। व्यक्ति कभी-कभी अपने मतलब के लिए भी झूठ बोलता है। लेकिन उस एक झूठ को बोलने के बाद वह और भी ना जाने कितने झूठ बोलना शुरू कर देता है। क्योंकि उसके झूठ बोलने की आदत को बढावा मिल जाता है। फिर व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति को उसके झूठ बोलने से चाहे कितना ही दुःख तकलीफ़ क्यूँ ना हो कोई फर्क नहीं पड़ता है। और नहीं उस झूठ को व्यक्ति याद रखता है। लेकिन कहा जाता है ना बिना पानी के प्यास का कोई महत्व नहीं उसी प्रकार झूठ के बिना सच का कोई महत्व नहीं है।
- नीरू देवी
करनाल -हरियाणा
" मेरी दृष्टि में " अधिकतर झूठ बिना मतलब के बोला जाता है । फिर याद कैसे रह सकता है ? सत्य हमेशा सत्य रहता है । सत्य पर झूठ की कोई आवश्यकता नहीं होती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान
झूठ के प्रकार
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आज इस कलयुग में ऐसा कोई इंसान नही जिसका झूठ से कोई वास्ता नही रहा हो| इंसान को कभी मतलब से तो कभी बेमतलब से झूठ बोलना पड़ता है| स्वार्थ का झूठ छुपाने को उसे अनगिनत झूठ बोलने पड़ते है जो कई बार परेशानी का सबब बन जाता है,जिसे बोलने वाला हमेशा उस परेशानी को याद करते हुए याद रखता है|पर बगैर स्वार्थ का झूठ जिसमें परोपकार की भावना समाहित होती है जिसे हम अपनी प्रकृतिनुसार बगैर किसी योजना और भूमिका के यकायक ही कर लेते है|जिसका भला हुआ वह कृतार्थ भाव ह्रदय में लिये स्मरण करता रहेगा |क्योंकि उसका बहुत बड़ा हित हमारे द्वारा अनजाने में हो गया| हमें याद तक नही होता |जब वह याद दिलायेगा कि किस तरह उसकी जिंदगी बन गई | तब हमें हमारे झूठ का अहसास होता है|इसे ही तो कहते है नेकी कर दरिया में डाल |तो समझ गये ना स्वार्थ भाव का झूठ याद रहता है और परार्थ भाव का झूठ अक्सर हम भूल जाते है |
सीमा लोहिया
झुंझूनू (राजस्थान)
झूठ कई तरह के होते है।
ReplyDeleteझूठ प्रायः मतलब के लिए ही बोला जाता है ।
बिना मतलब के झूठ तो याद ही नहीं रह सकते हैं।
जैसे कोई कहेगा कि वहांँ पर हाथी खड़ा है ,यह बाघ आया था।
यह बिना मतलब का झूठ है और यह कभी याद नहीं रहेगा।
लेकिन झूठ को यदि मतलब के साथ बोला जाता है तो वह याद रखता है। जैसे किसी को कहा जाए कि तुम्हारी बेटी फलाँ लड़के के साथ घूम रही थी। और वह झूठ है लेकिन वह याद रहेगा ।
या किसी ने पति को कहा तुम्हारी पत्नी को वहांँ उसके साथ मैंने देखा है तो यह मतलब लेकर कहा गया है और यह याद रहेगा ।लेकिन बिना मतलब तो याद ही नहीं रहेगा।
मीनू मीना सिन्हा
राँची
कहते हैं न कि झूठ को सौ बार बोलो तो दुनिया उसे सच मानने लग जाती है। जीवन ऐसा है कि बिना झूठ बोले जीवनयापन संभव नहीं है। परंतु दूसरे की भलाई के लिए बोला गया झूठ, झूठ नहीं माना जाता है। ऐसा हमारे शास्त्रों में भी लिखा है।
ReplyDeleteडॉ मधुकर राव लारोकर
नागपुर (महाराष्ट्र)
सत्य हमेशा सत्य रहता है और झूठ हमेशा झूठ। कहते हैं झूठ की उम्र लंबी नहीं होती वह पकड़ा जाता है। किसी भलाई के कार्य के लिए बोला गया झूठ सत्य से बढ़कर होता है किंतु बिना मतलब के बोला गया झूठ कोई मायने नहीं रखता और झूठ बोलने वाले को यह ध्यान ही नहीं रहता कि उसने कब कहां किस विषय में क्या बोला है। इसीलिए अंततः पकड़ा ही जाता है
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