क्या सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है ?

सकारात्मक सोच इंसान का सबसे बड़ा गुण माना जाता है । जो सुख का रहस्य कहा जाता है । सकारात्मक सोच के कारण सभी काम सुलभता से होते है। यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को देखते हैं : -
 सकारात्मक सोच के बिना सुख की कल्पना ही नहीं किया जा सकता सकारात्मक सोच में ही सुख की स्पष्टता होती है। सकारात्मक सोच का अर्थ है अस्तित्व में भागीदारी का कार्य करते हुए आत्मा में भाव के साथ जीना अर्थात राशि के साथ जीना ही सकारात्मक सोच कहलाता है सकारात्मक सोचने वाले व्यक्ति सत्य को स्वीकार कर ही सोचा करते हैं नकारात्मक वाले सत्य को नकार कर जीने का प्रयास करते हैं जीते नहीं हैं जिंदा रहना सुविधा  को सुख मानते हैं और जीने वाले समस्या से मुक्त होकर जीने को सुख मानते हैं अतः मनुष्य को सुख और सीधा दोनों की आवश्यकता होती है इन दोनों में सुख की एहसास होना  ही सकारात्मक सोच है सकारात्मक सोच नहीं सुख की अनुभूति होती है सत्य को नकार कर जीने में समस्या और दुख मिलता है अता हर व्यक्ति को सकारात्मक सोच लेकर चलना चाहिए सकारात्मक सोचने वाले व्यक्ति ही सुखी होते हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है ....ये कथन पूर्णतः सत्य है .सुख और दुःख  फूल और कांटे दोनोंही सबकी ज़िन्दगी मैं व्याप्त हैं .सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति कष्ट के समय यह सोचता है की आज दुःख है तो कल सुख आएगा और कठिन समय अच्छेसमय कीप्रतीक्षा मैं काट लेता है .
सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति विपरीत परिस्थिति कोभगवान की मर्ज़ी समझकर स्वीकार करता है और दुःख और अवसाद को हँसते हुए झेल लेता है
सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के ख़ुशी का मापदंड आम व्यक्ति के मापदंड से भिन्न होता है
सकारात्मक सोच हरहाल मैं व्यक्ति को संतुष्टि प्रदान करती है और संतुष्टि सुख का स्त्रोत है .
अतः सकारात्मक सोच से ही सुख मिलता है दुःख नहीं
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
साकारात्मक सेच ही ख़ुशी का रहस्य है सकार रहिए खूशीयां बाँटीयें !
भगवान कृष्ण कहते हैं कि जिसका मन वश में है, जो राग-द्वेष से रहित है, वही स्थायी प्रसन्नता को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, उसी को कर्मयोगी भी कहा जाता है। इस संसार में दो प्रकार के मनुष्य हैं। एक तो दैवीय प्रकृति वाले, दूसरे आसुरी प्रकृति वाले। इसी तरह से हमारे मन में 2 तरह का चिंतन या सोच चलती है- सकारात्मक एवं नकारात्मक। सकारात्मक सोच वाले खुश और नकारात्मक सोच वाले दुखी देखे जाते हैं!
हमारी सोच ही हमें सुखी और दुखी बनाती है। हमारी सोच या चिंतन जैसा होता है, वह हमारे चेहरे पर, हमारे व्यवहार में, हमारे कार्यों में दिखने लगता है। जब हमारे अंदर भय और शंकाएं प्रवेश कर जाती हैं तो हमारी आंखों व हमारे हाव-भाव से इसका पता चलने लगता है और हमारे भीतर जब खुशियां प्रवेश करती हैं या हमारा चिंतन हास्य या खुशी का होता है तो हमारे सारे व्यक्तित्व से खुशी झलकती है। जब हम मुस्कराहट के साथ लोगों से मिलते हैं तो सामने वाला भी हमसे खुशी के साथ मिलता है। जब हम दुखी होते हैं या गुस्से में होते हैं तो दूसरे लोग हमें पसंद नहीं करते और वे हमसे दूर जाने का प्रयास करते हैं। बहुत से लोगों की सोच या चिंतन अपना दुख बताने की होती है। ऐसे लोग खुद तो दुखी रहते ही हैं, दूसरों को भी दुखी करते हैं।   
मेरी गुरु दीदी अनिता मेहरा जी कहती है की हमारी सोच ही हमें दुखी बनाती है वर्ना किसी की ताक़त नहीं है जो हमें दुखी कर सके , मैंने यह बात अपना ली है इसलिए मैं बहुत खुश रहती हूँ 
सकारात्मक सोच ही खुशी देती है और सब को ख़ुश रखता है 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी काफी हद तक यह बात सही है.कहा भी जाता है - "सकात्मक सोच वाले बनें"(बी पोजीटिव)
आपने गांधी जी का कहा वाक्य पढ़ा होगा,जिसमें  उन्होंने स्पष्ट लिखा है,कि अपने हालातों  पर असंतुष्ट रहने वाला पहले उस गरीब,असहाय और बेबस के बारे में  सोचे,जो दो वक्त का खाना भी बहुत  मुश्किल से जुटाता है,जो फटेहाल है,जिसके सिर पर बस आसमान का साया है और पैरों तले जमीन का सहारा..वो भी जिंदादिल है.
आधा गिलास पानी भरा/खाली क्रमशः ऐसी ही सकारात्मक और नकारात्मक सोच हैं.
दो बड़ी /छोटी लाइन भी ऐसी ही बात करती हैं.
गीता में  कृष्ण भगवान का संदेश है,कि-जो आपके पास है,उसमें खुश रहिये,जो नहीं  है,उसके लिये अफसोस मत करो,क्योंकि कर्म और भाग्य दोनों आपके साथ रहते हैं.
अशुभ बोलना भी अनुचित है..कहा भी गया है,कि जिव्हा पर भी हर दिन कुछ पलों  के लिये वाणी में मां शारदे का निवास होता है,जो बोलने पर फलीभूत होता है.
'मैं सुंदर हूँ',मैंअच्छा करूँ','मैं समर्थ हूँ' जैसे वाक्य स्वयं पर अमल करना चाहिये.हम पहले स्वयं को अनुकूल बनाएं, फिर किसी को सीख दें.
शैशव से ही बालक को यह करो,यही ठीक है,ऐसा करना चाहिये....जैसे वाक्यों से जोड़ें.
ये क्यों किया,ऐसा नहीं बोलते जैसे वाक्य नहीं  दोहराएं.
जीवन अनमोल है.इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से ही लेकर आगे बढ़िये .
- डा. अंजु लता सिंह 
 दिल्ली
जिंदगी में सुख और दुख या यूं कहो हार जीत के कितने पड़ाव  आते हैं ! कभी सुख कभी दुख! वा कहते हैं ना 'राम की माया कभी धूप कभी छाया '! वास्तव में हमारी जिंदगी और उसका  सफर ही आपस में प्रतिस्पर्धी हैं! जीवन में यदि हमें आगे बढ़ना है तो संघर्ष करना होगा और संघर्ष से खुशी या जीत हासिल  हुई तो ठीक है वरना सिक्के का दूसरा पहलू तो मिलना ही है कितु सोच  सकारात्मक रखते हुए कड़ा संघर्ष कर ठान लेते हैं कि जीत हासिल करनी है यानि सुख प्राप्त करना है तो अवश्य मिलता है! 
कभी कभी योग्यता रहते हुए भी हमे असफलता मिलती है !इसका यह मतलब नहीं है कि हम आगे भी असफल रहेंगे ! परिस्थितियां बदलती रहती हैं किंतु हमारी सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए! 
आज कोरोना जव्लंत उदाहरण है! इस वायरस के चलते कितनी कठिनाईयों का सामना करना पडे रहा है कितु सकारात्मक सोच के साथ हम उसका मुकाबला कर रहे हैं कि हम उसे हराके रहेंगे और इसमे कोई दो राय नही है हम उसे हराके रहेंगे! 
सकारात्मक सोच नई उर्जा का संचार करती हैं और हमारे मनोबल को शक्ति प्रदान करती है  जीत का सुख का विश्वास दिलाते है! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
'सकारात्मकता' को हम दुःख में सुख खोजने की शक्ति को कह सकते हैं । इसका सीधा संबंध मानव के मन से है। उसकी सोच से है। यह जन्मजात व्यक्ति की पहचान होती है। 
नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति अच्छे कामों में भी दुःख ढूँढ़ लेते हैं। वे हर वक्त दुःख में ही गुजारते हैं। इसलिए उनका जीवन दर्द से भरा होता है। इसके विपरीत सकारात्मक सोच वाले दुःख में भी कुछ अच्छी बातें ढूँढ कर माहौल खुशनुमा बना देते हैं। दुःख को भी सुखमय बना देने में माहिर होते हैं।
सुख ऐसी परिस्थिति है जो व्यक्ति की सोच-समझ को सही दिशा देती है। मानसिक स्वस्थता का भी प्रमाण है।वे बाधाओं से डरते नहीं, बल्कि उसका सामना करते हैं । ऐसे व्यक्ति को धीर-वीर पुरुष कहा गया है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जहाँं तक आज की चर्चा का प्रश्न है किस क्या सकारात्मक सोच की सुख का रहस्य है तो इस पर मेरा विचार है इस सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने वाला व्यक्ति सीमित संसाधनों में भी सफलता प्राप्त कर लेता है और सफलता व्यक्ति को संतुष्टि प्रदान करती है जिससे उसका चारित्रिक व सामाजिक उन्नयन होता है और वह तमाम बेकार की चीजों से बचा रहता है और सीमित संसाधनों में भी खुशी के साथ सफलता पूर्वक अपना जीवन यापन करता है जबकि नकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति मैं केवल घर परिवार और समाज के लिए समस्याएं पैदा करता है बल्कि खुद अपने लिए भी बहुत सी समस्याएं उत्पन्न करता है और बेकार किस्म के कार्यों में उलझा रहता है किसी भी कार्य को मन से नहीं कर पाता और उसका परिणाम  असफलता के रूप में प्राप्त होता है जिससे वह और अधिक असंतुष्ट होता है और नकारात्मक सोच ऐसे व्यक्ति पर और अधिक हावी होती जाती है जिसका परिणाम निराशा और दुख है जबकि सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति सीमित संसाधनों में भी ठीक प्रकार से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है और संतुष्ट रहता है इस प्रकार यह कहा जा सकता है सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
सुख के रहस्य के अनेक कारक हो सकते हैं, उनमें सकारात्मक सोच भी एक है। यह ऊर्जा हमारे दिलोदिमाग को तन्दुरुस्त करने में बहुत सहायक होती है और हम अनेक अनावश्यक चिंताओं से या यूँ कहें कि अनेक विकारों से बचने में सक्षम रहते हैं। सामाजिक चिंतकों, मनीषियों, बुजुर्गों ने हमेशा सकारात्मक सोच रखने को प्रखरता से बल दिया है। सच भी है, यह सोच हमेशा जोड़ने का काम ही करती है। हममें हमेशा सभी के प्रति सद्भाव, प्रेम, त्याग, विश्वास, सोहार्द्रता के भाव रखने की ओर प्रेरित करती है। जो पारस्परिक संबंधों को दृढ़ता प्रदान करती है। इससे पारस्परिक सहयोग बढ़ता है जो तनावमुक्त और संघर्ष को कम करता है। यही स्थिति सुख की ओर  ले जाने वाली होती है। अतः कह सकते हैं कि सकारात्मक सोच भी सुख का रहस्य है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सुखी जीवन के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। 
भगवान कृष्ण कहते हैं जो व्यक्ति का मन बस में है।जो राग द्वेष से रहित है।वही स्थाई प्रसंता को प्राप्त करता है और अपने मन वश में कर लेता है ।उसी को कर्म योगी भी कहते हैं।
संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते है एक सकारात्मक सोच वाले बराबर खुश रहते हैं।नकरात्मक सोच वाले बराबर दुखी देखे जाते हैं। 
महाभारत में श्री कृष्ण सकारात्मक चिंतन के प्रस्ताव को रखा नकारात्मक को ठुकरा कर युद्ध करने का निश्चय किया।
जीवन में रात -दिन की तरह आशा और निराशा के क्षण आते जाते हैं। आशा जहॉ जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करता है ,वही निराशा है जो पतन की ओर ले जाता है ।उस व्यक्ति के जीवन में उदासी और विरक्त होने लगता है। उसे चारों तरफ अंधकार ही नजर आता है। 
यह तो व्यक्ति के दृष्टिकोण पर भी आधारित है,जिस तरह की भावनाएं आएगा वैसा ही प्रेरणाए मिलती है ।
सत्य है कि जो लोग निस्वार्थ जन कल्याण का कार्य करते हैं उन्हें आशा ,उत्साह होता है ।वह कठिन से कठिन कार्य में भी  सफलता प्राप्त करता है।
एक शब्द में सकारात्मक सोच वाले के पास आशा,उत्साह है वही  विजयश्री प्राप्त है करता है।
लेखक का विचार:- जितने भी महापुरुष, वैज्ञानिक हुए हैं  वे सब आशा व उत्साह से भरे थे ।जो आशावादी उत्साही है उन्हें,उनके जीवन में कभी दुख नहीं हुआ सकारात्मक सोच ही विजय, सफलता ,सुख व आनंद सब कुछ दिलाती है ।
इसलिए हमारा चिंतन सकारात्मक ही होना चाहिए।
- विजयेंद्र मोहन 
बोकारो - झारखण्ड
जीवन में हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए l यही अच्छी और सकारात्मक सोच मनुष्य को सुखी एवं प्रसन्न बनाती है l यही सुख का रहस्य है l नकारात्मक सोच जीवन में कभी प्रसन्नता का वातावरण नहीं बना सकती l सकारात्मक सोच के साथ हम निरंतर आगे बढ़ते जाते है, जिससे हमें संतुष्टि मिलती है l जीवन में सुख हमारी सोच पर, मन पर निर्भर है l मन खुश तो कठौती में भी गंगा आ जाती है l जीवन संघर्ष भरा है, उसमें कठिनाइयाँ और अवरोध पग पग पर है इनसे हमें कैसे जूझ कर आगे बढ़ना है, हमारी सोच पर निर्भर है l कोरोना काल भी 
 इसका सबसे बडा उदाहरण है l 
सकारात्मक सोच ही सुखों की खान है l 
         चलते चलते ----
अगर कहीं है स्वर्ग तो सकारात्मक सोच में है l 
        - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
सकारात्मक सोच की प्रकृति बहुत अलग-अलग है भूखे के लिए रोटी का मिल जाना सबसे बड़ा सुख है मानव जीवन की 4 नितांत आवश्यकता है रोटी कपड़ा मकान और काम सर्वप्रथम भूख मिट जाती है तो सकारात्मक सोच निकलती है जिस प्रकार पेट के लिए रोटी चाहिए उसी प्रकार मन और दिमाग के लिए सकारात्मक सोच चाहिए।
सकारात्मक सोच की दूसरी प्रकृति संतोष है यदि मन में संतोष है तो सोच की प्रकृति सकारात्मक होगी
जो बेरोजगार हैं उन्हें अगर रोजगार मिल जाता है और वह भी मन लायक तो उनके लिए व सकारात्मक सोच कह लाएगी तो परिस्थिति के ऊपर मन के ऊपर सोच निर्भर करता है लेकिन सामान्यता सकारात्मक सोच ही हर सुखों का खान है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
सकारात्मक सोच मनुष्य के मन-मस्तिष्क को सदैव शक्ति प्रदान करती है। मानव जीवन में सफलता-असफलता, सुख-दुख, लाभ-हानि अथवा जय-पराजय समान रूप से समयानुसार दृष्टिगत होती हैं।
सकारात्मकता से अभिप्राय ही यह है कि प्रत्येक परिस्थिति में मनुष्य निरपेक्ष भाव से अपने आचरण की दृढ़ता को बनाये रखे। सकारात्मक सोच से उपजा यह निरपेक्ष भाव ही सुख का कारण बनता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है ।
सकारात्मक सोच स्वयं को तो सुख प्रदान करती ही है, साथ ही हमारे इर्द-गिर्द रहने वालों के लिए भी प्रेरक और उत्साहवर्धन करने वाली होती है। 
सकारात्मकता मनुष्य के मन को संबल प्रदान करते हुए सफलता की ओर अग्रसर करती है। संसार में एक नहीं अनेक उदाहरण है जब असफलता ने मनुष्य को निराश किया, परन्तु वे नकारात्मक नहीं हुए अर्थात् उन्होंने सकारात्मक सोच से स्वयं को दूर नहीं किया और अंतत: सफलता का वरण किया। 
इसीलिए कहता हूं कि...... 
लाजिमी नहीं है पंखों का होना, 
आसमां में उड़ान भरने के लिए। 
काफी है मन का हौसला, 
कदमों की थिरकन उड़ने के लिए।। 
सकारात्मक विचारों का सन्देश, 
बस हृदय में होना चाहिए 'तरंग'। 
जरुरत नहीं फिर किसी सोपान की, 
सुख की बुलन्दी पर चढ़ने के लिए।। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
यह सच है की सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है। 
इस सोच विना जिंदगी अधुरी है, सकारात्मक सोच की शक्ति घोर अंधकार को भी रोशनी में तब्दील कर देती है। 
     जिस दिन हम नकारात्मक चीजों में भी सकारात्मक पक्ष तलाशना सीख जायेंगे उस दिन कोई भी मुश्किल हमारा मनोबल गिराने में सफल नहीं हो पाएगी।  
 सच कहा है, 
 "लहरों को साहिल की दरकार नहीं होती, हौंसले 
 बुलंद हों तो कोई दीवार नहीं होती, जलते हुए  चिराग ने ऑधियों से यह कहा,उजाला देने वालों की कभी हार नहीं होती"। 
कहने का मतलब, जैसे हमारे विचार होते हैं वैसा ही हमारा आचरण होता है, लेकिन आप तभी स़फल होंगे जब आप सफलता  हासिल करने के प्रति सकारात्मक सोच रखेंगे। और इसी से आपको सुख अनुभव होगा। 
हमारे पास दो तरह के बीज होते हैं सकारात्मक और नकारात्मक जो आगे चलकर हमें अपने दृष्टिकोण के मुताबिक  ब्यवहार रूपी  पेड़ में तबदील होंगे  अगर हम अपने विचार  सकारात्मक रखेंगे तो ऐसा ही  फल हमें मिलेगा।  इसलिए सफल व सुखी  रहने के लिए हमेशा सकारात्मक सोच  रखने से मंजिल जरूर मिलती है। 
 सच कहा है, 
"चलता रहुंगा पथ पर, चलने में माहिर  बन जाऊंगा  या तो मंजिल मिल जायेगी या अच्छा मुसाफिर बन जाऊंगा"। कहने का भाव यह है की सकारात्मक सोच रखकर कोई भी कार्य हम करेंगे तो मंजिल मितना तय है। 
गौर करें जब हम जीबन के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं बहुत से लोग हमारी और आकर्षित होते हैं इसलिए  जीवन का लक्ष्य और सकारात्मक सोच हो तो  जिन्दगी  में  सुख ही सुख है, यह भी सच है, 
"जिन्दगी एक हसीन ख्वाव है, जिसमें जीने की चाहत होनी चाहिए, गम खुद ही खुशी में बदल जांएगे सिर्फ मुस्कराने की आदत होनी चाहिए"। 
इसलिए सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है हमें अपनी कोशिशऔर हिम्मत  कायम रखनी चाहिए, अंतिम में यह कहुंगा, 
" मुश्किल नहीं कुछ दुनिया में, तू जरा हिम्मत तो कर, ख्वाब बदलेंगे हकीकत में, तू जरा कोशिश तो कर"।  
 कहने का मतलब लक्ष्य, हिम्मत, वा सकारात्मक सोच ही सुख का सर्वशक्तिमान रहस्य है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है। यह बात शत प्रतिशत सही है क्योंकि सकारात्मक सोच सफलता की कुंजी होती है। जितनी सोच सकारात्मक होगी,वो उतना ही सुखी होगा ।सकारात्मक सोच से आत्मविश्वास बढ़ता है और इसी से जीवन में सफलता मिलती है। 
        सकारात्मक सोच में बहुत शक्ति होती है जिससे हम बड़े से बड़े काम में भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आज के युग में हर एक मनुष्य परेशानियों से घिरा हुआ है। परेशानी के समय में जो अपनी सोच पर काबू रखते हैं वे ही सफलता पाते हैं। सकारात्मक सोच बेहतर निर्णय लेने और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है।अच्छा सोचने से हमारा मस्तिष्क पाॅजटिव किरणें छोड़ता है। हमारे अंदर ऐसी ऊर्जा का संचार होता है जो हमें सफलता की सीढ़ियों की ओर ले जाती है। इस लिए  सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
सुख का रहस्य ? इसकी तलाश में ही तो सृष्टि से आज तक मानव जुटा है,पर यह खोज पूर्ण न हो सकी। सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है।इस वाक्य में, ही की जगह,भी शब्द हो तो इसे पूर्ण रुप से स्वीकारा जा सकता है। अब ही के कारण तो आंशिक ही स्वीकारा जा सकता है।सुख परिस्थिति पर भी निर्भर करता है। भूखे का सुख रोटी,प्यासे का सुख पानी और थके मनुष्य का सुख आराम ही होता है। ये उपलब्ध न हो तो सकारात्मक सोच, सुख की अनुभूति करा देगी क्या? 
एक प्रसंग याद आता है,सिकंदर भारत में था उसे कहीं राह में एक साधू मिला। घोड़े पर सवार सिकंदर ने अपनी विजय के घमंड में साधू से कहा, मैं सिकंदर महान।तुम यहां निर्जन में अकेले सड़क किनारे।बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?
कल्पना कीजिए एक फक्कड़ से महान सिकंदर पूछ रहा है।साधू जो चाहे मांग लेता। लेकिन नहीं। 
साधू ने कहा, भाई तू सिकंदर हो या कोई भी हो, मुझे इससे क्या? बस एक काम कर सामने से हट जा धूप आने दे।
यह है सुख की अनुभूति। जिसको निर्जन में भी साधु कर रहा था और विश्व विजेता सिकंदर महान अब भी भटक रहा था।
सकारात्मक सोच का अपना विशेष महत्व है, इसके साथ अन्य बहुत से कारक है जिनको सुख का रहस्य कह सकते है। एक सोच एक स्थिति में,सुख दे सकती है तो वहीं सोच दूसरी स्थिति में दुखदाई हो सकती है।एक परिस्थिति एक व्यक्ति के लिए सुखद तो दूसरे के लिए दुखद हो सकती है। 
नीति में कहीं मित्र को सुख का रहस्य कहा गया,कहीं धन को।अमित्रस्य कुतो सुखम्। धनाप्नोति तत: सुखम।कहीं स्वास्थ्य को सुख का रहस्य कहा गया,तो कहीं चरित्र को बताया गया है। कुल मिलाकर सुख के रहस्य पर विभिन्न मत है। इसके विभिन्न कारण है जिनमें सकारात्मक सोच भी शामिल हैं।
-  डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
            हाँ, सकारात्मक सोच ही सारे सुख का रहस्य है। कहा जाता है कि अगर हमारा विचार शुद्ध है तो सब कुछ शुद्ध है। रात दिन अगर कोई कहता रहे हम दुःखी हैं, हम दुःखी हैं तो सारा जीवन उसका दुःख गिनने में ही चला जाता है।सुख आने पर भी वो उसका अनुभव नहीं कर पाता है।
           जिस तरह से अगर कभी कोई कुछ गलती करता है तो उसको खराब कहने लगते हैं । यहाँ तक कि वह कोई अच्छा कार्य करता है तभी लोग कहते हैं, वो कैसे अच्छा कर सकता है ,वो तो बुरा आदमी है। इस बात का उस पर असर होता है कि अच्छा करने पर भी लोग मुझे बुरा ही कहते हैं इससे अच्छा मैं बुरा ही बन जाता हूँ और वह बुरा बन जाता है।इस तरह से हम देखते हैं कि एक गलत सोच से एक आदमी का जीवन दुःखी हो जाता है।
               दिन रात कोई बच्चा पढ़ता नहीं है।लेकिन माँ-बाप केवल पढ़ने-पढ़ने करते रहते हैं ऐसी स्थिति में जो बच्चा पढ़ता है वो भी सोचता है मैं पढ़ता हूँ तो भी कहते हैं पढ़ो-पढ़ो। इससे अच्छा मैं सचमुच में नहीं पढ़ूं। इस तरह से बच्चा दुःखी हो जाता है।
      ऐसी  बहुत सारी घटनाएं हैं जो नकारात्मक सोच से दुःखी और सकारात्मक सोच से व्यक्ति सुखी हो जाता है। सकारात्मक सोच के साथ-साथ संतोषप्रद होना भी आवश्यक है।यही सुख का रहस्य है।
        सकारात्मक सोच से ही हम अपने जीवन में सुखी रह सकते हैं ये बिल्कुल सत्य है।सकारात्मक सोच से स्वस्थ विचार मस्तिष्क में जन्म लेता है जिससे हम अच्छे-अच्छे कार्यों को सुचारू रूप से संम्पन कर सकते हैं और सुख की प्राप्ति कर सकते हैं। नकारात्मक सोच गलत विचार धारा की तरफ ले जाते हैं जिससे मनुष्य कई तरह के झमेले में फंस जाता है।जो दुःख का कारण होता है।
      इस तरह से ये बात एकदम सही है कि सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - प. बंगाल
महात्मा गांधी का कथन है_ "मनुषय वैसा ही बनता जाता है जैसा सोचता है।"
सोच का विचारो का हमारे जीवन पर बहुत ही गहरा असर होता है।
सकारातमक सोच रखने वाला इंसान ही खुश रह सकता है।
सकारातमक सोच का प्रभाव न केवल मानव जाति पर ही नही अपितु पेड़ पौधौ पर भी होता है विज्ञान ने यह  साबित कर दिया है।
" द लास्ट लीफ" सकारात्मक दृष्टिकोण को   दिखाती   कहानी  है कि कैसे जीवन से हार चुकी नायिका  के जीवन में नव संचार होता है।
जब एक मां अपने गर्भ में शिशु की पहली आहट महसूस करती है ती सकारात्मक विचारों के कारण ही वह उस नन्ही जान की तैयारी कर पाती है।
इतिहास गवाह है कि सकारात्मक दृष्टिकोण ने हमारे देश को आजादी  दिलाई।
हम यह चर्चा भी इसलिए लिख सक रहे है  कि हमें विश्वास है कि हमारे  चर्चा को सराहा जाएगा।
 अतः हम कह सकते है कि " सकारात्मक सोच ही सुखी होने का रहस्य है।"
   - सुधा करन
   रांची - झाखण्ड
     जिसका मन वश में होता हैं, जो राग-द्वेष से रहित हैं, वही स्थायी प्रसन्नता को प्राप्त करता हैं, जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता हैं। उसी को कर्म योगी भी कहा जाता हैं। तथागत तथ्य भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता रहस्यात्मक उद्देश्य दिया हैं। जब तक दु:ख न हो सुख सुविधाओं का पता ही नहीं चलता, अगर प्रारंभ में सुख मिला तो, अन्त में  दु:ख सहन करने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए राजतंत्र में  सुख और दुःख का रहस्य दोनों तुलनात्मक दृष्टिकोण से माया जालों में वशीभूत होकर प्रगति के सोपानों की ओर अग्रसर हो रहे हैं। एक उच्च पढ़ा लिखा भी सुखी रहने के उपरान्त भी दुखी और चिंता की लकीरों में गस्त हैं। देश स्वतंत्रता के उपरान्त गरीबी और भिखारी आज भी वृहद स्तर पर  सुख से काफी दूर हैं, जो शायद ही सुख सुविधाओं का सवाद  इस जन्म में देख सकें। दूसरी ओर सुख के दिन देखना हो तो यही से फिर प्रारंभ होता हैं, भष्ट्राचार, अराजकता और नैतिकता का जन्म? जहाँ से प्रतिदिन इसी ओर ध्यान केन्द्रित कर सुख की ओर उन्नति करने ल्लालित हो जाता हैं और ऐशो-आराम की जिंदगी जीने लगता हैं, इससे सकारात्मकता सोच ही सुख का रहस्य में भावनात्मक रूप से जीवित अवस्था में पहुँचा नें विफलताओं का सामना करना पड़ता हैं? जिस पर गम्भीरता पूर्वक सोचने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं?  अगर हम नैतिकतावादी बन कर दिखाने का प्रयास करते हैं, तो सही मायने में सुख-दुःख का पर्याय बन कर भौतिकता की ओर अग्रसर हैं?
- आचार्य र्डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
सकारात्मकता सोच जीवनशैली की ऊर्जादायक तत्वों में शामिल होता है सुखद अनुभव और जीवन का रहस्य सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है।जीवन केंद्र में जटिल समस्या और तकलीफों का सामना जब मानव करता है तब मन के अंदर एक दीपक जलता है।जो कि सकारात्मक सोच को विकसित करता है।सुख का रहस्य इसमें छिपा होता है।अनुभवों की झोपड़ियों में एक चिंराग जलता है ।जो सकारात्मकता को उत्पन्न करता है।अंतिम चरण में भी जब उम्मीद जताई जाये तो सकारात्मक सोच प्रभावित होती है।और जीवंत रूप से अपनी भूमिका निभाती है।हर मोड़ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अंधेरो ने उजालों पर इक बंधन बाँधी है
किस्ती तुफानों में तैरने की जिद्द बाँधी है
रूखे बादलों ने भी बरसने की कला छोड़ दिया।
मन के अंधियारों मे सकारात्मक सोच ने प्रेम,उम्मीद की दीप जलाई है।
सकारात्मक सोच सुखद वातावरण को उत्पन्न करता है।इंसान कितना भी टुटे और हतोत्साहित हो पर मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचय ही सुख कि रहस्य है।
परिस्थितियों का लेखांकन असोचनीय जब होता ,मन के विचारधारा के विपरीत दिशा में जीवनचक्रव्यूह फँसता है।तब जीवनशैली मे सकारात्मक सोच का होना ही इंसान को नयी पथनिर्मान दिशाओं को प्रकाशित करते हैं।सकारात्मक परिणाम स्वरूप ही सांसों को नया जीवन देती है।तकलीफों का लिफाफों में जब दर्दनाक हादसा मानवीय संवेदनाओं पर हावी होने लगता, जीवन की सुखद पहलू, दुखों में घिरनें लगता ,चारों तरफ अंधेरे की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।तब सकारात्मक सोच ही सुख का आधार बन कर जीवन की गतिविधियों को प्रकाशमान करती है।सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य होता है।मानवीय मूल्यों की अहवेलना हो ,अंधकार का बीजारोपण हो,जीवन विपरीत परिस्थितियों मे अनुकूलता से चले।ऐसे मे एकमात्र विकल्प सकारात्मक सोच ही है।जो सारे तकलीफों को दरकिनार करके सकारात्मक ऊर्जा को संचित करती है।हमेशा मानव शरीर में इसका समावेश एक उच्चतम स्तर के क्रियाकलापों को उजागर करती है।सुखद समाचार को सकारात्मक सोच ही लेकर आती है।मंजिल की एक छोर को सकारात्मक सोच ही छूने के लिए प्रयासरत होता है।मंदिरों में शंख ध्वनि तरंगों का जैसे हवाओं मे सुखद संदेह फैलता है।उसी प्रकार मानव योणियो में सकारात्मक सोच सुख कार्य करती है।और जीवन को प्रगति पथ देती है।नकारात्मक विचारों कार्य भी निष्फल होता है।सकारात्मकता से किया हुआ कोई भी काम मे सफलता प्राप्त होती है।जिंदगी की भावनाओं को जब सोच की सकारात्मक कौसौटी पर रखें तो जीवन सफल होता है।और सभी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव से इंसान दूर होता है।सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है।और जीवन की कल्पना इसी कला से की जायेंगे तो हर चरण पर कर्म सफलतापूर्वक संपन्न होगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -झारखंड
जी बिल्कुल सकारात्मक सोच जिंदगी बदल देती है ।
कहते हैं कि सकारात्मक विचार एवं नकारात्मक विचार बीज की तरह होते हैं ,जिन्हें हम दिमाग रुपी  जमीन में बोते हैं ,जो आगे चलकर हमारे दृष्टिकोण व व्यवहार रूपी पेड़ का निर्धारण करते हैं ।
एक तरफ नकारात्मक विचार हमें घोर अंधकार में धकेल सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ सकारात्मक सोच हमें असफलता के अंधकार से निकाल सकते हैं ।
 दूसरे की आलोचनाओं को भी अपनी हिम्मत बनाते हुए हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करना चाहिए ।
सकारात्मक सोच आपके अंदर उर्जा का संचार करती है ,और आपको एक बेहतर इंसान बनाती है यही है सच्चे सुख का रहस्य ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
सकारात्मक सोच से मन को शांति और सुकून मिलता है। शांति और सुकून ही जीवन का वास्तविक सुख है।
 हमारे जीवन में विचारों का महत्वपूर्ण स्थान है।
 सकारात्मक विचार दूसरों के प्रति प्रेम और सद्भावना को जन्म देती है जबकि नकारात्मक विचार ईर्ष्या और द्वेष। सकारात्मक विचार नकारात्मक की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली होते हैं।
विचार भी संक्रामक होते हैं। सकारात्मक और आशावादी सोच वाले की संगत में हमारे विचार भी सकारात्मक बनते हैं और हमारे विचार आत्मविश्वास से परिपूर्ण होते हैं। इसके विपरीत नकारात्मक सोच वाले के संगत में रहकर हम हमेशा उदास और जीवन से निराश खुद को महसूस करते हैं।
इसलिए कहा गया है कि सकारात्मक सोचें, उसी तरह की रचनाएं पढ़ें, वैसे लोगों की संगत में रहें तब हमारे अंदर serotonin, Endorphins,Dapamine आदि हार्मोन का स्राव होता है जो हमें तनाव से मुक्ति दिलाता है और मन प्रसन्न चित्त रहता है।
  धन दौलत का सुख क्षणिक सुख होता है क्योंकि उसे खोने के डर से मन हमेशा सशंकित रहता है पर मन का सुख चिरस्थाई है जो सकारात्मक सोच से मिलता है। मन हमेशा प्रसन्नचित और आनंदित रहे इससे बड़ा कोई सुख नहीं। वास्तव में सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है।
                  -  सुनीता रानी राठौर 
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
       सुख की परिभाषा देश,काल, समय,परिस्थिति, समाज और व्यक्तिगत समझ के साथ बदलती रहती है ।
आम भाषा में कहें तो सुख की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है । भूखे के लिए रोटी, बीमार के लिए रोगमुक्ति, बेरोजगार के लिए नौकरी  व्यापारी के लिए  धन, अमीर के लिए अधिक धनाढ्य होंना सुख है । 
    सुख जीवन में कम  है और तकलीफ परेशानियाँ, कठिनाईयाँ ,कदम -कदम पर परीक्षा ही जिंदगी की रीत है।   सोच से ही मानव का मार्ग प्रशस्त होता है और सोच यदि सकरात्मक हो तो दारूण दुख भी सहनीय हो जाता है। आर्थिक संकट भी चेहरे की मुस्कान को छीन नहीं सकता है। असाध्य रोग भी मात खा जाते हैं। इस का सबसे बड़ा और प्रामाणिक उदाहरण  करोना काल 
है जिस में जीवन थम गया  है पर गति के लिए सभी कमर कसकर अपनी सोच को सही दिशा व दशा देकर बढ़ रहे हैं।
     सकरात्मक सोच ही जीवंतता को बकरार रखे हुए है।
हाँ हम कह सकते हैं कि सुख में यदि हम कोई रहस्य ढूंढ़ रहें हैं तो वो सकारात्मक सोच ही है ।
  .  मौलिक और स्वरचित है
    .ड़ा.नीना छिब्बर
   जोधपुर - राजस्थान
निःसंदेह सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है।  सकारात्मक सोच से ही कठिन से कठिन कार्य पूरे हो सकते हैं।  यदि सोच सकारात्मक न हो तो आसान सा दिखने वाला लक्ष्य भी प्राप्त नहीं हो पाता।  उदाहरण के लिए कोई क्रिकेट मैच ही ले लीजिए।  मुश्किल सा दिख रहा लक्ष्य भी सकारात्मक सोच के कारण आसान-सा दिखने लगता है और फिर उसी सोच के अनुसार प्रयास भी शुरू हो जाते हैं।  इसी प्रकार जीवन में यदि हमें कोई लक्ष्य मुश्किल प्रतीत होता है तो हमें निढाल होकर बैठ जाने के बजाय उस पथ पर चल देना आरम्भ कर देना चाहिए। जितने कदम हम आगे बढ़ाते जायेंगे लक्ष्य नजदीक आता जाएगा।  लाॅकडाॅउन के दौरान परिस्थितियों से आहत मज़दूरों ने सकारात्मक सोच के कारण ही मीलों पैदल कर अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया।  बहुत लाभकारी स्थिति है सकारात्मक सोच और निःसंदेह सुख का रहस्य है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ल्ली
  लेकिन सकारात्मक सोच हो कैसे ?इसमें कोई संदेह नहीं   कि  सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है|
परन्तु   सकारात्मक सोच हो कैसे? प्रत्येक व्यक्ति अपने विषय में यही सोचता है  कि वह तो जो सोचता है सही सोचता है|   और अगर कभी वह गलत भी सोचता है तो  भी इसमें उसका कोई दोष नहीं| बल्कि उनका दोष है जो उसे गलत सोचने पर मजबूर करते हैं| सच तो यह है कि कोई भी किसी को गलत सोचने के लिए विवश नहीं करता | यह सब व्यक्ति के अपने दृष्टिकोण पर निर्भर करता है|   जैसे  अगर कोई व्यक्ति सुबह उठता है , अपनी चप्पल ढूंढता है  अगर उसे नहीं मिलती  तो वह बहुत क्रोधित हो जाता है ,  चिल्लाता  है  अनाप -शनाप बोलता है| और किसी न किसी से झगड़ा कर लेता है| लेकिन ऐसी ही परिस्थिति में दूसरा व्यक्ति  जब नींद से  उठता  है और अपनी   अपनी  चप्पल  यहां वहां ढूंढता है | और अगर उसे नहीं मिलती  तो वह किसी से कुछ नहीं कहता  और चुपचाप अपनी चप्पल को  ढूंढने लगता है | परिस्थिति तो एक ही है  लेकिन ढंग अपने-अपने | इसे हम क्या कहेंगे? 
 हम तो इसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं  कि एक व्यक्ति की सोच नकारात्मक है और दूसरे की सकारात्मक |
  बात केवल यहीं समाप्त नहीं हो जाती  सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने के लिए   यह आवश्यक है  कि हम दूसरों को अपना गुलाम नहीं समझे | कोई भी व्यक्ति हमारे लिए जब  भी कुछ अच्छा करता है  तो उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा कर्तव्य हो जाता है| इससे यह लाभ है  कि सकारात्मक दृष्टिकोण में निरंतरता बनी रहती है | इसलिए कहते हैं न  कि मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण उसके विचारों से होता है | वह  जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है|  हम अपने जीवन में भी यह  देखते हैं  कि  सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति  आनंदित, सहज व सुखी रहता है| सकारात्मकता हमें  व्यवस्थित रखती है|  इसके कारण हमारे जीवन में चिंता का आविर्भाव नहीं होता |  ऐसा व्यक्ति अपने अतीत  में घटित हुई व्यर्थ की बातों पर ध्यान नहीं देता  और न ही भविष्य की चिंता करता है|
  समय सदा परिवर्तनशील है | हम चाहे कितने भी सुखी हो  कभी कभी खुशियों के बीच दुख के पल भी आ जाते हैं| अगर हम चाहें  तो इन दुख के पलों को  अपने सकारात्मक दृष्टिकोण द्वारा  बदल सकते हैं|  कई बार हम इन्हें सहज रूप में स्वीकार कर सकते हैं |  दुख भी आए तो हम   दुख को भी स्वीकार कर सकते हैं|  ऐसा करने से  दुख तिरोहित हो जाता है  और सुख का आविर्भाव होता है | सकारात्मक  सोच हमारे भविष्य की परिस्थितियों में  सुख के बीज बोती है | इस तरह सकारात्मक सोच के कारण  हमें  आध्यात्मिकता का  अनुभव होता है और विकास भी |दिव्यता का अनुभव होता है  परम सुख की प्राप्ति होती है |  लेकिन  इस सुख को प्राप्त करने के लिए  हमें व्यर्थ के तर्क वितर्क   से बचना होगा , बेकार की बातों पर विवाद करने से बचना होगा  व तनाव से बचना होगा | क्योंकि व्यक्ति चाहे कितना ही धनवान हो प्रतिभावान हो  लेकिन अगर उसकी सोच सकारात्मक नहीं है  तो वह  वास्सविक तफलता और सुख को प्राप्त नहीं कर सकता | अगर हम आज अच्छा सोचते हैं | तो कल भी हमारे लिए अच्छा ही आएगा | और अगर हम इसी प्रकार जीवन में गति करते रहे  तो निश्चित ही  सकारात्मक सोच को उपलब्ध होकर   हम  सुखी हो सकते हैं|
- चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य यह बात बिल्कुल सच है क्योंकि जीवन में सुख दुख तो गाड़ी के दो पहिए की तरह है वह तो लगे ही रहते हैं जिस तरह रात दिन होते हैं धूप जाएं होती है उसी तरह हर सुख के बाद दुख आते हैं और दुख के बाद सुख आते हैं। जीवन में सब कुछ एक सामान कभी भी नहीं रहता और कभी भी कोई चीज इस संसार में शाश्वत नहीं है।
कोई भी व्यक्ति वास्तव में भला और महान नहीं हो सकता यदि वह सादगी और संतोष को अपने आधारभूत सिद्धांत के रूप में धारण नहीं करता विचार और कर्म से सादे रहें एक तथा ईमानदार और कठिन परिश्रम से जो कुछ भी प्राप्त होता है उसी में संतुष्ट रहें धन और सत्ता की प्राप्ति के लिए अधिक रुबीना हूं और तू कुछ बातों में छोटे बच्चों की भांति शिकायत ना करें और ना ही शोर मचाए सादगी और संतोष से धारण में लज्जा का अनुभव ना करें क्योंकि वह तो एक सत्पुरुष के गुण हैं और दोष नहीं वह मनुष्य जो शांतिपूर्वक रहने में बहुत सहायक होते हैं तथा उसे तनाव रहित और सुखी जीवन यापन करने में उसे सक्षम बना देते हैं।
जो भी परमात्मा ने हमें दिया है उसे उसकी मर्जी मान कर उसी में खुश रहना चाहिए खुश रहने वाला व्यक्ति हमेशा जीवन में आगे बढ़ता है और सफलता को प्राप्त करता है और जो हाय हाय करता है वह सारी जिंदगी हाय हाय करता रहता है क्योंकि एक और एक और की आशा कभी खत्म ही नहीं होती।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
जीवन मे आने वाले सुख दुख हमारी सोच पर ही निर्भर होते है दुख मे सोच को साकारातमक तरफ़ मोड़ देते है तो वह कम लगने लगते है । हमारी ख़ुशियाँ हमारी सोच का ही परिणाम होती है । सच्चा सुख भी एक अनुभूति है जो साकारातमक सोच से ही मिलता है ।हम उसका अनुभव भी तभी कर पायेंगे जब सोच अच्छी होगी । वरना कितना भी सुख और ख़ुशी आ जाए हमारी नकारात्मक सोच उस सुख का भी मज़ा नही लेने देगी 
     - नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
जिंदगी  संघर्ष  का  दूसरा  नाम  है,  इसमें  धूप-छाँव  की  तरह  सुख-दुःख  आते-जाते  रहते  हैं  ।  सबके  अपने-अपने  सुख  हैं  लेकिन  अधिकांश  लोग  यही  कहते  हैं  कि  वे  दुखी  हैं  ।
        सुख  का  रहस्य  हमारी  सोच  में  छुपा  हुआ  है  जैसे  मानो  तो  भगवान्  वर्ना  सिर्फ  पत्थर  की  मूरत  ।  जैसा  सोचेगे  वैसा  ही  महसूस  होगा  ।
       हम  सभी  सामाजिक  प्राणी  है ।  जीवन  में  समस्याएं  आती  ही  रहती  है  उस  समय  सकारात्मक  सोच  रखते  हुए,  उन्हें  स्वीकार  कर  यह  सोचते  हुए  कि  यह  समय  भी  चला  ही  जाएगा,  सुखी  रहा  जा  सकता  है  क्योंकि  सकारात्मक  सोच  की  तरंगें  हमारे  मन-मस्तिष्क  को  तो  प्रभावित  करती  ही  है, हमारे  आसपास  के  वातावरण  को  भी  सकारात्मक  ऊर्जा  से  भर  देती  है  । 
        - बसन्ती  पंवार 
         जोधपुर  राजस्थान 
आप जैसा सोचते हैं वैसा बन जाते हैं
मानव जीवन पर उसकी सोच का अत्यधिक प्रभाव होता है।
सकारात्मक सोच मन और मस्तिष्क में संतुलन के साथ- साथ आत्मिक सुख संतोष प्रदान करता है व्यक्ति को
हर सुख दुख, हार जीत, मान अपमान
इन सभी बातों को देखने सुनने का दृष्टिकोण बदल जाता है सकारात्मक सोच के साथ हर बात में वह सुख का अनुभव करता है निश्चित ही सकारात्मक सोच सुखी होने का अभेद्य रहस्य है संसार में इससे बड़ा कोई धन नहीं जो मानव को सुखी संतुष्ट व स्वस्थ रखे।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
              जी हां, सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है। उसी से मनुष्य का उत्थान संभव है।  रास्ते में आने वाली रुकावटों या बाधाओं को छोड़कर, उन पर ध्यान ना देते हुए आगे बढ़ जाने में ही समझदारी है। वही सकारात्मकता है।
 श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"    
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
हमारे जीवन में वर्तमान  में  हमारी सोच ,दृष्टिकोण का और प्रतिक्रिया का महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि यही हमारे जीवन को एक पहचान देते हैं। 
इसलिए अपनी सोच को सकारात्मक रख ना आवश्यक है।    
        सकारात्मक सोच का छोटा या बड़ा होना हमारे मन की गरीबी और अमीरी का निर्धारण करता है।
 कहते भी सुना है कि  अरे! अमुक व्यक्ति तो  दिल का बहुत अमीर है । ऐसे इंसान आर्थिक स्थिति से कमजोर होते हुए भी दिल के बहुत अच्छे इंसान होते हैं। सभी में खुशियां बांटते हैं।
               इसलिए हमें अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाना चाहिए ना की नकारात्मक ऊर्जा को ।
समस्या के आते ही समाधान ढूंढने वाले लोग खुद भी सुखी रहते हैं और दूसरों को भी खुशियां बांटते हैं।
दूसरी तरफ हमेशा रोने वाले लोग समस्या के आने पर समाधान न ढूंढ कर  खुद तो दुखी होते ही हैं औरों को भी दुखी करते हैं , और हमेशा दुखों का रोना रोते रहते हैं।ऐसे इंसानों से सभी दूर भागते हैं।    
           समाज में नकारात्मक सोच वाले इंसान अपने दुख से तो दुखी हो ते है पर दूसरों के सुखों से भी दुखी रहते हैं।
जिस व्यक्ति की सकारात्मक सोच होती है वह अपनी समस्या तो का समाधान कर ही लेते हैं दूसरे व्यक्तियों की समस्याओं का समाधान भी चुटकियों में  कर देते हैं ।
वही व्यक्ति समाज में सबके प्रशंसनीय होते हैं, तथा उन्हें भी सभी की समस्या का समाधान कर खुशी का अनुभव होता है। कह सकते हैं  कि सकारात्मक सोच ही हमारे सुख का रहस्य है।
                 एक हंसता और मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है तथा किसी को रोते या दुखी देखकर मन दुखी हो जाता है ।
सकारात्मक सोच ही हमारे जीवन का आकार है ।हमारी सोच के अनुसार ही हमारी छवि दूसरे के मस्तिष्क में बन जाती है।
            इसलिए अपनी सोच को सकारात्मक रखना आवश्यक है, जिससे  हमारा जीवन सदैव आनंदमय  तथा प्रगति पथ पर अग्रसर होता रहे।
अत: सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है।
 - रंजना हरित
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
हमारे अंदर विचार करने की शक्ति है उस शक्ति के दो भाव है ।हँ और ना ,हाँ के भाव को सकारात्मक भाव और ना के भाव को नकारात्मक भाव कहते हैं ।सकारात्मक भाव मन की शान्ती ,एकाग्रता और विवेक से उत्पन्न होती है इससे निकलने वाली उर्जा स्वयं और दूसरों दोनो को सुख देती है क्योंकि इसमें अहंकार नहीं ,प्रेम की भावना समाहित होती है । इसके विपरीत , नकारात्मकता ईष्या ,अंहकार ,क्रोध ,वैमनस्य से जन्म लेती है अतः इससे निकलने वाली  उर्जा भी विध्वंसकारी होती है ।विध्वंस से किसी का भला नही हुआ है ।हम अपने जीवन में सकारात्मक सोच लायें ।एक -एक ग्यारह बनेंगे ।धीरे -धीरे सुख का ही प्रसार होगा ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
         इसमें कोई दोराय नहीं कि सकारात्मक सोच ही सुख का रहस्य है। किन्तु यह भी सत्य नहीं है कि गलत बातों का विरोध ही नहीं किया जाए। जबकि सर्वविदित है कि विरोध सर्वप्रथम सर्वाथा समस्त सुखों का नाश कर देता है। 
         तात्पर्य यह है कि जब कोई व्यक्ति, बाहुबली या उच्च अधिकारी कानून एवं सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध अनुचित मांग करे तो उसका विरोध करना हर प्राणी का कर्त्तव्य है। उदाहरणार्थ कोई उच्च अधिकारी विवश अधीनस्थ कर्मचारी की पत्नी की मांग करे और वह कर्मचारी सकारात्मक सोच से अपनी धर्मपत्नी उसके हवाले करदे और सुख भोगे, तो यह सुख नहीं कायरता है। दूसरी ओर यह कड़वा सच है कि वह अधिकारी उस अधीनस्थ कर्मचारी को दुःख ही नहीं देगा बल्कि उसका जीवन नरक बना देगा। 
          मेरा दावा है कि ऐसे विरोधों के कारण जन्में असंख्य दुःख, विरोध न करने के भरपूर सुखों से कहीं अधिक सुखदायक होते हैं। 
       अतः परिस्थितियों के अनुसार तय करने की आवश्यकता है कि सकारात्मक सोच क्या है और पुरुषार्थ एवं कर्त्तव्य का दायित्व क्या है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
तन-मन से जुड़े मानव जीवन को सहज एवं सार्थक बनाने के लिए सकारात्मक सोच को अपनाना आवश्यक है। साथ ही उसके क्रियाकलापों को लेकर चलना होगा। यथा- धैर्य, सहनशक्ति ।क्योंकि इससे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हम सामान्य और सहज बने रहेंगे।
        देखा जाता है कि  सकारात्मक सोच से हमारे जीवन जगत के प्रति घटित होने वाले नकारात्मक तत्वों के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है; क्योंकि सुखद और दु:खद घटनाएं यानि दो परस्पर विरोधी परिस्थितियों से युक्त लोगों के कर्म क्षेत्र से जुड़ा यह जीवन- जगत है। सुख- दुख दोनों ही एक तरह की उत्तेजनाएं हैं। जो हमारे व्यवहार, आचरण और परिस्थितियों को प्रभावित करती हैं। अतः जागरूक रहकर अपने व्यवहार, विचार, आदतों एवं सोच पर नियंत्रण जरूरी है। घबराने औरअशांत  होने से नकारात्मकता हावी होने लगती है।
       अतः शुभ, फलदायी, कल्याणकारी, सार्थक, सकारात्मक सोच में सुख का रहस्य खोजना श्रेयस्कर है ।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
सकारात्मक सोच से सुख की राह प्रशस्त होती है वैसे तो सोच ही है जो जीवन के विभिन्न आयामों को निर्धारित करती है सोच दो प्रकार की होती हैं सकारात्मक सोच एवं नकारात्मक सोच । मुख्य रूप से सोच रूपी फलों का उत्पादन विचार रूपी बीज से होता है और विचारों के लिए देश काल परिस्थिति के साथ ही संगति बहुत बड़ा रोल अदा करती है कहते हैं- कदली सीप भुजंग मुख, एक स्वाति गुण तीन । जैसी संगति बैठिए तैसे ही फल दीन ।। दरअसल विचार बीज की तरह होते है जिन्हें हम अपने मस्तिष्क रुपी ज़मीन में बोते हैं जो भविष्य में हमारी सोच, दृष्टिकोण एंव व्यवहार रुपी पेड़ के रूप में विकसित होते हैं । ठीक इसी के अनुसार जीवन में सुख और दुःख की उपज तैयार होती है । नकारात्मक विचार हमें घोर अंधकार में धकेल सकते हैं जहां दुख के अलावा कुछ भी नहीं ठीक इसी के विपरीत सकारात्मक विचार हमें असफलता के अंधकार से निकाल सकते हैं जहां से सुख का झरना फूट पड़ता है l कुछ लोग कहते हैं की ये बातें कहने और सुनने में अच्छी लगती हैं पर हमारे बीच में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनके बारें में आप जानेंगे तो आप भी सकारात्मक विचारों की शक्ति के बारे में समझ जाएंगे l सकारात्मक सोच की शक्ति को स्पष्ट आभास किया जा सकता है । सकारात्मक सोच वाले लोग विपरीत परिस्थितियों में भी अनुकूल माहौल बनाने के लिए जाने जाते हैं परिस्थिति कैसी भी हो ये खुश रहते हैं और जहां ख़ुशी हो वहाँ सुख समृद्धि का होना स्वभाविक है ।जितने भी भौतिक सुख सुविधा के साधन हैं ये सब सकारात्मक सोच का परिणाम ही है और कुछ नही । सकारात्मक सोच विचार वाले लोग केवल अपने सुखों के लिए ही काम नहीं करते हैं ये तो जो भी करते वो सभी की भलाई के लिए कार्य किया करते हैं । जो सबको सुख देने के लिए काम करता है उसे प्रकृति के नियमों के अनुसार सुख मिलता ही है अतः सकारात्मक सोच में सुख का रहस्य छुपा है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
सकारात्मक सोच तो सुख का रहस्य है ही। सकारात्मक सोच एक दिशा है, एक नेतृत्व है जिसके पीछे आपकी मेहनत,आपकी लगन,आपके कर्म,आपके सपने, आपकी उम्मीदें सभी चलते हैं और आपको थकने नहीं देते। सकारात्मक सोच जिंदादिली का नाम है।यह खुश रहने का कारण है, जिंदगी के सुखों की कुंजी है, जीवन का आधार है, आपकी उड़ान के पंख हैं,आपके कदमों की ताकत है....।
सकारात्मक सोच वाले स्वयं तो खुश रहते हैं साथ ही अपने आसपास के माहौल को भी खुशनुमा रखते हैं।वे जीवन की कठिनाईयों से निराश नहीं होते बल्कि उनका समाधान निकाल कर आगे बढ़ते हैं।जो सकारात्मक सोच नहीं रखते वे जरा सी कठिनाई से घबराकर आत्महत्या जैसे गलत क़दम उठा लेते हैं।
अतः जीवन में सुखी रहने के लिए सकारात्मक सोच आवश्यक है।
-  डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
    सकारात्मक सोच एक तरह से आदमी को नशे की सोच में रखता है। उसके इर्द गिर्द जो कुछ हो रहा होता है उस सच्चाई से अलग रहते हुए वह अपनी धुन और नशे मे रहता है। मस्त भी रहता है कि मेरी सोच सकारात्मक है।
अगर सिर्फ साकारात्मक सोच का परिणाम इतना ही लाभकारी होता तो इसी दुनिया मे स्थित सोमालिया और इथियोपिया मे मासूम बच्चे  इतने नहीं मर रहे होते।
 सकारात्मक सोच रखने से दुनिया वास्तव मे हसीन नही हो जाती है परन्तु दुनिया आभासी हसीन जरूर प्रतीत होती है ।
ब्यक्ति अगर सामाजिक -आर्थिक -राजनैतिक परिस्थिति का  आकलन करे और सिर्फ साकारात्मकता मे जीने से अलग हटकर दुनिया को मानवीय संवेदनाओं से प्रेरित होकर  को बदलने का प्रयास करे तो निश्चिंत रुप से दुनिया को रहने के लायक बनाया जा सकता है।
संसार मे सुख संपदा बढ़ सकती है , मानवता का विस्तार हो सकता है अगर भौतिक अवस्था को वैज्ञानिक ,तार्किक एवं द्वंद्वात्मक रूप समझते हुए दुनिया मे क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाए ।
 - रंजना सिंह
  पटना - बिहार
हां, सकारात्मक सोच हीं सुख का रहस्य है यह बात अक्षरशः सत्य है। व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन सुख दुःख का संगम होता है। उतार -चढ़ाव का ताना-बाना व्यक्ति के  ज़िंदगी में  निरंतर चलते हीं रहता है। सही तो ये होता है कि सुख में भी व्यक्ति स्थिर रहे और दुःख में भी विचलित ना हो।कभी- कभी व्यक्ति दुःख की अत्याधिकता से विचलित हो जाता है।जिसके कारण नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त हो जाता है और वह व्यक्ति धैर्य खोने लगता है ,जिसके कारण उसके तन, मन, धन ,सब पर असर पड़ता है।यदि व्यक्ति सकारात्मक सोच रखता है तो वह खुद भी उर्जावान बना रहता है, और जिस कारण उसके आस -पास का परिवेश भी सकारात्मक हो जाता है जिसका सु प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक सोच से भरपूर व्यक्ति बड़ी से बड़ी विपत्ति को भी झेलने की क्षमता रखता है और  हर कष्ट से भी आसानी से  पार हो जाता है। नाकारात्मक सोच वाले व्यक्ति क्षणिक दुःख से भी तुरंत विचलित और जल्द हीं दुःखी हो जाते हैं,जिसके कारण उनके हर चीज प्रभावित हो जाता है जिसका उसको ख़ामियाजा भुगतना पड़ता है। इसलिए हमें सदैव सकारात्मक सोच रखनी चाहिए ताकि हम एक स्वस्थ वातावरण में स्वस्थ रहें। स्वास्थ्य हीं जीवन है और सकारात्मक सोच हीं इसका आधार होता है,जो खुशी का रहस्य या द्वार होता है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " सकारात्मक से जीवन बदल जाता है और साथियों का जीवन भी बदलते देखा जा सकता है । फिर भी सकारात्मक सोच के व्यक्ति बहुत कम मिलते हैं । ऐसा हर युग में देखा गया है ।
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी
 डिजिटल सम्मान

Comments

  1. सकारात्मक सोच हमेशा अच्छे कर्मों की ओर अग्रसर करती है जबकि नकारात्मक सोच गलत आदतों के तरफ ले जाती है। मनुष्य का उत्थान केवल अच्छे कर्मों से अर्थात सकारात्मक सोच से ही संभव है। उसी से उसे सच्चा सुख प्राप्त होता है। हम कह सकते हैं कि इंसान का सच्चा सुख सकारात्मक सोच में ही है। नकारात्मक सोच दुष्प्रवृत्तियों की ओर ले जाती है और उससे केवल दुख ही प्राप्त होता है। शुभेतु कल्याणः।

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