क्या स्कूल - कालेज की पुस्तकों से जिम्मेदार इंसान बन सकते हैं ?

स्कूल - कालेज की पुस्तकों के ज्ञान के आगे भी युवा भटकता नज़र आ रहा है । पढें - लिखे युवक बड़े - बड़े अपराध में शामिल होते नज़र आ रहे हैं । यही वर्तमान की विडम्बना है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
केवल पुस्तकों की पढ़ाई कर लेने से ही एक अच्छा वा जिम्मेदार इन्सान बनना नमुमकिन है, पढ़ाई के साथ साथ  इन्सान को वहुत  से समाजिक कार्यों को  भी देखना  चाहिए,  जितना ज्यादा पढ़ा लिखा इन्सान होगा इतनी ही उसकी जिम्मेदारी भी ज्यादा हो जाती है,  क्योंकी उसको अपने आप से शुरू होकर पूरे समाज  तक की करूतियों को दूर करने का  सौभाग्य  प्राप्त होता है, एेजूकेशन का सही मतलब आल राऊंड डिब्बैलमैंट माना गया है। 
इसलिए केबल किताबें पढ़ने से ही  इन्सान एक  काबिल  इन्सान नहीं बन  सकता  इसके लिए उसे वहुत से समाजिक कार्यों को करना पड़ता है जिससे उसका समाज ही नहीं  अपितु देश भी तरक्की कर सके, स्कूल वा कालेज की पुस्तकेंंं हमें केवल ज्ञान प्रदान करती हैं, हम अपने ज्ञान को कैसे वढ़ावा दे सकते हैं यह हमारे चरित्र पर निर्भर करता है की हम अगर पढे लिखे इन्सान हैं तो हम   देश मे्ं कौन सी क्रान्ती ला सकते हैं जिससे हमारा देश उच्च  स्तर पर पहुंच सके। 
हमारे देश में बहुत सी कृतियां हैं जिनको दुर करना एक पढ़े लिखे इन्सान का धर्म बन  जाता है यह सब कार्य हमें पुस्तकें पढ़ने से नहीं आएगा, अपितु हमें कुछ हट कर कार्य करने पढ़ेंगे। 
हमारे समाज में अभी बहुत सारी कृतियां हैं जिनको दूर करने की सख्त जरूरत है और उन्हें दुर एेसे पढ़े लिखे  इन्सान कर सकते जिन्होने सिर्फ पुस्तकें ही नही पढी़ हों   अपितु समाज सेवा का भी बीड़ा उठाया हो इसलिए जिम्मेदार इन्सान  सिर्फ स्कूल कालेज की पुस्तकें पढ़ने से ही नही बन सकते, जिम्मेदार इन्सान वो ही है जिसे अपना, अपने समाज, अपने देश के  मान समान की चिंता हो। 
कहने में रावण भी वहुत पढ़ा लिखा था लेकिन चरित्र खो देने से उसने आपना ही नहीं वरना  अपने कुल अपने देश का नाम कलंकित कर दिया। अगर उसने पुस्तकों की पढ़ाई के साथ साथ समाजिक पढ़ाई की तरफ भी ध्यान दिया होता  तो वो भी  अच्छे वा जिम्मेदार इन्सानों की सूची में  होता, इससे यह  निष्कर्ष निकलता है कि सिर्फ  स्कूल या कालेज की पुस्तकों  से ही एक जिम्मेदार इन्सान नहीं बना जा सकता, अपितु कुछ  संस्कार हमें माता पिता वा समाज भी देता है। 
इसलिए एक अच्छे वा जिम्मेदार इन्सान को अपने समाज वा देश की सेवा तन मन  व धन से करनी चाहिए।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
स्कूल कालेज की पुस्तकों को पढ़कर शिक्षित हो जाते हैं पर ज़िम्मेदार इंसान बन सकते हैं ये ज़रूरी नहीं, हाँ बन सकते हैं ये संभव है असंभव नही, अशिक्षित और शिक्षित के बीच महीन अन्तर अवश्य होता है एक शिक्षित व्यक्ति सभ्य समाज का निर्माण करने के लिए उत्तरदायित्व रखता है उससे उम्मीद की जाती है कि वह ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभा सकता है लेकिन वह निभा पाएगा या नहीं ये प्रयोग की बात है । कोई ज़िम्मेदार इंसान बने इसमें किताबों के मुक़ाबले व्यवहारिक ज्ञान ज़्यादा अच्छा सिद्ध हो सकता है । व्यवहारिक ज्ञान की पुस्तकों की लम्बी सूची और विस्तृत क्षेत्र होता है जो बहुमुखी प्रतिभा का विकास करतीं हैं जबकि स्कूल कालेजों की पुस्तकों का दायरा सीमित होता है परन्तु सीमित दायरे के होते हुए भी ज़िम्मेदार इंसान बनाये या बनाये ज़िम्मेदारी का पारिभाषिक परिचय ज़रूर करा देती हैं । ज़िम्मेदार इंसान बनने के लिए पढ़ा लिखा होना कोई ज़रूरी है । 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
  पुस्तकें पढ़कर कोई जिम्मेदार इंसान नहीं बन सकता  नहीं तो शास्त्र पढ़कर सभी ज्ञानी न हो गए होते| जिम्मेदार इंसान  अनुभव से बनता है  विचार और चिंतन से बनता है | जहां चिंतन नहीं  वहां आगे बढ़ने के लिए  कोई मार्ग
 निश्चित नहीं किया जा सकता |
लेकिन समाज तो यही कहता है कि स्कूल और कॉलेजों से बच्चों को शिक्षा और ज्ञान दिया जाता है |लेकिन बहुत गहरे अर्थों में  सब पुरानी मान्यताएं ,परंपराएं ,अंधविश्वास शिक्षक के माध्यम से नई पीढ़ी के भीतर डाल देने का काम किया जाता है|  मैकाले द्वारा प्रचलित की गई शिक्षा प्रणाली ही हमारे जीवन का अंग रही |कुछ भी न प्राप्त कर सकने की अवस्था में पहुंच कर भी हम इस शिक्षा प्रणाली को बदलने में  समर्थ न हो सके|
हमने देखा कि स्कूल और कॉलेजों से पढ़कर निकले हुए छात्र -  छात्राएं  किन सामाजिक  व  राजनैतिक स्थितियों का सामना करते हैं ?यह कोई नहीं जानता | किसी ने कहा है......जिस  कौम  के बच्चे पहाड़ों पर चढ़ना छोड़ देते हैं उस कौम की आत्मा  जीना  ही छोड़ देती है |  जो भी अपने जीवन में क्रांतिकारी या वीर रहे हैं वह किसी शिक्षा के कारण नहीं बल्कि उनके अपने कारण उन्हें ऐसा घटित हुआ | 
शिक्षा संस्थाओं में उनके पाठ्यक्रम में वही वर्षों पुराने घिसे पिटे विचार हैं | जो मनुष्य में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं ला सकते|  स्कूल और कॉलेज की सारी  शिक्षा दीक्षा विद्यार्थियों को केवल अपनी रोजी रोटी कमाने के योग्य बनाती है  ,वह भी पूरी तरह नहीं |
बस किसी तरह  किसी क्षेत्र में धन कमा सकें इस योग्य बनाना ही इन संस्थाओं का कर्तव्य है |
लेकिन देश का दुर्भाग्य कह लो कि वे अपनी  इस कार्य व्यवस्था में जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण सफल नहीं हो  सके| आरक्षण होना या न होना  इसी बात का प्रमाण है |और अगर यह शिक्षा विद्यार्थियों को जिम्मेदार बनाती तो सड़कों पर दंगे न होते हिंसा न होती तोड़फोड़ न होती और लोगों को अपने प्राणों से हाथ न धोने पड़ते, 
धर्म और जाति के कारण मार -काट न होती |
यह एक बार नहीं  भारत के आजाद होने के बाद  ऐसी घटनाएं बहुत बार हो चुकी हैं , होती  रहती हैं|
 और अगर कोई  समाधान नहीं खोजा गया   और शिक्षा में क्रांति के बीज नहीं बोए गए | तो भारत की शिक्षा पद्धति  भारत के नवनिर्माण में  कोई सहयोग नहीं दे सकती |  जिम्मेदारी तो आती है विचार से   चिंतन से |  लेकिन  यहां तो चिंतन की धारा को  जन्म लेने से पहले ही समाप्त कर दिया जाता है | और  विद्यार्थियों पर केवल 
 विचारों का आरोपण किया जाता है   जिन्हें वे  कंठस्थ करते हैं| और परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाते हैं |
 जब वे दुनिया के इस मैदान में  प्रवेश करते हैं  तो उन्हें पता चलता है  कि  इस  समाज में , लूट है, रिश्वत है, झूठ 
है  और बेईमानी है| संभवत वे लोग भी  इन्हीं स्कूलों और कॉलेजों से पढ़कर ही निकले हैं | विचारणीय है  कि ऐसे 
वातावरण में  विद्यार्थी  किस तरह से अपनी जिम्मेदारियों को समझ सकता है |  इस तरह एक अच्छा मनुष्य एक
 जिम्मेदार व्यक्ति बनने की सारी  संभावनाएं   नष्ट होती प्रतीत होती हैं |  
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
किताबें और पुस्तके ही सच्ची साथी होती हैं मुसीबत के समय में मनुष्य के साथ उसका विद्याधन ही देता है। जब हम बहुत निराश हो जाते हैं तो अच्छी किताबें जैसे रामायण गीता भागवत या किसी महान विचारक के लेख पढ़कर ही हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और निराशा में डूबे हुए इंसान को भी किताबों में वह शक्ति होती है कि वह उसे नई राह दिखा सके।
किताबी ही मनुष्य का सच्चा साथी है किताबें और छोटी मोटी कहानी के माध्यम से ही बच्चों को बहुत सारी नैतिक शिक्षा दी जाती है किताबों की शिक्षा के आधार पर ही पंचतंत्र और हितोपदेश के द्वारा राजकुमारों को शिक्षित किया गया था। असली निराशा में हमेशा कोई भी अच्छी किताबें पढ़नी चाहिए।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
पुस्तकें इन्सान की पहली मित्र होती हैं
और पुस्तकों का चयन इन्सान की पहचान ।
किसी बड़े नेता के वाक्य हैं।
देश का भावी नेता विद्यालयों में कार्यरत है। सही है हर देश का रक्षक और भक्षक दोनों ही स्कूल, कोलेज से निकलते हैं। परन्तु यह भी सत्य है कि वहीं भक्षक का सुधार भी होता है या यह भी कहा जा सकता है कि स्कूल - कोलेज सुधार गृह हैं जहां पर बालकों को संस्कृति व सभ्यता से जोड़कर परिवार, समाज,देश के प्रति एक स्वच्छ भावनाओं का विकास किया जाता है। और कोलेजों में नवयुवकों को भावी नेता की सुन्दर भावनाओं से ओत-प्रोत किया जाता है।
जीवन की हर परिस्थिति में अडिग रहना सिखलाया जाता है।
और कहते भी हैं कि हर परिस्थिति के आगे चट्टान की तरह खड़े रहना ही एक अच्छे व सच्चे इंसान की पहचान है।
तो स्कूल - कोलेज से अच्छे इंसान ही बनकर निकलते हैं।।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
 वर्तमान समय में ज्ञान के तीन स्व रूप है। 1.सूचना ज्ञान 2.स्कील ज्ञान 3. समझ ज्ञान। तीनों ज्ञानों में वर्तमान में सूचना ज्ञान आधारित एवं ज्ञान का अध्ययन हो रहा है समझदारी का अध्ययन बाकी है इसीलिए समाज में सूचना पाना रटकर परीक्षा दिलाना नौकरी या व्यवसाय कर पैसा कमाना  वर्तमान की शिक्षा में यही दिख रहा है ।जिम्मेदारी की शिक्षा देना अभी बाकी है। तभी तो समाज में जिम्मेदार व्यक्ति की कमी दिखाई देती है। अगर जिम्मेदार व्यक्ति होता तो आज
कलुशित नही होता। पढ़ाई नौकरी के लिए की जाती है। नौकरी पैसा के लिए की जाती है। और पैसा सुविधा संग्रह के लिए की जाती है। जिम्मेदारी के लिए नहीं ,आज वर्तमान युग में घर परिवार हो चाहे समाज जिम्मेदार व्यक्ति की कमी दिखाई देती है। इससे यही कहते बनता है कि कॉलेज के पुस्तकों में जिम्मेदार इंसान नहीं पैसा वाला इंसान बनाता है और जिम्मेदार इंसान जो व्यक्ति संस्कार पूरित होता है वह अपनी जिम्मेदारी को समझता है ।अतः इसके साथ साथ मूल्य ज्ञान की भी आवश्यकता है मूल्य ज्ञान सही कार्य और सही व्यवहार से प्रमाणित करना होता है जो मूल्यो में जीता है वही व्यक्ति जिम्मेदारी के साथ  जीता है। अतः वर्तमान समय में  मूल्य, चरित्र, नैतिक ज्ञान की आवश्यकता है। तभी व्यक्ति निष्ठा के साथ जिम्मेदार इंसान बन सकता है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
केवल पुस्तकीय ज्ञान से कोई जिम्मेदार व्यक्ति नहीं बन जाता  .पुस्तकोंद्वारा प्राप्त ज्ञान व्यक्ति को ज्ञानी अवश्य बनाता है पर जिम्मेदार नहीं .
जिम्मेदारी तो तब आती है व्यक्ति को जब वह ज़िन्दगी के मैदान मैं व्यावहारिक रूप से उतरता है पुस्तकीय ज्ञान  उसकी सोच को निखारने मैं सहायता अवश्य करता है उसे सही दिशा दिखाता है   जीवन का पाठ पढ़ने मैंसहायता करता है पर जिम्मेदार नहीं बनाता .
आजकल पुस्तकीय ज्ञान मैं अधिक अंकों की होड़ मैं अभिभावक केवल अंकों को महत्वा देते है और बच्चों को जिम्मेदारी देते ही नहीं और अंत मैंकिताबी कीड़े तैयार होजाते हैं जिन्हे जीवन का वास्तविक ज्ञान नहीं होता .
आजकल के बच्चों मैं जिम्मेदारी का अभाव अभिभावकों की सोच केकारण है जिसे बदलने की ज़रूरत है.
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
सिर्फ़ किताबी ज्ञान काफी नहीं होता है ! शिक्षा से बुद्धि तेज होती है जानकारी होती है पर संस्कार से व्यवहारिक ज्ञान आता है । 
दोनों यदि सही तरीक़े से लिया जाए तो एक ज़िम्मेदार नागरिक बनता है । 
शिक्षा जहां विवेक जागृत कर सही क्या ग़लत का बोध कराती है वहीं अच्छे संस्कार इंसान को एक ज़िम्मेदार बनाते है । 
किताबी ज्ञान सही ग़लत का फ़र्क़ समझाती है ।
पढ़ाई के साथ अनुभव भी चाहिऐ सही मार्गदर्शन व सही संस्कार हो तो इंसान एक सफल व ज़िम्मेदार इंसान बनता है ! 
सिर्फ़ स्कूल कालेज की किताबों  से ज़िम्मेदार नहीं बनते , 
किताबी ज्ञान बहुत जरुरी है वहीं संस्कार भी और अनुभव सबको मिलाकर जो तैयार होता है वह है ज़िम्मेदार इंसान !
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
आज का विषय बेहद प्रभावी है. हर बालक को क्रमानुसार विद्यालय और महाविद्यालय जाकर अपनी अध्ययन-प्रक्रिया पूरी करनी ही होती है.लेकिन यह कहना,कि "स्कूल,काॅलेज की पुस्तकें पढ़कर ही वे जिम्मेदार हो सकते हैं" सर्वथा हास्यास्पद एवं असंगत है.
कहा भी गया है-
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का ,पढ़े सो पंडित होय  ।।"
हमारे बड़े बुजुर्ग अनुभवों की आंच में पककर, निखरकर हमारे सामने आए हैं.
पीछे मुड़कर देखें, तो कितनी ही महान शख्सियत   निरक्षर होने के बावजूद भी बेहतरीन व्यक्तित्व और कृतित्व से युक्त मिल जाएंगी. सूर,तुलसी,कबीर,रैदास जैसे अतुलनीय लोग साक्षर नहीं थे,लेकिन कुशल और लोकप्रिय  कलमकार थे.
ज्ञानी जैल सिंह गजब के राजनेता थे,लेकिन कम पढ़कर भी वे सफल रहे.आज भी हमारे लिये प्रबुद्ध पूर्वजों के कथा,कहानी,किस्से और नुस्खे सभी अनमोल धरोहर बने हुए हैं.
दिल का सुकोमल और ममतालु होना हमारे संस्कारों में अत्युत्तम माना गया है. बुद्धि का स्थान तभी महत्वपूर्ण मान सकते हैं, जबकि वह दिल से जुड़कर नेकनीयत का ध्यान रखे.
निष्कर्षतः मात्र पुस्तकीय ज्ञान पर निर्भरता ठीक नहीं है.
- डा. अंजु लता सिंह 
 दिल्ली
आज की चर्चा में जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या स्कूल कॉलेजों की किताबों से जिम्मेदार इंसान बन सकते हैं तो मैं यह कहना चाहूंगा की स्कूलों में न केवल किताबी ज्ञान दिया जाता है बल्कि अनुशासन और संस्कार की शिक्षा भी प्रदान की जाती है यह बच्चे व्यवहारिक ज्ञान भी सीखते और अपने जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर होते केवल किताबों से यह सब कुछ नहीं हो सकता स्कूलों और विद्यालयों में बच्चों को उठना बैठना एक दूसरे से सभ्यता के साथ व्यवहार करना भी सिखाया जाता है और यह उनके  सामाजिक और पारिवारिक जीवन में बहुत उपयोगी है इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूंँ कि केवल किताबी शिक्षा व्यक्ति को संस्कारवान नहीं बना सकती बड़ों की शिक्षा एवं उनके अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है और यह सब अध्यापक स्कूलों में अपने छात्रों को अपने विद्यार्थियों को सिखाते हैं अतः स्कूल केवल किताबी ज्ञान का माध्यम नहीं है बल्कि वहां व्यवहारिक सामाजिक एवं संस्कारिक बाते व   चीजें भी बच्चों को सिखाई जाती है जो एक अच्छा नागरिक बनने के लिए बहुत ही आवश्यक है और इसमें अध्यापक की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है कुछ उदाहरण हो सकते हैं जिन पर आप सहमत न हो परंतु सभी जगह ऐसा नहीं है और अभी भी बहुत अच्छे विद्यालय व अच्छे अध्यापक हैं जहाँ किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक एवं संस्कारिक ज्ञान भी बच्चों को किताबी शिक्षा के साथ साथ अध्यापकों के द्वारा दिया जा रहा है.
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
शिक्षा हमें ज्ञानवान और संस्कारवान बनाती है। हमारे बौद्धिक स्तर को सशक्त और सामर्थ्यवान बनाती है।  
बुद्धजीवियों ने इसी सोच और ध्येय को लेकर स्कूल और कॉलेज की परिकल्पना की और  आयू के आधार पर सुव्यवस्थित क्रम बनाया।
    इसी आधार पर  आयु की सामर्थ्य के अनुसार मनोवैज्ञानिक रूप से पुस्तकें तैयार कर,  शिक्षा के लिए अनेक विषयों को तैयार किया गया और पाठ्य क्रम निर्धारित किया गया। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि  स्कूल और कॉलेज की पुस्तकों से जिम्मेदार इंसान बनने में कोई संदेह नहीं है।   हाँ, इस व्यवस्था में कौनसी पुस्तकों को शामिल किया जावे, इसका चयन करना संबंधितों की जिम्मेदारी अवश्य बनती है और इसी में कमी या खामियां होना, प्रभावित करती हैं।
    बदलते समय के अनुरूप इस पर चिंतन- मनन और विमर्श करना  महत्वपूर्ण  ही नहीं अतिआवश्यक है। 
    आज के युवाओं और बच्चों के आचरण और व्यवहार में जो कमियां और खामियां नजर आ रही हैं एवं जिसकी अपेक्षा की जाती है, उससे संबंधित उन्हें शिक्षित करने के लिए वैसी नीतिगत पुस्तकें उपलब्ध कराना बहुत आवश्यक है। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 जिम्मेदार इंसान या नागरिक बनने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होनी चाहिये। यह ज्ञान घर मैं पहली शिक्षिका मॉ के माध्यम से होती है। इसके बाद स्कूल कॉलेज के माध्यम से उचित पाठ्यक्रम के द्वारा ज्ञानवर्धक  किया जाता है ।
मेरे विचार से पाठ्यक्रम मे बदलाव होना चाहिए। पाठ्यक्रम मे व्यवहारिकता पर ज्यादा जोर देने से उपयोगी होगा।
हमारे भारतीय इतिहास में मुगलों के शासन का गुणगान  किया गया है ।इसके जगह पर हमारे भारतीय देशभक्त चंद्रशेखर आजाद महाराणा प्रताप झांसी की रानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवनी से अवगत कराना चाहिए। 
अभी CBSE पाठ्यक्रम से हटाया गया है धर्मनिरपेक्षता लोकतंत्र और नागरिकता चैप्टर यह सिलेबस बच्चों के हितों को ध्यान में रखकर कम किया गया है कम से कम 30% पाठ्यक्रम कम करने से बच्चों के तनाव कम करना है। दूसरा फायदा बच्चों को तनाव रहता है इतना बड़ा सिलेबस कम समय में कैसे पूरा करेंगे आगे की पढ़ाई नौकरी सब अच्छे नंबर स्कोर करने से होगा साथ-साथ माता-पिता का भी राहत मिला।
लेखक का विचार जिम्मेदार इंसान बनने के लिए ज्ञान और व्यावहारिकता आवश्यक है।
- विजयेंद्र मोहन 
बोकारो - झारखण्ड
मानव -सभ्यता और संस्कृति के   विकास का समूचा श्रेय पुस्तकों को जाता है l स्कूल, कॉलेज में पाठ्यक्रम के अंतर्गत पुस्तकों से जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं क्योंकि इनमें निहित ज्ञान सात्विक वृत्तियों को जागृत कर पथ भ्र्ष्ट होने से बचाती हैं साथ ही नवीन तकनीकी ज्ञान जो आज की आवश्यकता बन गया है उस ज्ञान को उपलब्ध कराती हैं l इन पुस्तकों का हमारे मन मस्तिष्क पर स्थाई प्रभाव पड़ता है l 
विज्ञान, वाणिज्य, कला, क़ानून आदि सभी पुस्तकें ज्ञान में संवर्धन कर हमें सत पथ पर अग्रसर करती हैं l अच्छी पुस्तक, कोई भी, किसी भी कक्षा की हो हमारी सबसे अच्छी मित्र है l 
जब समाज में, भाई भाई के बीच ईर्ष्या द्वेष की अग्नि भड़कती है, यही पुस्तकें हमें जिम्मेदार नागरिक बनाती हैं l नव चेतना का संचार करती हैं l
प्रत्येक छात्र श्रेष्ठ नागरिक होता है परिस्थितियाँ उसे कुछ का कुछ बनने के लिए विवश करती हैं l 
      चलते चलते ----
 बाल कहानियाँ, कविताएँ बाल मन पर अपनी अमिट  छाप छोड़ती हैं l 
       - छाया शर्मा 
       अजमेर - राजस्थान
परिवार के पश्चात स्कूल-कालेज ही वह स्थान है जहां इन्सान के जिम्मेदार बनने का मार्ग प्रशस्त होता है और स्कूल-कालेज में इस मार्ग की मार्गदर्शक पुस्तकें होती हैं। जिम्मेदार बनने की प्रक्रिया में पुस्तकें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 
तभी कहता हूं कि...... 
"ज्ञान की गंगा का "आविर्भाव" होती हैं पुस्तकें,
चेतन मस्तिष्क का प्रादुर्भाव होती हैं पुस्तकें। 
पुस्तकों का प्रभाव जिसने मान लिया दिल से, 
मार्ग सफलता का उसको दिखा देती हैं पुस्तकें।। 
मिट्टी के पुतले को मानव बना देती है पुस्तकें,
मानव को धरा से गगन पर बैठा देती है पुस्तकें।
पुस्तकों का दामन जिसने थाम लिया दिल से, 
शीर्ष स्थान जग में उसको दिला देती हैं पुस्तकें।।"
मेरा मानना है कि..... 
स्कूल-कालेज में प्रत्येक कक्षा की प्रत्येक पुस्तक का प्रत्येक पाठ मनुष्य को जिम्मेदार बनने हेतु कोई-न-कोई सन्देश देता है परन्तु सच्चाई यही है कि पुस्तकों को मात्र पढ़ने से नहीं, बल्कि पुस्तकों में लिखे को आत्मसात करके व्यवहार में लाने पर ही इन्सान की जिम्मेदार बनने की प्रक्रिया पूर्ण होती है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
आज कल स्कूलों, कालेज की पुस्तकें ज्यादातर व्यवहारिक ज्ञान से दूर होती जा रही हैं ।यह विद्या थयोरिटीकल होती है। इस का मुख्य उद्देश्य रोजी-रोटी अर्थात आर्थिकता से जुड़ा हुआ है। मनुष्य ऐसी विद्या ग्रहण कर के भौतिकवादी दौड़ में शामिल हो जाता है और वो संवेदनहीनता की ओर बढ़ने लगता है। वह एक कल पर्जा ही बन जाता है। ऐसी विद्या उसे आत्म आनन्द, नैतिक मूल्यों और जिम्मेदार इन्सान बनने से दूर ले जाती है। मनुष्य स्वयं केन्द्रित हो जाता है और समाज पतन की ओर जाने लगता है। प्राचीन काल में गुरूकुल में प्रक्टिकल शिक्षा दी जाती थी जिस से राजा हो या रंक, अपने हाथों से काम करना,आज्ञाकारी, अनुशासन, समय का महत्व, सत्य, इन्साफ और अहिंसा की शिक्षा दी जाती थी। उसी से ही आज हम राम राज्य की कल्पना भी करते हैं। लेकिन आज कल स्कूलों, कालेज की पुस्तकें ऐसी विद्या से कोसों दूर हैं। समय आ गया है कि हम  पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों का आंकलन करें और उस में यथायोग्य संशोधन करें ताकि मनुष्य पढ़ लिख कर एक जिम्मेदार इन्सान बन सके।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
क्या स्कूल कालेज की पुस्तकों से जिम्मेदार इंसान बन सकते हैं ? यह विषय साधारण विषय नहीं। न तो इससे पूर्ण सहमत हुआ जा रहा है और न ही असहमत। अगर ऐसा होता तो स्कूल कालेज गया कोई व्यक्ति गैरजिम्मेदाराना रवैया न अपनाता।और ऐसा न होता तो सभी निरक्षर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करने वाले होते।बात अटपटी लग सकती है,पर है सत्य। स्कूल कालेज की पुस्तकें इंसान को एक विचार एक सोच देती है। बालक मनु हरिश्चंद्र नाटक पढ़कर देखकर सत्य की राह चल पड़ा और दुनिया में महात्मा गांधी के नाम से मशहूर हुआ।सत्य अहिंसा की प्रतिमूर्ति बन गया।इसका एक और पक्ष देखे पढ़ें लिखे कथित जिम्मेदारों जो ने परमाणु बम बना दिया और हिरोशिमा, नागासाकी पर 
उसका प्रयोग करके समस्त मानवता को शर्मसार कर दिया। स्कूल कालेज की किताब पढ़ें पायलट ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत से हवाई जहाज टकराकर भारी जन धन हानि की। आप क्या बनना चाहते हैं, पुस्तकें इसमें सहयोग कर सकती है,करती है।दिशा दिखाने का काम करती है, लेकिन उस दिशा का आप जिम्मेदारी से सकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रयोग करते हैं या नकारात्मक ऊर्जा के लिए, यह आप पर निर्भर करता है। जिम्मेदारी एक अहसास है, जिसमें स्कूल कालेज की किताबें कुछ अंश तक ही सहायक होती है। गैर जिम्मेदार आदमी सड़क पर पड़े पत्थर पर ठोकर खाकर भी आगे बढ़ जाता है।जबकि जिम्मेदार व्यक्ति पहले उस पत्थर को किनारे करता है, फिर आगे बढ़ता है। यह है जिम्मेदारी का व्यवहार।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल' 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
            जिम्मेदारी का गुण अपने आप में पैदा करना होता है। स्कूल कॉलेज की पुस्तकें सीख दे सकती है पर उनको व्यावहारिक रूप से आचरण में लाना व्यक्ति का स्वयं का कर्तव्य होता है। जब तक वह अपनी जिम्मेदारी  स्वयं महसूस नहीं करेगा अपने आप में यह गुण विकसित नहीं करेगा तब तक जिम्मेदार इंसान बनना मुश्किल है। हमारे बुजुर्ग  लोग भी जिम्मेदारी महसूस करने की सलाह देते हैं, पर अमल में लाना व्यक्ति का दायित्व है। स्कूल कॉलेज की पुस्तकें सीख दे सकती हैं पर अमलीजामा नहीं पहना सकतीं।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
            केवल स्कूल कॉलेज की पुस्तकों के पढ़ने से जिम्मेदार इंसान नहीं बना जा सकता है। कुछ और तरह की पुस्तकों को भी पढ़ना पड़ता  है। जिसमें समाज के विभिन्न विषयों पर लेख,आलेख, कहानी वगैरह होते हैं।
     जिम्मेदार इंसान बनने के लिए, बड़े-बड़े लेखकों की सुंदर-सुंदर किताबों का पठन-पाठन करना होता है। कुछ धार्मिक पुस्तकों का भी पठन-पाठन आवश्यक होता है।इतिहास की पुस्तकों का भी पठन-पाठन आवश्यक है।
       स्कूल की पुस्तकें तो हमें बहुत सारा ज्ञान तो देती ही हैं।व्यवहारिक सामाजिक ज्ञान के लिए दूसरी पुस्तकें भी पढ़ना आवश्यक है। महापुरुषों की जीवनी या उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें जिम्मेदार इंसान बनने में बहुत सहायक सिद्ध होती हैं।
       स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों की पुस्तकें जिम्मेदार इंसान बनने में युवाओं को जिम्मेदार इंसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। प्रेमचंद की कहानियों से हम जिम्मेदार इंसान बनने की शिक्षा ले सकते हैं। इस तरह बहुत से महापुरुषों लेखकों की पुस्तकें हैं जो स्कूल-कॉलेज की पुस्तकों के साथ साथ पढ़ना आवश्यक है। जो हमें जिम्मेदार इंसान बनने के मार्ग को प्रसस्त करती हैं।
अच्छी किताबें पढ़े जिम्मेदार नागरिक बनें।अच्छे इंसान बनें।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
जिम्मेदार नागरिक बनने में स्कूल काॅलेज की पुस्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  शिक्षा ग्रहण करने के लिए जब हम स्कूल में प्रवेश पाते हैं तो बाल्यावस्था के अनुसार पाठ पढ़ाए जाते हैं।  शिक्षा ग्रहण करने का उद्देश्य होता है विद्यार्थी में विवेक जाग्रत करना और धीरे-धीरे बढ़ती आयु के अनुसार जिम्मेदारियों का एहसास कराना।  जब बच्चे शिक्षा ग्रहण करना आरंभ करते हैं तो उनमें शिक्षा के प्रति रुचि जाग्रत की जाती है।  रंग-बिरंगे चित्रों से सजी पुस्तकों से उन्हें पेड़-पौधों, पक्षियों, मानव के बारे में आरंभिक ज्ञान दिया जाता है और उनमें जिज्ञासा उत्पन्न की जाती है।  इस आयु में बच्चों में रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी जिम्मेदारियों का एहसास कराया जाता है जैसे सुबह उठकर माता-पिता और बुजुर्गों का सम्मान करना है, नित्य-कर्मों से निवृत किस प्रकार होना है, किस प्रकार पौष्टिक भोजन करना है, शारीरिक साफ-सफाई कैसे रखनी है, आसपास साफ-सफाई कैसे रखनी हैं, पेड़-पौधों, पुष्पों और पक्षियों के प्रति किस प्रकार प्रेम-भाव रखना है। आपस में लड़ाई नहीं लड़नी।  बच्चों को ये बातें अक्सर बाल-गीतों से समझाई जाती हैं।  बढ़ती कक्षाओं के साथ-साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती जाती हैं।  स्कूल काॅलेज की पुस्तकें हर स्तर पर विद्यार्थी को जिम्मेदार बनाती हैं।  इसके साथ आवश्यक हैं संस्कार जिसके लिए महापुरुषों की जीवनियां पढ़ाई जाती हैं।  ये बातें मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालती हैं।  माता-पिता संस्कार डालने की भूमिका निभाते हैं। जब विद्यार्थी बड़ी आयु का हो जाता है तो उसे समाज और देश के प्रति जिम्मेदारी का एहसास कराया जाता है।  इसमें भी स्कूल काॅलेज की पुस्तकों की महत्वपूर्ण और अधिकतम भूमिका रहती है जिनमें निहित ज्ञान को आत्मसात कर विद्यार्थी जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
     भारतीय संस्कृति में अध्ययन-अध्यापन का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान हैं। जिसके माध्यम  से जीवन सूत्र को बढ़ोत्तियां मिलते जाती और एक दिन अपने लक्ष्य की ओर  पूर्णतः अग्रसर होता जाता हैं। पूर्व काल में गुरुकुल के माध्यम समस्त प्रकार की शिक्षा पद्धति को पारदर्शिता पूर्ण रूपेण अपनाता था। कालान्तर में स्कूल-कालेज में विभिन्न प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन-अध्यापन कर जिम्मेदारियों को भली भांति सामान्यतः पूर्ण करने में सार्थक पहल कर रहा हैं। पुस्तकों में वही दर्शित किया गया हैं, लेकिन अनेकों लेखकों द्वारा अलग-अलग शब्दावली के कारण  विचारधारा को रोचक बनाने प्रयत्नशील हैं। देखने में यह भी आया हैं, कि कई स्कूल-कालेज में पुस्तकों की ओर झुकाव कम होने उपरान्त भी व्यवहारिक ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त  होने अग्रसर होता जाता हैं। जिसे हम अनपढ़ कहते हैं, जिनके सामने एक पढ़ा-लिखा भी फेल  हो जाता हैं, कई उदाहरण सामने आते हैं,  किस तरह से एक जिम्मेदारी निभाने में सफलता प्राप्त कर एक अच्छा इंसान बन कर दिखाता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
     जी ! बिल्कुल ! पुस्तकें ज्ञान  का भण्डार हैं। अथाह ज्ञान उनमें भरा पड़ा है।ज़िम्मेदार इंसान  के लक्षण और बनने के उपाय भी उद्धृत हैं। 
   सैद्धान्तिक ज्ञान की प्राप्ति तो पुस्तकों से ही होती है। पढ़ाने वाले शिक्षक के पढ़ाने का ढंग, उसका स्वयं का चरित्र , सब कुछ व्यावहारिक ज्ञान की दिशा खोलता है, क्योंकि उसमें उनका स्वानुभव शामिल हो जाता है ।
    ज्ञान ग्रहण कर मनुष्य के अपने अनुभव और परिस्थितियाँ ,वास्तविक 
चरित्र का निर्माण करती हैं 
सम्भवत: यही कारण है कि पुस्तकीय ज्ञान और व्यवहार में अंतर दिखायी देता है। 
 ज्ञान संचित और संरक्षित रखना तो पुस्तकों में ही सम्भव है।आज जो हम लिख रहे हैं ,वह भी कल की सभ्यता, संस्कृति का आधार बनेगा।
आचार संहिता का निर्माण करेगा। हर युग में कुछ बातें सार्वभौम सत्य होती हैं और कुछ परिवर्तनशील
परिवर्तनशीलता प्रगति का परिचायक है, आवकार्य भी ।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘ 
फ़रीदाबाद - हरियाणा
ये सत्य है कि पुस्तकों में पंख होते हैं ।  किताबें जिंदगी को बदलने का माद्दा रखतीं हैं । हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं किंतु जब चर्चा स्कूल - कालेज की पुस्तकों के संदर्भ में हो तो ये बात आंशिक रूप से ही सही होती है ।
जिम्मेदार इंसान बनने के लिए संस्कार की आवश्यकता होती है , जो माता- पिता , गुरुजन, सामाजिक परिवेश , घर का वातावरण आदि से ही आते हैं । नैतिक मूल्यों का विकास केवल पुस्तकों से नहीं हो सकता है ।
प्राचीन समय में गुरुकुल, दादी व नानी की कहानियाँ ये सभी बच्चों को उनके कर्तव्यों का बहुत ही सरल तरीके से खेल- खेल में ही प्रशिक्षित कर देते थे ।
नई शिक्षा नीति में इन्हीं मूल्यों व प्रयोगात्मक शिक्षा पर जोर देने की योजना है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
वर्तमान  समय  आपाधापी  का  है, स्वार्थ  सिद्धि  का  है, जिम्मेदारी  से  अधिकांश  लोग  भागते  हैं  ।  
       पुस्तकें  अवश्य  जिम्मेदार  इंसान  बना  सकती  हैं  यदि  उन्हें  गुना  जाए  अर्थात  उनमें  निहित  ज्ञान  को  जीवन  में  उतारा  जाए  अगर  ऐसा  नहीं  है  तो  ये  सिर्फ  डिग्री  और  नौकरी  का  जरिया  बन  कर  रह  जाती  हैं ।  हम देख  रहे  हैं  कि  लगभग  ऐसा  ही  हो  रहा  है  । 
        पुस्तकें  पढ़ने  का  उद्देश्य  नौकरी  के  साथ-साथ  ज्ञानार्जन  होना  जरुरी  है  ।  साथ  ही  पुस्तकें  ऐसी  हों  जिससे  मानवीय  गुणों  का  विकास  हो  सके  । व्यक्ति  का  शारीरिक, भौतिक, मानसिक  तथा  आध्यात्मिक  विकास  हो  सके  और  साथ  आर्थिक  रुप  से  समर्थ  बना  सके  तो  निश्चित रुप  से  ऐसी  पुस्तकें  जिम्मेदार  इंसान  बना  सकती  है  ।   
        --बसन्ती  पंवार
      जोधपुर   राजस्थान 
केवल  स्कूल, कॉलेज की मोटी मोटी किताबें पढ़कर ही व्यक्ति जिम्मेदार  नागरिक नहीं बनता ,इसमे कोई दो राय नहीं है कि स्कूल, कॉलेज की पुस्तकीय शिक्षा से ज्ञान का विकास होता है किंतु यह केवल किताबी ज्ञान होता है !बचपन में हमें घर और स्कूल में हमें अनुशासन में रहना सिखाया जाता है और इसी अनुशासन से हममे विवेक, विनय, संयम, समय प्रबंधन,आत्म-विश्वास, सकारात्मकता, मनोबल एवं सबसे अहम् बात जिम्मेदारी समझने लगते हैं! शिक्षा सेवा नैतिक जिम्मेदारी का बोध होता है! पुस्तकीय ज्ञान एवं डिग्री लेकर सही मायने में जब हम जिंदगी में उतरते हैं ,हमारा आमना सामना लोगो के बीच रहकर उनके सुख-दुख, व्यवहार, कमिया खासियत, तकलीफें, हमे क्या करना चाहिए, कैसे करना है आदि आदि अनेक बातें का सामना करते हैं और यहीं हम बहुत कुछ सीखते हैं! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में ही रहकर हम एक जिम्मेदार नागरिक बनते हैं! 
प्रथम तो बचपन में घर की पाठशाला में ही हमे एक अच्छा इंसान बनने की शिक्षा दी जाती है! हां स्कूल, कॉलेज में गुरु से हमें अच्छे नागरिक बनने के साथ साथ बौद्धिक शिक्षा भी दी जाती है! आज शिक्षा हमारे जीवन में अहम् स्थान रखती है हमारे ज्ञान का विस्तार होता है किंतु अच्छे नागरिक का खिताब हासली करने के लिए हममें किताबी ज्ञान के अलावा  जीवन का वास्तविक ज्ञान, नैतिक ज्ञान, एवं संस्कारी होने के साथ जीवन में प्रेक्टीकल और अनुभवी होना आवश्यक है !
वो कहते हैं न पढ़ तो लिया पर इंसान न बन सका !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
आज शिक्षा प्रणाली में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं जो आगामी वर्षो में कितने सहायक होंगे यह सब अभी समय के गर्भ में है।लेकिन हमारे बच्चों को स्कूल कालेज में मिलने वाली शिक्षा कागज़ी ज्ञान तक ही सीमित है। जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अच्छी नौकरी पाने हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि समाज में यह हुआ कि परिवार में समाज में आपसी तालमेल खत्म होने लगा और समाज भौतिकवाद में फंस गया।और अपने नैतिक मूल्यों को भूल गया।धीरे धीरे इससे समाज में उच्च मध्यम वर्ग विकसित तो हो गया परंतु अपने जीवन मूल्यों को खोता गया।
कोरा किताबी ज्ञान किसी को भी जिम्मेदार इंसान नहीं बनाता है। पहले स्कूल में गुरुकुल में सब काम अपने हाथों से करवाया जाता था। विद्यार्थियों को आपसी सामंजस्य स्थापित करके अपने सारे कार्य करने होते थे। आत्मविश्वास, कार्यकुशलता, निपुणता तथा सही समय पर लिए गए निर्णय उनमें नैतिकता के साथ मनोबल भी भरते थे।
जिससे विद्यार्थी अपनी शिक्षा के बाद जब समाज में अपना कार्यक्षेत्र संभालते थे तो एक स्वस्थ समाज का निर्माण होता था। तभी उस समय आपराधिक गतिविधियां न के बराबर थी। लोग अपनी संस्कृति से जुड़े थे।
आज फिर से हमें अपने समाज को नवदिशा देने के लिए नैतिक मूल्यों की खाद से पोषित करना होगा ताकि भावी समाज के नागरिक अपनी संस्कृति, अपनी परम्परा और अपनी धरोहर के साथ एक जिम्मेदार भ्र्ष्टाचार रहित नागरिक बन सके।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
शिक्षा ही प्रगति का मूल कारण शिक्षा के द्वारा ही नित नये विकास भी संभव है स्वामी विवेकानंद जी ने भी शिक्षा को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया
निश्चित ही शिक्षा जीवन में बहुत सर्वोच्च स्थान रखती है ।
स्कूल कॉलेज की पुस्तकों से पढ़कर
विद्यार्थी अपने जीवन के आर्थिक क्षेत्रों 
सामाजिक मान प्रतिष्ठा को बहुत शिखर तक हासिल कर सकता है।
परंतु स्कूल कॉलेज की पुस्तकों से वह जिम्मेदार इंसान बन सकता है यह पूर्णतः सत्य नहीं है।
इसके लिए जीवन का अनुभव भी बहुत जरूरी है साथ ही उसका व्यवहार कुशलता, विनम्रता क्षमता
किसी भी बात की समझ निर्णय लेने की क्षमता उसके वर्तमान और भविष्य में दूरगामी परिणाम की दूरदर्शिता और
वह किसी भी कार्य की किसी भी बात की जिम्मेदारी को निभाने में अपना कितना दायित्व समझता है।
जैसे - गाड़ी चलाना सीखना हो तो गाड़ी चला कर ही अभ्यास किया जा सकता है। उसी तरह जिम्मेदार इंसान बनने के लिए व्यक्ति को स्वयं भी अपने को उसके लिए अच्छे संस्कारों
विचारों का बीज अपने अंदर स्वत:
ही निर्मित करना होता है।
 केवल स्कूल कॉलेज की पुस्तकों से ही जिम्मेदार इंसान नहीं बना जा सकता है स्वयं को तैयार करना होता है।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
आज के विषय पर मेरे मन में दो पहलू नजर आ रहे हैं।
 एक है यह स्कूल कॉलेज की किताबों को पढ़कर ।
स्कूल कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद आज समाज में और देश दुनिया में ऐसी घटनाएं सुनने को मिली  और नजर आ रही हैं कि कोई विश्वास ही नहीं कर सकता।
               जिसमें अकाउंट हैक करने से लेकर चाइना में कोरोना वायरस वायरस बनाने तक की घटना 
कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद कोई भी युवा मजदूरी या दूसरे की करना पसंद नहीं करता और उसे जब रोजगार प्राप्त नहीं होता, खर्चे उनकी पहले ही इतने बढ़ जाते हैं कि भी कॉलेज की पढ़ाई के बाद आदत पड़ जाती है । 
तब   किस ढंग से  और कन्हा से पैसे लाए । या तो नहीं चोरी करने की आदत पड़ जाती है। और जब भी इधर-उधर भटकते हैं।
 बड़े माफियाओं की नजर ऐसे बच्चों पर भी रहती हैं जिसके कारण कुछ युवा बच्चे चरस ,गांजा आदि बेचने के चक्कर में रास्ते से भटक जाते हैं। और फिर अच्छे इंसान नहीं बन पाते ।
क्योंकि अब तक सिर्फ किताबी ज्ञान ही देना था। और बिना फेल करें  अगली कक्षाओं तक में बिना किसी ज्ञान के जाने वाले बच्चे चोरी डकैती लूटपाट करने लग जाते हैं तथा जी ने विशिष्ट ज्ञान होता है वह अपने विशिष्ट ज्ञान को आम की जगह ने लगाकर गैर जिम्मेदाराना का कार्य करने लग जाते हैं।
इस विषय का दूसरा पहलू
 दूसरा पहलू  यह है कि स्कूल कॉलेज की पुस्तकों से जिम्मेदार इंसान बन सकते हैं। जी हां स्कूल कॉलेज की पुस्तकों से युवा जिम्मेदार इंसान बन सकते हैं बिना पढ़े जो इस काम को कर रहे हैं आजकल पुस्तको कॉलेज की पुस्तकों को  बेचने का व्यवसाय इतना बढ़ चुका है कि इस व्यवसाय को करके एक बिना पढ़ा इंसान भी जिम्मेदार इंसान बन सकता है किताबों को ऑर्डर लेने वह प्राइवेट स्कू लो मैं जाता है तथा लाखों करोड़ों का नए सत्र में कमा कर रख लेता है।
वह स्कूल स्कूल जाता है  या सड़क के किनारे किताबे बेचता है। 
स्कूलों कालेजों की पुरानी किताबों को 30 परसेंट पर खरीदना और कुछ  मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे इन किताबों को 60% पर खरीद कर अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं। स्कूल कॉलेज की किताबों को खरीद कर और बेचकर जिम्मेदार इंसान  बन सकते है।
 - रंजना हरित 
बिजनौर -  उत्तर प्रदेश
केवल स्कूल और  कालेज की पुस्तकों से कोई जिम्मेदार नहीं बन सकता ।एक समझदार इंसान अपनी जिम्मेंदारी निभाता है । समझदारी का संबन्ध आचरण से है ।योग्यशिक्षक ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकता है ।हो सकता है कोई  व्यक्ति पैसे के आभाव में शिक्षित न हो सके लेकिन ये  संभव  है उसकी लगन शीलता और परिश्रम उसे एक जिम्मेदार नागरिक बनादे । वह स्वयं के प्रति फिर, परिवार के प्रति ,फिरसमाज और देश के प्रति अपने जिम्मेदारी का निर्वहन करे ।आज कल शिक्षा धन से जुड़ गयी है इसलिए जिम्मेदारी केवल शिक्षा से ही मिलेगी मैं सहमत नहीं हूँ ।जिम्मेदारी उठाने के लिए सबके प्रति प्रेमकी भावना का होना जरुरी है साथ में विवेक और परिश्रम होना चाहिए तभी इंसान जिम्मेदार बन सकता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
       पुस्तकें ही ज्ञान बांटती हैं। जिनसे जिम्मेदारी का भी ज्ञान मिलता है। किन्तु इस बात से भी मुकरा नहीं जा सकता कि अशिक्षित इंसान भी अच्छे और जिम्मेदार इंसान हुए हैं और शिक्षित जिम्मेदारी से मूंह फेरते भी देखे जाते हैं।
       उल्लेखनीय है कि कमल कीचड़ में पैदा होते हैं और गली की रोशनी में पढ़ने वाले सर्वोच्च पदों पर आसीन हुए हैं। 
      राष्ट्रीय निर्माण में जिम्मेदारी का जितना योगदान अनपढ़ मजदूरों का है उतना योगदान पढ़े-लिखों का कहां है?
        अतः जिम्मेदारी संस्कृति और सभ्यता के संयुक्त संस्कारों का प्रतीक है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी नहीं! स्कूल या कॉलेज की पुस्तकों से जिम्मेदार इंसान तो नहीं बन सकते, किंतु- स्कूल या कॉलेज में जो पुस्तकीय  ज्ञान का अर्जन कराया जाता है उससे बहुत हद तक जीवन के व्यवहारिक पक्ष समझ में अवश्य ही आते हैं! जैसे:-ज्ञान- अज्ञान ,सत्य- असत्य, आदर- निरादर ,अच्छा बुरा इत्यादि बातें पुस्तकीय  शिक्षा और स्कूल जाने वाले अधिकांश छात्र- छात्राओं को ज्ञानार्जन कराया जाता है जिससे ज्ञान तो हो जाता है, किंतु घर परिवार ,व्यक्ति विशेष को किस प्रकार से सुचारू रूप से चलाया जाए उससे वह अछूते रह जाते हैं और जब तक व्यक्ति विशेष के ऊपर जिम्मेदारी का बोझ नहीं पड़ेगा या नहीं डाला जाएगा या नहीं डाला जाता है तब तक एक जिम्मेदार इंसान नहीं बन सकता है।
   स्कूली शिक्षा जिम्मेदारी को नहीं सिखाती है किंतु आंशिक संस्कार अवश्य देती है, जिससे व्यक्ति का विकास होता है किंतु जिम्मेदारी का नहीं।
अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि स्कूल या कॉलेज में पुस्तकीय ज्ञान  से कोई जिम्मेदार इंसान नहीं बन सकता है और यही सत्य भी है।
- अन्नपूर्णा मालवीय सुभाषिनी 
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " स्कूल - कालेज की पुस्तकें शिक्षा के स्तर को  दिखाती है । परन्तु युवा वर्ग को सही दिशा देने में सक्षम नज़र नहीं आती है । जिससे युवा वर्ग भटक गया है ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान



Comments

  1. स्कूल कॉलेज में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकें ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है और विद्यार्थी के चहुमुखी विकास के विकल्प तैयार करती है। परिवार में माता-पिता एवं बुजुर्गों के द्वारा जिम्मेदारी का एहसास जिन बच्चों को कराया जाता है वे स्कूल में भी जिम्मेदारी से कार्य करते हैं। हालांकि इसमें कुछ अपवाद हो सकते हैं। कुछ बच्चे अपनी जिम्मेदारी समझने लगते हैं जबकि कुछ नहीं समझते। यही कारण है कि मूल्यांकन में कुछ बच्चे अच्छे अंक प्राप्त करते हैं जबकि कुछ नहीं। जब तक बच्चे के अंदर स्वयं से जिम्मेदारी का भाव पैदा नहीं होगा वह जिम्मेदारी से काम नहीं कर सकेगा। यह गुण उसे पैदा करना जरुरी है। पुस्तके ज्ञान का भंडार होती हैं। उनमें सभी तरह की शिक्षा मिलती है किंतु आत्मसात करके उसे व्यावहारिक जीवन में अपनाने की जिम्मेदारी छात्र छात्रा की स्वयं की होती है ।जब तक यह गुण उनके अंदर विकसित नहीं होगा तब तक वे कभी भी जिम्मेदार नहीं बनेंगे बल्कि उपद्रवी बनकर देश का, समाज का, परिवार का नुकसान करते रहेंगे। कहावत है "खाली दिमाग शैतान का घर"। वही हाल इन अधकचरा विद्यार्थियों का हो जाता है और वे दुष्प्रवृत्तियों का शिकार होकर उत्पाती जीव बन जाते हैं।

    श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
    नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?