रामराज्य के लिए क्या सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य होनी चाहिए ?
रामराज्य के लिए सभी की हिस्सेदारी होनी चाहिए । तभी हम सब रामराज्य की कल्पना कर सकते हैं। बिना सभी की हिस्सेदारी के रामराज्य सम्भव नहीं है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
राम राज्य के लिए सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य होनी चाहिए रामराज्य का कार्य होता है प्रजा को लूट से बचाना ।
परंतु आज हमारे देश में ऐसे राज्य हैं जो प्रजा को लूट ना हीं राज्य का काम होता है ।
परंतु हमारे देश में सभी राज्यों की हिस्सेदारी है प्रजा को लूटना ।
प्रजा के ऊपर ज्यादा खर्च करने के बदले अपने ऊपर ज्यादा खर्च करते हैं ।
भारत में प्रजा को चाहिए कि लूट का विरोध करें अन्याय का विरोध करें शोषण और शोषित के खिलाफ आवाज बुलंद कराएं। राज्य की नीतियां ठीक कराएं।
जिस देश का राजा सत्यवादी दूरदर्शी और राजकोष प्रजा के लिए नहीं।
वरन् राजकोष अपने ओर अपने परिवार के लिए ही है।
जिस राज्य का राजा दूरदर्शी जितेंद्र न हो प्रजा को भी चाहिए कि रामराज लाने में अपनी भागीदारी निभाएं । चुनाव के समय नेता से पूछे कि रामराज क्या है ?नेता को ही नहीं पता होता कि राम राज क्या है ?तो वह अपने राज्य में क्या रामराज लाएंगे ? ओर कैसे लाएंगे ?
कालिदास के रघुवंशम में 19 अध्याय हैं 12 वीं अध्याय में 12 वा अध्याय हैं "कश्चित् सर्ग "
यानी इसका हिंदी में अर्थ है (क्या आप यह करते हैं ?)रामराज स्थापना के लिए जरूरी है ।
कि राजा अपनी प्रजा को दैहिक ,दैविक ,और भौतिक दुखों से मुक्त कराएं निस्वार्थ भाव से भाग सेवा करें। सेवा के बदले उपेक्षा ने हो ।
क्वांटिटी के बदले क्वालिटी को प्राथमिकता हो ।पानी की, शिक्षा की ,अनन खाद्यान्न की उचित व्यवस्था हो। सैनिको और प्रजा में सुरक्षा की भावना हो
राज्य की नीतियां ठीक कराई जाए जिस राज्य में एक रुपए में 15 पैसे खर्च प्रजा के ऊपर और 85 पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता हो ऐसी नीतियों का विरोध क राया जाए तब ही राम - राज्य की कल्पना सार्थक हो सकती है।
अतः सभी की जिम्मेदारी या हिस्सेदारी अवश्य होनी चाहिए।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
हिंदू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्शासन राम राज्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। वर्तमान परिदृश्य में राम राज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्शासन के रुपक के राम राज्य, लोकतंत्र का परिमार्जित रुप में माना जा सकता हैं वैश्विक स्तर पर राम राज्य की स्थापना महात्मा गांधी की इच्छा शक्ति स्वतंत्रता के पूर्व का विकेन्द्रीकरण था। उसमें गरीबों की सम्पूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्म पूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जायेगा, तदसंबंध में राम राज्य की धारणा को लेकर काफी गंभीरता पूर्वक बहस हो चुकी हैं। हम तो राम राज्य का अर्थ स्वराज्य, धर्म राज्य, लोक राज्य करते हैं, वैसा राज्य तो तभी संभव हैं, जब जनता धर्मनिष्ठ और वीर्यवान, तटस्थवान बने, अभी तो कोई सदगुणी राजा भी यदि स्वयं प्रजा के बंधन काट दे, तो भी प्रजा उसकी गुलाम बनी रहेगी, हम तो राज्यतंत्र और राज्य नीति को बदलने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं, बाद में हमारे सेवक के रुप में भारतीय रहेंगे। हमें इसकी चिंता नहीं करनी पड़ेगी। हम तो जनता को वृहद स्तर पर बदलने का प्रयास भी नहीं करते। हमें तो स्वयं अपने आप को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। जिस तरह से पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं, उसी तरह से महिलाओं की भी हिस्सेदारी अनिवार्यता रहेगी तथा साथ ही समस्त आमजनों की हिस्सेदारी के साथ ही साथ समानता के अधिकार को सर्वोपरिता प्राथमिकताओं की ओर ध्यानाकर्षण करना अनिवार्य होगा जिसके लिए काफी हद तक वैचारिकताओं को अग्रेषित करने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं अन्यथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सकारात्मक बदलाव की जगह नकारात्मक सोच में परिवर्तित हो जायें?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
घर, राज्य या राष्ट्र तभी विकास कर सकता है जब सभी की हिस्सेदारी तय और जवाबदेह हो। उन सबका आपसी तालमेल हो। वह सब आत्मनिर्भर, ईमानदार और घर/राज्य/राष्ट्र के प्रति समर्पित हों। यही तर्क प्रत्येक सरकार पर लागू एवं अनिवार्य हैं।
वर्तमान युग में भारतीय सरकार की बात करें तो शासन हो या प्रशासन, भाजपा सदस्य हो या वरिष्ठ पदाधिकारी सब मोदी जी की जय कहने में ही अपनी परम राष्ट्रभक्ति समझते हैं। किन्तु अपनी हिस्सेदारी पर चुप्पी साध लेते हैं। कोई भी अपने योगदान का उल्लेख करने में सक्षम नहीं है। जिसे घर/राज्य/राष्ट्र का दुर्भाग्य कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।
देखने को मिलता है कि भारत के लोकतंत्र को सशक्त करने वाले चारों स्तम्भों की हिस्सेदारी संतोषजनक नहीं है। जम्मू-कश्मीर के वर्तमान उप राज्यपाल का त्यागपत्र भी कई महत्वपूर्ण एवं संदेहास्पद प्रश्नों का सूचक है।
उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण भारत को पारदर्शी बनाने/कहने के बावजूद न्यायपालिका पारदर्शी नहीं है। जबकि कानून बनाने वाली विधानसभा एवं संसद सम्पूर्ण पारदर्शी है। जिसके कारण भारतीयों को न्याय मिलता ही नहीं। इसलिए न्याय के अभाव में माननीय पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी द्वारा जय जवान जय किसान का नारा प्राप्त करने वाले 'जवान व किसान' आत्महत्या कर रहे हैं। जिनमें अब अभिनेता भी शामिल हो गए हैं। जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण एवं निंदनीय है।
कहना अनिवार्य होगा कि तथाकथित सुशासन का प्रतीक 'रामराज्य' चाहने से नहीं बल्कि करने से आएगा। जिसमें आम जन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक, चपरासी से लेकर उच्च प्रशासनिक अधिकारी तक, संतरी से लेकर मंत्री तक, पीड़ित से लेकर संरक्षक तक, मुंसिफ से लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश तक एवं पत्रकारों सहित लोकतंत्र के चारों सशक्त स्तम्भों की निष्पक्ष एवं जवाबदेह हिस्सेदारी अनिवार्य होनी चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हाँ, राम राज्य में सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य होनी चाहिए। क्योंकि राम राज्य का मतलब ही है पूर्ण समानता। जबतक सभी की भागीदारी नहीं होगी तो फिर पूर्ण समानता कैसे होगी। सभी जाति सभी धर्म के लोगों की भागीदारी होनी चाहिए क्योंकि हिस्सेदारी नहीं होने से वो अपने को ठगा हुआ या वंचित हुआ समझेगा।
राम राज्य इसीलिए तो सबको प्रिय लगता है क्योंकि उसमें सबकी सुनी जाती थी और उसे उतना सम्मान दिया जाता था। नहीं तो क्या जरूरत थी एक साधारण आदमी के बात को महत्व देते हुए सीता का राज्य से निष्कासित करने को। सीता की तो अग्नि परीक्षा हो चुकी थी फिर उसे जंगल में छोड़ने का क्या तात्पर्य। वो एक राज्य की महारानी थी वो चाहती तो नहीं भी जा सकती थी। राम चाहते तो उसे नहीं भी निकाल सकते थे लेकिन उन्हें ये स्थापित करना था कि उनके राज्य में सबका समान अधिकार है। राज्य केवल राम का नहीं बल्कि प्रजा का भी है।उसकी भी समान हिस्सेदारी है राज्य में ।
राम चाहते तो कुछ भी कर सकते थे लेकिन वो हर बात में यहाँ तक कि छोटी-छोटी बातों में भी सबकी राय लेते थे। यानी वो राज्य में सबकी हिस्सेदारी समझते थे।
ऐसे यदि हम सामान्य रूप से देखें हिस्सेदारी के बारे में समझे तो बात और स्पष्ट हो जायेगी।
हम अपने खुद के परिवार में यदि हर काम में सबकी हिस्सेदारी कर देते हैं तो वो सुचारू रूप से चलता है। हर सदस्य अपना कार्य सही ढंग से करते हैं। उसे अपना समझते हैं। ठीक इसी तरह जिस राम राज्य के बारे में हम सभी कहते हैं चाहते हैं उसमें भी ऐसा ही होना चाहिए तभी सही राम राज्य कहलायेगा।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं बंगाल
जी बिल्कुल जरूरी है अब जब राम मंदिर का शिलान्यास शांति एवं सौहार्दपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ है तो समझो एक नए युग का आगाज हुआ है ।
अब रामराज्य के लिए हर किसी की हिस्सेदारी जरूरी हो गई है। अब लोगों ने माना है कि श्री राम राष्ट्र के स्वाभिमान हैं,,, महानायक है ,,,उनको कलंकित कर देश आगे नहीं बढ़ सकता।
मेरी एक रचना है ,,,
मां भारती की आन का,
वीरों के बलिदान का ।
राम मंदिर प्रतीक है,
राष्ट्रीय स्वाभिमान।
जी यह पंक्तियां बिल्कुल पूर्णतया सत्य है ,,पूरा देश आज राम को नायक मानकर चलने को तैयार है। चाहे वह कोई भी धर्म हो, संप्रदाय हो ,वर्ग हो।
यही नये युग का आगाज है,,, स्वागत है ,,।
रामराज्य के मुख्य तत्व हैं , राजा का समदर्शी होना, देश में सभी के साथ एक समान व्यवहार, सुरक्षा व न्याय, सभी का ख्याल रखना।
रामराज्य में राजा जनता का प्रतिनिधि होता है ।अब जब राम मंदिर का खुल कर स्वागत किया जा रहा है तो आशा की जानी चाहिए कि सच्ची आस्था भी जागृत हो ,और जब सच्ची आस्था राम के प्रति जागृत होगी तो जाहिर है लोगों के विचार में, व्यवहार में ,आचरण में परिवर्तन आएगा ,,,,चाहे वह राजा हो या प्रजा, अर्थात बदलाव का समय आ गया है।
लेकिन बदलाव तभी संभव होता है तभी सार्थक होता है जब हर इकाई स्वयं को बदलना चाहे।
श्री राम तो भारत की आत्मा है ,,,भारत का हृदय हैं,,,,
अब निश्चय ही उनकी कृपा दृष्टि मां भारती के लालों पर पड़ेगी। राम जी समदर्शी थे वे व्यक्ति से लगाकर पशु पंछी और निर्जीव वस्तुओं पर भी दया करते थे उनका ख्याल रखते थे ।
जाति ,धर्म ,वर्ग किसी भी चीज का पक्षपात उनके नजर में नहीं था ।
वह एक सच्चे समदर्शी थे,,, इसीलिए संसार ने उन्हें ईश्वर माना और उनका राज्य,,, रामराज्य एक अमर राज्य बना ।
उन जैसा राजा बनना हर किसी राजा का स्वप्न होता है।लेकिन उसमे प्रजा की सहभागिता भी जरूरी होती है अकेले राजा के चाहने से राम राज्य नही बनते ।
रामराज्य की अवधारणा किसी धार्मिक संकीर्णता की द्योतक नही है । मैंने श्री राम के समदर्शी होने को कुछ हद तक अपनी इस कविता के जरिये उतारने की कोशिश की है,,,,
राम हृदय शिव वास है शिव मे हैं श्री राम ।
सीता हिय श्री राम है ,लखन लाल के राम ।
कौशल्या के राम वह कैकेयी के राम ।
सदा सत्य श्री राम है भरत भ्रात श्री राम।
विश्वमित्र के राम वह गुरु वशिष्ठ के राम।
गिद्धराज के राम वह जामवन्त के राम ।
सुग्रीवहि प्रिय राम हैं कपि रीछन के राम।
उनसा जग कौन हैं दसरथ हिय श्री राम।
हनुमत हिय मे राम है शबरी के श्री राम ।
बाल्मीकि के राम वह तुलसिदास के राम ।
वह रहीम के राम थे वह कबीर के राम ।
शिव शंकर के प्राण वे जगदपिता श्री राम।
और अधिक अब क्या कहूँ भारत हिय श्री राम ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
रामराज्य के लिए सभी धर्मों की हिस्सेदारी होनी ही चाहिए क्योंकि यह हिन्दुस्तान श्रीराम का ही है। क्योकि रामराज्य में सभी धर्मों के लोगो को प्राथमिकता दी जाती है। जाती धर्म बाटने का काम रामराज्य में कभी नही हुआ। और रामायण में भी नही है कि लोगो को जाती धर्म के नियत से देखा जाए।भगवान राम सबके थे। उन्होंने समस्त भारतवासी को अपना माना। यदि यह प्रश्न इसलिए आज उठ रहा है क्योंकि धर्म के आकाओं ने अपने फायदे के लिए लोगो को भड़काने का जोरो से किया है। हम जब हर धर्म के लोगो के साथ और सहमत है तो लोगो को भी रामराज्य के लिए हिस्सेदारी होना सबके लिए अनिवार्य है। यह हमें मानना पड़ेगा कि रामराज्य में सिर्फ पाप करने वालो का ही नाश हुआ है।लेकिन पापियो को भी सुधरने का एक मौका दिया गया था। और आज भी लोग राम के नियम पर चलते है कुछ लोगो को छोड़कर जो धर्म विरोधी बात करते है।इसलिए सबकी हिस्सेदारी होना अनिवार्य है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
जहाँ तक आज की चर्चा का प्रश्न है कि क्या राम राज्य के लिए सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य है तो यह निश्चित रूप से सही बात है कि किसी भी समाज के लिए सही ढंग से पुष्पित व पल्लवित होने के अवसर ही संपन्नता और सुख का द्वार किसी भी समाज परिवार राज्य और देश के लिए खोलते हैं और यदि ऐसा नहीं है तथा विषमताएे चारों ओर से किसी ना किसी को घेरे हुए हैं तो तब सुख और शांति की कल्पना करना निरर्थक है सभी को समान अवसर प्रदान करके और कमजोर तबके को आगे बढ़ने की प्रेरणा देकर के ऐसा करना संभव है अन्यथा समाज की कोई ना कोई कड़ी जब तक कमजोर बनी रहेगी तब तक संपूर्ण रूप से सुख और शांति की स्थापना करना संभव प्रतीत नहीं होता इसके लिए भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत शिक्षा भी बहुत अनिवार्य है जिसमें परस्पर सहयोग सद्भाव त्याग प्रेम पूर्ण व्यवहार जैसे साँस्कृतिक गुणों का समावेश हो और मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि रखने की प्रेरणा हो तभी यह संभव हो सकेगा जब सभी की भागीदारी इसमें सुनिश्चित होगी और न केवल सुनिश्चित होगी बल्कि सभी अपने आपको एक अच्छे नागरिक के रूप में स्थापित करने का संकल्प भी लेगें तभी यह संभव हो सकेगा इस प्रकार कहा जा सकता है कि राम राज्य की स्थापना हेतू सभी का योगदान अनिवार्य है सभी की हिस्सेदारी आवश्यक है
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
रामराज्य यानी आदर्श शासन जिसमें न सिर्फ अपने देश की जनता बल्कि समग्र विश्व के कल्याण की भावना निहित हो। रामराज्य में किसी भी मनुष्य को दैहिक, दैविक और भौतिक समस्याओं से परेशान नहीं होना पड़ता। सभी प्रेम और सौहार्द से रहते हैं।
जब तक मुख्य-मुख्य कार्यों में जन-जन की भागीदारी नहीं होगी, सभी के विचारों को, भावों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं होगी तब तक रामराज्य असंभव है।
आधुनिकता के नाम पर हमने सिर्फ लिबास
बदला है पर विचार नहीं। आज भी लोग संकीर्ण विचारों में जकड़े हुए देखे जाते हैं। मीडिया में भी वंचित तबकों की अभिव्यक्ति को बहुत कम स्थान मिलता है। आज भी प्रमुख पदों पर वंचित तबकों की उपस्थिति नाम मात्र है।
जाति व्यवस्था रामराज्य के लिए घातक है। गांधी जी ने भी कहा था कि जाति के छोटे-छोटे बाड़ों का नाश होना चाहिए। जातियां हमारे देश के विकास को, रामराज्य को रोकने का कार्य करती है।
एक राष्ट्र में एक संविधान, एक भाषा, एक राष्ट्रीय ध्वज फिर एक राष्ट्रधर्म क्यों नहीं? जब तक हम इंसान को इंसान नहीं समझेंगे, ऊंच-नीच की भावना से देखेंगे तब तक हम एक साथ मिलकर प्रेमपूर्वक कार्य नहीं कर सकते।
जिस तरह एक अकेली उंगली कमजोर पड़ जाती है पर पांचों उंगलियां मिलकर मुट्ठी बन कर शक्ति का प्रदर्शन करती है ठीक उसी तरह जब सभी जाति -धर्म, पक्ष-विपक्ष और हर वर्ग के लोग एकजुट होकर एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते हुए कार्य करें हर दल को विश्वास में लेकर आगे बढ़े तभी कार्य में पूर्णता संभव है।
दिखावे पर पैसा न बहा कर अनिवार्य समस्याओं पर गंभीरता से विचार कर जो लोगों के हित में हो जनजीवन को लाभ पहुंचे--ऐसे कार्यों को प्राथमिकता दी जाएगी तभी रामराज्य की कल्पना साकार हो सकती है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता के उपरांत देश में रामराज्य स्थापित करने का सपना देखा था। लेकिन कुछ चुनिंदे लोग इस पर ध्यान नहीं दिए। उनका मानना था रामराज्य एक खास धार्मिक संप्रदाय से है और उससे जोड़कर देख रहे थे।
जिस संप्रदाय के लोग को कुर्बानी के भावना अपने संप्रदाय से आगे नहीं बढ़ती वह खुद तो स्वार्थी है ही, वह अपने संप्रदाय को भी स्वार्थी बना रहा है।
रामराज्य के मतलब आदर्श समाज का ही रामराज्य का नाम है। कोई है समझने की भूल ना करें कि रामराज्य का अर्थ हिंदुओं का शासन भारत पर परमात्मा का राज्य........ ऐसे राज्य की स्थापना से न केवल भारत की संपूर्ण जनता को बल्कि समग्र संसार का कल्याण होगा।
आज आर्थिक असमानता है थोड़े के पास करोड़ो है ,और बाकी जनता सूखी रोटी के लिए तरसते हैं । भयानक असमानता के कारण रामराज्य की कल्पना की जा रही है।
आज राम जन्मभूमि के शुभ अवसर पर चारों ओर *श्रीराम*की आवाज गूंज उठी घर-घर में दीपावली के माहौल जैसा वातावरण हो गया रोशन से पुरे देश जगमगा उठा लोगों मे अनूठा उत्साह देखा गया।
तुलसीदास एक दोहा में है लिखे हैं:- दैहिक दैनिक भौतिक तापा।
रामराज नाही कहुहि व्याप।।
सब नर करहिं परस्पर।
चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नीत।।
यानी रामराज में किसी भी मनुष्य को दैहिक दैविक और भौतिक समस्याओं से परेशान नहीं होना पड़ता।सभी मनुष्य आपस में प्रेम से रहते ।वे नीति और मर्यादा में तत्पर रहकर अपने -अपने मनुष्य चितधर्म का पालन करें।
लेखक का विचार:- रामराज्य किसी एक संप्रदाय की नहीं है पूरे देश के लोग का है चाहे किसी भी धर्म को मानने वाले क्यो न हो, इसे मे हिस्सेदारी आवश्यक है। इससे पूरे दुनिया भी लाभान्वित होगा।
रामराज्य का मतलब *सबका साथ सबका विकास* यही है मूल मंत्र।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
कभी आपने 'रस्साकसी' (Tug-of-War) का खेल देखा हो या खेला हो तो आज की परिचर्चा के विषय का उत्तर बड़ी आसानी से मिल जायेगा।
इस खेल में पहले व्यक्ति से लेकर अन्तिम व्यक्ति तक को पुरजोर ताकत लगानी होती है, तभी विजय प्राप्त होती है। कभी किसी टीम के प्रारम्भिक, मध्य अथवा अन्त का कोई एक खिलाड़ी भी यदि यह सोचकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेता है कि मेरे अकेले के निष्क्रिय होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि टीम के बाकी खिलाड़ी तो रस्सा खींच ही लेंगे, बस उस एक व्यक्ति की सोच पराजय का कारण बन जाती है।
इस उदाहरण का वर्णन इसीलिए किया है क्योंकि
राज्य की व्यवस्था में एक लघु इकाई से लेकर सर्वोच्च स्थान तक, नागरिकों से लेकर राजनयिकों तक सभी के अपने-अपने दायित्व और कर्तव्य होते हैं। ये दायित्व एक-दूसरे को प्रभावित भी करते हैं। यदि किसी ने भी अपनी जिम्मेदारियों में कमी रखी तो राज्य व्यवस्था प्रश्नों के घेरे में आ जाती है और जो राज्य कटघरे में खड़ा हो जाये, वह रामराज्य कैसे हो सकता है? इसलिए मैं स्पष्ट रूप से यह कहना चाहूंगा कि रामराज्य के लिए सभी की जिम्मेदारी अनिवार्य होना चाहिए।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
रामराज्य--
बिना सहयोग के बिना संगठन की एकता के बिना एकजुट हुए क्या रामराज्य संभव होगा कैसे --?
जब हम सभी चाहते हैं कि सभी को समान जीवन जीने का अधिकार हो सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति हो
सभी को रोजगार बेरोजगारी खत्म हो
समान शिक्षा समान अधिकार किसी भी प्रकार का भेदभाव ना किया जाए
जाति धर्म से ऊपर उठकर बिना भेदभाव के चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र चाहे टेक्नोलॉजी का चाहे सरकारी नियुक्तियां यदि समाज में हर तबके के लोगों को यह सुविधाएं प्राप्त होंगी
पर इसके लिए समाज के भी हर एक तबके के हर एक जाति धर्म को एक रुप होकर एकजुट होकर सहयोग करना नितांत आवश्यक है तभी यह
संभव हो सकता है सभी की हिस्सेदारी कम या ज्यादा हो लेकिन होनी सभी की चाहिए राम राज्य के लिए यह नितांत आवश्यक है।
जैसे- राम सेतु पुल बनाने में सभी ने
उस में सहयोग किया तब वह राम सेतु पुल बनकर तैयार हुआ मानव समुदाय के साथ वानरों ने गिलहरी ने पशु पक्षियों ने भी साथ दिया।
सभी की हिस्सेदारी होगी सभी की जिम्मेदारी होगी तभी रामराज्य संभव है।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
रामराज्य को सुशासन के संदर्भ में लिया जाता है। हमारा देश लोकतांत्रिक प्रणाली वाला देश है। बहुमत से चुनी हुई सरकार प्रशासन करती है। कभी-कभी संगठनों से मिलकर भी केंद्रीय संगठन बन जाता है। पर हर हालत में हर संगठन के प्रतिनिधि जनता से चुनकर आते हैं। अतः निश्चित रूप से राम राज्य के लिए उनकी हिस्सेदारी अनिवार्य होना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि जनता ने उन्हें देश की भलाई कार्य के लिए ही चुना है। देश हित में हिस्सेदारी तो सभी की होती है किंतु प्रजातांत्रिक देश में जनता को कार्य करने की आजादी होती है। स्वविवेक से अपने कार्य का निर्णय वह स्वयं करती है जबकि जनप्रतिनिधियों को उसकी बाध्यता रहती है। इसलिए प्रशासन चुस्त-दुरुस्त और ईमानदार होना चाहिए। निष्पक्षता से जनहित के कार्य किए जाना उनकी अनिवार्य जिम्मेदारी है ।जनता सहयोग कर सकती है हर कार्य के लिए उसे बाध्य नहीं किया जा सकता। यह उसकी निजता का हनन होगा। जो अत्यावश्यक हों, देश हित में हों, जनहित में हों, केवल उन्हें ही अनिवार्य किया जा सकता है। राम राज्य में भी प्रशासन पर अनिवार्यता थी प्रजा पर नहीं ।वह स्वविवेक से चलती थी। यही कारण है कि गर्भवती होते हुए भी सीता को महल छोड़ना पड़ा । अग्निपरीक्षा पहले ही दे चुकीं थीं और अंत में धरती मां की शरण लेनी पड़ी।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
रामराज्य मे सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य होना चाहिए।तभी संपूर्ण जगत मे रामराज्य की सार्थकता सिद्ध होगीं।मन की गहराई से रामपाल की भक्ति करना ही रामराज्य की नींव डाली जायेगीं।सभी लोग की एकता और अखंडता ही अनुकूल वातावरण को एक रामदेव की नगरपालिका में शांतिपूर्ण ढ़ंग से रामराज्य की स्तंभ पडे़गीं।वर्षों पूर्व देश की करोड़ों हिंदुओं के लिए रामराज्य ऐतिहासिक धरोहर है। पिछले लगभग 500 वर्षों से जो अयोध्या में श्री राम लला का मंदिर निर्माण का सपना था अब वह पूरा होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। मौके पर आर एस एस के प्रमुख मोहन भागवत सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित हुए।यह दिन हिंदुओं के लिए उत्सव का है और देश भर में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में जहां हिंदू सीखें वहां दीपोत्सव मनाया जा रहा है। अब देश में राज्य का सपना साकार होने जा रहा है।
रामराज्य में सभी का हिस्सा होना अनिवार्य है। रामचंद्र जी का शासन प्रजा के लिए अत्यंत सुखदायक था। वह शासन जिसमें रामचंद्र के शासनकाल का सुख है। हिंदू संस्कृति में श्रीराम द्वारा किया गया आदर्श शासन रामराज के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के प्रतीक के रूप में किया जाता है। रामराज्य लोकतंत्र परिमार्जित रूप माना जा सकता है। रामचरितमानस में तुलसीदास नहीं रामराज्य पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया। सारे भय, शोक दूर हो गए, एवं दैहिक, दैविक और भौतिक तापो से मुक्ति मिल गई। कोई भी अल्प मृत्यु रोग पीड़ा से ग्रस्त नहीं था। सभी स्वस्थ, बुद्धिमान, साक्षर, ज्ञानी तथा कृतज्ञ थे। बाल्मीकि रामायण में भरत जी राम राज्य के विलक्षण प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं की राजन आपके राज्य पर सासं का 1 माह से अधिक हो गया है। तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बुड्ढे प्राणियों के पास मृत्यु नहीं पटकती है। महिलाएं बिना कष्ट के प्रसव करती है। सभी मनुष्यों के शरीर स्वास्थ्य दिखाई देते हैं। राजन पूर्व वासियों में बड़ा हर्ष है। मेघ अमृत के समान जल गिराते हैं। हवा ऐसी चलती है कि इसका स्पर्श शीतल व सुखद जान पड़ता है। राजन नगर तथा जनपद के लोग इस पूरी में कहते हैं कि हमारे लिए चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहे।रामराज्य की सुंदरता वास्तविकता को समझना जरूरी है ,रामराज्य मे सबकी भागीदारी ,हिस्सेदारी का होना अतिआवश्यक है।समस्त संसार मे मानव सवेंदनशील हो और रामराज्य स्थापित हों।सभी की हिस्सेदारी होना अनिवार्य होना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
राम राज्य के लिए सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य है तभी तो राम राज्य की प्रमाण मानव समाज में भविष्य में देखने के लिए मिलेगी। रामराज्य होना चाहिए ऐसा आम जनता कहती है। लेकिन रामराज्य का अर्थ क्या है यह समझ में आने से मनुष्य को बड़ा कठिन होने से लगता है रामराज्य कौन लाएगा मनुष्य ही लाएगा क्योंकि मनुष्य ही रामराज्य को प्रमाणित करेगा। राम का अर्थ है आत्मा में रात भर कर या भाव भरकर मध्यम मार्ग में जीना ही राम राज्य है भाव भर कर देना का मतलब है संबंधों में तृप्त के साथ जीना ही भाव के साथ जीना है एवं अपने मन तन धन को औरों के लिए खुश होकर समर्पित करना ही मनुष्य का कर्तव्य एवं दायित्व है यही कर्तव्य दायित्व राम राज्य की स्थापना करती है अतः हर मनुष्य को रामराज्य की हिस्सेदारी होना जरूरी है रामराज्य होना चाहिए सरल लगता है और जब हिस्सेदारी निर्वाहन करना होता है तो कठिन लगता है। मंदिर बना लेने से रामराज्य नहीं हो जाएगा। राम की आचरण का पालन करने से ही राम राज्य की स्थापना होगी नहीं तो मात्र दिखावा कहा जाएगा। अतः राम राज्य की स्थापना में हर व्यक्ति को अपने योग्यता के अनुसार अपने मन तन धन का सदुपयोग कर हिस्सेदारी करना अनिवार्य है यही राम की पूजा है। जो राम की पूजा में अपना मन तन धन समर्पित कर सुख शांति से जीता हुआ दूसरों की सुख शांति जीने में भागीदारी करता है वही राम की पूजा है अतः इस पूजा में सभी को हिस्सेदारी करना अनिवार्य होना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
रामराज्य के लिए सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य होनी चाहिए। बिल्कुल वैसे जैसे किसी पवित्र शरीर के उत्तम संचालन के लिए शरीर के सभी अंगों की अपनी-अपनी हिस्सेदारी होती है। यदि शरीर का कोई अंग अपनी हिस्सेदारी निभाना बन्द कर दे तो शरीर के संचालन में बाधा उत्पन्न हो जाती है। रामराज्य के हम सभी हिस्सेदार हैं। रामराज्य को सार्थक सिद्ध करने के लिए हम सभी को अपना-अपना कत्र्तव्य पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से निभाना होगा। सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम के मन्दिर का शिलान्यास किया जा चुका है और अब इसका निर्माण कार्य आरम्भ होगा जिसकी रूपरेखा तैयार कर ली गई है। मन्दिर निर्माण के लिए कुशल शिल्पकारों को अपनी हिस्सेदारी निभानी है। यदि कोई शिल्पकार अपनी हिस्सेदारी निभाते समय कहीं चूक कर जाता है तो श्रीराम मन्दिर में वह कमी हर समय खलेगी। इसी प्रकार रामराज्य के नीति निर्देशक तत्व रामराज्य के संचालन में मार्गदर्शन करेंगे। हर नागरिक को उन निर्देशांे का पालन करना होगा। ऐसी स्थिति में रामराज्य की कल्पना साकार होगी। यदि कोई नागरिक ठीक से पालन नहीं करता है या अपनी हिस्सेदारी नहीं निभाता है तो रामराज्य का सपना पूर्ण साकार नहीं हो सकता। अतः रामराज्य के लिए सभी के हिस्सेदारी स्वयंमेव अनिवार्य होनी चाहिए।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
राम मंदिर निर्माण के लिए पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि पूजन कर दिया !
यह भूमि पूजन स्वतंत्र भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय बन गया, पाँच अगस्त ऐतिहासिक दिन हो गया है ।
यह तो सभी जानते हैं कि वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए भगवान राम ने एक सुखी राज्य की स्थापना की थी़ उन्होंने भावनाओं और सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साम्राज्य स्थापित किया था़
मर्यादा पुरुषोत्तम ने संकीर्णताओं को तोड़ते हुए मानव समाज की पुनर्रचना की जो नींव रखी थी, प्रधानमंत्री उस भगवान की जन्मभूमि मंदिर का नींव रख कर संपूर्ण मानव समाज का कल्याण कर एक नया इतिहास रच दिया!
यहां भूमि पूजन के लिए देश भर के पवित्र स्थानों से मिट्टी और जल मंगाया गया था !
हमारे यहाँ विडंबना यह है कि कुछ लोग पवित्र स्थानों की मिट्टी को धार्मिक भट्टी में दहकाने की कोशिश कर रहे थे उन सबका मूंह बंद हो गया अब तमाम अटकलो पर विराम लग गया ।
समाज को तोड़ने का काम कर रहे है़ं कितने ही लोगों के पेट में इसलिए दर्द हो रहा है कि शबरी राम के साथ जुड़ी है़ वन-बंधु शबरी के साथ जुड़े होने से उन्हें चिंता हो रही है कि वन बंधु राम के साथ जुड़ जायेंगे़ लाख प्रयत्न करें तो भी देश के वन बंधुओं को राम से अलग नहीं किया जा सकता है़ राम उनके प्राण है़ं जिस दिन वन-बंधुओं के प्राण उनके शरीर से अलग हो जायेंगे, उसी दिन वे राम से अलग हो सकते है़ं
राम के लिए सब अपने थे़ विश्व इतिहास कहता है कि हिंदू समाज मन से सहिष्णु है़ इस देश की जनता भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए वर्षों से राम राज्य की स्थापना की राह ताक रही है़ राम के बिना राम राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है़ इसी उद्देश्य से अयोध्या में प्रभु राम के जन्म स्थल पर भव्य मंदिर बनाने की आवाज उठी, इसके लिए सारे देश में एक स्वर से आंदोलन हुआ था़,
वर्षो की साध पुरी हुई । श्री गणेश हो गया !
राम राज्य का मतलब ही है सब बराबर सब एक साथ चलने का नाम ही रामराज्य है !
राम राज्य सब अपने है कोई पराया नहीं है , जब कोई पराया नहीं रहता को सबकी भागीदारी
ोअपने आप देश के विकास में निहित हो जाती !
आदेश देने की जरुरत नही पड़ती सब ईमानदारी से अपनी अपनी हिस्सेदारी उठा कर राम राज्य स्थापित करते है
बोलो जय सिया राम
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
रामराज्य के लिए सभी की हिस्सेदारी अवश्य अनिवार्य होनी चाहिए ! श्री राम ने भी सभी का साथ लेकर सेतु का निर्माण कर रावण जैसे दैत्य का संहार कर रामराज्य लेकर आये !
सभी अपनी स्वतंत्र जिंदगी जीने लगे! एक परिवार का मुखिया घर चलाता है !समस्त परिवार उसका साथ देता है परिवार में खुशियां आती है उसी तरह समस्त देश हमारा परिवार है और मुखिया मोदी जी जो आज के राम हैं वे रामराज्य अवश्य लाएंगे किंतु हमें भी समरसता लाते हुए सभी पार्टी को एक हो जाना होगा! धर्म, पार्टी अलग हो किंतु उद्देश्य एक ही हो सभी खुश रहें ! कोई भेदभाव न हो!देश में रामराज्य आ जाए! भ्रष्टाचार न हो, सभी एक दूसरे की महत्ता को समझे और स्वतंत्र हो अपना और दूसरों के लिए सोच एक परिवार की तरह रहे यही रामराज्य है और हमारा मुखिया जो आज का राम है मोदी जी उनका साथ दें!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
'रामराज्य' शब्द में ही राम निहित हैं। राम की छवि आदर्श पुरुष की है। उनके द्वारा उच्चरित वाक्य और सोच आदर्शवादिता की मिसाल हैं। हमारे धर्मगुरुओं ने भी शास्त्र के अनुरूप ही राम का चरित्र बताया है। उनके द्वारा स्थापित नियमों का अयोध्यावासियों ने दिल से अपनाया।
कोई भी राज्य तभी समृद्ध और शांति का प्रतीक बनता है जब प्रजा राजा की आज्ञा के अनुरूप कार्य करती है। जहाँ सभी सद्भाव बना कर रहते हैं, एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और हमेशा भाईचारा बनाये रखते हैं, वहीं रामराज्य की स्थापना होती है।
अतः सम्पूर्ण समाज की भागीदारी रामराज्य के लिए आवश्यक है। सबसे पहले राजा को अपनी स्वायत्ता कायम करनी होगी ताकि समाज का विश्वास कायम हो सके। राजा और प्रजा के बीच सामंजस्य कायम होना आवश्यक है। तभी सामाजिक वातावरण अनुकूल हो सकता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सबके हैं राम, सबमें हैं राम l"सियाराममय सब जग जानी l " अयोध्या में बहुप्रतीक्षित राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन से एक नये युग की शुरुआत हुई l
श्री राम ने सामाजिक समरसता को शासन की आधार शिला ;बनाया l गुरु वशिष्ठ से ज्ञान, केवट से प्रेम, शबरी से मातृत्व, हनुमानजी एवं वनवासी बंधुओं से सहयोग और प्रजा से विश्वास प्राप्त किया l प्रधानमंत्री जी ने अपने सम्बोधन में रामायण के चरित्रों का उल्लेख कर सामाजिक समरसता को अपनी सरकार का लक्ष्य बताने का प्रयास किया l स्पष्ट संदेश दिया कि अब उनकी पार्टी समाज के इन वर्गो के लिए और काम
करेगी l
राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया राष्ट्र को जोड़ने का उपक्रम है l यह महोत्स्व है,विश्वास को विध्यमान से जोड़ने का, नर को नारायण से जोड़ने का, लोक को आस्था से जोड़ने का, वर्तमान को अतीत से जोड़ने का और स्व को संस्कार से जोड़ने का l
जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का सौभग्य मिला, जिस तरह छोटे छोटे ग्वालों ने भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने में बड़ी भूमिका निभाई l जिस तरह दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, समाज के हर वर्ग ने आजादी की लड़ाई में गाँधी जी को सहयोग दिया उसी तरह राम राज्य लाने के लिए सभी की हिस्सेदारी अनिवार्य होनी चाहिए l
हम जानते हैं जब पत्थरों पर श्री राम लिखकर सेतु बनाया गया वैसे ही हर घर से गाँव गाँव से श्रद्धापूर्वक पूजी शिलाएँ यहाँ ऊर्जा का स्रोत बन गई हैं l देशभर के धामों और मंदिरों से लाई मिट्टी और नदियों का पवित्र जल वहाँ के लोगों की संस्कृति और भावनाएँ अमोघ शक्ति बन गई हैं l
श्री राम ने हमें कर्तव्य पालन की सीख दी है l अपने कर्तव्यों को कैसे निभाएँ, सीख दी है l उन्होंने हमें विरोध से निकलकर बोध और शोध का मार्ग सिखाया l हम राम नीति का पालन करेंगे l
कार्य छोटा हो या बडा, जिसकी जीतनी सामर्थ्य है, अपने कर्तव्य द्वारा अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाकर सहयोग दे सकता है l श्री राम भारत की मर्यादा और संस्कृति हैं l
चलते चलते ---
1.हमारे मन में राम रचे बसे हैं, पहले हम मन मंदिर को बनाकर व्यवहार में राममय हो जाये l देशभर के लोगों के सहयोग से मंदिर की सभी शिलायें प्रेम और भाई चारे का संदेश दे रही है l
2.सभी अपनी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए अपने कर्तव्य करे l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
यह कथन सत्य है कि अगर समाज के लिए कोई भी अच्छा कार्य करना हो तो सारे समाज की हिस्सेदारी अनिवार्य होनी चाहिए क्योंकि राम राज्य जैसा राज्य अगर वनाना हो तो हर मनुष्य को राम जी द्वारा अपनाए गए नियमों का पालन करना होगा
कहने का मतलब यह हुआ कि सव से पहले अपने घर के सदस्यों के मन में यह विचार लाने होंगे कि वो कोई भी एैसा कार्य न करें जो देशहित के विरुद हो, इन्हीं वातों को फिर बिरादरी में उठाएं उसके वाद पंचायत व उसके वाद ऊंचे स्तर पर ताकी हर नागरिक के मन में यह वात पैदा कर दी जाए कि हम सव को अपने भारत के लिए एेसे कार्य करने चाहिए जिस से हर मनुष्य का भला हो सके
एेसा करने से हर मनुष्य के मन में एैसे विचार उतपन् होंगे कि वह हर कार्य करने से पहले सोचेगा कि बह किसी मनुष्य अथवा पशू पक्षीं को हानी तो नहीं पहुंचा रहा
एेसा करने से प्रेम भाव वढेगा अथवा कोई उंच नीच का भाव नही रहेगा अथवा निचे से लेकर उपर के स्तर तक हर मनुष्य अपना कार्य इमानदारी से करेगा, जिससे चारों तरफ विकास ही विकास दिखाई देगा और यह भारत फिर सोने की चिडिया कहलाएगा।
इसलिए अगर हमें अपने भारत को राम राज्य की तरह पारदर्शी वनाना है ती संतरी से लेकर मन्त्री तक एक जैसी हिस्सेदारी निभानी होगी चाहे वह किसी भी पार्टी का क्यों न हो।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
राम राज्य यह त्रेता युग की बात है उस युग में करुणा ,त्याग और सत्य की पराकाष्ठा थी ।राम अपनी प्रजा को समान रुप से प्रेम करते थे । उन्होंने सबरी के जूठे बेर खाये ,केवट के साथ मित्र की तरह व्यवहार किया ,हनुमान को अपार प्रेम दिया । राज्यनीति के अन्दर उनके लिए सभी बराबर थे ।मर्यादाओं का पालन करने की वजह से ही राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं ।राम राज्य की कल्पना केवल नीति के आधार पर नहीं कर्म के भी आधार से की जा सकती है । रामराज्य मे सबको सद्भाव और समरसता दिखानी होगी ।राम का जीवन सबको साथ लेकर चलने ,सबके मान सम्मान की चिंता करने,सबकी भलाई करने के लिए समर्पित रहा ।रामराज्य बंधुत्व की भावना से प्रेरित रहा ।अतः रामराज्य में सभी वर्ग की भागीदारी होनी चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " रामराज्य में सभी की सुरक्षा और विकास की अनिवार्यता होना चाहिए । तभी हम सब राम के आदर्श का पालन सम्भव हो सकता है । रामराज्य एक आदर्श राजनीति की परिभाषा है । लोगों के विश्वास का प्रतीक रामराज्य हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
रामराज्य को सुशासन के तौर पर देखा जाता है माना जाता है। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के लिए। इसीलिए उसका उदाहरण दिया जाता है। उसमें वसुधैव कुटुंबकम की भावना भी निहित रहती है। इस तरह की व्यवस्था में जिम्मेदारी तो सभी की होती है स्वविवेकानुसार। किंतु उत्तम व्यवस्था बनाए रखने की संपूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन की होती है। प्रशासनिक अमला यदि निष्पक्ष एवं निस्वार्थ भाव से पूर्ण मुस्तैदी के साथ अपना कार्य संपादित करेगा तो जनता का समर्थन भी उसे मिलेगा जोकि कार्य पूर्णता के लिए निहायत जरूरी है। आज के कलयुगी वातावरण में यह कार्य दुष्कर तो है लेकिन असंभव नहीं। स्वस्थ विचार धारा होगी तो अवश्य उत्तम कार्य संपादित होंगे। सभी की हिस्सेदारी के लिए सभी की उत्कृष्ट मानसिकता होना जरूरी है।
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