डॉ. विष्णुदत्त शर्मा की स्मृति में ऑनलाइन कवि सम्मेलन
जैमिनी अकादमी ने WhatsApp ग्रुप द्वारा ब्लॉग पर डॉ. विष्णुदत्त शर्मा की स्मृति में ऑनलाइन कवि सम्मेलन रखा है ।
डॉ. विष्णुदत्त शर्मा का जन्म 08 अगस्त 1935 को मुबारकपुर ( गाजियाबाद ) उत्तर प्रदेश में हुआ । इन की शिक्षा पी. एच.डी है। इन का लेखन शोध , निबंध , जीवनी आदि पर अधिकतर रहा है । इन के प्रकाशित शोध ग्रन्थ अपराध अभिज्ञान में फोटोग्राफी , पर्यावरण प्रदूषण , पुलिस अन्वेष फोटोग्राफी , प्रदूषण - रोधी वृक्ष , प्रदूषण और रामचरितमानस , नारी और विज्ञान , रामासुर संग्राम ,रामचरित मानस : मूल्यांकन एवं युद्ध पद्धति आदि हैं । इन के अतिरिक्त महार्षि गालव ( जीवनी ), विज्ञान मुक्तावली ( निबंध संकलन ) आदि ग्रन्थ प्रकाशित हुए । इन को अनेकों सम्मान प्राप्त हुये हैं ।
जिसमें जैमिनी अकादमी , पानीपत - हरियाणा द्वारा सुभद्रा कुमारी चौहान जन्मशताब्दी सम्मान व गाजियाबाद - रत्न सम्मान 2004 में दिये गये हैं । इसके अतिरिक्त पं० गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार ( 1984 , 1994 , 2000) , विज्ञान परिषद , प्रयाग द्वारा सम्मान ( 1985 ), अखिल भारतीय ग्रंथ पुरस्कार ( 1995 ) , राष्ट्रीय हिन्दी सेवी शताब्दी सम्मान ( 2000), विज्ञान पार्षद सम्मान ( 2001) , व्हिटेकर विज्ञान लेखन पुरस्कार (2003), दिव्य स्मृति पुरस्कार( 2003) आदि पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हूए । इन का देहावसान चार मई 2009 को हुआ है ।
ऑनलाइन कवि सम्मेलन में पचास से अधिक कवियों ने भाग लिया है । विषय के अनुकूल सिर्फ 21 डिजिटल सम्मान सहित उन की रचनाओं को पेश कर रहे हैं : -
नारी और न्याय
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नारी जग जननी कहलाती है
फिर क्यों इतने दुख पाती है।
नारी ही सृष्टि का आधार है
नारी से ही घर में बहार है ।
आसमां की बुलंदी वो छू रही है
हर ओर परचम लहरा रही है।
समाज उसे सम्मान नहीं देता
उस को कभी न्याय नहीं देता
भेड़िए दरिंदे नोच देते सरेआम
नारी को ही कुल्टा कहते सरेआम।
माँ, पत्नी, बहन बन देती शिक्षा
फिर भी पग पग पर देती परीक्षा।
कलयुग में बलात्कारी को मिलता मान
नारी का ही होता हर जगह अपमान।
दर दर भटक रही न्याय की दरकार
पुकार कोई ना उसकी सुने सरकार।
कहने को बराबरी का दर्जा मिला
हर जगह उसकी जुबान को सिला ।
आज भी कोख में लड़की मारी जाती
आयाशों द्वारा जुए में वह हारी जाती।
नारी जग जननी कहलाती है
फिर क्यों इतने दुख पाती है !
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
नारी की वेदना
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सदा दर्द में जीती आई, मिला नहीं न्याय,
सदियों से शोषित रही, होता रहा अन्याय,
आजीवन कष्टों में रहती, कहलाती बेचारी,
चीर हरे, कभी हरण करे, जग व्याभिचारी।
कमजोर नहीं काम में, फिर भी है अबला,
उसकी सुंदरता समक्ष, पुरुष बजाये तबला,
न्याय की खातिर जगत, दर दर भटके नारी,
काम वासना के लिए, बहुतों को लगे प्यारी।
सतयुग में तारामती, करती थी घर में काम,
हरिश्चंद्र मरघट करे, बिके सरदार डोम नाम,
रोहित उनका मारा गया, पहुंची मरघट द्वार,
न्याय नहीं मिला वहां, अंत में जीत गई हार।
त्रेता में सीता नारी, रावण ने किया अपहरण,
सीता को न्याय मिले, श्रीराम पहुंचे तब रण,
रावण पापी नष्ट हुआ, देर में मिला था न्याय,
फिर एक जन बोल से, वन गमन था अन्याय।
द्वापर युग भी नहीं भला, द्रोपदी का हरा चीर,
भटकती रही हर द्वार पर, कृष्ण हर लिया पीर,
द्रोपदी के चीर हरण का,भीषण हुआ नर संहार,
पांडव जग में जीते थे, कौरव गये युद्ध में हार।
हर युग में सहती आई, अन्याय पर ही अन्याय,
दे रही आज दुहाई, कर दो अब तो कोई न्याय,
आयेगा कल्कि अवतार, कर देता नारी का न्याय,
विष्णु लीला को देखना,करो मिलन का उपाय।।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
नारी और न्याय
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नारी और न्याय
दोनों के साथ अन्याय
दोनों हैं शक्ति के रूप
पुरूष बनाते इसे कुरूप
पैसे पर दोनों बिक जाते
मान-सम्मान सभी गवांते
नारी से दुनिया बनती है
नारी से दुनिया बिगड़ती है
न्याय से प्रसाशन चलता है
अन्याय से मिट जाता है
अपने मतलब के लिए तो
लोग खरीद लेते हैं नारी को
अन्याय में बदलते रहे हैं
लोग हमेशा इस न्याय को
सदियों से नारी पर ही
जुल्म होता आ रहा है
न्याय बाहुबली के पक्ष में
सदियों से होता आ रहा है
नारी झुक जाती पुरुषों के आगे
न्याय बिक जाता ताक़त के आगे
नारी के सामने पुरूष अंधा
कानून के समान न्याय अंधा
पुरुष के सामने नारी बेबस
कानून के सामने न्याय बेबस
नारी पुरुषों की खिलौना
न्याय वकीलों का खिलौना
नारी पूजनीय होती है
न्याय निष्पक्ष होता है
दोनों सम्माननीय हैं
दोनों ही वन्दनीय हैं
नारी है तो सबकुछ है
न्याय है तो दुनिया है
नारी का मत करो अपमान
"दीनेश"न्याय का करो सम्मान
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
मैं केवल श्रद्धा नहीं
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जो देख रहे हो
वह मेरा ऊपरी आवरण है,
हृदय की गहराइयों में
उतर कर देखना कभी...!
कितनी नदियाँ
बह रही हैं मुझमें,
कितने सागर
अपनी मर्यादा में
ले रहे हिलोरें,
सब नदियाँ और सागर
जब करते हैं वार्तालाप
सुन कर देखना कभी....!!
वे कहते हैं
अपने संवादों में
घर और बाहर को
साहस से संभालती है,
कामी दानवों को
स्वयं ललकारती है,
अपने निर्णय ले
आगे बढ़ती है,
विश्वास की
सुदृढ़ नींव पर
घर निर्मित करती है,
इसकी शक्तियों को
तोलना न कभी.....!!!
इसने रचे हैं अध्याय नये
जीवन के कर्मक्षेत्र में,
एकाकी भी
लड़े हैं कई युद्ध
दी है चुनौतियों को भी चुनौतियाँ,
संघर्ष पर लिखा है
अपनी विजय का गीत
एक नहीं कई-कई बार,
शक्ति है उसमें अब
अपना न्याय स्वयं करने की भी
इस योद्धा,शक्ति, नेत्री को
‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’
कह कर सीमा में बाँधना न कभी......!!!!
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
नारी और न्याय
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नारी को न्याय मिलता नहीं जिस देश में
कोई भी सुखी रहता नहीं कभी उस देश में ।
देवता भी कतराते आने में उस देश में
कोई भी सुखी रहता नहीं कभी उस देश में ।
नारी का सम्मान जहां पर
होता वो धरा निराली है
जहां मिले उसे न्याय हमेशा
भूमि वो किस्मतवाली है
नारी हंसती कुदरत बसती सदा उस देश में
सभी सुखी हो रहते हमेशा सदा उस देश में।
नारी की बेइज्जती होती
न्याय नहीं जहां मिलता है
कांटे उगते सदा वहां ही
फूल नहीं कभी खिलता है
दुखी कोई होती नारी जहां बसना नहीं उस देश में
कोई भी सुखी रहता नहीं कभी उस देश में।
देवता भी कतराते आने में उस देश में
कोई भी सुखी रहता नहीं कभी उस देश में।।
- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा -गुजरात
रोबोट
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सुबह से सांझ तक
सदियों से आज तक
मूक रह बिन चूक रह
तेरे थोपे हुए काम
अपना कर्तव्य समझ
मशीनवत
करती रही जो
तुझसे डरती रही जो
रोबोट कहना भी
नाइंसाफ़ी होगा उसको
सहती रही
अनाचार-दुराचार
लुटाती रही प्यार
माँ - बेटी - पत्नी बनकर
अरे संसार
किया कुछ विचार
बैठी है जो अब भी हार
क्या नाम देगा उसे
इस वर्तमान में ...।
- विश्वम्भर पाण्डेय पाण्डे
गंगापुर सिटी - राजस्थान
नारी और न्याय
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नारी और न्याय
विडंबना है...
जीवनदायिनी जो..
जीवन आधार जो..
सृष्टि की जन्म दात्री..
अनेकों रूप है नारी के..
मां बेटी बहन पत्नी...
हर किरदार में नारी है...
गीता रामायण के छंदों में...
बाइबल कुरान गुरुवाणी में...
आदिशक्ति कहलाती है..
विडंबना फिर भी देखो...
हर रिश्तों से न्याय करती ..
स्वयं न्याय के लिए...
अदालत के दरवाजे जाती है...
नारी और न्याय...
नारी को कब न्याय....
क्या समय आयेगा....
या फिर हर युग में..
यही गाथा..
दुहराई जायेगी..
नारी और न्याय...
कब तक.......????
- प्रीति हर्ष
नागपुर - महाराष्ट्र
नारी और न्याय
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नारी सशक्तिकरण का सर्वत्र नारा है,
नारी और न्याय शब्द मात्र छलावा है।
नारी अस्मिता हर पल घिरा खतरे में,
नारी शोषण का दिखता बोलबाला है।
दहेज लोभी गृहलक्ष्मी को जलाते हैं,
तेजाब किशोरियों पर फेंके जाते हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का स्लोगन,
हर तरफ होर्डिंग्स बनाकर सजाते हैं।
पग पग पर बैठे हवस के शैतान हैं,
भलेमानस के रूप में छुपे हैवान हैं।
आसाराम,रामरहीम बाबा के भेष में,
छुपे खाल में भेड़िये बने नारायण हैं।
बेटी सुरक्षा हेतु कानून बनाए जाते हैं,
कानून तोड़ दुष्कर्मी नेता बन जाते हैं।
ये कैसी विडंबना, कैसा आडंम्बरपन,
दुष्कर्मी माला पहना कर पूजे जाते हैं।
मंदिरों में मां दुर्गा, लक्ष्मी पूजन होती है,
पर बेटियों की आबरू तार-तार होती है।
निर्दोष सीता क्यों अग्नि परीक्षा देती है?
बेगुनाह जिंदगी आंसुओं में कट जाती है।
युगों से चली आ रही कैसी परिपाटी है?
आंसुओं की कीमत नहीं आंकी जाती है।
पुरुषों के गुनाह नजरअंदाज हो जाते हैं,
औरत पे चरित्रहीन लांछन लग जाती है।
समाज में पुरुषों की मनमानी चलती है,
बच्चियां हवशियों की शिकार बनती हैं।
असहाय पीड़ित करे गुहार किससे वो ?
कानून भी मुंह देख सजा-ए-मौत देती है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
नारी और न्याय
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लोकतन्त्र के चारों स्तम्भों के प्रहरी,
हम और आप में से,
कुछ लोग चाय की चुस्कियों के संग,
सुबह के अखबार के पन्ने पलटते हैं ।
बडे़ व्यथित मन से
एक नारी से जुल्म की खबर पर,
अपना पूरा ध्यान केन्द्रित करते हैं,
'नारी और न्याय' पर चर्चा करते हैं ।
लगता है बहुत संवेदनशील हैं,
दर्द हो रहा होगा दिल में हमको भी,
चुभ रहा होगा समाज का नासूर सबको भी,
शायद हम सब भी मानव का दिल रखते हैं ।
दिलों में झाँककर जो देखा तो,
किसी के दिल को आनन्द रस लेते पाया,
किसी को भावशून्य सा होते पाया,
कुछ खबर को केवल खबर की तरह पढ़ते हैं ।
किसी को मन ही मन पीड़िता पर तरस आया,
किसी की जुबाँ पर आक्रोश का भाव आया,
किसी ने जुल्मी को जी भर के कोसा,
बस इतसे ही वे अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते है ।
लोकतन्त्र के पहले स्तम्भ के,
झंडाबरदार जो कहे जाते हैं,
वही नीति निर्धारित करने वाले,
नीतियों को ही आरोपी ठहराते हैं ।
एक कैंडिल मार्च दो चार रैलियाँ,
चन्द बहसें एक अनशन प्रायोजित कराते हैं,
मासूम के सूखे आँसूओं के मोल से,
न जाने कितने लोग अपना वजूद बड़ा कर जाते हैं ।
लोकतन्त्र के दूसरे स्तम्भ के,
प्रहरी जो कहलाये जाते हैं,
वही व्यवस्था की गरिमा बनाने वाले,
अपनी भूमिका में लचर पाये जाते हैं ।
लोकतन्त्र के तीसरे स्तम्भ ने भी,
कब मासूम की पीड़ा को दिल से साझा किया है,
कितना उसके दर्द की भयावहता को जिया है,
न्याय की लम्बी प्रक्रिया में वर्षों उसके जख्म रिसते हैं ।
लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ बनने वाले भी,
शब्दों को गहरे रंग में डुबोकर,
खबर को तीसरे पन्ने की चौथी लाइन देकर,
क्या खूब अपनी फर्ज अदायगी करते हैं ।
काश........
लोकतन्त्र के चारों स्तम्भों ने,
अपनी भूमिका से न्याय किया होता,
पहले ने बहरूपिये का भेष न धरा होता,
दूसरे ने अपनी गरिमा से खिलवाड़ न किया होता,
तीसरे ने न्याय में विलम्ब न किया होता,
चौथे ने अपने उसूलों का व्यापार न किया होता ।
और..........
चारों स्तम्भों के प्रहरी यानि हम और आप ने,
अपनी संवेदनशीलता पर भी गौर किया होता,
प्रहरी की जिम्मेदारी को महसूस किया होता,
काश समाज में संवेदनहीनता का भाव न भरा होता ।
तो......
किसी मासूम की सिसकियाँ फिज़ां में तैरती न होतीं,
किसी बच्ची की भयानक चीखें हवा में गूंजती न होतीं,
हर नारी की मुस्कराहट दिलों को सुकून देती,
'नारी और न्याय' की सार्थकता गर्व का भाव देती,
सशक्त होते यदि सभी स्तम्भ शिलाओं की तरह,
समाज को दागदार करने वाली ऐसी तारीख न होती ।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
नारी
****
सदियों से रही कहलाती
त्याग और बलिदान की मूर्ति
जब भी चाहा जिसने भी चाहा
करता रहा उसे प्रताड़ित उपेक्षित
मगर वह चुप रही।
मंदिरों में जाकर करते रहे पूजा आराधना लगाते रहे जयकारे
पति ने जैसा चाहा ढ़ली
परिवार के बनाए उल्टे सीधे
नियम में भी चली
कभी रसोइया, कभी सफाई वाली
बनी सेवा के लिए दासी बनी
जीवनसाथी का मन बहलाने
मेनका रम्भा भी बनी
औलाद के लिए उसने समर्पित
कर दिया अपना जीवन
कभी किसी को नहीं होने दिया
दुखी।
हर रूप में सभी के साथ चल निभाती रही विभिन्न भूमिकाएँ
बिना कुछ कहे आजीवन परछाई
बन चलती रही पति के साथ
हर संबन्ध को निभाया
उसने
मगर क्या वह लोग
जिनके
लिए वह लुटती पिटती रही
कभी निभाया
अपना दायित्व ईमानदारी से उसके प्रति।
कोई नहीं ये प्रश्न पूछति
पूछता भी कौन ।
पति का दिल भर गया तो कुलटा कह कर दिया परित्याग
स्वार्थ पूरा होते ही परिवार ने
कदम कदम पर रोडे़ बिछा
मुश्किल किया जीना तो
स्वार्थी औलाद ने उसे जा पटका
वृद्धाश्रम में।
जीवन भर संघर्ष झेलती रही पर
उफ़ नहीं किया।
कभी किसी ने गल्ती से भी उसका
दुख समझने की कोशिश
नहीं की
वह जब तक जिंदा रही।
तिल तिल मरती रही उन्हीं की खुशी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते विदा हो गई ।
मगर अब ऐसा कदापि नहीं होगा
नारी तभी तक सीता बनके
रहेगी जब तक पति रहेगा राम
वह सतयुग था यह कलयुग है
मतलब कर युग है।
जैसा करोगे वैसा भरोगे
जागरूक व समझदार होकर आज अपने पैरों पर
खड़ी नारी लाचार
पति व परिवार का उठाकर
बोझ करती है
उनका भरण - पोषण
हमारा समाज कब समझेगा
वह तो कोख में
ही मिटा देना चाहता है नारी का अस्तित्व ।
अभी भी स्वीकार कर लो
नारी
हमेशा ही पूज्य थी, है व रहेगी।
देवता भी जब हारने लगे थे
तो
एक नारी ही दुर्गा चंडी बनी
किया दानव संहार
देवताओं की रक्षा की थी।
ये तो ज़रूर पढा़ होगा।
पाहन पूजे हरि मिलें,
तो मैं पूजूँ पहार ।
घर की चकिया कोऊ न पूजै ,
जाकर पीसा खाय ।।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,
रमन्ते तत्र देवता ।
नारी का सम्मान करो
- डॉ. नेहा इलाहबादी
दिल्ली
नारी और न्याय
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युगों युगों से नारी सहती आई है उत्पीड़न, शोषण पुरूष समाज द्वारा
हर क्षण, हर घड़ी सताई जाती रही है वह,
कहीं पत्नी बनकर तो कहीं रखैल बनके भी,
कहीं कहीं तो वह बहन बेटी होकर भी
झेलती है कष्ट बहुत
घर में पति से मार खा कहा कर भी उफ्फ नहीं करती कभी
बाहर मनचलों शोहदों ने जीना हराम किया है अक्सर
गन्दी नज़रों की शिकार हुई है वह सदैव,
मानव भीतर बैठा दानव
उसे झपटने को आतुर रहता सदैव
किंतु वह किसी को दोष नहीं देती / क्योंकि उसका नारी रूप में जन्म लेना ही सबसे बड़ा अभिशाप है पृथ्वी पर
उसे मालूम है भली भांति- पृथ्वी की कोई ऐसी जगह नहीं
जहां- नारी जीवन हो सुरक्षित
आय दिन जब- होते हैं बलात्कार, उत्पीड़न, ससुराल वालों द्वारा जलाकर मारने की अनगिनत घटनाएं, दरिंदे लूटते हैं अस्मत किसी नारी की
तो न्याय की लंबी लंबी दलीलों के बावजूद नारी को न्याय नहीं मिलता /
मिलती है तो सिर्फ बदनामी, समाज की घृणा, ताने, गंदी-गंदी गालियां.........
और..... और.... और...... न्याय चुपचाप आँखों पर पट्टी बांध देख रहा होता है यह सब
होते हुए......??
- मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया - बिहार
नारी और न्याय
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नारी तेरे,रूप हैं अनेक
मां बहन बेटी, बहू है कहलाती।
सभी का सेवाभाव, से मन लुभाती
इस धरा को, संपूर्णता प्रदान करती।।
आज बेबस,विकल और मजबूर
नारी मांगती न्याय,समाज के ठेकेदारों से।
जिसने जलाया,आत्महत्या करने किया
विवश उस क्रूर,निर्दयी परिवार से।।
आज भी,जूती समझी जाती
दासी कहलायी,जाती है नारी।
पुरुष प्रधान, समाज में बेटा
बेटी में अंतर,करती खुद नारी।
कुंवारी मां, उसे किसने बनाया
नारी तवायफ़, कैसे बन गयी।
पुरुष कब सोचेगा,करेगा सम्मान उसका
कब मिलेगा न्याय,पहचान कब पायेगी।।
ससुराल के जुल्म, पीड़ा सहकर
अपना,अपनों का,अपमान सहेगी।
बेटी नहीं, समझी जायेगी बहू
तब तक नारी,न्याय कैसे पायेगी।।
घर की लक्ष्मी,गृहस्वामिनी
सिर्फ कहलाती है, आज की नारी।
घर,पैसे,सम्मान को तरसती
अपनी अस्मिता का न्याय, मांगती है नारी।
- डॉ. मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
नारी और न्याय
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सदियों से ज्वलंत प्रश्न है नारी और न्याय का,
समसामयिक प्रश्न भी है नारी और न्याय का।
अत्याचार होता रहा नारियों पर कई वर्षों तक,
गुलामी की दास्तां झेली नारियों ने कई वर्षों तक।
कुछ परिवर्तन तो हो रहा है आज उनकी स्थिति में,
पर नहीं सुरक्षित पूर्णतः, आज की स्थिति में।
कब मिल पाएगा न्याय उनको सही ढंग से,
कब पाएंगी वे अधिकार अपना सही ढंग से।
हमेशा से प्रश्न उठता रहा है नारी की अस्मत का,
पर नहीं हो पा रहा है बचाव नारी की अस्मत का।
देश में हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं नारियां,
फिर भी असुरक्षित क्यों हो रही हैं नारियां।
क्यों बच जाते अपराधी तत्व उनका शोषण करके?
क्यों नहीं दंडित होते हैं वे उनका दोहन करके?
सच्चे अर्थों में नारी को, न्याय कब मिल पाएगा?
क्या नारी और न्याय का प्रश्न,प्रश्न ही रह जाएगा?
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
नारी और न्याय
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हे नारी तुझ से ही है यह संसार
तुम न्याय की देवी कहलाती
ज्ञान के लिए सब शारदे माँ की आराधना करते !!
दौलत के लिए तो महालक्ष्मी को प्रसन्न करते !!
दुश्मनों को मारना हो तो महाकाली की उपासना करते !!
हे नारी तुम ही जीवन दायनी हो भवतारणी हो!!
अन्याय सह कर भी न्याय करती
नारी तुम महान हो
माँ बन ख़ुशियों भरा संसार देती हो !
जीने के सारे वैभव और नातेरिश्ते देती हो !!
बहन बन कर भाई को रक्षा सुत्र बांधती हो !!
पत्नी बन कर घर को स्वर्ग बनाती हो !!
बुजुर्गों की सेवा परिवार के प्यार बाँटती हो
हे नारी तुम ही न्याय प्रिय हो पक्षपात नही करती र
तुम प्रेम छलकाती हो ममता बाँटती हो
नव जीवन को प्राणदान दे नव सृजन करती हो !!
सूरज और चांद की तरह तुम रोशनी और शीतलता देती हो !!
सारे दुख सह कर भी और को ख़ुशियाँ देती हो ।
हे नारी अपने पर अन्याय कर सबके साथ न्याय करती हो !!
नारी तुम न्याय की देवी हो !
कभी पाषाण सी कभी मोम सी बन जाती हो !
अपने बच्चों का बेहतर भविष्य के लिये ना ना जतन करती हो !!
तुम एक में अनेक हो ,अनेक में एक हो !
ममता छांव , प्यार की मूरत , मोहब्बत की जादूगरनी तुम्ही तो हो !!
वफ़ा की पुजारिन तुम्ही तो हो छल सह कर भी वफ़ा निभाती हो !
हे नारी तुम अद्भुत हो
तुम से ही समाज की आन बान शान है !
संस्कार की पाठशाला तुम्ही से है !
त्याग , तपस्या की पहचान जग में तुम्ही से है!
संयम , हौसला , धैर्य सहनशीलता की पहचान तुम्ही से है !!
जीवन में संघर्षो की जीत तुम्ही से है !
हे नारी तुम हो न्याय प्रिय , पर स्वयं अन्याय बर्दाश्त करती हो !!
हे नारी तुमसे ही यह संसार है !
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
नारी और न्याय
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जब बात न्याय की आती है ।
नारी को घसीटा जाता है
क्यों है ऐसी हालत दुनिया में
नारी को पीसा जाता है।
क्या नारी का कोई मान नहीं ।
क्या उसका कोई अभिमान नहीं
नारी भी शक्ति रूपा है क्या तुमको इतना ज्ञान नहीं ।
नारी को अबला क्यों माना क्या उसका कोई सम्मान नहीं ।
क्यों भूल बैठे हो अभिमानी
बिन नारी तुम्हारा कोई मान नहीं। ।
जिसने तुम को जन्म दिया
वह माता भी तो नारी है।
जो राखी की कलाई पर बांधी है ।
वह बहना भी तो नारी है ।
फिर क्यों इनको इस दृष्टि से तुम हो रोज देखा करते हैं।
नारी की इज्जत लेकर जगत में नीचा करते फिरते हैं।
अब नारी का सम्मान और अभिमान वापस आएगा
न न्याय के लिए नारी को कोई सड़कों पर रुलाएगा ।
अब नारी शक्ति स्वरूपा है
अपने दम पर वह जीती है।
परिवार में करके काम
गमों के घूंट जैसे पीती है ।
इसलिए होश में आओ दुनिया वालों नारी की खातिर।
वरना दुनिया का विनाश समझ लो
होगा कर्मों की खातिर ।
है देवी दुर्गा लक्ष्मी
और काली इसका रूप है ।
सीता अनुसूया पार्वती भी
नारी के ही स्वरूप है।
संजय सिंह मीणा
करौली -राजस्थान
नारी और न्याय
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कहते है लोग अकसर कमजोर है औरत
मर्दों के बाज़ुओं का पर ज़ोर है औरत
सुन लो ओ दुनियावालो औरत नही कमजोर
कुछ करने पे आ जाये तो बन जाती है पुरज़ोर
मर्दों की सारी ग़लतियाँ यह माफ़ करती है
गर मर्द है किसान यह ख़ामोश धरती है
ममता मयी है सबसे यह इंसाफ़ करती है
दामन सभी का माँ बन ख़ुशियों से भरती है
पुरूष हमेशा सोचता लेकिन खुद को बलवान
अन्याय करता औरत पे अबला उसको जान
सहनशीलता औरत का गुण है बड़ा महान
न्याय होगा जब औरत से बडेगा देश का मान
सीता द्रोपदी बनकर भी हर युग में औरत है हारी
देखके हालत औरत की मन रहा हमेशा ही भारी
कभी भ्रूण हत्या हुई कभी दहेज की बलि चढ़ी
हर इक मुश्किल में लड़ने, देखो औरत रही खड़ी
अब तो बेटियाँ उड़ा रही हैं लड़ाकू विमान
टूट गया है अब तो पुरूषों का सारा अभिमान
बेटियों किसी का भी अब तुम को अन्याय नही सहना
बस इतना ही कहती हूँ कुछ और नही मुझे कहना
- सुदेश मोदगिल “नूर”
पंचकूला - हरियाणा
स्त्री और न्याय
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तन को मेरे तेजाब जलाए
ख्वाब मेरे जला न पाए
बना हथियार इस चेहरे को
लिया मैंने नया अवतार
तेजाब जला न पाए ख्वाब।
चमड़ी पिघल कर टपक रही थी
जब मैं आग में झुलस रही थी
दुग्ध स्नान को तड़प रही थी
जीने की बची न कोई आस
जला न पाए तेजाब बचा रहा विश्वास।
सारे सपने,सारे अपने पल में हुए पराये
बिलख रहा मेरा मन दर्पण मुझे डराए
सूरत सीरत में जंग छिड़ी थी
मैं लड़की कमजोर खड़ी थी
पीड़िता क्यूँकर रहूँ मैं फेक तेजाब कोई जाए।
"लक्ष्मी " हूँ मैं पहचान ये मेरी
हक किसे जो छीन ले जाए
एक छपाक मिनटों में चिथड़े है उड़ाए
मैं जली मेरा तन जला जला पूरा समुदाय
उसका मस्तिष्क कैसे बच पाए जिसमे तेजाब समाय।
- संगीता सहाय "अनुभूति"
रांची - झारखंड
नारी और न्याय
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मैंने भी देखा था एक सुनहरा ख्वाब
नारी-जाति के सम्मान का,
अमिट रहने वाले जग में
अपने उस स्वाभिमान का,
बनकर वेदों की ज्ञाता मैंने
सतयुग में पहचान बनायी,
नारी-जाति के गौरव की
एक अखंड ज्योति जलायी।
त्रेता युग में पतिव्रता बनकर
नारी की महिमा जगायी,
निज धर्म के पालन हेतु
कितनी विपदाएं पायी।
रावण की लोलुपता ने
मेरा हरण किया,
अग्नि परीक्षा दी तब
राम ने मेरा वरण किया।
वाह रे पुरुष! फिर भी
तूने मेरा त्याग किया,
असहाय छोड़ा वन में
और मर्यादा का नाम दिया।
द्वापर युग में भी
खो गया मेरा सम्मान,
द्युतक्रीड़ा के पासों में
लगा दिया मेरा मान।
माँ,बहन, बेटी बन कर
जिस पुरुष को प्यार दिया,
उसी ने मेरी इज्जत को
नीलाम सरे बाजार किया।
इस कलयुग में भी
बिखर गये सब मेरे सपने,
लूट रहे मेरी अस्मत को
आज भी मेरे ही अपने।
कभी दहेज तो कभी भ्रूणहत्या
कभी निर्भया कांड किये जाते हैं,
तार तार सब स्वर्णिम सपने
केवल घाव दिये जाते हैं।
बस अब ओर नहीं सह सकती
नारी जाति का अपमान,
नहीं मिटने दूंगी अब मैं
उसका अपना स्वाभिमान।
बंद करो यह तांडव अब तो
नारी अब कमजोर नहीं,
नारी जाति सशक्त हो तो
दुश्मन की अब खैर नहीं।
न्याय की खातिर उसे
अब आगे आना ही होगा
नहीं सहना उसे अन्याय
हर नारी को समझाना होगा।
- डा. साधना तोमर
बड़ौत (बागपत) उत्तर प्रदेश
नारी और न्याय
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नारी से नर है बने
नारी नर की खान
क्या न्याय देता है आज
उनको नारी का सम्मान !
इतिहास गवाह है,
अधर्म हुआ हर युग में
नारी के संग
मर्यादा हुई भंग
कभी नारी मर्यादा पुरुषोत्तम की
सीता बन हारी
कभी कौरव पाण्डव के चौसर में
द्रोपदी बन हारी !
आज कलयुग में,
सौंदर्य की देवी नारी
शोषण का शिकार हो रही
नंगी तस्वीरों में छप
सरे आम निलाम हो रही !
न्याय देवी से न्याय मांगती
खड़ी वनिता न्यायालय में
(न्याय की देवी)
आंखों में पट्टी बांधे खड़ी हूं लाचार
देख न पाऊंगी मैं यह व्यभिचार !
युगों युगों तक नारी को
न्याय न मिल पाया
सौंदर्य की देवी तो बनी नारी
पर, सम्मान कभी न मिल पाया !
अब, उठो जागो नारी
अपनी शक्ति को पहचानों
न्याय को अपने हाथों में ले
असुरों से स्वयं की रक्षा करनी है !
तेरी शक्ति अपरम्पार
तु होती है निराधार
तु ब्रम्हानी तु रुद्राणी
तु काली तु चण्डी है
तेरे क्रोध से ब्रम्हांड है डोलता
हर रुप में तु है भारी पड़ती !
मां दुर्गा का रुप ले
भष्मासुर (रेपिष्ट) का वध करना है
न्यायालय में हर नारी को
न्याय का हक तो मिलना है...
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
नारी और न्याय
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नारी को अबला कहते,
जिनके समझ के फेर।
अबला तो कल्याणी है,
ये जहाँ तू देख।।
नारी है समाज की शोभा,
इससे नही चलती मानव परंपरा।
नारी बिना जग अधिंयारा,
नारी है जग का उजियारा।
सज्जन करते तुझे सम्मान,
ऋषि कहते तू महान।
पर भ्रमित मानव कहते,
उनके लिए तू अभिशाप।
तू आती है कल्याणी,
जग में कल्याण के लिए।
तुझे कब अवसर मिला,
तू तो दौलत की तुला में तौला।
तेरी क्या?औकात नारी,
जो उसे तू क्या कहेगी।
तू अपना अरमान दबाये,
बस यातना सहनी है।
तुझे उपेक्षा करने वाले,
तुझे क्या? न्याय दे पाएंगे।
भ्रमित मंशा में दबे इंसान,
क्या?तेरा सम्मान कर पाएंगे।
लालची तुसझे कब खुश,
उसे अपनी करतूत करनी है।
धन के पुजारी पाखण्डियों को,
बस तेरी अरमानों की बलि देनी है।
तू संस्कार की देवी है नारी,
तेरी संस्कार को करे जग सम्मान।
तेरी संस्कार से सांस्कारिक होकर,
दुश्मन भी करे तुझे प्रणाम।
ऐसी संस्कार भर दो मनु में,
कलुषित समाज की कलंक मिट जाए।
तेरी शीतल छाया पा कर,
हर परिवार स्वर्ग बन जाये।
-उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कब तक
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कोख में ,कब्र सजाएँ कब तक ?
अपनी तस्वीर, ख़ुद ही मिटाएँ कब तक ?
कब तलक,ज़ुल्म सहें दुनिया के
अपनी दुनिया ,ख़ुद ही जलाएँ कब तक ?
न समझा है, न समझेगा ये ज़माना
रो के ,ये दर्द दिखाएँ कब तक ?
एक दिन ,बदल जाएगी,ये दुनियाँ आख़िर
आस का दीप,और जलाएँ कब तक ?
हमको पूजो,ये हमारी चाह
नहीं
ख़ुद को मंदिर में बिठाएँ कब तक ?
ज़ुल्म की हद ने,है हवा दे डाला
दिल के नासूर, छिपाएँ कब तक ?
ज़िन्दगी सुन्न हुई, मौत के सन्नाटे सी
घुट-घुट के भला,जीते जाएँ कब तक ?
बदला लेना,हमारा मक़सद तो नहीं
ख़ुद से अब,वैर निभाएँ कब तक ?
अब तो कंधे से भी,ऊपर उठना है’उदार’
ख़ुद को ख़ुद ही,नीचा दिखाएँ तब तक ?
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ' उदार '
फ़रीदाबाद - हरियाणा
उपरोक्त के अतिरिक्त भूपेन्द्र कुमार , अरुण कुमार, आरती तिवारी सनत, कमलेश कुमार राठौर, डॉ. असीम आनंद, सुनीता गुप्ता, गीता चौहान , डॉ. अनिल कुमार अनिल , प्रज्ञा गुप्ता , सरिता साहिल , रामनारायण साहू राज , सुरेन्द्र सैनी बवानीवाल उड़ता , ललिता कश्यप सायर , बिम्मी प्रसाद वीणा , नूतन गर्ग , मंजू भारती फौजदार. सुधा कर्ण , संगीता गोविल, टीकाराम लोधी, दीपा परिहार दीप्ति , डॉ.छाया शर्मा , अमन बिशनोई , मधु वैष्णव मान्या , डॉ रवीन्द्र कुमार ठाकुर आदि ने अपनी - अपनी रचना पेश की है । सभी की कविता विषय अनुकूल व सुन्दर है । नियम अनुसार ही इक्कीस कवियों को डिजिटल सम्मान से सम्मानित किया ।
जैमिनी अकादमी के नियम अनुसार सभी को सम्मानित करना सम्भव नहीं है । इक्कीस या ग्यारह ही सम्मानित किये जा सकेगें । भविष्य में ध्यान रखें ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
( संचालन व सम्पादन )
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ReplyDeleteहार्दिक आभार जैमिनी अकादमी का श्री विष्णु दत्त शर्मा स्मृति सम्मान प्रदान करके मेरी रचना को सम्मानित करने हेतु समस्त निर्णायक मंडल एवं मंच का आभार🙏 समस्त प्रतिभागी कवि एवं कवियत्रियों को भी बधाई एवं शुभकामनाएंसमस्त सम्मानित रचनाकारो को बहुत बहुत बधाई पुना: जैमिनी जी का धन्यवाद, शुक्रिया 🌺🌺🌺🌺🌺🌺💐💐💐💐💐💐💐💐🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏👏👏👏👏👏👏👏👏👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷💐💐💐💐💐💐💐💐💐
ReplyDelete- डॉ. अलका पाण्डेय
( WhatsApp ग्रुप से साभार )